Uploaded by Vedant Gosai

The Immortals Of Meluha (Hindi)

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मेलहू ा के म ृ यंज
ु य
िशव रचना य क
थम पु तक
अमीश
अनुवाद
िव जीत ‘सपन’
समपण
ीित एवं नील के िलए...
तुम दोन मेरे िलए सब कुछ हो,
मेरे श द और उनके अथ,
मेरी ाथना और मेरे आशीवाद,
मेरा चांद और मेरा सरू ज,
मेरा यार और मेरी िज़ंदगी,
मेरी आि मक िम और मेरी आ मा का अंश।
ओऽम नम: िशवाय
ांड भगवान िशव के सम िसर झुकाता है।
म भी भगवान िशव के सम िसर झुकाता हं।
अनु म
िशव रचना य क
शंसा म
कृत ता
िशव रचना य
अ याय 1:
वे आ गए ह!
अ याय 2:
पिव जीवन क भिू म
अ याय 3:
वह उनके जीवन म वेश करती है
अ याय 4:
देवताओं का िनवास– थल
अ याय 5:
ा का जाित-वग
अ याय 6:
बुरे भा य लाने वाले िवकम
अ याय 7:
भु ीराम का अधरू ा काय
अ याय 8:
अ याय 9:
भगवान का पेय
ेम और उसका प रणाम
अ याय 10:
फणदार यि
वापस आता है
अ याय 11:
नीलकंठ काश म आते ह
अ याय 12:
मेलहू ा का मण
अ याय 13:
अपिव का आशीष
अ याय 14:
मोहन जोदारो का पंिडत
अ याय 15:
अि न से परी ण
अ याय 16:
सय
ू एवं प ृ वी
अ याय 17:
कं ू ज का यु
अ याय 18:
सती और अि नबाण
अ याय 19:
ेम संपािदत हआ
अ याय 20:
मंदार पर आ मण
अ याय 21:
यु क तैयारी
अ याय 22:
बुराइय का सा ा य
अ याय 23:
धमयु , पिव यु
अ याय 24:
िवल ण कटीकरण
अ याय 25:
अ याय 26:
यि य का ीप
का
कृत ता
लो ग कहते ह िक लेखन एक एकाक पेशा है। वे झठू बोलते ह। बहत ही िविश
कार के
लोग के समहू ने इस पु तक क रचना को साकार िकया है। और म उ ह ध यवाद देना चाहता
हं।
संुदरता, बुि एवं उ साह का एक अि तीय मेल, मेरी प नी ीित, िजसने इस पु तक के
सभी पहलओं म मेरी सहायता क और मुझे सुझाव िदये ।
मेरे िपताजी, ी वी.के. ि पाठी को िज ह ने इस पु तक के िहंदी
िकया।
पांतर को संशोिधत
अ यिधक सकारा मक यि व का एक गुट, मेरा प रवार, िजसने लंबे समय तक चली
इस प रयोजना के दौरान मुझे उ सािहत िकया, ध का िदया और सहारा िदया।
मेरे थम काशक एवं अिभकता, अनुज बाहरी को उनके िशव रचना य म िनरपे
आ मिव ास के िलए।
गौतम पद्मनाभन के नेत ृ व वाले मेरे वतमान काशक वै टलड िलिमटेड को एक सपना
मेरे साथ बांटने के िलए।
मेरे संपादक शवणी पंिडत एवं गौरी डं गे को मेरे फुटपाथीय अं ेजी को अ यिधक बिढ़या
बनाने एवं कहानी के वाह को सुंदर बनाने के िलए।
रि म पुस कर, सागर पुस कर और िव म बावा को असाधारण आवरण प ृ
के िलए।
अतुल मंजरे कर, अिभजीत पौडवाल, रोहन धुरी अिमत िचटिनस को उस अिभनव िफ म
ेलर के िलए िजसने इस पु तक के िव य को एक नए तर तक पहंचा िदया है। और तौफ क
कुरे शी को उस िफ म ेलर के संगीत के िलए।
मोहन िवजयन को उनके अि तीय ेस िव ापन के िलए।
आलोक कालरा, ऋिषकेश सावंत और मंदार भरू े को पु तक के
य-िव य एवं चार-
सार के िलए भावी सुझाव के िलए।
डोने ा िड ोन एवं मुकुल मुखज को वेबसाइट के िलए।
आप पाठक का िज ह ने इस रचनाकार म िव ास कर उसक इस पहली कृित को पढ़ा।
और अंत म, मेरा िव ास है िक यह कथा भु िशव क ओर से मेरे िलए एक आशीवाद है।
इस अनुभव से िवनीत हआ, म वयं को एक अलग यि व का पाता हं। कम िचड़िचड़े पन वाला
और दुिनया के अलग-अलग ि कोण को वीकार करने वाला। अतः, सबसे मह वपण
प से,
ू
म भु िशव के सामने अपना िसर झुकाता हं। मुझे अ यिधक आशीष देने के िलए जो मेरी पा ता
से कह अिधक है।
िशव रचना य
िश व! महादेव। देव के देव। बुराई के िवनाशक। भावुक
ेमी। भीषण यो ा। स पण
ू नतक ।
चम कारी माग दशक। सव-शि मान, िफर भी स च र । हािजरजवाबी के साथ-साथ उतनी ही
शी ता से और भयंकर प से ू होने वाले।
कई शताि दय से, िवजेता, यापारी, िव ान, शासक, पयटक, जो भी हमारी भिू म पर आए,
उनम से िकसी ने भी यह िव ास नह िकया था िक ऐसे महान यि सचमुच म ही अि त व म
थे। उ ह ने कि पत िकया िक वे कोई पौरािणक गाथाओं के ई र ह गे, िजनका अि त व मा
मानवीय क पनाओं के े ािधकार म ही संभव हो सकता था। दुभा यवश यह िव ास ही हमारा
चिलत ान बन गया।
लेिकन अगर हम गलत ह? अगर भगवान िशव एक अ छी क पना से कपोल-कि पत नह
थे, बि क र एवं मांस के बने एक यि थे। आपके और मेरे समान ही। ऐसे यि जो अपने
कम के कारण ई र के समान हो गए ह । यही इस िशव रचना य का आधार वा य है जो
ऐितहािसक त य के साथ का पिनक कथा का िम ण कर ाचीन भारत के पौरािणक धरोहर
क या या करता है।
यह पु तक भगवान िशव को एवं उनके जीवन को एक
ांजिल है, जो हम ढे र सारी
िश ाएं देता है। वो िश ाएं जो समय एवं अ ानता क गहराई म खो गए थे। वह िश ा िजससे हम
सभी लोग एक बेहतर मनु य बन सकते ह। वह िश ा िक येक जीिवत यि म एक संभािवत
ई र का वास होता है। हम मा इतना करना है िक वयं को सुनना है।
मेलहू ा के म ृ यज
ुं य रचना य क थम पु तक है जो एक असाधारण नायक क जीवन
या ा का व ृ ांत है। दो और पु तक इसके बाद आनी ह, नागाओ ं का रह य और वायपु ु क
शपथ।
अ याय - 1
वे आ गए ह!
1900 ई.पू., मान सरोवर झील (ित बत के कैलाश पवत क तलहटी म)
िश व ने नारं गी छटा िबखेरते आकाश को देखा। मानसरोवर के ऊपर मचलते बादल के छंटते
ही सय
ू ा त का संकेत हो चुका था। एक बार िफर उस तेज वी जीवन दाता ने िदन समाि क
घोषणा कर दी थी। िशव ने अपने इ क स साल म कुछ ही सय
ू दय देखे थे। िकंतु सय
ू ा त! उसने
यास िकया था िक वह सय
ू ा त देखना कभी न भल
ू े। कोई और िदन होता तो िहमालय क
प ृ भिू म म जहां तक ि जाती वहां तक सय
ू एवं उस िव ततृ झील के इस य–िव तार को
िशव ने अव य देखा होता। िकंतु आज नह ।
वह झील के अंदर तक जाती कगार पर पालथी मारकर बैठ गया और अपने सुडौल मांसल
शरीर को वह िटका िलया। झील के िनमल जल से परावितत होते चमक ले काश म उसे लगे
युग–युगांतर के अनेक घाव के दाग चमक उठे । यह देख िशव को अपने उ मु बालपन क
याद हो आई। वह तो तभी से कई कलाओं म द हो गया था। उसने झील म प थर के टुकड़े
फकने क कला म भी महारथ हािसल कर ली थी। अपने कबीले म सबसे अिधक बार प थर
उछालने का क ितमान उसी के नाम था : स ह बार।
कोई सामा य िदन होता तो अपने उ लासपण
ू अतीत पर, जो अब वतमान क िचंता के
वशीभत
ू था, िशव अव य मु कुरा उठता। िकंतु, आज उसके मुख पर उ लास का कोई भाव नह
था। वह उस ण का आनंद िलए िबना ही अपने गांव क ओर लौट पड़ा था।
गांव के मु य वेश ार के पहरे पर भ चौक ना खड़ा था, िकंतु उसके सहायक चौक ने
नह थे। िशव ने अपनी आंख के इशारे से भ को यह बताया। भ पीछे मुड़ा तो उसने घेरे के बाड़े
पर अपनी सहायता के िलए लगाए गए दो सैिनक को ऊंघते पाया। उसने पहले तो उन दोन को
बुरा–भला कहा और िफर उ ह जगाने के उ े य से जोर से ठोकर मारी। वे दोन हड़बड़ाकर उठ
बैठे।
िशव िनि ंत होकर झील क ओर पुन: मुड़ गया। उसने मन ही मन कहा।
ई र भ का क याण करे । कम से कम वह कुछ िज मेदा रय का िनवाह तो करता है।
झील पर पहंचकर िशव ने याक क हड्डी से बनी िचलम को अपने ह ठ से लगाकर एक
लंबा कश लगाया। कोई और िदन होता तो गांजे से उसके िचंितत मन को थोड़ी राहत िमलती और
वह शांित के कुछ पल िबता पाता। िकंतु आज नह ।
उसने झील के बाई ं ओर देखा, जहां अप रिचत िवदेशी आगंतुक को सैिनक के पहरे म
रखा गया था। उनके पीछे झील थी और िशव के बीस सैिनक के पहरे म होने से इसक संभावना
बहत ही कम थी िक वे चिकत कर देने वाला कोई आ मण कर पाते।
िशव के मन म िवचार पनपा।
उ ह ने अपने हिथयार बड़ी आसानी से दे िदए। ये लोग हमारे देश के र िपपास ु दु
भांित नह ह जो लड़ाई लड़ने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ते रहते ह।
क
िवदेिशय के कहे हए श द बार बार िशव के कान म गंज
ू रहे थे, ‘हमारे देश म आइए। वह
इन पहाड़ के पार है। वह भारत का सबसे संप न और शि शाली सा ा य है। यही नह , परू े
िव म वह सबसे संप न और शि शाली है। अ वािसय को हमारी सरकार सुिवधाएं दान
करती है। आपको उपजाऊ भिू म एवं कृिष के िलए संसाधन िदए जाएं गे। आज आपका कबीला इस
पथरीली उजाड़ भिू म म उ रजीिवता के िलए लड़ाई लड़ रहा है। मेलहू ा आपको ऐसी जीवनशैली
दान करता है िजसक आपने कभी क पना भी नह क होगी। हम इसके बदले म कुछ नह
चाहते। आप शांित से रह, अपने कर का भुगतान कर और देश क िविधय का पालन कर।’
िशव ने यह िचंतन कर िलया था िक उस नए देश म वह िनि त प से मुिखया नह होगा।
या सच म मझ
ु े इसक कमी खलेगी?
उसके कबीलेवाल को िवदेिशय क िविधय के अधीन जीवनयापन करना पड़े गा। उ ह
अपनी जीिवका के िलए ितिदन काम करना होगा।
जीिवत रहने के िलए ितिदन लड़ने क तल
ु ना म तो यही बेहतर होगा।
िशव को यह िवचार उ म तीत हआ। उसने अपनी िचलम से एक और कश िलया। जब धुएं
के बादल छं टे तो उसने गांव के बीच बनी उस झोपड़ी को मुड़कर देखा जहां उन िवदेिशय को
रखा गया था। यह उसक झोपड़ी के ठीक बगल म थी। िशव को सिू चत िकया गया था िक उ ह
आरामदायक न द नसीब नह हई थी। वा तव म िशव उ ह बंदी बना कर नह रखना चाहता था।
िकंतु वह कोई जोिखम भी मोल नह लेना चाहता था।
हम कृित कबीलेवाल से लगभग येक महीने लड़ाई लड़ते रहते ह तािक पिव झील के
िनकट हमारा अि त व अ ु ण रहे। नए–नए कबील के साथ िम ता करके वे ितवष और
अिधक शि शाली बनते जा रहे ह। हम कृित कबीलेवाल को परािजत कर सकते ह, िकंत ु
सम त पवतीय कबीलेवाल को नह । मेलहू ा जाकर हम इस अनाव यक िहंसा से छुटकारा पा
सकते ह और एक सिु वधाजनक जीवन जी सकते ह। इसम कुछ गलत हो, या इसक कोई
संभावना भी है? हम य न इस आ ह को वीकार कर ल? यह सचमच
ु िकतना अ छा तीत
होता है!
राख को झाड़ने के िलए िचलम को एक च ान पर उलटने से पहले िशव ने अंितम कश
िलया और अपने आसन से उठ खड़ा हआ। अपने नंगे सीने पर राख के कुछ कण को मसलकर
उसने अपने बघछाल के घाघरे म हाथ प छा, िचलम उठाई और तेज कदम से गांव क ओर चल
पड़ा। जब िशव गांव के वेश ार के िनकट से गुजरा तो भ और उसके सहयोगी सावधान क
मु ा म खड़े हो गए। िशव ने योरी चढ़ाई और अपनी मु ा से भ को िव ाम करने के िलए
आ त िकया।
यह हमेशा य भल
ू जाता है िक बचपन से ही वह मेरा परम ि य िम रहा है? मेरे मिु खया
बन जाने से वा तव म कुछ नह बदला। उसे अ य के सामने अनाव यक िगड़िगड़ाने क
आव यकता नह है।
िशव ने मन ही मन सोचा।
उस देश म अ य गांव क अपे ा िशव के गांव क झोपिड़यां अिधक वैभवशाली थ ।
उनक ऊंचाई इतनी थी िक एक युवक सचमुच म उनके अंदर सीधा खड़ा हो सकता था। वे
झोपिड़यां मजबत
ू थ और ये शरण– थली उन कठोर पवतीय हवाओं के हार सहते हए तीन वष
तक अिडग खड़ी रह सकती थ । झोपड़ी के अंदर वेश करने पर उसने हाथ म पकड़ी िचलम को
उस ओर उछाल िदया जहां वह आगंतुक बड़ी शांित से सो रहा था।
या तो उसको यह अनभ
ु िू त नह िक वह बंदी है, या िफर उसे सच म ऐसा लगता है िक अ छा
यवहार ही अ छे यवहार को ज म देता है।
िशव के मन म िवचार क धा।
िशव को अपने चाचा जी का वचन याद था, जो उसके गु भी थे। वे अ सर कहा करते थे
िक ‘लोग वही करते ह िजसके िलए समाज उनको ो सािहत करता है। यिद समाज िव ास को
ो सािहत करता है तो लोग िव ासी होते ह।’
यिद वे अपने सैिनक को िश ा देत े ह िक िकसी अजनबी से भी उ म यवहार क अप े ा
करे तो मेलहू ा अव य ही एक िव ासी समाज होगा।
िशव ने अपनी वैभवहीन दाढ़ी को खुजलाते हए उस आगंतुक को गहरी ि
उसे मरण हआ।
से देखा तो
उसने कहा था िक उसका नाम नंदी था।
उस मेलहू ावासी का भारी–भरकम शरीर और िवशाल लग रहा था य िक वह अपनी गहन
िनं ा म भिू म पर ही पसर गया था और उसका िवशालकाय पेट येक सांस के साथ न ृ य क
शैली म फूल–िपचक रहा था। िकंतु मोटापे के बावजदू उसक वचा तनी और िनखरी हई थी। सोते
समय उसका िकसी बालक जैसा आधा खुला मुंह और भी िनद ष तीत हो रहा था।
या यह वही यि है जो मझ
ु े मेरे ार ध क ओर ले जाएगा? या सचमच
ु ही मेरा ऐसा
कोई ार ध है िजसके बारे म मेरे काका ने कहा था?
िशव क वैचा रक या ा अनवरत चल रही थी।
‘इन िवशाल पवत क तुलना म तु हारा ार ध कह िवशालकाय है। िकंतु उसे सच करने
के िलए तु ह इ ह िवशाल पवत को पार करना होगा।’ चाचा जी ने कहा था।
या म अ छी िनयित का पा हं? मेरे िलए मेरे लोग पहले आते ह। या वे मेलहू ा म खश
ु रह
सकगे?
िशव के मन म वैचा रक ं िछड़ने लगा था। वह सोते हए नंदी को िनरं तर घरू रहा था।
तभी उसने शंख– विन सुनी।
कृित वाले!
‘अपना–अपना थान लो!’ तलवार िनकालते हए िशव िच लाया।
अपनी बगल म रखे र यदार लबादे म छुपाई हई तलवार को िनकालकर नंदी त काल ही
खड़ा हो गया। वे दोन तेजी से गांव क ओर दौड़ पड़े । पवू िनयोिजत रणनीित के अंतगत मिहलाएं
अपने बाल–ब च को लेकर गांव के बीच व रत गित से इक ा होने लग । उनके िवपरीत पु ष
अपनी तलवार िनकालते हए बाहर क ओर दौड़ पड़े ।
‘भ ! झील पर हमारे सैिनक!’ वेश ार पर पहंचते हए िशव िच लाया।
भ ने उस आदेश को अ सा रत िकया और गुण कबीले के सैिनक ने त काल ही उस
आदेश का पालन िकया। गुण कबीलेवाले तब आ यचिकत रह गए जब उ ह ने देखा िक
मेलहू ावािसय ने अपने लबाद म छुपाए हए हिथयार िनकाले और गांव क ओर तेजी से दौड़ पड़े
थे। कुछ ही ण म कृितवाले उनके िनकट आ पहंचे थे।
जो भी िदन िबना िकसी मुठभेड़ के बीत जाता तो शाम के धुंधलके म सामा यत: गुण
कबीले के सैिनक उस िदन के िलए ई र का ध यवाद करते थे। मिहलाएं झील के िकनारे अपने
घरे लू काम–काज करत । यिद उन मतावान गुणवाल के िलए कोई दुबलता के ण होते, जब वे
आ ामक कबीलेवाले नह बि क मा ऐसे पवतीय कबीले होते जो उस दुगम एवं िवपरीत भिू म
पर जैसे–तैसे जीवनयापन करने म यासरत होते तो वे ण यही थे। ऐसे ण म कृित
कबीलेवाल क ओर से यह एक सुिनयोिजत घात लगाकर िकया गया हमला था।
लेिकन एक बार पुन: कृितवाल का भा य उनके िव
था। सौभा य से िवदेिशय क
उपि थित के कारण िशव ने गुण कबीलेवाल को चौक ना रहने के िलए कहा था। और इस
कार वे पहले से ही सचेत थे और कृित कबीलेवाल के िलए अचानक हमला करके उ ह च का
देने वाली बात नह हो पाई थी। मेलहू ावािसय क उपि थित ने भी िनणायक भिू मका िनभाई और
उस छोटी र पातपण
ू मुठभेड़ क िदशा को गुण कबीलेवाल के प म मोड़ िदया। कृित
कबीलेवाल को मैदान छोड़ना पड़ा।
र रं िजत और चोिटल िशव ने उस मुठभेड़ के बाद हए नुकसान का जायजा िलया। गुण
कबीले के दो सैिनक ने घातक चोट लगने के कारण दम तोड़ िदया था। उ ह कबीले के वीर
पु ष का स मान िदया जाएगा। िकंतु जो इससे भी अिधक बुरा हआ, वह था िक गुण कबीले क
दस मिहलाओं एवं ब च के िलए यह चेतावनी देर से आई थी। झील के िकनारे उनके अंग–भंग
िकए शरीर पाए गए। नुकसान कुछ अिधक ही हआ था।
कै से नीच लोग ह, जो हमसे मक
ु ाबला नह कर सकते तो औरत और ब च क ह या
करते ह।
अ यिधक ु िशव ने कबीले के सम त लोग को गांव के म य म बुलाया। उसने अपना
मन बना िलया था। िशव ने कहा, ‘यह भिू म बबर लोग के यो य है। हमने िबना कारण के यु
िकए ह, िजसका अंत िदखाई नह दे रहा है। आप लोग जानते ही ह िक मेरे काका ने शांित के
यास िकए थे। यहां तक िक झील के िकनारे तक पवतीय कबील क पहंच को भी वीकारा।
िकंतु इन नीच लोग ने हमारी शांित क इ छा को हमारी कमजोरी समझा। हम सब को पता है
िक उसके बाद या हआ!’
यु क बबरता के आदी होने के बावजदू गुण कबीलेवाले औरत एवं ब च पर इस
िनदयतापण
ू आ मण से परू ी तरह तंिभत थे। िशव बोलता रहा, ‘मने आपसे कभी कुछ भी नह
छुपाया। आप सबको िवदेिशय ारा िदए गए आमं ण क जानकारी है,’ नंदी एवं मेलहू ावािसय
क ओर संकेत करते हए िशव ने व य जारी रखा, ‘उ ह ने आज हमारे साथ कंधे से कंधा
िमलाकर लड़ाई क । उ ह ने मेरे िव ास को जीत िलया है। म उनके साथ मेलहू ा जाना चाहता हं।
िकंतु यह मेरे अकेले का िनणय नह हो सकता।’
‘आप हमारे मुिखया हो िशव,’ भ ने कहा। ‘आपका िनणय हमारा िनणय है। यही हमारी
परं परा रही है।’
‘लेिकन इस बार नह ,’ िशव ने अपने हाथ से इशारा कर कहा, ‘यह हमारे जीवन को परू ी
तरह प रवितत कर देगा। मेरा िव ास है िक यह प रवतन हमारे भले के िलए ही होगा। वह जो
कुछ भी होगा ितिदन क इस उ े यहीन िहंसा क तुलना म अ छा ही होगा। मने आपको बता
िदया है िक म या करना चाहता हं। िकंतु जाने या नह जाने क इ छा आपक अपनी है।
गुणवाल को बोलने द। इस बार म आपका अनुसरण क ं गा।’
गुण कबीलेवाले अपनी परं परा के बारे म परू ी तरह प थे। िकंतु िशव के िलए आदर केवल
प रपाटी पर ही नह , बि क उसके च र पर भी आधा रत था। उसने अपनी बुि म ा और बहादुरी
से ही गुणवाल के िलए अनेक महान सै य िवजय अिभयान का नेत ृ व िकया था।
उ ह ने एक वर म कहा, ‘आपका िनणय हमारा िनणय है।’
कबीले को अपनी भिू म छोड़े पांच िदन बीत चुके थे। मेलहू ा जाने वाले माग म एक बहत बड़ी घाटी
के तल के िकनारे उनका कारवां का था। िशव ने तीन गोल घेर म अपने पड़ाव को यवि थत
िकया। सबसे बाहरी घेरे म याक को बांधा गया, तािक घुसपैठ क दशा म वे सचेतक के साथ–
साथ र ा–कवच का भी काम कर सक। और उसके बाद भी यिद िकसी कार का सं ाम होता है
तो म य घेरे म पु ष को लड़ाई करने के िलए रखा गया था। और सबसे भीतर औरत एवं ब च
को आग के पास एक गोल घेरे म रखा गया था। शरू वीर को सबसे पहले, ितर क उसके बाद
और सबसे भीतरी घेरे म आघात यो य को रखा गया था।
िशव बुरी से बुरी प रि थितय के िलए तैयार था। उसका मानना था िक घात लगाकर
आ मण अव य होगा। केवल देखना यह है िक वह कब होगा।
झील के सामने के थल पर दखल के साथ–साथ उस मह वपण
ू भ–ू भाग पर पहंच से
कृित कबीलेवाल को खुश होना चािहए था। िकंतु िशव को पता था िक कृित कबीले का
मुिखया य य उ ह शांितपण
ू तरीके से जाने देने वाला नह था। य य इससे कम कुछ नह
चाहे गा िक वह एक याित ा यि क तरह थािपत हो। जो यह दावा कर सके िक उसने
िशव के गुण कबीले को परािजत िकया और कृित कबीले को वह भ–ू भाग जीतकर िदया।
िनि त प से यह एक अजीबोगरीब कबीलाई तक था, जो िशव को नापसंद था। िशव जानता था
िक इस कार क प रि थितय म कभी शांित क आशा नह क जा सकती।
िशव को सं ाम अ छा लगता था और वह यु कला से आनंिदत होता था। िकंतु उसे यह भी
पता था िक उनके देश म ये सं ाम िनरथक थे।
उसने नंदी क ओर घम
ू कर देखा जो कुछ दूरी पर चौक ना बैठा हआ था। पड़ाव के दूसरे
घेरे के चार ओर मेलहू ा के प चीस सैिनक बैठे हए थे।
इसने गण
ु कबीले को ही देशांतरवास के िलए य चन
ु ा? कृित कबीले को य नह
चन
ु ा?
िशव क िवचारधारा बीच म ही भंग हो गई य िक उसने कुछ दूरी पर एक साये को िहलते–
डुलते देख िलया था। उसने पुन: उस ओर यान से देखा, िकंतु सबकुछ सामा य–सा तीत हआ।
ऐसी जगह म कई बार काश इस कार के म उ प न कर देते थे। िशव ने अपनी मु ा िशिथल
कर ली।
िकंतु कुछ ण के बाद उसने पुन: उस साये को देखा।
‘सभी अपने–अपने हिथयार उठा लो।’ िशव जोर से िच लाया।
गुण कबीलेवाल और मेलहू ावािसय ने अपने हिथयार बाहर िनकाले और संघष करने के
िलए अपने–अपने थान हण कर िलए य िक कृित कबीले के लगभग पचास सैिनक ने
धावा बोल िदया था। िबना सोचे–िवचारे धावा बोलने के कारण उनको बहत मुि कल का सामना
करना पड़ा य िक सबसे पहले आतंिकत पशुओ ं क दीवार उनके सामने थी। याक ने
अिनयंि त हो चोट लगाना और दुल ी मारना ारं भ कर िदया था। इससे पहले िक वे झड़प शु
कर पाते, अनेक कृितवाले बुरी तरह घायल हो चुके थे। कुछ इनसे बचकर अंदर घुस ही आए
और हिथयार के बीच टकराहट शु हो गई।
कृित कबीले के एक नौिसिखए ने तलवार लहराते हए िशव पर धावा बोल िदया। उसके
आ मण से बचते हए िशव पीछे हट गया। उसके बाद िशव ने अपनी तलवार को वलयाकार घुमाते
हए कृित कबीले के उस आ मणकारी के सीने पर ह का घाव लगाया। उस युवा यो ा ने िशव
को कोसा और िफर वह अपने शरीर के कुछ िह से को खुला छोड़ते हए, िबना अिधक सावधानी
के िशव पर झपट पड़ा। िशव को बस इतना ही अवसर चािहए था। उसने बबरता से श ु क आंत
को काटते हए अपनी तलवार उसके पेट म घुसेड़ दी। िफर त काल ही उस तलवार को अंदर ही
घुमाते हए बाहर िनकाल िलया और उस कृित कबीले के नवयुवक को शनै:–शनै: ददनाक
म ृ यु के िलए वह छोड़ िदया। िशव ने पीछे पलटकर देखा तो एक कृितवाला एक गुण
कबीलेवाले पर आ मण करने के िलए त पर था। उसने त काल ही ऊंची छलांग लगाई और उस
कृितवाले के तलवार िलए हाथ पर वार कर उसका िव छे दन कर िदया।
इसी दौरान िशव समान यु कला म िनपुण भ भी अपने दोन हाथ म तलवार िलए दो
कृितवाल से एक साथ लड़ रहा था। उसका कूबड़ उसक तलवारबाजी म बाधा नह डाल रहा
था य िक वह अपना भार एक ओर से दूसरी ओर सरलता से ले जा रहा था। उसने अपनी तलवार
क धार से एक कृितवाले के गले पर बाई ं ओर वार िकया। वह वह िगरकर तड़पने लगा। उसे
धीरे –धीरे मरने के िलए छोड़, भ ने अपने दाएं हाथ को हवा म लहराकर दूसरे सैिनक के चेहरे
को बीचोबीच काटते हए वार िकया, िजसके कारण उसक आंख बाहर िनकल आई। जैसे ही वह
सैिनक िगरा, भ ने अपने बाएं हाथ क तलवार से बड़ी िनममता से उस पर वार कर िदया और
उस िववश श ु के दुख का अंत कर िदया।
मेलहू ािवासय क ओर से संघष का व प िब कुल ही अलग था। वे अ यिधक द एवं
िशि त सैिनक थे िकंतु िहंसक कदािप नह थे। वे यु के िनयम का पालन कर रहे थे और
िकसी के भी ाण हरने से हरसंभव बच रहे थे।
कृितवाल के सैिनक क कम सं या एवं कमजोर नेत ृ व के कारण कुछ ही समय म
उ ह मुंह क खानी पड़ी। लगभग आधे से अिधक लोग मारे गए थे और जो बच गए थे वो अपने
घुटन के बल िगरे मा ाथ बने हए थे। उ ह म से एक था कृित कबीले का मुिखया य य
िजसके कंधे पर नंदी ने गहरी चोट पहंचाई थी और इसी कारण वह तलवार चला पाने म अ म हो
चुका था।
कृित के मुिखया य य के ठीक पीछे भ अपनी तलवार उठाए, उस पर वार करने के िलए
तैयार खड़ा था। ‘िशव बताइए, शी एवं सरल अथवा धीरे एवं पीड़ादायक?’
इससे पहले िक िशव कुछ बोलता नंदी ने बीच म ही कहा, ‘ ीमान!’
िशव ने मेलहू ावासी क ओर मुड़कर देखा।
‘यह अनुिचत है! वे मा क भीख मांग रहे ह! उनके ाण हरना यु के िनयम के िव
है।’
‘तुम लोग कृितवाल को नह जानते!’ िशव ने कहा, ‘वे बबर ह। वे हम पर आ मण
करते ही रहगे, उ ह कोई लाभ न हो तब भी। इसे समा करना ही होगा। हमेशा के िलए।’
‘यह तो समा होने ही वाला है। आप यहां अब नह रहने वाले। आप बहत शी मेलहू ा म
ह गे।’
िशव शांत मु ा म खड़ा था।
नंदी ने कहना जारी रखा, ‘आप इसे िकस कार समा करना चाहते ह, यह आप पर
िनभर करता है। वैसा ही जैसािक वे करते आए ह अथवा उनसे पथ
ृ क?’
भ ने िशव क ओर देखा। वह ती ा म था।
‘आप कृितवाल को िदखा सकते ह िक आप उनसे बेहतर ह,’ नंदी ने कहा। िशव ने
ि ितज म दूर उन िवशाल पवत को देखा।
ार ध? एक बेहतर जीवन क संभावना?
िशव के मन म एक िवचार क धा। वह भ क ओर मुड़ा और उससे कहा, ‘इनके हिथयार ले
लो। रसद आिद ले लो और इ ह छोड़ दो।’
यिद कृित वाले इतने मख
ू ह िक अपने गांव जा हिथयारब हो वापस आएं ग े तो भी उस
समय तक हम बहत दूर िनकल चक
ु े ह गे।
नंदी ने िशव क ओर यान से देखा, उसे एक आशा क िकरण िदखाई दी। उसके मन म
एक ही िवचार गुंजायमान था िक िशव के पास िदल है। उनम संभावना है। कृपा कर उसे वही रहने
द। हे भगवान राम, म आपसे ाथना करता हं िक उ ह वैसा ही रहने द।
िशव उस नवयुवक सैिनक के पास गया, िजसे उसने अपनी तलवार से घायल कर िदया था।
वह भिू म पर पड़ा वह छटपटा रहा था। पीड़ा के कारण उसका मुख िवकृत था। उसक आंत से र
िनरं तर रस रहा था। पहली बार िशव को कृितवाल के ऊपर दया आई। उसने अपनी तलवार
िनकाली और सैिनक को पीड़ा से मुि
दान कर दी।
िनरं तर चार स ाह के याण के बाद आमंि त अ वािसय का कारवां अंितम पवत क चढ़ाई चढ़
क मीर घाटी क राजधानी ीनगर क बाहरी सीमा म पहंचा। नंदी ने उस उ म भिू म क क ित
के बारे म बड़े जोश से बात बताई थ । िशव ने कुछ और अतु य य को देखने के िलए वयं को
तैयार कर िलया था, िजनके बारे म वह अपनी साधारण मातभ
ृ िू म म क पना भी नह कर सकता
था। उन िवशु एवं वणनातीत य से वह स मोिहत हो गया, वह सचमुच वग था। मेलहू ा।
िवश ु जीवनदायी भिू म!
पवत म गजना करती िसंहनी जैसी वेगवान झेलम नदी ने जब घाटी म वेश िकया तो
उसक गित िकसी सु त गाय–सी मंथर होती चली गई थी। िशव ने क मीर क धरती को बड़े ेम
से पश िकया और घुमावदार माग से िवशालकाय डल झील क ओर आगे बढ़ गया। उसके बाद
भी उसक या ा क नह । उसम डल झील से भी आगे समु तक क या ा जो समाई थी।
उस वहृ द–िव ता रत घाटी म हरी घास क चादर–सी िबछी हई थी िजस पर एक े कृित
िचि त क गई थी; और वह कृित थी क मीर क । एक के बाद एक िबछी फूल क या रय क
भावशाली ंख
ृ लाएं ई रीय रं ग िबखेर रही थ । मा आकाश छूते, हलसकर वागत करते भ य
िचनार के व ृ उनक दीि के वलय को कह –कह भंग करने का दु साहस कर रहे थे। िशव के
कबीले के लोग के थके कान को िचिड़य क मधुर वर–लहरी से आि मक शांित िमली, जो
केवल पवतीय बफ ली हवाओं क उजड्ड िच लाहट के आदी थे।
‘यिद यह सीमांत ांत है तो देश का शेष भाग िकतना उ म होगा?’ िशव िव मय म
फुसफुसाया।
डल झील मेलहू ावािसय का एक ाचीन सै य पड़ाव– थल था। झेलम के बगल म झील के
पि मी िकनारे पर यह सीमांती नगर था जो सामा य िशिवर से एक वैभवशाली ीनगर, व तुत:
एक ‘स मािनत नगर’ के प म, िवकिसत हो चुका था।
ीनगर को लगभग सौ हे टेयर क भिू म क एक िवशालकाय वेिदका पर थािपत िकया
गया था। यह वेिदका िम ी से िनिमत थी, िजसक ऊंचाई लगभग पांच मीटर थी। उस वेिदका के
पवत पर नगर क बाहरी दीवार बनाई गई थी, जो बीस मीटर ऊंची और चार मीटर मोटी थी। परू ा
का परू ा शहर एक वेिदका पर थािपत करने क सादगी और उसक भ यता ने गुणवाल को
भ च का कर िदया था। यह श ुओ ं से सुर ा का एक ठोस उपाय था। उ ह दुग क दीवार से
लड़ना होगा जो अव य ही बहत उ कृ एवं ि थर भिू म थी। इस वेिदका से एक अ य लाभ भी था:
इसने नगर क भिू म के तर को ऊंचा उठा िदया था िजससे बार बार आती बाढ़ से भावशाली
ढं ग से सुर ा हो जाती थी। उस देश म बहधा बाढ़ के कारण तबाही हआ करती थी। दुग के अंदर
सड़क क जालदार यव था से नगर को अनेक े म िवभािजत िकया गया था। उ ह ने
िवशेषकर बाजार े , मंिदर, बाग–बगीचे, सभागार एवं उन सभी कार क यव थाओं का
िनमाण िकया जो िकसी सुिनयोिजत नगरीय जीवन के िलए आव यक थे। आरं भ म तो बहमंिजली
संरचना वाले भवन–खंड ही िदख रहे थे। धनी यि के भवन का अंतर केवल इस बात से पता
चलता था िक उनका भवन–खंड थोड़ा बड़ा था।
क मीर घाटी के िवशु
ाकृितक भू य से िवषमता केवल इतनी थी िक ीनगर
पवू िनधा रत भरू े , नीले एवं सफेद रं ग म िचि त था। सम त नगर व छता, यव था एवं गांभीय
का ोतक था। लगभग बीस हजार लोग ीनगर को अपना िनवास कहते थे। अब उनम शािमल
होने के िलए कैलाश पवत से दो सौ अित र लोग आ गए थे। और उनके नेता ने ह कापन
महसस
ू िकया। जैसािक उसने कई साल पहले उस भयानक िदन के बाद से कभी अनुभव नह
िकया था, जब वह गुण कबीले का नेता बना था।
िशव ने अपने मन म कहा।
म बचकर िनकल आया हं। म अब एक नई श ु आत कर सकता हं। म परु ानी बात को सदा
के िलए भल
ू सकता हं।
उस कािफले ने ीनगर के बाहर अ वासी िशिवर तक क या ा क । वह िशिवर एक पथ
ृ क
वेिदका पर नगर के दि ण क ओर िनिमत िकया गया था। नंदी ने िशव एवं उनके कबीलेवाल
क अगुवाई करके उनको िशिवर के बाहर ि थत िवदेिशय के कायालय तक पहंचाया। नंदी ने
िशव को बाहर ही ती ा करने के िलए कहा और वयं कायालय के अंदर चला गया। थोडी ़ही
देर बाद वह एक युवा अिधकारी के साथ वापस आया। उस अिधकारी ने अ य त मु कान के साथ
हाथ जोड़कर औपचा रक प से नम ते करते हए कहा, ‘मेलहू ा म आपका वागत है। म
िच ांगध हं। म आपका अनुकूलन बंधक हं। आप जब तक यहां रह मुझे अपना एकमा संपक
सू समझ। जैसा मुझे पता चला है िक आपके नेता का नाम िशव है। या वे कृपा करके आगे
आने का क करगे?’
िशव ने एक कदम आगे बढ़ाया और कहा, ‘म ही िशव हं।’
‘बहत अ छा,’ िच ांगध ने कहा, ‘ या आप कृपा करके पंजीकरण मेज तक मेरे साथ आने
का क करगे? आपको अपने कबीले के भारी के प म पंजीकृत िकया जाएगा। उनसे संबंिधत
जो भी िचंताएं या सम याएं ह गी वे सभी आपके मा यम से उन तक पहंचाई जाएं गी। चंिू क आप
नािमत नेता ह, अत: आपके कबीले के अंतगत सभी कार के िनदश के पालन का उ रदािय व
आपका होगा।’
नंदी ने िच ांगध के आिधका रक भाषण को बीच म ही रोकते हए िशव से कहा, ‘ ीमान,
यिद आप मुझे अनुमित द तो म अ वासी िशिवर िनवास म जाता हं और आपके कबीले के िलए
जीवन–यापन क अ थायी यव था का बंध करता हं।’
िशव ने अनुभव िकया िक जब नंदी ने उसके भाषण के म य ह त ेप िकया तो िच ांगध
क िचरप रिचत मु कान कुछ ण के िलए िवलीन हो गई, िकंतु वह शी ही संभल गया और
मु कुराहट उसके मुख पर पुन: लौट आई। िशव मुड़ा और नंदी क ओर देखा।
‘िन संदेह, तुम जा सकते हो। तु ह मेरी आ ा लेने क आव यकता नह है नंदी,’ िशव ने
कहा, ‘िकंतु इसके बदले म मुझे एक वचन देना होगा, मेरे िम ।’
‘िन संदेह, ीमान,’ नंदी ने स मान म थोड़ा झुकते हए उ र िदया।
‘तुम मुझे िशव कह कर पुकारो, न िक ीमान,’ िशव मु कुराया, ‘म तु हारा िम हं, न िक
मुख।’
चिकत नंदी ने ऊपर देखा, पुन: झुका और कहा, ‘जी हां, ीमान, मेरा मतलब है िशव।’
िशव िच ांगध क ओर पुन: मुड़ा, िजसक मु कुराहट िकसी कारण से अब वा तिवक
तीत हो रही थी। िच ांगध ने कहा, ‘अ छा तो िशव, यिद आप मेरे साथ पंजीकरण मेज तक
चलगे तो हम औपच रकताओं को शी ता से िनपटा लगे।’
अ वासी िशिवर के आवासीय िनवास– थल म जब नवपंजीकृत कबीला पहंचा तो देखा िक
मु य ार के बाहर नंदी उनक ती ा कर रहा था। वह उनक अगुवानी करके भीतर ले गया।
िशिवर क सड़क भी ीनगर क सड़क क तरह ही थ । वे उ र–दि ण एवं पवू –पि म िदशाओं
म सलीके से िनिमत क गई थ । सावधानीपवू क िनिमत पगडं िडयां िशव के देश म बने धल
ू भरे
पथ–माग के ठीक िवपरीत थ । उसने उन सड़क पर एक अजीब–सी व तु का आलोकन िकया।
‘नंदी, सड़क के बीचोबीच अलग कार के प थर से यह या बना हआ है?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘ये भिू मगत नािलय को ढकने के िलए लगाए गए ह, िशव। ये नािलयां िशिवर से गंदे पानी
को बाहर ले जाती ह। यह सुिनि त करता है िक िशिवर व छ एवं व थ रहे ।’
मेलहू ावािसय क अ यिधक कुशलतापण
ू योजनाओं को देखकर िशव अचंिभत रह गया।
कुछ समय बाद गुण कबीलेवाले उनके िलए िनयत िकए गए एक बहत बड़े मकान म पहंचे।
उ ह ने अपने नेता क बुि म ा पर उ ह बार बार ध यवाद िदया, जो उ ह ने मेलहू ा आने का
िनणय िलया। उस तीन तल वाले मकान म येक प रवार के िलए एक पथ
ृ क आरामदायक
िनवास– थान िदया गया था। येक कमरे म आरामदेह सम त आव यक सामान सि जत थे।
साथ ही एक अ यंत ही प र कृत तांबे क थाली भी दीवार पर लटक हई थी, िजसम अपना
ितिबंब देखा जा सकता था। कमर म सन क बनी हई व छ चादर, तौिलये और यहां तक िक
कुछ कपड़े भी थे। उस कपड़े को छूकर िकंक यिवमढ़
ू िशव ने पछ
ू ा, ‘यह िकस व तु से बना
है?’
िच ांगध ने उ साहपवू क उ र िदया, ‘यह सत
ू ी कपड़ा है, िशव। इसके पौधे खेत म उगाए
जाते ह और उनसे ऐसे कपड़े बनाए जाते ह जैसे आपके हाथ म है।’
सरू ज के काश और गमाहट के िलए येक दीवार पर एक बड़ी–सी िखड़क बनी हई थी।
येक दीवार पर लगे खांचे म धातु का बना डं डा लगा हआ था िजसके ऊपरी िह से म काश
हे तु वाला को िनयंि त करने वाले यं लगे हए थे। येक कमरे से एक नानघर संल न था,
िजसका फश ढलानदार था तािक पानी एक िछ के मा यम से िनकास नाली म चला जाए।
येक नानघर के अंदर दाई ं ओर अंत म एक खड़ं जेदार नाद थी, िजसके नीचे बहत बड़ा–सा
गड्ढा बना हआ था। इस कार के जुगत का या उ े य था यह इन कबीलेवाल के िलए एक
रह य था। उसक बगल क दीवार पर एक यं लगा हआ था, िजसे खोलने पर उसम से पानी
बहने लगता था।
‘जादू!’ भ क माताजी फुसफुसाई ं।
मकान के मु य ार से सटकर एक घर बना हआ था। िशव से िमलने के िलए उस घर से
िनकलकर एक वै और प रचा रका आई। छोटी कद–काठी क एक ेतवण य वै अपनी कमर
से पांव तक ेत व बांधे हई थी, िजसे मेलहू ावासी धोती कहते थे। एक अपे ाकृत छोटा ेत
व चोली क तरह सीने के चार ओर बंधा हआ था। जबिक एक अ य व , िजसे अंगरखा कहा
जाता था, कंधे पर आ छािदत था। उस ी के म तक के बीचोबीच एक ेत िबंदु बना हआ था।
उसके िसर के बाल बड़ी व छता से साफ िकए हए थे और केवल एक गु छा पीछे क ओर लटका
हआ था, िजसे चोटी कहा जाता था। उसने बाएं कंधे से डालकर दािहनी कमर तक एक धागा
पहना हआ था, िजसे जनेऊ कहा जाता था।
वा तव म, नंदी उसे देखकर आ यचिकत था। अ य त कार से नम ते करते हए उसने
कहा, ‘देवी आयुवती! मने आपके समान उ च पद थ वै के यहां होने क आशा नह क थी।’
आयुवती ने नंदी क ओर न ता से नम ते करते हए देखा और मु कुराते हए कहा, ‘ े
काय अनुभव काय म म मेरा अटूट िव ास है, सेनापित। मेरा दल कड़ाई से इसका अनुसरण
करता है। परं तु, मुझे मा कर मने आपको पहचाना नह । या हम पहले िमले ह?’
‘मेरा नाम अिधपित नंदी है, देवी,’ नंदी ने उ र िदया, ‘हम पहले तो नह िमले, िकंतु
आपको कौन नह जानता? आप इस देश क महानतम वै ह।’
‘ध यवाद, अिधपित नंदी,’ कट प से झपते हए आयुवती ने कहा, ‘िकंतु मेरे िवचार से
आप बढ़ा–चढ़ाकर कह रहे ह। कई ऐसे वै ह, जो मुझसे कह बेहतर ह।’ यह कहकर आयुवती
िशव क ओर मुड़ती हई बोली, ‘मेलहू ा म आपका वागत है। म आयुवती हं, आपक नािमत वै ।
म और मेरी प रचा रकाएं आपके सहयोग के िलए ह गी, जब तक आप लोग यहां िनवास करगे।’
िशव क ओर से कोई िति या ना पाकर िच ांगध ने अपने गंभीर वर म कहा, ‘ये
अ थायी िनवास ह, िशव। जो िनवास आपके कबीलेवाल को थायी तौर पर रहने के िलए िदए
जाएं गे, वे इनसे कह अिधक आरामदायक और सुिवधासंप न ह गे। यहां आप लोग को संगरोधन
क अविध तक ही रहना होगा, जो सात िदन से अिधक नह होगा।’
‘नह –नह बंधु! ये िनवास आव यकता से अिधक आरामदायक ह। ये हमारी क पनाओं से
कह अिधक अ छे और सुिवधाजनक ह। आपका या िवचार है मौसी?’ भ क माताजी क ओर
उपहास से मु कुराते हए िशव ने कहा और िफर भक
ृ ु िट चढ़ाकर िच ांगध से बोला, ‘िकंतु यह
संगरोधन य ?’
नंदी ने बात संभालते हए कहा, ‘िशव, यह संगरोधन केवल रोगिनवारण के िलए है। मेलहू ा
म अिधक बीमा रयां नह ह। कई बार संभव है िक जो अ वासी आते ह वे कुछ बीमा रयां लेकर
आए ह । अत: इन सात िदन क अविध म वै उनक जांच–परख करते ह और यिद िकसी ऐसी
बीमारी का पता चलता है तो उसका उपचार कर देते ह।’
‘और इन बीमा रय के िनयं ण के िलए िजन िदशा–िनदश का आपको अनुसरण करना
होता है, वह है वा य मानक का पालन करना,’ आयुवती ने कहा।
िशव ने मुंह बनाकर नंदी क ओर देखा और फुसफुसाया, ‘ वा य मानक का पालन?’
नंदी ने रोषपवू क म तक पर बल देते हए खेद कट िकया, जबिक हाथ से मौन सहमित दे
दी। वह बुदबुदाया, ‘िशव, कृपया ये जैसा कह वैसा ही आप कर। यह उन बहत से काय म से एक
है, िज ह हम मेलहू ावािसय को करना पड़ता है। देवी आयुवती को इस देश का सव म वै माना
जाता है।’
‘यिद आपके पास अभी समय है तो म आपको आपके िलए जो िनदश ह, वे बताना चाहती
हं।’ आयुवती ने कहा।
‘म अभी िब कुल खाली हं,’ िशव ने सपाट भाव से कहा, ‘िकंतु बाद म आपको
करनी पड़ सकती है।’
ितपिू त
भ के मुंह से अ फुट हंसी िनकली जबिक आयुवती ने िशव को भाविवहीन चेहरे से घरू कर
देखा। इससे प था िक वह िशव क े षोि को समझ नह पाई थी।
‘म समझ नह पाई िक आप कहना या चाहते ह,’ आयुवती ने खेपन से कहा, ‘खैर, जो
कुछ भी हो, सबसे पहले हम नानघर से आरं भ करते ह।’ ’
‘ये अस य अ वासी...’ आयुवती ने मन ही मन बड़बड़ाते हए िव ाम गहृ म वेश िकया।
िशव ने अपनी भ ह उचकाकर भ क ओर शरारत भरी मु कान के साथ देखा।
देर शाम बहत ही शानदार भोजन के बाद गुण कबीले के लोग के कमर म एक औषधीय पेय
पीने के िलए िदया गया।
‘िछ:’ भ ने मुंह बनाकर कहा। उसका चेहरा िवकृत हो गया था, ‘इसका वाद तो याक के
पेशाब क तरह है!’
‘तु ह कैसे पता िक याक का पेशाब कैसा होता है?’ िशव ने ठहाका मारकर हंसते हए और
अपने िम क पीठ पर बलपवू क एक धौल जमाते हए कहा, ‘अब तुम अपने कमरे म जाओ। मुझे
सोना है।’
‘आपने िब तर देखा है? मुझे लगता है िक यह मेरे जीवन क सबसे सुंदर न द होने वाली
है।’
‘मने िब तर देखा है, बेवकूफ!’ िशव ने मुंह बनाकर कहा, ‘और अब मुझे उसका आनंद
लेना है। तुम बाहर िनकलो, अभी इसी समय।’
जोर से हंसते हए भ िशव के कमरे से बाहर िनकल गया। उस अ ाकृितक प से नरम
िब तर को लेकर वह अकेला ही उ सािहत नह था। उसके कबीले के सभी लोग अपने–अपने
कमर क ओर ख कर चुके थे य िक उ ह ऐसा महसस
ू हो रहा था िक उनके जीवन क वह
सबसे अ छी न द होने वाली थी। वे अचंभे के िलए तैयार थे।
िशव अपने िब तर पर लगातार इधर से उधर करवट बदल रहा था। उसे न द नह आ रही थी।
इसिलए छटपटाहट थी। उसने नारं गी रं ग क धोती पहन रखी थी। उसका बघछाला धुलने के िलए
चला गया था, व छता के कारण से। उसका सत
ू ी अंगव म् दीवार के बगल म रखी एक छोटी
कुस पर रखा हआ था। अधजली बेदम िचलम पास क मेज पर पड़ी हई थी।
यह शािपत िब तर तो कुछ अिधक ही नरम है। इस पर सोना तो असंभव है।
उसके बाद िशव ने एक झटके म िब तर के ग े पर िबछी हई चादर को ख च िलया। उसे
फश पर िबछाया और लेट गया। यह थोड़ा बेहतर था। न द चोरी–चोरी उसे आगोश म लेती जा रही
थी। िकंतु उस तरह नह िजस तरह अपने घर म िलया करती थी। उसे अपनी झोपड़ी के खुरदुरे
ठं डे फश क कमी खल रही थी। उसे कैलाश पवत क कनकनाती हवाओं क कमी खल रही थी,
िजनक उपे ा करने का िकतना भी ढ़ यास कर वे अपना एहसास िदला ही जाती थ । उसे
अपने बघछाले क आराम पहंचाने वाली दुगध क कमी खल रही थी। इसम कोई संदेह नह था
िक वतमान म उसके आसपास क प रि थितयां अ यंत ही आरामदायक थ , िकंतु वे अप रिचत
एवं अ यदेशीय थ ।
हमेशा क तरह उसक सहज विृ ने सच का बोध कराया: ‘यह कमरे के संबधं म नह है।
यह तो त ु हारे वयं से संबिं धत है।’
उसके बाद ही िशव को यान आया िक वह पसीने से तर हो रहा था। ठं डी मंद हवा उसके
शरीर को छू रही थी, िफर भी वह पसीने से तरबतर होता जा रहा था। ऐसा तीत हो रहा था, जैसे
वह कमरा घम
ू रहा हो। उसने अनुभव िकया, जैसे उसके शरीर से कोई उसे िन कािषत कर रहा
हो। उसे ऐसा तीत हो रहा था िक जैसे उसके शीतदंशयु दाएं पांव का अंगठ
ू ा आग म दहक रहा
हो। सं ाम म लगे घाव के दाग वाला बायां घुटना जैसे िखंचता चला जा रहा हो। उसक थक हई
पीिड़त मांसपेिशय को जैसे िकसी के अ य हाथ पुन: पुराना व प दान कर रहे ह । उसके
कंधे क हड्डी, जो कुछ िदन पहले जोड़ से उखड़ गई थी और िफर कभी सही तरीके से जुड़ नह
पाई थी, ऐसा लग रहा था िक जैसे मांसपेिशय को एक ओर ढकेलकर पुन: अपने सही थान म
जुड़ने का यास कर रही हो। साथ ही मांसपेशी भी जैसे उसे थान दे रही ह तािक वह हड्डी
अपना काम परू ा कर सके।
उसे सांस लेने म िवशेष यास करना पड़ रहा था। फेफड़े क सहायता करने के उ े य से
उसने अपना मुंह खोला। िकंतु पया हवा अंदर नह जा सक । िशव ने अपना मुंह खोला और परू ी
शि लगाकर िजतनी हवा ख च सकता था उतनी ख ची। उसी समय बगल क िखड़क का पदा
सरसराया और कृपालु हवा अंदर घुस आई। सहसा आए हवा के झ के ने िशव के शरीर को थोड़ा
आराम अव य पहंचाया लेिकन उसके बाद पुन: संघष ारं भ हो गया। उसने यान कि त िकया
और हांफते हए सांस लेने लगा।
ठक! ठक!
ार पर ह क खटखटाहट ने िशव को चौक ना कर िदया। इस समय वह अपने आपे म
नह था। वह गहरी–गहरी सांस ले रहा था। उसका कंधा फड़क रहा था। िकंतु वह िचर–प रिचत
पीड़ा अब नह थी। उसने अपने घुटने को देखा। उसम अब कोई पीड़ा नह हो रही थी। घाव के दाग
लु हो चुके थे। अब भी वह सांस लेने के यास म हांफ रहा था। उसने झुककर अपने अंगठ
ू े को
देखा। शीतदंश का भाव समा हो चुका था। वह अंगठ
ू ा पवू क भांित अब पण
ू था। उसका
परी ण करने के िलए वह झुका तो चटकने का एक वर कमरे म गुंजायमान हआ, य िक
साल के बाद उसके अंगठ
ू े म गितिविध हई थी। अब भी वह गहरी सांस ले रहा था। साथ ही
अप रिचत िसहरन पैदा करती ठं ड उसके गले म थी। अ यिधक ठं ड।
ठक! ठक! अब यह खटखटाहट आ ही थी।
िशव िकंकत यिवमढ़
ू था। उसे कुछ भी नह सझ
ू रहा था िक वह या करे । िफर भी वह
लड़खड़ाते हए अपने पैर पर खड़ा हआ। अंगव म् को उठाकर उसने गले म लपेटा तािक उसम
गमाहट आ सके और ार खोल िदया। अंधेरे ने उसके चेहरे को ढका हआ था िकंतु िशव ने भ
को पहचान ही िलया। हड़बड़ाहट म भ फुसफुसाया, ‘िशव, देर रात परे शान करने के िलए मुझे
मा कर। िकंतु मेरी माता जी को अचानक ही ती वर हो गया है। मुझे या करना चािहए?’
िशव ने सहजता से भ के म तक को छुआ और बोला, ‘तु ह भी वर है। तुम अपने कमरे
म जाओ। म वै को बुलाकर लाता हं।’
जब िशव गिलयारे से होते हए वै को बुलाने के िलए जाने लगा तो कई और कमर के ार
खुलने लगे और वही प रिचत संदेश उसे िमलने लगे, ‘अचानक ही वर आ गया। सहायता कर।’
िशव लगभग दौड़ते हए उस मकान क ओर भागा, जहा वै िनवास कर रहे थे। वहां
पहंचकर उसने उनके ार को जोर से खटखटाया। आयुवती ने तुरंत ार खोल िदया, जैसे वह
उसके आने क ती ा ही कर रही थी। िशव ने शांत वर म कहा, ‘आयुवती, मेरे कबीले के
लगभग सभी लोग को वर आ रहा है। आप शी चल, उनको सहायता क आव यकता है।’
आयुवती ने िशव के म तक को छुआ और पछ
ू ा, ‘आपको वर नह है?’
िशव ने इंकार करते हए िसर िहलाया और कहा, ‘नह ।’
आयुवती क भक
ृ ु िट तन गई। प त: वह चिकत थी। वह मुड़ी और प रचा रकाओं से कहा,
‘आप लोग आइए। भाव ारं भ हो चुका है। चल चल।’
जैसे ही आयुवती और प रचा रकाएं तेजी से उस भवन क ओर बढ़े , तो िच ांगध न जाने
कहां से आ टपका। उसने िशव से पछ
ू ा, ‘ या हआ?’
‘मुझे नह पता िक या हआ है। लेिकन मेरे कबीले के लगभग सभी लोग को वर हो गया
है।’
‘आपको भी तो बहत पसीना आ रहा है।’
‘आप मेरी िचंता न कर। मुझे वर नह है। देिखए, म उस भवन म वापस जा रहा हं। म
जाकर देखना चाहता हं िक िकतने लोग इसक चपेट म ह।’
िच ांगध ने सहमित म िसर िहलाया और कहा, ‘म नंदी को बुलाता हं।’
िच ांगध नंदी क खोज म तेजी से बाहर िनकला और िशव लगभग दौड़ते हए उसी भवन म
वेश कर गया। जब वह भवन म िव हआ तो चिकत रह गया। िजतनी भी काश हे तु डं िडयां
(मशाल) लगाई गई थ , वे सभी कािशत हो चुक थ । प रचा रकाएं येक कमरे म मब ढं ग
से जाकर औषिधयां दे रही थ और भयभीत रोिगय को समझा रही थ िक उ ह या करना था।
येक प रचा रका के साथ एक लेखक चल रहा था, जो ताड़प से बनी पुि तका पर येक
रोगी का िववरण िलख रहा था। प था िक मेलहू ावासी इस कार क आपात ि थित के िलए
परू ी तरह से तैयार थे। आयुवती गिलयारे के अंत म अपने कू ह पर हाथ रखे खड़ी हई थी। ठीक
उसी कार िजस कार एक सेनापित अपनी अ यंत द एवं िशि त टुकड़ी का पयवे ण
करता है। िशव तेजी से उसके पास गया और उससे पछ
ू ा, ‘दूसरे और तीसरे तल पर लोग का या
होगा?’
िबना उसक ओर मुड़े ही आयुवती ने उ र िदया, ‘प रचा रकाएं मकान म सभी थान म
पहंच चुक ह। म ऊपर के माले पर तब जाऊंगी जब इस तल पर सब कुछ सामा य हो जाएगा।
अगले आधे घंटे म हम सभी बीमार का परी ण कर लगे।’
‘आप लोग असाधारण प से भावी ह, िकंतु म ई र से ाथना करता हं िक सभी लोग
भले–चंगे हो जाएं ।’ िचंितत िशव ने कहा।
अबक बार आयुवती िशव क ओर मुड़ी। उसक भ ह तिनक ऊपर हई ं और उसके गंभीर
चेहरे पर िवजयी मु कान के संकेत िदखाई िदए। उसने कहा, ‘आप िचंता न कर। हम मेलहू ावासी
ह। हम लोग िकसी भी कार क आपात ि थित से िनपटने म स म ह। सभी लोग व थ हो
जाएं गे।’
‘ या म आपक सहायता करने के िलए कुछ कर सकता हं।’ िशव का वर गंभीर था।
‘जी हां। कृपया जाकर नान कर लीिजए।’ आयुवती ने सपाट वर म कहा।
‘ या?’ िशव च क पड़ा।
‘कृपया जाकर नान कर लीिजए। अभी इसी समय,’ आयुवती ने यह कहते हए पुन: अपनी
टोली क ओर यान िदया, ‘कृपया सब लोग याद रख िक पं ह वष से कम आयु के सभी ब च
के मुंडन होने ह। म क आप कृपया ऊपर जाएं और ि तीयक औषिध क खुराक देने का काय
ारं भ कर। म पांच िमनट म वहां पहंच जाऊंगी।’
‘जैसी आपक आ ा, देवी।’ उस नवयुवक ने कहा और तेजी से पग धरता आगे बढ़ गया।
उसके पास कपड़े का एक बड़ा–सा थैला था। संभवत: उसी म औषिध थी।
‘आप अभी भी यह खड़े ह?’ आयुवती ने पछ
ू ा य िक उसने देखा िक िशव वहां से नह गया
था।
िशव ने अपने बढ़ते ोध पर िनयं ण रखते हए नरमी से कहा, ‘मेरे नान करने से या
अंतर पड़ जाएगा? मेरे लोग मुि कल म ह। म उनक मदद करना चाहता हं।’
‘मेरे पास न तो समय है और न ही धैय िक आपसे बहस कर सकं ू । आप अभी जाएं गे और
नान करगे!’ प
प से आयुवती ने अपने ोध को छुपाने क कोई चे ा नह क थी।
िशव ने घरू कर आयुवती को देखा। उसे अपने मुंह से िनकलने वाले शािपत वचन को न
बोलने के िलए अ यिधक चे ा करनी पड़ी। उसक भ च हई मु यां आयुवती से बहस करने का
संकेत दे रही थ ।
परं तु वह एक
ी थी।
आयुवती ने भी िशव को घरू कर देखा। उसके िनदश का पालन अ रशः िकया जाता था।
वह एक वै थी। यिद उसने िकसी बीमार को कुछ करने के िलए कहा तो उसे आशा थी िक वह
िबना िकसी
के उसक बात पर अमल करे गा। परं तु अपने सुदीघ अनुभव म उसे िशव जैसे
रोिगय से भी वा ता पड़ा था, िवशेषकर आिभजा य वग से। ऐसे रोिगय को कारण बता कर
संत ु करना पड़ता था। उ ह िनदश देने से काम नह चलता था। और यह तो एक साधारण
अ वासी था न िक कोई कुलीन यि !
अपने आपको किठनाई से िनयंि त करते हए आयुवती ने कहा, ‘िशव, आप पसीने से तर
हो। यिद आप इसे नह धोएं गे तो यह ाण–हारक िस हो सकता है। कृपया, मुझ पर भरोसा रख।
यिद आप वयं ही जीिवत न रहे तो अपने कबीले के लोग क मदद नह कर सकगे।’
िच ांगध ने जोर से ार खटखटाया। बुरा–भला कहते हए अलसाई आंख के साथ नंदी उठा।
उसने झटके के साथ ार खोला और गुराया, ‘यह अव य ही मह वपण
ू होना चािहए, वरना!’
‘शी आइए। िशव के कबीलेवाले बीमार पड़ गए ह।’
‘अभी से ही? िकंतु यह तो पहली ही राि है!’ नंदी ने िच लाकर, अपना अंगव म् उठाते
हए कहा, ‘चलो चल!’
नान करने के िलए नानघर एक अजनबी थल तीत हआ। िशव को सद मानसरोवर झील म
डुबक लगाकर नहाने क आदत थी और वह भी महीने म केवल दो बार। वह नानघर उसे
असाधारण प से संक ण अनुभत
ू हआ। उसने दीवार पर लगे जादुई यं को घुमाया तािक पानी
का बहाव तेज हो जाए। उसने उस अनजानी िटिकया को अपने शरीर पर मला तािक शरीर व छ
हो जाए िजसे मेलहू ावासी साबुन कहते थे। आयुवती ने प कर िदया था िक साबुन लगाना
आव यक था। उसने नान करने के बाद उस यं को बंद िकया और तौिलया उठा िलया। जब वह
तौिलये से अपने शरीर को रगड़–रगड़कर साफ करने लगा तो उसे पुन: बड़ी ती ता से वही
रह या मक अनुभिू त होने लगी जो कुछ घंटे पहले हई थी और िजसक उस समय उसने उपे ा
कर दी थी। उसके कंधे अब नवीन से कह े अनुभत
ू हो रहे थे। उसने िव मय से झुककर
अपने घुटने को देखा। कोई पीड़ा नह थी, कोई दाग नह था। उसने आ यचिकत हो अपने पैर के
अंगठ
ू े को देखा जो परू ी तरह व थ हो चुका था। इतना ही नह बि क उसके बाद उसे एहसास
हआ िक उसके शरीर के कुछ अंग ही नह बि क उसका सम त शरीर ही नवजीवन का अनुभव
कर रहा था, पुन: युवा हो चुका था और पहले से भी अिधक शि शाली महसस
ू कर रहा था।
य िप उसका गला अब भी अस
प से ठं डा था।
यह या तमाशा हो रहा है?
उसका मन चंचल था। वह तेजी से नानघर से बाहर आया और शी एक नई धोती पहन
ली। आयुवती का कड़ा िनदश था िक कोई अपने पुराने व को धारण न करे जो पसीने से गंदे
हो चुके थे। वह जब अंगव म् को अपने गले म लपेट रहा था तािक उसको गम दान कर सके
तभी िकसी ने ार खटखटाया। यह आयुवती थी और उसने बाहर से पुकारा, ‘िशव, या आप ार
खोलने क कृपा करगे? म परी ण करना चाहती हं िक आप ठीक–ठाक ह।’
िशव ने ार खोल िदया। आयुवती ने अंदर वेश िकया और िशव के शरीर के ताप का
परी ण िकया। उसका ताप सामा य था। आयुवती ने िसर िहलाया और कहा, ‘आप व थ तीत
होते ह और आपके कबीलेवाले भी शी ता से भले–चंगे होते जा रहे ह। संकट के ण बीत गए ह।’
िशव ने कृत तापण
ू मु कान के साथ कहा, ‘आपके दल क काय–कुशलता एवं स मता
को बहत–बहत ध यवाद। मुझे सचमुच बहत खेद है िक मने आपसे अनाव यक ही तक–िवतक
िकया। वा तव म वह अनाव यक था य िक आप हमारे भले के िलए ही सब कुछ कर रही थ ।’
आयुवती ने ताड़प क पु तक से ि हटाकर ह के–से मु कुराकर ऊपर क ओर देखा
और अपनी भ ह उचकाकर कहा, ‘शालीन, या हम ऐसे ह?’
‘म उतना भी अ खड़ नह हं, िजतना आप समझ रही ह,’ िशव ने ह क मु कान के साथ
कहा, ‘आप लोग कुछ अिधक ही सौ य ह।’
आयुवती ने जैसे ही िशव को देखा तो वह उ ह देखती ही रह गई। उसका चेहरा भावहीन हो
चुका था और सहसा उसे कुछ भी सुनाई नह दे रहा था। वह इससे पहले इस बात पर गौर य
नह कर सक ? उसने कभी भी लोककथा (पौरािणक गाथा) पर िव ास नह िकया था। या वह
मानव जाित म थम होगी जो इस स य को सच होते देखेगी? अ यिधक दुबलता से हाथ से
संकेत करके उसने बुदबुदाते हए पछ
ू ा, ‘आपने अपने गले को य बांध रखा है?’
‘न जाने य इसम अ यिधक ठं ड क अनुभिू त हो रही है। या यह सचमुच ही िचंता का
िवषय है?’ िशव ने अपने अंगव म् को हटाते हए पछ
ू ा।
उस शांत कमरे म आयुवती क चीख गुंजायमान हो गई। चीखते ही सहसा उछलकर वह
पीछे हो गई। बड़ा सदमा लगे िकसी मनु य क भांित उसके हाथ मुंह पर थे, जैसे उसे िव ास नह
हो रहा हो और उसके हाथ से ताड़प छूटकर कमरे के अंदर िबखर गए थे। उसके घुटने इतने
िनबल हो गए थे िक उसके िलए खड़ा होना किठन जान पड़ रहा था। वह अपनी पीठ के सहारे
पीछे दीवार पर ध म से िटक गई, िकंतु उसक आंख अब भी िशव पर िटक हई थ । उसक गव ली
आंख से अ ुधारा बहने लगी। वह लगातार इ ह श द का उ चारण करती जा रही थी, ‘ओऽम
ाय नम:, ओऽम
ाय नम:।’
‘ या हआ? या कोई गंभीर बात है?’ िचंितत िशव ने पछ
ू ा।
‘आप आ गए ह! मेरे भु, आप आ गए ह!’
इससे पहले िक आ यचिकत िशव आयुवती क इस असाधारण िति या पर कुछ कर पाते,
नंदी ने तेजी से कमरे म वेश िकया और देखा िक आयुवती भिू म पर बैठी हई िशव को अपलक
देख रही ह और उनके नयन से अिवरल अ ुधारा वािहत हो रही है।
‘हे देवी, या हआ? कृपया बताइए?’ चिकत नंदी ने पछ
ू ा।
आयुवती ने कुछ कहा नह केवल िशव के गले क ओर संकेत िकया। नंदी ने ऊपर देखा।
िशव का गला रह यमयी तेज वी नीला िदख रहा था। िपंजरे से मुि के समय िकसी पशु के मुख
से जैसी चीख िनकलती है, ठीक वैसी चीख उसके मुंह से िनकली और उसने भी अपने घुटन के
बल ध म से िगरकर कहा, ‘मेरे भु, आप आ गए ह! नीलकंठ आ गए ह।’
अिधपित नंदी स मानपवू क नीचे झुका और नीलकंठ के चरण म भि पवू क िसर नवाते
हए पश करने को हआ तो उसके ाथनीय पीछे हट गये। वह सं िमत और उि न था। उसे
समझ म नह आ रहा था िक या हो रहा है।
‘आिखर ये सब या बकवास हो रहा है?’ उसने
ोधपवू क पछ
ू ा।
अपनी बफ ली गदन पर एक हाथ रखते हए वह मुड़ा और उसने दीवार पर टंगी तांबे क
प र कृत लेट क ओर देखा और िफर उसने उस नीलकंठ; उस नीले गले के ितिबंब को देखा
तो वयं उस अचंभे से त ध रह गया।
ार क चौखट को सहारे के िलए पकड़े िच ांगध एक ब चे क भांित यह कहते हए रोने
लगा, ‘हम लोग बच गए! हम लोग बच गए! वे आ गए ह!’
अ याय - 2
पिव जीवन क भूिम
क
मीर का रा यपाल चेन वज सम त िव म यह सा रत करना चाहता था िक उसक
राजधानी म नीलकंठ कट हए थे, न िक त िशला, करचप या लोथल के सीमांत नगर म
बि क उसके अपने ीनगर म! िकंतु मेलहू ा क राजधानी अथात देवताओ ं के िनवास- थल
देविग र से संदेशवाहक प ी ने त काल ही आगमन कर िलया था। आदेश अ यंत ही प था।
जब तक िक स ाट नीलकंठ को वयं नह देख लेते उनके आगमन के इस समाचार को गु
रखा जाए। चेन वज को आदेश िमला िक वह मागदशक के साथ नीलकंठ को देविग र तक
पहंचवाने क कायवाही त काल कर। इसके साथ ही िशव को भी पौरािणक कथा सुनाने या
बताने क आव यकता नह है। ‘स ाट नीलकंठ को उपयु समय म इसके संबंध म बताएं गे।’
संदेश म ये श द कहे गए थे।
िशव को इस या ा के बारे म बताने का सौभा य चेन वज को ा हआ। िकंतु िशव सहज
अनुगामी मनोविृ म नह था। जब से वह गवनर के आलीशान महल म िवलािसतापण
ू िनवास
कर रहा था, तभी से वह अपने आसपास रहने वाले येक मेलहू ावासी क इस अचानक भि से
हैरान था। और यह भी एक िविच बात थी िक ीनगर के मा अित िविश
यि य को ही
उससे िमलने का सौभा य ा हो पा रहा था।
‘हे भु, हम लोग आपका हमारी राजधानी देविग र तक मागदशन करगे। वह यहां से
लगभग एक स ाह क दूरी पर ि थत है।’ चेन वज अपनी िवशालकाय काया एवं मांसल शरीर
को िजतना झुका सकता था उतना झुकाते हए बड़ी किठनाई से बोला।
‘जब तक िक कोई मुझे यह नह बताता िक आिखर हो या रहा है, म कह नह जा रहा!
नीलकंठ क यह या पौरािणक गाथा है?’ िशव ने ु होकर कहा।
‘हे भु, हम पर िव ास रख। आपको सच का पता शी ही चल जाएगा। जब आप देविग र
पहंचगे तो स ाट वयं आपका इस सच से प रचय करवाएं गे।’
‘और मेरे कबीलेवाल का या होगा?’
‘उ ह यह क मीर म भिू म दी जाएगी, भु। एक सुखमय जीवन जीने के िलए िजन
संसाधन क आव यकता होगी, वे उ ह दान क जाएं गी।’
‘ या उ ह बंधक बनाकर रखा जा रहा है?’
‘नह , नह भु,’ कट प से थोड़े परे शान चेन वज ने कहा, ‘वे आपके कबीलेवाले ह,
भु। यिद मेरा बस चलता तो वे जीवनपयत कुलीन क भांित जीवनयापन करते। िकंतु िविधयव था को तोड़ा नह जा सकता है, भु। यहां तक िक आपके िलए भी नह । हम उ ह वही दे
सकते ह, िजनका उ ह वादा िकया गया है। भु, समय के साथ यिद आप आव यक समझ तो इस
देश के िविध-िवधान म फेरबदल कर सकते ह। उसके बाद हम उ ह कह भी िव थािपत कर
सकते ह।’
‘कृपा कर, भु,’ नंदी ने ाथना क , ‘हम पर िव ास रख। आप संभवत: इसक क पना
भी नह कर सकते िक आप मेलहू ा के िलए िकतने िविश ह। हम लोग बहत लंबे समय से
आपक ती ा म थे। हम आपक सहायता क आव यकता है।’
कृपा कर सहायता कर ! हम पर कृपा कर !
कुछ वष पवू क एक अ य िनराशाजनक मनोि
लगी तो वह चु पी के आगोश म समा गया।
मिहला क
ाथना क याद उसे सताने
‘त ु हारा ार ध इन िवशाल पवत से भी िवशाल है।’
‘यह सब बकवास है! म िकसी ार ध का पा नह हं। यिद इन लोग को मेरे पाप का पता
होता तो ये त ण ही ये सब बंद कर देत।े ’
िशव ने मन ही मन सोचा और भ से कहा, ‘भ , मुझे कुछ भी समझ म नह आ रहा है िक
म या क ं ।’
िशव अपने िम के साथ डल झील के िकनारे राजसी बाग म बैठा हआ था। उसका िम
उसक बगल म बैठकर बड़ी ही सावधानी से गांजे को िचलम म भर रहा था। जब भ जान फं ू कने
के िलए आग जलाने वाली तीली को िचलम के पास ले जा रहा था तो िशव ने अपना धैय खो
िदया, ‘यह तु हारे बोलने के िलए इशारा था, बेवकूफ।’
‘नह , दरअसल यह मेरे िलए इशारा था िक म आपको िचलम दे दंू, िशव।’
‘तुम मुझे परामश य नह देते?’ िशव ने यिथत होकर पछ
ू ा, ‘हम लोग अभी भी वही
पुराने िम ह, िज ह ने कभी भी िबना एक-दूसरे से िवचार-िवमश िकए कोई काम नह िकया।’
भ मु कुराया, ‘नह , अब हम नह ह। अब आप हमारे मुिखया ह। कबीलेवाले आपके
िनणय के अनुसार जीवन जीते ह और उनके िलए ाण भी दे सकते ह। यह िकसी यि के
भाव से
नह िकया जा सकता है। हम लोग कृितवाल क तरह नह ह, जहां प रषद के
सबसे मुखर व ा क बात उनके मुिखया को भी सुननी पड़ती है। हम गुणवाल के म य केवल
हमारे मुख क बुि म ा ही सव म है। यही हमारी परं परा है।’
िशव ने रोष म भौह चढ़ाकर कहा, ‘कुछ परं पराएं तोड़ी भी जा सकती ह।’
भ ने चु पी साधे रखी। अपने हाथ आगे बढ़ाकर िशव ने झपटकर भ से िचलम ले ली।
उसने एक गहरा कश िलया तािक गांजे क दानशीलता का भाव उसके शरीर म भावी हो
सके।
‘मने नीलकंठ क पौरािणक कथा के बारे म केवल एक पंि सुनी है,’ भ ने कहा, ‘ऐसा
तीत होता है िक मेलहू ा बहत गहरे संकट म है और केवल नीलकंठ ही उसे इस संकट से उबार
सकते ह।’
‘लेिकन मुझे ऐसा कोई संकट िदखाई नह पड़ता है। सब कुछ बहत अ छी तरह से चल रहा
तीत होता है। यिद वे सही म संकट देखना चाहते ह तो इ ह हम अपने देश म ले जाना चािहए।’
भ ह के से मु कुराया और बोला, ‘लेिकन यह नीले गले वाली या बात है िजसके कारण
इ ह ऐसा िव ास है िक आप इ ह संकट से उबार सकते ह?’
‘काश मुझे पता होता। ये लोग हमसे बहत ही अिधक िवकिसत ह। और इसके बावजदू ये
लोग मेरी पज
ू ा कर रहे ह जैसे िक म कोई भगवान हं। केवल इस ध य नीले गले के कारण।’
‘चाहे जो भी किहए, मुझे ऐसा लगता है िक इनक औषिधयां जादुई ह। या आपने महसस
ू
िकया िक मेरे पीछे का कूबड़ थोड़ा कम हो गया है?’
‘हां, ऐसा ही लगता है! इनके वै सचमुच ही गुणी ह।’
‘आपको पता है, इनके वै
को ा ण कहा जाता है?’
‘जैसे आयुवती?’ िशव ने भ को िचलम वापस देते हए पछ
ू ा।
‘हां। लेिकन ा ण केवल लोग को रोग से छुटकारा ही नह िदलाते। वे िश क, वक ल,
पुजारी भी होते ह, बि क यं ू कहा जाए िक वे सभी कार के बुि जीवी यवसाय म होते ह।’
‘ ितभावान लोग लगते ह,’ नाक सुड़कते हए िशव ने कहा।
‘इतना ही नह है,’ भ ने एक गहरा कश लेने के म य म कहा, ‘इनके पास िविश ता क
अवधारणा है। और इसिलए ा ण के अित र एक ऐसा समहू है िज ह ि य कहा जाता है, जो
यो ा और शासक होते ह। यहां तक िक औरत भी ि य हो सकती ह।’
‘वाकई? ये लोग सेना म औरत को रखने क अनुमित देते ह?’
‘वैसे देखने पर ि य औरत कम ही िदखाई पड़ती ह, लेिकन हां ये लोग औरत को सेना
म रखने क अनुमित देते ह।’
‘ओह हो, इसिलए इसम चिकत होने वाली बात नह है िक ये लोग गहरे संकट म ह।’
दोन िम मेलहू ावािसय क इस िविच था पर िदल खोलकर हंसे। अपनी कहानी जारी
करने से पहले भ ने एक और कश िलया और कहा, ‘और उसके बाद आते ह वै य, जो कारीगर,
यापारी और उ ोग से जुड़े लोग होते ह और अंत म आते ह शू जो िकसान और मजदूर होते ह।
और एक बात यह भी अजीब है िक एक जाित के लोग दूसरी जाित के काम नह कर सकते।’
‘जरा कना,’ िशव ने भ को म य म ही रोकते हए पछ
ू ा, ‘इसका मतलब यह है िक चंिू क
तुम यो ा हो तो तु ह बाजार म यापार करने क अनुमित नह होगी?’
‘जी हां।’
‘ये तो बड़ी बेवकूफ है! तुम मेरा गांजा कैसे ला पाओगे? आिखरकार यही तो एक व तु है
िजसके िलए तुम उपयोगी हो!’
यह कहकर िशव भ के मजाक भरे मु के से बचने के िलए एक ओर झुक गया, ‘ठीक है,
ठीक है। आराम से!’ वह हंसा और उसने हाथ बढ़ाकर भ से िचलम ले िलया और एक गहरा कश
ख चा।
हम लोग वो सब बात कर रह है, उस एक बात को छोड़कर िजसके बारे म हम बात करनी
चािहए।
िशव एक बार पुन: गंभीर हो गया, ‘इनके तरीके सही म िविच ह, लेिकन अब मुझे या
करना चािहए?’
‘आप या करने क सोच रहे ह?’
िशव ने दूर उस बाग म अपनी ि घुमाई, जैसे कोने म िखले गुलाब के फूल को देख रहा
हो, ‘म एक बार िफर से भागना नह चाहता।’
‘ या?’ भ ने िशव क उस संत फुसफुसाहट वाले वर को न सुनने के कारण पछ
ू ा।
‘मने कहा,’ िशव ने दुबारा थोड़ा ऊंचे वर म बोलकर कहा, ‘िक म दुबारा भागने के
अपराध बोध को सहन नह कर पाऊंगा।’
‘वह आपका दोष नह था...’
‘हां, वह मेरा ही दोष था!’
भ चु पी लगा गया। इसके बाद कुछ भी नह था जो कहा जा सकता था। अपनी आंख को
ढकते हए िशव ने गहरी सांस लेते हए पुन: दुहराया – ‘हां, वह मेरा ही दोष था...’
भ ने अपने िम के कंधे पर हाथ रखकर बड़ी ही न ता से दबाया तािक वह दुखदायी
ण िनकल जाए। िशव ने अपना मुंह उसक ओर घुमाकर पछ
ू ा, ‘म सलाह मांग रहा हं, मेरे दो त।
मुझे या करना चािहए? यिद इ ह मेरी सहायता क आव यकता है तो म इससे मुकर नह
सकता। साथ ही म अपने कबीले को अपने भरोसे पर रहने के िलए कैसे छोड़ सकता हं? म या
क ं ?’
भ िशव के कंधे को लगातार पकड़े हए था। उसने एक गहरी सांस ली। वह इस
का
उ र पा चुका था। वह उ र उसके िम िशव के िलए तो उिचत हो सकता था। लेिकन या वह
उ र उस िशव के िलए उिचत था जो एक नेता था, मख
ु था?
‘इस बारे म आपको ही सोचना है िशव। यही परं परा है।’
‘तुम भाड़ म जाओ!’
िशव ने िचलम भ क ओर उछाल िदया और वहां से ती ता से िनकल गया।
इसके कुछ िदन के बाद ही िशव, नंदी और तीन सैिनक के एक छोटे कािफले को ीनगर
छोड़ना था। छोटे दल का अथ था िक वे उस े से शी ता से िनकल पाएं गे और िजतनी ज दी हो
सके देविग र पहंच पाएं गे। रा यपाल चेन वज इस बारे म िचंितत था िक िशव को ज द से ज द
स ाट ारा नीलकंठ के प म वीकृत कर िलया जाए। वह चाहता था िक इितहास म ई र को
ढूंढ़ने वाले के प म उसका नाम सदा के िलए अमर हो जाए।
स ाट के िलए िशव को तुत करने यो य बनाया गया था। उनके िसर के बाल म तेल
लगाकर नरम करके संवारा गया था। उसके
-पु शरीर के ंग
ृ ार के िलए तरह-तरह के
कपड़े , आकषक कुंडल, हार और अ य आभषू ण को लाया गया था। उसके ेतवण य मुख को
िविश आयुविदक जड़ी-बिू टय से रगड़-रगड़कर साफ िकया गया तािक वष से मत
ृ एवं
मुरझायी वचा को दीि मान बनाया जा सके। सत
ू ी कपड़े से बना एक गुलबू ंद बनवाया गया था
तािक उसके दीि मान कंठ को ढका जा सके। उसके ऊपर मोितय के अनेक दाने जड़े गए तािक
वह गुलबू ंद मेलहू ावािसय के परं परागत हार क तरह लगे, िज ह वे धिमक अवसर पर धारण
करते थे। वह गुलबू ंद उसके गले को आव यक गरमाहट भी दान कर रहा था।
‘म शी ही वापस आऊंगा,’ िशव ने भ क माता जी को अिलंगनब करते हए कहा। वह
इस बात पर भी चिकत था िक मौसी का लंगड़ाना अब बहत ही कम िदखाई देने लगा था।
इनक औषिधयां वा तव म जादुई ह।
जैसे ही दुखी भ ने उसक ओर देखा तो िशव ने फुसफुसा कर कहा, ‘कबीलेवाल का
यान रखना। जब तक म वापस नह आता तुम भारी हो।’
भ चिकत होकर एक कदम पीछे चला गया, ‘िशव आपको ऐसा इसिलए नह करना
चािहए य िक म आपका िम हं।’
‘मुझे ऐसा अव य करना चािहए, मख
ू । और ऐसा करने का कारण यह है िक तुम मुझसे भी
अिधक यो य हो।’
भ ने आगे बढ़कर िशव को गले लगा िलया तािक कह ऐसा न हो िक उसका िम उसक
आंख के आंसू देख ले, ‘नह िशव, म इतना यो य नह हं। यह तो म सपने म भी नह सोच
सकता।’
‘चुप रहो और मेरी बात यान से सुनो,’ िशव ने कहा तो भ दुखी मन से मु कुराने लगा,
‘मुझे नह लगता िक गुण कबीलेवाल पर यहां कोई संकट होगा। कम से कम उतना तो नह ही
होगा िजतना कैलाश पवत पर होता था। लेिकन इसके बावजदू , यिद तु ह ऐसा लगता है िक तु ह
सहायता क आव यकता है तो िबना िझझक के आयुवती के पास जाना। जब हमारे कबीलेवाले
बीमार हो गए थे तो मने उ ह समीप से देखा है। उसने हम लोग को बचाने म अ यिधक िन ा
का प रचय िदया था। वह हमारे िव ास करने यो य है।’
भ ने सहमित म िसर िहलाया, िशव को पुन: आिलंगनब िकया और कमरे से बाहर चला
गया।
आयुवती ने बड़ी िवन ता से ार खटखटाया और पछ
ू ा, ‘म अंदर आ सकती हं, भु?’
सात िदन पहले उस घटना के घिटत होने के बाद आज पहली बार वह िशव के सामने आई
थी। उसके िलए यह अविध एक युग बीत जाने के समान थी। य िप पवू क भांित ही वह
आ मिव ास से भरी हई लग रही थी, तथािप उसके व प म कुछ िभ नता अव य िदखाई दे
रही थी। उसके यि व म कुछ ऐसा जान पड़ रहा था िक जैसे उसे िकसी िद य शि ने पश
कर िलया हो।
‘आइए आयुवती और कृपया ये ‘ भु’ आिद कहना छोड़ दीिजए। म अब भी वही अस य
अ वासी हं, िजससे आपक भट कुछ िदन पहले हई थी।’
‘उस िट पणी के िलए मुझे मा कर, भु। वैसा कहना मेरी गलती थी और उसके िलए आप
जो भी दंड मुझे देना चाह मुझे वह वीकाय है।’
‘यह आपको या हो गया है? म आपको सच बोलने के िलए य दंड दंूगा? य इस
अथहीन नीले गले से सब कुछ प रवितत हो जाना चािहए?’
‘आप इसका कारण अव य जान पाएं गे, भु,’ अपना िसर झुकाए हए आयुवती ने
फुसफुसाहट भरे वर म कहा, ‘हमने सिदय आपके आने क ती ा क है।’
‘सिदय ?! कृपा कर उस पिव झील के नाम पर मुझे बताइए, लेिकन य ? वह म या कर
सकता हं जो आप लोग जैसे स म लोग नह कर सकते?’
‘स ाट आपको बता दगे, भु। आपको संतु करने के िलए बस इतना ही कहा जा सकता
है िक आपके कबीलेवाल से जो कुछ भी मने सुना है, उससे तो यही कहा जा सकता है िक यिद
कोई यि नीलकंठ बनने के सुपा ह तो वे केवल आप ह।’
‘मेरे कबीलेवाल से मुझे याद आया िक मने उनसे कहा है िक यिद उ ह कभी भी िकसी भी
सहायता क आव यकता होती है तो वे आपसे अनुरोध कर सकते ह। मुझे आशा है िक आप ना
नह करगी।’
‘उ ह िकसी कार क सहायता दान करना मेरे िलए गव क बात होगी, भु।’ यह कहते
हए भारतीय पारं प रक तरीके से उ ह स मान देने के िलए वह झुक । अिधकतर मेलहू ावािसय
ारा िकए जाने वाले इस कार के भाव अिभनय को वीकार करने म िशव ने लगभग आ मसमपण कर िदया था, िकंतु जब आयुवती झुक तो िशव त काल ही पीछे हट गया।
‘ये आप या तमाशा कर रही ह, आयुवती?’ अ यंत ही भयभीत िशव ने पछ
ू ा, ‘आप एक वै
ह, जीवन देने वाले। मेरे पांव का पश करके मुझे इस कार दुिवधा म न डाल।’
आयुवती ने िसर उठाकर िशव को देखा। उसक आंख आदर और भि से दीि मान हो रही
थ । यही वे यि ह जो िनि त प से नीलकंठ होने के यो य ह। उसने मन ही मन कहा।
नंदी ने िशव के कमरे म एक केस रया रं ग के कपड़े के साथ वेश िकया, िजस पर येक इंच
पर ‘राम’ नाम िलखा हआ था। उसने िशव से अनुरोध िकया वे इसे कंधे के ऊपर धारण कर ल।
िशव ने जैसे ही उसे पहना, नंदी ने देविग र क सुरि त या ा के िलए मं पढ़ते हए बुदबुदाकर
एक छोटी-सी ाथना क ।
‘हमारे अ
नंदी ने कहा।
बाहर ती ारत ह, भु। जब भी आप कह हम अपनी या ा ारं भ कर सकते ह,’
‘नंदी,’ बुरी तरह से खीजते हए िशव ने कहा, ‘तु ह िकतनी बार बताना पड़े गा िक मेरा
नाम िशव है। म तु हारा िम हं न िक भु।’
‘नह , नह भु,’ लंबी सांस भरते हए नंदी ने कहा, ‘आप नीलकंठ ह। आप ई र ह। म
आपका नाम कैसे ले सकता हं?’
िशव ने झुंझलाहट म अपनी आंख तरे री, अपनी गदन को धीरे से इंकार क मु ा म घुमाया
और ार क ओर मुड़कर कहा, ‘म आ म-समपण करता हं। या हम अभी या ा ारं भ कर
सकते ह?’
‘अव य भु।’
वे बाहर आए तो उ ह ने देखा िक तीन अ ारोही सैिनक धैय से ती ारत थे और उनके
बगल म तीन और भी अ बंधे हए थे। एक िशव के िलए, एक नंदी के िलए और एक रसद आिद
के िलए िनयत िकए गए थे। सु यवि थत मेलहू ा सा ा य म सभी मुख या ा माग पर िव ामथल एवं रसद आिद के भंडारण क यव था थी। यिद िकसी या ी के पास एक िदन क भी
साम ी होती और उसके पास मेलहू ा के िस के होते तो वह ताजे रसद आिद खरीदकर अपनी
या ा महीन तक कर सकता था। नंदी के अ को एक छोटी वेिदका के पास बांधा गया था। उस
वेिदका म दूसरी ओर से सीिढ़यां बनी हई थ । प
प से यह थुलथुल मोटे अ ारोिहय के िलए
बहत ही उ म संरचना मक यव था थी, िजनके िलए अ पर चढ़ना पहाड़ चढ़ने के समान
होता था। िशव ने नंदी के उस वहृ द आकार को देखा, उसके बाद उसने उस दुभा यशाली अ को
देखा और उसके बाद पुन: नंदी क ओर मुड़कर देखा।
‘ या मेलहू ा म पशुओ ं के िव
भाव से िशव ने पछ
ू ा।
अ याचार के िलए कोई िवधान नह है?’ अ यिधक गंभीर
‘जी हां, ऐसे िवधान ह, भु। बहत ही कड़े िवधान ह। मेलहू ा म सभी ािणय का जीवन
अमू य है। वा तव म इसके िलए बहत ही कड़े मागदशक िनयम ह िक कब और कैसे जीव ह या
क जा सकती है और...’
सहसा नंदी ने बोलना बंद कर िदया। िशव के मजाक ने अंतत: नंदी क यं योि समझने
क धीमी मता म िछ कर ही िदया। िशव ने जोर से नंदी क पीठ पर थपक मारी तो दोन क
हंसी एक साथ फूट पड़ी।
िशव के सवारी वाले दल ने झेलम नदी क धारा का अनुगमन िकया, िजसने गजना करने वाले
शोर का दामन पुन: थाम िलया था, जब वह िनचले िहमालय क ओर चलने लगी थी। जब वह
एक बार उस अ यंत ही सुंदर मैदानी भाग म पहंची तो उस हलचल करने वाली नदी ने शांत
व प धारण कर िलया था और अ यंत ही सुगमता से बहने लगी थी। वह इतनी सुगम हो चली
थी िक इस दल के सद य एक या ी जलयान से उसे पार कर बहृ तेशपुरम नामक नगर म पहंच
गए।
उसके बाद से वे एक सड़क माग से सा ा य के उ री िव तार के दय पंजाब के रा ते से
होते हए पवू क िदशा म गए। पंजाब पांच निदय वाला ांत था। ये निदयां थ िसंधु, झेलम, चेनाब,
रावी और यास। चार निदय ने िमलकर आकां ा क िक वे उस सव े िसंधु का दामन थाम
ल, जो पि म म सुदूर तक बहती चली गई थी। पंजाब के उस शानदार मैदान पर घुमावदार
या ाओं के बाद वह इसम असाधारण प से सफल रही थी। िसंधु ने भी उस िवशाल समु को
आिलंगनब करते हए अपना आराम और आव यक राहत ा कर िलया था। य िप अभी भी
समु के अंितम गंत य के रह य पर पदा डला हआ था िक आिखरकार उसका िव तार कहां तक
था।
‘यह राम या है?’ अपने केस रया रं ग के कपड़े क
बाद िशव ने जानना चाहा।
येक इंच पर उस श द को देखने के
िशव एवं नंदी के साथी तीन सैिनक एक िनि त दूरी बनाकर उनके साथ चल रहे थे। वे
इतनी दूरी पर चल रहे थे िक उनके म य होने वाली बात को सुन न सक, िकंतु वह दूरी इतनी
िनकट अव य थी िक यिद कोई आपात ि थित आती है तो त काल ही उनक सुर ा म स म हो
सक। यह उनके मेलहू ा क सेवा िनयमाविलय के अनु प था।
‘भगवान ी राम वो स ाट थे, िज ह ने हमारी जीवन-शैली क थापना क थी, भु,’ नंदी
ने उ र िदया, ‘वे लगभग एक हजार दो सौ साल पहले हए थे। उ ह ने हमारी सभी कार क
यव थाओं क थापना क , हमारे िनयम, हमारी िवचार-प ितय , सब क । उनका शासन राम
रा य या राम का शासन के नाम से जाना जाता है। अपने सम त नाग रक के िलए एक आदश
जीवन क थापना के िलए कैसे एक सा ा य को शासन करना चािहए, उसके िलए ‘राम
रा य’ श द एक विणम मानक क तरह माना जाता है। मेलहू ा अभी भी उ ह के िस ांत पर
आधा रत होकर चल रहा है। जय ी राम।’
‘वे अव य ही अद्भुत मानव रहे ह गे! य िक उ ह ने इस धरती पर ही वग क
कर दी है।’
थापना
िशव ने जब ऐसा कहा तो वह कदािप झठ
ू नह बोल रहा था। सचमुच म ही उसका मानना
था िक यिद कह कोई वग था तो वह मेलहू ा से बहत अिधक िभ न नह होगा। लगभग विगक
िनपुणता के आिध य क यह भिू म थी। यह सा ा य प
प से संिहताब एवं याय संगत
िविधय से शािसत था, स ाट सिहत येक नाग रक िजसके अधीन थ थे। सा ा य क
जनसं या लगभग अ सी लाख थी और िबना अपवाद के उस परू ी क परू ी जनसं या के खानेपीने और रहने क उ कृ
यव था थी। वे व थ और साधन-संप न थे। लोग का औसत ान
असाधारण प से बहत अिधक था। वे तिनक गंभीर िक म के लोग थे, िकंतु हमेशा ही िवन
और स य थे। ऐसा तीत होता था िक वह एक ुिटरिहत समाज था, जहां सब को अपनी भिू मका
का पता था और वे अपनी भिू मका अ छी तरह से िनभा रहे थे। वे अपने कत य के पालन म न
केवल सचेत थे बि क अ यिधक त भी थे। एक साधारण सच से िशव का सामना हआ: यिद
सम त समाज अपने कत य के ित सचेत था तो िकसी को भी अपने अिधकार के िलए लड़नेझगड़ने क आव यकता ही नह थी। इस कार येक यि के अिधकार क र ा िकसी और
के कत य के कारण अपने आप ही हो जाएगी। भगवान ी राम सचमुच ही ितभाशाली यि
थे।
नंदी के उ ोष के साथ िशव ने भी भगवान ी राम के स मान म अपना वर िमलाया -‘जय
ी राम।’
सरकारी पारगमन थल पर अपने अ को छोड़ने के बाद ह रयपु या ह र के नगर के िनकट
उ ह ने रावी नदी को पार िकया। रावी नदी को पार करने के बाद दूसरी ओर के पारगमन थल
से ा नए अ पर बैठकर िशव ने ककर कुछ दूरी पर बसे ह रयुप को शंसापण
ू ि से
देखा, जबिक उसके सैिनक उसक छाया क दूरी पर ती ारत रहे । ह रयुप ीनगर क तुलना
म बहत बड़ा नगर था और बाहर से ही भ य लग रहा था। िशव सचमुच ही उस शोभायमान नगर
को िनकट से देखने क इ छा रखता था, िकंतु इसका यह अथ होता िक देविग र क उनक
या ा म िवलंब होता। अत: वापसी म देखने क इ छा रख ली। ह रयुप क बगल म ही िशव ने
देखा िक एक िनमाण- थल पर िनमाण काय चल रहा था। एक नयी वेिदका का िनमाण िकया
जा रहा था य िक ह रयुप क जनसं या बढ़ गई थी और सभी लोग के रहने के िलए जगह क
कमी हो रही थी।
ये लोग इतनी िवशाल और शानदार वेिदका का िनमाण कै से कर लेत े ह?
िशव ने अपने मन म यह बात अंिकत कर ली िक वापसी म वह इस िनमाण- थल का भी
मण करे गा। कुछ ही दूरी पर नदी पारगमन- थल के अिधपित ज ा नंदी से बात कर रहा था जो
नए अ पर चढ़ने के िलए वेिदका पर चढ़ने के िलए तैयार हो रहा था।
‘ तकिग र से जाने वाले माग से दूर रह,’ ज ा ने सलाह दी, ‘कल रात उस माग पर
आतंिकय ारा हमला िकया गया था। सभी ा ण क ह या कर दी गई और गांव को न कर
िदया गया। जब तक िक राहत एवं यु करने वाले सैिनक वहां पहंच पाते, आतंक भाग चुके थे।’
‘अि नदेव क सौगंध, हम कब ितकार करगे? हम उनके सा ा य पर हमला कर देना
चािहए!’ कट प से ोिधत नंदी ने गुरा कर कहा।
‘म भगवान इं क ित ा लेकर कहता हं िक यिद मुझे इन चं वंशी आतंिकय म से कोई
भी िमला तो म उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके कु को िखला दंूगा,’ अपनी मु यां भ चते हए ज ा
ने कहा।
‘ज ा! हमलोग सय
ू वंिशय के अनुयायी ह। इस कार क बबरतापण
ू यु क हम सोच भी
नह सकते ह।’ नंदी ने कहा।
‘ या वे आतंक यु के िनयम का पालन करते ह, जब वे हम पर हमला करते ह? या
िबना श वाले लोग क ह या नह करते ह?’
‘इसका यह अथ नह होता िक हम भी उनक ही तरह यवहार कर, अिधपित। हम
मेलहू ावासी ह!’ नंदी ने िसर िहलाते हए कहा।
इस बार ज ा ने नंदी का ितकार नह िकया। कुछ दूरी पर ती ारत िशव को देखकर
उसका यान उसक ओर चला गया। उसने पछ
ू ा, ‘ या वह आपके साथ है?’
‘हां।’
‘उसने जाित-वग संबंधी बाजबू ंद नह पहन रखा है। या वह नया अ वासी है?’
‘हां।’ िशव के बारे म
के उ र देने म असहज होते हए नंदी ने उ र िदया।
‘और आप लोग देविग र जा रहे है?’ िशव के गले क ओर गहरी ि
संदेहा मक ज ा ने पछ
ू ा, ‘मने ीनगर से आती हई कुछ अफवाह सुनी ह...’
से देखते हए
नंदी ने अचानक ही ज ा क बात को बीच म काटते हए कहा, ‘हमारी सहायता करने के
िलए ध यवाद, अिधपित ज ा।’
इससे पहले िक ज ा अपने संदेह के समाधान पर कोई कायवाही करता, नंदी शी ता से
वेिदका पर चढ़कर घोड़े पर चढ़ बैठा और िशव क ओर चल पड़ा। उनके पास शी ता से पहंचकर
उसने कहा, ‘हम िनकल लेना चािहए, भु।’
िशव उसक बात नह सुन रहा था। वह एक बार िफर हैरान था य िक उसने देखा िक वह
गव ला अिधपित ज ा अपने घुटन पर था। वह अपने दोन हाथ जोड़कर आदरपवू क नम ते क
मु ा म िशव को अपलक देख रहा था। ऐसा लग रहा था िक जैसे वह कुछ बुदबुदा कर कह रहा
हो। उतनी दूरी से िशव को पता नह चल पा रहा था िक उसने या कहा था, िकंतु ऐसा तीत हो
रहा था िक वह रो रहा था। उसने अपना िसर िहलाया और फुसफुसाया, ‘ य ?’
‘हम चलना चािहए, भु,’ थोड़े तेज वर म नंदी ने दुहराया।
िशव उसक ओर मुड़ा, उसने सहमित म िसर िहलाया और ऐड़ लगाकर उसने अपने अ
को आगे बढ़ा िदया।
उस सीधी सड़क पर चलते िशव ने बाई ं ओर देखा िक नंदी अपने िदलेर घोड़े को उकसाते हए
उसके साथ-साथ चल रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा तो उसे आ य नह हआ िक उसके तीन
अंगर क पवू क भांित िब कुल उतनी ही दूरी पर घुड़सवारी करते हए पीछे चल रहे थे। वे बहत
िनकट भी नह थे और िफर भी उतनी दूर भी नह थे। उसने एक बार िफर नंदी क ओर देखा तो
महसस
ू िकया िक उसने जो आभषू ण पहन रखे थे, वे केवल सजावट के िलए नह थे। उसने अपने
दािहने चौड़े हाथ पर दो बाजबू ंद पहन रखे थे। पहले बाजबू ंद पर तीका मक लक र बनी हई थ ,
िजसके बारे म िशव को कुछ अता-पता नह था। दूसरे पर पशु का िच उकेरा हआ था। संभवत:
बैल का। उसके सोने क एक जंजीर म सय
ू ाकार झम
ू र लटका हआ था, िजससे िकरण बाहर क
ओर िनकल रही थ । दूसरा झम
ू र भरू े रं ग का था। वह एक दीघव ृ ाकार बीज जैसे आकार क कोई
व तु थी, िजसम सब ओर छोटे-छोटे दांत जैसे बने हए थे।
‘ या तुम अपने आभषू ण के मह व के बारे म बता सकते या िफर यह भी गोपनीय है?’ िशव
ने शरारत से कहा।
‘िन संदेह, बता सकता हं, भु,’ नंदी ने गंभीरता से कहा। उसने अपने िवशाल हाथ म
रे शम के धागे से बंधे पहले बाजबू ंद क ओर संकेत िकया और कहा, ‘यह बाजबू ंद मेरी जाित का
ितिनिध व करता है। इसके ऊपर जो लक र बनी हई ह वे परमिपता परमा मा के कंधे के तीक
ह। इसका अथ है िक म ि य हं।’
‘मुझे िव ास है िक अ य जाितय के बारे म भी अव य ही संिहताब
ह गे।’
प
िदशा-िनदश
‘आपने िब कुल सही कहा, भु। आप आपवािदक प से बुि मान ह।’
‘नह , ऐसा नह है। तुम लोग आपवािदक प से पवू म ही अनुमान लगाने यो य हो।’
नंदी मु कुराया तो िशव ने पछ
ू ा, ‘तो वे या ह?’
‘वे या, या ह, भु।’
‘ ा ण, वै य और शू के तीक।’
‘बनाई गई लक र यिद परमा मा के िसर का ितिनिध व करती ह तो इसका अथ है िक
पहनने वाला ा ण है। वै य के िलए बनाए गए तीक म लक र परमा मा के जंघाओं का
ितिनिध व करती ह। और परमा मा के पैर से बने बाजबू ंद बताते ह िक पहनने वाला शू है।’
‘मनोरं जक,’ िशव ने ह क योरी चढ़ाकर कहा, ‘म क पना कर सकता हं िक अिधकतर
शू अपनी ि थितय को लेकर खुश नह ह गे।’
िशव क इस िट पणी पर नंदी चिकत रह गया। वह इस बात को समझ नह सका िक य
शू लोग को इतने लंबे समय से चली आ रही इस अिभषेक करण से कोई सम या होगी। िकंतु
वह कुछ नह बोला य िक वह भु क असहमित पर भयभीत था।
‘और वह दूसरा बाजबू ंद?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘यह दूसरा बाजबू ंद मेरे ारा चयन िकए गए जाित-वग का तीक है। सभी चयिनत जाितवग के लोग वे काम करते ह, जो च र के यो य होते ह। अपने माता-िपता क सलाह पर येक
मेलहू ावासी एक चयिनत जाित-वग के िलए आवेदन करते ह, जब वे प चीस साल के हो जाते ह।
ा ण पि य के एवं ि य पशुओ ं के चयन का आवेदन करते ह। वै य को फूल दान िकए
जाते ह जबिक शू आव यक प से मछिलय म से चयन करते ह। िनिम न सिमित अ यिधक
किठन ि याओं के आधर पर चयिनत जाित-वग का िनिम न करती है। आपको उस चयिनत
जाित-वग के िलए आव यक प से यो य होना पड़ता है और वह आपके ल य एवं द ता का
ितिनिध व करता है। यिद आप ऐसे जाित-वग का चयन करते ह जो बहत अिधक अपे ा करता
है और यिद आपके काय उस जाित-वग के मानक तक नह हो पाते ह तो वह आपको जीवन भर
लि जत करता रहता है। यिद आप नीचे क ेणी के जाित-वग का चयन करते ह तो आप अपनी
द ता के साथ याय नह करते ह। मेरा चयिनत जाित-वग बैल है। उसी पशु का ितिनिध व यह
बाजबू ंद करता है।’
‘बुरा न मानो तो या तुम बता सकते हो िक ि य के इस चयिनत जाित-वग म बैल का
या तर होता है?’
‘अं ऽ ऽ, यह उतना उ च नह है, िजतना िक िसंह, बाघ या िफर हाथी। िकंतु यह चहू ा या
सअ
ू र आिद जैसा िन न भी नह है।’
‘वैसे, जहां तक मेरा मानना है िक बैल िकसी िसंह या हाथी को परा त कर सकता है,’ िशव
मु कुराया, ‘और वह तु हारी जंजीर पर लटके हए झम
ू र के बारे म तु हारा या कहना है?’
‘यह भरू ा दाना अंितम महादेव भगवान
का ितिनिध व करता है। यह जीवन के
संर ण एवं पुनजनन का तीक है। यहां तक िक िद य अ भी ऐसे जीवन को न नह कर
सकते, िज ह ये सुर ा देते ह।’
‘और यह सय
ू ?’
‘हे भु, यह सय
ू इस बात का ोतक है िक म सय
ू वंशी राजाओं का अनुयायी हं, ऐसे राजाओं
का जो सय
ू के वंशज ह।’
‘ या? सय
ू धरती पर आए और िकसी रानी...’ श क िशव ने छे ड़खानी क ।
‘िन संदेह हरिगज नह , भु,’ नंदी ने हंसते हए कहा, ‘इसका केवल इतना ही अथ होता है
िक हम सय
ू पंचांग का अनुसरण करते ह। इसिलए आप ऐसा कह सकते ह िक हम लोग ‘सय
ू के
माग’ के अनुयायी ह। यावहा रक ि कोण से यह इस बात का ोतक है िक हम लोग
शि शाली और अिडग ह। हम अपने िदए हए वचन का स मान करते ह और उनका पालन
करने के िलए ाण भी दे सकते ह। हम कभी भी िविधय का उ लंघन नह करते ह। जो
स माननीय नह होते ह, हम उनके साथ भी स माननीय तरीके से यवहार करते ह। सय
ू क
तरह ही हम कभी िकसी से कुछ नह लेते बि क दूसर को देते ह। हम अपने कत य का पालन
अपनी सचेतनता म करते ह तािक हम उ ह कभी भी भुला न सक। सय
ू वंशी होने का यह भी अथ
है िक हम हमेशा साधना करते ह िक हम ईमानदार रह, बहादुर रह और सबसे बड़ी बात िक हम
सच के ित िन ावान रह।’
‘बड़ा ही किठन तीत होता है! मेरा ऐसा मानना है िक भगवान ी राम एक सय
ू वंशी राजा
थे?’
‘अव य, िन संदेह,’ नंदी ने उ र िदया। उसका सीना गव से फूल गया।
िफर उसने कहा, ‘वे सय
ू वंशी राजा थे। जय ी राम।’
‘जय ी राम,’ िशव ने भी दुहराया।
नंदी और िशव यास नदी को नाव से पार कर रहे थे। उनके सैिनक बाद वाली दूसरी नाव से नदी
पार करने क ती ा कर रहे थे। यास वह अंितम नदी थी, िजसे पार करना था और उसके बाद
देविग र जाने वाला माग सीधा देविग र तक जाता था। बीती राि को हई बेमौसम बरसात के
कारण पारगमन- थल के अिधपित ारा नदी पार कराना िनलंिबत िकया जाने वाला था, िकंतु
ात: मौसम के अपे ाकृत खुल जाने के कारण अिधपित ने सेवाओं को पवू क भांित संचािलत
करने का िनणय िलया था। िशव और नंदी के साथ नािवक के अलावा दो और भी या ी थे, जो उस
नाव से नदी को पार कर रहे थे। उन लोग ने अपने अ को इस पार ही छोड़ िदया था और
दूसरी ओर पहंचने के बाद उ ह नए अ पर सवार होकर आगे बढ़ना था।
वे अभी दूसरे िकनारे से थोड़ी दूरी पर ही थे िक अचानक ही उ ह मस
ू लाधार बा रश का
सामना करना पड़ गया। हवा अचानक ही ती गित से बहने लगी थी। ऐसा तीत हो रहा था िक
जैसे इं का ोध फूट पड़ा हो। नािवक ने बहत ही साहसी यास िकया िक नाव को नदी के उस
पार पहंचा दे, िकंतु तेज बहाव और हवा के कारण वह नाव बड़े ही उ तरीके से ऊपर क ओर
उछल गई। नंदी ने िशव को तेज वर म कहा सुर ा क ि से वह िजतना झुककर रह सकता
था उतना नीचे क ओर रहे । िकंतु वह वयं अपने आप पर काबू नह रख सका। उसके भारीभरकम शरीर ने नाव को एक ओर खतरनाक तरीके से झुका िदया और वह मुंह के बल पानी म
िगर गया।
नािवक अभी भी अपनी पतवार से नाव को दूसरे पार के िकनारे क ओर ले जाने का यास
कर रहा था तािक अ य या ी सुरि त घाट पर पहंच जाएं । ऐसा करते हए और संकट म होते हए
भी उसने अपनी सचेतता का प रचय देते हए अपना शंख िनकाला और दूसरी ओर के पारगमनथल के िलए संकट हे तु शंख विन कर दी। जो दो अ य या ी थे, उ ह नंदी को बचाने के यास
म नदी म छलांग लगा देनी चािहए थी, िकंतु उसके उस भारी-भरकम शरीर को देखकर वे
िझझक गए थे। उ ह पता था िक यिद वे उसे बचाने का यास करगे तो बहत संभव है िक वे वयं
ही डूब सकते थे।
िशव को ऐसी कोई िझझक नह हई। उसने अपने अंगव म् को एक ओर रखा, अपने जत
ू े
उतारे और उस उफनती नदी म छलांग लगा दी। िशव ने उस शि शाली बहाव को चीरते हए
तैरना ारं भ िकया और शी ही बहत तेजी से डूबते हए नंदी के पास पहंच गया। उसे नंदी को
घाट तक लाने म अपनी भरपरू ताकत का योग करना पड़ा। पानी म भार के कम महसस
ू होने
पर भी एक सामा य यि क ि से नंदी का भार बहत अिधक था। यह सौभा य क बात थी
िक िशव अपने आपको ीनगर क पहली राि के बाद से ही और अिधक शि शाली महसस
ू कर
रहा था। िशव ने वयं को नंदी क पीठ क ओर ि थत िकया और एक हाथ से उसके सीने के
पास से उसे पकड़ िलया। िफर वह दूसरे हाथ से तैरते हए िकनारे पहंच गया। नंदी के अ यिधक
भार ने यह काम बहत ही थकाने वाला बना िदया था, िकंतु िशव ने इसके बाद भी मेलहू ा के
अिधपित को िकनारे पहंचा ही िदया। तब तक आपातकालीन र क भी तेजी से वहां पहंच चुके थे।
िशव ने सहायता करके नंदी के उस भारी-भरकम शरीर को पानी के बाहर िनकाल िदया। नंदी
अचेत था।
उसके बाद आपातकालीन र क ने एक िविच ि या ारं भ क । पांच क िगनती के
साथ एक बहत ही लयब तरीके से एक र क ने नंदी के सीने को बार-बार दबाना ारं भ कर
िदया था। जब वह अपना काम बंद करता तो एक अ य आपातकालीन र क अपने ह ठ से नंदी
के ह ठ ढकता और परू ी जोर उसके मुंह म हवा भरता था। और उसके बाद वे इसी ि या को बारबार दुहराते चले जा रहे थे। िशव को कुछ भी समझ म नह आ रहा था िक आिखर वे या कर रहे
थे, िकंतु उसे मेलहू ा के वा य कािमक के ान और उनक िन ा पर परू ा भरोसा था।
कई िचंितत ण के बीत जाने के बाद नंदी ने अचानक ही खांसने के साथ-साथ अ यिधक
मा ा म पानी क उ टी कर दी और चिकत होता हआ चेतना म आया। पहले तो कुछ देर उसे कुछ
समझ नह आया िक वह कहां था और उसे या हआ था, िकंतु शी ही उसे प रि थित क समझ
हई तो वह तेजी से िशव क ओर मुड़ा और िचचयाने वाले वर म कहा, ‘ भु, आपने मुझे बचाने
के िलए छलांग य लगाई? आपका जीवन बहत मू यवान है। आप मेरे िलए उसे जोिखम म कभी
न डाले, भु।’
आ यचिकत िशव ने नंदी क पीठ को सहारा िदया और फुसफुसा कर बोला, ‘तु ह, आराम
क आव यकता है, मेरे दो त।’
िशव से सहमत वा य किमय ने नंदी को रोगी वहन करने वाली खाट पर िलटाया और
िव ाम घर म लेकर चले गए जो पारगमन-आवास के साथ ही संल न था। दो अ य या ी जो वहां
थे, वे बड़ी ही उ सुकता से िशव को देख रहे थे। उ ह पता था िक वह मोटा आदमी अपे ाकृत
व र सय
ू वंशी सैिनक था, जैसािक उसके बाजबू ंद से तीत हो रहा था। िफर भी वह इस ेत,
जाित-िच -िवहीन यि को ‘अपना भु’ कह रहा था। खैर जो सबसे मह वपण
ू बात थी, वह यह
थी िक उस सैिनक क जान बच गई थी। जब िशव ने वा य किमय का अनुसरण िव ाम घर
क ओर िकया तो वे भी अपने रा ते चले गए।
अ याय - 3
वह उनके जीवन म वेश करती है
नं दी अ
-चेतनता क अव था म कई घंट तक पड़ा रहा जबिक वै
ारा दी गई औषिधयां
उसके शरीर पर असर करने लगी थी। िशव उसक बगल म बैठा लगातार भीगे कपड़े को उसके
माथे पर डालता जा रहा था तािक उसका वर िनयं ण म रहे । नंदी सुसु ाव था म ही बड़बड़ाता
जा रहा था और बार-बार इधर से उधर करवट लेता जा रहा था, िजसके कारण िशव का काय और
किठन होता जाता था।
‘म ढूंढ़ता रहा हं... बहत समय से... बहत ही लंबे समय से... सौ साल से... कभी नह सोचा
था िक म... भु नीलकंठ को पा सकं ू गा... जय ी राम...’
िशव नंदी क बड़बड़ाहट को अनसुना कर देना चाहता था य िक वह उसके वर को
िनयं ण म रखने पर यान कि त करना चाहता था। िकंतु उसके कान ारा सुनी गई एक बात
अटक-सी गई थी।
यह सौ साल से ढूंढ़ रहा है?!
िशव क योरी चढ़ गई।
यह वर इस बेवकूफ के िदमाग को भी भािवत कर रहा है! यह तो बीस साल से एक िदन
भी बड़ा िदखाई नह देता है।
‘म सौ साल से ढूंढ़ रहा हं...,’ नंदी अचेतनता म िनरं तर बोलता जा रहा था..., ‘मने पाया...
नीलकंठ...’
िशव एक ण के िलए का और उसने बहत ही गहराई से नंदी को घरू ा। उसके बाद उसने
असहमित म िसर िहलाते हए अपनी प रचया जारी रखी।
यास नदी के साथ-साथ बने हए खड़ं जेदार संकेता र वाले माग पर िशव लगभग एक घंटे से
घम
ू रहा था। शी ता से भले-चंगे हो रहे नंदी क सलाह के िवपरीत वह िव ामगहृ से अकेले ही
उस े को देखने क ललक म िनकल पड़ा था। हालांिक नंदी अब खतरे से बाहर था, िफर भी
उ ह कुछ िदन और कना पड़ा था तािक अिधपित म इतनी शि हो जाए िक वह आगे क
या ा आराम से कर सके। िशव के िलए िव ामगहृ म करने को कुछ अिधक नह था, इसिलए उसे
वहां अ छा नह महसस
ू हो रहा था। तीन सैिनक ने छाया क तरह उसके साथ रहने का यास
िकया िकंतु उसने ोिधत होकर उ ह चलता कर िदया, ‘कृपा करके या आप लोग लीच क
तरह मुझसे िचपकना छोड़गे?’
यास नदी के िवन जल के संगीतमय तो वाले वर िशव को सुखद तीत हो रहे थे।
शीतल मंद बयार उसके घने बाल के जड़
ू े से छे ड़खानी कर रहे थे। उसने अपने यान क मठ
ू पर
अपना हाथ रखा जबिक उसका मन बार-बार उसी एक
से यु रत था।
या नंदी सचमच
ु म ही सौ साल से अिधक क आय ु वाला है? िकंत ु यह तो असंभव है! और
वह या काम है िजसके कारण ये िवि मेलहू ावासी मझ
ु से सहायता चाहते ह? और उस पिव
झील क सौगंध, ऐसा य है िक यह उ ल ू का प ा मेरा गला अभी तक इतना ठं डा य महसस
ू
हो रहा है?
अपने िवचार म खोया हए िशव कब सड़क से दूर एक खुले ांगण म आ चुका था, उसे पता
ही नह था। उसके सामने उसी को िनहारता हआ एक अ यंत ही सुंदर भवन उसके सामने खड़ा
हआ था। उसने इससे सुंदर भवन अपने जीवन म अब तक नह देखा था। वह परू ा का परू ा मकान
सफेद और गुलाबी रं ग के संगमरमर से बना हआ था। एक ऊंची वेिदका पर जाने के िलए बहत
ही शोभायमान सीिढ़यां बनी हई थी। उस वेिदका क सम त प रिध म अित संुदर सजावट देते हए
तंभ लगे हए थे। उस मकान क आलंका रक छत पर एक िवशाल ि कोणीय मीनार ऊंचाई म
उठा हआ था जैसे ई र को िवशाल नम ते िकया जा रहा हो। उस संरचना के सम त उपल ध
थल पर िव ततृ ढं ग से िविभ न कार क िश पकलाओं क न कािशयां क हई थ ।
िशव ने मेलहू ा म बहत िदन िबता िलए थे और जो भी मकान उसने देखे थे, वे कायसाधक
एवं भावशाली लगे थे। जबिक यह मकान वा तव म आ यजनक प से तड़क-भड़क वाला
और आलीशान था। उसके वेश ार पर संकेत सच
ू क प लगा हआ था, िजस पर िलखा था,
‘भगवान
ा का मंिदर’। ऐसा तीत होता था िक मेलहू ावासी धािमक थल के िलए अपनी
रचना मकता बचाकर रखते थे।
आंगन के खुले े म फेरीवाल एवं ख मचेवाल क एक छोटी-सी भीड़ इक ी थी। कुछ
फल बेच रहे थे और दूसरे अ य खान-पान क व तुएं। कुछ ऐसे भी थे जो िविभ न कार क पज
ू ा
क सामि य का िम ण बेच रहे थे। एक ऐसी भी दुकान थी जहां उपासक अथवा पज
ू ा करने वाले
लोग अपने जत
ू े-च पल आिद मंिदर म वेश से पवू उतारकर रख रहे थे। िशव ने भी अपने जत
ू े
वहां उतार िदए और मंिदर के ऊपर क ओर चला गया। मु य मंिदर म वेश करने पर उसने
िविभ न कार क बनावट एवं वा तु िव ाओं को गहराई से देखना ारं भ िकया तो उन अ यंत
ही वैभवपण
ू थाप य एवं वा तुकलाओं को देखकर आ यचिकत रह गया।
‘आप यहां या कर रहे ह?’
िशव ने मुड़कर देखा तो एक पंिडत को अपनी ओर
सच
ू क ि से गौर से देखते हए
पाया। उसका झुर दार चेहरा उसक धारा क तरह वािहत होती दाढ़ी से छल कर रहा था और
चांदी से चमकते उसके घने बाल उससे तुलनीय थे। केस रया रं ग क धोती एव अंगव म् पहने
हए उसके शांत एवं िवन मुख से ऐसा तीत हो रहा था जैसे उसने िनवाण ा कर िलया हो,
िकंतु प ृ वी पर रहने का िन य िकया हो तािक अपने दैवीय कत य का िनवाहन कर सके। िशव
ने महसस
ू िकया है िक वह पंिडत ही वा तव म एक पहला ऐसा व ृ यि था, िजसे उसने अब
तक मेलहू ा म देखा था।
‘मुझे मा क िजएगा। या मुझे अंदर आने क अनुमित नह है?’ िशव ने िवन ता से पछ
ू ा।
‘िन संदेह आपको यहां आने क अनुमित है। ई र के घर म सब को आने क अनुमित है।’
िशव मु कुराया। और इससे पहले िक वह कुछ बोल पाता पंिडत ने पुन:
आप तो ई र म आ था नह रखते?’
िकया, ‘िकंतु
िशव क मु कुराहट िजतनी शी ता से आई थी, उतनी ही शी ता से ीण हो गई।
कमाल है, इसको कै से पता है?
पंिडत ने िशव को आंख म ही उ र दे िदया, ‘इस पज
ू ा- थल म जो कोई भी वेश करता है,
वह परमिपता
ा क मिू त के दशन करता है। इस थाप य क वैभवता और उसम लगे यास
को इनम से लगभग न के बराबर लोग ही देखते ह। जबिक आपके पास केवल थाप य कला को
देखने वाली ही आंख ह। आपने ई र क मिू त क ओर एक बार झांका तक नह है।’
िशव ने झपते हए एक खेदपण
ू भाव से कहा, ‘आपने सही अनुमान लगाया। म तीका मक
ई र म आ था नह रखता। मेरा मानना है िक असली ई र हमारे आसपास हर जगह िनवास
करते ह। नदी के बहाव म, पेड़ क लहराहट म, हवा क सरसराहट म। वह हमसे हमेशा बात
करते रहते ह। आव यकता इस बात क है िक हम उनक बात सुन सक। िफर भी यिद मने
आपके ई र को उिचत स मान नह देने का अपराध िकया है तो मुझे इस बात के िलए अ यंत
खेद है।’
‘आपको खेद जताने क कोई आव यकता नह है, िम ,’ वह पंिडत मु कुराया, ‘मेरा ई र
या तु हारा ई र ऐसा कुछ भी नह होता है। सभी कार क ई रीयता एक ही ोत से आती है।
मा उसके अवतार अलग-अलग होते ह। िकंतु मेरा मन कहता है िक एक िदन आपको एक ऐसा
मंिदर अव य िमलेगा, िजसम आपका वेश मा पज
ू ा-अचना के िलए होगा न िक उसक सुंदरता
िनहारने के िलए।’
‘ या सच म? वह कौन-सा मंिदर होगा?’
‘आप उसे पा लोगे िम , जब आप उसके िलए तैयार हो जाओगे।’
ये मेलहू ावाले ऐसी अनोखी पहेली वाली भाषा म ही य बोलते ह?
िशव ने िवन ता से सहमित म िसर िहलाया। उसके भाव ऐसे थे जैसे िक वह उस पंिडत क
बात को सच म ही सराह रहा था, जबिक वा तिवकता यह नह थी। उसने सोचा िक उसे शी ता
से उस मंिदर से िनकल जाना चािहए, इससे पवू िक उसका यह वागत अनाव यक प से लंबा
िखंच जाए।
‘िव ामगहृ जाने का समय हो गया है, पंिडतजी। िकंतु म मेरे ार ध वाले मंिदर को पाने क
ती ा म बहत बेस ी से क ं गा। आपसे िमलकर मुझे बड़ी खुशी हई।’ िशव ने झुककर पंिडत के
पांव छूते हए कहा।
पंिडत ने िशव के िसर पर हाथ रखते हए धीरे से कहा, ‘जय ग ु िव ािम । जय ग ु
विश ।’
िशव उठ खड़ा हआ, मुड़ा और तेजी से सीिढ़य से नीचे उतर गया। अपने से दूर जाते न सुन
सकने क दूरी तक पहंच चुके िशव को शंसा भरी ि से देखते हए उस पंिडत ने धीमे वर म
कहा य िक उसने अपने कम के संगी या ी क पहचान कर ली थी, ‘खुशी तो मुझे हई है, मेरे
कमसंगी ।’
िशव जत
ू े क दुकान पर गया, उसने अपने जत
ू े पहने और इस सेवा के िलए एक िस का देने
लगा तो जत
ू े रखने वाले ने िवन ता से िस के लेने से मना कर िदया, ‘ध यवाद ीमान, िकंतु
यह एक सेवा है जो मेलहू ा के शासन क ओर से है। इसके िलए कोई क मत नह ली जाती है।’
िशव मु कुराया और बोला, ‘िन संदेह! आप लोग के पास हर चीज के िलए यव था है।
ध यवाद।’
वह जत
ू े रखने वाला भी मु कुराया और बोला, ‘हम लोग केवल अपने कत य का पालन
कर रहे ह, ीमान।’
िशव मंिदर क सीिढ़य क ओर पुन: चलकर गया। बैठते हए उसने गहरी सांस ली और उस
शांत वातावरण क शांतता को अपने अंतमन म िमि त होने िदया। और उसके बाद वह घिटत
हआ। िजस ण वैसा अ ा दय उसक कामना करता है। वह न भल
ू पाने यो य पल िजसके
िलए एक आ मा अपने पवू जीवन क िवशु याद क कामना करता है। दूसरे यह िक ई र के
षड्यं के बावजदू मा कुछ ही भा यशाली यि इसका अनुभव कर पाते ह। वह पल जब वह
उसके जीवन म वेश करती है।
घोड़ को द ता से चलाते हए वह एक रथ पर सवार होकर उस आंगन म आई, जबिक
उसक सािथन जंगले क छड़ को उसक बगल म पकड़े हई खड़ी थी। य िप उसके काले बाल
जड़
ू े म शालीनता से बंधे थे, तथािप कुछ ध ृ लट वायु के थपेड़ से मं मु ध करने वाला कथक
न ृ य कर रही थ । उसक भेदनीय चुंबक य नीली आंख और कां य कलाकृित-सी वचा देिवय
को ई या हे तु आमं ण देने वाली थ । उसका बदन य िप गंभीरतापवू क लंबे अंगव म् से ढका
हआ था, उसके बाद भी वह िशव क क पना को वलंत कर गया िक उसके नीचे छुपा हआ
आलेख और स दय कैसा होगा। जब उसने अ यंत ही द ता से पतरे बाजी करके रथ को वाहन
पड़ाव म खड़ा िकया तो उसका ुिटरिहत मुख यान क का िच ण था। वह पण
प से
ू
आ मिव ास म भरी रथ से उतरी। यह शांत आ मिव ास था, िजसने अहंकार क ओर चलने
वाली कु प दूरी नह चली थी। उसका चलना मयािदत था। जो देखने वाल को सीधे तौर पर बता
रहा था िक वह िवल न थी, िकंतु शीतल नह । िशव ने उसे इस कार घरू कर देखा जैसे िक
बरसात करने वाले बादल को म थलीय भिू म देखती है।
मझ
ु पर दया करो!
‘हे देवी, मेरा अब भी मानना है िक अपने शेष अनुगािमय को छोड़कर इस कार अलग
घम
ू ना बुि मानी नह है,’ उसक सहया ी ने कहा।
उसने उ र िदया, ‘कृि का, य िक यिद दूसर को िविध यव था के बारे म पता नह है तो
इसका यह अथ नह होता है िक हम भी उसक उपे ा कर सकते ह। भगवान राम ने प
प से
कहा था िक एक पिव
ी को वष म एक बार अव य भगवान
ा के दशन करने चािहएं । म
उस िविध का उ लंघन नह क ं गी, चाहे अंगर क को इससे िकतनी भी असुिवधा य न हो!’
उस ी ने इस बात पर गौर कर िलया था िक जब वह िशव के बगल से गुजर रही थी तो
िशव उसे घरू रहा था। उसक सुकुमार भ ह आ य और झुंझलाहट भरे गु से म व ृ ाकार होकर
ऊपर क ओर उठ गई ं। िशव ने अपना परू ा बल लगाकर अपनी ि उससे हटाने क चे ा क ,
िकंतु उसने महसस
ू िकया िक उसक आंख अब उसके िनयं ण म नह थ । वह ऊपर चढ़ती चली
गई और कृि का उसके पीछे थी।
मंिदर क सबसे ऊपर क सीढ़ी पर पहंचने के बाद वह मुड़ी तो उसने देखा िक वह िबना
जाित सच
ू क िच वाला अ वासी अभी भी उसे िनल ज क भांित घरू रहा था। मु य मंिदर क ओर
चलने के िलए मुड़ने से पवू उसने कृि का से कहा, ‘ये अस य अ वासी! इन बबर लोग म से
जैसे सचमुच ही कोई हमारा र क िमल पाएगा!’
जब वह िशव क ि से परू ी तरह से ओझल हो गई, उसके बाद ही िशव अपनी सांस
िनयंि त करने का यास करते िदखा। जब वह बड़े य न से अपनी वाि मता को संकिलत
करने का यास कर रहा था तभी परू ी तरह से आ छािदत और सहायता रिहत उसके मन ने एक
बहत ही प िनणय ले िलया था, अब वह िकसी भी दशा म उस मंिदर को छोड़कर जाने वाला
नह था, जब तक िक वह उसे दुबारा नह देख लेगा। वह उन सीिढ़य पर पुन: बैठ गया। जब
उसक सांस और िदल क धड़कन सामा य हो गई तो अंतत: वह अपने आसपास के प रवेश का
अवलोकन करने लगा, जो उस ी क उस हाल क उपि थित से िति त हो चुका था। उसने
बाई ं ओर उस माग को पुन: देखा जहां से वह मुड़कर आई थी। वह पीपल के पेड़ के िनकट खड़े
खीरा बेचने वाले के पास से गुजरी थी।
अक मात ही उस खीरा बेचने वाले ने आवाज लगाना बंद य कर िदया था? वह केवल
मंिदर क ओर टकटक लगाकर घरू ता हआ तीत हो रहा है। चाहे कुछ भी हो, इससे मेरा या
लेना-देना है।
उसने रथ के आने वाले माग का अनुसरण िकया जहां से वह बाई ं ओर मुड़ा था जो उस
ांगण म फ वारे के पास था। उसके बाद उसने दाई ं ओर एक ती मोड़ िलया था जहां उस बाग के
वेश ार पर एक गड़े रया खड़ा था।
आ य है, इस गड़े रये क भेड़ कहां थ ?
िशव उस माग को देखता चला गया जहां से वह रथ वाहन-पड़ाव तक गया था। रथ के
बगल म एक दूसरा यि भी खड़ा था, जो अभी-अभी मंिदर के ांगण म घुसा था, िकंतु उसके
मंिदर म वेश का कोई प ीकरण नह िदख रहा था। वह यि गड़े रये क ओर मुड़ा और
उसने ह के से िसर िहलाया। इससे पवू िक िशव इन सम त कार क सच
ू नाओं का आकलन
कर पाता उसे पुन: उस ी क उपि थित का आभास हआ, िजसके िलए वह ती ारत था। वह
त काल ही पीछे मुड़ा और उसने देखा िक वह सीिढ़यां उतरकर चली आ रही थी। कृि का शांत
होकर उससे थोड़ा पीछे चल रही थी। उस ी ने देखा िक वह अस य, िबना जाित िच वाला,
प
प से िवदेशी यि अभी भी उसे घरू रहा था। वह उसके पास चलती हई गई और उसने ढ़
िकंतु िवन वर म पछ
ू ा, ‘ मा क िजए, या आपको कोई सम या है?’
‘नह , नह । कोई सम या नह है। मुझे ऐसा लग रहा है िक आपको मने पहले कह देखा
है,’ घबराए हए िशव ने उ र िदया।
उस ी क समझ म नह आया िक वह इस पर अपनी या िति या दे। यह प
प से
एक सफेद झठ
ू था, िकंतु इसके पीछे जो वर था वह वा तव म बहत ही गंभीर तीत हआ था।
इससे पहले िक वह कुछ कह पाती, कृि का ने अिश ता से बीच म ही कहा, ‘यही आपका सबसे
अ छा वा य है जो आप बोल सकते थे?’
िशव इसके उ र म कुछ बोलने ही वाला था िक खीरा बेचने वाले क शी ता से क गई
गितिविध ने उसे सचेत कर िदया। िशव ने मुड़कर देखा तो उसने अपना दुशाला फककर अपनी
तलवार बाहर िनकाल ली थी। उधर उस गड़े रये और रथ के पास खड़े यि ने भी अपनी-अपनी
तलवार ख च कर परं परागत यु क क शैली अपना ली थी। िशव ने अपनी तलवार िनकाल ली
और उसने अपने हाथ को र ा मक प म फै लाया तािक वह अपनी आसि वाली व तु को
अपने पीछे संर ण म रख सके। िकंतु वह बड़ी ही कुशलतापवू क उसके संर ा मक हाथ से बगल
म िनकल आई, उसने अपने अंगव म् क परत म टटोला और उसने अपनी तलवार िनकाल ली।
िशव ने उसक ओर एक पल देखा। आ यचिकत होकर उसने शी ता से और सराहना म एक
छोटी-सी मु कान चमकाई। उस ी क आंख म एक चमक उभरी, िजसम असंभािवत िकंतु
अनपेि त साझेदारी क वीकृित थी।
उसने अपनी सांस भीतर रखते हए फुसफुसा कर कृि का से कहा, ‘तुम मंिदर म वापस
भाग जाओ। वह रहो जब तक िक यह समा नह हो जाता है।’
कृि का ने िवरोध िकया। ‘िकंतु देवी...’
‘अभी!’ उसने आ ा दी।
कृि का मुड़ी और मंिदर क सीिढ़य क ओर भागती चली गई। िशव और वह ी एक-दूसरे
क पीठ के पीछे मानक य सुर ा मक साझेदारी क शैली म खड़े हो गए। उ ह ने आ मण क
दशा म येक िदशा पर अपनी ि रखने क ि थित बना ली थी। वे तीन आ मणकारी
आ मण के उ े य से उनक ओर बढ़े । इस म य इन तीन के दो और साथी पेड़ के पीछे से
िनकलकर उनके साथ हो गए। िशव ने सुर ा मक शैली म तलवार को उठाया य िक वह
गड़े रया उसके काफ िनकट आ चुका था। एक ओर चलते हए गड़े रये को आ ामक आ मण
करने के िलए उकसाने के िलए िशव ने अपनी तलवार नीचे कर दी। गड़े रये को ऐसा तीत होना
चािहए था िक वह आ मण करे तो वह िशव को ाणघातक घाव लगा सकता था और उसके
बदले म िशव तुरंत अपनी तलवार को उठाकर उस पर ऐसा आ मण करता िक वह घाव गहराई
से उसके दय को चीर कर रख देता।
इसके बावजदू उस गड़े रया ने अनपेि त प से कोई अ य गितिविध कर दी। िशव ारा दी
गई खुली जगह के आमं ण के बजाय उसने िशव के कंधे पर आ मण करने का यास िकया।
िशव ने फुत से अपने दािहने हाथ को ऊपर उठाया और उस गड़े रये क धड़ पर गहरा घाव लगाते
हए तलवार को ू रतापवू क लहराया। जैसे ही गड़े रया पीछे हटा तो एक अ य आ मणकारी
दािहनी ओर से उस पर झपटा। उसने कुछ दूरी से अपनी तलवार लहराई। यह कोई अ छी चाल
नह थी य िक वह केवल एक सतही खर च ही लगा सकता था। िशव ने एक कदम पीछे हटकर
अपना बचाव कर िलया और उसके बाद उसने अपनी तलवार को नीचे करते हए एक गहरा घाव
उस आ मणकारी क जांघ म लगा िदया। अित पीड़ा म चीखते हए वह आ मणकारी भी पीछे हट
गया। जैसे ही एक और आ मणकारी बाई ं ओर से आ मण करने के िलए आया तो तब तक िशव
ने यह समझ िलया था िक यह अप रिचत एवं अनोखे कार का आ मण था।
ऐसा तीत हो रहा था िक आ मणका रय को पता था िक वे या कर रहे थे। वे एक मंझे
हए यो ा लग रहे थे। वे िविच तरीके से टालमटोल करने वाल क तरह संघष कर रहे थे। ऐसा
नह लग रहा था िक वे िकसी को जान से मारने का यास कर रहे थे, बि क केवल घायल
करना चाहते थे। वे पीछे हटकर संभलकर लड़ाई कर रहे थे और अपने आप पर काबू भी रख रहे
थे य िक बड़ी ही आसानी से वे मात खा रहे थे। इस बीच िशव ने बाई ं ओर से हए एक और वार
को बचाया और उसने अपनी तलवार को उस यि के कंधे म बड़ी िनममता से घुसेड़ िदया। जैसे
ही िशव ने अपने बाएं हाथ से उसे ध का देते हए अपनी तलवार िनकाली तो वह यि दद से
िच ला उठा। धीरे -धीरे , िकंतु िनि त प से आ मणकारी थकने के साथ ही घायल भी होते जा
रहे थे। वे कुछ अिधक ही घायल होते जा रहे थे और उनके िलए अिधक समय तक यह धावा चलाए
रखना मुमिकन नह लग रहा था।
अचानक दै य समान िवशालकाय यि एक व ृ के पीछे से अपने दोन हाथ म तलवार
िलए दौड़ता हआ आया। वह यि िसर से पांव तक काले रं ग के फणदार लबादे म वेि त था
और उसका चेहरा एक काले रं ग के मुखौटे के अंदर छुपा हआ था, जो मुखौटा इंसानी चेहरे जैसे
आकार का बना हआ था। उसक बड़ी-बड़ी भावनाशू य बादाम के आकार जैसी आंख और
शि शाली मांसल हाथ ही उसके शरीर के ऐसे अंग थे, जो िदखाई दे रहे थे। वह अपने लोग को
िच लाकर आदेश देता हआ िशव और उस ी पर आ मण करने के िलए तेजी से आगे बढ़ा।
अपने इतने बड़े आकार के कारण वह बहत फुत से लड़ाई करने म असमथ था। िकंतु वह इसक
भरपाई अपने असाधारण प से द हाथ से कर पा रहा था। िशव ने कनिखय से देखा िक अ य
आ मणकारी घायल को उठा रहे थे और वापस जा रहे थे। वह फणदार यि लौटती सेना क
अंितम पंि क र ा हे तु भेजी गई सेना क भांित िभड़ं त कर रहा था।
िशव ने िदख िलया था िक उस यि क टोपी जो फण के जैसी िदख रही थी उसके कारण
उसके बगल क देखने क मता बािधत हो रही थी। यह उसक दुबलता थी िजसका लाभ उठाया
जा सकता था। बाई ं ओर जाते हए िशव ने उ
प से तलवार को लहराया, इस आशा म िक उसे
वह ि थर कर दे और वह ी दूसरी ओर से उसका काम तमाम कर दे। िकंतु उसका ित ं ी
इस चुनौती के िलए तैयार था। उसने पीछे हटते हए िशव के तलवार क लहर को बड़ी ही द ता
से अपने दािहने हाथ से मोड़ िदया। िशव ने देखा िक उस फणदार यि क दाई ं कलाई पर चमड़े
का एक कड़ा बंधा हआ था। उसके ऊपर एक ती ण तीक बना हआ था। िशव ने दुबारा अपनी
तलवार को दूसरी ओर से लहराया, िकंतु उस फणदार यि ने बड़े ही सहज प से पीछे हटकर
पुन: वार को बचा िलया। साथ ही उसने उस ी के एक कठोर वार को भी अपने बाएं हाथ से बचा
िलया था। वह िशव एवं उस ी से एक र ा मक दूरी बनाकर रख रहा था तािक अपनी सुर ा
कर सके और साथ ही वह इन दोन को इस िभड़ं त म उलझाए भी रख रहा था।
िफर अचानक ही उस फणदार यि ने िभड़ं त करना छोड़ िदया और पीछे हट गया। वह अब
पीछे हटता जा रहा था, जबिक वह अपनी दोन तलवार उनक ओर िदखा रहा था, एक िशव क
ओर और दूसरी उस ी क ओर। उसके सभी आदमी पेड़ क झुरमुट म गायब हो चुके थे। जब
वह भी एक र ा मक दूरी पर पहंच गया तो वह तेजी से मुड़ा और अपने आदिमय के पीछे भाग
गया। पहले तो िशव ने उसका पीछा करना चाहा, िकंतु त काल ही उसने यह इरादा छोड़ िदया।
उसे लगा िक कह वे पुन: घात लगाकर आ मण क तैयारी म न बैठे ह । यह जोिखम भरा हो
सकता था।
िशव उस
ी लड़ाका क ओर मुड़ा और पछ
ू ा, ‘आप ठीक ह?’
‘हां, म ठीक हं,’ गंभीर एवं िवषादयु
घायल ह?’
भाव से पछ
ू ने से पहले उसने िसर िहलाया, ‘ या आप
‘कोई गंभीर बात नह है। म जीिवत रहंगा!’ बनावटी हंसी के साथ वह बोला।
इस म य कृि का मंिदर क सीिढ़य से भागती हई आई और हांफते हए पछ
ू ा, ‘हे देवी, या
आप ठीक ह?’
‘हां, म ठीक हं,’ उसने उ र िदया, ‘इन िवदेशी क कृपा से।’
कृि का िशव क ओर मुड़ी और उसने कहा, ‘आपका बहत-बहत ध यवाद। आपने एक
बहत ही िविश मिहला क सहायता क है।’
िशव उसक बात सुन नह रहा था। वह कृि का क महोदया को िनरं तर घरू रहा था जैसे
िक वह भत
त हो चुका हो। कृि का को अपनी हंसी रोकने म किठनाई हो रही थी।
ू
उस कुलीन ी ने उलझन म अपनी आंख हटा ल , िकंतु िवन ता से कहा, ‘मुझे
क िजए, िकंतु म दावे के साथ कह सकती हं िक हम पहले कभी नह िमले ह।’
मा
‘नह , ऐसी बात नह है,’ मु कुराते िशव ने कहा, ‘ऐसा है िक हमारे समाज म ि यां यु
नह करत । एक ी होने के िलहाज से आप अपनी तलवार का संचालन बहत अ छा करती ह।’
अबे यार! यह तो महंु से सब गलत बात ही िनकल रही है।
‘ मा क िजए?’ उसने थोड़ा यु क शैली वाले वर म कहा। प था िक वह एक ी होने
के िलहाज से वाली िट पणी से अ स न थी, ‘एक गंवार होने के नाते आप भी काफ अ छी लड़ाई
कर लेते ह।’
‘काफ अ छी? अजी म तो एक असाधारण तलवार का लड़ाका हं! या आप कोिशश करना
चाहगी?’
अबे यार! यह या हो रहा है? म या बके जा रहा हं? इस कार तो म उसे भािवत कभी
नह कर पाऊंगा!
उसका वही असंबंिधत एवं उपे ापण
ू भाव उसके मुख पर उभर आया, ‘मेरा आपके साथ ं
यु करने का कोई इरादा नह है, िवदेशी।’
‘नह नह । मुझे गलत मत समिझए। मेरा भी आपसे ं यु करने का कोई इरादा नह है।
म तो बस इतना कहना चाह रहा था िक म तलवार से यु करने म काफ मािहर हं। म कई अ य
कलाओं म भी मािहर हं। और मेरे मुंह से सभी बात गलत ही िनकली जा रही ह। वा तव म मुझे यह
देखकर अ छा लगा िक आप वयं ही यु करने क मता रखती ह। आप एक बहत ही िनपुण
तलवारबाज ह। मेरे कहने का मतलब है िक तलवारबािजनी ह। वा तव म आप बहत ही अ छी
ी...’ मंुह ही मंुह म बड़बड़ाते हए िशव ने कहा। वह उस समय िनणय लेने का अपना िववेक खो
चुका था, जब उसे इसक सबसे अिधक आव यकता थी।
कृि का इस बढ़ते हए याचना भरे आकषक संवाद िविनमय पर िसर झुकाकर मु कुरा रही
थी।
हालांिक उसक महोदया इसके िवपरीत उस िवदेशी को इस कार के अनुपयु श दावली
के िलए ताड़ना देना चाहती थी। िकंतु उसने उसके ाण क र ा क थी। वह अपने मेलहू ा के
यवहार क िविध से बंधी हई थी। उसने कहा, ‘सहायता करने के िलए आपका ध यवाद है,
िवदेशी। मेरा जीवन आपका ऋणी है और आप मुझे कृत न नह पाएं गे। यिद आपको मेरी सहायता
क आव यकता हो तो आप मुझे अव य कह।’
‘ या म आपसे िमल सकता हं, यिद मुझे आपक सहायता क आव यकता न हो तो भी?’
हे भगवान! ये मेरे महुं से या अनाप–शनाप िनकल रहा है?
उस ी ने िबना जाित सच
ू क िच वाले िवदेशी को आंख तरे र कर देखा, िजसे उसक
औकात का पता नह था। उसने बड़े ही अमानवीय यास से वयं पर िनयं ण रखा हआ था,
उसने िवन ता से िसर िहलाया और बोली, ‘नम ते।’
इसके साथ ही वह राजसी मिहला वहां से जाने के िलए मुड़ गई। कृि का अभी भी शंसाभरी
ि से िशव को देखे जा रही थी। िकंतु जब उसने देखा िक उसक महोदया जाने लगी तो वह भी
मुड़ी और तेजी से उसके पीछे जाने लगी।
‘कम से कम अपना नाम तो बता दीिजए,’ उसके कदम से कदम िमलाकर चलते हए िशव
ने पछ
ू ा।
वह मुड़ी और अब वह और भी अिधक गंभीरता से िशव को घरू ने लगी थी।
‘देिखए, मेरे कहने का ता पय यह है िक यिद मुझे आपक सहायता क आव यकता पड़े
तो म आपके पास कैसे आ पाऊंगा?’ िशव ने गंभीरता से पछ
ू ा।
एक पल के िलए वह श द-िवहीन और दीि -िवहीन हो गई। उसका अनुरोध उिचत जान पड़
रहा था। वह कृि का क ओर मुड़ी और उसने िसर िहलाया।
‘आप हम देविग र म िमल सकते ह,’ कृि का ने उ र िदया, ‘नगर म िकसी से भी देवी
सती के िलए पछ
ू सकते ह।’
‘सती...,’ िशव ने उस िनराकार नाम को अपनी पर िज ा उतारकर दुहराया और कहा, ‘मेरा
नाम िशव है।’
‘नम ते िशव। और म वचन देती हं, यिद आपको कभी भी मेरी सहायता क आव यकता
पड़ती है तो म अपने वचन का पालन क ं गी,’ यह कहते हए वह मुड़ी और अपने रथ म सवार हो
गई। कृि का भी उसके पीछे -पीछे रथ म सवार हो गई।
कुशलता से रथ को मोड़ते हए वह अ को दुलक चाल म चलाने लगी। उसके बाद वह
िबना पीछे मुड़े ही उस मंिदर के ांगण से बाहर िनकल गई। िशव उस अ य होते रथ क छिव को
देर तक देखता रहा। जब वह अ य हो गया तो उसके पीछे उड़ने वाली धल
ू को ई या भरी नजर
से देखने लगा, जो इतने भा यशाली थे िक उसे पश कर पा रहे थे।
मझ
ु े लगता है िक यह देश मझ
ु े पसंद आने वाला है।
इस या ा के दौरान ऐसा पहली बार हआ था जब िशव को मेलहू ा क राजधानी पहंचने क
उ सुकता हई थी। वह मु कुराया और िव ामगहृ क ओर चल पड़ा।
देविग र शी पहंचना है।
अ याय - 4
देवताओ ं का िनवास– थल
‘क् या! आप पर िकसने आ
मण िकया?’ िशव के घाव को देखने के िलए तेजी से भागते हए
िचंितत नंदी ने चीखकर कहा।
‘आराम से, नंदी। आराम से।’ िशव ने उ र िदया, ‘पानी म तु हारी साहिसक या ा करने के
बाद से तु हारी हालत मुझसे अिधक पतली है। यह ऐसे ही कुछ सतही खर च ह। कुछ भी गंभीर
नह है। वै ने मरहम-प ी लगा दी है। म िब कुल ठीक हं।’
‘मुझे मा कर, भु। यह पण
ू त: मेरा ही दोष है। मुझे आपको िकसी भी दशा म अकेला नह
छोड़ना चािहए था। ऐसा िफर कभी नह होगा। कृपा कर मुझे मा कर, भु।’
नंदी को पुन: िब तर पर आिह ता से ठे लते हए िशव ने कहा, ‘ मा क कोई बात ही नह
है, मेरे िम । यह तु हारा दोष कैसे हो सकता है? आव यकता से अिधक काम तु हारे वा य के
िलए अ छा नह होगा।’
एक बार जब नंदी परू ी तरह से शांत एवं सहज हो गया तो िशव ने पुन: कहना ारं भ िकया,
‘वैसे भी, मुझे नह लगता िक वे हमारे ाण हरण करने का यास कर रहे थे। वह आ मण बहत
ही अचंभे वाला था।’
‘हम?’
‘हां, इस घटना म दो ि यां भी शािमल थ ।’
‘िकंतु वे आ मणकारी कौन हो सकते ह?,’ नंदी ने पछ
ू ा। उसके बाद नंदी के मन म
परे शान कर देने वाली सोच उभरी, ‘ या वे आ मणकारी नवचं ाकार झम
ू र पहने हए थे?’
िशव ने योरी चढ़ाई, ‘नह । िकंतु एक बहत ही िविच यि था। उनम से वह सबसे अ छा
तलवारबाज था। वह िसर से लेकर पांव तक एक फणदार लबादे म था, उसका चेहरा भी मुखौटे से
ढका हआ था, वैसा ही जैसािक तुम लोग रं ग वाले योहार पर पहनते हो। वह कौन-सा योहार
है?’
‘वह होली का योहार है, भु।’
‘हां, वही होली जैसे मुखौटे ही थे। जो भी हो, म केवल उसके हाथ और उसक आंख ही देख
पा रहा था। उसे िभ न करने वाला ल ण उसका एक चमड़े का कड़ा था िजस पर एक िविच
तीक िच बना हआ था।’
‘वह कैसा तीक िच था, भु।’
ताड़प क पु तक को उठाकर बगल क मेज पर से कोयले क पतली लेखनी से िशव ने
उस तीक िच को बनाया।
नंदी ने योरी चढ़ा ली, ‘यह तो एक ाचीन तीक िच है, िजसे लोग ओऽम श द के िलए योग
म लाते थे। िकंतु कौन लोग हो सकते ह, जो इस तीक िच का अब योग कर सकते ह?’
‘ओऽम?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘ भु, ओऽम हमारे धम म सबसे पिव श द है। यह कृित का थम एवं मौिलक वर माना
जाता है। यह
ा ड का तुित गीत है। यह इतना पिव था िक सह ाि दय तक लोग इसको
िलिखत प म आकार देकर इसका अपमान नह करना चाहते थे।’
‘तो िफर ये तीक िच कैसे उ प न हआ?’
‘इसका आिव कार स ाट भरत ने िकया था, जो एक महान शासक थे और िज ह ने
सह
वष पहले लगभग समच
ू े भारतवष को जीत कर उस पर शासन िकया था। वे एक िवरले
चं वंशी थे, जो स मान यो य थे और यहां तक िक उ ह ने सय
ू वंशी राजकुमारी से िववाह भी
िकया था तािक सय
ू वंिशय एवं चं वंिशय के म य अनवरत चलने वाले यु को समा िकया जा
सके।’
‘ये चं वंशी कौन लोग ह?’
‘ भु, इसे इस कार जािनए िक वे हमारे िवलोम ह। वे उन राजाओं के अनुयायी ह, जो चं मा
के वंशज ह।’
‘और वे चं संबंधी पंचांग का अनुसरण करते ह?’
‘जी हां, भु। वे लोग कुिटल, अिव सनीय और आलसी लोग ह िजनके पास कोई िविध,
नैितकता या स मान नह है। वे कायर लोग ह और एक सै ांितक ि य के समान कभी
आ मण नह करते ह। यहां तक िक उनके राजा भी
एवं वाथ ह। ये चं वंशी मानवता के
ऊपर एक ध बा ह!’
‘िकंतु इससे ओऽम के तीक िच का या लेना-देना है?’
‘दरअसल, राजा भरत ने सय
ू वंिशय एवं चं वंिशय के म य एकता के िलए इस तीक िच
का ा प बनाया था। इसका ऊपरी िह सा जो सफेद है वह चं वंिशय का ितिनिध व करता है।
इसके नीचे का आधा िह सा जो लाल रं ग म है, वह सय
ू वंिशय का ितिनिध व करता है।
ये दोन िह से जहां िमलते ह, उससे जो नारं गी रं ग का िह सा िनकलता है, वह एक समान माग
का ितिनिध व करता है।
दूज का चांद जो तीक िच क दािहनी ओर बना हआ है, वह चं वंिशय का त कालीन तीक
िच था।
और उसके ऊपर जो सय
ू बना हआ है वह सय
ू वंिशय का त कालीन तीक िच था।
इस बात क मह ा के िलए िक यह समझौता ई र ारा अनुमंि त था, राजा भरत ने इस बारे म
जनादेश ा िकया िक इस तीक िच का उ चारण पिव श द ओऽम क तरह िकया जाएगा।
‘और उसके बाद या हआ?’
‘िजसक क आशा थी, वह समझौता भी अ छे राजा के साथ ही मत
ृ हो गया। एक बार जब
राजा भरत का भाव समा हो गया तो चं वंशी पुन: अपने पुराने तरीक म रम गए और एक
बार पुन: यु िछड़ गया। तीक िच को भुला िदया गया और ओऽम श द एक बार पुन: अपने
पुराने मौिलक व प म आ गया अथात िबना िकसी िलिखत प म।’
‘िकंतु उस फणदार यि क कलाई के कड़े म जो तीक िच था, वह रं गीन नह था। वह
परू ा काला था। और उस तीक िच के िह से लक र क तरह नह िदख रहे थे। ऐसा लग रहा
था िक वे तीन सांप के रे खािच थे।’
‘नागा लोग!’ एक सौ य ाथना से पहले चिकत एवं सदमे से िच लाकर नंदी ने कहा और उसके
बाद उसने अपने
के झम
ू र को संर ण दान करने के िलए छुआ।
‘अब ये गधे नागा लोग कौन ह?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘ये शािपत लोग ह, भु,’ नंदी ने एक लंबी सांस भरी, ‘अपने पवू ज म के पाप के कारण वे
ज म से ही घिृ णत िव ूिपत होते ह। िव ूपता जैसे िक अित र हाथ या अ यिधक भयानक चेहरे ।
िकंतु उनके पास अ यिधक शि और कुशलता है। नागा का मा नाम ही िकसी नाग रक के
िलए आतंक का पयाय है। यहां तक िक उ ह स िसंधु म रहने क अनुमित भी नह है।’
‘स िसंधु?’
‘हमारा देश भु, सात निदय का ांत। िसंधु, सर वती, यमुना, गंगा, सरय,ू
पु एवं
नमदा क भिू म वाला ांत। यह वही देश है, जहां हम सभी सय
ू वंिशय एवं चं वंिशय के िनवास
का जनादेश ऋिष मनु ने िदया था।’
िशव ने िसर िहलाया जबिक नंदी ने बोलना जारी रखा, ‘हमारी सीमा के बाद नमदा के
दि ण म नागाओं का नगर बसा हआ है। दरअसल उनके बारे म कुछ बोलना भी दुभा य को
लाता है, भु!’
‘िकंतु एक नागा मुझ पर आ मण य करे गा? या िफर िकसी अ य मेलहू ावासी पर?’
मन ही मन म बुरा-भला कहते हए नंदी ने कहा, ‘चं वंिशय के कारण! ये दोमुंहे चेहरे वाले
लोग इतने अधम हो चुके ह िक अब वे शैतान नागाओं का अपने आ मण म योग कर रहे ह।
हमसे घण
ृ ा करने म अंधे होकर वे ये भी भल
ू रहे ह िक वे अपने िलए िकतने पाप को आमं ण दे
रहे ह।’
िशव ने योरी चढ़ाई। उसे आ मण के दौरान ऐसा कभी नह लगा था िक नागा लोग को
िकसी अ य सेना के दल ारा योग म लाया जा रहा था, बि क ऐसा लग रहा था िक वह नागा
ही उनका सरदार था।
देविग र पहंचने म उ ह एक और स ाह लग गया। मेलहू ा क राजधानी सर वती नदी के बाएं तट
पर बसी हई थी, जो सतलज और यमुना के संगम से िनकली थी। यह खेदपण
ू बात थी िक कभी
िवशाल आकार म रहा सर वती का वाह अब अपे ाकृत बहत कम हो चुका था। िकंतु अभी भी
अपने इस लघु व प म भी वह काफ िवशाल और वैभवशाली थी। पंजाब क अ य तफ
ू ानी
निदय से िवलग सर वती पीड़ा द प से शांत थी। ऐसा तीत हो रहा था िक नदी को अनुभव
हो चुका था िक उसका अंत िनकट था। इसके बाद भी आ ामक प से उ रजीिवता के िलए बल
नह लगा रही थी। बि क जो भी उसके पास उपल ध उसके खजान को लेने क इ छा रखता था
उ ह वह िन: वाथता से दान करती जा रही थी।
उधर उड़ान भरता देविग र सौ य सर वती के पण
ू त: िवरोधभासी था। मेलहू ा के अ य नगर
क तरह ही देविग र भी एक िवशालकाय वेिदका पर िनिमत था, जो बाढ़ से सुर ा का एक
भावशाली उपाय तो था ही साथ ही श ुओ ं से बल सुर ा का भी। िफर भी अपने आकार के
कारण वह मेलहू ा के अ य नगर क तुलना म िभ न था। वह नगर तीन िवशालकाय वेिदकाओं
पर बना हआ था और येक वेिदका तीन सौ पचास हे टेयर से भी अिधक े तक िव ततृ था,
जो िक अ य नगर क तुलना म अ यिधक िवशाल कहा जा सकता था। ये वेिदकाएं लगभग आठ
मीटर ऊंची और बीच-बीच म िसक हई ई ंट के िम ण वाले िवशालकाय कटे हए प थर से
दुग कृत थ । इनम से दो वेिदकाओं के नाम ता एवं रजत थे, जो सामा य नाग रक के िलए बने
हए थे, जबिक तीसरी वेिदका वण नामक थी जो राजसी नगर-दुग था। ये वेिदकाएं एक दूसरे से
ऊंचे पुल से जुड़े हए थे, जो िसक हई ई ंट एवं प थर से बनी हई थ और जो नीचे के बाढ़ त
मैदानी े के ऊपर बने हए थे।
येक िवशालकाय वेिदका क बा प रिध म बाहर क ओर िनकले हए बड़े -बड़े खंटू
सिहत ऊंची-ऊंची दीवार बनी हई थी। उन दीवार के साथ-साथ एक िनि त अंतराल पर बुज बने
हए थे, जहां से बढ़ते हए श ुओ ं का ितरोध िकया जा सकता था। यह आ यजनक य िशव
क क पनाओं से भी अ ुत था। उसके िवचार म ऐसे नगर का िनमाण वा तव म मानव जाित क
अनुपम उपलि धय म से एक था।
िशव क सवारी ता वेिदका के आर-पार खंटू के मैदान से होते हए कलदार पुल पर चढ़ी।
उस कलदार पुल को नीचे क ओर से धातु क छड़ से सु ढ़ बनाया गया था और खुरदरी िसक
हई ई ंट को ऊपर लगाया गया था तािक घोड़े और रथ िफसले नह । सम त सा ा य म लगाई गई
उन ई ंट के बारे म कुछ ऐसा था जो िशव म कौतहू ल उ प न कर रहा था। नंदी क ओर मुड़कर
उसने पछ
ू ा, ‘ या ये ई ंट िकसी मानक य ि या के अनुसार बनाई जाती ह?’
‘जी हां, भु,’ चिकत नंदी ने उ र िदया, ‘मेलहू ा म सम त ई ंट सा ा य के मु य वा तुिवद
ारा िदए गए िविनदश एवं िदशा-िनदश के अनुसार ही बनाई जाती ह। िकंतु आपने कैसे
अनुमान लगाया?’
‘ये सभी वा तव म एक ही प रमाप के ह।’
नंदी अपने सा ा य क भािवता पर और अपने भु के अवलोकन क मता पर गव से
दमकने लगा। कलदार पुल के अंत म वेिदका और ऊंची हो गई और एक सड़क घुमावदार तरीके
से एक सौ य मोड़ के साथ िशखर तक चली गई थी जो घोड़ा एवं रथ के चलने के िलए सुगम हो
गई थी। इसके अित र एक चौड़ी सीिढ़य क ढालदार उड़ान सीधे ऊपर क ओर पैदल चलने
वाले याि य क सुिवधा के िलए बनी थी। इस ढाल के चार ओर नगरीय दीवार एवं वेिदका के ये
संल न भाग अ यिधक ढाल वाले थे तािक यिद श ु उधर से आ मण करने क मख
ू ता करे तो
यह उसके िलए म ृ यु क घाटी बन जाए।
नगर के ार धातु के बने हए थे, िजसे िशव ने इससे पहले कभी नह देखा था। नंदी ने
इसके बारे म बताया था िक वे लोहे के बने हए थे, जो एक नया धातु था और अभी कुछ समय
पहले ही उसक खोज हई थी। वह धातुओ ं म सबसे अिधक शि शाली था िकंतु बहत महंगा था।
उसके िलए िजस अय क (क ची धातु) क आव यकता होती थी वह आसानी से उपल ध नह
थी। वेिदका के वेश पर नगर के वेश ार के ऊपर सय
ू वंिशय का तीक िच उकेरा हआ था,
सभी िदशाओं म िनकलती हई िकरण के साथ एक चमक ला लाल व ृ ाकार सय
ू । उसके ठीक
नीचे उनका घोष वा य (आदश वा य) िलखा हआ था, िजसके अनुसार वे अपना जीवनयापन
करते थे, ‘स य, धम, मान’।
नगर के इतने मा को देखकर ही िशव िव मयािभभत
ू था। और जब उसने वेिदका के
िशखर पर नगरीय ार के अंदर जो य देखा वह वा तव म अपनी भािवता एवं सरलता म
असाधारण था। नगर वगाकार खंड म खड़ं जेदार माग से िवभ था। सड़क के साथ-साथ पैदल
चलने वाल के िलए पगडं डी बनी हई थी, िविभ न िदशाओं म यातायात क सुिवधा के िलए
सड़क पर संकेत िच बने हए थे और साथ ही सड़क के म य म जल-मल िनकासी हे तु ढक हई
नािलयां बनी हई थ । सभी मकान मानक य ढं ग से दो मंिजल वाले खान क तरह िसक हई
ई ंट से बने हए थे। यिद आव यक हो तो उनके ऊपर लकड़ी से अित र
सार भी िकया गया
था। नंदी ने िशव को बताया था िक मकान क भीतरी संरचना अलग-अलग आव यकताओं के
अनु प अलग-अलग कार क बनी हई थ । सभी मकान के ार एवं उनक िखड़िकयां बगल
क दीवार क ओर बन हई थ , अथात वे मु य माग क ओर नह थ ।
खाली दीवार जो मु य माग क ओर थ , उन पर सय
ू वंिशय के िविभ न लोकि य राजाओं
के रे खािच चमकदार काली लक र से बने हए थे जबिक उनक प ृ भिू म भरू े , ह के नीले,
ह के हरे और सफेद सौ य रं ग से रं गी हई थी। य िप प ृ भिू म म जो सबसे सामा य रं ग का
योग हआ था वह था नीला। मेलहू ावािसय के अनुसार नीला रं ग सबसे पिव रं ग माना जाता
था। यह आकाश का रं ग था। रं ग के वण म म यह प ृ वी के रं ग हरे से थोड़ा ऊंचा था।
मेलहू ावासी कृित क हर संरचना म एक महान अिभ ाय देखने क इ छा रखते थे, उनक सोच
थी िक रं ग के वण म म हरे से ऊंचा नीला रं ग एक अ ुत संयोग था, ठीक उसी कार िजस
कार प ृ वी के ऊपर आकाश था।
उन दीवार पर जो सबसे अिधक बार आने वाला िच था वह था महान स ाट भगवान राम
के बारे म। श ुओ ं पर उनक िवजय, उनके ारा चं वंिशय को परािजत करना और उनक
शासन कला एवं पांिड य क घटनाओं को ेमपवू क दशाया गया था। भगवान राम अ यंत ही
स मान यो य थे और बहत से मेलहू ावासी उ ह ई र क तरह पज
ू ते थे। वे उ ह उस िव णु क
तरह उि लिखत करते थे जो सव म ई र के िलए एक पुरातन उपािध थी, िजसका अथ था िव
का संर क एवं अ छाई का चारक।
िशव ने उस नगर के बारे म नंदी से जाना िक वह नगर चार से आठ खंड वाले कई जनपद
म िवभािजत था। येक जनपद म अपना बाजार, यापा रक एवं आवासीय े , मंिदर एवं
मनोरं जन क था। िकसी भी व तु का उ पादन अथवा दूषण फै लाने वाली गितिविधयां उन
जनपद से दूर एक पथ
ृ क थल पर िकए जाते थे। िजस कायकुशलता एवं सहजता से देविग र
काय कर रहा था वह इस त य को िम या मािणत करता था िक वह नगर सम त सा ा य म
सबसे अिधक जनसं या वाला था। मा दो वष पवू क गई जनगणना म नगर क जनसं या दो
लाख बताई गई थी।
नंदी, िशव एवं उन तीन सैिनक को नगर के एक िव ामगहृ म लेकर गया। नगर म
पयटक के िलए ऐसे कई िव ामगहृ थे, जो यावसाियक एवं पयटन के इरादे से वहां आते थे।
घोड़ के रहने के िलए िनयत थल पर उ ह बांधने के बाद सभी लोग अपने-अपने कमरे म जाने
के िलए पंजीकरण हे तु अंदर िव हए। िव ामगहृ क बनावट लगभग उसी कार क थी, जैसी
िक िशव ने अपनी या ा के दौरान अ य थल पर भी देखी थी। क ीय आंगन के चार ओर भवन
का िनमाण िकया गया था। कमरे अ छे -खासे बड़े और सभी कार के साज-सामान सिहत बने
थे।
‘ भु, राि -भोजन का समय होने ही वाला है,’ नंदी ने कहा, ‘म िव ामालय के भारी से
जाकर कहता हं िक भोजन क यव था कर दे। हम शी ता से भोजन करके एक अ छी न द
िनकाल लेनी चािहए य िक स ाट से िमलने का समय कल ि तीय हर म िनयत िकया गया
है।’
‘यह बहत ही उ म िवचार तीत होता है।’
‘साथ ही, यिद आप उिचत समझ तो या म इन सैिनक को िव ाम करने के िलए कह देता
हं और िफर उ ह ीनगर वापस भेज देता हं।’
‘यह भी बहत ही उ म िवचार तीत होता है,’ मु कान के साथ िशव ने कहा, ‘वाह या
बात है नंदी, तुम तो लगभग शानदार िवचार के झरने क तरह हो!’
िशव के साथ नंदी भी हंसा। वह हमेशा अपने भु के मुख पर हंसी लाने का कारण बनने पर
अ यंत स न था, ‘म अभी वापस आता हं, भु।’
िशव अपने िब तर पर लेट गया और शी ही उन खयाल म खो गया जो उसके िलए मायने
रखते थे।
म स ाट के साथ होने वाली भट को िजतनी शी ता से हो सके समा कर दूंगा। उ ह जो भी
मझ
ु से चािहए वह दे दूंगा और सती के िलए नगर को छान मा ं गा।
िशव ने एक बार सती के िठकाने के बारे म नंदी से पछ
ू ने का मन बना िलया था िकंतु
अंतत: उसने ऐसा न करने का िनणय िलया था। वह इस बात को जानता था िक पहली मुलाकात
म वह उस पर कोई असाधारण भाव नह छोड़ पाया था। अत: वह इस बात पर दुखी भी था। यिद
उसने उसे ढूंढ़ने के सरल उपाय नह बताए थे तो इसका मा इतना ही अथ था िक वह उससे
अिधक िवत नह हई थी। उसके बारे म असावधानी से यं ू ही बात कर वह इस करण और
किठन नह बनाना चाहता था।
उसके मुख क याद बार बार उसक आंख के सम आने पर वह मु कुराया। उसके यु
करने क अदा को याद कर उसने उसी कार पुन: दशन िकया। उसके कबीले के अिधकतर
लोग के िलए यह अद्भुत य नह था। िकंतु िशव के िलए, यह विगक था। उसके कोमल एवं
सुकुमार बदन क याद पर उसने आह भरी जो आ मण हो जाने क दशा म सहसा ही ू र एवं
ाणघातक गुण का बन गया था। जब वह तलवार चलाने के िलए अपने बदन का भार एक ओर
से दूसरी ओर ले जा रही थी तो उसके बदन का व मं मु ध कर देने वाला था, जो उसके बदन
को एक अित सुंदर लचक दान कर रहा था। सौ य प से बंधे हए उसके केश एं ि क प से
उसक येक गितिविध पर िहल रहे थे। उसने एक गहरी सांस ली।
आह! िकतनी सदुं र
ी!
वह ात:काल का समय था, जब िशव और नंदी ने राजसी नगर-दुग पहंचने के िलए ता एवं
वण वेिदकाओं के म य िनिमत पुल को पार िकया। वह पुल मेलहू ा क अिभयांि क का एक
अ य अचंभा था, िजसके दोन ओर बगल म चौड़ी-चौड़ी दीवार बनी हई थ । उन दीवार म छे द
करके सुराख बनाए गए थे तािक श ुओ ं पर तीर चलाए जा सक और गम तेल वािहत िकया जा
सके। पुल के म य म उसको ि भािजत करते हए एक अंितम सुर ा के प म िवशालकाय ार
िनिमत था, इस उ े य से िक यिद कभी श ु पुल तक पहंच जाएं तो इससे एक अित र सुर ा
उपाय िकया जा सके।
जब वे वण वेिदका पर पहंचे तो िशव पण
ू त: अचंिभत रह गया। उस राजसी े क भ यता
के िलए नह बि क वैसा कुछ नह होने के कारण। वह इस बात से तंिभत रह गया िक वहां कोई
समिृ क िनशानी नह िदख रही थी। इतने िवशालकाय एवं सम ृ सा ा य पर शासन करने
के बावजदू शासक वग िविश
प से सरल ढं ग से रह रहे थे। राजसी संरचना भी ठीक उसी
कार क थी जैसी िक अ य वेिदकाओं पर थी। अिभजात वग के यि य के िलए कोई रयायत
नह थी। उसी कार क खंडीय संरचना राजसी नगर-दुग म भी िनिमत थी जैसे िक सम त
मेलहू ा म बनी थी। दाई ं ओर एकमा ऐसा एक अतु य भवन था िजस पर ‘भ य सावजिनक
नानकु ड’ िलखा था। उस नानकु ड म बाई ं ओर भगवान इं का एक भ य मंिदर भी था।
िसक हई ई ंट क ऊंची क हई न व पर खड़ा वह मंिदर लकड़ी से िनिमत था, िजसका गुंबद
पण
ू त: वणमंिडत था। ऐसा तीत हो रहा था िक िविश वा तुकला को मा ई र के िलए
िनिमत भवन या उन भवन के िलए बचाकर रखा गया था जो सब लोग के योग के िलए होते
थे।
संभवतः भगवान ी राम ऐसा ही पसंद करते ह गे।
िशव ने मन ही मन अनुमान लगाया।
स ाट को जो एकमा रयायत दी गई थी वह यह थी िक उनका भवन आम भवन से बहत
बड़ा था, व तुत: बहत ही िवशाल।
िशव और नंदी राजसी िनजी कायालय म पहंचे तो देखा िक स ाट द साधारण प से सि जत
कमरे के दूसरी छोर पर एक साधारण िसंहासन पर एक ी एवं एक पु ष से िघरे हए बैठे हए थे।
एक औपचा रक नम ते के साथ अिभवादन करते हए द
आपक या ा सुखद रही होगी।’
ने कहा, ‘मेरी आशा है िक
इतने बड़े सा ा य के स ाट के तौर पर वे कुछ नवयुवक-से िदख रहे थे। वैसे तो वह
आकार म िशव से थोड़े छोटे था, िफर भी उनके म य म जो सबसे बड़ा अंतर था वह था शरीर क
मांसल सुडौलता। जबिक िविभ न कार क धा रय वाले कपड़े पहना हआ िशव अ यिधक
शि शाली िदख रहा था, वह द का शरीर बता रहा था िक उ ह ने अपने शरीर को कसरत से
तनाव त नह िकया था। वे अिधक मोटे भी नह थे। बस एक सामा य बनावट वाले थे। उनके
गेहंए रं ग के चेहरे के िलए भी यही कहा जा सकता था। औसत आकार, काली आंख और सीधी
नाक। उनके बाल लंबे थे, जैसािक मेलहू ावासी ी एवं पु ष सामा यत: रखा करते थे। उनके
िसर पर एक र नजिड़त भ य ताज था, िजस पर म य म सय
ू वंिशय का तीक िच प िदख
रहा था और जो चमकदार मिणय के प थर से बना हआ था। एक अंगव म् था, जो दाएं कंधे से
नीचे क ओर लटक रहा था। उसके साथ एक सुंदर धोती और दो बाजबू ंद थे, जो उनके दाएं हाथ
म बंधे थे। साथ ही बहत अिधक मा ा म योजनपण
ू आभषू ण द के औसत व प के परू क थे।
उनक सबसे अलग कर देने वाली पहचान उनक मु कान थी, जो उनक ढ़ िन यी िनद षता
को उनक आंख तक फै ला रहा था। ऐसा तीत हो रहा था िक स ाट द अपने रा यािधकार को
सरलतापवू क वहन कर रहे थे।
‘जी हां, महाराज,’ िशव ने उ र िदया, ‘आपके सा ा य म मल
ू भत
ू सुिवधाएं अ ुत ह। आप
एक असाधारण स ाट ह।’
‘ध यवाद। िकंतु म मा
ितिबंिबत याित का अिधकारी हं। काय तो मेरे लोग ने िकए ह।’
‘यह तो आपक िवन ता है, महाराज।’
‘िवन ता से मु कुराते हए द ने पछ
ू ा, ‘ या म अपने सबसे मह वपण
ू सहयोिगय से
आपका प रचय करवा दंू?’ िबना उ र क ती ा िकए ही उ ह ने बाई ं ओर उस ी को इंिगत
करते हए कहा, ‘ये मेरी धानमं ी ह, कनखला। ये सभी शासिनक, राज व एवं नयाचार
संबंधी मामल को देखती ह।’
कनखला ने िशव को एक औपचा रक नम ते िकया। उसका िसर मुंिडत था िसवाय पीछे क
ओर बाल के एक िचकने गांठ लगे हए गु छे के। उसके बाएं कंधे से लटककर दाएं धड़ तक एक
धागा लटका हआ था, िजसे जनेऊ कहा जाता था। वह अिधकतर मेलहू ावािसय क तरह ही
जवान िदख रही थी, िकंतु उसका भार कुछ अिधक था जो उसक ेत चोली एवं धोती के म य
आिध य म उपि थत वसा प
प से बता रही थी। वह काली और अ यिधक िचकने तन वाली
थी और वह अपने देशवािसय क तरह ही आभषू ण पहने हए थी, जो िदखावा रिहत एवं िढ़वादी
थे। िशव ने देख िलया था िक कनखला क बांह के दूसरे बाजबू ंद पर एक कबत
ू र बना हआ था।
यह ा ण के म य बहत अिधक िति त जाित-वग नह था। िशव नीचे झुका और उसने
औपचा रक तरीके से उसके नम ते का उ र िदया।
दाई ं ओर संकेत करते हए द ने कहा, ‘और ये मेरी सेनाओं के धान ह, धान
सेनानायक पवते र। ये थल सेना, नौसेना, िविश सेना, पुिलस आिद का भार संभालते ह।’
पवते र का आकार- कार इतना िवशालकाय था िक िशव को ऐसा तीत हआ िक यिद
उससे म लयु करना पड़े तो उसे कई बार सोचना पड़े गा। वह िशव क अपे ा लंबा था और
उसका डील-डौल अ यंत ही सुगिठत था, जो आसपास काफ थान घेरकर खड़ा था। उसके
घुंघराले और लंबे बाल भली कार से कंघी ारा संवारे गए थे जो उसके मुकुट से बहत ही
सु यवि थत ढं ग से नीचे िनकले हए थे। उसक िचकनी और सांवली वचा लंबे समय तक यु
के गव ले िच को सुशोिभत कर रही थी। उसका शरीर केश-िवहीन था जो सामा यत: र येदार
ि य से िब कुल अलग था। यह उन ि य से िभ न था, जो अपने शरीर के बाल को मदानगी
क िनशानी समझा करते थे। संभवत: इसी कारण पवते र ने इस कमी को छुपाने के िलए बड़ी
एवं घनी मंछ
ू रखी हई थ जो िकनारे पर ऊपर क ओर व होकर मनोरं जक लग रही थ ।
उसका हठीला शि शाली और यायसंगत च र उसक आंख से ितिबंिबत हो रहा था। दूसरा
बाजबू ंद पवते र को बाघ क ेणी का बता रहा था जो ि य म बहत ही उ च जाित वग का
होता था। उसने खाई से िसर िहलाया। नम ते नह िकया। अपने गव ले िसर से िव तारपवू क
झुककर स यता नह िदखाई। हालांिक िशव मु कुराया और गमजोशी से उसका अिभवादन एक
औपचा रक नम ते से िकया।
‘कृपया, आप बाहर ती ा कर, अिधपित,’ नंदी को देखते हए पवते र ने उसे परामश
िदया।
इससे पवू िक नंदी कुछ कह पाता, िशव ने अपनी बात रखी, ‘मुझे मा कर। िकंतु यिद
आपको कोई ऐतराज न हो तो नंदी को मेरे पास ही रहने दीिजए। जब से मने अपना देश छोड़ा है,
तब से वह मेरे साथ िनरं तर रहा है और मेरा ि य एवं िव ासी िम बन चुका है।’
‘िन संदेह, वह रह सकता है,’ द ने उ र िदया।
‘महाराज, इस वातालाप म एक अिधपित को सि मिलत करना उिचत नह होगा,’ पवते र
ने कहा, ‘वैसे भी इसक सेवा िनयमाविलयां बताती ह िक वह मेहमान को स ाट क उपि थित
तक लाने का मागदशन करे गा और वहां नह केगा जब सा ा य से संबंिधत कोई बात क जा
रही हो।’
‘ओह, अब शांत भी हो जाइए, पवते र। कभी-कभी आप अपनी सेवा िनयमाविलय को
अ यिधक गंभीरता से ले लेते ह।’ िशव क ओर मुड़ते हए द ने कहा पुन: कहा, ‘यिद आपको
कोई परे शानी न हो तो हम आपके गले को अभी इसी समय देखना चाहते ह।’
नंदी िशव के पीछे िखसक गया तािक गुलबू ंद को खोल सके। गुलबू ंद पर माला के दाने
गंथ
ू ने क यव था को देखकर िक वह ऐसा तीत हो िक जैसे धिमक कारण से उसे बांधा गया
था, द मु कुराए और उ ह ने फुसफुसाकर कहा, ‘उ म बंध।’
जैसे ही नंदी ने िशव के गुलबू ंद को बाहर िनकाला, द और कनखला िशव के गले का
िनरी ण करने के िलए उसके िनकट आए तािक सू मता से परी ण कर सक। पवते र आगे
नह आया िकंतु उसने अपने गले को थोड़ा आगे ले जाकर देखने क चे ा क तािक भली-भांित
िदखाई पड़ सके। ऐसा तीत हो रहा था िक जो द एवं कनखला ने देखा था, उनसे वे पण
ू त:
तंिभत थे।
स ाट ने गले को छूकर देखा और िव मय म फुसफुसाकर कहा, ‘रं ग भीतर से आ रहा है।
यह रं ग िकया हआ नह है। यह सच है और अकृि म है।’
द और कनखला ने एक-दूसरे को देखा। उनक िवि मत आंख म आंसू चमक रहे थे।
कनखला ने अपने दोन हाथ को जोड़कर नम ते िकया और बड़बड़ाते हए मं ो चारण करने
लगी। अपने अित आ ाद को अ यिधक य न से दबाते हए द ने िशव के मुख को देखा। एक
िनयंि त मु कान के साथ मेलहू ा के स ाट ने कहा, ‘मेरी आशा है िक जबसे आप मेलहू ा म पधारे
ह, आपको हमारी ओर से िकसी भी कार क असुिवधा नह हई होगी।’
द क िनयंि त िति या के बाद भी िशव को आभास हो गया था िक स ाट और उसक
धानमं ी इस नीले गले को देखकर आ यचिकत रह गए थे।
पता नह यह बकवास नीला गला इन मेलहू ावािसय के िलए इतना मह वपण
ू य है?
‘हं ऽ ऽ म, िब कुल नह महाराज,’ गुलबू ंद को गले पर लगाने का य न करते हए िशव ने
उ र िदया, ‘दरअसल, यहां जो अितिथ स कार हम ा हआ है, उससे म और मेरा कबीला
अ यिधक स न ह।’
‘यह सुनकर मुझे अ यिधक स नता हई,’ न ता से अपना िसर झुकाते हए द ने कहा,
‘आप अब अव य ही िव ाम करने क इ छा रखते ह गे और हम कल इस पर िव तार से बात
करगे। या आप राजसी दुग-नगर म अपना आवास रखना पसंद करगे? ऐसी अफवाह है िक यहां
के आवास थोड़े अिधक ही आरामदायक ह।’
‘यह बहत ही कृपालु
ताव है, महाराज।’
द नंदी क ओर मुड़े और पछ
ू ा, ‘अिधपित, आपने अपना या नाम बताया था?’
‘मेरा नाम नंदी है, महाराज।’
‘आप भी यहां िनवास कर सकते ह। आप अपने आदरणीय अितिथ क देखभाल भली कार
से करना सुिनि त कर। कनखला कृपया सभी कार क यव था सुिनि त कर।’
‘जैसी आपक आ ा, महाराज।’
कनखला ने अपने एक सहयोगी को बुलाया, जो िशव और नंदी को मागदशन करके
राजशाही कायालय से बाहर लेकर चला गया।
जैसे ही िशव कमरे से बाहर गया तो द ने घुटन के बल बैठकर अ यंत ही धमाचार से
अपने िसर से उस थान को पश िकया जहां िशव खड़ा हआ था। उसने बड़बड़ा कर धीमे वर म
ाथना क और आंख म आंसू िलए कनखला क ओर देखा। हालांिक कनखला क आंख ने
धैय खोने एवं ोध का िव ासघात कर िलया था।
‘म कुछ समझी नह , महाराज,’ कनखला ने आंख तरे री, ‘नीला रं ग अकृि म था। आपने
उनसे बताया य नह ?’
‘आप मुझसे या करने क आशा करती ह?’ आ य से भरे द ने कहा, ‘देविग र म उनका
मा दूसरा िदन है। आप चाहती ह िक म उनको संबोिधत क ं और बताऊं िक वे ही नीलकंठ ह,
हमारे मुि दाता, हमारे र क? और उ ह हमारी सभी सम याओं के िनदान के िलए भेजा गया
है?’
‘इसम हज ही या है? यिद उनका कंठ नीला है, तो वे ही नीलकंठ ह। या वे नह ह? और
यिद वे ही नीलकंठ ह तो वे ही हमारे र क ह। उ ह इस ार ध को वीकार करना होगा।’
उ ेिजत पवते र ने म य म ही टोका, ‘मुझे िव ास नह हो रहा है िक हम इस कार बात
कर रहे ह। हम मेलहू ावासी ह! हम सय
ू वंशी ह! हमने मानवता क सबसे महान स यता का
िनमाण िकया है और कोई गंवार िजसके पास कोई िश ा नह है, कोई कौशल नह है, कोई
यो यता नह है, वह हमारा र क होगा? मा इस कारण से िक उसका गला नीला है?’
‘पौरािणक कथा यही बताती है, पवते र,’ कनखला ने ितकार िकया।
द ने अपने दोन मंि य को रोकते हए कहा, ‘पवते र, म पौरािणक कथा म िव ास
रखता हं। मेरे लोग पौरािणक कथा म िव ास रखते ह। नीलकंठ ने मेरे शासनकाल म अवत रत
होने का चयन िकया है। वे सम त भारतवष को मेलहू ा के आदश पर चलने का नेत ृ व करगे,
स य, कत य एवं स मान क एक भिू म। उनके नेत ृ व म हम चं वंिशय के संकट का सदा के
िलए िनपटारा कर सकते ह। वे सभी कार के संताप जो वे हम पहंचाते ह, समा हो जाएं गे,
आतंक हमले से लेकर, सोमरस क कमी से लेकर सर वती के मरण तक सभी।’
‘तब उ ह बताने म यह देरी य , महाराज?’ कनखला ने पछ
ू ा, ‘िजतने अिधक िदन हम
न करगे उतना ही हमारे लोग का समाधान िनबल होता जाएगा। आपको पता ही है िक अभी
कुछ िदन पहले ही आतंिकय का आ मण एक गांव म हआ था जो ह रयुप से कुछ ही दूरी पर
ि थत था। जब हमारी िति या दुबल होती है तो हमारे श ु सबल होते जाते ह, महाराज। हम भु
को शी ही यह बात बता देनी चािहए और हमारे लोग को उनके आगमन क घोषणा कर देनी
चािहए। यह हम हमारे ू र श ुओ ं से लड़ाई लड़ने म शि
दान करे गा।’
‘म उनको बताऊंगा। िकंतु म आप लोग से अिधक दूरदश होने का यास कर रहा हं। अभी
तक हमारे सा ा य ने मा कपटी नीलकंठ के हौसलाप त करने वाले भाव का सामना िकया
है। उन प रणाम क क पना क िजए यिद लोग को यह पता चलता है िक असली नीलकंठ आ
गए ह िकंतु वे हमारी सहायता करने से मना कर रहे ह। सव थम हम इस बात पर आ त होना
चािहए िक वे इस ार ध को वीकार करने को इ छुक ह। उसके बाद ही हम लोग को उनके
आगमन क सच
ू ना दान करगे। और म सोचता हं िक उनको मनवाने का सबसे उ म तरीका
यही होगा िक हम उ ह अपनी सम त सचाइय को बताय। एक बार जब वे हमारे ारा सामना
िकए जाने वाले आ मण के अनौिच य को देख लगे तो वे बुराई को न करने के यु म हमारे
साथ ह गे। यिद इसम समय लगता है तो कोई हज नह है। हमने सिदय से नीलकंठ के आने क
ती ा क है। कुछ और स ाह हम न नह कर पाएं गे।’
अ याय - 5
ा का जाित-वग
िश व राजशाही िव ामगहृ के हरे -भरे उ ान म िवचरण कर रहा था। उसका सम त सामान
नंदी एवं कनखला के सहयोिगय ारा राजशाही िव ामगहृ म लाया जा रहा था। िशव एक
आरामदायक त त पर सफेद और लाल रं ग के गुलाब क यारी क ओर मुंह करके बैठा हआ
था। उस खुले उ ान म सुहावनी मंद हवा ने उसके मुख पर मु कान ला दी थी। उस समय म या
का पवू हर था और उ ान वीरान था। िशव क सोच बार-बार ात:काल स ाट से हई वातालाप
क ओर घम
ू -िफरकर चली जा रही थी। द क िनयंि त िति या के बावजदू िशव को यह बात
समझ म आ चुक थी िक उसका नीला गला मेलहू ावािसय के िलए बहत मह व रखता था, यहां
तक िक स ाट के िलए भी। इसका अथ था िक नीलकंठ क पौरािणक कथा चाहे वह जो भी हो
वह मा क मीर के एक छोटे से े तक ही सीिमत नह थी। यिद वयं स ाट ने इसे गंभीरता
से िलया था तो सम त मेलहू ावािसय को अव य ही नीलकंठ क सहायता क आव यकता थी।
िकंत ु आिखर ये िकस बेवकूफ के िलए सहायता चाहते ह? ये लोग हमसे आव यकता से
अिधक िवकिसत ह!
उसक सोच म ढोल क थाप एवं घुंघ ओं के वर से िव न पड़ा। ऐसा तीत हआ िक उस
उ ान म कोई न ृ य का अ यास कर रहा था। उस न ृ य के रं गमंच और शेष उ ान के म य एक
बाड़ा बना हआ था। िशव वयं भी एक अ यंत ही भावुक नतक था। वह सामा यत: ढोल क थाप
सुनकर उसक ओर चला जाता तािक उस लय पर िथरक सके, िकंतु उस समय उसका मन पवू
के िवचार म त लीन था। िकंतु भावी को कौन रोक सकता है। उस न ृ य समहू से आ रहे कुछ
वर उड़कर िशव के कान म िगर पड़े ।
‘नह नह देवी, आपको यह छोड़ देना चािहए,’ एक िवल ण पु ष वर ने कहा, ‘आपके
िलए यह ऐसा काम नह है िक आपको करना ही होगा। आप न ृ य का आनंद लीिजए। आप इसके
सम त न ृ य पद को याद करने का कुछ अिधक ही य न कर रही ह, बजाय इसके िक न ृ य के
वाह के भाव को अपने आप ही िनकल जाने द।’
उसके बाद एक ी का वर सुनाई िदया, ‘देवी, गु जी उिचत ही कह रहे ह। आप न ृ य
उिचत कार से कर रही ह, िकंतु उसका आनंद नह ले रही ह। सघनता आपके मुख पर िदखाई
दे रही है। आपको थोड़ा आराम से न ृ य करना होगा।’
‘पहले मुझे न ृ य के पद को सही कर लेने दीिजए। उसके बाद म इसम आनंद लेना भी
सीख जाऊंगी।’
अंितम वर ने िशव के बदन के रोएं खड़े कर िदए। यह सती थी। वह शी ता से उठा और
िजधर से वे वर आ रहे थे, उस ओर चल पड़ा। उस बाड़े के पीछे से आने पर उसने देखा िक सती
एक छोटी-सी वेिदका पर न ृ य कर रही थी। उसके हाथ बगल म कड़ाई से ऊपर उठे हए थे जब
वह न ृ य क िविभ न मु ाओं का दशन कर रही थी। उसने थाप के अनुसार ही न ृ य िकया,
पहले बाई ं ओर िफर दाई ं ओर। उसने अपने आका रत कू हे को एक ओर लचकाया और न ृ य के
भाव को बताने के िलए अपने दोन हाथ कमर पर रख िलए। वह एक बार पुन: मं मु ध था।
हालांिक उसने देखा िक य िप वह न ृ य के पद को सही उठा रही थी, तथािप गु जी सही
थे। वह एक यांि क तरीके से न ृ य कर रही थी; वाभािवक आ मसमपण अथात एक वाभािवक
नतक के ल ण उसके न ृ य म प रलि त नह हो रहे थे। हष एवं ोध के िविभ न कार के
मनोभाव जो उस न ृ य क कथा के मा यम से कहे जा रहे , वे उसके न ृ य पद म नह िदखाई दे
रहे थे। और एक कुशल नतक से िभ न वह पण
ू वेिदका का योग नह कर पा रही थी। उसके
पद छोटे-छोटे थे, िजसके कारण उसके न ृ य पद िसकुड़कर वेिदका के क तक ही सीिमत थे।
न ृ य िसखाने वाले गु जी उसके सामने बैठे हए थे और ढोल पर संगत दे रहे थे। उसक
सहयोगी कृि का उसक दाई ं ओर बैठी हई थी। वे गु जी थे, िज ह ने सबसे पहले िशव को देखा
और खड़े हो गए थे। सती और कृि का भी पीछे मुड़ गई और अपने सामने िशव को खड़ा देखकर
वे भी अचंभे म पड़ गई ं। सती से िभ न कृि का अपने भाव पर िनयं ण नह रख सक और िबना
कुछ समझे ही बोल पड़ी, ‘िशव?’
सती ने अपने वभाव के अनु प शांत एवं औपचा रक तरीके से गंभीरता से पछ
ू ा, ‘ या सब
कुछ ठीक है, िशव? या आपको मेरी िकसी सहायता क आव यकता है?’
आप कै सी ह? म आपको बहत याद करता रहा। या आप कभी म ु कुराती नह ह?
ये िशव के मन के उ ार थे, जो वह य
नह कर सकता था।
िशव अब भी उसे ही देख रहा था। श द उसके मन म उमड़-घुमड़ रहे थे, िकंतु िज ा पर नह
आ रहे थे। मु कान िलए कृि का ने सती क िति या जानने के िलए उसक ओर देखा। अब
उससे भी अिधक गंभीर सती ने िवन ता से दुबारा पछ
ू ा, ‘ या म िकसी कार आपक मदद कर
सकती हं, िशव।’
‘नह , नह , मुझे िकसी सहायता क आव यकता नह है,’ जैसे ही वा तिवकता उसके
सं ान म पुन: आई तो िशव ने उ र िदया, ‘म इस े म आया हआ था और मने आपके न ृ य क
विन सुनी। मेरा मतलब है िक आप लोग क बात सुन । आपके न ृ य के पद इतने बलशाली नह
थे िक म सुन सकता था। आप िब कुल सही ढं ग से न ृ य कर रही थ । वा तव म तकनीक
से ठीक था और बस उतना ही...’
प
कृि का ने बीच म ही बात काटी, ‘आपको न ृ य के बारे म कुछ भी पता है या नह ?’
‘ओह कुछ अिधक नह , बस थोड़ा-बहत,’ िशव ने मु कान के साथ कृि का से कहा। उसके
बाद वह बहत शी ता से सती क ओर मुड़ा और बोला, ‘मुझे मा कर सती, िकंतु गु जी सही
ह। आप कुछ अिधक ही िनयमशील हो रही ह। िजस देश से म आया हं वहां के लोग इसके बारे म
कुछ ऐसा कहगे िक मु ाएं और ि याएं तो तकनीक प से पण
ू त: सही थे। िकंतु भाव
अनुपि थत थे। और न ृ य िबना भाव के उसी कार का होता है िजस कार आ मा िबना शरीर।
जब नतक के भाव उसम सि मिलत हो जाते ह, उसे अपने न ृ य पद याद करने क आव यकता
ही नह रह जाती है। न ृ य के पद तो वयं ही आते जाते ह। भाव एक ऐसी व तु है िजसे आप सीख
नह सकते। वह आपके पास आती है जब आप उसे अपने दय म थान देते ह।’
सती ने िबना कुछ भी बोले बड़े ही धैय से िशव क बात सुनी। जब वह गंवार बात कर रहा
था तो उसक भ ह थोड़ी ऊपर उठ गई थ । एक सय
ू वंशी से अिधक यह यि न ृ य के बारे म
कैसे जान सकता है? िकंतु उसने वयं को याद िदलाया िक उसने उसके जीवन क र ा क थी।
वह उसे स मान देने के िलए कत यब थी।
य िप कृि का ने इसे उसके अपराध के प म िलया िक एक िबना जाित सच
ू क िच वाला
िवदेशी दम भर रहा है िक उसे न ृ य के बारे म उसक महोदया से अिधक आता था। उसने ृ
ि से िशव को देखा और कहा, ‘आपका इतना दु साहस िक आप सोचते ह िक आपको इस
रा य क सबसे अ छी नतक से अिधक ान है?’
िशव को एहसास हो चुका था िक संभवत: उसने कोई अपराध कर िदया था, ‘म अ यिधक
मा ाथ हं। म िकसी भी कार से आपके अनादर क सोच भी नह सकता। कई बार ऐसा होता
है िक मुझे यह एहसास नह होता है िक म या बोल रहा हं और िबना कुछ सोचे-समझे बोलता
चला जाता हं।’
‘नह , नह ,’ सती ने उ र िदया, ‘आपने मेरा अनादर नह िकया है। संभवत: आप सही ह।
म न ृ य के भाव को उतना महसस
ू नह करती िजतना मुझे करना चािहए। िकंतु मुझे िव ास है
िक म गु जी के माग-दशन म कुछ समय म आव य सीख जाऊंगी।’
सती को भािवत करने के अवसर को भुनाते हए िशव ने कहा, ‘यिद आपको बुरा न लगे
तो या म न ृ य का दशन कर सकता हं? मुझे अ छी तरह से पता है िक म आपक तरह
तकनीक प से सही नह हं। िकंतु बहत संभव है िक भाव म कुछ न कुछ अव य होगा जो मुझे
मेरे न ृ य के पद सही लेने म मेरा माग-दशन करे गा।’
यह तो बहत अ छी तरह से म बोल गया। अब वह ना नह कर सकती!
सती आ यचिकत िदखी। यह अ यािशत था, ‘हं ऽ ऽ म, ठीक है,’ वह न चाहते हए भी
जाने कैसे बोल पड़ी।
अ यिधक स न िशव त काल ही रं गमंच के म य म पहंच गया। उसने अंगव म् को
उछालकर एक ओर फक िदया जो उसके ऊपरी शरीर को ढं के हए था। उसक महोदया के
अपमान पर कृि का का जो अथ लगाने वाला गु सा था वह काफूर हो चुका था य िक उसक
उस समय गहरी सांस िनकल गई जब उसने िशव क छोटी-छोटी लहर वाली डील-डौल को देखा।
उधर सती अचंभे म पड़ती जा रही थी िक उसका वह शि शाली मांसपेिशय से सुगिठत शरीर
कैसे न ृ य के िलए आव यक लचक कर पाएगा। शि क वेदी पर बहधा लचीलेपन क आहित
दे दी जाती है।
ढोल पर ह क थाप देते हए गु जी ने िशव से पछ
ू ा, ‘िजस ताल पर आप आराम से न ृ य
कर सकते ह, वह बताइए हे नवयुवक।’
िशव ने हाथ जोड़कर नम ते िकया और िवन ता से झुककर कहा, ‘गु जी, या आप मुझे
कुछ ण देने क कृपा करगे? मुझे न ृ य के िलए तैयार होने क आव यकता है।’
न ृ य एक ऐसी िवधा थी, िजसे िशव उतनी ही अ छी तरह से जानता था िजतनी िक
यु कला। पवू क ओर घम
ू कर पहले उसने अपनी आंख मंदू ल और उसके बाद वह थोड़ा-सा
झुका। उसके बाद वह अपने घुटन के बल हो गया और उसने भि भाव से अपने िसर से भिू म को
पश िकया। खड़ा होकर उसने अपने दािहने पांव को आगे बढ़ाया। उसके बाद उसने अपने बाएं
पांव को फश से बड़े ही सुंदर ढं ग से व तरीके से तब तक उठाया जब तक िक वह घुटने क
ऊंचाई तक न पहंच गया और िफर उसने संतुलन बनाने के िलए अपने दाएं पांव को थोड़ा झुका
िदया। उसका बायां पांव उसके दाएं पांव के लगाव एवं मुख के ठीक म य म आगे क ओर चला
गया। दशकगण के म य एक म ृ यु समान शांतता को मा शांत एवं मंद पवन क विन ही भंग
कर रही थी। गु जी, सती एवं कृि का ने िशव को आ य से देखा। वे यह समझ नह पा रहे थे
िक वह या कर रहा था िकंतु वे उस ऊजा का अनुभव कर रहे थे जो िशव क उस मु ा से िनकल
रही थी।
िशव ने सुंदर व ृ ाकार न ृ य पद लेने के साथ अपने दोन हाथ को उठाया और उ ह कंधे के
बराबर दोन ओर लेकर गया। उसका दािहना हाथ इस कार से ढांचा बना रहा था िक जैसे उसने
डम हाथ म पकड़ रखा हो। उसका बायां हाथ खुला था, उसक हथेली ऊपर क ओर मुख िकए
हए थी जैसे िक वह कोई दैवीय ऊजा ा कर रही हो। उसने इस मु ा को कुछ देर तक यं ू ही
बनाकर रखा; उसका दीि मान मुख बता रहा था िक िशव अपनी ही दुिनया म खोता चला जा
रहा था। उसके बाद उसका दिहना हाथ अ यािसत ढं ग से आगे क िदशा म चला जैसे उसके पास
अपना ही मन हो। उसक हथेली अब खुली हई थी और दशक क ओर देख रही थी। वह मु ा कुछ
इस कार क थी िक जैसे वह सती को संर ण दे रही थी जो अचंभे से सब कुछ देख रही थी।
उसका बायां हाथ उसके कंधे के बराबर वाले थान से सामने क ओर आया िजसक हथेली नीचे
क ओर मुख िकए हए थी। बायां हाथ एक मु ा करने के बाद का जब वह इस ि थित म आया
िक वह बाएं पांव को िदखा रहा था। िशव ने इस मु ा को भी थोड़ी देर तक रोके रखा।
और उसके बाद उसने न ृ य ारं भ कर िदया।
सती ने आ य से िशव को घरू ा। वह उसके ही न ृ य पद का दशन कर रहा था। इसके
बावजदू वह परू ी तरह से एक िभ न न ृ य लग रहा था। उसके हाथ क मु ाएं परू ी तरह से
अ यािसत थ जैसे जादुई ह ।
कैसे इतने सुगिठत शरीर म इतनी लचक हो सकती थी? गु जी ने असहाय होकर ढोल से
संगत देने का य न िकया। िकंतु प
प से इसक कोई आव यकता नह थी। य िक िशव
के पांव ही ढोल क थाप का गुंजन कर रहे थे।
न ृ य ने ी के िविभ न भाव के दशन को िदखाया। ारं भ म एक ी के अपने पित के
साथ हंसी-िठठोली करते उसक स नता एवं अनुराग को दशाया गया। उसके बाद अपने साथी
क अनुिचत म ृ यु पर उसके ोध और पीड़ा को दशाया गया। यहां तक िक िशव के इतने खे
मदाना शरीर होने पर भी एक शोक त ी के कोमल िफर भी सबल भाव का दशन पण
ू त:
सहज िदख रहा था।
िशव के ने खुले हए थे। िकंतु दशकगण ने संपािदत िकया िक वह उनके िलए अनजान
थे। िशव अपनी ही दुिनया म था। वह दशक के िलए न ृ य नह कर रहा था। वह शंसा पाने के
िलए न ृ य नह कर रहा था। वह संगीत के िलए न ृ य नह कर रहा था। वह मा वयं के िलए
न ृ य कर रहा था। बि क ऐसा तीत हो रहा था िक उसका न ृ य िकसी िद य शि
ारा
िनदिशत हो रहा था। सती को अनुभव हआ िक िशव सही था। उसने वयं को खुला छोड़ िदया
और न ृ य वयमेव उसके पास आ पहंचा था।
ऐसा तीत हो रहा था िक जैसे वह न ृ य अनंत काल तक चलने वाला था। िफर अचानक ही
िशव ने कड़ाई से आंख बंद क और अंतत: उसका न ृ य समा हो गया। उसने अपनी अंितम मु ा
को बहत देर तक रोके रखा और उसक दीि उसे छोड़कर चली गई। ऐसा तीत हो रहा था िक
वह अब अपनी दुिनया म वापस लौट गया था। िशव ने धीरे से अपनी आंख खोली तो उसने देखा
िक सती, कृि का और गु जी पण
ू िव मय म उसे िनहार रहे थे।
गु जी वे पहले थे िज ह अपने कंठ- वर क सबसे पहले ाि हई, ‘आप कौन ह?’
‘म िशव हं।’
‘नह , नह , आपका शरीर नह । मेरा अथ िक आप कौन ह?’
िशव ने दोन आंख को व
‘गु जी, या म एक
कर योरी चढ़ाई और पुन: दुहराया, ‘म िशव हं।’
पछ
ू सकती हं?’ सती ने पछ
ू ा।
‘िन संदेह आप पछ
ू सकती ह।’
िशव क ओर मुड़कर सती ने पछ
ू ा, ‘न ृ य से पहले वह आपने या िकया था? या वह
िकसी कार क तावना थी?’
‘जी हां। इसे नटराज मु ा कहा जाता है। यह न ृ य के ई र क मु ा है।’
‘नटराज मु ा? वह या करती है?’
‘उसने मेरी ऊजा को सावभौिमक ऊजा के साथ एकरे िखत कर िदया तािक न ृ य वयं ही
उ प न हो सके।’
‘म कुछ समझी नह ।’
‘देिखए, यह कुछ इस कार है: हमारे लोग के म य, हमारा मानना है िक इस िव म सभी
व तुएं िकसी न िकसी कार क शि या ऊजा क संवाहक ह। पेड़-पौधे, पशु, व तुएं, हमारे
शरीर, सभी कुछ ऊजा के संवाहक ह और ऊजा संचा रत करते ह। िकंतु ऊजा क जो सबसे बड़ी
संवाहक है िजसके हम संपक म होते ह, वह वयं माता प ृ वी है, वह मैदान िजस पर हम चलते
ह।’
‘उसका आपके न ृ य से या लेना-देना है?’
‘इसिलए य िक आप जो कुछ भी करते ह, उसके िलए आपको ऊजा क आव यकता होती
है। ऊजा लोग से, व तुओ ं से और वयं माता प ृ वी से आती है। आपको उस ऊजा के िलए
स मानपवू क मांग करनी होती है।’
‘और आपक यह नटराज मु ा आपको उस ऊजा को ा करने म सहायता करती है,
िजसक आप कामना करते ह?’ गु जी ने पछ
ू ा।
‘यह इस बात पर िनभर करता है िक म िकसिलए उस ऊजा क कामना करना चाहता हं।
नटराज क मु ा मुझे उस न ृ य के िलए आदरपवू क ऊजा मांगने म सहायता करती है जो मेरे पास
आना चाहती है। यिद मुझे मेरी सोच के िलए ऊजा क कामना करनी होती तो मुझे पालथी
मारकर बैठकर यान लगाना चािहए।’
‘ऐसा तीत होता है िक ऊजा आप पर कृपा रखती है नवयुवक,’ गु जी ने कहा, ‘आप
नटराज ह, न ृ य के ई र।’
‘ओह, नह !’ िशव ने लगभग पुकार कर कहा, ‘म तो उस अनंत नटराज ऊजा का एक
मा यम मा हं। कोई भी उसका मा यम हो सकता है।’
‘यिद ऐसा है, नवयुवक तो आप िवशेष प से इसके भावी मा यम ह,’ गु जी ने कहा।
सती क ओर मुड़कर गु जी ने कहा, ‘यिद आपके इन जैसे िम ह तो आपको मेरी आव यकता
नह है, पु ी। यिद आप चाहती है िक िशव आपको न ृ य िसखाएं तो मुझे वयं को इस काय से
िवलग करने म गव क अनुभिू त होगी।’
िशव ने सती को आशाि वत ि
से देखा। यह सब उसक आशा से बहत ही अ छा हो गया
था।
हां बोल दो, सदंु री!
हालांिक ऐसा तीत हआ िक सती इससे पथ
ृ क िवचार रही थी। आ य से भरे िशव ने उस
ी के भे होने का पहला संकेत देखा। उस ी ने अपना िसर झुकाया, जो उसके गव ले
यवहार अनुकूल नह था और धीरे से फुसफुसाहट भरे वर म बोली, ‘म िकसी का अनादर नह
कर रही, िकंतु संभवत: मुझम इतनी िनपुणता नह है िक म इस तर का िश ण ा कर
सकं ू ।’
‘िकंतु आपके पास िनपुणता है,’ िशव ने तक िकया, ‘आपके पास आचरण है। आपके पास
दय है। आप बड़ी आसानी से उस तर तक पहंच सकती ह।’
सती ने िसर उठाकर िशव क ओर देखा। उसक आंख म ह क नमी के संकेत िदख रहे
थे। उसने दुख के िजस महासमु को िदखाया उसने िशव को िव मय म डाल िदया।
यह यहां या बकवास हो रहा है?
‘म िकसी भी तर से बहत दूर हं, िशव,’ सती बड़बड़ाई।
जब उसने यह कहा तो सती को वयं को पुन: िनयंि त करने क शि आ गई थी। िवन
गव ला आचरण उसके मुख पर वापस लौट आया था। मुखौटा पुन: आ चुका था, ‘यह मेरी पज
ू ा
का समय है। गु जी आपक आ ा से मुझे यहां से चले जाना चािहए।’ वह िशव क ओर मुड़ी,
‘आपसे दुबारा िमलकर बहत स नता हई िशव।’
इससे पहले िक िशव कुछ बोल पाता, सती मुड़ी और वहां से चली गई। कृि का ने उसका
अनुसरण िकया।
गु जी पण
ू त: भ च के िशव को लगातार गहरी ि से देख रहे थे। उ ह ने िशव क ओर
झुककर औपचा रक नम ते िकया और कहा, ‘आपको न ृ य करते देखकर म कृत हआ।’
उसके बाद वे भी मुड़े और वहां से चले गए। िशव मेलहू ावािसय के इन अग य तरीक को
सोचकर आ यचिकत रह गया।
दूसरे िदन ात:काल के बाद बहत समय बीत चुका था जब िशव और नंदी िनजी राजशाही
कायालय पहंचे थे और उ ह ने पाया िक द , पवते र एवं कनखला उसके आगमन क ती ा
कर रहे थे। आ यचिकत िशव ने कहा, ‘मुझे मा कर महाराज। मने सोचा िक ि तीय हर म
चार घंटे पर हम िमलना था। मुझे आशा है िक मने आपको अिधक ती ा नह करवाई होगी।’
द एक औपचा रक नम ते के साथ उठ खड़ा हआ। वह सस मान झुका और बोला, ‘नह ,
भु। आपको मा मांगने क कोई आव यकता नह है। हम ही थोड़ा समय से पवू आ गए थे
तािक आपको ती ा न करनी पड़े । यह गव क बात है िक हम आपक ती ा करने का
सुअवसर ा हआ।’
अपने स ाट और मानव जाित क सव म स यता के शासक क एक गंवार के ित इस
अ यंत ही दास व वाली मु ा को देखकर पवते र ने अपनी आंख घुमाई ं। स ाट ारा ‘ भु’ का
संबोधन सुनने के बाद अपने आ य पर िनयं ण रखते हए िशव ने स ाट क ओर झुककर
नम ते िकया और बैठ गया।
‘ भु, इससे पवू िक म नीलकंठ क पौरािणक कथा का एकालाप ारं भ क ं , यिद आप कुछ
करने क इ छा रखते ह तो वह पछ
ू सकते ह?’ द ने िशव क मंशा को भांपते हए कहा।
जो एक सबसे प
िशव के मन म सव थम आया, वह था।
उस पिव झील के नाम पर कोई मझ
ु े बताए िक यह पिव नीला गला इतना मह वपण
ू य
है?
िकंतु उसक वाभािवक बुि ने उससे कहा िक य िप यही सबसे य
तीत होता
था तथािप यह तब तक उ रत नह हो सकता था जब तक िक वह मेलहू ा के समाज के बारे म
और अिधक नह समझ लेता था।
‘यह एक असामा य
तीत हो सकता है महाराज,’ िशव ने कहा, ‘िकंतु या म पछ
ू
सकता हं िक आपक उ िकतनी है?’
आ यचिकत द ने कनखला क ओर देखा। उसके बाद िशव क ओर वापस मुड़कर एक
िवि मत मु कान के साथ कहा, ‘आप अ यंत ही बुि मान ह, भु। आपने सबसे मह वपण
ू
सबसे पहले पछ
ू ा है।’ अपने चेहरे को षड्यं पण
ू बनावटी हंसी म बदलते हए द ने पुन: कहा,
‘िपछले महीने मने एक सौ चौरासी वष परू े िकए है।’
िशव त ध था। द तीस वष से एक िदन भी अिधक आयु का नह िदखता था। असल म
मेलहू ा म कोई भी व ृ नह िदखाई देता था। मा उस पंिडत को छोड़कर जो उसे
ा के मंिदर म
िमला था।
तो इसका अथ यह हआ िक नंदी सचमच
ु ही एक सौ साल से अिधक आय ु वाला है।
‘यह कैसे हो सकता है महाराज?’ भ च के हए िशव ने पछ
ू ा, ‘कौन-सी जादूगरी इसे संभव
बनाती है?’
‘इसम कोई जादूगरी नह है, भु,’ द ने या या क , ‘असल म हमारे वै ािनक ारा
बनाया गया सोमरस इसे संभव करता है। वही सोमरस जो देवता लोग पीते ह। उपयु समय पर
सोमरस का पान न केवल हमारी म ृ यु को बहत अिधक थिगत कर देता है बि क यह हम
सम त जीवन युवा बनकर जीने क शि भी दान करता है, मानिसक एवं शारी रक प से।’
‘िकंतु यह सोमरस या है? वह कहां से आता है? इसका आिव कार िकसने िकया है?’
‘बहत सारे
भु,’ द मु कुराया, ‘िकंतु म य न क ं गा िक एक-एक करके आपके
के उ र दे सकं ू । सोमरस का आिव कार भारत के महानतम वै ािनक म से एक ने कई
सह वष पहले िकया था। उनका नाम था भगवान
ा।’
‘मेरे िवचार से मे नामक थल पर देविग र क या ा करते समय म एक मंिदर म गया था
जो उनका ही था।’
‘जी हां, भु। यह वही थान है जहां किथत प से उ ह ने िनवास िकया था और अपना
काय िकया था। भगवान
ा एक सफल आिव कारक थे। िकंतु उ ह ने अपने आिव कार का
खुद के िलए कभी उपयोग नह िकया। वे यह सुिनि त करना चाहते थे िक उनके आिव कार
मानव जाित क अ छाई के िलए यु ह । उ ह पवू से ही आभास था िक सोमरस जैसे
शि शाली पेय का दु लोग ारा दु पयोग िकया जा सकता था। अत: उ ह ने इसके योग के
िलए िव ततृ कार के िनयं ण क यव था क थी।’
‘िकस कार के िनयं ण?’
‘वे सोमरस सब को यं ू ही उदारता से नह देते थे,’ द ने कहना जारी रखा, ‘देश यापी
स म सव ण करने के उपरांत उ ह ने ुिटहीन च र वाले िकशोर के एक समहू का चयन
िकया, ाचीन भारतवष के सात प र े म से येक म से एक। उ ह ने िकशोर के चयन िकए
तािक वे उनके साथ गु कुल म रह सक और वे उनके च र को समाज के िन: वाथ सहायक
के सांचे म ढाल सक। केवल इ ह बालक पर सोमरस क औषिध का योग िकया गया। चंिू क
इन बालक को औषिध देकर सोमरस के कारण उ ह एक अित र जीवन दान िकया गया,
अत: उ ह ि ज अथात दो बार ज म लेने वाला कहा गया। भगवान
ा के िश ण, उनके
सामिू हक यास से िकए गए अनेक आिव कार और सोमरस क शि के साथ यह समहू संपण
ू
इितहास म सबसे अिधक शि शाली समहू बन गया। उ ह ने अपनी बुि को मानवेतर बुि तक
क ाि के िलए खर कर िलया। ाचीन काल म बुि मान यि य को ऋिष कहा जाता था।
चंिू क भगवान
ा ने जो यि चुने थे वे सात क सं या म थे, अत: वे स िष अथवा स ऋिष
कहलाए।’
‘और इन स िषय ने अपना नैपु य समाज क भलाई के िलए िकया।’
‘जी हां, भु। भगवान
ा ने स िषय के आचरण के िलए कड़े िनयम का िनमाण िकया
था। उ ह शासन करने अथवा यापार करने क परू ी मनाही थी, सारत: जो उनके िलए िनजी
लाभ के काय हो सकते थे। उनके िलए ऐसे काय िनयत िकए गए थे िजससे वे अपनी शि का
योग समाज क भलाई के िलए कर सकते थे, जैसे पंिडत, िश क, वै तथा ऐसे ही अ य
बुि शाली यवसाय। इसके बदले म उ ह कुछ भी लेने क मनाही थी और उ ह िभ ा एवं दूसर
ारा िदए गए दान पर जीिवत रहना था।’
‘कड़े सेवा िनयम,’ मसखरी के साथ िशव ने पवते र क ओर पलक झपका कर कहा।
पवते र ने कोई िति या नह दी, िकंतु द , कनखला एवं नंदी ने जोरदार ठहाका
लगाया। िशव ने िखड़क के बाहर हर कंदील को देखा। लगभग तीसरे हर का समय हो चला
था। यह वह समय था जब सती न ृ य के िलए बाहर आती ही होगी।
‘िकंतु वे अपने आचरण के िनयम का पालन कड़ाई से करते थे, भु,’ द ने कहना जारी
रखा, ‘समय के साथ जब उनके उ रदािय व बढ़ गए तो उन स ऋिषय ने अपने जाित-वग से
अ य लोग को भी जोड़ िलया। उनके अनुयाियय ने उ ह िनयम के पालन क ित ा ली जो
स िष करते आ रहे थे और उ ह भी सोमरस का पान करने का अवसर िमला। उ ह ने अपने
जीवन को ान क खोज म तथा िबना िकसी य के लाभ क आशा िकए समाज क अ छाई
के िलए अिपत कर िदया। इसी कारण से समाज ने इ ह लगभग भि मय आदर िदया। बहत समय
के बाद स िष एवं उनके अनुयायी
ा के जाित-वग अथवा ा ण कहे गए।’
‘िकंतु जैसािक अ सर होता है, एक लंबे समय के बाद सभी अ छी यव थाओं क तरह ही
कुछ लोग ने ा ण के िनयम का पालन करना बंद कर िदया, या म सही हं?’
‘आप िब कुल सही ह, भु,’ द ने इस कार क साधारण मानवीय दुबलता पर अपना
िसर िहलाते हए उ र िदया, ‘कई सह ाि द बीत गई, कुछ ा ण उन कड़े िनयम को भल
ू गए
जो भगवान
ा ने लागू िकए थे और स िषय ने िजनके चार- सार िकए थे। उन लोग ने
सोमरस ारा दान क गई िव मयकारी शि य का अपने िनजी लाभ के िलए दु पयोग करना
ारं भ कर िदया। कुछ ा ण ने एक बड़ी जनसं या पर भाव डालकर सा ा य को जीतना
एवं उन पर शासन कर ारं भ कर िदया। स िषय एवं भगवान
ा के अनेक आिव कार का
दु पयोग कर कुछ ा ण ने अपने िलए अ यिधक धन संचय कर िलया।’
‘और तो और यहां तक िक कुछ ा ण ने,’ कनखला ने भयभीत होने वाले भाव से बीच म
ही अपनी राय दी, ‘तो स िष उ रािधका रय के िव
िव ोह भी कर िदया।’
‘स िष उ रािधकारी?’ िशव ने जानना चाहा।
‘वे स िष के उ रािधकारी थे, भु,’ कनखला ने प िकया, ‘जब िकसी स िष को पता
चल जाता था िक उनके न र शरीर का अंत होने वाला था तो वे अपने गु कुल से ही अपना
उ रािधकारी िनयु करते थे। वे उ रािधकारी ठीक उसी कार से आदर-स मान पाते थे जो
उनके पवू ज स िष ा िकया करते थे।’
िव
‘इसका अथ यह है िक स िष उ रािधका रय के िव
िव ोह करने जैसा ही था।’
िव ोह व तुत: स िषय के वयं के
‘जी हां, भु,’ कनखला ने उ र िदया, ‘और इस
ाचार क सबसे िचंितत करने वाली
बात यह थी िक इनका नेत ृ व ऊंचे चयिनत ा ण जाित-वग के हाथ म था, जैसे ग ड़, मोर एवं
राजहंस। दरअसल उनके ऊंचे ओहदे के कारण इन चयिनत जाित-वग वाल को ि य एवं वै य
के अधीन काय करने क अनुमित नह थी जब तक िक वे व तुवादी दुिनया के लोभन म
लोभवश फंस नह जाते थे। इस पर भी वे बुराई के लोभन पर सबसे पहले वशीभत
ू हए।’
‘और आपके जैसे चयिनत जाित-वग अथात कबत
ू र अपने ाचीन िनयम पर डटे रहे इसके
बावजदू िक वे ि य के िलए काम करते थे?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘जी हां, भु,’ कनखला ने उ र िदया। उसका सीना गव से फूल रहा था।
नगर का घंटा तीसरे हर के ारं भ होने का संकेत देने के िलए ती वर म बजा। िशव
समेत उस क म उपि थत सभी लोग ने नए समय के आगमन पर एक छोटी-सी ाथना क ।
िशव ने मेलहू ावािसय के कुछ तरीके सीख िलए थे। उसी समय एक शू आया। उसने हर कंदील
को पुन: तैयार िकया और िजतनी शी ता से वहां आया था उतनी ही शी ता से वहां से चला गया।
िशव ने वयं को मरण िदलाया िक अब िकसी भी ण सती उस उ ान म अपना न ृ य ारं भ कर
सकती है।
‘इस कार िकस ांित ने प रवतन िकया महाराज?’ द क ओर मुड़ते हए िशव ने पछ
ू ा,
‘आप, पवते र और नंदी ि य ह और आपने प
प से सोमरस का पान िकया है। दरअसल
मने देखा है िक आपके सा ा य म चार ही जाित के लोग युवा और व थ िदखते ह। इसका अथ
है िक सोमरस सबको िदया गया है। यह प रवतन अव य ही िकसी ांित का प रणाम होगा, या
यह सही है?’
‘जी हां, भु। और उस ांित को भु ी राम के नाम से जाना जाता है। प ृ वी पर िनवास
करने वाले सबसे महान स ाट! जय ी राम!’
‘जय ी राम!’ उस कमरे म सभी लोग ने जयघोष िकया।
‘उनके िवचार एवं नेत ृ व ने मेलहू ा के समाज को नाटक य ढं ग से प रवितत कर िदया,’
द ने कहना जारी रखा, ‘असल म वयं इितहास क िदशा ही मौिलक प से बदल गई। िकंतु
इससे पहले िक म भु राम क कथा कहना ारं भ क ं , या म एक सुझाव दे सकता हं?’
‘िन संदेह, महाराज।’
‘अब यह तीसरा हर चल रहा है। या हम भोजन क क ओर
इस कथा के पवू कुछ भोजन हण कर सकते ह?’
थान कर सकते ह और
‘मेरे िवचार से म या भोजन करने का िवचार अित उ म है महाराज,’ िशव ने कहा, ‘िकंतु
या मुझे थोड़ी देर के िलए मा िकया जा सकता है? मुझे एक अ य बहत ही आव यक काय है।
या हम यह प रचचा कल कर सकते ह, यिद आप उिचत समझ तो?’
कनखला का चेहरा उतर गया जबिक पवते र का चेहरा ितर कारपण
ू खीस से भरा हआ
था। हालांिक द ने अपने चेहरे पर मु कान कायम रखी थी, ‘िन संदेह हम कल िमल सकते ह
भु। या दूसरे हर का दूसरे घंटे का ारं भ आपके िलए उिचत रहे गा?’
‘सवथा उिचत रहे गा महाराज। इस असुिवधा के िलए म मा ाथ हं।’
‘िब कुल नह भु,’ हमेशा क तरह मु कान िलए द ने कहा, ‘ या मेरा कोई रथ आपको
अपने गंत य तक छोड़ सकता है?’
‘आप बड़े कृपालु ह महाराज। िकंतु म वयं ही वहां चला जाऊंगा। म पुन: मा ाथ हं।’
उस क म सबको नम ते करने के बाद िशव और नंदी शी ता से बाहर िनकल गए।
कनखला ने अिभयोगा मक ढं ग से द को देखा। स ाट ने िसर िहलाया और हाथ से शांत रहने
को कहा, ‘सब ठीक है। हम कल िमल रहे ह न, ह िक नह ?’
‘महाराज, हमारे पास समय बहत कम है,’ कनखला ने कहा, ‘नीलकंठ को अपना
उ रदािय व त काल वीकार कर लेने चािहए!’
‘उ ह समय दीिजए कनखला। हमने इतने लंबे समय से ती ा क है। कुछ िदन म सब
कुछ न नह होने वाला है!’
पवते र सहसा उठा, उसने द को झुककर स मान िदया और बोला, ‘आपक आ ा से
महाराज, या म जा सकता हं? एक गंवार को िशि त करने क तुलना म बहत सी ऐसी
यावहा रक व तुएं ह िजन पर यान देना आव यक है।’
‘आपको उनके बारे म आदर से बोलना चािहए पवते र।’ गुराहट के साथ कनखला ने
कहा, ‘वे ही नीलकंठ ह।’
‘म उससे तभी आदर से बोलंग
ू ा जब वह सचमुच म ही कुछ उपलि धय से उसे अिजत
करे गा,’ ककश वर म पवते र ने कहा, ‘म मा उपलि धय को आदर देता हं, उसके िसवा
िकसी और व तु को नह । यह भु राम का मौिलक िनयम है। मा आपका कम ही मह वपण
ू है।
ना तो आपका ज म। ना ही िलंग। और िनि त प से िकसी के गले का रं ग तो िब कुल नह ।
हमारा सम त समाज यो यता पर आधा रत है। या िफर आप लोग उसे भल
ू गए ह?’
‘बहत हो चुका!’ द ने िच लाकर कहा, ‘म नीलकंठ का आदर करता हं। इसका सीधा-सा
अथ है िक सभी नीलकंठ का आदर करगे!’
अ याय - 6
बरु े भा य लाने वाले िवकम
नं दी उ ान के बाहर
ती ा कर रहा था, जैसािक उससे कहा गया था, जबिक िशव बाड़े के
पीछे न ृ य मंडप े म चला गया था। शांत न ृ य मंडप ने पहले से ही नंदी को संकेत दे िदया था
िक उसके भु को वहां कोई नह िमलेगा। तथािप िशव क उ मीद बनी हई थी और उसने
आशापवू क सती क ती ा क । लगभग एक घंटे तक ती ा करने के बाद िशव को लगा िक
आज न ृ य का अ यास नह होने वाला था। अ यिधक िनराश होकर वह शांत मु ा म नंदी क
ओर चल पड़ा।
‘ या कोई है, िजसे ढूंढ़ने म म आपक सहायता कर सकता हं, भु?’ उ सुक नंदी ने पछ
ू ा।
‘कोई नह है, नंदी। भल
ू जाओ।’ िशव का वर िनराशा भरा था।
नंदी समझ गया िक उसके भु उसे इस िवषय म बताने क इ छा नह रखते थे। अत: िवषय
बदलने का यास करते हए नंदी ने कहा, ‘ भु, आपको अव य ही भख
ू लगी होगी। या हम
िव ामगहृ चल और भोजन कर ल?’
‘नह , अभी नह । म इस नगर का थोड़ा च कर लगाना चाहता हं,’ िशव ने इस आशा म
कहा िक कह भा य उसका साथ दे और सती से उनक मुलाकात हो जाए, ‘ या हम राजत
वेिदका पर िकसी भोजनालय म जा सकते ह?’
‘यह बहत ही अ छा रहे गा!’ नंदी मु कुराया जो राजशाही िव ामगहृ म ा ण भावी सादे
शाकाहारी भोजन से घण
ृ ा कर बैठा था। ि य के भोजनालय म िमलने वाले मसालेदार मांस क
उसको कमी खटक रही थी।
‘हां, या ह पवते र?’ द ने पछ
ू ा।
‘महाराज, मुझे इस तरह से अचानक आने का खेद है। िकंतु अभी इसी समय मुझे कुछ
परे शान करने वाले समाचार ा हए ह और वह आपको यि गत प म बताना है।’
‘अ छा, वह या है?’
‘िशव अभी से सम या उ प न कर रहा है।’
‘आपको नीलकंठ के िवषय म या कहना है,’ शोक करते हए द ने अपनी आंख उठाकर
असहमित म पछ
ू ा, ‘आप इस बात को य नह मान लेते िक नीलकंठ हमारी र ा करने के िलए
आए ह?’
‘इसका िशव के बारे म िवचार से कोई लेना-देना नह है, महाराज। कृपया मेरे समाचार को
सुन तो ल। चेन वज ने िशव को कल उ ान म देखा था।’
‘चेन वज अभी से यहां है?’
‘जी हां, महाराज। उसक आपके साथ समी ा का समय परस िनयत िकया गया है।’
‘चाहे जो भी हो, तो चेन वज ने या देखा?’
‘उसने भी िशव को िघनौनी हरकत करते देखा है। इसका अथ प
मान सकते ह िक वह पवू ा ह से िसत नह है।’
है िक हम इस बात को
‘ठीक है, म आपक बात मानता हं। मगर उसने नीलकंठ को या करते देखा?’
‘उसने िशव को उ ान म न ृ य करते देखा,’ पवते र ने उ र िदया।
‘तो? या ऐसा कोई कानन
ू है जो न ृ य को ितबंिधत करता है और िजसक जानकारी
मुझे नह है?’
‘कृपया, मुझे बोलने दीिजए, महाराज। वह न ृ य कर रहा था जबिक सती उसे भाव-िवभोर
होकर देख रही थी।’
द क िज ासा सहसा आकिषत हो गई, वह आगे झुकते हए बोला, ‘और?’
‘सती ने उिचत यवहार िकया और जब िशव उसके करीब आने क चे ा कर रहा था तो
वह वहां से चली गई। िकंतु चेन वज ने िशव को फुसफुसाते हए सुना जब सती चली गई।’
‘अ छा, वे या फुसफुसाये?’
‘उसने धीमे वर म कहा, हे पिव झील, मझ
ु े इसे ा करने म सहायता कर। म आपसे
इसके बाद िफर कभी कुछ नह मांगग
ूं ा।’
द अ यंत स न िदखा, ‘तुम यह कहना चाहते हो िक नीलकंठ को संभवत: मेरी पु ी से
ेम हो गया है?’
‘महाराज, आप सा ा य के िनयम को भल
ू नह सकते,’ अ यंत ही परे शान पवते र ने
संपािदत िकया, ‘आप जानते ह िक सती िववाह नह कर सकती।’
‘यिद नीलकंठ ने सती से िववाह का िनणय िलया है तो प ृ वी पर कोई िनयम-कानन
ू इसे
रोक नह सकता।’
‘महाराज, मुझे मा कर। िकंतु हमारी स यता का सम त आधार यही है िक कोई भी
कानन
ू से ऊपर नह है। यही वह बात है जो हम वैसा बनाती है जो हम ह। चं वंिशय एवं नागाओं
से बेहतर। यहां तक िक भु ी राम भी िनयम के ऊपर नह थे। तो कैसे यह गंवार इतना
मह वपण
ू समझा जा सकता है?’
‘ या आप नह चाहते िक सती सुखी रहे ?’ द ने पछ
ू ा, ‘उसे पावती िकसी कारण से कहा
जाता है, य िक वह आपक ई र-पु ी है। या आप नह चाहते िक वह पुन: अपनी खुशी ा
कर ले?’
‘म सती को अपनी पु ी क तरह से ही हमेशा ही ेम करता रहा हं, महाराज,’ पवते र ने
अपनी आंख के भाव का दुलभ दशन िकया, ‘म उसके िलए कुछ भी क ं गा, िनयम भंग करने
के अलावा।’
‘आपम और मुझम यही अंतर है। सती के िलए म िनयम भंग करने म भी िहचकं ू गा नह । वह
मेरी पु ी है। मेरा र है और शरीर का अंग है। उसने अभी तक बहत दुख झेल िलए ह। यिद मुझे
कोई ऐसा माग िमलता है, िजससे वह स न हो सके तो म उस माग पर चलंग
ू ा, चाहे उसका
प रणाम कुछ भी य न हो।’
िशव और नंदी ने अपने घोड़ को रजत वेिदका के मु य बाजार के िनकट िनयत थान पर बांध
िदया। आगे बढ़ते हए नंदी ने अपने पसंदीदा भोजनालय के िलए िशव का मागदशन िकया। ताजाताजा पकाए गए मांस क आमं ण देने वाली मीठी सुगंध ने नंदी क िमट गई भख
ू को परू ी तरह
से जगा िदया था, िजसक शांित िपछले दो िदन से राजसी िव ामगहृ म नह हो पाई थी। परं तु
भोजनालय के वामी ने वेश पर िशव को रोक िदया।
‘ या बात है, भाई?’ नंदी ने पछ
ू ा।
‘मुझे अ यंत ही खेद है भाइयो। िकंतु म भी इस समय धािमक संक प कर रहा हं’,
भोजनालय के मािलक ने िशव के गले क ओर संकेत करते हए िवन ता से कहा, ‘और आप तो
जानते ह िक एक संक प यह भी है िक साथी संक प लेने वाल को म मांसाहार नह परोस
सकता।’
नंदी ने आ य म िबना कुछ समझे-बझ
ू े ही कहा, ‘लेिकन िकसने धािमक संक प...’
िशव ारा उसे बोलने से रोक िदया गया िजसने उसे अपनी आंख के इशारे से मालाओं से
गंथ
ू े हए अपने गले के गुलबू ंद को िदखाया। नंदी ने सहमित म िसर िहलाया और िशव के साथ ही
भोजनालय से बाहर चला गया।
‘यह वष का ऐसा समय है, जब धािमक संक प िलए जाते ह, भु,’ नंदी ने िववरण िदया,
‘आप य नह यह बगल म ती ा कर लेते ह? उस दूसरी िदशा म दािहनी ओर कुछ अ छे
भोजनालय ह। म वहां जाकर देखता हं िक कोई ऐसा भोजनालय है िजसके मािलक ने संक प
नह िलया हो।’
िशव ने सहमित म िसर िहलाया। नंदी शी ता से उसे ओर चला गया तो िशव गली म इधरउधर देखने लगा। यह बाजार का एक य त े था, िजसम भोजनालय एवं दुकान हर तरफ
फै ले हए थे। िकंतु इतने अिधक लोग एवं यापार आिद के बावजदू गली म शोर-गुल नह था।
कोई भी दुकानदार गली म बाहर आकर आवाज नह लगा रहा था और अपनी व तुओ ं के
िव ापन नह कर रहा था। ाहक िबना असफल हए िवन ता से बोल रहे थे, यहां तक मोल-भाव
करने म भी।
ये इतने अ छे यवहार वाले मख
ू यापारी हमारे पहाड़ के उप वी बाजार म एक ढेल े का
भी यापार नह कर पाएं ग।े
िशव मेलहू ावािसय के िविच यवहार क सोच म इतना गुम हो गया िक उसे नगरीय
िढं ढोरा पीटने वाले क पुकार तब तक नह सुनाई दी जब तक िक वह उसके ठीक पीछे नह आ
पहंचा।
‘िवकम ि य क सवारी, कृपया रा ता द!’
आ यचिकत िशव पीछे मुड़ा तो उसने देखा िक एक लंबा-चौड़ा मेलहू ावासी ि य उसे नीचे
देख रहा था। ‘ या आप थोड़ा बगल हटने क कृपा करगे, महोदय? िवकम ि य क सवारी
अपनी पज
ू ा के िलए यहां से या ा करने वाली है।’
िढं ढोरा पीटने वाले का लहजा और आचरण िनि त प से शालीन था। िकंतु िशव िकसी
म म नह था। िढं ढोरा पीटने वाला िशव को पछ
ू नह रहा था। वह उसे बता रहा था। िशव जैसे ही
सवारी के गुजरने देने के िलए पीछे हटा तो नंदी ने धीरे से उसके हाथ का पश िकया।
‘मने एक बहत ही अ छा भोजनालय ढूंढ़ िलया है, भु,’ उ लिसत नंदी ने कहा, ‘मेरे
पसंदीदा म से एक। और उसका रसोई अगले कम से कम एक घंटे तक तो चालू रहने वाला है। हम
खाने के िलए बहत भोजन िमल जाने वाला है!’
िशव ने ठहाका लगाया, ‘यह बड़े आ य क बात है िक केवल एक भोजनालय इतना
भोजन बना सकेगा िक तु हारी भख
ू को शांत कर दे!’
नंदी भी साथ म हंसने लगा जब िशव ने उसक पीठ पर थपक लगाई।
जैसे ही वे मुड़े और गली म जाने लगे तो िशव ने पछ
ू ा, ‘ये िवकम ि यां कौन ह?’
‘िवकम लोग, भु,’ नंदी ने गहरी सांस लेकर कहा, ‘ये ऐसे लोग ह िज ह अपने पवू ज म
के पाप के िलए इस ज म म दंड िमला है। इसिलए उ ह यह जीवन मयादा के साथ जीना होता है
और उ ह अपने दुख को ग रमा के साथ सहन करना होता है। यही एक उपाय है िजससे वे अपने
पवू ज म के पाप को अ छे कम से व छ बना सकते ह। िवकम पु ष के िलए उनके अपने
अलग कार के ायि त ह और ि य के िलए अलग आदेश ह।’
‘हम िजस माग से अभी आए ह, वहां पर िवकम ि य क एक सवारी जा रही थी। या
उनक पज
ू ा भी एक आदेश है?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘जी हां, भु। िवकम ि य को बहत सारे िनयम के पालन करने होते ह। उनको मुि के
िलए पिव करने वाले अि न देव क पज
ू ा येक महीने एक िवशेष अिधदेश के अनुसार करनी
होती है। उ ह िववाह करने क अनुमित नह होती है य िक वे अपने बुरे भा य के कारण उनके
जीवन को िवषयु कर सकते ह, िजनसे वे िववाह करते ह। उ ह ऐसे िकसी को पश करने क
अनुमित नह होती है जो उनके िनकट के संबंधी अथात प रवार वाले नह ह अथवा िज ह वे
अपने सामा य कत य के कारण पश न कर रहे ह । इसके अित र भी कई अ य ावधान ह
िजनके बारे म परू ी तरह से मुझे पता नह है। यिद आपको उ सुकता है तो हम अि न मंिदर के
पंिडत से िमल सकते ह, जो िवकम लोग के बारे म आपको सबकुछ बता सकते ह।
‘नह , म इस समय पंिडत से नह िमलना चाहता,’ िशव ने एक ह क मु कान के साथ
कहा, ‘वह अपने ामक और गढ़
ू दशन से मुझे िन य ही तंग करे गा! लेिकन एक बात बताओ।
यह िनणय कौन लेता है िक िवकम लोग ने अपने पवू ज म म पाप िकया है?’
‘उनके अपने कम, भु,’ नंदी ने कहा तो उसक आंख इस कार संकेत दे रही थ जैसे यह
तो बहत ही प था, ‘उदाहरण के िलए यिद एक ी मत
ृ ब चे को ज म देती है, तो उसे यह
दंड उसके अपने पवू ज म म िकया गया कोई पाप होता है। या िफर यिद िकसी यि को ऐसी
बीमारी पकड़ लेती है, िजसके कारण उसे लकवा मार जाता है तो यह उसके साथ य होगा, यिद
कृित ने उसे उसके पवू ज म के िलए दंिडत न िकया हो।’
‘यह मुझे बहत ही बेहदा तीत होता है। एक ी िकसी मत
ृ ब चे को ज म देती है, उसका
कारण यह हो सकता है िक गभाव था के दौरान उसने पया प से देखभाल न क हो। या िफर
यह िकसी बीमारी के कारण भी हो सकता है। यह कोई कैसे कह सकता है िक उसके पवू ज म
के पाप के कारण उसे दंिडत िकया गया है?’
िशव के िवचार से नंदी त ध था। उससे कुछ भी कहते नह बन पा रहा था। वह एक
मेलहू ावासी था और वह गंभीरता से कम क अवधारणा को मानता था जो कई ज म तक चला
करता था। वह धीरे से बड़बड़ाया, ‘यही िनयम है, भु...’
‘देखो, ईमानदारी से एक बात कहं, यह िनयम व तुत: मुझे अनुिचत लगता है।’
नंदी के िनराश मुख से तीत हआ िक वह परू ी तरह से हताश था िक मेलहू ा के बारे म
इतनी मल
ू भत
ू अवधारणा को िशव समझ नह पाए थे। िकंतु िशव ने जो कहा था, उसका िवरोध न
करने के डर से उसने अपना परामश अपने पास ही रखा। आिखरकार िशव उसके भु थे।
नंदी को उदास देखकर िशव ने उसक पीठ धीमे से थपथपाई और कहा, ‘नंदी, वह मेरा
अपना िवचार मा था। यिद यह िनयम तु हारे लोग के िलए काम करता है तो मुझे िव ास है िक
इसके पीछे कोई न कोई तक अव य होगा। तु हारा समाज कभी-कभी कुछ िविच ताओं से भरा
लगता है, लेिकन इसम ऐसे लोग ह, जो बहत ही स य एवं ईमानदार ह।’
यह सुनते ही नंदी के मुख पर मु कान तुरंत ही लौट आई और उसका परू ा यान उस समय
क सबसे गंभीर सम या पर चला गया। उसक वहृ द भख
ू ! वह भोजनालय म ऐसे घुसा जैसे जंग
जीतने जा रहा हो। दबी हई हंसी हंसते हए पीछे -पीछे िशव भी उसके साथ भोजनालय म वेश कर
गया।
थोड़ी-सी दूरी पर मु य माग पर िवकम ि य क सवारी शांित से चली जा रही थी। वे सभी
लंबे अंगव म् से आ छािदत थ , जो पिव नीले रं ग म रं गे हए थे। उनके िसर प ाताप म नीचे
झुके हए थे। उनक पज
ू ा क थािलय म तरह-तरह क पज
ू ा-सामि यां भरी हई थ । सामा य प
से शांत बाजार क गिलयां मत
ृ क य शांित का अनुभव दे रही थ , जब वे दयनीय ि यां वहां से
बेकार म संकिलत िकए हए व तुओ ं के समान गुजर रही थ । उस सवारी के ठीक म य म अपना
िसर नीचे झुकाए हए, नीले अंगव म् पहने हए िजसने उसके िसर से पांव तक के शरीर को परू ी
तरह से ढक रखा था, िजसे िशव देख नह पा रहा था, वह कोई और नह सती थी। उसका मुख
िनराशापण
ू ग रमा का िच बना हआ था।
‘इस कार हम कहां थे, भु?’ दूसरे िदन जैसे ही िशव और नंदी उनके िनजी कायालय म आराम
से बैठ गए तो द ने कहा।
‘ भु ी राम जो प रवतन लाए थे, हम उस िवषय पर बातचीत कर रहे थे, महाराज। और
उ ह ने कैसे वधम यागी ा ण के िव ोह को परािजत िकया था,’ िशव ने उ र िदया।
‘आप िब कुल सही ह,’ द ने कहा, ‘ भु ी राम ने वधम यागी ा ण को िन य ही
परािजत िकया था। िकंतु उनके िवचार म जो मल
मा
ू कारण था, वह और भी गहरा था। यह
कुछ ा ण के बारे म नह था िज ह ने िनयम का पालन नह िकया था। असली सम या थी िक
िकसी यि के अपने ाकृितक कम एवं समाज जो उसे करने पर मजबरू करता था, यह उनके
म य का एक संघष था।’
‘म कुछ समझा नह महाराज।’
‘यिद आप िवचार कर िक वधम यागी ा ण के साथ वह या आधारभत
ू सम या थी?
कुछ ा ण ि य बनना चाहते थे और शासन करना चाहते थे। कुछ ा ण वै य बनना चाहते
थे तािक धन कमा सक और अपना जीवन िवलािसता म िबता सक। जबिक उनका ज म उ ह
ा ण के प म थािपत कर देता था।’
‘लेिकन मने सोचा था िक भगवान
ा ने िवधान बनाया था िक ितयोिगता मक
परी ाओं के बाद ही कोई ा ण बन सकता था,’ िशव ने कहा।
‘यह सही है, भु। िकंतु समय के साथ इस चयन- ि या ने िन प ता खो दी थी। ा ण
क संतित ा ण बनने लगी। ि य क संतित ि य बनने लगी। और इसी कार अ य क
भी। चयन क औपचा रक यव था शी ही समा हो गई। एक िपता यह सुिनि त करने लगा
िक वह अपने पु एवं पु ी को सभी संसाधन एवं सहायता उपल ध कराए िजससे िक वे उनक ही
जाित म बना रहे । और इस कार जाित यव था स त हो गई।’
‘तो इसका अथ यह भी हआ िक ऐसा भी यि हआ होगा जो िक ा ण बनने के िलए
पया प से गुणवान होगा िकंतु यिद उसने शू माता-िपता के घर म ज म िलया होगा तो उसे
ा ण बनने का अवसर नह िमला होगा?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘हां िशव,’ पवते र ने पहली बार िशव से बात करते हए कहा। िशव ने इस बात पर गौर
िकया िक पवते र ने उसक खुशामद नह क और न ही उसे भु कहकर संबोिधत िकया, ‘ भु
ी राम के िवचार म कोई समाज यो यता के अलावा यिद िकसी अ य व तुओ ं पर आधा रत
आचार- यवहार करता है तो वह समाज ि थर नह रह सकता है। उनका िवचार था िक एक
यि क जाित का िनधारण उसके कम के आधार पर ही िकया जा सकता है। उसके ज म से
नह । उसके िलंग से नह । इसम कोई अ य कारण ह त ेप नह कर सकता है।’
‘यह एक अ छा िस ांत है, पवते र,’ िशव ने तक िदया, ‘लेिकन इसे आप यवहार म कैसे
सुिनि त करगे। यिद एक ब चा ा ण प रवार म ज म लेता है और एक ब चा जो शू प रवार
म ज म लेता है, उनके लालन-पालन एवं संसाधन म अ यिधक अंतर होगा। इसिलए ा ण का
ब चा कम यो यता वाला होने पर भी ा ण बन जाएगा जबिक शू का ब चा नह । यह उस शू
के ब चे के िलए अनुिचत नह है? इस यव था म “यो यता” कहां है?’
‘यही भगवान ी राम क सहज यो यता थी, िशव,’ पवते र मु कुराया, ‘िन संदेह वे एक
वीर सेनापित, एक ितभाशाली शासक और यायि य िनणय कुशल यि थे। िकंतु उनक
सबसे बड़ी देन इस यव था को बनाने म है जो यह सुिनि त करता है िक एक यि का कम
केवल उसक यो यता पर आधा रत होता है, िकसी अ य बात पर नह । वही यव था है िजसने
आज मेलहू ा को बनाया है, जो वह आज है, इितहास म सबसे महान सा ा य।’
‘आप सोमरस क भिू मका को अनदेखा नह कर सकते पवते र,’ द ने कहा, ‘ भु ी
राम का सबसे बड़ा योगदान था, सबको सोमरस दान करना। यह अमत
ृ ही है जो मेलहू ावािसय
को
ांड म सबसे चतुर बनाता है! यह सोमरस ही है िजसने हम इस असाधारण एवं आदश
समाज को थािपत करने क यह यो यता दी है।’
‘ मा कर महाराज,’ पवते र क ओर मुड़ने से पहले िशव ने कहा, ‘लेिकन वह यव था
या थी जो भु ी राम ने थािपत क थी?’
‘ यव था बहत सरल है,’ पवते र ने कहा, ‘जैसािक हम सहमत ह िक सव म समाज वह
है जहां िकसी यि क जाित उसक यो यता एवं कम से िनण त होती है। िकसी अ य कारक से
नह । भु ी राम ने एक यावहा रक यव था क थापना क जो यह सुिनि त करता है।
मेलहू ा म जो भी ब चा ज म लेता है उसे सा ा य अिनवायत: अंगीकृत करता है। यह यवि थत
ढं ग से संचािलत हो इसके िलए मयका नामक एक महान औषधालय नगर क थापना नमदा
नदी के उ र म सुदूर दि ण म क गई है। सभी गिभणी ी को जनन के िलए वहां क या ा
करनी पड़ती है। उस नगर म केवल गिभणी ी को ही जाने क अनुमित दी जाती है। िकसी
अ य को नह ।’
‘िकसी अ य को नह ? उसके पित उसके माता-िपता को भी नह ?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘नह , इस िनयम का कोई अपवाद नह है मा एक को छोड़कर। इस अपवाद को लगभग
तीन सौ वष पहले लागू िकया गया था। कुलीन प रवार के पित एवं माता-िपता को उस नगर म
वेश िदया गया था,’ पवते र ने उ र िदया। उसके भाव कह रहे थे िक भु ी राम क यव था
म इस
ाचार से वह पण
ू त: असहमत था।
‘तब गिभणी ि य क देखभाल मयका म कौन करता है?’
‘औषधालय के कमचारी। वे इस काय म द ता से िशि त ह,’ पवते र ने कहना जारी
रखा, ‘एक बार जब ब चे का ज म होता है तो उस ब चे को वा य कारण से मयका म ही
रखा जाता है, जबिक माता अपने नगर लौट जाती है।’
‘िबना ब चे के ही?’ प
प से आ यचिकत िशव ने पछ
ू ा।
‘हां,’ पवते र ने थोड़ी योरी चढ़ाकर कहा जैसे िक संसार म इससे अिधक प त य हो
ही नह सकता था, ‘उसके बाद ब चे को मेलहू ा के गु कुल म भेजा जाता है जो िक एक
िवशालकाय गु कुल है और मयका के िनकट ही है। येक ब चे को पण
ू त: एक कार क
िश ा का लाभ ा होता है। सा ा य के उपल ध संसाधन के साथ वे बड़े होते ह।’
‘ या वे माता-िपता एवं ब चे से संबिधत आंकड़े रखते ह?’
‘िन संदेह वे रखते ह। िकंतु वे आंकड़े अ यिधक गोपनीय रखे जाते ह और वे मयका के
आंकड़ा अिधकारी के पास ही होते ह।’
‘इसका साधारण-सा अथ यह होगा िक गु कुल एवं शेष सा ा य म िकसी को भी यह पता
नह होगा िक उस ब चे को ज म देने वाले माता-िपता कौन ह,’ िशव ने तक िदया य िक जो
वह सुन रहा था, वह उसके प रणाम के बारे म सोच रहा था, ‘इस कार येक ब चा चाहे वह
ा ण प रवार म ज मा हो अथवा शू प रवार म, उनको एक समान मानकर गु कुल म रखा
जाएगा?’
‘हां,’ पवते र मु कुराया। कट प से वह इस यव था पर गिवत था, ‘जब ब चा िकशोर
हो जाता है तो उसे सोमरस भी िदया जाता है। इस कार येक ब चे को सफल होने के िलए
पण
ू त: एक समान अवसर दान िकए जाते ह। पं ह वष क आयु होने पर जब वे ब चे वय कता
को ा कर लेते ह तो सभी ब च क एक यापक परी ा ली जाती है। इस परी ा के प रणाम
यह िनणय देते ह िक वे ब चे या ह गे, ा ण, ि य, वै य या शू ।’
कनखला ने बीच म ही कहना ारं भ कर िदया, ‘और उसके बाद ब च को एक वष तक
उस जाित से संबंिधत िवशेष िश ण दान िकया जाता है। वे अपने वण के रं ग के फ ते पहनते
ह, ेत ा ण के िलए, लाल ि य के िलए, हरा वै य के िलए और काला शू के िलए, और
अपने-अपने जाित गु कुल म शेष पढ़ाई परू ी करने के िलए वापस चले जाते ह।’
‘और इसी कारण से आपक जाित यव था को वण यव था कहा जाता है,’ िशव ने कहा,
‘वण का अथ रं ग है, या म सही हं?’
‘जी हां, भु,’ मु कान िलए कनखला ने कहा, ‘आप अ यंत ही चौक ने ह।’
कनखला क ओर ितर कारपण
ू ि
बताया, ‘हां, यह बहत किठन िन कष था।’
से देखते हए पवते र ने यं य करते हए आगे
इस यं य पर यान न देते हए िशव ने पछ
ू ा, ‘और उसके बाद िफर या होता है?’
‘जब बालक सोलह वष क आयु के हो जाते ह तब उनका आवंटन उनक जाित के आवेदक
माता-िपताओं को कर िदया जाता है। उदाहरण के िलए, यिद िकसी ा ण माता-िपता ने गोद
लेने के िलए आवेदन िकया है तो मयका से िकसी एक ा ण जाित के िलए चयिनत बालक को
उ ह आवंिटत कर िदया जाएगा। उसके बाद ये गोद िलए बालक गोद लेने वाले माता-िपता के
साथ अपनी संतान के समान ही पलते-बढ़ते ह।’
‘और समाज आदश है,’ िशव ने आ य से कहा य िक इस अ यंत ही सुंदर सरल यव था
ने उसके मन को अिभभत
ू कर िलया था, ‘ येक यि को उसक यो यता के अनुसार ही
थान िदया जाता है। इस यव था क भािवता एवं इसका औिच य िव मयकारक है!’
‘समय के साथ भु,’ द ने बीच म ही टोका, ‘हमने पाया िक ऊंची जाित का ितशत पण
ू
जनसं या म िदन-ब-िदन बढ़ता ही जा रहा है। इसका अथ है िक इस जगत म सब म गित
करने क यो यता है। करना मा इतना है िक सभी बालक को उिचत अवसर दान िकए जाएं ।’
‘तो िफर नीची जाित वाले भु ी राम को इसके िलए अव य ही बहत अिधक ेम करते
ह गे?’ िशव ने पछ
ू ा, ‘उ ह ने सफल होने के िलए उ ह वा तिवक अवसर दान िकए ह।’
‘हां, वे सही म उनसे बहत ेम करते ह,’ पवते र ने उ र िदया, ‘वे इनके सबसे अिधक
िन ावान अनुयायी थे। जय ी राम!’
‘लेिकन मेरा अनुमान है िक बहत-सी माताएं इससे स न नह ह गी। म इसक क पना
भी नह कर सकता िक एक ी अपने ब चे के ज म के तुरंत बाद ही उसे यागने के िलए
वे छा से इ छुक होती होगी, यह जानते हए िक वह अब उसे िफर कभी नह िमलेगा।’
‘परं तु यह वहृ द अ छाई के िलए है,’ पवते र ने इस मख
पर
ू ता से भरे तीत होते
नाक-भ िसकोड़कर कहा, ‘और िफर येक माता िजसे संतान चािहए आवेदन कर सकती है
और उसे उसके तर एवं चाहत के अनु प संतान का आवंटन भी हो सकता है। एक माता के िलए
इससे बुरा कुछ नह हो सकता िक उसक संतान उसक अपे ाओं पर खरी न उतरे ।’
िशव ने पवते र के इस िववरण पर योरी चढ़ाई लेिकन तक को चलने िदया और बोला,
‘म इसका भी अनुमान लगा सकता हं िक बहतेरे ऊंची जाित वाले जैसे ा ण इसिलए भु ी
राम से खुश नह ह गे। आिखरकार उ ह ने स ा पर अपनी पकड़ खो दी थी।’
‘जी हां,’ द ने आगे कहा, ‘बहत सी ऊंची जाितय ने भु ी राम के इस सुधार का िवरोध
िकया था। केवल ा ण ने ही नह , बि क यहां तक िक ि य एवं वै य ने भी। भु ी राम ने
उ ह परािजत करने के िलए बड़े -बड़े यु लड़े । परािजत होने वाले जो बच गए वे ही आज
चं वंिशय के प म हमारे सम ह।’
‘तो आपके बीच का झगड़ा इतना पुराना है?’
‘जी हां,’ द ने कहा, ‘चं वंशी
एवं िघनौने लोग ह। कोई नैितकता नही। कोई धमाचार
नह । वे हमारी सम याओं के ोत ह। हमम से कुछ लोग का मानना है िक भु ी राम बहत
दयालु थे। उ ह इनको परू ी तरह से न कर देना चािहए था। िकंतु उ ह ने इ ह मा कर िदया
और जीिवत रहने िदया। वा तविकता तो यह है िक हम भु ी राम क ज मभिू म अयो या म
चं वंिशयो के शासन का संताप झेलना पड़ रहा है।’
इससे पहले िक िशव इस सच
ू ना पर कोई िति या य कर पाता, नए हर का घंटा बज
गया था। सभी लोग ने नए आने वाले घंटे के िलए एक छोटी-सी ाथना क । िशव ने त काल ही
िखड़क क ओर देखा। उसके मुख पर याशा क छिव उभरी।
िशव के भाव को देखकर द मु कुराया, ‘हम लोग म या भोजन के िलए थान कर
सकते ह, भु। िकंतु यिद आपका कोई अ य अनुबंध है िजसे आप परू ा करना चाहते ह तो हम
लोग इस प रचचा को कल पुन: ारं भ कर सकते ह।’
पवते र ने द को ती ण ि
आिखरकार या करना चाह रहे थे।
से असहमितपण
ू
प से घरू ा। उसे पता था िक स ाट
‘यह बहत ही अ छा रहे गा, महाराज,’ िशव मु कुराया, ‘ या मेरा चेहरा इतना पारदश है?’
‘जी हां, भु। िकंतु यह तो आपके पास उपहार- व प है। मेलहू ा म ईमानदारी से बढ़कर
कोई भी व तु मू यवान नह है। आप अपने अनुबंध के िलए य नह
थान करते ह और हम
लोग इस मुलाकात को कल ात: पुन: आयोिजत करगे?’
द
को बहत-बहत ध यवाद ािपत करते हए िशव कमरे से नंदी के साथ बाहर िनकल
गया।
िशव उ ेजना एवं कंपकपी के साथ बाड़े क ओर बढ़ रहा था। जैसे ही उसने उस उ ान से ढोल
क थाप क आवाज सुनी तो उसने नंदी को िव ामगहृ म जाकर म या भोजन करने के िलए
भेज िदया। वह अकेला रहना चाहता था। उसने आनंदाितरे क क एक गहरी सांस ली और बाड़े के
पीछे पहंचा तो पाया िक गु जी एवं कृि का क सावधान ि के अंतगत सती न ृ य का
अ यास कर रही थी।
‘इस समय आपको देखकर स नता हई, िशव,’ गु जी ने औपचा रक नम ते करते हए
खड़े होकर कहा।
‘खुशी तो मुझे हो रही है, गु जी,’ िशव ने झुकते हए उनको आदर दान करते हए उनके
पांव का पश िकया।
सती फश क ओर टकटक लगाए देख रही थी। कृि का ने उ साहपवू क कहा, ‘आपके
न ृ य को म अपने मन से िनकाल ही नह पा रही हं।’
इस शंसा पर िशव का मुख सुख हो गया था, ‘ओह, वह इतना अ छा भी नह था।’
‘अब आप शंसा सुनने के िलए बेताब हो रहे ह,’ कृि का ने छे ड़खानी क ।
‘म सोच रहा था िक हम वह से शु आत कर सकते ह, जहां िपछली बार हमने अपनी बात
छोड़ी थी,’ िशव ने सती क ओर मुड़कर कहा, ‘मुझे नह लगता िक म आपको न ृ य िसखाने
वाला या उस तरह का कोई बन सकता हं। म केवल आपका न ृ य देखना चाहता था।’
सती ने अनुभव िकया िक उसका वह िविच -सा असहज भाव दुबारा आ रहा था। यह िशव
के बारे म ऐसा या है जो मुझे ऐसा अनुभव करा रहा है िक उससे बात करने म म िनयम का
उ लंघन कर रही हं? उसे पु ष से बात करने क अनुमित थी जब तक िक वह एक िनि त
आदरपण
ू दूरी बनाकर रखे। म वयं को दोषी य महसस
ू कं ।
‘म अपनी ओर से परू ा य न क ं गी,’ सती ने औपचा रकता के साथ कहा, ‘म कैसे सुधार
कर सकती हं, उसके बारे म आपके िवचार से मुझे लाभाि वत होना है। म सच म ही आपक न ृ य
क कुशलता का आदर करती हं।’
आदर! आदर य ? यार य नह ?!
िशव न ता से मु कुराया। उसके अंतमन ने कहा िक अब इस समय कुछ भी कहना उस परू े
ण को न कर देना होगा।
सती ने एक गहरी सांस ली, अपने अंगव म् को कमर के चार ओर लपेटकर बांध िलया
और नटराज क मु ा बना ली। िशव मु कुराया जैसे ही उसने महसस
ू िकया क धरती माता
उसक शि और ऊजा को सती म ेिपत कर रही है।
प ृ वी से ऊजा ा करके वह खड़ी हो गई और सती ने न ृ य शु कर िदया। और सचमुच म
ही उसके न ृ य म सुधार हो चुका था। ऐसा तीत हो रहा था िक भाव उससे फुिटत हो रहे थे।
वह हमेशा से ही तक नीक प से सही थी, िकंतु उसके मनोभाव क स ची लगन ने उसके
न ृ य को अगले तर तक पहंचा िदया था। िशव ने महसस िकया िक अवा तिवकता का एक
व नमय बोध उसे पुन: वशीभत
ू कर रहा था। सती ने जब अपने फुत ले शरीर से न ृ य के अलगअलग पद का दशन करना शु िकया तो उसका चुंबक य आकषण िशव को ख च रहा था।
कुछ ण के िलए िशव को ऐसा तीत हआ जैसे िक न ृ य म िजस पु ष क वह कामना कर रही
थी, वह और कोई नह वयं िशव ही था। अंतत: जब उसने न ृ य समा िकया तो दशकगण ने
त काल ही तािलय क गड़गड़ाहट से उस न ृ य क शंसा क ।
‘यह आपके ारा िकया गया अब तक का सव म न ृ य था,’ गु जी ने गव के साथ कहा।
‘ध यवाद गु जी,’ सती ने झुकते हए कहा। उसके बाद आशापरू क ि
देखा।
से िशव क ओर
‘यह अित सुंदर था,’ िशव ने लगभग िच लाकर कहा, ‘सवथा उ कृ । मने आपसे कहा था
न िक आपम यो यता है?’
‘मने सोचा िक आ मण करने वाले
आलोचना क ढं ग से बात कही।
य म मने न ृ य पद ठीक नह िकए थे,’ सती ने
‘आप वयं पर कुछ अिधक ही दबाव डाल रही ह,’ िशव ने िदलासा िदया, ‘वह एक बहत
छोटी भल
ू थी। वह भल
ू मा इसिलए हई य िक आप अपनी कोहनी का एक कोण भल
ू गई ं।
िजसके कारण आपका अगला न ृ य पद थोड़ा अजीब लगा।’ बड़ी शी ता से उठते हए िशव ने
कहना जारी रखा, ‘चिलए, म आपको िदखाता हं।’
वह सती तक चलकर पहंचा और उसने सही कोण बनाने के िलए सती का हाथ पकड़ा।
सती भयभीत होकर तुरंत ही पीछे हट गई और ग जी एवं कृि का हैरान-परे शान िदखे। िशव को
त काल ही महसस
ू हो गया था िक कुछ बहत ही बुरा हो गया था।
‘मुझे मा कर,’ िशव ने वा तव म खेद से कहा, ‘म तो केवल यह िदखा रहा था िक
कोहनी क ि थित कहां होनी चािहए थी।’
त ध एवं जड़वत सती िशव को घरू रही थी।
गु जी पहले यि थे िज ह ने अपना िववेक पुन: ा िकया और उ ह बोध आया िक
िशव को अव य ही शुि करण पज
ू ा के िलए जाना चािहए, ‘अपने पंिडत के पास जाइए िशव।
उनसे किहए िक आपको शुि करण क आव यकता है। िदन के समा होने से पहले ही जाइए।’
‘ या? यह शुि करण या है? मुझे इसक
य आव यकता है?’
‘कृपया, आप शुि करण के िलए जाइए, िशव,’ सती ने कहा तो उसक गव ली आंख से
अ ुधारा वािहत होने लगी थी, ‘यिद आपको कुछ भी होता है तो म वयं को कभी भी मा नह
कर पाऊंगी।’
‘मुझे कुछ भी नह होगा! देिखए, मुझे बहत खेद है यिद आपको पश करके मने िकसी
िनयम का उ लंघन िकया है। म दुबारा ऐसा नह क ं गा। इसको कृपा कर इतनी बड़ी बात न
बनाइए।’
‘यह बड़ी बात है!’ सती ने चीखकर रोते हए कहा।
सती क इतनी कड़ी िति या ने िशव को िहला िदया।
ऐसी कौन-सी बड़ी बात हो गई जो ये लोग इसे इतनी बड़ी बात बनाते जा रहे ह।
कृि का सती के िनकट गई िकंतु इस कार िक पश न हो और फुसफुसा कर कहा, ‘हम
घर चलना चािहए देवी।’
‘नह , नह । कृपा करके
वचन देता हं।’
िकए,’ िशव ने िवनती क , ‘म आपको पश नह क ं गा। म
िवषाद के नैरा य वाले भाव के साथ वहां से जाने के िलए सती मुड़ गई। गु जी एवं
कृि का ने उसका अनुसरण िकया। बाड़े के िकनारे तक पहंचने पर वह मुड़ी और उसने पुन: हाथ
जोड़कर िवनती क , ‘कृपया राि से पवू शुि करण के िलए अव य जाइए। कृपया भिू लएगा
नह ।’
िशव के मुख पर न समझने वाले िव ोह के भाव देखकर गु जी ने सलाह दी, ‘उसक बात
मािनए, िशव। वह आपके भले के िलए ही ऐसा कह रही है।’
‘ये या बेवकूफ है!’ उस मक
ू वीकृित पर उसके हताशा भरे यास ने अंतत: उसके शोक त
सोच को तोड़ िदया तो िशव िच लाया। वह राजसी िव ामगहृ के सोने वाले कमरे म लेटा हआ
था। वह शुि करण के िलए नह गया था। उसने इस बारे म जानने का य न भी नह िकया था
िक वह र म या थी।
सती को छूने पर मझ
ु े शिु करण क या आव यकता है? म तो उसे हर संभव कार से
छूते हए अपना शेष जीवन िबताने क इ छा रखता हं। या मझ
ु े ितिदन उसे छूने पर शिु करण
करवाना पड़ेगा? बकवास है!
उसी समय एक परे शान करने वाली सोच ने िशव के मन म वेश िकया।
या यह मेरे कारण है? या मझ
ु े उसे छूने क अनम
ु ित नह है य िक म जाित–िच िवहीन
हं? एक िनकृ अकुलीन!
‘नह , यह सच नह हो सकता,’ िशव ने अपने ही मन म कहा, ‘सती ऐसा कुछ नह सोचती
है। वह एक भली ी है।’
लेिकन अगर यह सच है? हो सकता है िक वह जानती हो िक म नीलकंठ हं...
अ याय - 7
भु ीराम का अधूरा काय
‘आ प आज
ात: कुछ िवचिलत तीत हो रहे ह, भु। या आप ठीक ह?’ िचंितत द ने पछ
ू ा।
‘हं ऽ ऽ?’ िशव ने ऊपर देखा और कहा, ‘मुझे
मा कर, महाराज। म थोड़ा अ यमन क
था।’
द ने िचंितत भाव से कनखला को देखा। उ ह ने िपछली राि को भोजन के समय सती
को भी इसी कार के िवषाद भरे चेहरे के साथ देखा था। िकंतु उसने कुछ भी बताने से मना कर
िदया था।
‘ या आप बाद म भट करने क इ छा रखते ह?’ द ने पछ
ू ा।
‘िब कुल नह , महाराज। सब ठीक है। मुझे
मा कर और वातालाप जारी रख,’ िशव ने
कहा।
‘ठीक है, जैसा आप कह,’ िचंितत द ने कहा, ‘हम लोग भु ी राम ारा समाज म लाए
गए प रवतन के बारे म बात कर रहे थे।’
‘जी हां,’ िशव ने अपने िसर को ह का िहलाकर कहा तािक वह सती ारा िकए गए अंितम
अनुरोध के िच को मन से िनकाल सके।
‘मयका यव था ने अ यंत ही अ छी तरह से काम िकया। हमारा समाज तेजी से बढ़ने
लगा। इस प ृ वी पर हमारी भिू म पहले से ही सबसे अिधक संपदा-स प न रही है। िकंतु िपछले एक
हजार दो सौ साल म हमने बड़े ही नाटक य ढं ग से अ य लोग क तुलना म असाधारण गित
क । आज मेलहू ा सम त िव म सबसे धनी एवं शि शाली सा ा य बन चुका है। हमारे
नाग रक एक आदश जीवन जीते ह। कोई अपराध नह है। लोग वही करते ह जो उनके िलए
सबसे अ छा होता है न िक उ ह अनुिचत सामािजक आदेश ारा कुछ बुरा करने को िववश होना
पड़ता है। हम िकसी अ य देश पर जीत क मंशा से अथवा अकारण ही आ मण नह करते।
असल म हमारा समाज एक आदश समाज बन चुका है।’
‘जी हां, महाराज,’ िशव ने वातालाप म धीरे -धीरे सि मिलत होते हए सहमित दी, ‘म नह
मानता िक आदशता को कभी भी ा िकया जा सकता है। यह एक या ा के समान होता है न
िक एक गंत य। लेिकन आपका समाज आदश के काफ िनकट है।’
‘आपको ऐसा य लगता है िक हम लोग आदश नह ह?’ पवते र ने आ ामकता से तक
िकया।
‘आप सोचते ह िक यह आदश है, पवते र?’ िशव ने न ता से पछ
ू ा, ‘ या मेलहू ा म सब
कुछ वैसा ही होता है जैसािक भु ी राम ने अिधदेश िदया था?’
पवते र चुप हो गया। चाहे वह इसके उ र को अ छा माने या ना माने उसे इस बात का
य का पता था।
‘ भु सही कह रहे ह पवते र,’ द ने कहा, ‘सुधार क गुंजाइश हमेशा रहती है।’
‘यह कहने के बाद भी, महाराज,’ िशव ने कहा, ‘आपका समाज अ ुत है। यहां सब कुछ
बहत ही सु यवि थत तीत होता है। एक बात मेरी समझ म नह आ रही है िक तब आप लोग
अपने भिव य को लेकर इतने िचंितत य ह? आिखर सम या या है? नीलकंठ क य
आव यकता है? मुझे ऐसा कुछ भी िदखाई नह देता िक जो कट प से आपके सम है और
िवपि मा एक सांस भर क दूरी पर है। यह हमारे देश जैसा नह है जहां इतनी अिधक िवपि यां
ह िक आपको यही पता नह चलता है िक आिखर शु आत कहां से कर!’
‘ भु, नीलकंठ क आव यकता इस कारण से है िक हमारे सामने ऐसी चुनौितयां ह िजनका
हम मुकाबला नह कर सकते ह। हम अपने तक ही सीिमत रहते ह और दूसरे सा ा य को
उसके िहसाब से जीने देते ह। हम दूसरे समाज से यापार करते ह, िकंतु कभी भी ह त ेप नह
करते ह। सीमांत नगर से आगे हम अिनमंि त िवदेिशय को वेश क अनुमित नह देते ह। इस
कार हम सोचते ह िक यह उिचत है अ य समाज भी हम हमारे िहसाब से जीवन जीने दे और
िकसी कार का ह त ेप न करे ।’
‘और महाराज, अनुमानत: वे ऐसा नह चाहते?’
‘नह वे ऐसा नह चाहते ह।’
‘ य ?’
‘एक साधारण-सा श द है, भु,’ द ने उ र िदया, ‘ई या। वे हमारे बेहतर तरीक से घण
ृ ा
करते ह। हमारी भावशाली पा रवा रक यव था उनक आंख म खटकती है। हम हमारे सा ा य
म सब क देखभाल करते ह, यह त य उ ह अ स न करता है य िक वे अपनी देखभाल वयं
नह कर सकते ह। वे एक खेद भरा जीवन यतीत करते ह। और वे अपने आप म सुधार करने के
बजाय हम नीचे ख चकर अपने तर पर ले जाना चाहते ह।’
‘म समझ सकता हं। मेरा कबीला कैलाश पवत पर अ यिधक ई या का सामना करता था
य िक मानसरोवर झील के िकनारे पर हमारा िनयं ण था और इस कार हमारे पास सबसे
उपयु भिू म थी। लेिकन कभी-कभी मुझे लगता है िक काश हमने अपना सुंदर ऐ य
वे छापवू क उनसे बांटा होता तो हम र पात को टाल सकते थे।’
‘िकंतु हम अपना ऐ य उन लोग के साथ बांटते ह भु, जो इसक इ छा कट करते ह।
इसके बावजदू ई या हमारे श ुओ ं को अंधा बना देती है। चं वंिशय को यह पता चल गया िक यह
सोमरस ही था िजसने हमारी े ता को याभत
ू िकया था। हा या पद बात यह है िक उ ह
सोमरस का ान है। िकंतु वे पंज
ू ीगत उ पादन करना नह जान सके ह, जैसािक हम लोग करते
ह और इस कार वे उसके सम त लाभ नह उठा पा रहे ह।’
‘बीच म बोलने के िलए
मा कर, महाराज, लेिकन इस सोमरस का उ पादन कहां होता
है?’
‘इसका उ पादन एक गोपनीय थल पर होता है िजसका नाम मंदार पवत है। सोमरस का
चरू न वहां बनाया जाता है और उसके बाद सम त सा ा य म उसका िवतरण िकया जाता है।
सम त मेलहू ा म िनयत िकए हए मंिदर म िशि त ा ण उसका जल एवं अ य आव यक
सामि य म िमि त कर लोग को उसका पान करवाते ह।’
‘ठीक है।’ िशव ने कहा।
‘चं वंशी हमारे समान शि शाली नह हो सके यािक उनके पास कभी भी पया मा म
सोमरस नह रहा है। ई या के कारण उ ह ने सोमरस को न करने एक घुमावदार रा ता
अपनाया तािक अंततः हम न कर सक। सोमरस का एक बहत ही मह वपण
ू घटक है सर वती
नदी का जल। िकसी और ोत का जल इसम काम नह करता है।’
‘सच म? य ?’
‘हम इसका ान नह है, भु। हमारे वै ािनक इसक या या नह कर पाए ह। िकंतु त य
यही है िक मा सर वती का जल ही काम करे गा। इसी कारण से चं वंिशय ने हम नुकसान
पहंचाने के िलए सर वती क ह या करने का यास िकया है।’
‘नदी क ह या?’ िशव ने अिव ास के साथ कहा।
‘जी हां, भु,’ द ने कहा और उसक ब च जैसी आंख चं वंिशय के इस िव ासघात पर
जलने लग , ‘सर वती नदी का उ म उ र म दो िवशाल निदय सतलज एवं यमुना के संगम से
होता है। ाचीन समय म सतलज एवं यमुना निदय क धाराएं तट थ े म हआ करती थी। हम
दोन ही अथात सय
ू वंशी एवं चं वंशी वहां जाकर सोमरस के िलए जल लेकर आते थे।’
‘लेिकन उ ह ने सर वती क ह या कैसे करने का यास िकया था, महाराज?’
‘उ ह ने यमुना क धारा के माग को बदल िदया तािक वह दि ण क ओर न जाकर पवू
क िदशा से मु य नदी गंगा म जाकर िमले।’
‘आप ऐसा कर सकते ह?’ िशव ने आ य म पछ
ू ा, ‘नदी क धारा के वाह को मोड़ सकते
ह!’
‘हां, िन संदेह कर सकते ह,’ पवते र ने कहा।
‘हम बहत अिधक अ स न हए,’ द ने बीच म ही कहा, ‘िकंतु हमने उ ह उनके कपट को
सुधारने का अवसर िदया।’
‘और?’
‘और आप चं वंिशय से िकस व तु क आशा कर सकते ह, भु,’ द ने घण
ृ ा से कहा,
‘उ ह ने ऐसा कुछ करने से साफ इंकार कर िदया। उ ह ने दावा िकया िक िकसी छोटे-से भक
ू ंप
के कारण समय के साथ नदी ने वयं ही अपनी धारा का वाह बदल िलया था। और उससे भी
बुरा यह िक उ ह ने अब दावा कर िदया िक चंिू क नदी ने वयं ही अपनी धारा का ख मोड़
िलया था तो हम मेलहू ावािसय को ई र क इ छा समझकर इसे वीकार कर लेना चािहए।’
‘िन संदेह हमने यह वीकार करने से मना कर िदया,’ पवते र ने कहा, ‘महाराज के
िपता स ाट
नायक के नेत ृ व म हमने व ीप पर आ मण कर िदया।’
‘चं वंिशय का रा य?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘हां, िशव,’ पवते र ने कहा, ‘और वह एक गुंजायमान िवजय थी। चं वंिशय क सेना क
बुरी तरह से पराजय हई। कृपालु स ाट
नायक ने उनक भिू म और उनके शासन को रहने
िदया। यहां तक िक हमने यु क ितपिू त या वािषक शु क भी नह मांगा। उस आ मसमपण
समझौते क एकमा शत थी यमुना क वापसी। हमने यमुना को पुन: उसक मौिलक धारा म
वािहत कर िदया तािक वह सर वती से िमल सके।’
‘आप उस यु म लड़े थे पवते र?’
‘हां,’ पवते र ने कहा। उसक सीना गव से फूला हआ था, ‘उस समय म मा एक िसपाही
था, िकंतु मने वह यु लड़ा था।’
द क ओर मुड़ते हए िशव ने पछ
ू ा, ‘तो िफर अब सम या या है, महाराज? आपके श ु
बहत अ छी तरह से परािजत हए। िफर भी सर वती मर य रही है?’
‘हमारा मानना है िक चं वंशी एक बार पुन: कुछ कपट कर रहे ह। हम अभी तक कुछ भी
अ छी तरह समझ नह पाए ह। उनक पराजय के बाद हम दोन सा ा य के म य के े को
िकसी सा ा य क िनजी भिू म से पथ
ृ क घोिषत कर िदया गया और उस पर जंगल उग गए ह। उस
े म यमुना क ारं िभक धारा भी सि मिलत थी। हमने उस समझौते का अनुपालन िकया और
े को कभी भी छे ड़ा नह । ऐसा तीत होता है िक उ ह ने जो वचन अपनी ओर से िदया था,
उसका पालन नह िकया।’
‘ या आप िनि त प से यह कह सकते ह, महाराज? या उस े का िनरी ण िकया
गया है? या चं वंिशय के ितिनिध से आपके सा ा य म इसके बारे म िवचार-िवमश हआ है?’
‘ या आप यह कहना चाह रहे ह िक हम अस य बोल रहे ह?’ पवते र ने ितरोध िकया,
‘एक स चा सय
ू वंशी कभी अस य वचन नह कहता।’
‘पवते र!’ द ने डांटते हए
ोध म कहा, ‘ भु के कहने का वैसा कोई ता पय नह था।’
‘मेरी बात यान से सुिनए, पवते र,’ िशव ने न ता से कहा, ‘यिद मने अपने देश म
अकारण यु से कुछ भी सीखा है तो वह यह है िक यु का आ य अंितम होना चािहए। यिद
कोई अ य समाधन है तो इसम कोई हािन नह है िक कुछ युवा सैिनक क जीवन-र ा क जा
सके। एक मां कह न कह हम दुआ अव य देगी।’
‘हम लोग यु ना कर! बहत अ छा! या महान मुि दाता हम िमला है!’ पवते र ने मन
ही मन म बुदबुदाते हए कहा।
‘ या आपको अब भी कुछ कहना है पवते र?’ कनखला ने िच लाकर कहा, ‘मने आपको
पहले ही कहा था। आप नीलकंठ का अनादर मेरी उपि थित म नह करगे!’
‘म आपसे आ ा नह लेता,’ पवते र गुराया।
‘बहत हआ!’ द ने आदेश िदया और िशव क ओर मुड़कर कहा, ‘मुझे मा कर भु। आप
सही ह। आ त हए िबना हम यु क घोषणा नह करनी चािहए। इसी कारण से मने अब तक
यु को टाला हआ है। िकंतु इस िवषय म त य को देिखए। िपछले पचास वष म सर वती क
धारा कम होती ही जा रही है।’
‘और िपछले कुछ वष तो सचमुच ही भयावह रहे ह,’ कनखला ने कहा, वो धीमे-धीमे मरती
जा रही नदी के दुख म बड़ी ही मुि कल से अपने आंसुओ ं के बहने को रोक सक , िजसे
अिधकतर मेलहू ावासी माता- व प आदर करते थे, ‘सर वती अब तो समु तक भी नह पहंच
पाती है और राज थान म भिू मगत डे टा तक जाकर समा हो जाती है।’
‘और सोमरस िबना सर वती के जल के नह बनाया जा सकता है,’ द ने कहना जारी
रखा, ‘चं वंिशय को यह पता है। इसी कारण वे उसे मारने का यास कर रहे ह।’
‘इसके बारे म व ीप के ितिनिध का या कहना है? या उससे पछ
ू ताछ क गई है?’
‘ व ीप से हमारा कोई कूटनीितक संबंध नह है, भु,’ द ने कहा।
‘ या सचमुच म? मने सोचा िक दूसरे देश के ितिनिधय का होना आपक एक नवीन
यव था थी। यह आपको उ ह भली-भांित जानने-समझने का मौका देता है और यु को टालने
म मदद करता है। मने सुना है िक दो िदन के बाद मेसोपोटािमया से एक राजनियक दल यहां आ
रहा है। तो िफर व ीप से भी कूटनीितक संबंध य नह हो सकता है?’
‘आप उ ह जानते नह ह, भु। वे अिव ासी लोग ह। कोई भी सय
ू वंिशय क तरह जीने
वाला वे छा से चं वंिशय से बात करके अपनी आ मा को गंदा करना नह चाहे गा।’
िशव ने योरी चढ़ाई िकंतु कुछ कहा नह ।
‘आप नह जानते िक वे िकस तर तक नीचे िगर चुके ह, भु। िपछले कुछ वष म तो
उ ह ने आतंक आ मण म शापयु नागाओं तक के योग भी करने ारं भ कर िदए ह!’
कनखला ने घिृ णत भाव से कहा।
‘आतंक हमले?’
‘जी हां, भु,’ द ने कहा, ‘उनक पराजय ने उ ह कई दशक तक शांत रखा। िपछले यु
म हमारी अ यिधक ती िवजय के कारण उनका मानना है िक वे य यु म हम परािजत
नह कर सकते। अत: वे ऐसे धावे करने लगे ह जो उनके जैसे िघनौने लोग ही कर सकते ह।
आतंक आ मण।’
‘म कुछ समझा नह । वे असल म करते या ह?’
‘वे ह यार के छोटे-छोटे दल भेजते ह, जो सहसा सावजिनक िकंतु असै य थल पर
आ मण करते ह। उनक मंशा असैिनक पर आ मण करना होता है, जैसे ा ण, वै य एवं
शू । वे मंिदर एवं सावजिनक नानघर को उजाड़ना चाहते ह, ऐसे थल जहां संभवत: उनका
सामना करने के िलए सैिनक नह ह गे, िकंतु उनका यह िवनाश सा ा य के मनोबल का नाश
करे गा और आतंक फै लाएगा।’
‘यह तो घिृ णत है! हमारे देश म परू ी तरह से जंगली कृितवाले भी संभवत: ऐसा न कर,’
िशव ने कहा।
‘हां,’ पवते र ने कहा, ‘ये चं वंशी बहादुर क तरह यु नह करते। ये कायर क तरह
यु करते ह।’
‘तो िफर आप उनके देश पर हमला य नह करते? इसे हमेशा के िलए समा कर
दीिजए।’
‘हम ऐसा करना चाहते ह, भु,’ द
परािजत कर सकते ह।’
ने कहा, ‘िकंतु म आ
त नह हं िक हम उ ह
द क ओर मुड़ने से पहले िशव ने पवते र क ओर देखा जो अपनी सेना के इस अपमान
पर मन ही मन खौल रहा था, ‘ य महाराज? आपके पास बहत अ छी िशि त एवं भावी सेना
है। मुझे िव ास है िक आपक सेना उ ह परािजत कर सकती है।’
‘दो कारण ह, भु। थमत: हम लोग सं या म बहत कम ह। यहां तक िक हम सौ वष
पहले भी उनसे सं या म कम थे। िकंतु उस समय हमारा अंतर उतना अिधक नह था, िजतना िक
अब है। हमारा अनुमान है िक उनक जनसं या आठ करोड़ है जबिक उनक तुलना म हमारी
जनसं या मा अ सी लाख है। वे हमारे िव
एक बहत बड़ी सेना खड़ी कर सकते ह, उनक
इतनी बड़ी सं या ही हमारी तकनीक े ता को ीण कर देगी।’
‘लेिकन आपक जनसं या कैसे कम हो सकती है? आपके पास ऐसे लोग ह जो दो सौ
साल से अिधक समय तक जी सकते ह! आपक जनसं या तो उनसे कह अिधक होनी चािहए
थी।’
‘समाजशा ीय कारण, भु,’ द ने कहा, ‘हमारा सा ा य अमीर है। अपने कत य से भी
अिधक ब चे केवल एक िवक प क व तु ह। मयका यव था से ब च का गोद लेना मातािपताओं ारा कम सं या म होता है, सामा यत: एक या दो ही तािक वे उनका लालन-पालन
उिचत कार से कर सक। मयका म कम सं या म ि यां पहंच रही ह। व ीप म गरीब लोग के
ब चे उनके िलए आय के साधन के प म मजदूरी करते ह। िजतनी सं या म ब चे होते ह उतनी
ही कम गरीबी होती है। अत: उस देश क जनसं या बहत अिधक होती जा रही है।’
‘और यु टालने का दूसरा कारण?’
‘दूसरा कारण ऐसा कुछ है जो हमारे िनयं ण म है। हम य ु के िनयम के साथ यु करते ह।
मानक एवं आचारनीित के साथ। चं वंशी वैसा कुछ भी नह करते ह। और मुझे डर है िक हमम
जो यह एक कमी है उसका लाभ हमारे िनदयी श ु उठा सकते ह।’
‘यु के िनयम?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘जी हां। उदाहरण के िलए, हम िबना श वाल पर आ मण नह करते। एक बेहतर श
वाला यि जैसे अ ारोही सैिनक अपने से कमजोर श वाले सैिनक पर आ मण नह
करता जैसे तलवार उठाए पैदल सैिनक पर। एक खड़गधारी िकसी यि को उसक कमर से
नीचे वार नह करता य िक यह आचारनीित के िव
है। चं वंशी इन बारीिकय क परवाह
नह करते ह। अपनी जीत शी ता से सुिनि त करने के िलए वे िकसी पर भी कभी भी आ मण
कर सकते ह।’
‘मुझे मा कर, महाराज,’ पवते र ने कहा, ‘िकंतु यही वह अंतर है िजसके कारण हम वो
ह जो िक आज हम ह। जैसािक भु ी राम ने कहा था, िकसी यि क आचारनीित एवं उसका
च र उसके अ छे समय म नह आंका जा सकता है। केवल बुरे समय म ही पता चलता है िक
कोई यि अपने धम पर िकतना अिडग रहता है।’
‘िकंतु पवते र,’ गहरी सांस लेते हए द ने कहा, ‘हम लोग पर ऐसे लोग आ मण नह
कर रहे ह जो हमारी तरह नैितक एवं शालीन ह। हमारी जीवनशैली पर आ मण हो रहा है। यिद
हम अपने यथासंभव तरीके से यु नह करते ह तो हम परािजत हो जाएं गे।’
‘मुझे एक बार पुन: मा कर, महाराज,’ पवते र ने कहा, ‘मने यह कभी नह कहा िक
हम यु का उ र यु से नह देना चािहए। म तो बार-बार आपसे कहता आ रहा हं िक आप हम
चं वंिशय के िव
यु करने क घोषणा करने क अनुमित दीिजए। िकंतु यिद हम अपने
िनयम , आचारनीितय , िविध-संिहताओं के िबना यु करते ह तो हमारी ‘जीवनशैली’ तो
समिझए िक िवन हो ही जाएगी। और चं वंशी िबना हमसे यु िकए ही जीत जाएं गे।’
नगरीय हर के घंटे के बजते ही बातचीत क गई और सभी ने छोटी पज
ू ा क । िशव ने इस
सोच के साथ िखड़क क ओर देखा िक आज सती न ृ य करे गी या नह ।
द ने आशाभरी ि
से िशव को देखा, ‘ या आप कह जाना चाहते ह, भु।’
‘नह , महाराज,’ िशव ने अपने अंतमन म चल रही पीड़ा एवं गड़बड़ को छुपाते हए कहा,
‘मुझे नह लगता िक इस समय कोई मेरी ती ा कर रहा है।’
इस पर द के मुख से मु कुराहट उसक आशा के साथ ही अ य हो गई। िशव ने कहना
जारी रखा, ‘यिद आपको उिचत लगे तो या हम यह प रचचा जारी रख सकते ह, महाराज?
संभवत: म या भोजन हम कुछ देर बाद भी कर सकते ह।’
‘िन संदेह, हम चचा जारी रख सकते ह, भु,’ वयं को संयत करते हए द मु कुराए।
“मने अब तक क सारी कहानी समझ ली है, महाराज। जबिक म इस समय आपके ारा
आ मण नह करने के कारण को समझ रहा हं, साथ ही यह भी समझ रहा हं िक आपके पास
प
प से कोई योजना है, िजसम मेरे नीले गले को िविच भिू मका िनभानी है।’
‘जी हां, हमारे पास योजना है, भु। म अनुभव करता हं िक एक स ाट होने के नाते यिद म
भी हमारे कुछ लोग के उिचत ोध क धारणा बना लं ू तो वह हमारी िवपि का समाधान नह
कर पाएगा। मेरा मानना है िक व ीप के लोग वयं बुरे नह ह। उनके जो चं वंशी शासक ह
और जो उनक जीवनशैली है, उसने उ ह बुरा बना िदया है। हमारे िलए आगे बढ़ने का सबसे
सरल एवं िनि त माग है िक हम व ीप वािसय क र ा कर।’
‘ व ीप वािसय क र ा?’ िशव ने सच म आ य से पछ
ू ा।
‘जी हां, भु। उनक उस दु दशन से र ा जो उनक आ माओं को सं िमत कर रहा है।
अधम शासक से उनक र ा। उनके दुखी एवं अथहीन अि त व से उनक र ा। और उ ह
उ कृ सय
ू वंिशय के जीवन के उ म ढं ग के लाभ देकर हम ऐसा कर सकते ह। एक बार जब वे
हमारी तरह हो जाएं गे तो यु करने का कोई कारण ही नह रह पाएगा। हम लोग भाइय क
तरह रहगे। यह मेरे िपता
नायक का अधरू ा काय है। असल म यह भु ी राम का अधरू ा काय
है।’
‘यह बहत बड़ा काय है, महाराज,’ िशव ने कहा, ‘यह दयाशीलता एवं तक को अव य लहरा
रहा है। लेिकन यह बहत ही भारी काय है। आपको उनक सेना को परािजत करने के िलए
सैिनका क आव यकता होगी और उ ह अपनी ओर करने के िलए धम चारक क भी। यह
काय आसान नह होगा।’
‘म मानता हं। यहां तक िक मेरे सा ा य म बहत से लोग ह जो व ीप पर आ मण करने
पर भी िचंितत ह, और म व ीप के दु तीकरण क एक बहत बड़ी चुनौती उनके सामने रख
रहा हं। इसी कारण से म इसे नीलकंठ के िबना आरं भ नह करना चाहता था, भु।’
िशव को बहत साल पहले कही हई अपने चाचा क बात याद हो आई, िजसम दूसरे जीवन
के बारे म उ ह ने बताया था।
त ु हारा ार ध इन पवत के बाद ि थत है। तम
ु उसे परू ा करोगे या िफर से उससे भाग
जाओगे, यह तम
ु पर िनभर करता है।
जैसे ही द ने पुन: कहना आरं भ िकया तो िशव ने अपना यान कि त िकया।
‘िजन िवपि य का सामना हम कर रहे ह, उसक भिव यवाणी पहले ही कर दी गई थी,
भु,’ द ने कहना जारी रखा था, ‘ भु ी राम ने वयं कहा था िक कोई भी दशन चाहे िकतना
भी आदश य न हो, वह मा एक सीिमत समय तक ही भावी रहता है। यह कृित का िनयम
है और इसे टाला नह जा सकता है। िकंतु पौरािणक कथाएं हम यह भी बताती ह िक जब ये
िवपि यां एक आम आदमी के िलए अलं य हो जाएं गी, तो नीलकंठ कट ह गे। और वे दु
चं वंिशय का नाश करगे और अ छाई क शि य क पुन: थापना करगे। भु, आप ही
नीलकंठ ह। आप हमारी र ा कर सकते ह। आप भु ी राम के अधरू े काय को परू ा कर सकते ह।
आप अव य हमारा नेत ृ व कर और चं वंिशय को परािजत करने म हमारी सहायता कर। आप
व ीप वािसय को एक जगह पर बटोरकर उ ह सच क राह पर अव य लाय। नह तो मुझे डर
है िक यह जो संुदर सा ा य आज हमारे पास है, जो मेलहू ा आदश के िनकट का समाज है, वह
वष न समा होने वाले यु से न हो जाएगा। या आप हमारी सहायता करगे, भु? या आप
हमारा नेत ृ व करगे?’
िशव परू ी तरह से चकराया हआ था, ‘लेिकन म कुछ समझा नह , महाराज? वा तव म मुझे
या करना होगा?’
‘म नह जानता, भु। हम मा हमारा ल य पता है और यह िक आप हमारे मागदशक ह गे।
हम कौन सा माग लेना है, यह आप पर िनभर करता है।’
ये चाहते ह िक आठ करोड़ लोग के जीवन जीने के ढंग को म अकेले ही बदल दूं! या ये
लोग पागल ह?
िशव ने संभलकर बोलना ारं भ िकया, ‘मुझे आप लोग से और आपके क से बहत
सहानुभिू त है, महाराज। लेिकन ईमानदारी से कहं तो मुझे वा तव म यह समझ म नह आ रहा
िक कैसे मेरे जैसा एक आदमी ऐसा अंतर ला सकता है।’
‘यिद वह यि आप ह, भु,’ द ने कहा। उसक नम हई आंख भि
हो गई ं, ‘तो वे परू े
ांड को प रवितत कर सकते ह।’
एवं आ था से बड़ी
‘म इस बारे म परू ी तरह से असंिद ध नह हं, महाराज,’ िशव ने एक दुबल मु कान के साथ
कहा, ‘मेरी उपि थित य इतना बड़ा अंतर लाएगी? म कोई चम कार करने वाला आदमी नह
हं। म चुटक बजाकर िबजली िगराने वाले बाण चं वंिशय पर नह चला सकता।’
‘आपक उपि थित मा ही यह अंतर उ प न कर देगी, भु। म आपको सा ा य म मण
करने का आमं ण देता हं। आप नीले गले का भाव लोग पर देिखए। एक बार हमारे लोग यह
िव ास कर लगे िक वे चाह तो वे कुछ भी कर लग!’
‘आप नीलकंठ ह भु,’ कनखला ने भी कहा, ‘लोग को नीले गले के वाहक पर आ था है।
उनक आ था आप म है। या आप हमारी सहायता करगे, भु?’
या तम
ु पन
ु ः भाग जाओगे?
‘लेिकन आपको कैसे पता िक मेरा नीला गला मुझे स चा नीलकंठ बनाता है?’ िशव ने
पछ
ू ा, ‘आपको या पता िक नीले गले वाले िकतने मेलहू ावासी आिव कृत होने के िलए ती ा म
बैठे हए ह!’
‘नह , भु,’ द ने कहा, ‘वह मेलहू ावासी नह हो सकता। पौरािणक गाथा बताती है िक
नीलकंठ िवदेशी ह गे। वह स -िसंधु से नह हो सकते। और सोमरस का पान करने के बाद
उनका गला नीला हो जाएगा।’
िशव ने कोई उ र नह िदया। वह परू ी तरह से त ध लग रहा था य िक सचाई उसके
सामने य खड़ी थी।
ीनगर। थम राि , सोमरस। इसी कारण से मेरा शरीर भला-चंगा हो गया था। इसी कारण
से म पहले से भी अिधक शि शाली महसस
ू कर रहा हं।
द और कनखला ने िशव को आशाभरी ि
वे उनके उिचत िनणय के िलए पज
ू ारत थे।
से देखा। उ ह िशव के िनणय क ती ा थी।
केवल म ही य ? सभी गण
ु वाल को सोमरस िदया गया था। या मेरे चाचा जी सही थे?
या सचमच
ु ही मेरा कोई ार ध है?
पवते र ने संकुिचत हई आंख से िशव को घरू ा।
म िकसी ार ध का पा नह हं। लेिकन संभवतः मेरे िलए ायि त करने का यह एक
अवसर हो।
लेिकन सबसे पहले...
िशव ने िनयंि त िवन ता से पछ
ू ा, ‘महाराज, इससे पहले िक म उ र दंू, या म एक
पछ
ू सकता हं?’
‘िन संदेह, भु।’
‘ या आप इस पर िव ास करते ह िक िम ता के िलए ईमानदारी आव यक होती है? इसके
बावजदू िक सच उसके िम को बुरा लगे?’
‘जी हां, िन संदेह,’ द ने यह सोचते हए कहा िक पता नह िशव के कहने का आशय या
होगा।
‘परू ी ईमानदारी केवल दो यि व के संबंध क आधारिशला ही नह , बि क िकसी ि थर
समाज का भी आधार है,’ पवते र म बीच म ही कहा।
‘म इससे सहमत हं,’ िशव ने कहा, ‘लेिकन िफर भी, मेलहू ा मेरे ित ईमानदार नह था।’
िकसी ने भी कुछ नह कहा।
िशव ने स यता िकंतु ढ़ता भरे वर म कहा, ‘जब हमारे कबीले को मेलहू ा आने का
िनमं ण िदया गया था तो हम ऐसा तीत करवाया गया था िक आप लोग को अ वासी चािहएं
य िक आप लोग को काम करने के िलए लोग क आव यकता थी। और म अपने िपछड़े देश
क भिू म से बचकर खुश था। लेिकन अब मुझे आभास हआ िक आप बड़े ही यवि थत ढं ग से
नीलकंठ क तलाश कर रहे थे।’
नंदी क ओर मुड़ते हए िशव ने कहा, ‘हम यह नह बताया गया था िक जैसे ही हम मेलहू ा
म वेश करगे तो सोमरस जैसी कोई औषिध हम िपलाई जाएगी। हम यह भी नह बताया गया था
िक उस दवाई का ऐसा भाव होगा।’
नंदी ने दोषयु
ि
से नीचे देखा। उसके भु का उस पर
ोिधत होना उिचत था।
द क ओर मुड़ते हए िशव ने कहना जारी रखा था, ‘महाराज, आपको पता ही है िक मुझे
बताए िबना ही ीनगर म पहली रात ही मुझे सोमरस िपलाया गया था।’
‘उस अधमता के िलए म मा थ हं, भु,’ द ने हाथ जोड़कर िवनती करते हए कहा,
‘इसके िलए म हमेशा शिमदा रहंगा। िकंतु हमारे िलए यह बहत ही मह वपण
ू था, भु। और िफर
सोमरस ने आपके शरीर पर काफ सकारा मक भाव डाला है। इसने िकसी भी कार से आपको
हािन नह पहंचाई है।’
‘म जानता हं। म दीघायु एवं व थ जीवन के िलए दुखी नह हं, महाराज,’ िशव ने बात को
घुमाकर कहा, ‘ या आप जानते ह िक उस रात संभवत: मेरे कबीलेवाल को भी सोमरस िदया
गया था? और वे गंभीर प से बीमार हो गए थे, संभवत: सोमरस के कारण।’
‘वे िकसी भी जोिखम म नह थे, भु,’ कनखला ने मा ाथ होते हए कहा, ‘कुछ लोग
को पहले से ही कोई न कोई बीमारी होती है। जब सोमरस उनके शरीर म वेश करता है तो वह
उस बीमारी को उजागर कर देता है, िजसे ठीक कर देने के बाद वह बीमारी िफर कभी नह होती
है। इसी कारण शरीर म ृ युपयत व थ रहता है। असल म आपके कबीलेवाले अब अिधक व थ
ह, भु।’
‘इसम कोई संदेह नह है िक अिधक व थ ह,’ िशव ने कहा, ‘बात सोमरस के भाव क
नह है। म और मेरा कबीला अब बेहतर ह। यह सच है। िफर भी जो अब तक मने मेलहू ा को समझा
है उससे मुझे तीत होता है िक िकसी से िबना त य बताए कुछ काम करवाना भु ी राम का
तरीका नह हो सकता है। कैलाश पवत पर ही हम सारा सच बता देना चािहए था। तब आप हम
हमारी इ छा के अनुसार चुनाव का अवसर देते न िक आप ही हमारे िलए चुनाव करते। संभवत:
हम तब भी मेलहू ा आते, िकंतु तब वह हमारा चयन होता।’
‘हम इस कपट के िलए मा कर, भु,’ द ने दोषी होकर खेद म कहा, ‘यह सच म हमारे
तरीके से काम करना नह है। हम अपनी सचाई एवं ईमानदारी पर गव करते ह। िकंतु हमारे पास
और कोई रा ता नह था। हम सच म बहत-बहत मा ाथ ह, भु। आपके लोग क देखरे ख क
जा रही है। वे इतने व थ ह, िजतना पहले कभी नह थे। वे अपना जीवन लंबे समय तक अ छा
यतीत करगे।’
पवते र ने अंतत: अपनी चु पी तोड़ी। कई दशक पहले जब से यह खोज शु हई थी, वह
अपने दय क बात बताना चाहता था जो वह अब तक बता नह सका था। उसने कहा, ‘िशव,
हम लोग ने जो िकया है, उसके िलए हम सच म मा मांगते ह। आपको ोध करने का परू ा
अिधकार है। झठ
ू बोलना हमारा तरीका नह है। मेरे िवचार से जो िकया गया वह कु प था और
भु ी राम ने इसके िलए कभी मा नह िकया होता। हमारी िवपि यां चाहे िकतनी ही गंभीर
य न ह , हम कोई अिधकार नह है िक हम िकसी को अपनी सहायता करने के िलए धोखे म
रख। म अ यिधक मा ाथ हं।’
िशव ने अपनी भ हे ऊपर उठाई ं।
पवते र अकेला है जो बहाने बनाने के बजाय खेद कट कर रहा है। वह महान स ाट ी
राम के तरीक का स चा अनय
ु ायी है।
िशव मु कुराया।
द ने राहत क एक गहरी विन वाली सांस ली।
िशव द क ओर मुड़ा और उसने कहा, ‘अब हम उसे भुला देना चािहए, महाराज। जैसािक
मने कहा था, आपके सा ा य के बारे म कुछ चीज ह िजसम सुधार िकया जा सकता है। इसम
कोई संदेह नह है। लेिकन िफर भी, िजतनी दुिनया अब तक मने देखी है, म दावे के साथ कह
सकता हं िक उनम से यह सबसे अ छे समाज म से एक है। और इसके िलए यु करना एक नेक
काय होगा। लेिकन मेरी कुछ शत ह।’
‘िन संदेह, भु,’ द ने उ ह स न करने क इ छा से कहा।
‘इस समय म यह नह कहता िक म यह काय कर पाऊंगा िजसक आपको मुझसे आशा है
और यह भी नह कह सकता िक म नह क ं गा। मेरे कहने का ता पय यह है िक म अपनी ओर
से परू ा य न क ं गा। लेिकन उससे पहले, म आपके समाज को और अिधक समझना चाहता हं
तािक म कैसे आपक मदद कर पाऊंगा उसके िलए असंिद ध हो जाऊं। म मानकर चल रहा हं िक
मुझसे कुछ भी छुपाया नह जाएगा और ना ही मुझे िमत िकया जाएगा।’
‘िन संदेह, भु।’
‘दूसरी बात, आपको अभी भी अपनी जनसं या बढ़ाने के िलए अ वािसय क आव यकता
है। लेिकन आप उ ह म म न रख। मेरे िवचार से आप उ ह मेलहू ा के बारे म सबकुछ सच-सच
बता द और उ ह िनणय लेने द िक वे आना चाहते ह अथवा नह ? या िफर आप उ ह आमंि त ही
ना कर। या यह उिचत है?’
‘िन संदेह उिचत है, भु,’ द ने कहा। कनखला क ओर िसर िहलाते द ने कहा, ‘हम
इस आ ा का पालन त काल ही करगे।’
‘साथ ही, यह प है िक म वापस क मीर नह जा रहा हं। या मेरा कबीला, मेरे गुणवाले
देविग र लाए जा सकते ह? मेरी इ छा है िक वे मेरे साथ रह।’
‘िन संदेह, भु,’ द ने एक ण कनखला को देखकर कहा, ‘आज ही िनदश भेज िदए
जाएं गे िक उ ह देविग र बुला िलया जाए।’
‘और म उस थान पर जाना चाहता हं, जहां सोमरस का उ पादन िकया जाता है। म
देवताओं के इस पेय को समझना चाहता हं। ऐसा तीत हो रहा है िक ऐसा करना मह वपण
ू है।’
‘िन संदेह, भु,’ द ने कहा। उसका चेहरा धैयहीन मु कुराहट से भरता जा रहा था,
‘कनखला आपको वहां कल ही लेकर जाएगी। असल म, मेरा प रवार भी परस ब ा मंिदर म
पज
ू ा करने के िलए जाने वाला है। संभवत: वहां हम िमल सकते ह।’
‘यह बहत ही अ छा रहे गा,’ मु कुराकर िशव ने कहा और उसके बाद एक गहरी सांस
लेकर बोला, ‘और अंत म, मुझे लगता है िक आप अपने लोग को नीलकंठ के आगमन का
समाचार देने को उ सुक ह गे।’
द और कनखला ने सहमित म िसर िहलाया।
‘म आपसे अनुरोध करना चाहता हं िक आप अभी ऐसा न कर।’
द और कनखला के चेहरे तुरंत ही उतर गए। नंदी क आंख फश पर िचपक हई थ । उसने
वातालाप को सुनना बंद कर िदया था। उसके िम या सा य क िवशालता उसे अंदर ही अंदर तोड़े
जा रही थी।
‘महाराज, मुझे ऐसा लगता है िक जब आपके लोग को यह पता चलेगा िक म नीलकंठ हं
तो मेरे ारा िकया गया हर काम और मेरी कही हई बात का अ य अथ िलया जाएगा, उसके
अ यिधक िव े षण ह गे,’ िशव ने िववरण िदया, ‘मुझे डर है िक मुझे आपके समाज के बारे म
कुछ अिधक जानकारी नह है या िफर य कह िक मुझे अभी अपने काय के बारे म पता नह है
िक म इसको कर पाऊंगा या नह ।’
‘म समझ सकता हं, भु,’ द ने कहा। उसके चेहरे पर एक टूटी हई मु कान आई, ‘आपको
म वचन देता हं। मेरे त काल अधीन कमचारी, मेरा प रवार एवं वे लोग िज ह आप बताना चाहगे,
उ ह ही नीलकंठ के आगमन क जानकरी होगी। इसके आलावा िकसी को नह ।’
‘ध यवाद, महाराज। लेिकन म िफर से कहता हं: म एक साधारण कबीला वाला हं िजसका
गला िकसी अ छी औषिध के कारण नीला हो गया है। ईमानदारी से मुझे अभी भी पता नह है िक
जो िवपि यां आप झेल रहे ह, उसम एक आदमी या कर सकता है?
‘और म पुन: वही बात दुहराऊंगा, भु,’ द ने ब चे जैसी मुसकान के साथ कहा, ‘यिद वह
यि आप ह, तो इस
ांड को बदलकर रख सकते ह!’
अ याय - 8
भगवान का पेय
िश व और नंदी राजसी िव ामगहृ वापस लौट रहे थे। िशव ने िनणय िलया था वह अकेले ही
भोजन करे गा। नंदी िशव के कुछ कदम पीछे चल रहा था। उसका िसर व- यारोप म नीचे झुका
हआ था, ‘ भु, मुझे मा कर।’
िशव मुड़ा और उसने नंदी को घरू कर देखा।
‘आप सही ह, भु। हम लोग अपनी सम याओं म और नीलकंठ क खोज म इतने य त थे
िक हम हमारे ारा िकए जा रहे अ वािसय के िलए अनुिचत यवहार का एहसास ही नह हआ।
मने आपको बहकाया है, भु। मने आपसे झठ
ू कहा था।’
िशव ने कुछ भी नह कहा। वह नंदी क आंख म गहरे झांक रहा था।
‘म अ यिधक मा ाथ हं, भु। मने आपके साथ िव ासघात िकया है। आप जो भी दंड दगे,
वह मुझे वीकार होगा।’
िशव के ह ठ पर एक ह क -सी मु कान आई। उसने नंदी के कंधे पर ह क थपक लगाई,
जैसे संकेत दे रहा हो िक उसने नंदी को मा कर िदया है। लेिकन उसक आंख ने एक प
संदेश भी िदया, ‘मुझसे कभी झठ
ू नह बोलना, िम ।’
नंदी ने िसर िहलाया और फुसफुसा कर कहा, ‘कभी नह
शिमदा हं।’
भु। कभी भी नह । म अ यिधक
‘भल
ू जाओ नंदी,’ िशव ने कहा। उसक मु कान अब और बड़ी हो गई थी, ‘अब वे अतीत क
बात ह।’
वह मुड़ा और उसने चलना पुन: ारं भ कर िदया। अचानक ही िशव ने िसर िहलाया और
बहत ही धीमे वर म कहा, ‘िविच लोग ह।’
‘आपने कुछ कहा, भु?’ नंदी ने पछ
ू ा।
‘नह कुछ िवशेष नह । म तु हारे समाज क कुछ मनोरं जक बात के बारे म सोच रहा था।’
‘मनोरं जक, भु?’ नंदी ने पछ
ू ा। अब वह कुछ अिधक आ मिव ास से भरा हआ था य िक
उसके भु उससे बोल रहे थे।
‘बात यह है िक तु हारे देश के कुछ लोग ऐसा सोचते ह िक मा मेरा नीला गला उ ह
उनके असंभव काय को परू ा करने म मदद करे गा। कुछ लोग वा तव म मानते ह िक मेरा नाम
इतना पिव हो चुका है िक वे उस नाम को बोल भी नह सकते। ’
नंदी थोड़ा-सा मु कुराया।
‘उधर दूसरी ओर,’ िशव ने कहना जारी रखा था, ‘कुछ लोग प
प से सोचते ह िक मेरी
कोई आव यकता नह है। असल म, वे यहां तक सोचते ह िक मेरा पश करना इतना दूिषत
करता है िक मुझे शुि करण क आव यकता है।’
‘शुि करण? आपको इसक
य आव यकता है, भु?’ थोड़ा िचंितत होते हए नंदी ने पछ
ू ा।
िशव ने अपने श द को संभालकर रखा, ‘ऐसा है िक मने िकसी को पश िकया। और
मुझसे कहा गया िक मुझे शुि करण करवाना आव यक है।’
‘ या? आपने िकसको पश िकया, भु? या वह िवकम यि था?’ अ यिधक िचंितत
नंदी पछ
ू ा, ‘मा एक िवकम यि को पश करने पर ही आपको शुि करण क आव यकता हो
सकती है।’
िशव के मुख का रं ग अचानक ही बदल गया। उसक आंख के सामने से पदा उठ गया था।
उसे सहसा उस िदन क सम त घटनाओं का मह व समझ म आ गया था। पश करने पर उसका
तेजी से हटना। गु जी और कृि का क आघात लगने जैसी िति या।
‘तुम िव ामगहृ को जाओ, नंदी। म तु ह वह िमलता हं।’ िशव ने कहा और िव ामगहृ के
उ ान क ओर मुड़ गया।
‘ भु, या हआ?’ िशव के साथ तेज कदम िमलाने के यास के साथ नंदी ने पछ
ू ा, ‘ या
आपने शुि करण करवाया अथवा नह ?’
‘तुम िव ामगहृ को जाओ, नंदी,’ तेजी से उससे दूर जाते हए िशव ने कहा, ‘म तु ह वह
िमलता हं।’
िशव ने लगभग एक घंटे तक ती ा क । िकंतु वह यथ रही य िक सती वहां नह आई। उस
ण को कोसते हए वह वह अकेला ही त त पर बैठ गया, िजस ण वह भयावह िवचार उसके
मन म उपजा था।
मने आिखर यह कै से सोच िलया िक मेरा पश सती को दूिषत लगेगा? म सचमच
ु ही
िनरा मख
ू हं।
उसने अपने मन म उस दुभा यशाली मुलाकात के
येक पहलू पर िवचार िकया।
येक
ण को टटोला और उसके
‘यिद आपको कुछ भी होता है तो वयं को कभी भी मा नह कर पाऊंगी।’
उसने कहा था। यह कहने का उसका ता पय या था? या उसके मन म मेरे ित कुछ
भावना मक लगाव ह? या िफर वह एक ऐसी आदरणीया ी है जो िकसी दूसरे के दुभा य का
कारण बनना नह देख सकती है? और उसे वयं को िनकृ
य समझना चािहए? यह िवकम
क परू ी क परू ी अवधारणा ही मख
ू ता तीत होती है!
अब वह आने वाली नह थी, इसका एहसास होते ही िशव उठ खड़ा हआ। उसने त त को
बहत बल लगाकर ठोकर मारी तो उसे आभास हआ िक कभी उसके उस सु न हए पांव के अंगठ
ू े
म पुन: संवेदना लौट चुक थी। िच लाकर कोसता हआ वह िव ामगहृ क ओर वापस चलने
लगा। न ृ य मंडप के पास से गुजरते हए उसने देखा िक वहां कुछ िगरा पड़ा था। वह उसे उठाने
क नीयत से उसके िनकट गया। वह मिणय का कंगन था। उसने उसके दाएं हाथ पर उसे देखा
था। उसका धागा टूटा हआ नह लग रहा था।
या उसने जान–बझ
ू कर िगराया होगा?
उसने पहले उसे संघ
ू ा। सांझ के सरू ज क चुंबन वाली पिव झील क उसम महक थी। उसने
उसे अित िचकर ढं ग से ह ठ से लगाया और कोमलता से उसका चुंबन िलया। मु कुराते हए
उसने अपनी कमर म बंधी थैली म उसे रख िलया। वह मंदार पवत से वापस आएगा और उससे
िमलेगा। उसे उससे िमलना ही होगा। यिद आव यक हआ तो वह संसार के न होने तक उसे
मनाएगा। वह उसे पाने के िलए सम त मानव-जाित से यु करे गा। उसके िबना उसक जीवनया ा अधरू ी थी। उसका दय इसे जानता था। उसक आ मा यह जानती थी।
‘अब और िकतनी दूर है, धानमं ी महोदया?’ एक उ सुक बालक क तरह चंचल होकर नंदी ने
पछ
ू ा।
ऐसा क जहां देवताओं के पेय का उ पादन होता है, उस रह यपण
ू मंदार पवत का मण
िकसी भी मेलहू ावासी के िलए िवशेष स मान क बात थी। अिधकतर सय
ू वंिशय के िलए मंदार
पवत सा ा य क आ मा था य िक जब तक वह सुरि त था उनका सोमरस भी सुरि त था।
‘देविग र को छोड़े हए मा एक घंटा ही बीता है अिधपित,’ मु कान के साथ कनखला ने
कहा, ‘मंदार पवत तक एक िदन क या ा होती है।’
‘दरअसल इस सवारी क िखड़क पर यह जो िझलिमली लगी हई है, इसके कारण बाहर
कुछ भी िदखाई नह दे रहा है। और चंिू क म सरू ज को देख भी नह सकता तो म यह भी नह बता
सकता िक िकतना समय बीत चुका है। इसी कारण म पछ
ू रहा था।’
‘ हर का कंदील आपके ठीक पीछे है, अिधपित। यह िझलिमली आपक सय
ू क ती
िकरण से सुर ा के िलए है।’
कनखला के इस तक पर िशव मु कुराया। वह इस बात को अ छी तरह से समझ रहा था
िक वे िझलिमिलयां उनक सुर ा के िलए नह थ , बि क वे मंदार क सुर ा के िलए थ । उस
थल को परम गोपनीय रखने के िलए। बहत ही कम लोग ऐसे थे िज ह उसके सही थल क
जानकारी थी। मंदार पवत क ओर जाने वाली सड़क और उस पर चलने वाले राहगीर के िलए
अ र नेमी नामक सैिनक का एक िवशेष द ता लगाया गया था। मंदार पवत के वै ािनक ,
अ र नेमी दल एवं उन यि य िज ह स ाट ने ािधकृत िकया हो, उनके अलावा उस पहाड़
पर जाने क अथवा उसके थल को जानने क िकसी अ य को अनुमित नह थी। यिद चं वंशी
मंदार पर आतंक आ मण करते ह तो मेलहू ा के िलए सबकुछ समा हो जाएगा।
‘हम वहां िकससे िमलगे, कनखला?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘ भु, हम बहृ पित से िमलगे। वे सा ा य के मु य वै ािनक ह। हमारे सम त सा ा य हे तु
सोमरस उ पादन के िलए वै ािनक के दल का वे नेत ृ व करते ह। िन संदेह वे अ य े म भी
शोध करते ह। एक प ी संदेशवाहक पहले ही उनके पास आपके आगमन का समाचार लेकर
भेजा जा चुका है। हम लोग उनसे कल ात: भट करगे।’
िशव ने धीमे से िसर िहलाया और मु कुराकर कनखला को देखते हए कहा, ‘ध यवाद।’
नंदी ने हर कंदील को पुन: देखा और िशव अपनी पु तक पढ़ने लगा। अ यंत ही भयावह
यु के बारे म वह एक बहत ही मनोरं जक ह तिलिखत कथा थी, जो सह वष पवू देव एवं
असुर के म य लड़ा गया था, अनंतकाल तक चलने वाला स य एवं अस य के म य का
िवरोधा मक यु । देव ने भगवान
अथात महादेव, देव के देव क मदद से असुर को
परािजत िकया था और संसार म पुन: स य क थापना क थी।
‘आशा है िक आपको अ छी न द आई होगी, भु,’ कनखला ने िशव से पछ
ू ा जब िशव एवं नंदी
बहृ पित के कायालय के पहंचे थे।
यह थम हर के अंितम घंटे का ारं भ था। मंदार पवत पर िदन का ारं भ अित शी ता से
हो चुका था।
‘हां, अ छी न द आई,’ िशव ने कहा, ‘िकंतु एक लया मक विन रात भर सुनाई पड़ रही
थी।’
कनखला मु कुराई, िकंतु उसने कुछ कहा नह । उसने अपना िसर झुकाया और ार
खोलकर िशव को बहृ पित के कायालय म वेश करने िदया। िशव अंदर गया और उसके पीछे
कनखला एवं नंदी भी अंदर वेश कर गए। बहृ पित के उस िवशाल कायालय म त त पर
िविच कार के उपकरण यवि थत ढं ग से रखे हए थे, जो अलग-अलग ऊंचाइय म थे। ताड़प
पर िलखा हआ िववरण येक उपकरण क बगल म रखा हआ था, जहां प
प से कुछ शोध
हए थे। कमरा िनयंि त प से नीले रं ग म रं गा हआ था। एक िकनारे पर एक िवशाल िखड़क थी
िजसम से पवत क तलहटी म बसे उस सघन वन का असाधारण य िदखाई पड़ रहा था। कमरे
के म य म बहत ही साधारण कम ऊंचाई क पीिढ़य को वगाकार प म यवि थत िकया गया
था। वह एक अ प ययी कमरा था, जहां येक थल पर सरलता एक कला मकता का आयोजन
कर रही थी।
बहृ पित कमरे के म य म हाथ जोड़कर नम ते क मु ा म खड़ा हआ था। वह िशव से बहत
ही छोटा एक म यम ऊंचाई का था। गेहंए रं ग क वचा, गहरी आंख और सुंदर िसंगार क गई
दाढ़ी बहृ पित को एक अलग ही यि व दान कर रही थी। िसवाय चोटी के परू ी तरह से मुंिडत
िसर और शांत भाव वाला मुख उसे एक बुि जीवी यि व बता रहा था। उसका शरीर थोड़ा
थल
ू था। उसके चौड़े कंधे और बेलनाकार सीना इस बात क उ ोषणा कर रहे थे िक उसने थोड़ी
भी कसरत नह क थी, िकंतु बहृ पित का शरीर उसक बुि का वाहन था न िक ि य अथवा
यो ाओं का मंिदर। बहृ पित ने ला िणक प से एक ेत धोती पहन रखी थी और अंगव म्
कंध पर ढीला रखा हआ था। उसने जनेऊ भी ला िणक प से धारण कर रखा था।
‘आप कैसी ह कनखला?’ बहृ पित ने पछ
ू ा, ‘बहत समय से आपको देखा नह ।’
‘जी हां, बहृ पित,’ कनखला ने नीचे झुकते हए नम ते करते हए कहा।
िशव ने देखा िक बहृ पित ने जो दूसरा बाजबू ंद पहन रखा था, उस पर हंस का तीक िच
बना हआ था। ा ण म यह बहत ही उ म जाित-वग माना जाता था।
‘ये भु िशव ह,’ कनखला ने िशव क ओर संकेत करके कहा।
‘मा िशव से काम चल जाएगा, ध यवाद,’ िशव ने न ता से बहृ पित को नम ते करते हए
कहा।
‘िफर ठीक है। केवल िशव ही रहे गा। और आप कौन ह?’ नंदी क ओर मुड़कर बहृ पित ने
पछ
ू ा।
‘ये अिधपित नंदी ह,’ कनखला ने उ र िदया, ‘ भु िशव के सहायक।’
‘मुझे आपसे िमलकर स नता हई, अिधपित,’ िशव क ओर मुड़ने से पवू बहृ पित ने कहा,
‘म अस यता नह कर रहा। िकंतु या संभव है िक म आपका गला देख सकं ू ।’
िशव ने सहमित म िसर िहलाया। उसने जब अपना गुलबू ंद हटाया तो बहृ पित उसके िनकट
गले का परी ण करने के िलए आया। जब उसने िशव के गले से चमक ला नीला रं ग फुिटत
होते देखा तो उसके चेहरे क मु कुराहट अ य हो गई। बहृ पित कुछ समय के िलए मक
ू हो
गया। धीमे-धीमे अपनी चेतना ा कर वह कनखला क ओर मुड़ा और बोला, ‘यह छल नह है।
रं ग अंदर से फुिटत हो है। यह कैसे संभव है? इसका अथ है िक...’
‘जी हां,’ कनखला ने ऐसी स नता के साथ धीमे वर म कहा जो उसके अंतमन से
िनकल रही थी, ‘इसका अथ है िक नीलकंठ आ गए ह। हमारे मुि दाता, हमारे र क।’
‘सच तो यह है िक मुझे नह पता िक म र क हं अथवा नह ,’ अपने गले म गुलबू ंद को
पुन: बांधते हए असहज िशव ने कहा, ‘लेिकन म आपके इस सुंदर सा ा य क मदद करने का
परू ा य न अव य ही क ं गा। असल म यही कारण है िक म आपके पास यहां आया हं। मुझे ऐसा
एहसास हो रहा है िक यह मह वपण
ू है िक म जान सकं ू िक सोमरस कैसे काम करता है।’
ऐसा तीत हो रहा था िक बहृ पित अभी भी आंख च िधया जाने वाली ि थित म था। वह
िशव को िनरं तर देख रहा था लेिकन उसका यान कह और था। ऐसा तीत हो रहा था िक वह
उन प रि थितय के प रणाम के बारे म िवचार कर रहा था जो नीलकंठ के आगमन के बाद होने
वाले थे।
‘बहृ पित...’ कनखला ने मु य वै ािनक को वहां वतमान म लाने के य न के साथ
पुकारा।
‘हं ऽ ऽ म!’
‘ या आप बता सकते ह िक यह सोमरस कैसे काम करता है, बहृ पित?’ िशव ने पुन:
पछ
ू ा।
‘िन संदेह,’ जैसे ही उसक आंख पुन: अपने सामने खड़े लोग पर आ िटक , बहृ पित ने
झट से कहा। िफर नंदी का यान आते ही उसने पछ
ू ा, ‘अिधपित के सम बोलना या उिचत
होगा?’
‘नंदी मेलहू ा म हमेशा मेरे साथ रहा है,’ िशव ने कहा, ‘म आशा करता हं िक उसका रहना
उिचत ही होगा।’
नंदी अ यंत िवत हो गया िक उसके भु अभी भी उस पर िव ास करते थे और उसे कट
भी करते थे। नंदी ने पुन: ित ा क िक चाहे उसके ाण चले जाएं वह भु से कभी भी अस य
नह बोलेगा।
‘आप जो कह, िशव,’ गमजोशी से मु कुराते हए बहृ पित ने कहा।
िशव ने महसस
ू िकया िक बहृ पित म अधीनता नह थी और न ही उसे नीलकंठ क खोज
पर अ यिधक अंतर पड़ा था। पवते र क तरह ही बहृ पित ने भी उसे िशव नाम लेकर ही
संबोिधत िकया था न िक ‘ भु’। य िप िशव ने महसस
ू िकया िक जबिक पवते र का ख
अिव ासी िचड़िचड़े पन से चािलत था, वह बहृ पित का ख एक आ मिव सी भ ता से चािलत
था।
‘ध यवाद,’ िशव मु कुराया, ‘तो यह सोमरस कैसे काम करता है?’
मंदार पवत क ओर जाने वाले माग पर राजशाही सवारी धीरे -धीरे आगे बढ़ रही थी। एक सौ साठ
अ ारोिहय का मागदशक दल चार पंि य म पांच राजसी सवा रय के पहले चल रहा था। साथ
ही एक सौ साठ अ ारोही दल उनके पीछे भी उसी कार क बनावट म चल रहा था। अगलबगल दोन ओर चालीस िसपािहय का पहरा चल रहा था। येक ब घी पर दस सैिनक एवं चार
नौकरािनयां भी चल रही थ । ये सैिनक ि स अ र नेमी थे, जो सम त भारतवष म सबसे
अिधक भयभीत करने वाली नाग रक सेना थी।
पांच बि घयां ठोस लकड़ी क बनी हई थ , िजनम कोई िखड़क नह थी, केवल ऊपर क
ओर िनकली हई दरार हवा के िलए बनी हई थी। चालक के ठीक पीछे जाफरी लगी हई थी, तािक
हवा एवं काश अंदर आ सके और यिद आ मण होता है तो उसे तुरंत बंद िकया जा सके। सभी
बि घयां एक कार क माप वाली एवं देखने म एक प वाली थ , िजससे यह अनुमान लगाना
किठन था िक राजसी प रवार िकस ब घी म ले जाया जा रहा था। यिद िकसी के पास ऐसी
िद य ि थी िक वह वो चीज भी देख सकता था, िज ह एक आम आदमी क आंख नह देख
सकती थ तो इस बात का सं ान ले सकता था िक पहली, तीसरी एवं चौथी बि घयां खाली थ ।
दूसरी ब घी म राजसी प रवार के लोग थे, द , उसक प नी वी रनी और उनक पु ी सती।
अंितम ब घी म पवते र एवं उसके कुछ मह वपण
ू सेनापित थे।
‘िपताजी, मुझे अभी भी समझ म नह आ रहा है िक आप मुझे पज
ू ा म ले जाने का हठ य
कर रहे ह? मुझे तो मु य पज
ू ा म सि मिलत होने क भी अनुमित नह है,’ सती ने पछ
ू ा।
‘मने तु ह पहले भी बहत बार कहा है,’ द ने सती के हाथ पर यार से थपक देते हए
कहा, ‘मेरी कोई भी पज
ू ा पण
ू नह होती जब तक िक म तु हारा मुख न देख लं।ू म इन बेकार के
िनयम क परवाह नह करता।’
‘िपताजी!’ सती ने शिमदगी वाली मु कान तथा थोड़ा उलाहना देने के िलए िसर िहलाकर
कहा। वह जानती थी िक उसके िपता का इस तरह से िविधय का अनादर करना उिचत नह था।
सती क माता वी रनी ने बड़ी ही अनुपयु मु कान के साथ द को देखा। उसके बाद एक
ण सती क ओर देखकर पुन: अपनी पु तक म रम गई।
राजसी सवारी से कुछ ही दूरी पर सघन वन म पचास सैिनक का एक दल लुक-छुपकर
िबना कोई विन िकए चल रहे थे। सैिनक ने चमड़े से बने ह के कवच अपने धड़ पर पहन रखे
थे और उनक धेितयां सै य शैली म बंधी हई थ तािक उनको चलने-िफरने म असुिवधा न हो।
येक के पास दो तलवार, एक लंबा चाकू और एक धातु एवं चमड़े से बनी ढाल थी, जो उनक
पीठ पर लटक हई थी। उनम से एक सुंदर नवयुवक िजसका चेहरा यु से लगे घाव से
शोभायमान हो रहा था, उसने गहरे भरू े रं ग क पगड़ी पहन रखी थी, जो इस बात का संकेत कर
रही थी िक वह अिधपित था। उसके चमड़े का कवच बहत ढीला बंधा हआ था और एक सोने का
हार एवं एक बाजबू ंद उसके ऊपर बाहर िनकलकर झल
ू रहा था। उस बाजबू ंद पर ेत रं ग का
ै ीय अ चं ाकार चं मा बना हआ था अथात चं वंिशय का तीक िच ।
त
उसके बगल म एक दै याकार यि
चल रहा था जो िसर से पांव तक लबादे से ढका हआ
था। एक सांप के फणदार िसर जैसा आकार उस लबादे पर िसर पर िसला हआ था जबिक उसका
चेहरा काले मुखौटे से ढका हआ था। उसक शि शाली बांह एवं भावहीन बादाम जैसी िदखने
वाली आंख के अलावा उसका और कोई अंग नह िदख रहा था। उसके दाएं हाथ क कलाई पर
चमड़े का बना हआ कड़ा बंधा हआ था िजस पर कढ़ाई िकया हआ नाग वाले ओऽम का तीक
िच बना था। उस फणदार लबादे वाले यि ने अिधपित क ओर िबना मुड़े कहा, ‘िव ु न,
तु हारा तीक िच िदख रहा है। उसे अंदर कर लो और अपने कवच को कस लो।’
लि जत िव ु न ने त काल ही अपना हार अंदर कर िलया और अपने कंधे क बगल म
लगी डो रय को ख चकर सीने पर लगे कवच को कस िलया।
‘ वामी, मा क िजए,’ िव ु न ने कहा, ‘कदािचत हम आगे बढ़कर देख लेना चािहए
िक यह मंदार पवत क ओर जाने वाला माग है अथवा नह । एक बार जब हम यह जान जाएं गे तो
हम िनि त हो जाएगा िक हमारा गु चर सही था। मुझे परू ा िव ास है िक हम वापस लौटकर तब
उसका अपहरण कर सकते ह। हम लोग वैसे भी सं या म बहत कम ह। हम इस समय कुछ भी
जोिखम नह उठा सकते।’
उस फणदार लबादे वाले यि ने शांित से उ र िदया, ‘िव ु न, या मने आ मण का
आदेश िदया है? तब कहां से हमारी सं या कम होने क बात आती है? और हम लोग मंदार पवत
क िदशा म जा रहे ह। कुछ घंटो का िवलंब आसमान नह िगरा देगा। अभी के िलए, हम केवल
इनका पीछा करना है।’
िव ु न ने मुंह का सारा थक
ू िनगल िलया। वह अपने वामी के िवचार का िवरोध करने
से अिधक कुछ भी घण
ृ ा नह करता था। आिखरकार वे उसके वामी ही थे िज ह ने ऐसे िवरले
सय
ू वंशी क खोज क थी जो उनके उ े य के िलए सहानुभिू त रखता था। यह भेदन उ ह जड़ से
उखाड़ फकने को संभव करे गा और मेलहू ा क आ मा को न करे गा। उसने धीरे से कहा,
‘लेिकन वामी, आपको पता ही है िक रानी को िवलंब पसंद नह है। लोग के म य अशांित
फै लने क ि थित बनती जा रही है। उससे संभवत: यान क ण समा होता जा रहा है।’
फणदार लबादे वाला यि तेजी से मुड़ा। उसका शरीर ोध को दशा रहा था लेिकन
उसका वर शांत था, ‘म अपना यान क ण नह खो रहा हं। यिद तुम जाना चाहते हो तो जा
सकते हो। तु ह तु हारा धन िमल जाएगा। यिद मुझे करना पड़ा तो म अकेला क कर लंग
ू ा।’
अपने नेता क यह दुलभ भावना देखकर त ध िव ु न ने तुरंत ही अपनी बात बदल दी,
‘नह , वामी। म वह नह कह रहा था। मुझे मा कर। म आपके साथ तब तक रहंगा जब तक
िक आप मुझे जाने के िलए नह कहते। जब हमने शताि दय तक ती ा क है तो कुछ घंटे से
कुछ अंतर नह पड़े गा।’
वह पलटन राजसी सवारी का पीछा करती रही।
‘अवधारणा मक तर पर सोमरस कैसे काय करता है, वह बहत ही सरल है,’ बहृ पित ने कहा,
‘जो लगभग असंभव काय था, वह था इस अवधारणा को मत
प देना। यह भगवान
ाक
ू
ितभा थी। जय ी
ा!’
‘जय ी
ा,’ िशव, कनखला और नंदी ने एकसाथ कहा।
‘इससे पहले िक हम यह समझ िक कैसे यह औषिध बढ़ती आयु क ि या को नाटक य
ढं ग से धीमा कर देती है, उससे पहले हम यह समझना होगा िक हम जीिवत या रखता है,’
बहृ पित ने कहा, ‘एक मौिलक व तु है, िजसके िबना हमम से कोई भी जीिवत नह रह सकता
है।’
िशव ने बहृ पित को इसक या या करने क आशा म देखा।
‘और वह मौिलक व तु है ऊजा,’ बहृ पित ने या या क , ‘जब हम चलते ह, बातचीत
करते ह, सोचते ह अथात जब हम वो कुछ भी करते ह, िजससे हम जीिवत कहा जाता है, तो हम
ऊजा का उपयोग करते ह।’
‘हमारे लोग के बीच म भी इसी कार क अवधारणा है,’ िशव ने कहा, ‘अंतर केवल इतना
है िक हम उसे शि कहते ह।’
‘शि ?’ आ यचिकत बहृ पित ने कहा, ‘मनोरं जक। यह श द कई शताि दय से ऊजा को
बताने के िलए यु नह हआ है। यह पा ड्य लोग का श द था, जो भारतवष के सभी लोग के
पवू ज थे। या आपको पता है िक आपका कबीला कहां से आया है? उनका वंश या है?’
‘म इसके बारे म कुछ िनि त नह बता सकता, लेिकन मेरे कबीले म एक व ृ मिहला है
िजसका दावा है िक उसे हमारे इितहास क परू ी जानकारी है। जब वह देविग र आती है तो
संभवत: हम उससे पछ
ू ना चािहए।’
‘संभवत: हम ऐसा करना चािहए,’ बहृ पित मु कुराया, ‘चिलए पुन: हम अपनी चचा पर
वापस लौटते ह िक हमारा शरीर िबना ऊजा के कुछ भी नह कर सकता। तो यह ऊजा कहां से
आती है?’
‘जो हम भोजन करते ह, उससे,’ नंदी ने भी ता से सुझाव िदया। अंतत: उसे इतने मह वपण
ू
यि य के म य बोलने का आ मिव ास आता जा रहा था।
‘िब कुल ठीक। जो भोजन हम करते ह, वह ऊजा का संचयन करता है, िजसे बाद म हम
उपयोग कर सकते ह। इसी कारण से जब हम भोजन नह करते ह तो हम दुबलता महसस
ू करते
ह। हालांिक मा भोजन करने से ही हम ऊजा ा नह करते ह। हमारे शरीर के अंदर िकसी
व तु ारा उसे संचािलत करना होता है तािक हम उसका उिचत उपयोग कर सक।’
‘िब कुल सही,’ िशव ने सहमित दी।
‘भोजन को ऊजा म बदलने का काय हवा करती है िजससे हम ास लेते ह,’ बहृ पित ने
कहना जारी रखा था, ‘हवा म बहत कार के गैस होते ह। उनम से एक को ाण वायु
(अॉ सीजन) कहा जाता है, जो हमारे भोजन के साथ िति या करके ऊजा मु करता है। यिद
हम ाण वायु ा न हो तो हमारा शरीर ऊजा क कमी से भख
ू ा त ( ुधाकातर) हो जाएगा
और हमारी म ृ यु हो जाएगी।’
‘लेिकन यह तो वह ि या है जो हम जीिवत रखती है,’ िशव ने कहा, ‘इससे औषिध का
या लेना-देना है? औषिध को तो उन कारण के िलए काम करना है जो बुढ़ापा, कमजोरी एवं
म ृ यु को लाता है।’
बहृ पित मु कुराया, ‘जो मने आपको बताया उसका आपके व ृ होने से अव य कुछ लेनादेना है। य िक ऐसा तीत होता है िक कृित म संवेदना है। वही व तु जो हम जीिवत रखती है,
हम व ृ बनाने एवं अंतत: म ृ यु तक ले जाने का कारण बनती है। जब ाण वायु भोजन के साथ
िति या करके ऊजा को मु करती है तो साथ ही यह जारणक ा नामक वतं व छं द त व
भी मु होता है। ये जारणक ा िवषा भी होते ह। जब आप िकसी फल को बाहर रखते ह और
वह खराब हो जाता है तो इसका कारण है िक उसका जारण हो चुका है अथवा जारणक ा ने
उसके साथ िति या करके उसे सड़ा िदया है। इसी कार क जारण ि या धातुओ ं के
यीकरण (जंग लगने) का भी कारण बनती है। यह उस नई धातु के साथ िवशेष प से होता है,
िजसका हमने आिव कार िकया है, लोहा। ाणवायु हमारे भोजन को ऊजा म प रवितत करती है।
िकंतु साथ ही यह हमारे शरीर म जारणक ाअा क भी मुि करती है, जो हमारे अंदर िति या
करने लगता है। हम अंदर से ही जंगरोिधत हो जाते ह और इसी कारण व ृ ाव था और म ृ यु को
ा होते ह।’
‘अि नदेव भला कर,’ नंदी आ य म बोला, ‘वही व तु जो हम जीवन देती है, वही धीमे-धीमे
हम म ृ यु भी देती है?’
‘हां,’ बहृ पित ने कहा, ‘इसके बारे म थोड़ा िवचार कर। हमारा शरीर उन सभी व तुओ ं का
भंडारण करता है िजनक उसे बाहरी जगत से उ रजीिवता के िलए आव यकता होती है। वह
पया भोजन संिचत करता है तािक यिद आप कुछ िदन तक भोजन नह भी करते ह तो आपक
म ृ यु नह होती है। वह जल भी पया मा ा म भंडार करता है तािक कुछ िदन क यास से
आपक म ृ यु नह होती है। यह तािकक भी तीत होता है, या म सच कह रहा हं? यिद आपके
शरीर को िकसी व तु क आव यकता होती है तो यह कुछ न कुछ इस हे तु भी रखा करता है
तािक इस कमी क पिू त कर सके।’
‘िब कुल,’ िशव सहमत हआ।
‘उधर दूसरी ओर, शरीर पया ाणवायु का भंडारण कुछ िमनट से अिधक देर तक नह
करता है, जो हम जीिवत रखने के िलए सबसे अिधक मह वपण
ू त व है। इसका अथ समझना
किठन है। इसक एकमा या या यही हो सकती है िक शरीर इस ाणवायु क सुध को िवष के
समान भी समझता है। अत: इसका भंडारण हािनकारक हो सकता है।’
‘तो िफर भगवान
ा ने या िकया?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘बहत शोध करने के प ात भगवान
ा ने सोमरस का आिव कार िकया िजसका पान
करने पर यह जारणक ा से िति या करता है, उसे सोख लेता है और वेद तथा मू के ज रये
शरीर से बाहर िनकाल देता है। इस सोमरस के कारण शरीर म जारणक ा नह रह पाता है।’
‘ या इसी कारण जब सोमरस पीने का बाद पहली बार पसीना िनकलता है तो वह िवषा
होता है?’
‘हां। सोमरस के पान के बाद जो वेद बाहर िनकलता है वह िवशेषकर हािनकारक होता है।
इतना ही नह इस बात को भी याद रिखए िक सोमरस के पान करने के बाद वेद एवं मू कई
वष तक िवषा रहता है। अत: इसे आपको अपने शरीर से बाहर तो िनकालना है और साथ म
यह भी सुिनि त करना है िक यह िकसी अ य पर भाव न करे ।’
‘अ छा, तो इसी कारण से मेलहू ावासी वा य िव ान म आस
ह?’
‘हां। इसी कारण से येक मेलहू ावासी को दो व तुओ ं क िश ा शैशवाव था से ही दी जाती
है, जल एवं वा य िव ान। जल उन सभी बिह: ािवय का सबसे अ छा सो ता है जो सोमरस
सज
ृ न करता है और िवष का उ सजन करता है। मेलहू ावािसय को बताया जाता है िक आप
बा टी भर-भरकर जल का पान कर। और िजन व तुओ ं को धोया जा सकता है उसे अव य धोएं !
मेलहू ावासी िदन म कम से कम दो बार नान करते ह। येक अपमाजन एक िवशेष कमरे म
िकया जाता है और िवषा एवं गंदे जल-मल को जल-मल िनकासी ढक हई नािलय ारा
सुरि त ढं ग से नगर के बाहर पहंचा िदया जाता है।’
‘ वा य िव ान का कड़ा मानक!’ िशव मु कुराया य िक उसे क मीर म पहले ही िदन
इस बारे म आयुवती के वे कड़े वचन याद आ गए थे। उसने पछ
ू ा, ‘सोमरस का उ पादन कैसे होता
है?’
‘इसके उ पादन म बहत किठनाइय का सामना करना पड़ता है। इसके िलए ढे र सारी
आव यक सामि य क आव यकता होती है जो सरलता से उपल ध नह होती ह। उदाहरण के
िलए संजीवनी व ृ । इस सा ा य म इस व ृ का रोपण वहृ द तर पर िकया जाता है। इसके
उ पादन क ि या के प रणाम व प अ यिधक ताप िनकलता है। इस ि या के दौरान हम
अ यिधक जल क आव यकता होती है तािक िम ण को यथावत रखा जा सके। ि या ारं भ
करने के पवू संजीवनी व ृ क शाखाओं का सर वती नदी के जल के साथ मंथन िकया जाता है।
अ य ोत का जल इस ि या म भावी नह होता है।’
‘वह जो िविच
वर मुझे हमेशा सुनाई देता है, या उसी मंथन का ह?’
‘यह वा तव म उसी क विन है। हमारे पास िवशालकाय मंथन उपकरण ह जो इस पवत के
आधार पर एक गुफा म ि थत है। सर वती का जल एक जिटल ि या वाली नहर क यव था
से यहां लाया जाता है। जल को एक अ यिधक िवशाल कुंड म संिचत िकया जाता है, िजसे हम
ेमभाव से सागर कहते ह।’
‘सागर? एक समु ? आप एक कंु ड के पानी को इस नाम से पुकारते ह?’ आ यचिकत
िशव ने पछ
ू ा य िक उसने इसके बारे म लोक कथा सुनी थी िक एक अ यिधक िवशाल एवं
अंतहीन जलिपंड को सागर कहा जाता है।
‘यह थोड़ी अ युि है,’ बहृ पित ने मु कुराहट के साथ वीकार करते हए कहा, ‘िकंतु
यिद आप उसे देखगे तो उसके आकार को देखने के बाद अनुभव करगे िक हमारा इस नाम से
पुकारना उतना अनुिचत भी नह है।’
‘अ छा तो ठीक है, म अव य ही इन सभी सुिवधाओं को देखना पसंद क ं गा। कल रात जब
हम आए थे तो बहत देर हो चुक थी, इसिलए मने अभी तक इस पहाड़ का बहत कम ही िह सा
देखा है।’
‘म या भोजन के उपरांत म आपको िदखाने ले चलंग
ू ा,’ बहृ पित ने कहा।
िशव उ र म धीमे से मु कुराया। वह कुछ कहने वाला था, लेिकन कनखला और नंदी को
देखकर उसने वयं को रोक िलया।
बहृ पित ने उस िहचिकचाहट को देख िलया था। उसने महसस
ू िकया िक िशव कुछ पछ
ू ना
चाहते थे, िकंतु नंदी एवं कनखला क उपि थित म वे पछ
ू नह पा रहे थे। बहृ पित उनक ओर
मुड़ा और बोला, ‘मेरा िवचार है िक िशव मुझसे कुछ पछ
ू ना चाहते ह। या म आप लोग से बाहर
ती ा करने का अनुरोध कर सकता हं?’
यह बहृ पित ारा आदर ाि क माप को दशाता था िक कनखला तुरंत ही बाहर जाने के
िलए खड़ी हो गई। उसने नम ते िकया और बाहर चली गई। नंदी ने उसका अनुसरण िकया।
बहृ पित एक मु कान के साथ िशव क ओर मुड़ा, ‘आप वह
य नह पछ
ू ते िजसे पछ
ू ने के
िलए आप आए ह?’
अ याय - 9
े और उसका प रणाम
म
‘म उनके सामने आपसे यह
पछ
ू ना नह चाहता था। उनक आ था बहत अिधक है,’ एक
यं यपण
ू हंसी के साथ िशव ने कहा। वह बहृ पित को चाहने लगा था। उसे ऐसे यि य के साथ
रहना अ छा लगता था जो उसे अपने समक समझते थे।
बहृ पित ने सहमित म िसर िहलाया, ‘म समझ सकता हं, िम । आप या पछ
ू ना चाहते ह?’
‘म ही य ?’ िशव ने पछ
ू ा, ‘ य इस सोमरस ने मेरे ऊपर ऐसा भाव डाला? हो सकता है
िक मेरा गला नीला हो, लेिकन मुझे नह पता िक म कैसे सय
ू वंिशय का र क बन सकता हं।
स ाट मुझसे कहते ह िक म वह यि हं जो भु ी राम के अधरू े काय को परू ा क ं गा और
चं वंिशय का नाश क ं गा।’
‘उ ह ने आपसे यह कहा?’ बहृ पित ने कहा। उसक आंख आ य म खुली रह गई ं, ‘स ाट
कभी-कभी उबाऊ हो सकते ह। िकंतु सं ेप म कहं तो जो उ ह ने कहा वह पण
ू स य नह है।
पौरािणक गाथा यह नह कहती िक नीलकंठ सय
ू वंिशय क र ा करगे। पौरािणक गाथा दो बात
कहती है। थम, नीलकंठ स -िसंधु से नह ह गे। और ि तीय, नीलकंठ ‘बुराइय के िवनाशक’
ह गे। मेलहू ावासी यह मानते ह िक इसका अथ है िक नीलकंठ चं वंिशय का िवनाश करगे
य िक वे सचमुच ही दु ह। िकंतु चं वंिशय के िवनाश करने का अथ यह नह है िक
सय
ू वंिशय क र ा हो जाएगी! चं वंिशय के अलावा भी अनेक सम याएं ह, िजनका हम
समाधान करना है?’
‘िकस तरह क सम याएं ? जैसे नागा लोग?’
ऐसा तीत हआ िक बहृ पित एक ण के िलए िहचिकचाया। उसने सावधानीपवू क उ र
िदया, ‘कई सम याएं ह। हम लोग उनके समाधान के िलए किठन यास कर रहे ह। िकंतु पुन:
उस
पर आते ह िक सोमरस का भाव आप पर ऐसा य हआ?’
‘हां, ऐसा य हआ? य मेरा गला नीला हो गया? मेरे शरीर के अध:पतन को रोकने क
बात भल
ू जाइए, सोमरस ने मेरे जोड़ उखड़े हए कंधे और शीतदंश वाले पांव के अंगठ
ू े को भी सही
कर िदया।’
‘इसने घाव को ठीक िकया?’ आ य से भरे बहृ पित ने कहा, ‘यह असंभव है! इसका काय
मा कािलक य एवं रोग को रोकना है न िक घाव को सही करना।’
‘वो तो ठीक है, लेिकन मेरे साथ ऐसा ही हआ है?’
बहृ पित ने कुछ ण के िलए सोचा, ‘इसके िलए हम योग करना होगा तािक हम िकसी
िनि त िन कष पर पहंच सक। य िप िजतना मुझे ान है उसके आधर पर इस समय के िलए म
केवल इतनी ही या या कर सकता हं िक आप िहमालय के उस पार ऊंचे थल से आए ह, या
म सही हं?’
िशव ने िसर िहलाकर सहमित दी।
‘जब आप ऊंचे पवत क ओर जाते ह तो हवा पतली होती जाती है,’ बहृ पित ने कहना
जारी रखा था, ‘पतली हवा म ाणवायु कम हो जाती है। इसका अथ है िक आपका शरीर कम
ाणवायु म जीिवत रहने का आदी था तथा जारणक ा से उसक कम हािन हई थी। अत: जब
सोमरस के ित-जारणक ा का भाव हआ तो उसका भाव आपके शरीर म कुछ अिधक हआ
होगा।’
‘यह एक कारण हो सकता है,’ िशव सहमत था, ‘लेिकन अगर ऐसा था तो मेरे सम त
कबीले को ही ठं डा और नीला हो जाना चािहए था। केवल म ही य ?’
‘यह बहत ही उ म िबंदु है,’ बहृ पित ने माना, ‘िकंतु एक बात बताइए। या आपके
कबीलेवाल ने भी अपनी पवू ि थित वाली शारी रक ि थितय म प रवतन अनुभव िकया है?’
‘वा तव म यह सही है।’
‘तो संभव है िक कम हवा वाले देश म रहने का कारण इसम कुछ न कुछ भिू मका अव य
रखता है। िकंतु आपके सभी कबीलेवाल म नीला गला नह हआ तो इससे प है िक ‘पतली
हवा वाला िस ांत’ संभवत: एक आंिशक या या ही तुत करता है। हम इस पर और अिधक
शोध कर सकते ह। मुझे िव ास है िक इस नीले गले क कोई न कोई वै ािनक या या अव य
होगी।’
िशव ने बहृ पित को यान से देखा य िक उसने बहृ पित के अंितम कथन का आशय
समझते हए पछ
ू ा, ‘आप नीलकंठ क पौरािणक कथा म िव ास नह करते ह, या म सही हं?’
बहृ पित ने थोड़ा असहज प से मु कुराते हए िशव को देखा। वह िशव को पसंद करने
लग गया था और वह िशव को ऐसी कोई बात नह कहना चाहता था िजससे उसका अनादर हो।
िकंतु वह अस य भी नह बोल सकता था, ‘म िव ान म िव ास करता हं। यह सभी व तुओ ं के
िलए एक समाधान एवं औिच य दान करता है। और यिद ऐसा कुछ है जो चम कार क तरह का
तीत होता है तो उसक मा यही या या है िक उसके िलए अभी तक िकसी वै ािनक कारण
क खोज नह हो पाई है।’
‘तो िफर मेलहू ावासी अपनी सम याओं के िलए िव ान क शरण य नह लेते?’
‘इस बारे म म कुछ िनि त नह कह सकता,’ बहृ पित ने सोच क मु ा म कहा, ‘संभवत:
यह इसिलए िक िव ान मतावान है िकंतु ठं डे िदल का वामी है। नीलकंठ से िभ न वह आपके
िलए आपक सम या का समाधान नह करता है। यह मा ऐसे उपकरण दान कर सकता है जो
आपके संघष के िलए आव यक ह । संभवत: इसिलए भी िक अपनी सम याओं के वयं समाधान
ढूंढ़ने क तुलना म लोग को यह मानना सरल तीत होता है िक कोई आएगा जो उनक
सम याओं का समाधान कर देगा।’
‘तो िफर आपको या लगता है िक मेलहू ा म नीलकंठ को या भिू मका िनभानी चािहए?’
बहृ पित ने िशव को सहानुभिू तपवू क देखा, ‘म यह सोचता हं िक एक स चे सय
ू वंशी को
अपने असुर से वयं संघष करना चािहए न िक िकसी और पर इस बात के िलए दबाव डालना
चािहए िक वह उनक सम या का समाधान करे । एक स चे सय
ू वंशी का कत य यह है िक उसे
वयं ही अपनी यो यता एवं शि क अंितम सीमा तक काय करना चािहए। नीलकंठ का
आगमन केवल सय
ू वंशी के यास को दो गुना कर देगा य िक यह सप है िक बुराइय का
संहार िनकट है।’
िशव ने सहमित म िसर िहलाया।
‘ या आप इस बात से िचंितत ह िक आ था के दबाव के कारण आप एक उ रदािय व ले
रहे ह, जो आप नह लेना चाहते और यह आपके िलए बहत तनाव वाला होगा?’ बहृ पित ने पछ
ू ा।
‘नह , मेरी िचंता का िवषय वह नह है,’ िशव ने उ र िदया, ‘यह एक बहत ही सुंदर
सा ा य है और म अव य इसक मदद करना चाहता हं, िजतनी म कर सकता हं। लेिकन तब
या होगा जब आपके लोग जो मुझ पर अपनी सुर ा के िलए परू ी तरह से िनभर ह और वह
सुर ा म नह कर सका? इस समय म यह नह कह सकता िक म वह सब कर पाऊंगा, िजनक
मुझसे आशा क जा रही है। तो िफर म कैसे कह सकता हं?’
बहृ पित मु कुराया। उसक अपनी िनयम क भाषा म कोई यि यिद अपने वचन एवं
कथन को गंभीरता से लेता है तो वह स मान के यो य होता है, ‘आप एक भले यि
तीत होते
हो, िशव। आप संभवत: आने वाले िदन म बहत दबाव का सामना करगे। सावधन रह, िम । नीले
गले के कारण एवं जो यह आ था उ प न करता है, उसके कारण आपका िनणय इस सम त
भिू म के िलए अ यंत ही बड़े प रणाम वाला होगा। याद रिखए, एक यि लोककथा का नायक है
अथवा नह उसका िनणय इितहास लेता है न िक कोई भिव यवाणी।’
िशव मु कुराया। वह खुश था िक आिखरकार उसे एक ऐसा यि िमल गया था जो उसक
िवपदा को समझ सका था। और उससे भी मह वपण
ू बात थी िक वह कुछ सुझाव देने के िलए भी
सहमत था।
सं या हए बहत समय बीत चुका था। बहृ पित के साथ परू ी दोपहर मंदार पवत क बहत स न
कर देने वाली या ा के बाद िशव अपने िब तर पर लेटा हआ एक पु तक पढ़ रहा था। बगल क
मेज पर उसका समा हो चुका िचलम रखा हआ था।
‘असुर के िव
सचाई क यु ’ नामक पु तक के कुछ पहलू उसे सोचने पर िववश कर
रहे थे। असुर लोग रा स थे और देव के ित उनक शारी रक घण
ृ ा के कारण उनका असुर क
तरह यवहार करना अपेि त था। वे अवसर पाते ही देव के नगर पर आ मण करते थे तािक
देव को बलात अपनी तरह से जीने के िलए बा य कर सक। यह िशव के िलए आ य का िवषय
नह था। जो उसे अनपेि त था वह था कुछ देव के ऐसे यवहार जो िवजय के अंधे अनुसरण म
अनैितकता क सीमा तक लांघ गए थे। भगवान
वयं यि गत प से महान थे, लेिकन
ऐसा तीत होता था िक वहृ द सचाई को देखते हए उ ह ने देव के अिववेक क उपे ा कर दी थी।
इस सोच के म य म ही िशव ने िव ामगहृ के बाहर कुछ हलचल सुनी। उसने थम तल के
छ जे से बाहर देखा तो राजसी कािफले का आगमन हो चुका था। अ र नेमी सैिनक ने वेश
ार पर अिभवादन हे तु एक बहत ही सलीकेदार पंि बना ली थी। दूर दूसरी ब घी से कुछ लोग
उतरते हए तीत हए। िशव ने मान िलया था िक वह राजसी प रवार ही होगा। आ य इस बात का
था िक ऐसा तीत हो रहा था िक अ र नेमी राजसी प रवार के वागत म कोई अनाव यक
हड़बड़ी नह िदखा रहे थे। वहां पर सेवक का कोई सामा य दास व का भाव नह िदख रहा था
जो राजसी प रवार के सम िदखना चािहए था। िशव को ऐसा लगा िक इसका कारण यह होगा
य िक मेलहू ावािसय म समक ता क धुन सवार रहती है।
य िप, िशव क इस समक ता िस ांत को उस समय चुनौती िमल गई जब उसने पांचवी
ब घी को देखा िजससे पवते र उतरा। यहां ऐसा तीत हआ िक अ र नेमी घबराहट म थे।
व र अिधपित पवते र के पास भागा-भागा गया और उसने मेलहू ा के सैिनक तरीके से
अिभवादन िकया, जत
ू क एड़ी से खटाक क विन, शरीर सावधान क मु ा म जकड़ा हआ और
दािहने हाथ क मु ी को बांधकर ती ता से बाएं सीने पर धरना। इस अिभवादन के बाद अिधपित
नीचे सेना के धान सेनानायक के स मान म झुका। उसके पीछे खड़े सैिनक ने भी अपने
अिधपित क मु ा को दुहराया। पवते र ने इसके उ र म औपचा रक प से अपने िसर को थोड़ा
झुकाते हए अिभवादन िकया। वह आगे बढ़कर सैिनक का िनरी ण करने लगा और अिधपित
उसके दो कदम पीछे चल रहा था।
िशव क भावना थी िक पवते र के िलए यह स मान मा उसके पद के कारण नह था।
वह उस यि के िलए था। िचड़िचड़े पन के साथ-साथ पवते र एक बहादुर यो ा भी था। एक
सैिनक का सेनापित तभी एक यि क भांित आदर पाता है जब उसके वचन स य होते ह। िशव
अ र नेमी सैिनक क आंख म उस आदर क शि देख रहा था, जो अपने सेनानायक का
यान पाकर झुक रहे थे।
कुछ समय के बाद ही िशव ने अपने ार पर ह क खटखटाहट सुनी। उसे यह जानने क
आव यकता नह थी िक ार के बाहर कौन हो सकता था। एक गहरी सांस लेकर उसने ार
खोल िदया।
जैसे ही द अंदर आने लगा तो उसक ि थर मु कुराहट अ य हो गई य िक गांजे क
अप रिचत गंध ने उसक सुिध पर धावा बोल िदया। कनखला जो स ाट क दाई ं ओर थी वह भी
परू ी तरह से हैरान-परे शान िदखाई दी।
‘यह दुगध कैसी है?’ द ने बहृ पित से पछ
ू ा जो उसके बाई ं ओर खड़ा था, ‘संभवत:
आपको भु का कमरा बदल देना चािहए। आप इनको ऐसी असुिवधा म कैसे रख सकते ह?’
‘मुझे ऐसा तीत होता है िक िशव को इस सुगंध से सुिवधा होती है, महाराज,’ बहृ पित ने
कहा।
‘यह एक ऐसी गंध है जो मेरे साथ ही या ा करती है, महाराज,’ िशव ने कहा, ‘मुझे यह
पसंद है।’
द चिकत था। उसके मुख ने इस िवकषण को छुपाने का कोई यास नह िकया। लेिकन
ज दी ही वह अपने पुराने व प म आ गया, ‘िव न डालने के िलए मा कर, भु,’ द ने कहा।
उसक मु कुराहट वापस लौट चुक थी, ‘मने सोचा िक म आपको सिू चत कर दंू िक म और मेरा
प रवार िव ामगहृ म पहंच चुके ह।’
‘यह तो आपका बड़ पन है, महाराज,’ िशव ने औपचा रक नम ते के साथ कहा।
‘म और मेरा प रवार कल ात: आपके साथ ना ता करने के स मान क आशा रखता है,
भु।’
‘यह तो मेरे िलए स मान क बात होगी, महाराज।’
‘अित सुंदर। अित सुंदर,’ द का चेहरा िखल उठा जैसे ही वह उस
को पछ
ू ने के िलए
तैयार हआ जो उसके मन को चंचल कर रहा था, ‘आपका सोमरस के बारे म या सोचना है,
भु? या यह सच म देव का पेय नह है?’
‘जी हां महाराज। यह अव य ही चम का रक पेय तीत होता है।’
‘यह हमारी स यता का आधार है,’ द ने कहना जारी रखा था, ‘जब एक बार आप हमारी
इस धरती क या ा पण
ू करगे तब आपको हमारी जीवन जीने के अ छे ढं ग का ान होगा। मुझे
परू ा िव ास है िक इसक र ा करने के िलए आप अपने दय म कुछ न कुछ अव य ा करगे।’
‘महाराज, म तो अभी से ही आपके सा ा य के िलए बहत ही उ च िवचार रखता हं। यह
सचमुच म ही एक महान सा ा य है, जो अपने नाग रक से बहत ही अ छा यवहार करता है। म
इस पर संदेह नह कर सकता िक यह जीवन जीने के ढं ग क र ा यो य है। हालांिक िजसके
बारे म मुझे कुछ िनि त नह है, वह यह है िक म या कर पाऊंगा। आपक स यता अ यिधक
गित कर चुक है और म एक साधारण कबीलेवाला हं।’
‘आ था एक बहत ही शि शाली अ होता है, भु,’ द ने कहा। उसके हाथ िनवेदन म
जुड़े हए थे, ‘बस केवल आव यकता इस बात क है िक िजतनी आ था हमारी आप म है, उतनी
ही आप म आप क हो जाए। मुझे परू ा िव ास है िक यिद आप हमारे सा ा य म कुछ िदन और
रहगे और हमारे लोग पर आप क उपि थित का भाव देखगे तो आप अव य जान जाएं गे िक
आप या कर सकते ह।’
िशव ने द के बालक जैसे िव ास के िव
िववाद करना छोड़ िदया।
बहृ पित ने िशव को राहत पहंचाने से पवू उसे आंख से संकेत िकया, ‘महाराज, िशव थके
हए से तीत होते ह। आज उनके िलए बहत लंबा िदन था। संभवत: अब उ ह आराम करना चािहए
और हम कल पुन: िमल सकते ह।’
द मु कुराया, ‘संभवत: आप सही ह, बहृ पित। आपको परे शान करने के िलए मुझे मा
कर, भु। हम कल ात: ना ते पर आपक ती ा करगे। आपक राि शुभ हो।’
‘शुभ राि ,’ िशव ने भी अिभवादन िकया।
द बार-बार हर कंदील को परे शान होते हए देख रहा था जबिक सती शांित से मेज पर ती ा
कर रही थी। उसक बाई ं ओर कनखला, बहृ पित एवं पवते र थे। उसक दािहनी ओर एक
खाली कुस रखी हई थी। नीलकंठ के िलए, सती ने सोचा। उस खाली कुस क बगल म सती
बैठी हई थी और उसक दािहनी ओर उसक माता वी रनी बैठी हई थ । द ने बहत सोचिवचारकर बैठने क उिचत यव था पर संतोष य िकया था।
सती ने सम त यव था का भार उठाया था। औपचा रकता से प रपण
ू मेज एवं कुिसय क
यव था क गई थी, जबिक सामा यत: मेलहू ा के लोग एक छोटी मेज एवं बैठने के िलए मसनद
क यव था पसंद करते थे। यारे केले के प क जगह सोने क थाली ने ले ली थी। वाद
बढ़ाने वाले कु हड़ या िम ी क यािलय क जगह चांदी के िगलास ने ले ली थी। उसने सोचा
िक उसके िपता ना ते के दौरान मुलाकात के िलए कुछ अिधक ही आशांिवत थे। उसने देखा था
िक वे उन कई तथाकिथत नीलकंठ से आस लगाए हए थे। वे सभी चम का रक यि कपटी
िनकले थे। उसने आशा क थी िक उसके िपता को एक बार िफर उसी िनराशा का सामना न
करना पड़े ।
िढं ढोरा पीटने वाले ने िशव एवं नंदी के आने क घोषणा क । जैसे ही द भि भाव से भु
के वागत के िलए खड़ा हआ तो पवते र ने अपने स ाट के इस दास व भरे यवहार पर अपनी
आंख क पुतिलयां घुमाई ं। वह इस यवहार से अ स न तीत हआ। उसी समय सती एक िगलास
उठाने झुक जो उसके हाथ से छूटकर फश पर िगर कर झ नाहट क एक ती विन उ प न
कर गया था।
‘ भु,’ द ने मेज के चार तरफ बैठे यि य क ओर संकेत कर उनका प रचय देते हए
कहा, ‘कनखला, बहृ पित, पवते र को तो आप जानते ही ह। वह दािहनी ओर मेरी प नी रानी
वी रनी ह।
िशव न ता से मु कुराया जब उसने वी रनी के औपचा रक नम ते का उ र एक स य
नम ते से िदया।
‘और उसक बगल म,’ द ने अपनी खुशी न छुपाते हए एक बड़ी मु कान के साथ कहा,
तब तक हाथ से छूटे िगलास को उठाकर सती खड़ी हो रही थी, ‘मेरी पु ी है, राजकुमारी सती।’
िशव ने जब अपने जीवन को अपनी ओर घरू ते देखा तो एकबारगी उसे लगा िक उसक
सांस क गई थी। उसके िदल क धड़कन अ यिधक ती गित से लया मक हो चुक थी। वह
दावे के साथ कह सकता था िक उसे इस िव क सबसे अिधक पसंदीदा सुगंध के एक झकोरे
क अनुभिू त हई थी: सय
ू ा त के समय पर होने वाली उस पिव झील क मीठी सुगंध क । पवू क
भांित ही वह मं मु ध था।
उस कमरे म एक असुिवधाजनक शांित छाई हई थी। िसवाय उस विन के जो सती के हाथ
से पुन: एक बार िगलास के छूटने से फश पर गंज
ू रही थी। उस झ नाहट क विन ने कुछ पल
के िलए सती क ि थर ि म िव न डाला। उसने अितमानवीय यास से अपने चेहरे पर आए
त ध रहने वाले भाव को िनयं ण करने म सफलता पाई। उसक सांस बहत ही ती ता से चल
रही थी जैसे उसने अभी-अभी िशव के साथ युगल न ृ य िकया हो। वह केवल इस बात को नह
जान रही थी िक उसक आ मा भी वही कर रही थी।
द ने उस हत भ हए युगल जोड़े को आनंदाितरे क से देखा। वह उस िनदशक क भांित था
िजसने अपने नाटक का दशन उसी तरह का देखा था जैसे िक वह अपे ा कर रहा था। नंदी
िशव के पीछे खड़ा था जो सती के मुख के भाव को देख सकता था। सहसा उसे सब कुछ प
हो चुका था। न ृ य का अ यास, िवकम पश, शुि करण और भु का िवषाद। य िप उसे आंिशक
प से डर भी लग रहा था, िकंतु उसने सोच िलया था िक उसे या करना था। यिद भु क यही
इ छा थी तो वह उनक इस इ छा क पिू त के िलए कुछ भी करे गा। बहृ पित ने उस युगल जोड़े
को खाली िनगाह से घरू ा। वह अनपेि त प रि थित से होने वाले प रणाम के बारे म गहरी सोच
म था। पवते र ने इस प रि थित को थोड़ा भी न छुपाते हए अ िच से देखा। जो कुछ हो रहा था
वह अनुिचत था, अनैितक और उससे भी अिधक अवैध।
‘ भु,’ द ने अपनी दाई ं ओर पड़ी खाली कुस क ओर इशारा कर कहा, ‘कृपया अपना
थान हण कर और हम ारं भ कर।’
िशव ने कोई िति या नह दी। उसने द के श द को सुना नह था। वह उस जगत म था
जहां मा एक ही विन थी जो सती क गहरी सांस के सामंज यपण
ू संगीत से आ रही थी। यह
एक ऐसी विन थी िजस पर वह आनंदपवू क अगले सात ज म तक न ृ य कर सकता था।
‘ भु,’ द ने पुन: कहा। इस बार थोड़े ऊंचे वर म।
उस वर से बािधत हए िशव ने अंतत: द को ऐसे देखा जैसे वह िकसी दूसरी दुिनया से
िनकलकर आया हो।
‘कृपया अपना थान हण कर, भु,’ द ने कहा।
‘जी हां, िन संदेह महाराज,’ शिमदगी से अपनी ि
बचाते हए िशव ने कहा।
जब िशव बैठ गया तो भोजन परोसा गया। मेलहू ावािसय का यह एक संुदर एवं साधारण
यंजन था, जो वे सुबह के ना ते म पसंद करते थे। चावल एवं कुछ दाल को उबालकर उसे एक
गाढ़े ढं ग से घ ट िदया जाता था। इसके छोटे-छोटे िह से केले के प म लपेटकर उसे एक
बेलनाकार गोलाकार फलक म भाप से पकाया जाता था। यह खा पदाथ केले के प े म िलपटा
हआ ही परोसा जाता था और साथ म मसाल वाली मसरू क दाल वाद के िलए परोसी जाती थी।
इस भो य का नाम इडली था।
‘आप नीलकंठ ह?’ अभी तक इससे त ध सती ने कोमलता से फुसफुसा कर िशव से पछ
ू ा,
जो अपनी सांस म इि छत प से कुछ शांित ला पाई थी।
‘लगता तो ऐसा ही है,’ िठठोली क हंसी के साथ िशव ने उ र िदया, ‘ भािवत हई ं?’
सती ने इस
का उ र अिभमान से उठी हई भ ह से िदया। उसका मुखौटा वापस आ
चुका था, ‘म य भािवत होऊंगी?’
या?
‘ भु,’ द ने कहा।
‘किहए, महाराज,’ द क ओर मुड़ते हए िशव ने कहा।
‘म सोच रहा था,’ द ने कहा, ‘हमारी पज
ू ा शाम तक समा हो जाएगी। इसके बावजदू हम
यहां बहृ पित के साथ समी ा करने के िलए दो िदन तक कना पड़े गा। वी रनी एवं सती को
यहां रखने का कोई अथ नह है य िक अनाव यक ही इतना समय उनके िलए उबाऊ होगा।’
‘ध यवाद महाराज,’ बहृ पित ने बनावटी हंसी के साथ कहा, ‘मंदार पवत पर राजसी
प रवार का जो िव ास आपने िदखाया है वह अ यंत ही उ साहव क है।’
मेज पर बैठे सभी लोग क हंसी छूट गई। द भी अपनी िवशाल दयता के भाव को िदखाते
हए हंस पड़े ।
‘आप जानते ह मेरे कहने का ता पय या था बहृ पित!’ द ने अपना िसर िहलाते हए
कहा। िशव क ओर मुड़कर उ ह ने कहा, ‘जो मुझे पता है, भु, आप कल ात: देविग र के िलए
थान करने वाले ह। मेरे िवचार से यह अ छा रहे गा यिद वी रनी एवं सती भी आपके साथ ही
चली जाएं । बाक बचे लोग दो िदन के बाद वहां पहंच जाएं गे।’
सती ने आशंिकत होकर देखा। वह यह नह जानती। पता नह य , लेिकन उसका मन
कह रहा था िक वह इस योजना से सहमत न हो। दूसरी ओर उसका मन यह भी कह रहा था िक
उसे डरने क कोई आव यकता नह थी। उसने अपने प चासी वष एक िवकम ी के प म
िबताए थे और इन वष म उसने िनयम का उ लंघन कभी नह िकया था। उसके पास इतना
आ म-िनयं ण था िक वह जान सकती थी िक या सही था और या गलत।
िशव के पास वैसी कोई सोच नह थी। उसने प
प से स न होकर कहा, ‘मेरे िवचार
से यह बहत अ छा सुझाव है, महाराज। नंदी और म दोन महारािनय के साथ देविग र तक एक
साथ या ा कर सकते ह।’
‘तो िफर ठीक है,’ द ने कट प से संतु होकर कहा, ‘पवते र आप कृपया यह
सुिनि त कर िक अ र नेमी मागदशक दो भाग म िवभ हो वापसी क या ा क तैयारी कर।’
‘महाराज, म नह समझता िक यह बुि मानी है,’ पवते र ने कहा, ‘अ र नेमी का एक
बड़ा दल देविग र म अ य िनयुि हे तु तैयारी म लगा हआ है। साथ ही मंदार पवत पर जो दल है
वह िकसी भी प रि थित म घटाया नह जा सकता है। हमारे पास दो कािफल के िलए पया
सैिनक नह ह। संभवत: यिद हम सभी लोग एक साथ परस या ा कर तो उिचत होगा।’
‘मुझे िव ास है िक इसम कोई सम या नह होगी,’ द ने कहा, ‘और आप हमेशा कहते ह
िक येक अ र नेमी सैिनक पचास दु मन के बराबर है? तो िफर ठीक है। भु नीलकंठ,
वी रनी एवं सती कल ात: ही थान करगे। कृपया आप सारी यव था कर द।’
पवते र अ स नता से अपने िवचार म खो गया और िशव एवं सती पुन: एक-दूसरे से
फुसफुसा कर बात करने लगे।
‘आप शुि करण के िलए गए, है न?’ सती ने गंभीरता से पछ
ू ा।
‘हां,’ िशव ने कहा। वह झठ
ू नह बोल रहा था। देविग र म अंितम राि को वह शुि करण
पज
ू ा के िलए गया था। वैसे तो वह नह मानता था िक उसे इसक आव यकता थी। िफर भी वह
जानता था िक जब भी वह सती से िमलेगा तो वह अव य पछ
ू े गी। और वह उससे झठ
ू नह बोलना
चाहता था।
‘लेिकन मेरा मानना है िक यह शुि करण क अवधारणा िब कुल ही वािहयात है,’ िशव ने
फुसफुसा कर कहा, ‘दरअसल, यह िवकम क अवधारणा ही परू ी तरह से गलत है। मेरा िवचार है
िक मेलहू ा म कुछ चीज म से यह एक चीज है जो उिचत नह है और इसम बदलाव लाना चािहए।’
सती ने िशव को ि उठाकर देखा। उसका चेहरा भाव-िवहीन था। िशव ने उसक आंख म
घरू कर देखा तािक उसके मन म या चल रहा था उसे समझ सके। लेिकन उसे केवल खाली
दीवार ही िदखी।
वह अगले िदन के दूसरे हर का ारं भ था जब िशव, वी रनी, सती और नंदी ने सौ अ र नेिमय
के साथ देविग र के िलए थान िकया था। द , पवते र एवं कनखला िव ामगहृ के बाहर
उ ह िवदा करने के िलए खड़े थे। बहृ पित को िकसी योग के कारण वहां जाना पड़ा था।
सभी याि य को एक ही ब घी म बैठना पड़ा य िक िदशा-िनदश के अनुसार कोई
कािफला जब स ाट को लेकर चलता था तो चार बि घयां पथ
ृ क से रखना अिनवाय था। चंिू क
राजसी सवारी पांच बि घय म आई थी, इसिलए इस कािफले के िलए एक ही ब घी बची थी।
पवते र इस बात पर बहत अ स न था िक अपारं प रक तरीके से राजसी प रवार या ा कर रहा
था िजसम कोई छलावा ब घी नह थी, लेिकन उसके िवरोध को द ने अ वीकार कर िदया था।
ब घी के अंदर एक आरामदायक सेज पर बैठी हई सती ने देखा िक िशव पुन: अपना
गुलबू ंद गले पर लगाए हए था। उसने पछ
ू ा, ‘आप अपना गला हमेशा ढककर य रखते ह?’
‘जब कोई यह मेरा नीला गला देखता है तो वह कुछ अिधक ही यान देने लगता है और
उससे म बहत ही असुिवधाजनक महसस
ू करता हं,’ िशव ने उ र िदया।
‘िकंतु आपको तो इसका अ य त होना पड़े गा। यह नीला गला अ य नह हो जाएगा।’
‘सच है,’ िशव ने मु कुराहट के साथ उ र िदया, ‘लेिकन जब तक म अ य त नह हो
जाता, यह गुलबू ंद मेरा कवच है।’
जैसे ही कािफले ने
थान िकया तो पवते र और कनखला द के पास गए।
‘आपको उस यि म इतनी आ था य है, महाराज?’ पवते र ने द से पछ
ू ा, ‘उसने
इतना आदर पाने के िलए अभी तक कुछ भी नह िकया है। वह हमारी िवजय म हमारा नेत ृ व
कैसे कर सकता है जब वह इसके िलए िशि त ही नह िकया गया है? नीलकंठ क यह सम त
अवधारणा ही हमारे िनयम के िव
जाती है। मेलहू ा म उसी यि को वह काय िदया जाता है,
िजसके िलए वह स म हो, उसम वह काय करने क यो यता हो और वह हमारी यव था ारा
िशि त हो।’
‘हम यु क ि थित म ह, पवते र,’ द ने उ र िदया, ‘एक अघोिषत यु , िकंतु यु क
िनि त ि थित म। हम लगभग हर दूसरे स ाह आतंक आ मण का सामना कर रहे ह। ये
कायर चं वंशी सामने से आ मण भी नह करते िक हम उनका सामना कर सक। और हमारी
सेना उनके े म खुला आ मण करने के िलए बहत छोटी है। हमारे ‘िनयम’ काम नह कर रहे
ह। हम चम कार क आव यकता है। िकसी आकि मक लाभ का पहला िनयम है िक चम कार
तभी संभव होता है जब रा ीय िनयम को भल
ू जाएं और आ था रख। मेरी नीलकंठ म आ था है।
और उसी कार हमारे लोग म भी।’
‘िकंतु िशव को अपने आप पर आ था नह है। कैसे आप उसे हमारा र क बलात ही
बनाएं गे, जब वह वयं नह करना चाहता है?’
‘सती यह प रवतन करे गी।’
‘महाराज, या आप अपनी पु ी का चारा क तरह योग करगे?’ सं त पवते र ने पछ
ू ा,
‘और आप वा तव म यह चाहते ह वह र क केवल अपनी कामुकता के कारण हमारी सहायता
करने का िनणय ले!’
‘यह कामुकता नह है!’
पवते र एवं कनखला द क िति या पर त ध होकर चुप रह गए।
‘आपको म िकस कार का िपता िदखाई देता हं?’ द ने कहा, ‘आपको लगता है िक म
इस कार अपनी पु ी का योग क ं गा। संभव है िक वह भु के संग सुिवधा एवं स नता ा
कर ले। उसने पहले से ही बहत दुख झेल रखा है। म उसे खुश देखना चाहता हं। और ऐसा करते
समय यिद हमारे सा ा य का भी भला हो जाए तो इसम हािन ही या है?’
पवते र कुछ कहना चाहता था, लेिकन उसने अभी कुछ नह कहना उिचत समझा।
‘हम चं वंशी आदश को न करने क आव यकता है,’ द ने कहना जारी रखा, ‘और
इसका एकमा उपाय यही है िक व ीप के िनवािसय को हम हमारी जीवनशैली क सुिवधाओं
का लाभ दान कर। एक आम व ीपवासी इसके िलए हमारा आभारी रहे गा, िकंतु चं वंशी
शासक अपनी सारी शि से और हर कार से हम रोकने का यास करगे। वे हमारा सामना
कर सकते ह िकंतु वे चाहे िकतना भी यास कर ल, नीलकंठ के नेत ृ व म लोग का सामना
नह कर सकते। और यिद सती नीलकंठ के साथ है, वे तो कभी भी चं वंिशय के िव
हमारा
नेत ृ व करने से मना नह करगे।’
‘िकंतु महाराज, या आपको सचमुच यह लगता है िक भु हमारे साथ ह गे य िक वे
आपक पु ी से ेम करते ह?’ कनखला ने पछ
ू ा।
‘आपने मु य िबंदु को नह समझा। भु को हमारे प म करने क आव यकता नह है,’
द ने कहा, ‘वे तो पहले से ही हमारी ओर ह। हम एक महान स यता ह। हम चाहे प रपण
ू एवं
सवथा आदश न ह िकंतु महान तो ह ही। इसे नह देखने वाला कोई अंधा ही होगा। नीलकंठ को
हमारा नेत ृ व करने के िलए मा वयं म िव ास एवं ेरणा क आव यकता है। जब वे सती के
िनकट जाते ह तो उनक वयं म आ था ही उ ह े रत कर देगी।’
‘और यह कैसे होगा, महाराज?’ पवते र ने थोड़ा गु से म पछ
ू ा।
‘आपको पता है िक िकसी पु ष के जीवन म सवािधक शि शाली संबल या होता है?’
द ने पछ
ू ा।
कनखला और पवते र ने द क ओर तंिभत होकर देखा।
‘िजसको वह ेम करता है उसे भािवत करने क ती इ छा,’ द ने समझाया, ‘मुझे
देिखए। मने हमेशा अपने िपता को ेम िकया। उनको भािवत करने क मेरी इ छा आज भी मुझे
कुछ करने के िलए े रत करती रहती है। उनके िनधन के बाद भी म कुछ ऐसा करना चाहता हं
िक उ ह गव महसस
ू हो। यह मुझे मेरे उस ार ध क ओर े रत कर रहा है िक जो एक स ाट
होने के नाते सम त भारतवष म सय
ू वंिशय के जीवन के िवशु ढं ग को पुन: थािपत करे । और
जब नीलकंठ म यह इ छा बलवती होगी िक सती उन पर गव कर सके तब वे उस चरम पर पहंच
जाएं गे जहां से उनके ार ध क पिू त होगी।’
पवते र ने गु से से नाक-भ िसकोड़ी य िक वह इस तक से सहमत नह था, लेिकन चुप
रहा।
‘िकंतु यिद सती इससे कुछ अलग चाहती हो तो?’ कनखला ने पछ
ू ा, ‘जैसे िक उसका पित
सारा समय उसके साथ ही िबताए।’
‘मुझे मेरी पु ी के बारे म पता है,’ द ने परू े आ मिव ास से उ र िदया, ‘मुझे यह भी पता
है िक उसे भािवत कैसे िकया जा सकता है।’
‘यह बहत ही िदलच प िवचार है, महाराज,’ कनखला मु कुराई, ‘मा उ सुकतावश म यह
पछ
ू ना चाहती हं िक आपके िवचार म एक ी के जीवन म सवािधक शि शाली संबल या होता
है?’
द खुलकर जोर से हंसा, ‘आप ये य पछ
ू रही ह? या आपको यह पता नह है?’
‘वैसे तो मेरे जीवन का सबसे शि शाली संबल मेरी यह इ छा है िक मेरी सास के उठने से
पहले ही म घर से बाहर िनकल जाऊं!’
द एवं कनखला दोन ने ही जोर से ठहाका लगाया।
पवते र को इसम हंसने वाली कोई बात नह लगी, ‘मुझे मा कर, लेिकन अपनी सास के
बारे म इस कार बोलना उिचत नह है।’
‘ओह शांत हो जाइए पवते र,’ कनखला ने कहा, ‘आप हर चीज को कुछ अिधक ही
गंभीरता से लेते ह।’
‘मेरे िवचार म,’ मु कान िलए द ने कहा, ‘एक
संबल होता है सराहना, ेम और स मान।’
ी के जीवन म सबसे अिधक शि शाली
कनखला मु कुराई और उसने सहमित म िसर िहलाया। उसके स ाट सचमुच ही मानवीय
भाव को समझते ह।
अ याय - 10
फणदार यि
वापस आता है
मं दार पवत क गहराइय से बाहर, सावधानीपवू क छे नी से काटे गए रा ते से जब कािफला
बाहर िनकला तो वी रनी ने ब घी को एक िमनट रोकने का अनुरोध िकया। उस पवत के उपकार
के िलए वी रनी, सती, िशव और नंदी ने नीचे उतरकर घुटन के बल बैठकर छोटी-सी पज
ू ाक।
भयभीत कर देने वाले दाढ़ी-मंछ
ू वाला प ी बंधा हआ साठ साल का यि अ र नेमी भ य
अ यिधक चौक ना होकर उनक देखभाल कर रहा था।
कुछ ण बाद भ य वी रनी के पास गया और अपनी अधैयता दिशत करते हए बोला,
‘महारानी, संभवत: ब घी म जाने का समय हो चला है।’
वी रनी ने िसर ऊपर उठाकर अिधपित को देखा और सहमित म िसर िहलाकर खड़ी हो गई।
सती, िशव एवं नंदी ने उनका अनुसरण िकया।
‘यह वही है,’ िव
ु न ने दूरबीन को नीचे रखते हए, अपने वामी क ओर देखकर कहा।
पलटन सुरि त दूरी पर कािफले से छुपी हई थी। सघन एवं अभे शाखाएं एवं पि यां एक
भावी कवच था।
‘हां,’ उस फणदार यि ने कहा और उसने िशव के सुगिठत मांसल शरीर पर िनगाह जमा
दी। िबना दूरबीन के भी उसको यह संदेह नह था िक यह वही यि था िजसने
ा के मंिदर म
कुछ स ाह पहले ही संघष िकया था, ‘वह आदमी कौन है?’
‘मुझे जानकारी नह है, वामी।’
‘उस पर नजर रखना। यह वही आदमी है, िजसने िपछला आ मण िवफल कर िदया था।’
िव ु न कहना चाहता था िक िपछला यास इसिलए िवफल हआ था य िक वह
अिनयोिजत था। जाित-िच िवहीन आदमी क उपि थित क भिू मका बहत कम थी। िव ु न
अपने वामी के हाल के अतािकक िनणय को समझ नह पा रहा था। संभवत: उनके अंितम
ल य से िनकटता के कारण उनके िनणय आ छािदत थे। इसके बाद भी िव ु न ने अपने
िवचार को अपने पास ही रखने क बुि मानी क , ‘संभवत: आ मण करने से पहले हम लोग
को इनका पीछा एक घंटे तक करना चािहए, वामी। वह अ र नेमी क अित र सहायता से
सुरि त दूरी होगी। हम लोग इसे ज दी से समा करके रानी को बता सकते ह िक गु चर क
सच
ू ना सही थी।’
‘नह , जब तक वे मंदार पवत से आधा िदन क दूरी तक नह पहंच जाते तब तक हम लोग
कुछ घंटे और ती ा करगे। उनक नई बि घय म कुछ ऐसी यव था है िक वे आपाति थित का
संकेत त काल ही दे देते ह। हम यह सुिनि त करना है िक जब तक उनक कोई मदद पहंचे, हम
अपना काय परू ा कर ले।’
‘जी हां, वामी,’ िव ु न ने कहा। वह खुश हो रहा था िक उसके वामी क
साम रक बुि
ीण नह हई थी।
‘और याद रखो, म चाहता हं िक यह ज द समा हो जाए,’ फणदार यि
‘हम िजतना अिधक समय लगे, उतने ही अिधक लोग घायल ह गे।’
िस
ने आगे कहा,
‘जी हां, वामी।’
म या भोजन के िलए जब कािफला का तो आधी दूरी तय क जा चुक थी और तीसरे हर का
ारं भ हो चुका था। यहां पर जंगल को काफ दूरी तक काट िदया गया था, िजसके कारण
अचानक आ मण का अवसर नह था। महारानी क नौकरािनय ने शी ता से भोजन बाहर
िनकाला और उस खुले एवं साफ िकए हए थल के म य म उ ह गम करना ारं भ कर िदया।
राजसी दल एवं िशव कािफले के ारं भ म देविग र क िदशा म बैठे हए थे। भ य पीछे क ओर
एक ऊंची जगह पर खड़ा था और अपनी चील क ि से चार ओर चौक ना होकर देख रहा
था। राजसी दल के अलावा आधे अ र नेमी के सैिनक भी भोजन करने के िलए बैठ गए थे
जबिक शेष सावधानी से पहरे पर लगे थे।
िशव अपनी थाली म दूसरी बार भात लेने ही वाला था िक उसने सड़क से कुछ दूरी पर
टहनी के चटकने क आवाज सुनी। म य म ही ककर उसने यान से पुन: सुनने क कोिशश
क । अब कोई आवाज नह थी। उसक सहज बुि ने कहा िक कोई आखेटक जीव होगा, िजसे
लगा होगा िक उससे गलती हो गई है तो वह शांत हो गया। िशव ने सती क ओर देखा यह देखने
के िलए िक उसने सुना अथवा नह । वह भी सड़क क ओर यान लगाकर देख रही थी। एक
ह क सी चरमराहट हई जैसे ही टहनी के ऊपर से पांव हटा और उस पर दबाव ह का हो गया।
केवल यान लगाकर सुनने वाल के अलावा यह एक सामा य लोग पता नह चलने वाला था।
िशव ने त काल ही अपनी थाली रख दी। उसने तलवार िनकाली और ढाल को पीठ पर लगा
िलया। भ य ने िशव को देखा तो उसने भी अपनी तलवार िनकाल ली और साथ ही वह अपने
सैिनक को ज दी-ज दी संकेत देने लगा िक वे भी वैसा ही करे । सती और नंदी कुछ ही ण म
यु के िलए तैयार थे और अपनी पारं प रक यु क शैली म आ चुके थे।
सती ने िबना मुड़े हए वी रनी को फुसफुसा कर कहा, ‘माताजी, कृपया ब घी म चली जाइए
और बंद कर लीिजए। अपने साथ नौकरािनय को भी ले जाइए। िकंतु पहले अ को ब घी से
अलग करवा दीिजए। हम लोग पीछे हटने वाले नह है और हम श ुओ ं ारा आपका अपहरण भी
नह चाहते ह।’
‘तुम आ जाओ सती,’ वी रनी ने आ ह िकया और इसी म य नौकरािनय ने ब घी का ार
खोल िदया।
‘नह , म यह
क रही हं। कृपया शी ता क िजए। हमारे पास संभवत: अिधक समय नह
है।’
वी रनी तेजी से ब घी म चली गई। नौकरािनय ने तुरंत अंदर जाकर उसका ार अंदर से
बंद कर िलया।
कुछ दूरी पर भ य ने धीमे वर म अपने सहायक से कहा, ‘मुझे इनक चाल का पता है।
मने इन कायर को दि ण क सीमा पर देखा है। ये एक आ मघाती द ता पहले भेजगे और ऐसा
तीत करवाएं गे िक वे पीछे हट रहे ह और उसके बाद दुबारा आ मण कर दगे। म हािनय के बारे
म परवाह नह करता। हम लोग इन दोगले लोग का पीछा करगे और एक-एक को न कर
दगे। ये लोग अ र नेमी से िभड़ने आए ह। उ ह इसक क मत चुकानी ही पड़े गी।’
इस म य िशव सती क ओर मुड़ा और सावधानी से फुसफुसा कर उससे बोला, ‘मेरा िवचार
है िक वे अव य ही िकसी उ च ल य क इ छा म ह गे। राजसी प रवार से मह वपण
ू और कुछ
नह हो सकता है। या आप सोचती ह िक आपको ब घी म ती ा करनी चािहए?’
सती क आंख आ य से िशव क ओर बरछी क तरह उठ । उसके मुख से ह का सा दद
का भाव आने के बाद चमक आई, ‘म संघष क ं गी...’
ये समझती य नह है? जो मने कहा है वह परू ी तरह से तािकक है। श ु के म ु य ल य
को ा करना किठन बना दो तो वे य ु करने क इ छा खो बैठते ह।
िशव ने इन याल को अपने मन से िनकाल िदया और सड़क पर यान कि त करने
लगा। समच
ू े कािफले ने अपनी धमिनय को तनावपण
ू कर िलया था तािक श ुओ ं के आगे बढ़ने
क विन को यान से सुन सक। वे लोग घात लगाकर आ मण होने क दशा के िलए परू ी तरह
से तैयार थे। अब उनके श ुओ ं क बारी थी िक वे पहल कर। जैसे ही उ ह ने सोचा िक यह झठ
ू ी
शंका थी िक तभी नीचे क सड़क क ओर से शंख विन गंज
ू ी, मंदार पवत क ओर से। िशव पीछे
मुड़ा लेिकन वह आगे नह बढ़ा। जो कोई भी विन कर रहा था वह बहत तेजी से भागता आ रहा
था।
िशव उस कोलाहलपण
ू
विन को पहचान नह पाया। हालांिक दि णी सीमा के
अ र नेिमय को पता चल गया िक वह या था। यह विन नाग विन शंख क थी। नागाओं के
आ मण क घोषणा के िलए यह बजाया गया था।
य िप भ य यु करने के िलए अपना धैय खो रहा था, तथािप वह यु संचालन क
मानक य ि या को भल
ू ा नह था। उसने एक सहायक को आ ा दी जो भागकर ब घी के पास
गया। उसने एक लाल रं ग के ब से को बाहर िनकाला जो नीचे से बंद था। उसने उस पर ठोकर
मारी तो वह खुल गया। उसके बाद उसने बगल म लगे एक बटन को दबाया। उस ब से म से एक
बेलनाकार िचमनी तरह क संरचना लगभग प चीस फ ट सीधे ऊपर खड़ी हो गई। उस िचमनी ने
यह सुिनि त िकया िक जो धुआं उसम से िनकले वह सघन जंगल म खो न जाए और देविग र
एवं मंदार पवत के पहरे दार ारा देख िलया जाए। सैिनक ने एक आग लगी हई लकड़ी से आग
को उस ब से म सबसे अंितम खांचे म डाल िदया। लाल रं ग का धुआं िचमनी से िनकलने लगा जो
इस बात का तीक था िक उ च तर का खतरा था। मदद छह घंटे दूर थी। चार, यिद िजधर से
सहायता आने वाली थी वह सड़क प क थी। भ य संघष को अिधक देर चलने नह देना चाहता
था। वह चाहता था िक जब तक सहायता पहंचे उससे बहत पहले ही येक नागा और चं वंिशय
का सफाया हो जाए।
उसके बाद मंदार पवत क ओर जाने वाली सड़क क ओर से आ मण ारं भ हो गया।
चं वंिशय के एक छोटे दस सैिनक के दल ने अ र नेिमय पर धावा बोल िदया। एक सैिनक
नागा शंख पकड़े हए था और जोर-जोर से फं ू क रहा था। उनम से एक यि ने अपना परू ा िसर
एवं माथा कपड़े से ढक रखा था, मा आंख के िलए एक कटे हए िह से को छोड़कर। वह नागा
था!
िशव एक जगह पर ि थर रहा। वह देख पा रहा था िक संघष कािफले के अंत म ती ता से
चल रहा था। चं वंशी केवल दस थे। अ र नेिमय को मदद क आव यकता नह थी। उसने सती
और नंदी को संकेत िदया िक वे जहां ह, वह रह। सती सहमत थी य िक वह भी यही आशा कर
रही थी िक आ मण छल-बल वाला होने वाला था।
संघष छोटा और उ था। चं वंशी सैिनक ू रतापवू क लड़े , लेिकन वे सं या म कम थे।
जैसी िक भ य ने आशा क थी, वे ण भर म ही मुड़े और तेजी से भागने लगे थे।
‘उनका पीछा करो,’ भ य िच लाया, ‘सभी को मार डालो।’
अ र नेमी अपने अिधपित के पीछे भागते हए चं वंिशय का पीछा करने के उ े य से भागे।
अिधकतर लोग ने िशव के िच लाकर कहने को नह सुना, ‘नह ! यह को। उनका पीछा मत
करो।’
उस समय तक कुछ अ र नेमी सैिनक ने िशव को सुन िलया, लेिकन अिधकतर सैिनक
चं वंिशय के पीछे भागते चले गए। सती, नंदी और प चीस सैिनक के साथ िशव उस मैदान म
छूट गया। िशव देविग र क ओर जाने वाली सड़क क ओर घम
ू ा, उस िदशा म िजधर से टहनी के
चटकने क विन आई थी।
वह दुबारा शेष बचे अ र नेमी सैिनक क ओर मुड़ा। अपने पीछे क ओर संकेत देकर धैय
और शांित से बोला, ‘असली आ मण इधर से होने वाला है। चार-चार क कसी हई बनावट म उस
िदशा म तैयारी क दशा म रहो। हम उनको लगभग पांच से दस िमनट तक रोके रखना है। बाक
के सैिनक तब तक वापस आ जाएं गे जब उ ह मालम
ू पड़े गा िक उधर कोई और चं वंशी संघष
करने के िलए नह है।’
अ र नेिमय ने िशव को देखा और सहमित म िसर िहलाया। वे यु से कठोर बन चुके
सैिनक थे। उ ह मा एक प बुि वाला और शांत सेनापित चािहए था जो जानता था िक उसे
या करना चािहए था। इसके िसवा और कुछ नह । वे शी ही उस बनावट म आ गए जो िशव ने
बताई थी और ती ा करने लगे।
उसके बाद असली आ मण ारं भ हआ। चालीस चं वंशी सैिनक फणदार यि के नेत ृ व
म पेड़ के पीछे से कट हए। वे धीरे -धीरे सय
ू वंशी कािफले क ओर बढ़ रहे थे। सं या म कम होने
के कारण अ र नेमी श ुओ ं के िनकट आने क ती ा म ि थर रहे ।
‘राजकुमारी को हम दे दो और हम यहां से चले जाएं गे,’ उस फणदार यि
अनाव यक खन
ू बहाना नह चाहते ह।’
यह वही
करता है।
ने कहा, ‘हम
ा मंिदर वाला जोकर है। उसका पहनावा तो िविच है, लेिकन वह लड़ाई अ छी
‘हम भी र पात नह चाहते,’ िशव ने कहा, ‘शांित से चले जाओ और हम वचन देते ह िक
तुम लोग को ाणदान िमलेगा।’
‘अरे जंगली, गंवार, वो तुम हो जो म ृ यु के मुख म पहंचे हए हो,’ उस फणदार यि ने
कहा। वह अपने वर के बजाय अपनी मु ाओं से ोध दशा रहा था। उसक आवाज भयानक प
से शांत रही थी।
िशव ने देखा िक भरू ी पगड़ी पहने अिधकारी फणदार यि
को उतावलेपन म देख रहा था।
पद थ म मतभेद!
‘म तो केवल एक चेहरा देख रहा हं जो एक मख
ू मुखौटा है। और जो बहत ज द ही तु हारे
दयनीय गले के नीचे लटका िमलेगा! साथ ही अपने उस िबना िदमाग वाले सहायक से कहो िक
वह अपनी साम रक योजना को छोड़े नह ।’
फणदार यि
िफर भी शांत रहा। उसने िव
ु न क ओर देखा तक नह ।
लानत है! यह आदमी तो कुछ अिधक ही सही िनकला।
व
‘यह अंितम चेतावनी है, जंगली आदमी,’ उस फणदार यि
हमारे हवाले कर दो।’
ने पुन: दुहराया, ‘उसे इसी
सती को अचानक ही खयाल आया, तो वह ब घी क ओर मुड़ी और उसने चीखकर कहा,
‘माताजी! नया आपातकालीन शंख सामने के लोहे के जाल के पास है। उसे अभी इसी समय
बजाइए!’
मदद के िलए एक ती आ ह ब घी से गंज
ू पड़ा। भ य उसके सैिनक को मदद के िलए
बुला िलया गया था। फणदार यि ने मन ही मन बुरा-भला कहा य िक उसे एहसास हो चुका
था िक उसके सुअवसर को समा कर िदया गया था। उसके पास इस अिभयान को परू ा करने के
िलए बहत कम समय बचा था। बाक के सय
ू वंशी ज द ही वापस आ जाएं गे, ‘आ मण!’
अ र नेमी अपनी-अपनी जगह पर ि थर बने रहे ।
‘ि थर बने रहो,’ िशव ने कहा, ‘उनके िलए ती ा करो। तुम लोग को बस कुछ समय
िबताना है। राजकुमारी को सुरि त रखो। हमारे िम बहत क ज द हमारे साथ ह गे।’
जब चं वंशी और करीब आ गए तो अचानक ही सती ने उनके घेरे को तोड़ते हए फण वाले
यि पर धावा बोल िदया। सती के इस अचानक आ मण ने चं वंिशय के आ मण को धीमा
कर िदया।
अ र नेिमय के िलए कोई िवक प नह था। उ ह ने चं वंिशय पर ू र बाघ क तरह
आ मण कर िदया।
िशव ने तेजी से सती के दािहनी ओर कदम बढ़ाया तािक उस ओर कोई हमला न होने पाए
य िक िव ु न आगे बढ़ता हआ खतरनाक ढं ग से सती के िनकट आ चुका था। िव ु न ने
अपनी तलवार लहराई तािक िशव को अपने रा ते म न आने दे। लेिकन िशव इतनी तेजी से उस
ओर गया िक िव ु न वयं ही असंतुिलत हो गया। िशव ने बड़ी आसानी से उसका वार बचाया
और अपनी ढाल से उसे धकेलकर अपने सािथय के पास पहंचा िदया। इस म य नंदी सती के बाई ं
ओर चला गया था तािक जो चं वंशी उधर से आ मण कर रहे थे उ ह रोक सके।
इस म य सती उस फणदार यि पर ती ता से आघात करती जा रही थी। उस फणदार
यि को देखकर ऐसा तीत हो रहा था िक उसक मंशा केवल अपनी र ा करने क थी न िक
यु र देने क । वह उसे जीिवत एवं िबना हािन पहंचाए ले जाना चाहता था।
िशव ने िव ु न के कंधे के आर-पार एक बबरतापवू क घाव लगाया, य िक उसने अपना
कंधा खुला छोड़ िदया था। मुंह बनाते हए िव ु न ने अपनी ढाल को उठाकर िशव के दूसरे वार
को बचा िलया। उसी मु ा से िव ु न ने अपने तलवार वाले हाथ को उठाते हए िशव के धड़ पर
वार िकया। िशव ने तुरंत ही अपनी ढाल नीचे कर अपने को बचाने का यास िकया। लेिकन वह
उतनी तेजी से नह हो सका। िव ु न ने िशव के सीने पर चीरा लगाते हए घाव लगा िदया। पीछे
हटते हए और उछलकर दािहनी ओर जाते हए िशव ने अपनी तलवार को तेजी से घ पने वाले
तरीके से नीचे िकया तो िव ु न ने फुत से अपनी ढाल नीचे कर उसका वार बचा तो िलया,
लेिकन िशव क गैर-पारं प रक शैली ने उसे अ यवि थत कर िदया। वह लड़खड़ाकर पीछे हट
गया, उसे महसस
ू हो गया था िक िशव अ यंत ही कुशल तलवारबाज था। यह बहत ही लंबी और
किठन जुगलबंदी होने वाली थी।
नंदी ने एक चं वंशी सैिनक को मौत के घाट उतार िदया था य िक उसने िनयम का
उ लंघन िकया था और कमर के नीचे वार कर नंदी क जांघ पर तीखा घाव लगा िदया था। र
क धार के तेजी से बहने के बावजदू नंदी एक दूसरे सैिनक से भयानक यु कर रहा था, िजसने
बाई ं ओर से उस पर धावा बोल िदया था। चं वंशी ने अपनी ढाल को नंदी क घायल जांघ पर जोर
से दे मारा िजससे नंदी लड़खड़ाकर िगर पड़ा था। चं वंशी ने सोचा िक अब तो उसका काम
तमाम हो ही गया। वह अपनी तलवार को दोन हाथ से उठाकर उसे नीचे करने ही वाला था िक
अचानक ही एक ओर व
प से घम
ू ते हए िगर गया जैसे िक िकसी अ यिधक बल ने उसे िगरा
िदया हो। जैसे ही वह िगरा तो नंदी ने देखा िक एक चाकू उस चं वंशी क पीठ म गहरा घ पा
हआ था। ऊपर देखने पर उसने देखा िक िशव का बायां हाथ उस चाकू को फकने के बाद एक
बहत ही मधुर ढं ग से व ाकार होते हए नीचे आ रहा था। दािहने हाथ से िशव ने िव ु न के
ू र काटने वाले आघात को बचाया। जैसे ही नंदी िकसी तरह से अपने पैर पर खड़ा हआ तो िशव
ने अपने पीछे से ढाल को पुन: आगे कर िलया।
फणदार यि को पता था िक वे बहत समय ले रहे थे। बाक बचे अ र नेमी बहत ही ज द
वापस आ जाने वाले थे। उसने सती के िसर के पीछे जाने का य न िकया तािक वह उसे अचेत
कर सके, िकंतु वह बहत सचेत और ती गित वाली थी। वह बाई ं ओर जाकर अपने श ु का
सामना करने को तैयार थी। अपने अंगव म् म छुपे हए चाकू को बाएं हाथ से िनकालकर उस
फणदार यि के िवशालकाय उदर को काटते हए चला िदया। चाकू ने उसके लबादे को तो काट
िदया लेिकन नीचे पहने कवच के कारण उसका भाव क गया।
और उसके बाद एक गुंजायमान गजना के साथ भ य और अ य अ र नेमी अपने सािथय
के साथ िमलकर संघष करने के िलए वापस आ पहंचे। फणदार यि ने देखा िक अब वह
सं या म बहत कम हो चुके थे तो उसके पास िवक प नह बचा था। उसने अपने सैिनक को
पीछे हटने का आदेश िदया। िशव ने भ य को चं वंिशय का पीछा करने से एक बार िफर रोक
िदया।
‘उ ह जाने दो, वीर भ य,’ िशव ने कहा, ‘हम उ ह पकड़ने का अवसर अव य िमलेगा।
इस समय हमारा पहला कत य है िक हम राजशाही प रवार क सुर ा सुिनि त कर।’
िजस कार उस िवदेशी ने संघष िकया था उसे देखकर भ य ने िशव को शंसा भरी ि
से देखा न िक उसके नीले गले के कारण, िजसके बारे म उसे पता भी नह था। उसने न ता से
सहमित म िसर िहलाया, ‘यह उिचत जान पड़ता है, िवदेशी।’
भ य ने अ र नेमी सैिनक को एक कसे हए घेरे क बनावट म यवि थत िकया और
घायल को उस घेरे के अंदर ले िलया। मत
ृ शरीर को छुआ नह गया। कम से कम तीन
अ र नेमी सैिनक मारे गए थे और चं वंिशय के नौ सैिनक के मत
ृ शरीर उस खुली जगह म
इधर-उधर िबखरे पड़े थे। अंितम सैिनक ने अपने ाण वयं ले िलए य िक वह इतना अिधक
घायल हो चुका था िक उसके वहां से भागने क संभावना नह थी। अ छा यही था िक जीवन देने
वाले के आगोश म चले जाएं न िक श ुओ ं के हाथ पड़कर गु योजना बताएं । भ य ने सैिनक
को नीचे झुककर रहने और ढाल को सामने करने का आदेश िदया तािक तीर से सुर ा हो
सके। और वे सहायता दल क ती ा करने लगे।
‘हे ई र,’ सती को अपने आगोश म स ती से लेते हए िचंितत द ने रोते हए कहा।
पांच सौ सैिनक का राहत दल दूसरे हर के चौथे घंटे म पहंचा। पवते र क जोिखम क
चेतावनी के बावजदू द , बहृ पित और कनखला ने उस कािफले के साथ चलने का मन बना
िलया था। सती को अपनी पकड़ से छोड़ते हए द फुसफुसाया जब उसक आंख से आंसू बह
िनकले, ‘तुम घायल नह हो, कहो नह न?’
‘म ठीक हं, िपताजी,’ सती ने संकोच से कहा, ‘बस कुछ खर च वाले घाव ह, कुछ भी गंभीर
नह है।’
‘इसने बहत ही बहादुरी से सामना िकया,’ वी रनी ने गव से चमकते हए मुख से कहा।
‘मेरे िवचार से यह एक मां का प पात है,’ सती ने कहा। उसका गंभीर वभाव पुन: वापस
आ चुका था। िशव क ओर मुड़ते हए उसने कहना जारी रखा, ‘वे तो िशव थे, िज ह ने आज
हमारी र ा क है, िपताजी। इ ह ने चं वंिशय क योजना का अनुमान लगा िलया था और सभी
िछतरे लोग को िनणायक समय पर इक ा िकया था। यह इ ह के कारण हआ िक हम उ ह
परा त कर सके।’
‘ओह, मुझे लगता है ये कुछ अिधक ही दयालु ह,’ िशव ने कहा।
वह अंतत: भािवत हो ही गई!
‘वह िब कुल कृपालु नह है, भु,’ कट प से आभारी द ने कहा, ‘आपने अपना
चम कार अभी से ारं भ कर िदया है। हमने असल म एक आतंक आ मण का करारा उ र िदया
है। आप नह जानते यह हमारे िलए िकतना मह वपण
ू है!’
‘लेिकन यह आतंक हमला नह था, महाराज,’ िशव ने कहा, ‘यह राजकुमारी के अपहरण
का एक यास था।’
‘अपहरण?’ द ने पछ
ू ा।
‘वह फणदार यि िनि त प से राजकुमारी को जीिवत एवं िबना हािन पहंचाए अपहरण
कर ले जाना चाहता था।’
‘कौन फणदार यि ?’ द ने चौक ना होकर िच लाकर कहा।
‘वह नागा था, महाराज,’ िशव ने द के वातो माद वाली िति या पर आ य करते हए
कहा, ‘मने उसे लड़ाई करते देखा है। वह बहत ही अ छा यो ा है। वह अपनी चाल म थोड़ा धीमा
अव य है, लेिकन बहत अ छा लड़ाका है। लेिकन जब वह सती से लड़ाई कर रहा था तो वह
यास कर रहा था िक उ ह कोई नुकसान न पहंचे।’
द के चेहरे से रं ग परू ी तरह से उतर गया। वी रनी ने एक अजनबी चमक के साथ अपने
पित क ओर देखा िजसम भय एवं गु से का िविच िम ण था। उनके चेहर के भाव ने िशव को
असुिवधाजनक बना िदया जैसे िक वह प रवार के िनजी ण म ह त ेप कर रहा हो।
‘िपताजी,’ िचंितत सती ने पछ
ू ा, ‘ या आप ठीक ह?’
द से कोई िति या न सुनकर िशव सती क ओर मुड़कर बोला, ‘संभवत: उिचत रहे गा
िक आप अपने प रवार से अकेले म बात कर। यिद आपको बुरा न लगे तो म नंदी और अ य
सैिनक को जाकर देखता हं िक उनक ि थित कैसी है।’
पवते र अपने सैिनक के म य मण कर रहा था। वह घायल का परी ण कर रहा था और यह
सुिनि त कर रहा था िक उनक देखभाल एवं उपचार ठीक तरह से हो। भ य उसके दो कदम
पीछे चल रहा था। वह उस चं वंशी के पास गया िजसे िशव ने मारा था जब वह नंदी क जीवनर ा कर रहा था। उसने भय से गुराकर पछ
ू ा, ‘इस यि क पीठ म छुरा घ पा गया है!’
‘जी हां, वामी,’ अपना िसर झुकाए भ य ने कहा।
‘िकसने िकया यह? िकसने हमारे यु के पिव िनयम का उ लंघन िकया?’
‘मेरे िवचार से उस िवदेशी ने, वामी। लेिकन मने सुना है िक वह अिधपित नंदी को बचाने
का यास कर रहा था, िजस पर एक चं वंशी ने धावा बोल िदया था। और वह चं वंशी वयं यु
के िनयम का पालन नह कर रहा था, िजसने नंदी क कमर के नीचे वार िकया था।’
पवते र ने मुरझाए चेहरे से भ य को देखा तो वह डर के मारे िगड़िगड़ाने के भाव
दिशत करने लगा, ‘िनयम मा िनमय होते ह,’ उसने गुराकर कहा, ‘यिद आपका श ु उसका
पालन नह करे तब भी उसका अनुपालन िकया जाता है।’
‘जी हां, वामी।’
‘जाओ जाकर मत
ृ यि य के अंितम सं कार क िविधवत तैयारी करो। चं वंिशयो क
भी।’
‘ वामी,’ आ यचिकत भ य ने पछ
ू ा, ‘लेिकन वे तो आतंक ह।’
‘वे चाहे आतंक ह ,’ पवते र गुराया, ‘लेिकन हम सय
ू वंशी ह। हम लोग भु ी राम के
अनुयायी ह। श ुओ ं के िलए भी एक उिचत आचरण होता है िजनका हम अनुपालन करते ह।
चं वंशी भी उिचत अंितम सं कार के अिधकारी ह। या यह प है?’
‘जी हां, वामी।’
‘तुम उस िवदेशी को भु के नाम से य संबोिधत करते हो?’ नंदी क बगल म लेटे हए एक
घायल अ र नेमी सैिनक ने पछ
ू ा।
नंदी और अ य घायल के साथ लगभग आधा घंटा िबताकर िशव अभी-अभी गया था। यिद
कोई उन घायल को अब देखता तो िव ास करना किठन होता िक उ ह ने कुछ घंटे पहले ही
एक यु लड़ा था। वे आनंद से एक-दूसरे से बात कर रहे थे। कुछ लोग अपने िम क इस बात
पर िखंचाई कर रहे थे िक जब संघष का ारं भ हआ था तो वे कैसे लोभक व तु के िलए भागे थे।
ि य क भाषा म कह तो म ृ यु के मुख पर हंसी-िठठोली करना ही उनके अद य साहस एवं
वीरता का तीक था।
‘ य िक वे मेरे भु ह,’ नंदी से सरल उ र िदया।
‘लेिकन वह तो िवदेशी है। एक जाित-िच िवहीन िवदेशी,’ अ र नेमी ने कहा, ‘इसम संदेह
नह है िक वह एक बहत ही बहादुर यो ा है। लेिकन मेलहू ा म कई बहादुर यो ा ह। उसके बारे म
िवशेष या है? और वह राजसी प रवार के म य इतना समय य यतीत करता है?’
‘म इसका उ र नह दे सकता, िम । तु ह पता चल जाएगा जब वह समय आएगा।’
अ र नेमी ने नंदी क ओर
सच
ू क ि से देखा। उसके बाद उसने िसर िहलाया और
मु कुराने लगा। वह एक सैिनक था। वह केवल यहां और इस समय क िचंता करता था। यापक
उसके मन म अिधक समय तक घर नह बसाता था, ‘चाहे जो भी हो, मेरे िवचार से यह सही
समय है िक म बता दंू िक तुम एक बहत ही बहादुर यि हो िम । मने तु ह घायल अव था म
लड़ते देखा है। तुम आ म-समपण श द का अथ नह जानते हो। म तु ह अपना ाता बनाने म
गव महसस
ू क ं गा।’
अ र नेमी ारा कहा गया कथन बहत बड़ा था। ाता यव था जो मेलहू ा क सेना म
अनुसरण िकया जाता था उसका अथ था िक सैिनक से लेकर अिधपित तक येक सैिनक को
एक िम िनयत िकया जाता था। दो ाता भाइय क तरह ह गे जो हमेशा एक साथ यु करगे
और एक-दूसरे क र ा करगे। वे एक-दूसरे के िलए वे छा से जगत से लड़ाई करगे, वे कभी
समान ी से ेम नह करगे और वे हमेशा एक-दूसरे से सच बोलगे चाहे वह िकतना ही कड़वा
य न हो।
सा ा य म अ र नेमी सबसे अिधक आदर पाने वाले िवशेष सैिनक थे। अ र नेमी िकसी
को भी ाता तभी बनाने को तैयार होते थे जब वे उनक ेणी का यो ा हो। नंदी को पता था िक
वह अ र नेमी का ाता नह बन सकता था। उसे उसके भु के साथ रहना था। लेिकन एक
अ र नेमी ारा ाता बनाने क इ छा जािहर करना उसके िलए स मान क बात थी और यह
उसके आंसुओ ं को बाहर वािहत करने के िलए भी काफ था।
‘अब मेरे ऊपर भावुक होने क आव यकता नह है,’ िकलकारी मारकर हंसते हए, अपनी
नाक को िसकोड़कर अ र नेमी ने कहा।
अ र नेमी के कंधे पर थपक लगाते हए नंदी ठहाका मारकर हंस पड़ा।
‘तु हारा नाम या है, िम ?’ नंदी ने पछ
ू ा।
‘कौ तव,’ अ र नेमी ने उ र िदया, ‘िकसी िदन हम दोन एक साथ िमलकर चं वंिशय
क सेना से यु करगे, िम । और भु ी राम क कृपा से इन सभी दोगल का नाश कर दगे।’
‘अि नदेव क सौगंध, हम अव य करगे।’
‘यह बहत ही िदलच प बात है िक आपने नागाओं के मन को कैसे पढ़ िलया?’ बहृ पित ने िशव
से कहा। उस समय वह िशव के धड़ पर लगे गहरे घाव को साफ होते और मरहम-प ी होते देख
रहा था।
िशव ने बल देकर कहा था िक उसके घाव का उपचार तभी िकया जाए जब अ य सभी
सैिनक के घाव के उपचार पण
ू कर िलए जाएं ।
‘वैसे तो म इसक या या नह कर सकता,’ िशव ने कहा, ‘नागा लोग कैसे सोच रहे
ह गे, वह मुझे बहत ही कट लग रहा था।’
‘वैसे म इसक या या कर सकता हं!’
‘ या सचमुच म? या?’
‘इसक या या है िक आप सवशि मान ‘न’ श द ह िजसका उ चारण नह िकया जा
सकता है!’ बहृ पित ने अपनी आंख बड़ी-बड़ी गोल करते हए और जादू करने क मु ा म एक
ाचीन जादूगर क तरह हाथ उठाकर कहा।
वे जोरदार ठहाका लगाकर हंस पड़े , िजससे िशव का शरीर थोड़ा पीछे क ओर झुक गया।
सेना के वै ने िशव को कड़ी नजर से देखा, तो उस पर वह थोड़ा शांत हो गया और उसे घाव क
देखभाल समा करने दी। आयुविदक मलहम लगाने के बाद और उसे औषधीय नीम के प से
ढकने के बाद वै ने सत
ू ी कपड़े से उसक प ी कर दी।
‘इसे येक दूसरे िदन बदलना पड़े गा िवदेशी,’ वै ने प ी क ओर संकेत करते हए कहा,
‘देविग र म राजशाही वै आपके िलए यह कर देगा। और एक स ाह के िलए इसको जल से
भीगने न द। साथ ही इस अविध म सोमरस न ल य िक आप परू ी तरह से नान नह कर
पाएं गे।’
‘ओह, इ ह सोमरस क आव यकता नह है,’ बहृ पित ने मसखरी करते हए कहा, ‘उसने
इन पर िजतना नुकसान पहंचाना था, अब तक पहंचा िदया है।’
िशव और बहृ पित िबना के िफर से ठहाके लगाने लगे तो वै गु से म अपना िसर िहलाते
हए वहां से चलता बना।
‘िकंतु गंभीरता से यह पछ
ू ना है िक,’ बहृ पित ने शांत होते हए कहा, ‘वे आप पर आ मण
य करगे? आपने िकसी को कोई हािन भी नह पहंचाई है।’
‘म नह समझता िक यह आ मण मुझ पर था। मेरा मानना है िक यह सती के िलए िकया
गया था।’
‘सती! सती य ? यह तो और भी िव मयकारी है।’
‘संभवत: यह िवशेष प से सती के िलए भी नह था,’ िशव ने कहा, ‘मेरा मानना है िक
उनका िनशाना राजशाही प रवार था। ाथिमक िनशाना संभवत: स ाट थे। चंिू क वे वहां नह थे
तो ि तीयक ल य के िलए गए, अथात सती। मेरा मानना है िक उनका मु य उ े य था िक वे
िकसी राजशाही यि का अपहरण कर और उसका इ तेमाल अपने लाभ के िलए कर।’
बहृ पित ने कोई िति या नह दी। वह िचंितत नजर आया। अपने दोन हाथ को एकदूसरे म जकड़कर और अपने चेहरे के िनकट लाकर उसने गहरी सोच म डूबकर दूर शू य म
देखा। िशव ने अपनी थैली को टटोला और िचलम िनकाल ली। उसने सख
ू े गांजे को उसम
सावधानीपवू क भरा। बहृ पित ने मुड़कर अपने िम को देखा और वह जो कर रहा था, उससे
अ स न िदखा।
‘मने इससे पहले कभी नह कहा िशव और संभवत: कहना भी नह चािहए था य िक,
वैसे... चंिू क आप वतं यि हो,’ बहृ पित ने कहा, ‘लेिकन म आपको िम मानता हं। और
मेरा कत य है िक म आपको सच बताऊं। मने करचप म िम के यापा रय को गांजे लेने क
आदत म देखा था। यह आपके िलए अ छा नह है।’
‘आप गलत ह, िम ,’ िशव ने बड़ी मु कान के साथ कहा, ‘दरअसल यह इस दुिनया म
सबसे अ छी आदत है।’
‘आपको संभवत: पता नह है, िशव। इसके बहत सारे हािनकारक भाव होते ह। और सबसे
अिधक यह आपको अपने अतीत के बारे सोचने क मता को कम कर, आपक याददा त को
हािन पहंचाता है।’
िशव का चेहरा अला िणक प से गंभीर हो गया। उसने बहृ पित को एक मधुर मु कान के
साथ देखा और कहा, ‘इसी कारण से तो यह अ छी आदत है। जो इसका पान करता है, उस मख
ू
को कभी भी अपने अतीत को भल
ू ने का डर नह सताता है।’
िशव ने िचलम को जलाया, उससे एक गहरा कश िलया और बोलना जारी रखा, ‘वे नह
भल
ू ने से डरते ह।’
बहृ पित ने ती ता से िशव के मुख को देखा इस सोच के साथ िक वह िकतना बुरा अतीत
होगा िजसने उसके िम को इस गांजे क लत क ओर े रत िकया होगा।
अ याय - 11
नीलकंठ काश म आते ह
अ
थायी छावनी म राि िबताने के बाद दूसरे िदन ात: राजशाही कािफले ने देविग र क
या ा ारं भ क । उन प रि थितय को देखते हए रात म या ा करना सुरि त नह था। नंदी समेत
सभी घायल पहली तीन एवं पांचव ब घी म लेटे हए थे। राजशाही प रवार और िशव चौथी ब घी म
या ा कर रहे थे। एक िदन पवू िजन सैिनक ने संघष म िह सा िलया था उ ह आराम क ि से
घोड़ से या ा करने का अवसर दान िकया गया था। मत
ृ तीन अ र नेिमय के शोक म
बहृ पित एवं कनखला सैिनक दल के साथ पैदल चल रहे थे। पवते र, भ य एवं दो अ य
सैिनक एक अ थाई बनाई गई लकड़ी क पालक को उठाकर चल रहे थे, िजसम मत
ृ क क राख
रखने वाले तीन बतन म यु मत
ृ सैिनक क राख रखी हई थी। वे बतन उनके प रवार वाल को
अंितम सं कार क र म, राख को सर वती नदी म वािहत करने के िलए िदया जाएगा। नंदी भी
पैदल चलना चाहता था लेिकन वै ने हठ िकया िक वह इस ि थित म नह था।
अपने सैिनक क बहादुरी पर पवते र गव के साथ चल रहा था। मेरे लड़क ने, जैसािक
वह उ ह पुकारता था, िदखा िदया था िक वे उस धातु के बने थे, जो भगवान इं क भ ी म तपी
थी। उसने अपने आपको वहां रहकर उनसे लड़ाई न कर पाने के िलए कोसा। उसने वयं को
बहत डांट लगाई िक वह अपनी ई र-पु ी क र ा करने के िलए वहां नह था, जब वह खतरे म
थी। उसने ई र से उस िदन के िलए ाथना क िजस िदन उसे वह अवसर िमलेगा जब वह कायर
चं वंिशय का िवनाश करे गा। उसने चुपके से यह िनणय िलया िक वह उन तीन मत
ृ सैिनक के
प रवार वाल को अगले तीन महीन का अपना वेतन दे देगा।
‘यहां तक िक मने भी नह सोचा था िक वे इतना नीचे िगर सकते ह!’ द ने घण
ृ ा से कहा।
आराम से सो रहे िशव और सती द के इस ोध भरे भाव से न द से जाग उठे । वी रनी ने
पु तक पढ़ते-पढ़ते िसर उठाकर देखा। उसने अपनी आंख संकुिचत करके अपने पित को देखा।
‘कौन, महाराज?’ िशव ने मदहोशी म पछ
ू ा।
‘िदलीप! वह मानवता के नाम पर एक रोग!’ द ने अपनी घण
ृ ा को िबना छुपाए हए कहा।
वी रनी लगातार अपने पित को तीखी ि से घरू रही थी। उसने धीरे से अपना हाथ
बढ़ाकर सती के हाथ को अपनी ओर ख चा। उसे अपने ह ठ के पास ले जाकर उस पर एक चुंबन
िदया। उसके बाद उसने अपना हाथ सती के हाथ पर सुर ा दान करने क मु ा म रखा। सती ने
िसर उठाकर अपनी मां क ओर मु कान के संकेत के साथ देखा और अपने थके हए िसर को
वी रनी के कंधे पर रख िदया।
‘यह िदलीप कौन है, महाराज?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘वह व ीप का स ाट है,’ द ने कहा, ‘सभी जानते ह िक सती मेरी आंख का तारा है।
और संभवत: उसका अपहरण इसिलए करना चाहते थे िक वे मेरे हाथ बांध सक।’
िशव ने द को सहानुभिू तपवू क देखा। चं वंिशय के इस कपट पर स ाट के गु से को
फूटने को वह समझ रहा था।
‘और िफर उसका यह तर िक वह इतना नीचे िगर सकता है िक इस घिटया हरकत म
नागाओं का इ तेमाल कर सकता है,’ ोिधत द ने कहा, ‘यह हम बताता है िक चं वंशी या
कुछ नह कर सकते!’
‘मुझे नह लगता िक नागा को इसम इ तेमाल िकया गया था, महाराज,’ िशव ने धीमे वर
म कहा, ‘ऐसा तीत होता था िक वही नेता था।’
हालांिक द अपने यायसंगत ोध म इतना खोया हआ था िक वह िशव के इशारे म भी
खोजबीन कर रहा था, ‘संभवत: वह नागा इस पलटन का नेता रहा होगा, भु, लेिकन वह
अव य ही चं वंिशय के अधीन काम रहा होगा। कोई नागा नेता नह हो सकता है। वे लोग
शािपत लोग ह। वे ज म से ही अपंग और िव ूप होते ह। उ ह तरह-तरह के रोग होते ह जो िक
उ ह उनके पवू ज म के पाप के कारण दंड व प िमलते ह। नागाओं को दूसर को अपना चेहरा
िदखाने म भी शिमदगी महसस
ू होती है। लेिकन उनके पास अ यिधक शि एवं िनपुणता है।
उनक उपि थित मेलहू ावािसय एवं अिधकतर व ीप वािसय के िलए अ यंत भय उ प न करती
है। चं वंशी इतना नीचे िगर चुके ह िक वे उन िव ूप असुर से भी मेल-जोल रखने लगे ह। वे हमसे
इतनी घण
ृ ा करते ह िक वे इतना भी नह सोच रहे ह िक नागाओं से मेल से वे अपनी आ माओं
को िकतने गहरे पाप के दलदल म धकेल रहे ह।’
िशव, सती और वी रनी द क इस िनंदा को िनरं तर चु पी के साथ सुन रहे थे।
िशव क ओर मुड़ते हए द ने कहना जारी रखा, ‘आप देख रहे ह, भु िक हम कैसे क ड़े मकोड़ के िव
खड़े ह। उनका कोई िनयम नह है, न ही स मान। और वे हमसे सं या म एक
के मुकाबले दस ह। हम आपक सहायता क आव यकता है, भु। यह केवल मेरे लोग क बात
नह है बि क मेरे प रवार क भी बात है। हम खतरे म ह।’
‘महाराज, म आपक सहायता करने के िलए कुछ भी क ं गा,’ िशव ने कहा, ‘लेिकन म
सेनापित नह हं। म चं वंिशय के िव
सेना का नेत ृ व नह कर सकता। म तो एक साधारण
कबीलाई नेता हं। एक ऐसा आदमी या अंतर ला सकता है?’
‘कम से कम मुझे आपके आगमन क घोषणा राजसभा एवं लोग म करने क आ ा
दीिजए, भु,’ द ने आ ह िकया, ‘उसके बाद आप कुछ स ाह इस सा ा य म मण क िजए।
आपक उपि थित लोग के मनोबल को ऊंचा उठा देगी। देिखए आपने कल िकतना बड़ा अंतर
उ प न िकया। हमने आपके कारण, आपक ती ण बुि के कारण एक ासदकारी आ मण को
िवफल कर िदया। कृपया मुझे आपके आगमन क घोषणा करने दीिजए। म केवल इतना ही
चाहता हं।’
िशव ने द के उ साही चेहरे को कंपकंपी के साथ देखा। वह सती एवं वी रनी क आंख
को भी अपने चेहरे पर गड़ा हआ महसस
ू कर रहा था। िवशेषकर सती क ।
म वयं को िकस उलझन म डाल रहा हं?
‘ठीक है,’ िशव ने आ मसमपण करते हए कहा।
द उठा और उसने िशव को ऐसी पकड़ के साथ गले लगाया िक जैसे वह कभी न छोड़े ।
‘ध यवाद, भु! आपका बहत-बहत ध यवाद,’ द के खुशी के आंसू क नह रहे थे। िशव
ने बड़ी मुि कल से सांस लेने के िलए द क पकड़ से अपने को छुड़ाया, ‘म आपक उपि थित
क घोषणा कल ही राजसभा म क ं गा। उसके बाद आप तीन स ाह के बाद सम त सा ा य के
मण के िलए थान कर सकते ह। म वयं यि गत प से सारी यव थाएं सुिनि त
क ं गा। सेना का एक समच
ू ा दल आपक सुर ा के िलए होगा। पवते र और सती भी आपके
साथ जाएं गे।’
‘नह !’ वी रनी ने बहत ही ककश वर म िवरोध िकया। आज से पहले ऐसे वर म उ ह
बोलते सती ने नह सुना था, ‘सती कह नह जा रही है। म आपको हमारी पु ी के जीवन को
संकट म डालने नह दंूगी। वह मेरे साथ देविग र म क रही है।’
‘वी रनी, नादानी मत करो,’ द ने शांित से समझाते हए कहा, ‘ या तुम सचमुच ऐसा
मानती हो िक जब भु नीलकंठ साथ म ह गे तो सती को कुछ हो सकता है? जब वह भु के
साथ है तो सबसे अिधक सुरि त है।’
‘वह नह जा रही है। और यह मेरा अंितम िनणय है!’ सती का हाथ कसकर पकड़ते हए
वी रनी ने कठोर वर म आंख तरे र कर कहा।
वी रनी क उपे ा कर द िशव क ओर मुड़कर बोले, ‘आप िचंता न कर, भु। म सारी
यव था करवा दंूगा। पवते र और सती भी आपके साथ या ा करगे। आपको सती को कभीकभी थोड़ा संयम म रखना होगा।’
िशव ने योरी चढ़ाई और सती ने भी।
द िमलनसा रता से मु कुराकर बोला, ‘मेरी यारी पु ी क विृ कभी-कभी बहत बहादुर
बनने क है। जैसे िक एक बार जब वह ब ची ही थी, तो एक व ृ
ी पर जंगली कु के दल ने
आ मण कर िदया था। उसक र ा करने के िलए वह अकेले ही हाथ म तलवार िलए कूद पड़ी
थी। अपने इस दद के िलए उसने लगभग अपने ाण क बिल दे दी थी। वह मेरे जीवन का सबसे
बुरा िदन था। मेरे िवचार से उसी आवेगशीलता के कारण वी रनी िचंितत है।’
िशव ने सती को देखा। लेिकन उसके चेहरे पर कोई भाव नह था।
‘यही कारण है िक,’ द ने कहना जारी रखा, ‘म आपको सुझाव दे रहा हं िक इसे संयम म
रखना होगा। उसके बाद कुछ भी सम या नह होगी।’
िशव ने पुन: सती क तरफ देखा। उसने सती के िलए अपने मन म शंसा क एक लहर के
साथ अंतहीन ेम महसस
ू िकया।
इसने वह कर िदया जो म नह कर सका था।
अगले िदन ात: िशव ने पाया िक वह मेलहू ा के राजशाही दरबार म द के बगल म बैठा हआ
था। उस दरबार क भ यता ने उसे परू ी तरह से भ च का कर िदया था। चंिू क यह एक सावजिनक
थल था इसिलए सामा यत: मेलहू ा क चु पी एवं कमतर शैली यहां कह नह िदखाई दे रही थी।
यह महान सावजिनक नानघर के पास म ही बना हआ था। जहां वेिदका मानक य भ े क ई ंट
से बनाई गई थी, वह फश समेत परू ी संरचना सागौन क लकड़ी से बनी थी, आसानी से
न काशी िकए जाने वाला एवं गढ़ा जाने वाला िफर भी शि शाली। वेिदका पर बड़े ही पु
लकड़ी के खंभे खांच म सलीके से लगाए गए थे। खंभ को अ यिधक खच ले ढं ग से िद य
यि व के िच से गढ़ा गया था, जैसे अ सराएं , देवगण एवं ऋिष, िद य सुंदर देिवयां, ई र
और ानी यि व, और भी अ य। एक िवभिू षत गढ़ी हई लकड़ी क छत थी, जो सोने एवं चांदी
से बने हए िच से सजी थी और वह खंभ के सबसे ऊपर मुकुट के समान सजी हई थी। पिव
नीले एवं राजशाही लाल रं ग म रं गी पताकाएं छत से नीचे क ओर लटक हई थ । दीवार पर
येक ताख पर भु ी राम के जीवन को दशाते हए िच बने हए थे। लेिकन िशव को दरबार
के अित सुंदर थाप य कला को िनहारने का समय बहत कम था। द के भाषण म उसक
आशाएं कट ह गी और जो उसे परू ी तरह से असुिवधाजनक तीत हो रही थी।
‘जैसािक आप लोग म से कई लोग ने सुना होगा,’ द ने घोषणा क , ‘कल एक और
आतंक आ मण हआ था। चं वंिशय ने मंदार पवत से देविग र के माग पर राजशाही प रवार को
हािन पहंचाने का यास िकया था।’
दरबार को भय के भाव वाले कलरव ने भर िदया। सभी लोग को जो
परे शान कर रहा
था, वह था िक चं वंिशय ने मंदार पवत का माग कैसे जान िलया था। इस म य िशव वयं को
इस बात क याद िदला रहा था िक यह आतंक आ मण नह था। यह अपहरण का एक यास
था।
‘चं वंिशय ने बहत ही कपट से आ मण क योजना बनाई थी,’ द
अपनी दमदार आवाज से मंद करते हए कहा।
ने बड़बड़ाहट को
उस दरबार के िनपुण िश पकार ने उसक संरचना इस कार क थी िक राजशाही वेिदका
से बोला गया वर सम त दरबार म गुंजायमान हो, ‘लेिकन हमने उनको परािजत कर िदया।
दशक म पहली बार हमने उनके कायरतापण
ू आतंक आ मण िवफल करते हए उ ह परािजत
िकया है।’
इस घोषणा के साथ ही एक उ लिसत गजना दरबार म उठती चलती गई। उ ह ने इससे
पहले चं वंिशय को आमने-सामने क लड़ाई म अव य परा त िकया था, लेिकन इस भयानक
आतंक हमल का यु र आज से पहले उनके पास नह था। इसका कारण यह था िक
ासदकारी असैिनक थल पर हमला करते थे और जब तक सय
ू वंशी सैिनक पहंचते, वे भाग
चुके होते थे।
अपने हाथ उठाकर दरबा रय को शांत रहने को कहते हए द ने कहना जारी िकया,
‘हमने उ ह परा त िकया य िक अंतत: स य के जीत क घड़ी आ गई है! हमने उ ह परा त
िकया य िक हमारा नेत ृ व तात मनु के संदेशवाहक ने िकया! हमने उ ह परा त िकया य िक
याय क घड़ी आ चुक है!’
बड़बड़ाहट तेज होती चली गई। या नीलकंठ अंतत: आ ही गए ह? सबने अफवाह सुनी थी।
लेिकन िकसी ने उस पर िव ास नह िकया था। पवू म भी कई बार झठ
ू ी घोषणाएं हो चुक थ ।
द ने अपने हाथ ऊपर उठाए। उसने ती ा क तािक लोग क अ ि का माहौल परू ी
तरह से तैयार हो जाए। लोग इस सच को सुनने क आस म हो जाएं । और उसके बाद उसने हष के
साथ गजना क , ‘हां! वह अफवाह स य है। हमारे र क आ गए ह! नीलकंठ आ गए ह!’
राजशाही वेिदका पर उसके गुलबू ंद को हटाकर जब उसक दशनी लगा दी गई तो िशव
अपनी पलक झपका गया। कुलीन समाज के मेलहू ावािसय ने उनके पास भीड़ लगा दी, िशव के
कान म तरह-तरह के कथन गंज
ू ने लगे।
‘हमने अफवाह सुनी थी, भु। लेिकन हमने कभी िव ास नह िकया था िक वह सच था।’
‘अब हम िकसी भी चीज से डरने क आव यकता नह है, भु। अब बुराई के न
िगनती के िदन रह गए ह।’
होने म
‘आप कहां से आए ह, भु?’
‘कैलाश पवत से? वह कहां है, भु? म वहां क धािमक या ा करना चाहता हं।’
इन बार-बार पछ
और उन लोग के इस अंधिव ास ने िशव को िहलाकर रख
ू े गए
िदया। जैसे ही उसे अवसर िमला, उसने द से दरबार से जाने का अनुरोध िकया।
दरबार म जो कुछ भी हआ था उसको सोचते हए कुछ समय बाद िशव अपने कमरे म आराम से
बैठा हआ था। गुलबू ंद उसके गले पर पुन: आ चुका था।
‘पिव झील क कृपा से, या म इन लोग क सम याओं का समाधान कर पाऊंगा?’
‘आपने या कहा, भु?’ नंदी ने पछ
ू ा, जो कुछ दूरी पर धैय से बैठा हआ था।
‘तु हारे लोग क आ था मुझे िचंितत करती है,’ िशव ने वर ती करके कहा तािक नंदी
सुन सके, ‘यिद एक-एक आदमी से लड़ना होता तो म तु हारे लोग क र ा करने के िलए
िकसी से भी संघष कर सकता था। लेिकन म कोई नेता नह हं। और िनि त प से म ‘बुराइय
का िवनाशक’ नह हं।’
‘मुझे परू ा िव ास है िक आप िकसी के भी िव
िवजय ा करने म हमारा नेत ृ व कर
सकते ह, भु। देविग र आते समय आपने उ ह माग म परािजत िकया था।’
‘वही असली जीत नह थी,’ िशव ने अ वीकार करते हए कहा, ‘वह एक छोटी पलटन थी
जो ाण लेने के िलए नह अपहरण के उ े य से आई थी। यिद हम सु यवि थत और बड़ी सेना
का सामना करते ह, िजसका उ े य ाण हरण करना होगा तो प रि थितयां िभ न ह गी। मेरे
िवचार से, ऐसा तीत होता है िक मेलहू ा कुछ िवकट एवं िनदयी श ुओ ं के िव
खड़ा है। तु हारे
देश को एक यि म िव ास क आव यकता नह है। यह उसका उ र नह है। तु हारे लोग को
प रवतनशील समय को अपनाना होगा। हो सकता है िक तुम लोग अपने जीवन जीने के ढं ग के
कारण इस बात से अनिभ हो िक अपने र -िपपासु श ुओ ं का कैसे सामना कर। एक नई
यव था क आव यकता है। म कोई भगवान नह हं जो िकसी चम कार से तु हारी सम याओं
का समाधान कर देगा।’
‘आप िब कुल सही ह, भु,’ नंदी ने उस भा यशाली सरल यि के िव ास के साथ कहा
िजसे सोच ने अिधक परे शान नह िकया था, ‘एक नई यव था क आव यकता है और प है
िक नह पता िक वह यव था या होनी चािहए। लेिकन म एक बात अव य समझता हं। एक
हजार साल पहले हमने ऐसी ही िवपि य का सामना िकया था और भु ी राम आए थे और
उ ह ने हम अ छे तरीके िसखाए। मुझे परू ा िव ास है िक उसी कार आप हमारा नेत ृ व उ कृ
माग पर ले जाने म करगे।’
‘म भु ी राम नह हं, नंदी!’
कै से यह बेवकूफ मेरी तल
ु ना भ ु ी राम से कर सकता है जो मयादा प ु षो म थे, एक
आदश यि ?
‘आप भु ी राम से भी बेहतर ह, भु,’ नंदी ने कहा।
‘ये बेवकूफ क बात मत करो नंदी! मने ऐसा िकया ही या है जो मेरी तुलना भु ी राम
से क जा सके? बेहतर क बात को तो रहने ही दो?’
‘िकंतु आप ऐसे काम करगे जो आपको उनसे बेहतर िस करे गा, भु।’
‘अब तुम बकवास बंद करो!’
िशव के सा ा य मण क तैया रयां जोर-शोर से चल रही थी। िफर भी िशव को दोपहर म सती
के न ृ य पाठ के िलए समय िमल रहा था। उनके म य एक शांितपण
ू िम ता िवकिसत होती जा
रही थी। लेिकन िशव इस बात से दुखी था िक जहां सती उसको आदर दे रही थी, वह उसम
भावनाओं या भाव के दशन म कोमलता नह आ रही थी।
इस बीच िशव के कबीले को देविग र बुला िलया गया था, जहां उ ह रहने के िलए
आरामदायक िनवास और काम िदए गए थे। लेिकन भ को गुणवाल के साथ नह रहना था। उसे
कहा गया था िक वह नीलकंठ क या ा म उनके साथ रहे ।
‘वीरभ ! तुमने यह नाम कब पा िलया?’ क मीर से
बार िमलने पर उससे पछ
ू ा।
थान करने के बाद िशव ने पहली
‘बड़ा ही बेकार कारण है,’ भ ने मु कुराकर कहा, िजसके पीछे का कूबड़ चम कारी
सोमरस क कृपा से परू ी तरह से अ य हो चुका था, ‘यहां क या ा करते समय मने कािफले के
नेता को एक बाघ के हमले से बचाया था। उसने मेरे नाम से पहले एक वीर यि क उपािध दी।’
‘तुमने एक बाघ का सामना अकेले िकया?’ िशव ने प
प से भािवत होकर पछ
ू ा।
भ ने सहमित म िसर िहलाया। उसे यह कहना अजनबी-सा लगा।
‘अरे वाह, तब तो सही म तुम वीरभ कहलाने के हकदार हो।’
‘हां, सही है!’ भ मु कुराया। उसके बाद अचानक गंभीर होकर उसने पछ
ू ा, ‘यह
पागलनपन भरी उपािध ‘बुराइय का िवनाशक’ ... या आपको ठीक लग रहा है? आप इनके
आ ह म केवल अपने अतीत के कारण नह जा रहे , है न?’
‘म इस समय वाह के साथ जा रहा हं, िम । कोई मुझे बता रहा है िक मेरी शंकाओं के
बावजदू सही म म इन लोग क मदद कर सकता हं। ये मेलहू ावासी परू ी तरह से पागल ह, इसम
संदेह नह है। और यह भी सच है िक जो आस ये मुझसे लगाए बैठे ह, वे सभी म परू ी नह कर
सकता। लेिकन मुझे अव य महसस
ू होता है िक चाहे वह िजतना भी छोटा य न हो यिद म कुछ
भी अंतर ला सकता हं तो म अपने अतीत पर संतोष य कर सकता हं।’
‘यिद आप िनि त ह तो म भी हं। म आपके साथ कह भी जाऊंगा।’
वीरभ हंसा और उसने िशव को आिलंगनब कर िलया, ‘आपक बड़ी याद आई, िशव।’
‘मुझे भी।’
‘दोपहर म बाग म िमलते ह। मेरे पास बहत अ छा गांजा है।’
‘प का!’
बहृ पित ने भी िशव के साथ या ा करने क अनुमित ा कर ली थी। उसने िववरण िदया
िक कुछ अल य रसायन के साथ मेसोपोटािमया का जहाज बंदरगाह नगरी करचप आने वाला
था। उसके एक दल को उन पदाथ क जांच करके उ ह लाना ही था। तो यह अ छा रहे गा िक वे
लोग भी िशव के साथ या ा कर ल और वह काम भी कर ल। द ने कहा िक उसे इसम कोई
परे शानी नह थी, यिद भु को कोई आपि नह थी। िशव ने उ सािहत होकर इस सुझाव को मान
िलया था।
दरबार म नीलकंठ के बारे म घोषणा के िदन से तीन स ाह के बाद अंतत: वह िदन आ ही
गया जब िशव को सम त सा ा य का मण ारं भ करना था। उस िदन ात: ही द िशव के
कमरे म आया।
‘आपने मुझे बुला िलया होता, महाराज,’ नम ते कर िशव ने कहा, ‘आपको यहां आने क
आव यकता नह थी।’
‘आपके कमरे म आना मेरे िलए खुशी क बात है, भु,’ द िशव के अिभवादन को नीचे
झुककर यु र देते हए मु कुराया, ‘मने सोचा िक म आपक भट उस वै से करवा दंू जो
आपक या ा के दौरान आपके साथ मण करे गी। वह कल रात ही क मीर से आई है।’
द एक ओर हो गया तािक उसके मागदशक वै को कमरे म अंदर ला सक।
‘आयुवती!’ िशव ने चिकत होकर कहा तो उसका चेहरा खुशी से चमक उठा। उसने एक
सुंदर मु कान के साथ कहा, ‘आपको पुन: देखकर बहत खुशी हो रही है।’
‘खुशी तो मुझे हो रही है, भु,’ आयुवती का मुख चमक उठा था, जब वह िशव के पांव छूने
के िलए झुक ।
िशव ज दी से एक ओर हट गया और बोला, ‘मने आपसे पहले भी कहा था, आयुवती। आप
जीवनदा ी ह। कृपया मेरे पांव छूकर मुझे शिमदा न कर।’
‘और आप नीलकंठ ह, भु। बुराई के िवनाशक,’ आयुवती ने भि भाव से कहा, ‘आप मुझे
आशीवाद देने क कृपा से कैसे वंिचत कर सकते ह?’
िशव ने िवषाद म अपना िसर िहलाया और आयुवती को अपने पैर छूने िदए। उसने बड़ी
कोमलता से उसके िसर पर हाथ रखा और आशीवाद िदया।
कुछ घंट के बाद िशव, सती, पवते र, बहृ पित, आयुवती, कृि का, नंदी और वीरभ
मण पर िनकल पड़े । उनके साथ पं ह सौ सैिनक का एक दल, प चीस घरे लू नौकरािनयां और
पचास अ य सहायक अनुचर उनक सुर ा एवं सुिवधा के िलए चल पड़े थे। उनक योजना यास
नदी पर ि थत कोट ार नगर तक सड़क माग से जाने क थी। वहां से वे नौकाओं से बंदरगाह
नगरी करचप तक जाने वाले थे। उसके बाद वे पवू म लोथल नामक नगर जाएं गे। उसके बाद वे
अंत म उ र िदशा म सर वती के डे टा े म जाकर नौकाओं ारा वापस देविग र वापस लौट
जाएं गे।
अ याय - 12
मेलहू ा का मण
‘म नु कौन थे?’ िशव ने पछू ा, ‘मने उनके बारे म कई बार सुना है और उ ह ‘तात’
य
संबोिधत िकया जाता है?’
कािफला कई िदन से देविग र से कोट ार जाने वाले माग पर चल रहा था। िजसके म य
भाग म सात बि घयां थ , जो ठीक वैसी ही थ , जैसी िक मंदार पवत क या ा के दौरान यु
क गई थ । उनम से पांच खाली थ । िशव, सती, बहृ पित और कृि का दूसरी ब घी म या ा कर
रहे थे। पवते र पांचव ब घी म आयुवती और अपने कुछ िव ासपा सेनापितय के साथ था।
सेनानायक क उपि थित का अथ था िक येक िनयम का पालन कड़ाई से होगा। अत: नंदी
िजसका पद उसे ब घी म चलने क अनुमित नह देता था, वह अपने अ ारोिहय के दल के साथ
एक अ पर सवार था। वीरभ को नंदी के दल म एक सैिनक क तरह शािमल कर िलया गया
था। अपने अिधपितय के साथ परू ा का परू ा सैिनक दल मानक य अगला भाग, िपछला भाग एवं
कािफले को दोन बगल से सुरि त कर चल रहा था।
बहृ पित एवं सती दोन ही एक साथ िशव के
का उ र देने लगे।
‘स ाट मनु एक...’
दोन ने ही बोलना छोड़ िदया।
‘कृपया, आप बताइए बहृ पित जी,’ सती ने कहा।
‘नह , नह ,’ बहृ पित ने एक ह क मु कान के साथ कहा, ‘आप य नह ये कथा बताती
ह?’
वह जानता था िक िकसका वर नीलकंठ सुनना पसंद करगे।
‘कभी नह बहृ पित जी। म आपका थान कैसे ले सकती हं? यह तो पण
ू त: अनुिचत
होगा।’
‘कोई मेरे
का उ र देगा या िफर आप दोन इस लंबे चलने वाले आप-आप म ही लगे
रहगे,’ िशव ने पछ
ू ा।
‘ठीक है, ठीक है,’ बहृ पित हंसा, ‘अब िफर से नीले मत हो जाइए।’
‘यह बहत ही मसखरी वाली बात थी, बहृ पित,’ िशव मु कुराया, ‘इसे रखे रिहए और
आपको सौ साल म शायद कोई ऐसा िमल जाए तो इस पर हंस पड़े ।’
इस पर बहृ पित और िशव ठहाका मारकर हंस पड़े तो सती इस अनुिचत कार के
वातालाप पर िवि मत थी। िकंतु यिद आदरणीय मु य वै ािनक सुिवधाजनक तीत हए तो वह
कुछ नह बोलेगी। और उसके बाद भी वह िशव को कैसे फटकार सकती थी? उसके हाथ नीित के
िनयम ने बांध रखे थे। उ ह ने उसके जीवन क र ा क थी। दो बार।
‘ऐसा है िक स ाट मनु के तात होने के बारे म आप सही थे,’ बहृ पित ने कहा, ‘उ ह
सम त भारतवष के लोग ारा हमारी स यता का जनक माना जाता है।’
‘ व ीप वािसय के भी?’ िशव ने अिव ास से पछ
ू ा।
‘अव य, हमारा यही मानना है। वैसे वतमान से साढ़े आठ हजार वष पहले स ाट मनु हए
थे। कट प से वे दि ण भारत के एक राजकुमार थे। नमदा नदी के उस पार क भिू म से लेकर
जहां भिू म समा हो जाती है और समु ारं भ हो जाता है। वह भिू म है संगम तिमल।’
‘संगम तिमल?’
‘हां। संगम तिमल उस समय िव का सबसे धनी एवं शि शाली सा ा य था। स ाट मनु
के वंशज पांड्य ने उस भिू म पर कई वंश तक राज िकया था। हालांिक स ाट मनु ारा छोड़े गए
आंकड़ से हम पता चलता है िक उनके समय तक राजाओं ने अपने पुरानी नीितसंिहता भुला दी
थी।
आचरण म िघरकर वे अपने अपार धन से खुिशयां मनाने म य त रहते थे न िक अपने
कत य एवं आ याि मक जीवन के ित। उसके बाद एक भयानक आपदा आई। समु बढ़ गया
और उनक सम त स यता न हो गई।’
‘हे भगवान!’ िशव ने लगभग िच लाकर कहा।
‘स ाट मनु को यह पता था िक ऐसा िदन आने वाला था और वे इसके िलए पहले से ही
तैयार थे। उनका मानना था िक उनका वह ाचीन देश िजस अधोगित म िघरा पड़ा था, उसे
ई र के चंड कोप का भाजन बनना ही था। उस िवपदा से बचने के िलए उ ह ने अपने
अनुयाियय के एक दल के साथ जहाज से उ र िदशा क ओर ऊंची भिू म क ओर थान िकया।
उनक पहली छावनी मेहरागढ़ नामक थल पर थािपत क गई जो वतमान मेलहू ा के सुदूर
पि मी पवत का थल है। नैितक एवं उिचत समाज क थापना क चाह म उ ह ने ◌े अपने
राजकुमार के पहनावे को ितलांजिल दे दी और पुजारी बन गए। दरअसल भारतवष म पुजा रय
के िलए कहा जाने वाला संबोधन पंिडत स ाट मनु के पा रवा रक नाम पांड्य से ही िनकला है।’
‘मनोरं जक। तो िफर स ाट मनु का वह छोटा-सा दल इतने बड़े भारतवष म कैसे प रवितत
हो गया?’
‘जब वे मेहरागढ़ आए तो उसके बाद कुछ वष तक उ ह बहत ही किठन जीवन िबताना
पड़ा। येक वष मानसन
ू के समय बाढ़ एवं समु क लहर और अिधक शि शाली हो जाती थ ।
िकंतु कई वष बाद और तात मनु क ाथना क शि से ई र का ोध मंद पड़ने लगा और
जल तर आगे बढ़ने से क गया। हालांिक समु अपने पवू थान तक पीछे िखसककर कभी
नह गया।’
‘इसका अथ यह है िक सुदूर दि ण म कह अभी भी समु
हए है?’
ाचीन संगम तिमल को डुबोये
‘हमारा ऐसा ही मानना है,’ बहृ पित ने उ र िदया, ‘जब समु ने आगे बढ़ना रोक िदया तो
तात मनु और उनके लोग पवत से नीचे आ गए। वे यह देखकर त ध रह गए िक एक पतली-सी
धारा वाली िसंधु एक िवशालकाय नदी म प रवितत हो चुक थी। कई अ य छोटी-छोटी धाराएं बड़ी
हो चुक थ और छह बड़ी निदय का ज म हो चुका था, िसंधु, सर वती, यमुना, गंगा, सरयु एवं
पु । तात मनु ने कहा था िक निदय ने इतने जल वाह के साथ बहना इसिलए ारं भ कर
िदया था य िक ई र के चंड कोप के कारण धरती का ताप बहत बढ़ गया था। ताप बढ़ने के
कारण िहमालय म बफ क स रताएं एवं िहम निदय ने िपघलना ारं भ कर िदया था जो उस समय
तक िहमा छािदत थे। और इस कार उ ह ने निदय के सज
ृ न कर िदए थे।’
‘ह ऽ ऽ म...’
‘गांव एवं बड़े नगर इन निदय के िकनारे बस गए और बढ़ने लगे। इसी कारण हमारी सात
निदय क इस भिू म को स -िसंधु कहा गया, िजसका ज म संगम तिमल के िवनाश के कारण
हआ था।’
‘सात? लेिकन आपने तो उ र भारत म केवल छह निदय के सज
ृ न क बात कही थी।’
‘हां, यह सही है। सातव नदी तो पहले से ही अि त व म थी। वह नमदा है, जो हमारी दि ण
क सीमा बनी। तात मनु ने अपनी संतित को नमदा से दि ण म जाने के िलए कड़ाई से मना
िकया था। इस िनयम का पालन हम करते ह और चं वंशी भी।’
‘तो िफर तात मनु के अ य िनयम या ह?’
‘वा तव म उनके अनेक िनयम ह। वे सभी एक पु तक म सच
ू ीब
मनु मिृ त। या आप उस समच
ू े लेख को सुनने क इ छा रखते ह?’
ह, िजसका नाम है
‘ लोभक है,’ िशव मु कुराया, ‘लेिकन म सोचता हं िक अभी रहने द।’
‘आपक आ ा हो तो भु, संभवत: हम तात मनु के हमारे समाज के मागदशन के बारे म
म या भोजन के समय िवचार-िवमश कर सकते ह,’ कृि का ने सुझाव िदया।
िजस माग से नीलकंठ का कािफला या ा करके िनकल चुका था, उससे कुछ दूरी पर चालीस
लोग यास नदी के साथ-साथ शांित से पैदल चल रहे थे। दो म से एक आदमी अपने िसर पर बांस
से बनी हई एक कार क िघरनाव को लेकर चल रहा था। यह उस े का बहत ही सहज य
था। वहां के थानीय िनवासी बांस, बत और र सी से वहनीय कार क िघरनाव बनाते थे जो
एक यि
ारा आसानी से ले जायी जा सकती था। यह देखने म गोल आकार क थी और कई
बार गोल-गोल घम
ू कर चलती थी। अत: उसे िघरनाव कहा जाता था। इसम एक सामा य नाव क
भांित एक िसरा नह होता था। येक िघरनाव दो यि य को अ छी गित से ले जाने म सुरि त
होती थी। उस पलटन के सबसे आगे यु के लगे घाव के िच से गिवत मुख वाला एक
नवयुवक चल रहा था, िजसने भरू ी पगड़ी पहन रखी थी। उससे थोड़ा आगे एक फणदार यि
चल रहा था। उसका झुका हआ िसर, िसकुड़ी हई आंख और बड़े ही सलीके से कदम बढ़ाने से
तीत हो रहा था िक वह िकसी गहरी सोच म डूबा हआ था। उसक सांस धाकनी क तरह चल
रही थी। उसने अपने हाथ उठाकर उ साहहीन तरीके से अपने नकाब वाले ललाट को रगड़ा।
उसके दाएं हाथ क कलाई पर चमड़े का कड़ा था, िजस पर नाग का तीक िच बना हआ था।
‘िव ु न,’ फणदार यि ने कहा, ‘हम लोग यहां से नदी म वेश करगे। जब भी हम
आबादी वाले े के पास पहंचगे तो हम नदी से बाहर हो जाएं गे तािक हमारी पहचान न होने
पाए। हम करचप दो महीने के भीतर पहंचना है।’
‘करचप, मेरे वामी?’ िव ु न ने आ य से पछ
ू ा, ‘मुझे तो लग रहा था िक रानी के साथ
हमारी गु मुलाकात लोथल के बाहर होने वाली थी।’
‘नह ,’ फणदार यि
ने उ र िदया, ‘हम लोग उनसे करचप के बाहर िमलगे।’
‘ठीक है, मेरे वामी,’ िव ु न ने पीछे मुड़कर कोट ार क ओर जाती हई सड़क को
देखते हए कहा। उसे पता था िक उसके सरदार एक बार िफर राजकुमारी के अपहरण का यास
करना चाहगे। उसे यह भी पता था िक कािफले के साथ चल रही उस िवशालकाय सेना के रहते
ऐसा यास दु सािहक ही होने वाला था। वैसे भी वे अपने मु य काय म के िलए समय से पीछे
चल रहे थे। उ ह रानी से िमलना था।
अपने एक सैिनक क ओर मुड़ते हए िव ु न ने कहा, ‘ ृ ा, अपनी िघरनाव को नदी म
रखो और पतवार मुझे दे दो। इस या ा के िह से म म वामी को िघरनाव म लेकर जाऊंगा।’
ृ ा ने त काल वह िकया जो उसे कहा गया था। िव ु न और फणदार यि पलटन म
सबसे पहले थे जो नदी म उतरे थे। जब उसके आदमी नदी म नाव रख रहे थे तब तक िव ु न
नाव खेकर चल चुका था। नदी म नीचे क ओर कुछ दूरी पर उस फणदार यि ने देखा िक दो
ि यां एक िघरनाव पर लापरवाही से मटरग ती कर रही थ । एक ी िघरनाव क बगल से
पानी लेकर दूसरे पर िछड़क रही थी और दूसरी उससे बचने का असफल यास कर रही थी िक
वह भीग न जाए। ब च क तरह हरकत वाले इस खेल के कारण उनक नाव खतरनाक ढं ग से
िहल-डुल रही थी। फणदार यि ने देखा िक उन ि य ने यान नह िदया था िक दूसरे िकनारे
से एक मगरम छ नदी म वेश कर चुका था। अपने िलए एक अ छे भोजन के बारे म िवचार कर
वह मगरम छ उन ि य क नौका क ओर बड़ी तेजी से बढ़ने लगा।
िव
‘अपने पीछे देखो,’ उस फणदार यि ने उन ि य क ओर िच लाकर कहा और उसने
ु न को इशारा िकया िक वह नौका को उन ि य क ओर ले चले।
उस दूरी से वे ि यां उसक बात नह सुन सक । उ ह ने यह अव य देखा िक दो आदमी
बांस क नौका को खेकर उनक ओर आ रहे थे। उ ह ने देखा िक एक यि लगभग दै याकार
िसर से पांव तक लबादे म ढका हआ था और उसका चेहरा भी नकाब से ढका हआ था। वह
आदमी उ ेजना के साथ इशारे कर रहा था। उन दोन के पीछे एक बड़ी सं या म सैिनक नदी म
नौकाओं को खेकर चले आ रहे थे। उन ि य के िलए इतनी चेतावनी बहत थी। यह सोचते हए
िक वे उनक ओर गलत इरादे से आ रहे थे, वे ि यां तेजी के अपने पतवार चलाकर उनसे दूर
मगरम छ क िदशा म जाने लग ।
‘नह !’ फणदार यि
िच लाया।
उसने िव ु न से पतवार छीन ली और अपने ताकतवर हाथ से तेजी से बांस क नाव को
खेने लगा। वह अपनी और उन ि य के म य क दूरी को कम करने लगा। लेिकन उतनी भी
तेजी से नह । उस मगरम छ ने िनकट आकर उन ि य क बांस क नौका के नीचे गोता
लगाया और उस बांस क नौका पर हमला बोल िदया और अपने िवशालकाय शरीर से उसे ध का
दे िदया। िजसके कारण वह बांस क नौका पलट गई और डूब गई। वे ि यां उछलकर यास नदी
म िगर गई ं।
वे अपने आपको नदी म बहने और डूबने से बचने के िलए भयभीत होकर िच लाने लग ।
जोर से ध का मारने के कारण वह मगरम छ अपनी गित से काफ दूर िनकल गया था। वह
मुड़ते हए उन बेबस और संघष करती ि य क ओर बढ़ने लगा। कुछ समय क देरी उन ि य
के िलए भा यशाली रही। राहत वाली बांस क नौका उनके और मगरम छ के म य आ चुक थी।
िव ु न क ओर मुड़ते हए उस फणदार यि ने आदेश िदया, ‘ि य को बचाओ।’
जब तक िक िव ु न कोई िति या िदखा पाता, उस फणदार यि ने अपने लबादे को
एक ओर फका और नदी म गोता लगा िदया। दांत के म य चाकू दबाए वह अपनी ओर आते
मगरम छ क ओर तैरने लगा। िव ु न ने एक ी को पकड़कर बांस क नौका पर डाल
िलया, जो तब तक अचेत हो चुक थी। दूसरी ी क ओर मुड़ते हए उसने उसको ढांढस बंधाया,
‘म ज द ही वापस आता हं।’
िव ु न मुड़ा और अ यिधक तेजी से िकनारे क ओर बांस क नौका को खेकर जाने
लगा। बीच म उसने पास आते सैिनक से कहा, ‘ज दी पतवार चलाओ। वामी क जान खतरे म
है।’
सैिनक ने पतवार चलाकर बांस क नौकाओं को उस ओर ले जाना ारं भ कर िदया जहां
फणदार यि नदी म कूदा था। पानी के नीचे जो संघष चल रहा था उससे नदी का पानी लाल
रं ग का हो चुका था। उन सैिनक ने जल एवं समु के देवता भगवान व ण क मक
ाथना क
ू
िक वह र उनके वामी का न हो।
उनम से एक सैिनक अपनी तलवार लेकर नदी म कूदने ही वाला था िक वह फणदार
यि जल तर पर ऊपर आया। उसका परू ा शरीर र से लाल था। यह र उस मगरम छ का
था। वह उस दूसरी ी क ओर तेजी से ताकत लगाकर तैरने लगा जो लगभग अचेत हो चुक
थी। सही समय पर पहंचकर उसने उस ी का िसर पानी से बाहर िनकाल िदया। इसी म य दो
चं वंशी सैिनक अपनी बांस क नौका से पानी म कूद पड़े ।
‘ वामी, कृपया आप नौका पर चले जाएं ,’ उनम से एक ने कहा, ‘हम तैरकर िकनारे आ
जाएं गे।’
‘पहले
ी का मदद करो,’ उस फणदार यि
ने कहा।
सैिनक ने उस अचेत ी को बांस क नौका पर डाल िदया। उसके बाद वह फणदार यि
सावधानी से उस बांस क नौका पर चढ़ा और िकनारे क ओर ले जाने लगा। जब तक फणदार
यि नदी के िकनारे तक पहंचता िव ु न उस दूसरी ी क चेतना वापस लाने म सफल हो
चुका था। ी तेजी से घटी घटनाओं के कारण कुछ भी समझ नह पा रही थी।
‘ या तुम ठीक हो?’ िव
ु न ने उस
ी से पछ
ू ा।
उ र म उस ी ने िव ु न से हटकर दूर देखा और बहत जोर से िच ला पड़ी। िव ु न
भी पीछे मुड़ा। नदी के िकनारे पर फणदार यि दूसरी ी के िशिथल शरीर को बांह म िलए आ
रहा था। उसके िवशालकाय शरीर म उसके कपड़े िचपके हए थे। उस नासमझ ी ने देखा िक
उस यि के परू े शरीर पर र पड़ा था, िजसे उसने अपनी िम
ी का समझ िलया।
‘तुमने यह या िकया, रा स?’
ी ने िच लाकर कहा।
नागा ने अचानक ऊपर िसर उठाकर देखा। उसक आंख म थोड़ा आ य िदखाई िदया।
लेिकन उसने कुछ भी बोलने से वयं को रोका। उसने सावधानी से उस ी को भिू म पर िलटा
िदया। िव ु न के पास वाली ी ने उसे भय से देखा।
‘नागा!’ वह जोर से िच लाई।
इससे पहले िक िव ु न कोई िति या िदखाता, वह ी उछलकर खड़ी हो गई और
भागते हए िच लाने लगी, ‘सहायता कर! सहायता कर! एक नागा मेरी िम को खा रहा है!’
नागा ने िवषादपण
ू ि से उस भागती हई ी को देखा। उसने अपनी संत आ मा क
िखड़िकय को बंद कर िदया और अपना िसर िहलाया। िव ु न इस म य मुड़ चुका था। उसने
अपने वामी क आंख म पहली बार आंसू देखे थे। उसने त काल ही अपनी आंख नीची कर ली,
लेिकन तब तक उसने अपने वामी क आंख म दुख एवं पीड़ा के भाव देख िलए थे, जो
सामा यत: भावहीन रहते थे। ोध से थरथराते हए िव ु न ने अपनी तलवार िनकाली ली और
िजस ी क उसने र ा क थी उस कृत न ी को मारने क स गध लेने लगा।
‘नह , िव ु न,’ नागा ने अपना नकाब वापस लगाकर आदेश िदया। उसके बाद एक
सैिनक क ओर मुड़कर कहा, ‘इसे होश म लाओ।’
‘ वामी,’ िव ु न ने तक िकया, ‘इसक िम दूसरे लोग को लेकर आएगी। इस
इसके भा य के भरोसे पर छोड़कर हम यहां से त काल िनकल जाना चािहए।’
ी को
‘नह ।’
‘लेिकन वामी, लोग बहत ज द ही आ सकते ह। हम बचकर िनकल जाना चािहए।’
‘तब तक नह जब तक िक इसे बचा नह िलया जाता,’ नागा ने अपने वभावत: शांत वर
म कहा।
नंदी एवं वीरभ समेत राजशाही दल एक िव ामगहृ के आंगन म म या भोजन करने के िलए
बैठा हआ था, जहां वे अपनी या ा के दौरान के थे। आधी सेना भी भोजन कर रही थी। उ ह उस
ऊजा क आव यकता थी िजसके बल पर वे उस िचलिचलाती धपू म आगे क या ा कर सक।
पवते र यि गत प से भोजन क यव था का परी ण करने आया हआ था। वह सती क
सुिवधा के बारे म िवशेषकर िचंितत था। हालांिक उसने उनके साथ भोजन करने से मना कर
िदया था। वह अपने सैिनक के साथ बाद म भोजन करने वाला था।
बाहरी घेरे के पहरे म शोरगुल ने िशव का यान भंग कर िदया। बहृ पित, नंदी और वीरभ
को बैठे रहने का संकेत करते हए वह इसक खोजबीन करने के उ े य से उठा। पवते र ने भी
कोलाहल सुन िलया था और उसक ओर बढ़ गया था।
‘कृपया, उसक र ा कर!’
ी रो रही थी, ‘एक नागा उसे जीिवत ही खा रहा है!’
‘मुझे मा कर,’ अिधपित ने कहा, ‘ य िक मेरे पास कड़े िनदश ह। हम इस िव ामगहृ के
आसपास से िकसी भी प रि थित म बाहर जाने क अनुमित नह है।’
‘ या बात है?’ पवते र ने पछ
ू ा।
‘आ य म मुड़ते हए अिधपित ने अिभवादन िकया और नीचे झुककर कहा, ‘ वामी, इस
ी का कहना है िक नागा ने इसक िम पर आ मण कर िदया है। वह उसक सहायता करने
को कह रही है।’
पवते र ने उस ी को गहरी ि से देखा। उसक चाह तो यही थी िक वह नागाओं के
दल का पीछा करे और उ ह न कर दे। िकंतु उसके आदेश परू ी तरह से प थे। उसे नीलकंठ
और सती को कभी भी अकेला नह छोड़ना था। उस परू ी सेना का उ े य उनक सुर ा करना था।
िकंतु वह एक ि य था। वह िकस कार का ि य होगा जो एक असहाय क र ा के िलए
लड़ाई भी न कर सके? थोपे गए ितबंध जो उस पर लगे हए थे, उससे कांपते हए वह कुछ कहने
ही वाला था िक िशव वहां कट हो गया।
‘ या बात है?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘ भु,’ अिधपित ने भ च का होकर कहा। उसे िव ास नह हो रहा था िक वह नीलकंठ से
वातालाप कर रहा था, ‘इस ी का कहना है िक नागाओं ने इसक िम पर आ मण कर िदया
है। हम िचंता है िक कह यह कोई चाल न हो। हमने मंदार पवत के माग पर चं वंिशय क दुहरी
चाल के बारे म सुना है।’
िशव ने अपने अंतमन क बात सुनी, ‘पीछे जाओ! उसक सहायता करो!’
एक ही झटके म अपनी तलवार िनकालकर उसने उस
पास ले चलो।’
ी से कहा, ‘मुझे अपनी िम के
पवते र ने िशव को आदर से देखा। वह थोड़ा था, िकंतु था आदर ही। उसने भी त काल ही
अपनी तलवार िनकाल ली और अिधपित क ओर मुड़कर बोला, ‘अपनी पलटन के साथ हमारे
पीछे आओ। सेनापित क, अचानक हमले क तैयारी के साथ परू ी सेना को चौक ना रहने के
िलए कहो। राजकुमारी को िकसी भी हालत म सुरि त रखना है।’
िशव और पवते र उस ी के पीछे दौड़ पड़े जो उ ह उस ओर लेकर जा रही थी। वह वहां
क थानीय मिहला थी। अिधपित तीस सैिनक के दल के साथ उनके साथ चल पड़ा था। लगभग
एक घंटे क दौड़ के बाद वे अंतत: नदी के िकनारे उस थल पर पहंचे जहां मदहोशी क हालत म
एक ी धरती पर बैठी हई थी। गहरी-गहरी सांस लेती हई वह त ध होकर दूर िकसी
का पिनक य को गहराई से देख रही थी। उसके परू े शरीर पर र लगा हआ था, िकंतु िविच
बात यह थी िक उसे कोई चोट नह लगी थी। नदी से आते हए और नदी क ओर जाते हए बहत
सारे पदिच िदखाई दे रहे थे।
अिधपित ने संदेह क ि से उस ी को देखा, जो उ ह वहां लेकर आई थी। अपने सैिनक
क ओर मुड़ते हए उसने आदेश िदया, ‘मु य सेनानायक एवं नीलकंठ के चार ओर एक घेरा
बना लो। यह चाल भी हो सकती है।’
‘वह जीिवत ही खायी जा रही थी, म सच कह रही हं,’ ी ने िच लाकर कहा जो अपनी
िम को जीिवत एवं िबना िकसी हािन के देखने पर िवि मत थी।
‘नह ऐसा नह था,’ िशव ने बड़ी शांित से कहा। उसने नदी म तैरते हए एक मगरम छ के
मत
ृ शरीर क ओर संकेत िकया। कौओं का बड़ा-सा झुंड उसके मत
ृ शरीर पर बैठा था और एक
दूसरे से लड़ाई करते हए उसे न च-खसोट रहे थे, ‘उसने अभी कुछ देर पहले ही उस मगरम छ से
उसक र ा क है।’
‘वह जो कोई भी था, उस पार चला गया है, भु,’ अिधपित ने नदी के िकनारे बहत सारे
पदिच को िदखाते हए कहा।
‘एक नागा इस
ने पछ
ू ा।
ी क र ा करने के िलए अपने जान जोिखम म भला य डालेगा?’ िशव
पवते र भी इस पर अचंिभत तीत हआ। अब तक जो उ ह ने देखा था, यह उन र
नागाओं के वभाव के ठीक िवपरीत घटने वाली घटना थी।
िपपासु
‘ भु,’ अिधपित ने िशव एवं पवते र दोन को संबोिधत करते हए कहा, ‘ ी सुरि त
तीत होती है। संभवत: सब लोग का कना उिचत नह जान पड़ता है। यिद आपक आ ा हो
तो म इन ि य को इनके गांव तक छोड़ आता हं और कािफले को कोट ार म िमलता हं। आप
लोग िव ामगहृ क ओर थान कर सकते ह।’
‘ठीक है,’ पवते र ने कहा, ‘अपने साथ चार सैिनक को भी सुर ा क ि
से ले जाओ।
िशव एवं पवते र दोन ही वहां से चल पड़े । उस अनोखी घटना पर दोन ही िवि मत थे।
देर शाम को िशव, बहृ पित, नंदी और वीरभ आग के पास गोल घेरे म शांित से बैठे हए थे। िशव
ने मुड़कर सती क ओर देखा जो आयुवती एवं कृि का के साथ िव ामगहृ के बरामदे म कुछ
दूरी पर बैठी गंभीर चचा म त लीन थी। पवते र पवू क भांित सैिनक क यव था आिद देख
रहा था। वह यि गत प से सुर ा यव था एवं अपने सैिनक क सुिवधा का परी ण कर रहा
था।
‘यह तैयार है, िशव,’ वीरभ ने िचलम िशव को देते हए कहा।
िशव ने उस िचलम को अपने ह ठ से लगाया और बहत जोर से कश ख चा। कट प से
वह आनंिदत हआ। चैन क आव यकता को देखते हए उसने अपने िम को देने से पहले थोड़ा
और धू पान िकया। वीरभ ने बहृ पित एवं नंदी को कश लेने का आ ह िकया, िकंतु उन दोन
ने मना कर िदया। बहृ पित ने िशव क ओर गहरी ि से देखा जो चुपके-चुपके सती को बारबार देख रहा था। वह मु कुराया और उसने िसर िहलाया।
‘ या?’ िशव ने पछ
ू ा य िक उसने बहृ पित क मु ा को देख िलया था।
‘म आपक आकां ा समझ रहा हं, िम ,’ बहृ पित ने फुसफुसा कर कहा, ‘िकंतु आप
िजसक आशा कर रहे ह, वह बहत किठन है। लगभग असंभव।’
‘जब वह इतनी मू यवान है तो आसान तो नह ही होगी। या हो सकती है?’
बहृ पित मु कुराया और उसने िशव के हाथ पर थपक दी।
वीरभ को पता था िक उसके िम को या चािहए था। न ृ य एवं संगीत। इसने उनक
मनोदशा को हमेशा ठीक िकया है, ‘इस दयनीय देश म लोग गाते और नाचते नह ह या?’
‘वीरभ , सावधान,’ नंदी ने कहा। उसके बोलने का अंदाज अपने अधीन थ से दूसरा था,
‘पहली बात तो यह है िक यह देश दयनीय नह है। यह िव म सबसे महान भिू म है।’
वीरभ ने मसखरी के लहजे म अपने दोन हाथ को एक दूसरे से जकड़कर झठ
ू ी
याचना क ।
मा
‘दूसरी बात,’ नंदी ने कहना जारी रखा, ‘हम तभी न ृ य करते ह जब वैसा कोई अवसर
होता है, जैसे होली का पव या िफर कोई सावजिनक दशन।’
‘लेिकन न ृ य करने म सबसे अिधक खुशी तब होती है जब आप िबना िकसी कारण के
करते ह, अिधपित,’ वीरभ ने कहा।
‘म सहमत हं,’ िशव ने कहा।
नंदी त काल चुप हो गया।
िबना िकसी चेतावनी के वीरभ ने अचानक ही अपने देश का एक लोकगीत गाना शु
कर िदया। िशव अपने िम को देखकर मु कुराया य िक वह अपना सबसे पसंदीदा गीत गा रहा
था। गीत गाते हए ही वीरभ धीरे से उठा और उसने उतार-चढ़ाव वाले उस धुन पर नाचना भी
शु कर िदया था। थोड़ी ही देर म िशव भी उसके साथ न ृ य कर रहा था। न ृ य एवं गांजे के
िम ण ने उसक मनोदशा को परू ी तरह से प रवितत कर िदया था।
बहृ पित ने पहले िशव को च ककर देखा और उसके बाद स नता से। उसने देखा िक
उनके न ृ य म एक िवशेष कार क शैली थी, एक लय िमि त छह चलन थे। िशव ने हाथ आगे
बढ़ाकर बहृ पित और नंदी को खड़ा कर िदया। पहले तो वे परी ण के तौर पर न ृ य पद िमलाने
के यास म थे, उसके बाद न ृ य नह करने क इ छा वाला बहृ पित भी िथरकने लगा। उनका
समहू आग के चार ओर एक गोल घेरे म जोर से गाते हए नाच रहा था।
िशव अचानक ही उस समहू के घेरे से छूटकर बाहर सती के पास गया और बोला, ‘मेरे साथ
न ृ य क िजए?’
भ च क सती ने इंकार म िसर िहलाया।
‘अब आ भी जाइए! जब गु जी और मेरे देखते समय आप न ृ य कर सकती ह, तो यहां
य नह ?’
‘वह ान के िलए था!’ सती ने कहा।
‘तो? यिद आप िकसी ान के िलए नह न ृ य करती ह तो इसम कुछ गलत है?’
‘मने ऐसा नह कहा।’
‘ठीक है। आप अपने कार से ही कर,’ िशव ने झुंझलाहट वाली मु ा म कहा, ‘आयुवती,
आप आइए!’
चिकत आयुवती नह जानती थी िक वह या िति या दे। इससे पहले िक वह कुछ कहने
या करने का िनणय ले पाती िशव ने उसका हाथ पकड़ा और उसे घेरे म ख च िलया। वीरभ ने
इस म य कृि का को भी लुभा िलया। उस समहू ने बहत ही जोशपण
ू ढं ग से न ृ य िकया और खबू
जोर-जोर से गाना गाया। उस शांत राि म यह बहत ही अिधक शोरगुल था। सती उठ खड़ी हई,
वह प
प से ु ध थी, उसने िशव क पीठ को तीखी ि से देखा और भागकर िव ामगहृ
म चली गई। िशव का ोध और अिधक बढ़ गया जब उसने पीछे मुड़कर देखा और बरामदे पर
सती को नह पा सका।
लानत है!
उसने मन ही मन कहा और न ृ य म रम गया। उसका दय पीड़ा और स नता के एक
िविच िम ण म घुलने लगा। उसने एक बार िफर बरामदे क ओर मुड़कर देखा। वहां कोई नह
था।
उस परदे के पीछे कौन है?
िशव को वीरभ ने न ृ य के दूसरे पद करने के िलए ख च िलया।
उसके बाद कुछ ण के बाद ही िशव को अवसर िमला िक वह बरामदे क ओर दुबारा देख
सके। वह सती को देख पा रहा था। परदे के पीछे उसके शरीर क परे खा िदख रही थी जो केवल
उसे ही देख रही थी। केवल उसे।
अित सदुं र!
आ य और खुशी से भरपरू िशव उछल-उछलकर न ृ य करने लगा। अपने अ यंत उ साह के
साथ। िशव को उसे भािवत करना ही था!
अ याय - 13
अपिव का आशीष
नी लकंठ के
वागत म कोट ार अपने पण
ू वैभव म था। दुग क बाहरी दीवार पर मशाल जली
हई थ , जैसे दीवाली का योहार हो। लाल एवं नीली पताकाएं दुग क लंबी-लंबी दीवार से लटक
हई थ , िजन पर सय
ू वंिशय का सय
ू चमक रहा था। नयाचार का उ लंघन करते हए कोट ार के
रा यपाल नीलकंठ का वागत करने यि गत प से दुग के बाहर ती ारत थे। कोट ार के
दरबार म कुलीन वग के लोग के िलए औपचा रक प से नीलकंठ के दशन के बाद, दूसरे
िदन एक सावजिनक सभा का आयोजन िकया गया। कोट ार क लगभग सम त जनसं या
अथात पसठ हजार लोग इसम शािमल होने के िलए इक े हए थे। उतनी बड़ी सं या म लोग को
थान देने के िलए नगर क वेिदका के बाहर इस सभा का आयोजन िकया गया था तािक सभी
लोग को थान िमल सके।
िशव ारा िदए गए एक भाषण ने कोट ार वािसय को यह ढ़ िव ास िदला िदया था िक
मेलहू ा के संकट के िदन बहत ही शी समा होने वाले थे। लोग का उस पर जो असाधारण
िव ास देखने को िमला था वह िशव के िलए आ यजनक कटीकरण था। य िप वह अपने
श द के चयन म बहत सावधान था। उसने कहा िक वह मेलहू ा के लोग क सहायता के िलए
उससे जो भी संभव हो सकेगा वह करे गा, लेिकन जनता ने उसके अपने-अपने अथ िनकाल िलए
थे।
‘शािपत चं वंिशय का अंतत: नाश होगा,’ एक यि
ने कहा।
‘हम अब िकसी चीज क िचंता करने क आव यकता नह है। नीलकंठ सब कुछ देख
लगे,’ एक ी ने कहा।
भाषण देने वाली वेिदका पर बहृ पित एवं सती के साथ बैठा हआ पवते र जनता क
िति या पर अ यिधक अ स न था। मु य वै ािनक क ओर मुड़ते हए उसने कहा, ‘हमारा परू ा
समाज िनयम-कानन
ू पर आधा रत है और हमसे िकसी का अंध अनुसरण करना अपेि त नह है।
हमसे अपेि त है िक हम अपनी िवपि य का वयं ही समाधान कर और िकसी एक यि से
चम कार क उ मीद न रख। इस यि
ने ऐसा या िकया है जो इस अंधे िव ास का पा है?’
‘पवते र,’ बहृ पित ने न ता से कहा य िक वह उसका बहत आदर करता था, ‘मेरा
सोचना है िक िशव एक भला यि है। वह इस बात का बहत यान रखता है िक वह कुछ अ छा
करे । और या कुछ अ छा करने का इरादा िकसी अ छे कम क िदशा म थम कदम नह है?’
पवते र परू ी तरह से सहमत नह था। नीलकंठ क पौरािणक गाथा म कभी भी िव ास
नह करने वाले सेनानायक ने सोचा िक येक पु ष एवं ी को िश ण एवं तैयारी से अपने
थान को हािसल करना होता है न िक उसे वह चांदी क परात म िमल जाए य िक उसका गला
नीला हो, ‘हां, वह सच हो सकता है। िकंतु केवल इरादा ही पया नह होता। उसके साथ-साथ
मता भी होनी चािहए। यहां हम एक अ िशि त यि को एक थान पर रखते ह और यह
आशा करते ह िक वह हमारा र क है। हम इतना पता है िक वह परू ी तरह से तबाही क ओर ले
जा सकता है। हम आ था पर काम कर रहे ह, न िक तक या िनयम पर या िफर अनुभव पर।’
‘जब एक यि पहाड़ के समान किठन िवपि य के सम खड़ा होता है तो कभी-कभी
उस यि को थोड़ी-बहत आ था क भी आव यकता होती है। औिच य हमेशा काम नह करते
ह। हम भी चम कार क आव यकता है।’
‘आप चम कार क बात कर रहे ह? एक वै ािनक?’
‘वै ािनक चम कार भी होते ह, पवते र,’ बहृ पित मु कुराया।
पवते र ने देखा िक िशव वेिदका से नीचे उतर रहा था, तो वह िवचिलत हो गया। जैसे ही
वह नीचे उतरा तो लोग म उसके हाथ छूने क होड़ लग गई। नंदी और वीरभ के नेत ृ व म
सैिनक उ ह थामे हए थे। इसी भीड़ म एक अंधा भी यि था। ऐसा तीत हो रहा था िक इस
हंगामे म उसे चोट न लग जाए।
‘नंदी उस यि
को आने दो,’ िशव ने कहा।
नंदी और वीरभ ने र सी नीचे झुकाकर उसे अंदर आने िदया।
एक अ य यि
चीखा, ‘म उनका पु हं। उ ह मागदशन के िलए मेरी आव यकता है।’
‘उसे भी आने दो।’ िशव ने कहा।
उसका पु तेजी से अंदर घुसा और उसने िपता का हाथ थाम िलया। वह अंधा यि जो
अचानक ही खोया हआ महसस
ू कर रहा था, सहसा मु कुरा उठा। उसे प रिचत हाथ का पश
िमल चुका था। उसका पु उसे िशव के िनकट ले आया। उसके पु ने कहा, ‘िपता ी, नीलकंठ
आपके ठीक सामने खड़े ह। या आप उनक उपि थित का अनुभव कर सकते ह?’
उस अंधे यि क आंख से अ ुधारा वािहत होने लगी। िबना सोचे-समझे ही वह झुका
और उसने िशव के चरण पश करने का यास िकया। उसका पु िवचिलत होकर जोर से
िच लाया और उसने उस यि को पीछे क ओर ख च िलया।
‘िपता ी!’ पु ने फटकारा।
िशव उसके पु के बोलने के लहजे से भ च का रह गया य िक अब तक वह बहत यार से
बोल रहा था और वह बोल पड़ा, ‘ या हआ?’
‘मुझे मा कर, भु,’ पु ने मा याचना क , ‘इ ह ने जान-बझ
ू कर नह िकया। आपक
उपि थित के कारण उ ह िनयं ण नह रहा।’
‘मुझे मा कर, भु,’ उसे अंधे यि
रहा था।
ने कहा। उसक आंख से आंसू का वाह क नह
‘ मा िकसिलए?’
‘वे िवकम ह, भु,’ पु ने कहा, ‘तब से जब बीस वष पहले बीमारी ने इ ह अंधा बना िदया।
इ ह आपको पश करने का य न नह करना चािहए था।’
सती उस समय िशव के िनकट ही खड़ी थी। उसने यह बातचीत सुन ली थी। उसे उस अंधे
यि पर दया आ रही थी। वह उस पीड़ा का अनुभव कर सकती थी, िजससे िकसी के पश को
भी अपिव माना जाए। िकंतु जो उसने करने का य न िकया था वह अनुिचत था।
‘मुझे मा कर, भु,’ वह अंधा यि बोल रहा था, ‘िकंतु आपके मेरे ित इस ोध को मेरे
देश क र ा म कावट मत बनने दीिजएगा। हमारा देश सबसे महान है िजसे परमा मा ने
बनाया है। दु चं वंिशय से इस सा ा य क र ा कर। हमारी र ा कर।’
वह अंधा यि
िहल गया था।
प ाताप क मु ा म हाथ जोड़े रोता जा रहा था। िशव उसके इस बड़ पन से
वह अभी भी अपने देश को यार करता है जो उससे इतना अ यायपण
ू यवहार करता है।
य ? और तो और वह यह भी नह सोच रहा िक उसके साथ अ याय हो रहा है।
िशव क आंख से आंसू छलक आए। उसने महसस
ू िकया िक वह ऐसे यि
है, िजस पर भा य ने िनदयता क है।
को देख रहा
म इस बकवास को रोकंू गा।
िशव ने आगे कदम बढ़ाया और झुक गया। हैरान-परे शान उस अंधे यि के पु ने
अिव ास म देखा िक नीलकंठ ने उसके िवकम िपता के चरण छुए। कुछ ण के िलए वह अंधा
यि सागर म गोते लगा रहा था। जब उसे बात समझ आई िक नीलकंठ ने या िकया तो सदमे
म उसके हाथ उसके खुले मुंह पर चला गया।
िशव उस अंधे यि के सामने उठा और खड़ा हआ, ‘मुझे आशीवाद द, ीमान, तािक मुझम
इतनी शि आ जाए िक आप जैसे देशभ के िलए म यु कर सकं ू ।’
वह अंधा यि मक
ू बन चुका था। अचंभे से उसक आंख के आंसू सख
ू गए थे। वह िगरने
ही वाला था िक िशव ने एक कदम आगे बढ़कर उसे थाम िलया, नह तो वह अव य िगर गया
होता। उसके बाद उस अंधे यि
को इतना कहने का बल िमला, ‘िवजयी भव’।
िशव ने जब उसे छोड़ा तो पु ने अपने िपता के िशिथल शरीर को पकड़ िलया। िशव ने जो
िकया था उस घटना पर समच
ू ी भीड़ त ध होकर मक
ू बन गई था। िवकम को छूने क बात तो
एक तरफ िशव ने तो उससे आशीवाद भी मांगा था। िशव मुड़ा तो उसने पवते र के ोध से भरे
मुख को देखा। िशव ने िनयम का उ लंघन िकया था। िनल जता और सावजिनक प से उसे
तोड़ा था। उसक बगल म सती खड़ी थी। उसका मुख, उसक आंख, उसका परू ा यवहार
भाविवहीन था।
यह ऐसी या बात सोच रही है?
बहृ पित और सती ने िशव के कमरे म वेश िकया, जैसे ही वह एकांत म हआ। अपने दो पसंदीदा
यि य को देखने पर उसके मुख पर आई मु कान सती के वर के साथ अ य हो गई,
‘आपको अव य शुि करण करवा लेना चािहए।’
उसने ि
उठाकर उसक ओर देखा और सरलता से कहा, ‘नह ।’
‘नह ? आप कहना या चाहते ह?’
‘मेरे कहने का सीध-सा अथ है। ना, नह , नको,’ िशव ने क मीरी एवं कोट ार क लोक
भाषाओं म नह के िलए यु होने वाले श द के उ चारण िकए।
‘िशव,’ बहृ पित ने गंभीरता के साथ कहा, ‘यह मसखरी क बात नह है। म सती से
सहमत हं। रा यपाल भी आपक सुर ा के बारे म िचंितत ह और उ ह ने एक पंिडत क भी
यव था कर ली है। वे बाहर ती ा कर रहे ह। आप अभी यह धमाचार करवा ल।’
‘लेिकन मने अभी कहा िक म नह करवाना चाहता।’
‘िशव,’ सती ने अपने पुराने लहजे म आकर कहा, ‘म आपका अ यिधक आदर करती हं।
आपक वीरता। आपक बुि । आपक ितभा। सबका आदर करती हं, लेिकन आप िनयम से परे
नह ह। आपने एक िवकम को पश िकया है। आपको शुि करण करवाना ही होगा। यह िनयम
है।’
‘ठीक है, यिद िविध यह कहती है एक गरीब अंधे यि
ही अनुिचत है।’
को मेरा छूना अवैध है तो वह िविध
िशव के इस यवहार से सती त ध होकर मक
ू बन गई।
‘िशव, मेरी बात सुिनए,’ बहृ पित ने तक िदया, ‘शुि करण नह करवाना आपके िलए
हािनकारक हो सकता है। आपको बड़े -बड़े काय करने ह। आप भारतवष के भिव य के िलए
मह वपण
ू ह। केवल हठ के कारण आप वयं को जोिखम म मत डािलए।’
‘यह हठ नह है। परू ी िन ा से आप मुझे एक बात बताइए िक कैसे यह मुझे हािन पहंचाएगा
यिद मने एक िवकम यि को छू िदया है, िजसके िलए म यह कहना चाहता हं िक वह अभी भी
अपने सा ा य से यार करता है, इसके बावजदू िक उसे इस तरह से अपमािनत िकया है और
उसके साथ अनुिचत यवहार िकया गया है?’
‘वह एक अ छा यि हो सकता है, िशव, िकंतु उसके पवू ज म के पाप आपके भा य को
दूिषत कर सकते ह,’ बहृ पित ने कहा।
‘तो उसे करने दीिजए! यिद उस यि
ध य समझंग
ू ा।’
के कंधे से कुछ भार कम होता है, तो म वयं को
‘यह आप या रहे ह, िशव?’ सती ने पछ
ू ा, ‘आप िकसी और के दंड के भागीदार य
बनगे?’
‘पहली बात तो यह है िक म इस बकवास को नह मानता िक उसे उसके पवू ज म के पाप
के कारण कोई दंड िमला है। उसे एक बीमारी हई, जो एक सीधी एवं सरल बात है। दूसरे , यिद मेरी
इ छा है िक म िकसी दूसरे के इस तथाकिथत पाप का भार उठाऊं तो इससे िकसी और को या
परे शानी हो सकती है?’
‘यह मह व रखता है य िक हम आपका भला चाहते ह,’ बहृ पित ने लगभग रोते हए
कहा।
‘देखो सती,’ िशव ने कहा, ‘अब आप मत कहना िक आप भी इस बकवास म िव ास
करती ह।’
‘यह बकवास नह है।’
‘देिखए, या आप नह चाहती िक म आपके िलए संघष क ं ? समाज ारा िकए जाने वाले
इस अनुिचत यवहार को समा क िजए, जो आपके साथ िकया जा रहा है।’
‘तो या यह इस कारण से है? मेरे िलए?’ सती ने
ोध म पछ
ू ा।
‘नह ,’ िशव ने त काल ही यु र िकया और उसके बाद आगे जोड़ा, ‘वैसे यह सही भी है।
यह आपके बारे म भी है। यह िवकम के बारे म ह और जो वे अनुिचत यवहार का सामना कर रहे
ह। जाित बिह कृत क तरह जीवन जीने से म उनक र ा करना चाहता हं।’
‘मुझे आपक सुर ा क आव यकता नह है! म मु
िनकलने से पहले सती ने िच लाकर कहा।
नह हो सकती!’ कमरे से बाहर
िशव ने उसके बाहर जाने को झुंझलाहट के साथ देखा, ‘आिखर इस
ी को या हो गया
है?’
‘वह सही है, िशव,’ बहृ पित ने सुझाव िदया, ‘वहां मत जाइए।’
‘ या इस िवकम के संदभ म आप उससे सहमत ह? अपने दय से इसका उ र दीिजए,
बहृ पित। या आप नह सोचते िक यह अनुिचत है?’
‘म उस बारे म बात नह कर रहा था। म सती के बारे म बात कर रहा था।’
िशव िनडर भाव से बहृ पित को देख रहा था। उसके मन, शरीर और आ मा सभी कह रहे थे
िक वह उसे मनाए। उसका जीवन उसके िबना अथहीन हो जाएगा। उसक आ मा का अि त व
उसके िबना अधरू ा रह जाएगा।
‘वहां मत जाइए, िम ,’ बहृ पित ने पुन: कहा।
राजशाही नौकायान से नदी नगर कोट ार से कािफला िनकला। उसके आगे और पीछे राजशाही
नौकायान क भ यता एवं आकार वाले दो और नौकायान भी साथ-साथ चले। यह मेलहू ा क
ला िणक सुर ा यव था थी, िजसम अित र नौकाएं यह गफलत उ प न करने के िलए थे
तािक सरलता से पता न चले िक राजसी प रवार िकस नौकायान म या ा कर रहा था। सम त
राजसी दल दूसरे नौकायान म था। इसके अित र पांच अित र छोटी एवं तेजी से इधर-उधर ले
जायी जा सकने वाली नौकाएं राजसी कािफले के दोन ओर चल रही थ । वे राजसी नौकायान
क ही गित से दोन ही ओर चल रहे थे तािक घात लगाकर िकए जाने वाले आ मण से सुर ा
दान क जा सके।
‘जब मानसन
ू सि य नह होता है, भु,’ आयुवती ने कहा, ‘तो निदयां या ा के िलए सबसे
सुगम माग होती ह। य िप हमारे सा ा य म सभी मु य नगर को जोड़ने वाली सड़क ह, िकंतु
वे नदी ारा या ा क गित एवं सुर ा क तुलना म उतनी अ छी नह कही जा सकती ह।’
िशव ने मधुर मु कान से आयुवती को देखा। उस कार के वातालाप के िलए इस समय
उसक िच नह थी। कोट ार म उस दुभा यशाली िदवस पर जब िशव ने शुि करण करवाने से
मना कर िदया था तब से सती उससे नह बोली थी।
राजसी नौकायान नदी पर ि थत कई नगर पर का। हर जगह लगभग वैसे ही आयोजन
हए। नीलकंठ के आगमन पर येक नगर म अ यिधक उ लास प िदखाई दे रहा था।
इस कार क िति या मेलहू ा म अ ाकृितक थी। िकंतु यह बात भी सही थी िक नीलकंठ
ितिदन नह आते थे।
‘ य ?’ िशव ने बहृ पित से पछ
ू ा। वह बहत िदन तक अपने याकुल मन क अशांित पर
चुप रहा था।
‘ य
या?’
‘आप जानते ह म या बात कर रहा हं, बहृ पित,’ िशव ने िचढ़ म अपनी आंख संकुिचत
करते हए कहा।
‘वह सचमुच म ही िव ास करती है िक वह िवकम होने क पा है,’ बहृ पित ने दुख भरी
मु कान के साथ कहा।
‘ य ?’
‘वह िजस कार से िवकम बनी संभवत: उस कारण से।’
‘वह कैसे हआ था?’
‘यह उसके पवू के िववाह के दौरान हआ था।’
‘ या! सती का िववाह हआ था?’
‘हां। यह लगभग न बे वष पहले क बात है। वह सा ा य के एक कुलीन प रवार से एक
राजनीितक िववाह था। उसके पित का नाम चंदन वज था। वह गभवती हई और मयका सिू त के
िलए गई। वह मानसन
ू का समय था। दुभा य से ब चा मत
ृ उ प न हआ।’
‘हे भगवान!’ िशव ने सती क उस पीड़ा से सहानुभिू तपवू क कहा, जो उसे तब महसस
ू हई
होगी।
‘इतना ही नह , इससे भी बुरा हआ। उसी िदन इसके पित, जो अपने ब चे के सुरि त ज म
के िलए नमदा म पज
ू ा करने के िलए गए थे, वे दुघटनावश डूब गए। उस शािपत िदन इसका
जीवन न हो गया था।’
िशव ने बहृ पित को घरू ा। वह इतना त ध था िक कोई िति या भी नह दे सका।
‘वह िवधवा हो गई और उसी िदन उसे िवकम घोिषत कर िदया गया।’
‘लेिकन पित क म ृ यु के िलए उसे य दोष िदया गया?’ िशव ने तक िकया, ‘यह तो
पण
ू त: बेतुक बात है।’
‘उसे पित क म ृ यु के कारण िवकम घोिषत नह िकया गया था। यह तो उसके मत
ृ ब चा
जनने के कारण िकया गया था।’
‘लेिकन वह तो िकसी भी कारण से हो सकता है। हो सकता है िक थानीय वै
चक
ू हो गई हो।’
से कोई
‘यह मेलहू ा म नह होता है, िशव,’ बहृ पित ने शांत भाव से कहा, ‘मत
ृ िशशु का ज म एक
ी के िवकम बनने के िलए सबसे बुरा तरीका माना जाता है। इससे अिधक बुरा मा नागा ब चे
को ज म देना माना जाता है। ई र क कृपा है िक ऐसा नह हआ था। य िक यिद वैसा हआ
होता तो उसे समाज से पण
ू त: बिह कृत कर िदया जाता।’
‘इसे बदलना होगा। िवकम क अवधारणा अनुिचत है।’
बहृ पित ने िशव को गहरी ि से देखा, ‘आप एक िवकम क र ा कर सकते ह, िशव।
िकंतु आप उस ी क र ा कैसे कर सकते ह जो रि त नह होना चाहती? वह सचमुच म ही
ऐसा िव ास करती है िक वह दंड क पा है।’
‘ य ? म िन य के साथ कह सकता हं िक मेलहू ा म वह पहली ी नह होगी, िजसने मत
ृ
िशशु को ज म िदया होगा। उसके पहले भी कई लोग हए ह गे। उसके बाद भी कई लोग ह गे।’
‘वह पहली राजशाही ी थी, िजसने मत
ृ िशशु को ज म िदया था। उसका भा य स ाट के
िलए शिमदगी का ोत रहा है। उनके वंश के बारे म यह
खड़े करता है।’
‘यह उनके वंश के बारे
कैसे उठा सकता है? सती उनक ज म पु ी नह है। वह भी
मयका से आई होगी, या म सही हं?’
‘नह , मेरे िम । वह िनयम कुलीन प रवार के िलए दो सौ पचास वष पहले िशिथल कर
िदया गया था। कट प से उस समय यह ‘रा ीय िहत’ म िकया गया था िक कुलीन प रवार
को अपनी ज म संतित रखने क अनुमित दान कर दी गई थी। कुछ िनयम म संशोधन िकए
जा सकते ह। यिद न बे ितशत ा ण, ि य एवं वै य जो एक चयिनत जाित-वग एवं
मानक य यावसाियक तर से ऊंचे ह इस प रवतन के िलए मतदान करते ह। ऐसी मतै यता
क कुछ ही घटनाएं हई ह। यह उनम से एक थी। मा एक यि ने इसका िवरोध िकया था।’
‘कौन?’
‘ ीमान स य वज, पवते र के िपतामह ने। जबसे यह िनयम पा रत हआ है, तबसे उनके
प रवार ने ित ा ले रखी है िक वे ज म संतित नह रखगे। पवते र आज तक उस वचन का
स मान करते ह।’
‘लेिकन यिद ज म िनयम को बदला जा सकता है,’ िशव ने कुछ िवचार कर कहा, ‘तो
िवकम िनयम य नह बदला जा सकता?’
‘ य िक इससे बहत अिधक कुलीन प रवार भािवत नह ह। यह एक कड़वी सचाई है।’
‘लेिकन ये सारी बात तो भु ी राम क सीख के िव
जाती ह!’
‘ भु ी राम क सीख भी कहती है िक िवकम क अवधारणा उिचत है। या आप उसके
ऊपर
िच नह लगाना चाहते?’
िशव ने नदी क ओर देखने से पहले चुप होकर यान से बहृ पित को देखा।
‘ भु ी राम के िनयम पर
उठाना कोई अनुिचत बात नह है, िम ,’ बहृ पित ने कहा,
‘कई बार ऐसा हआ था जब उ ह ने दूसर के कारण िववरण को देखकर िनयम म बदलाव िकए
थे।
यह है िक िनयम को प रवितत करने के पीछे आपक मंशा या है? या इसिलए िक
आप सचमुच ही ऐसा मानते ह िक िनयम अनुिचत है? या िफर इसिलए िक आप सती क ओर
आकिषत ह और आप इस असुिवधाजनक िनयम को हटाना चाहते ह य िक वह आपके माग म
बाधा है।’
‘म सचमुच ही मानता हं िक िवकम िनयम अनुिचत है। म इसे उस समय से महसस
ू कर रहा
हं जबसे मुझे इसके बारे म पता चला है। उससे भी पहले जब मुझे पता चला िक सती िवकम है।’
‘िकंतु सती ऐसा नह मानती िक िनयम अनुिचत है।’
‘लेिकन वह एक नेक
ी है। वह इस कार के आचरण क पा नह है।’
‘वह मा एक नेक ी ही नह है। म िजतनी भी ि य से आज तक िमल पाया हं, उनम
वह े है। वह सुंदर है, स ची है, सीधी बात करने वाली है, वीर है और बुि मान है, उसम वह
सब है, जो एक पु ष एक ी म देखना चाहता है। िकंतु आप मा एक यि नह ह। आप
नीलकंठ ह।’
िशव पीछे मुड़ा और वह उस नौकायान क लोहे क छड़ क आड़ पर अपने हाथ रखकर
सहारा लेकर खड़ा हो गया। नदी के िकनारे -िकनारे दूर उस सघन वन को िशव ने देखा। उनका
नौकायान जल म िहचकोले लेता हआ आगे बढ़ रहा था। सुकून पहंचाने वाली शाम क मंद पवन
िशव के लंबे बाल के गु छ को लहरा रही थी।
‘मने आपसे पहले भी कहा था, िम ,’ बहृ पित ने कहा, ‘इस दुभा यपण
ू नीले गले के
कारण, आप जो कोई भी िनणय लगे उसके कई प रणाम ह गे। आपको कुछ भी करने से पहले
कई बार सोचना पड़े गा।’
देर रात हो चुक थी। राजशाही कािफला िसंधु नदी पर ि थत सु गेनगढ़ नामक नगर से चल
पड़ा था। नीलकंठ को देखने पर सु गेनगढ़ म भावनाएं अव यंभावी प से उमड़ पड़ी थ । अब
जब भी नीलकंठ दशन देते थे तो यह एक सामा य िनयम जैसा तीत होता था। उनक स यता
के र क अंतत: आ ही गए थे।
हालांिक उनका र क अपने ही िनजी नक म था। िपछले कई स ाह से सती ने िशव से दूरी
बनाए रखी थी। वह अंदर ही अंदर टूट चुका था। उसक पीड़ा और उदासी इतनी गहरी हो चुक थी
िक उसे माप पाना असंभव था।
कािफले का अगला पड़ाव िस नगर मोहन जोदारो अथवा मोहन क वेिदका था। उस
िवशाल िसंधु नदी पर बसे उस नगर को महान दाशिनक-पंिडत ी मोहन को समिपत िकया गया
था, जो कई सह ाि दय पवू वहां िनवास करते थे। जब उसने मोहन जोदारो के लोग से भट कर
ली तो िशव ने ी मोहन के मंिदर मण करने क इ छा कट क । वह मंिदर नगर क मु य
वेिदका के बाहर िसंधु नदी के तट पर नीचे जाकर बना हआ था। रा यपाल ने इ छा जताई िक वे
भु नीलकंठ को एक भ य सवारी म वहां ले चलगे। हालांिक िशव ने वहां अकेले ही जाने क हठ
क थी। उसे तीत हो रहा था िक वह मंिदर उसे ख च रहा था। उसे बुला रहा था। उसने यह भी
अनुभव िकया िक संभव है िक वहां उसके िवपि
त दय का कोई न कोई हल िमल जाए।
मंिदर बहत ही साधारण था। वयं ी मोहन क तरह ही। एक छोटे साधारण िनमाण ने
घोषणा क िक यह िकसी ानी का ज म थल था। उस मंिदर के मह व का माण मा इस बात
से पता चलता था िक उसके ांगण म चार िदशाओं म िवशालकाय ार बन हए थे। जैसािक िशव
ने िनदिशत िकया था, नंदी और वीरभ एक पलटन समेत बाहर ती ा कर रहे थे।
िशव सुिवधा दान करने वाले गुलबू ंद को अपने गले म लपेटकर सीिढ़य पर चढ़ने लगा।
उसे एक लंबे समय के बाद शांित क अनुभिू त हई थी। उसने वेश ार का घंटा बजाया और एक
खंभे से सटकर बैठ गया। उसक आंख बंद थ और वह गहरे यान म लीन था। अचानक
आ यजनक प से जाने-पहचाने वर ने पछ
ू ा, ‘आप कैसे ह िम ?’
अ याय - 14
मोहन जोदारो का पंिडत
िश व ने अपनी आंख खोल तो वह उस
यि को िनहारने लगा जो उस पंिडत क ितकृित
जैसा जान पड़ रहा था, जो उसे
ा मंिदर म िमला था और ऐसा तीत हो रहा था िक उसी का
दूसरा ित प हो। उसके भी वैसे ही ेत लंबे वाह क तरह झल
ू ती दाढ़ी और ेत घने बाल थे।
उसने केस रया रं ग क धोती और अंगव म् पहन रखे थे। उसका झुर दार मुख एक शांत एवं
वागतीय मु कान िलए हए था। यिद उसक लंबाई अिधक नह होती तो िशव सहवन म उसे वही
पंिडत समझ लेता, जो उसे
ा मंिदर म िमला था।
‘आप कैसे ह, िम ,’ बैठते हए उस पंिडत ने पुन: पछ
ू ा।
‘म ठीक हं, पंिडत जी,’ िशव ने भारतीय श द ‘जी’ का योग करते हए कहा, जो स मान
देने के िलए यु होता है। वह समझ नह पा रहा था िक यह ह त ेप उसे अ छा लग रहा था या
नह । उसे लगभग ऐसा ही तीत हो रहा था िक उसे इस मंिदर म लाया गया था तािक वह उस
पंिडत से भट कर सके। उसने पछ
ू ा, ‘ या मेलहू ा के सभी पंिडत एक जैसे ही िदखते ह?’
वह यि
गमाहट भरी मु कान के साथ बोला, ‘सभी पंिडत नह । मा हम।’
‘और ये हम कौन हो सकते ह, पंिडत जी?’
‘जब आप अगली बार हमम से िकसी भी एक से िमलते ह, तब हम आपको बता दगे,’ पंिडत
ने रह यमय ढं ग से कहा, ‘यह हमारा वचन है।’
‘अभी य नह ?’
‘इस समय हमारी पहचान मह वपण
ू नह है,’ पंिडत मु कुराकर बोला, ‘मह वपण
ू यह है
िक आप िकसी कारण से परे शान ह। या आप उस संबंध म कुछ बात करना चाहते ह?’
िशव ने एक गहरी सांस ली। उसक सहज बुि ने उससे कहा िक वह उस यि
कर सकता था।
पर भरोसा
‘यह एक िनयु
काय है िजसे किथत प से मुझे मेलहू ा के िलए परू ा करना है।’
‘मुझे मालम
ू है। य िप म नीलकंठ क भिू मका को मा एक िनयु काय कहकर टालंग
ू ा
नह । वह इससे बहत अिधक करता है।’ िशव के गले क ओर संकेत करते हए पंिडत ने कहा,
‘सत
ू ी कपड़े के कुछ टुकड़े दैवीय दीि को छुपा नह सकते।’
िशव ने आतुरता भरी मु कान से देखा, ‘असल म, मेलहू ा अव य ही एक आदश समाज
तीत होता है। और म वह सब कुछ करना चाहता हं जो इसके संर ण के िलए आव यक ह।’
‘िफर सम या या है?’
‘सम या यह है िक इस लगभग आदश से समाज म मने पाया िक कुछ परं पराएं अ यिधक
अनुिचत ह। और यह मेलहू ा िजन आदश को पाने क आकां ा रखता है, वे उससे असंगत ह।’
‘आप िकन परं पराओं के बारे म बात कर रहे ह?’
‘उदाहरण के िलए, िजस कार िवकम के साथ यवहार िकया जाता है।’
‘यह अनुिचत य है?’
‘कोई यह िनि त होकर कैसे कह सकता है िक इन लोग ने अपने पवू ज म म पाप िकए
थे? और उनके वतमान के क उनके प रणाम ह? यह मा दुभा य हो सकता है। या िफर कृित
का अिनयिमत काय।’
‘आप सही ह। यह हो सकता है। िकंतु या आप सोचते ह िक िवकम का दुभा य मा उसका
यि गत है?’
‘ या ऐसा नह है?’
‘नह , ऐसा नह है,’ पंिडत उसे समझाया, ‘यह परू े समाज के िलए है। िवकम के दुभा य का
वीकारण मेलहू ा क ि थरता का एक अिनवाय िह सा है।’
िशव ने अपनी योरी चढ़ाई।
‘हे नीलकंठ, िकसी सफल समाज क या आव यकता होती है, उसका लचीलापन एवं
उसक ि थरता। आपको लचीलेपन क या आव यकता है? य िक येक यि का अलगअलग सपना होता है और उसी कार अलग-अलग यो यता होती है। एक यो ा के पु म एक
महान यवसायी का गुण हो सकता है। तब समाज को इतना लचीला होना चािहए िक उस पु
को अपने िपता के यवसाय से पथ
ृ क आजीिवका चुनने क अनुमित होनी चािहए। लचीलापन
िकसी समाज म प रवतन क अनुमित देता है तािक उसके
येक सद य को अपने अंदर छुपे
सच को बाहर िनकालने का अवसर िमल सके और वह अपनी यो यता के अनुसार गित कर
सके। और समाज म यिद येक यि अपने स चे साम य को ा करता है तो संपण
ू समाज
भी अपने स चे साम य को ा कर लेता है।’
‘म सहमत हं।’
लेिकन इसका िवकम से या लेना–देना है।
‘म कुछ ही देर म आपके
पर आऊंगा। पहले थोड़ी देर के िलए मेरी बात सुन ल,’ पंिडत
ने कहा, ‘यिद हम इस बात को मान ल िक लचीलापन एक सफल समाज क कंु जी है तो मयका
यव था इस आचरण को पण
ू करने के िलए एक यावहा रक तरीका है। िकसी भी बालक को
यह पता नह िक उसके ज म देने वाले माता-िपता का या यवसाय था। वे इस बात के िलए
वतं है िक वे अपनी िकस ाकृितक यो यता से े रत होते ह।’
‘म सहमत हं। मयका यव था लगभग आ यजनक प से यायसंगत है। एक यि जो
कुछ भी अपने जीवन म करता है, उसके िलए वह वयं को ेय एवं दोष दोन ही दे सकता है।
लेिकन यह तो लचीलेपन के बारे म है। ि थरता के बारे म या है?’
‘ि थरता एक यि को चयन करने के अिधकार क वतं ता देती है, िम । लोग अपने
सपने को तभी परू ा कर सकते ह जब वे ऐसे समाज म िनवास करते ह जहां उ रजीिवता के िलए
ितिदन का भय नह होता है। िबना सुर ा एवं ि थरता वाले समाज म कोई बुि जीवी या
यवसायी या कलाकार या बुि मान नह होता है। यि हमेशा ही लड़ाई या उड़ान क ि थित म
होता है। वह एक पशु से बढ़कर कुछ नह होता है। िफर उसके पास वह अवसर ही कहां है िक
िवचार के पलने दे सके अथवा िकसी के सपने को परू ा कर सके? समाज बनाने के पवू सम त
मानव इसी कार के थे। स यता बहत ही सहजता से टूटने वाली होती है। हम मानवता को
भुलाने के िलए और पशु बनने के िलए बस कुछ दशक क अराजकता चािहए होती है। असल म
हमारी मौिलक कृित अ यिधक ती ता से हम पर हावी होती है। हम बड़ी सरलता से भल
ू सकते
ह िक हम िविधय , िनयम एवं नैितकता वाले चेतन ाणी ह।’
‘म समझ सकता हं। हमारी मातभ
ृ िू म म कबीलेवाले जानवर से बेहतर नह थे। वे तो एक
अ छा जीवन जीना भी नह चाहते थे।’
‘वे नह जानते थे िक बेहतर जीवन संभव भी था, नीलकंठ। िनरं तर लड़ाई का यही शाप है।
यह हम मानवीयता के सबसे सुंदर अंश को भुला देने को िववश करता है। इसी कारण से समाज
को ि थर रहना चािहए तािक हम एक-दूसरे को ऐसी प रि थित म न धकेल द िक हम
उ रजीिवता के िलए संघष करना पड़े ।’
‘ठीक है। लेिकन लोग का साम य ा करना अि थरता य उ प न करे गा? असल म,
यह लोग को अपने जीवन म और अिधक खुशी दान करे गा और इसिलए समाज उ रो र ि थर
ही बनता जाएगा।’
‘सच है, िकंतु आंिशक प से। लोग तब स न होते ह जब वे बेहतर जीवन क ओर
प रवितत होते ह। िकंतु दो प रि थितयां ह, िजनम प रवतन भीषण गड़बड़ी क ओर ले जा सकता
है। सव थम लोग जब दूसर ारा िकए गए प रवतन का सामना करते ह अथात ऐसी
प रि थितयां जो वे समझ नह सकते ह। यह उ ह उसी कार डराता है जैसे म ृ यु। जब प रवतन
बहत ती ता से घिटत होता है तो वे िवरोध करते ह।’
‘सच है, दूसरे ारा बलपवू क िकए गए प रवतन को वीकार करना किठन है।’
‘और बहत ती गित से िकया गया प रवतन अि थरता उ प न करता है। यही भु ी राम
क जीवनशैली क न व पी ढ़ िशलाएं ह। ऐसी कई िविधयां ह जो िकसी समाज को धीरे -धीरे
प रवितत करती रहती ह और उसे ि थर भी रहने देती ह। साथ ही, वे अपने नाग रक को अपने
सपन का अनुसरण करने क वतं ता क अनुमित भी देती ह। उ ह ने ि थरता एवं लचीलेपन
का एक आदश संतुलन बनाया था।’
‘आपने एक दूसरी प रि थित के बारे म उ लेख िकया था...’
‘दूसरी है जब लोग चाहते हए भी प रवतन नह ला सकते ह य िक कारण उनके िनयं ण
म नह रहते ह। मान लीिजए िक एक बहत ही बेहतरीन यो ा है जो अपने हाथ एवं आंख का
तालमेल िकसी बीमारी के कारण खो बैठता है। वह अभी भी यो ा है, िकंतु असाधारण नह । वह
समझता है िक उसके साथ अ याय हआ है और उसके िलए संभवत: वह कंु िठत भी होगा। तब वह
या तो अपने वै या िफर समाज को इसके िलए दोषी ठहराएगा। ऐसे बहत से असंतु
यि
समाज के िलए एक नासरू बन सकते ह, िजससे समाज को खतरा उ प न हो सकता है।’
िशव ने योरी चढ़ाई। उसे यह तक पसंद नह आया। िकंतु उसे भी पता था िक कुछ वष
पहले कृितवाल ने उसके चाचा जी के शांित ताव को मानने से केवल इसिलए मना कर
िदया था िक उनका रोग त एवं व ृ मुिखया अपनी उस आकां ा को परू ा करना चाहता िक वह
एक ऐसा आपवािदक यो ा था िजसने गुणवाल को परािजत िकया था।
‘उनका एक कृत ोध अशांित उ प न कर सकता है, यहां तक िक िहंसा भी,’ पंिडत ने
कहा, ‘ भु ी राम ने इसका अनुभव कर िलया था। और इसी कारण से िवकम क अवधारणा
अि त व म आई थी। यिद आप िकसी यि को इस बात का िव ास िदला देते ह िक इस ज म
म उसका दुभा य उसके पवू ज म के पाप के कारण ही है, तो वह खुद को अपने भा य के भरोसे
आ म-समपण कर देगा और समाज के ऊपर अपना गु सा नह िनकालेगा।’
‘लेिकन म इस बात से सहमत नह हं िक िवकम का बिह कार एक अ छी युि
अिधक दबे हए ोध को ज म देगा।’
है। यह और
‘िकंतु उ ह बिह कृत नह िकया जा रहा है। उनका लालन-पालन सब कुछ शासन ारा
सहायता ा है। वे तब भी अपने प रवार वाल से िहल-िमलकर रह सकते ह। जहां भी ऐसा संभव
है, उ ह अपनी यि गत िनपुणता ा करने क अनुमित होती है। वे वयं क सुर ा के िलए
संघष कर सकते ह। जो वे नह कर सकते ह, वह है िक वे िकसी को भािवत नह कर सकते।
या आप जानते ह िक भु ी राम के इस सा ा य क थापना से पवू वह सामा य िवरोध या
था? और यह िवरोध उनका नह था, जो वा तव म दूर ि रखते थे, या जो आम आदमी के िलए
बेहतर जीवन दान करते। उनका नेत ृ व ऐसे लोग ने िकया जो वयं अपने जीवन से बुरी तरह
से असंतु थे। वे िवकम के समान ही थे। और ऐसे िवरोध समाज म उथल-पुथल मचा देते थे,
िज ह पुन: एक स य समाज बनाने म दशक लग जाया करते थे।’
‘तो आप यह कह रहे ह िक जो कोई भी अपने जीवन से असंतु
अपने जीवन का आ म-समपण कर देना चािहए।’
है उसे एक िवकम बनकर
‘समाज क वहृ र भलाई के िलए।’
िशव ह का-ब का रह गया। वह इस बात पर िव ास नह कर पाया िक वह या सुन रहा
था। जो तक उसके सामने तुत िकए गए थे, उसे वे परू ी तरह से अ वीकार थे, ‘मुझे मा कर,
लेिकन मुझे लगता है िक यह यव था परू ी तरह से अ यायपण
ू है। मने सुना है िक मेलहू ा म
लगभग पांच ितशत जनसं या िवकम है। या इतनी बड़ी जनसं या हमेशा के िलए जाित
बिह कृत रहने वाली है? यह यव था प रवतन क अपे ा करती है।’
‘आप इसे बदल सकते ह। आप नीलकंठ ह। िकंतु याद रिखए, कोई यव था शत- ितशत
आदश नह होती है। भु ी राम के समय म एक मंथरा नामक ी ने कुछ ऐसी घटनाओं को
ज म िदया था, िजसके प रणाम व प लाख लोग के ाण चले गए थे। उसके शारी रक िवकार
के कारण उसने बहत क झेले थे। और उसके बाद, भा य ने उसे एक शि शाली महारानी को
भािवत करने क ि थित म ला खड़ा िकया था और इस कार वह सम त सा ा य को भािवत
करने क ि थित म आ गई थी। इसिलए भा य ारा एक िव ूिपत यि के दुभा य ने असाधारण
नरसंहार सज
ृ न िकए थे। यह आम लोग के िलए अ छा नह है िक वह यि एक िवकम घोिषत
हो जाता है? कोई उ र आसान नह होता है। यह कहने के बावजदू भी, म इतना कह सकता हं
िक आप भी सही हो सकते ह। हो सकता है िक िवकम यि य क जनसं या इतनी अिधक हो
चली है िक वह चरम ि थित म पहंच चुक है, जो समाज को उलटकर अ यव था उ प न कर
सकती है। या इस सम या का िनदान मेरे पास है? नह । हो सकता है आप कुछ िनदान िनकाल
सकते ह।’
िशव ने अपना चेहरा घुमा िलया। उसका दय इस बात का िव ास करता था िक िवकम
यव था अ यायपण
ू एवं अनुिचत था।
‘ या आप सभी िवकम के िलए िचंितत ह, हे नीलकंठ?,’ पंिडत ने पछ
ू ा, ‘या िफर मा एक
के िलए?’
‘ भु वहां या कर रहे ह?’ नंदी ने पछ
ू ा, ‘वे बहत समय ले रहे ह।’
‘मुझे नह पता,’ वीरभ ने कहा, ‘मुझे केवल इतना पता है िक िशव यिद यह कहते ह िक
उ ह कुछ करने क आव यकता है, तो मुझे वीकार है।’
‘तुम भु का नाम लेकर य पुकारते हो?’
‘ य िक यह उनका नाम है।’
नंदी इस सरल उ र पर मु कुराया और मुड़कर मंिदर क ओर देखने लगा।
‘मुझे यह बात बताओ, अिधपित,’ वीरभ नंदी के समीप आते हए बोला, ‘ या कृि का क
बोली लगी है? बोली लगी हई है?’
‘मेरा मतलब है,’ वीरभ ने कहना जारी रखा, ‘ या उस तक पहंचना नामुमिकन है?’
‘पहंचना नामुमिकन?’
‘तु ह पता है म या कहना चाहता हं,’ वीरभ ने िसंदूरी लाल होते हए कहा।
‘वह एक िवधवा है,’ नंदी ने कहा, ‘उसके पित का िनधन पं ह वष पवू हो गया था।’
‘ओह, यह तो बहत बुरा हआ!’
‘हां, बहत बुरा,’ नंदी ने वीरभ क ओर मु कान से देखा, ‘लेिकन तु हारे
यही है िक उसक बोली नह लगी हई है।’
का उ र
‘देवी, या म कुछ ाथना कर सकती हं?’ कृि का ने पछ
ू ा।
सती िव ामगहृ क िखड़क से मुड़ी और आ य म भ हे उठाकर कृि का को देखकर कहा,
‘ या मने तु ह अपनी बात कहने से कभी मना िकया है? एक स चा सय
ू वंशी हमेशा अपने मन
क बात करता है।’
‘ठीक है,’ कृि का ने कहा, ‘कभी ऐसा भी होता है, जब वयं का आ म-िनयं ण खोना
उतना हािनकारक नह होता है।’
कृि का ने ज दी से कहा, इससे पहले िक उसके बोलने क िह मत प त हो जाए, ‘उनके
नीलकंठ होने क बात को भल
ू जाइए, देवी। मा एक यि क तरह देख तो आज तक मने
िजतने भी यि देखे ह, वे सबसे अ छे ह। वे बुि मान, वीर, मसखरी करने वाले, दयालु और
िफर वे उस भिू म क पज
ू ा करते ह िजस पर आपको गव है। या यह सचमुच म ही इतना बुरा है?’
सती ने कृि का को गहरी चमक भरी ि से देखा। वह नह जान सक िक कृि का जो
कहना चाह रही थी वह उस पर अिधक दुखी थी या िफर खुद क उन भावनाओं पर, जो कट
प से प थ ।
कृि का ने कहना जारी रखा, ‘हो सकता है, यह हो भी सकता है िक िनयम का उ लंघन
सुख क ओर ले चलने वाला हो।’
‘म एक सय
ू वंशी हं,’ सती ने कहा। उसका वर मि म होता गया था, ‘िनयम के सहारे ही
हम जीवन जीते ह। मुझे सुख से या लेना-देना? इसके बारे म िफर कभी बात करने क िह मत
मत जुटाना!’
‘हां, एक िवशेष िवकम है,’ िशव ने वीकार िकया, ‘लेिकन यह कारण नह है िक म िवकम
िनयम को अनुिचत मानता हं।’
‘म जानता हं,’ पंिडत ने कहा, ‘िकंतु म यह भी जानता हं िक आप इस समय उस िवशेष के
साथ संबंध को लेकर परे शान ह। आप नह चाहते वह ऐसा सोचे िक आप मा उसे पाने के िलए
िनयम म बदलाव करना चाहते ह, भले ही बदलाव िकतने भी यायपण
ू य न हो। य िक यिद
सती को यह िव ास हो जाता है तो वह आपके पास कभी भी नह आएगी।’
‘आप उसका नाम कैसे जानते ह?’ िशव ने िवि मत होकर पछ
ू ा।
‘हम बहत कुछ जानते ह, िम ।’
‘मेरा परू ा जीवन उसके िबना अथहीन है।’
‘म जानता हं,’ पंिडत मु कुराया, ‘संभवत: म आपक सहायता कर सकता हं।’
िशव क भक
ृ ु िट तन गई। यह अनपेि त था।
‘आप चाहते ह िक वह भी आपके साथ ेम का आदान- दान करे । लेिकन वह कैसे कर
सकती है जब आप उसे समझते भी नह ।’
‘मुझे लगता है िक म उसे जानता हं। म उससे ेम करता हं।’
‘हां, आप उससे ेम करते ह, िकंतु आप उसको जानते नह ह। आप यह नह जानते िक वह
या चाहती है?’
िशव चुप हो गया। वह जानता था िक पंिडत सही था। वह सती के बारे म परू ी तरह से
गफलत म था।
‘वह या चाहती है उसके बारे म आप एक अनुमान लगा सकते ह,’ पंिडत ने कहना जारी
रखा, ‘लेन-देन के यवहार के िस ांत क सहायता से।’
‘ या?’ चकराए हए िशव ने कहा।
‘यह समाज क संरचना करता है।’
‘ मा कर, लेिकन इसका सती से या लेना-देना है?’
‘कुछ और समय तक मेरी बात सुन, नीलकंठ,’ पंिडत ने कहा, ‘आपको पता ही होगा िक
जो व आप पहनते ह, वे सत
ू ी धाग से बुनकर बनाए जाते ह, सही है?’
‘हां,’ िशव ने उ र िदया।
‘उसी कार, लेन-देन के यवहार भी एक कार के धागे ह, िज ह बुनने पर एक समाज
का िनमाण होता है, यही सं कृित है। या िफर वह एक यि के संदभ म उसके च र को बुनकर
बनाता है।’
िशव ने सहमित म िसर िहलाया।
‘यिद आपको िकसी व क मजबत
ू ी का पता करना है तो आप उसक बुनाई क गुणव ा
का परी ण करते ह। यिद आप िकसी यि के च र या यवहार को समझना चाहते ह तो
उसके अंतः वैयि क यवहार को या उसके लेन-देन के यवहार को समीपता से देख सकते ह।’
‘ठीक है,’ िशव ने पंिडत के श द को समझते हए धीमे से कहा, ‘लेिकन लेन-देन का
यवहार तो...’
‘म समझता हं,’ पंिडत ने बीच म ही टोका, ‘लेन-देन का यवहार दो यि य के म य एक
पार प रक ि या है। यह व तुओ ं का यापार भी हो सकता है, जैसे एक शू कृषक एक वै य से
पैस के िलए अपने अ न का लेन-देन करता है। िकंतु यह पदाथ य लेन-देन के यवहार से पथ
ृ क
भी हो सकता है जैसे एक ि य स ा म रहने के बदले िकसी समाज को सुर ा दान करता है।’
िशव ने सहमित म िसर िहलाया, ‘लेन-देन का यवहार तो कुछ लेने और देने से अथ रखता
है।’
‘िब कुल सही। इसिलए हम इस तक से चल तो यिद आपको िकसी से कुछ चािहए तो
आपको उस यि कुछ देना होगा, जो वह चाहता है।’
‘तो िफर आप या सोचते ह िक वह या चाहती है?’
‘सती के यवहार को समझने का यास कर। आप या सोचते ह िक वह या चाहती है?’
‘यह म नह जानता। वह बहत ही अ प
है।’
‘नह , वह नह है। एक व प है। सोिचए। वह संभवत: इितहास म सबसे अिधक िति त
िवकम है। उसके पास स ा और शि है िक वह िवरोध कर सके, यिद वह चाहे तो। उसम अव य
जोश है य िक वह यु करने से कभी भी पीछे नह हटती है। िकंतु वह िवकम िविध के िव
कभी वर नह उठाती है। साथ ही वह अिधकतर िवकम क तरह नेप य म नह जाती है और
अपना जीवन अ ातवास म नह जीती है। वह िनयम का पालन करती है, िफर भी वह कराहती
नह है और दूसर से अपना दुखड़ा नह रोती है। उसका जीवन उससे चाहे िजतना भी अ यायपण
ू
यवहार करता है, वह वयं को मयािदत रखती है। य ?’
‘ य िक वह नेक
ी है।’
‘इसम संदेह नह िक वह नेक ी है। िकंतु वह कारण नह है। याद रिखए, लेन-देन के
यवहार म आप कुछ देते ह य िक आप वापसी म कुछ ा करने क इ छा रखते ह। वह एक
अनुिचत िविध को वीकार कर रही है, िकसी को भी दोषी महसस
ू करवाए िबना ही। और सबसे
मह वपण
ू बात है िक वह जहां भी हो सके समाज क अ छाई के िलए अपने साम य का योग भी
करती है। आप या सोचते ह िक एक यि अपने लेन-देन के यवहार से समाज को इतना कुछ
देता है तो वापसी म वह या चाहता है?’
‘आदर, स मान,’ िशव ने उ र िदया।
‘िब कुल ठीक,’ पंिडत का मुख दीि मान हो उठा, ‘और आप या सोचते ह िक आप या
करते ह जब आप वैसे यि
को संर ण देते ह?’
‘अनादर।’
‘आप पण
ू त: सही ह! म जानता हं िक यह आपका ाकृितक वभाव है िक आप उसको
संर ण देते ह जो एक अ छा यि है और िजसको उसक आव यकता तीत हो। िकंतु उस
वभाव को सती के संबंध म आपको िनयंि त करना होगा। उसका आदर क िजए। और वह अबाध
प से आपक ओर िखंची चली आएगी। जो उसको ेम करते ह, उससे उसे बहत कुछ ा होता
है। जो उसे नह ा होता है और िजसके िलए वह सबसे अिधक तरसती है, वह है, आदर।’
िशव ने पंिडत क ओर कृत ता भरे भाव से देखा। उसने उ र पा िलया था।
आदर।
दो स ाह बाद नीलकंठ का कािफला करचप नगर पहंचा जो िसंधु नदी के पि म सागर से
िमलन- थल पर ि थत था। यह एक शानदार चमचमाता हआ नगर था जो एक वेिदका पर
बसाया गया था, िकंतु अब उसका िव तार अ यिधक हो चुका था। ि तीय वेिदका पचास वष पवू
िनिमत क गई थी जो थम वेिदका से भी भ य एवं िवशाल तर क थी। ि तीय वेिदका पर
करचप के उ च वग के लोग रहते थे। छोटे कद वाले वै य रा यपाल झल
ू े र ने जो सुना था, उसी
परं परा का अनुसरण करते हए वह नगर के बाहर नीलकंठ को लेने आया हआ था।
करचप एक लाख जनसं या वाला सीमांती यापा रक नगर था। इसिलए द के िपता
नायक क यह दूर ि थी िक उ ह ने सौ वष पवू ही एक वै य को करचप का रा यपाल
िनयु कर िदया था। झल
ू े र ने अपने भा य पर सोने क कलई चढ़ाते हए उस नगर का शासन
बहत ही अ छे ढं ग से िकया था और वह अब तक का सबसे बुि मान एवं भावशाली रा यपाल
े म
माना जाता था। करचप बहत समय पहले ही लोथल को पीछे छोड़कर सा ा य के पवू
यापार क ि से मेलहू ा का मुख नगर बन चुका था। जबिक मसोपोटािमया एवं िम के
िवदेिशय को इस उदारपंथी नगर म आने क अनुमित थी, िकंतु उससे आगे िबना प राजशाही
अनु ा प के सा ा य म कह भी मण करने क अनुमित नह थी।
झल
ू े र करचप म पहले ही िदन मागर क बनकर नीलकंठ को पि म सागर म पयटन
करवाने के िलए ले गया। िशव ने कभी समु नह देखा था और वह उस अथाह जल के िव तार
को देखकर मं मु ध था। उसने कई घंटे बंदरगाह पर िबताए, जहां झल
ू े र ने िविभ न कार के
जहाज एवं नौकाओं के िनमाण के बारे म गव के साथ िववरण िदया। यह करचप बंदरगाह से
सटा हआ एक पोत कारखाना था। बहृ पित भी मेसोपोटािमया के यापा रय से आयात िकए हए
सामान का परी ण करने उनके साथ गया था।
शाम के समय िशव के िलए राजक य भोजन का आयोजन िकया गया। झल
ू े र ने गव से
घोषणा क िक अगले िदन नीलकंठ के स मान म एक य का आयोजन भु व ण एवं िस
यमज अि नी कुमार के त वावधन म िकया जाएगा। यमज अि नी कुमार
यात जहाजी थे,
िज ह ने मेलहू ा से मेसोपोटािमया तक का समु ी रा ता तय िकया था और उसके आगे भी गए थे।
उनके मानिच , उनके मागदशन और कथाएं इन समु ी लोग के िलए ेरणा एवं सीख के ोत
थे।
भोजन के उपरांत िशव ने उन कमर का मण िकया जहां सती एवं कृि का को रखा गया
था।
‘म सोच रहा था,’ चंिू क सती उसके साथ परू ी तरह से औपचा रक बन चुक थी, अत: िशव
ने अब भी बहत सावधानीपवू क कहा, ‘ या आप कल य के िलए आएं ग ?’
‘मुझे मा कर, भु नीलकंठ,’ सती ने िश तापवू क कहा, ‘िकंतु मेरे िलए आयोजन म
उपि थत होना संभव नह हो पाएगा। ऐसे य म मुझे उपि थत होने क अनुमित नह है।’
िशव कहना चाहता था िक कोई कुछ नह कहे गा य िक वह नीलकंठ के साथ य म
िह सा लेगी। लेिकन उसने कहा नह , ‘संभवत: कल हम न ृ य का एक अ यास कर सकते ह?
मुझे यह भी याद नह है िक हमने कब आखरी बार एक साथ न ृ य िकया था।’
‘यह बहत ही अ छा रहे गा। मुझे आपके िनदश सुनने का अवसर बहत िदन से ा नह
हआ है,’ सती ने कहा।
िशव ने सती पर अ स नता से िसर िहलाया, उनके संबंध म पड़ी हई इस ठं डक ने उसे
संत कर िदया। जाने के िलए अिभवादन कर वह कमरे से बाहर िनकल गया।
कृि का ने अलि त प से अपना िसर िहलाते हए सती क ओर सरसरी िनगाह से देखा।
अ याय - 15
अि न से परी ण
अपनेरोयदार अंगरखे म िसमटा हआ और तीखे प थर से बचने का य न करता हआ एक
छोटा बालक धल
ू भरे भेड़ के पदिचह्न के पीछे तेजी से चल रहा था। सघन नमी वाले वन ने
रा ते का अित मण डरावने ढंग से कर रखा था। उस बालक को प का िव ास था िक यिद
उसने अपनी चाल धीमी क तो घनी झािड़य म खतरनाक एवं भीमकाय दै य उस पर झप ा
मारने क ताक म बैठे थे। उसका गांव वहां से बस कुछ ही घंट क दूरी पर था। सय
ू पवत के
पीछे ती गित से छुपता जा रहा था। दै य को अंधकार पसंद होता है, उसके अिधक परे शान
करने पर उसक माता और दादी ने उसे कई बार बताया था। िकसी बड़े के साथ चलना उसे
पसंद आया होता य िक दै य बड़ को तंग नह करते थे।
जैसहे ी उसने एक िविच ठं डी सांस लेन े जैसी विन सन
ु ी तो उसके दय क धड़कन
एक बार थम-सी गई। पीछे क ओर से आ मण क शंका म उसने अपनी तलवार िनकाल ली।
उसके दो त ने जंगल के दै य के बारे म कई कहािनयां सन
ु ी थ । वे कायर कभी भी सामने
से आ मण नह करते थे।
उस विन क िदशा जानने के उ े य से वह िबना िहले-डुले खड़ा हो गया। उसम बार-बार
दुहराए जाने वाला एक िविश लय था और वह अ प
प से प रिचत-सा तीत हो रहा था।
उसनेअनभ
ु विकया िक जैस े उसने इसे पहले भी सन
ु ा था। उस विन म अब एक प ु ष का भारी
कराहने वाला वर भी िमल चक
ु ा था। यह दै य नह हो सकता था! उस बालक ने अपने शरीर
े ना क झरु झरु ी का अनभ
मउ ज
ु व िकया। उसने अपने दो त से फुसफुसाहट म िखलिखलाती
हई हंसी के साथ इसके बारे म सन
ु ा था, लेिकन उसने यह काय कभी देखा नह था। आज उसे
अवसर था।
वह धीरे -धीरे झािड़य म सरकने लगा और उसक तलवार उसके बगल म झल
ू रही थी।
उस विन के नोत को पाने के िलए उसे बहत दूर नह जाना पड़ा था। वह एक छोटे से साफ
िकए हए थान से आ रही थी। वह एक प ेड़ के तने के पीछे छुप गया और उसने चपु के से
झांका।
वे एक यग
ु ल थे। वे बहत ज दी म लग रहे थे। उ ह ने अपने कपड़े भी परू ी तरह से नह
उतारे थे। वह आदमी अ यिधक बाल वाला था, लगभग भाल ू के जैसा। उस कोण से वह बालक
उसक पीठ ही देख पा रहा था। उसके सामने ी के सामने का य था। वह आ यजनक
प से सदुं र थी। उसके तरं िगत केश लंब े और उ वल थे। आंिशक प से फटी हई चोली के
कारण अ यिधक ू र रित-ि या से लाल रं ग क धारी सिहत उसके ढ़ उरोज िदख रहे थे।
उसका लहंगा फटा हआ था और उसके उ कृ लंब े पांव दिशत हो रहे थे। उस बालक क
े ना अक पनीय थी। ती ा क िजए जब उसका अिभ न िम भ इस अनभ
े ा
उ ज
ु व को सन
ु ग
!
ै ी बढ़ी। उसे कुछ गड़बड़
जबवह इस दशन का आनंद ले रहा था, तभी उसक बेचन
लगी। वह आदमी आवेश क ती वेदना म था जबिक ी िनि य सी लेटी हई थी। उसका
मख
ु बहत स ती से बंद था। वह अपने ेमी को उ सािहत करने वाले श द क कानाफूसी
नह कर रही थी। या उसके गाल पर हषाितरे क के आंस ू ढलक रहे थे? या उसके साथ
बलात कम हो रहा था? लेिकन यह कै से हो सकता है? उस आदमी का चाकू उस ी क
पहंच म रखा हआथा।वह उसे उठाकर उसको आहत कर सकती थी।
बालकने िसर िहलाया। उसने अपने अंतमन को शांत करने का यास िकया, ‘चपु रहो।
मझ
ु े देखने दो।’
औरउसके बाद वह ण आया जो उसे परू े जीवन भर बार-बार तंग करता रहेगा। उस
का आंख अचानक उस पर गई ं।
ी
‘सहायता!’वह चीखी, ‘कृपया सहायता कर!’
च कताहआ वह बालक पीछे हटा। उसक तलवार िगर गई। वह र येदार दै य पीछे मड़
ु ा
यह देखने के िलए िक ी िकसे पक
ु ार रही थी। बालक ने तेजी से अपनी तलवार उठाई और
भाग खड़ा हआ। वह अपने शीतदंश वाले अंगठू े क पीड़ा क परवाह िकए िबना ही दौड़ता चला
गया। वह इस सोच से ही डरा हआ था िक वह आदमी कह उसका पीछा न कर रहा हो। वह
उस आदमी क भारी सांस को अब भी सन
ु पा रहा था।
बालकने उछलकर भेड़ के पदिचह्न को पकड़ा और तेजी से अपने गांव क ओर भागा।
वह अब भी भारी सांस को सन
ु रहा था। वह हर ण उसके समीप आता जा रहा था। बालक
झटके से बाएं हटा, एक प ैर क धरु ी बनाकर घम
ू ा और जोर से तलवार घम
ु ाई।
वहां कोई भी नह था। भारी सांस क विन नह थी। मा एक विन थी एक मनोिवि
ी क बार बार तंग करने आ ह वाली विन।
‘सहायता!कृपया सहायता कर !’
उसछोटे बालक ने मड़
ु कर देखा। वह अबला
ी।
‘पीछेलौटो! उसक सहायता करो!’ उसके अंतमन का वर रोया।
वहकुछ ण के िलए िहचिकचाया। उसके बाद मड़
ु ा औरअपनेगांव क ओर भाग गया।
नह ! पीछे लौटो! उसक सहायता करो!
िश व पसीने से नहाया हआ जाग उठा था। उसका
दय पागल क तरह ढमढम कर रहा था।
वह वाभािवकत: पीछे मुड़ा। वह उस भयानक िदन म िकसी भी क मत पर जाना चाहता था।
ायि त करने के िलए। लेिकन कोई ायि त नह हो सकता था। ी का भयभीत चेहरा
बार बार उसके सामने आ रहा था। उसने अपनी आंख बंद कर ल । लेिकन आप उस िच के िलए
अपनी आंख कैसे बंद कर सकते ह, जो आपके मन म छपा हआ हो?
उसने अपने घुटने को ऊपर क ओर मोड़ िलया और अपने िसर को उस पर िटका िदया।
उसके बाद उसने वही िकया जो हमेशा करता था। वह रोने लगा।
ि तीय वेिदका के क ीय चतुभुज पर य क वेिदका बनाई गई थी। करचप के िलए यह मेलहू ा
का ला िणक सादगी वाला काय नह था। सीमांत नगर ने उस े को तड़क-भड़क वाले रं ग म
ऐसा सजाया था िक देखने वाले देखते ही रह जाएं । वेिदका को चमक ले विणम रं ग म रं गा गया
था। रं गीन सजावट वाले फूल से लदे खंभे शािमयाना को खड़ा िकए हए थे। सय
ू वंशी तीक क
िच कारी वाली लाल एवं नीले रं ग क पताकाएं कई खंभ से गिवत होकर झल
ू रही थी। वहां का
सम त वातावरण सजावट और दशन का था।
झल
ू े र ने िशव का वागत वेिदका के मुख पर िकया और उनका मागदशन करके उ ह
य क र म वाले थल पर िबठा िदया। रा यपाल के बार-बार आ ह करने पर िशव ने अपना
गुलबू ंद य क अविध तक के िलए िनकाल िदया था। पवते र और बहृ पित नीलकंठ के
दािहनी ओर बैठे थे जबिक झल
ू े र और आयुवती बाई ं ओर। नंदी और वीरभ को िशव के पीछे
बैठने के िलए आमंि त िकया गया था। य िप यह परं परागत नह था, िकंतु नीलकंठ के अनुरोध
पर झल
ू े र ने इसक अनुमित दे दी थी। झल
ू े र एक सव वासी सीमांत नगर का शासक था
और उसका मानना था िक काय व रत गित से करने के िलए मेलहू ा क कई कड़ी िविधय को
थोड़ा लचीला िकया जा सकता था। उसक इस कार क उदारता ने करचप को िविभ न कार
के कुल एवं वंश तथा जाितय के लोग के िलए चुंबक बना िदया था और सामान, सेवाओं एवं
िवचार के आदान- दान करने का मु य क बना िदया था।
िशव ने सती के छ जे क ओर देखा जहां से दूर से वह क ीय चतुभुज िदख रहा था। य िप
जब य हो रहा हो तो सती को वेिदका पर आने क अनुमित नह थी तथािप उसे एक िनि त
दूरी से अपने कमरे से उसक कायवाही को देखने क अनुमित थी। उसक बगल म खड़ी
कृि का के साथ वहां क कायवाही को देखते हए छ जे के पद के पीछे खड़ी हई सती को िशव
ने देख िलया था।
य का ारं भ करने से पहले रवाज के अनुसार पंिडत खड़ा हआ और उसने
औपचा रतावश पछ
ू ा, ‘यिद िकसी को इस य के संबंध म कोई आपि है, तो कृपया अभी बताइए।
अ यथा हमेशा के िलए शांित बनाए रिखए।’
यह एक पारं प रक
इसिलए जब एक वर ती
मा था, िजसका वा तव म किथत प से कुछ उ र नह देना था।
वर म गंज
ू ा िक मुझे आपि है तो एक सामिू हक उछ्वास गंज
ू उठा।
िकसी को भी देखकर पहचानने क आव यकता नह थी िक वह वर कहां से आया था।
वह तारक था, जो सा ा य के अ यिधक िढ़वादी उ र-पि म े का एक अ वासी था। जबसे
तारक करचप आया था, उसने इस ‘पाप से अवनितशील नगर’ का ‘नैितक पुिलस’ बनने का
बीड़ा उठा िलया था।
िशव ने अपनी गदन घुमाकर देखी िक िकसने आपि क थी। उसने देखा िक तारक उस
पज
ू ा क वेिदका के एक िकनारे पर बैठा हआ था, जो सती के छ जे के बहत समीप थी। जीवन
भर लड़ाई-झगड़े के कारण लगे चेहरे पर कटे के िनशान वाला वह एक दै याकार यि था,
िजसका पेट बहत बड़ा था और थोड़ी-बहत मांसल बांह भी थ । उसका आकार बड़ा ही बेजोड़ था।
उसके बाजबू ंद को देखे िबना ही यह प था िक तारक ि य था, िजसने सेना के िनचले
पायदान पर काम करके अपनी जीिवका चलाई थी।
झल
ू े र ने ोध म तारक को घरू ा, ‘अब या है? इस बार हमने सुिनि त िकया है िक
हमारी सजावट म चं वंिशय के सफेद रं ग न हो। या िफर तुम यह सोचते हो िक जो जल य के
िलए लाया गया है वह वेद के अनुसार सही तापमान का नह है?’
भीड़ ने मुंह िबचकाया। पवते र ने झल
ू े र को ती ता से देखा। इससे पहले िक वह
रा यपाल को वेद का इस तरह संदभ के िलए बुरा-भला कहता, तारक बोल उठा, ‘िविध कहती है
िक य वेिदका पर िकसी िवकम को रहने क अनुमित नह होनी चािहए।’
‘हां,’ झल
ू े र ने कहा, ‘और यिद तु ह िवकम घोिषत नह िकया गया है तो म नह सोचता
िक िविध का उ लंघन हो रहा है।’
‘हां, हो रहा है।’
वहां इक ी भीड़ म आ य िमि त बड़बड़ाहट फै ल गई। झल
ू े र ने अपने हाथ उठाकर लोग
को शांत करते हए कहा, ‘यहां कोई िवकम नह है, तारक। अब बैठ जाओ।’
‘राजकुमारी सती अपनी उपि थित से य को अपिव करती ह।’
िशव और पवते र ने तीखी ि
से तारक को देखा। तारक के इस कथन से झल
ू े र और
वहां उपि थत सम त लोग त ध रह गए, ‘तारक!’ झल
ू े र ने कहा, ‘तुम कुछ अिधक ही बोल
गए। राजकुमारी सती य के िनयम का पालन करते हए िव ामगहृ म ह। वह य क वेिदका
पर उपि थत नह है। अब बैठ जाओ, इससे पहले िक म तु ह कोड़े लगवाऊं।’
‘आप िकस अपराध के िलए मुझे कोड़े लगवाओगे, रा यपाल?’ तारक ने िच लाकर कहा,
‘िविध क र ा के िलए िवरोध करना मेलहू ा म अपराध नह है।’
‘िकंतु िविध का उ लंघन नह हआ है!’
‘हां, हआ है। िविध के श द को यिद आप देख तो वह कहता है िक जब य हो रहा हो तो
कोई िवकम उस वेिदका पर नह रह सकता है। यह य नगर क ि तीय वेिदका पर हो रहा है।
उसी वेिदका पर उनके होने से राजकुमारी य को अपिव कर रही है।’
तारक तकनीक ि से सही था। अिधकतर लोग ने िविध का अथ इस कार िलया था
िक िवकम को य के आयोजन वाली वेिदका पर उपि थत नह होना चािहए। और िफर मेलहू ा के
अ य नगर क भांित करचप भी एक वेिदका पर िनिमत था तो यिद हम िविध का यह अथ लगाएं
तो सती को सम त ि तीय वेिदका पर कह भी नह होना चािहए था। य को िविधस मत रखने
के िलए सती को या तो िकसी और वेिदका पर रहना चािहए या िफर नगर के दुग क दीवार के
बाहर।
झल
ू े र ण भर के िलए सकते म आ गया य िक तारक क आपि सै ांितक प से
उिचत थी। उसने दुबलता से शि
दशन िकया, ‘अब बस भी करो तारक। तुम कुछ अिधक ही
अंत: िववकेशील बनने का यास कर रहे हो। मेरा िवचार है िक यह प ीकरण कुछ अिधक ही
कड़ा है। म सोचता हं िक...’
‘नह , ी झल
ू े र जी,’ उस भीड़ म से एक ती
वर गुंजायमान हआ।
सभी लोग उस ओर देखने लगे िजधर से वह वर आया था। सती, जो छ जे पर बाहर आ
चुक थी, उसने कहना जारी रखा, ‘आपको म य म ही टोकने के िलए मेरी मा याचना वीकार
कर, रा यपाल,’ सती ने एक औपचा रक नम ते के साथ कहा, ‘िकंतु तारक क िविध क
िववेचना उिचत है। म बहत-बहत मा ाथ हं िक मेरे कारण य के अनु ान म िव न उ प न
हआ। मेरे अनुगामी और म नगर को अभी इसी समय छोड़े देते ह। हम तीसरे हर के ारं भ म
वापस आएं गे, संभवत: तब तक य का अनु ान समा हो चुका होगा।’
िशव ने अपनी मु ी भ च ली। वह बड़े पागलपन से तारक क गदन मरोड़ना चाहता था
लेिकन बड़े ही अितमानवीय यास से उसने वयं पर िनयं ण िकया हआ था। कुछ ही िमनट म
सती कृि का एवं अपने िनजी अंगर क के साथ िव ामगहृ से बाहर िनकल आई। िशव ने
मुड़कर नंदी और वीरभ को देखा, जो उसका संकेत समझकर सती के साथ जाने के िलए उठ
खड़े हए। वे समझ गए िक िशव चाहते थे िक नगर के बाहर सती क सुर ा सुिनि त हो।
‘यह बहत ही घिृ णत है िक आपको वयं इसका एहसास नह हआ,’ तारक ने ितर कार से
सती से कहा, ‘आप िकस कार क राजकुमारी ह? या आप अपनी िविधय का स मान करना
नह जानत ह?’
सती ने तारक को देखा। उसका मुख शांत था। उसने िववाद म पड़ना उिचत नह समझा
और अपने पहरे दार ारा अ को तैयार करने क ती ा करने लगी।
‘मुझे समझ म नह आता िक नीलकंठ के कािफले म एक िवकम ी या ा करके या कर
रही है? वह सम त या ा को दूिषत कर रही है,’ तारक ने िचढ़ाते हए कहा।
‘बहत हो चुका,’ िशव बीच म कूद पड़ा, ‘राजकुमारी सती ग रमा के साथ यहां से जा रही ह।
अपना आ ेप इसी समय बंद कर दो।’
‘नह म बंद नह क ं गा,’ तारक ने िच लाकर कहा, ‘आप िकस कार के नेता है? आप
भु ी राम क िविधय को चुनौती दे रहे ह।’
‘तारक!’ झल
ू े र ने लगभग चीखते हए कहा, ‘ भु नीलकंठ को िविध को चुनौती देने का
अिधकार है। यिद तुम अपने जीवन क र ा करना चाहते हो तो उनके अिधकार को चुनौती देने
का यास मत करना।’
‘म एक मेलहू ावासी हं,’ तारक िच लाया, ‘कोई िविध को भंग करे तो उसे चुनौती देना मेरा
अिधकार है। एक धोबी, एक तु छ कपड़े धोने वाले ने भु ी राम को चुनौती दी थी। यह उनक
महानता थी िक उ ह ने उस यि क आपि को वीकार िकया और अपनी प नी का प र याग
कर िदया। म नीलकंठ से बल देकर कहंगा िक वे भु ी राम के उदाहरण से कुछ सीख और
िनणय को लेने म अपनी बुि का योग कर।’
‘बहत हो गया तारक!’ सती भड़क उठी।
तारक क िट पणी से सम त इक ी भीड़ त ध होकर चुप हो गई। िकंतु सती नह । उसके
अंदर कुछ टूट चुका था। उसने बहत समय से अनादर झेला था। और उसने मयािदत होकर सहन
भी िकया था। िकंतु इस समय इस यि ने िशव का अनादर िकया था। उसके िशव का। उसने
अंतत: इस बात को मान िलया था।
‘म अि न परी ा के अिधकार का आ ान करती हं,’ सती ने कहा। वह अब पण
ू िनयं ण म
थी।
हैरान देखने वाले अपने कान पर िव ास नह कर सके। अि न से परी ण!
यह बद से बदतर होता जा रहा था। अि न परी ा के अंतगत एक अनुिचत ढं ग से हत हए
मन वाला उस उ पीड़क को ं यु के िलए ललकार सकता था। यह अि न परी ा कही जाती
थी य िक इसम यु आग के एक घेरे के अंदर िकया जाता था। उस घेरे से बाहर िनकलने का
कोई अवसर नह होता था। ं यु क ाओं को तब तक लड़ते रहना होता था जब तक िक एक
आ मसमपण न कर दे अथवा एक क म ृ यु न हो जाए। उन िदन अि न परी ा िवरले ही हआ
करते थे। और एक ी ारा इसका आ ान लगभग नह ही सुना गया था।
‘इसका कोई कारण नह बनता है, देवी,’ झल
ू े र ने आ ह िकया। इस िवषय के समान ही
वह इस क पना से भी भयभीत था िक राजकुमारी सती का वध उसके नगर म होने क आशंका
थी। वह िवशाल तारक अव य ही उनका वध कर देगा। स ाट का चंड ोध अ यंत ही भयानक
होगा। तारक क ओर मुड़ते हए झल
ू े र ने आदेश िदया, ‘तुम इस चुनौती को वीकार नह
करोगे।’
‘और लोग मुझे कायर कह।’
‘तुम अपनी बहादुरी िस करना चाहते हो?’ पवते र ने पहली बार अपना मुंह खोला, ‘तो
मेरे साथ यु करो। म इस चुनौती म सती का सहायक रहंगा।’
‘हे िपततृ ु य, सहायक को िनयु करने का अिधकार मा मेरा है,’ सती ने पवते र को
िपता के समान संदिभत करते हए कहा। और तारक क ओर मुड़ते हए पुन: कहा, ‘म िकसी
सहायक क िनयुि नह करती। तुम मेरे साथ यु करोगे।’
‘ऐसा तुम कुछ भी नह करोगे, तारक,’ इस बार बहृ पित ने आपि क ।
‘तारक, तु हारे ं यु के मना करने का केवल इतना ही कारण हो सकता है िक तुम
मरने से डरते हो,’ िशव ने कहा।
सभी लोग नीलकंठ क ओर मुड़ गए। प था िक उनके श द को सुनकर सभी त ध
थे। सती क ओर मुड़कर िशव ने कहना जारी रखा, ‘करचप के नाग रको, मने राजकुमारी को
यु करते देखा है। वह िकसी को भी परािजत कर सकती ह। यहां तक िक देवताओं को भी।’
सती ने घरू कर िशव को देखा। अब वह परू ी तरह से त ध थी।
‘म यह चुनौती वीकार करता हं,’ तारक गुराया।
सती ने तारक क ओर िसर िहलाकर उसक चुनौती वीकार कर ली और अपने ेत अ
पर सवार हो गई। उसके बाद एड़ लगाकर अ को चलाकर वेिदका के िकनारे तक गई। उसने
अपने अ को एक ण के िलए रोका और उसने एक बार पुन: िशव क ओर मुड़कर देखा। वह
उस पर मु कुराई, मुड़ी और उसने अ को तेजी से भगा िदया।
वह तीसरे हर का ारं भ था जब िशव और बहृ पित चुपके से थानीय यायाम गहृ म तारक को
अ यास करते देखने गए, जहां वह दो सािथय के साथ अ यास कर रहा था। उस िदन का य
एक ासदी ही था। सब लोग इस िवचार से बुत बन गए थे िक अगले िदन राजकुमारी का वध हो
जाएगा। कोई भी अनु ान म ितभाग नह करना चाहता था। िकंतु जब य का आ ान कर
िदया गया था तो उसका अनु ान होना ही था, अ यथा देवताओं के
होने का अंदेशा था। वह
भीड़ वहां खड़ी अव य थी िकंतु कोई अनु ान म मन से उपि थत नह था और य समा हो
गया था।
अपने सहकम पर तारक का िस भयानक हार देखकर बहृ पित क आ मा कांप गई
और त काल ही उसे इस िनणय पर पहंचा गई, ‘म आज रात ही इसका वध कर दंूगा, तो कल
उनका वध नह होगा।’
िशव च कते हए अिव ास के साथ मु य वै ािनक क ओर मुड़ा, ‘बहृ पित? आप ये या
कह रहे ह?’
‘सती बहत अ छी ह, उनका ऐसे दुभा य से सामना नह हो सकता। म उनके िलए अपना
जीवन और अपनी ित ा का बिलदान देने के िलए तैयार हं।’
‘लेिकन आप तो ा ण ह। आप िकसी के ाण नह ले सकते।’
‘यह म आपके िलए क ं गा,’ बहृ पित फुसफुसाया। उसक भावनाएं उसके िनणय को
आ छािदत कर रही थ , ‘आप उनको नह खोएं गे, िम ।’
िशव बहृ पित के िनकट आया और उसे बांह म भर िलया, ‘आप अपनी आ मा को
कर, िम । म इतने बड़े बिलदान के यो य नह हं।’
न
बहृ पित ने िशव को जकड़ा हआ था।
एक कदम पीछे जाकर िशव ने फुसफुसा कर कहा, ‘देखा जाए तो आपके बिलदान क
आव यकता होगी ही नह । िजस कार यह िनि त है िक सय
ू पवू म ही उिदत होगा, उसी कार
यह िनि त है िक कल सती तारक को परािजत करे गी।’
तीसरे हर के कुछ घंट के बाद सती िव ामगहृ लौट आई थी। वह अपने कमरे म नह गई, बि क
उसने नंदी और वीरभ को क ीय आंगन म बुलवा भेजा। उसने अपनी तलवार िनकाली और उन
दोन के साथ अ यास ारं भ कर िदया था।
उसके कुछ देर के बाद पवते र वहां आया। वह परू ी तरह से टूटा हआ तीत हो रहा था।
उसके मुख के भाव प
प से इस भय को दिशत कर रहे थे िक वह सती से अंितम बार बात
करे गा। सती ने अ यास बंद कर िदया, अपनी तलवार यान म डाली और जुड़े हए हाथ से
आदरपवू क नम ते करते हए धीमे वर म बोली, ‘िपततृ ु य।’
पवते र सती के समीप आया। उसका चेहरा घबराया हआ तीत हो रहा था। वह िनि त
तौर पर नह कह सकती थी, िकंतु उसे ऐसा तीत हआ िक वे रोते रहे थे। वह उनक
आ मिव ासी आंख म आज से पहले कभी भी सांकेितक प से भी आंसू नह देख पाई थी।
‘मेरी ब ची,’ पवते र बुदबुदाया।
‘म वही कर रही हं, जो मुझे उिचत लगा,’ सती ने कहा, ‘म खुश हं।’
पवते र म कुछ भी बोल पाने क शि
नह बची थी। कुछ ण के िलए उसने तारक के
वध के बारे म भी सोच िलया था। िकंतु वह अवैधािनक होता।
उसी समय िशव और बहृ पित भी वहां आ पहंचा। िशव ने पवते र के चेहरे को देख िलया
था। यह पहली बार था जब उसने सेनानायक के चेहरे पर दुबलता के ल ण देखे थे। जबिक वह
पवते र क अव था को अ छी तरह से समझ रहा था, िकंतु उसका जो असर सती पर हो रहा था
वह उसे अ छा नह लगा।
‘मुझे मा कर, म देर से आया,’ िशव ने आंख मटकाते स न मु ा म कहा।
सभी लोग मुड़कर उसे देखने लगे।
‘दरअसल, म और बहृ पित भगवान व ण देव के मंिदर म तारक के िलए ाथना करने गए
थे,’ िशव ने कहा, ‘उसक आ मा दूसरी दुिनया क या ा करे गी उसके िलए हमने पज
ू ा क तािक
वह आरामदायक रहे ।’
सती िखलिखलाकर हंस पड़ी। और आंगन म सभी ने उसका अनुसरण िकया।
‘भ , तुम अ यास के िलए सही ित ं ी नह हो,’ िशव ने कहा, ‘तुम तेजी से इधर-उधर
क चाल करते हो। नंदी तुम राजकुमारी के साथ ं यु करो। अपनी फुत पर िनयं ण रखो।’
सती क ओर मुड़कर िशव ने कहना जारी रखा, ‘मने तारक को अ यास करते देखा है।
उसके वार म अ यिधक बल है। िकंतु इन वार के बल ने उसक गित को धीमा कर िदया है।
उसक शि को उसक दुबलता बनानी होगी। अपनी फुत को उसक चाल के िव
योग
करना होगा।’
उसके
येक श द को समझते हए सती ने सहमित म िसर िहलाया। उसने नंदी के साथ
अपना अ यास ारं भ कर िदया। नंदी क धीमी गित क तुलना म अ यिधक फुत से चलन करते
हए सती ऐसे वार करने म सफल हो रही थी जो िकसी यि के िलए ाण घातक हो सकते थे।
अचानक ही िशव को एक उपाय सझ
ू ा। नंदी को कने का िनदश देते हए उसने सती से
पछ
ू ा, ‘ या आपको लड़ाई करने के श के चयन क अनुमित होती है?’
‘हां। यह मेरा िवशेषािधकार है य िक चुनौती मने दी है।’
‘तो िफर चाकू का चयन क िजए। यह उसके वार क पहंच को कम कर देगा जबिक आप
आगे-पीछे ती गित से चलन कर सकती ह।’
‘यह तो बहत ही बिढ़या िवचार है!’ पवते र ने सहमत होते हए कहा जबिक बहृ पित ने
सहमित म िसर िहलाया।
सती ने त काल ही सहमित का संकेत िदया। लगभग उसी समय वीरभ दो चाकुओं को
लेकर आ पहंचा। उसने एक चाकू नंदी को िदया और दूसरा सती को, ‘अ यास क िजए, देवी।’
एक व ृ ाकार ड़ा- थल के म य म तारक एवं सती खड़े हए थे। यह करचप क मु य रं गभिू म
नह थी जो अ यिधक िवशालकाय थी। यह मु य रं गभिू म के बगल म संगीत समारोह के िलए
िनिमत थी, िजसे करचप म आए मेसोपोटािमया के अ वासी बहत पसंद करते थे। वह रं गभिू म
लगभग उसी माप क थी िजतनी िक अि न परी ा के िलए आव यक था। वह इतनी बड़ी भी नह
थी िक एक यि अपने ित ं ी से अ यिधक दूरी बना ले और इतनी छोटी भी नह थी िक
िभड़ं त तुरंत समा हो जाए। मैदान के चार ओर लोग के बैठने के िलए चबत
ू रे बने हए थे, िजस
पर बीस हजार लोग क भीड़ इस अ ुत एवं अित मह वपण
ू ं यु को देखने के िलए आए हए
थे, जो करचप म िपछले पांच सौ वष म नह हआ था।
येक यि के ह ठ पर एक ाथना थी। तात मनु कोई चम कार कर िक सती िवजयी हो
जाए। यिद ऐसा न हो तो कम से कम वह जीिवत अव य रहे । तारक और सती ने एक-दूसरे को
नम ते म अिभवादन िकया और स मान के साथ लड़ने क ाचीन ित ा को दुहराया। उसके
बाद ड़ांगन के मु य चबत
ू रे के शीष पर ि थत भगवान व ण देव क ितमा क झुककर
ाथना क तािक जल एवं समु के देवता का आशीवाद उ ह ा हो। भगवान व ण देव क
ितमा के ठीक नीचे अपने औपचा रक आसन को झल
ू े र ने िशव के िलए रख छोड़ा था।
रा यपाल उनक बाई ं ओर आयुवती और कृि का के साथ बैठा हआ था। बहृ पित और पवते र
िशव के दाएं बैठे हए थे। नंदी और वीरभ अपने जाने-पहचाने थल पर िशव के ठीक पीछे थे। इस
ं यु के बारे म संदेश देने के िलए एक प ी संदेशवाहक स ाट द के िलए कल ही भेज
िदया गया था। हालांिक इतना समय नह था िक उनके उ र क अपे ा क जा सके।
आिखरकार झल
ू े र उठकर खड़ा हआ। वह अि न परी ा से घबराया हआ सा था, िकंतु
शांत तीत हो रहा था। रीित के अनुसार उसने मु ी बांधकर हाथ को अपने सीने से लगाया और
अचानक ही गजना करते हए बोला, स य! धम! मान!
सम त
ड़ांगन म से सहमित के वर गंज
ू े, स य! धम! मान!
तारक और सती ने भी पुनराविृ क , स य! धम! मान!
झल
ू े र ने ड़ांगन के रखवाले को िसर िहलाकर संकेत िदया िजसने आनु ािनक तेल
क मशाल को कािशत कर िदया। उस मशाल ने अपनी आग को बने हए तेल के नाले म फै ला
िदया; क ीय मैदान का बाहरी घेरा आग से विलत हो उठा। परी ा के िलए आग का घेरा तैयार
हो चुका था।
झल
ू े र ने िशव क ओर मुड़कर कहा, ‘ भु, ं यु
ारं भ करने क अनुमित चाहता हं।’
िशव ने आ मिव ासपण
ू मु कान के साथ सती को देखा। उसके बाद डांगन क ओर
लोग को संबोिधत करते हए तेज वर म घोषणा क , ‘अि नदेव क शु करने वाली अि न म
स य क हमेशा िवजय होगी!’
तारक और सती ने तुरंत ही अपने-अपने चाकू िनकाल िलए। तारक ने अपना चाकू अपने
सामने एक पारं प रक यो ा के समान पकड़ा हआ था। उसने वह रणनीित अपनाई हई थी जो
उसक शि थी। सामने क ओर चाकू रहने का अथ था िक सती जैसे ही उसके समीप आती है,
वह उस पर वार कर सकता था। वह अिधक िहल-डुल नह रहा था और सती को अपने सामने
चाल करने दे रहा था।
दूसरी ओर सती िभड़ं त के सभी ात िनयम के िवपरीत अपना चाकू पीछे क ओर पकड़े हई
थी। अपने ित ं ी से एक सुरि त दूरी रखते हए वह चाकू को लगातार एक हाथ से दूसरे हाथ
म अदल-बदल रही थी। उसका इरादा तारक को चकरा देने का था िक आ मण क िदशा या
होगी उसे पता न चल सके। दूसरी ओर तारक सती क चाल को एक बाज क भांित देख रहा था।
उसने सती के दािहने हाथ को झुकते हए देखा। चाकू अब उसके दािहने हाथ म था।
अचानक ही सती उछलकर बाई ं ओर चली गई। तारक ि थर रहा। वह जानता था िक दािहने
हाथ म चाकू होते हए बाई ं ओर उछलना केवल एक पतरा भर था। उसे दािहने आना ही होगा यिद
उसे अपने चाकू से वार करना था। और वही हआ, सती अचानक ही तेजी से दािहनी ओर आई और
उसने अपने हाथ को चाकू मारने क ि थित म ऊपर उठाया। तारक इसके िलए पहले से ही तैयार
था। उसने ज दी से बाएं हाथ म चाकू बदला और बहत ही ू रतापवू क उसने चाकू को हवा म
लहराते हए वार िकया, िजसके कारण सती के ऊपरी धड़ पर घाव लग गया। वह इतना गहरा घाव
नह था, िकंतु ऐसा तीत हआ िक वह पीड़ादायक था। दशक दीघा से एक सामिू हक आह िनकल
पड़ी।
सती पीछे हट गई और उसने वयं को संतुिलत कर इधर-उधर घम
ू ना ारं भ कर िदया। वह
चाकू को अपने पीछे ले गई और उसे दोन हाथ म लगातार बदलने लगी। तारक ने अपनी तीखी
ि उस पर रखी हई थी। चाकू उसके बाएं हाथ म था। तारक ने अनुमान लगा िलया था िक वह
दिहनी ओर जाएगी, जो उसने िकया भी। वह ि थर रहा। वह ती ा कर रहा था िक सती कब बाई ं
ओर जाकर वार करती है। उसने ऐसा ही िकया और उछलकर बाई ं ओर उसने वार िकया। तारक
पहले से ही तैयार था और उसने इतनी फुत से अपना हाथ चलाया िक सती का हाथ हवा म रह
गया। और उसने अपने दािहने हाथ को भयंकर ती ता से लहराते हए चाकू से वार िकया और
सती के बाएं कंधे पर एक गहरा घाव लगा गया। सती पीछे हट गई और भीड़ भय से कराह उठी।
कुछ लोग ने अपनी आंख मंदू ल । वे अब और देखने क िह मत नह जुटा पा रहे थे। अिधकतर
लोग उ ता से पज
ू ा-अचना कर रहे थे। यिद यही करना ही था तो उसे सरलता से िकया जाना
चािहए और इस कार धीमे पीड़ादायक तरीके से नह ।
‘वे या कर रही ह?’ घबराए हए बहृ पित ने िशव को फुसफुसा कर पछ
ू ा, ‘वे
असावधानी से आ मण कर रही ह?’
य
िशव ने मुड़कर बहृ पित क ओर देखा और पवते र का चेहरा भी। पवते र के चेहरे पर
आ य था, िफर भी शंसा भरी मु कान थी। वह बहृ पित क तरह अनजान न होकर समझ रहा
था िक वहां या हो रहा था। ं यु क ओर ि घुमाते हए िशव ने धीमे वर म कहा, ‘वे जाल
िबछा रही ह।’
मैदान के म य म सती अभी भी चाकू को बाएं से दाएं और दाएं से बाएं हाथ म लगातार
बदलती जा रही थी। उसने दािहनी ओर से बाई ं ओर एक बनावटी चाल क , िकंतु इस बार उसने
चाकू को हाथ म बदला नह । दािहने हाथ को ढीला और आराम से रखते हए उसने अपने बाएं
हाथ से हरकत क ।
तारक सती को सावधानीपवू क देख रहा था। वह इस आ मिव ास से भरा हआ था िक वह
धीरे -धीरे उसके र को बहाकर उसे म ृ यु क गोद म सुला देगा। उसने समझा िक चाकू उसके
बाएं हाथ म था। उसने उसके दािहनी ओर जाने क ती ा क , उसके बाद बाय , जो उसने बहत
ही तेजी से मुड़कर िकया। उसके बाएं हाथ के आ मण क अपे ा म तारक ने दािहने हाथ म
चाकू को हवा म लहराते हए वार िकया। सती बड़ी सफाई से न ृ य क मु ा के साथ पीछे हट गई।
इससे पहले िक आ य से भरा तारक कुछ िति या कर पाता सती उछलकर दािहनी ओर गई
और उसने अपने दािहने हाथ को िनदयता से तारक के सीने क ओर चला िदया। चाकू तारक के
फेफड़े तक घुस गया। उस घातक वार ने तारक को अि थर कर िदया। उसके मुंह से र
िपचकारी क भांित फूट पड़ा। उसने चाकू िगरा िदया और लड़खड़ाता हआ पीछे हटा। सती ने
िनदयतापवू क दबाव बनाए रखा और चाकू को और अंदर चाकू क मठ
ू तक घ पती चली गई।
तारक लड़खड़ाकर और पीछे गया और भिू म पर धड़ाम से िगर गया। उसके शरीर म कोई
हरकत नह थी। समच
ू ा ड़ांगन त ध रह गया। सती के मुख पर देवी माता के ोध के भाव
थे। प चासी वष से दबा हआ ोध उस समय उसके मुख पर उभरकर आ चुका था। उसने चाकू
को घुमाते हए बाहर िनकाल िलया तािक घाव अ यिधक घातक हो जाए। तारक के मुंह से र
क धार बह िनकली। सती ने अपने दोन हाथ से चाकू को उठाया। उसे बस इतना ही करना था
िक चाकू को तारक के दय म भ क देना था और उसक आ मा उसके शरीर को छोड़कर
िनकल जाती। तभी अचानक उसके मुख का भाव पुन: शांत हो गया। लगभग वैसे ही जैसे िकसी
ने उसके शरीर से सारी ऋणा मक ऊजा को सोख िलया हो। वह मुड़ी। बुराइय के िवनाशक िशव
िसंहासन पर बैठे हए एक मधुर मु कान से उसे देख रहे थे।
उसके बाद उसने तारक को देखा और धीमे से कहा, ‘म तु ह मा करती हं।’
परू ा का परू ा डांगन खुशी म झम
ू उठा। यिद व णदेव ने भी इस ं यु क पटकथा
िलखी होती तो वह भी इतना आदश नह होता। इसम वह सभी कुछ था जो एक सय
ू वंशी को ि य
था। जब दबाव म हो तो हठ के साथ ितरोध करना और िवजय के बाद िवशाल दयता।
सती ने अपना चाकू उठाया और िच लाकर कहा, ‘जय ी राम।’
सम त
ड़ांगन ने एक वर म दुहराया, ‘जय ी राम।’
सती िशव क ओर मुड़ी और उसने एक बार और गजना क , ‘जय ी राम।’
‘जय...,’ िशव के श द उसके गले म ही अटक गए।
यिद उनक जय–जयकार वह परू ी नह कर सका था तो भी भ ु इस एक बार अनिु चत नह
मानगे।
िशव ने सती से ि हटाकर दूर देखा। वह नह चाहता था िक िजसे वह ेम करता था वह
उसके आंसू देखे। ण भर म ही अपने ऊपर िनयं ण करके उसने एक दीि मान मु कान से सती
क ओर देखा। सती िनरं तर िशव को घरू ती जा रही थी। जो भावनाएं उसके भीतर अब तक बहत
लंबे समय से सुसु थ वे िशव क उस शंसा भरी ि को देखकर बाहर िनकल आई थ ।
जब वह उ ह सहन न कर सक तो उसने अपनी आंख बंद कर ल ।
अ याय - 16
सूय एवं प ृ वी
क रचप म उस रात िबना िकसी तैयारी के ही एक समारोह का आयोजन िकया गया। उनक
राजकुमारी सुरि त थी। अस तारक परािजत हआ था। करचप म बहत से लोग का यहां तक
मानना था िक यिद उसक अपनी माता भी वहां होती तो उस कठोर उपदेशक से घण
ृ ा करती। उस
उदार नगर म उसके समथक न के बराबर थे। िकंतु ं यु के कुछ िनयम होते थे। इसिलए जब
सती ने तारक को मा कर िदया तो त काल ही परािचिक सक ने भागकर उसे उठाया और उसे
अ पताल लेकर गए। श य िचिक सक ने उसके ाण बचाने के िलए छह घंट क कड़ी मेहनत
क । लोग को िनराश करते हए उ ह ने उसके ाण बचा िलए थे।
‘ या आपने सय
ू एवं प ृ वी क किवता के बारे म सुना है?’ सती ने िशव से पछ
ू ा।
वे रा यपाल के आलीशान महल म छ जे पर खड़े थे, जबिक नीचे एक कोलाहलपण
ू दावत
चल रही थी।
‘नह ,’ एक स मोहक मु कान के साथ सती के िनकट आते हए िशव ने कहा, ‘लेिकन
अव य सुनना पसंद क ं गा।’
‘ कट प से ऐसा माना जाता है िक प ृ वी कभी-कभी सय
ू के समीप आने क संभावना के
बारे म सोचती है,’ सती ने कहा, ‘िकंतु वह ऐसा नह कर सकती है। यह बहत मौिलक है य िक
सय
ू क चमक इतनी ती है िक यिद वह उसे अपने समीप लाती है तो वह िवनाश कर देगी।’
अब यह या कहना चाह रही है?
‘म नह मानता,’ िशव ने कहा, ‘मेरा मानना है िक सय
ू तभी जलता है जबिक प ृ वी उसके
समीप रहती है। यिद प ृ वी नह होती तो सय
ू के अि त व म रहने का कोई कारण भी नह होता।’
‘सय
ू केवल प ृ वी के िलए अि त व म नह है। वह सौर मंडल म
अि त व म है।’
येक
ह के िलए
‘ या यह सय
ू का चयन नह है िक वह िकसके िलए अि त व म रहना चयिनत करता है?’
‘नह ,’ सती ने िशव क ओर िवषाद त होकर देखते हए कहा, ‘िजस ण वह सय
ू बन
गया, उसका जीवन व ृ बहत ऊंचा हो गया। वह अपने िलए अि त व म नह होता है। वह वहृ र
अ छाइय के िलए सबके िलए अि त व म होता है। उसक योित सौर मंडल के जीवन का आधार
है। और यिद प ृ वी को थोड़ा भी अपने उ रदािय व का भान है तो उसे इस संतुलन को न करने
के िलए कुछ भी यास नह करना चािहए।’
‘तो िफर वह सय
ू या करे ?’ िशव ने पछ
ू ा। उसक पीड़ा और ोध उसके मुख से झलक रहा
था, ‘वह अपने सम त जीवन का अप यय जलते हए कर दे? एक दूरी से प ृ वी को मा देखते
हए?’
‘प ृ वी कह नह जा रही है। सय
ू और प ृ वी तब भी एक गमजोशी भरी िम ता का आदानदान कर सकते ह। िकंतु उससे अिधक कुछ भी िनयम के िव
है। यह अ य लोग क िचय
के िव
है।’
िशव ने गु से से सती से मुख मोड़ िलया। उसने पिव झील से सां वना पाने के िलए उ र
िदशा म देखा। उसे अपने अंदर शू यता का अनुभव हो रहा था। उसने आकाश क ओर ऊपर
देखा, देवताओं क ओर िजन पर उसका िव ास नह था।
लानत है !
उसने अपने शि शाली मु के से छ जे क र ा के घेरे पर जोर से हार िकया, िजससे कुछ
ई ंट जगह से उखड़ गई ं और वहां से तेजी से िनकल गया।
नगर क दीवार के बाहर जंगल म कुछ सैिनक ती ा म लेटे हए थे। उससे थोड़ी दूरी पर दो
फणदार यि एक प थर पर बैठे हए थे। उस पलटन का अिधपित उन दोन क बगल म
सावधान क मु ा म अकड़ा हआ सा खड़ा था। वह इस बात पर िव ास नह कर पा रहा था िक
वह रानी के िनकट खड़ा था। इस सौभा य से वह अ यंत स न था।
उन फणदार यि य म से एक ने अपना हाथ उठाकर अिधपित को समीप आने का संकेत
िकया। उस फणदार यि क कलाई पर चमड़े का कड़ा था िजस पर सपाकार ओऽम बना हआ
था, ‘िव ु न या तुम िनि त हो िक यही वह जगह है, जहां हम उससे िमलने वाले ह? वह
लगभग एक घंटे िवलंब से है।’
‘हां, वामी,’ िव
वह आएगा।’
ु न ने थोड़ा घबराकर कहा, ‘यह वही जगह है, जहां उसने कहा था िक
दूसरा फणदार यि मुड़ा और एक भावशाली वर बोला, वर जनाना था। ऐसा वर
िजसका िबना िकसी
के पालन िकया जाता था, ‘वह यि नागाओं क रानी से ती ा
करवाता है!’ दूसरे फणदार यि क ओर मुड़कर उसने कहना जारी रखा, ‘मेरा िव ास है िक
तुमने इस पर िव तार से काय िकया होगा। म आशा करती हं िक इस घिृ णत े म मेरा आना
बेकार नह जाएगा।’
दूसरे फणदार यि ने अपने मांसल हाथ क मु ा से रानी को धैय रखने का इशारा करते
हए कहा, ‘मुझ पर िव ास कर, महारानी। यह यि सय
ू वंिशय को एक ऐसा झटका देने म
मह वपण
ू है िक वे उससे िफर कभी नह उबर पाएं गे।’
‘पता चला है िक राजकुमारी और एक यि के म य कल नगर म एक अि न परी ा यु
हआ था,’ िव ु न ने रानी को भािवत करने के िलए अचानक यह बात छे ड़ दी, तािक उ ह
लगे िक उसक थानीय समाचार पर ती ण ि रहती है, ‘मेरे पास उसक प क जानकारी
तो नह है। म इतनी ही आशा कर सकता हं िक उसम हमारा यि शािमल न हो।’
रानी फुत से दूसरे फणदार यि क ओर मुड़ी। िफर िव
‘कृपया दूसरे सैिनक के साथ ती ा कर।’
ु न क ओर मुड़ी और बोली,
िव ु न ने महसस
ू कर िलया था िक उसने ऐसा कुछ कह िदया था जो उसे नह कहना
चािहए था और इससे पहले िक उसके वामी क गु सैल आंख उसे फटकार लगाएं , वह तेजी से
वहां से चला गया। इसी कारण से िश ण िशिवर म िसखाया जाता था िक एक अ छा िसपाही
तब तक मुंह नह खोलता है, जब तक िक उससे कुछ पछ
ू ा नह जाए।
‘वह यहां है?’ रानी ने अपने गु से को छुपाए िबना पछ
ू ा।
दूसरे फणदार यि
ने सहमित म िसर िहलाया।
‘मुझे याद है िक मने तुमसे इस बारे म भल
ू जाने को कहा था,’ रानी ने कड़ाई से कहा, ‘इस
तलाश से कुछ भी हािसल होने वाला नह है। या तु ह ऐसा लगता है िक तु हारे ारा िकए गए
मंदार पवत पर उस मख
ू ता भरे आ मण से उ ह संदेह हआ होगा िक उनके म य म हमारा गु चर
है?’
उस यि
ने मा याचना से उसक ओर देखा।
‘ या तुम उसके िलए यहां आए थे?’
‘नह , महारानी,’ उस फणदार यि ने गंभीर एवं आदरपण
ू वर म कहा, ‘यह वह जगह
है, जहां उसने हम िमलने के िलए बुलाया था।’
रानी ने हाथ आगे बढ़ाकर उस यि के कंधे पर थपक दी, ‘ यान कि त करो, मेरे
ब चे,’ रानी ने कोमलता से कहा, ‘यिद हम इसम सफल हो जाते ह तो यह हमारी सबसे बड़ी
िवजय होगी। जैसािक तुमने अभी कहा था िक हम उ ह इतना बड़ा झटका दगे िक उनके िलए
उससे उबरना बहत किठन हो जाएगा।’
उस यि
ने सहमित म िसर िहलाया।
‘और िफर भी,’ रानी ने अपने हाथ ख चकर अपने लबादे के आ य म रखते हए कहना
जारी रखा, ‘तु हारी उसम त लीनता तु हारे िनणय को असामा य बना देती है। या तुम जानते
हो िक उसने एक प संदेश भेजा है िक उसे पश नह िकया जा सकता है? अ यथा सौदा र
कर िदया जाएगा।’
फणदार यि
ने रानी को आ य से देखा, ‘आपको कैसे...’
‘म नागाओं क रानी हं, मेरे ब चे,’ उसने बीच म ही टोक िदया, ‘मेरी शतरं ज पर एक से
अिधक यादे ह।’
फणदार यि मंदार पवत पर अपने खराब दशन पर रानी को शिमदा होने वाली ि से
देखता रहा। रानी के अगले श द ने उसक शिमदगी और बढ़ा दी, ‘तुम आ यजनक प से
गलितयां कर रहे हो, मेरे ब चे। तुमम सबसे महान नागा बनने क यो यता है। इसका अप यय
मत करो।’
‘जी हां, महारानी।’
रानी थोड़ी िनि ंत सी तीत हई, ‘मेरा िवचार है िक अब हम यहां अकेले ह,’ रानी ने कहा,
‘तुम मुझे मौसी बुला सकते हो, वैसे भी म तु हारी मां क बहन हं।’
‘िन संदेह आप ह,’ उस फणदार यि
थी, ‘आप जो भी कह, मौसी।’
ने कहा तो मु कान उसक आंख तक पहंच चुक
अि न परी ा क घटना हए दो स ाह बीत चुके थे। सती पया प से इतनी भली-चंगी हो गई थी
िक वह कािफले के साथ अगले गंत य के िलए चल सकती थी। िशव, पवते र और बहृ पित िशव
के साथ उसके कमरे म बैठे हए थे।
‘तो हम सब सहमत ह,’ पवते र ने कहा, ‘एक स ाह के अंदर म हमारी या ा क सारी
यव थाएं कर लंग
ू ा। उस समय तक सती परू ी तरह से ठीक हो चुक होगी।’
‘हां। मेरे िवचार से यह योजना उिचत है,’ िशव ने सहमित दी।
‘पवते र, म अब और आगे नह आऊंगा,’ बहृ पित ने कहा।
‘ य ?’ पवते र ने पछ
ू ा।
‘ऐसा है िक जो नए रसायन आने वाले थे वे आ गए ह। मै सोच रहा था िक इन सामान के
साथ म मंदार पवत लौट जाऊं और िजतना शी हो सके योग ारं भ कर दंू। यिद हम इस योग
म सफल रहे तो सोमरस बनाने म जल क आव यकता म अ यिधक कमी आ सकती है।’
िशव ने एक दुखी मु कान के साथ कहा, ‘आपक बड़ी याद आएगी, िम ।’
‘और मुझे आपक ,’ बहृ पित ने कहा, ‘िकंतु म देश छोड़कर नह जा रहा हं। जब आप या ा
पण
ू कर ल तो मंदार पवत पर आइए। म आपको वहां जंगली वन म लेकर जाऊंगा। आपको बहत
अ छा लगेगा।’
‘हां,’ िशव ने बनावटी हंसी के साथ कहा, ‘संभवत: आप अपनी कुछ वै ािनक द ता का
कटन करगे और इस नीले गले के िलए कोई िव सनीय लगने वाला कारण खोज लगे!’
िशव और बहृ पित दोन ही ठहाका मारकर हंस पड़े । पवते र उनके इस प रहास को समझ
न सका। वह केवल उ ह देखता रहा।
‘बस एक बात है, बहृ पित,’ पवते र ने कहा, ‘म राजशाही या ा से अपने सैिनक क
सं या कम नह कर सकता। म रा यपाल से बात क ं गा िक वे आपक वापसी या ा के िलए
कुछ सैिनक का बंध कर द।’
‘ध यवाद, पवते र। िकंतु मुझे िव ास है िक म सुरि त रहंगा। एक आतंक मुझम य
अपनी िच िदखलाएगा?’
‘कल ही एक और आतंक आ मण मोहन जोदारो से लगभग पचास िकलोमीटर दूर हआ
है,’ पवते र ने कहा, ‘परू ा का परू ा मंिदर न कर िदया गया है और सारे ा ण क ह या कर
दी गई है।’
‘एक और,’ िशव ने
ोिधत होकर कहा, ‘यह इस महीने म तीसरा आ मण है।’
‘हां,’ पवते र ने कहा, ‘वे साहसी होते जा रहे ह। और पवू क भांित वे वहां से भाग िनकले
जब तक िक सहायता पहंच पाती और उनसे सामना हो पाता।’
िशव ने अपनी मु यां भ च ल । उसे कोई उपाय नह सझ
ू रहा था िक वह आतंक आ मण
से कैसे िनपटे। उनके िलए कोई तैयारी करना भी किठन था य िक यह भी पता नह होता था
िक वे कहां आ मण करने वाले थे। या चं वंिशय के सा ा य व ीप पर आ मण करना ही
यह सब रोकने का एकमा उपाय था? िशव के अंतमन म उठ रही हलचल को महसस
ू कर
बहृ पित चुप रह गया। वह जानता था िक इसका कोई सरल उ र नह था।
िशव को देखते हए पवते र ने कहा, ‘म अपने लोग को या ा क तैयारी का आदेश अभी
दे दंूगा। उसके बाद म आपसे राि भोज पर िमलंग
ू ा। मेरे िवचार से सती भी हमारे साथ शािमल हो
सकती है। म नंदी और वीरभ के िलए संदेशा िभजवा दंूगा िक वे भी हमारे साथ शािमल हो सकते
ह। म जानता हं िक आपको उनका संग पसंद है।’
पवते र के अला िणक यवहार एवं सोच पर िशव ने आ य से देखा, ‘ध यवाद पवते र।
यह आपने बड़ा अ छा िकया। लेिकन मुझे पता चला है िक कृि का, नंदी और वीरभ आज रात
बांसुरी वादन का आनंद लेने जा रहे ह। उस पागल वीरभ ने तो कुछ गहने भी खरीद िलए ह
तािक नंदी के साथ वह देसी गंवार न िदखे।’
पवते र मधुरता से मु कुराया।
‘लेिकन मेरे िलए आपके साथ भोजन करना स नता क बात होगी,’ िशव ने कहा।
‘ध यवाद,’ पवते र ने उठते हए कहा। कुछ कदम चलने के बाद वह का और पीछे मुड़ा।
अपनी िहचिकचाहट पर िवजय पाकर उसने धीमे से कहा, ‘िशव!’
‘हां?’ िशव उठ खड़ा हआ।
‘मने आपसे पहले यह नह बताया,’ पवते र असुिवधा से बोल रहा था, ‘िकंतु म आपको
अि न परी ा म सती क सहायता करने के िलए ध यवाद ािपत करना चाहता हं। आपक जो
प सोच थी, उसी के कारण उसक िवजय हई।’
‘नह , नह ,’ िशव ने कहा, ‘यह तो उसक द ता थी।’
‘िन संदेह वह थी,’ पवते र ने कहा, ‘िकंतु आपने उसे आ मिव ास और रणनीित दान
क तािक वह अपनी द ता दिशत कर सके। यिद इस िव म कोई ऐसा यि है िजसे म
कत य से अिधक भावनाओं के साथ देखता हं तो वह सती है। म आपको उसक सहायता करने
के िलए ध यवाद ािपत करना चाहता हं।’
‘आपका वागत है,’ िशव मु कुराया। वह बातचीत को और अिधक लंबा नह ख चकर
पवते र को और अिधक शिमदा नह करना चाहता था।
पवते र मु कुराया और उसने हाथ जोड़कर नम ते िकया। य िप वह देश यापी ‘नीलकंठ
पी वर’ से पीिड़त नह था, तथािप वह धीरे -धीरे िशव का आदर करने लगा था। पवते र से
स मान अिजत करना एक बड़ी या ा थी िजसे िशव ने मा ारं भ ही िकया था। सेनानायक पीछे
मुड़ा और कमरे से बाहर िनकल गया।
‘यह बुरा आदमी नह है,’ बहृ पित ने पवते र के चले जाने के बाद कहा, ‘वह थोड़ा
िचड़िचड़ाता अव य है, िकंतु वह सबसे ईमानदार सय
ू वंिशय म से एक है। वह भु ी राम का एक
स चा अनुयायी है। मेरी आशा है िक उसक कुछ गु से वाली बात जो वह आपको कह जाता है, वे
आपको अिधक दुखी नह करती हागी।’
‘नह मुझे बुरा नह लगता है,’ िशव ने कहा, ‘असल म म पवते र को बहत े
हं। वह एक ऐसा यि है िजससे स मान अिजत करना मेरा सौभा य होगा।’
मानता
िशव क िवशाल दयता के एक और उदाहरण को देखकर बहृ पित मु कुराया। वह आगे
झुका और बोला, ‘आप एक अ छे यि ह, िशव।’
िशव ने मु कुराहट के साथ उसे देखा।
‘जो आपने िपछली बार मुझसे पछ
ू ा था, उसका उ र मने नह िदया था, िशव,’ बहृ पित ने
कहना जारी रखा, ‘सचाई यही है िक म नीलकंठ क पौरािणक गाथा म िव ास नह करता हं।
म अभी भी नह करता हं।’
िशव ने और चौड़ी मु कान के साथ देखा।
‘िकंतु म आपम िव ास करता हं। यिद कोई एक ऐसा यि है जो इस भिू म से ऋणा मक
ऊजा को सोखकर न कर सकता है, तो वो आप ही हो सकते ह। और म हरसंभव आपक
सहायता के िलए कुछ भी क ं गा। चाहे वह िजस िकसी भी प म हो और मेरे करने लायक हो।’
‘आप मेरे ऐसे भाई ह, जो मेरे पास कभी नह थे। आपक उपि थित ही मेरी सारी
आव यकताओं क पिू त कर देगी।’
यह कहते हए िशव ने अपने िम को आिलंगनब कर िलया। अपने अंतमन म एक
पुनजा त ऊजा के संचार को महसस
ू करते हए बहृ पित ने भी िशव को गमजोशी से जकड़
िलया। उसने मन ही मन सौगंध ली िक वह अपने येय से कभी भी नह हटेगा। चाहे कुछ भी हो
जाए। यह मा मेलहू ा के िलए नह था। यह िशव के िलए भी था। उसके िम के िलए।
सती क अि न परी ा के तीन स ाह बाद करचप से कािफला िनकला। वही सात बि घयां एक
पंि म एक साथ या ा कर रही थ । इस बार पांच नह छह बि घयां िदखावटी थ । िशव सती के
साथ तीसरी ब घी म था और पवते र एवं आयुवती भी उसी म थे। यह पहली बार था जब पवते र
िशव के साथ एक ही ब घी म या ा कर रहा था। कृि का ब घी म या ा करने से मुकर गई थी
और उसने वे छा से यह कहते हए अ ारोहण करने का िनणय िलया था िक ब घी म नह जाना
चाहती थी य िक वह ामीण े क ाकृितक सुंदरता नह देख पा रही थी। वीरभ को नंदी
क पलटन म उसके साथ अ ारोहण करने म अपार खुशी हो रही थी।
उनको करचप से िनकलकर या ा करते हए अभी कुछ ही िदन हए थे िक जब उनके
कािफले को क जाना पड़ा य िक एक बड़ा कािफला िवपरीत िदशा से बड़ी शी ता से चला आ
रहा था। पवते र जानकारी लेने के िलए ब घी से बाहर िनकला। सेनापित क उसके पास आया
और उसने पवते र को सैिनक अिभवादन िकया।
‘ या बात है?’
‘ वामी, ये लोग कं ू ज गांव के शरणाथ ह,’ क ने कहा, ‘ये लोग एक आतंक आ मण से
बचकर िनकल रहे ह।’
‘बचकर िनकल रहे ह!’ चिकत पवते र ने पछ
ू ा, ‘तुम यह कहना चाहते हो िक आ मण
अभी चल रहा है?’
‘ऐसा ही तीत होता है, वामी,’ क ने कहा। उसका चेहरा गु से से लाल था।
‘लानत है!’ पवते र वयं पर झुंझलाया। ना ही मेलहू ा को और ना ही उसे ऐसा अवसर ा
हआ था िक जब एक हजार पांच सौ सैिनक उपल ध थे और आतंक आ मण चल रहा था। उसके
बाद भी पवते र के हाथ बंधे हए थे। नीलकंठ एवं राजकुमारी क सुर ा के िसवाय उसे िकसी
अ य ल य को साधने क अनुमित नह थी।
‘यह या मख
ू ता है?’ उसने मन ही मन सोचकर कहा, ‘मुझे िदए गए आदेश मेरे
धम का पालन करने से रोक रहे ह।’
ि य
‘ या बात है, पवते र?’
पवते र मुड़ा तो उसने देखा िक िशव ठीक उसके पीछे खड़ा था। इस म य सती और
आयुवती भी ब घी से उतर रहे थे। इससे पहले िक पवते र कुछ उ र दे पाता, एक भयानक शोर
ने उस शांत जंगल को भेदकर रख िदया। यह वह विन थी िजसे िशव को पहचान जाना था। उस
विन ने शंख विन करने वाले क मंशा को अ यिधक बलपवू क प कर िदया था। उसने
घोषणा कर दी थी िक आ मण का ारं भ हो चुका था। नागाओं का एक आ मण ारं भ हो चुका
था।
अ याय - 17
कूंज का यु
‘वे लोग कहां ह?’ पवते
र ने पछ
ू ा।
‘वे लोग मेरे गांव म ह, वामी,’ भयभीत गांव के धान ने कहा, ‘यह कुछ ही दूरी पर है,
कोई पांच सौ चं वंशी सैिनक नागाओं के नेत ृ व म ह। उ ह ने हम गांव छोड़ने के िलए तीस
िमनट का समय िदया था। िकंतु मंिदर के ा ण को रोक िलया गया है।’
पवते र ने अपने
ोध को िनयंि त करने के िलए अपनी मु यां भ च ल ।
‘हमारे पंिडत जी बहत अ छे यि ह, वामी,’ गांव धान ने कहा। उसक आंख से आंसू
ढलक गए। क ने उसे सां वना देने के िलए अपना हाथ उसके कंधे पर रख िदया। गांव धान
क मु ा उसे बहत ही दयनीय बना रही थी य िक वह नह जानता था िक गांव के पुजारी के
साथ या अनहोनी होने वाली थी।
‘हम अपने पंिडत और अ य ा ण के साथ िमलकर लड़ाई लड़ना चाहते थे,’ सुबकते हए
गांव धान ने कहा, ‘वे ई र के आदमी ह। अ -श कैसे उठाया जाता है, उ ह तो यह भी पता
नह है। वे इस िगरोह से यु कैसे कर सकते ह?’
क ने गांव धान को बोलने िदया तािक उसका
ोध शांत हो जाए।
‘िकंतु पंिडत जी ने हम वहां से चले जाने का आदेश दे िदया। उ ह ने हमसे हमारी ि य
और ब च के साथ भाग जाने के िलए कहा। उ ह ने
कहा िक वे उस भा य का सामना करगे, जो भा य भगवान
ा ने उनके िलए िलखा था।
िकंतु यिद िकसी क र ा हो सकती है तो उनक र ा होनी चािहए।’
पवते र का नाखन
ू उसक वचा म अंदर तक घुस गया। चं वंिशय के इस कार िनह थ
पर आ मण करने और ि य से आमना-सामना न करने क बात सुनकर उसका चेहरा
बदरं ग हो उठा था। वह अपने भा य पर कुिपत हो रहा था िक वह एक ऐसी प रि थित म था िक
कोई कायवाही नह कर सकता था। उसके मन का एक िह सा कहता था िक वह आदेश को
भल
ू जाए। िकंतु वह इस बात से बंधा हआ था िक िनयम क अवहे लना न करे ।
‘ऐसे पागलपन को रोकना होगा!’
पवते र ने िसर घुमाकर देखा िक यह विन िकधर से आई थी, जो उसक सोच के म य म
गुंजायमान हो गई थी। िशव के मुख के भाव ने उसे सकते म ला िदया था। नीलकंठ के मुख पर
अ यिधक ोध क ऐसी वाला धधक रही थी िक एकबारगी देवगण भी सकते म आकर कांप
जाएं ।
‘हम लोग अ छे लोग ह,’ िशव ने ोध म कहा, ‘हम भयभीत मुिगय क तरह नह ह जो
मुड़कर भाग जाएं ! उन आतंिकय को अपने ाण बचाने के िलए भागना होगा। उ ह सय
ू वंिशय
के चंड ोध को महसस
ू करवाना होगा!’
गांव धान के पीछे खड़ा एक ामवासी बोला, ‘िकंतु वे ासदकारी ह! हम उ ह परािजत
नह कर सकते। पंिडत जी को यह पता था। इसी कारण से उ ह ने हम वहां िनकल जाने का
आदेश िदया था।’
‘लेिकन हमारे पास डे ढ़ सह सैिनक ह,’ िशव ने इस कायरतापण
ू दशन पर झुंझलाहट
के साथ कहा, ‘और साथ म आप लोग पांच सौ और ह। हम उनसे एक से चार क सं या म
अिधक ह। हम उ ह िम ी म िमला सकते ह। हम उ ह ऐसा सबक िसखाएं गे िक वे हमेशा याद
रखगे।’
गांव धान ने तक िदया, ‘िकंतु उनके पास नागा लोग ह! वे अमानवीय र
ह! ऐसी बुराइय के िव
हमारी या ह ती हो सकती है?’
िपपासु ह यारे
िशव क सहज बुि ने उसे अनुभव कराया िक अंधिव ास का सामना आ था से ही िकया
जा सकता है। वह ब घी क सीढ़ी पर चढ़ गया तािक थोड़ा ऊंचाई ा कर सके। गांव वाले उसे
घरू कर देख रहे थे। उसने अपना गुलबू ंद उतार िदया और एक ओर फक िदया। अब उसक
आव यकता नह रह गई थी।
‘म नीलकंठ हं!’
सभी सैिनक ने बुराइय के िवनाशक को मं मु ध होकर देखा। वे लोग इस बात पर अ यंत
स न थे िक उ ह ने अपने ार ध को सचाई से हण कर िलया था। गांव वाल को नीलकंठ के
आगमन का सं ान नह था। वे अपनी आंख के सामने पौरािणक कथन को सच होते देख
त ध रह गए थे।
‘म इन सं ािसय से यु करने जा रहा हं,’ िशव ने गजना क , ‘म उ ह िदखाने जा रहा हं
िक हम अब उनसे भयभीत नह ह। जो पीड़ा हम हो रही है, उसी पीड़ा को म उ ह महसस
ू करवाने
जा रहा हं। म उ ह यह बताने जा रहा हं िक वे जो चाह कर सकते ह, कर ल, लेिकन मेलहू ा को
र दा नह जा सकता है।’
वे लोग जो िशव के सामने खड़े थे, उनक रीढ़ क हड्िडय को सीधी कर देने वाली और
उनक आ माओं को े रत कर देने वाली िवशु ऊजा उनम संच रत हो गई।
‘कौन लोग मेरे साथ आ रहे ह?’
‘म आ रहा हं,’ पवते र धधक उठा था। उसे महसस
ू हो रहा था िक िशव क उ ोषणा से उस
पर लगे ितबंध से मुि िमल गई थी।
‘म भी,’ सती ने कहा और उसके साथ नंदी, वीरभ और क ने वर िमलाया।
‘म भी,’ वहां खड़े
येक यि
का वर गंज
ू ा।
अचानक ही भयभीत ामीण सचाई क सेना म बदल गए। सैिनक ने अपनी तलवार
िनकाल ल । ामीण ने अपने-अपने हिथयार पकड़ िलए जो भी उ ह िमल सका।
‘कं ू ज क ओर कूच करो,’ िशव ने एक अ
एड़ लगाकर सबसे आगे सरपट भगा िदया।
पर चढ़कर िच लाकर कहा और अपने घोड़े को
पवते र और सती ने शी ता से गाड़ी से घोड़े खोले और िशव के पीछे सरपट दौड़ा िदए।
सय
ू वंिशय ने आ मण करने के उ े य से जोर से ह ला करते हए दौड़ लगा दी। उस ह ले क
विन िकसी भी नागा शंख क विन से अ यिधक गजना वाली थी। जब वे कं ू ज म आंधी क तरह
पहंचे तो िजस आतंक का उ ह अंदेशा था, वही हआ था। चं वंिशय ने गांव पर यान कि त न
कर उनके आदरणीय मंिदर को िनशाना बनाया था तािक सय
ू वंिशय को अिधक से अिधक घाव
लगा सक। अंग-भंग िकए हए ा ण के शरीर मंिदर के आसपास िबखरे पड़े थे। उ ह एक साथ
इक ा कर उनक ह या कर दी गई थी। मंिदर को िवन करके उसम आग लगा दी गई थी। इस
ददनाक आ मण ने सय
ू वंिशय के ोध को और बढ़ा िदया। उ ह ने पागल सांढ़ क भांित
आ मण कर िदया। चं वंिशय के पास कोई अवसर नह था। वे सं या म कम तो थे ही, परू ी
तरह से आ छािदत भी थे। िफर उ ह इस कार के अचानक पलट वार क आशा भी नह थी। वे
शी ही परािजत हो गए। कुछ चं वंशी मैदान छोड़कर भागने लगे तो नागाओं ने उ ह इक ा कर
पुन: संघष करने पर िववश कर िदया। िवपरीत प रि थितय को अपनी ओर करते हए वे
असंभािवत साहस के साथ सय
ू वंिशय पर टूट पड़े ।
पवते र ऐसे लड़ रहा था िक जैसे उसम दैवीय शि हो। िशव ने सेनानायक को कभी यु
करते नह देखा था। वह उसक द ता एवं वीरता को देखकर दंग रह गया था। िशव के समान
पवते र भी इस बात को समझता था िक नागाओं को हराना ही उनक िवजय क मह ा थी। जब
तक वे जीिवत थे, सय
ू वंशी भयभीत महसस
ू करते रहगे और चं वंशी इससे े रत होते रहगे।
उसने एक नागा पर सनक आ ामकता से धावा बोल िदया।
नागा ने द ता से पवते र के वार को अपनी ढाल से बचा िलया। अपनी तलवार को नीचे
ले जाकर उसने पवते र के खुले कंधे पर वार करने का यास िकया। वह इस बात को नह
जानता था िक पवते र ने अपना बायां भाग जान-बझ
ू कर खुला छोड़ा था। बगल म झल
ू ते हए
पवते र ने वार को बचाते हए अपनी ढाल से एक चाकू िनकाला जो उसक ढाल म संल न था।
उसने नागा के दािहने खुले कंधे पर िनशाना लगाकर फका। उसक चीख ने पवते र को बता
िदया था िक चाकू काफ गहरा धंस चुका था।
वह नागा ोध म गुराया। िकंतु पवते र क चिकत कर देने वाली शंसा के िलए, उसने
अपनी तलवार वाले हाथ को लहराया, िजसम चाकू घ पा हआ था और संघष करने लगा। पवते र
ने अपनी ढाल नीची करके उस नागा के अपे ाकृत कमजोर वार को रोक िदया। उसने अपनी
तलवार को घ पने क ि थित म िकया, िकंतु उस नागा ने बहत तेजी से उसे ल य युत कर िदया।
िदशा प रवतन करके पवते र ने अपनी ढाल से तेजी से उसके कंधे पर लगे चाकू पर मारा। वह
चाकू उस नागा के कंधे क हड्डी को तोड़ता हआ अंदर घुस गया। वह नागा पीड़ा म गुराया और
लड़खड़ाया। यही आमं ण पवते र को चािहए था। उसने अपनी तलवार को ऊपर से भ कने क
ि थित म लाकर उसने नागा के दय म भ क िदया। पवते र के इस ाणघातक वार से वह नागा
जड़ हो गया। पवते र ने तलवार को और गहरा घुसाकर उसके ाण हर िलए। वह नागा िबना
िकसी हरकत के पीछे धड़ाम से िगर गया।
पवते र भी नागाओं के चेहरे को देखने का एक मेलहू ावासी क तरह ही इ छुक था। उसने
नीचे झुककर नागा के नकाब को हटाया तो सामने एक भयभीत कर देने वाला चेहरा था। उस
नागा क नाक मा हड्डी क बनी थी और वह बढ़कर प ी क च च क तरह क थी। उसके
कान बहत िवशाल थे, जबिक उसका मुंह अ यिधक छोटा था। वह मानव पी िग जैसा तीत हो
रहा था। पवते र ने शी ता से वह कहा जो येक सय
ू वंशी अपने यो य ित ं ी को परािजत
करने पर बोलता है, ‘हे वीर यो ा, उस जगत क तु हारी या ा सकुशल हो।’
एक कम हआ था और चार का काम तमाम करना था, पवते र ने उठते हए सोचा िक तभी
उसने गलती सुधारी, नह दो कम और तीन अभी बाक ह। उसने देखा िक िशव ने उससे कुछ ही
दूरी पर एक िवशालकाय नागा को न कर िदया था। िशव एवं पवते र दोन ने एक-दूसरे को
देखा और िसर िहलाकर सहमत हए। िशव ने पवते र को उसके पीछे क ओर इशारा िकया।
पवते र ने पीछे मुड़कर देखा तो एक अित ू र नागा अकेले ही पांच सय
ू वंिशय से यु कर रहा
था। वह िशव क ओर मुड़ा और उसने िसर िहलाकर संकेत िदया। उसके बाद पवते र उस चयन
िकए हए नागा क ओर बढ़ गया और उसी समय िशव भी एक दूसरे नागा क ओर बढ़ गया था।
िशव उस संघष के मैदान म फुत से उस नागा क ओर बढ़ा िजसने उसी समय एक सय
ू वंशी
सैिनक को मारकर िगरा िदया था। वह अपनी ढाल को सामने रखते हए उसके िनकट पहंचा
तािक नागा के तलवार के वार से बचा जा सके। इस बात को यान म रखते हए उसने एक ऊंची
छलांग लगाई। उस नागा ने अपनी ढाल को ऊपर उठा िलया तािक वह िशव के वार से बच सके,
उसने सोचा था िक पारं प रक शैली म उतनी ऊंचाई से उस पर तलवार नीचे लाते हए िशव उस पर
वार करे गा। लेिकन िशव ने उसे परू ी तरह से चिकत करते हए उसक ढाल को परू े बल से तलवार
से ध का मारकर एक ओर हटाते हए उस तलवार को एक ओर से िै तज लहर के साथ चलाया
और उस नागा के हाथ पर गहरा घाव लगा िदया। वह नागा पीड़ा म गुराया और पीछे हट गया।
उसने अपनी ढाल को सीधा िकया और पुन: उसे ऊंचा उठाया। उसने महसस
ू कर िलया था िक
िशव उस पहले के सय
ू वंशी क तुलना म बहत ही दुजय ित ं ी होने वाला था।
चंिू क िशव उस िनडर नागा से बड़ी कठोरता से त लीन होकर यु कर रहा था, अत: उसने
कुछ दूरी पर खड़े एक दूसरे नागा को नह देखा था। वह नागा इस बात को देख रहा था िक
उसके आ मण को धीरे -धीरे दबाया जा रहा था। बस मा कुछ समय क बात थी िक नागाओं
और चं वंिशय को मैदान छोड़कर भागना पड़ सकता था। उस नागा को नागाओं के इस पहले
असफल आ मण के अपयश का सामना करना पड़ सकता था। और वह देख रहा था िक वह
िशव था िजसने ित-आ मण का नेत ृ व िकया था। भिव य के ऐसे ल य क सफलता के िलए
ऐसे आदमी को न करना आव यक था। उस नागा ने अपने धनुष को सामने िनकाल िलया।
इस म य िशव ने िकसी भी संकट से अनजान उस दूसरे नागा के पेट म अपनी तलवार
थोड़ी घुसेड़ दी थी। वह नागा िशव को अपनी ढाल से दबाता हआ और पीछे हटता हआ कठोरता
से यु कर रहा था। उसने तलवार को नीचे लाते हए लहराकर िशव को चोट लगाने का यास
िकया िकंतु उसका यास िवफल रहा य िक िशव क ढाल पहले से ही तैयार थी। वह अपनी
तलवार को लगातार और गहरा दबाते हए नागा के वार से आड़ करता जा रहा था। कुछ समय
के बाद उस नागा क आ मा ने आ मसमपण कर िदया। वह पीछे िखसक गया और उसके शरीर
से र का बहाव तेज हो गया। वह िगर गया। िशव ने उस िगरे हए नागा को िव मय से देखा।
ये लोग दु
अव य ह, िकंत ु िनडर सैिनक ह।
िशव ने बाई ं ओर मुड़कर देखा तो पवते र ने भी उस नागा को मारकर िगरा िदया था,
िजससे वह िभड़ा था। वह घम
ू कर अंितम नागा को ढूंढ़ने का यास कर रहा था। तभी उसे उस
यि क शोर मचाने वाली आवाज सुनाई दी, िजसे वह सम त कारण से परे ेम करता था।
‘िश ऽ ऽ व।’
वह दािहनी ओर मुड़ा तो उसने देखा िक सती तेजी से उसक ओर भागती चली आ रही थी।
उसने उसके पीछे देखा िक कह कोई उसका पीछा तो नह कर रहा था। वहां कोई नह था। उसने
योरी चढ़ाई। इससे पहले िक वह कुछ िति या िदखा पाता, सती ने आगे क ओर छलांग लगा
दी। उसक छलांक का समय अ यंत ही सटीक था।
कुछ दूरी पर खड़े उस नागा ने अि नबाण चला िदया था। यह नागाओं का एक िस
िवषयु बाण था। उस बाण के अ भाग पर लगा हआ िवष पीिड़त के शरीर को अंदर से जला देता
था और िजसे वह बाण लगता था वह धीरे -धीरे एक पीड़ादायक म ृ यु क ओर अ सर हो जाता था
और उसक आ मा पर कई ज म तक एक घाव छोड़ जाता था। बाण को िशव के कंठ क ओर
सीधा चलाया गया था। बाण अपने म ृ यु कारक ल य क ओर अमोघ प से िनकल पड़ा था।
हालांिक उस नागा ने इस संभावना का आंकलन नह िकया था िक उसके माग म अवरोध भी आ
सकता था।
सती ने अपने शरीर को हवा के म य म ही मरोड़ िलया जैसे ही उसने िशव के सामने छलांग
लगाई। वह बाण सती के सीने म ू र बल के साथ वेश कर गया, िजससे उसका शरीर हवा म
पीछे क ओर उछल गया। वह झल
ू ती हई और अचल होकर िशव के बाई ं ओर िगर पड़ी। िशव ने
त ध होकर सती के औंधे पड़े हए शरीर को देखा। उसका दय िवदीण हो गया।
बुराइय के िवनाशक ने चंड ोध म गजना क । उसने उस नागा क ओर धावा बोलने के
िलए उस पागल हाथी क तरह दौड़ लगाई जो बस पागल होने क कगार पर था। उसक तलवार
उठी हई थी। वह नागा नीलकंठ के उस रौ व प से कुछ ण के िलए तो िब कुल ही िहल गया
था। िकंतु उसने शी ही आपने आपको संयत कर िलया। उसने अपने तरकश से फुत से एक और
बाण िनकाला और उसे धनुष पर लगाकर चला िदया। िशव ने अपनी तलवार चलाकर उसे एक
ओर कर िदया। नागा उस समय भयभीत हो गया जब उसने देखा िक िशव क गित म कोई अंतर
नह पड़ा था और वह उसी ती गित से उसक ओर भागता चला रहा था। उसने दूसरा बाण
िनकाला और चला िदया। िशव ने तलवार भांजते हए उस बाण को भी एक ओर कर िदया और
अपनी गित को और बढ़ा दी। वह नागा अभी तीसरे बाण तक पहंचना ही चाहता था िक उसे देरी
हो चुक थी। उस समय तक िशव उस नागा के समीप आ चुका था। उसने एक भयंकर गजना के
साथ हवा म छलांग लगाई और बड़ी ती ता से तलवार लहराई। उसक तलवार के चलने के साथ
ही एक ही वार म उस नागा का िसर धड़ से अलग हो गया। उसका अचेत शरीर धड़ाम से िगरा
और उसका िसर अ यिधक ती गित से हवा म उड़कर दूर जा िगरा, जबिक अब भी उसका दय
उसके शरीर को र
दान कर ही रहा था, िजस कारण वह र उसके कटे धड़ से िपचकारी के
समान बाहर िनकल पड़ा था।
नीलकंठ के ितिहंसा क यास बुझी नह थी। चीखते हए िशव झुका और उस नागा के मत
ृ
शरीर को काटता चला गया जब तक िक उसके छोटे-छोटे टुकड़े नह हो गए। िशव के इस चंड
ोिधत मन के अंदर कोई कारण या संवेदनशीलता वेश नह कर सकती थी, िसवाय एक मधुर,
मंद वरीय, घायल वर के जो उसके िसवा उस यु के मैदान म िकसी ारा सुनने यो य भी नह
था।
‘िशव...’
वह पीछे मुड़ा तो उसने देखा िक सती कुछ दूरी पर लेटी हई थी, उसका िसर थोड़ा-सा उठा
हआ था।
‘सती!’
वह तेजी से सती क ओर भागा, िच लाते हए, ‘पवते र! आयुवती को बुलाओ! सती िगर
गई है!’
आयुवती ने सती को घायल होते देख िलया था। चं वंशी शी ता से पीछे भाग रहे थे।
आयुवती सती क ओर दौड़ी। िशव क बात सुनकर पवते र भी उसक ओर भागा। िशव सबसे
पहले उसके पास पहंचा। वह अचल थी, िकंतु जीिवत थी। वह बहत तेजी से सांस ले रही थी
य िक बाण ने उसके बाएं फेफड़े को भेद िदया था। उसके शरीर के अंदर ही अंदर तेजी से र
बह रहा था। वह बोल नह पा रही थी य िक आघात के बल के कारण उसके मुंह से र बह चला
था। वह बोल नह पा रही थी, िकंतु िशव को घरू ती जा रही थी। उसके मुख पर एक िविच
मु कान थी, अ यंत ही िनमल। वह बार-बार मुंह खोल रही थी िक जैसे कुछ बोलना चाह रही हो।
िशव उसे अपनी बांह म भर लेना चाहता था िकंतु उसने अपने हाथ को एक-दूसरे से जकड़े
रखा। वह बहत किठनाई से अपने आंसू रोकने का यास कर रहा था।
‘हे भगवान
ा!’ सती के पास पहंचने पर और उस बाण को पहचानने के बाद आयुवती रो
पड़ी, ‘म क! ुिवनी! रोगी को उठाने वाला चौखटा ले आओ।’
पवते र, आयुवती, म क और ुिवनी ने सती को उठाकर गांव के एक घर तक पहंचा
िदया। िशव उनके पीछे -पीछे चल रहा था। आयुवती के अ य सहायक इससे पवू ही उस झोपड़ी को
साफ कर श यकम के उपकरण को लगा चुके थे।
‘बाहर ही ती ा कर, भु,’ आयुवती ने अपना हाथ उठाकर िशव से कहा।
िशव आयुवती के साथ झोपड़ी म जाना चाहता था, िकंतु पवते र ने उसके कंधे का पश
करके उसे बाहर ही रोक िदया, ‘आयुवती िव क सबसे अ छे वै म से एक है, िशव। उसे
अपना काम करने दीिजए।’
िशव ने मुड़कर पवते र को देखा, जो अपनी भावनाओं को िनयंि त करने का शंसा भरा
यास कर रहा था। िकंतु उसक आंख क एक झलक मा से ही िशव को पता लग चुका था िक
पवते र सती के िलए उतना ही डरा हआ था, िजतना िक वह वयं। संभवत: उससे भी अिधक
िजतना िक वह इससे पवू अि न परी ा से डरा हआ था। अचानक ही उसके मन म एक सोच
उभरी। वह मुड़ा और तेजी से सबसे िनकट के नागा के शरीर के पास गया। शी ता से झुकते हए
उसने उसक दािहनी कलाई को देखा। वहां कुछ नह पाकर वह दूसरे नागा के शरीर क ओर
चला गया।
इस म य पवते र ने अपने याकुल मन को संयत िकया तो उसे याद आया िक उसके कई
मह वपण
ू काय करने थे। उसने क को बुलाया और आदेश िदया, ‘यु बंिदय को पहरे म रखो।
वै को बुलाओ और चं वंिशयो समेत सभी घायल का उपचार करवाओ।’
‘घायल चं वंिशय ने पहले ही िवष पान कर िलया है, वामी,’ क ने कहा, ‘आप तो
जानते ही ह िक वे कभी जीिवत पकड़ म नह आना चाहते ह।’
पवते र ने िव वंसकारी ि से क को देखा जैसे कह रहा हो िक वह अनाव यक
िववरण सुनने म िच नह रखता था और क को शी अपना काम ारं भ कर देना चािहए।
‘जी हां, वामी,’ क ने पवते र के मक
ू आदेश को समझकर कहा।
‘िकसी अचानक आ मण क दशा से िनपटने के िलए एक बाहरी घेरे क यव था करो,’
पवते र ने कहना जारी रखा। उसक चेतनता उसके पीछे के घर म सती क हालत म उलझ गई,
‘और...’
क ने पवते र क ओर देखा। उसे अपने वामी क िहचिकचाहट पर आ य हआ। उसने
अपने वामी को इससे पवू कभी भी िहचिकचाते हए नह देखा था। क क सहज बुि ने उसे
चुप ही रखा। उसने अपने वामी के कथन को परू ा करने क ती ा क ।
‘और...’ पवते र ने कहना जारी रखा, ‘मंिदर म कुछ संदेशवाहक कबत
ू र जीिवत ह गे।
एक लाल रं ग का प देविग र को भेजो। स ाट को। उ ह बताओ िक राजकुमारी सती गंभीर प
से घायल है।’
क ने अिव ास से उ ह देखा। उसे सती के बारे म कुछ भी पता नह था। िकंतु उसने
बुि म ा िदखाई और कुछ बोला नह ।
‘स ाट से बताना है िक...,’ पवते र ने कहना जारी रखा, ‘िक उसे अि नबाण लग गया
है।’
‘हे भगवान इं !’ अपने सदमे के सं ास को िनयंि त न कर पाने के कारण क ने िबना
कुछ समझे बक िदया।
‘अभी जाकर यह काम करो, सेनापित!’ पवते र ने गुराहट भरे वर म कहा।
‘जी हां, भु,’ क ने एक दुबल अिभवादन कर कहा।
िशव ने इस म य चार नागाओं के हाथ के परी ण कर िलए थे। उनम से िकसी ने भी चमड़े
का बना हआ कड़ा नह पहना था, िजस पर सप वाला ओऽम बना हआ हो, िजसे िशव पहचानना
चाहता था। वह अंितम नागा के पास पहंचा। उसी के पास िजसने सती पर बाण चलाया था और
िजसे िशव ने काटकर मार िदया था। उसके दािहने हाथ को ढूंढ़ने से पहले उसने उसके धड़ को
घण
ृ ा से एक ठोकर मारी। उसे वह शरीर का टुकड़ा ढूंढ़ने म कुछ समय लगा। उसे पाकर उसने
उसके बचे-खुचे लबादे को उठाकर कलाई का परी ण िकया। कोई चमड़े का कड़ा नह था। यह
वह नह था।
िशव झोपड़ी के पास वापस आया तो उसने देखा िक पवते र एक ितपाई पर बाहर बैठा
हआ था। कृि का अिनयंि त प से सुबकती हई झोपड़ी के वेश ार क बगल म खड़ी थी।
वीरभ उसे धीरे से पकड़े हए सां वना दे रहा था। मनोिवि -सा नंदी वीरभ क बगल म
भावहीन मु ा म त ध खड़ा था। पवते र ने िसर उठाकर िशव को एक दुबल मु कान के साथ
देखा और अपनी बगल म रखी हई ितपाई क ओर बैठने के िलए संकेत िकया। वह बहत वीरता से
अपने भाव िछपाने का यास कर रहा था। िशव धीरे से बैठ गया और उसने दूर शू य म घरू ा। वह
आयुवती के बाहर आने क ती ा कर रहा था।
‘हमने बाण को बाहर िनकाल िदया है, भु,’ आयुवती ने कहा।
िशव एवं पवते र झोपड़ी के अंदर खड़े होकर अचेत सती को िनहार रहे थे। िकसी अ य को
अंदर आने क अनुमित नह थी। आयुवती ने प
प से कहा था िक सती को िकसी कार के
सं मण के जोिखम को बढ़ने नह देना था। और आयुवती जैसी भावशाली वै से िकसी क
तक करने क िह मत नह हो सकती थी। म क और ुिवनी को पहले से ही अ य वै क
सहायता करने के िलए बाहर भेज िदया गया था, जो अ य घायल सय
ू वंशी सैिनक के उपचार
कर रहे थे।
िशव िब तर के दािहनी ओर मुड़ा तो उसने देखा िक एक लहलुहान िचमटा पड़ा हआ था
िजसका सती क आंत को फै लाकर बाण बाहर िनकालने के िलए योग िकया था। वह िचमटा
अब दुबारा कभी भी योग म नह लाया जाएगा। वह अि नबाण के िवष से सं िमत हो चुका था।
िकतनी भी गम या रसायन के योग से उस उपकरण को िवसं िमत या सुरि त नह बनाया
जा सकता था। उस िचमटे के बगल म वह दु यवहारी बाण नीम क पि य म िलपटा हआ रखा
हआ था, जहां वह एक परू े िदन के िलए रहने वाला था। उसके बाद उसे एक सख
ू ी क म बहत
गहरा गाड़ देना था तािक यह सुिनि त हो सके िक वह अब कभी कोई हािन न पहंचा सके।
िशव ने आयुवती को देखा। उसक आंख नम थ । उसके दय म जो
पछ
ू ने क शि उसम नह रही थी।
उठ रहे थे, वह
‘म आपसे अस य वचन नह कहंगी, भु,’ आयुवती ने असंल न तरीके से कहा, जो वै
को करना पड़ता है तािक मनोघातपण
ा कर सके, ‘यह अ छा नह
ू प रि थितय म शि
िदख रहा है। अि नबाण के िकसी ाणाधर अंग को भेद जाने पर आज तक के इितहास म कोई भी
जीिवत नह बचा है। कुछ समय म ही िवष के कारण अ यिधक ती वर ारं भ हो जाएगा,
िजससे एक के बाद एक अंग बेकार होते चल जाएं गे।’
िशव ने नीचे सती को देखा और उसके बाद उसने ऊपर क ओर िनवेिदत प से देखा।
आयुवती ने अपने आंसुओ ं पर लगाम लगाने के िलए और अपना धैय यथावत बनाए रखने क
किठन कोिशश क । वह िनयंि त नह हो सकती थी। अगले कुछ घंट म उसे कई लोग के ाण
बचाने थे। वह वयं को दुबल होने नह देना चाहती थी।
‘मुझे मा कर, भु,’ आयुवती ने कहा, ‘िकंतु इसका कोई उपचार नह है। हम मा ऐसी
औषिधयां दे सकते ह िजससे वे अपने ाणांत सरलता से कर सके।’
िशव ने ोिधत ि से आयुवती को घरू ा और गंभीर वर कहा, ‘हम आशा नह छोड़ रहे ह।
या यह आपको प है?’
आयुवती ने नीचे भिू म को देखा। वह िशव से आंख नह िमला पा रही थी।
‘यिद उसके वर को िनयं ण म रखा जाए तो उसके अंग ित त नह ह गे, यह सही है
न?’ िशव ने पछ
ू ा। उसे आशा क एक िकरण िटमिटमाती िदख रही थी।
आयुवती ने ऊपर िसर उठाकर िशव को देखा और कहा, ‘जी हां, भु। िकंतु यह अंितम
समाधान नह है। अि नबाण से हए वर को आने से केवल कुछ समय तक रोका जा सकता है,
िकंतु हमेशा के िलए नह । यिद हम यास करगे और वर को िनयंि त करगे तो जब औषिधयां
रोक दी जाएं गी तब वह वर और भी ती एवं चंड प से वापस आएगा।’
‘तो िफर हम वर को हमेशा के िलए िनयं ण म रखगे!’ िशव रो पड़ा था, ‘यिद
आव यकता पड़ी तो म जीवन भर उसक बगल म बैठूंगा। वर नह बढ़े गा।’
िशव को आयुवती कुछ कहना चाहती थी, िकंतु उसने सोचा नह यह उपयु समय नह था
और वह चुप रह गई। वह िशव के पास कुछ घंट के बाद पुन: आएगी। वह जानती थी िक सती को
बचाया नह जा सकता था। यह असंभव था। क मती समय इस यथ के वाद-िववाद म न हो
रहा था। यह समय दूसरे कई लोग क जीवन-र ा म लगाया जा सकता था।
‘ठीक है, भु,’ आयुवती ने सती को औषिध देते हए कहा, जो उसके वर को िनयंि त रख
सकता था, ‘यह उनके वर को कुछ घंट तक िनयंि त रखेगा।’
उसके बाद उसने पवते र क ओर एक ण के िलए देखा जो पीछे खड़ा हआ था। पवते र
जानता था िक वर को िनयंि त रखने का अथ था िक सती क यातना को और अिधक देर तक
ख चना। िकंतु उसे भी िशव के समान ही आशा क एक छोटी-सी िकरण िटमिटमाती िदखाई दे
रही थी।
िशव क ओर मुड़ते हए आयुवती ने कहा, ‘ भु, आप भी घायल ह। मुझे मरहम प ी लगाने
दीिजए और म चली जाऊंगी।’
‘म ठीक हं,’ िशव ने एक पल के िलए भी सती पर से अपनी ि
हटाए िबना कहा।
‘नह , आप ठीक नह ह, भु,’ आयुवती ने ढ़ता से कहा, ‘आपके घाव गहरे ह। यिद उनम
कोई सं मण हो जाता है वह ाणहारक बन सकता है।’
िशव ने उ र नह िदया। वह सती को यथावत िनहारता रहा और अपने हाथ क मु ा से
मानने से मना कर िदया।
‘िशव!’ आयुवती िच ला पड़ी। िशव ने उसक ओर देखा तो वह बोली, ‘आप सती क
सहायता नह कर सकते यिद आप वयं ही अ व थ हो जाएं गे।’
उस कठोर वचन का इि छत असर हआ। हालांिक िशव अपने थल से िहला नह , िकंतु
उसने आयुवती को अपने घाव का उपचार करने िदया। उसके बाद आयुवती ने पवते र के घाव
पर मरहम-प ी क और झोपड़ी से बाहर िनकल गई।
िशव ने झोपड़ी म हर कंदील को देखा। जबसे आयुवती ने बाण बाहर िनकाला था, तब से तीन
घंटे का समय बीत चुका था। पवते र झोपड़ी से बाहर िनकलकर दूसरे घायल को देखने जा
चुका था और उसे पड़ाव क यव था भी करनी थी य िक कािफले को कं ू ज म कुछ समय और
कना था। यह पवते र का तरीका था। यिद वह िकसी घिृ णत प रि थित का सामना कर रहा
होता था, िजसम वह कुछ भी नह कर सकता था तो वह लेश से लड़खड़ाता नह था। वह वयं
को काम म लगा लेता था तािक उसे संकट के बारे म सोचना न पड़े ।
िशव अलग था। बहत वष पहले उसने ित ा ली थी िक किठन प रि थितय से वह कभी
भी नह भागेगा। यहां तक िक जब वह कुछ भी नह कर सकने क ि थित म हो, तब भी। वह
सती क बगल से एक ण के िलए भी हटा नह था। वह धैय के साथ उसके िब तर के बगल म
बैठा हआ था। उसके ठीक हो जाने क ती ा कर रहा था। वह आशा कर रहा था िक वह ठीक हो
जाएगी। उसके ठीक हो जाने के िलए वह ाथना कर रहा था।
‘िशव...’ एक बहत कम विन ने शांत वातावरण का मौन तोड़ा।
िशव ने सती के मुख क ओर देखा। उसक आंख थोड़ी खुली थ । उसके हाथ अ यता म
इधर-उधर चले। उसने अपनी कुस उसके िनकट िखसका ली, िकंतु सावधानी से तािक पश न
हो।
‘मुझे मा कर दो,’ िशव रो पड़ा, ‘मुझे तुम लोग को इस लड़ाई म नह लाना चािहए था।’
‘नह , नह ,’ सती बड़बड़ाई, ‘आपने सही काम िकया था। िकसी न िकसी को यह िनणय
लेना ही था। आप मेलहू ा म हमारा नेत ृ व करने के िलए और बुराइय के नाश के िलए आए ह।
आपने अपना कत य िनभाया है।’
िशव लगातार सती को अपनी पीड़ा पर काबू पाते हए िनहारता जा रहा था। सती ने अपनी
आंख को थोड़ा चौड़ा िकया। वह चाहती थी िक िजतना संभव हो सके वह िशव को ि भर कर
देख ले य िक उसे तीत हो गया था अब उसका अंितम समय बहत िनकट आ चुका था। आ मा
क अिभलाषाओं का अंितम िवनाशक म ृ यु है। अजीब बात यह है िक ऐसे िवचार के समय यह
िवन ीकरण आ मा क येक अिधकारहीनता को चुनौती देने और वयं के भाव कट करने
का साहस दान करता है। अपने लंबे समय से अ वीकृत सपन के कटन क भी चुनौती देता
है।
‘अब मेरा समय हो चला है, िशव,’ सती ने धीमे वर म कहा, ‘िकंतु इससे पहले िक म सदा
के िलए चली जाऊं, म आपसे कहना चाहती हं िक िपछले कुछ महीने मेरे िलए सबसे अिधक
खुशी के बीते ह।’
िशव अपनी नम आंख के साथ सती को िनरं तर देख रहा था। भावनाओं के सैलाब उसके
दय म िकलोल कर रहे थे। और िफर उसके हाथ ने वयं ही जीवन धारण कर िलया और सती
क ओर बढ़ चले। िकंतु िफर समय रहते ही उसने रोक िलया।
‘काश, आप मेरे जीवन म पहले आए होते,’ सती ने वह रह य बाहर िनकलने िदया, िजसे
वह वयं मानने को तैयार नह होती थी, ‘मेरा जीवन ही परू ी तरह से िभ न होता।’
िशव क आंख लगातार हठ करके अपनी िनराशा के बांध तोड़कर फट पड़ने को तैयार थ ,
िजसे वह किठनता से िनयंि त करने का यास कर रहा था।
‘काश मने आपसे पहले ही कह िदया होता,’ सती बड़बड़ाई, ‘ य िक यह जो पहली बार
कहने जा रही हं, वह संभवत: अंितम बार ही होगा।’
िशव ने सती को देखा। उसका वर गले के अंदर ही बंद हआ पड़ा था।
सती ने िशव क आंख म गहराई से देखते हए अ यिधक मंद वर म कहा, ‘म आपसे ेम
करती हं।’
और बांध फट पड़ा। िशव के पीड़ा द मुख से आंसुओ ं का सैलाब उमड़ आया।
‘तुम ये श द िफर से दुहराओगी कम से कम अगले सौ वष तक,’ िशव ने सुबकते हए
कहा, ‘तुम कह नह जा रही हो। यिद मुझे लड़ना पड़ा तो म म ृ यु के देवता से भी यु क ं गा।
तुम कह नह जा रही हो।’
सती के उदास मुख पर एक पीड़ादायक मु कान थी। उसने अपना हाथ िशव के हाथ म
रख िदया। उसका हाथ ताप से जल रहा था। वर ने अपना आ मण ारं भ कर िदया था।
अ याय - 18
सती और अि नबाण
‘कु छ भी नह िकया जा सकता है,
भु,’ कट प से असुिवधापवू क आयुवती ने कहा।
वह और िशव झोपड़ी के एक कोने म खड़े थे, जो सती से एक सुर ा मक दूरी थी तािक
वह उनक बात सुन न सके। अपने आंसुओ ं को बाहर आने से रोकता हआ पवते र उनके पीछे
खड़ा था।
‘ऐसा मत किहए, आयुवती,’ िशव ने हठ करते हए कहा, ‘आप इस भिू म क सबसे अ छी
वै ह। हम बस इतना करना है िक वर को तोड़ना है।’
‘इस वर को तोड़ा नह जा सकता है,’ आयुवती ने कारण बताया, ‘अि नबाण के िवष का
कोई उपचार नह है। वर को िनयंि त रखकर हम केवल सती क यातना को ही बढ़ा रहे ह।
जैसे ही औषिधयां कग , वर ितशोधपण
ू ढं ग से आ मण करे गा।’
‘जाने दीिजए, िशव,’ िब तर से एक शि हीन वर क भुनभुनाहट हई। सभी लोग मुड़कर
सती को देखने लगे। उसके मुख पर मु कान थी जो अव यंभावी क वीकृित के प ात ही आती
है, ‘मुझे कोई खेद नह है। मने आपको बता िदया है, जो मुझे बता देना चािहए था। म संतु हं।
मेरा समय आ गया है।’
‘अभी आस मत छोड़ो, सती,’ िशव रो पड़ा, ‘तुम अभी तक गई नह हो। हम लोग कोई न
कोई रा ता िनकाल लगे। म कोई न कोई रा ता िनकाल लंग
ू ा। बस मुझ पर भरोसा रखो।’
सती ने आ मसमपण कर िदया। उसम शि नह बची थी। वह यह भी जानती थी िक िशव
को उसक म ृ यु के िलए अपनी शांित भी चािहए थी। और वह उसे तब तक नह िमलेगी जब तक
िक उसे यह महसस
ू नह हो जाए िक उसे बचाने के िलए उसने वह सारे यास कर िलए ह, जो
उसे करने चािहए थे।
‘मुझे अनुभव हो रहा है िक ताप बढ़ रहा है,’ सती ने कहा, ‘कृपया मुझे औषिध दीिजए।’
आयुवती ने असुिवधाजनक प से सती क ओर देखा। उसका अनुभव और उसका सम त
वा य िश ण उसे बता रहा था िक वह ऐसा न करे । वह जानती थी िक औषिध देकर वह सती
क यातना को केवल बढ़ा ही रही थी। सती ने आयुवती को गहरी ि से घरू ा। वह अब
आ मसमपण नह कर सकती थी। तब तो कभी भी नह जब िशव ने उससे कहा था िक अभी क
जाओ।
‘मुझे औषिध दीिजए, आयुवती जी,’ सती ने दुबारा कहा, ‘मुझे पता है म या कर रही हं।’
आयुवती ने सती को औषिध दे दी। उसने सती क आंख को यान से देखा। वह उसक
आंख म भय या िवषाद के कुछ ल ण देखने क आशा म थी। वहां वैसा कुछ भी नह था।
आयुवती धीमे से मु कुराई और िशव और पवते र के पास वापस लौट आई।
िशव का चंचल मन िवचार से उबर नह पाया था। और अचानक ही उसके मन म एक
िवचार क धा। उसका मन एकबारगी आशा क िकरण से ओत- ोत हो गया।
‘म जानता हं!’ िशव ने िव मयोि
क , ‘हम उसे सोमरस य नह देते?’
‘उसका या भाव होगा, भु,’ चिकत आयुवती ने पछ
ू ा, ‘सोमरस मा जारणक ा पर
ि या करता है और लोग क आयु क विृ करता है। वह घाव पर ि या नह करता है।’
‘देिखए आयुवती, मुझे नह लगता िक सोमरस के बारे म कोई सभी कुछ समझता है। मुझे
पता है िक यह आपको भी पता है। आप जो नह जानती ह, वह यह िक सोमरस ने मेरे शीतदंश
वाले अंगठ
ू े को परू ी तरह से उपचा रत कर िदया था, िजसके साथ म जीवन भर रहता आया था।
उसने मेरे जड़ से उखड़े कंधे को भी अ छा कर िदया था।’
‘ या!’ कट प से चिकत पवते र ने कहा, ‘यह संभव नह है। सोमरस शारी रक
अयो यता का उपचार नह करता है।’
‘मेरे साथ इसने ऐसा िकया है।’
‘िकंतु यह इसिलए भी हो सकता है िक आप िवशेष ह, भु,’ आयुवती ने कहा, ‘आप
नीलकंठ ह।’
‘म आसमान से नह टपका हं, आयुवती। मेरा शरीर उतना ही मानवीय है, िजतना सती का।
उतना ही िजतना िक आपका। हम यास करना चािहए!’
पवते र को इससे अिधक माण क आव यकता नह थी। वह तेजी से बाहर िनकला तो
देखा िक क ितपाई बैठा हआ था। क त काल खड़ा हो गया और अपने सेनानायक का
अिभवादन िकया।
‘ क,’ पवते र ने कहा, ‘मंिदर म अब भी सोमरस का चण
ू हो सकता है। यह यहां का
मुख िवतरण क था। मुझे वह चण
ू चािहए। अभी इसी समय।’
‘आपके पास वह दस िमनट म होगा, भु,’ क ने कहा और अपने पहरे दार के साथ मंिदर
क िदशा म दौड़ पड़ा।
‘अब हम ती ा करने के अलावा कुछ नह करना है, भु,’ सती के सो जाने के बाद आयुवती ने
कहा। सोमरस उसे दे िदया गया था, सामा य से अिधक शि शाली औषध मा ा म। आयुवती ने
पवते र से कहा, ‘पवते र आप थक गए ह। अपने घाव को ठीक होने दीिजए। कृपया जाकर
सो जाइए।’
‘मुझे न द क आव यकता नह है,’ पवते र ने हठपवू क कहा, ‘म अपने पहरे दार के साथ
घेरे क सुर ा के िलए जागता हं। आप चं वंिशय का िव ास नह कर सकते। वे राि म ितआ मण भी कर सकते ह।’
िनराश आयुवती ने पवते र को देखा। उसका मानना सही था िक
उ ह असंभव रोगी बनाता था।
ि य का दु साहस
‘ या आप सोएं गे, भु,’ आयुवती ने िशव क ओर मुड़ते हए कहा इस आशा म िक संभवत:
वे उसक बात सुनगे, ‘आप अब कुछ भी नह कर सकते। हम केवल ती ा करनी है। और
आपको आराम क आव यकता है।’
िशव ने मा िसर िहलाया। जंगली अ
भी उसे सती से िवलग नह कर सकते थे।
‘हम एक िब तर क यव था यह इस झोपड़ी म कर सकते ह,’ आयुवती ने कहना जारी
रखा, ‘यिद आप चाह तो यह सो सकते ह तािक आप सती पर ि रख सक।’
‘ध यवाद, लेिकन म सोने नह जा रहा हं,’ कुछ ण के िलए आयुवती को देखने के बाद
सती क ओर मुड़कर िशव ने कहा, ‘म यह हं। आप जाकर सो जाइए। यिद इसक ि थित म कोई
प रवतन आता है तो म आपको बुला लंग
ू ा।’
आयुवती ने यान से िशव को देखा और उसके बाद धीमे वर म कहा, ‘जैसी आपक इ छा,
भु।’
थक हई आयुवती अपने झोपड़ी क ओर चल पड़ी। उसे आराम क आव यकता थी य िक
अगला िदन बहत य त रहने वाला था। उसे सभी घायल के घाव का परी ण करना था तािक
यह सुिनि त हो िक उनके घाव सही तरीके से भर रहे ह। पहले चौबीस घंटे संकट भरे थे। उसके
वा य दल को छोटे-छोटे दल म िवभ कर िदया गया था तािक वे अलग-अलग थल म राि
भर िकसी भी आपाति थित का सामना करने के िलए तैयार रहे सक।
‘म सैिनक के साथ रहंगा, िशव,’ पवते र ने कहा, ‘नंदी और वीरभ मेरे कुछ िनजी
पहरे दार के साथ पहरे पर ह।’
िशव जानता था िक वा तव म पवते र या कहना चाहता था।
‘जैसे ही कोई प रवतन होता है, म आपको बुला लंग
ू ा, पवते र,’ िशव ने सेनानायक क
ओर ऊपर देखते हए कहा।
पवते र ने दुबल मु कान के साथ िशव को सहमित म िसर िहलाया। इससे पहले क
उसक भावनाओं के बांध टूटकर उसे अनजानी प रि थित म ला खड़ा करे , वह तेजी से बाहर
िनकल गया।
पवते र चु पी साधे बैठा हआ था। उसके सैिनक एक िनि त दूरी बनाकर बैठे हए थे। वे जानते थे
िक कब उनके वामी एकांत चाहते थे। पवते र सती क सोच म गुम हो चुका था। उसके जैसे
यि व को ई र ारा इतनी यातनाएं य दी जा रही ह? उसे सती क बचपन क याद हो
आई। उसे वह िदन याद आया जब उसने िनणय िलया था िक यह वह ब ची थी, िजसे अपनी ई र
पु ी के प म मानने म उसे गव होगा।
वह दुभा यशाली िदन, जब पहली बार और मा एक बार, उसे अपनी ित ा पर खेद हआ
िक वह अपनी संतित नह होने देगा। कौन ऐसा मख
ू िपता होगा, जो सती जैसी संतान क इ छा
नह करे गा?
सौ वष से अिधक समय पहले क बात है। वह एक सु त म या का समय था। सती
गु कुल से अभी-अभी आई ही थी। एक बहत ही छोटी सोलह वष क आयु क थी। चु ती-फुत से
भरपरू और भु ी राम क िश ा म अ यंत िव ासी। उस समय भु
नायक मेलहू ा पर रा य
िकया करते थे। उनके पु राजकुमार द एक पा रवा रक यि होने पर संतु थे, जो अपनी
प नी और पु ी के साथ अिधकतर समय यतीत िकया करते थे। वे ि य के यो ाओं के तरीक
क ओर तिनक भी िच लेने वाले नह थे। और न ही उ ह ने कभी अपने िपता के उ रािधकारी
बनने का कोई संकेत ही िदया था।
उस िदन देविग र से कुछ दूरी पर सर वती नदी के तट पर द एवं उनका प रवार एक
पा रवा रक जलसे के िलए इक ा हए थे। पवते र को उस समय द के अंगर क के प म
अपना कत य अ छी तरह से ात था। वह राजकुमार के समीप बैठा हआ था, इतना समीप िक
उनक सुर ा कर सके और इतनी दूर िक वह राजकुमार एवं उनक अ ािगनी को एकांतता
दान कर सके। सती वन म थोड़ी दूर मण करती हई चली गई थी, नदी के तट के समीप जहां
से वह िदखाई देती रहे ।
अचानक उस चु पी म सती क चीख गंज
ू गई। द , वी रनी और पवते र ने च ककर
देखा। वे शी ता से तट के िकनारे भागे तो देखा िक नदी क मोड़ पर सती आवेशपण
ू ता से
जंगली कु से संघष कर रही थी। वह एक अ यिधक ही गंभीर प से घायल एक अनजान
ेतवण य ी पर आ मण करने से उ ह रोक रही थी। उस दूरी से भी देखा जा सकता था िक
वह जाित िच िवहीन ी एक नई अ वासी मिहला थी, िजसे संभवत: यह पता नह था िक
जंगली जानवर से अपनी सुर ा के िलए िबना तलवार िलए नदी के तट क ओर नह जाना
चािहए। अव य उन जंगली कु ने उस ी पर आ मण िकया होगा। वह कु
बड़ा था, जो एक गजना करने वाले िसंह को भी परािजत कर सकते थे।
का दल बहत
‘सती!’ द आपद संकेत देखकर चीखा।
तलवार िनकालकर वह अपनी पु ी को बचाने के िलए नदी क ओर दौड़ पड़े । पवते र द
के पीछे दौड़ पड़ा। उसक तलवार यु शैली म आगे क ओर तनी हई थी। कुछ ही ण म वे उस
लड़ाई म शािमल हो गए थे। पवते र ने आ ामकता से उन पर आ मण कर िदया और आसानी
से कइय को काटकर रख िदया था। इस अचानक आई सहायता के कारण सती पुन: एक नए
जोश के साथ चार कु से लड़ने लग गई जो एक साथ उस पर आ मण कर बैठे थे। सै य
द ता न होने पर भी द ने आ ामकता से संघष िकया था य िक संतान क र ा के िलए
िपता म अपने आप एक शि आ जाती है। िकंतु जानवर इस बात को तुरंत ही समझ गए िक द
सभी मानवीय श ुओ ं म सबसे दुबल थे। छह कु े एक साथ उन पर झपट पड़े ।
द ने तलवार से एक ू र चुभाने वाला हार उस कु े पर िकया जो सबसे आगे था। यह
चक
ू हो गई। हालांिक द ने कु े को मारकर िगरा िदया, िकंतु उनक तलवार उस मत
ृ जानवर
के शरीर म गहरे धंसकर अटक गई। यही छोटा-सा अवसर वे दूसरे कु े चाहते थे। एक कु े ने
बगल से िनदयतापवू क आ मण िकया और अपने जबड़े म द के दाएं हाथ के अगले भाग को
पकड़ िलया। द पीड़ा म ती ता से चीख पड़े िकंतु उ ह ने तलवार नह छोड़ी और अपने हाथ को
छुड़ाने का भरसक य न करने लगे। एक अ य कु े ने द क बाई ं पांव को काट खाया। उसके
पांव का कुछ मांस तक उसके जबड़े म िनकल आया था। राजकुमार को संकट म देखकर
पवते र ोध म िच लाया और उसने तलवार लहराकर उस कु े के शरीर के दो टुकड़े कर िदए
िजसने द के हाथ को अपने जबड़े म दबाया हआ था। उसी के साथ उसने लगभग उसी चलन
को परू ा करते हए तलवार लहराई और एक और कु े को वह ढे र कर िदया जो सामने से द क
ओर झपटा था। तब तक सती भी द क बाई ं ओर उनक सुर ा के िलए पहंच चुक थी। अपनी
सं या तेजी से घटते देख वे कु े िच लाते हए पीछे हटकर भाग खड़े हए।
‘द !’ वी रनी ने कहा जैसे ही वह अपने िगरते हए पित को सहारा देने दौड़ी थी। उनके कई
घाव से तेजी से र बह रहा था, िवशेषकर पांव से। कु े ने अव य उनक िकसी मुख नस को
काट खाया था। पवते र ने तुरंत ही अपना आपातकालीन शंख बजा िदया। पारगमन गहृ पर
उसक यह विन पहंच गई। सैिनक एवं वा य दल कुछ ही िमनट म उनके पास होगा।
पवते र ने अपना अंगव म् द क जांघ पर कसकर बांध िदया तािक र का बहना कुछ कम
हो सके। उसके बाद उसने उस घायल ी को राजशाही दल के समीप रख िदया।
‘िपता ी, या आप ठीक ह?’ अपने िपता का हाथ अपने हाथ म रखकर सती ने धीमे से
पछ
ू ा।
‘मुझे छोड़ो, सती!’ द ने िच लाकर कहा, ‘तुम या सोचती हो, तुम या कर रही थी?’
हमेशा ही लाड़- यार करने वाले अपने िपता क उस िहंसक िति या को देखकर सती चुप
रह गई।
‘िकसने तुमको नायक बनने के िलए कहा था?’ द ने गु से म कुलबुलाते हए डांटा, ‘यिद
तुमको कुछ हो जाता तो? म या करता? म कहां जाता? और तुमने िकसके िलए अपने ाण
संकट म डाले थे? उस ी के जीवन क र ा से या अंतर पड़ जाएगा?’
उस डांट-डपट से िवि
होकर सती िनरं तर नीचे क ओर देख रही थी। वह शंसा क
आशा कर रही थी। पारगमन गहृ के सैिनक एवं वा य कायक ा तब तक वहां पहंच चुके थे।
उ ह ने त काल ही भावी ढं ग से द के बहते हए र पर िनयं ण पा िलया। पवते र एवं सती
के ह के-फु के घाव को मरहम-प ी लगाकर वे द को रोगी ले जाने वाली पालक म रखकर
चल पड़े । उनके घाव को राजसी वै को देखना आव यक था।
जब सती ने देखा िक उसके िपता को ले जाया जा रहा था तो वह जड़वत खड़ी रह गई थी,
यह सोचते हए िक उसके कृ य ने िकतनी हािन पहंचा दी थी। वह संकट म पड़ी एक ी क र ा
करने का यास कर रही थी। या यह भु ी राम क ाथिमक िश ा नह थी िक सबल का
कत य है िक वह िनबल क र ा करे ? तभी उसे अपने कंधे पर एक कोमल पश का अनुभव
हआ। वह मुड़ी तो सामने पवते र थे, उसके िपता के संजीदा अंगर क। आ यजनक प से
उनके मुख पर कभी-कभी आने वाली एक मधुर मु कान थी।
‘मुझे तुम पर गव है, मेरी ब ची,’ पवते र ने धीमे वर म कहा, ‘तुम भु ी राम क स ची
िश या हो।’
सती क आंख से सहसा अ ुधारा बह िनकली थी। उसने तुरंत ही दूसरी ओर देखा था।
वयं पर िनयं ण करने म थोड़ा समय लेते हए उसने िसर उठाकर एक थक हई मु कान के
साथ उस यि को देखा िजसे वह िपततृ ु य पुकारते हए पलने और बढ़ने वाली थी। उसने
कोमलता से सहमित म िसर िहलाया था।
एक झटके के साथ वह वतमान म आ गया जब पवते र ने एक प ी का वर सुना। उसने
घेरे के चार ओर ि दौड़ाई। उसक आंख इस पुरातन याद से भीगी हई थ ।
उसने अपने दोन हाथ जोड़कर ाथना क मु ा म फुसफुसा कर कहा, ‘वह आपक स ची
िश या है, भु ी राम। उसक र ा कर।’
िशव को समय का कुछ पता नह था। जब बहत लोग के जीवन पर संकट के बादल मंडरा रहे थे
तो प था िक तब एक छोटे से काय हर कंदील को सही समय के िलए तैयार करने के िलए
िकसी को भी िनयु नह िकया गया था। िखड़क से बाहर देखने पर वह देख पा रहा था िक
ात:काल आने का पवू संकेत हो चुका था। िशव के घाव जल रहे थे, उसे आराम क आव यकता
थी। िकंतु वह आसानी से आ मसमपण करने वाला नह था। वह सती के िब तर क बगल म
शांित से बैठा हआ था। वह िकसी भी कार क विन नह होने देना चाहता था जो सती के
िव ाम म कोई िव न डाले। सती ने उसका हाथ कसकर पकड़ा हआ था। उसके अ यिधक वर
भरे बदन से िनकलती जलन के ताप के बाद भी िशव ने अपना हाथ हटाया नह था। उस
अ यिधक ताप के कारण उसक हथेली पसीने से तर थी।
उसने ेमपवू क सती को देखा और अ यंत ही दबे वर म फुसफुसा कर कहा, ‘या तो तुम
मेरे साथ रहो या िफर म तु हारे साथ ही इस दुिनया को छोड़ दंूगा। यह िवक प अब तु हारा है।’
तभी अचानक ही उसने थोड़ा-सा झटका अनुभव िकया। उसने नीचे देखा तो सती का हाथ
थोड़ा िखसका, िजसके कारण उनके जुड़े हए हाथ के म य से पसीना नीचे बह िनकला था। यह
कहना असंभव था िक पसीना कहां से आया था।
यह सती का है या मेरा?
िशव ने त काल ही अपने दूसरे हाथ से सती के माथे को पश िकया। वह अब और अिधक
ताप से जल रहा था। िकंतु उसक कनपटी पर पसीने क छोटी-छोटी मिणय जैसी बंदू आनी
ारं भ हो गई थ । िशव के मन म स नता क एक बौछार ने उसके िसर से पांव तक एक िसहरन
सी ला दी।
‘भगवान
देव क कृपा से,’ आयुवती ने िव मय के साथ धीमे वर म कहा, ‘मने अपने जीवन
म इस कार क घटना कभी नह देखी है।’
वह सती के िब तर क बगल म खड़ी थी। अभी तक सोई हई सती पसीने से तर होती जा
रही थी। उसके कपड़े और िब तर गीले हो चुके थे। पवते र उसक बगल म खड़ा था। उसका
मुख आशा क चमक िलए हए था।
‘अि नबाण का वर कभी नह टूटता है,’ त ध आयुवती ने कहना जारी रखा, ‘यह
चम कार है।’
िशव ने िसर उठाकर ऊपर देखा। उसका चेहरा स नता से ऐसा दमक रहा था जैसे िक वह
अपने अि त व म होने के कारण से उबर चुका था। ‘पिव झील सोमरस पर कृपा रखे।’
पवते र ने देखा िक सती का हाथ िशव के हाथ म जकड़ा हआ था िकंतु उसने कुछ कहा
नह । उस ण के आनंद ने अंतत: उसे उसक सहज िति या वाले मन को रोकने म सफलता
पाई, जो उसे उस भिू म के िनयम के अनुसार अ वीकार त य पर उबलने पर िववश कर देता था।
‘ भु,’ आयुवती ने मधुरता से कहा, ‘हम इ ह शी ता से नान करवाना होगा। वेद को
आव यक प से हटाना होगा। हालांिक यह देखते हए िक उनके घाव म पानी न जाए मेरी
प रचा रकाओं को यह काम करना होगा।’
िशव ने िसर उठाकर आयुवती को देखा और िसर िहलाया। वह कुछ भी समझा नह । उसे
समझने क आव यकता भी नह थी। आयुवती एक िनपुण वै थी।
‘हां तो भु,’ आयुवती ने कहा, ‘इसका अथ है िक आपको कमरे से बाहर जाना पड़े गा।’
‘िन संदेह,’ िशव ने कहा।
जैसे ही वह खड़ा होकर जाने को हआ तो आयुवती ने कहा, ‘ भु, आपके हाथ को भी
अ छी तरह से धोने क आव यकता होगी।’
िशव ने नीचे सती के पसीने को देखा। उसके बाद उसने आयुवती को देखा और सहमित म
िसर िहलाकर कहा, ‘म अभी त काल ऐसा ही क ं गा।’
‘यह चम कार है, सती। अि नबाण से आज तक कोई भी नह बच पाया है!’ आयुवती ने दीि मान
मुख से कहा, ‘म सच कहंगी। मने तो आशा छोड़ ही दी थी। यह तो भु क आ था थी िजसने
आपको जीिवत रखा।’
सती नए धोये हए कपड़े को पहने िब तर पर लेटी हई थी। उसके चेहरे पर िचर-प रिचत
मु कान थी। एक नया िब तर लगाया गया था, िजसम धुली हई एवं िवसं िमत चादर िबछी थ ।
सोमरस ारा उ सिजत सभी कार के िवषैले वेद के अंश तक िमटा िदए गए थे।
‘अरे , नह ,’ संकोच से भरे िशव ने कहा, ‘मने कुछ नह िकया। यह तो सती क लड़ने क
मता ने उसे बचा िलया है।’
‘नह , िशव। यह आप थे। म नह ,’ सती ने िशव के हाथ को यथावत पकड़े हए कहा। अब
उसक पकड़ म कोई संकोच नह था, ‘आपने मेरी कई बार और कई तर पर र ा क है। म नह
जानती िक म आपके इन ऋण को चुकाने का ारं भ भी कर पाऊंगी या नह ।’
‘यह दुबारा न कहकर िक तु ह कुछ चुकाना भी है।’
सती क मु कान और िखल उठी और उसने िशव क हथेली को और कसकर पकड़ िलया।
पवते र ने उन दोन को िनराश होकर देखा। अब वह उनके इस कार खुले ेम संग के
दशन को देखकर अ स न था।
‘ठीक है, िफर,’ आयुवती ने अपने हाथ से ताली बजाकर कहा जैसे िक उस कथांश के
समा होने का संकेत दे रही हो, ‘वैसे तो मेरी इ छा है िक आप लोग के म य बैठकर ढे र सारी
बात क ं , िकंतु मुझे बहत काम करने ह।’
‘ या काम?’ िशव ने िठठोली करते हए कहा, ‘आप एक अ ुत वै ह। आपके पास
असाधारण सहायक दल ह। मुझे पता है िक येक घायल यि को बचाया जा चुका है। अब
इसके बाद आपके िलए और कुछ काम नह बचता है।’
‘काय ह, भु,’ आयुवती ने एक मु कान के साथ कहा, ‘मुझे इसे भी आंकड़ म भरना है
िक कैसे सोमरस अि नबाण का उपचार कर सकता है। देविग र पहंचने पर म वा य प रषद म
इसके बारे म तुितकरण दंूगी। यह एक बड़ा समाचार है। हम सोमरस के उपचार करने वाले
गुण पर शोध करना चािहए। बहत सारे काम ह जो मुझे करने ह!’
िशव ेमपवू क आयुवती को देखकर मु कुराया।
सती ने धीमे वर म कहा, ‘ध यवाद आयुवती जी। सह
पर उधार रहा।’
लोग क तरह मेरा जीवन आप
‘आपको कुछ करने क आव यकता नह है, सती। मने मा अपना कत य िनभाया है।’
उसके बाद आयुवती ने झुककर औपचा रक प से नम ते िकया और कमरे से बाहर चली
गई।
‘ऐसा है िक मुझे...’ पवते र अजनबी ढं ग से बड़बड़ाया और कमरे से बाहर चला गया।
पवते र को यह देखकर आ य हआ िक आयुवती बाहर उसक ती ा कर रही थी। वह
पहरे दार से एक सुरि त दूरी पर खड़ी हई थी। वह जो भी बात करना चाहती थी, वह नह चाहती
थी िक कोई और सुन सके।
‘ या बात है, आयुवती?’ पवते र ने पछ
ू ा।
‘म जानती हं, आपको या िचंता सता रही है, पवते र,’ आयुवती ने कहा।
‘तो िफर आप कैसे सहन कर सकती ह और देख सकती ह? म नह मानता िक यह सही है।
म जानता हं िक कुछ भी कहने के िलए यह उिचत समय नह है, िकंतु जब उपयु समय होगा म
इस िवषय को अव य उठाऊंगा।’
‘नह , आपको ऐसा नह करना चािहए।’
‘आप ऐसा कैसे कह सकती ह?’ पवते र ने ऐसे पछ
ू ा जैसे उसे गहरा सदमा लगा हो, ‘आप
एक ऐसे प रवार से आती ह जहां िव ोह के समय एक भी वधम यागी ा ण नह था। भु ी
राम ने बल देकर कहा था िक िनयम का पालन कड़ाई से करना चािहए। उ ह ने बार-बार यह
दशन िकया था िक वे भी िनयम से परे नह थे। िशव एक अ छे यि ह। िकंतु वे िनयम से परे
नह हो सकते ह। असल म कोई भी िनयम से परे नह हो सकता है। अ यथा हमारा समाज ही
न हो जाएगा। आपको तो सबसे पहले यह जानना चािहए।’
‘म मा यह जानती हं,’ आयुवती ने ढ़ िन यी होकर कहा, ‘यिद नीलकंठ इसे उिचत
समझते ह तो यह उिचत है।’
पवते र ने आयुवती को ऐसे देखा जैसे उसे पहचानता नह हो। िजस ी ने आज तक
सम त िनयम का अनुसरण िबना िकसी अपवाद के िकया था, यह वह ी नह हो सकती थी।
पवते र िशव का आदर करने लगा था। िकंतु वह आदर संदेह रिहत आ था म नह प रवितत हो
सका था। वह इस बात पर िव ास नह करता था िक िशव वह यि था, जो भु ी राम के
अधरू े काय को परू ा करे गा। पवते र क ि म मा भु ी राम ही उस असीम आ ा पालनता
के अिधकारी थे। और कोई नह ।
‘वैसे भी,’ आयुवती ने कहा, ‘मुझे जाना है। मुझे एक िस ांत के बारे म िचंतन करना है।’
‘वा तव म?’ िशव ने पछ
ू ा, ‘मेलहू ा म यह आव यक नह है िक स ाट का सबसे बड़ा बेटा ही
उसका उ रािधकारी बनेगा?’
‘हां,’ सती ने उ र िदया।
िशव और सती ने िपछले स ाह कई घंटे मह वपण
ू एवं सांसा रक िवषय के बारे म बातचीत
करने म िबताए थे। सती व थ तो हो रही थी, िकंतु अभी भी िब तर से उठ नह पाई थी। राजसी
कािफले ने कं ू ज म ही पड़ाव डाल िदया था, जब तक िक सभी घायल चलने क अव था तक
भले-चंगे न हो जाएं । लोथल क या ा र कर दी गई थी। िशव और पवते र ने िनणय िलया था
िक जैसे ही सभी घायल अ छे हो जाएं तो अ छा यही रहे गा िक अब वे देविग र वापस लौट चल।
सती ने ह के से करवट बदली तािक उसक पीठ म होती पीड़ा को थोड़ा आराम िमल सके,
िकंतु उसने िशव के हाथ को यथावत पकड़े रखा था। िशव झुका और उसने सती के मुख पर आए
बाल के एक गु छे को हटा िदया। वह ेमपवू क मु कुराई और उसने कहना जारी रखा, ‘ऐसा है
िक लगभग दो सौ पचास साल पहले तक मेलहू ा म राजाओं क संतान उनक पैदाइश नह होती
थी, बि क मयका यव था से आते थे। अत: उस समय उनक सबसे बड़ी संतान के बारे म
जानने का
ही नह उठता था। हम मा इतना जानते थे िक वह उनका पहला द क पु था।’
‘बात िब कुल सही है।’
‘िकंतु इसके अित र , यह भी आव यक नह था िक थम द क पु ही उ रािधकारी
बनेगा। ि थरता एवं शांित के िलए यह एक और िनमय था जो भु ी राम ने थािपत िकया थी।
आप देख सकते ह िक पुराने युग म कई राजशाही प रवार हआ करते थे, जो छोटे-छोटे रा य पर
शासन िकया करते थे।’
‘ठीक है,’ िशव सती क बात पर िजतना यान दे रहा था, उतना ही उसके गाल म पड़ रहे
स मोिहत कर देने वाले गड्ढे पर भी दे रहा था, ‘ये राजा संभवत: हमेशा ही यु रत रहा करते
ह गे तािक कोई एक स ाट बन जाए चाहे वह िकतने ही कम समय के िलए य न हो।’
‘ प त:,’ सती भु ी राम के पवू राजाओं क मख
ू ता पर िसर िहलाते हए मु कुराकर
बोली।
‘वैसे, यह लगभग हर जगह ही था,’ िशव ने अपने देश म होने वाले िनरं तर यु
करते हए कहा।
‘राजाओं के म य आिधप य के िलए िकए गए यु
को याद
ने अनेक अनाव यक और यथ के यु
करवाए, िजनम आम नाग रक को सबसे अिधक क उठाना पड़ा था,’ सती ने कहना जारी
रखा था, ‘ भु ी राम ने अनुभव िकया िक राजाओं के अहं क तुि के िलए आम नाग रक का
क झेलना अनाव यक और मख
ू तापण
ू था। उ ह ने एक यव था बनाई िजसम एक रा य सभा
अथात शासन करने वाली प रषद बनाई गई। उसम ा ण एवं ि य के कुछ िवशेष पद के
लोग शािमल िकए गए। जब भी िकसी स ाट का िनधन होता था अथवा वे सं यास हण करते थे
तो यह प रषद ि य म से िकसी एक को स ाट चयिनत करती थी, जो सेनापित या उससे उ च
पद थ हो। इस िनणय का िवरोध नह िकया जा सकता था और भंग भी नह िकया जा सकता
था।’
‘मने पहले भी कहा था और म पुन: कह रहा हं,’ िशव ने बड़ी मु कान के साथ कहा, ‘ भु
ी राम अ यिधक ितभाशाली थे।’
‘हां, वे अव य थे,’ सती ने उ साहपवू क कहा, ‘जय ी राम।’
‘जय ी राम,’ िशव ने दोहराया, ‘लेिकन यह बताओ िक तु हारे िपता
कैसे स ाट बने। महाराज तो पवू स ाट के सबसे बड़े पु ह?’
नायक के बाद
‘वे चयिनत हए थे, उसी कार जैसे मेलहू ा म अ य स ाट चुने जाते ह। वा तव म देखा जाए
तो मेलहू ा के इितहास म यह पहली बार हआ था, जब शासन करने वाले स ाट के पु को स ाट
चयिनत िकया गया था।’
‘हं ऽ म। लेिकन तु हारे दादा जी ने तु हारे िपता जी को चयिनत होने म सहायता क थी?’
‘म इस बारे म िनि त प से नह बता सकती। म जानती हं िक मेरे दादा जी मेरे िपता को
स ाट बनते देखना पसंद करते थे। िकंतु म यह भी जानती हं िक वे एक महान यि थे, जो
मेलहू ा के िनयम का पालन करते थे और उ ह ने खुले प म ऐसा नह िकया होगा। एक महान
ऋिष भग
ृ ु हआ करते थे जो सा ा य म हर जगह स माननीय ह, उ ह ने मेरे िपता के चयन म
बहत सहायता क थी।’
कोमलता से अपने हाथ सती के मुख पर फेरते हए िशव मु कुराया। सती ने आंख बंद कर
ली। उसके शरीर म उस पश से आनंद दायक संवेदना उभरी। उसका हाथ सती के मुख से
उतरकर उसके बदन से उतरता हआ पुन: सती के हाथ पर आकर थम गया। उसने सती के हाथ
को ह के से दबाया।
द एवं ऋिष भग
पछ
ृ ु के संबंध के बारे म िशव और
ू ने ही वाला था िक तभी अचानक
ार खुला। अ यिधक थके-मांदे द ने वेश िकया। उसके पीछे वी रनी और कनखला थे। िशव ने
त ण ही अपने हाथ को ख च िलया, इससे पहले िक द देख पाता िक वह कहां रखा हआ था।
िकंतु द ने हाथ को िखसकते देख िलया था।
‘िपता ी!’ आ यचिकत सती िच लाई।
‘सती, मेरी ब ची,’ सती के िब तर पर झुकते हए द ने एक गहरी सांस छोड़ी। वी रनी द
के पास म झुक और उसने भी ेमपवू क अपनी पु ी के मुख पर हाथ फेरा। वह रो रही थी।
कनखला ार पर ही रह गई थी। उसने िशव को एक औपचा रक नम ते िकया। िशव ने उसके
नम ते का उ र एक दीि मान मु कान के साथ िदया। पवते र एवं आयुवती कनखला के साथ
खड़े होकर ती ा कर रहे थे। वे राजशाही प रवार को उनके िनजी ण म एकांत दान करना
चाहते थे। नंदी, वीरभ और कृि का उनके पीछे खड़े थे। एक सहायक राजशाही दंपि के िलए
दो कुिसयां ले आया। उसने उ ह िब तर के बगल म लगाया और त ण ही बाहर चला गया।
द , वी रनी और कनखला दो हजार सैिनक के साथ उसी समय देविग र से िनकल पड़े
थे, जैसे ही उ ह यह समाचार ा हआ िक सती घायलाव था म थी। उ ह ने सर वती नदी को
पार कर िदन-रात लगातार चलते हए कं ू ज क या ा क थी।
‘म ठीक हं, िपता ी,’ सती ने अपनी माता के हाथ को न ता से पकड़कर कहा। अपनी
माता क ओर मुड़कर उसने कहना जारी रखा, ‘सच म कहती हं, मां। म बहत अ छा महसस
ू कर
रही हं। मुझे एक स ाह और समय दीिजए और म आपके िलए न ृ य का दशन क ं गी।’
िशव सती क बात सुनकर मु कुराया। द एवं वी रनी क एक दुबल हंसी फूट पड़ी।
अपने िपता क ओर देखते हए सती ने कहा, ‘मुझे मा कर िपता ी, मने आपके िलए बहत
िवपि खड़ी कर दी है। म जानती हं िक कई मह वपण
ू काम पड़े ह और आपको यहां आना पड़ा।’
‘िवपि ?’ द ने पछ
ू ा, ‘मेरी ब ची, तुम मेरा जीवन हो। तुम मेरी खुशी का
इस समय तुम क पना भी नह कर सकती िक मुझे तुम पर िकतना गव है।’
ोत हो। और
वी रनी ने झुककर सती के ललाट को चम
ू िलया।
‘मुझे आप सब पर गव है,’ द ने मुड़कर पवते र एवं आयुवती क ओर देखते हए कहना
जारी रखा, ‘गव इस बात पर िक आप लोग ने भु का साथ उस काय म िदया, जो हम करना ही
था। हमने वा तव म एक ासद आ मण को परािजत िकया है! आप इसक क पना भी नह कर
सकते िक इस घटना ने सम त सा ा य म िकतनी उ ेजना भर दी है।’
द आराम पहंचाने वाले ढं ग से सती के हाथ पर थपक देते हए और िशव क ओर मुड़कर
बोला, ‘ध यवाद, भु। हमारे िलए संघष करने का बहत-बहत ध यवाद। हम अब पता है िक हमने
सही यि पर आ था क है।’
िशव कुछ बोल नह पाया। वह असहजता म मु कुराया और द क आ था को मानते हए
सहमित म िसर िहलाया तथा िश तापवू क नम ते िकया।
आयुवती क ओर मुड़ते हए द ने पछ
ू ा, ‘अब यह कैसी है? मुझे बताया गया है िक वह अब
पण
ू त: व थ हो जाने वाली है।’
‘जी हां, महाराज,’ आयुवती ने कहा, ‘एक स ाह के अंदर ये चलने लगगी। और तीन स ाह
म इस घाव क याद के नाम पर मा िनशान रह जाएगा।’
‘आप न केवल इस युग क सबसे अ छी वै ह,’ द ने गव के साथ कहा, ‘बि क, वा तव
म आप अब तक क सबसे अ छी वै ह।’
‘नह , नह , महाराज,’ आयुवती ने लगभग एक छोटी चीख के साथ कहा। उसने अपने दोन
हाथ से अपने कान को छुआ, जैसे वह इस शंसा क अिधका रणी न होने पर बुरी शि य से
बचने का यास कर रही हो, ‘बहत से वै मुझसे बहत बेहतर ह। िकंतु इस करण म यह
चम कार भु नीलकंठ का था, मेरा नह ।’
कट प से असहज िशव क ओर ण भर देखते हए, वह द क ओर मुड़ी और कहना
जारी रखा, ‘मुझे तो लगा था िक हम इ ह खो चुके थे। जब हमने अि नबाण बाहर िनकाला तो
इ ह अ यिधक भयावह ती वर हो गया था। आप तो जानते ही ह िक अि नबाण के वर का
कोई उपचार नह है, महाराज। िकंतु भु ने आस छोड़ने से इंकार कर िदया। यह इ ह का िवचार
था िक इ ह सोमरस िदया जाए।’
द ने कृत ता भरी मु कान से साथ िशव क ओर मुड़कर कहा, ‘मुझे आपको एक और
बात के िलए ध यवाद करना है, भु। मेरी पु ी मेरी आ मा का एक अंग है। म उसके िबना जी
नह सकता था।’
‘अरे , नह -नह , मने कुछ नह िकया है,’ िशव ने संकोच से कहा, ‘यह तो आयुवती थ ,
िज ह ने उसका उपचार िकया।’
‘यह और कुछ नह , आपका बड़ पन बोल रहा है, भु,’ द ने कहा, ‘आप सच म नीलकंठ
के लायक ह। असल म आप महादेव के लायक ह।’
ह का-ब का हए िशव ने द को देखा तो उसका भाव सच म गंभीर था। वह जानता था
िक इसके पवू महादेव अथात देव के देव कौन थे। वह कभी इस बात को नह मान नह पाया था
िक वह भगवान
के साथ तुलना करने के यो य था। उसके कम उसे इसक अहता नह देते
थे।
‘नह , महाराज। आप मेरे िलए बहत ही ऊंचा बोल बोल रहे ह। म महादेव नह हं।’
‘आप ही महादेव ह, भु,’ कनखला और आयुवती ने लगभग एक साथ ही कहा। पवते र
देखता रहा था, वह चुप था।
चंिू क िशव वयं को महादेव कहलवाना पसंद नह कर रहा था, इसिलए इस िवषय को और
आगे न बढ़ाते हए द सती क ओर मुड़कर बोला, ‘यह मुझे समझ म नह आ रहा है िक तुमने
भु के सामने बाण का वार सहने के िलए छलांग य लगाई। तु ह तो पौरािणक गाथाओं पर
िव ास नह था। तु ह नीलकंठ म आ था कभी नह थी, िजतनी मुझे है। तब तुमने भु के िलए
अपने जीवन को जोिखम म य डाला?’
सती ने कुछ नह कहा। उसने असुिवधा से नीचे क ओर देखा। वह असहज एवं असुगम
महसस
ू कर रही थी। द ने मुड़कर िशव को देखा तो िशव के मुख पर भी सती के समान ही मुंह
चुराने वाले भाव िदख रहे थे। वी रनी ने अपने पित को लालसा से देखा। वह अपने पित क
ती ा कर रही थी िक वे खड़े ह और िशव से बात कर। द अचानक ही खड़ा हो गया और
िब तर के दूसरी ओर िशव क ओर औपचा रक नम ते क मु ा म हाथ जोड़कर गया। चिकत
िशव ने उठकर अपने िसर को थोड़ा झुकाकर द के नम ते का उसी कार औपचा रक प से
हाथ जोड़कर उ र िदया।
‘ भु, संभवत: यह पहली बार हआ है, जब मेरी पु ी क िज ा मेरे सम िहली नह है,’ द
ने कहा, ‘और म इतने समय म आपको भी समझ चुका हं। आप हमेशा दूसर को कुछ दगे, िकंतु
अपने िलए कुछ मांगगे नह । इसिलए यहां म अपनी ओर से ही ारं भ क ं गा।’
िशव अपनी योरी चढ़ाकर द क ओर गहरी ि
से देखा।
‘म आपसे झठ
ू नह बोलंग
ू ा, भु,’ द ने कहना जारी रखा, ‘िनयम के अनुसार मेरी पु ी
िवकम है य िक उसने एक मत
ृ िशशु को ज म िदया था। यह उतना गंभीर अपराध नह है। यह
उस बालक के िपता के पवू ज म के कमा के कारण भी हो सकता है। िकंतु हमारे सा ा य का
िनयम यह है िक माता-िपता दोन को ही दोषी माना जाए। मेरी ि य पु ी को इस िनयम के
अनुसार ही िवकम क ेणी म रख िदया गया था।’
िशव ने द क ओर देखा, िकंतु उसके मुख का भाव प
िक िवकम िनयम अनुिचत था।
बता रहा था िक वह सोचता था
‘ऐसा माना जाता है िक िवकम यि बुरे भा य के वाहक होते ह,’ द ने कहना जारी
रखा, ‘इसिलए यिद वह िववाह करती है तो वह अपने बुरे भा य से अपने पित को आ छािदत
करे गी और संभव है, अपनी संतित को भी।’
वी रनी ने अपने पित को अग य ढं ग से देखा।
‘म अपनी पु ी को जानता हं, भु,’ द ने कहना जारी रखा, ‘मने उसे कभी भी कोई भी
गलती करते नह देखा है। यहां तक िक वह िकसी के बारे म गलत सोच भी नह सकती है। वह
एक बहत अ छी ी है। मेरे िवचार म जो िनयम इसक भ सना करता है, वह अनुिचत है। िकंतु
म मा स ाट हं। म िनयम को बदल नह सकता।’
पवते र ने ोध म आंख तरे र कर द को देखा। वह दुखी था िक उसने एक ऐसे स ाट
के साथ काम िकया, जो िविध को इतनी िनकृ ता से देखता था।
‘यह मेरे दय को कुचलकर रख देता है िक म अपनी पु ी को एक खुशी का जीवन नह दे
सकता, िजसक वह पा है,’ द ने सुबकते हए कहा, ‘उसके जैसी भली आ मा वाली के साथ
होने वाले ितिदन के अपमान से म उसक र ा नह कर सकता। म या कर सकता हं, मा
आपसे सहायता क उ मीद रख सकता हं।’
सती ने अपने िपता को ेम भरी आंख से देखा।
‘आप नीलकंठ ह,’ द ने कहना जारी रखा, ‘असल म आप उससे अिधक ही ह। म सचमुच
म िव ास करता हं िक आप महादेव ह। यह अलग बात है िक आप यह कहलाना पसंद नह करते
ह। आप िनयम से परे ह। आप िनयम म प रवतन कर सकते ह, यिद आप चाह तो। आप उसका
अिधरोहण कर सकते ह।’
याकुल पवते र ने द को ु
ि से देखा। कैसे एक स ाट िनयम के ित इतना
उपे ापण
ू हो सकता था? उसके बाद उसक आंख िशव पर जा िटक । उसका दय और गहराई म
डूब गया।
िशव द को प हष के साथ देख रहा था। उसने सोचा था िक उसे सती के िलए स ाट
को मनाना पड़े गा। िकंतु यहां तो मामला ही उ टा था, बस कुछ ही ण म स ाट सती का हाथ
उसके हाथ म देने को तैयार होने वाले थे।
सम त भावनाएं िशव के बदन म एक लहर क भांित दौड़ पड़ी थ । उसके मुख पर
भाविवभोर कर देने वाली स नता झलक रही थी। उसने बोलने का यास िकया, िकंतु उसका
गला भरा हआ था। वह नीचे झुका, उसने सती का हाथ बहत ही कोमलता से अपने हाथ म उठा
िलया, उसे अपने ह ठ तक लाकर उसे अ यंत ही ेमपवू क चम
ू िलया। उसने द को देखा और
अ यंत ही धीमे वर म कहा, ‘म इसे अपने से दूर नह होने दंूगा। कभी भी नह ।’
परू ी तरह भ च क हई सती ने गहराई से िशव को देखा। िपछले स ाह उसने ेम करने का
दु साहस िकया था, लेिकन उसने कभी भी आशा रखने का दु साहस नह िकया था। और आज
उसका कभी न परू ा होने वाला सपना परू ा होने वाला था। वह उनक प नी बनने वाली थी।
अ यिधक स न द ने िशव को कसकर आिलंगनब कर िलया और धीमे वर म बोला,
‘ भु!’
वी रनी अिनयंि त ढं ग से सुबक रही थी। सती के साथ उसके सम त जीवन म िकए गए
अ याय को सही कर िदया गया था। उसने द क ओर देखा, जैसे वह उसे मा कर देने के िलए
इ छुक थी। आयुवती और कनखला ने कमरे म वेश िकया और स ाट, महारानी, िशव और सती
को बधाई दी। नंदी, कृि का और वीरभ ने सुना तो वे खुशी से उछल पड़े थे। पवते र अपनी
जगह पर जड़वत खड़ा था। वह भु ी राम के तरीक के इस अनादर से ु ध था।
अंतत: िशव ने वयं पर िनयं ण पा िलया। अ छी तरह से सती का हाथ थामकर उसने द
क ओर देखा और कहा, ‘लेिकन, महाराज, मेरी एक शत है।’
‘जी हां, भु।’
‘िवकम िनयम...’
‘इसम प रवतन क आव यकता नह है, भु,’ द ने कहा, ‘यिद आप मेरी पु ी से िववाह
का िनणय लेते ह तो िनयम आपको रोक नह सकता है।’
‘िफर भी,’ िशव ने कहा, ‘इस िविध को बदलने क आव यकता है।’
‘िन संदेह, इसक आव यकता है, भु,’ दीि मान द ने कहा। कनखला क ओर मुड़कर
उसने कहना जारी रखा, ‘यह बताते हए िक अब से कोई राजशाही ी जो मत
ृ िशशु को ज म
देती है, वह िवकम क ेणी म नह रखी जाएगी। यह घोषणा तैयार क िजए जो नीलकंठ ारा
ह ता रत होगी।’
‘नह , महाराज,’ िशव ने टोककर कहा, ‘मेरा यह मतलब नह था। म चाहता हं िक सम त
िवकम िविध को ही समा कर िदया जाना चािहए। अबसे कोई भी िवकम नह होगा। बुरा भा य
िकसी पर भी आघात कर सकता है। इसके िलए उसके पवू ज म को दोषी ठहराना मख
ू ता है।’
पवते र ने िशव को आ य से देखा। य िप वह भु ी राम क िविधय म एक अ प िवराम
का प रवतन भी पसंद नह करता था, िफर भी भु ी राम के मौिलक िस ांत का िशव ारा
पालन करने को उसने शंसनीय माना, िविध सब पर लागू होनी चािहए, समान प से एवं
उिचत प से, िबना अपवाद के।
हालांिक द ने िशव को सदमे से घरू ा। यह असंभािवत था। अ य मेलहू ावािसय क भांित वह
भी िवकम को लेकर अंधिव ासी था। उसक अ स नता िवकम िविध को लेकर नह थी, बि क
मा इसिलए थी िक उसक पु ी को उस ेणी म रखा गया था। िकंतु वह शी ही संभल गया और
बोला, ‘िन संदेह भु। घोषणा म कहा जाएगा िक सम त िवकम िविध को समा िकया जाता है।
एक बार जब आप उस पर ह ता र कर दगे तो वह िविध बन जाएगा।’
‘मेरी पु ी के खुशी के िदन िफर से आने वाले ह,’ द ने अ यंत फुि लत होते हए कहा
और कनखला क ओर मुड़कर बोला, ‘जब हम देविग र पहंच तो म वहां एक भ य आयोजन
करना चाहता हं। ऐसा िववाह जैसािक सम त िव ने इससे पहले कभी नह देखा होगा। आज
तक का सबसे सुंदर िववाह। इस सा ा य के सबसे अ छे आयोजक को बुलवाइए। खच म कोई
कमी मत छोिड़ए।’
द ने िशव क ओर उनक सहमित क आशा म देखा। िशव ने सती क ओर उसक
स नता भरी मु कान एवं उसके गाल म पड़े छोटे-छोटे अित सुंदर गड्ढ क शंसा करते हए
देखा। उसके बाद वह द क ओर मुड़कर बोला, ‘म केवल इतना ही चाहता हं महाराज, िक म
सती से िववाह करना चाहता हं। म इसी म खुश हं िक यिद आप सभी लोग, बहृ पित और मेरे
गुणवाले लोग वहां उपि थत रहते ह, तो मुझे इससे कोई अंतर नह पड़ता िक वह एक साधारण
समारोह हो अथवा अ यंत भ य।’
‘अित संुदर।’ द अ यंत फुि लत था।
अ याय - 19
े संपािदत हआ
म
ती न स ाह के बाद जब राजशाही कािफला देविग र पहंचा तो वहां उ सव का वातावरण
िदखाई दे रहा था। कनखला पहले ही पहंच चुक थी और उसने यह सुिनि त कर िदया था िक
उस सह ाि ध के सबसे अिधक ती ारत िववाह क सम त तैया रयां कर ली जाएं । उसक
यव थाएं , हर बार क भांित इस बार भी ुिटहीन थ ।
िविभ न कार के वैवािहक अनु ान एवं समारोह सात िदन तक चलने वाले थे और
येक िदन चुर मा ा म अनेक कार के आयोजन क यव थाएं कर दी गई थ । सामा यत:
सय
ू वंिशय के संयमी मानक के िवपरीत नगर को अित ययी ढं ग से सजाया गया था। उनके
संयमी भरू े बाहरी आवरण पर उ सव का चटक रं ग चढ़ा हआ था। सड़क पर नीले रं ग के नए
खपरै ल लगा िदए गए थे। इस धम
ू धाम क दावत म नगर के सभी भोजनालय म शासन क
ओर सहायता ा िन:शु क भोजन क यव था क गई थी। सा ा य के पैसे से सभी मकान
को इस कार रं गा गया था, जैसे एक िदन पहले ही नगर क थापना हई हो।
बड़ी शी ता से सर वती नदी के दूर वाले छोर से एक बड़ी नहर खोदी गई थी, जहां से नदी
क एक धारा को मोड़ िदया गया था। जैसे ही पानी उस नहर म वेश कर रहा था तो वहां पर
िवशालकाय छननी लगाई गई थी, िजसम लाल रं ग िमला हआ था और जहां से उस नहर का पानी
वापस नदी म िमल रहा था, तो वहां पर भी एक छननी लगाई गई थी तािक व छ पानी नदी म
पुन: वेश कर सके। उस नहर को एक िवशालकाय वि तक का आकार िदया गया था, जो एक
ाचीन तीक िच था, िजसका शाि दक अथ होता था, जो शुभ से संबंिधत हो, एक सुखद
भा य। उन तीन वेिदकाओं से कोई भी मेलहू ावासी पिव सर वती के वाह से िनिमत, सय
ू वंशी
राजशाही लाल रं ग से सि जत उस िवशालकाय आदरपण
वि तक को स मानपवू क देख
ू
सकता था। तीन वेिदकाओं के िलए सुर ा के ि कोण से कलदार पुल पर बनाए गए कुछ
कटीले खंभ को हटा िदया गया था। राजधानी म आने वाले सभी अितिथय के वागत करने के
िलए उनके थान पर वहां अ यिधक िवशाल रं गोिलयां बनाई गई थ , जो मील दूर से िदखाई दे
रही थ । कनखला सभी कटीले खंभ को हटाना चाहती थी, िकंतु पवते र ने सुर ा कारण से
ऐसा नह करने िदया था।
सम त सा ा य से कुलीन प रवार को इन उ सव म ितभाग करने के िलए आमंि त
िकया गया था। इस अित मह वपण
ू अवसर पर रा यपाल से लेकर वै ािनक तक, सेनापितय से
लेकर कलाकार तक और यहां तक िक सं यािसय के भी सभी उ च पद थ लोग ने देविग र
आगमन िकया था। मेसोपोटािमया और िम जैसे मुख देश के राजदूत को मेलहू ा क राजधानी
म आने का आपवािदक अवसर दान िकया गया था। राजदूत को जो यह िवशेष स मान िदया
गया था, उसे झल
यापार के िलए भुना
ू े र ने बड़ी चतुरता से भिव य म होने वाले अित र
िलया था। बहृ पित मंदार पवत से बड़ी ठाट-बाट से अपने संगी-सािथय के साथ आया हआ था।
मंदार पवत पर मा ढांचानुमा अ र नेमी सैिनक के दल को उसक सुर ा के िलए शेष छोड़ा
गया था। यह इितहास म पहली बार हआ था, जब मंदार पवत पर सात िदन तक कोई शोध
काय म नह होने वाला था।
पहले िदन दो पज
ू ाएं इं देव एवं अि न देव हे तु आयोिजत क गई ं। वे भारतवष के लोग के
िलए मुख भगवान थे और िकसी भी आयोजन से पवू उनके आशीवाद ा िकए जाते थे। और
ऐसा आयोजन जो सह ाि द का िववाह हो तो ऐसे मह वपण
ण म उनक वीकृित आव यक
ू
थी। हालांिक वह िवशेष पज
ू ा उनके यो ा बन जाने के कारण आयोिजत क गई थी। द ने एक
सुव ा क भांित इसके कारण के िववरण िदए। मेलहू ावासी नीलकंठ एवं राजकुमारी के िववाह
का केवल उ सव ही नह मना रहे थे, बि क वे उन तु छ ासदका रय क कं ू ज म पराजय का
भी उ सव मना रहे थे। उसके अनुसार कं ू ज क गंज
व ीप वािसय के दय म गहराई से
ू
गुंजायमान होगी। सय
ू वंिशय का ितशोध ारं भ हो चुका था!
उस पज
ू ा के बाद िशव एवं सती के िववाह का औपचा रक अनु ान हआ। य िप अभी
अनु ान एवं समारोह चल ही रहे थे, लेिकन िशव ने अपनी जान छुड़ाई और सती को साथ लेकर
वहां से िनकल आया था।
‘पिव झील क सौगंध!’ िशव ने अपने िनजी कमरे के ार को बंद करते हए आ य म
कहा, ‘यह तो अभी पहला िदन है! या येक िदन इतना ही लंबा होने वाला है?’
‘ऐसा नह तीत होता है िक इससे आपको कोई अंतर पड़ने वाला है! आपक जब इ छा हई
आप वहां से िनकल गए!’ सती ने छे ड़खानी करते हए कहा।
‘मुझे उन समारोह से कुछ भी लेना-देना नह है!’ अपनी र म वाली पगड़ी को िनकालकर
एक ओर फकते हए िशव ने गुराकर कहा। भारी सांस लेते हए, उसक ओर बढ़ते हए उसने सती
को उ ता से घरू ा।
‘हां, िन संदेह,’ एक नाटक य मु ा के साथ सती ने उपहास िकया, ‘नीलकंठ को यह
िनणय लेने का अिधकार है िक या सही है और या सही नह है। नीलकंठ जो चाहते ह, वह कर
सकते ह।’
‘हां, वह कर सकता है!’
सती ने शरारत भरी िठठोली क और भागकर िब तर क दूसरी ओर चली गई। अपने
अंगव म् फकते हए िशव उसे पकड़ने के िलए तेजी से उसक ओर लपटा।
‘हां, वह कर सकता...’
‘याद रखना मने तु ह या कहने के िलए कहा था,’ नंदी ने फुसफुसा कर वीरभ को कहा,
‘िचंता मत करो। भु अव य अनुमित दगे।’
‘ या...’ सती ारा उठाए जाने पर न द से बोिझल आंख वाले िशव ने पछा।
‘उिठए, िशव,’ सती ने कोमलता से धीमे वर म कहा। उसक लट िशव के चेहरे पर िगरी
हई थ , जो उसके गाल से छे ड़खानी कर रहे थे। ‘सावधानी से’ सती ने धीमे से कहा, य िक
िशव ने ललक के साथ सती को देखा, ‘नंदी, कृि का और वीरभ बाहर ती ा कर रहे ह। वे
कुछ मह वपण
ू बात बताना चाहते ह।’
‘हं ऽ म,’ िशव गुराया और ार के पास चलकर गया। उसने तीखी ि से उन तीन को
देखा और पछ
ू ा, ‘ या है नंदी? या कोई ऐसी सुंदर व तु तु हारे जीवन म नह है, िजसे तुम मुझे
परे शान करने के बजाय इस समय परे शान कर सको?’
‘आपके जैसा कोई नह है, भु,’ नंदी ने बहत नीचे झुकते हए शालीन नम ते के साथ
कहा।
‘नंदी अब तुम यह मख
ू ता बंद कर दो, वरना जीवन भर कुंवारे ही रह जाओगे!’ िशव ने
शरारत क ।
सभी लोग ठहाका मारकर हंस पड़े , लेिकन कृि का अपने काम के बारे म िचंितत रही।
‘वैसे, तुम लोग या बात करना चाहते हो?’ िशव ने पछ
ू ा। नंदी ने वीरभ को जोर से
कुहनी मारी। िशव वीरभ क ओर मुड़ा और उसे
सच
ू क ि से देखा।
‘भ , कब से तु ह मुझसे बात करने के िलए इतने लोग क सहायता क आव यकता
पड़ने लगी?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘िशव...’ वीरभ घबराहट म भुनभुनाया।
‘हां?’
‘ऐसा है...’
‘यह ऐसा या है?’
‘असल म, देिखए...’
‘म देख रहा हं, भ ।’
‘िशव, वह पहले से ही घबराया हआ है, उसे और मत सताइए,’ सती ने कहा। उसके बाद
वीरभ क ओर मुड़कर उसने कहना जारी रखा, ‘वीरभ , िनडर होकर कहो। तुमने कुछ गलत
नह िकया है।’
‘िशव,’ वीरभ भी ता से फुसफुसाया। उसके गाल चुकंदर क तरह लाल थे, ‘मुझे अनुमित
चािहए।’
‘अनुमित दी जाती है,’ िशव को अब तक हंसी आ चुक थी, ‘तु ह िजसके िलए भी चािहए।’
‘असल म, म सोच रहा हं िक िववाह कर लं।ू ’
‘अित उ म िवचार है!’ िशव ने कहा, ‘बस तु ह अब यह करना है िक िकसी एक अंधी
को तुमसे िववाह करने के िलए मनाना है।’
ी
‘असल म, मने पहले से ही एक ी ढूंढ़ ली है,’ वीरभ ने िह मत जुटाकर कहा इससे
पहले क उसक िह मत प त हो जाए, ‘और वो अंधी नह है...’
‘अंधी नह है?’ िशव क भ ह शरारतपण
ू तरीके से गोलाई म उठ , जैसे उसे िव ास ही न
हआ हो, ‘तब वह अव य ही एक मख
ी है, जो अपने अगले सात ज म के िलए एक ऐसे
ू
यि के साथ बंधना चाहती जो िकसी दूसरे यि से अपना िववाह िनयत करवाना चाहता है।’
वीरभ ने टकटक लगाकर शिमदगी, प ाताप एवं न समझ पाने वाले भाव से एक बड़े ही
िविच ढं ग से िशव को देखा।
‘मने तु ह पहले भी कहा था भ ,’ िशव ने कहा, ‘हमारे कबीले म बहत सारी र म ह, िज ह
म पसंद नह करता हं। उनम से जो पहली है, वह यह है िक कबीले के मुिखया को अपने
कबीलेवाल के िलए दु हन अनुमोिदत करनी होती है। तु ह याद नह है, हम बचपन म इस
मख
ू ता भरी परं परा का िकतना मजाक उड़ाया करते थे?’
वीरभ ने िशव को एक बार पुन: देखा और उसने पुन: अपना िसर नीचे झुका िलया जैसे
वह अभी भी िनि ंत नह था।
‘अरे भाई, भगवान के िलए अब तो समझ जाओ। यिद तुम उसके साथ खुश हो तो म तु हारे
िलए खुश हं,’ िशव ने उ ेिजत होकर कहा, ‘तु ह मेरी अनुमित है।’
वीरभ ने आ यजनक प से भाव-िवभोर होकर उसे देखा और नंदी ने उसे िफर कुहनी
मारी। कृि का ने वीरभ को देखा। उसने एक बहत ही गहरी सांस छोड़ी जैसे बहत बड़ी किठनाई
से िनकल आई हो। वह सती क ओर मुड़ी और उसने मन ही मन कहा, ‘ध यवाद।’
िशव कृि का क ओर चलकर गया और उसने गमजोशी से उसे आिलंगनब कर िलया।
चिकत कृि का एक ण के िलए पीछे हटी, िफर नीलकंठ क गमजोशी ने उसके सय
ू वंशी
आर ण पर िवजय ा कर ली। उसने िशव को कसकर पकड़ िलया।
‘कबीले म वागत है,’ िशव ने फुसफुसा कर कहा, ‘हम लोग काफ पागल िक म के लोग
ह, लेिकन िदल से हम अ छे लोग ह!’
‘लेिकन आपको पता कैसे लगा,’ वीरभ बोला, ‘मने आपसे पहले कभी नह बताया िक म
इससे यार करता हं।’
‘म अंधा नह हं, भ ,’ िशव मु कुराया।
‘ध यवाद,’ कृि का ने िशव से कहा, ‘मुझे वीकार करने के िलए ध यवाद।’
िशव पीछे हटा और बोला, ‘ध यवाद नह । मुझे हमेशा से िचंता थी। वह एक अ छा भरोसेमंद
यि है लेिकन ि य के िवषय म थोड़ा सरल मन का है। म िचंितत था िक उसका वैवािहक
जीवन पता नह िकस कार का होगा। लेिकन अब िचंता करने क कोई आव यकता नह है।’
‘वैसे, म भी आपसे कुछ कहना चाहती हं,’ कृि का ने कहा, ‘मने कभी भी नीलकंठ क
पौरािणक कथा म िव ास नह िकया था। िकंतु आपने जो कुछ भी देवी सती के िलए िकया है,
यिद वही आप मेलहू ा के िलए भी कर सकते ह तो आप अव य ही महादेव कहलाने के पा ह।’
‘म वयं को महादेव कहलवाना नह चाहता, कृि का। तुम जानती हो िक म मेलहू ा से
उतना ही ेम करता हं, िजतना सती से। म वह सब क ं गा जो भी मुझसे संभव हो सकेगा।’ भ
क ओर मुड़कर िशव ने आ ा दी, ‘अबे उ लू के प े, इधर आ।’
वीरभ आगे आया और उसने अनुराग सिहत िशव को अिलंगनब िकया और फुसफुसाया,
‘ध यवाद, िशव।’
‘मख
ू ता मत करो। ध यवाद क कोई आव यकता नह है!’ िशव ने मु कान के साथ कहा।
वीरभ क मु कान और चौड़ी हो गई।
‘और सुनो!’ िशव ने बनावटी गु से म कहा, ‘जब हम अगला िचलम एक साथ िपएं गे तब
तु ह उ र देना होगा िक कैसे तुमने एक ी से यार करने का दु साहस इतने समय तक
िकया और अपने सबसे अ छे िम से बताया तक नह !’
सभी लोग ठहाका मारकर हंस पड़े ।
‘ या एक अ छे गांजे क खेप इसक भरपाई कर लेगी?’ वीरभ ने मु कुराकर कहा।
‘हां ठीक है, म सोचंग
ू ा।’
‘ या वे थक हई सी नह लगती ह?’ आयुवती ने िचंितत प से सती क ओर देखते हए कहा।
सती अभी-अभी एक पज
ू ा क वेिदका से उठी थी य िक उसे एवं उसक माता जी को इस
िवशेष अनु ान से मुि दे दी गई थी। यह मा वर एवं सुर के िलए थी। पंिडत पज
ू ा क तैयारी
कर रहे थे, जो कुछ ही ण म ारं भ होने वाली थी।
‘बात सही है, देखा नह आपने आज लगभग छह िदन से लगातार समारोह एवं पज
ू ा हो रहे
ह,’ कनखला ने कहा, ‘य िप र म है िजसे एक राजशाही िववाह के िलए संप न करना ही
पड़ता है, िफर भी म समझ सकती हं िक इसम थकान तो होगी ही।’
‘अरे नह , नह , म यह नह कहंगा िक इसका छह िदन क पज
ू ा से कोई संबंध है,’ बहृ पित
ने कहा।
‘नह ?’ कनखला ने पछ
ू ा।
‘नह ,’ बहृ पित ने शरारती ढं ग से उ र िदया, ‘मेरे िवचार से इसका गहरा संबंध पांच रात
से है।’
‘ या?’ आयुवती ने िच लाकर कहा। जब उसे बहृ पित के श द का अथ कट हआ तो
उसके बाद उसके मुख पर एक गहरी लािलमा दौड़ पड़ी थी।
पवते र जो कनखला के पास म ही बैठा था, उसने बहृ पित को इस कार क अनुपयु
िट पणी करने के िलए ोध से घरू ा। जब ि यां िखलिखलाकर हंस पड़ तो बहृ पित ने ठहाका
लगया। एक सहायक पंिडत ने िचढ़कर मुड़ करके उ ह देखा। लेिकन जब उसने बैठे हए ा ण
क व र ता देखी तो अपनी िखजलाहट को पी गया और अपनी तैयारी म जुट गया।
हालांिक पवते र को ऐसा कोई अनुताप नह था, ‘मुझे िव ास नह हो रहा है िक इस तरह
क बातचीत मुझे सहन करनी पड़ रही है।’ वह उठकर उस जमाव के सबसे पीछे चला गया।
इसने कनखला और आयुवती को भी हंसने पर िववश कर िदया। उसी समय एक व र
पंिडत ने मुड़कर संकेत िदया िक अनु ान ारं भ होने ही वाला था, िजसके कारण वे तुरंत ही चुप
हो गए।
पंिडत ने ोक के आ ान का पुन: आरं भ िकया। िशव एवं द दोन ही आनु ािनक घी
को ‘ वाहा’ का उ चारण करते हए समय-समय पर पिव अि न म डालते जा रहे थे।
दो वाहा के म य म िशव और द के िलए पया समय होता था िक वे एक-दूसरे से ह के
वर म बातचीत कर सक। वे सती के बारे म बात कर रहे थे। और मा सती के बारे म ही। िकसी
भी एक िन प पयवे क को यह िनणय लेना बहत किठन था िक आिखर उन दोन म से कौन
राजकुमारी को अिधक ेम करता था। पंिडत ने ोक के पाठ के म य म थोड़ा समय िलया तो
यह िशव और द के िलए संकेत था िक वे वाहा के उ चारण के साथ ही पिव अि न म घी को
डाल। थोड़ा-सा घी द के हाथ के ऊपर िगर गया। िशव एक अंगोछा ख चकर उसे य ही प छने
लगा तो उसक ि द के हाथ म बंधे चयिनत जाित-िच वाले बाजबू ंद पर पड़ी। उस पर बने
पशु को देखकर िशव भ च का रह गया, लेिकन उसक सहज बुि ने उसे कुछ भी कहने से
रोक िदया। इस म य द ने भी मुड़कर िशव के इस अवलोकन को देख िलया था।
‘यह मेरी पसंद नह थी। मेरे िपता ने मेरे िलए चयन िकया था,’ द ने एक नेही मु कान
के साथ कहा, जब वह अपने हाथ से घी साफ कर रहा था। उसके वर म तिनक भी उलझन नह
थी। यिद कोई बहत ही समीपता से देखता तो वह उसक आंख म तिनक अव ा का भाव अव य
देख सकता था।
‘नह , नह , महाराज,’ िशव ने शिमदा होते हए बुदबुदा कर कहा, ‘मेरे देखने का यह अथ
नह था। मेरी मा याचना वीकार कर।’
‘आप य मा ाथ ह , भु?’ द ने कहा, ‘यह मेरा चयिनत जाित-वग है। यह हाथ म
पहना जाता है तािक सभी लोग देख सक और मुझे वग कृत कर सक।’
‘लेिकन आप अपने चयिनत जाित-वग से कह अिधक े ह, महाराज,’ िशव ने न ता से
कहा, ‘आप उससे बहत अिधक महान ह, जो यह बाजबू ंद ित पण कर रहा है।’
‘हां,’ द मु कुराया, ‘मने सचमुच ही उन व ृ को िदखा िदया है, है न? नीलकंठ ने उनके
शासन काल म कट होना नह चुना। वे मेरे शासन काल म आए। ासदकारी उनके शासन
काल म परािजत नह हए। वे मेरे शासन काल म परािजत हए। और चं वंिशय म सुधार उनके
शासन काल म नह हए। वे मेरे शासन काल म सुधरगे।’
िशव सावधानीपवू क मु कुराया। इस बातचीत के संबंध म िकसी व तु ने उसे टीस दी थी।
उसने एक बार पुन: द के हाथ म उस बाजबू ंद को देखा। उसम बना िच एक सादगीपण
ू बकरी
को ितिबंिबत कर रहा था, जो ि य म सबसे नीची ेणी का चयिनत जाित-वग था। असल म
कुछ लोग इस बकरी के चयिनत जाित-वग को इतना िनकृ मानते थे िक उसे धारण करने
वाले को पण
ि य भी नह मानते थे। पंिडत के मौिखक संकेत को सुनकर िशव पुन: पिव
ू
अि न क ओर मुड़ गया। कलछी से और घी लेकर उसने अि न म डालते हए उ चारण िकया,
‘ वाहा।’
सं या के समय अपने िनजी कमरे म एकांत म िशव ने सती से स ाट
नायक एवं उनके पु
द के म य संबंध के बारे म पछ
ू ने का िवचार िकया था। िकंतु न जाने िकस कारण से उसे ऐसा
तीत हआ िक जब वह यह
पछ
ू े तो उसे सावधान रहना होगा। िवशेषकर श द के चयन म।
‘स ाट
नायक एवं तु हारे िपता के म य िकस कार के संबंध थे?’ िशव ने पछ
ू ा।
सती ने िशव के लहराते हए केश से खेलना बंद कर िदया। उसने एक गहरी सांस ली और
बहत ही धीमे वर म कहा, ‘कभी-कभार वह तनावपण
ू होता था। इन दोन के च र म
अ यिधक िभ नता थी। िकंतु ऋिष भग
ृ ु...’
इस वातालाप म िव न पड़ गया य िक ार को िकसी ने खटखटाया।
‘ या है?’ िशव गुराया।
‘ भु,’ ारपाल तमन ने घबराहट के साथ घोषणा क , ‘ मुख वै ािनक बहृ पित जी आए
ह और वे आपसे िमलना चाहते ह। वे हठ कर रहे ह िक उ ह आज क राि ही आपसे िमलना है।’
िशव को बहृ पित से िमलना और बातचीत करना बहत पसंद था। लेिकन ारपाल को उ र
देने के पहले उसने सती क ओर अपनी भ ह को उठाकर देखा। सती मु कुराई और उसने
सहमित म िसर िहलाया। उसे िशव के बहृ पित से संबंध क मह ा का भान था।
‘बहृ पित जी को आने दो, तमन।’
‘जैसी भु क आ ा।’
‘िम ,’ बहृ पित ने कहा, ‘इतनी राि म आपको क
देने के िलए मा ाथ हं।’
‘आपको मुझसे मा मांगने क कोई आव यकता नह है, िम ।’ िशव ने उ र िदया।
‘नम ते, बहृ पित जी,’ सती ने मुख वै ािनक के चरण- पश करने के िलए झुककर
कहा।
‘अखंड सौभा यवती भव,’ बहृ पित ने सती को पारं प रक ढं ग से आशीवाद देते हए कहा,
िजसका अथ होता है िक उसके पित हमेशा जीिवत रह और उसके पास रह।
‘अ छा तो,’ िशव ने बहृ पित से पछ
ू ा, ‘ऐसी कौन-सी इतनी मह वपू ण बात है, िजसने
इतनी रात गए आपको अपने िब तर से उठाकर यहां आने पर िववश कर िदया है?’
‘असल म, बात ये है िक मुझे इससे पवू आपसे बातचीत करने का अवसर ही नह िमल
पाया।’
‘म जानता हं,’ िशव ने सती क ओर मु कुराकर देखते हए कहा, ‘हमारे िदन एक
अनु ान से दूसरे अनु ान म ही कट रहे थे।’
‘म जानता हं,’ बहृ पित ने सहमित म िसर िहलाते हए कहा, ‘हम सय
ू वंशी अनु ान को
बहत पसंद करते ह। िकंतु हर हालत म म आपसे यि गत प म िमलकर बात करना चाहता
था य िक कल ात: ही मुझे मंदार पवत के िलए थान करना है।’
‘ या?’ िशव ने आ यचिकत होकर पछ
ू ा, ‘आप इन छह िदन तक जीिवत रह गए ह, तो
एक और िदन भी जीिवत रह सकते ह?’
‘म जानता हं,’ बहृ पित ने आंख म िसलवट डालकर मा मांगने वाले भाव से कहा, ‘मुझे
यहां रहना बहत अ छा लगता, िकंतु एक योग क ितिथ पवू से ही तय है। महीन से तैया रयां
चल रही ह। मेसोपेटािमया से ा पदाथ तैयार कर िलया गया है। हम सोमरस क ि थरता का
परी ण कम जल के साथ करना चाहते ह। मुझे जाना होगा तािक म यह सुिनि त कर सकं ू िक
योग समय से ारं भ हो सके। मेरे अ य वै ािनक यह रहगे जो आपके साथ ह गे।’
‘ठीक है,’ िशव ने यं यपण
ू वाणी म कहा, ‘मुझे इस जगत म हर व तु के िलए उनके
हमेशा िदए जाने वाले िस ांत से बहत यार है।’
बहृ पित हंसा और बोला, ‘मुझे सचमुच ही जाना पड़े गा, िशव। िकंतु इसके िलए मुझे बहत
खेद है।’
‘खेद करने क कोई आव यकता नह है, िम ,’ िशव ने मु कुराते हए कहा, ‘जीवन बहत
लंबा है और मंदार पवत का माग बहत छोटा। आप मुझसे इतनी आसानी से छुटकारा नह पा
सकते ह।’
बहृ पित मु कुराया। उसक आंख म उस यि के िलए ेम उमड़ रहा था, िजसे वह अपना
ाता समझने लगा। वह आगे बढ़ा और उसने िशव को कसकर बांह म भर िलया। िशव को थोड़ा
आ य भी हआ, य िक यह वह था जो बहृ पित को आिलंगनब िकया करता था और बहृ पित
मा उसका यु र िदया करते थे, वो भी अिनि तता से।
‘मेरे ाता,’ बहृ पित ने धीमे वर म फुसफुसा कर कहा।
‘मेरे ाता,’ िशव ने भी धीमे वर म बुदबुदाकर कहा।
थोड़ा पीछे हटकर लेिकन िशव का हाथ अब भी थामे हए बहृ पित ने कहा, ‘म आपके िलए
कह भी जाऊंगा। यहां तक िक पाताल लोक भी, यिद आपके िलए सहायक हआ तो।’
‘म आपको वहां कभी नह ले जाऊंगा, िम ,’ िशव ने ह क मु कान के साथ उ र िदया।
वह सोच रहा था िक वह वयं भी कभी वहां क या ा का इ छुक नह था, जो असुर का िनवास
था, पाताल लोक।
बहृ पित ने िशव क ओर गमजोशी से देखा और मु कुराकर कहा, ‘म शी ही आपसे
िमलने क आशा करता हं, िशव।’
‘आप इस पर शत लगा सकते ह।’
िफर सती क ओर मुड़कर बहृ पित ने कहा, ‘अपना यान रखना, पु ी। अंतत: मुझे यह
देखकर स नता हो रही है िक िजस जीवन क आप अिधका रणी थ , वह आपको ा हआ है।’
‘ध यवाद, बहृ पित जी।’
अ याय - 20
मंदार पर आ मण
‘आ प कैसे ह, िम ?’
‘यह या हो रहा है? म यहां या रहा हं?’ भ च के हए िशव ने पछ
ू ा।
उसने वयं को मे के
ा मंिदर म बैठा हआ पाया। उसके सामने वह पंिडत बैठा हआ था,
िजससे वह कई महीन पहले तब िमला था, जब वह पहली बार उस मंिदर म गया था।
‘आपने मुझे यहां बुलाया है,’ पंिडत ने मु कुराते हए कहा।
‘लेिकन म यहां कब और कैसे आया?’ यह सुनकर िशव परू ी तरह से ह का-ब का रह गया
था।
‘जैसे ही आपको न द आई,’ पंिडत ने उ र िदया, ‘यह एक सपना है।’
‘म अव य ही शािपत होऊंगा, लानत है!’
‘आप इतनी अभ बात य करते ह?’ पंिडत ने योरी चढ़ाकर पछ
ू ा।
‘म तभी अभ बोलता है, जब प रि थितयां वैसी होती ह,’ िशव ने बनावटी हंसी से कहा,
‘अभ बात करने म गलत ही या है?’
‘मेरे िवचार से, यह अनुिचत यवहार का दशन है। संभवत: यह बताता है िक आपके च र
म कह कोई कमी है।’
‘मेरे िवचार से यह इसके िवपरीत अ ुत च र को दशाता है। यह दशाता है िक आपम अपने
मन क बात कहने क शि एवं िन ा है।’
पंिडत ने िसर िहलाते हए ठहाका लगाया।
‘चाहे जो भी हो,’ िशव ने कहना जारी रखा, ‘चंिू क आप यहां ह, आप यह य नह बताते
िक आप लोग को या पुकारा जाता है? मुझे यह वचन िदया गया था िक जब कभी अगली बार
म आप दोन म से िकसी से भी िमलंग
ू ा तो मुझे बताया जाएगा।’
‘िकंतु आप हमम से िकसी एक से नह िमले ह। यह एक सपना है। म आपको केवल वही
बता सकता हं, जो आप पहले से जानते ह,’ पंिडत ने रह या मक ढं ग से मु कुराते हए कहा, ‘या
िफर कुछ ऐसा जो आपके संचेतन म पवू से ही अि त व म है, िजसे आपने जानने क अब तक
इ छा नह क है।’
‘तो यह इसके िलए है! आप मेरी उस बात को जानने म सहायता करने को बैठे ह, जो मुझे
पहले से ही पता है!’
‘हां,’ पंिडत ने कहा। उसक मु कुराहट और गढ़
ू होती चली गई।
‘ठीक है, तो यह बताइए िक हम यहां या बात करने के िलए जुटे ह?’
‘उस प े के रं ग के िलए,’ पंिडत का मुख दमक उठा। उसने भड़क ले ढं ग से न कशीदार
खंभ के पार उस मंिदर उन अनेक व ृ क ओर संकेत िकया।
‘उस प े का रं ग?’
‘हां।’
परू ी तरह से भक
ृ ु िट चढ़ाकर िशव ने गहरी सांस लेते हए कहा, ‘पिव झील क कृपा से मुझे
तिनक यह बताइए िक उस प े का रं ग इतना मह वपण
ू य है?’
‘कई बार ान पाने के िलए एक अ छी वातालाप क या ा उसे और अिधक संतोष द बना
देती है,’ पंिडत ने कहा, ‘और इससे भी मह वपण
ू बात यह है िक यह ान के संग को अिधक
सरलता से समझने म सहायक भी होती है।’
‘ ान का संग?’
‘हां। सभी ान का एक संग होता है। जब तक िक आप उसके संग को नह जानगे, आप
संभवत: उसका आशय नह समझ पाएं गे।’
‘और म उस प े के रं ग के बारे म बात कर वह सब कुछ जान जाऊंगा, जो मुझे जानना
चािहए?’
‘अव य।’
‘तो िफर पिव झील क सौगंध,’ िशव ने कराह कर कहा, ‘उस प े के बारे म ही बात
करते ह।’
‘िब कुल ठीक है,’ पंिडत हंसा, ‘बताइए। उस प े का रं ग या है?’
‘रं ग? उसका रं ग हरा है।’
‘ या है?’
‘ या नह है?’
‘आप य सोचते ह िक वह आपको हरा तीत होता है?’
‘ य िक,’ िशव को हंसी आ गई, ‘वह हरा है।’
‘नह । म वह पछ
ू ने का यास नह कर रहा था। बहृ पित के वै ािनक से आपक इस बारे
म बातचीत हई थी िक आंख कैसे देखती ह। या आपसे नह हई थ ?’
‘ओह, वह। हां हई थी,’ िशव ने अपने ललाट पर ह क थपक देते हए कहा, ‘उस व तु पर
काश क िकरण िगरती ह। और जब वह व तु से परावितत होकर आपक आंख म पड़ती ह तो
आप उसे देखते ह।’
‘यथाथत:! और आपक बातचीत एक और वै ािनक से हई थी िक सामा य
िकरण िकनसे बनी ह?’
ेत सय
ू क
‘हां, मने क थी। ेत िकरण कुछ नह बि क सात रं ग का संगम है। इसी कारण से
इं धनुष सात रं ग का बना होता है, य िक वह तब बनता है जब वषा क बंदू सय
ू क िकरण
को िछतरा देती ह।’
‘िब कुल सही! अब आप इन दो िस ांत को एक साथ यान म रखकर मेरे
दीिजए। आपको वह प ा हरा य तीत होता है?’
का उ र
िशव ने योरी चढ़ाई या ही उसके मन ने इस
का उ र पा िलया, ‘ ेत सय
ू क िकरण
प ी पर िगरती है। प ी का ाकृितक गुण ऐसा होता है िक वह बगनी, नीले, आसमानी, पीले,
नारं गी और लाल रं ग को सोख लेता है। वह हरे रं ग को नह सोखता है, उसके बाद वह मेरी
आंख म परावितत होता है। इसिलए म प े को हरा देखता हं।’
‘यथाथत:!’ पंिडत का मुख दमक उठा, ‘तो उस प े का रं ग उस प े के ही ि कोण से
सोिचए। वह िकन रं ग को सोखता है और िकन रं ग को अ वीकार करता है। या वह हरा रं ग
है? या िफर जगत का वह येक रं ग, िसवाय हरे के?’
इस सादगी से तक क
तुित को देखकर िशव ह का-ब का रह गया।
‘कई सचाइयां ह। कई वणन ह, जो य तीत होते ह,’ पंिडत ने कहना जारी रखा, ‘जो
एक संग म अचल स य तीत होता है, वही दूसरे संग म ठीक उसके िवपरीत तीत हो सकता
है। िजस संग या ि कोण से आप देख रहे ह, वह उस कार के िवचार का गठन करता है
िजस िवशेष सच को आप देखते ह।’
िशव धीरे से उस प े क ओर मुड़ा। उसका तेज वी हरा रं ग सुहावनी सय
ू क िकरण म
चमक रहा था।
‘ या आपक आंख एक अ य सचाई को देखने म स म ह?’ पंिडत ने पछ
ू ा।
िशव िनरं तर प े को घरू रहा था िक सहसा उसने अपना व प पांत रत करना ारं भ कर
िदया। ऐसा तीत हो रहा था िक प े का रं ग गहरे हरे रं ग से िवलीन होता हआ ह के हरे रं ग म
और लगातार ह के रं ग म िपघलता जा रहा था। धीरे -धीरे उसने वयं को भरू े रं ग के एक भेद म
पांत रत कर िलया। भ च के हए िशव ने उसे उसी कार देखना जारी रखा तो वह भरू ा रं ग भी
िपघलने लगा और तब तक रं गहीन होता गया जब तक िक वह पारदश नह हो गया। अब उसका
मा ढांचे का आकार ही िकसी तरह से िदख पा रहा था। ऐसा तीत हो रहा था िक ेत एवं काले
दो रं ग क अनेक व रे खाएं उस प े के ढांचे से अंदर-बाहर हो रही थ । लगभग ऐसा तीत हो
रहा था िक वह प ा और कुछ नह मा एक वाहक था, िजसे काली एवं ेत व रे खाएं अपनी
सनातन या ा के माग म एक अ थाई पड़ाव के प म यु कर रही थ ।
िशव को यह एहसास होने म थोड़ा समय लगा िक उस प े के आसपास के प े भी ढांच म
पांत रत हो गए थे। य ही िशव ने यान देकर देखा तो सम त व ृ एक ढांचे म पांत रत हो
चुका था और काली एवं ेत व रे खाएं उसम से तैरते हए अंदर और बाहर अ यिधक सरलता
एवं सुगमता से आ-जा रही थ । उसने उस िवराट य को परू ी तरह से अपने अंदर समािहत करने
क ि से अपना िसर मोड़ा। पेड़ पर बैठी िगलहारी से लेकर मंिदर के खंभा तक सभी पदाथ
अपने वयं के ढांचे म पांत रत हो चुके थे। वही काली एवं ेत व रे खाएं उनम से होकर
अंदर-बाहर कर रही थ ।
इसक या या पछ
ू ने क इ छा से वह पंिडत क ओर मुड़ा तो भ च का रह गया य िक
वह पंिडत भी अपने पवू व प के ढांचे म पांत रत हो चुका था। ेत रं ग क व रे खाएं
अ यिधक बलता से बाहर क ओर िनकल रही थ । िविच बात यह थी िक उनम काली रे खाएं
नह थ ।
‘अरे यह या...’
िशव के श द मुंह म ही रह गए य िक पंिडत का ढांचा उसक ओर संकेत कर रहा था,
‘आप वयं को देिखए, कमसाथी।’ पंिडत ने सुझाव िदया।
िशव ने वयं को देखा, ‘म अव य शािपत होऊंगा!’
उसका अपना शरीर भी पण
ू त: पारदश होकर ढांचे म पांत रत हो चुका था। काली व
रे खाओं क चंड धारा अ यिधक ती गित से उसम समािहत हो रही थ । उसने उन रे खाओं को
बहत यान से देखा तो उसने देखा िक वे रे खाएं नह थ । असल म वे बहत छोटी-छोटी तरं ग थ
जो अ यिधक काले रं ग क थ । वे तरं ग इतनी छोटी-छोटी थ िक थोड़ी-सी दूरी से भी रे खाओं क
भांित तीत हो रही थ । िशव के ढांचे वाले शरीर के िनकट ेत तरं ग क कोई झलक भी नह
थी, ‘ये या हो रहा है?’
‘ ेत तरं ग धना मक ऊजाएं ह और काली ऋणा मक,’ पंिडत के ढांचे ने कहा, ‘ये दोन ही
मह वपण
ू ह और उनम संतुलन आव यक है। यिद वे इस संतुलन से िनकल आए तो लय हो
जाएगा।’
िशव ने हैरानी से पंिडत क ओर देखा, ‘तो िफर कोई धना मक ऊजा मेरे आसपास य
नह है? और आपके आसपास ऋणा मक ऊजा?’
‘ य िक हम एक-दूसरे को संतुिलत करते ह। िव णु क भिू मका धना मक ऊजा को
संचा रत करना है,’ पंिडत ने कहा। ेत रे खाएं जो धारा वाह ढं ग से िनकल रही थ , उसके
बोलते समय थोड़ी लहरा रही थ , ‘और महादेव क भिू मका ऋणा मक को सोख लेने क है।
अनुसंधान क िजए। ऋणा मक ऊजा के िलए अनुसंधान क िजए और आप महादेव के ार ध को
संपण
ू करगे।’
‘लेिकन म महादेव नह हं। अब तक के िकए गए मेरे कम मुझे इस उपािध के यो य नह
बनाते ह।’
‘यह उस कार काय नह करता, िम । कुछ कम करने के बाद ही आप यह उपािध ा
नह करते ह। य िक आप अपना कम करते ह और मा उसके बाद ही जब आप इस पर िव ास
करते ह िक आप महादेव ह। अ य या सोचते ह, इससे कोई अंतर नह पड़ता। असल म यह
आपके िव ास के संबंध म है। आप िव ास करगे िक आप ही महादेव ह, तो आप महादेव बन
जाएं गे।’
िशव क भक
ृ ु िट तन गई।
‘िव ास क िजए!’ पंिडत ने पुन: कहा।
ध ऽ ड़ा ऽ म! उस वातावरण म एक धमाके क
क ओर अपनी आंख मोड़ ।
ित विन गुंजायमान हई। िशव ने ि ितज
‘यह िव फोट जैसा तीत होता है,’ पंिडत के ढांचे ने फुसफुसा कर कहा।
दूर से सती का आ ही वर सुनाई पड़ा, ‘िश ऽ ऽ व।’
ध ऽ ड़ा ऽ म! एक और िव फोट।
‘िश ऽ ऽ व।’
‘ऐसा तीत होता है िक आपक प नी को आपक आव यकता है, िम ।’
िशव ने अचंभे से पंिडत के उस ढांचे को देखा। वह िन य नह कर पा रहा था िक वर कहां
से आ रहा था।
‘संभवत: आपको जाग जाना चािहए,’ पंिडत के उस अ य वर ने कहा।
‘िश ऽ ऽ व।’
न द से बोिझल आंख वाले िशव ने देखा िक सती िचंितत होकर उसे घरू रही थी। उस पर
अभी भी उस अनोखे ढं ग से िविच व न क अव था से धुंधलका छाया हआ था, िजसे वह अभीअभी झटककर बाहर आया था।
‘िशव।’
‘ध ऽ ड़ा ऽ म!’
‘यह या था?’ िशव िच लाया। अब वह सचेत था।
‘कोई दैवी अ
‘ या? ये दैवी अ
के योग कर रहा है।’
या ह?’
परू ी तरह से भ च क हई सती ने उ ेजना से कहा, ‘दैवीय आयु! िकंतु भगवान
दैवी अ को न कर िदया था! अब वह िकसी के पास नह है!’
ने सभी
िशव अब परू ी तरह से चौक ना हो चुका था। उसक यु क सहज बुि ने उसे संकेत दे
िदया था, ‘सती तैयार हो जाओ। अपने कवच पहनो। अपने अ -श बांध लो।’
सती ने फुत से यु र िदया। िशव ने अपना कवच पहना और अपनी ढाल को उस पर
लटका िलया। उसके बाद उसने अपनी तलवार को कमर म ख स िलया। उसने तरकश पहनकर
अपना धनुष उठा िलया। उसने देखा िक सती तैयार हो चुक थी तो उसने ार को ध का मारकर
खोल िदया। तमन और उसके आठ पहरे दार तलवार िनकालकर िकसी भी आ मण से अपने
नीलकंठ क सुर ा हे तु तैयार थे।’
‘ भु, आप अंदर ही ती ा कर,’ तमन ने कहा, ‘हम आ मणका रय को यह रोक लगे।’
िशव ने तमन को तीखी ि से घरू ा। तमन क उिचत मंशा वाले श द को सुनकर उसक
यो रयां चढ़ गई ं। तमन त काल ही एक ओर हो गया, ‘मुझे मा कर, भु। हम आपके पीछे ह।’
इससे पहले िक िशव कुछ िति या िदखा पाता, उ ह कदम क आहट सुनाई दी जो
गिलयारे से उनक ओर ही ती गित से आ रही थी। िशव ने अपनी तलवार िनकाल ली। उसने
अपने कान पर दबाव डालकर संकट का आंकलन िकया।
चार प ैर क आहट। राजशाही गिलयारे के आ मण म मा दो यि ! इसका कोई मतलब
नह बनता था।
एक जोड़ी पैर क आहट थोड़ा घसीटने वाली थी। ासदकारी अव य ही बड़े आकार वाला
यि था जो अपनी अ यिधक संक प-शि का योग कर अपने पैर को उससे भी अिधक
ती ता से चला रहा था, िजतना िक उसका आकार उसे चलने नह दे रहा था।
‘तलवार नीची कर लो, सैिनको,’ अचानक िशव ने कहा, ‘वे िम ह।’
नंदी और वीरभ अपनी तलवार िलए हए एक कोने से तेजी से दौड़ते हए चले आ रहे थे।
‘ या आप ठीक ह, भु,’ नंदी ने शंसापण
ू ढं ग से िबना हांफते हए पछ
ू ा।
‘हां, हम सभी सुरि त ह। या तुम लोग ने िकसी आ मण का सामना िकया?’
‘नह ,’ वीरभ ने आंख तरे र कर उ र िदया, ‘ये आिखर हो या रहा है?’
‘म नह जानता,’ िशव ने कहा, ‘लेिकन हम पता अव य करगे।’
‘कृि का कहां है?’ सती ने पछ
ू ा।
‘अपने कमरे म सुरि त है,’ वीरभ ने उ र िदया, ‘उसके साथ पांच सैिनक ह। कमरा अंदर
से बािधत है।’
िशव क ओर मुड़ने से पहले सती ने िसर िहलाकर सहमित कट क , ‘अब या करना
है?’
‘म पहले स ाट का कमरा देखना चाहता हं। सभी लोग दो क कतार म हो जाएं । अपनी
ढाल ऊपर उठाकर वयं को आड़ म रखो। सती मेरे बगल म। नंदी म य म। तमन, वीरभ सबसे
पीछे । कोई रौशनी मत करो। हम रा ता जानते ह। हमारे श ु नह ।’
वह पलटन अ यिधक गित एवं गोपनीयता से इस बात का यान रखते हए चलने लगी िक
श ुओ ं से सहसा आ मण हो सकता था। िशव ने जो सुना था, वह उससे परे शान था। या िफर
उससे जो उसने सुना नह था। बार बार के िव फोट के अलावा महल से कोई और विन नह
सुनाई दे रही थी। कोई चीख नह कोई आतंक नह । कोई भयभीत होते हए पैर क आहट नह ।
इ पात क कोई टकराहट नह । कुछ नह । या तो ासदका रय ने अभी तक अपना आ मण
ारं भ नह िकया था। या िफर िशव को देरी हो गई थी और आ मण समा हो चुका था। जब
तीसरा िवक प उनके मन म आया तो िशव क यो रयां चढ़ गई ं। संभव है िक महल म कोई
ासदकारी ही न हो। संभव है िक जो सती ने बताया था, ासदकारी कह दूर से दैवी अ
से
आ मण कर रहे हा।
िशव क पलटन द के कमरे के पास पहंची तो देखा िक उसके पहरे दार तनाव क मु ा म
यु के िलए तैयार खड़े थे।
‘स ाट कहां ह?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘वे भीतर ह, भु,’ राजशाही पहरे के अिधपित ने नीलकंठ के आकार को पहचान कर कहा,
‘वे लोग कहां ह, भु। हम लोग थम िव फोट के बाद से ही उनके आ मण क ती ा कर रहे
ह।’
‘मुझे नह पता, अिधपित,’ िशव ने उ र िदया, ‘यह ि थर बने रिहए और ार को बािधत
रिखए। तमन तुम अपने आदिमय के साथ इनक सहायता करो। और चौक ने रहो।’
िशव ने स ाट के कमरे का ार खोला, ‘महाराज?’
‘ भु? या सती सुरि त है?’ द ने पछ
ू ा।
‘हां, वह सुरि त है, महाराज,’ य ही िशव ने कहा, ‘और महारानी?’
‘थोड़ी घबराई हई ह, िकंतु डरी नह ह।’
‘वह या था?’
‘म नह जानता,’ द ने उ र िदया, ‘मेरा सुझाव है िक आप एवं सती तब तक यह रह,
जब तक िक यह पता नह लग जाता िक या हो रहा है।’
‘संभवत: यह आपके िलए अ छा रहे गा िक आप यह रह। हम आपके ऊपर िकसी भी कार
क आने वाली हािन का जोिखम नह उठा सकते ह। म बाहर जाकर पवते र क सहायता
करता हं। यिद ासदका रय का आ मण चल रहा है तो हम परू ी शि क आव यकता होगी।’
‘आपको जाने क आव यकता नह है, भु। यह देविग र है। हमारे सैिनक उन सबको मार
िगराएं गे, िज ह ने राजधानी पर आ मण करने क मख
ू ता क है।’
इससे पवू िक िशव िति या दे पाता, ार पर एक ती आ ही खटखटाहट हई।
‘महाराज? वेश करने क अनुमित चाहता हं।’
‘पवते र!’ द ने सोचा, ‘ऐसे समय म भी नयाचार का पालन कर रहा है!’
‘आ जाइए!’ गड़गड़ाहट भरे वर म द ने कहा। या ही पवते र ने वेश िकया द ने
िव फोटक तरीके से कहा, ‘इं देव के नाम पर यह बताओ सेनानायक िक यह कैसे हो सकता
है? देविग र पर आ मण? वे कैसे ऐसा दु साहस कर सकते ह?’
‘महाराज,’ िशव ने महाराज को रोकते हए कहा। अब तक सती, नंदी और वीरभ भी कमरे
म आ चुके थे। वह पवते र का अपमान उन सबके सम नह होने दे सकता था, िवशेषकर सती
के सामने, ‘पहले हम पता करना चािहए िक हो या रहा है?’
‘आ मण देविग र पर नह हआ है, महाराज,’ पवते र ने ती ण ि से देखते हए कहा।
स ाट के साथ उसका धैय भी टूटने क कगार पर था, ‘मेरे ह रय ने मंदार पवत क ओर से
अ यिधक धुएं के गुबार उठते देखे ह। मेरा मानना है िक उस पर आ मण हआ है। मने पहले ही
मेरे सैिनक द ते को एवं उपि थत अ र नेिमय को तैयार होने का आदेश दे िदया है। हम एक
घंटे म िनकल जाएं गे। मुझे यहां से थान करने क अनुमित दान कर।’
‘ये िव फोट मंदार पर हए थे, िपततृ ु य,’ सती ने अिव ास से पछ
ू ा, ‘वे िकतने शि शाली
ह गे, जो देविग र म सुने जा सके।’
पवते र ने उदासी से सती को देखा। उसक चु पी उसके अ यिधक भय को दशा रही थी।
वह द क ओर मुड़ा, ‘महाराज?’
द ह का-ब का होकर चुप रह गया था। या िफर उसके चेहरे पर अ यिधक चढ़ा हआ
ोध था। पवते र उस धीमी रौशनी म तय नह पा रहा था।
‘ ह रयो, मशाल जलाओ!’ पवते र ने आ ा दी, ‘देविग र पर कोई आ मण नह हआ है।’
य ही मशाल ने अपनी चमक फै लाई, पवते र ने पुन: कहा, ‘ या आपक अनुमित है,
महाराज?’
द ने सहमित म िसर िहलाया।
पवते र ने सदमे म लग रहे िशव को देखकर पछ
ू ा, ‘ या बात है, िशव?’
‘बहृ पित कल ही मंदार क ओर
थान कर गए थे।’
‘ या?’ च कते हए पवते र ने कहा, िजसने कल के उ सव म मुख वै ािनक क
अनुपि थित पर यान नह िदया था, ‘हे अि नदेव!’
िशव धीरे से सती क ओर मुड़ा। उसक उपि थित से उसने शि
हण क ।
‘म उ ह ढूंढ़ िनकालंग
ू ा, िशव,’ पवते र ने सां वना दी, ‘मुझे परू ा िव ास है िक वे जीिवत
ह। म उ ह ढूंढ़ िनकालंग
ू ा।’
‘म आपके साथ आ रहा हं।’ िशव ने कहा।
‘और म भी,’ सती ने कहा।
‘ या?’ द ने पछ
ू ा। काश उसके संत भाव को उजागर कर रहा था, ‘आप दोन को जाने
क आव यकता नह है।’
िशव ने योरी चढ़ाकर द क ओर मुड़ते त हए कहा, ‘मुझे
मुझे जाना ही होगा। बहृ पित को मेरी आव यकता है।’
मा कर, महाराज, लेिकन
य ही पवते र और िशव राजशाही क से िनकलने को हए तो सती अपने िपता के पांव
छूने को झुक । द इतना त ध था िक वह आशीवाद देने क ि थित म भी नह था और सती
अपने पित से बहत पीछे रहना नह चाहती थी। वह शी ही मुड़ी और उसने आपनी माता जी के
पांव छुए।
‘आय ु मान भव,’ वी रनी ने कहा।
‘सती ने इस असंगत आशीवाद पर योरी चढ़ाई, ‘ई र त ु ह लंबी आय ु दान करे ’। वह
यु करने जा रही थी। वह िवजय चाहती थी, न िक लंबी आयु! लेिकन तक करने का समय नह
था। सती मुड़ी और ती ता से िशव के पीछे दौड़ पड़ी। नंदी एवं वीरभ उसके पीछे समीप ही थे।
अ याय - 21
यु क तैयारी
थम िव फोट के एक घंटे के भीतर िव फोटक क विन समा हो गई थी। इस घटना
को अभी बहत समय नह बीता था िक िशव, पवते र, सती, नंदी और वीरभ एक हजार पांच सौ
अ ारोही सेनादल के साथ मंदार पवत के माग पर िनकल चुके थे। बहृ पित के वै ािनक भी उस
सेनादल के साथ अ पर अपने नेता के जीवन क िचंता के साथ सवार थे। वे तेजी से चले जा
रहे थे और उ ह आशा थी िक वे उस पवत क या ा आठ घंटे से कम समय म तय कर लगे। वह
ि तीय हर का अंितम समय था, जब सय
ू सीधे िसर पर चमक रहा था। उनका सेनादल सड़क
के अंितम मोड़ से मुड़ गया था, जहां वन े समा हो चुका था और पवत िदखाई देने लगा था।
य ही उनक ि उस पवत पड़ी जो सा ा य का दय था तो उसे देखकर एक अित ु
पुकार उठी। मंदार को िनदयतापवू क न कर िदया गया था। पवत के म य म एक िवशालकाय
वालामुखी िदखाई दे रहा था। वह इस कार तीत हो रहा था िक जैसे एक अ यंत िवशालकाय
असुर ने अपने वहृ द हाथ से पवत के मुख भाग को कलछी डालकर बाहर क ओर िनकाल
िदया था। िव ान का अ यिधक िवशाल भवन िव वंस हो चुका था और उसके अवशेष नीचे के
मैदान म िबखरे पड़े थे। वह िवशालकाय मथानी अब भी मंथन कर रहा था, उसक भयानक
विन उस डरावने य को और भी िवकराल बना रहा था।
‘बहृ पित,’ िशव ने गजना करते हए अपने घोड़े को ऐड़ लगाकर तेजी से पवत के माग पर
दौड़ा िदया था, जहां आ यजनक प से वह माग अभी भी उसी कार प का खड़ा था।
‘ ती ा कर, िशव,’ पवते र ने पुकारा, ‘यह उनक चाल भी हो सकती है।’
िकसी भी जोिखम से अनजान िशव ने घोड़े को उस पथ पर पवत के उजड़े हए दय के म य
सरपट दौड़ा िदया। पवते र एवं सती के नेत ृ व म वह सेनादल नीलकंठ के साथ होने के िलए
तेजी से दौड़ पड़ा। वे ऊपर पहंचे तो एक भयानक य उनके सामने था। उस भवन के कुछ िह से
न व पर टूटकर झल
ू रहे थे, कुछ िह से अभी भी दहक रहे थे, उस बार बार के िव फोट ारा
जगह-जगह से कटे हए, आसानी से न पहचाने यो य एवं झुलसे हए शरीर के टुकड़े हर जगह-
जगह िबखरे हए थे। यहां तक िक मत
ृ क को भी पहचानना असंभव था।
िशव लड़खड़ाकर घोड़े से उतर गया। उसके चेहरे पर आशा क िकरण नह बची थी। ऐसे
ाणघातक आ मण म शायद ही कोई बचा होगा, ‘बहृ पित...’
‘कैसे इन ासदका रय को दैवी अ
क वाला धधक रही थी।
ा हए?’ उ ेिजत पवते र ने कहा। उसके अंदर ितशोध
सैिनक को आदेश िदया गया िक शरीर के सम त टुकड़ को इक ा कर और एक पथ
ृ क
िचता जलाकर उन मत
ृ आ माओं क दूसरी या ा म सहायता करने के िलए उनक अं येि कर
द। जो मारे गए थे उनक सच
ू ी बनाई जा रही थी। उस सच
ू ी म पहला नाम था मेलहू ा के मुख
वै ािनक सय
ू वंशी ा ण, राजहंस जाित-वग चयिनत बहृ पित का। अ य नाम म अिधकतर
अ र नेिमय के नाम थे, िज ह मदार क सुर ा का भार स पा गया था। एक ढाढस वाली बात
यह थी िक मत
ृ क क सं या बहत कम थी य िक अिधकतर मंदार िनवासी नीलकंठ के िववाह
के उ सव म ितभाग करने के िलए देविग र म उपि थत थे। उस सच
ू ी को क मीर के सं यािसय
को भेजा जा रहा था, िजनक आ याि मक बल क शि यां सव म मानी जाती थ । यिद उन
सं यािसय को इस मत
ृ आ माओं के िलए पज
ू ा करने के िलए मनाया जाता था तो यह आशा क
जा सकती थी िक इस ज म क भयानक म ृ यु उनके अगले ज म को दूिषत नह करे गी।
‘यह सोमरस भी हो सकता है, सेनानायक,’ एक अ य िव सनीय लगने वाला कारण देते
हए बहृ पित के सहायक के मुख वै ािनक पािणनी ने कहा।
िशव ने पािणनी के श द को सुनकर ऊपर क ओर देखा।
‘यह सोमरस ने िकया, कैसे?’ अिव ास के साथ सती ने पछ
ू ा।
‘उ पादन के समय सोमरस बहत ही अि थर होता है,’ पािणनी ने कहना जारी रखा, ‘उसे
सर वती के जल के चुर मा ा म योग से ि थर रखा जाता है। हमारी प रयोजनाओं म एक
मुख प रयोजना यह थी िक हम यह पता लगाना था िक या हम आव यकता से कम जल का
योग कर उसे ि थर रख सकते ह अथवा नह । वतमान म योग म लाने वाले जल क मा ा से
बहत ही कम मा ा म।’
िशव को याद आया िक बहृ पित इस तरह क बात कह रहा था। वह झुककर पािणनी को
यान से सुनने लगा।
‘यह एक व न स श प रयोजना थी, उ ह ...’ पािणनी को वा य परू ा करने म किठनाई हो
गई। इस युग के महानतम वै ािनक और मंदार पवत पर सम त ानी लोग के िलए िपततृ ु य
बहृ पित नह रहे , यह सोच पािणनी के िलए अस थी। अंदर क अ यिधक पीड़ा के कारण
उसका गला उसके बोल को बाहर िनकालने म असफल हो रहा था। उसने बोलना बंद कर िदया,
अपनी आंख बंद कर दी तािक वह भयानक ण िनकल जाए। अपने ऊपर िनयं ण क एक
झलक पाकर उसने कहना ारं भ िकया, ‘वह बहृ पित जी क एक व न स श प रयोजना थी।
वे वापस आ गए थे तािक आज से ारं भ होने वाले शोध क सम त तैयारी परू ी क जा सके। वे
नह चाहते थे िक हम अंितम िदन के उ सव को न देख सक, अत: वे अकेले ही आ गए थे।’
पवते र त ध रहा गया, ‘आपके कहने का अथ है िक यह एक दुघटना हो सकती है।’
‘हां,’ पािणनी ने उ र िदया, ‘हम सबको पता था िक यह परी ण जोिखम भरा था। संभवत:
इसी कारण बहृ पित जी ने इसे अकेले ही ारं भ करने का िनणय िलया होगा।’
इस असंभािवत सच
ू ना को सुनकर सम त क ही खामोश हो गया। पािणनी अपने िनजी
नक म चला गया। इन सदमा दायक घटनाओं से त ध पवते र क ि दूर शू य म चली
गई। सती ने िशव का हाथ थामे हए उसे घरू कर गहरी िचंता से देखा िक वे अपने िम क म ृ यु
पर िकस कार महसस
ू कर रहे थे। और संभव है िक वह मा एक अथहीन दुघटना हो।
थम हर के थम घंटे म बहत समय बीत चुका था। यह िनणय िलया गया िक सेनादल उस
व त पवत के नीचे एक पड़ाव थािपत करगे। वे दूसरे िदन वहां से तभी थान करगे जब मत
ृ
आ माओं के िलए सभी अनु ान परू े कर िलए जाएं गे। दो सवार को मंदार के समाचार के साथ
देविग र भेजा जा चुका था। पवते र एवं सती एक पवत के िकनारे बैठकर धीमे वर म बातचीत
कर रहे थे। पवत क तलहटी म ा ण वै ािनक के सं कृत ोक के पाठ क भुनभुनाहट
ऊपर क ओर वािहत होकर अत ि य मनोभाव के वातावरण उपि थत कर रहा था। नंदी एवं
वीरभ थोड़ी दूरी पर सावधान क मु ा म खड़े होकर अपने सेनानायक एवं सती को देख रहे थे।
िशव िवचार म डूबा हआ मंदार के अवशेष के म य घम
ू रहा था। बहृ पित के पहचान यो य
िकसी भाग को न पाकर उसके दय म टीस उठ रही थी। मंदार म सभी लोग न पहचाने जाने क
ि थित तक न िकए जा चुके थे। वह अधीरता से अपने िम का कोई संकेत पाना चाहता था।
कुछ ऐसी व तु िजसे वह हमेशा अपने पास रख सके। ऐसा कुछ िजससे वह िलपट सके। कुछ ऐसा
जो वष तक उसक पीड़ा म रहने वाली उसक संत आ मा को सां वना दे सके। वह घ घे क
चाल से चल रहा था। उसक आंख भिू म का सू म परी ण कर रही थ । वे अचानक ही एक व तु
पर आकर ठहर गई ं, िजसे वह भली-भांित पहचानता था।
वह धीरे से नीचे उसे उठाने के िलए झुका। वह चमड़े का कड़ा था, उसके िकनारे झुलसे हए
थे, उसके पीछे का खोसने वाला िह सा जला हआ था। उस भयानक िव फोट के ताप ने उसके
अिधकतर थल को जलाकर भरू े से काला कर िदया था। हालांिक उसके क म कढ़ाई क हई
बनावट आ यजनक ढं ग से दाग रिहत थी। िशव ने उसे अपनी आंख के समीप लाकर देखा।
अ त होते सय
ू क रि म िकरण ने उस ओऽम के तीक िच म चमक भर दी। उस ओऽम
के ऊपर एवं नीचे के दो व भाग के िमलन थल पर दो सप के मुख जुड़े हए थे। तीसरा व
पवू क ओर िनकलकर अंत म सप के मुख से समा हो रहा था और उसक ि शािखत िजह्वा
डराने जैसी बाहर िनकली हई थ ।
यह वही था! उसने बहृ पित क ह या क !
िशव ने तेजी से इधर-उधर ि घुमाई। अब वह म वी ण कर रहा था, उसका उ े य था
िक वह उस कड़े के मािलक को अथवा उसके शरीर के िकसी अंग को खोज ले। लेिकन वहां ऐसा
कुछ भी नह था। िशव मन ही मन ची कार कर उठा। उसक यह ची कार केवल उसे और
बहृ पित क घायल आ मा को ही सुनाई देने वाली थी। उसने उस कड़े को अपने हाथ म कसकर
जकड़ िलया। अब तक सुलग रही उसके अंगार ने उसक हथेली को लगभग जला िदया। उसने
तब भी उसे छोड़ा नह , बि क उस पर और मजबत
ू पकड़ बना ली और िफर उसने ितशोध क
एक भयानक शपथ ली। उसने सौगंध ली िक वह उस नागा क ऐसी ह या करे गा, जो उसके आने
वाले सात ज म तक उसका िच रहे गा। वह नागा और उसक सम त सेना को पण
ू त: िवन
कर िदया जाएगा। छोटे-छोटे टुकड़ म काटकर।
‘िशव! िशव!’ िनरं तर आने वाली इस पुकार ने उसे ख चकर वतमान के सच म लाकर
खड़ा कर िदया।
सती उसके सामने ेम से उसके हाथ पश करती हई खड़ी थी। पवते र उसके पास
परे शान-सा खड़ा था। नंदी और वीरभ उसक दूसरी ओर खड़े थे।
‘इसे छोड़ दीिजए, िशव,’ सती ने कहा।
िशव उसे िनरं तर देख रहा था, अवाक्।
‘इसे छोड़ दीिजए, िशव,’ सती ने कोमलता से दुहराया, ‘यह आपके हाथ को झुलसा रहा है।’
िशव ने अपनी हथेली खोल दी। नंदी ने त काल झुककर उनके हाथ से कड़े को ले िलया।
और त ण ही उसने गहरी पीड़ा म िच लाकर उस कड़े को नीचे िगरा िदया य िक उसने उसके
हाथ को जला िदया था।
भ ु ने इसे कै से इतनी देर से पकड़ा हआ था?
िशव त काल ही झुका और उसने कंगन उठा िलया। इस बार सावधानी से। उसक उं गिलयां
कम झुलसे हए उस िह से को पकड़े हई थ , िजस िह से म ओऽम का तीक िच बना हआ था।
वह पवते र क ओर मुड़ा और उसने कहा, ‘यह दुघटना नह थी।’
‘ या?’ च कते हए पवते र ने पछ
ू ा।
‘ या आपको परू ा िव ास है?’ सती ने पछ
ू ा।
िशव ने सती क ओर देखा और उस कड़े को उठा िदया। सप वाला ओऽम प िदखाई दे
रहा था। सती ने एक गहरी सांस छोड़ी। पवते र, नंदी और वीरभ त काल ही उस कड़े को
देखने के िलए समीप चले गए।
‘नागा...,’ नंदी फुसफुसाया।
‘वही कमीना िजसने मे म सती पर आ मण िकया था,’ िशव ने गुराकर कहा, ‘वही
नागा िजसने मंदार पवत से वापस जाते समय हम लोग पर हमला िकया था। यह वही कमीना है,
कुितया का िप ला।’
‘उसे इसक क मत चुकानी पड़े गी, िशव,’ वीरभ ने कहा।
पवते र क ओर मुड़कर िशव ने कहा, ‘हम आज रात ही देविग र लौट चलगे। हम यु क
घोषणा करते ह।’
पवते र ने सहमित म िसर िहलाया।
मेलहू ा का यु ़ प रषद शांित से बैठा हआ था। वे मंदार म शहीद होने वाल के स मान म पांच
िमनट का मौन धारण कर रहे थे। पवते र और उसके प चीस सेनापित स ाट द क दािहनी
ओर बैठे हए थे। द के बाई ं ओर नीलकंठ, कनखला के नेत ृ व म शासिनक ा ण एवं पं ह
ांत के रा यपाल बैठे हए थे।
‘प रषद का िनणय िदया जा चुका है,’ द ने कायवाही ारं भ करते हए कहा, ‘
िक हम कब आ मण कर?’
यह है
‘अिधक से अिधक हम एक महीने का समय लगेगा जब हम यु के िलए याण करगे,
महाराज,’ पवते र ने कहा, ‘आप तो जानते ही ह िक मेलहू ा एवं व ीप के म य कोई सड़क
माग नह है। हमारी सेना को सघन एवं अभे जगल से होकर गुजरना होगा। इस कार यिद हम
एक महीने म भी याण करते ह तो व ीप म हम तीन महीने से पहले नह पहंच सकते। इसिलए
समय ही इसका सार है।’
‘तो िफर तैयारी ारं भ कर दी जाए।’
‘महाराज,’ कनखला ने ि य के यु क पुकार म ा ण के तक के वर को जोड़ते
हए कहा, ‘ या म दूसरा उपाय सुझा सकती हं?’
‘दूसरा उपाय?’ चिकत द ने पछ
ू ा।
‘कृपया, मुझे गलत मत समिझए,’ कनखला ने कहा, ‘म मंदार क घटना पर स पण
ू
सा ा य के ोध को समझती हं। िकंतु हम अपराधकताओं से ितशोध लेना चाहते ह, न िक
सम त व ीप वािसय से। या हम इसका यास कर सकते ह िक इससे पहले िक यु
तलवार उठे , पहले हमारा काम छुरी से चल जाए?’
क
‘िजस माग का आप सुझाव दे रह ह, वह कायर वाला है, कनखला,’ पवते र ने कहा।
‘नह पवते र, म ऐसा कुछ सुझाव नह दे रही िक हम कायर क भांित बैठे रह और कुछ
न कर,’ कनखला ने िवन ता से कहा, ‘म ऐसे उपाय का सुझाव दे रही हं िजससे संभव है िक
हम अपने सैिनक के एवं अ य िनद ष के लह बहाए िबना ही अपना ितशोध परू ा कर सकते
ह।’
‘मेरे सैिनक सा ा य के िलए र
बहाने को तैयार ह, धानमं ी महोदया।’
‘म जानती हं िक वे तैयार ह,’ कनखला ने संयम रखते हए कहा, ‘और म यह भी जानती हं
िक आप भी मेलहू ा के िलए अपना र बहाने को तैयार बैठे ह। परं तु मेरे कहने का अथ यह है िक
हम स ाट िदलीप के पास अपना दूत भेज सकते ह, इस अनुरोध के साथ िक वे अपरािधय को
हमारे सुपुद कर द िज ह ने इस आ मण का अपराध िकया है। हम यह चेतावनी भी दे सकते ह
िक यिद वे ऐसा नह करते ह तो हम अपनी परू ी शि के साथ आ मण कर दगे।’
उसक आंख अधीरता म तरे र रही थ , पवते र ने कहा, ‘उससे अनुरोध कर? और वह य
सुनेगा? दशक से व ीप वासी अपनी अधम गितिविधयां करके हमसे बचते रहे ह य िक उ ह
लगता है िक हम म यु करने क औकात नह है। और यिद हम मंदार पवत जैसे उप वी काय के
बाद भी इस ‘छोटी छुरी वाली युि ’ क बात करगे तो उ ह परू ा िव ास हो जाएगा िक वे कभी भी
हम पर आ मण कर सकते ह और हम उनका यु र नह दगे।’
‘म इससे असहमत हं, पवते र,’ कनखला ने कहा, ‘उ ह ने ासदका रय से आ मण
कराए य िक वे डरते ह। इस बात से डरते ह िक वे हमसे आमना-सामना कर मुकाबला नह कर
सकते ह। वे डरते ह िक वे हमारी े तर तकनीक एवं यु के उपकरण से हमसे जीत नह
सकते ह। म केवल उस िवचार से सहमत होकर कह रही हं, जो भु िशव ने तब कहा था जब वे
यहां आए थे। उनसे लड़ने से पवू या हम उनसे बातचीत नह कर सकते ह? यह एक ऐसा
अवसर है िजससे संभव है िक वे इस बात को वीकार कर ल िक उनके समाज म कुछ ऐसे वग ह
जो ासदी फै लाते रहते ह। यिद वे उ ह हमारे सुपुद कर देते ह, तो हम एक साथ अि त व म रहने
के उपाय भी ढूंढ़ सकते ह।’
‘म नह मानता िक िशव अब उस तरह सोचते ह,’ पवते र ने नीलकंठ क ओर इशारा
करते हए कहा, ‘वे भी ितशोध लेना चाहते ह।’
िशव चुप बैठा हआ था। उसका मुख भाव िवहीन था। केवल उसक आंख म एक अजीब
चमक थी, जो उसके अंदर छुपे गु से को िदखा रही थी।
‘ भु,’ कनखला ने अपने हाथ जोड़कर नम ते करते हए िशव क ओर देखकर कहा, ‘मुझे
आशा है िक कम से कम आप मेरी बात अव य समझगे जो म कह रही हं। यहां तक िक यिद
बहृ पित भी होते तो यही चाहते िक जब तक यह संभव है तब तक िहंसा से दूर ही रहा जाए।’
िजस कार चंड अि न पर मस
ू लाधर वषा का असर होता है, ठीक उसी कार इस अंितम
वा य ने िशव पर असर िकया था। वह कनखला क ओर मुड़ा और उसने उसक आंख म गहराई
से देखा। उसके बाद उसने द क ओर मुड़कर कहा, ‘महाराज, संभवत: जो कनखला कह रही
ह, वह सही है। संभवत: हम उ ह ायि त करने का अवसर देने के िलए एक दूत को व ीप
भेज सकते ह। यिद हम िनद ष क ह या से बच सकते ह तो इससे मा हमारा ही भला होगा।
हालांिक मेरा सुझाव है िक इसके बाद भी हम यु क तैयारी ारं भ अव य कर द। असल म हम
इस संभावना के िलए तैयार रहना चािहए िक यिद चं वंशी हमारे ताव को अ वीकार करते ह
तो हम पवू से ही तैयार रह।’
‘महादेव ने वचन बोल िदए ह,’ द ने कहा, ‘म तािवत करता हं िक यही यु प रषद
का िनणय है। जो इसके प म ह, वे अपने हाथ ऊपर कर।’
उस क म सारे हाथ ऊपर उठ गए। सांचा बना िदया गया था। शांित का एक यास िकया
जाएगा। यिद वह सफल नह होता है, तो मेलहू ावासी यु छे ड़ दगे।
‘म एक बार पुन: असफल रहा, भ ,’ िशव रो पड़ा था, ‘िजसको आव यकता हो म उसक सुर ा
नह कर सकता।’
िशव अपने महल के आंगन के िनजी े म वीरभ के पास बैठा हआ था। अ यिधक िचंितत
सती ने वीरभ को आमंि त िकया था तािक शोक संत िशव को वापस वतमान क सचाई म
लाया जा सके। िशव ने एक आवरण ओढ़ िलया था। वे बोल नह रहे थे। रो नह रहे थे। सती ने
आशा क थी िक जहां वह असफल रही, वहां उनके बचपन के िम सफल हो सकते थे।
‘आप वयं को दोष कैसे दे सकते ह, िशव?’ वीरभ ने िचलम अपने िम को देते हए पछ
ू ा,
‘यह आपका दोष कैसे हो सकता है?’
िशव ने िचलम उठा िलया और एक गहरा कश िलया। गांजा उसके शरीर म अंदर फै ल गया,
लेिकन उसने कुछ सहायता नह क । पीड़ा कुछ अिधक ही मम पश थी। िशव ने अ िच से नथुने
फुलाकर िचलम को एक ओर फक िदया। य ही उसक आंख म आंसुओ ं क बाढ़ आई तो उसने
आसमान क ओर देखा और सौगंध ली, ‘म आपके िलए ितशोध लंग
ू ा, मेरे भाई। चाहे वह मेरा
अंितम काय ही य न हो। चाहे मुझे बचे हए जीवन का हर ण इसम िबताना पड़े । चाहे मुझे बारबार इस जगत म आना पड़े । म आपके िलए ितशोध लंग
ू ा!’
िचंितत मुख से वीरभ ने सती क ओर मुड़कर देखा जो कुछ दूरी पर बैठी हई थी। सती
उठकर खड़ी हो गई और उनक ओर चलने लगी। वह िशव के पास आई और उनक संत आ मा
को सां वना देने के उ े य से अपने थके हए िसर को उनके व थल पर रखकर उससे िलपट
गई। सती को तब आ य हआ जब िशव ने पवू क भांित अपनी बांह उठाकर उसे जकड़ा नह । वह
िबना िहले-डुले बैठे रहे । क- ककर गहरी सांसे लेते रहे ।
‘ भु,’ चिकत क ने सावधान होते हए पुकार कर कहा। वैसा ही चौबीस अ य सेनापितय ने भी
िकया। स मान देने के िलए य िक यु क रणनीित बनाने वाले क म नीलकंठ के आगमन
क घोषणा हो चुक थी।
पवते र धीरे से उठ खड़ा हआ। वह बहत ही सहानुभिू तपवू क बोला य िक उसे पता था िक
िशव अभी भी बहृ पित क उस भयानक ह या क पीड़ा का अनुभव कर रहा था, ‘आप कैसे ह,
िशव?’
‘म ठीक हं, ध यवाद।’
‘हम लोग यु ़ क रणनीित पर िवचार-िवमश कर रहे थे।’
‘म जानता हं,’ िशव ने कहा, ‘म सोच रहा था िक म भी इसम शािमल हो जाऊं।’
‘िन संदेह,’ पवते र ने अपनी कुस को एक ओर करते हए कहा।
‘सबसे मह वपण
ू सम या जो हमारे सामने है,’ पवते र ने िशव को उस समय तक क गई
योजना के बारे म बताने का यास करते हए कहा, ‘वह है मेलहू ा एवं व ीप के म य प रवहन
संपक।’
‘कोई संपक नह है, या यह सही है?’
‘िब कुल सही है,’ पवते र ने उ र िदया, ‘चं वंिशय ने सौ वष पहले हमारे हाथ परािजत
होने के बाद यह ‘अंग-भंग करने क रणनीित’ अपनाई थी। उ ह ने मेलहू ा एवं व ीप के म य
अि त व म रही सम त आधारभत
ू संरचनाओं को न कर िदया था। उ ह ने अपने सीमांत के
नगर क जनसं या भी कम कर दी और उ ह अंदर क ओर बसा िदया था। कोई ऐसी नदी नह
है जो हमारे े से उनके े तक जाती है। सं ेप म हम यह कह सकते ह िक हमारे पास
वतमान म ऐसा कोई तरीका नह बचा है, िजससे िक हम अपने िवशालकाय, े तर तकनीक
वाले यु के यं को व ीप क सीमाओं तक लेकर जा सकते ह।’
‘यही उनका उ े य भी रहा होगा,’ िशव ने कहा, ‘आपक े ता आपक तकनीक है।
उनक े ता उनक सं या है। उ ह ने आपक शि को िन फल कर िदया है।’
‘यथाथत:। और यिद हमारे यु के यं इस योजना से िनकाल िदए जाते ह तो हमारे एक
लाख सैिनक उनके दस लाख सैिनक से जला लािवत हो जाते ह।’
‘उनके पास दस लाख क जनसं या वाली सेना है?’ िशव ने उ सुकता से पछ
ू ा।
‘जी हां, भु,’ क ने कहा, ‘हम परू ी तरह से िनि त नह ह, िकंतु यह हमारा अनुमान है।
हालांिक हमारा यह भी अनुमान है िक िनयिमत सेना लगभग एक लाख क ही होगी। शेष
अंशकािलक, अिनयिमत सैिनक ह गे। जैसे िक छोटे यापारी, कारीगर, कृषक और ऐसे अ य
लोग िजनका अिधक भाव न हो। िज ह जबरन भत िकया गया है और तोप के गोल के िलए
चारे क तरह योग म लाया जाता है।’
‘यह तो घण
ृ ा पद है,’ पवते र ने कहा, ‘ ि य के काय के िलए शू एवं वै य क जान
जोिखम म डालना, अ यंत ही घण
ृ ा पद है। असल म उनके ि य का कोई मान नह है।’
िशव ने पवते र क ओर देखा और सहमित म िसर िहलाते हए पछ
ू ा, ‘ या हम अपने यं
के पुज खोलकर व ीप क सीमा म ले जाकर पुन: एकि त नह कर सकते ह।’
‘हां, हम कर सकते ह,’ पवते र ने कहा, ‘िकंतु यह तकनीक प से मा कुछ यं के
साथ ही हो सकता है। हमारे जो सबसे िव वंसक यं ह, िजनसे हम उन पर भारी पड़ते ह, हमारी
लंबी दूरी तक मार करने वाले िशला ेपक यं को कारखाने से बाहर एकि त नह िकया जा
सकता है।’
‘लंबी दूरी तक मार करने वाले िशला
ेपक यं ?’
‘हां,’ पवते र ने उ र िदया, ‘यह िवशालकाय प थर एवं दहकते हए आग के गोल को
एक िकलोमीटर क दूरी तक फक सकता है। यिद इसका योग भावी ढं ग से िकया जाता है तो
यह दु मन क सेना को अ यिधक दुबल एवं लगभग न कर देती है तािक उसके बाद
अ ारोही एवं पैदल सेना अपना काम सफलतापवू क कर सक। देखा जाए तो पवू म जो काम
हाथी करते थे, यह लगभग उसी कार का काम करता है।’
‘तो िफर हम भी हाथी का योग य नह कर सकते?’
‘उनके वभाव के बारे म पवू म अनुमान लगाना किठन होता है। चाहे आप उ ह िकतना भी
िश ण द, यु क उस िवभीिषका के दौरान सेना अ सर उन पर से अपना िनयं ण खो बैठती
है। असल म िपछले यु म व ीप वािसय को उनके हािथय ने ही संहार क ओर अ सर कर
िदया था।’
‘ या सचमुच म?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘हां,’ पवते र ने उ र िदया, ‘महावत के ऊपर गोलीबारी एवं यु के नगाड़ से अ यिधक
शोर मचाने क हमारी योजना काम कर गई थी। चं वंिशय के हाथी घबरा गए और वे िव वंस
करते हए िवशेषकर अंशकािलक सैिनक क पंि य को तोड़ते हए उनक ही सेना म घुस पड़े
थे। उसके बाद बस आ मण कर उ ह समा कर देना ही शेष बचा था।’
‘तो िफर हाथी नह ।’
‘सवथा नह ,’ पवते र ने कहा।
‘तब इसका अथ यह हआ िक हम अपने साथ कुछ ऐसा लेकर जाना होगा और जो उनके
अंशकािलक सैिनक को परू ी तरह से नरम कर सके तािक सं या क ये ता को िन फल
िकया जा सके।’
पवते र ने सहमत होकर िसर िहलाया। िशव ने िखड़क से बाहर दूर अपनी ि दौड़ाई,
जहां ात:कालीन खी हवा प म फड़फड़ाहट उ प न कर रही थी। वे प े हरे थे। िशव ने गहरी
ि से उ ह घरू ा। वे हरे ही रहे ।
‘म समझ गया,’ िशव ने अचानक ही पवते र क ओर देखकर कहा। उसका चेहरा नए
िवचार से दीि मान हो उठा था, ‘हम लोग बाण का योग य नह करते?’
‘बाण?’ चिकत होकर पवते र ने पछ
ू ा।
धनुिव ा अिधकतर कुलीन ि य के म य ं यु करने वाली यु कला थी। हालांिक
अब यह मा कुलीन ि य के िलए एक दशन क कला बनकर रह गई थी य िक एक-दूसरे
से ं यु मा समान चयिनत जाित-वग के ि य म ही हो सकता था। धनुधर को अपनी
असाधारण द ता के कारण अ यिधक स मान ा था िकंतु वे यु म िनणायक नह थे। एक
समय था, जब धनुष एवं बाण जनसंहार के अ के प म यु क रणनीित म मह वपण
ू होते थे।
वह समय दैवी अ
का था। अिधकतर ऐसे अ सामा यत: बाण ारा छोड़े जाते थे। िफर कई
हजार साल पहले भगवान
ने दैवी अ
पर ितबंध लगा िदया तो बड़े तर के यु म
तीरं दाजी दल क भािवता ◌ािवता अ यिधक कम हो गई।
‘यह उनक सं या मक े ता को कैसे कम कर सकता है, भु,’ क ने कहा, ‘यहां
तक िक सबसे द धनुषधारी को भी कम से कम पांच सेकड ल य साधने, बाण को चलाने और
श ु को मारने म लग जाता है। हमारे पास मा एक सौ ऐसे ि य ह जो वण तर के धनुधर ह।
शेष बाण चला तो सकते ह, िकंतु उन पर िव ास नह िकया जा सकता है। इस कार हम एक
िमनट म एक हजार दो सौ श ुओ ं से अिधक को नह मार सकते। यह चं वंिशय के िव
यु
म अव य ही पया नह हो सकता है।’
‘म बाण को एक के सामने एक के चलाकर यु करने क बात नह कर रहा,’ िशव ने
कहा, ‘म कह रहा हं िक इनका योग श ुओ ं को नरम करने म जनसंहार के अ के प म
िकया जा सकता है।’
अपने सुनने वाल के ना समझ पाने वाले भाव पर िबना यान िदए ही िशव कहना जारी
रखा, ‘मुझे इसक या या करने दीिजए। मान लीिजए हम िनचले चयिनत जाित-वग के ि य
के धनुषधा रय का एक दल तैयार करते ह।’
‘िकंतु, उनके ल य अ छे नह ह गे,’ क ने कहा।
‘इससे कोई अंतर नह पड़ता है। मान लीिजए िक हमारे पास पांच हजार ऐसे धनुषधारी ह।
मान लीिजए िक हम उ ह इस कार िशि त करते ह िक वे मा मार कर सकने वाली दूरी सही
कर लेते ह। मान लीिजए िक उनका काम चं वंिशय क सेना क ओर िबना ल य के बाण छोड़ने
मा का है। यिद उ ह ल य साधने क आव यकता नह है, तो वे और भी अिधक गित से बाण
छोड़ने म स म हो जाएं गे। संभवत: येक एक-दो सेकड म एक बाण।’
पवते र ने अपनी आंख संकुिचत कर ल
य िक इस िवचार क मह ा का अनुमान उसे हो
गया था। बाक के सेनापित अभी भी अपने िवचार को समझ क ि थित म लाने के यास म थे।
‘इस बारे म सोिचए,’ िशव ने कहा, ‘ येक दो सेकड म चं वंिशय के ऊपर पांच हजार
बाण क विृ होगी। मान लीिजए हम यह आ मण दस िमनट तक िनरं तर करते रहते ह।
लगभग िनरं तर बाण क इस एक विृ को। इन बाण का भाव भी लगभग वही होगा जैसा
िपछले यु म हािथय का हआ था।’
‘अित उ म!’ क उ ेजना से उछल पड़ा।
‘और संभवत:,’ पवते र ने कहा, ‘यिद ल य से कोई अंतर नह पड़ता है तो हम उ ह इस
कार िशि त कर सकते ह िक वे पीठ के बल लेटकर पांव पर धनुष रख सकते ह और उसक
डोरी को अपनी गदन तक ख चकर उसे छोड़ सकते ह। जब तक िक उनके पांव उस िदशा म
ह गे, यह काम करे गा।’
‘अित उ म,’ िशव ने उ ेजना से कहा, ‘ य िक तब धनुष बड़े आकार के हो सकते ह और
हम लंबी दूरी तक मार कर सकते ह।’
‘और बाण बड़े और मोटे हो सकते ह, लगभग भाले क तरह,’ पवते र ने कहना जारी
रखा, ‘इतने शि शाली िक चमड़े और लकड़ी से बनी ढाल को भी छे द कर सक। मा वही
सैिनक इससे सुरि त रह सकगे जो उनक िनयिमत सेना के सैिनक ह गे और िजनके पास लोहे
क ढाल ह गी।’
‘ या अब हमारे पास उनका उ र है?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘हां, अब उ र है,’ पवते र ने एक मु कान के साथ कहा। वह क क ओर मुड़ा, ‘इस दल
क थापना करो। मुझ दो स ाह के अंदर पांच हजार ऐसे सैिनक चािहए।’
‘यह दल तैयार रहे गा, भु,’ क ने कहा।
‘आप या बात करना चाहते ह, िशव?’ पवते र ने धातु िव ान के कारखाने म वेश करते हए
पछ
ू ा। िशव के अनुरोध के अनुसार उसके साथ क एवं सनिजत भी थे। क बड़े अनमने ढं ग से
धनुषधारी दल को छोड़कर आया था, िजसे वह िपछले एक स ाह से िश ण दे रहा था। हालांिक
वह नीलकंठ के एक और अित सुंदर िवचार को सुनने का उ सुक था। उसे िनराशा नह हई।
‘म सोच रहा था,’ िशव ने कहा, ‘हम अभी भी दीवार को व त कर सकने वाले उस यं के
समान ही कोई एक यं चािहए, जो उनक सेना के क को तोड़ सके। वह क जहां उनके
सेनानायक अपने िनयिमत सैिनक को रखगे। जब तक वे होते ह, हमारी िवजय िनि त नह
कही जा सकती है।’
‘िब कुल सही,’ पवते र ने कहा, ‘और हम इस बात को मान कर चलना होगा िक ये
सैिनक इतने अनुशािसत ह गे िक वे अपनी बनावट से िवलग नह ह गे चाहे बाण क िकतनी भी
वषा हो जाए।’
‘िब कुल सही,’ िशव ने कहा, ‘और हम उस व त करने वाले यं को नह ले जा सकते।’
‘नह , हम नह ले जा सकते, भु,’ क ने कहा।
‘यिद हम ऐसी दीवार को व त करने वाले मानवीय यं का िनमाण कर तो कैसा रहे गा?’
‘बताइए,’ पवते र अब धीरे -धीरे यान से बात सुनने लगा था।
‘मान लीिजए हम हर ओर से बीस आदिमय क सं या वाली एक वगाकार संरचना बनाएं ,’
िशव ने कहा, ‘मान लीिजए िक इनम से येक यि अपनी ढाल से अपने शरीर के बाएं आधे
िह से क आड़ ल और आधे िह से से अपनी बाई ं ओर खड़े सैिनक को दािहने िह से से आड़
दान कर।’
‘यह उ ह ढाल के म य से भाले को आगे क ओर चलाने म सहायता करे गा,’ पवते र ने
कहा।
‘िब कुल सही,’ िशव ने कहा, ‘और पीछे के सैिनक अपनी ढाल को ढ कन क तरह
योग कर अपनी आड़ के साथ-साथ अपने सामने के सैिनक को भी आड़ दान करगे। यह
बनावट एक कछुए क तरह क होगी। िकसी आ मण से बचाव करने के साथ-साथ वे ढाल
कछुए क कवच क भांित ही अभे हो जाएं ग , िकंतु हमारे भाले श ुओ ं को भेदने के िलए
उपयोगी ह गे।’
‘और हम अपने सबसे अिधक शि शाली एवं अनुभवी सैिनक को सामने रखगे तािक
हमारे कछुए का नेत ृ व सु ढ़ रहे ,’ सनिजत ने कहा।
‘नह ,’ पवते र ने कहा, ‘सबसे अनुभवी सैिनक को पीछे और बगल म रखना होगा
तािक नवयुवा सैिनक यिद घबरा जाते ह तो भी हमारा यह वग िकसी भी हालत म टूटकर िबखरे
नह । यह परू ी क परू ी बनावट तभी भावी होगी जब परू ा का परू ा दल हमेशा एकजुट रहता है।’
‘िब कुल सही,’ िशव ने पवते र क इस परख पर मु कान के साथ कहा, ‘और यिद वे
एक सामा य भाले के थान पर इसे लेकर चल तो?’
िशव ने एक अ ऊपर उठाकर िदखाया िजसक परे खा उसने बनाई थी और सेना के
धातु िव ान कारखाने के दल ने िजसे तैयार िकया था। पवते र उसक साधारण झलक पर ही
आ य म पड़ गया। उसका आकार भाले क तरह का ही था। िकंतु उसके मुख को चौड़ा कर िदया
गया था। उस चौड़े मुख से दो और भाले उसक बाई ं और दाई ं ओर जोड़ िदए गए थे। श ु पर इससे
वार करने का अथ था िक एक श ु पर एक साथ तीन भाल से वार करना।
‘यह तो अ यंत ही संुदर है, िशव,’ पवते र ने आ य से कहा, ‘आप इसे या पुकारते ह?’
‘म इसे ि शल
ू कहता हं।’
‘ सनिजत,’ पवते र ने कहा, ‘तुम इस सै यदल को थािपत करने के भारी हो। म
चाहता हं जब हम याण कर तब तक कछुआ संरचना वाले कम से कम पांच दल तैयार हो जाने
चािहएं । म इसके िलए तु ह दो हजार सैिनक दान करता हं।’
‘यह काम हो जाएगा, सेनानायक,’ सनिजत ने सैिनक अिभवादन के साथ कहा।
पवते र ने िशव को आदर से टकटक लगाकर देखा। वह सोच रहा था िक िशव क राय
वा तव म अ ुत थी। और इस त य के बावजदू िक वह यि गत पीड़ा म था, ऐसे िवचार के
साथ काय करना सचमुच ही शंसनीय था।
अ य लोग जो िशव के बारे म ऐसा कहते ह, संभवत: वे सही ह । संभवत: यही वह यि
भु ी राम के अधरू े काय को परू ा करे गा। पवते र ने आशा क िक िशव उसे गलत िस नह
करे गा।
िशव राजशाही सभाक म द एवं पवते र के साथ बैठा हआ था। दो िस अ र नेमी
सेनापित िव ु माली एवं माया ेिनक कुछ दूरी पर बैठे हए थे। एक मांसल एवं कभी गव ला होने
वाला यि िशव के सम खड़ा था। उसके हाथ जुड़े हए थे। वह आ ह कर रहा था।
‘मुझे एक अवसर दीिजए, भु,’ पकु ने कहा, ‘यिद िनयम म प रवतन कर िदया गया है,
तो हम यु य नह कर सकते?’
पकु वही यि था, िजसके अंधे िपता ने कोट ार म िशव को आशीवाद िदया था। जब एक
बीमारी ने उसके िपता को अंधा कर िदया था और उसक प नी और होने वाले ब चे के ाण हरण
कर िलए थे, उससे पहले वह मेलहू ा क सेना म सेनापित था। उसे अपने िपता के साथ ही िवकम
घोिषत कर िदया गया था।
‘पहली बात, तु हारे िपता कैसे ह?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘वे अ छे ह, भु। यिद म इस धमयु म आपका सहयोग नह कर पाऊंगा तो मेरे िपता मेरा
प र याग कर दगे।’
िशव न ता से मु कुराया। वह भी िव ास करने लगा था िक यह धमयु ही था, एक पिव
यु , ‘लेिकन पकु, यिद तु ह कुछ हो जाता है तो उनक देखभाल कौन करे गा?’
‘मेलहू ा उनक देखभाल करे गा, भु। िकंतु यिद म आपके साथ यु पर नह जाता हं तो वे
ितिदन हजार बार मरगे। म िकस कार का पु कहलाऊंगा यिद म अपने िपता के स मान म
यु भी नह कर सकता? मेरे सा ा य के स मान म?’
ऐसा तीत हो रहा था िक िशव अभी भी परू ी तरह से िनि ंत नह था। वह इस वातालाप से
दूसर क असुिवधा को महसस
ू कर रहा था। उसने देख िलया था िक िवकम िविध समा हो जाने
के बाद भी जब पकु ने वेश िकया था तो िकसी ने भी उसे पश नह िकया था।
‘ भु, चं वंिशय क सं या हमसे बहत ही अिधक है,’ पकु ने कहना जारी रखा, ‘हमारे
पास िजतने भी िशि त यो ा ह, उनक हम आव यकता है। कम से कम पांच हजार ऐसे सैिनक
ह, जो यु नह कर सकते य िक उ ह िवकम घोिषत िकया जा चुका है। म उन सबको इक ा
कर सकता हं। हम लोग अपने सा ा य के िलए मरने को इ छुक एवं अधीर ह।’
‘म नह चाहता िक तुम मेलहू ा के िलए म ृ यु को ा हो, हे वीर पकु,’ िशव ने कहा।
पकु का चेहरा त काल ही उतर गया। उसने सोचा िक वह कोट ार अपने घर वापस जाने
ही वाला था।
‘हालांिक,’ िशव ने कहना जारी रखा, ‘मुझे यह अ छा लगेगा यिद तुम मेलहू ा के िलए मारे
जाते हो।’
पकु ने िसर उठाकर देखा।
‘अपने सै यदल क थापना करो,’ िशव ने कहा। द क ओर मुड़कर उसने कहना जारी
रखा, ‘हम इसे िवकम सै यदल पुकारगे।’
‘हमारी सेना म िवकम कैसे हो सकते ह? यह बहत ही बेहदी बात होगी!’ िव ु माली ने
घरू ा।
ोध म
िव ु माली एवं माया ेिनक अपने िनजी यायामशाला म धनुष िव ा का िनयिमत अ यास
करने के िलए जुटे हए थे।
‘िव .ु .., माया ेिनक ने उसे ेम से शांत रहने के िलए कहना चाहा।
‘मुझे “िव ”ु मत कहो, माया। तुम जानते हो िक यह गलत है।’
सामा यत: शांत िच वाले माया ेिनक ने िसर िहलाकर सहमित कट क और अपने
ोधी िम क कुंठा को बाहर िनकलने िदया।
‘यिद म यु म मारा जाता हं तो म अपने पवू ज का सामना कैसे क ं गा?’ िव ु माली ने
पछ
ू ा, ‘म उ ह या उ र दे पाऊंगा, यिद वे पछ
ू ते ह िक मने कैसे उन लोग को यु करने िदया
जो ि य नह थे, जबिक यु करना मा
ि य का धम है? दुबल क सुर ा करना हमारा
कत य है। हम दुबल को हमारे िलए यु करने नह देना चािहए।’
‘िव ,ु म नह मानता िक पकु दुबल है। या तुम िपछले चं वंशी यु म उसक वीरता को
भल
ू चुके हो?’
‘वह िवकम है! यह उसे दुबल बना देता है!’
‘ भु िशव ने आ ा दे दी है िक अब कोई भी िवकम नह रह गया है।’
‘मुझे नह लगता िक नीलकंठ सही म अस य से स य को जानते ह!’
‘िव ु ऽ ऽ !’ माया ेिनक िच ला पड़ा।
िव ु माली इस अचानक के कोप पर सहम गया।
‘यिद नीलकंठ कहते ह िक यह उिचत है,’ माया ेिनक ने कहना जारी रखा।
‘तो यह उिचत है!’
अ याय - 22
बरु ाइय का सा ा य
‘य ह सैिनक बनावट है, जो मेरे िवचार से यु
के िलए आदश है,’ पवते र ने कहा।
क एवं पवते र सेनानायक के िनजी क म बैठे हए थे। िजस बनावट क तैयारी क गई
थी वह धनुष के आकार जैसी थी। एक बहत ही वहृ द अ -व ृ ीय आकार म सैिनक को मब
िकया जाएगा। धीमे सै यदल जैसे कछुए को इसके क म रखा जाएगा। बगल के छोर पर
ु तगित से चलने वाले सै यदल को रखा जाएगा जैसे ह के अ को लेकर चलने वाली पैदल
सेना। अ ारोही दल दोन छोर के अंत म रहगे तािक जहां भी उनक आव यकता हो उनक
िनयुि हो सकेगी अ यथा वे धनुष के दोन छोर से सुर ा दान करते रहगे। धनुष क बनावट
अपे ाकृत छोटी सेना के िलए आदश थी। यह शि का याग िकए िबना ही लचीलापन दान
करती थी।
‘यह िब कुल ही आदश है, भु,’ क ने कहा, ‘इसके बारे म महादेव का या कहना है?’
‘िशव सोचते ह िक यह हमारी आव यकता के अनु प है।’
जब पवते र ने नीलकंठ को नाम से पुकारा तो क को िब कुल भी अ छा नह लगा।
िकंतु अपने सेनानायक को सही करने वाला वह कौन होता था?
‘म सहमत हं, भु।’
‘म बाएं िकनारे से इसका नेत ृ व क ं गा,’ पवते र ने कहा, ‘और तुम दािहने िकनारे से।
इसी कारण से मुझे तु हारे अिभमत क आव यकता है।’
‘म, भु,’ अचंभे म पड़े क ने पछ
ू ा, ‘मने सोचा था िक महादेव दूसरे िकनारे से नेत ृ व
दान करगे।’
‘िशव? नह , म नह मानता वे यह यु करगे, क।’
क ने आ य से ऊपर क ओर देखा, िकंतु चुप रहा।
पवते र को ऐसा तीत हआ िक उसे इसका िववरण देने क आव यकता थी और इसिलए
उसने कहना ारं भ िकया, ‘इसम कोई संदेह नह है िक वे एक अ छे एवं यो य यि ह। िकंतु
उनके मन म जो सव च इ छा है वह है ितशोध क न िक मेलहू ा के िलए याय क । हम लोग
उनके इस ितशोध को परू ा करने म उनक सहायता करगे जब हम उस नागा को उनके चरण
म डाल दगे। मा एक नागा के िलए वे अपने जीवन का दाव इस यु म नह लगाएं गे।’
क क आंख नीचे झुक हई थ । वह नह चाहता था िक सेनानायक उसक आंख को पढ़
ल िजसम इस बात से असहमित प िदख रही थी।
‘सच तो यह है िक,’ पवते र ने कहा, ‘हम यह यु उन पर नह थोप सकते य िक
उनका गला नीला है। म उनका अ यिधक आदर करता हं। िकंतु म यु म उनके लड़ने क आशा
नह करता। उनके िलए ऐसा करने का या कारण हो सकता है?’
क ने कुछ पल के िलए िसर उठाकर पवते र को देखा। उसने सोचा िक जो सबके िलए
इतना प था उसे सेनानायक वीकार करने के िलए य तैयार नह थे? या वे भु ी राम
म इतने अनुर थे िक वे इस बात पर िव ास करने को तैयार नह थे िक कोई अ य मुि दाता
धरती पर आ पहंचे थे? या वे सचमुच म ही इस बात को मानते ह िक भु ी राम केवल एक ही
हो सकते थे? या भु ी राम ने वयं नह कहा िक उनका थान कोई अ य ले सकता है और
मा धम ही एक ऐसा है, िजसका थान कोई अ य नह ले सकता?
‘इतना ही नह ,’ पवते र ने कहना जारी रखा, ‘वे अब िववािहत ह। प है िक वे
ेमास ह। वे इस बात का जोिखम नह ले सकते िक सती पुन: शोक संत हो। उ ह ऐसा
करना भी नह चािहए? उनसे इस कार क मांग करना हमारे िलए अनुिचत है।’
क ने सोचा, हालांिक बोलने क उसक िह मत नह थी। ‘महादेव हमारे िलए य ु करगे,
सेनानायक। वे हमारी र ा के िलए य ु करगे। य ? य िक महादेव यही करते ह।’
क इस बात को नह जान रहा था िक पवते र अपने मन म भी इसी कार के सोच क
आशा कर रहा था। उसक भी यही इ छा थी िक िशव वयं महादेव बनकर चं वंिशय पर िवजय
ा करने म उनका नेत ृ व करगे। हालांिक पवते र ने अपने जीवन के लंबे अनुभव से जान
िलया था िक कई लोग ने भु ी राम के तर को छूने का यास िकया था िकंतु कोई भी अब
तक सफल नह हो पाया था। और अंतत: उसका म टूट ही गया था। इसी कार वह िशव से भी
एक अ य आशा के भंग होने क आशा म ही था। वह इस ि थित म नह रहना चाहता था िक यिद
िशव ने चं वंिशय से यु करने से मना कर िदया तो उसके पास कोई आपात योजना न हो।
यु प रषद शांित से बैठा हआ था जब द उस प को पढ़ रहा था जो व ीप से आया था, स ाट
िदलीप के दरबार से। द क िति या ने सब को पहले ही बता िदया था िक उस प म या
िलखा होना चािहए था। द ने अपनी आंख बंद कर ल , उसका मुख ोध से िबगड़ गया था,
उसक मु ी िभंची हई थी। उसने वह प कनखला को िदया और यं या मक मु कान के साथ
कहा, ‘पिढ़ए। इतने तेज वर म पिढ़ए िक परू ा िव चं वंिशय क इस घण
ृ ा से बीमार हो जाए।’
कनखला ने प लेने पहले अपनी भ ह को ितरछा िकया और वह प लेकर ती वर म
पढ़ने लगी, ‘स ाट द , सय
ू वंशी राजा, मेलहू ा के र क। कृपया मंदार पवत पर कायरतापण
ू
आ मण पर मेरी संवेदनाएं वीकार क िजए। शांिति य ा ण पर इस कार के संवेदना िवहीन
आ मण करने क कड़े से कड़े श द म िनंदा क जानी चािहए। हम इस बात पर सदमे म ह िक
भारतवष का कोई िनवासी इस िनचले तर का काय करे गा। इसी कारण, आ य एवं दुख के
साथ म यह आपका प पढ़ रहा हं। म आपको भरोसा िदलाना चाहता हं िक मेरा अथवा मेरे
िनयं ण म िकसी का इस कपटपण
ू आ मण से कोई लेना-देना नह है। इसिलए मुझे आपको
खेद के साथ सिू चत करना पड़ रहा है िक कोई ऐसा यि नह है, िजसे हम आपके सुपुद कर
सकते ह। मुझे आशा है िक आप इस प क िन कपटता को समझगे और कोई िनणय उतावलेपन
म नह लगे िजसका प रणाम आपके िलए खेदजनक होगा। म भरोसा िदलाना चाहता हं िक इस
उप व क िववेचना म हम हमारे सा ा य का परू ा समथन दगे। कृपया हम अव य बताइए िक हम
िकस कार इन अपरािधय को याय िदलाने म आपक सहायता कर सकते ह।’
कनखला ने वयं को िनयंि त करने के िलए एक गहरी सांस ली। िविश
प से
चं वंिशय के इस दोमुंही बात पर ोध उसके चेहरे को धो दे रहा था जो उसके पवू के कथन पर
खेद कट कर रहा था।
‘यह स ाट िदलीप ारा यि गत प से ह ता र िकया है,’ कनखला ने प के पाठ को
परू ा करते हए कहा।
‘स ाट िदलीप नह ,’ ु
द गुराया, ‘बुराइय के सा ा य का ासदकारी िदलीप!’
‘यु !’ प रषद से एक कृत वर गुंजायमान हआ।
द ने भक
ृ ु िट तने हए िशव को देखा िजसने सहमित म अितसू मता से िसर िहलाया।
‘यु ही है!’ द ने गजना क , ‘हम दो स ाह म याण करगे।’
वह कड़ा जीिवत हो उठा था। वह िशव को बौना बनाकर फूलकर एक बहत बड़े आकार का बन
चुका था। उसके िकनारे अ यिधक िवशाल वालाओं म िनगले जा चुके थे। वे िवशालकाय सप
िजसने ओऽम को व प दान िकया हआ था वे एक दूसरे से पथ
ृ क होकर सरकते हए िशव क
ओर बढ़ चले थे। जो म य म था उसने अपने बाएं वाले सप को िसर िहलाकर फुफकार कर कहा,
‘इसने तु हारे भाई को िनगल िलया और यह दूसरा बहत शी ही तु हारी प नी को िनगलेगा।’
बाएं और दाएं वाले सप ने भयावह तरीके से फुफकार लगाई।
िशव ने म य वाले सप क ओर उं गली िदखाते हए कहा, ‘यिद तुमने उसके बाल को भी
पश करने क िह मत क तो म तु हारी आ मा को चीरकर बाहर...’
‘लेिकन म...,’ िशव क चेतावनी को माने िबना ही सप ने कहना जारी रखा, ‘म तो वयं
क र ा कर रहा हं। म अपनी र ा तु हारे िलए कर रहा हं।’
िशव ने एक असहाय िनबल
ोध के साथ उसको देखा।
‘म तु ह िनगल जाऊंगा,’ उस सप ने अपना मुंह खोलकर उसे परू ा का परू ा िनगल जाने के
िलए तैयार होते हए कहा।
िशव क आंख अचानक ही खुल गई ं। वह पसीने से तर था। उसने अपने आसपास देखा। उसे
कुछ प िदखाई नह दे रहा था। कुछ अिधक ही अंधकार था। उसने सती को ढूंढ़ना चाहा यह
देखने के िलए वह सुरि त है अथवा नह । वह वहां नह थी। वह अ यंत ही व रत गित से उठ
बैठा। उसका दय सद था। उसने लगभग यह सोच िलया था िक वह सप उसके व न से
िनकलकर यथाथ म पांत रत हो चुका था।
‘िशव,’ उसक ओर देखते हए सती ने कहा।
वह िब तर के एक िकनारे पर बैठी हई थी। िजस छोटे सैिनक तंबू म वे सो रहे थे, उसम
कुिसय का आराम संभव नह था। यह तंबू िपछले एक महीने से उनका मणकारी घर बना हआ
था य िक मेलहू ा क सेना व ीप के िलए याण पर थी।
‘ या बात है, सती?’ िशव ने पछ
ू ा। उसक आंख उस धीमी रौशनी म यवि थत होने के
य न म थ । उसने उस अपराधी कड़े को अपने छोटे थैले म सरका िदया िजसे वह हाथ म
कसकर पकड़े हए था।
मने इसे कब बाहर िनकाला?
‘िशव,’ सती ने कहा। िपछले दो स ाह से वह इसके बारे म बात करना चाह रही थी। जब
उसे उस समाचार क पुि हई थी, लेिकन उसे वे अवसर के ण नह िमल पाए थे। उसने हमेशा
अपने आपको यह कहकर मना िलया था िक यह उतना मह वपण
ू समाचार नह था िक िजसे
कहकर वह अपने पित अनाव यक परे शान करे , िवशेषकर जब वे अपने जीवन के सबसे बुरे
समय का सामना कर रहे थे। िकंतु अब बहत देर हो चुक थी। उ ह यह समाचार उसी से िमलना
चािहए न िक िकसी और से। ऐसे समाचार सैिनक खेम म अिधक समय तक छुपे नह रह सकते
थे।
‘मुझे आपसे कुछ कहना है।’
‘हां,’ िशव ने कहा, य िप उसका व न अभी भी उसे खटक रहा था, ‘ या बात है?’
‘मुझे नह लगता िक म यु म लड़ाई कर पाऊंगी।’
‘ या? य ?’ िवि मत िशव ने पछ
ू ा। वह जानता था िक सती के श दकोश म कायरता
नामक श द नह था। िफर वह ऐसा य कह रही थी? और अभी य , जब सेना िपछले एक
महीने से बढ़ती हई मेलहू ा एवं व ीप को अलग करने वाले सघन वन म पहंच गई थी? वे पहले
से ही श ु के े म थे। अब वापस लौटना संभव नह था।
‘सती यह तु हारे जैसा यवहार नह है।’
‘ऊं ऽ ऽ िशव,’ शिमदा होती हई सती ने कहा। ऐसे संभाषण अित संकोची सय
ू वंिशय के िलए
हमेशा से किठन रहे ह।
‘मेरे पास इसका कारण है।’
‘कारण?’ िशव ने पछ
ू ा, ‘ या...’
जैसे िबजली क कड़क से सामने सब कुछ प
िशव को इसका कारण म समझ आया।
हो जाता है, ठीक उसी कार अचानक ही
‘हे भगवान! या तुम सच कह रही हो?’
‘हां,’ सती ने शम से लाल होते हए कहा।
‘पिव झील के नाम पर बताओ! या म िपता बनने वाला हं?’
िशव के मुख पर उस असीम आनंद को देखकर सती को एक दोषपण
ू टीस हई िक उसने
उ ह पहले य नह बताया।
‘अरे वाह!’ िशव ने िच लाकर सती को बांह म भरकर गोल-गोल घुमा िदया, ‘बहत लंबे
समय के बाद मने इतना सुंदर समाचार सुना है।’
सती मधुरता से मु कुराई और उसने िशव के थके हए, लेिकन ताकतवर कंधे पर अपना
िसर रख िदया।
‘हम लोग अपनी पु ी का नाम उस ी के नाम पर रखगे, िजसने तु ह दो महीने तक
अपने जीवन से भी अिधक संभालकर रखा, जब म तु हारे िकसी काम का नह था,’ िशव ने
कहा, ‘हम उसका नाम रखगे कृि का।’
सती ने आ य से उसे देखा। उसे यह िव ास नह था िक वह उ ह इससे भी अिधक ेम कर
सकती थी। लेिकन ऐसा ही हआ था। वह मु कुराई।
‘आप जानते ह िक वह पु भी हो सकता है।’
‘ना,’ िशव मु कुराया, ‘वह पु ी ही होगी। और म उसक सारी आदत िबगाड़ दंूगा।’
सती िदल खोलकर हंसी। िशव ने भी उसका उतना ही साथ िदया। िपछले दो महीन म यह
पहली फुि लत कर देने वाली हंसी थी। उसने सती को आिलंगनब कर िलया। उसे लगा िक
उसके शरीर से ऋणा मक ऊजाएं िनकलती चली जा रही हो।
‘म तुमसे बहत ेम करता हं, सती।’
‘म भी उतना ही ेम करती हं।’ सती ने ह के वर म कहा।
िशव उस तंबू का आवरण हटाकर बाहर िनकला, िजसम सती को आरामपवू क रखा गया था।
कृि का और आयुवती उसके साथ थे। प रचारक वग उसक येक आव यकता का यान रख
रहे थे। िशव अपने अज मे िशशु के वा य के बारे म कुछ अिधक ही िचंितत था। िपछले दो महीने
से व ीप क ओर याण करते समय वह सती के अ छे वा य के बारे म आयुवती से लगातार
पछ
ू ताछ करता रहा था।
सय
ू वंशी बड़ी वीरतापवू क लगभग तीन महीने से चल रहे थे। उनका माग आशा से अिधक
चुनौती भरा था। उस जंगल ने अपना मौिलक एवं ाकृितक वास भयानक ती ता से वापस पा
िलया था। हर मोड़ पर सेना को जंगली पशुओ ं एवं बीमा रय के आ मण का सामना करना पड़ा
था। अब तक दो हजार सैिनक क हािन हो चुक थी। और उनम से एक भी श ुओ ं के हाथ नह
हई थी। कई स ाह तक श
के हार एवं याण के प ात अंतत: सय
ू वंशी सेना को उनके
मागदशक ने चं वंशी सेना के सम ला खड़ा कर िदया था।
चं वंशी सेना एक यापक मैदानी भाग पर डे रा डाले हए थी, िजसका नाम था धमखेत।
उनका चुनाव चालाक भरा था। एक अ यिधक बड़े एवं सु यवि थत मैदान के कारण उ ह अपनी
दस लाख क सं या वाली ताकतवर सेना के िलए येक युि लगाने का अवसर िमल रहा था।
उनक सं यावाचक े ता क इस यु म अहं भिू मका रहे गी। सय
ू वंिशय क सेना ने कुछ दूरी
पर ती ा करने क सोची तािक चं वंिशय क सेना का धैय टूटे और वे ितकूल एवं
अलाभकारी े म उन पर आ मण कर द। िकंतु चं वंिशय ने ऐसा कुछ नह िकया और वे वह
अिडग रहे । अंतत: सय
ू वंिशय ने एक आसानी से र ा यो य घाटी क ओर थान कर िलया, जो
धमखेत के बहत िनकट थी।
िशव ने ऊपर खुले आसमान क ओर देखा। एक बाज राजशाही खेमे के ऊपर च कर
लगाता हआ उड़ रहा था, जबिक पांच कबत
ू र नीचे िबना डरे हए उड़ रहे थे। यह एक िविच संकेत
था। यिद उसके गुण कबीले का ओझा वहां होता तो वह अव य कहता िक यह यु करने के िलए
अ छा समय नह था य िक कबत
प से अ
अनुकूल प रि थितयां थ ।
ू र के िलए प
इसके बारे म मत सोचो। वैस े भी ये सब बकवास क बात ह।
ात:कालीन शु वायु को अपने अंदर गहरा ख चते हए उसने स ाट के तंबू क ओर ि
दौड़ाई तो देखा िक नंदी उसक ओर ही चलता हआ आ रहा था।
‘ या बात है, नंदी?’
‘म आपके तंबू क ओर ही आ रहा था, भु। स ाट ने आपक उपि थित क इ छा कट क
है। कुछ परे शान करने वाली बात का पता चला है।’
िशव एवं नंदी द के िच से बनाए गए उनके िनयु तंबू क ओर ती ता से बढ़ गए।
उ ह ने वेश िकया तो देखा िक द एवं पवते र एक िवचार-िवमश म त लीन थे। क,
माया ेिनक और पकु कुछ दूरी पर बैठे हए थे।
‘यह तो ासदी है,’ द ने कहा।
‘महाराज?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘ भु! मुझे स नता है िक आप यहां पधारे । हम एक पण
ू ासदी का सामना कर रहे ह।’
‘ऐसे श द का योग हम न ही कर तो अ छा है, महाराज,’ िशव ने कहा और पवते र क
ओर मुड़कर पछ
ू ा, ‘इसका अथ है िक आपका संदेह सही िनकला।’
‘हां,’ पवते र ने कहा, ‘हमारे गु चर अभी-अभी कुछ ही िमनट पहले पहंचे ह। चं वंिशय
के यु के िलए तैयार नह होने का कारण था। उ ह ने एक लाख सैिनक को एक व ृ के
आकार म हम घेरने के िलए दूसरे माग से थान करवा िदया है। वे हमारे े म कल तक पहंच
जाएं गे। हम लोग दोन ओर से िघर जाएं गे य िक सामने उनक मु य सेना होगी और पीछे से वे
एक लाख सैिनक हम पर आ मण करगे।’
‘हम दो सीमाओं पर एक साथ यु
कर?’
नह कर सकते, भु,’ द
ने कहा, ‘अब हम या
‘जो इस समाचार के साथ लौटे ह, वे या वीरभ के गु चर थे?’ िशव ने पछ
ू ा।
पवते र ने िसर िहलाकर सहमित कट क । िशव नंदी क ओर मुड़ा जो त काल ही बाहर
िनकल गया। कुछ ण के बाद ही वीरभ उसके सामने खड़ा था।
‘चं वंिशय क वह टुकड़ी िकस माग से आ रही है, भ ?’
‘पवू क खड़ी चढ़ाई वाले पवत क ओर से हमारी ओर। मुझे ऐसा तीत होता है िक उनक
मंशा उ र क ओर से पचास िकलोमीटर क दूरी से हमारी घाटी म वेश करने क है।’
‘जैसािक पवते र ने िनदश िदया था, या तुम अपने साथ मानिच कार को लेकर गए
थे?’
वीरभ ने सहमित म िसर िहलाया। उसके बाद उसने उस क म म य म जाकर मानिच
को िबछा िदया। िशव और पवते र उसके ऊपर झुककर उसका िनरी ण करने लगे। अपनी
उं गिलय से संकेत देते हए वीरभ ने कहा, ‘इस ओर से।’
िशव ने सहसा कुछ कहना ारं भ िकया जैसे िक उसे सय
ू वंशी खेमे के सुदूर उ र म र ा
यो य थल उस मानिच पर िमल गया था। उसने पवते र क ओर देखा। सेनानायक को भी
वही िवचार उभरा था।
‘िकतने यि
आप सोचते ह, पवते र?’
‘कहना किठन है। यह किठन होगा। िकंतु दरा र ा यो य तीत होता है। िफर भी एक
अ छी सं या के सैिनक दल क आव यकता होगी। कम से कम तीस हजार।’
‘लेिकन हम इतने आदिमय को छोड़ नह सकते। मेरा िनि त िवचार है िक चं वंिशय क
मु य सेना से दि ण क ओर से भी यु कल ही ारं भ होगा। उनके िलए यु करने का सबसे
उपयु समय वही होगा।’
पवते र ने कठोरता से िसर िहलाकर सहमित कट क । उसने सोचा िक मेलहू ावािसय को
पीछे हटना होगा और िकसी अ य अनुकूल प रि थितय वाले थल क ओर जाकर लड़ना होगा।
‘म सोचता हं िक पांच हजार सैिनक इस काम को कर लगे, भु।’
िशव और पवते र ने नह देखा था िक पकु मेज क ओर बढ़कर आ चुका था। वह उस दर
का परी ण कर रहा था िजसे िशव ने अभी-अभी संकेत कर िदखाया था।
‘इधर देिखए,’ पकु ने कहना जारी रखा तो िशव और पवते र ने गहरी ि
को देखा।
से मानिच
‘आगे बढ़ता हआ पवत बड़ी ती ता से संकुिचत होता गया है, जो आर-पार पचास मीटर से
अिधक नह होगा। इससे कोई मतलब नह है िक िकतनी बड़ी सेना है य िक येक धावा उस
दर म कुछ सौ आदिमय से अिधक का नह िकया जा सकता है।’
‘लेिकन पकु, एक लाख सैिनक वाली सेना से एक आ मण के बाद दूसरा आ मण
लगातार िकया जा सकता है,’ माया ेिनक ने कहा, ‘और खड़ी चढ़ाई वाली पहािड़य के होने से
आप ेपा का भी योग नह कर सकते। िवजय लगभग असंभव है।’
‘यह जीत के बारे म नह है,’ पकु ने कहा, ‘यह तो उ ह एक िदन तक रोके रखने क
बात है तािक हमारी मु य सेना यु कर सके।’
‘म इसे करना चाहता हं,’ पवते र ने कहा।
‘नह , भु,’ क ने कहा, ‘आपक आव यकता मु य आ मण के िलए है।’
िशव ने पवते र क ओर देखा।
मुझे भी यह रहने क आव यकता है।
‘म भी इसे नह कर सकता,’ अपना िसर िहलाते हए िशव ने कहा।
पवते र ने िशव को देखा। उसके मुख पर मोहभंग होने वाले एक बड़े आकार वाला लेख
प िदख रहा था। वैसे उसने आशाभंग होने क दशा के िलए वयं को तैयार कर िलया था िफर
भी उसे आशा थी िक िशव उसे गलत िस करे गा। िकंतु अब पवते र को यह प
तीत हो रहा
था िक अवलोकन वेिदका जो द के िलए बनी थी, िशव भी उसी पर बैठकर यु होते हए देखेगा।
‘मुझे यह स मान दीिजए, भु,’ पकु ने कहा।
‘ पकु...,’ माया ेिनक ने ह के वर म कहा। उसने वह नह कहा जो सभी लोग जानते थे।
मा पांच हजार सैिनक के साथ चं वंशी सैिनक टुकड़ी के साथ उ र म यु
आ मह या करने जैसी बात थी।
करना
‘ पकु,’ िशव ने कहा, ‘म नह जानता िक यिद...’
‘म जानता हं, भु,’ पकु ने म य म ही टोक िदया, ‘यही मेरा ार ध है। म उ ह एक िदन
के िलए रोक दंूगा। यिद इं देव मेरी सहायता करते ह तो म दो िदन भी यास कर सकता हं। उस
समय तक हम िवजय िदला दीिजए, भु।’
द ने अचानक ही टोककर कहा, ‘अित संुदर। पकु आप वहां
त काल तैयारी ारं भ कर दीिजए।’
थान करने के िलए
पकु ने बड़े जोशीले ढं ग से अिभवादन िकया और इससे पहले िक कोई कुछ दूसरा िवचार
बताता वह तेजी से बाहर िनकल गया।
एक घंटे से कम समय म ही िवकम सै यदल खेमा छोड़कर उ र िदशा क ओर थान करने
को तैयार हो चुक थी। सय
ू आकाश म ऊपर चढ़ आया था और परू ा का परू ा खेमा जाग रहा था। वे
लोग सैिनक को अपने ल य क ओर बढ़ते देख रहे थे। सभी लोग को पता था िक िवकम को
घनघोर किठनाइय का सामना करना था। वे जानते थे िक उन सैिनक म से िकसी को भी
जीिवत देखना असंभव ही था। िकंतु जब वे सैिनक आगे बढ़ रहे थे तो उनम िहचिकचाहट या डर
का लेशमा भी संकेत िदखाई नह दे रहा था। सारा का सारा सय
ू वंशी खेमा एक शांितमय
िव मय म था। सभी के मन म एक ही िवचार गंुजायमान हो रहा था।
ये िवकम इतने तेज वी कै से हो सकते ह? इ ह तो किथत प से दुबल होना चािहए था।
पकु सबसे आगे नेत ृ व कर रहा था। उसका सुंदर चेहरा यु के रं ग से पुता हआ था।
अपने कवच के ऊपर उसने केस रया रं ग का अंगव म् पहन रखा था। यह रं ग परमा मा का रं ग
था। यह रं ग अंितम या ा करने के िलए पहना जाता था। उसने वापस आने क आशा नह क थी।
वह अचानक ही का य िक िव ु माली झप ा मारकर उसके सामने खड़ा हो गया। पकु
ने योरी चढ़ा ली। इससे पहले िक वह कोई िति या िदखा पाता, िव ु माली ने अपना चाकू
िनकाल िलया। पकु उसके हाथ क ओर झपटा। लेिकन िव ु माली उससे तेज िनकला। उसने
अपने अंगठ
ू े पर चीरा लगा िदया और उसे उठाकर पकु के ललाट तक ले गया। ाचीन काल के
समय रही महान ाता-यो ा क परं परा क भांित िव ु माली ने अपने अंगठ
पकु के
ू े का र
ललाट पर लगा िदया, इस मह ा को दशाते हए िक उसका र
पकु क र ा करे गा।
‘आप मुझसे बेहतर ह, पकु,’ िव ु माली ने धीमे वर म कहा।
पकु चुपचाप खड़ा रह गया। वह िव ु माली के इस अला िणक यवहार पर चिकत था।
अपनी मु ी बंधे हाथ को ऊपर उठाकर िव ु माली ने गजना क , ‘उ ह नक म पहंचा दो,
िवकम।’
‘उ ह नक म पहंचा दो, िवकम!’ सय
ू वंिशय ने बार-बार दुहराते हए आतनाद िकया।
पकु और उसके सैिनक ने परू े सय
ू वंशी खेमे क ओर ि घुमाकर उनके िलए उठ रहे
उस स मान को देखा, िजससे उ ह बहत लंबे समय से वंिचत रहना पड़ा था। बहत ही लंबे समय
से।
‘उ ह नक म पहंचा दो, िवकम!’
पकु ने सहमित म िसर िहलाया और आगे बढ़ गया इससे पहले िक उसक भावनाएं उस
ण को न कर देत । उसके सैिनक पीछे थे।
‘उ ह नक म पहंचा दो, िवकम!’
वह अला िणक तरीके से उस साल अपे ाकृत गम ात:काल था।
चं वंशी टुकड़ी उ री दर के पास िपछली राि मेलहू ा क सैिनक टुकड़ी को पाकर
आ यचिकत रह गई थी। उ ह ने त काल ही आ मण कर िदया था। मु य सय
ू वंशी सेना को
समय दान करते हए िवकम ने उ ह रात भर रोक िदया था। मु य यु का यही िदन था। िशव
तैयार था।
सती आरती क थाली से िशव क आरती उतारते हए दीि मान लग रही थी। सात बार
आरती उतारने के बाद वह क , उसने थोड़ा िसंदूर अपने अंगठ
ू े म लगाया और िशव के ललाट
पर उसका ितलक लगाकर कहा, ‘िवजयी होकर आइए या िफर कभी न आइए।’
िशव ने अपनी भ ह को ऊपर उठाकर मुंह बनाया, ‘यु पर भेजने का यह कौन-सा तरीका
है?’
‘ या? नह , यह तो...’ सती बोलने म लड़खड़ा गई।
‘म जानता हं, जानता हं,’ सती को बांह म लेते हए मु कान के साथ िशव ने कहा, ‘यह
यु म थान करने से पवू सय
ू वंिशय का ला िणक तरीका है, है न?’
सती ने िशव को देखा। उसक आंख नम थ । दशक तक सय
ू वंशी िश ण को िशव के
िलए उसका ेम आ छािदत कर रहा था, ‘सुरि त और भले-चंगे वापस आइए।’
‘म अव य लौट आऊंगा, ि ये,’ िशव ने धीमे वर म कहा, ‘तुम इतनी आसानी से मुझसे
छुटकारा नह पा सकती।’
सती क मु कान दुबल थी, ‘म ती ा क ं गी।’
सती अपने पांव के पंजे पर खड़ी हो गई और उसने ह के से िशव के माथे को चम
ू िलया।
िशव ने भी उसे चम
ू ा और इससे पहले िक उसका दय उसके मन को अ यथा सोचने पर िववश
करे तेजी से मुड़ गया। तंबू के आवरण को उठाते हए वह तंबू से बाहर िनकल गया। उसने ि
उठाकर आकाश क ओर देखा िक कह कोई पवू सच
ू ना देने वाले शकुन-अपशकुन का संकेत
मौजदू हो। वहां कुछ नह था।
सब कुछ अ छा तीत हो रहा है।
दूर से साफ-सुथरी लयब बार बारता से यु के नगाड़े क विन के साथ-साथ सं कृत के
ोक क गंज
ू उस खी ठं डी हवा म बहती जा रही थी। यह िविश सय
ू वंशी र म िशव को
अजीब तीत हई थी। िकंतु उन ा ण म कुछ बात तो अव य थी य िक यह एक िवशेष कार
क पज
ू ा थी ‘इं देव एवं अि नदेव के आ ान के िलए’। जो भी उन नगाड़ एवं ोक को एक
साथ सुन रहा था उसम एक उ ेिजत यो ा का उ साह भरता जा रहा था। इनक थाप एवं ती ता
और शी ता से बजने लगेगी जब यु िछड़ चुका होगा। वह मुड़ा और द के तंबू क ओर चल
पड़ा।
‘ णाम, महाराज,’ िशव ने तंबू का आवरण हटाकर वेश करते हए कहा, जहां पवते र
यु क योजना स ाट को बता रहा था, ‘नम ते, पवते र।’
पवते र मु कुराया और उसने अपने हाथ जोड़ िलए।
‘ पकु का या समाचार है, पवते र?’ िशव ने पछ
ू ा, ‘जो अंितम सच
ू ना मने सुनी थी, वह
तीन घंटे पहले क थी।’
‘िवकम का यु चल रहा है। पकु अभी भी उ ह रोके हए है। उसने हम अमू य समय दान
िकया है। भु ी राम उस पर कृपा कर।’
‘हां,’ िशव ने कहा, ‘ भु ी राम उस पर कृपा कर। उसे मा आज िदन भर उनको रोके
रखना होगा।’
‘ भु,’ द ने औपचा रक नम ते म हाथ जोड़कर एवं िसर नीचे झुकाकर कहा, ‘यह बहत
ही शुभ ारं भ है। हमारे िलए आज का िदन अ छा रहे गा। आप इससे सहमत ह न?’
‘हां ऐसा ही तीत होता है,’ िशव मु कुराया, ‘ पकु का समाचार वागत यो य है। लेिकन
यह
चतुथ हर म और भी समीचीन होगा, महाराज।’
‘म िनि त प से कह सकता हं िक उ र यही रहे गा, भु। आज के चतुथ हर तक स ाट
िदलीप हमारे सामने खड़ा होगा, बेिड़य म जकड़ा हआ, याय क गुहार लगाता हआ ती ा
करता हआ।’
‘सावधन रिहए, महाराज,’ िशव ने एक मु कान के साथ कहा, ‘भा य को परखने का
य न नह करना चािहए। हम अभी भी यु जीतना है!’
‘हम िकसी िवपि का सामना नह करना पड़े गा। हमारे पास हमारे नीलकंठ ह। हम मा
आ मण करना है। हमारी िवजय िनि त है।’
‘मेरे िवचार से चं वंिशय को परािजत करने म नीले गले के अलावा भी हम बहत कुछ
करना होगा, महाराज,’ िशव ने और बड़ी मु कान के साथ कहा, ‘हम अपने श ु को कम नह
आंकना चािहए।’
‘हम उ ह कम नह आंक रहे ह, भु। िकंतु म आपको कम आंकने क भी भल
ू नह कर
सकता।’
िशव ने आ मसमपण कर िदया। उसने कुछ समय पहले ही इस बात को जान िलया था िक
द के संदेह रिहत ढ़ िव ास के िव
तक को जीतना असंभव था।
‘कदािचत मुझे अब चलना चािहए, महाराज,’ पवते र ने कहा, ‘समय आ चुका है। यिद
आपक आ ा हो तो।’
‘िन संदेह, पवते र। िवजयी भव,’ द ने कहा। िफर िशव क ओर मुड़ते हए उसने कहना
जारी रखा, ‘ भु, पीछे के पवत पर इन लोग ने हमारे देखने के िलए एक अवलोकन वेिदका का
िनमाण िकया है।’
‘अवलोकन वेिदका?’ हैरान िशव ने पछ
ू ा।
‘हां। य नह हम लोग वहां से यु का
यु के िलए िनदश दे सकगे।’
य देखते ह? वहां से आप बेहतर ि थित म होकर
िशव ने आ य म आंख को संकुिचत िकया और कहा, ‘महाराज, मेरा थान सैिनक के
साथ है। यु के मैदान म।’
पवते र चलते हए अपने माग म
आ यचिकत भी था और स न भी।
क गया। वयं को गलत िस
होता देख वह
‘ भु, यह कसाइय ारा िकया जाने वाला काय है, नीलकंठ ारा नह ,’ िचंितत द ने
कहा, ‘आपको चं वंिशय के र से अपने हाथ दूिषत करने क आव यकता नह है। पवते र
उस नागा को बंदी बनाकर आपके चरण म रख देगा। आप उससे ऐसा ितशोध ले सकते ह िक
उसक परू ी क परू ी जाित युग -युग तक आपके याय से भय खाती रहे गी।’
‘यह मेरे ितशोध क बारे म नह है, महाराज। यह मेलहू ा के ितशोध के बारे म है। यह
सोचना मेरे िलए ु बात होगी िक यह सम त यु मा मेरे िलए लड़ा जाएगा। यह यु अ छाई
एवं बुराई के म य है। ऐसा यु िजसम एक यि को िकसी एक प के साथ होकर लड़ना
होगा। धमयु म कोई दशक नह होता, यह एक पिव यु है।’
पवते र ने िशव को गौर से देखा। उसक आंख शंसा म खुली क खुली रह गई ं। वे श द
भु ी राम के थे, धमय ु म कोई दशक नह होता।
‘ भु, हम आपके जीवन को जोिखम म डालना सहन नह कर सकते,’ द
ने आ ह
िकया, ‘आप हमारे िलए बहत मह वपण
ू ह। म ढ़ िन य से कह सकता हं िक हम इस जोिखम
के िबना ही यु म िवजय ा कर सकते ह। आपक उपि थित ने हम ेरणा दी है। बहत से लोग
ह, जो आपके िलए अपना र बहाने के िलए तैयार ह।’
‘यिद वे मेरे िलए अपना र बहाने के िलए तैयार ह तो मुझे भी उनके िलए अपना र
बहाने के िलए अव य तैयार रहना चािहए!’
पवते र का दय उस असीम आनंद से सराबोर हो गया िजसे एक िव ा संप न सय
ू वंशी
अनुभव कर सकता था। ऐसे यि को पाने का वह आनंद िजसका अनुसरण िकया जा सकता
था। ऐसे यि को पाने का वह आनंद िजससे े रत हआ िकया जा सकता था। ऐसे यि को
पाने का वह आनंद जो वयं भु ी राम के बोल बोलने का पा था।
िचंितत द िशव के समीप आ गया। उसने अनुभव िकया िक यिद उसे नीलकंठ को इस
उजड्डता से रोकना था तो उनके मन क बात उ ह बतानी पड़े गी। उसने धीमे से कहा, ‘ भु,
आप मेरी पु ी के पित ह। यिद आपको कुछ हो जाता है तो वह एक ही जीवन म दूसरी बार शोक
संत हो जाएगी। म यह उसके साथ ऐसा होने नह दे सकता।’
‘कुछ नह होगा,’ िशव ने धीमे से कहा, ‘और सती तो सह म ृ यु मर जाएगी यिद वह
देखेगी िक उसका पित धमयु नह लड़ रहा है। वह मेरे िलए अपना आदर खो बैठेगी। यिद वह
गभवती नह होती तो वह भी मेरे साथ कंधे से कंधा िमलाकर यु करती। यह तो आप जानते ही
ह।’
द ने िशव को घरू ा। वह टूटा हआ, िवपि
त और शंकायु
तीत हो रहा था।
िशव जोशीले ढं ग से मु कुराया और बोला, ‘कुछ भी नह होगा, महाराज।’
‘और अगर कुछ हो गया तो, भु?’
‘तो िफर इसको याद िकया जाएगा िक वह एक अ छे काय के िलए हआ था। सती को मुझ
पर गव होगा।’
द िशव को लगातार घरू ता जा रहा था। उसका मुख एक संत दुख का एक छायािच बन
चुका था।
‘मुझे मा कर, महाराज, िकंतु मुझे जाना ही होगा,’ िशव ने एक औपचा रक नम ते करके
कहा और मुड़कर जाने लगा।
पवते र ने उनका अनुसरण िकया अ यमन क ढं ग से जैसे िकसी असीम शि
ारा
िखंचा चला जा रहा हो। य ही िशव तेजी से तंबू से िनकलकर अपने घोड़े क ओर चल पड़ा तो
उसने पवते र का गरज वाला वर सुना, ‘ भु!’
िशव चलता रहा।
‘ भु,’ पवते र ने बल लगाकर आ ही होकर पुकारा।
िशव चलते-चलते अचानक क गया। वह मुड़ा तो उसके चेहरे पर एक आ य िमि त तेवर
था, ‘मुझे मा कर, पवते र। मुझे लगा िक आप महाराज को पुकार रहे थे।’
‘नह , भु,’ पवते र ने िशव के समीप पहंचकर कहा, ‘म आपको ही पुकार रहा था।’
अब उसक योरी और भी चढ़ गई थी, ‘ या बात है वीर सेनानायक?’
पवते र तन कर सैिनक क तरह सावधान क मु ा म खड़ा हो गया। उसने िशव से एक
िनि त दूरी बना रखी थी। वह उस पिव भिू म पर खड़ा नह हो सकता था, िजसने महादेव को
पालने म झुला रखा था। जैसे िक वह आधी न द म हो, पवते र ने अपनी मु ी बांधकर एक
लहरदार तरीके से अपने सीने से लगाया। और उसके बाद उसने मेलहू ा का औपरािचक अिभवादन
िकया और नीचे झुक गया। इतना नीचे िजतना िक वह पहले कभी िकसी जीिवत यि के
सामने नह झुका था। इतना नीचे िजतना िक वह ितिदन ात:कालीन पज
ू ा म भु ी राम क
मिू त के सामने झुकता था। िशव पवते र को लगातार गहरी ि से देखता जा रहा था। उसके
मुख पर एक अजीब आ य िमि त अजनबीपन था। िशव पवते र का बहत आदर करता था।
अत: वह उसके इस कार के खुले मिू तकरण से असुिवधाजनक महसस
ू कर रहा था।
उठकर िकंतु िसर को अभी भी झुकाए हए पवते र ने धीमे से कहा, ‘आपके साथ र
बहाने पर म वयं को ध य समझंग
ू ा, भु।’ अपना िसर उठाकर उसने पुन: कहा, ‘ वयं को ध य
समझंग
ू ा।’
िशव मु कुराया और उसने पवते र के हाथ पकड़ते हए कहा, ‘सच तो यह है िक यिद
हमारी योजनाएं सही ह तो म आशा करता हं िक हम बहत अिधक र बहाने क आव यकता
नह पड़ने वाली है।’
अ याय - 23
धमयु , पिव यु
सू यवंशी धनुष के आकार म
यवि थत हो चुके थे। शि शाली, िकंतु अ यिधक लचीले। हाल
ही म थािपत िकया गया कछुआ सै य दल म य म रखा गया था। ह के श
वाली पैदल
सेनाओं से दोन िकनारे बनाए गए थे और अ ारोही दल दोन िकनार पर सीमा बने हए थे।
िपछली राि िबन मौसम क बरसात के कारण रथ को छोड़ िदया गया था। पिहय के क चड़ म
फंस जाने का जोिखम वे नह उठा सकते थे। नए िशि त धनुषधा रय का सै य दल पीछे क
ओर रखा गया थ। बड़ी द ता से उनक पीठ को आराम देने वाले आसन बनाए गए थे, िजसके
ऊपर वे आसानी से लेटकर अपने पैर को यांि क ढं ग से चलाकर अपना ल य साध सकते थे।
धनुष को अपने पैर क लंबाई तक ऊंचा िकया जा सकता था और डोरी को अपनी ठुड्ढी तक
लाकर बहत शि से उन बाण को चलाया जा सकता था, जो एक छोटी बरछी या भाले के समान
थे। चंिू क वे सय
ू वंशी पैदल सेना के पीछे थे, इसिलए वे चं वंिशय क ि से परू ी तरह से छुपे हए
थे।
एक मानक य आ ामक बनावट म चं वंिशय ने अपनी सेना को अपनी शि के अनुसार
यवि थत कर रखा था। उनक िवशाल पैदल सेना पांच हजार सैिनक के दल म बंटी हई थी।
ऐसे दल पचास थे जो एक पंि म असं य जनसमहू क तरह दिशत हो रहे थे। जहां तक आंख
जा सकती थ , वे इतनी दूरी तक फै ले हए थे। थम पंि के पीछे वैसे ही तीन और िवशाल
जनसमहू क पंि यां थ , जो अपना काम समा करने के िलए तैयार बैठे थे। सं या क ि से
इस कार क बनावट कम सेना पर सीधा आ मण करने के िलए सटीक थी, िजससे आ मण
को बहत अिधक शि एवं ढ़ता िमलती िकंतु इसके साथ ही यह बहत ठोस बनावट थी, िजसम
लचीलापन नह था। दल के म य थोड़ी जगह रखी गई थी तािक यिद आव यकता पड़े तो
अ ारोही दल धावा बोल सक। सय
ू वंशी बनावट को देखते हए चं वंिशय ने अपने अ ारोही दल
को िकनार पर लगा िदया था। उनके िवचार से यह उ ह सय
ू वंशी बनावट के िकनार म जलजला
लाने के िलए उपयु अवसर दान करे गा और उनक पंि को तोड़ देने म सफल होगा।
चं वंशी सेनानायक ने यु के मैदान म ाचीन यु िनयम-पु तक को मत
ू प दे िदया था और
उसके एक-एक प ृ का िन ापवू क पालन िकया था। यह एक आदश तरीका होता यिद उनके
श ुओ ं ने भी मानक य युि य का पालन िकया होता। दुभा य से वह एक ित बतीय कबीले के
मुिखया के िव
यु कर रहे थे, िजसके नव वतन ने सय
ू वंशी आ मण को परू ी तरह से
पांत रत कर िदया था।
यु के मु य मैदान के िकनारे एक छोटी पहाड़ी क ओर य ही िशव का घोड़ा पहंचा तो
ा ण ने ोक के उ चारण क गित बढ़ा दी जबिक यु के नगाड़ ने भी उ च तर क ऊजा
भर दी। सं या म बहत ही कम होने के बाद भी सय
ू वंिशय ने तिनक भी घबराहट का संकेत तक
नह िदया था। उ ह ने अपने डर को गड्ढे म गाड़ िदया था।
येक टुकड़ी के ज थे ई र क पुकार से यु का घोषनाद करने लगे।
‘इं देव क जय!’
‘अि न देव क जय!’
‘जय शि
देवी क !’
‘व ण देव क जय!’
‘जय पवन देव क !’
िकंतु ये पुकार णभर म ही भुला दी गई, जब सैिनक ने देखा िक एक ेत अित सुंदर
यु ा एक अ यंत ही बलशाली यि को लेकर कदम ताल करता हआ छोटी पहाड़ी क ओर से
आया था। उनके पीछे पवते र था और उसके पीछे नंदी एवं वीरभ । कान को छे द कर देने वाली
गजना ने आसमान को जैसे िछ यु कर िदया हो। वह गजना इतनी िवशाल थी िक बादल म
घर बनाने वाले देवताओं को भी बाहर िनकलकर नीचे घट रही घटनाओं को देखने के िलए िववश
कर िदया।
क ती ता से िशव के पास पहंच गया जैसे ही उसने देखा िक िशव उसक ओर आ रहे थे।
इससे पहले िक िशव उसके पास पहंचते, पवते र भी तेजी से घोड़े से उतर गया और क के
समीप पहंच गया।
‘ भु, दाएं िकनारे का नेत ृ व करगे, सेनापित,’ पवते र ने कहा, ‘मेरी आशा है िक इसम
आपको कोई आपि नह होगी।’
‘इनके नेत ृ व म यु करना मेरा सौभा य होगा, भु,’ दीि मान क ने कहा। उसने
त काल ही अपने मैदानी नेता क छड़ी को अपनी पकड़ से एक ओर िकया, उसके बाद वह अपने
घुटने पर झुका और िशव को उसे देने के िलए उसने अपने दोन हाथ ऊंचे उठा िदए।
‘आप लोग को ऐसा करने से वयं को रोकना होगा,’ िशव ने हंसते हए कहा, ‘आप मुझे
शिमदा कर रहे ह!’
क को उसके पैर पर खड़ा करके िशव ने उसे आिलंगनब कर िलया, ‘म आपका िम
हं, न िक भु।’
िवि मत क पीछे हट गया। उसक आ मा धना मक ऊजा क धारा वाह धार के वेश को
वीकार करने म असमथ थी। उसने बुदबुदा कर कहा, ‘जी हां, भु।’
अपना िसर धीरे से िहलाते हए िशव मु कुराया। उसने वह छड़ी िश ता से क के हाथ से
ले ली और सम त सय
ू वंशी सेना को िदखाने के िलए ऊंची उठा दी। सभी लोग के मुंह से एक ही
वर गंज
ू उठा।
‘महादेव! महादेव! महादेव!’
िशव एक ही काकार चाल म कूदकर अपने अ पर चढ़ गया। उस छड़ी को ऊपर उठते
हए उसने सय
ू वंशी पंि के साथ-साथ एक ओर से दूसरी ओर तक घोड़े को दौड़ाया। सय
ू वंशी
गजना ती , अितती होती चली गई।
‘महादेव!’
‘महादेव!’
‘महादेव!’
‘सय
ू वंिशयो!’ िशव ने अपने हाथ उठाकर गजना क , ‘मेलहू ावािसयो! मुझे सुनो!’
अपने अि त वधारी ई र क बात सुनने के िलए सेना परू ी तरह से शांत हो गई।
‘महादेव कौन है?’ िशव ने दहाड़ लगाई।
सभी भाविवभोर होकर सुनने वाल क ि थित म आ गए थे। वे एक-एक श द को यान से
सुन रहे थे।
‘ या वह एक उदास भरी ऊंचाई पर बैठता है और यथ म ही देखता है जबिक साधारण
लोग वह करते ह, जो उसका काय है? नह !’
कुछ सैिनक श द रिहत ाथना कर रहे थे।
‘ या वह सु ती से आशीवाद दान करता है जबिक अ य लोग सचाई के िलए यु करते
ह? या वह उदासीनता से चुपचाप देखता रहता है और मत
ृ का को िगनता रहता है जबिक
जीिवत यि बुराई को न करने के िलए बिलदान देता है? नह !’
उस समय पण
ू शांित थी और सय
ू वंशी नीलकंठ के संदेश को अवशोिषत कर रहे थे।
‘कोई यि महादेव तभी बनता है जब वह अ छाई के िलए यु करता है। एक महादेव
अपने माता के गभ से उ प न नह होता है। वह यु के ताप से तपकर िनकलता है, जब वह
बुराइय को न करने के िलए यु का ारं भ करता है।’
सेना िन त ध खड़ी थी य िक वह धना मक ऊजा का अनुभव कर रही थी।
‘म एक महादेव हं!’ िशव ने गजना क ।
सय
ू वंिशय ारा एक ित विन करने वाला गड़गड़ाहट वाला शोर उभरा। वे महादेव ारा
नेत ृ व दान िकए जा रहे थे। देव के देव। चं वंिशय के पास कोई अवसर नह था।
‘लेिकन म एकमा नह हं!’
सय
ू वंिशय पर एक चिकत कर देने वाली चु पी छा गई। महादेव का या अथ होता था? वे
एकमा नह ह? या चं वंिशय के पास भी ई र ह?
‘म एकमा नह हं! य िक म अपने सम एक लाख महादेव को देख रहा हं। म देख रहा
हं िक एक लाख यि अ छाइय के प म यु करने को तैयार ह! म देख रहा हं िक एक
लाख यि बुराई से लड़ने के िलए तैयार ह! म देख रहा हं िक एक लाख यि बुराई को न
करने क मता रखते ह!’
सय
ू वंिशय ने हैरानी से अपने नीलकंठ को देखा य िक उनके श द उनके मन म घुसकर
या हो गए थे। उनक ऐसी िह मत नह बची थी िक वे
कर सक, या हम ई र ह?
िशव के पास उ र था, हर एक महादेव है!
मेलहू ावासी िवि मत से खड़े थे।
येक वह यि
जो वहां था, वह महादेव था?
‘हर हर महादेव!’ िशव ने गजना क ।
मेलहू ावािसय क दहाड़ गंज
ू ी, हम सभी महादेव ह!
िवशु मौिलक ऊजा येक सय
ू वंिशय क नस म दौड़ गई। वे भगवान थे! इसका अब
कोई अथ नह था िक चं वंशी सं या म एक के मुकाबले दस अिधक थे। वे भगवान थे! यिद
चं वंशी एक के मुकाबले सौ भी होते तो भी िवजय सय
ू वंिशय क ही होनी थी। वे भगवान थे!
‘हर हर महादेव!’ सय
ू वंशी सेना ने पुकार लगाई।
‘हर हर महादेव!’ िशव ने िच लाकर कहा, ‘हम सभी भगवान ह! भगवान अपने ल य के
काय पर ह!’
अपनी तलवार बाहर िनकालते हए उसने अपने घोड़े क लगाम ख च ली। अपने दोन िपछले
पैर पर ऊपर उठते हए वह यु ा उ
प से िहनिहनाया और बड़ी सफाई से घम
ू कर चं वंिशय
को मुखाितब हो गया। िशव ने श ुओ ं क ओर अपनी तलवार सीधी कर िदखाई और कहा,
‘बुराइय को न करने के ल य के काय पर!’
सय
ू वंिशय ने अपने भु के कहने के बाद गजना क , हर हर महादेव!
िवजय ी को कोई इंकार नह कर सकता, हर हर महादेव!
बुराइय क यह लंबी अविध आज समा हो जाएगी, हर हर महादेव!
जब सेना भगवान के समान गजना कर रही थी, जो िक वे थे ही तो िशव ने अपने अ
को
एड़ लगाकर पवते र क ओर ख िकया जो नंदी, वीरभ और क से िघरा हआ था।
‘अ छा भाषण था,’ वीरभ ने ह क मु कान के साथ कहा।
िशव ने कनखी मारी। उसके बाद उसने अपने अ को पवते र क ओर मोड़ा और कहा,
‘सेनानायक, मेरे िवचार से अब हम अपनी वषा ारं भ कर सकते ह।’
अ
‘जैसी भु क आ ा,’ पवते र ने िसर िहलाकर सहमित कट क । उसके बाद उसने अपने
को मोड़कर वजवाहक को आ ा दी, ‘धनुधर।’
वज वाहक ने संकेता मक वज को ऊंचा उठाया। वह लाल रं ग का था, िजस पर काले रं ग
से उ
प से िबजली कड़कने वाला िच बना हआ था। सभी वज वाहक ारा सभी पंि य म
आदेश को दुहराया गया। सय
ू वंशी पैदल सेना अपने घुटन के बल झुक गई। िशव, पवते र, क,
नंदी और वीरभ तेजी से अपने अ उतर गए और उ ह ख चकर उनके घुटन पर बैठा िदया।
और बाण संहारक क भांित उड़ने ारं भ हो गए।
धनुषधा रय को अ व ृ ाकर बनावट म रखा गया था तािक वे अिधक से अिधक चं वंशी
सेना को ल य बना सक। जैसे ही आसमान बाण के आवरण म छुप गया तो पांच हजार धनुधर
ने चं वंिशय के ऊपर म ृ यु क वषा कर दी। अभागे व ीप वासी अपनी कसी हई बनावट के
कारण एक आसान ल य बनते चले गए। अिनयिमत चं वंशी सैिनक के चमड़े और लकड़ी क
बनी ढाल को लगभग भाल के समान ती बाण ने छलनी करके रख िदया। मा िनयिमत
सेना ही लोहे क ढाल लेकर खड़ी थी। बाण ारा इस कार का िनदयी नरसंहार जो थम
असं य जनसमहू के दल पर हआ था तो कुछ ही िमनट म उनक पंि यां टूटनी ारं भ हो गई ं।
थम सेना के दल म मरने वाल एवं घायल क सं या इतनी िवकराल थी िक वे अपने थान
पर अिडग नह रह सके। िनयिमत सेना पीछे क ओर भागने लगी, िजसने वहां अफरा-तफरी मचा
दी। पीछे वाले दल क पंि य म घबराहट और अ त- य तता छा गई।
पवते र ने िशव क ओर मुड़कर कहा, ‘हम मारक दूरी को बढ़ाने क आव यकता तीत
होती है, भु।’
िशव ने उ र म अपना िसर िहलाकर सहमित कट क । पवते र ने िसर िहलाकर अपने
वज वाहक को संकेत िदया, िज ह ने संदेश का सारण आगे कर िदया। धनुधर ने कुछ ण
के िलए बाण को चलाना बंद कर िदया। पिहय को दािहनी ओर घुमाकर उ ह ने अपने पैर वाले
धनुष के आ य को ऊंचा कर िदया। और लंबी दूरी क मारक े तक बाण को पहंचाने के िलए
उ ह ने वयं को यवि थत कर बाण को यंचा पर चढ़ा िलया। और उसके बाद बाण को
आसमान म उड़ा िदया। बाण ने अब चं वंिशय क दूसरी पंि क सेना दल को ल य बना
िलया था। थम पंि
ारा पीछे क ओर भागते रहने के कारण और दूसरी पंि के दल पर बाण
ै क भांित डरा िदया।
क वषा ने दूसरी पंि के दल को चुड़ल
इस म य िशव ने देखा िक चं वंशी अ ारोही दल आ मण करने वाली ि थित म आ चुका
था। वह पवते र क ओर मुड़ा और उसने कहा, ‘सेनानायक, उनक अ वािहनी आगे बढ़ रही
है। वे हम िततर-िबतर करके धनुधर पर आ मण करने का यास करगे। हमारी अ वािहनी
को उ ह मैदान के म य म ही रोक देना होगा।’
‘जैसी भु क आ ा,’ पवते र ने कहा, ‘मने चं वंिशय क इस चाल का अनुमान पवू म
ही लगा िलया था। इसी कारण मने दोन िकनार पर माया ेिनक एवं िव ु माली के नेत ृ व म
अ र नेमी के दो अ ारोही दल को पहले से ही िनयु कर िदया था।’
‘बहत अ छे , सेनानायक! लेिकन हमारे अ ारोही दल को बहत अिधक आगे नह
िनकलना है, अ यथा हमारे ही बाण उ ह घायल कर सकते ह और उ ह पीछे भी नह भागना है।
उ ह म य म एक थान पर डटे रहना है, कम से कम अभी और पांच िमनट तक।’
‘म आपसे सहमत हं। हमारे धनुधर को इतने और समय क आव यकता तीत होती है।’
पवते र ने मुड़कर अपने वज वाहक को एक िव ततृ िनदश िदया। दो संदेश वाहक बाएं
और दाएं क ओर ती गित से अपने अ पर सरपट दौड़ पड़े । कुछ ही ण म पवू एवं पि मी
अ र नेमी अ ारोही दल माया ेिनक एवं िव ु माली के नेत ृ व म चं वंिशय ित-आ मण को
रोकने के िलए िबजली क कड़क क तेज गित से गजना करते हए आगे बढ़ गए।
इस म य चं वंिशय क दूसरी पंि के दल म गड़बड़ी और भी बढ़ चुक थी य िक
िनदयी और ू र बाण क बौछार उ ह चरू -चरू कर रही थी। सय
ू वंशी धनुधर अपने थकते हए अंग
या र िस हाथ क ओर यान िदए िबना बहादुरी से िबना िकसी कार क दया िदखाते हए
िनरं तर बाण क वषा करते जा रहे थे। दूसरी पंि भी टूटने लगी य िक वे इस िन र संहार से
बचने का य न करने लगे थे।
‘और लंबी दूरी क मारक मता, भु,’ पवते र ने िशव क ओर देखकर कहा, जैसे वह
उनक मक
ू भाषा समझ चुका हो। िशव ने सहमित म िसर िहलाया।
इस म य यु भिू म के पवू एवं पि मी िह स म सय
ू वंशी एवं चं वंशी अ ारोही दल के
म य घमासान यु िछड़ा हआ था। चं वंिशय को पता था िक उ ह लड़कर आगे िनकलना था।
यिद धनुधर का यह आ मण कुछ देर और चलता रहा तो यु म उनक पराजय लगभग िनि त
ही थी। वे अ यिधक ोध क उ म ता से संघष कर रहे थे, जैसे घायल शेर ह । तलवार मांस एवं
हड्िडय को काट रही थ । भाले, ब लम, कवच को िछ यु बना रहे थे। सैिनक अपने कटे हए
अंग के बावजदू यु रत थे। िजनके सवार अब उन पर नह थे, ऐसे अ अब आ मण पर उतर
आए थे य िक उनक जान पर बन आई थी। चं वंशी अपनी परू ी ताकत लगाकर उस पंि को
तोड़ना चाहते थे, जो धनुधर को सुर ा दान िकए हए थी। िकंतु दुभा य से वे सय
ू वंिशय के दो
सबसे भीषण सेनापितय के िव
यु कर रहे थे। माया ेिनक एवं िव ु माली ने अ यिधक
उ ता से यु िकया और उस िवशाल चं वंिशय के अ ारोही दल को एक कदम भी आगे बढ़ने
नह िदया था।
इस म य धनुधर ने चं वंिशय क तीसरी पंि के दल पर भीषण आ मण कर िदया था।
उनक सेना के दल ती गित से म ृ यु को ा हो रहे थे या िफर उ ह तेजी से बड़ी सं या म
याग कर रहे थे। कुछ लोग हालांिक अभी भी अ यंत कठोरता और वीरता से डटे हए थे। जब
उनक ढाल इतनी शि शाली नह रह गई थ िक वे बाण को रोक सक तो उ ह ने मत
ृ सैिनक
के शरीर को ढाल बनाना ारं भ कर िदया था। लेिकन वे पंि
म डटे रहे थे।
‘ या अब हम इस बंद करके आ मण कर द, भु?’ पवते र ने पछ
ू ा।
‘नह । म चाहता हं िक उनक तीसरी पंि
और िमनट तक चलने दीिजए।’
के दल का भी िव वंस हो जाए। इसे अभी कुछ
‘जैसी भु क आ ा। हम आधे धनुधर को और भी अिधक दूरी तक मारक मता करने को
कह देते ह। हम चौथी पंि के दल म दुबल भाग को भी न कर सकते ह। यिद उनक भी
पंि म भगदड़ मचती है तो समिझए िक उनके व थल म घबराहट क लहर फै ल जाएगी।’
‘आप िब कुल सही ह, पवते र। ऐसा ही करते ह।’
इस म य पि मी सीमा पर चं वंिशय ने अपने आशाहीन आ मण का अनुभव कर िलया था
और वे पीछे हट गए थे। कुछ अ र नेमी अ ारोही उनके पीछे भागने के य न म थे िक
िव ु माली ने उ ह रोक िदया। जब चं वंशी पीछे हटते गए तो िव ु माली ने अपनी टुकड़ी को
वह जमे रहने का आदेश िदया। इस अनुमान म िक चं वंशी कह पुन: ित-आ मण न कर बैठ।
जब उसने देखा िक श ु अपनी पंि म जाकर पुन: िमल गए तो िव ु माली ने अपनी टुकड़ी को
धनुष के िकनारे वाले थान पर पुन: लाकर खड़ा कर िदया।
चं वंशी जो माया ेिनक का सामना कर रहे थे, वे थोड़ा किठन त व के बने हए थे।
अ यिधक हािन पहंचने के बाद भी वे कठोरता से संघष कर रहे थे और पीछे हटने से इंकार कर
रहे थे। माया ेिनक एवं उसके दल ने श ुओ ं को रोकने के िलए घमासान यु िकया था। अचानक
ही बाण क वषा क गई। धनुधर को क जाने का संकेत िदया जा चुका था। अब जबिक
उनका ल य िबना उनके ह त ेप के ही परू ा हो चुका था तो चं वंशी सेनापित ने अपने अ ारोही
दल को पीछे हट जाने का आदेश दे िदया। उधर माया ेिनक ने भी अपने दल को पीछे हटाकर
पुन: अपने मौिलक थान पर लाकर खड़ा कर िदया था य िक उसे महसस
ू हो गया था िक यु
का मु य आ मण अब कुछ ही ण म ारं भ होने वाला था।
‘सेनानायक, या हम ारं भ कर सकते ह?’ िशव ने बाएं भाग क ओर िसर िहलाकर पछ
ू ा।
‘जैसी भु क इ छा,’ पवते र ने उ र िदया।
या ही पवते र अपने अ
पर सवार होने को हआ तो िशव ने पुकारा, ‘पवते र?’
‘जी, भु।’
‘चं वंिशय क अंितम पंि
तक घुड़दौड़ क ितयोिगता हो जाए!’
पवते र ने आ य से अपनी भ हे उठाई ं। उसने एक बड़ी मु कान के साथ कहा, ‘म जीत
जाऊंगा, भु।’
‘चिलए देखते ह,’ िशव मु कुराया। उसक आंख िठठोली करने वाली मु ा म संकुिचत हो
गई ं।
पवते र अ यिधक फुत से अपने अ पर सवार हआ और बाई ं ओर नेत ृ व करने के िलए
चल पड़ा। िशव अपने अनुगािमय क, नंदी एवं वीरभ के साथ दाई ं ओर चल पड़ा। सनिजत ने
अपने कछुए वाले दल को म य म तैयारी क अव था म रख िदया।
‘मेलहू ा वािसय !’ िशव ने गजना करते हए कहा, ‘वे आपके सामने लेटे पड़े ह! वध क
ती ा म! यह आज ही समा होगा! बुराइय का आज ही सवनाश होगा!’
‘हर हर महादेव!’ य ही शंख विन ने सय
ू वंशी आ मण क घोषणा क तो सैिनक ने
अपने ती वर को गुंजायमान कर िदया।
कानफोडू शोर मचाते हए पैदल सेना ने चं वंिशय क ओर आ मण करने के िलए दौड़
लगा दी। कछुआ टुकिड़यां धीमी अव य थ लेिकन वे हठी तरीके से चं वंिशय क सेना के क
क ओर आगे बढ़ रही थ । धनुषाकार बनावट म उनके िकनारे क क अपे ा अिधक तेजी से
आगे बढ़ रहे थे। अ ारोही दल िकनार से वेश कर रहा था, अपने पैदल सैिनक को श ु के
आ मण से सुर ा देते हए। इस म य तीसरी एवं चौथी पंि य के बचे हए साहसी चं वंशी
सैिनक तेजी से एक पंि बनाने के य न म जुटे थे, तािक सय
ू वंिशय के घातक आ मण का
सामना कर सक। लेिकन अनगिनत मत
ृ क के शरीर के यु के मैदान म होने के कारण वे
पारं प रक चतुरंग बनावट म नह आ पा रहे थे जो उ ह िै तज चलन क अनुमित दान कर
पाता। और इससे पहले िक सय
ू वंशी सेना उन पर आ मण करती वे एक पतली पंि म एक साथ
भीड़ क तरह इक े ही हो पाए थे।
सय
ू वंिशय के िलए वह यु ठीक उसी कार चल रहा था, जैसी उनक योजना बनी थी।
जब वे चं वंशी पंि तक पहंचे तो वे एक कसी हई व ाकार पंि के प म िशि त एवं
िव ेषपण
ू सैिनक से यु थे और उनके िकनार पर ह क पैदल सेना अपने िकनारे वाली सेना
से धीमे होकर पीछे थी य िक कछुए के दल क गित धीमी थी। अबाध प से चलने वाली
कछुआ टुकिड़य ने चं वंिशय के म य िह से को िछ न-िभ न कर िदया। चं वंिशय के सबसे
अ छे खड्गधा रय से उनक ढाल र ा कर रही थ , जबिक उनके ि शल
ू व ीप वािसय को
चीरते हए आगे बढ़ रहे थे। चं वंिशय के पास मा दो िवक प थे। या तो ि शल
ू से म ृ यु वीकार
कर या िफर बाहर क ओर भाग जहां सय
ू वंिशय ारा उन पर भयंकर आ मण उनक सं या
को िनरं तर कम करता जा रहा था। उस िनमम आ मण के कारण चं वंिशय क सेना का म य
भाग िबखर गया और सय
ू वंिशय ने उनके िकनार को व त कर िदया था।
िशव अ यिधक उ
प से अपने भाग का नेत ृ व कर रहा था। वह अपने सामने आने वाले
सभी चं वंिशय को परू ी तरह से न कर रहा था। उसे तब आ य हआ जब उसने देखा िक
श ुओ ं क पंि
ीण होने लग गई थी। उसने अपने सैिनक को अपने से आगे बढ़कर आ मण
करने िदया और वयं को ऊंचा उठाकर आसपास हर ओर ि दौड़ाई तािक जान सके िक कहां
या हो रहा था। वह यह देखकर त ध रह गया िक चं वंशी पंि जो उसका िवरोध कर रही थी,
वह म य भाग क ओर अ सर थी। वे लोग कछुआ टुकिड़य के एकमा खुली हई उनक दािहनी
ओर से उन पर आ मण कर रहे थे। चं वंशी सेना म कोई अपनी बुि का योग कर रहा था।
यिद एक भी कछुआ बनावट टूटती है तो चं वंशी म य म पुन: एक कसावट भरा झुंड बनाकर
एक पंि
बना सकते थे और सय
ू वंिशय पर िव वंसकारी लय ला सकते थे।
‘मेलहू ावािसयो,’ िशव ने गजना क , ‘मेरे पीछे आओ।’
िशव के वज वाहक ने अपनी झंडी ऊंची कर दी। सैिनक ने िशव का अनुसरण िकया।
नीलकंठ ने उन चं वंिशय के ऊपर बगल से धावा बोल िदया जो कछुआ टुकिड़य पर बगल से
आ मण कर रहे थे। एक ओर से ि शुल एवं दूसरी ओर से िशव के आ मण ने चं वंिशय के
साहस को अंतत: तोड़कर रख िदया।
जो कुछ समय पवू एक िवशालकाय चं वंशी सेना थी वह अब कह -कह पर एकाध
यि य ारा दु साहसपण
ू लड़ाई म प रवितत हो चुक थी। िशव एवं पवते र ारा अपने-अपने
िह स का नेत ृ व अ यंत ही वीरता और स मता से िकया गया था तािक अवशेष काय भी परू ी
तरह से समा हो सके। यह एक पण
ू िवजय थी। चं वंशी सेना को घोर पराजय का सामना करना
पड़ा था।
अ याय - 24
िवल ण कटीकरण
स ती अपने तंबू से तेजी से बाहर आ गई। उसके पीछे कृि का और आयुवती थी।
‘थोड़ा धीरे चिलए सती,’ आयुवती ने दौड़कर चलते हए उसके पास पहंचते हए कहा, ‘इस
कार क आपक ि थित म...’
सती ने खीस के साथ आयुवती को देखा, लेिकन उसने अपनी चाल कम नह क । वह तेजी
से राजशाही तंबू क ओर बढ़ती चली जा रही थी, वहां िशव एवं पवते र िवजय क घोषणा के
बाद पहंच चुके थे। उसे यह सच
ू ना िमली थी। नंदी एवं वीरभ वेश पर पहरे पर खड़े थे। उ ह ने
एक ओर हटकर सती को अंदर जाने िदया, लेिकन आयुवती और कृि का को नह ।
‘मुझे मा कर, देवी आयुवती,’ नंदी ने मा याचना वाले वर म कहा। उसका िसर नीचे
झुका हआ था, ‘मुझे यह कड़ा िनदश िदया गया है िक िकसी को भी अंदर वेश न करने िदया
जाए।’
‘ य ?’ आ यचिकत आयुवती ने पछ
ू ा।
‘म नह जानता, देवी। मुझे मा कर।’
‘कोई बात नह ,’ आयुवती ने कहा, ‘आप तो केवल अपना कत य कर रहे ह।’
वीरभ ने कृि का क ओर देखकर कहा, ‘मुझे मा कर दो ि ये।’
‘कृपा कर सावजिनक प से मुझे यह संबोधन न कर,’ शमाते हए कृि का ने कहा।
सती ने आवरण को एक ओर हटाकर उस तंबू म वेश िकया।
‘म नह जानता, भु,’ पवते र ने कहा, ‘यह बात समझ म नह आ रही है।’
सती चिकत थी िक पवते र िशव को ‘ भु’ कहकर संबोिधत कर रहे थे। िकंतु िशव को
सुरि त देखने क खुशी ने उसक इस सोच को एक ओर कर िदया, ‘िशव!’
‘सती!’ िशव उसक ओर मुड़ते हए बुदबुदाया।
सती जड़वत हो गई य िक जब उ ह ने सती को देखा तो वे मु कुराए नह थे। उनके मुख
पर िवजयी मु कान नह थी। उ ह ने अपने घाव पर मरहम-प ी भी नह करवा रखी थी।
‘ या बात है?’ सती ने पछ
ू ा।
िशव ने सती को गहरी ि से देखा। उसके मुख के भाव ने सती को िवचिलत कर िदया।
वह पवते र क ओर मुड़ी। उसने कुछ ण के िलए एक जबरन मु कुराने वाली मु ा क । इस
कार मु कान उनके मुख पर तभी आती थी जब वे िकसी बुरे समाचार से उसे बचाना चाहते थे।
‘ या बात है, िपततृ ु य?’
पवते र ने िशव क ओर देखा, िजसने अंत म अपना मुंह खोला, ‘इस यु के बारे म कुछ
हम परे शान कर रहा है।’
‘आपको या परे शान कर सकता है?’ आ यचिकत सती ने पछ
ू ा, ‘आपने सय
ू वंिशय को
अब तक क सबसे महान िवजय िदलाई है। चं वंिशय क यह घनघोर पराजय मेरे दादा जी ारा
देने वाली पराजय से भी े है। आपको तो गव होना चािहए।’
‘मने चं वंिशय के साथ िकसी नागा को नह देखा,’ िशव ने कहा।
‘नागा लोग वहां नह थे,’ सती ने पछ
ू ा, ‘ये तो समझ के बाहर है।’
‘हां,’ िशव ने कहा। उसक आंख कुछ पवू ाभास के संकेत दे रही थ , ‘यिद वे चं वंिशय के
साथ इतने िहले-िमले हए ह तो उ ह यु भिू म म होना चािहए था। यिद उ ह चं वंिशय ारा योग
म लाया जा रहा था तो उनक द ता यु म उनके िलए और भी उपयोगी होती। लेिकन वे कहां
थे?’
‘हो सकता है िक उनके म य दरार हो गई हो,’ सती ने कहा।
‘म ऐसा नह मानता,’ पवते र ने कहा, ‘यह यु ही उन दोन के मंदार पवत पर संयु
आ मण के कारण हआ था! य वे लोग यहां नह होते?’
‘िशव, मुझे परू ा िव ास है िक आप जान जाएं गे,’ सती ने कहा, ‘आप अपने आपको इतना
दुखी मत होने दीिजए।’
‘तुम समझती नह हो, सती,’ िशव ने िच लाकर कहा, ‘म नह जान सकता! इसी कारण
से तो िचंितत हं।’
सती च ककर पीछे हट गई। उनक इस असामा य उ ता से वह िवि मत रह गई। वे तो ऐसे
न थे। इस म य िशव को अनुभव हो चुका था िक उसने या कर िदया था। उसने तुरंत ही अपने
र स सने हाथ से सती का हाथ थामकर कहा, ‘मुझ मा कर दो सती। असल म ऐसा है िक...’
उनक बातचीत म िव न उ प न हो गया य िक द अपने सहायक के साथ आवरण
उठाकर एक अ ुत अकड़ के साथ तंबू म वेश कर चुका था।
‘ भु!’ द क आंख से आंसू िनकल आए जैसे ही उसने िशव को कसकर गले लगाया।
िशव के मुंह से पीड़ा के कारण ह क िससकारी िनकल गई। उसके घाव पीड़ा दे रहे थे। द
ने त काल उ ह छोड़कर एक कदम पीछे ले िलया।
‘मुझे मा कर, भु,’ द ने कहा। अपने सहायक क ओर मुड़कर द ने कहा, ‘आयुवती
बाहर य ह? उ ह अंदर बुलाओ। उ ह भु के घाव पर मरहम-प ी लगाने दो।’
‘नह , को,’ िशव ने उस सहायक को कहा, ‘मने ही कहा था िक कोई मुझे तंग न करे ।
बाद म भी घाव का उपचार िकया जा सकता है।’ िशव ने द क ओर मुड़कर कहा, ‘महाराज,
मुझे आपसे कुछ बात करनी है...’
‘ भु, यिद आ ा द तो पहले म कुछ कहना चाहता हं,’ द ने उस बालक क तरह
उ सािहत होकर कहा िजसे अभी-अभी बहत समय से नह दी गई िमठाई िमल गई हो, ‘आपने जो
मेरे िलए िकया है, जो मेलहू ा के िलए िकया है, उसके िलए म आपको ध यवाद ािपत करना
चाहता था। हमने वह िकया है जो मेरे िपता भी नह कर सके थे। यह एक पण
ू िवजय है।’
इससे पहले िक द उनका यान अपनी ओर पुन: ख च पाता, िशव एवं पवते र ने कुछ
पल के िलए एक-दूसरे को देखा।
‘जब हम यहां बात कर रह ह तो स ाट िदलीप को यहां लाया जा रहा है,’ द ने कहा।
‘ या?’ पवते र ने आ य से पछ
ू ा, ‘िकंतु हमने तो अभी कुछ समय पहले ही सैिनक को
उनके खेमे म भेजा था। वे इतनी शी ता से उसे बंदी नह बना पाए ह गे।’
‘नह , पवते र,’ द ने कहा, ‘मने अपने िनजी पहरे दार को बहत पहले ही भेज िदया था।
अवलोकन वेिदका से हम देख सकते थे िक जब तक भु और आपने तीसरा आ मण िकया था,
तब तक चं वंशी परािजत हो चुके थे। एक दूरी से जो य उपि थत होता है उसका यही लाभ
होता है। िजस तरह का वह कायर है, म िचंितत था िक िदलीप अव य भाग जाएगा। इसिलए मने
अपने िनजी पहरे दार को उसे बंदी बनाने भेज िदया था।’
‘िकंतु, महाराज,’ पवते र ने कहा, ‘उसे यहां लाने से पहले हम आ मसमपण क शत के
बारे िवचार-िवमश नह कर लेना चािहए? हम या ताव रखगे?’
‘ ताव?’ द ने पछ
ू ा। उसक आंख िवजय के परम आनंद से िझलिमला रही थ ।
‘सचाई से कह तो यह देखते हए िक उसक कैसी घनघोर पराजय हई है, हम िकसी ताव
क आव यकता ही नह है। उसे यहां एक सामा य अपराधी क तरह लाया जा रहा है। हालांिक
हम उसे िदखाएं गे िक मेलहू ा िकतना दयाशील है। हम उसे ऐसा ताव दगे िक उसक अगली
सात पु त हमारी शंसा करती रहगी!’
इससे पहले िक चिकत िशव पछ
ू पाता िक द ने अपने मन म या सोच रखा था, राजशाही
िढं ढोरा पीटने वाले ने िदलीप के उस तंबू के बाहर उपि थित क घोषणा कर दी। उसके साथ
रा यािभषेक हआ उसका राजकुमार पु भगीरथ भी था।
‘एक िमनट, कौ तव,’ द ने कहा और वह घबराहट के मारे उस तंबू क को यवि थत
करने म जुट गया जैसािक वह अपने अनुकूल चाहता था। वह एक कुस पर बैठ गया जो उस तंबू
क के म य म रखा हआ था। द ने िशव से अनुरोध िकया िक वे उसके दािहनी ओर बैठ। जैसे
ही िशव बैठ गया तो सती वहां से बाहर जाने को हई। िशव ने हाथ बढ़ाकर उसका हाथ पकड़
िलया। वह मुड़ी और उसने िशव क आव यकता को समझ िलया। उसके बाद वह िशव के पीछे
रखी कुस पर जाकर बैठ गई।
द ने उसके बाद पुकारकर कहा, ‘उसे अंदर आने दो।’
िशव बुराई के मुख को देखने के िलए याकुल था। नागाओं क अनुपि थित के बारे म संदेह
होने के बावजदू वह सचमुच ही ऐसा मान रहा था िक उसने सचाई से एक यायसंगत यु िकया
था। उसने सोचा िक चं वंिशय के उस दु राजा के परािजत मुख को देखने पर ही पण
ू िवजय
होगी।
िदलीप अंदर आया। िशव चिकत होकर सीधा हो गया। जैसी उसने आशा क थी िदलीप वैसा
कदािप नह था। वह देखने म एक व ृ यि जैसा था, जो य मेलहू ा म सोमरस के कारण
िवरला ही देखने को िमलता था। व ृ होने पर भी िदलीप का यि व सुंदर था। वह म यम कद
का था और थोड़े मांसल शरीर के साथ उसक वचा काले रं ग क थी। मेलहू ा वािसय के सादगी
भरे पहनावे क तुलना म उसका पहनावा मौिलक प से बहत िभ न था। एक चमकदार गुलाबी
धोती, चमकदार बगनी रं ग का अंगव म् और चुर मा ा म वण आभषू ण उसके अिधकतर
अंग म पहने होने के कारण उसे आकषक बना रहे थे। उसके चेहरे से तीत हो रहा था िक उसने
जीवन को बहत ही आमोद- मोद म िबताया था। अित ययी ढं ग से रं गीन उसके मुकुट के नीचे
उसके सफेद बाल के साथ-साथ बहत अ छी कार से छं टनी क हई दाढ़ी ने उसके चेहरे को एक
पण
ू त: अश सा आकार देते हए बुि जीवी यि का आकार भी दे रखा था।
‘अिभिष
राजकुमार भगीरथ कहां है?’ द ने पछ
ू ा।
‘मने उसे बाहर ती ा करने के िलए कहा है य िक वह थोड़ा ोधी वभाव का है,’
िदलीप ने कहा। वह केवल द को देख रहा था और िकसी अ य क उपि थित मानने से इंकार
कर रहा था।
उसने आगे कहा, ‘ या आप मेलहू ावािसय म अपने अितिथ को बैठने के िलए कुस देने का
र म नह है?’
‘आप अितिथ नह ह, स ाट िदलीप,’ द ने कहा, ‘आप बंदी ह।’
‘हां, हां, मुझे पता है। आप मसखरी पसंद नह करते या?’ िदलीप ने यं या मक ढं ग से
कहा, ‘तो िफर इस बार आप लोग हमसे या चाहते ह?’
द ने िदलीप को
सच
ू क ि
से घरू ा।
‘आप लोग ने सौ साल पहले ही यमुना का जल चोरी कर िलया है,’ िदलीप ने कहना जारी
रखा, ‘अब और या चाहते ह?’
िशव ने आ य से द क ओर मुड़कर देखा।
‘हमने यमुना का जल नह चुराया है,’ द
वापस ले िलया था।’
ोध से िच लाया, ‘वह हमारा था और हमने
‘हां जो भी हो,’ िदलीप अपने हाथ को लहराकर इस बात को वह समा करता हआ बोला,
‘इस बार आपक या मांग ह?’
िजस कार वातालाप चल रहा था, उस पर िशव अचंिभत था। उन लोग ने अभी-अभी इस
दु
यि को परािजत िकया था। उसे प ातापी होना चािहए था। लेिकन वह दूसर को नीचा
िदखाने वाला यवहार कर रहा था और दंभी था।
द ने िदलीप को अपनी आंख बड़ी करके और मधुर मु कान के साथ देखते हए कहा, ‘म
कुछ लेना नह चाहता, बि क आपको कुछ देना चाहता हं।’
िदलीप ने सावधानीपवू क अपनी भ ह को ऊपर उठाकर पछ
ू ा, ‘मुझे कुछ देना चाहते ह?’
‘हां। म आपको हमारी जीवन-शैली का लाभ देना चाहते ह।’
िदलीप लगातार संदेह भरी ि
से द को घरू रहा था।
‘हम आपको ऊंचा उठाकर हमारी े जीवन-शैली तक लाना चाहते ह,’ द ने कहा।
उसक आंख अपनी ही इस उदारता से अचंभेपन म थ । उसने कहना जारी रखा, ‘हम आप म
सुधार लाएं गे।’
िदलीप ने एक खी खी वाली हंसी से पछ
ू ा, ‘हमम सुधार?’
‘हां, मेरे सेनानायक पवते र अब आपके व ीप पर हमारे राज ितिनिध के तौर पर
शासन करगे। आप नाममा के स ाट ह गे। पवते र यह सुिनि त करगे िक आपके
लोग
को सुधारकर उ ह मेलहू ावािसय जैसे े जीवन तर पर लाएं । अब हम लोग भाइय क तरह
रहगे।’
पवते र ने हैरानी से द
भेजा जाएगा।
क ओर मुड़कर देखा। उसे यह आशा नह थी िक उसे व ीप
ऐसा तीत हआ िक िदलीप को अपनी हंसी रोकने म बहत किठनाई हो रही थी, ‘ या आप
सचमुच म ही यह सोचते ह िक आपके ये सीधे-साधे लोग व ीप पर शासन कर सकते ह? मेरे
लोग अि थर ह। वे आपके उपदेश को कभी नह सुनगे।’
‘हां, वे सुनगे,’ द ने यं योि क , ‘वे सब कुछ सुनगे, जो हम कहगे। य िक आप नह
जानते िक वा तव म वह वर कहां से आता है।’
‘ या सचमुच म? वह कहां से आता है? मुझे कािशत क िजए।’
द ने िशव क ओर झुककर कहा, ‘देिखए हमारे साथ कौन बैठते ह।’
िदलीप द के दािहने मुड़ा और उसने अिव ासी होकर पछ
ू ा, ‘यह कौन है? इं देव के नाम
पर इसम या िवशेष बात है?’
िशव कसमसाकर रह गया। वह अ यिधक असुिवधाजनक अनुभव कर रहा था।
द ने और अिधक ऊंचे वर म कहा, ‘हे चं वंशी राजन उनके कंठ को देखो।’
िदलीप ने पुन: उसी अहंकार से िशव क ओर देखा। अ प मा ा म र एवं र िपंड के होने
के बावजदू नीला कंठ दी हो रहा था। अचानक िदलीप क वह अहंकारी मु कान अ य हो
गई। वह सदमे म हआ तीत हआ। उसने कुछ कहने का यास िकया लेिकन श द उसके मंुह से
बाहर नह आ सके।
‘हां, हे
चं वंशी,’ द ने अव ा वाले बोल म नाटक य भाव डालने के िलए अपने
हाथ को लहराकर कहा, ‘हमारे पास नीलकंठ ह।’
िदलीप क आंख म त ध-सी ि थी उस बालक के समान िजसे अभी-अभी पता चला हो
िजन हाथ ने ू रता से उसक पीठ म छुरा घ पा था, वे हाथ उसके ि य िपता ी का हो। बढ़ती हई
शंकाओं से िशव का दय अशांत था। यह बैठक इस कार से होनी िनध रत नह थी।
द ने अपने धमक भरे वर म बोलना जारी रखा, ‘नीलकंठ ने ित ा ली है िक वे
चं वंशी तरीके क दु
कार क जीवन-शैली का नाश करगे। आपको सुनना ही पड़े गा।’
िकंकत यिवमढ़
ू िदलीप ने िशव को गहरी ि से देखा जो सनातन त व सा तीत हो रहा
था। और अंत म उसने वयं को इतना संयत िकया िक वह कह सके, ‘आप जो कह।’
इससे पहले िक द अपने गजन वाले वर म कुछ और कह पाता, िदलीप मुड़ा और
लड़खड़ाते हए तंबू के आवरण क ओर चल पड़ा था। बाहर िनकलने से पहले वह िशव को एक
बार पुन: देखने के िलए पीछे मुड़ा। िशव उसक अहंकार भरी गव ली आंख म कुछ आंसू क बंदू
देखने को इ छुक था।
जैसे ही िदलीप ने तंबू के बाहर अपने कदम रखे, द उठ खड़ा हआ और उसने आगे
बढ़कर िशव को गले लगा िलया। इस बार धीरे से तािक नीलकंठ को पीड़ा न हो। िफर उसने
कहा, ‘ भु, आपने उसके मुख के भाव देखे। वे मू यवान थे!’
पवते र क ओर मुड़कर उसने कहा, ‘पवते र, िदलीप टूटा हआ है। आपको व ीप
वािसय को िनयं ण करने म एवं उ ह हमारी जैसी जीवन-शैली क ओर लाने म कोई किठनाई
नह होगी। हम लोग इितहास म इस काय के िलए जाने जाएं गे िक हमने इस िवपि का थायी
समाधान िकया था।’
िशव उन बात पर यान नह दे रहा था। उसका परे शान दय उिचत उ र क खोज कर
रहा था। एक संघष जो कुछ घंट पहले तक यायसंगत तीत हो रहा था, वह अचानक ही गलत
तीत हो रहा था? वह असहाय सा सती क ओर मुड़ा। सती ने धीमे से उसके कंधे को पश
िकया।
‘आप या सोच रहे ह, भु,’ द
िकया।
ने िशव के परे शानी भरी सोच म अनिधकार ही वेश
िशव ने मा अपना िसर िहलाया।
‘मने मा इतना आ ह िकया है िक आप िदलीप क सवारी म अयो या तक जाना पसंद
करगे अथवा नह ?’ द ने पछ
ू ा, ‘आप इस स मान के यो य ह, भु। आपने इस सुहावने िदन के
िलए हमारा नेत ृ व िकया है।’
इस समय यह वातालाप िशव को उतना मह वपण
ू नह तीत हो रहा था। उसके पास इतनी
ऊजा नह बची थी िक वह कोई उ र सोच सके। उसने खोये-खोये से तरीके से िसर िहलाया।
‘अित सुंदर। म सारी यव थाएं करता हं,’ द ने कहा। अपने सहायक क ओर मुड़कर
उसने कहा, ‘आयुवती को अंदर भेजो तािक वे भु के घाव पर मरहम-प ी कर सक। इससे पहले
िक िदलीप के शासन क पराजय के प ात कुछ गड़बड़ी फै ल जाए, कल ात:काल ही हम
अयो या पर िनयं ण करने के िलए थान करना होगा।’
िशव क ओर नम ते करने के बाद द मुड़कर जाने को हआ तो उसने पवते र से पछ
ू ा,
‘पवते र, आप नह चल रहे ह?’
पवते र ने िशव क ओर देखा तो उसके चेहरे पर िचंता क रे खाएं उभर आई ं।
‘पवते र?’ द ने दुहराया।
एक ण सती को देखता हआ पवते र मुड़कर चला गया। सती आगे बढ़ी, िशव के चेहरे
को कोमलता से थामे हए। िशव क आंख अ यिधक थकान के कारण बोिझल होती जा रही थ ।
उसी समय आयुवती ने आवरण को सावधानीपवू क उठाया और पछ
ू ा, ‘आप कैसे ह, भु?’
िशव ने ऊपर क ओर देखा। उसक आंख आधी बंद हो चुक थ । वह एक िविच कार क
न द म गोता लगाने क ओर अ सर था। अचानक वह बहत ऊंचे वर म िच लाया, ‘नंदी!’
नंदी त काल अंदर आ पहंचा।
‘नंदी या तुम एक गुलबू ंद ला सकते हो?’
‘गुलबू ंद, भु?’ नंदी ने पछ
ू ा।
‘हां।’
‘हं ऽ ऽ। िकंतु य भु?’
‘ य िक मुझे चािहए!’ िशव ऊंचे वर म िच लाया।
नंदी अपने भु के इस िहं
कार के उ र से त ध होकर तेजी से बाहर भागा। सती और
आयुवती ने आ य म िशव को देखा। इससे पहले िक वे कुछ कह पाते, िशव अचानक ही िगर
पड़ा। अचेत।
वह ती गित से दौड़ रहा था। वह डरावना जंगल िनरं तर उसक ओर बढ़ता हआ समीप चला आ
रहा था। वह हताशा म उस व ृ से दूर जाना चाहता था, इससे पहले िक उनके खंख
ू ार पंजे उसे
पकड़ ल। अचानक एक अित ती आ ही िच लाहट शांित को भंग कर गई।
‘सहायता! मेरी सहायता कर!’
वह क गया। नह । वह इस बार नह भागेगा। वह उस रा स से लड़ाई करे गा। वह महादेव
था। यह उसका कत य था। िशव धीरे से पीछे मुड़ा। उसक तलवार िनकली हई थी। उसक ढाल
उसके हाथ म ऊंची उठी हई थी।
‘जय ी ीराम!’ वह िच लाया और वह उस खुले हए भाग क ओर दौड़ पड़ा। झािड़य वाले
कांट ने उसके पैर को िछल िदया था। बहते हए र और डर के बावजदू वह दौड़ता चला जा रहा
था।
म उसके पास समय से पहंच जाऊंगा।
म इस बार उसे िनराश नह क ं गा।
मेरा र
मेरे पाप को धो डालगे।
उसने उस अंितम झािड़य के झुरमुट से ऊपर से छलांग लगाई। कांट ने उसके शरीर के
मांस को एक लोभी क तरह काटकर रख िदया था। िकंतु वह उछलकर उस खुले े म पहंच
गया। उसक ढाल र ा मक ढं ग से सामने थी और उसक तलवार आ मण के ितकार के नीचे
क ओर झुक थी। िकंतु िकसी ने आ मण नह िकया। यह तो एक िविच अ हास था िजसने
उसके यान क ण को तोड़ डाला था। उसने अपनी ढाल को धीमे से नीचे िकया। बहत धीमे से।
‘हे भु!’ पीड़ा म उसक चीख िनकल गई।
ी भिू म पर यिथत पड़ी हई थी। एक छोटी सी तलवार उसके व थल म गड़ी हई थी। वह
छोटा सा बालक उसके बगल म खड़ा था। त ध। िन:श द। उसका हाथ म ृ यु का रत करने के
संघष से लह-लुहान था। वह र यदार रा स एक िशला के िकनारे पर बैठा हआ, उस बालक क
ओर संकेत कर रहा था। हंसता हआ।
‘नह !’ िशव बलपवू क चीखा और एक झटके से उठ बैठा।
‘ या हआ, िशव?’ सती ने िचंितत होकर पछ
ू ा। झपटकर उसके हाथ को पकड़ते हए।
िशव ने िव मय से क
और बोल पड़े , ‘ भु?’
म चार ओर देखा। िचंितत पवते र एवं आयुवती भी खड़े हो गए
‘िशव, सब कुछ ठीक है। सब कुछ ठीक है,’ सती ने धीमे वर म बड़ी सुकुमारता से अपने
हाथ िशव के मुख पर चलाते हए कहा।
‘आपको िवषयु कर िदया गया था, भु,’ आयुवती ने कहा, ‘हमारा मानना है िक कुछ
चं वंशी सैिनक के पास िवषयु श रहे ह गे। इसके कारण कई अ य लोग पर भी इसका
भाव पड़ा है।’
िशव ने धीरे -धीरे जब अपना मानिसक संतुलन पाया तो वह अपने िब तर से उठकर खड़ा
हो गया। सती ने उसक सहायता करने का यास िकया, िकंतु उसने वयं ही उठने का हठ
िकया। उसका गला अ यंत ही दुखदायी प से शु क था। वह डगमगाता हआ घड़े के पास पहंचा।
सती उसके साथ थी। उसने हाथ बढ़ाकर उसे उठाया और ढे र सारा जल अपने गले म उं ढ़ेल िलया।
‘ऐसा तीत होता है िक म बहत लंबे समय तक सोता रहा हं,’ िशव ने अंतत: दूर जली हई
मशाल और अंधकारमय आसमान को देख िलया था।
‘हां,’ िचंितत आयुवती ने कहा, ‘लगभग छ ीस घंटे।’
‘छ ीस घंटे!’ चिकत िशव के मुख एक चीख िनकल पड़ी और वह एक आरामदायक कुस
पर लगभग िगर सा गया। उसने एक डरावने आकार के यि को पीछे क ओर बैठे हए देखा।
उसक आंख प य से बंधी हई थ और उसके अंग छे दन िकया हआ बायां हाथ र सी के सहारे
लटका हआ था। यान से देखने पर िशव आ य म बोल पड़ा, ‘ पकु!’
‘जी हां, भु,’ पकु ने सैिनक अिभवादन करने के िलए उठने का यास करते हए कहा।
‘हे भगवान, पकु! तु ह देखकर बहत ही अ छा लग रहा है। कृपया बैठे रहो।’
‘आपको देखना वग य अनुभिू त है, भु।’
‘तु हारी ओर यु कैसा रहा?’
‘मने अपने बहत से लोग को खो िदया, भु। लगभग आधे आदमी। और यह हाथ और एक
आंख,’ पकु ने धीमे वर म कहा, ‘लेिकन आपक कृपा से हम लोग ने उ ह तब तक रोके
रखा जब तक िक मु य यु समा नह हो गया।’
‘इसम मेरी कोई कृपा नह थी, िम । यह तो तु हारा शौय था,’ िशव ने कहा, ‘मुझे तुम पर
गव है।’
‘बहत-बहत ध यवाद, भु।’
सती अपने पित के बाल म हाथ फेरते हए खड़ी थी, ‘ या आप िनि त प से बैठना चाहते
ह, िशव? आप कुछ देर के िलए लेट सकते ह।’
‘मने उस अनजानी मु ा म कुछ अिधक ही आराम कर िलया है, सती,’ िशव ने एक दुबल
मु कान के साथ कहा।
आयुवती ने मु कुराकर कहा, ‘लगता है िक िवष ने िनि त प से आपक िद लगी करने
क भावना को भािवत नह िकया है, भु।’
‘सच म? या ये अभी भी उतनी ही बुरी है?’ िशव ने शरारत भरी मु कान के साथ कहा।
पवते र, पकु एवं आयुवती के मुंह से ह क हंसी फूट पड़ी। सती को हंसी नह आई। वह
िशव को अ यिधक यानपवू क देख रही थी। वे कुछ अिधक ही यास कर रहा थे। वे भल
ू ने का
य न कर रहे थे। वे यास कर रहे थे िक लोग उ ह छोड़कर दूसरी व तुओ ं पर अपने यान
कि त कर। या यह व न अ य व न क तुलना म और बुरा था?
‘महाराज कहां ह?’ िशव ने पछ
ू ा।
‘िपताजी आज ात: ही अयो या को
थान कर गए ह,’ सती ने कहा।
‘ भु,’ पवते र ने कहा, ‘महाराज ने अनुभव िकया िक प रि थितय को देखते हए व ीप
को िबना शासक के अिधक िदन तक रखना उिचत नह होगा। उ ह ने इसे मह वपण
ू समझा िक
स ाट िदलीप को बंदी बनाए हए सय
ू वंशी सेना को सम त सा ा य म मण कराना चािहए
तािक व ीप वािसय को पता हो और वे इस नए िवधान को वीकार कर ल।’
‘तो िफर हम लोग अयो या नह जा रहे ह?
‘हम लोग जाएं गे, भु,’ आयुवती ने कहा, ‘कुछ िदन के बाद जब आप परू ी तरह से व थ
एवं पवू क भांित शि शाली हो जाएं गे।’
‘लगभग बारह हजार सैिनक हमारे साथ यह रह गए ह, भु,’ पवते र ने कहा, ‘हम लोग
अयो या को याण करगे, जब आप तैयार ह गे। महाराज ने इस बात पर बल देकर स ाट िदलीप
के प रवार के एक सद य को पीछे छोड़ िदया है तािक बंदी साथ म रहने पर हमारी अपे ाकृत
छोटे सै य दल पर व ीप वासी भल
ू कर भी आ मण न कर सक।’
‘तो इसका अथ है िक हमारे खेमे म स ाट िदलीप के प रवार का सद य भी है?’
‘जी हां, भु,’ पवते र ने कहा, ‘उनक पु ी राजकुमारी आनंदमयी।’
आयुवती अपना िसर िहलाते हए मु कुराई।
‘ या?’ िशव ने च ककर पछ
ू ा।
आयुवती ने पवते र क ओर संकोचपवू क देखा और उसके बाद सती क ओर बनावटी
हंसी से। पवते र ने ती आंख से आयुवती को देखा।
‘ या हआ?’ िशव ने पुन: पछ
ू ा।
‘इतना कुछ भी मह वपण
ू नह है, भु,’ पवते र ने िविच तरह संकोचपण
ू ता से कहा,
‘वह ऐसा है िक वह कुछ अिधक ही दमदार है।’
‘तो िफर ठीक है, म यह सुिनि त क ं गा िक म उसके रा ते म कभी न पडूं ,’़ िशव ने
मु कुराते हए कहा।
‘ये माग सही तीत होता है,’ पवते र ने मानिच पर संकेत करते हए कहा।
िपछले पांच िदवस म िशव एवं िवषा होने वाले सभी सैिनक भले-चंगे हो चुके थे। अयो या
के िलए याण अगले िदन ात: का िनयत िकया गया था।
‘मेरे िवचार से आपका कहना उिचत जान पड़ता है,’ िशव ने कहा। उसका मन व ीप के
स ाट के साथ हई बैठक क ओर िखंचा चला गया।
िदलीप के बारे म सोचने का कोई अथ नह है। म िनि त तौर पर कह सकता हं िक वह उस
बैठक के दौरान नाटक कर रहा था। चं वंशी बुरे लोग ह। वे िकसी भी कार का धोखा देने म
मािहर ह। हमारा यु यायसंगत था।
‘हम लोग कल ात: थान करने क योजना बना रहे ह, भु,’ पवते र ने कहा। उसके
बाद उसने सती क ओर मुड़कर कहा, ‘तुम अंतत: भु ी राम के ज म थल को देख पाओगी,
मेरी ब ची।’
‘हां, िपततृ ु य,’ सती ने मु कुराकर कहा, ‘िकंतु म नह जानती िक इन लोग ने उनके
मंिदर को अ छी तरह से रखा भी है अथवा नह । अपनी घण
ृ ा म उसे न न कर िदया हो।’
उनक यह बातचीत एक अ यंत ही उ च तरीय शोरगुल से बािधत हो गई।
पवते र ने गु से से अपनी योरी चढ़ाकर पछ
ू ा, ‘वहां बाहर या हो रहा है, नंदी?’
‘ भु,’ नंदी ने आवरण के दूसरी ओर से कहा, ‘राजकुमारी आनंदमयी यहां ह। उनक कुछ
मांग ह। िकंतु हम उसे परू ा नह कर सकते। वे आपसे िमलने का हठ कर रही ह।’
‘राजकुमारी जी से कहो िक वे अपने तंबू म ती ा कर,’ पवते र ने गुराकर कहा, ‘म
कुछ ही िमनट म उनसे िमलता हं।’
‘म ती ा नह कर सकती सेनानायक!’ आवरण के पीछे से एक शि शाली
उभरा।
ी का वर
िशव ने पवते र को संकेत िकया िक उ ह आने िदया जाए। पवते र ने आवरण क ओर
मुड़कर कहा, ‘नंदी, वीरभ उ ह अंदर लेकर आओ। िकंतु अ -श आिद के िलए उनका
परी ण कर लेना।’
कुछ ही ण म नंदी एवं वीरभ के साथ आनंदमयी ने िशव के तंबू म वेश िकया। उसक
उपि थित पर िशव क भ ह ऊपर उठ गई ं। वह अपने िपता से अिधक लंबी थी। और यान भंग
करने वािलय क तरह सुंदर थी। अखरोट के गहरे रं ग वाला उसका व प उसके शरीर का
समपरू क था जो चुर मा ा म कामुक िकंतु व थ था। उसक िहरणी जैसी आंख कामो ेजक
प म अधखुली घरू ने वाली दशा म थ जबिक उसके ह ठ िचर थायी प से खीज क मु ा म
फूले हए थे, जो कामुक तो थे िफर भी भयभीत करने वाले थे। उसने उकसाने वाले व पहने रखे
थे। उसने धोती को संकटपण
ू तरीके से कमर म बहत नीचे क ओर बांधा हआ था और जो घुटन
से कई ई ंच ऊपर तक ही थी, जबिक उसे पीड़ायु तरीके से अपने कमनीय िनतंब पर कसकर
लपेटा हआ था। वह लंगोट से कुछ ही लंबी थी, जो मेलहू ावासी पु ष अनु ािनक नान के समय
पर पहना करते थे। उसक चोली कुछ-कुछ उसी कार के कपड़े के टुकड़े से बनी हई थी, जो
मेलहू ावासी ि य ारा पहनी जाती थ , िकंतु अपवाद व प वह ऊपर से उसके िवशाल उरोज
को आकार देते हए अ ील तरीके से कटी हई थी, जो उसके उरोज के म य भाग क गहराई को
उदारतापवू क िदखा रहा था। वह अप रप व वासना को बहाते हए अपने िनतंब को एक ओर
झुकाकर खड़ी हई थी।
व
‘आप सचमुच म यह समझते ह िक म इन व म कोई अ -श
क ओर संकेत करते हए आनंदमयी ने धावा बोला।
छुपा सकती हं,’ अपने
िवि मत नंदी एवं सती ने ि गड़ाकर उसको देखा जबिक िशव एवं वीरभ के मुख पर
एक आ यिमि त मु कान थी। पवते र ने ह का सा िसर िहलाया।
‘आप कैसे ह, पवते र?’ आनंदमयी ने एक मोहक मु कान फकते हए और उसे नीचे से
ऊपर तक िनहारते हए कहा। उसने कामुकता से अपनी भ हे उठाई ं।
िशव ने जब पवते र को थोड़ा शमिते हए देखा तो अपनी मु कान रोक नह पाया।
‘आपक या अिभलाषा है, राजकुमारी ?' पवते र ने तीखे वर म पछ
ू ा, ‘हम लोग एक
मह वपू ण बैठक म ह।’
‘िजसक मुझे अिभलाषा है, या आप उसे सचमुच म परू ा करगे, सेनानायक?’ आनंदमयी
ने िन: ास छोड़ते हए कहा।
पवते र शम से और भी लाल हो गया, ‘राजकुमारी, हमारे पास िनरथक बात के िलए
समय नह है।’
‘हां,’ आनंदमयी ने आह भरते हए कहा, ‘बहत दुभा यपण
ू है। तो िफर आप इस उदासीनता
भरे खेमे म मेरे िलए योड़ा दूध और गुलाब क पंखुिड़य क यव था कर सकते ह?’
पवते र ने नंदी क ओर मुड़कर आ य म देखा। नंदी ने तुरंत अपना मुंह खोला, ‘ भु,
इ ह मा एक िगलास दूध क आव यकता नह है, बि क पचास लीटर क आव यकता है।
आहार िवतरण िनयं ण के तहत इसक अनुमित नह दी जा सकती है।’
‘आप पचास लीटर दूध पीने वाली ह?’ पवते र चीखा। उसक आंख आ य म फटी रह गई।
‘वह मुझे स दय नान के िलए चािहए, सेनानायक!’ आनंदमयी ने कु
ि से देखा,
‘आप हम लोग को एक लंबी या ा पर ले जाने वाले ह। म िबना तैयारी के नह जा सकती।’
‘म यास करता हं और देखता हं िक या कर सकता हं, पवते र ने कहा।
‘आप केवल यास न कर, सेनानायक। यह आपको करना ही होगा,’ आनंदमयी ने
लगभग चेतावनी वाले वर म कहा।
िशव अब अपने पर िनयं ण न रख सका और ठहाका मारकर हंस पड़ा।
‘तुम या समझते हो िक तुम िकस बात पर हंस रहे हो?’ िशव क ओर मुड़ते हए आनंदमयी
ने गु से से देखा।
‘आप भु से मयादा से बात कर, राजकुमारी,’ पवते र िच लाया।
‘ भु?’ आनंदमयी ने उपहास वाली हंसी के साथ कहा, ‘तो यह है, जो भारी है? िजसे द
किथत प से िदखाकर इतरा रहे थे?’
वह िशव क ओर मुड़ी, ‘तुमने मेरे िपता से ऐसा या कुछ कह िदया िक वे अब बातचीत भी
नह कर रहे ? तुम मुझे तो इतने धमक भरे नह लगते हो।’
‘आप जो कुछ भी बोल रही ह, उसके बारे म सावधान रिहए, राजकुमारी,’ पवते र ने
ोिधत होते हए समझाया, ‘आप शायद यह नह जानती ह िक आप िकससे बात कर रही ह।’
िशव ने पवते र को अपना हाथ उठाकर शांत होने के िलए कहा। िकंतु वह तो आनंदमयी
थी, िजसे शांत करने क आव यकता थी।
‘तुम चाहे जो भी हो, जब हमारे भु पधारगे तो तुम लोग सभी चरू -चरू हो जाओगे। जब वे
व ीप म उ रािधकारी बनकर नीचे आएं गे तो तुम जैसी बुराइय का नाश कर दगे।’
या?
‘इ ह अभी बाहर िनकालो, नंदी,’ पवते र ने चीखकर कहा।
‘नह को,’ िशव ने कहा। आनंदमयी क ओर मुड़कर उसने पछ
ू ा, ‘आपके कहने का या
अथ है िक “जब वे व ीप म उ रािधकारी बनकर नीचे आएं ग े तो हम जैसी बरु ाइय का नाश
कर दग” ?’
‘म तु ह इसका उ र य दंू, पवते र के भु?’
पवते र अ यिधक फुत से आगे बढ़ा और उसने तलवार िनकालकर आनंदमयी क गदन
के पास ले जाकर िदखाते हए कहा, ‘जब भु कुछ पछ
ू ते ह तो आप उ र दगी।’
‘ या आप हमेशा इतनी ही फुत िदखाते ह?’ आनंदमयी ने ध ृ तापवू क कहा, ‘या िफर
आप कभी-कभार धीमी गित से भी कुछ काम कर सकते ह?’
अपनी तलवार अ यिधक समीप लाते हए पवते र ने कहा, ‘ भु को उ र दीिजए,
राजकुमारी।’
अपना िसर िहलाते हए आनंदमयी िशव क ओर मुड़ी, ‘हम अपने भु के आने क
कर रहे ह, जो व ीप म आएं गे और वे दु सय
ू वंिशय का िवनाश कर दगे।’
ती ा
िशव के संुदर मुख पर िचंता क शि शाली रे खाएं उभर गई ं। उसने पछ
ू ा, ‘तु हारे भु कौन
ह?’
‘म नह जानती। उ ह ने अभी तक अपना व प कट नह िकया है।’
एक अ यंत ही गहरा अिन दशन िशव के दय म समा गया। वह अपने अगले
से
अ यंत ही भयभीत था। लेिकन उसके अंतमन ने उससे कहा िक नह उसे पछ
ू ना ही चािहए, ‘तुम
कैसे जान पाओगी िक वे ही तु हारे भु ह?’
‘तुम इसम इतनी िच य रखते हो?’
‘मुझे यह जानने क आव यकता है,’ िशव ने उलझन वाले वर म पछ
ू ा।
आनंदमयी ने गु से से योरी चढ़ाकर िशव को देखा जैसे िक वह िवि
यि हो और
कहा, ‘वे स -िसंधु के नह ह गे। वे न तो सय
ू वंशी ह गे और न ही चं वंशी। िकंतु वे जब भी
आएं गे, हमारे प म ही आएं गे।’
िशव ने अंतमन के वर ने उससे कहा िक अभी बात समा नह हई है। उसे अभी और भी
कुछ कहना है। अपनी कुस के ह थे को बलपवू क पकड़कर उसने पछ
ू ा, ‘और?’
‘और,’ आनंदमयी ने कहना जारी रखा, ‘जब वे सोमरस का पान करगे तो उनका कंठ
नीला हो जाएगा।’
एक सुनाई पड़ने वाली िन: ास िशव के मुंह से िनकल गई और उसका शरीर तन गया।
उसे तीत हो रहा था िक सम त
ांड घम
ू रहा था। इस िविच वातालाप पर आनंदमयी और भी
ोिधत हो चुक थी।
पवते र ने आंख तरे रकर डरावनी ि से आनंदमयी को घरू ते हए कहा, ‘हे नारी! आप
अस य बोल रही ह! वीकार क िजए! आप अस य वचन बोल रही ह!’
‘म य अस य...’
आनंदमयी बीच म ही क गई य िक उसने िशव के गले म गुलबू ंद को देख िलया था।
अचानक ही उसके मुख से अहंकार का भाव अ य हो गया। उसे तीत हआ िक उसके घुटने
झुक से रहे थे। बड़ी दुबलता से उं गली उठाकर उसने पछ
ू ा, ‘आपका गला ढका हआ य है?’
‘इ ह बाहर ले जाओ, नंदी,’ पवते र ने आ ा दी।
‘आप कौन ह?’
नंदी एवं वीरभ ने आनंदमयी को बाहर ख चने का यास िकया। आ यजनक शि
साथ वह उनसे संघष करने लगी और बोली, ‘अपना गला िदखाइए!’
के
उ ह ने उसके हाथ पकड़कर पीछे क ओर कर िदया। उसने वीरभ के दोन पैर के म य
अपने पैर से चोट मारी तो वह अ यिधक पीड़ा म कराह कर पीछे हट गया। िफर उसने िशव क
ओर पलटकर कहा, ‘आिखर आप ह कौन?’
िशव ने नीचे मेज को घरू ना ारं भ कर िदया था। उसके पास इतनी भी शि नह बची थी
िक वह आनंदमयी क ओर ि उठाकर भी देख सके। उसने अपनी कुस के ह थ को कसकर
पकड़ा हआ था। उसे वही एकमा ि थर व तु तीत हो रहा था य िक परू ा
ांड ही अिनयंि त
गित से उसके सामने घम
ू ता ि गत हो रहा था।
वीरभ ने पुन: झपटकर उसक बांह पकड़ ल और नंदी ने उसे उसके गले से पकड़ िलया
तो उसने नंदी के हाथ को ू रतापवू क काट खाया। पीड़ा से छटपटाता हए नंदी ने य ही अपना
हाथ ख चा तो वह अ यिधक ऊंचे वर म िच लाई, ‘मुझे उ र दीिजए, भगवान के िलए! आप ह
कौन?’
िशव ने िसर उठाकर ण भर के िलए आनंदमयी क संत आंख को देखा। िजस पीड़ा का
उसने संदेश िदया, उसने उसके दय पर सह कोड़े बरसा िदए। यथा क वालाओं ने उसक
अंतरा मा को जलाकर रख िदया था।
त ध आनंदमयी अचानक ही जड़वत हो गई। उसक आंख क दयनीयता मेलहू ा के वीर
से भी वीर यो ा को भ च का कर देती। टूटे हए वर म उसने धीमे से कहा, ‘आप तो किथत प
से हमारे प म आने वाले...’
उसने नंदी एवं वीरभ को उसे बाहर ले जाने से नह रोका। पवते र ने अपनी आंख नीची
कर ल । वह िशव को देखने क िह मत नह कर सकता था। वह एक आदश सय
ू वंशी था। जब
भु अपने सबसे दुबल ण म ह तो वह उ ह देखकर लि जत नह कर सकता था। दूसरी ओर
सती, उनके इस सबसे दुबल ण म उनक ओर न देखकर अपने पित को अकेले पीिड़त होते
नह देख सकती थी। वह उसक बगल म आई और उसके चेहरे को दोन हाथ से पकड़ िलया।
िशव ने िसर ऊपर उठाकर उसक ओर देखा। उसक आंख से दुख के आंसू िव वंसक प
से अनवरत बह िनकले थे। उसने धीमे वर म कहा, ‘मने यह या िकया?’
सती ने िशव को कसकर पकड़ िलया। उसने िशव के िसर को अपने व थल म छुपा िलया।
उसक पीड़ा को कम करने के िलए उसके पास कोई श द नह था। वह मा उसे पकड़कर
सां वना दे सकती थी।
एक अ यंत ही संत धीमा वर उस सम त तंबू म संताप को गुंजायमान करता हआ
आ लािवत हो उठा, ‘मने यह या िकया?’
अ याय - 25
यि य का ीप
िश व क सवारी को
व ीप क राजधानी अयो या पहंचने म तीन स ाह लग गए थे। उ ह ने
गंगा क धारा के साथ-साथ एक लंबे घुमावदार जजर माग पर या ा क थी और उसके बाद वे
नाव से पवू क िदशा म गए थे जहां िवशाल, िकंतु उमंगी नदी ने भावुकता से सरयू के जल का
वागत िकया था। उसके बाद उ ह ने सरयू पर उ र क िदशा म जल म या ा क और तब जाकर
वे उस नगर म पहंचे थे जो भु ी राम का ज म थल था। यह अ यिधक लंबा घुमावदार माग था,
िकंतु व ीप अथात यि य के ीप म अ यिधक जीण-शीण माग को देखते हए यही सबसे
शी पहंचने वाला माग था।
मेलहू ावासी सैिनक क उ सुकता इतनी अिधक थी िक उसक तुलना नह क जा सकती
थी। उ ह ने भु ी राम के नगर का वणन मा पौरािणक कथाओं म ही सुना था। िकसी ने भी
कभी भी देखा नह था। अयो या, िजसका शाि दक अथ होता है, अजेय अथवा अभे अथवा िजसे
आसानी से जीता न जा सके, वह एक ऐसी भिू म थी, जहां सव थम भु ी राम के चरण पड़े थे।
उनक आशा थी िक चं वंिशय क उपि थित से िव वंस होने पर भी वह नगर अ यिधक
जगमगाता हआ होगा। उनक आशा थी िक वह नगर यव था एवं समानता का म ान होगा
इसके प ात भी िक चं वंिशय ने उसके आसपास क भिू म को अ त- य तता के हवाले कर
िदया था। वे परू ी तरह से िनराश हए।
अयो या िकसी भी ि से देविग र के समान नह थी। वैसे तो पहली ि म ऐसा तीत
हआ िक वह नगर बहत ही अ छा होगा। बाहरी दीवार मोटी थ और आ यजनक ढं ग से
शि शाली भी थ । मेलहू ा क दीवार के शालीन भरू े रं ग के िवपरीत अयो या के बा भाग
अित ययी ढं ग से इस
ांड म िजतने भी रं ग उपल ध हो सकते थे उनसे पुते हए थे। हालांिक
येक दूसरी ई ंट चं वंिशय के राजशाही रं ग मौिलक ेत रं ग म रं गी हई थी। नगर क मीनार
से गुलाबी एवं नीले रं ग वाली अनेक पताकाएं बांधकर सजाई हई थ । वे पताकाएं िकसी िवशेष
उ सव के िलए नह सजाई गई थ , बि क नगर क शोभा बढ़ाने के िलए थायी तौर पर लगाई
गई थ ।
सा ा य का माग अचानक ही ती ता से दुग क दीवार के साथ-साथ घम
ू कर मु य वेश
ार क ओर चला गया था तािक हािथय एवं ेपा आिद को चलाने वाले यं आिद को सीधे
वेश ार तक आने से रोका जा सके। मु य वेश ार पर सबसे ऊपर अ यिधक सुंदरता से
िवभिू षत िै तज प से एक दूज का चांद दीवार म थािपत िकया गया था। उसके नीचे चं वंिशय
का घोष वा य िलखा था, ‘ ंग
ृ ार, स दय, वतं ता।’
एक बार जब वे नगर के अंदर िव हए तो अित िवशु ता एवं सुंदर यव था को ेम
करने वाले मेलहू ावािसय को एक झटका-सा लगा। कृि का ने उस नगरीय यव था को
‘अ यिधक गड़बड़ी से कायशील’ यव था कहकर संबोिधत िकया। मेलहू ा के नगर के िवपरीत
अयो या का िनमाण वेिदका पर नह िकया गया था, तो इससे प था िक यिद सरयू नदी भी
अिनि त वभाव वाली िसंधु नदी के समान कभी भी बाढ़ त हई, तो नगर जल लािवत हो
जाएगा। अनेक नगरीय दीवार जो सात संकि त व ृ म बनाई गई थ , वे आ यजनक ढं ग से
मोटी एवं ताकतवर थ । हालांिक सेनानायक क रणनीितक आंख को देखने पर यह समझने म
अिधक समय नह लगा िक वे दीवार सैिनक बुि वाल ारा योजनागत नह थ । असल म वे बड़े
ही अ त- य त ढं ग से एक के बाद एक जोड़ी गई थ , जब नगर ने अपना आवरण खोला था और
पवू के घेरे से बाहर िनकलकर दूर तक िव तार कर िलया था। इसी कारण से येक दीवार म
अनेक किमयां थ िजनका उपयोग घेरेबंदी करने वाले श ु सरलता से कर सकते थे। संभवत:
इसी कारण से चं वंशी सुदूर जाकर िकसी यु भिू म म यु करना पसंद करते थे न िक अपने
नगर को सुरि त करना।
उनक आधारभत
ू संरचनाएं चं वंिशय क िवशेष िचय के उदासीन कलंक के समान थे।
यह वाद-िववाद करने के काय को न करने का बहाना हो सकता था। सड़क और कुछ नह मा
धल
ू से भरी पगडं डी के समान थ । हालांिक एक उ लेखनीय अपवाद भी था, वह था सफाई से
खड़ं जे से प का िकया हआ राजपथ अथात राजशाही माग, जो बाहरी दीवार से वैभवपण
ू
राजशाही महल तक सीधा बना हआ था। व ीपवासी इस बारे म उपहास करते थे िक सड़क के
म य म गड्ढे ढूंढ़ने के बजाय उ ह गड्ढ म सड़क ढूंढ़ने क आदत पड़ गई थी! मेलहू ावािसय
क उनके अपवाद व प सु यवि थत योजनागत, संकेत िच सिहत, खड़ं जे से प के िकए हए
और सू म मानक य िविध से बनायी गई सड़क क तुलना म ये कह नह ठहरते थे।
सम त नगर म इधर-उधर अित मण हए पड़े थे। कई खुले मैदान म बड़ी-बड़ी मिलन
बि तय ने ज म ले रखा था य िक अवैध अ वािसय ने उनम अपने तंबू लगा रखे थे। िकनार
पर तंबू लगाकर अित मण करते हए आवासहीन लोग के तंबुओ ं ने संकुिचत सड़क को और
भी संकुिचत कर िदया था। धनी घरवाल एवं आ यहीन लोग के म य हमेशा तनाव का
वातावरण बना रहता था। स ाट ने 1910 ईसवी पवू से पहले बने सभी अित मण को वैध घोिषत
कर िदया था। इसका अथ यह था िक मिलन बि तय म रहने वाले लोग को तब तक िव थािपत
नह िकया जा सकता था जब तक िक शासन उनके िलए अ य आवास क यव था नह
करती है। एक छोटी सम या यह भी थी िक चं वंशी शासन इतने िवकराल तरीके से अ भावी
था िक िपछले बारह वष म मिलन ब ती के िनवािसय के िलए एक भी आवास बनवाकर नह दे
पाया था। अब यह वाता हो रही थी िक इसके िलए िनधा रत समय को कुछ और बढ़ा िदया जाए।
अित मण, खराब सड़क सिहत घिटया िनमाण ने यह भाव छोड़ा िक नगर अपने अंितम पतन
क ओर अ सर था।
मेलहू ावासी ोध म थे। इन लोग ने भु ी राम के ज म थल वाले नगर का या हाल
बना िदया था? या िफर यह हमेशा से ऐसा ही था? या यही कारण था िक भु ी राम ने सरयू
नदी को पार कर यहां से दूर सर वती नदी के तट पर देविग र म अपनी राजधानी बसाने का
िनणय िलया था?
पर िफर भी जब कु पता एवं उ म अ यव था का ारं िभक सदमा धीरे -धीरे समा हआ
तब मेलहू ावािसय को उस िनरं तर अ यवि थत नगर म एक िविच एवं असंभािवत मनोहरता
िदखाई देने लगी। मेलहू ा के नगर के िवपरीत अयो या म एक भी आवास समान नह था। मेलहू ा
म तो राजमहल भी एक ही आकार- कार के बनाए गए थे। यहां येक भवन म एक अपना
यि गत आकषण था। व ीपवािसय ने कड़े िनयम एवं भवन िनयमावली से भारमु होकर
भवन के िनमाण िकए थे, जो अनुराग एवं भ यता के तीक थे। कुछ िनमाण तो इतने भ य थे
िक मेलहू ावासी भी यह क पना नह कर पाए िक िकस िद य वा तुिवद क ितभा वैसे िनमाण
कर सकती थी। व ीपवािसय पर मेलहू ावािसय क तरह कोई िनयं ण नह था। सभी कुछ
भड़क ले रं ग से रं गे हए थे, नारं गी भवन से लेकर, सु गापंखी रं ग क छत से लेकर चमक ली
गुलाबी िखड़िकय तक! नगर िवषयक उ च िवचार वाले व ीपवािसय ने भ य सावजिनक
बाग , मंिदर , नाट्यशालाओं एवं पु तकालय के िनमाण िकए थे, िजनके नामकरण उनके
प रवार के सद य के नाम पर थे य िक उ ह शासन क ओर से कोई सहायता नह उपल ध
कराई गई थी। मेलहू ावािसय को वैसे तो यह िविच लगा िक सावजिनक भवन के नाम
यि गत नह होने चािहएं , िकंतु वे उनके िनमाण क भ यता से िवि मत थे। एक कंपायमान
नगर जहां एक ओर उ कृ सुंदरता थी, वह उसके साथ-साथ अ यंत ही डरावनी कु पता भी
थी। ऐसी अयो या ने मेलहू ावािसय म घण
ृ ा तो उ प न क और साथ म उ ह आकिषत भी िकया।
लोग चं वंशी जीवन-शैली क अिभ यि के प म जीवन जी रहे थे। ि य ने अपया
कपड़े पहन रखे थे, जो िनल जता एवं कामुकता के ित आ मिव ास के तीक थे। पु ष भी
ि य क भांित ही सजने-धजने एवं सुंदरता के ित अ यिधक जाग क थे, िजसे मेलहू ावासी
छैल-छबीला कहते थे। ि य एवं पु ष के म य जो संबंध थे, उ ह एक ल ण के प म
चरमि थित तक डगमगाने वाली ि थितय म देखा जा सकता था। ेम क पराका ा, घण
ृ ाक
पराका ा के सहअि त व म थी जो अ यंत ऊंचे वर म प रणत थे और जो अ यंत ही आवेग पर
आधा रत थे। अयो या म कुछ भी छोटे तर पर नह होता था। उनके श दकोश म संयम श द ही
नह था।
इसिलए यह कोई आ य क बात नह थी िक अयो या क भावना मक, अि थर और
अिनयंि त भीड़ द के सुधार देने क घोिषत मंशा पर हंसी उड़ा रही थी। द ने उस उदास नगर
म वेश िकया जहां उसक जा राजपथ पर दोन ओर चुपचाप खड़ी रही और िवजयी सेनाओं के
वागत से इंकार करती रही। द िजसने आशा क थी िक अयो या के िनवासी फूल क वषा कर
उसका वागत करगे य िक अंतत: उ ह दु शासक से मुि िमल गई थी, िकंतु उसे जो इतना
सद वागत िमला इससे वह आ यचिकत था। चं वंशी शासका ारा बलात ऐसा करवाया गया
होगा, ऐसी उसक सोच थी।
िशव, जो एक स ाह बाद पहंचा था, उसे इस कार क कोई ांित नह थी। उसने एक
शांितमय वागत क तुलना म बहत बुरे यवहार क अपे ा क थी। उसने आ मण क आशा
क थी। उसने आशा क थी िक उसे अपवाद िमलेगा िक वह व ीपवािसय क ओर से खड़ा नह
हआ था य िक वे भी नीलकंठ क पौरािणक कथा म िव ास करते थे। उसने आशा क थी िक
उसके ारा तथाकिथत अनुिचत प को चयिनत करने पर उससे घण
ृ ा क जाएगी। िकंतु अब उसे
यह संदेह हो रहा था िक चं वंशी उतने भी बुरे नह थे, िफर भी वह सय
ू वंिशय को अनुिचत प
क ेणी म रखने को भी तैयार नह था। उसके िवचार से मेलहू ावासी िबना िकसी अपवाद के
स चे, मयािदत, िनयम का पालन करने वाले लोग थे िज ह अप रवत तरीके से िव ास िकया
जा सकता था। िशव अपने कम एवं भिव य के कत य के ित िमत था। वह बहृ पित क ती ण
बुि एवं सलाह क कमी महसस
ू कर रहा था।
उसक सोच उस पर बहत ही भारी थी। िशव शी ता से आवरण िकए हए वाहन से उतरा और
चं वंशी राजमहल क ओर मुड़ गया। कुछ ण के िलए वह चं वंशी राजमहल क भ यता को
देखकर आ यचिकत रह गया। िकंतु शी ही उसने अपने िववेक पर काबू पाया, सती का हाथ
पकड़ा और मु य राजमहल क वेिदका क ओर जाने वाली सौ सीिढ़य क ओर बढ़ गया।
पवते र धीमे से उनके पीछे हो िलया। िशव ने सती से दूर ि दौड़ाई तो उसने देखा िक
आनंदमयी चु पी साधे हए सीिढ़यां चढ़ रही थी। उस बैठक के बाद से वह िशव से कुछ नह बोली
थी, िजसम उसे सं ान हआ था िक िशव कौन थे। वह उदासीन होकर, भाव शू यता वाले मुख से
सीिढ़यां चढ़ रही थी और उसक ि अपने िपता पर गड़ी हई थी।
‘वह आदमी आिखर है कौन?’ एक संदेही व ीप िनवासी बढ़ई ने पछ
ू ा, िजसे राजमहल के
आंगन के िकनारे पर चं वंशी सैिनक ारा रोक िदया गया था।
‘हमारे स ाट और वह िवशु पागल यि राजशाही वेिदका पर य उसके िलए ती ा
कर रहे ह और वह भी परू ी राजसी भुता के साथ?’
‘िवशु पागल यि ?’ उसके िम ने पछ
ू ा।
‘अरे , तुमने सुना नह है या? यह उस मख
ू द का नया उपनाम है!’
दोन िम िखलिखला कर हंस पड़े ।
‘शू ऽ ऽ !’ उनके बगल म खड़े एक व ृ यि ने चुप रहने का इशारा करते हए कहा, ‘तुम
नवयुवक म बुि नह है या? अयो या का अपमान हो रहा है और तुम लोग आपस म मसखरी
कर रहे हो।’
इस म य िशव राजसी वेिदका पर पहंच चुका था। द ने नीचे झुककर नम ते िकया तो
िशव ने ह क मु कान के साथ उसक नम ते का उ र िदया। िदलीप क आंख नम थ । वह नीचे
झुका और उसने धीमे से आंसे वर म कहा, ‘म दु नह हं, भु। हम लोग दु नह ह।’
‘यह या था?’ द ने पछ
ू ा। उसके कान िदलीप के वर को सुनने को आतुर हो गए।
िशव का ं ध हआ गला कुछ भी विन िनकालने से इंकार कर गया। िदलीप से कुछ न
सुनने क दशा म द ने अपना िसर िहलाया और धीमे वर म बोला, ‘ भु, संभवतः यह सही
अवसर है िक आपका प रचय अयो या क जा से करवा िदया जाए। मुझे ढ़ िव ास है िक जब
उ ह पता चल जाएगा िक नीलकंठ उनक र ा करने आ गए ह तो वे अपने कत य क ओर
े रत हो जाएं गे।’
इससे पवू िक दुखमय िशव कोई उ र दे पाता, उसका यान रखने वाली उसक प नी ने
कहा, ‘िपता ी, िशव थके हए ह। या ा बड़ी लंबी रही है। या वे थोड़ी देर िव ाम कर सकते ह?’
‘हां, िन संदेह,’ मा याचना वाले वर म द ने धीमे से कहा। उसके बाद िशव क ओर
मुड़ते हए उसने कहा, ‘मुझे मा कर, भु। कभी-कभी मेरा उ साह कुछ अिधक ही हो जाता है।
आप आज िव ाम य नह कर लेते। हम आपका प रचय कल दरबार म करवा सकते ह।’
िशव ने िदलीप क िचंता त आंख को देखा। उसक पीड़ा त ि को वह सहन नह
पाया और उसने उससे ि हटाकर उनके दरबा रय पर डाली, जो उसके पीछे खड़े थे। मा एक
जोड़ी आंख म न समझ पाना नह िदखाई दे रहा था। िशव को उस पल यह महसस
ू हआ िक
िदलीप के दरबार म आनंदमयी के अलावा िकसी और को उसक पहचान के बारे म पता नह था।
यहां तक िक िदलीप के पु भगीरथ को भी नह । िदलीप ने इस बारे म िकसी को नह बताया था।
प
प से द ने भी यही िकया था। संभवत: वे चाहते थे िक िशव क उपि थित म ही उस भ य
कटीकरण को िकया जाए।
‘ भु।’
िशव पवते र क ओर मुड़ा और पछ
ू ा, ‘हां,’ उसका वर अ यिधक ह का था िक िकसी को
सुनाई भी न दे सके।
‘चंिू क रै ितक परे ड समा हो चुका है, म सेना को बाहर लेकर जाता हं,’ पवते र ने कहा,
‘ये पवू म आई सेना क टुकड़ी के साथ नगर के बाहर रहगे। म आपक सेवा म दो घंटे म पुन:
उपि थत हो जाऊंगा।’
िशव ने बड़े ही दुबलता से िसर िहलाकर सहमित कट क ।
उनके अयो या पहंचे हए कई घंटे बीत चुके थे। िशव ने एक श द भी िकसी से नह कहा था। वह
अपने क क िखड़क पर बाहर क ओर देखते हए खड़ा हआ था। बाहर म या का सरू ज अपने
चमकदार वैभव म था। सती उसक बगल म चुप बैठी हई थी, उसका हाथ पकड़े हए, अपनी वह
सम त ऊजा िजसे वह िनकाल सकती थी, िनकालकर िशव को दे रही थी। नगर के क से
दािहनी ओर बने एक वैभवशाली बनावट को वह िनरं तर घरू ता जा रहा था। उस दूरी से वह
संरचना ेत संगमरमर क बनी हई तीत हो रही थी। एक अथाह कारण से उसको देखना
उसक आ मा को आराम पहंचा रहा था। उसे नगर के सबसे ऊंचे थान पर िनिमत िकया गया
था, जो एक ह क ढाल पर बना अयो या के हर कोने से िदखाई देने वाला था। वह भवन इतना
मह वपण
ू य था, िजसने राजमहल के थान पर नगर के सबसे ऊंचे थल को अिधकृत िकया
हआ था?
एक ऊंची एवं आ ही खटखटाहट ने उसक सोच को म य म ही भंग कर िदया।
‘कौन है?’ पवते र उस क म पीछे क ओर अपनी कुस से उठकर गुराया।
‘ भु,’ नंदी ने उ र िदया, ‘ये राजकुमारी आनंदमयी ह।’
पवते र ने ह क कराह भरी और िशव क ओर मुड़कर देखा। नीलकंठ ने िसर िहलाकर
सहमित कट क ।
‘उ ह अंदर आने दो,’ पवते र ने आदेश िदया।
आनंदमयी ने वेश िकया। उसक आ यजनक मु कान पवते र क ओर थी, िजस पर
पवते र ने संदेहा मक प से आंख तरे र कर पछ
ू ा, ‘म आपक या सहायता कर सकता हं,
महारानी जी?’
‘मने आपसे पहले भी कहा है पवते र िक आप मेरी कैसे सहायता कर सकते ह,’
आनंदमयी ने उसे िचढ़ाते हए कहा, ‘यिद आप बार-बार
पछ
ू ने के बदले म अपने उ र क
सुनगे तो िन य ही हमारी बात आगे बढ़ सकती है।’
पवते र क िति या ल जा एवं ोध िमि त थी। तीन स ाह म िशव के मुख पर पहली
बार एक दुबल मु कान उभरी थी। कुछ कारण से इस त य ने िक आनंदमयी अपने पहले व प
म वापस आ गई थी, िशव को खुशी दान क थी।
आनंदमयी िशव क ओर मुड़ी और उसने परू ी तरह से झुककर अिभवादन करते हए कहा,
‘सचाई मेरे सामने आ चुक है, भु। मेरे पवू के िचड़िचड़े पन के कारण म मा ाथ हं। उस समय
म अ यिधक सदमे म थी। आपका सय
ू वंिशय क ओर होना इन दो या याओं म से कोई एक ही
स य हो सकता है। या तो हम लोग बुरे ह। या िफर आप वो नह ह, जो हम लोग समझ रहे ह िक
आप है और पौरािणक कथा झठ
ू ी है। इनम से िकसी भी िववरण को वीकार करने से मेरी आ मा
व त हो जाएगी।’
िशव ने आनंदमयी को यानपवू क देखा।
‘िकंतु मने अब तक यह अनुभव कर िलया है िक,’ आनंदमयी ने कहना जारी रखा,
‘पौरािणक कथा झठ
ू ी नह है। और हम लोग बुरे नह ह। यह मा इतना है िक आप अ यिधक
सरलमित ह। आपको इन सय
ू वंिशय ने गुमराह कर िदया है। म सब सही कर दंूगी। म आपको
हमारे माग क अ छाई िदखाऊंगी।’
‘हम बुरे नह ह,’ आंख तरे र कर देखते हए पवते र ने कहा।
‘पवते र,’ आनंदमयी ने आह भरते हए कहा, ‘मने आपसे पहले भी कहा था िक आपके
सुंदर मुख का उपयोग बातचीत के बदले कह और अिधक है। आप अपनी सांस को अनाव यक
अप यय न कर।’
‘अपना अ खड़पन रहने दो, ी,’ पवते र ने िच लाकर कहा, ‘आप सोचती ह िक हम
बुरे ह? या आपने देखा है िक आप अपनी जा क देखभाल िकस कार करते ह? हमारी परू ी
या ा म हम भख
ू ी आंख ने घरू ा है। आपक गड्ढे वाली सड़क के िकनार पर अनाथ ब चे लेटे
रहते ह। हताश व ृ मिहलाएं इस सम त अजेय नगर म दान क िभ ा मांगती रहती ह, जबिक
व ीप के धनी लोग मेलहू ा के स ाट से भी अ छा जीवन यतीत करते ह। हमारे मेलहू ा म एक
आदश समाज है। म भु क इस बात से सहमत हो सकता हं िक संभवत: आप लोग उतने बुरे
नह ह, िकंतु आप लोग िनि त प से अपने लोग क देखभाल करना नह जानते ह। मेलहू ा म
आइए और देिखए िक एक आम नाग रक क देखभाल कैसे क जाती है। हमारे शासन से आप
लोग के जीवन बेहतर हो जाएं गे।’
‘बेहतर?’ उ ेिजत आनंदमयी ने तक िकया, ‘हम लोग आदश नह ह। म वीकार करती हं।
ऐसे कई चीज ह, जो हमारा सा ा य और बेहतर ढं ग से कर सकता है। म वीकार करती हं।
िकंतु कम से कम हम अपने लोग को वतं ता देते ह। उन पर हम बलात ऐसे िनयम नह थोपते
ह, जो चंद कुलीन लोग िमलकर बनाते ह, िज ह आम आदमी के जीवन का ान भी नह होता
है।’
‘उ ह वतं ता देते ह? या करने क
करने क ?’
वतं ता देते ह? लटू , चोरी, िभ ाविृ , ाणहरण
‘मुझे अपनी सं कृित के बारे म आपसे बहस करने क आव यकता नह है। आपका यह
अदना सा मि त क हमारी जीवनशैली के लाभ को नह समझ पाएगा।’
‘म समझना भी नह चाहता! िजस कार से इस सा ा य का बंधन िकया गया है, उससे
मुझे िघ न आती है। आपके पास कोई मानक नह है। कोई िनयं ण नह है। कोई िविध नह है।
इसिलए इसम आ य क बात नह है िक दु नह होते हए भी आप लोग ने नागाओं से
समझौता करके अपने हाथ दूिषत कर िलए ह। कायर ासदका रय क तरह िछपकर यु करते
ह न िक वीर ि य क तरह। हो सकता है िक आप दु न ह , िकंतु आपके कम िनि त प से
ह।’
‘नागा?’ ये आप या बकवास कर रहे ह? आप ये समझते ह िक हम इतने पागल ह िक हम
नागाओं से समझौता करगे? आप यह समझते ह िक हम यह नह पता िक ऐसा करने से अगले
सात ज म तक हमारी आ माएं दूिषत हो जाएं गी? और आतंकवाद? हमने आतंकवाद का कभी
भी सहारा नह िलया है। हमने िपछले सौ वष तक अपनी ाकृितक सहज विृ को दबाया तािक
आपके शािपत लोग से यु न करना पड़े । इसी कारण से हम अपने सीमांत रा य से पीछे हट
गए। हमने आपसे सभी संबंध तोड़ िलए। चंिू क आप लोग ने हमारी यमुना को चुरा िलया तो हमने
गंगा क िनचली धारा से ही अपने जीवन को संचािलत करना सीख िलया। मेरे िपता ी ने आपको
बताया था िक मंदार पर आ मण से हमारा कुछ भी लेना-देना नह था! िकंतु आप लोग ने हम
पर िव ास नह िकया। और आप ऐसा करते भी य ? आपको तो हम पर आ मण करने का
बहाना चािहए था।’
‘मुझसे झठ
ू मत बोिलए। कम से कम महादेव के सामने तो नह ! नागाओं के साथ चं वंशी
ासदका रय को देखा गया है।’
‘मेरे िपता ी ने आपसे कहा था िक हमारे िनयं ण म ऐसा कोई नह है, िजसका मंदार पवत
पर आ मण से कोई लेना-देना है। हमारा नागाओं से कुछ भी लेना-देना नह है। यह संभव है िक
सय
ू वंिशय क तरह ही कुछ चं वंिशय ने ासदका रय क सहायता क हो। यिद आपने हमारे
साथ िमलकर काम िकया होता तो हम अपरािधय को ढूंढ़ भी सकते थे।’
‘यह या बकवास है? कोई सय
ू वंशी उन रा स से कभी भी कोई िम ता नह करे गा। और
जहां तक चं वंिशय ारा उ ह सहायता करने वाली बात है तो आप लोग को उसका उ र देना
होगा। व ीप आपके िनयं ण म है।’
‘यिद आपने व ीप के साथ कूटनीितक संबंध रखे होते तो आपको यह पता होता िक हम
रा यसंघ ह, न िक आपक तरह एक अिधकारवादी। अयो या मा अिधपित है। व ीप के अ य
राजा यु के दौरान सुर ा करने के िलए हम शु क देते ह। अ यथा उ ह अपने शािसत देश को
अपनी मनमज से चलाने क वतं ता है।’
‘यह कैसे संभव है? आप ये कह रही ह िक व ीप के स ाट अपने सा ा य पर शासन नह
करते ह?’
‘कृपया, शांत हो जाइए,’ िशव ने उनके िववाद को समा करने का अनुरोध िकया। यह
िववाद उसके मन म चल रहे िववाद को ितिबंिबत कर रहा था। वह ऐसे
से परे शान होना
नह चाहता था, िजसके उ र उसके पास नह थे। कम से कम इस समय तो नह ही।
पवते र एवं आनंदमयी त काल मौन हो गए।
िखड़क क ओर पुन: धीमे से मुड़ते हए िशव ने पछ
ू ा, ‘वह भवन या है, आनंदमयी?’
‘वह, भु,’ पहले उससे बात करने पर स नता से मु कुराते हए आनंदमयी बोली, ‘वह
रामज म भिू म मंिदर है, जो भु ी राम के ज म थल पर िनिमत है।’
‘आप लोग ने भु ी राम के मंिदर का िनमाण िकया है?’ आ यचिकत पवते र ने पछ
ू ा,
‘िकंतु वे तो सय
ू वंशी थे। आपके क र श ु।’
‘हमने उस मंिदर का िनमाण नह िकया है,’ आनंदमयी ने रोष म आंख को ऊंचा उठाकर
कहा, ‘िकंतु हमने उसका नवीकरण अव य िकया है और बड़े ही ेमपवू क इसका रख-रखाव
िकया है। और साथ ही साथ यह भी आपसे पछ
ू ना है िक आप यह कैसे सोच सकते ह िक भु ी
राम हमारे क र श ु थे। उ ह भटकाकर दूसरे माग का अनुसरण करवाया गया हो सकता है,
िकंतु उ ह ने चं वंिशय के िलए बहत से अ छे काम िकए थे। अयो या म उ ह भगवान क तरह
स मान िदया जाता है।’
पवते र क आंख िव मय से खुली क खुली रह गई ं, ‘िकंतु उ ह ने चं वंिशय के सवनाश
करने क सौगंध ली थी।’
‘यिद उ ह ने हम न करने क ित ा ली होती तो आज हमारा अि त व नह होता, है िक
नह ? उ ह ने हम कोई हािन नह पहंचाई य िक उ ह िव ास था िक हम लोग अ छे लोग थे।
और हमारे जीवन जीने का तरीका इस जगत म अि त व म रहने का पा है।’
पवते र इस तक से उि
न हो रहा था।
‘आपको पता है, भु ी राम का परू ा अनु ािनक नाम या है?’ आनंदमयी ने अपने प म
बात करने के उ े य से कहा।
‘िन संदेह मुझे पता है,’ पवते र ने ताना मारते हए कहा, ‘ भु ी राम, इ वाकु वंश के
सय
ू वंशी ि य। दशरथ एवं कौश या के पु । सीता के पित-परमे र। सातव िव णु क उपािध से
आदरणीय एवं स मािनत।’
‘बहत अ छे ,’ आनंदमयी मु कुराई, ‘केवल एक छोटी भल
ू को छोड़कर। आप एक छोटा
श द कहना भल
ू गए, सेनानायक। आप चं श द कहना भल
ू गए। उनका परू ा नाम था भु राम
चं ।’
पवते र ने अपनी योरी चढ़ा ली।
‘हां, सेनानायक,’ आनंदमयी ने कहना जारी रखा, ‘उनके नाम का अथ था चं मा का मख
ु
। वे चं वंशी अिधक थे, िजतना िक आपको पता है।’
‘यह चं वंिशय क ला िणक दोमंुही बात है,’ पवते र ने अपने िववेक का संचयन कर
कहा, ‘आप श द और नाम म खो चुक ह न िक उनके कत य म। भु ी राम ने कहा था िक
िकसी यि क पहचान मा उसके कम ारा ही होती है। यह त य िक उनके नाम म चं श द
था का कोई अथ नह होता है। उनके कत य सय
ू के समान यो य थे। वे सय
ू वंशी थे परू ी तरह से।’
‘ या ऐसा नह हो सकता िक वे सय
ू वंशी एवं चं वंशी दोन ही थे?’
‘ये या िबना िसर पैर क बात ह? यह असंभव है। यह िवरोधभासी है।’
‘यह मा आपको असंभव तीत होता है य िक आपका
सकता। िवरोधाभास तो कृित का अंग है।’
ु मन इसे समझ ही नह
‘नह ऐसा नह है। यह असंभव है िक एक व तु तो सच है और उसका िवरोधी झठ
ू नह है।
ांड इसे वीकार नह कर सकता। एक यान म केवल एक ही तलवार रह सकती है।’
‘यह तभी संभव है जब यान छोटी हो। आप यह कहना चाहते ह िक भु ी राम इतने
महान नह थे िक उनक दो पहचान ह ?’
‘आप केवल श द के साथ खेल रही ह।’ पवते र ने ती ण ि
से देखते हए कहा।
िशव ने सुनना छोड़ िदया था। वह िखड़क ओर मुड़ चुका था। उस मंिदर क ओर। वह अपने
शरीर के रोमकूप म अनुभव कर रहा था। वह अपनी आ मा म अनुभव कर रहा था। वह अपने
अंतमन का ह का, दबा हआ वर सुन सकता था।
भ ु ीराम त ु हारी सहायता करगे। वे त ु हारा मागदशन करगे। वे त ु ह आराम पहंचाएं ग।े
उनके पास जाओ।
वह तीसरे हर का तीसरा घंटा था जब िशव वयं ही चोरी-छुपे अयो या क अ त- य त गिलय
म िनकल पड़ा था। वह भु ी राम से िमलने जा रहा था। सती ने साथ चलने को नह कहा था।
वह जानती थी िक उसके पित को एकांत चािहए था। गुलबू ंद पहने हए और सुर ा हे तु एक
दुशाला ओढ़े हए एक तलवार और ढाल के साथ अ यिधक सावधानी बरतते हए िशव मंथर गित
से मण करता हआ चं वंशी राजधानी के िविच
य एवं गंध को हण करता जा रहा था।
िकसी ने भी उसे नह पहचाना था। उसे इस कार चलना पसंद था।
ऐसा तीत हो रहा था िक अयो यावासी िकसी भी कार के आ मिनयं ण का ह का सा भी
संकेत िदए िबना ही अपना जीवन जी रहे थे। अ यिधक ऊंची विन वाले भावुकतापण
ू वर उसके
कान पर सवथा आ मण कर रहे थे जैसे िकसी अ यिधक ती वा यं का एक समहू उसक
इंि य पर काबू पाने का य न कर रहा हो। आम आदमी या तो ठहाका लगाकर हंस रहे थे जैसे
िक एक बोतल मिदरा पी रही हो या िफर ऐसे लड़ाई कर रहे थे जैसे उसका संपण
ू जीवन उसी पर
िनभर हो। िशव को चलते समय कई बार ध का लगा य िक लोग भागम-भाग म लगे हए थे और
ऊपर से अ ीलता फकते हए और अंधा कहकर संबोिधत भी िकए जा रहे थे। बाजार म कई
उ मादी खरीददार उ ेिजत दुकानदार से मोल-तोल कर रहे थे और ऐसा तीत हो रहा था जैसे
िक वे थोड़े से पैसे के िलए एक-दूसरे से लड़ पड़गे। दुकानदार एवं खरीददार दोन के िलए यह
परे शान करने वाला मोल तोल मा पैस के िलए नह था। वह एक अ छे सौदे के स मान के िलए
था।
िशव ने देखा िक बड़ी सं या म युगल जोड़े सड़क के िकनारे एक बाग म अवणनीय
हरकत करते हए भीड़ लगाए हए थे। ऐसा तीत हो रहा था िक वे िढठाई से यरितक आंख क
अवहे लना कर रहे थे जो गिलय से उ ह घरू रही थ या िफर वह बाग म भी उपि थत थ । उसने
यह भी देखा क वे आंख उ ह आलोचना मक ढं ग से नह बि क उ ेजना से घरू रही थ । िशव ने
मेलहू ा क तुलना म एक बहत बड़ी िवषमता देखी, जो सावजिनक प से आिलंगनब भी नह
होते थे।
िशव ने अचानक अपने पा व भाग म एक ि योिचत पश का अनुभव िकया। वह तेजी से
मुड़ा तो उसने देखा िक एक युवती उसक ओर मु कुराकर देख रही थी और उसने िशव को
आंख भी मारी, जैसे ही िशव क ि उस पर पड़ी। इससे पहले िक िशव कुछ िति या कर
पाता, उसने एक अधेड़ ी को उसके पीछे चलते हए देख िलया था। उस ी को युवती क माता
जी समझकर िशव ने िनणय िलया िक उस असावधानी को लि जत न करने के इरादे से भल
ू
जाए। जैसे ही वह मुड़ा तो उसने पुन: अपने पा व भाग पर एक हाथ का अनुभव िकया। इस बार
वह अ यंत ही आ ही एवं आ ामक था। वह पीछे मुड़ा तो देखकर त ध रह गया िक माता जी
कामुकता से उसे मु कुराकर देख रही थी। परू ी तरह से भ च का हआ िशव तेजी से सड़क पर
भाग िनकला और इससे पहले वह अपना संयम खो बैठे तेजी से मंडी से बाहर िनकल गया।
वह उस उ ुंग राम ज मभिू म मंिदर क िदशा म बढ़ता चला गया। जैसे ही वह वहां पहंचा तो
अयो या क वह अपराजेय झंकार मह वपण
प से ह क हो गई थी। संभवत: यह नगर का एक
ू
शांत आवासीय े था। उ कृ भवन एवं छायादार माग से वह े धनी लोग का तीत हो
रहा था। दािहने मुड़ने के बाद वह उस सड़क पर था जो उसके गंत य तक जाती थी। वह सड़क
एक शानदार घुमाव को लेते हए पहाड़ी क ओर घम
ू गई थी। संभवत: अयो या म राजपथ के बाद
यही एकमा सड़क थी िजसम जलज गितका नह थी। सुंदर-सुंदर गुलमोहर के व ृ सड़क के
दोन ओर लगे हए थे। उन व ृ क गुलाबी पि यां थके-हार एवं खोये हए लोग के िलए पथ
कािशत कर रही थी। पथ उनके उ र क ओर नेत ृ व दान कर रहे थे। भु ी राम के पथ पर।
िशव ने अपनी आंख बंद कर ल और एक गहरी सांस ली तो िचंता ने उसके दय को
कुतरना ारं भ कर िदया। उसे या ा होगा? या उसे शांित ा होगी? या उसे उ र ा
होगा? जैसी उसक आशा थी, या उसे कुछ ऐसा िमलेगा िक उसने कुछ अ छा िकया था? वह
अ छा काय जो इस समय उसे िदखाई नह दे रहा था? या िफर उससे कहा जाएगा िक तुमने एक
भयंकर भल
ू कर दी है और सह लोग अकारण ही मारे गए थे? िशव ने अपनी आंख धीरे से
खोल , वयं को कड़ा िकया और धीमे-धीमे भु का नाम जपते हए धीरे -धीरे चल पड़ा।
ी राम। ी राम। ी राम। ी राम।
कुछ दूरी चढ़ने के बाद िशव का जप बािधत हो गया। एक व ाकार मोड़ पर उसने एक
झुर दार व ृ पु ष को देखा, उसे देखकर ऐसा तीत हो रहा था िक उसने कई स ाह से कुछ भी
भोजन नह िकया था। उसके टखने पर एक घाव था, िजसम आ ता एवं लापरवाही के कारण
मवाद भर गया था। उसने पटसन से बना हआ बोरा पहन रखा था जो अजीब ढं ग से उसक कमर
म बंधा हआ था और सन क र सी के सहारे उसके कंधे से लटका हआ, कभी भी खुल सकने क
अव था म था। वह फुटपाथ पर बैठा हआ नायु जैसे दािहने हाथ से जंओ
ू ं के काम बाधा डालता
हआ अपना िसर बड़ी बलता से खुजला रहा था। अपने बाय हाथ से बहत ही असावधानीपवू क
एक केले के प े को संतुिलत िकए हए था, िजस पर रोटी का एक टुकड़ा और दिलया पड़ा हआ
था। ऐसा िदखाई दे रहा था िक वह भोजन िकसी स ते भोजनालय का था, जो िकसी दानी या
दोषी आ मा ारा दान था। इस कार का भोजन जो मेलहू ा म िकसी पशु को भी नह िखलाया
जा सकता।
ती
ोध क लहर उसके शरीर म दौड़ पड़ी। यह व ृ यि
भु ी राम के घर के ार पर
िभ ा मांग रहा था, नह पीिड़त था और ऐसा तीत हो रहा था िक िकसी को उसक सुध नह थी।
वह िकस कार का शासन होगा, जो लोग को इस कार रखता होगा? मेलहू ा म शासन
प र म से सभी नाग रक का लालन-पालन करता है। वहां सबके िलए पया भोजन था। कोई
िबना घर का नह था। शासन ने वा तव म काम िकया था। अगर वह व ृ देविग र म िनवास
करता होता तो उसे इस कार का अपमान नह सहना होता!
ोध ने धना मक ऊजा को माग दान कर िदया था और उसे महसस
ू हो चुका था िक
उसने उ र पा िलया था। वह अब जान चुका था िक पवते र सही था। संभवत: चं वंशी दु नह
थे, िकंतु उ ह ने एक घिृ णत अि त व का नेत ृ व िकया हआ था। सय
ू वंशी यव था इनके जीवन
को नाटक य ढं ग से बेहतर बना सकती थी। चार ओर चुरता और समिृ होगी जब पवते र
चं वंिशय के मरणास न शासन को खर करे गा। इस यु से कुछ अ छाई िनकलकर आएगी।
संभव है िक उसने इतनी भी भयंकर भल
ू नह क थी। उसने भु ी राम को ध यवाद िकया।
उसने सोचा िक उसने उ र पा िलया था।
हालांिक उसके भा य ने षड्यं रचकर उसे इस छोटी सी सां वना देने से भी इंकार कर
िदया। उस व ृ िभखारी ने देखा िक िशव उसको घरू रहा था। िशव क सहानुभिू तशील आंख एवं
क णामय मु कान ने उस िभखारी के सख
ू े हए गाल म भी जीवन भर िदया और वह यु र म
मु कुराया। लेिकन उसक मु कान िभ ा के िलए िभखारी क टूटी हई मु कान नह थी। यह एक
ऐसे यि क वागत करने वाली गमजोशी भरी मु कान थी जो अपने आपम शांित म था। िशव
आ यचिकत रह गया।
अब वह व ृ यि और भी गमजोशी से मु कुरा रहा था, जब उसने बड़े प र म से अपना
हाथ उठाते हए बोला, ‘ या तुम कुछ भोजन करना पसंद करोगे, मेरे ब चे।’
िशव त ध रह गया। अ यंत दयनीय यि के बारे म जो उसने सोचा था िक दया एवं कृपा
के यो य था, उसक इस िवशाल दयता पर वह वयं को बहत छोटा अनुभव कर रहा था।
िशव को आमं णपण
ू देखकर उस व ृ यि ने पुनः कहा, ‘ या तुम मेरे साथ भोजन
करना पसंद करोगे, पु ? हम दोन के िलए पया है।’
परू ी तरह से अिभभत
ू हए िशव के पास इतनी शि नह बची थी िक वह कुछ बोल सके। वह
भोजन िकसी एक यि के िलए भी पया नह था। यह यि
य यह भोजन बांटने क बात
कर रहा है, जो इतना कम है? यह समझ से बाहर है।
यह सोचते हए िक िशव को ऊंचा सुनाई देता है, उस व ृ
मेरे साथ बैठो, भोजन करो।’
िशव को िसर िहलाने के िलए शि
‘बहत-बहत ध यवाद, महोदय।’
यि
ने ऊंचे वर म कहा, ‘पु ,
पाने के िलए भी संघष करना पड़ रहा था। उसने कहा,
उस व ृ यि का मुख उदास हो गया। उसने कहा, ‘यह अ छा भोजन है, जठ
ू ा नह है,’
उसक आंख बता रही थ िक उसके दय म िकतनी चुभन हई थी, ‘अ यथा म तु ह भोजन करने
के िलए कहता ही नह ।’
िशव ने त काल अनुभव कर िलया िक उसने उस व ृ यि के वािभमान को चोट पहंचा
दी थी। उसने उसके साथ एक िभखारी क तरह यवहार कर िदया था। उसने झप के साथ कहा,
‘नह , नह मेरे कहने का यह अथ नह था। भोजन ठीक है। म तो बस...’
‘तो िफर आओ, बैठो मेरे साथ, पु ।’
िशव ने सहमित म िसर िहलाया। वह फुटपाथ पर उस व ृ क बगल म बैठ गया। वह व ृ
यि िशव क ओर मुड़ा और उसने उन दोन के म य उस केले के प े को भिू म पर रख िदया।
िशव ने उस रोटी और पतले दिलया को देखा, जो अब तक उसे मनु य के भोजन यो य नह
तीत हो रहा था। उस यि ने अपना िसर उठाकर िशव क ओर देखा, िजसक आधी अंधी
आंख चमक रही थ । उसने मु कान के साथ कहा, ‘भोजन हण करो।’
िशव ने रोटी का एक छोटा कौर उठाया, उसे दिलया म डुबोया और िनगल गया। वह कौर
उसके शरीर म आसानी से उतर गया, िकंतु उसक आ मा पर बड़ा बोझ डाल गया। जैसे-जैसे वह
व ृ िनधन यि
खरता से दीि मान होता जा रहा था वैसे-वैसे ही लगा िक उसक
यायसंगतता का अि त व कोई िनचोड़कर बाहर िनकालता जा रहा था।
‘अ छी तरह से भोजन करो, पु । यिद तुम इतना कम खाओगे तो अपना यह िवशाल मांसल
शरीर कैसे ठीक रख पाओगे?’
थोड़ा च कते हए िशव ने उस व ृ को ण के िलए देखा। उस व ृ यि क िसकुड़ी हई
बांह क प रिध िशव क कलाई से भी पतली होगी। वह व ृ यि छोटे-छोट ास ले रहा था और
बड़े -बड़े ास िशव क ओर रख दे रहा था। जैसे ही उसका दय गहरे समु म डूब गया और
उसके आंसू छलक आए तो उसने शी ता से वह अंितम टुकड़ा भी खा िलया, जो उस व ृ ने िदया
था। भोजन समा होने म कुछ समय नह लगा।
वतं ता। एक दयनीय के िलए ित ा क
शासन म असंभव था।
वतं ता। ऐसा कुछ जो मेलहू ा यव था के
‘तु हारा पेट भर गया, पु ?’
िशव ने सहमित म िसर िहलाया, िकंतु वह अब भी उस व ृ
िह मत नह जुटा पा रहा था।
यि
क आंख म देखने क
‘बहत अ छा। जाओ। तु ह मंिदर तक क लंबी या ा करनी है।’
िशव ने ऊपर क ओर देखा। यह आ यजनक प से भावशाली उदारता जो उस पर
िदखाई गई थी, वह उस पर िकंकत यिवमढ़
ू था। वह व ृ यि जब नेह से मु कुराया उसके
िपचके हए गाल चौड़े होकर खुल गए। वह लगभग भुखमरी क कगार पर था और उसके बाद भी
उसने लगभग सारा भोजन एक अनजान यि को दे िदया था। िशव ने जो वह िनंदा करने का
अपराध िकया था उसके िलए उसने अपने दय को कोसा। उस सोच क िनंदा िक वह सचमुच ऐसे
लोग क ‘र ा’ कर सकता था। िशव ने पाया िक वह आगे क ओर झुक गया जैसे िक कोई
महान शि क यही इ छा हो। उसने अपने हाथ को आगे बढ़ाकर उस व ृ के चरण पश कर
िलए।
उस व ृ यि ने अपना हाथ उठाया और िशव के िसर पर कोमलता से पश करके
आशीवाद िदया, ‘तुम जो ढूंढ़ रहे हो, उसे ा करो, पु ।’
िशव उठ खड़ा हआ। उसका दय अपराध बोध के आंसुओ ं से बोिझल था। उसका गला
प ाताप क दन से अव
था। उसक आ मा भारी थी और उसक वधिमता उस व ृ यि
क उदारता से कुचली हई पड़ी थी। उसने एक बड़ी भारी भल
ू कर दी थी। ये लोग दु कदािप नह
थे।
अ याय - 26
का
रा म ज मभिू म को जाती हई सड़क
भु ी राम के िनवास तक क या ा कर समा होने से
पहले िकनार पर पवत क ढाल पर िचपक हई थी। वहां से नीचे बसे नगर का एक असाधारण
य िदखाई दे रहा था। िकंतु िशव ने वह नह देखा। न तो उसने उस िवशालकाय मंिदर क
शोभायमान संरचना को देखा और न उसने उसके चार ओर भ य भू य के िनमाण वाले उस
उ ान को ही देखा। वह मंिदर ेत संगमरमर से िलखी हई, ई र के वा तुकार ारा रिचत एक
िवशु किवता थी। वा तुकार ने मंिदर क मु य वेिदका तक एक भ य सीढ़ी का िनमाण िकया
था, जो िव मयकारी ेरणा द और आमंि त करने वाली तीत हो रही थी। िवशाल एवं
आलंका रक संगमरमर क शांत नीले एवं भरू े रं ग म रं गाई गई मिू तयां उस वेिदका पर उ क ण
क हई थ । भड़क ली, िफर भी िचकर नीले संगमरमर क छत को िव तारपवू क न काशी िकए
खंभे थामे हए थे। वा तुकार को प
प से पता था िक भु ी राम का सबसे पसंदीदा समय
ात:काल था। इसी कारण से छत पर ात:काल का आसमान पुता हआ था, जो उस छत क
अनुपि थित म देखा जा सकता था। छत के ऊपरी भाग पर मंिदर का पवत लगभग सौ मीटर
ऊंचाई तक खड़ा होता हआ चला गया था, जैसे ई र को एक िवशालकाय नम ते कर रहा हो।
व ीपवािसय को यह ेय जाता था िक उ ह ने अपनी भड़क ली चैत यता उस मंिदर पर नह
थोपी थी। उसक संयिमत सुंदरता उसी कार क थी िजस कार शांत भु ी राम को पसंद
आता।
िशव ने इनम से िकसी पर भी यान नह िदया था। न ही उसने आंत रक एकांत क म
जिटलता से न काशी क हई मिू तय को ही देखा। भु ी राम क मिू त म य म अपने ि य पा
के साथ िघरी हई थी। उनके दािहनी ओर उनक ि य भाया सीता थ और उनके बाई ं ओर उनके
ि य ाता ल मण थे। उनके चरण म, घुटन के बल भु ी राम के सबसे उ सुक एवं ि य िश य
वायपु ु जाित-वग के, वायदु वे ता के प ु हनुमान बैठे हए थे।
िशव म इतनी शि नह बची थी िक वह भु ी राम से आंख िमला सके। वह उस िनणय से
डर गया था, जो उसे ा होने वाला था। वह एक खंभे के पीछे उसका सहारा लेते हए, शोक
मनाते हए दुबककर बैठ गया। जब वह अपने अपराध बोध क चंड अनुभिू त को अब और
िनयंि त नह कर पाया तो उसने अपने आंसुओ ं को बहने िदया, धारा वाह। िशव ने मायस
ू ीम
अपने आंसुओ ं को िनयंि त करने के बहत य न िकए िकंतु वे बहते ही चले जा रहे थे, जैसे िक
बांध टूट गया हो। अपने ायि त पर काबू पाने के िलए उसने अपनी गोल मु ी को काट खाया।
उसने अपने पांव को मोड़कर सीने से लगा िलया और अपने घुटन पर िसर रख िदया।
अपने दुख म डूबे हए िशव को उसके कंधे पर रखे क णामय हाथ के पश क अनुभिू त
नह हई। कोई िति या न देखकर उस हाथ ने ह के से दबाया। िशव ने उस हाथ के पश को
पहचान िलया था, िकंतु उसने अपना िसर झुकाए रखा। वह अपनी आंख म आंसू िलए वयं को
दुबल िदखाना नह चाहता था। आयु से व ृ एवं जीण वह िवन हाथ धीरे से हटा िलया गया,
जबिक उसके वामी ने तब तक ती ा िक जब तक िक िशव ने वयं को संयिमत नह कर
िलया। जब उिचत समय हआ तो वह यि आगे बढ़ा और उसके सामने आकर बैठ गया। उदास
िशव ने उस पंिडत को औपचा रकतापण
ू नम ते िकया जो लगभग वैसा ही िदख रहा था िजससे
वह पहली बार मे म
ा मंिदर म और मोहन जो दारो के मोहन मंिदर म िमला था। उसक भी
वैसी ही लंबी वाहमय ेत दाढ़ी और घने ेत बाल थे। उसने भी अ य पंिडत क तरह ही
गुलाबी रं ग क धोती और अंगव म् पहन रखे थे। उस बुि जीवी मुख पर वही वागत करने
वाली मु कान फै ली हई थी। एकमा जो अंतर था वह यह था िक इस पंिडत क कमर थोड़ी
अिधक मोटी थी।
‘ या यह सचमुच ही इतना बुरा है?’ पंिडत ने पछ
ू ा। उसक आंख संकुिचत थ और उसका
िसर ह का एक ओर ला िणक प से भारतीय गु तापण
प म झुका हआ था।
ू
िशव ने अपनी आंख बंद कर ल और अपने िसर को पुन: झुका िलया। पंिडत ने धैयपवू क
िशव के उ र क ती ा क , ‘आप नह जानते ह िक मने या िकया है!’
‘म जानता हं।’
िशव ने िसर उठाकर पंिडत क ओर देखा। उसक आंख म आ य और शम के िमि त भाव
थे।
‘म जानता हं िक आपने या िकया है, हे नीलकंठ,’ पंिडत ने कहा, ‘और म पुन: पछ
ू ता हं,
या यह सचमुच ही इतना बुरा है?’
‘मुझे नीलकंठ मत पुका रए,’ िशव ने ती ण ि से देखकर कहा, ‘म इस उपािध के
लायक नह हं। मेरे हाथ हजार लोग के र से सने हए ह।’
‘हजार से बहत अिधक लोग मारे गए ह,’ पंिडत ने कहा, ‘संभवत: लाख , िकंतु या आप
यह सोचते ह िक यिद आप वहां नह होते तो या वे नह मरते? या आपके हाथ सचमुच ही र
से सने ह?’
‘िन संदेह वे सने ह! यह मेरी मख
ू ता थी िजसने इस यु को े रत िकया था। मुझे कुछ भी
पता नह था िक म या रह था। मुझ पर एक उ रदािय व थोप िदया गया और म उसके यो य
नह था! िजसके प रणाम व प सकड़ सह लोग मारे गए।’
िशव ने अपनी मु ी भ ची और अपने ललाट पर ह क चोट क इस हताशा भरे यास म िक
वह अपने ललाट पर पंदनशील ताप को शांत कर सके। पंिडत ने ह के आ य म िशव क
ललाट पर दोन आंख के म य म एक गहरे लाल रं ग के छाले को देखा। वह बहत ही गहरे रं ग
का था, लगभग काला। पंिडत ने अपने आ य पर िनयं ण िकया और मौन रहा। यह उिचत समय
नह था।
‘और वह मा मेरे कारण,’ िशव ने पीड़ा म कराहते हए कहा। उसक आंख पुन: नम थ ,
‘यह सब मेरा ही दोष था।’
‘सैिनक ि य होते ह, िम ,’ पंिडत ने शांतिच होकर कहा, ‘कोई उ ह बलात मरने के
िलए नह कहता। वे जोिखम को जानते हए और उस संभव क ित के िलए जो उ ह उसके
प रणाम व प िमलती है, उनके िलए ही उस पथ का चयन करते ह। नीलकंठ ऐसा यि नह
होता िजस पर कोई उ रदािय व उनक इ छा के िव
थोपा जा सके। आपने इसका चयन
िकया था। आपका इसी कारण ज म हआ था।’
िशव ने च कते हए पंिडत को देखा। ऐसा तीत हआ िक उसक आंख पछ
ू रही थ , ‘ज म
हआ था?’
पंिडत ने िशव क आंख के
को भुलाते हए कहा, ‘जो कुछ भी होता है, उसका कारण
ै ी के म य से गुजर रहे ह तो इसके पीछे भी कोई दैवी
होता है। यिद आप इस कार क बेचन
योजना है।’
‘इतनी सारी म ृ यु के िलए कौन सी दैवी योजना हो सकती है?’
‘बुराइय का सवनाश? या आप नह कहगे िक यह एक मह वपण
ू कारण है?’
‘लेिकन मने बुराइय का नाश नह िकया!’ िशव ने िच लाकर कहा, ‘ये लोग बुरे नह ह।
ये लोग अलग ह। अलग होना बुरा होना नह होता है!’
पंिडत का मुख ला िणक प से एक गढ़
ू मु कान म प रवितत हो गया और उसने कहा,
‘िब कुल सही। ये लोग बुरे नह ह। ये लोग अलग ह। आपने इसका अनुभव बहत शी ता से कर
िलया है, िम , इससे पवू के महादेव से भी बहत शी ।’
िशव कुछ पल के िलए पंिडत के श द सुनकर हैरान रह गया। उसके मुख से अनायास ही
िनकल पड़ा, ‘ भु ?’
‘हां! भु
।’
‘लेिकन उ ह ने बुराइय का नाश िकया था। उ ह ने असुर का सवनाश िकया था।’
‘और, िकसने कहा िक असुर बुरे थे?’
‘मने पढ़ा...’ िशव वा य के म य म ही क गया। अंतत: वह समझ गया।
‘हां,’ पंिडत मु कुराकर बोला, ‘आपने िब कुल सही अनुमान लगाया। उसी तरह से िजस
तरह सय
ू वंशी एवं चं वंशी एक-दूसरे को देखते ह, उसी तरह से देव एवं असुर एक-दूसरे को
देखा करते थे। तो िफर यिद आप उस पु तक को पढ़गे जो देव ने िलखी है तो आप या सोचते ह
िक वे असुर का िच ण िकस कार करगे?’
‘आपके कहने का अथ यह है िक वे वतमान के सय
ू वंिशय एवं चं वंिशय के जैसे थे?’
‘िजतनी आप क पना कर सकते ह, उससे भी अिधक। देव एवं असुर भी सय
ू वंिशय एवं
ै वाद
चं वंिशय क तरह ही दो जीवन क शि य के संतुलन को ितिबंिबत करते ह, एक त
को।’
ै वाद?’
‘ त
ै वाद जो इस
‘हां, एक त
ांड के कई ि कोण म से एक है, पुि लंग एवं ीिलंग।
असुर एवं सय
ू वंशी पुि लंग के तीक ह। देव एवं चं वंशी ीिलंग के तीक ह। उनके नाम
प रवितत हो गए ह िकंतु जीवन शि िजनको वे साकार करते ह, वे सवथा वही रहे ह। वे हमेशा
अि त व म रहगे। ऐसा कोई भी उपाय नह है िक उनम कोई एक न हो सके। अ यथा
ांड म
अंत: फोट हो जाएगा।’
‘और वे सोचते ह िक उनका एक-दूसरे से संघष अ छाई एवं बुराई के म य एक शा त
संघष है?’
‘िब कुल सही,’ पंिडत के मुख पर दमक थी। ऐसी यथा के समय म भी िशव क ती बुि
पर पंिडत अचंभे म था और उसने कहा, ‘िकंतु वे हमेशा ही लड़ते नह रहे ह, ऐसा भी नह है। कई
बार उनके म य लंबे समय तक पर पर सहयोग भी रहा है। जब कभी भी संघष का समय होता है
तो उस समय जो भी बुरा होता है तो बहधा एक-दूसरे को दोष देना सबसे सरल उपाय होता है।
य िक चं वंशी सय
ू वंिशय से अलग ह तो इसका यह अथ नह है िक वे बुरे ह। आप या सोचते
ह िक नीलकंठ को बाहर वाला य होना चािहए?’
‘ य िक वह िकसी एक ि कोण का प पाती नह होगा,’ िशव ने कहा तो उसके सामने
छाया हआ आवरण हट गया।
‘िब कुल सही! नीलकंठ को इन सबसे परे होना होगा। उसे िकसी भी प पात से रिहत
रहना होगा।’
‘लेिकन म प पात रिहत नह था। म ढ़ िन यी था िक चं वंशी बुरे थे। संभव है िक जो
आनंदमयी कहती है, वह सही है। संभव है िक म बहत ही सरल दय हं और आसानी से बहकाया
जा सकता हं।’
‘अपने आप पर इतना कठोर मत होइए, िम । सभी कुछ जानकर आप आसमान से नह
टपक सकते, नह न? आपको िकसी एक प से वेश करना था। इस समीकरण के िजस भी
प से आपने वेश िकया, उस प के ि कोण से आपको रं गना ही था और दूसरे प को बुराई
के समान देखना ही था। आपने अपनी भल
इसे
ू को बहत शी ही अनुभत
ू कर िलया है। भु
तब तक अनुभत
ू नह कर सके थे, जब तक िक बहत देर हो चुक थी। इससे पहले िक वे इस बात
को अनुभत
ू करते िक वे बुरे नह थे बि क मा अलग थे, तब तक वे असुर का लगभग सवनाश
कर चुके थे।’
‘लगभग सवनाश कर चुके थे? आपके कहने का ता पय यह है िक कुछ असुर अभी भी
अि त व म ह।’
पंिडत रह यमय ढं ग से मु कुराया और बोला, ‘यह संवाद िकसी और समय के िलए है,
िम । आपको इस िबंदु को समझने क आव यकता है िक आप वो पहले महादेव नह ह जो
भटकाए गए ह। और आप अंितम भी नह ह गे। क पना क िजए, यिद आपको इतना अपराध बोध
अनुभत
के अपराध बोध क अनुभिू त कैसी रही होगी?’
ू हो रहा है तो भु
िशव ने मौन धारण िकए रखा। उसक आंख झुक हई थ । भु
के दोष का ान उसक
उस शम को कम नह कर पाया िजसने उसक आ मा को यिथत कर रखा था। उसक सोच को
पढ़ते हए पंिडत ने पुन: कहा, ‘आपने उन प रि थितय म सव म िनणय िलया था, जो आप ले
सकते थे। म जानता हं िक यह आपके िलए अिधक सां वना देने वाली बात नह होगी, िकंतु
नीलकंठ होना सरल नह है। आपको इस अपराध बोध के बोझ को ढोना ही पड़े गा। म जानता हं
िक आप िकस कार के यि ह। आपके िलए यह बोझ बहत भारी होगा। आपक चुनौती यह है
िक आपको अपराध बोध या पीड़ा को भुलाना होगा। आपका दय इतना अ छा है िक आपके िलए
यह करना किठन होगा। यथा के बाद भी आपको अपने कम एवं कत य के ित स चा रहना
होगा। यही आपके िलए चुनौती है। यही महादेव का भा य और कत य है।’
‘लेिकन म िकस कार का महादेव हं? म य आव यक हं? म कैसे बुराई का नाश
क ं गा, यिद मुझे यही नह पता िक बुराई या है?’
‘िकसने कहा िक आपका काय बुराई को न
करना है?’
चिकत िशव ने हैरानी से पंिडत को घरू ा। वह श द के इस खेल से घण
ृ ा करता था, जो ऐसा
तीत होता था ये पंिडत लोग बहत पसंद करते थे।
िशव क आंख म ोध क झलक देखकर पंिडत ने तुरंत ही प ीकरण िदया, ‘बुराइय
के पास जो शि है, वह अिधमू यांिकत है, िम । उसके अि त व को िमटाना किठन नह है।
इसके िलए इतना ही अिधक है िक कुछ अ छे लोग को यह िनणय लेना है िक उनसे संघष करना
है। यथाथ म हर समय जब-जब भी बुराई ने िसर उठाया है, उसका यही हाल हआ है। उसे न कर
िदया गया है।’
‘तो िफर मेरी या आव यकता है?’
‘आपक आव यकता सबसे मह वपण
ू काय के िलए है। उस सबसे मह वपण
ू
देने के िलए है।’
‘ या : ?’
का उ र
‘बुराई या है?’
‘बुराई या है?’
‘हां। मानव के म य म अनेक यु लड़े गए ह,’ पंिडत ने कहा, ‘और भिव य म भी अनेक
और यु लड़े जाएं गे। यही जगत का यवहार है। िकंतु मा एक महादेव ही ऐसे होते ह, जो उन
यु को अ छाई एवं बुराई के म य के यु म प रणत करते ह। वे एकमा महादेव ही ह, जो बुराई
क पहचान कर, लोग को उसके िव
नेत ृ व दान करते ह। इससे पहले िक बुराई अपना
कु प िसर उठाए और सम त जीवन को न कर दे।
‘लेिकन म बुराई को कैसे पहचानग
ू ा?’
‘यहां म आपक सहायता नह कर सकता, िम । म महादेव नह हं। यह एक
है
िजसका उतर आपको ा करना ही होगा। िकंतु इतना कह सकता हं िक आपके पास दय है।
आपके पास मि त क है। उ ह खुला रिखए और बुराई वयमेव आपके सम कट हो जाएगी।’
‘ कट?’
‘हां,’ पंिडत ने या या क , ‘बुराई का आपसे संबंध है। वह आपके पास आएगी। आपको
अपने मन एवं हदय को खुला रखना होगा तािक जब भी बुराई कट हो तो आप उसे पहचान
सक। मेरे पास मा एक सुझाव है। बुराई क पहचान करने के यास म आपको कोई शी ता नह
करनी है। उसके िलए ती ा करनी होगी। वह आपके पास आएगी।’
िशव क योरी चढ़ गई। उस िविच वातालाप को आ मसात करने के िलए उसने नीचे क
ओर देखा। कोई िदशा ा करने के िलए वह भु ी राम क मिू त क ओर मुड़ा। उसने वहां
उनक िनणया मक ि नह देखी, िजसक उसने आशा क थी। इसके बदले म उसने गमजोशी
भरी उ सािहत करने वाली एक मु कान देखी।
‘आपक या ा अभी समा नह हई है, िम । यह अिधक लंबी नह हई है। यह तो अभी ारं भ
ही हई है। आपको िनरं तर चलना पड़े गा। अ यथा बुराई क िवजय हो जाएगी।’
िशव क आंख थोड़ी सख
ू ने लग गई थ । उसका बोझ अभी भी थोड़ा भी ह का नह हआ था,
िकंतु वह वयं म इतनी शि का अनुभव अव य कर रहा था िक उसे ढोकर चल सके। उसे उस
असीम अंत तक चलना था।
िशव ने पंिडत क ओर देखा और एक दुबल मु कान के साथ पछ
ू ा, ‘आप कौन ह?’
पंिडत मु कुराया, ‘म जानता हं िक इसके उ र का आपको वचन िदया गया था। हमम से
िकसी भी एक ारा िदया गया वचन हमारा सामिू हक वचन होता है। म इस वचन को तोड़ नह
सकता।’
िशव ने उ र क ती ा म पंिडत को टकटक लगाकर देखा।
‘हम लोग वासुदेव ह।’
‘वासुदेव?’
‘हां।
येक िव णु ने अपने पीछे एक जाित-वग को दो ल य स पकर छोड़ा है।’
िशव पंिडत को बड़े ही यानपवू क िनरं तर देखता रहा था।
‘हमारा पहला ल य है अगले महादेव क सहायता करना है, वे जब भी कभी भी आते ह।’
‘और दूसरा?’
‘दूसरा ल य यह है िक जब भी कभी आव यकता होगी तो हमम से कोई एक अगला िव णु
बन जाएगा। सातव िव णु भु ी राम ने अपने िव ास ा ितिनिध भु वासुदेव को यह काय
स पा था। हम उनके अनुयायी ह। हम लोग वासुदेव के जाित-वग के ह।’
इस सच
ू ना के िनिहताथ को आ मसात करते हए िशव ने पंिडत को गहरी ि से देखा।
उसक योरी चढ़ गई जब उसे इसका एक अनुप रणाम अचानक ही सझ
ू ा, ‘ या महादेव ने भी
कोई जाित-वग अपने पीछे रख छोड़ा था? या भु
ने?’
पंिडत मु कुराया। वह िशव क ती ण बुि से भािवत था। मोहन जो दारो के सिचव ने सही
था। यह यि महादेव बनने क यो यता रखता है।
‘हां। भु
ने अपने पीछे एक जाित-वग को छोड़ा था। वायुपु का जाित-वग।’
‘वायुपु ?’ िशव ने पछ
ू ा। उसे यह नाम आ यजनक प से सुना हआ लगा।
पंिडत ने िशव के कंधे पर अपना हाथ रखा, ‘इसे अगली बार के िलए रहने दो, िम । मेरे
िवचार से हमने आज के िलए पया वातालाप कर िलए ह। घर जाइए। आपको अपनी अ छी प नी
के िव ाम द आिलंगन क आव यकता है। कल का िदन भी है। और आपका ल य तब तक
ती ा कर सकता है। अबके िलए, आप घर जाइए।’
िशव मु कुराया। एक गढ़
ू मु कान। उसके अपने सरल ित बती च र से पण
ू त: िभ न। िकंतु
अब वह भारतीय बन चुका था। वह आगे क ओर झुका और पंिडत के चरण पश िकए। पंिडत ने
अपना हाथ उसे आशीष देने के िलए उसके िसर पर रखा और कोमलता से बोला, ‘िवजयी भव।
जय गु िव ािम । जय गु विश ।’
िशव ने िश ता से आशीष को वीकार करते हए सहमित म िसर िहलाया। वह उठा, मुड़ा
और मंिदर क सीिढ़य क ओर चल पड़ा। वेिदका के िकनारे पर पहंचकर वह पंिडत को एक बार
पुन: देखने के िलए पीछे मुड़ा। पंिडत अपनी जंघाओं पर बैठा हआ भि भाव से अपने िसर से उस
भिू म को नमन कर रहा था, जहां से अभी-अभी िशव उठकर आया था। िशव मु कुराया और उसने
अपना िसर ह के से िहलाया। पंिडत से ि हटाकर उसने आगे क ओर भु ी राम क मिू त क
ओर यानपवू क टकटक लगाकर देखा। उसने नम ते क मु ा म अपने दोन हाथ जोड़कर
आदर से भु को णाम िकया।
उसका बोझ ह का नह हो पाया था। िकंत ु उसम इतनी शि
थी िक वह उसे ढो सकता था।
वह मुड़ा और सीिढ़यां उतरने लगा। नीचे पहंचने पर वह अचंभे म रह गया जब उसने देखा
िक उस ांगण म एक अ सरा क मिू त पर झुक हई सती खड़ी थी। वह मु कुराया। इस समय परू े
जगत म ऐसा कोई नह था, उसके िसवा िजसे वह इस समय देखना पंसद करता।
उसक ओर चलते हए उसने िचढ़ाया, ‘ या तुम हमेशा ही मेरे पीछे -पीछे आओगी?’
‘म जानती हं िक कब आपको एकांत क आव यकता है,’ सती ने कहा, ‘और कब आपको
मेरी आव यकता है।’
िशव अचानक ही जड़वत हो गया जब उसने देखा िक सती से कुछ ही दूरी पर एक पेड़ के
पीछे एक लबादा लहरा रहा था। सं याकाल क मंद पवन ने उस घात म बैठे यि को िदखा
िदया था। सती ने िशव क उस टकटक लगाई ि का अनुसरण करते हए पीछे मुड़कर देखा।
वह लबादे वाला आकार होली उ सव का नकाब पहने पेड़ के पीछे से कट होकर िनकल आया।
यह वही है!
िशव के दय क धड़कन ती गित से चलने लगी थी। वह अभी भी सती से एक अ छी दूरी
पर था। वह नागा उसक तुलना म सती के अिधक समीप था। वे तीन अपने थान पर कुछ समय
तक जमे रहे । वे प रि थित का आंकलन कर रहे थे। अगली चाल का मू यांकन कर रहे थे। वह
सती थी, िजसने पहला दाव खेला। उसने फुत से अलग हटकर अपनी बगल से चाकू िनकाला
और उस नागा क ओर फक िदया। वह नागा ह का ही िहला। चाकू उसके बहत पास से लगभग
उसे छूता हआ िनकला और परू े बल के साथ पेड़ के तने म जा लगा। वह बहत अंदर तक तने म
समा चुका था।
िशव ने धीरे से अपना हाथ तलवार क ओर बढ़ाया।
नागा पीछे मुड़कर उस चाकू तक पहंचा, उसने चाकू उस पेड़ से बाहर िनकाल िलया और
िविच काय करते हए उसने उस चाकू को अपनी कलाई म एक कपड़े के कड़े से बांध िलया।
उसके बाद वह तेजी से आगे बढ़ा।
‘सती!’ िशव िच लाया। इसके साथ ही उसने अपनी तलवार िनकाली और अपनी प नी क
ओर दौड़ लगा दी। दौड़ते हए ही उसने अपनी ढाल आगे क ओर कर ली थी।
... मश:
टलड
मेलहू ा के म ृ यंज
ु य
आई.आई.एम. (कोलकाता) से िशि त, 1974 म पैदा हए अमीशा एक बो रं ग बकर से सफल
लेखक तक का सफर तय कर चुके ह। अपने पहले उप यास मेलहू ा को म ृ यज
ु य (िशव रचना
य क थम पु तक) क इितहास, पौरािणक कथाओं एवं दशन म संुदरता क तलाश करते
अमीश का दूसरा उप यास नागाओ ं का रह य िशव रचना य क दूसरी पु तक है।
अमीश अपनी प नी ीित और बेटे नील के साथ मुंबई म रहते ह। सं ित आप िशव रचना
य क तीसरी पु तक वायपु ु क शपथ पर काम कर रहे ह।
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िव जीत ‘सपन’ बह ितभा संप न यि ह। आप एक लेखक, किव, गायक, संगीतकार,
गजल गायक और अनुवादक ह, साथ ही आप आईपीएस क नौकरी भी करते ह।
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