भारत का सं�वधान [26 नवम्बर, 2021 को यथा�वद्यमान] THE CONSTITUTION OF INDIA [As on 26th Novermber, 2021] 2021 भारत सरकार �व�ध और न्याय मंत्रालय �वधायी �वभाग द्वारा प्रका�शत Published by GOVERNMENT OF INDIA MINISTRY OF LAW AND JUSTICE LEGISLATIVE DEPARTMENT प्राक्कथन यह भारत के सं�वधान का द्�वभाषी रूप म� पांचवां जेबी संस्करण है । इस संस्करण म� सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 स�हत सभी संशोधन� को सिम्म�लत करते हुए भारत के सं�वधान के पाठ को अध्यतन �कया गया है । पाठ के नीचे पाद�टप्पण सं�वधान संशोधन अ�ध�नयम� को इं�गत करते ह�, िजनके द्वारा ऐसे संशोधन �कए गए ह� । भारत और बांग्लादे श सरकार� के बीच अिजर्त और अन्त�रत राज्य�ेत्र� के ब्यौर� को अन्त�वर्ष्ट करने वाले सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 का प�र�शष्ट 1 म� उपबंध �कया गया है । सं�वधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदे श, 2019 तथा सं�वधान के अनच् ु छे द 370(3) के अधीन घोषणा का क्रमशः प�र�शष्ट 2 और प�र�शष्ट 3 म� संदभर् के �लए उपबंध �कया गया है । नई �दल्ल� ; डॉ0 र�टा व�शष्ट, स�चव, भारत सरकार । ºÉÆFÉä{ÉÉFÉ®Éå BÉEÉÒ ºÉÚSÉÉÒ BÉEÉ0+ÉÉ0............................................................. BÉEÉxÉÚxÉÉÒ +ÉÉnä¶É * BÉEÉ0ÉÊxÉ0+ÉÉ0........................................................ BÉEÉxÉÚxÉÉÒ ÉÊxɪÉàÉ +ÉÉè® +ÉÉnä¶É * {Éß0 ................................................................. {Éß­~ * ºÉÆ0 ................................................................. ºÉÆJªÉÉÆBÉE (xÉà¤É®) * ºÉÆ0+ÉÉ0............................................................ ºÉÆÉÊ´ÉvÉÉxÉ +ÉÉnä¶É * सा0का0+ÉÉ0....................................................... 3 साधारण कानन ू ी आदे श । भारत का सं�वधान 6 �वषय सूची उद्दे �शका अनच् ु छे द भाग 1 संघ और उसका राज्य�ेत्र पष्ृ ठ 1. संघ का नाम और राज्य�ेत्र ............................................................ 2 [2क. �सिक्कम का संघ के साथ सहयुक्त �कया जाना – लोप �कया गया।] .. 2 4. पहल� अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपरू क, आनष ु ं�गक और पा�रणा�मक �वषय� का उपबंध करने के �लए अनच् ु छे द 2 और अनच् ु छे द 3 के अधीन बनाई गई �व�धयां …………………….............. 2. 3. नए राज्य� का प्रवेश या स्थापना...................................................... नए राज्य� का �नमार्ण और वतर्मान राज्य� के �ेत्र�, सीमाओं या नाम� म� प�रवतर्न ................................................................................. 2 2 3 भाग 2 नाग�रकता 5. सं�वधान के प्रारं भ पर नाग�रकता ................................................... 7. पा�कस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के अ�धकार ...................................................................................... 6. 8. 9. 10. 11. पा�कस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के अ�धकार ................................................................. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के अ�धकार .................................................................. �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त करने वाले व्यिक्तय� का नाग�रक न होना....................................................................... नाग�रकता के अ�धकार� का बना रहना ............................................ संसद् द्वारा नाग�रकता के अ�धकार का �व�ध द्वारा �व�नयमन �कया जाना 4 4 4 5 5 5 5 अनच् ु छे द �वषय सूची (ii) पष्ृ ठ भाग 3 मूल अ�धकार साधारण 12. 13. प�रभाषा ....................................................................................... मूल अ�धकार� से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाल� �व�धयां…..... समता का अ�धकार 6 6 14. �व�ध के सम� समता..................................................................... 6 16. लोक �नयोजन के �वषय म� अवसर क� समता .................................. 8 15. 17. 18. धमर्, मूलवंश, जा�त, �लंग या जन्मस्थान के आधार पर �वभेद का प्र�तषेध अस्पश्ृ यता का अंत.......................................................................... उपा�धय� का अंत............................................................................ स्वातं�य-अ�धकार 19. वाक् -स्वातं�य आ�द �वषयक कुछ अ�धकार� का संर�ण ..................... 21. प्राण और दै �हक स्वतंत्रता का संर�ण................................................ 20. 21क. 22. 23. 24. 9 9 11 �श�ा का अ�धकार.......................................................................... 11 कुछ दशाओं म� �गरफ्तार� और �नरोध से संर�ण............................... शोषण के �वरुद्ध अ�धकार मानव के दव्ु यार्पार और बलात ् श्रम का प्र�तषेध.................................. कारखान� आ�द म� बालक� के �नयोजन का प्र�तषेध............................. धमर् क� स्वतंत्रता का अ�धकार अंतःकरण क� और धमर् के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार 26. धा�मर्क काय� के प्रबंध क� स्वतंत्रता.................................................. 28. 9 अपराध� के �लए दोष�सद्�ध के संबंध म� संर�ण................................. 25. 27. 6 करने क� स्वतंत्रता …………………………………………………………………………………………….. �कसी �व�शष्ट धमर् क� अ�भवद् ृ �ध के �लए कर� के संदाय के बारे म� स्वतंत्रता ...................................................................................... कुछ �श�ा संस्थाओं म� धा�मर्क �श�ा या धा�मर्क उपासना म� उपिस्थत होने के बारे म� स्वतंत्रता.................................................................. 11 11 14 14 14 14 15 15 �वषय सूची अनच् ु छे द 29. 30. [31. संस्कृ�त और �श�ा संबंधी अ�धकार 15 का अ�धकार………………………………………………………………………………………………………….. 15 �श�ा संस्थाओं क� स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वग� संप�� का अ�नवायर् अजर्न – लोप �कया गया ।]............................... कुछ �व�धय� क� व्याव�ृ � 31क. संपदाओं आ�द के अजर्न के �लए उपबंध करने वाल� �व�धय� क� 31ख. कुछ अ�ध�नयम� और �व�नयम� का �व�धमान्यकरण ......................... 31ग. 32. [32क. पष्ृ ठ अल्पसंख्यक-वग� के �हत� का संर�ण .............................................. 7 [31घ. (iii) व्याव�ृ �......................................................................................... कुछ �नदे शक त�व� को प्रभावी करने वाल� �व�धय� क� व्याव�ृ � …………… 1 राष्ट्र �वरोधी �क्रयाकलाप के संबंध म� �व�धय� क� व्याव�ृ � – लोप �कया गया ।] ...................................................................................... सां�वधा�नक उपचार� का अ�धकार 16 16 18 18 18 इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� को प्रव�तर्त कराने के �लए उपचार …….. 19 कायर्वा�हय� म� �वचार न �कया जाना – लोप �कया गया ।] ........... 19 राज्य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता पर अनच् ु छे द 32 के अधीन 33. इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� का, बल� आ�द को लागू होने म� , 34. जब �कसी �ेत्र म� सेना �व�ध प्रव� ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद� 35. इस भाग के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए �वधान ……................... उपांतरण करने क� संसद् क� शिक्त.................................................. अ�धकार� पर �नबर्न्धन.................................................................... भाग 4 राज्य क� नी�त के �नदे शक त�व 19 20 20 36. प�रभाषा ....................................................................................... 21 38. राज्य लोक कल्याण क� अ�भवद् ृ �ध के �लए सामािजक व्यवस्था बनाएगा ........................................................................................ 21 37. 39. 39क. इस भाग म� अंत�वर्ष्ट त�व� का लागू होना ……………………....................... राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नी�त त�व............................................ समान न्याय और �नःशल् ु क �व�धक सहायता .................................... 21 21 22 �वषय सूची अनच् ु छे द 40. ग्राम पंचायत� का संगठन ............................................................... 42. काम क� न्यायसंगत और मानवो�चत दशाओं का तथा प्रस�ू त सहायता 41. कुछ दशाओं म� काम, �श�ा और लोक सहायता पाने का अ�धकार…….. का उपबंध ..................................................................................... 43. कमर्कार� के �लए �नवार्ह मजदरू � आ�द ............................................. 43ख. सहकार� सोसाइ�टय� का संवधर्न ...................................................... 43क. 44. 45. उद्योग� के प्रबंध म� कमर्कार� का भाग लेना ..................................... नाग�रक� के �लए एक समान �स�वल सं�हता .................................... छह वषर् से कम आयु के बालक� के �लए प्रारं �भक बाल्यावस्था दे ख-रे ख और �श�ा का उपबंध (iv) पष्ृ ठ 22 22 22 22 22 23 23 23 46. अनुस�ू चत जा�तय�, अनस र् वग� के ु ू�चत जनजा�तय� और अन्य दब ु ल 47. पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का 23 कृ�ष और पशुपालन का संगठन ....................................................... 23 राष्ट्र�य महत्व के संस्मारक�, स्थान� और वस्तुओं का संर�ण............... 24 48. 48क. 49. 50. 51. �श�ा और अथर् संबंधी �हत� क� अ�भवद् ृ �ध ..................................... सध ु ार करने का राज्य का कतर्व्य .................................................... पयार्वरण का संर�ण तथा संवधर्न और वन तथा वन्य जीव� क� र�ा……. कायर्पा�लका से न्यायपा�लका का पथ ृ ककरण....................................... अंतरराष्ट्र�य शां�त और सरु �ा क� अ�भवद् ृ �ध 23 23 24 24 भाग 4क 51क. मूल कतर्व्य मल ू कतर्व्य ................................................................................... भाग 5 25 संघ अध्याय 1--कायर्पा�लका राष्ट्रप�त और उपराष्ट्रप�त 52. भारत का राष्ट्रप�त ............................................................................ 26 54. राष्ट्रप�त का �नवार्चन.......................................................................... 26 53. संघ क� कायर्पा�लका शिक्त ................................................................ 26 अनच् ु छे द �वषय सूची (v) पष्ृ ठ 55. राष्ट्रप�त के �नवार्चन क� र��त ........................................................... 26 57. पन ु �नर्वार्चन के �लए पात्रता ................................................................ 28 56. 58. 59. 60. 61. 62. राष्ट्रप�त क� पदाव�ध ......................................................................... राष्ट्रप�त �नवार्�चत होने के �लए अहर् ताएं ............................................. राष्ट्रप�त के पद के �लए शत� ............................................................. राष्ट्रप�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान........................................................ राष्ट्रप�त पर महा�भयोग चलाने क� प्र�क्रया .......................................... राष्ट्रप�त के पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय और आकिस्मक �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त क� पदाव�ध…. 63. भारत का उपराष्ट्रप�त...................................................................... 65. राष्ट्रप�त के पद म� आकिस्मक �रिक्त के दौरान या उसक� अनप ु िस्थ�त 64. उपराष्ट्रप�त का राज्य सभा का पदे न सभाप�त होना ......................... म� उपराष्ट्रप�त का राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् करना या उसके कृत्य� का �नवर्हन........................................................................................... 66. उपराष्ट्रप�त का �नवार्चन ................................................................. 68. उपराष्ट्रप�त के पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय 67. उपराष्ट्रप�त क� पदाव�ध ..................................................................... और आकिस्मक �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त क� पदाव�ध … 69. उपराष्ट्रप�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान .................................................. 71. राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के �नवार्चन से संबं�धत या संसक्त �वषय....... 70. 72. 73. अन्य आकिस्मकताओं म� राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन................ �मा आ�द क� और कुछ मामल� म� दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघूकरण क� राष्ट्रप�त क� शिक्त......................................................... संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार .............................................. मं�त्र-प�रषद् 74. राष्ट्रप�त को सहायता और सलाह दे ने के �लए मं�त्र-प�रषद् .................. 76. भारत का महान्यायवाद� ................................................................. 75. मं�त्रय� के बारे म� अन्य उपबंध ......................................................... भारत का महान्यायवाद� 27 28 28 28 29 29 29 29 30 30 31 31 31 32 32 32 33 34 34 35 अनच् ु छे द �वषय सूची (vi) पष्ृ ठ सरकार� कायर् का संचालन 77. भारत सरकार के कायर् का संचालन ................................................... 35 78. राष्ट्रप�त को जानकार� दे ने आ�द के संबध ं म� प्रधान मंत्री के कतर्व्य 36 अध्याय 2--संसद् साधारण 79. संसद् का गठन.................................................................................. 36 80. राज्य सभा क� संरचना...................................................................... 36 81. लोक सभा क� संरचना....................................................................... 37 82. प्रत्येक जनगणना के पश्चात ् पन ु ःसमायोजन …………………………………………….. 38 83. संसद् के सदन� क� अव�ध.............................................................. 39 84. संसद् क� सदस्यता के �लए अहर् ता ................................................. 39 85. संसद् के सत्र, सत्रावसान और �वघटन.............................................. 40 86. सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रप�त का अ�धकार ……………………………………………………………………………………………………………… 40 87. राष्ट्रप�त का �वशेष अ�भभाषण ....................................................... 40 88. सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महान्यायवाद� के अ�धकार 40 89. राज्य सभा का सभाप�त और उपसभाप�त ........................................ 41 90. उपसभाप�त का पद �रक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना…... 41 91. सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन करने या सभाप�त के रूप म� संसद् के अ�धकार� कायर् करने क� उपसभाप�त या अन्य व्यिक्त क� शिक्त…………………………. 41 92. जब सभाप�त या उपसभाप�त को पद से हटाने का कोई संकल्प 41 93. लोक सभा का अध्य� और उपाध्य� 42 94. अध्य� और उपाध्य� का पद �रक्त होना, पद त्याग और पद से 95. �वचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना .................................... ............................................ हटाया जाना ……………………………………………………………. 42 अध्य� के पद के कतर्व्य� का पालन करने या अध्य� के रूप म� कायर् करने क� उपाध्य� या अन्य व्यिक्त क� शिक्त ……………………… 42 अनच् ु छे द �वषय सूची (vii) पष्ृ ठ 96. जब अध्य� या उपाध्य� को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना ………………………………….…….. 43 97. सभाप�त और उपसभाप�त तथा अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े 43 98. संसद् का स�चवालय ..................................................................... 43 99. सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान ……..……………………………… 44 100. सदन� म� मतदान, �रिक्तय� के होते हुए भी सदन� क� कायर् करने क� कायर् संचालन शिक्त और गणप�ू तर् …………………………………..……………….. 44 101. स्थान� का �रक्त होना .................................................................. 44 102. सदस्यता के �लए �नरहर् ताएं ........................................................... 46 103. सदस्य� क� �नरहर् ताओं से संब�ं धत प्रश्न� पर �व�नश्चय ………………. 46 104. अनुच्छे द 99 के अधीन शपथ लेने या प्र�त�ान करने से पहले या अ�हर्त 105. सदस्य� क� �नरहर् ताएं न होते हुए या �नर�हर्त �कए जाने पर बैठने और मत दे ने के �लए शािस्त संसद् और उसके सदस्य� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां 47 संसद् के सदन� क� तथा उनके सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार आ�द ……………………………………………………… 47 106. सदस्य� के वेतन और भ�े ............................................................... 48 107. �वधेयक� के पुरःस्थापन और पा�रत �कए जाने के संबंध म� उपबंध … 48 108. �वधायी प्र�क्रया कुछ दशाओं म� दोन� सदन� क� संयुक्त बैठक .………….……………… 48 धन �वधेयक� के संबंध म� �वशेष प्र�क्रया ........................................... 49 110. “धन �वधेयक” क� प�रभाषा ............................................................ 50 111. �वधेयक� पर अनुम�त .................................................................... 51 112. वा�षर्क �व�ीय �ववरण ..................................................................... 51 113. संसद् म� प्राक्कलन� के संबंध म� प्र�क्रया ............................................ 52 114. �व�नयोग �वधेयक ........................................................................... 53 109. �व�ीय �वषय� के संबंध म� प्र�क्रया अनच् ु छे द �वषय सूची (viii) पष्ृ ठ 115. अनुपरू क, अ�त�रक्त या अ�धक अनुदान ........................................... 53 117. �व� �वधेयक� के बारे म� �वशेष उपबंध ............................................. 54 116. लेखानुदान, प्रत्ययानद ु ान और अपवादानद ु ान ...................................... साधारणतया प्र�क्रया 54 118. प्र�क्रया के �नयम ............................................................................ 55 120. संसद् म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा ................................................. 56 119. 121. 122. 123. संसद् म� �व�ीय कायर् संबंधी प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन संसद् म� चचार् पर �नबर्न्धन ............................................................. न्यायालय� द्वारा संसद् क� कायर्वा�हय� क� जांच न �कया जाना ……… अध्याय 3--राष्ट्रप�त क� �वधायी शिक्तयां संसद् के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� राष्ट्रप�त क� 55 56 56 शिक्त ………………………………………………..…………………. 56 124. उच्चतम न्यायालय क� स्थापना और गठन ....................................... 57 124ख. आयोग के कृत्य ............................................................................. 59 124क. 124ग. 125. 126. 127. 128. 129. 130. 131. अध्याय 4--संघ क� न्यायपा�लका राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग .................................................... �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त ..................................................... न्यायाधीश� के वेतन आ�द ............................................................... कायर्कार� मुख्य न्यायम�ू तर् क� �नयिु क्त ............................................ तदथर् न्यायाधीश� क� �नयिु क्त ........................................................ उच्चतम न्यायालय क� बैठक� म� सेवा�नव� ृ न्यायाधीश� क� उपिस्थ�त .. उच्चतम न्यायालय का अ�भलेख न्यायालय होना ............................... उच्चतम न्यायालय का स्थान ........................................................... उच्चतम न्यायालय क� आरं �भक अ�धका�रता …………………............... [131क. केन्द्र�य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्रश्न� के बारे म� 132. कुछ मामल� म� उच्च न्यायालय� से अपील� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील�य अ�धका�रता........................................................................ 133. 134. उच्चतम न्यायालय क� अनन्य अ�धका�रता – लोप �कया गया ।] … उच्च न्यायालय� से �स�वल �वषय� से संब�ं धत अपील� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील�य अ�धका�रता.................................................. दां�डक �वषय� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील� अ�धका�रता .……….. 58 59 59 60 60 60 61 61 61 61 61 62 62 अनच् ु छे द 134क. 135. 136. 137. 138. 139. 139क. 140. 141. 142. 143. 144. �वषय सूची (ix) पष्ृ ठ उच्चतम न्यायालय म� अपील के �लए प्रमाणपत्र ……………………………………….. 63 शिक्तय� का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना ………………………… 63 �नणर्य� या आदे श� का उच्चतम न्यायालय द्वारा पन ु �वर्लोकन ……….………. 63 �वद्यमान �व�ध के अधीन फेडरल न्यायालय क� अ�धका�रता और अपील के �लए उच्चतम न्यायालय क� �वशेष इजाजत ……………………………. उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता क� वद् ृ �ध ..................……………………. कुछ �रट �नकालने क� शिक्तय� का उच्चतम न्यायालय को प्रद� �कया जाना .......................................................................................................... कुछ मामल� का अंतरण ................................................................. उच्चतम न्यायालय क� आनुष�ं गक शिक्तयां ...................................... उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध का सभी न्यायालय� पर 63 64 64 64 64 आबद्धकर होना ............................................................................ 65 आ�द के बारे म� आदे श .................................................................. 65 उच्चतम न्यायालय क� �ड�क्रय� और आदे श� का प्रवतर्न और प्रकट�करण उच्चतम न्यायालय से परामशर् करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त .…………. �स�वल और न्या�यक प्रा�धका�रय� द्वारा उच्चतम न्यायालय क� सहायता म� कायर् �कया जाना ........................................................... 65 65 [144क. �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संबं�धत प्रश्न� के �नपटारे के बारे म� 145. न्यायालय के �नयम आ�द ............................................................... 65 �नवर्चन ......................................................................................... 68 146. 147. �वशेष उपबंध – लोप �कया गया ।].............................................. उच्चतम न्यायालय के अ�धकार� और सेवक तथा व्यय अध्याय 5--भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क 65 67 148. भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क ................................................... 68 150. संघ के और राज्य� के लेखाओं का प्ररूप ............................................ 69 149. 151. �नयंत्रक-महालेखापर��क के कतर्व्य और शिक्तयां .............................. संपर��ा प्र�तवेदन ........................................................................... भाग 6 69 69 राज्य 152. अध्याय 1--साधारण प�रभाषा ........................................................................................ 70 अनच् ु छे द �वषय सूची (x) पष्ृ ठ अध्याय 2--कायर्पा�लका राज्यपाल 153. राज्य� के राज्यपाल ......................................................................... 70 154. राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त ........................................................... 70 155. राज्यपाल क� �नयुिक्त ..................................................................... 70 156. राज्यपाल क� पदाव�ध ..................................................................... 70 157. राज्यपाल �नयुक्त होने के �लए अहर् ताएं ............................................ 71 158. राज्यपाल के पद के �लए शत� .......................................................... 71 159. राज्यपाल द्वारा शपथ या प्र�त�ान ................................................... 71 160. कुछ आकिस्मकताओं म� राज्यपाल के कृत्य� का �नवर्हन ..................... 72 161. �मा आ�द क� और कुछ मामल� म� दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या 162. लघूकरण क� राज्यपाल क� शिक्त .................................................... 72 राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार .......................................... 72 मं�त्र-प�रषद् 163. राज्यपाल को सहायता और सलाह दे ने के �लए मं�त्र-प�रषद् ………………….. 72 164. मं�त्रय� के बारे म� अन्य उपबंध ........................................................ 72 165. राज्य का महा�धवक्ता ......................................................……………..... राज्य का महा�धवक्ता 74 सरकार� कायर् का संचालन 166. राज्य क� सरकार के कायर् का संचालन .............................................. 74 167. राज्यपाल को जानकार� दे ने, आ�द के संबंध म� मुख्यमंत्री के कतर्व्य …. 75 अध्याय 3--राज्य का �वधान-मंडल साधारण 168. राज्य� के �वधान-मंडल� का गठन ...................................................... 75 169. राज्य� म� �वधान प�रषद� का उत्सादन या सज ृ न ……………….……… 76 170. �वधान सभाओं क� संरचना ............................................................ 76 अनच् ु छे द �वषय सूची (xi) पष्ृ ठ 171. �वधान प�रषद� क� संरचना .............................................................. 77 173. राज्य के �वधान-मंडल क� सदस्यता के �लए अहर्ता .………………...… 79 172. 174. 175. 176. 177. 178. 179. 180. 181. 182. 183. 184. 185. 186. 187. 188. 189. 190. राज्य� के �वधान-मंडल� क� अव�ध .................................................... राज्य के �वधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और �वघटन .……………… सदन या सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का 79 80 राज्यपाल का अ�धकार .……….………………………………………… 80 सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महा�धवक्ता के अ�धकार .……………….. 80 राज्यपाल का �वशेष अ�भभाषण ........................................................ राज्य के �वधान-मंडल के अ�धकार� 80 �वधान सभा का अध्य� और उपाध्य� ............................................. 81 जाना .………………….……………………………………………………. 81 करने क� उपाध्य� या अन्य व्यिक्त क� शिक्त ……………………….. 81 है तब उसका पीठासीन न होना ……………………………………….. 81 अध्य� और उपाध्य� का पद �रक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया अध्य� के पद के कतर्व्य� का पालन करने या अध्य� के रूप म� कायर् जब अध्य� या उपाध्य� को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन �वधान प�रषद् का सभाप�त और उपसभाप�त ..................................... सभाप�त और उपसभाप�त का पद �रक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया 82 जाना.............................................................................................. 82 कायर् करने क� उपसभाप�त या अन्य व्यिक्त क� शिक्त ...................... 82 �वचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना ....................................... 83 राज्य के �वधान-मंडल का स�चवालय.................................................. 83 सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन करने या सभाप�त के रूप म� जब सभाप�त या उपसभाप�त को पद से हटाने का कोई संकल्प अध्य� और उपाध्य� तथा सभाप�त और उपसभाप�त के वेतन और भ�े .. कायर् संचालन सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान....................................................... सदन� म� मतदान, �रिक्तय� के होते हुए भी सदन� क� कायर् करने क� शिक्त और गणपू�तर् ........................................................................ सदस्य� क� �नरहर् ताएं स्थान� का �रक्त होना....................................................................... 83 84 84 84 अनच् ु छे द �वषय सूची 191. सदस्यता के �लए �नरहर् ताएं .............................................................. 193. अनच् ु छे द 188 के अधीन शपथ लेने या प्र�त�ान करने से पहले या 192. सदस्य� क� �नरहर् ताओं से संब�ं धत प्रश्न� पर �व�नश्चय ....................... अ�हर्त न होते हुए या �नर�हर्त �कए जाने पर बैठने और मत दे ने के �लए शािस्त..................................................................................... राज्य� के �वधान-मंडल� और उनके सदस्य� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार �वधान-मंडल� के सदन� क� तथा उनके सदस्य� और स�म�तय� क� 195. सदस्य� के वेतन और भ�े................................................................. शिक्तयां, �वशेषा�धकार, आ�द............................................................ 8 197. �वधायी प्र�क्रया 86 87 87 88 88 पर �नब�धन ................................................................................... 88 धन �वधेयक� से �भन्न �वधेयक� के बारे म� �वधान प�रषद् क� शिक्तय� धन �वधेयक� के संबंध म� �वशेष प्र�क्रया............................................. 200. �वधेय क� पर अनुम �त..................................................................... 201. 85 �वधेयक� के पुरःस्थापन और पा�रत �कए जाने के संबंध म� उपबंध ....... 198. 199. पष्ृ ठ और उन्मुिक्तयां 194. 196. (xii) “धन �वधेयक” क� प�रभाषा............................................................... �वचार के �लए आर��त �वधेयक....................................................... �व�ीय �वषय� के संबंध म� प्र�क्रया 89 90 91 91 202. वा�षर्क �व�ीय �ववरण...................................................................... 92 204. �व�नयोग �वधेयक .......................................................................... 93 203. 205. 206. 207. 208. 209. �वधान-मंडल म� प्राक्कलन� के संबंध म� प्र�क्रया ………………………. अनुपरू क, अ�त�रक्त या अ�धक अनुदान ............................................ लेखानुदान, प्रत्ययानद ु ान और अपवादानद ु ान ...................................... �व� �वधेयक� के बारे म� �वशेष उपबंध ............................................. साधारणतया प्र�क्रया 92 93 94 95 प्र�क्रया के �नयम ........................................................................... 95 �व�नयमन ..................................................................................... 96 राज्य के �वधान-मंडल म� �व�ीय कायर् संबंधी प्र�क्रया का �व�ध द्वारा अनच् ु छे द �वषय सूची (xiii) पष्ृ ठ 210. �वधान-मंडल म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा ....................................... 96 212. न्यायालय� द्वारा �वधान-मंडल क� कायर्वा�हय� क� जांच न �कया जाना…. 97 211. 213. �वधान-मंडल म� चचार् पर �नब�धन ..................................................... अध्याय 4--राज्यपाल क� �वधायी शिक्त �वधान-मंडल के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� राज्यपाल क� शिक्त ...................................................................................... अध्याय 5--राज्य� के उच्च न्यायालय 97 97 214. राज्य� के �लए उच्च न्यायालय ......................................................... 98 216. उच्च न्यायालय� का गठन ............................................................... 99 215. 217. 218. उच्च न्यायालय� का अ�भलेख न्यायालय होना .................................... उच्च न्यायालय के न्यायाधीश क� �नयुिक्त और उसके पद क� शत� ….. उच्चतम न्यायालय से संबं�धत कुछ उपबंध� का उच्च न्यायालय� को लागू होना ...................................................................................... 219. उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� द्वारा शपथ या प्र�त�ान…................... 221. न्यायाधीश� के वेतन आ�द ............................................................... 220. 222. स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात ् �व�ध-व्यवसाय पर �नब�धन . �कसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दस ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण ......................................................................................... 223. कायर्कार� मुख्य न्यायम�ू तर् क� �नयिु क्त ............................................ 224क. उच्च न्यायालय� क� बैठक� म� सेवा�नव� ृ न्यायाधीश� क� �नयुिक्त ……. 224. 225. 226. [226क. अपर और कायर्कार� न्यायाधीश� क� �नयुिक्त ..................................... �वद्यमान उच्च न्यायालय� क� अ�धका�रता......................................... कुछ �रट �नकालने क� उच्च न्यायालय क� शिक्त .............................. अनच् ु छे द 226 के अधीन कायर्वा�हय� म� केन्द्र�य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता पर �वचार न �कया जाना – लोप �कया गया ।] ....................... 227. 228. [228क. सभी न्यायालय� के अधी�ण क� उच्च न्यायालय क� शिक्त ................ कुछ मामल� का उच्च न्यायालय को अंतरण ...................................... राज्य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संबं�धत प्रश्न� के �नपटारे के बारे म� �वशेष उपबंध – लोप �कया गया ।].................................... 98 99 101 101 101 101 102 102 102 103 103 104 105 105 106 106 अनच् ु छे द 229. �वषय सूची उच्च न्यायालय� के अ�धकार� और सेवक तथा व्यय ........................... 230. उच्च न्यायालय� क� अ�धका�रता का संघ राज्य�ेत्र� पर �वस्तार………. [231. अनच् ु छे द 230, अनच् ु छे द 231 और अनच् ु छे द 232 के स्थान पर 233. िजला न्यायाधीश� क� �नयिु क्त.......................................................... 234. न्या�यक सेवा म� िजला न्यायाधीश� से �भन्न व्यिक्तय� क� भत� ........ 236. �नवर्चन ..................................................................................………. 231. 233क. 235. 237. दो या अ�धक राज्य� के �लए एक ह� उच्च न्यायालय क� स्थापना ….. अनच् ु छे द 230 और अनच् ु छे द 231 प्र�तस्था�पत ।]................ अध्याय 6--अधीनस्थ न्यायालय कुछ िजला न्यायाधीश� क� �नयिु क्तय� का और उनके द्वारा �कए गए �नणर्य� आ�द का �व�धमान्यकरण ..................................................... अधीनस्थ न्यायालय� पर �नयंत्रण ..................................................... कुछ वगर् या वग� के मिजस्ट्रे ट� पर इस अध्याय के उपबंध� का लागू होना............................................................................................... (xiv) पष्ृ ठ 106 107 107 107 108 109 109 109 110 110 भाग 7 पहल� अनस ु च ू ी के भाग ख के राज्य [238. लोप �कया गया ।] ....................................................................... 239. संघ राज्य�ेत्र� का प्रशासन .............................................................. 239कक. �दल्ल� के संबंध म� �वशेष उपबंध ...................................................... 239क. 239कख. 239ख. 240. 241. भाग 8 संघ राज्य�ेत्र कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए स्थानीय �वधान-मंडल� या मं�त्र-प�रषद� का या दोन� का सज ृ न .......................................................................... सां�वधा�नक तंत्र के �वफल हो जाने क� दशा म� उपबंध ...................... �वधान-मंडल के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� प्रशासक क� शिक्त....................................................................................... कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए �व�नयम बनाने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त……. संघ राज्य�ेत्र� के �लए उच्च न्यायालय ............................................ [242. कोड़गू – लोप �कया गया ।].......................................................... 243. प�रभाषाएं ..................................................................................... भाग 9 पंचायत 111 112 112 113 115 116 117 118 118 119 अनच् ु छे द 243क. 243ख. 243ग. 243घ. 243ङ. 243च. 243छ. 243ज. 243झ. 243ञ. 243ट. 243ठ. 243ड. 243ढ. 243ण. �वषय सूची ग्राम सभा ..................................................................................... पंचायत� का गठन ......................................................................... पंचायत� क� संरचना ....................................................................... स्थान� का आर�ण ........................................................................ पंचायत� क� अव�ध, आ�द .............................................................. सदस्यता के �लए �नरहर् ताएं ............................................................ पंचायत� क� शिक्तयां, प्रा�धकार और उ�रदा�यत्व .............................. पंचायत� द्वारा कर अ�धरो�पत करने क� शिक्तयां और उनक� �न�धयां…. �व�ीय िस्थ�त के पन ु �वर्लोकन के �लए �व� आयोग का गठन ………………. पंचायत� के लेखाओं क� संपर��ा ...................................................... पंचायत� के �लए �नवार्चन ............................................................... संघ राज्य�ेत्र� को लागू होना ........................................................... इस भाग का क�तपय �ेत्र� को लागू न होना ..................................... �वद्यमान �व�धय� और पंचायत� का बना रहना ................................. �नवार्चन संबंधी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न…………........ भाग 9क (xv) पष्ृ ठ 119 119 119 121 122 122 123 123 123 124 124 125 125 126 126 नगरपा�लकाएं 243त. 243थ. 243द. 243ध. 243न. 243प. 243फ. 243ब. प�रभाषाएं ..................................................................................... नगरपा�लकाओं का गठन ................................................................ नगरपा�लकाओं क� संरचना .............................................................. वाडर् स�म�तय�, आ�द का गठन और संरचना ..................................... स्थान� का आर�ण ........................................................................ नगरपा�लकाओं क� अव�ध, आ�द ..................................................... सदस्यता के �लए �नरहर् ताएं ............................................................ नगरपा�लकाओं, आ�द क� शिक्तयां, प्रा�धकार और उ�रदा�यत्व ........... 243भ. नगरपा�लकाओं द्वारा कर अ�धरो�पत करने क� शिक्त और उनक� �न�धयां ........................................................................................ 243म. �व� आयोग.................................................................................... 127 127 128 129 129 130 131 131 131 132 अनच् ु छे द �वषय सूची (xvi) पष्ृ ठ 243य. नगरपा�लकाओं के लेखाओं क� संपर��ा ............................................. 132 243यख. संघ राज्य�ेत्र� को लागू होना ........................................................... 133 243यक. 243यग. 243यघ. 243यङ. 243यच. 243यछ. नगरपा�लकाओं के �लए �नवार्चन ...................................................... इस भाग का क�तपय �ेत्र� को लागू न होना ..................................... िजला योजना के �लए स�म�त .......................................................... महानगर योजना के �लए स�म�त....................................................... �वद्यमान �व�धय� और नगरपा�लकाओं का बना रहना ........................ �नवार्चन संबंधी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न ............... भाग 9ख सहकार� सोसाइ�टयां 133 133 133 134 136 136 243यज. प�रभाषाएं ................................................................................. 137 243यञ. बोडर् के सदस्य� और उसके पदा�धका�रय� क� संख्या और पदाव�ध .….... 138 243यझ. 243यट. 243यठ. 243यड. 243यढ. 243यण. 243यत. 243यथ. 243यद. 243यध. 243यन. सहकार� सोसाइ�टय� का �नगमन ................................................ बोडर् के सदस्य� का �नवार्चन .......................................................... बोडर् का अ�धक्रमण और �नलंबन तथा अन्त�रम प्रबंध ………………............ सहकार� सोसाइ�टय� के लेखाओं क� संपर��ा ..................................... साधारण �नकाय क� बैठक संयोिजत करना ...................................... सच ू ना प्राप्त करने का सदस्य का अ�धकार ...................................... �ववर�णयां .................................................................................... अपराध और शािस्तयां ................................................................... बहुराज्य सहकार� सोसाइ�टय� को लागू होना ..................................... संघ राज्य�ेत्र� को लागू होना ........................................................ �वद्यमान �व�धय� का जार� रहना ................................................... 137 139 139 140 140 141 141 141 142 142 142 भाग 10 244. 244क. अनुसू�चत और जनजा�त �ेत्र अनस ु �ू चत �ेत्र� और जनजा�त �ेत्र� का प्रशासन ........................... असम के कुछ जनजा�त �ेत्र� को समा�वष्ट करने वाला एक स्वशासी 143 राज्य बनाना और उसके �लए स्थानीय �वधान-मंडल या मं�त्र-प�रषद् का या दोन� का सज ृ न ........................................................................ 143 अनच् ु छे द �वषय सूची (xvii) पष्ृ ठ भाग 11 संघ और राज्य� के बीच संबंध अध्याय 1--�वधायी संबंध �वधायी शिक्तय� का �वतरण 245. संसद् द्वारा और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� का �वस्तार... ...................................................................................... 246. संसद् द्वारा और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� क� �वषय-वस्तु .................................................................................... माल और सेवा कर के संबंध म� �वशेष उपबंध .................................... 246क. 247. कुछ अ�त�रक्त न्यायालय� क� स्थापना का उपबंध करने क� संसद् क� शिक्त.... ....................................................................................... 248. अव�शष्ट �वधायी शिक्तयां ............................................................. 250. य�द आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� हो तो राज्य सूची म� के �वषय के संबंध म� �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त ...................................…….. 251. संसद् द्वारा अनच् ु छे द 249 और अनच् ु छे द 250 के अधीन बनाई गई �व�धय� और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� म� असंग�त…………………………………………......................................................... दो या अ�धक राज्य� के �लए उनक� सहम�त से �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त और ऐसी �व�ध का �कसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार �कया जाना…………………………........................................................................ अंतरराष्ट्र�य करार� को प्रभावी करने के �लए �वधान .......................... 249. 252. 253. 254. 255. राज्य सूची म� के �वषय के संबंध म� राष्ट्र�य �हत म� �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त ............................................................................ संसद् द्वारा बनाई गई �व�धय� और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� म� असंग�त ...................................................... �सफा�रश� और पूवर् मंजरू � के बारे म� अपे�ाओं को केवल प्र�क्रया के �वषय मानना.......................................................................................... अध्याय 2--प्रशास�नक संबंध 256. 257. [257क. 258. साधारण राज्य� क� और संघ क� बाध्यता ................................................... कुछ दशाओं म� राज्य� पर संघ का �नयंत्रण ................................. संघ के सशस्त्र बल� या अन्य बल� के अ�भ�नयोजन द्वारा राज्य� क� सहायता – लोप �कया गया ।] ........................................................ कुछ दशाओं म� राज्य� को शिक्त प्रदान करने आ�द क� संघ क� शिक्त । 145 145 145 146 146 146 147 147 147 148 148 148 149 149 150 150 �वषय सूची अनच् ु छे द 258क. (xviii) पष्ृ ठ संघ को कृत्य स�पने क� राज्य� क� शिक्त......................................... पहल� अनुसूची के भाग ख के राज्य� के सशस्त्र बल – लोप �कया गया।] 150 [259. 261. सावर्ज�नक कायर्, अ�भलेख और न्या�यक कायर्वा�हयां .................... 151 260. भारत के बाहर के राज्य�ेत्र� के संबंध म� संघ क� अ�धका�रता .......... 9 262. 263. जल संबंधी �ववाद 150 150 अंतररािज्यक न�दय� या नद�-दन ू � के जल संबंधी �ववाद� का न्याय�नणर्यन 151 अंतर-राज्य प�रषद् के संबंध म� उपबंध............................................. 151 राज्य� के बीच समन्वय 4 5 भाग 12 �व�, संप��, सं�वदाएं और वाद अध्याय 1--�व� साधारण 264. �नवर्चन ........................................................................................ 152 266. भारत और राज्य� क� सं�चत �न�धयां और लोक लेखे ....................... 152 265. 267. 268. [268क. 269. 269क. 270. 271. [272. 273. 274. �व�ध के प्रा�धकार के �बना कर� का अ�धरोपण न �कया जाना ........... आकिस्मकता �न�ध ....................................................................... 152 152 संघ और राज्य� के बीच राजस्व� का �वतरण संघ द्वारा उद्गहृ �त �कए जाने वाले �कं तु राज्य� द्वारा संगहृ �त और �व�नयोिजत �कए जाने वाले शल् ु क .................................................... संघ द्वारा उदगहृ �त �कए जाने वाला और संघ तथा राज्य� द्वारा संगहृ �त और �व�नयोिजत �कया जाने वाला सेवा-कर -- लोप �कया गया ] ....... संघ द्वारा उद्गहृ �त और संगहृ �त �कं तु राज्य� को स�पे जाने वाले कर .. अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनुक्रम म� माल और सेवा कर का उद्ग्रहण और संग्रहण .............................................................. उद्गह ृ �त कर और उनका संघ तथा राज्य� के बीच �वतरण.............. कुछ शुल्क� और कर� पर संघ के प्रयोजन� के �लए अ�धभार ........... कर जो संघ द्वारा उद्गहृ �त और संगहृ �त �कए जाते ह� तथा जो संघ और राज्य� के बीच �वत�रत �कए जा सक�गे – लोप �कया गया ।] ..... जूट पर और जूट उत्पाद� पर �नयार्त शल् ु क के स्थान पर अनुदान ........ ऐसे कराधान पर िजसम� राज्य �हतबद्ध है , प्रभाव डालने वाले �वधेयक� के �लए राष्ट्रप�त क� पव ू र् �सफा�रश क� अपे�ा .................. 153 153 154 154 155 156 156 156 157 अनच् ु छे द 275. �वषय सूची (xix) पष्ृ ठ कुछ राज्य� को संघ से अनद ु ान ....................................................... 157 व्याव�ृ � ........................................................................................ 159 करार – लोप �कया गया ।] ............................................................. 159 279. “शुद्ध आगम” आ�द क� गणना ..................................................... 159 279क. माल और सेवा कर प�रषद् .............................................................. 160 280. �व� आयोग .................................................................................. 162 281. �व� आयोग क� �सफा�रश� .............................................................. 163 276. 277. [278. व�ृ �य�, व्यापार�, आजी�वकाओं और �नयोजन� पर कर ...................... कुछ �व�ीय �वषय� के संबंध म� पहल� अनुसूची के भाग ख के राज्य� से 158 प्रक�णर् �व�ीय उपबंध 282. संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व से �कए जाने वाले व्यय ............... 283. सं�चत �न�धय�, आकिस्मकता �न�धय� और लोक लेखाओं म� जमा 284. धनरा�शय� क� अ�भर�ा आ�द .......................................................... 163 163 लोक सेवक� और न्यायालय� द्वारा प्राप्त वादकतार्ओं क� जमा रा�शय� और अन्य धनरा�शय� क� अ�भर�ा ................................................ 163 संघ क� संप�� को राज्य के कराधान से छूट .................................... 164 माल के क्रय या �वक्रय पर कर के अ�धरोपण के बारे म� �नब�धन ....... 164 287. �वद्युत पर कर� से छूट ................................................................. 164 289. राज्य� क� संप�� और आय को संघ के कराधान से छूट ..................... 165 285. 286. 288. 290. 290क. [291. जल या �वद्युत के संबंध म� राज्य� द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म� छूट कुछ व्यय� और प� शन� के संबंध म� समायोजन ................................... कुछ दे वस्वम ् �न�धय� को वा�षर्क संदाय ........................................... शासक� क� �नजी थैल� क� रा�श – लोप �कया गया ।]......................... 165 166 166 167 अध्याय 2--उधार लेना 292. 293. भारत सरकार द्वारा उधार लेना ...................................................... राज्य� द्वारा उधार लेना ................................................................ 167 167 अनच् ु छे द 294. 295. 296. 297. 298. 299. 300. �वषय सूची कुछ दशाओं म� संप��, आिस्तय�, अ�धकार�, दा�यत्व� और बाध्यताओं का उ�रा�धकार ............................................................................ 167 राजगामी या व्यपगत या स्वामी�वह�न होने से प्रोद्भूत संप�� ............ 168 अन्य दशाओं म� संप��, आिस्तय�, अ�धकार�, दा�यत्व� और बाध्यताओं का उ�रा�धकार ........................................................................... राज्य�ेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भू�म म� िस्थत मूल्यवान चीज� और अनन्य आ�थर्क �ेत्र के संप�� स्रोत� का संघ म� �न�हत होना... व्यापार करने आ�द क� शिक्त ......................................................... सं�वदाएं ........................................................................................ वाद और कायर्वा�हयां ..................................................................... अध्याय 4--संप�� का अ�धकार �व�ध के प्रा�धकार के �बना व्यिक्तय� को संप�� से वं�चत न �कया जाना 301. व्यापार, वा�णज्य और समागम क� स्वतंत्रता ..................................... 303. व्यापार और वा�णज्य के संबंध म� संघ और राज्य� क� �वधायी शिक्तय� पर �नब�धन .................................................................................. 304. 305. [306. 307. पष्ृ ठ अध्याय 3--संप��, सं�वदाएं, अ�धकार, दा�यत्व, बाध्यताएं और वाद 300क. 302. (xx) भाग 13 भारत के राज्य�ेत्र के भीतर व्यापार, वा�णज्य और समागम व्यापार, वा�णज्य और समागम पर �नब�धन अ�धरो�पत करने क� संसद् क� शिक्त ..................................................................................... राज्य� के बीच व्यापार, वा�णज्य और समागम पर �नब�धन .............. �वद्यमान �व�धय� और राज्य के एका�धकार का उपबंध करने वाल� �व�धय� क� व्याव�ृ � ...................................................................... पहल� अनस ु च ू ी के भाग ख के कुछ राज्य� क� व्यापार और वा�णज्य पर �नब�धन� के अ�धरोपण क� शिक्त – लोप �कया गया ।]...................... अनच् ु छे द 301 से अनच् ु छे द 304 के प्रयोजन� को कायार्िन्वत करने के �लए प्रा�धकार� क� �नयुिक्त ............................................................ भाग 14 168 169 169 170 170 170 171 171 171 171 172 172 172 संघ और राज्य� के अधीन सेवाएं 308. अध्याय 1--सेवाएं �नवर्चन .................................................................................. 173 अनच् ु छे द �वषय सूची (xxi) पष्ृ ठ 309. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� भत� और सेवा क� शत�.. 173 310. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� पदाव�ध .................... 173 311. संघ या राज्य के अधीन �स�वल है �सयत म� �नयोिजत व्यिक्तय� का 312. अ�खल भारतीय सेवाएं ............................................................... पदच्युत �कया जाना, पद से हटाया जाना या पंिक्त म� अवनत �कया जाना 312क. कुछ सेवाओं के अ�धका�रय� क� सेवा क� शत� म� प�रवतर्न करने या 313. संक्रमणकाल�न उपबंध ..................................................................... [314. कुछ सेवाओं के �वद्यमान अ�धका�रय� के संर�ण के �लए उपबंध – उन्ह� प्र�तसंहृत करने क� संसद् क� शिक्त ........................................ लोप �कया गया ।] ........................................................................ 174 175 175 177 177 अध्याय 2--लोक सेवा आयोग 315. संघ और राज्य� के �लए लोक सेवा आयोग ..................................... 177 316. सदस्य� क� �नयुिक्त और पदाव�ध .................................................. 177 317. लोक सेवा आयोग के �कसी सदस्य का हटाया जाना और �नलं�बत �कया 318. आयोग के सदस्य� और कमर्चा�रवंद ृ क� सेवा क� शत� के बारे म� 319. आयोग के सदस्य� द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के 180 320. लोक सेवा आयोग� के कृत्य ............................................................. 180 321. 322. 323. जाना ........................................................................................... �व�नयम बनाने क� शिक्त .............................................................. संबंध म� प्र�तषेध ........................................................................... 179 179 लोक सेवा आयोग� के कृत्य� का �वस्तार करने क� शिक्त .................. 182 लोक सेवा आयोग� के व्यय ............................................................. 182 लोक सेवा आयोग� के प्र�तवेदन ...................................................... 182 भाग 14क 323क. 323ख. अ�धकरण प्रशास�नक अ�धकरण ..................................................................... अन्य �वषय� के �लए अ�धकरण ...................................................... 183 184 �वषय सूची अनच् ु छे द (xxii) पष्ृ ठ भाग 15 3 324. 325. 326. 327. 328. 329. [329क. �नवार्चन �नवार्चन� के अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण का �नवार्चन आयोग म� �न�हत होना ................................................................................ धमर्, मल ू वंश, जा�त या �लंग के आधार पर �कसी व्यिक्त का �नवार्चकनामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने के �लए अपात्र न होना और उसके द्वारा �कसी �वशेष �नवार्चक-नामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने का दावा न �कया जाना ............................................................................... लोक सभा और राज्य� क� �वधान सभाओं के �लए �नवार्चन� का वयस्क मता�धकार के आधार पर होना ........................................................ �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन� के संबध ं म� उपबंध करने क� संसद् क� शिक्त ........................................................................................... �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन� के संबंध म� उपबंध करने क� उस �वधान-मंडल क� शिक्त ....................................................... �नवार्चन संबंधी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न ............... प्रधान मंत्री और अध्य� के मामले म� संसद् के �लए �नवार्चन� के बारे म� �वशेष उपबंध -- लोप �कया गया ।] ......................................... भाग 16 330. 331. 332. 333. 334. 335. 336. 337. 186 187 187 187 188 188 188 कुछ वग� के संबंध म� �वशेष उपबंध लोक सभा म� अनुसू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान� का आर�ण ........................................................................ 189 राज्य� क� �वधान सभाओं म� अनस ु �ू चत जा�तय� और अनुस�ू चत जनजा�तय� के �लए स्थान� का आर�ण ........................................... 190 लोक सभा म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व ........................ राज्य� क� �वधान सभाओं म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व..... स्थान� के आर�ण और �वशेष प्र�त�न�धत्व का स�र वषर् के पश्चात ् न रहना.. सेवाओं और पद� के �लए अनस ु �ू चत जा�तय� और अनस ु �ू चत जनजा�तय� के दावे .......................................................................................... कुछ सेवाओं म� आंग्ल-भारतीय समुदाय के �लए �वशेष उपबंध ........... आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के �लए शै��क अनुदान के �लए �वशेष उपबंध ................................................................................. 190 191 192 192 192 193 अनच् ु छे द �वषय सूची (xxiii) पष्ृ ठ 338. राष्ट्र�य अनुसू�चत जा�त आयोग ...................................................... 193 338क. राष्ट्र�य अनुसू�चत जनजा�त आयोग ................................................. 195 338ख. �पछड़े वग� के �लए राष्ट्र�य आयोग ................................................. 197 339. अनुस�ू चत �ेत्र� के प्रशासन और अनुस�ू चत जनजा�तय� के कल्याण के बारे म� संघ का �नयंत्रण ................................................................. 199 340. �पछड़े वग� क� दशाओं के अन्वेषण के �लए आयोग क� �नयुिक्त …….... 199 341. अनुस�ू चत जा�तयां ........................................................................ 200 342. अनस ु �ू चत जनजा�तयां .................................................................... 200 342क. सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर् ...................................... 201 भाग 17 राजभाषा अध्याय 1--संघ क� भाषा 343. संघ क� राजभाषा .......................................................................... 203 344. राजभाषा के संबंध म� आयोग और संसद् क� स�म�त ......................... 203 345. राज्य क� राजभाषा या राजभाषाएं..................................................... 346. एक राज्य और दस ू रे राज्य के बीच या �कसी राज्य और संघ के बीच 347. �कसी राज्य क� जनसंख्या के �कसी अनुभाग द्वारा बोल� जाने वाल� अध्याय 2--प्रादे �शक भाषाएं पत्रा�द क� राजभाषा ...................................................................... भाषा के संबंध म� �वशेष उपबंध........................................................ 204 204 205 अध्याय 3–उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय� आ�द क� भाषा 348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय� म� और अ�ध�नयम�, �वधेयक� आ�द के �लए प्रयोग क� जाने वाल� भाषा ......................................... 205 349. भाषा से संब�ं धत कुछ �व�धयां अ�ध�नय�मत करने के �लए �वशेष प्र�क्रया 206 व्यथा के �नवारण के �लए अभ्यावेदन म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा 206 प्राथ�मक स्तर पर मातभ ृ ाषा म� �श�ा क� सु�वधाएं ............................ 206 अध्याय 4--�वशेष �नदे श 350. 350क. अनच् ु छे द 350ख. 351. �वषय सूची भाषाई अल्पसंख्यक-वग� के �लए �वशेष अ�धकार .............................. �हन्द� भाषा के �वकास के �लए �नदे श .............................................. भाग 18 आपात उपबंध 352. आपात क� उद्घोषणा ..................................................................... 354. जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब राजस्व� के �वतरण संबंधी 353. 355. 356. 357. 358. 359. [359क. 360. आपात क� उद्घोषणा का प्रभाव ...................................................... (xxiv) पष्ृ ठ 207 207 208 210 उपबंध� का लागू होना .................................................................... 211 का कतर्व्य ..................................................................................... 211 बाह्य आक्रमण और आंत�रक अशां�त से राज्य क� संर�ा करने का संघ राज्य� म� सां�वधा�नक तंत्र के �वफल हो जाने क� दशा म� उपबंध........... अनच् ु छे द 356 के अधीन क� गई उद्घोषणा के अधीन �वधायी शिक्तय� का प्रयोग .................................................................................... आपात के दौरान अनच् ु छे द 19 के उपबंध� का �नलंबन .................. आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार� के प्रवतर्न का �नलबंन.. इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना – लोप �कया गया ।] ............ �व�ीय आपात के बारे म� उपबंध ...................................................... भाग 19 211 214 215 216 217 217 प्रक�णर् 361. राष्ट्रप�त और राज्यपाल� और राजप्रमख ु � का संर�ण ....................... 219 363. कुछ सं�धय�, करार� आ�द से उत्पन्न �ववाद� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न ........................................................................................ 221 361क. 361ख. [362. 363क. 364. 365. संसद् और राज्य� के �वधान-मंडल� क� कायर्वा�हय� के प्रकाशन का संर�ण लाभप्रद राजनी�तक पद पर �नयिु क्त के �लए �नरहर्ता ................ दे शी राज्य� के शासक� के अ�धकार और �वशेषा�धकार – लोप �कया गया ।] दे शी राज्य� के शासक� को द� गई मान्यता क� समािप्त और �नजी थै�लय� का अंत ............................................................................ महाप�न� और �वमान�ेत्र� के बारे म� �वशेष उपबंध ........................ संघ द्वारा �दए गए �नदे श� का अनप ु ालन करने म� या उनको प्रभावी करने म� असफलता का प्रभाव ..................................................…… 220 220 221 221 222 222 अनच् ु छे द �वषय सूची (xxv) पष्ृ ठ 366. प�रभाषाएं ................................................................................. 222 367. �नवर्चन ......................................................................................... 227 भाग 20 सं�वधान का संशोधन 368. सं�वधान का संशोधन करने क� संसद् क� शिक्त और उसके �लए प्र�क्रया 228 भाग 21 अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध 369. राज्य सूची के कुछ �वषय� के संबंध म� �व�ध बनाने क� संसद् क� इस प्रकार अस्थायी शिक्त मानो वे समवत� सूची के �वषय ह� .................. 230 जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध म� अस्थायी उपबंध ............................. 230 महाराष्ट्र और गज ु रात राज्य� के संबंध म� �वशेष उपबंध ……................. 232 371क. नागाल�ड राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ....................................... 232 371ख. असम राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ............................................ 236 371ग. म�णपरु राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध .......................................... 236 371घ. आंध्र प्रदे श राज्य या तेलग ं ाना राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ........... 237 370. 371. 371ङ. आंध्र प्रदे श म� क�द्र�य �वश्व�वद्यालय क� स्थापना ............................. 240 371च. �सिक्कम राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ...................................... 241 371छ. �मजोरम राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ..................................... 244 371ज. अरुणाचल प्रदे श राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ............................. 244 371झ. गोवा राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ............................................. 245 371ञ. कनार्टक राज्य के संबंध म� �वशेष उपबंध ....................................... 245 372. �वद्यमान �व�धय� का प्रव� ु ू लन ............. ृ बने रहना और उनका अनक 246 372क. 373. 374. �व�धय� का अनुकूलन करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त ........................ 247 आदे श करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त ................................................ 248 �नवारक �नरोध म� रखे गए व्यिक्तय� के संबंध म� कुछ दशाओं म� फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� और फेडरल न्यायालय म� या सप�रषद् �हज मजेस्ट� के सम� लं�बत कायर्वा�हय� के बारे म� उपबंध ............... 248 �वषय सूची अनच् ु छे द 375. (xxvi) पष्ृ ठ सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए न्यायालय�, प्रा�धका�रय� और अ�धका�रय� का कृत्य करते रहना .................................................... 249 376. उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� के बारे म� उपबंध ............................. 249 377. भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के बारे म� उपबंध .......................... 249 378. लोक सेवा आयोग� के बारे म� उपबंध ................................................ 250 378क. आंध्र प्रदे श �वधान सभा क� अव�ध के बारे म� �वशेष उपबंध ............... 250 [379. अन्तकार्ल�न संसद् तथा उसके अध्य� और उपाध्य� के बारे म� 250 [380. राष्ट्रप�त के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।]............................. 250 [381. राष्ट्रप�त क� मं�त्र-प�रषद् -- लोप �कया गया ।]................................. 250 [382. पहल� अनुसूची के भाग क म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� 250 उपबंध - लोप �कया गया ।] ...................................................................... के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।]............................................. 250 [383. प्रान्त� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।].............. 250 [384. राज्यपाल� क� मं�त्र-प�रषद् -- लोप �कया गया ।]................................ 251 [385. पहल� अनस ु च ू ी के भाग ख म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� [386. पहल� अनुसूची के भाग ख म� के राज्य� क� मं�त्र-प�रषद् -- लोप �कया [387. [388. [389. [390. के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।]............................................ गया ।]…....................................................................................... कुछ �नवार्चन� के प�रयोजन� के �लए जनसंख्या के �नधार्रण के बारे म� �वशेष उपबंध -- लोप �कया गया ।]................................................ अन्तकार्ल�न संसद् तथा राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� 251 251 म� आकिस्मक �रिक्तय� के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।]................ डोमी�नयन �वधान-मंडल तथा प्रान्त� और 251 251 दे शी राज्य� के �वधान-मंडल� म� लं�बत �वधेयक� के बारे म� उपबंध -- लोप �कया गया ।]................. इस सं�वधान के प्रारं भ और 1950 के 31 माचर् के बीच प्राप्त या उत्थापत या व्यय �कया हुआ धन -- लोप �कया गया ।]..................... 251 251 �वषय सूची अनच् ु छे द [391. 392. (xxvii) पष्ृ ठ कुछ आकिस्मकताओं म� पहल� और चौथी अनुसूची का संशोधन करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त -- लोप �कया गया ।]..................................... 251 क�ठनाइय� को दरू करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त ................... 251 भाग 22 सं��प्त नाम, प्रारं भ, �हंद� म� प्रा�धकृत पाठ और �नरसन 393. सं��प्त नाम ...................................................... 252 394. प्रारं भ ..................................................................................... 252 394क. �हंद� भाषा म� प्रा�धकृत पाठ .................................................... 252 395. �नरसन ................................................................................. 252 अनुस�ू चयां पहल� अनुसूची ..................................................................................... 253 1. राज्य ................................................................................... 253 2. संघ राज्य�ेत्र .......................................................................... 260 दस ु ूची ......................................................................................... ू र� अनस 263 भाग क -- राष्ट्रप�त और राज्य� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध .......… 263 भाग ख -- [लोप �कया गया ।] ........................................................ 263 भाग ग -- लोक सभा के अध्य� और उपाध्य� के तथा राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त के तथा राज्य क� �वधान सभा के अध्य� और उपाध्य� के तथा �वधान प�रषद् के सभाप�त और उपसभाप�त के बारे म� उपबंध .......... . ...... ..... .... .... 264 भाग घ -- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� के बारे म� उपबंध ............. .... .... .... ...... ..... .... .... .. भाग ङ -- भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के बारे म� उपबंध 265 268 तीसर� अनस ु च ू ी--शपथ या प्र�त�ान के प्ररूप .................................................... 269 चौथी अनुसूची--राज्य सभा म� स्थान� का आबंटन.......................................... 273 �वषय सूची अनच् ु छे द पांचवीं अनुसूची--अनुसू�चत �ेत्र� और अनुसू�चत जनजा�तय� के प्रशासन और �नयंत्रण के बारे म� उपबंध ........................................... भाग क -- साधारण भाग ख -- अनुस�ू चत �ेत्र� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� का प्रशासन और �नयंत्रण भाग ग -- अनुस�ू चत �ेत्र भाग घ -- अनुसूची का संशोधन छठ� अनुसूची-- असम, मेघालय, �त्रपुरा और �मजोरम राज्य� के जनजा�त �ेत्र� के प्रशासन के बारे म� उपबंध ........................................................... सातवीं अनस ु ूची ........................................................................................................... सूची 1 -- संघ सूची सूची 2 -- राज्य सूची सूची 3 -- समवत� सूची आठवीं अनुसूची -- भाषाएं ............................................................................. नवीं अनस ु ूची--कुछ अ�ध�नयम� और �व�नयम� का �व�धमान्यकरण ...................... दसवीं अनस ु ूची--दल प�रवतर्न के आधार पर �नरहर् ता के बारे म� उपबंध ................ ग्यारहवीं अनस ु ूची--पंचायत� क� शिक्तयां, प्रा�धकार और उ�रदा�यत्व .................... बारहवीं अनस ु ूची--नगरपा�लकाओं, आ�द क� शिक्तयां, प्रा�धकार और उ�रदा�यत्व …. प�र�शष्ट (xxviii) पष्ृ ठ 276 276 276 278 279 280 310 310 317 321 325 327 345 349 350 प�र�शष्ट 1 – सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 351 प�र�शष्ट 3 – सं�वधान के अनच् ु छे द 370(3) के अधीन घोषणा 371 प�र�शष्ट 2 – सं�वधान (जम्म-ू कश्मीर को लागू होना) आदे श, 2019 370 भारत का सं�वधान उद्दे �शका हम, भारत के लोग, भारत को एक 1 [संपूणर् प्रभुत्व-संपन्न समाजवाद� पंथ�नरपे� लोकतंत्रात्मक गणराज्य] बनाने के �लए, तथा उसके समस्त नाग�रक� को : सामािजक, आ�थर्क और राजनै�तक न्याय, �वचार, अ�भव्यिक्त, �वश्वास, धमर् और उपासना क� स्वतंत्रता, प्र�तष्ठा और अवसर क� समता प्राप्त कराने के �लए, तथा उन सब म� व्यिक्त क� ग�रमा और 2[राष्ट्र क� एकता और अखंडता] सु�निश्चत करने वाल� बंधुता बढ़ाने के �लए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस सं�वधान सभा म� आज तार�ख 26 नवम्बर, 1949 ई0 (�म�त मागर्शीषर् शुक्ला सप्तमी, संवत ् दो हजार छह �वक्रमी) को एतद्द्वारा इस सं�वधान को अंगीकृत, अ�ध�नय�मत और आत्मा�पर्त करते ह� । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (3-1-1977 से) “राष्ट्र क� एकता” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भाग 1 संघ और उसका राज्य�ेत्र 1. संघ का नाम और राज्य�ेत्र–(1) भारत, अथार्त ् इं�डया, राज्य� का संघ होगा । [(2) राज्य और उनके राज्य�ेत्र वे ह�गे जो पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� ।] 1 (3) भारत के राज्य�ेत्र म� ,– (क) राज्य� के राज्य�ेत्र, [(ख) पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट संघ राज्य�ेत्र, और] 2 (ग) ऐसे अन्य राज्य�ेत्र जो अिजर्त �कए जाएं, समा�वष्ट ह�गे । 2. नए राज्य� का प्रवेश या स्थापना–संसद्, �व�ध द्वारा, ऐसे �नबंधन� और शत� पर, जो वह ठ�क समझे, संघ म� नए राज्य� का प्रवेश या उनक� स्थापना कर सकेगी । [2क. [�सिक्कम का संघ के साथ सहयक् ु त �कया जाना ।]–सं�वधान (छ�ीसवां 3 संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) लोप �कया गया ।] 3. नए राज्य� का �नमार्ण और वतर्मान राज्य� के �ेत्र�, सीमाओं या नाम� म� प�रवतर्न–संसद्, �व�ध द्वारा– (क) �कसी राज्य म� से उसका राज्य�ेत्र अलग करके अथवा दो या अ�धक राज्य� को या राज्य� के भाग� को �मलाकर अथवा �कसी राज्य�ेत्र को �कसी राज्य के भाग के साथ �मलाकर नए राज्य का �नमार्ण कर सकेगी ; (ख) �कसी राज्य का �ेत्र बढ़ा सकेगी ; (ग) �कसी राज्य का �ेत्र घटा सकेगी ; (घ) �कसी राज्य क� सीमाओं म� प�रवतर्न कर सकेगी ; (ङ) �कसी राज्य के नाम म� प�रवतर्न कर सकेगी : 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) खंड (2) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) उपखंड (ख) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (1-3-1975 से) अंतःस्था�पत । 2 भारत का सं�वधान 3 (भाग 1—संघ और उसका राज्य�ेत्र) [परं तु इस प्रयोजन के �लए कोई �वधेयक राष्ट्रप�त क� �सफा�रश के �बना और 1 जहां �वधेयक म� अंत�वर्ष्ट प्रस्थापना का प्रभाव 2***राज्य� म� से �कसी के �ेत्र, सीमाओं या नाम पर पड़ता है वहां जब तक उस राज्य के �वधान-मंडल द्वारा उस पर अपने �वचार, ऐसी अव�ध के भीतर जो �नद� श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए या ऐसी अ�त�रक्त अव�ध के भीतर जो राष्ट्रप�त द्वारा अन� ु ात क� जाए, प्रकट �कए जाने के �लए वह �वधेयक राष्ट्रप�त द्वारा उसे �नद� �शत नह�ं कर �दया गया है और इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट या अन� ु ात अव�ध समाप्त नह�ं हो गई है, संसद् के �कसी सदन म� परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ।] [स्पष्ट�करण 1–इस अनच् ु छे द के खंड (क) से खंड (ङ) म� , “राज्य” के अंतगर्त 3 संघ राज्य�ेत्र है, �कं तु परंतुक म� “राज्य” के अंतगर्त संघ राज्य�ेत्र नह�ं है । स्पष्ट�करण 2–खंड (क) द्वारा संसद् को प्रद� शिक्त के अंतगर्त �कसी राज्य या संघ राज्य�ेत्र के �कसी भाग को �कसी अन्य राज्य या संघ राज्य�ेत्र के साथ �मलाकर नए राज्य या संघ राज्य�ेत्र का �नमार्ण करना है ।] 4. पहल� अनस ु ूची और चौथी अनस ु ूची के संशोधन तथा अनप ु रू क, आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक �वषय� का उपबंध करने के �लए अनच् ु छे द 2 और अनच् ु छे द 3 के अधीन बनाई गई �व�धयां–(1) अनच् ु छे द 2 या अनच् ु छे द 3 म� �न�दर्ष्ट �कसी �व�ध म� पहल� अनस ु ूची और चौथी अनस ु ूची के संशोधन के �लए ऐसे उपबंध अंत�वर्ष्ट ह�गे जो उस �व�ध के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए आवश्यक ह� तथा ऐसे अनप ु रू क, आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध भी (िजनके अंतगर्त ऐसी �व�ध से प्रभा�वत राज्य या राज्य� के संसद् म� और �वधान-मंडल या �वधान-मंडल� म� प्र�त�न�धत्व के बारे म� उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट हो सक�गे िजन्ह� संसद् आवश्यक समझे । (2) पव ू �क्त प्रकार क� कोई �व�ध अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी । 1. सं�वधान (पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 2 द्वारा (24-12-1955 से) परं तुक के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (अठारहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 2 द्वारा (27-8-1966 से) अंतःस्था�पत । भाग 2 नाग�रकता 5. सं�वधान के प्रारं भ पर नाग�रकता–इस सं�वधान के प्रारं भ पर प्रत्येक व्यिक्त िजसका भारत के राज्य�ेत्र म� अ�धवास है और– (क) जो भारत के राज्य�ेत्र म� जन्मा था, या (ख) िजसके माता या �पता म� से कोई भारत के राज्य�ेत्र म� जन्मा था, या (ग) जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले कम से कम पांच वषर् तक भारत के राज्य�ेत्र म� मामल ू � तौर से �नवासी रहा है , भारत का नाग�रक होगा । 6. पा�कस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के अ�धकार–अनच् ु छे द 5 म� �कसी बात के होते हए भी, कोई व्यिक्त िजसने ऐसे राज्य�ेत्र से जो इस समय पा�कस्तान के अंतगर्त है , भारत के राज्य�ेत्र को प्रव्रजन �कया है , इस सं�वधान के प्रारं भ पर भारत का नाग�रक समझा जाएगा– (क) य�द वह अथवा उसके माता या �पता म� से कोई अथवा उसके �पतामह या �पतामह� या मातामह या मातामह� म� से कोई (मूल रूप म� यथा अ�ध�नय�मत) भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 म� प�रभा�षत भारत म� जन्मा था ; और (ख) (i) जब�क वह व्यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 से पहले इस प्रकार प्रव्रजन �कया है तब य�द वह अपने प्रव्रजन क� तार�ख से भारत के राज्य�ेत्र म� मामूल� तौर से �नवासी रहा है ; या (ii) जब�क वह व्यिक्त ऐसा है िजसने 19 जल ु ाई, 1948 को या उसके पश्चात ् इस प्रकार प्रव्रजन �कया है तब य�द वह नाग�रकता प्रािप्त के �लए भारत डो�म�नयन क� सरकार द्वारा �व�हत प्ररूप म� और र��त से उसके द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले ऐसे अ�धकार� को, िजसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के �लए �नयुक्त �कया है , आवेदन �कए जाने पर उस अ�धकार� द्वारा भारत का नाग�रक रिजस्ट्र�कृत कर �लया गया है : परं तु य�द कोई व्यिक्त अपने आवेदन क� तार�ख से ठ�क पहले कम से कम छह मास भारत के राज्य�ेत्र म� �नवासी नह�ं रहा है तो वह इस प्रकार रिजस्ट्र�कृत नह�ं �कया जाएगा । 7. पा�कस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के अ�धकार– अनच् ु छे द 5 और अनच् ु छे द 6 म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई व्यिक्त िजसने 1 माचर्, 1947 के पश्चात ् भारत के राज्य�ेत्र से ऐसे राज्य�ेत्र को, जो इस समय पा�कस्तान के अंतगर्त है , प्रव्रजन �कया है , भारत का नाग�रक नह�ं समझा जाएगा : 4 भारत का सं�वधान 5 (भाग 2—नाग�रकता) परं तु इस अनुच्छे द क� कोई बात ऐसे व्यिक्त को लागू नह�ं होगी जो ऐसे राज्य�ेत्र को, जो इस समय पा�कस्तान के अंतगर्त है , प्रव्रजन करने के पश्चात ् भारत के राज्य�ेत्र को ऐसी अनु�ा के अधीन लौट आया है जो पन ु वार्स के �लए या स्थायी रूप से लौटने के �लए �कसी �व�ध के प्रा�धकार द्वारा या उसके अधीन द� गई है और प्रत्येक ऐसे व्यिक्त के बारे म� अनच् ु छे द 6 के खंड (ख) के प्रयोजन� के �लए यह समझा जाएगा �क उसने भारत के राज्य�ेत्र को 19 जल ु ाई, 1948 के पश्चात ् प्रव्रजन �कया है । 8. भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यिक्तय� के नाग�रकता के अ�धकार–अनुच्छे द 5 म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई व्यिक्त जो या िजसके माता या �पता म� से कोई अथवा �पतामह या �पतामह� या मातामह या मातामह� म� से कोई (मल ू रूप म� यथा अ�ध�नय�मत) भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 म� प�रभा�षत भारत म� जन्मा था और जो इस प्रकार प�रभा�षत भारत के बाहर �कसी दे श म� मामल ू � तौर से �नवास कर रहा है , भारत का नाग�रक समझा जाएगा, य�द वह नाग�रकता प्रािप्त के �लए भारत डो�म�नयन क� सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा �व�हत प्ररूप म� और र��त से अपने द्वारा उस दे श म� , जहां वह तत्समय �नवास कर रहा है , भारत के राजन�यक या क�सल�य प्र�त�न�ध को इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले या उसके पश्चात ् आवेदन �कए जाने पर ऐसे राजन�यक या क�सल�य प्र�त�न�ध द्वारा भारत का नाग�रक रिजस्ट्र�कृत कर �लया गया है । 9. �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त करने वाले व्यिक्तय� का नाग�रक न होना–य�द �कसी व्यिक्त ने �कसी �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त कर ल� है तो वह अनच् ु छे द 5 के आधार पर भारत का नाग�रक नह�ं होगा अथवा अनुच्छे द 6 या अनच् ु छे द 8 के आधार पर भारत का नाग�रक नह�ं समझा जाएगा । 10. नाग�रकता के अ�धकार� का बना रहना–प्रत्येक व्यिक्त, जो इस भाग के पव र् ामी ू ग उपबंध� म� से �कसी के अधीन भारत का नाग�रक है या समझा जाता है , ऐसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, जो संसद् द्वारा बनाई जाए, भारत का नाग�रक बना रहे गा । 11. संसद् द्वारा नाग�रकता के अ�धकार का �व�ध द्वारा �व�नयमन �कया जाना–इस भाग के पूवग र् ामी उपबंध� क� कोई बात नाग�रकता के अजर्न और समािप्त के तथा नाग�रकता से संबं�धत अन्य सभी �वषय� के संबंध म� उपबंध करने क� संसद् क� शिक्त का अल्पीकरण नह�ं करे गी । भाग 3 मूल अ�धकार साधारण 12. प�रभाषा–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, “राज्य” के अंतगर्त भारत क� सरकार और संसद् तथा राज्य� म� से प्रत्येक राज्य क� सरकार और �वधान- मंडल तथा भारत के राज्य�ेत्र के भीतर या भारत सरकार के �नयंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्रा�धकार� ह� । 13. मल ू अ�धकार� से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाल� �व�धयां–(1) इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के राज्य�ेत्र म� प्रव� ृ सभी �व�धयां उस मात्रा तक शून्य ह�गी िजस तक वे इस भाग के उपबंध� से असंगत ह� । (2) राज्य ऐसी कोई �व�ध नह�ं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� को छ�नती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन म� बनाई गई प्रत्येक �व�ध उल्लंघन क� मात्रा तक शन् ू य होगी । (3) इस अनच् ु छे द म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,-- (क) “�व�ध” के अंतगर्त भारत के राज्य�ेत्र म� �व�ध का बल रखने वाला कोई अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम, �व�नयम, अ�धसच ू ना, रू�ढ़ या प्रथा है ; (ख) “प्रव� ृ �व�ध” के अंतगर्त भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले पा�रत या बनाई गई �व�ध है जो पहले ह� �नर�सत नह�ं कर द� गई है , चाहे ऐसी कोई �व�ध या उसका कोई भाग उस समय पण र् या या �व�शष्ट �ेत्र� म� प्रवतर्न म� नह�ं है । ू त 1 [(4) इस अनच् ु छे द क� कोई बात अनच् ु छे द 368 के अधीन �कए गए इस सं�वधान के �कसी संशोधन को लागू नह�ं होगी ।] समता का अ�धकार 14. �व�ध के सम� समता–राज्य, भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी व्यिक्त को �व�ध के सम� समता से या �व�धय� के समान संर�ण से वं�चत नह�ं करे गा । 15. धमर्, मल ू वंश, जा�त, �लंग या जन्मस्थान के आधार पर �वभेद का प्र�तषेध–(1) राज्य, �कसी नाग�रक के �वरुद्ध केवल धमर्, मूलवंश, जा�त, �लंग, जन्मस्थान या इनम� से �कसी के आधार पर कोई �वभेद नह�ं करे गा । (2) कोई नाग�रक केवल धमर्, मल ू वंश, जा�त, �लंग, जन्मस्थान या इनम� से �कसी के आधार पर– 1. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 2 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्था�पत । 6 भारत का सं�वधान 7 (भाग 3—मल ू अ�धकार) (क) दक ु ान�, सावर्ज�नक भोजनालय�, होटल� और सावर्ज�नक मनोरं जन के स्थान� म� प्रवेश, या (ख) पण र् ः या भागतः राज्य-�न�ध से पो�षत या साधारण जनता के प्रयोग के ू त �लए सम�पर्त कुओं, तालाब�, स्नानघाट�, सड़क� और सावर्ज�नक समागम के स्थान� के उपयोग, के संबंध म� �कसी भी �नय�ग्यता, दा�यत्व, �नबर्न्धन या शतर् के अधीन नह�ं होगा । (3) इस अनच् ु छे द क� कोई बात राज्य को िस्त्रय� और बालक� के �लए कोई �वशेष उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी । 1 [(4) इस अनच् ु छे द क� या अनच् ु छे द 29 के खंड (2) क� कोई बात राज्य को सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े हुए नाग�रक� के �कन्ह�ं वग� क� उन्न�त के �लए या अनुस�ू चत जा�तय� और अनुस�ू चत जनजा�तय� के �लए कोई �वशेष उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।] 2 [(5) इस अनच् ु छे द या अनच् ु छे द 19 के खंड (1) के उपखंड (छ) क� कोई बात राज्य को सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े हुए नाग�रक� के �कन्ह�ं वग� क� उन्न�त के �लए या अनुसू�चत जा�तय� या अनुस�ू चत जनजा�तय� के �लए, �व�ध द्वारा, कोई �वशेष उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी, जहां तक ऐसे �वशेष उपबंध, अनच् ु छे द 30 के खंड (1) म� �न�दर् ष्ट अल्पसंख्यक �श�ा संस्थाओं से �भन्न, �श�ा संस्थाओं म� , िजनके अंतगर्त प्राइवेट �श�ा संस्थाएं भी ह� , चाहे वे राज्य से सहायता प्राप्त ह� या नह�ं, प्रवेश से संब�ं धत ह� ।] 3 [(6) इस अनच् ु छे द या अनच् ु छे द 19 के खंड (1) के उपखंड (छ) या अनच् ु छे द 29 के खंड (2) क� कोई बात, राज्य को-- (क) खंड (4) और खंड (5) म� उिल्ल�खत वग� से �भन्न नाग�रक� के आ�थर्क रूप से दब र् �कन्ह�ं वग� क� उन्न�त के �लए कोई भी �वशेष उपबंध करने से �नवा�रत ु ल नह�ं करे गी ; और (ख) खंड (4) और खंड (5) म� उिल्ल�खत वग� से �भन्न नाग�रक� के आ�थर्क रूप से दब र् �कन्ह�ं वग� क� उन्न�त के �लए कोई भी �वशेष उपबंध करने से वहां ु ल �नवा�रत नह�ं करे गी, जहां तक ऐसे उपबंध, ऐसी शै��णक संस्थाओं म� , िजनके अंतगर्त अनच् ु छे द 30 के खंड (1) म� �न�दर् ष्ट अल्पसंख्यक शै��णक संस्थाओं से �भन्न प्राइवेट शै��णक संस्थाएं भी ह� , चाहे वे राज्य द्वारा सहायता पाने वाल� ह� या सहायता न पाने वाल� ह� , प्रवेश से संबं�धत ह� , जो आर�ण क� दशा म� �वद्यमान आर�ण� के अ�त�रक्त तथा प्रत्येक प्रवगर् म� कुल स्थान� के अ�धकतम दस प्र�तशत के अध्यधीन ह�गे । 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 2 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया । 2. सं�वधान (�तरानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2005 क� धारा 2 द्वारा (20-1-2006 से) अन्तःस्था�पत । 3. सं�वधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (14-1-2019 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 8 (भाग 3—मल ू अ�धकार) स्पष्ट�करण--इस अनुच्छे द और अनच् ु छे द 16 के प्रयोजन� के �लए ''आ�थर्क रूप से दब र् वगर्'' वे ह�गे, जो राज्य द्वारा कुटुंब क� आय और आ�थर्क अलाभ के अन्य सूचक� के ु ल आधार पर समय-समय पर अ�धस�ू चत �कए जाएं ।] 16. लोक �नयोजन के �वषय म� अवसर क� समता–(1) राज्य के अधीन �कसी पद पर �नयोजन या �नयिु क्त से संब�ं धत �वषय� म� सभी नाग�रक� के �लए अवसर क� समता होगी । (2) राज्य के अधीन �कसी �नयोजन या पद के संबंध म� केवल धमर्, मूलवंश, जा�त, �लंग, उद्भव, जन्मस्थान, �नवास या इनम� से �कसी के आधार पर न तो कोई नाग�रक अपात्र होगा और न उससे �वभेद �कया जाएगा । (3) इस अनच् ु छे द क� कोई बात संसद् को कोई ऐसी �व�ध बनाने से �नवा�रत नह�ं करे गी जो 1[�कसी राज्य या संघ राज्य�ेत्र क� सरकार के या उसम� के �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन वाले �कसी वगर् या वग� के पद पर �नयोजन या �नयुिक्त के संबंध म� ऐसे �नयोजन या �नयिु क्त से पहले उस राज्य या संघ राज्य�ेत्र के भीतर �नवास �वषयक कोई अपे�ा �व�हत करती है ] । (4) इस अनुच्छे द क� कोई बात राज्य को �पछड़े हुए नाग�रक� के �कसी वगर् के प� म� , िजनका प्र�त�न�धत्व राज्य क� राय म� राज्य के अधीन सेवाओं म� पयार्प्त नह�ं है , �नयिु क्तय� या पद� के आर�ण के �लए उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी । 2 [(4क) इस अनुच्छे द क� कोई बात राज्य को अनुस�ू चत जा�तय� और अनुसू�चत जनजा�तय� के प� म� , िजनका प्र�त�न�धत्व राज्य क� राय म� राज्य के अधीन सेवाओं म� पयार्प्त नह�ं है , राज्य के अधीन सेवाओं म� 3[�कसी वगर् या वग� के पद� पर, पा�रणा�मक ज्येष्ठता स�हत, प्रोन्न�त के मामल� म� ] आर�ण के �लए उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।] 4 [(4ख) इस अनच् ु छे द क� कोई बात राज्य को �कसी वषर् म� �कन्ह�ं न भर� गई ऐसी �रिक्तय� को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन �कए गए आर�ण के �लए �कसी उपबंध के अनस ु ार उस वषर् म� भर� जाने के �लए आर��त ह� , �कसी उ�रवत� वषर् या वष� म� भरे जाने के �लए पथ ृ क् वगर् क� �रिक्तय� के रूप म� �वचार करने से �नवा�रत नह�ं करे गी और ऐसे वगर् क� �रिक्तय� पर उस वषर् क� �रिक्तय� के साथ िजसम� वे भर� जा रह� ह� , उस वषर् क� �रिक्तय� क� कुल संख्या के संबंध म� पचास प्र�तशत आर�ण क� अ�धकतम सीमा का अवधारण करने के �लए �वचार नह�ं �कया जाएगा ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट �कसी राज्य के या उसके �ेत्र म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन उस राज्य के भीतर �नवास �वषयक कोई अपे�ा �व�हत करती हो” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सतह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 क� धारा 2 द्वारा (17-6-1995 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (पचासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 2 द्वारा (भूतल�ी प्रवाभ से) (17-6-1995 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (इक्यासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 9 (भाग 3—मल ू अ�धकार) (5) इस अनच् ु छे द क� कोई बात �कसी ऐसी �व�ध के प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी जो यह उपबंध करती है �क �कसी धा�मर्क या सांप्रदा�यक संस्था के कायर्कलाप से संबं�धत कोई पदधार� या उसके शासी �नकाय का कोई सदस्य �कसी �व�शष्ट धमर् का मानने वाला या �व�शष्ट संप्रदाय का ह� हो । 1[(6) इस अनुच्छे द क� कोई बात, राज्य को �वद्यमान आर�ण के अ�त�रक्त तथा प्रत्येक प्रवगर् म� पद� के अ�धकतम दस प्र�तशत के अध्यधीन, खंड (4) म� उिल्ल�खत वग� से �भन्न नाग�रक� के आ�थर्क रूप से दब र् �कन्ह�ं वग� के प� म� �नयिु क्तय� और पद� के ु ल आर�ण के �लए कोई भी उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।] 17. अस्पश्ृ यता का अंत–“अस्पश्ृ यता” का अंत �कया जाता है और उसका �कसी भी रूप म� आचरण �न�षद्ध �कया जाता है । “अस्पश्ृ यता” से उपजी �कसी �नय�ग्यता को लागू करना अपराध होगा जो �व�ध के अनस ु ार दं डनीय होगा । 18. उपा�धय� का अंत–(1) राज्य, सेना या �वद्या संबंधी सम्मान के �सवाय और कोई उपा�ध प्रदान नह�ं करे गा । (2) भारत का कोई नाग�रक �कसी �वदे शी राज्य से कोई उपा�ध स्वीकार नह�ं करे गा । (3) कोई व्यिक्त, जो भारत का नाग�रक नह�ं है , राज्य के अधीन लाभ या �वश्वास के �कसी पद को धारण करते हुए �कसी �वदे शी राज्य से कोई उपा�ध राष्ट्रप�त क� सहम�त के �बना स्वीकार नह�ं करे गा । (4) राज्य के अधीन लाभ या �वश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यिक्त �कसी �वदे शी राज्य से या उसके अधीन �कसी रूप म� कोई भ� ट, उपलिब्ध या पद राष्ट्रप�त क� सहम�त के �बना स्वीकार नह�ं करे गा । स्वातं�य-अ�धकार 19. वाक् -स्वातं�य आ�द �वषयक कुछ अ�धकार� का संर�ण–(1) सभी नाग�रक� को– (क) वाक् -स्वातं�य और अ�भव्यिक्त-स्वातं�य का, (ख) शां�तपव र् और �नरायध ू क ु सम्मेलन का, (ग) संगम या संघ 2[या सहकार� सोसाइट�] बनाने का, (घ) भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र अबाध संचरण का, 1. सं�वधान (एक सौ तीनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 3 द्वारा (14-1-2019 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (सतानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 2 द्वारा (8-2-2012 से) अंतःस्था�पत । 10 भारत का सं�वधान (भाग 3—मल ू अ�धकार) 1 [और] (ङ) भारत के राज्य�ेत्र के �कसी भाग म� �नवास करने और बस जाने का, 2 [(च)* * * *] (छ) कोई व�ृ �, उपजी�वका, व्यापार या कारबार करने का, अ�धकार होगा । 3 [(2) खंड (1) के उपखंड (क) क� कोई बात उक्त उपखंड द्वारा �दए गए अ�धकार के प्रयोग पर 4[भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता,] राज्य क� सरु �ा, �वदे शी राज्य� के साथ मैत्रीपण ू र् संबंध�, लोक व्यवस्था, �शष्टाचार या सदाचार के �हत� म� अथवा न्यायालय-अवमान, मानहा�न या अपराध-उद्द�पन के संबंध म� यिु क्तयुक्त �नब�धन जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध अ�धरो�पत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या वैसे �नब�धन अ�धरो�पत करने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी ।] (3) उक्त खंड के उपखंड (ख) क� कोई बात उक्त उपखंड द्वारा �दए गए अ�धकार के प्रयोग पर 4[भारत क� प्रभुता और अखंडता या] लोक व्यवस्था के �हत� म� युिक्तयुक्त �नबर्न्धन जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध अ�धरो�पत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या वैसे �नबर्न्धन अ�धरो�पत करने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी । (4) उक्त खंड के उपखंड (ग) क� कोई बात उक्त उपखंड द्वारा �दए गए अ�धकार के प्रयोग पर 4[भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता या] लोक व्यवस्था या सदाचार के �हत� म� यिु क्तयुक्त �नबर्न्धन जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध अ�धरो�पत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या वैसे �नबर्न्धन अ�धरो�पत करने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी । (5) उक्त खंड के 5[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] क� कोई बात उक्त उपखंड� द्वारा �दए गए अ�धकार� के प्रयोग पर साधारण जनता के �हत� म� या �कसी अनस ु �ू चत जनजा�त के �हत� के संर�ण के �लए युिक्तयुक्त �नबर्न्धन जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध अ�धरो�पत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या वैसे �नबर्न्धन अ�धरो�पत करने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी । 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया । 3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (2) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । 5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) “उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च)” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 11 (भाग 3—मल ू अ�धकार) (6) उक्त खंड के उपखंड (छ) क� कोई बात उक्त उपखंड द्वारा �दए गए अ�धकार के प्रयोग पर साधारण जनता के �हत� म� यिु क्तयक् ु त �नबर्न्धन जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध अ�धरो�पत करती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या वैसे �नबर्न्धन अ�धरो�पत करने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी और �व�शष्टतया 1[उक्त उपखंड क� कोई बात– (i) कोई व�ृ �, उपजी�वका, व्यापार या कारबार करने के �लए आवश्यक व�ृ �क या तकनीक� अहर्ताओं से, या (ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वा�मत्व या �नयंत्रण म� �कसी �नगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नाग�रक� का पूणत र् ः या भागतः अपवजर्न करके या अन्यथा, चलाए जाने से, जहां तक कोई �वद्यमान �व�ध संबंध रखती है वहां तक उसके प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या इस प्रकार संबंध रखने वाल� कोई �व�ध बनाने से राज्य को �नवा�रत नह�ं करे गी ।] 20. अपराध� के �लए दोष�सद्�ध के संबंध म� संर�ण–(1) कोई व्यिक्त �कसी अपराध के �लए तब तक �सद्धदोष नह�ं ठहराया जाएगा, जब तक �क उसने ऐसा कोई कायर् करने के समय, जो अपराध के रूप म� आरो�पत है , �कसी प्रव� ृ �व�ध का अ�तक्रमण नह�ं �कया है या उससे अ�धक शािस्त का भागी नह�ं होगा जो उस अपराध के �कए जाने के समय प्रव� ृ �व�ध के अधीन अ�धरो�पत क� जा सकती थी । (2) �कसी व्यिक्त को एक ह� अपराध के �लए एक बार से अ�धक अ�भयोिजत और दं �डत नह�ं �कया जाएगा । (3) �कसी अपराध के �लए अ�भयुक्त �कसी व्यिक्त को स्वयं अपने �वरुद्ध सा�ी होने के �लए बाध्य नह�ं �कया जाएगा । 21. प्राण और दै �हक स्वतंत्रता का संर�ण–�कसी व्यिक्त को उसके प्राण या दै �हक स्वतंत्रता से �व�ध द्वारा स्था�पत प्र�क्रया के अनस ु ार ह� वं�चत �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं । [21क. �श�ा का अ�धकार–राज्य, छह वषर् से चौदह वषर् तक क� आयु वाले सभी बालक� के �लए नःशुल्क और अ�नवायर् �श�ा दे ने का ऐसी र��त म� , जो राज्य �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे , उपबंध करे गा ।] 2 22. कुछ दशाओं म� �गरफ्तार� और �नरोध से संर�ण–(1) �कसी व्यिक्त को जो �गरफ्तार �कया गया है , ऐसी �गरफ्तार� के कारण� से यथाशीघ्र अवगत कराए �बना अ�भर�ा म� �नरुद्ध नह�ं रखा जाएगा या अपनी रु�च के �व�ध व्यवसायी से परामशर् करने और प्र�तर�ा कराने के अ�धकार से वं�चत नह�ं रखा जाएगा । 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 3 द्वारा (18-6-1951 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (�छयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2002 क� धारा 2 द्वारा (1-4-2010 से) अन्तःस्था�पत । भारत का सं�वधान 12 (भाग 3—मल ू अ�धकार) (2) प्रत्येक व्यिक्त को, जो �गरफ्तार �कया गया है और अ�भर�ा म� �नरुद्ध रखा गया है , �गरफ्तार� के स्थान से मिजस्ट्रे ट के न्यायालय तक यात्रा के �लए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी �गरफ्तार� से चौबीस घंटे क� अव�ध म� �नकटतम मिजस्ट्रे ट के सम� पेश �कया जाएगा और ऐसे �कसी व्यिक्त को मिजस्ट्रे ट के प्रा�धकार के �बना उक्त अव�ध से अ�धक अव�ध के �लए अ�भर�ा म� �नरुद्ध नह�ं रखा जाएगा । (3) खंड (1) और खंड (2) क� कोई बात �कसी ऐसे व्यिक्त को लागू नह�ं होगी जो– (क) तत्समय शत्रु अन्यदे शीय है ; या (ख) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� �कसी �व�ध के अधीन �गरफ्तार या �नरुद्ध �कया गया है । ∗(4) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� कोई �व�ध �कसी व्यिक्त का तीन मास से अ�धक अव�ध के �लए तब तक �नरुद्ध �कया जाना प्रा�धकृत नह�ं करे गी जब तक �क– (क) ऐसे व्यिक्तय� से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ह� या न्यायाधीश रहे ह� या न्यायाधीश �नयुक्त होने के �लए अ�हर्त ह� , �मलकर बने सलाहकार बोडर् ने तीन मास क� उक्त अव�ध क� समािप्त से पहले यह प्र�तवेदन नह�ं �दया है �क उसक� राय म� ऐसे �नरोध के �लए पयार्प्त कारण ह� : ∗ सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3 द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से, जो �क अ�धसू�चत नह�ं हुई है) खंड (4) के स्थान पर �नम्न�ल�खत प्र�तस्था�पत �कया जाएगा-'(4) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� कोई �व�ध �कसी व्यिक्त का दो मास से अ�धक क� अव�ध के �लए �नरुद्ध �कया जाना प्रा�धकृत नह�ं करे गी जब तक �क समु�चत उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् क� �सफा�रश के अनुसार ग�ठत सलाहकार बोडर् ने उक्त दो मास क� अव�ध क� समािप्त से पहले यह प्र�तवेदन नह�ं �दया है �क उसक� राय म� ऐसे �नरोध के �लए पयार्प्त कारण ह� : परं तु सलाहकार बोडर् एक अध्य� और कम से कम दो अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और अध्य� समु�चत उच्च न्यायालय का सेवारत न्यायाधीश होगा और अन्य सदस्य �कसी उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवा�नव� ृ न्यायाधीश ह�गे : परं तु यह और �क इस खंड क� कोई बात �कसी व्यिक्त का उस अ�धकतम अव�ध के �लए �नरुद्ध �कया जाना प्रा�धकृत नह�ं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा �व�हत क� जाए । स्पष्ट�करण--इस खंड म� , “समु�चत उच्च न्यायालय” से अ�भप्रेत है-- (i) भारत सरकार या उस सरकार के अधीनस्थ �कसी अ�धकार� या प्रा�धकार� द्वारा �कए गए �नरोध आदे श के अनुसरण म� �नरुद्ध व्यिक्त क� दशा म� , �दल्ल� संघ राज्य�ेत्र के �लए उच्च न्यायालय ; (ii) (संघ राज्य�ेत्र से �भन्न) �कसी राज्य सरकार द्वारा �कए गए �नरोध आदे श के अनुसरण म� �नरुद्ध व्यिक्त क� दशा म� , उस राज्य के �लए उच्च न्यायालय ; और (iii) �कसी संघ राज्य�ेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीनस्थ �कसी अ�धकार� या प्रा�धकार� द्वारा �कए गए �नरोध आदे श के अनुसरण म� �नरुद्ध व्यिक्त क� दशा म� वह उच्च न्यायालय जो संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�न�दर् ष्ट �कया जाए ।' । भारत का सं�वधान 13 (भाग 3—मल ू अ�धकार) परं तु इस उपखंड क� कोई बात �कसी व्यिक्त का उस अ�धकतम अव�ध से अ�धक अव�ध के �लए �नरुद्ध �कया जाना प्रा�धकृत नह�ं करे गी जो खंड (7) के उपखंड (ख) के अधीन संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा �व�हत क� गई है ; या (ख) ऐसे व्यिक्त को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अनुसार �नरुद्ध नह�ं �कया जाता है । (5) �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� �कसी �व�ध के अधीन �कए गए आदे श के अनुसरण म� जब �कसी व्यिक्त को �नरुद्ध �कया जाता है तब आदे श करने वाला प्रा�धकार� यथाशक्य शीघ्र उस व्यिक्त को यह संस�ू चत करे गा �क वह आदे श �कन आधार� पर �कया गया है और उस आदे श के �वरुद्ध अभ्यावेदन करने के �लए उसे शीघ्रा�तशीघ्र अवसर दे गा । (6) खंड (5) क� �कसी बात से ऐसा आदे श, जो उस खंड म� �न�दर् ष्ट है , करने वाले प्रा�धकार� के �लए ऐसे तथ्य� को प्रकट करना आवश्यक नह�ं होगा िजन्ह� प्रकट करना ऐसा प्रा�धकार� लोक�हत के �वरुद्ध समझता है । (7) संसद् �व�ध द्वारा �व�हत कर सकेगी �क– * (क) �कन प�रिस्थ�तय� के अधीन और �कस वगर् या वग� के मामल� म� �कसी व्यिक्त को �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� �कसी �व�ध के अधीन तीन मास से अ�धक अव�ध के �लए खंड (4) के उपखंड (क) के उपबंध� के अनुसार सलाहकार बोडर् क� राय प्राप्त �कए �बना �नरुद्ध �कया जा सकेगा ; (ख) �कसी वगर् या वग� के मामल� म� �कतनी अ�धकतम अव�ध के �लए ∗∗ �कसी व्यिक्त को �नवारक �नरोध का उपबंध करने वाल� �कसी �व�ध के अधीन �नरुद्ध �कया जा सकेगा ; और ∗∗∗ (ग) ∗∗∗∗ [खंड (4) के उपखंड (क)] के अधीन क� जाने वाल� जांच म� सलाहकार बोडर् द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया क्या होगी । * सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(i) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) उपखंड (क) का लोप �कया गया । ∗∗ सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(ii) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के रूप म� पुनःअ�ां�कत �कया जाएगा । ∗∗∗ सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(iii) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के रूप म� पुनःअ�ां�कत �कया जाएगा । ∗∗∗∗ सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 3(ख)(iii) द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) “खंड (4) के उपखंड (क)” के रूप म� “खंड (4)” प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 14 (भाग 3—मल ू अ�धकार) शोषण के �वरुद्ध अ�धकार 23. मानव के दव्ु यार्पार और बलातश्रम का प्र�तषेध–(1) मानव का दव्ु यार्पार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलातश्रम प्र�त�षद्ध �कया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो �व�ध के अनस ु ार दं डनीय होगा । (2) इस अनच् ु छे द क� कोई बात राज्य को सावर्ज�नक प्रयोजन� के �लए अ�नवायर् सेवा अ�धरो�पत करने से �नवा�रत नह�ं करे गी । ऐसी सेवा अ�धरो�पत करने म� राज्य केवल धमर्, मूलवंश, जा�त या वगर् या इनम� से �कसी के आधार पर कोई �वभेद नह�ं करे गा । 24. कारखान� आ�द म� बालक� के �नयोजन का प्र�तषेध–चौदह वषर् से कम आयु के �कसी बालक को �कसी कारखाने या खान म� काम करने के �लए �नयोिजत नह�ं �कया जाएगा या �कसी अन्य प�रसंकटमय �नयोजन म� नह�ं लगाया जाएगा । धमर् क� स्वतंत्रता का अ�धकार 25. अंतःकरण क� और धमर् के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने क� स्वतंत्रता–(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य तथा इस भाग के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए, सभी व्यिक्तय� को अंतःकरण क� स्वतंत्रता का और धमर् के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा । (2) इस अनुच्छे द क� कोई बात �कसी ऐसी �वद्यमान �व�ध के प्रवतर्न पर प्रभाव नह�ं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी �व�ध बनाने से �नवा�रत नह�ं करे गी जो– (क) धा�मर्क आचरण से संबद्ध �कसी आ�थर्क, �व�ीय, राजनै�तक या अन्य लौ�कक �क्रयाकलाप का �व�नयमन या �नबर्न्धन करती है ; (ख) सामािजक कल्याण और सुधार के �लए या सावर्ज�नक प्रकार क� �हंदओ ु ं क� धा�मर्क संस्थाओं को �हंदओ ु ं के सभी वग� और अनुभाग� के �लए खोलने का उपबंध करती है । स्पष्ट�करण 1–कृपाण धारण करना और लेकर चलना �सक्ख धमर् के मानने का अंग समझा जाएगा । स्पष्ट�करण 2–खंड (2) के उपखंड (ख) म� �हंदओ ु ं के प्र�त �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क उसके अंतगर्त �सक्ख, जैन या बौद्ध धमर् के मानने वाले व्यिक्तय� के प्र�त �नद� श है और �हंदओ ु ं क� धा�मर्क संस्थाओं के प्र�त �नद� श का अथर् तदनुसार लगाया जाएगा । 26. धा�मर्क काय� के प्रबंध क� स्वतंत्रता–लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धा�मर्क संप्रदाय या उसके �कसी अनभ ु ाग को– (क) धा�मर्क और पूतर् प्रयोजन� के �लए संस्थाओं क� स्थापना और पोषण का, भारत का सं�वधान 15 (भाग 3—मल ू अ�धकार) (ख) अपने धमर् �वषयक काय� का प्रबंध करने का, (ग) जंगम और स्थावर संप�� के अजर्न और स्वा�मत्व का, और (घ) ऐसी संप�� का �व�ध के अनुसार प्रशासन करने का, अ�धकार होगा । 27. �कसी �व�शष्ट धमर् क� अ�भवद् ृ �ध के �लए कर� के संदाय के बारे म� स्वतंत्रता– �कसी भी व्यिक्त को ऐसे कर� का संदाय करने के �लए बाध्य नह�ं �कया जाएगा िजनके आगम �कसी �व�शष्ट धमर् या धा�मर्क संप्रदाय क� अ�भवद् ृ �ध या पोषण म� व्यय करने के �लए �व�न�दर् ष्ट रूप से �व�नयोिजत �कए जाते ह� । 28. कुछ �श�ा संस्थाओं म� धा�मर्क �श�ा या धा�मर्क उपासना म� उपिस्थत होने के बारे म� स्वतंत्रता–(1) राज्य-�न�ध से पण र् ः पो�षत �कसी �श�ा संस्था म� कोई धा�मर्क �श�ा ू त नह�ं द� जाएगी । (2) खंड (1) क� कोई बात ऐसी �श�ा संस्था को लागू नह�ं होगी िजसका प्रशासन राज्य करता है �कं तु जो �कसी ऐसे �वन्यास या न्यास के अधीन स्था�पत हुई है िजसके अनुसार उस संस्था म� धा�मर्क �श�ा दे ना आवश्यक है । (3) राज्य से मान्यताप्राप्त या राज्य-�न�ध से सहायता पाने वाल� �श�ा संस्था म� उपिस्थत होने वाले �कसी व्यिक्त को ऐसी संस्था म� द� जाने वाल� धा�मर्क �श�ा म� भाग लेने के �लए या ऐसी संस्था म� या उससे संलग्न स्थान म� क� जाने वाल� धा�मर्क उपासना म� उपिस्थत होने के �लए तब तक बाध्य नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस व्यिक्त ने, या य�द वह अवयस्क है तो उसके संर�क ने, इसके �लए अपनी सहम�त नह�ं दे द� है । संस्कृ�त और �श�ा संबंधी अ�धकार 29. अल्पसंख्यक-वग� के �हत� का संर�ण–(1) भारत के राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �नवासी नाग�रक� के �कसी अनभ ु ाग को, िजसक� अपनी �वशेष भाषा, �ल�प या संस्कृ�त है , उसे बनाए रखने का अ�धकार होगा । (2) राज्य द्वारा पो�षत या राज्य-�न�ध से सहायता पाने वाल� �कसी �श�ा संस्था म� प्रवेश से �कसी भी नाग�रक को केवल धमर्, मूलवंश, जा�त, भाषा या इनम� से �कसी के आधार पर वं�चत नह�ं �कया जाएगा । 30. �श�ा संस्थाओं क� स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वग� का अ�धकार–(1) धमर् या भाषा पर आधा�रत सभी अल्पसंख्यक-वग� को अपनी रु�च क� �श�ा संस्थाओं क� स्थापना और प्रशासन का अ�धकार होगा । 16 भारत का सं�वधान (भाग 3—मल ू अ�धकार) 1 [(1क) खंड (1) म� �न�दर् ष्ट �कसी अल्पसंख्यक-वगर् द्वारा स्था�पत और प्रशा�सत �श�ा संस्था क� संप�� के अ�नवायर् अजर्न के �लए उपबंध करने वाल� �व�ध बनाते समय, राज्य यह सु�निश्चत करे गा �क ऐसी संप�� के अजर्न के �लए ऐसी �व�ध द्वारा �नयत या उसके अधीन अवधा�रत रकम इतनी हो �क उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अ�धकार �नबर्िन्धत या �नराकृत न हो जाए ।] (2) �श�ा संस्थाओं को सहायता दे ने म� राज्य �कसी �श�ा संस्था के �वरुद्ध इस आधार पर �वभेद नह�ं करे गा �क वह धमर् या भाषा पर आधा�रत �कसी अल्पसंख्यक-वगर् के प्रबंध म� है । 2 * * * * 31. [संप�� का अ�नवायर् अजर्न ।]–सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) �नर�सत । [कुछ �व�धय� क� व्याव�ृ �] 3 4 5 [31क. संपदाओं आ�द के अजर्न के �लए उपबंध करने वाल� �व�धय� क� व्याव�ृ �– [(1) अनच् ु छे द 13 म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी,– (क) �कसी संपदा के या उसम� �कन्ह�ं अ�धकार� के राज्य द्वारा अजर्न के �लए या �कन्ह�ं ऐसे अ�धकार� के �नवार्पन या उनम� प�रवतर्न के �लए, या (ख) �कसी संप�� का प्रबंध लोक�हत म� या उस संप�� का उ�चत प्रबंध सु�निश्चत करने के उद्दे श्य से प�रसी�मत अव�ध के �लए राज्य द्वारा ले �लए जाने के �लए, या (ग) दो या अ�धक �नगम� को लोक�हत म� या उन �नगम� म� से �कसी का उ�चत प्रबंध सु�निश्चत करने के उद्दे श्य से समामे�लत करने के �लए, या (घ) �नगम� के प्रबंध अ�भकतार्ओं, स�चव� और कोषाध्य��, प्रबंध �नदे शक�, �नदे शक� या प्रबंधक� के �कन्ह�ं अ�धकार� या उनके शेयरधारक� के मत दे ने के �कन्ह�ं अ�धकार� के �नवार्पन या उनम� प�रवतर्न के �लए, या 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 4 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 5 द्वारा (20-6-1979 से) उपशीषर् "संप�� का अ�धकार" का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 3 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 4 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत । 5. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 17 (भाग 3—मल ू अ�धकार) (ङ) �कसी ख�नज या ख�नज तेल क� खोज करने या उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के �लए �कसी करार, पट्टे या अनु�िप्त के आधार पर प्रोद्भूत होने वाले �कन्ह�ं अ�धकार� के �नवार्पन या उनम� प�रवतर्न के �लए या �कसी ऐसे करार, पट्टे या अनु�िप्त को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के �लए, 1 उपबंध करने वाल� �व�ध इस आधार पर शन् ू य नह�ं समझी जाएगी �क वह [अनुच्छे द 14 या अनुच्छे द 19] द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी से असंगत है या उसे छ�नती है या न्यून करती है : परं तु जहां ऐसी �व�ध �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध है वहां इस अनच् ु छे द के उपबंध उस �व�ध को तब तक लागू नह�ं ह�गे जब तक ऐसी �व�ध को, जो राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखी गई है , उसक� अनुम�त प्राप्त नह�ं हो गई है :] 2 [परं तु यह और �क जहां �कसी �व�ध म� �कसी संपदा के राज्य द्वारा अजर्न के �लए कोई उपबंध �कया गया है और जहां उसम� समा�वष्ट कोई भ�ू म �कसी व्यिक्त क� अपनी जोत म� है वहां राज्य के �लए ऐसी भ�ू म के ऐसे भाग को, जो �कसी तत्समय प्रव� ृ �व�ध के अधीन उसको लागू अ�धकतम सीमा के भीतर है , या उस पर �न�मर्त या उससे अनल ु ग्न �कसी भवन या संरचना को अिजर्त करना उस दशा के �सवाय �व�धपण ू र् नह�ं होगा िजस दशा म� ऐसी भ�ू म, भवन या संरचना के अजर्न से संबं�धत �व�ध उस दर से प्र�तकर के संदाय के �लए उपबंध करती है जो उसके बाजार-मल् ू य से कम नह�ं होगी ।] (2) इस अनच् ु छे द म� ,– 3 [(क) “संपदा” पद का �कसी स्थानीय �ेत्र के संबंध म� वह� अथर् है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस �ेत्र म� प्रव� ृ भू-ध�ृ तय� से संबं�धत �वद्यमान �व�ध म� है और इसके अंतगर्त– (i) कोई जागीर, इनाम या मआ ु फ� अथवा वैसा ह� अन्य अनुदान और [त�मलनाडु] और केरल राज्य� म� कोई जन्मम ् अ�धकार भी होगा ; 4 (ii) रै यतबाड़ी बंदोबस्त के अधीन धत ृ कोई भ�ू म भी होगी ; (iii) कृ�ष के प्रयोजन� के �लए या उसके सहायक प्रयोजन� के �लए धत ृ या पट्टे पर द� गई कोई भू�म भी होगी, िजसके अंतगर्त बंजर भ�ू म, वन भ�ू म, चरागाह या भ�ू म के कृषक�, कृ�ष श्र�मक� और ग्रामीण कार�गर� के अ�धभोग म� भवन� और अन्य संरचनाओं के स्थल ह� ;] 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) “अनुच्छे द 14, अनुच्छे द 19 या अनुच्छे द 31” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सत्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 क� धारा 2(i) द्वारा (20-6-1964 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (सत्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 क� धारा 2(ii) द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) उपखंड (क) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. मद्रास राज्य (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 18 (भाग 3—मल ू अ�धकार) (ख) “अ�धकार” पद के अंतगर्त, �कसी संपदा के संबंध म� , �कसी स्वत्वधार�, उप-स्वत्वधार�, अवर स्वत्वधार�, भ-ू ध�ृ तधारक, 1[रै यत, अवर रै यत] या अन्य मध्यवत� म� �न�हत कोई अ�धकार और भू-राजस्व के संबंध म� कोई अ�धकार या �वशेषा�धकार ह�गे । 2 [31ख. कुछ अ�ध�नयम� और �व�नयम� का �व�धमान्यकरण–अनुच्छे द 31क म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, नवीं अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट अ�ध�नयम� और �व�नयम� म� से और उनके उपबंध� म� से कोई इस आधार पर शून्य या कभी शून्य हुआ नह�ं समझा जाएगा �क वह अ�ध�नयम, �व�नयम या उपबंध इस भाग के �कन्ह�ं उपबंध� द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी से असंगत है या उसे छ�नता है या न्यन ू करता है और �कसी न्यायालय या अ�धकरण के �कसी प्र�तकूल �नणर्य, �डक्र� या आदे श के होते हुए भी, उक्त अ�ध�नयम� और �व�नयम� म� से प्रत्येक, उसे �नर�सत या संशो�धत करने क� �कसी स�म �वधान-मंडल क� शिक्त के अधीन रहते हुए, प्रव� ृ बना रहे गा ।] 3 [31ग. कुछ �नदे शक त�व� को प्रभावी करने वाल� �व�धय� क� व्याव�ृ �–अनच् ु छे द 13 म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई �व�ध, जो 4[भाग 4 म� अ�धक�थत सभी या �कन्ह�ं त�व�] को सु�निश्चत करने के �लए राज्य क� नी�त को प्रभावी करने वाल� है , इस आधार पर शून्य नह�ं समझी जाएगी �क वह 5[अनच् ु छे द 14 या अनच् ु छे द 19] द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से 6 �कसी से असंगत है या उसे छ�नती है या न्यन ू करती है [और कोई �व�ध, िजसम� यह घोषणा है �क वह ऐसी नी�त को प्रभावी करने के �लए है , �कसी न्यायालय म� इस आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी �क वह ऐसी नी�त को प्रभावी नह�ं करती है ]: परं तु जहां ऐसी �व�ध �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहां इस अनच् ु छे द के उपबंध उस �व�ध को तब तक लागू नह�ं ह�गे जब तक ऐसी �व�ध को, जो राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखी गई है , उसक� अनुम�त प्राप्त नह�ं हो गई है । 31घ. [राष्ट्र �वरोधी �क्रयाकलाप के संबंध म� �व�धय� क� व्याव�ृ �।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 2 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया । 7 1. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 5 द्वारा (18-6-1951 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (पच्चीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) “अनुच्छे द 39 के खंड (ख) या खंड (ग) म� �व�न�दर् ष्ट �सद्धांत�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, �मनवार् �मल्स �ल0 और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य ए.आई.आर. 1980 एस0सी0 1789 म� अ�व�धमान्य घो�षत कर �दया गया । 5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) “अनुच्छे द 14, अनुच्छे द 19 या अनुच्छे द 31” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. उच्चतम न्यायालय ने, केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य ए.आई.आर. 1973 एस0सी0 1461 म� इटै �नक म� �लखे गए शब्द� को �नष्प्रभावी कर �दया है । 7. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 5 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 19 (भाग 3—मल ू अ�धकार) सां�वधा�नक उपचार� का अ�धकार 32. इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� को प्रव�तर्त कराने के �लए उपचार–(1) इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� को प्रव�तर्त कराने के �लए सम�ु चत कायर्वा�हय� द्वारा उच्चतम न्यायालय म� समावेदन करने का अ�धकार प्रत्याभत ू �कया जाता है । (2) इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी को प्रव�तर्त कराने के �लए उच्चतम न्यायालय को ऐसे �नदे श या आदे श या �रट, िजनके अंतगर्त बंद� प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार-पच्ृ छा और उप्रेषण �रट ह� , जो भी सम�ु चत हो, �नकालने क� शिक्त होगी । (3) उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रद� शिक्तय� पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, संसद्, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य �कन्ह�ं या सभी शिक्तय� का �कसी अन्य न्यायालय को अपनी अ�धका�रता क� स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के �लए �व�ध द्वारा सशक्त कर सकेगी । (4) इस सं�वधान द्वारा अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, इस अनुच्छे द द्वारा प्रत्याभत ू अ�धकार �नलं�बत नह�ं �कया जाएगा । 32क. [राज्य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता पर अनच् ु छे द 32 के अधीन कायर्वा�हय� म� �वचार न �कया जाना ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 3 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया । 1 [33. इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� का, बल� आ�द को लागू होने म� , उपांतरण करने क� संसद् क� शिक्त–संसद्, �व�ध द्वारा, अवधारण कर सकेगी �क इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से कोई,– 2 (क) सशस्त्र बल� के सदस्य� को, या (ख) लोक व्यवस्था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बल� के सदस्य� को, या (ग) आसूचना या प्र�त आसूचना के प्रयोजन� के �लए राज्य द्वारा स्था�पत �कसी ब्यरू ो या अन्य संगठन म� �नयोिजत व्यिक्तय� को, या (घ) खंड (क) से खंड (ग) म� �न�दर्ष्ट �कसी बल, ब्यरू ो या संगठन के प्रयोजन� के �लए स्था�पत दरू संचार प्रणाल� म� या उसके संबंध म� �नयोिजत व्यिक्तय� को, लागू होने म� , �कस �वस्तार तक �नबर्िन्धत या �नराकृत �कया जाए िजससे उनके कतर्व्य� का उ�चत पालन और उनम� अनश ु ासन बना रहना सु�निश्चत रहे ।] 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 6 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (पचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (11-9-1984 से) अनुच्छे द 33 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 20 (भाग 3—मल ू अ�धकार) 34. जब �कसी �ेत्र म� सेना �व�ध प्रव� ृ है तब इस भाग द्वारा प्रद� अ�धकार� पर �नबर्न्धन–इस भाग के पव र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् �व�ध द्वारा संघ ू ग या �कसी राज्य क� सेवा म� �कसी व्यिक्त क� या �कसी अन्य व्यिक्त क� �कसी ऐसे कायर् के संबंध म� ��तप�ू तर् कर सकेगी जो उसने भारत के राज्य�ेत्र के भीतर �कसी ऐसे �ेत्र म�, जहां सेना �व�ध प्रव� ु ःस्थापन के संबंध म� �कया है या ऐसे ृ थी, व्यवस्था के बनाए रखने या पन �ेत्र म� सेना �व�ध के अधीन पा�रत दं डादे श, �दए गए दं ड, आ�दष्ट समपहरण या �कए गए अन्य कायर् को �व�धमान्य कर सकेगी । 35. इस भाग के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए �वधान–इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी,– (क) संसद् को शिक्त होगी और �कसी राज्य के �वधान-मंडल को शिक्त नह�ं होगी �क वह– (i) िजन �वषय� के �लए अनच् ु छे द 16 के खंड (3), अनच् ु छे द 32 के खंड (3), अनच् ु छे द 33 और अनुच्छे द 34 के अधीन संसद् �व�ध द्वारा उपबंध कर सकेगी उनम� से �कसी के �लए, और (ii) ऐसे काय� के �लए, जो इस भाग के अधीन अपराध घो�षत �कए गए ह� , दं ड �व�हत करने के �लए, �व�ध बनाए और संसद् इस सं�वधान के प्रारं भ के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र ऐसे काय� के �लए, जो उपखंड (ii) म� �न�दर्ष्ट ह� , दं ड �व�हत करने के �लए �व�ध बनाएगी ; (ख) खंड (क) के उपखंड (i) म� �न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी से संबं�धत या उस खंड के उपखंड (ii) म� �न�दर् ष्ट �कसी कायर् के �लए दं ड का उपबंध करने वाल� कोई प्रव� ृ �व�ध, जो भारत के राज्य�ेत्र म� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले प्रव� ृ थी, उसके �नबंधन� के और अनच् ु छे द 372 के अधीन उसम� �कए गए �कन्ह�ं अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए तब तक प्रव� ृ रहे गी जब तक उसका संसद् द्वारा प�रवतर्न या �नरसन या संशोधन नह�ं कर �दया जाता है । है । स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द म� , “प्रव� ु छे द 372 म� ृ �व�ध” पद का वह� अथर् है जो अनच् भाग 4 राज्य क� नी�त के �नदे शक त�व 36. प�रभाषा–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, “राज्य” का वह� अथर् है जो भाग 3 म� है । 37. इस भाग म� अंत�वर्ष्ट त�व� का लागू होना–इस भाग म� अंत�वर्ष्ट उपबंध �कसी न्यायालय द्वारा प्रवतर्नीय नह�ं ह�गे �कं तु �फर भी इनम� अ�धक�थत त�व दे श के शासन म� मल ू भूत ह� और �व�ध बनाने म� इन त�व� को लागू करना राज्य का कतर्व्य होगा । 38. राज्य लोक कल्याण क� अ�भवद् ृ �ध के �लए सामािजक व्यवस्था बनाएगा– 1[(1)] राज्य ऐसी सामािजक व्यवस्था क�, िजसम� सामािजक, आ�थर्क और राजनै�तक न्याय राष्ट्र�य जीवन क� सभी संस्थाओं को अनप्र ु ा�णत करे , भरसक प्रभावी रूप म� स्थापना और संर�ण करके लोक कल्याण क� अ�भवद् ृ �ध का प्रयास करे गा । [(2) राज्य, �व�शष्टतया, आय क� असमानताओं को कम करने का प्रयास करे गा और न केवल व्यिष्टय� के बीच बिल्क �व�भन्न �ेत्र� म� रहने वाले और �व�भन्न व्यवसाय� म� लगे हुए लोग� के समह ू � के बीच भी प्र�तष्ठा, स�ु वधाओं और अवसर� क� असमानता समाप्त करने का प्रयास करे गा ।] 2 39. राज्य द्वारा अनस ु रणीय कुछ नी�त त�व–राज्य अपनी नी�त का, �व�शष्टतया, इस प्रकार संचालन करे गा �क सु�निश्चत रूप से– (क) परु ु ष और स्त्री सभी नाग�रक� को समान रूप से जी�वका के पयार्प्त साधन प्राप्त करने का अ�धकार हो ; (ख) समुदाय के भौ�तक संसाधन� का स्वा�मत्व और �नयंत्रण इस प्रकार बंटा हो िजससे साम�ू हक �हत का सव��म रूप से साधन हो ; (ग) आ�थर्क व्यवस्था इस प्रकार चले िजससे धन और उत्पादनसाधन� का सवर्साधारण के �लए अ�हतकार� संक्र�द्रण न हो ; हो ; (घ) परु ु ष� और िस्त्रय� दोन� का समान कायर् के �लए समान वेतन (ङ) परु ु ष और स्त्री कमर्कार� के स्वास्थ्य और शिक्त का तथा बालक� क� सुकुमार अवस्था का दरु ु पयोग न हो और आ�थर्क आवश्यकता से �ववश होकर नाग�रक� को ऐसे रोजगार� म� न जाना पड़े जो उनक� आयु या शिक्त के अनक ु ू ल न ह� ; 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द 38 को खंड (1) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 9 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 21 भारत का सं�वधान 22 (भाग 4—राज्य क� नी�त के �नदे शक तत्व) [(च) बालक� को स्वतंत्र और ग�रमामय वातावरण म� स्वस्थ �वकास के अवसर और सु�वधाएं द� जाएं और बालक� और अल्पवय व्यिक्तय� क� शोषण से तथा नै�तक और आ�थर्क प�रत्याग से र�ा क� जाए ।] 2 [39क. समान न्याय और �नःशुल्क �व�धक सहायता–राज्य यह सु�निश्चत करे गा �क �व�धक तंत्र इस प्रकार काम करे �क समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह, �व�शष्टतया, यह सु�निश्चत करने के �लए �क आ�थर्क या �कसी अन्य �नय�ग्यता के कारण कोई नाग�रक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वं�चत न रह जाए, उपयक् ु त �वधान या स्क�म द्वारा या �कसी अन्य र��त से नःशुल्क �व�धक सहायता क� व्यवस्था करे गा ।] 40. ग्राम पंचायत� का संगठन–राज्य ग्राम पंचायत� का संगठन करने के �लए कदम उठाएगा और उनको ऐसी शिक्तयां और प्रा�धकार प्रदान करे गा जो उन्ह� स्वाय� शासन क� इकाइय� के रूप म� कायर् करने योग्य बनाने के �लए आवश्यक ह� । 41. कुछ दशाओं म� काम, �श�ा और लोक सहायता पाने का अ�धकार– राज्य अपनी आ�थर्क सामथ्यर् और �वकास क� सीमाओं के भीतर, काम पाने के, �श�ा पाने के और बेकार�, बढ़ ु ापा, बीमार� और नःशक्तता तथा अन्य अनहर् अभाव क� दशाओं म� लोक सहायता पाने के अ�धकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करे गा । 42. काम क� न्यायसंगत और मानवो�चत दशाओं का तथा प्रस�ू त सहायता का उपबंध–राज्य काम क� न्यायसंगत और मानवो�चत दशाओं को स�ु निश्चत करने के �लए और प्रसू�त सहायता के �लए उपबंध करे गा । 43. कमर्कार� के �लए �नवार्ह मजदरू � आ�द–राज्य, उपयक् ु त �वधान या आ�थर्क संगठन द्वारा या �कसी अन्य र��त से कृ�ष के, उद्योग के या अन्य प्रकार के सभी कमर्कार� को काम, �नवार्ह मजदरू �, �शष्ट जीवनस्तर और अवकाश का संपण ू र् उपभोग सु�निश्चत करने वाल� काम क� दशाएं तथा सामािजक और सांस्कृ�तक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करे गा और �व�शष्टतया ग्राम� म� कुट�र उद्योग� को वैयिक्तक या सहकार� आधार पर बढ़ाने का प्रयास करे गा । 3 [43क. उद्योग� के प्रबंध म� कमर्कार� का भाग लेना–राज्य �कसी उद्योग म� लगे हुए उपक्रम�, स्थापन� या अन्य संगठन� के प्रबंध म� कमर्कार� का भाग लेना सु�निश्चत करने के �लए उपयक् ु त �वधान द्वारा या �कसी अन्य र��त से कदम उठाएगा ।] 1 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 7 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (च) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 8 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 9 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 23 (भाग 4—राज्य क� नी�त के �नदे शक तत्व) [43ख. सहकार� सोसाइ�टय� का संवधर्न–राज्य, सहकार� सोसाइ�टय� क� स्वैिच्छक �वरचना, उनके स्वशासी कायर्करण, लोकतां�त्रक �नयंत्रण और व�ृ �क प्रबंधन का संवधर्न करने का प्रयास करे गा ।] 1 44. नाग�रक� के �लए एक समान �स�वल सं�हता–राज्य, भारत के समस्त राज्य�ेत्र म� नाग�रक� के �लए एक समान �स�वल सं�हता प्राप्त कराने का प्रयास करे गा । 2 [45. छह वषर् से कम आयु के बालक� के �लए प्रारं �भक बाल्यावस्था दे खरे ख और �श�ा का उपबंध–राज्य सभी बालक� के �लए छह वषर् क� आयु परू � करने तक, प्रारं �भक बाल्यावस्था दे ख-रे ख और �श�ा दे ने के �लए उपबंध करने का प्रयास करे गा ।] 46. अनस र् वग� के ु ू�चत जा�तय�, अनस ु ू�चत जनजा�तय� और अन्य दब ु ल �श�ा और अथर् संबध ं ी �हत� क� अ�भवद् र् वग� के, ु ल ृ �ध–राज्य, जनता के दब �व�शष्टतया, अनस ु �ू चत जा�तय� और अनस ु �ू चत जनजा�तय� के �श�ा और अथर् संबध ं ी �हत� क� �वशेष सावधानी से अ�भवद् ृ �ध करे गा और सामािजक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से उनक� संर�ा करे गा । 47. पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कतर्व्य–राज्य, अपने लोग� के पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने और लोक स्वास्थ्य के सुधार को अपने प्राथ�मक कतर्व्य� म� मानेगा और राज्य, �व�शष्टतया, मादक पेय� और स्वास्थ्य के �लए हा�नकर ओष�धय� के, औषधीय प्रयोजन� से �भन्न, उपभोग का प्र�तषेध करने का प्रयास करे गा । 48. कृ�ष और पशप ु ालन का संगठन–राज्य, कृ�ष और पशप ु ालन को आध�ु नक और वै�ा�नक प्रणा�लय� से संग�ठत करने का प्रयास करे गा और �व�शष्टतया गाय� और बछड़� तथा अन्य दध ु ारू और वाहक पशुओं क� नस्ल� के प�रर�ण और सध ु ार के �लए और उनके वध का प्र�तषेध करने के �लए कदम उठाएगा । 3 [48क. पयार्वरण का संर�ण तथा संवधर्न और वन तथा वन्य जीव� क� र�ा–राज्य, दे श के पयार्वरण के संर�ण तथा संवधर्न का और वन तथा वन्य जीव� क� र�ा करने का प्रयास करे गा ।] 1. सं�वधान (सतानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 3 द्वारा (15-2-2012 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (�छयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2002 क� धारा 3 द्वारा (1-4-2010 से) अनुच्छे द 45 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 10 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 24 (भाग 4—राज्य क� नी�त के �नदे शक तत्व) 49. राष्ट्र�य महत्व के संस्मारक�, स्थान� और वस्तुओं का संर�ण– 1[संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन] राष्ट्र�य महत्व वाले 1[घो�षत �कए गए] कलात्मक या ऐ�तहा�सक अ�भरु�च वाले प्रत्येक संस्मारक या स्थान या वस्तु का, यथािस्थ�त, लंठ ु न, �वरूपण, �वनाश, अपसारण, व्ययन या �नयार्त से संर�ण करना राज्य क� बाध्यता होगी । 50. कायर्पा�लका से न्यायपा�लका का पथ ृ क्करण–राज्य क� लोक सेवाओं म� , न्यायपा�लका को कायर्पा�लका से पथ ृ क्त करने के �लए राज्य कदम उठाएगा । 51. अंतरराष्ट्र�य शां�त और सुर�ा क� अ�भवद् ृ �ध–राज्य,– का, (क) अंतरराष्ट्र�य शां�त और सरु �ा क� अ�भवद् ृ �ध का, (ख) राष्ट्र� के बीच न्यायसंगत और सम्मानपण ं � को बनाए रखने ू र् संबध (ग) संग�ठत लोग� के एक दस ू रे से व्यवहार� म� अंतरराष्ट्र�य �व�ध और सं�ध-बाध्यताओं के प्र�त आदर बढ़ाने का, और (घ) अंतरराष्ट्र�य �ववाद� के माध्यस्थम ् द्वारा �नपटारे प्रोत्साहन दे ने का, के �लए प्रयास करे गा । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) “संसद् द्वारा �व�ध द्वारा घो�षत” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । [भाग 4क 1 मूल कतर्व्य 51क. मल ू कतर्व्य–भारत के प्रत्येक नाग�रक का यह कतर्व्य होगा �क वह– (क) सं�वधान का पालन करे और उसके आदश�, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ; (ख) स्वतंत्रता के �लए हमारे राष्ट्र�य आंदोलन को प्रे�रत करने वाले उच्च आदश� को हृदय म� संजोए रखे और उनका पालन करे ; रखे ; (ग) भारत क� प्रभुता, एकता और अखंडता क� र�ा करे और उसे अ�ुण्ण (घ) दे श क� र�ा करे और आह्वान �कए जाने पर राष्ट्र क� सेवा करे ; (ङ) भारत के सभी लोग� म� समरसता और समान भ्रातत्ृ व क� भावना का �नमार्ण करे जो धमर्, भाषा और प्रदे श या वगर् पर आधा�रत सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो िस्त्रय� के सम्मान के �वरुद्ध है ; (च) हमार� सामा�सक संस्कृ�त क� गौरवशाल� परं परा का महत्व समझे और उसका प�रर�ण करे ; (छ) प्राकृ�तक पयार्वरण क�, िजसके अंतगर्त वन, झील, नद� और वन्य जीव ह�, र�ा करे और उसका संवधर्न करे तथा प्रा�ण मात्र के प्र�त दयाभाव रखे ; (ज) वै�ा�नक दृिष्टकोण, मानववाद और �ानाजर्न तथा सुधार क� भावना का �वकास करे ; (झ) सावर्ज�नक संप�� को सुर��त रखे और �हंसा से दरू रहे ; (ञ) व्यिक्तगत और सामू�हक ग�त�व�धय� के सभी �ेत्र� म� उत्कषर् क� ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे िजससे राष्ट्र �नरं तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलिब्ध क� नई ऊंचाइय� को छू ले ;] [(ट) य�द माता-�पता या संर�क है, छह वषर् से चौदह वषर् तक क� आयु 2 वाले अपने, यथािस्थ�त, बालक या प्र�तपाल्य के �लए �श�ा के अवसर प्रदान करे ।] 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (�छयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2002 क� धारा 4 द्वारा (1-4-2010 से) अंतःस्था�पत । 25 भाग 5 संघ अध्याय 1–कायर्पा�लका राष्ट्रप�त और उपराष्ट्रप�त 52. भारत का राष्ट्रप�त–भारत का एक राष्ट्रप�त होगा । 53. संघ क� कायर्पा�लका शिक्त–(1) संघ क� कायर्पा�लका शिक्त राष्ट्रप�त म� �न�हत होगी और वह इसका प्रयोग इस सं�वधान के अनस ु ार स्वयं या अपने अधीनस्थ अ�धका�रय� के द्वारा करे गा । (2) पव र् ामी उपबंध क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, संघ के र�ा ू ग बल� का सव�च्च समादे श राष्ट्रप�त म� �न�हत होगा और उसका प्रयोग �व�ध द्वारा �व�नय�मत होगा । (3) इस अनच् ु छे द क� कोई बात– (क) �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा �कसी राज्य क� सरकार या अन्य प्रा�धकार� को प्रदान �कए गए कृत्य राष्ट्रप�त को अंत�रत करने वाल� नह�ं समझी जाएगी ; या (ख) राष्ट्रप�त से �भन्न अन्य प्रा�धका�रय� को �व�ध द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद् को �नवा�रत नह�ं करे गी । 54. राष्ट्रप�त का �नवार्चन–राष्ट्रप�त का �नवार्चन ऐसे �नवार्चकगण के सदस्य कर� गे िजसम� – (क) संसद् के दोन� सदन� के �नवार्�चत सदस्य ; और ह�गे । (ख) राज्य� क� �वधान सभाओं के �नवार्�चत सदस्य, 1 [स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द और अनच् ु छे द 55 म� , “राज्य” के अंतगर्त �दल्ल� राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र और *पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र ह� ।] 55. राष्ट्रप�त के �नवार्चन क� र��त–(1) जहां तक साध्य हो, राष्ट्रप�त के �नवार्चन म� �भन्न-�भन्न राज्य� के प्र�त�न�धत्व के मापमान म� एकरूपता होगी । (2) राज्य� म� आपस म� ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्य� और संघ म� समतुल्यता प्राप्त कराने के �लए संसद् और प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा का प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य ऐसे �नवार्चन म� िजतने मत दे ने का हकदार है उनक� संख्या �नम्न�ल�खत र��त से अवधा�रत क� जाएगी, अथार्त ् :– (क) �कसी राज्य क� �वधान सभा के प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य के उतने मत ह�गे िजतने �क एक हजार के ग�ु णत उस भागफल म� ह� जो राज्य क� जनसंख्या को उस �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� क� कुल संख्या से भाग दे ने पर आए ; 1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (1-6-1995 से) अंतःस्था�पत । * पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 3 द्वारा (1-10-2006 से) अब यह पुडुचेर� है । 26 भारत का सं�वधान 27 (भाग 5—संघ) (ख) य�द एक हजार के उक्त गु�णत� को लेने के बाद शेष पांच सौ से कम नह�ं है तो उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट प्रत्येक सदस्य के मत� क� संख्या म� एक और जोड़ �दया जाएगा ; (ग) संसद् के प्रत्येक सदन के प्रत्येक �नवार्�चत सदस्य के मत� क� संख्या वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्य� क� �वधान सभाओं के सदस्य� के �लए �नयत कुल मत� क� संख्या को, संसद् के दोन� सदन� के �नवार्�चत सदस्य� क� कुल संख्या से भाग दे ने पर आए, िजसम� आधे से अ�धक �भन्न को एक �गना जाएगा और अन्य �भन्न� क� उपे�ा क� जाएगी । (3) राष्ट्रप�त का �नवार्चन आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे �नवार्चन म� मतदान गप्ु त होगा । [स्पष्ट�करण–इस अनच् र् त� जनगणना ु छे द म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव ू व म� अ�भ�निश्चत क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसग ं त आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� : 1 परं तु इस स्पष्ट�करण म� प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श जनगणना के सुसंगत आंकड़े 1971 क� जनगणना के प्र�त अं�तम पव र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सुसग ं त आंकड़े ू व का, जब तक सन ् 2[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह �नद� श है ।] 56. राष्ट्रप�त क� पदाव�ध–(1) राष्ट्रप�त अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध तक पद धारण करे गा : परं तु– (क) राष्ट्रप�त, उपराष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; (ख) सं�वधान का अ�तक्रमण करने पर राष्ट्रप�त को अनच् ु छे द 61 म� उपबं�धत र��त से चलाए गए महा�भयोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा ; (ग) राष्ट्रप�त, अपने पद क� अव�ध समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहे गा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पद ग्रहण नह�ं कर लेता है । (2) खंड (1) के परं तुक के खंड (क) के अधीन उपराष्ट्रप�त को संबो�धत त्यागपत्र क� सूचना उसके द्वारा लोक सभा के अध्य� को तुरन्त द� जाएगी । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्ट�करण के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 2 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 28 (भाग 5—संघ) 57. पन ु �नर्वार्चन के �लए पात्रता–कोई व्यिक्त, जो राष्ट्रप�त के रूप म� पद धारण करता है या कर चक ु ा है, इस सं�वधान के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए उस पद के �लए पन ु �नर्वार्चन का पात्र होगा । 58. राष्ट्रप�त �नवार्�चत होने के �लए अहर्ताएं–(1) कोई व्यिक्त राष्ट्रप�त �नवार्�चत होने का पात्र तभी होगा जब वह– (क) भारत का नाग�रक है, (ख) प�तीस वषर् क� आयु परू � कर चक ु ा है, और (ग) लोक सभा का सदस्य �नवार्�चत होने के �लए अ�हर्त है । (2) कोई व्यिक्त, जो भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकार� म� से �कसी के �नयंत्रण म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, राष्ट्रप�त �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा । स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, कोई व्यिक्त केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त या �कसी राज्य का राज्यपाल है 1*** अथवा संघ का या �कसी राज्य का मंत्री है । 59. राष्ट्रप�त के पद के �लए शत�–(1) राष्ट्रप�त संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य नह�ं होगा और य�द संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रप�त �नवार्�चत हो जाता है तो यह समझा जाएगा �क उसने उस सदन म� अपना स्थान राष्ट्रप�त के रूप म� अपने पद ग्रहण क� तार�ख से �रक्त कर �दया है । (2) राष्ट्रप�त अन्य कोई लाभ का पद धारण नह�ं करे गा । (3) राष्ट्रप�त, �बना �कराया �दए, अपने शासक�य �नवास� के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का भी, जो संसद्, �व�ध द्वारा अवधा�रत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का, जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, हकदार होगा । (4) राष्ट्रप�त क� उपलिब्धयां और भ�े उसक� पदाव�ध के दौरान कम नह�ं �कए जाएंगे । 60. राष्ट्रप�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक राष्ट्रप�त और प्रत्येक व्यिक्त, जो राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् या उसक� अनप ु िस्थ�त म� उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के सम� �नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा, अथार्त ् :– 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 29 (भाग 5—संघ) ईश्वर क� शपथ लेता हूं “म�, अमुक --------------------------------------�क म� श्रद्धापव र् भारत के ू क सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं राष्ट्रप�त के पद का कायर्पालन (अथवा राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन) करूंगा तथा अपनी परू � योग्यता से सं�वधान और �व�ध का प�रर�ण, संर�ण और प्र�तर�ण करूंगा और म� भारत क� जनता क� सेवा और कल्याण म� �नरत रहूंगा ।”। 61. राष्ट्रप�त पर महा�भयोग चलाने क� प्र�क्रया–(1) जब सं�वधान के अ�तक्रमण के �लए राष्ट्रप�त पर महा�भयोग चलाना हो, तब संसद् का कोई सदन आरोप लगाएगा । (2) ऐसा कोई आरोप तब तक नह�ं लगाया जाएगा जब तक �क– (क) ऐसा आरोप लगाने क� प्रस्थापना �कसी ऐसे संकल्प म� अंत�वर्ष्ट नह�ं है, जो कम से कम चौदह �दन क� ऐसी �ल�खत सूचना के �दए जाने के पश्चात ् प्रस्ता�वत �कया गया है िजस पर उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक-चौथाई सदस्य� ने हस्ता�र करके उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने का अपना आशय प्रकट �कया है ; और (ख) उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पा�रत नह�ं �कया गया है । (3) जब आरोप संसद् के �कसी सदन द्वारा इस प्रकार लगाया गया है तब दस ू रा सदन उस आरोप का अन्वेषण करे गा या कराएगा और ऐसे अन्वेषण म� उपिस्थत होने का तथा अपना प्र�त�न�धत्व कराने का राष्ट्रप�त को अ�धकार होगा । (4) य�द अन्वेषण के �वरुद्ध लगाया गया आरोप सदन क� कुल सदस्य संख्या है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके पद से हटाना होगा । प�रणामस्वरूप यह घो�षत करने वाला संकल्प �क राष्ट्रप�त के �सद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा पा�रत कर �दया जाता उसके इस प्रकार पा�रत �कए जाने क� तार�ख से राष्ट्रप�त को 62. राष्ट्रप�त के पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय और आकिस्मक �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त क� पदाव�ध–(1) राष्ट्रप�त क� पदाव�ध क� समािप्त से हुई �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन, पदाव�ध क� समािप्त से पहले ह� पण ू र् कर �लया जाएगा । (2) राष्ट्रप�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन, �रिक्त होने क� तार�ख के पश्चात ् यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा म� छह मास बीतने से पहले �कया जाएगा और �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त, अनच् ु छे द 56 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� परू � अव�ध तक पद धारण करने का हकदार होगा । 63. भारत का उपराष्ट्रप�त–भारत का एक उपराष्ट्रप�त होगा । 64. उपराष्ट्रप�त का राज्य सभा का पदे न सभाप�त होना–उपराष्ट्रप�त, राज्य सभा का पदे न सभाप�त होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नह�ं करे गा : भारत का सं�वधान 30 (भाग 5—संघ) परं तु िजस �कसी अव�ध के दौरान उपराष्ट्रप�त, अनच् ु छे द 65 के अधीन राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् करता है या राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन करता है, उस अव�ध के दौरान वह राज्य सभा के सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन नह�ं करे गा और वह अनच् ु छे द 97 के अधीन राज्य सभा के सभाप�त को संदेय वेतन या भ�े का हकदार नह�ं होगा । 65. राष्ट्रप�त के पद म� आकिस्मक �रिक्त के दौरान या उसक� अनप ु िस्थ�त म� उपराष्ट्रप�त का राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् करना या उसके कृत्य� का �नवर्हन–(1) राष्ट्रप�त क� मत्ृ य,ु पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद म� हुई �रिक्त क� दशा म� उपराष्ट्रप�त उस तार�ख तक राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् करे गा िजस तार�ख को ऐसी �रिक्त को भरने के �लए इस अध्याय के उपबंध� के अनस ु ार �नवार्�चत नया राष्ट्रप�त अपना पद ग्रहण करता है । (2) जब राष्ट्रप�त अनप ु िस्थ�त, बीमार� या अन्य �कसी कारण से अपने कृत्य� का �नवर्हन करने म� असमथर् है तब उपराष्ट्रप�त उस तार�ख तक उसके कृत्य� का �नवर्हन करे गा िजस तार�ख को राष्ट्रप�त अपने कतर्व्य� को �फर से संभालता है । (3) उपराष्ट्रप�त को उस अव�ध के दौरान और उस अव�ध के संबध ं म� , जब वह राष्ट्रप�त के रूप म� इस प्रकार कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है, राष्ट्रप�त क� सभी शिक्तयां और उन्मुिक्तयां ह�गी तथा वह ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे , और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का, जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, हकदार होगा । 66. उपराष्ट्रप�त का �नवार्चन–(1) उपराष्ट्रप�त का �नवार्चन 1[संसद् के दोन� सदन� के सदस्य� से �मलकर बनने वाले �नवार्चकगण के सदस्य�] द्वारा आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे �नवार्चन म� मतदान गप्ु त होगा । (2) उपराष्ट्रप�त संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य नह�ं होगा और य�द संसद् के �कसी सदन का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रप�त �नवार्�चत हो जाता है तो यह समझा जाएगा �क उसने उस सदन म� अपना स्थान उपराष्ट्रप�त के रूप म� अपने पद ग्रहण क� तार�ख से �रक्त कर �दया है । (3) कोई व्यिक्त उपराष्ट्रप�त �नवार्�चत होने का पात्र तभी होगा जब वह– (क) भारत का नाग�रक है, (ख) प�तीस वषर् क� आयु परू � कर चक ु ा है, और 1. सं�वधान (ग्यारहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा (19-12-1961 से) “संयुक्त अ�धवेशन म� समवेत संसद् के दोन� सदन� के सदस्य�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 31 (भाग 5—संघ) (ग) राज्य सभा का सदस्य �नवार्�चत होने के �लए अ�हर्त है । (4) कोई व्यिक्त, जो भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकार� म� से �कसी के �नयंत्रण म� �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उपराष्ट्रप�त �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा । स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, कोई व्यिक्त केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त या �कसी राज्य का राज्यपाल है 1*** अथवा संघ का या �कसी राज्य का मंत्री है । 67. उपराष्ट्रप�त क� पदाव�ध–उपराष्ट्रप�त अपने पद ग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध तक पद धारण करे गा : परं तु– (क) उपराष्ट्रप�त, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; (ख) उपराष्ट्रप�त, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा िजसे राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत ने पा�रत �कया है और िजससे लोक सभा सहमत है; �कं तु इस खंड के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सूचना न दे द� गई हो ; (ग) उपराष्ट्रप�त, अपने पद क� अव�ध समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पद ग्रहण नह�ं कर लेता है । 68. उपराष्ट्रप�त के पद म� �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन करने का समय और आकिस्मक �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत व्यिक्त क� पदाव�ध–(1) उपराष्ट्रप�त क� पदाव�ध क� समािप्त से हुई �रिक्त को भरने के �लए �नवार्चन, पदाव�ध क� समािप्त से पहले ह� पण ू र् कर �लया जाएगा । (2) उपराष्ट्रप�त क� मत्ृ य,ु उसके पद म� �रिक्त को भरने के जाएगा और �रिक्त को भरने के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण करने का हकदार होगा । पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई �लए �नवार्चन, �रिक्त होने के पश्चात ् यथाशीघ्र �कया �लए �नवार्�चत व्यिक्त, अनच् ु छे द 67 के उपबंध� के क� तार�ख से पांच वषर् क� परू � अव�ध तक पद धारण 69. उपराष्ट्रप�त द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक उपराष्ट्रप�त अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रप�त अथवा उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त �कसी व्यिक्त के सम� 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख या उप-राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 32 (भाग 5—संघ) �नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा, अथार्त ् :– ईश्वर क� शपथ लेता हूं “म�, अमुक -----------------------------------------�क म� �व�ध द्वारा स्था�पत सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग ूं ा तथा िजस पद को म� ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव र् �नवर्हन करूंगा ।”। ू क 70. अन्य आकिस्मकताओं म� राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन–संसद्, ऐसी �कसी आकिस्मकता म� जो इस अध्याय म� उपबं�धत नह�ं है, राष्ट्रप�त के कृत्य� के �नवर्हन के �लए ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठ�क समझे । 1 [71. राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के �नवार्चन से संब�ं धत या संसक्त �वषय–(1) राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के �नवार्चन से उत्पन्न या संसक्त सभी शंकाओं और �ववाद� क� जांच और �व�नश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा �कया जाएगा और उसका �व�नश्चय अं�तम होगा । (2) य�द उच्चतम न्यायालय द्वारा �कसी व्यिक्त के राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के रूप म� �नवार्चन को शन् ू य घो�षत कर �दया जाता है तो उसके द्वारा, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के पद क� शिक्तय� के प्रयोग और कतर्व्य� के पालन म� उच्चतम न्यायालय के �व�नश्चय क� तार�ख को या उससे पहले �कए गए कायर् उस घोषणा के कारण अ�व�धमान्य नह�ं ह�गे । (3) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के �नवार्चन से संब�ं धत या संसक्त �कसी �वषय का �व�नयमन संसद् �व�ध द्वारा कर सकेगी । (4) राष्ट्रप�त या उपराष्ट्रप�त के रूप म� �कसी व्यिक्त के �नवार्चन को उसे �नवार्�चत करने वाले �नवार्चकगण के सदस्य� म� �कसी भी कारण से �वद्यमान �कसी �रिक्त के आधार पर प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा ।] 72. �मा आ�द क� और कुछ मामल� म� दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक ू रण क� राष्ट्रप�त क� शिक्त–(1) राष्ट्रप�त को, �कसी अपराध के �लए �सद्धदोष ठहराए गए �कसी व्यिक्त के दंड को �मा, उसका प्र�वलंबन, �वराम या प�रहार करने क� अथवा दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक ू रण क�– है, (क) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं ड या दं डादे श सेना न्यायालय ने �दया 1. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (10-8-1975 से) प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 10 द्वारा (20-6-1979 से) प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 33 (भाग 5—संघ) (ख) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं ड या दं डादे श ऐसे �वषय संबध ं ी �कसी �व�ध के �वरुद्ध अपराध के �लए �दया गया है िजस �वषय तक संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार है, शिक्त होगी । (ग) उन सभी मामल� म� , िजनम� दं डादे श, मत्ृ यु दं डादे श है, (2) खंड (1) के उपखंड (क) क� कोई बात संघ के सशस्त्र बल� के �कसी आ�फसर क� सेना न्यायालय द्वारा पा�रत दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक ू रण क� �व�ध द्वारा प्रद� शिक्त पर प्रभाव नह�ं डालेगी । (3) खंड (1) के उपखंड (ग) क� कोई बात तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा प्रयोक्तव्य मत्ृ यु दं डादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक ू रण क� शिक्त पर प्रभाव नह�ं डालेगी । 73. संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार– (क) िजन �वषय� के संबध ं म� संसद् को �व�ध बनाने क� शिक्त है उन तक, और (ख) �कसी सं�ध या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयोक्तव्य अ�धकार�, प्रा�धकार और अ�धका�रता के प्रयोग तक, होगा : परं तु इस सं�वधान म� या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध म� अ�भव्यक्त रूप से यथा उपबं�धत के �सवाय, उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार �कसी 2 *** राज्य म� ऐसे �वषय� तक नह�ं होगा िजनके संबध ं म� उस राज्य के �वधान-मंडल को भी �व�ध बनाने क� शिक्त है । (2) जब तक संसद् अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस अनच् ु छे द म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई राज्य और राज्य का कोई अ�धकार� या प्रा�धकार� उन �वषय� म� , म� संसद् को उस राज्य के �लए �व�ध बनाने क� शिक्त है, ऐसी िजनके संबध ं कायर्पा�लका शिक्त का या कृत्य� का प्रयोग कर सकेगा िजनका प्रयोग वह राज्य या उसका अ�धकार� या प्रा�धकार� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले कर सकता था । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क और भाग ख म� उिल्ल�खत” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 34 (भाग 5—संघ) मं�त्र-प�रषद् 74. राष्ट्रप�त को सहायता और सलाह दे ने के �लए मं�त्र-प�रषद्– 1[(1) राष्ट्रप�त को सहायता और सलाह दे ने के �लए एक मं�त्र-प�रषद् होगी िजसका प्रधान, प्रधान मंत्री होगा और राष्ट्रप�त अपने कृत्य� का प्रयोग करने म� ऐसी सलाह के अनस ु ार कायर् करे गा :] [परं तु राष्ट्रप�त मं�त्र-प�रषद् से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुन�वर्चार 2 करने क� अपे�ा कर सकेगा और राष्ट्रप�त ऐसे पन ु �वर्चार के पश्चात ् द� गई सलाह के अनस ु ार कायर् करे गा ।] (2) इस प्रश्न क� �कसी न्यायालय म� जांच नह�ं क� जाएगी �क क्या मं�त्रय� ने राष्ट्रप�त को कोई सलाह द�, और य�द द� तो क्या द� । 75. मं�त्रय� के बारे म� अन्य उपबंध–(1) प्रधान मंत्री क� �नयिु क्त राष्ट्रप�त करे गा और अन्य मं�त्रय� क� �नयिु क्त राष्ट्रप�त, प्रधान मंत्री क� सलाह पर करे गा । [(1क) मं�त्र-प�रषद् म� प्रधान मंत्री स�हत मं�त्रय� क� कुल संख्या लोक सभा के 3 सदस्य� क� कुल संख्या के पन्द्रह प्र�तशत से अ�धक नह�ं होगी । (1ख) �कसी राजनी�तक दल का संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनस ु च ू ी के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त है, अपनी �नरहर्ता क� तार�ख से प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख तक िजसको ऐसे सदस्य के रूप म� उसक� पदाव�ध समाप्त होगी या जहां वह ऐसी अव�ध क� समािप्त के पव ू र् ससंद् के �कसी सदन के �लए �नवार्चन लड़ता है, उस तार�ख तक िजसको वह �नवार्�चत घो�षत �कया जाता है, इनम� से जो भी पव र् र हो, क� अव�ध के दौरान, खंड (1) के अधीन मंत्री ू त के रूप म� �नयक् ु त �कए जाने के �लए भी �नर�हर्त होगा ।] (2) मंत्री, राष्ट्रप�त के प्रसादपय�त अपने पद धारण कर� गे । (3) मं�त्र-प�रषद् लोक सभा के प्र�त सामू�हक रूप से उ�रदायी होगी । (4) �कसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रप�त तीसर� अनुसूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप� के अनस ु ार उसको पद क� और गोपनीयता क� शपथ �दलाएगा । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 13 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 11 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत । 35 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) (5) कोई मंत्री, जो �नरं तर छह मास क� �कसी अव�ध तक संसद् के �कसी सदन का सदस्य नह�ं है, उस अव�ध क� समािप्त पर मंत्री नह�ं रहेगा । (6) मं�त्रय� के वेतन और भ�े ऐसे ह�गे जो संसद्, �व�ध द्वारा, समय-समय पर अवधा�रत करे और जब तक संसद् इस प्रकार अवधा�रत नह�ं करती है तब तक ऐसे ह�गे जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� । भारत का महान्यायवाद� 76. भारत का महान्यायवाद�–(1) राष्ट्रप�त, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश �नयक् ु त होने के �लए अ�हर्त �कसी व्यिक्त को भारत का महान्यायवाद� �नयक् ु त करे गा । (2) महान्यायवाद� का यह कतर्व्य होगा �क वह भारत सरकार को �व�ध संबध ं ी ऐसे �वषय� पर सलाह दे और �व�धक स्वरूप के ऐसे अन्य कतर्व्य� का पालन करे जो राष्ट्रप�त उसको समय-समय पर �नद� �शत करे या स�पे और उन कृत्य� का �नवर्हन करे जो उसको इस सं�वधान अथवा तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध द्वारा या उसके अधीन प्रदान �कए गए ह� । (3) महान्यायवाद� को अपने कतर्व्य� के पालन म� भारत के राज्य�ेत्र म� सभी न्यायालय� म� सुनवाई का अ�धकार होगा । (4) महान्यायवाद�, राष्ट्रप�त के प्रसादपय�त पा�रश्र�मक प्राप्त करे गा जो राष्ट्रप�त अवधा�रत करे । पद धारण करे गा और ऐसा सरकार� कायर् का संचालन 77. भारत सरकार के कायर् का संचालन–(1) भारत सरकार क� समस्त कायर्पा�लका कारर्वाई राष्ट्रप�त के नाम से क� हुई कह� जाएगी । (2) राष्ट्रप�त के नाम से �कए गए और �नष्पा�दत आदे श� और अन्य �लखत� को ऐसी र��त से अ�धप्रमा�णत �कया जाएगा जो राष्ट्रप�त द्वारा बनाए जाने वाले �नयम� 1 म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए और इस प्रकार अ�धप्रमा�णत आदे श या �लखत क� �व�धमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी �क वह राष्ट्रप�त द्वारा �कया गया या �नष्पा�दत आदे श या �लखत नह�ं है । 13 (3) राष्ट्रप�त, भारत सरकार का कायर् अ�धक स�ु वधापव र् �कए जाने के �लए ू क और मं�त्रय� म� उक्त कायर् के आबंटन के �लए �नयम बनाएगा । 14 1. (4)* 2 * * * दे �खए समय-समय पर यथा संशो�धत अ�धसूचना सं. का.आ. 2297, तार�ख 3 नवंबर, 1958, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3(ii), पष्ृ ठ 1315 । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 14 द्वारा (3-1-1977 से) खंड (4) अंतःस्था�पत �कया गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 12 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप �कया गया । 36 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) 78. राष्ट्रप�त को जानकार� दे ने आ�द के संबध ं म� प्रधान मंत्री के कतर्व्य–प्रधान मंत्री का यह कतर्व्य होगा �क वह– (क) संघ के कायर्कलाप के प्रशासन संबध ं ी और �वधान �वषयक प्रस्थापनाओं संबध ं ी मं�त्र-प�रषद् के सभी �व�नश्चय राष्ट्रप�त को संस�ू चत करे ; (ख) संघ के कायर्कलाप के प्रशासन संबध ं ी और प्रस्थापनाओं संबध ं ी जो जानकार� राष्ट्रप�त मांगे, वह दे ; और �वधान �वषयक (ग) �कसी �वषय को, िजस पर �कसी मंत्री ने �व�नश्चय कर �दया है �कन्तु मं�त्र-प�रषद् ने �वचार नह�ं �कया है, राष्ट्रप�त द्वारा अपे�ा �कए जाने पर प�रषद् के सम� �वचार के �लए रखे । अध्याय 2–संसद् साधारण 79. संसद् का गठन–संघ के �लए एक संसद् होगी जो राष्ट्रप�त और दो सदन� से �मलकर बनेगी िजनके नाम राज्य सभा और लोक सभा ह�गे । 80. राज्य सभा क� संरचना–(1) 1[ 2*** राज्य सभा]– (क) राष्ट्रप�त द्वारा खंड (3) के उपबंध� के अनस ु ार नाम�नद� �शत �कए जाने वाले बारह सदस्य�, और (ख) राज्य� के प्र�त�न�धय�, [और संघ राज्य�ेत्र� के] दो सौ अड़तीस से अन�धक 3 से �मलकर बनेगी । (2) राज्य सभा म� राज्य� के और 3[और संघ राज्य�ेत्र� के] प्र�त�न�धय� द्वारा भरे जाने वाले स्थान� का आबंटन चौथी अनस ु ूची म� इस �न�म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� के अनस ु ार होगा । (3) राष्ट्रप�त द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नाम�नद� �शत �कए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यिक्त ह�गे िजन्ह� �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� �वशेष �ान या व्यावहा�रक अनभ ु व है, अथार्त ् :– सा�हत्य, �व�ान, कला और समाज सेवा । 1. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1975 से) “राज्य सभा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “दसवीं अनुसूची के पैरा 4 के उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया । 37 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) (4) राज्य सभा म� प्रत्येक 1*** राज्य के प्र�त�न�धय� का �नवार्चन उस राज्य क� �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� द्वारा आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा �कया जाएगा । (5) राज्य सभा म� 2[संघ राज्य�ेत्र�] के प्र�त�न�ध ऐसी र��त से चन ु े जाएंगे जो संसद् �व�ध द्वारा �व�हत करे । 3 [81. लोक सभा क� संरचना–(1) 4[अनच् ु छे द 331 के उपबंध� के अधीन रहते हुए ***] लोक सभा– 5 (क) राज्य� म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन ु े गए [पांच सौ तीस] से अन�धक 6[सदस्य�], और 6 (ख) संघ राज्य�ेत्र� का प्र�त�न�धत्व करने के �लए ऐसी र��त से, जो 7 7 संसद् �व�ध द्वारा उपबं�धत करे , चन ु े हुए [बीस] से अन�धक [सदस्य�], से �मलकर बनेगी । (2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजन� के �लए,– (क) प्रत्येक राज्य को लोक सभा म� स्थान� का आबंटन ऐसी र��त से �कया जाएगा �क स्थान� क� संख्या से उस राज्य क� जनसंख्या का अनप ु ात सभी राज्य� के �लए यथासाध्य एक ह� हो, और (ख) प्रत्येक राज्य को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� ऐसी र��त से �वभािजत �कया जाएगा �क प्रत्येक �नवार्चन-�ेत्र क� जनसंख्या का उसको आबं�टत स्थान� क� संख्या से अनप ु ात समस्त राज्य म� यथासाध्य एक ह� हो : [परन्तु इस खंड के उपखंड (क) के उपबंध �कसी राज्य को लोक सभा म� स्थान� के आबंटन के प्रयोजन के �लए तब तक लागू नह�ं ह�गे जब तक उस राज्य क� जनसंख्या साठ लाख से अ�धक नह�ं हो जाती है ।] 8 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसच ू ी के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसच ू ी के भाग ग म� �व�न�दर् ष्ट राज्य�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 81 और अनुच्छे द 82 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (प�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 4 द्वारा (1-3-1975 से) “अनुच्छे द 331 के उपबंध� के अधीन रहते हुए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (26-4-1975 से) “और दसवीं अनुसूची के पैरा 4” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) "पांच सौ पच्चीस सदस्य�" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 7. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (17-10-1973 से) “पच्चीस सदस्य�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 8. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (17-10-1973 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 38 (भाग 5—संघ) (3) इस अनच् र् त� जनगणना म� ु छे द म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव ू व अ�भ�निश्चत क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस ग ं त आं क ड़े प्रका�शत हो गए ह� : ु [परन्तु इस खंड म� अं�तम पव र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सुसग ं त आंकड़े ू व प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 2[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� जनगणना के सस ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, 3[यह अथर् लगाया जाएगा �क ु ग वह,– 1 (i) खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजन� के �लए 1971 क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ; और (ii) खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजन� के �लए 4[2001] क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ।]] 82. प्रत्येक जनगणना के पश्चात ् पन ु ः समायोजन–प्रत्येक जनगणना क� समािप्त पर राज्य� को लोक सभा म� स्थान� के आबंटन और प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन�ेत्र� म� �वभाजन का ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी र��त से पन ु ः समायोजन �कया जाएगा जो संसद् �व�ध द्वारा अवधा�रत करे : परन्तु ऐसे पन ु ः समायोजन से लोक सभा म� प्र�त�न�धत्व पर तब तक कोई प्रभाव नह�ं पड़ेगा जब तक उस समय �वद्यमान लोक सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है : 5 [परन्तु यह और �क ऐसा पन ु ः समायोजन उस तार�ख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे और ऐसे पन ु ः समायोजन के प्रभावी होने तक लोक सभा के �लए कोई �नवार्चन उन प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पन ु ः समायोजन के पहले �वद्यमान ह� : परन्तु यह और भी �क जब तक सन ् 6[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� जनगणना के सस ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह� तब तक 7[इस अनच् ु छे द के ु ग अधीन,– 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 15 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया । 2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 3 द्वारा (21-2-2002 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (22-6-2003 से) "1991" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 16 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 6. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा (21-2-2002 से) "2000" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 7. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 4 द्वारा (21-2-2002 से) कुछ शब्द� के स्थान पर (प्र�तस्था�पत । 39 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) (i) राज्य� को लोक सभा म� 1971 क� जनगणना के आधार पर पन ु ः समायोिजत स्थान� के आबंटन का ; और (ii) प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभाजन का, जो 1[2001] क� जनगणना के आधार पर पन ु ः समायोिजत �कए जाएं, पन ु ः समायोजन आवश्यक नह�ं होगा ।]] 83. संसद् के सदन� क� अव�ध–(1) राज्य सभा का �वघटन नह�ं होगा, �कन्तु उसके सदस्य� म� से यथा संभव �नकटतम एक-�तहाई सदस्य, संसद् द्वारा �व�ध द्वारा इस �न�म� �कए गए उपबंध� के अनस ु ार, प्रत्येक द्�वतीय वषर् क� समािप्त पर यथाशक्य शीघ्र �नव� ृ हो जाएंगे । (2) लोक सभा, य�द पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, अपने प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से 2[पांच वषर्] तक बनी रहेगी, इससे अ�धक नह�ं और 2 [पांच वषर्] क� उक्त अव�ध क� समािप्त का प�रणाम लोक सभा का �वघटन होगा : परन्तु उक्त अव�ध को, जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब, संसद्, �व�ध द्वारा, ऐसी अव�ध के �लए बढ़ा सकेगी, जो एक बार म� एक वषर् से अ�धक नह�ं होगी और उद्घोषणा के प्रवतर्न म� न रह जाने के पश्चात ् उसका �वस्तार �कसी भी दशा म� छह मास क� अव�ध से अ�धक नह�ं होगा । 84. संसद् क� सदस्यता के �लए अहर्ता–कोई व्यिक्त संसद् के �कसी स्थान को भरने के �लए चन ु े जाने के �लए अ�हर्त तभी होगा जब– 3 [(क) वह भारत का नाग�रक है और �नवार्चन आयोग द्वारा इस �न�म� प्रा�धकृत �कसी व्यिक्त के सम� तीसर� अनस ु च ू ी म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार शपथ लेता है या प्र�त�ान करता है और उस पर अपने हस्ता�र करता है ;] (ख) वह राज्य सभा म� स्थान के �लए कम से कम तीस वषर् क� आयु का और लोक सभा म� स्थान के �लए कम से कम पच्चीस वषर् क� आयु का है ; और (ग) उसके पास ऐसी अन्य अहर्ताएं ह� जो संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस �न�म� �व�हत क� जाएं । 1. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (22-6-2003 से) "1991" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) के स्थान पर और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 13 द्वारा पर प्र�तस्था�पत । प्र�तस्था�पत (20-6-1979 से) "छह वषर्" के स्थान 3. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 40 (भाग 5—संघ) [85. संसद् के सत्र, सत्रावसान और �वघटन—(1) राष्ट्रप�त समय-समय पर, संसद् के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठ�क समझे, अ�धवेशन के �लए आहूत करे गा, �कन्तु उसके एक सत्र क� अं�तम बैठक और आगामी सत्र क� प्रथम बैठक के �लए �नयत तार�ख के बीच छह मास का अंतर नह�ं होगा ।] 1 (2) राष्ट्रप�त, समय-समय पर– (क) सदन� का या �कसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ; (ख) लोक सभा का �वघटन कर सकेगा । 86. सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रप�त का अ�धकार– (1) राष्ट्रप�त, संसद् के �कसी एक सदन म� या एक साथ समवेत दोन� सदन� म� अ�भभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के �लए सदस्य� क� उपिस्थ�त क� अपे�ा कर सकेगा । ं म� संदेश या (2) राष्ट्रप�त, संसद् म� उस समय लं�बत �कसी �वधेयक के संबध कोई अन्य संदेश, संसद् के �कसी सदन को भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा �वचार करने के �लए अपे��त �वषय पर सु�वधानस ु ार शीघ्रता से �वचार करे गा । 87. राष्ट्रप�त का �वशेष अ�भभाषण–(1) राष्ट्रप�त, 2[लोक सभा के �लए प्रत्येक साधारण �नवार्चन के पश्चात ् प्रथम सत्र के आरं भ म� और प्रत्येक वषर् के प्रथम सत्र के आरं भ म�] एक साथ समवेत संसद् के दोन� सदन� म� अ�भभाषण करे गा और संसद् को उसके आह्वान के कारण बताएगा । (2) प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� द्वारा ऐसे अ�भभाषण म� �न�दर्ष्ट �वषय� क� चचार् के �लए समय �नयत करने के �लए 3*** उपबंध �कया जाएगा । 88. सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महान्यायवाद� के अ�धकार–प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवाद� को यह अ�धकार होगा �क वह �कसी भी सदन म� , सदन� क� �कसी संयक् ु त बैठक म� और संसद् क� �कसी स�म�त म� , िजसम� उसका नाम सदस्य के रूप म� �दया गया है, बोले और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग ले, �कन्तु इस अनच् ु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नह�ं होगा । 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 6 द्वारा (18-6-1951 से) “अनुच्छे द 85” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा (18-6-1951 से) “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 7 द्वारा (18-6-1951 से) “और सदन के अन्य कायर् पर इस चचार् को अग्रता दे ने के �लए” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 41 (भाग 5—संघ) संसद् के अ�धकार� 89. राज्य सभा का सभाप�त और उपसभाप�त–(1) भारत का उपराष्ट्रप�त राज्य सभा का पदे न सभाप�त होगा । (2) राज्य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने �कसी सदस्य को अपना उपसभाप�त चन े ी ु ग और जब-जब उपसभाप�त का पद �रक्त होता है तब-तब राज्य सभा �कसी अन्य सदस्य को अपना उपसभाप�त चन ु ेगी । 90. उपसभाप�त का पद �रक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना–राज्य सभा के उपसभाप�त के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य– दे गा ; (क) य�द राज्य सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �रक्त कर (ख) �कसी भी समय सभाप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और (ग) राज्य सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा : परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सूचना न दे द� गई हो । 91. सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन करने या सभाप�त के रूप म� कायर् करने क� उपसभाप�त या अन्य व्यिक्त क� शिक्त–(1) जब सभाप�त का पद �रक्त है या ऐसी अव�ध म� जब उपराष्ट्रप�त, राष्ट्रप�त के रूप म� कायर् कर रहा है या उसके कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है, तब उपसभाप�त या य�द उपसभाप�त का पद भी �रक्त है तो, राज्य सभा का ऐसा सदस्य िजसको राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा । (2) राज्य सभा क� �कसी बैठक से सभाप�त क� अनप ु िस्थ�त म� उपसभाप�त, या य�द वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्यिक्त, जो राज्य सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्यिक्त उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य व्यिक्त, जो राज्य सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, सभाप�त के रूप म� कायर् करे गा । 92. जब सभाप�त या उपसभाप�त को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना–(1) राज्य सभा क� �कसी बैठक म� , जब उपराष्ट्रप�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब सभाप�त, या जब उपसभाप�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपसभाप�त, उपिस्थत रहने पर भी, पीठासीन नह�ं होगा और अनच् ु छे द 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे उस बैठक के संबध ं म� लागू होते ह� िजससे, यथािस्थ�त, सभाप�त या उपसभाप�त अनप ु िस्थत है । भारत का सं�वधान 42 (भाग 5—संघ) (2) जब उपराष्ट्रप�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा म� �वचाराधीन है तब सभाप�त को राज्य सभा म� बोलने और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का अ�धकार होगा, �कन्तु वह अनच् ु छे द 100 म� �कसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर या ऐसी कायर्वा�हय� के दौरान �कसी अन्य �वषय पर, मत दे ने का �बल्कुल हकदार नह�ं होगा । 93. लोक सभा का अध्य� और उपाध्य�–लोक सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्य� को अपना अध्य� और उपाध्य� चन ु ेगी और जब-जब अध्य� या उपाध्य� का पद �रक्त होता है तब-तब लोक सभा �कसी अन्य सदस्य को, यथािस्थ�त, अध्य� या उपाध्य� चन ु ेगी । 94. अध्य� और उपाध्य� का पद �रक्त होना, पद त्याग और पद से हटाया जाना–लोक सभा के अध्य� या उपाध्य� के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य– दे गा ; (क) य�द लोक सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �रक्त कर (ख) �कसी भी समय, य�द वह सदस्य अध्य� है तो उपाध्य� को संबो�धत और य�द वह सदस्य उपाध्य� है तो अध्य� को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और (ग) लोक सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा : परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सूचना न दे द� गई हो : परन्तु यह और �क जब कभी लोक सभा का �वघटन �कया जाता है तो �वघटन के पश्चात ् होने वाले लोक सभा के प्रथम अ�धवेशन के ठ�क पहले तक अध्य� अपने पद को �रक्त नह�ं करे गा । 95. अध्य� के पद के कतर्व्य� का पालन करने या अध्य� के रूप म� कायर् करने क� उपाध्य� या अन्य व्यिक्त क� शिक्त–(1) जब अध्य� का पद �रक्त है तब उपाध्य�, या य�द उपाध्य� का पद भी �रक्त है तो लोक सभा का ऐसा सदस्य, िजसको राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा । (2) लोक सभा क� �कसी बैठक से अध्य� क� अनप ु िस्थ�त म� उपाध्य�, या य�द वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्यिक्त, जो लोक सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्यिक्त उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य व्यिक्त, जो लोक सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, अध्य� के रूप म� कायर् करे गा । भारत का सं�वधान 43 (भाग 5—संघ) 96. जब अध्य� या उपाध्य� को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना–(1) लोक सभा क� �कसी बैठक म� , जब अध्य� को उसके पद से हटाने का संकल्प �वचाराधीन है तब अध्य�, या जब उपाध्य� को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपाध्य�, उपिस्थत रहने पर भी, पीठासीन नह�ं होगा और ं म� वैसे ह� लागू ह�गे अनच् ु छे द 95 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबध जैसे वे उस बैठक के संबध ं म� लागू होते ह� िजससे, यथािस्थ�त, अध्य� या उपाध्य� अनप ु िस्थत है । (2) जब अध्य� को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प लोक सभा म� �वचाराधीन है तब उसको लोक सभा म� बोलने और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का अ�धकार होगा और वह अनच् ु छे द 100 म� �कसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कायर्वा�हय� के दौरान �कसी अन्य �वषय पर प्रथमतः ह� मत दे ने का हकदार होगा, �कन्तु मत बराबर होने क� दशा म� मत दे ने का हकदार नह�ं होगा । 97. सभाप�त और उपसभाप�त तथा अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े– राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त को तथा लोक सभा के अध्य� और उपाध्य� को, ऐसे वेतन और भ�� का जो संसद्, �व�ध द्वारा, �नयत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भ�� का, जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, संदाय �कया जाएगा । 98. संसद् का स�चवालय–(1) संसद् के प्रत्येक सदन का पथ ृ क् स�चवीय कमर्चा�रवद ंृ होगा : परन्तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह संसद् के दोन� सदन� के �लए सिम्म�लत पद� के सज ृ न को �नवा�रत करती है । (2) संसद्, �व�ध द्वारा, संसद् के प्रत्येक सदन के स�चवीय कमर्चा�रवद ंृ म� भत� का और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन कर सकेगी । (3) जब तक संसद् खंड (2) के अधीन उपबंध नह�ं करती है तब तक राष्ट्रप�त, यथािस्थ�त, लोक सभा के अध्य� या राज्य सभा के सभाप�त से परामशर् करने के पश्चात ् लोक सभा के या राज्य सभा के स�चवीय कमर्चा�रवद ंृ म� भत� के और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए �नयम उक्त खंड के अधीन बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए प्रभावी ह�गे । भारत का सं�वधान 44 (भाग 5—संघ) कायर् संचालन 99. सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान–संसद् के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रप�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त व्यिक्त के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा । 100. सदन� म� मतदान, �रिक्तय� के होते हुए भी सदन� क� कायर् करने क� शिक्त और गणप�ू तर्–(1) इस सं�वधान म� यथा अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक सदन क� बैठक म� या सदन� क� संयुक्त बैठक म� सभी प्रश्न� का अवधारण, अध्य� को अथवा सभाप�त या अध्य� के रूप म� कायर् करने वाले व्यिक्त को छोड़कर, उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� के बहुमत से �कया जाएगा । सभाप�त या अध्य�, अथवा उस रूप म� कायर् करने वाला व्यिक्त प्रथमतः मत नह�ं दे गा, �कन्तु मत बराबर होने क� दशा म� उसका �नणार्यक मत होगा और वह उसका प्रयोग करे गा । (2) संसद् के �कसी सदन क� सदस्यता म� कोई �रिक्त होने पर भी, उस सदन को कायर् करने क� शिक्त होगी और य�द बाद म� यह पता चलता है �क कोई व्यिक्त, जो ऐसा करने का हकदार नह�ं था, कायर्वा�हय� म� उपिस्थत रहा है या उसने मत �दया है या अन्यथा भाग �लया है तो भी संसद् क� कोई कायर्वाह� �व�धमान्य होगी । [(3) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद् के प्रत्येक सदन का अ�धवेशन ग�ठत करने के �लए गणप�ू तर् सदन के सदस्य� क� कुल संख्या का दसवां भाग होगी । 1 (4) य�द सदन के अ�धवेशन म� �कसी समय गणप�ू तर् नह�ं है तो सभाप�त या अध्य� अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्यिक्त का यह कतर्व्य होगा �क वह सदन को स्थ�गत कर दे या अ�धवेशन को तब तक के �लए �नलं�बत कर दे जब तक गणप�ू तर् नह�ं हो जाती है ।] सदस्य� क� �नरहर्ताएं 101. स्थान� का �रक्त होना–(1) कोई व्यिक्त संसद् के दोन� सदन� का सदस्य नह�ं होगा और जो व्यिक्त दोन� सदन� का सदस्य चन ु �लया जाता है उसके एक या दस रे सदन क े स्थान को �रक्त करने क े �लए सं स द् �व�ध द्वारा उपबंध करे गी । ू 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 18 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) खंड (3) और खंड (4) का लोप �कया गया । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया । भारत का सं�वधान 45 (भाग 5—संघ) (2) कोई व्यिक्त संसद् और �कसी 1*** राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन, दोन� का सदस्य नह�ं होगा और य�द कोई व्यिक्त संसद् और 2[�कसी राज्य] के �वधानमंडल के �कसी सदन, दोन� का सदस्य चन ु �लया जाता है तो ऐसी अव�ध क� समािप्त के पश्चात ् जो राष्ट्रप�त द्वारा बनाए गए �नयम� ∗ म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, संसद् म� ऐसे व्यिक्त का स्थान �रक्त हो जाएगा य�द उसने राज्य के �वधान-मंडल म� अपने स्थान को पहले ह� नह�ं त्याग �दया है । (3) य�द संसद् के �कसी सदन का सदस्य– (क) 3[अनच् ु छे द 102 के से ग्रस्त हो जाता है, या खंड (1) या खंड (2)] म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता [(ख) यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर दे ता है और उसका त्यागपत्र, यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� द्वारा स्वीकार कर �लया जाता है,] 4 तो ऐसा होने पर उसका स्थान �रक्त हो जाएगा : [परन्तु उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट त्यागपत्र क� दशा म� , य�द प्राप्त जानकार� से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात ्, जो वह ठ�क समझे, यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� का यह समाधान हो जाता है �क ऐसा त्यागपत्र स्वैिच्छक या असल� नह�ं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकर नह�ं करे गा ।] 5 (4) य�द संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य साठ �दन क� अव�ध तक सदन क� अन� ु ा के �बना उसके सभी अ�धवेशन� से अनप ु िस्थत रहता है तो सदन उसके स्थान को �रक्त घो�षत कर सकेगा : परन्तु साठ �दन क� उक्त अव�ध क� संगणना करने म� �कसी ऐसी अव�ध को �हसाब म� नह�ं �लया जाएगा िजसके दौरान सदन सत्राव�सत या �नरं तर चार से अ�धक �दन� के �लए स्थ�गत रहता है । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐस कोई राज्य” ∗ के स्थान पर प्र�तस्था�पत । दे �खए, �व�ध मंत्रालय क� अ�धसूचना सं0 एफ. 46/50-सी, तार�ख 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, प0ृ 678 म� प्रका�शत समसाम�यक सदस्यता प्र�तषेध �नयम, 1950 । 3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 2 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छे द 102 के खंड (1)” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 46 (भाग 5—संघ) 102. सदस्यता के �लए �नरहर्ताएं–(1) कोई व्यिक्त संसद् के �कसी सदन का सदस्य चन ु े जाने के �लए और सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा– [(क) य�द वह भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन, 1 ऐसे पद को छोड़कर, िजसको धारण करने वाले का �नर�हर्त न होना संसद् ने �व�ध द्वारा घो�षत �कया है, कोई लाभ का पद धारण करता है ;] (ख) य�द वह �वकृत�च� है और स�म न्यायालय क� ऐसी घोषणा �वद्यमान है; (ग) य�द वह अनन् ु मो�चत �दवा�लया है ; (घ) य�द वह भारत का नाग�रक नह�ं है या उसने �कसी �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त कर ल� है या वह �कसी �वदे शी राज्य के प्र�त �नष्ठा या अनष ु िक्त को अ�भस्वीकार �कए हुए है ; (ङ) य�द वह संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है । [स्पष्ट�करण–इस खंड के प्रयोजन� के �लए,] कोई व्यिक्त केवल इस कारण 2 भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है । [ (2) कोई व्यिक्त संसद् के �कसी सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा 3 य�द वह दसवीं अनस ु ूची के अधीन इस प्रकार �नर�हर्त हो जाता है ।] [103. सदस्य� क� �नरहर्ताओं से संब�ं धत प्रश्न� पर �व�नश्चय–(1) य�द यह प्रश्न 4 उठता है �क संसद् के �कसी सदन का कोई सदस्य अनच् ु छे द 102 के खंड (1) म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्रश्न राष्ट्रप�त को �व�नश्चय के �लए �नद� �शत �कया जाएगा और उसका �व�नश्चय अं�तम होगा । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 19 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) इस प्रकार पढ़े जाने के �लए प्र�तस्था�पत �कया गया है : "(क) य�द वह भारत सरकार के या �कसी राज्य सरकार के अधीन कोई ऐसा लाभ का पद धारण करता है, िजसे संसद् ने �व�ध द्वारा उसके धारक को �नर�हर्त घो�षत �कया है" । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया । 2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के �लए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 3 द्वारा (1-3-1985 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 20 द्वारा (3-1-1977 से) अनु ्च्छे द 103 के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 14 द्वारा (20-6-1979 से) अनु ्च्छे द 103 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 47 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) (2) ऐसे �कसी प्रश्न पर �व�नश्चय करने के पहले राष्ट्रप�त �नवार्चन आयोग क� राय लेगा और ऐसी राय के अनस ु ार कायर् करे गा ।] 104. अनच् ु छे द 99 के अधीन शपथ लेने या प्र�त�ान करने से पहले या अ�हर्त न होते हुए या �नर�हर्त �कए जाने पर बैठने और मत दे ने के �लए शािस्त–य�द संसद् के �कसी सदन म� कोई व्यिक्त अनच् ु छे द 99 क� अपे�ाओं का अनप ु ालन करने से पहले, या वह जानते हुए �क म� उसक� सदस्यता के �लए अ�हर्त नह�ं हूं या �नर�हर्त कर �दया गया हूं या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� द्वारा ऐसा करने से प्र�त�षद्ध कर �दया गया हूं, सदस्य के रूप म� बैठता है या मत दे ता है तो वह प्रत्येक �दन के �लए, जब वह इस प्रकार बैठता है या मत दे ता है, पांच सौ रुपए क� शािस्त का भागी होगा जो संघ को दे य ऋण के रूप म� वसल ू क� जाएगी । संसद् और उसके सदस्य� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मिु क्तयां 105. संसद् के सदन� क� तथा उनके सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार आ�द–(1) इस सं�वधान के उपबंध� और संसद् क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� और स्थायी आदे श� के अधीन रहते हुए, संसद् म� वाक्त-स्वातं�य होगा । (2) संसद् म� या उसक� �कसी स�म�त म� संसद् के �कसी सदस्य द्वारा कह� गई �कसी बात या �दए गए �कसी मत के संबध ं म� उसके �वरुद्ध �कसी न्यायालय म� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी और �कसी व्यिक्त के �वरुद्ध संसद् के �कसी सदन के प्रा�धकार द्वारा या उसके अधीन �कसी प्र�तवेदन, पत्र, मत� या कायर्वा�हय� के प्रकाशन के संबध ं म� इस प्रकार क� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी । [(3) अन्य बात� म� संसद् के प्रत्येक सदन क� और प्रत्येक 1 सदन के सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मिु क्तयां ऐसी ह�गी जो संसद्, समयसमय पर, �व�ध द्वारा, प�र�निश्चत करे और जब तक वे इस प्रकार प�र�निश्चत नह�ं क� जाती ह� तब तक 2[वह� ह�गी जो सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 15 के प्रव� ृ होने से ठ�क पहले उस सदन क� और उसके सदस्य� और स�म�तय� क� थीं ।] ] 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 21 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत क� जानी है) प्र�तस्था�पत । इस संशोधन का, सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 15 द्वारा (20-6-1979 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 48 (भाग 5—संघ) (4) िजन व्यिक्तय� को इस सं�वधान के आधार पर संसद् के �कसी सदन या उसक� �कसी स�म�त म� बोलने का और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का अ�धकार है, उनके संबध ं म� खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू ह�गे िजस प्रकार वे संसद् के सदस्य� के संबध ं म� लागू होते ह� । 106. सदस्य� के वेतन और भ�े–संसद् के प्रत्येक सदन के सदस्य ऐसे वेतन और भ�े, िजन्ह� संसद्, समय-समय पर, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस संबध ं म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे भ�े, ऐसी दर� से और ऐसी शत� पर, जो भारत डो�म�नयन क� सं�वधान सभा के सदस्य� को इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले लागू थीं, प्राप्त करने के हकदार ह�गे । �वधायी प्र�क्रया 107. �वधेयक� के परु ःस्थापन और पा�रत �कए जाने के संबध ं म� उपबंध–(1) धन �वधेयक� और अन्य �व� �वधेयक� के संबध ं म� अनच् ु छे द 109 और अनच् ु छे द 117 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई �वधेयक संसद् के �कसी भी सदन म� आरं भ हो सकेगा । (2) अनच् ु छे द 108 और अनच् ु छे द 109 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई �वधेयक संसद् के सदन� द्वारा तब तक पा�रत �कया गया नह�ं समझा जाएगा जब तक संशोधन के �बना या केवल ऐसे संशोधन� स�हत, िजन पर दोन� सदन सहमत हो गए ह�, उस पर दोन� सदन सहमत नह�ं हो जाते ह� । (3) संसद् म� लं�बत �वधेयक सदन� के सत्रावसान के कारण व्यपगत नह�ं होगा । (4) राज्य सभा म� लं�बत �वधेयक, िजसको लोक सभा ने पा�रत नह�ं �कया है, लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत नह�ं होगा । (5) कोई �वधेयक, जो लोक सभा म� लं�बत है या जो लोक सभा द्वारा पा�रत कर �दया गया है और राज्य सभा म� लं�बत है, अनच् ु छे द 108 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, लोक सभा के �वघटन पर व्यपगत हो जाएगा । 108. कुछ दशाओं म� दोन� सदन� क� संयक् ु त बैठक–(1) य�द �कसी �वधेयक के एक सदन द्वारा पा�रत �कए जाने और दस ू रे सदन को पारे �षत �कए जाने के पश्चात ्,– (क) दस ू रे सदन द्वारा �वधेयक अस्वीकर कर �दया गया है, या (ख) �वधेयक म� �कए जाने वाले संशोधन� के बारे म� दोन� सदन अं�तम रूप से असहमत हो गए ह�, या (ग) दस ू रे सदन को �वधेयक प्राप्त होने क� तार�ख से उसके द्वारा �वधेयक पा�रत �कए �बना छह मास से अ�धक बीत गए ह�, भारत का सं�वधान 49 (भाग 5—संघ) तो उस दशा के �सवाय, िजसम� लोक सभा का �वघटन होने के कारण �वधेयक व्यपगत हो गया है, राष्ट्रप�त �वधेयक पर �वचार-�वमशर् करने और मत दे ने के प्रयोजन के �लए सदन� को संयक् ु त बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क� सूचना, य�द वे बैठक म� ह� तो संदेश द्वारा या य�द वे बैठक म� नह�ं ह� तो लोक अ�धसूचना द्वारा दे गा : परन्तु इस खंड क� कोई बात धन �वधेयक को लागू नह�ं होगी । (2) छह मास क� ऐसी अव�ध क� गणना करने म� , जो खंड (1) म� �न�दर्ष्ट है, �कसी ऐसी अव�ध को �हसाब म� नह�ं �लया जाएगा िजसम� उक्त खंड के उपखंड (ग) म� �न�दर्ष्ट सदन सत्राव�सत या �नरं तर चार से अ�धक �दन� के �लए स्थ�गत कर �दया जाता है । (3) य�द राष्ट्रप�त ने खंड (1) के अधीन सदन� को संयक् ु त बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क� सूचना दे द� है तो कोई भी सदन �वधेयक पर आगे कायर्वाह� नह�ं करे गा, �कन्तु राष्ट्रप�त अपनी अ�धसूचना क� तार�ख के पश्चात ् �कसी समय सदन� को अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट प्रयोजन के �लए संयक् ु त बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत कर सकेगा और, य�द वह ऐसा करता है तो, सदन तद्नस ु ार अ�धवे�शत ह�गे । (4) य�द सदन� क� संयक् ु त बैठक म� �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत, य�द कोई ह�, िजन पर संयक् ु त बैठक म� सहम�त हो जाती है, दोन� सदन� के उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� क� कुल संख्या के बहुमत द्वारा पा�रत हो जाता है तो इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए वह दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा : परन्तु संयक् ु त बैठक म� – (क) य�द �वधेयक एक सदन से पा�रत �कए जाने पर दस ू रे सदन द्वारा संशोधन� स�हत पा�रत नह�ं कर �दया गया है और उस सदन को, िजसम� उसका आरं भ हुआ था, लौटा नह�ं �दया गया है तो ऐसे संशोधन� से �भन्न (य�द कोई ह�), जो �वधेयक के पा�रत होने म� दे र� के कारण आवश्यक हो गए ह�, �वधेयक म� कोई और संशोधन प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा ; (ख) य�द �वधेयक इस प्रकार पा�रत कर �दया गया है और लौटा �दया गया है तो �वधेयक म� केवल पव ू �क्त संशोधन, और ऐसे अन्य संशोधन, जो उन �वषय� से सुसग ं त ह� िजन पर सदन� म� सहम�त नह�ं हुई है, प्रस्था�पत �कए जाएंगे, और पीठासीन व्यिक्त का इस बारे म� �व�नश्चय अं�तम होगा �क कौन से संशोधन इस खंड के अधीन ग्राह्य ह� । (5) सदन� क� संयक् ु त बैठक म� अ�धवे�शत होने के �लए आहूत करने के अपने आशय क� राष्ट्रप�त क� सच ू ना के पश्चात ्, लोक सभा का �वघटन बीच म� हो जाने पर भी, इस अनच् ु छे द के अधीन संयक् ु त बैठक हो सकेगी और उसम� �वधेयक पा�रत हो सकेगा । 109. धन �वधेयक� के संबध ं म� �वशेष प्र�क्रया–(1) धन �वधेयक राज्य सभा म� परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा । 50 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) (2) धन �वधेयक लोक सभा द्वारा पा�रत �कए जाने के पश्चात ् राज्य सभा को उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत �कया जाएगा और राज्य सभा �वधेयक क� प्रािप्त क� तार�ख से चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधेयक को अपनी �सफा�रश� स�हत लोक सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर लोक सभा, राज्य सभा क� सभी या �कन्ह�ं �सफा�रश� को स्वीकर या अस्वीकार कर सकेगी । (3) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी �सफा�रश को स्वीकार कर लेती है तो धन �वधेयक राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए और लोक सभा द्वारा स्वीकार �कए गए संशोधन� स�हत दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा । (4) य�द लोक सभा, राज्य सभा क� �कसी भी �सफा�रश को स्वीकार नह�ं करती है तो धन �वधेयक, राज्य सभा द्वारा �सफा�रश �कए गए �कसी संशोधन के �बना, दोन� सदन� द्वारा उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा पा�रत �कया गया था । (5) य�द लोक सभा द्वारा पा�रत और राज्य सभा को उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत धन �वधेयक उक्त चौदह �दन क� अव�ध के भीतर लोक सभा को नह�ं लौटाया जाता है तो उक्त अव�ध क� समािप्त पर वह दोन� सदन� द्वारा, उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह लोक सभा द्वारा पा�रत �कया गया था । 110. “धन �वधेयक” क� प�रभाषा–(1) इस अध्याय के प्रयोजन� के �लए, कोई �वधेयक धन �वधेयक समझा जाएगा य�द उसम� केवल �नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं �वषय� से संब�ं धत उपबंध ह�, अथार्त ् :– (क) �कसी कर का अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन ; (ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभू�त दे ने का �व�नयमन अथवा भारत सरकार द्वारा अपने ऊपर ल� गई या ल� जाने वाल� �कन्ह�ं �व�ीय बाध्यताओं से संब�ं धत �व�ध का संशोधन ; (ग) भारत क� सं�चत �न�ध या आकिस्मकता �न�ध क� अ�भर�ा, ऐसी �कसी �न�ध म� धन जमा करना या उसम� से धन �नकालना ; (घ) भारत क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग ; (ङ) �कसी व्यय को भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय घो�षत करना या ऐसे �कसी व्यय क� रकम को बढ़ाना ; भारत का सं�वधान 51 (भाग 5—संघ) (च) भारत क� सं�चत �न�ध या भारत के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन क� अ�भर�ा या उसका �नगर्मन अथवा संघ या राज्य के लेखाओं क� संपर��ा ; या (छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) म� �व�न�दर्ष्ट �कसी �वषय का आनष ु �ं गक कोई �वषय । (2) कोई �वधेयक केवल इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा �क वह जम ु िप्तय� के �लए फ�स� ु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के अ�धरोपण का अथवा अन� क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क� मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है । (3) य�द यह प्रश्न उठता है �क कोई �वधेयक धन �वधेयक है या नह�ं तो उस पर लोक सभा के अध्य� का �व�नश्चय अं�तम होगा । (4) जब धन �वधेयक अनच् ु छे द 109 के अधीन राज्य सभा को पारे �षत �कया जाता है और जब वह अनच् ु छे द 111 के अधीन अनम ु �त के �लए राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तुत �कया जाता है तब प्रत्येक धन �वधेयक पर लोक सभा के अध्य� के हस्ता�र स�हत यह प्रमाण पष्ृ ठां�कत �कया जाएगा �क वह धन �वधेयक है । 111. �वधेयक� पर अनम ु �त–जब कोई �वधेयक संसद् के सदन� द्वारा पा�रत कर �दया गया है तब वह राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा और राष्ट्रप�त घो�षत करे गा �क वह �वधेयक पर अनम ु �त दे ता है या अनम ु �त रोक लेता है : परन्तु राष्ट्रप�त अनम ु �त के �लए अपने सम� �वधेयक प्रस्तत ु �कए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र उस �वधेयक को, य�द वह धन �वधेयक नह�ं है तो, सदन� को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा �क वे �वधेयक पर या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर्ष्ट उपबंध� पर पन ु �वर्चार कर� और �व�शष्टतया �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� के परु ःस्थापन क� वांछनीयता पर �वचार कर� िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �वधेयक इस प्रकार लौटा �दया जाता है तब सदन �वधेयक पर तद्नस ु ार पन ु �वर्चार कर� गे और य�द �वधेयक सदन� द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर �दया जाता है और राष्ट्रप�त के सम� अनम ु �त के �लए प्रस्तुत �कया जाता है तो राष्ट्रप�त उस पर अनम ु �त नह�ं रोकेगा । �व�ीय �वषय� के संबध ं म� प्र�क्रया 112. वा�षर्क �व�ीय �ववरण–(1) राष्ट्रप�त प्रत्येक �व�ीय वषर् के संबध ं म� संसद् के दोन� सदन� के सम� भारत सरकार क� उस वषर् के �लए प्राक्क�लत प्रािप्तय� और व्यय का �ववरण रखवाएगा िजसे इस भाग म� “वा�षर्क �व�ीय �ववरण” कहा गया है । (2) वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� �दए हुए व्यय के प्राक्कलन� म�– भारत का सं�वधान 52 (भाग 5—संघ) (क) इस सं�वधान म� भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय के रूप म� व�णर्त व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां, और (ख) भारत क� सं�चत �न�ध म� से �कए जाने के �लए प्रस्था�पत अन्य व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां, पथ ृ क् -पथ ृ क् �दखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद �कया जाएगा । (3) �नम्न�ल�खत व्यय भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय होगा, अथार्त ् :– व्यय; (क) राष्ट्रप�त क� उपलिब्धयां और भ�े तथा उसके पद से संब�ं धत अन्य (ख) राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त के तथा लोक सभा के अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े ; (ग) ऐसे ऋण भार, िजनका दा�यत्व भारत सरकार पर है, िजनके अंतगर्त ब्याज, �न�ेप �न�ध भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संब�ं धत अन्य व्यय ह� ; (घ) (i) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध ं म� संदेय वेतन, भ�े और प� शन ; (ii) फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध ं म� संदेय प� शन ; (iii) उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� को या उनके संबध ं म� द� जाने वाल� प� शन, जो भारत के राज्य�ेत्र के अंतगर्त �कसी �ेत्र के संबध ं म� अ�धका�रता का प्रयोग करता है या जो 1[भारत डो�म�नयन के राज्यपाल वाले प्रांत] के अंतगर्त �कसी �ेत्र के संबध ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले �कसी भी समय अ�धका�रता का प्रयोग करता था ; (ङ) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क को, या उसके संबध ं म� , संदेय वेतन, भ�े और प� शन ; (च) �कसी न्यायालय या माध्यस्थम ् अ�धकरण के �नणर्य, �डक्र� या पंचाट क� तुिष्ट के �लए अपे��त रा�शयां ; (छ) कोई अन्य व्यय जो इस सं�वधान द्वारा या संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा, इस प्रकार भा�रत घो�षत �कया जाता है । 113. संसद् म� प्राक्कलन� के संबध ं म� प्र�क्रया–(1) प्राक्कलन� म� से िजतने प्राक्कलन भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय से संब�ं धत ह� वे संसद् म� मतदान के �लए नह�ं रखे जाएंगे, �कन्तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह संसद् के �कसी सदन म� उन प्राक्कलन� म� से �कसी प्राक्कलन पर चचार् को �नवा�रत करती है । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क म� �व�न�दर् ष्ट राज्य के तत्स्थानी प्रांत” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 53 (भाग 5—संघ) (2) उक्त प्राक्कलन� म� से िजतने प्राक्कलन अन्य व्यय से संब�ं धत ह� वे लोक सभा के सम� अनद ु ान� क� मांग� के रूप म� रखे जाएंगे और लोक सभा को शिक्त होगी �क वह �कसी मांग को अनम ु �त दे या अनम ु �त दे ने से इंकार कर दे अथवा �कसी मांग को, उसम� �व�न�दर्ष्ट रकम को कम करके, अनम ु �त दे । नह�ं । (3) �कसी अनद ु ान क� मांग राष्ट्रप�त क� �सफा�रश पर ह� क� जाएगी, अन्यथा 114. �व�नयोग �वधेयक–(1) लोक सभा द्वारा अनच् ु छे द 113 के अधीन अनद ु ान �कए जाने के पश्चात ्, यथाशक्य शीघ्र, भारत क� सं�चत �न�ध म� से– (क) लोक सभा द्वारा इस प्रकार �कए गए अनद ु ान� क�, और (ख) भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत, �कन्तु संसद् के सम� पहले रखे गए �ववरण म� द�शर्त रकम से �कसी भी दशा म� अन�धक व्यय क�, प�ू तर् के �लए अपे��त सभी धनरा�शय� के �व�नयोग का उपबंध करने के �लए �वधेयक परु ःस्था�पत �कया जाएगा । (2) इस प्रकार �कए गए �कसी अनद ु ान क� रकम म� प�रवतर्न करने या अनद ु ान के ल�य को बदलने अथवा भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय क� रकम म� प�रवतर्न करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे �कसी �वधेयक म� संसद् के �कसी सदन म� प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा और पीठासीन व्यिक्त का इस बारे म� �व�नश्चय अं�तम होगा �क कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नह�ं । (3) अनच् ु छे द 115 और अनच् ु छे द 116 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, भारत क� सं�चत �न�ध म� से इस अनच् ु छे द के उपबंध� के अनस ु ार पा�रत �व�ध द्वारा �कए गए �व�नयोग के अधीन ह� कोई धन �नकाला जाएगा, अन्यथा नह�ं । 115. अनप ु ान–(1) य�द– ु रू क, अ�त�रक्त या अ�धक अनद (क) अनच् ु छे द 114 के उपबंध� के अनस ु ार बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा �कसी �व�शष्ट सेवा पर चालू �व�ीय वषर् के �लए व्यय �कए जाने के �लए प्रा�धकृत कोई रकम उस वषर् के प्रयोजन� के �लए अपयार्प्त पाई जाती है या उस वषर् के वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� अनध् ु यात न क� गई �कसी नई सेवा पर अनप ु रू क या अ�त�रक्त व्यय क� चालू �व�ीय वषर् के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है, या (ख) �कसी �व�ीय वषर् के दौरान �कसी सेवा पर, उस वषर् और उस सेवा के �लए अनद ु ान क� गई रकम से अ�धक कोई धन व्यय हो गया है, तो राष्ट्रप�त, यथािस्थ�त, संसद् के दोन� सदन� के सम� उस व्यय क� प्राक्क�लत रकम को द�शर्त करने वाला दस ू रा �ववरण रखवाएगा या लोक सभा म� ऐसे आ�धक्य के �लए मांग प्रस्तत ु करवाएगा । भारत का सं�वधान 54 (भाग 5—संघ) (2) ऐसे �कसी �ववरण और व्यय या मांग के संबध ं म� तथा भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संब�ं धत अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� भी, अनच् ु छे द 112, अनच् ु छे द 113 और अनच् ु छे द 114 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण और उसम� व�णर्त व्यय या �कसी अनद ं म� और भारत ु ान क� �कसी मांग के संबध क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी ह� । 116. लेखानद र् ामी ु ान, प्रत्ययानद ु ान और अपवादानुदान–(1) इस अध्याय के पव ू ग उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, लोक सभा को– (क) �कसी �व�ीय वषर् के भाग के �लए प्राक्क�लत व्यय के संबध ं म� कोई अनद ु ान, उस अनद ु ान के �लए मतदान करने के �लए अनच् ु छे द 113 म� �व�हत प्र�क्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध ं म� अनच् ु छे द 114 के उपबंध� के अनस ु ार �व�ध के पा�रत होने तक, अ�ग्रम दे ने क� ; (ख) जब �कसी सेवा क� मह�ा या उसके अ�निश्चत रूप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ व�णर्त नह�ं क� जा सकती है जो वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� सामान्यतया �दया जाता है तब भारत के संप�� स्रोत� पर अप्रत्या�शत मांग क� प�ू तर् के �लए अनद ु ान करने क� ; (ग) �कसी �व�ीय वषर् क� चालू सेवा का जो अनद ु ान भाग नह�ं है, ऐसा कोई अपवादानद ु ान करने क�, शिक्त होगी और िजन प्रयोजन� के �लए उक्त अनद ु ान �कए गए ह� उनके �लए भारत क� सं�चत �न�ध म� से धन �नकालना �व�ध द्वारा प्रा�धकृत करने क� संसद् को शिक्त होगी । (2) खंड (1) के अधीन �कए जाने वाले �कसी अनद ु ान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� अनच् ु छे द 113 और अनच् ु छे द 114 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� व�णर्त �कसी व्यय के बारे म� कोई अनद ं म� और भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए ु ान करने के संबध धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी ह� । 117. �व� �वधेयक� के बारे म� �वशेष उपबंध–(1) अनच् ु छे द 110 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) म� �व�न�दर्ष्ट �कसी �वषय के �लए उपबंध करने वाला �वधेयक या संशोधन राष्ट्रप�त क� �सफा�रश से ह� परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं और ऐसा उपबंध करने वाला �वधेयक राज्य सभा म� परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा : परन्तु �कसी कर के घटाने या उत्सादन के �लए उपबंध करने वाले �कसी संशोधन के प्रस्ताव के �लए इस खंड के अधीन �सफा�रश क� अपे�ा नह�ं होगी । भारत का सं�वधान 55 (भाग 5—संघ) (2) कोई �वधेयक या संशोधन उक्त �वषय� म� से �कसी के �लए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क वह जम ु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के अ�धरोपण का अथवा अन� ु िप्तय� के �लए फ�स� क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क� मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है । (3) िजस �वधेयक को अ�ध�नय�मत और प्रव�तर्त �कए जाने पर भारत क� सं�चत �न�ध म� से व्यय करना पड़ेगा वह �वधेयक संसद् के �कसी सदन द्वारा तब तक पा�रत नह�ं �कया जाएगा जब तक ऐसे �वधेयक पर �वचार करने के �लए उस सदन से राष्ट्रप�त ने �सफा�रश नह�ं क� है । साधारणतया प्र�क्रया 118. प्र�क्रया के �नयम–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद् का प्रत्येक सदन अपनी प्र�क्रया ∗ और अपने कायर् संचालन के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगा । (2) जब तक खंड (1) के अधीन �नयम नह�ं बनाए जाते ह� तब तक इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन के �वधान-मंडल के संबध ं म� जो प्र�क्रया के �नयम और स्थायी आदे श प्रव� ु ू लन� के अधीन रहते हुए ृ थे वे ऐसे उपांतरण� और अनक संसद् के संबध ं म� प्रभावी ह�गे िजन्ह� , यथािस्थ�त, राज्य सभा का सभाप�त या लोक सभा का अध्य� उनम� करे । (3) राष्ट्रप�त, राज्य सभा के सभाप�त और लोक सभा के अध्य� से परामशर् करने के पश्चात ्, दोन� सदन� क� संयक् ु त बैठक� से संब�ं धत और उनम� परस्पर संचार से संब�ं धत प्र�क्रया के �नयम बना सकेगा । (4) दोन� सदन� क� संयक् ु त बैठक म� लोक सभा का अध्य� या उसक� अनप ु िस्थ�त म� ऐसा व्यिक्त पीठासीन होगा िजसका खंड (3) के अधीन बनाई गई प्र�क्रया के �नयम� के अनस ु ार अवधारण �कया जाए । 119. संसद् म� �व�ीय कायर् संबध ं ी प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन–संसद्, �व�ीय कायर् को समय के भीतर परू ा करने के प्रयोजन के �लए �कसी �व�ीय �वषय से संब�ं धत या भारत क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग करने के �लए �कसी �वधेयक से संब�ं धत, संसद् के प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया और कायर् संचालन का �व�नयमन �व�ध द्वारा कर सकेगी तथा य�द और जहां तक इस प्रकार बनाई गई �कसी �व�ध का कोई उपबंध अनच् ु छे द 118 के खंड (1) के अधीन संसद् के �कसी सदन द्वारा बनाए गए ं म� प्रभावी �कसी �नयम �नयम से या उस अनच् ु छे द के खंड (2) के अधीन संसद् के संबध या स्थायी आदे श से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अ�भभावी होगा । ∗ सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 22 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) "(िजसके अन्तगर्त सदन क� बैठक का गठन करने के �लए गणपू�तर् सिम्म�लत है)" शब्द और कोष्ठक अंतःस्था�पत । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया । भारत का सं�वधान 56 (भाग 5—संघ) 120. संसद् म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा–(1) भाग 17 म� �कसी बात के होते हुए भी, �कन्तु अनच् ु छे द 348 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद् म� कायर् �हन्द� म� या अंग्रेजी म� �कया जाएगा : परन्त,ु यथािस्थ�त, राज्य सभा का सभाप�त या लोक सभा का अध्य� अथवा उस रूप म� कायर् करने वाला व्यिक्त �कसी सदस्य को, जो �हन्द� म� या अंग्रेजी म� अपनी पयार्प्त अ�भव्यिक्त नह�ं कर सकता है, अपनी मातभ ृ ाषा म� सदन को संबो�धत करने क� अन� ु ा दे सकेगा । (2) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस सं�वधान के प्रारं भ से पंद्रह वषर् क� अव�ध क� समािप्त के पश्चात ् यह अनच् ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो “या अंग्रेजी म� ” शब्द� का उसम� से लोप कर �दया गया हो । 121. संसद् म� चचार् पर के �कसी न्यायाधीश के, अपने संसद् म� कोई चचार् इसम� इसके प्राथर्ना करने वाले समावेदन को अन्यथा नह�ं । �नबर्न्धन–उच्चतम न्यायालय या �कसी उच्च न्यायालय कतर्व्य� के �नवर्हन म� �कए गए आचरण के �वषय म� पश्चात ् उपबं�धत र��त से उस न्यायाधीश को हटाने क� राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तुत करने के प्रस्ताव पर ह� होगी, 122. न्यायालय� द्वारा संसद् क� कायर्वा�हय� क� जांच न �कया जाना–(1) संसद् क� �कसी कायर्वाह� क� �व�धमान्यता को प्र�क्रया क� �कसी अ�भक�थत अ�नय�मतता के आधार पर प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा । (2) संसद् का कोई अ�धकार� या सदस्य, िजसम� इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन संसद् म� प्र�क्रया या कायर् संचालन का �व�नयमन करने क� अथवा व्यवस्था बनाए रखने क� शिक्तयां �न�हत ह�, उन शिक्तय� के अपने द्वारा प्रयोग के �वषय म� �कसी न्यायालय क� अ�धका�रता के अधीन नह�ं होगा । अध्याय 3–राष्ट्रप�त क� �वधायी शिक्तयां 123. संसद् के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त– (1) उस समय को छोड़कर जब संसद् के दोन� सदन सत्र म� ह�, य�द �कसी समय राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण तुरन्त कारर्वाई करना उसके �लए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्या�पत कर सकेगा जो उसे उन प�रिस्थ�तय� म� अपे��त प्रतीत ह� । (2) इस अनच् ु छे द के अधीन प्रख्या�पत अध्यादे श का वह� बल और प्रभाव होगा जो संसद् के अ�ध�नयम का होता है, �कन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श– (क) संसद् के दोन� सदन� के सम� रखा जाएगा और संसद् के पन ु ः समवेत होने से छह सप्ताह क� समािप्त पर या य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले दोन� सदन उसके अननम ू रे ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ते ह� तो, इनम� से दस संकल्प के पा�रत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहे गा ; और 57 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) (ख) राष्ट्रप�त द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा । स्पष्ट�करण–जहां संसद् के सदन, �भन्न-�भन्न तार�ख� को पन ु ः समवेत होने के �लए, आहूत �कए जाते ह� वहां इस खंड के प्रयोजन� के �लए, छह सप्ताह क� अव�ध क� गणना उन तार�ख� म� से पश्चातवत� तार�ख से क� जाएगी । (3) य�द और जहां तक इस अनच् ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता है िजसे अ�ध�नय�मत करने के �लए संसद् इस सं�वधान के अधीन स�म नह�ं है तो और वहां तक वह अध्यादे श शन् ू य होगा । 1 (4)* * * * अध्याय 4–संघ क� न्यायपा�लका 124. उच्चतम न्यायालय क� स्थापना और गठन–(1) भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायमू�तर् और, जब तक संसद् �व�ध द्वारा अ�धक संख्या �व�हत नह�ं करती है तब तक, सात ∗ से अन�धक अन्य न्यायाधीश� से �मलकर बनेगा । (2) 2[अनच् ु छे द 124क म� �न�दर्ष्ट राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग क� �सफा�रश पर], राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र और मद्र ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को �नयक् ु त करे गा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करे गा जब तक वह प�सठ वषर् क� आयु प्राप्त नह�ं कर लेता है : 3 [* * * * *] 4 [परन्त]ु ,– (क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; (ख) �कसी न्यायाधीश को खंड (4) म� उपबं�धत र��त से उसके पद से हटाया जा सकेगा । 1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत �कया गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 16 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया । ∗ उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीश संख्या) संशोधन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 37) क� धारा 2 द्वारा (9-8-2019 से) अब "त�तीस" । 2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) "उच्चतम न्यायालय के और राज्य� के उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीश� से परामशर् करने के पश्चात ्, िजनसे राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए परामशर् करना आवश्यक समझे" शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । 3. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) पहले परन्तुक का लोप �कया गया । संशोधन के पूवर् यह �नम्नानुसार था-- “परन्तु मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न �कसी न्यायाधीश क� �नयुिक्त क� दशा म� भारत के मुख्य न्यायमू�तर् से सदै व परामशर् �कया जाएगा :”। यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । 4. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 2 द्वारा (13-4-2015 से) “परन्तु यह और �क” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । भारत का सं�वधान 58 (भाग 5—संघ) [(2क) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश क� आयु ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी र��त से अवधा�रत क� जाएगी िजसका संसद् �व�ध द्वारा उपबंध करे ।] (3) कोई व्यिक्त, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� �नयिु क्त के �लए तभी अ�हर्त होगा जब वह भारत का नाग�रक है और– (क) �कसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अ�धक न्यायालय� का लगातार कम से कम पांच वषर् तक न्यायाधीश रहा है ; या (ख) �कसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अ�धक न्यायालय� का लगातार कम से कम दस वषर् तक अ�धवक्ता रहा है ; या (ग) राष्ट्रप�त क� राय म� पारं गत �व�धवे�ा है । 1 स्पष्ट�करण 1–इस खंड म� , “उच्च न्यायालय” से वह उच्च न्यायालय अ�भप्रेत है जो भारत के राज्य�ेत्र के �कसी भाग म� अ�धका�रता का प्रयोग करता है, या इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले �कसी भी समय प्रयोग करता था । स्पष्ट�करण 2–इस खंड के प्रयोजन के �लए, �कसी व्यिक्त के अ�धवक्ता रहने क� अव�ध क� संगणना करने म� वह अव�ध भी सिम्म�लत क� जाएगी िजसके दौरान �कसी व्यिक्त ने अ�धवक्ता होने के पश्चात ् ऐसा न्या�यक पद धारण �कया है जो िजला न्यायाधीश के पद से अवर नह�ं है । (4) उच्चतम न्यायालय के �कसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नह�ं हटाया जाएगा जब तक सा�बत कदाचार या असमथर्ता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के �लए संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा सम�थर्त समावेदन, राष्ट्रप�त के सम� उसी सत्र म� रखे जाने पर राष्ट्रप�त ने आदे श नह�ं दे �दया है । (5) संसद् खंड (4) के अधीन �कसी समावेदन के रखे जाने क� तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमथर्ता के अन्वेषण और सा�बत करने क� प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन कर सकेगी । (6) उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश होने के �लए �नयक् ु त प्रत्येक व्यिक्त, अपना पद ग्रहण करने के पहले राष्ट्रप�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त व्यिक्त के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा । (7) कोई व्यिक्त, िजसने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� पद धारण �कया है, भारत के राज्य�ेत्र के भीतर �कसी न्यायालय म� या �कसी प्रा�धकार� के सम� अ�भवचन या कायर् नह�ं करे गा । [124क. राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग--(1) राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग नामक एक आयोग होगा, जो �नम्न�ल�खत से �मलकर बनेगा, अथार्त ् :-2 1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 2 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 द्वारा (13-4-2015 से) अन्तःस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । भारत का सं�वधान 59 (भाग 5—संघ) (क) भारत का मुख्य न्यायमू�तर् -- अध्य�, पदे न ; (ख) भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् से ठ�क नीचे के उच्चतम न्यायालय के दो अन्य ज्येष्ठ न्यायाधीश -- सदस्य, पदे न ; (ग) संघ का �व�ध और न्याय का भारसाधक मंत्री -- सदस्य, पदे न ; (घ) प्रधान मंत्री, भारत के मुख्य न्यायमू�तर् और लोक सभा म� �वप� के नेता या जहां ऐसा कोई �वप� का नेता नह�ं है वहां, लोक सभा म� सबसे बड़े एकल �वप�ी दल के नेता से �मलकर बनने वाल� स�म�त द्वारा नाम�न�दर्ष्ट �कए जाने वाले दो �वख्यात व्यिक्त -- सदस्य : परं तु �वख्यात व्यिक्तय� म� से एक �वख्यात व्यिक्त, अनस ु �ू चत जा�त, अनस ु ू�चत जनजा�त, अन्य �पछड़े वगर्, अल्पसंख्यक वगर् के व्यिक्तय� अथवा िस्त्रय� म� से नाम�न�दर्ष्ट �कया जाएगा : परं तु यह और �क �वख्यात व्यिक्त तीन वषर् क� अव�ध के �लए नाम�न�दर्ष्ट �कया जाएगा और पन ु ःनाम�नद� शन का पात्र नह�ं होगा । (2) राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग का कोई कायर् या कायर्वा�हयां, केवल इस आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएंगी या अ�व�धमान्य नह�ं ह�गी �क आयोग म� कोई �रिक्त है या उसके गठन म� कोई त्र�ु ट है । 124ख. आयोग के कृत्य--राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग के �नम्न�ल�खत कतर्व्य ह�गे,-(क) भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर्, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश�, उच्च न्यायालय� के मुख्य न्यायमू�तर्य� तथा उच्च न्यायालय� के अन्य न्यायाधीश� के रूप म� �नयिु क्त के �लए व्यिक्तय� क� �सफा�रश करना ; (ख) उच्च न्यायालय� के मख् ु य न्यायम�ू तर्य� और अन्य न्यायाधीश� का एक उच्च न्यायालय से �कसी अन्य उच्च न्यायालय म� स्थानांतरण करने क� �सफा�रश करना ; और (ग) यह स�ु निश्चत करना �क वह व्यिक्त, िजसक� �सफा�रश क� गई है, स�म और सत्य�नष्ठ है । 124ग. �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त--संसद्, �व�ध द्वारा, भारत के मुख्य न्यायम�ू तर् और उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीश� तथा उच्च न्यायालय� के मख् ु य न्यायमू�तर्य� और अन्य न्यायाधीश� क� �नयिु क्त क� प्र�क्रया �व�नय�मत कर सकेगी तथा आयोग को �व�नयम� द्वारा उसके कृत्य� के �नवर्हन, �नयिु क्त के �लए व्यिक्तय� के चयन क� र��त और ऐसे अन्य �वषय� के �लए, जो उसके द्वारा आवश्यक समझे जाएं, प्र�क्रया अ�धक�थत करने के �लए सशक्त कर सकेगी ।] 125. न्यायाधीश� के वेतन, आ�द– 1[(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को ऐसे वेतन� का संदाय �कया जाएगा जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन� का संदाय �कया जाएगा जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� ।] (2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे �वशेषा�धकार� और भ�� का तथा अनप ु िस्थ�त छुट्ट� और प� शन के संबध ं म� ऐसे अ�धकार� का, जो संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर अवधा�रत �कए जाएं और जब तक इस प्रकार अवधा�रत नह�ं �कए जाते ह� तब तक ऐसे �वशेषा�धकार�, भ�� और अ�धकार� का जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, हकदार होगा : 1. सं�वधान (चौवनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 60 (भाग 5—संघ) परन्तु �कसी न्यायाधीश के �वशेषा�धकार� और भ�� म� तथा अनप ु िस्थ�त छुट्ट� या प� शन के संबध ं म� उसके अ�धकार� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । 126. कायर्कार� मुख्य न्यायमू�तर् क� �नयिु क्त–जब भारत के मुख्य न्यायमू�तर् का पद �रक्त है या जब मख् ु य न्यायम�ू तर्, अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्यथा अपने पद के कतर्व्य� का पालन करने म� असमथर् है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीश� म� से ऐसा एक न्यायाधीश, िजसे राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा । 127. तदथर् न्यायाधीश� क� �नयिु क्त–(1) य�द �कसी समय उच्चतम न्यायालय के सत्र को आयोिजत करने या चालू रखने के �लए उस न्यायालय के न्यायाधीश� क� गणप�ू तर् प्राप्त न हो तो 1[राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् द्वारा उसे �कए गए �कसी �नद� श पर, राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त से] और संब�ं धत उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् से परामशर् करने के पश्चात ्, �कसी उच्च न्यायालय के �कसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश �नयक् ु त होने के �लए सम्यक्त रूप से अ�हर्त है और िजसे भारत का मख् ु य न्यायम�ू तर् नामो�दष्ट करे , न्यायालय क� बैठक� म� उतनी अव�ध के �लए, िजतनी आवश्यक हो, तद्र्थ न्यायाधीश के रूप म� उपिस्थत रहने के �लए �ल�खत रूप म� अनरु ोध कर सकेगा । (2) इस प्रकार नामो�दष्ट न्यायाधीश का कतर्व्य होगा �क वह अपने पद के अन्य कतर्व्य� पर प�ू वर्कता दे कर उस समय और उस अव�ध के �लए, िजसके �लए उसक� उपिस्थ�त अपे��त है, उच्चतम न्यायालय क� बैठक� म� , उपिस्थत हो और जब वह इस प्रकार उपिस्थत होता है तब उसको उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश क� सभी अ�धका�रता, शिक्तयां और �वशेषा�धकार ह�गे और वह उक्त न्यायाधीश के कतर्व्य� का �नवर्हन करे गा । 128. उच्चतम न्यायालय क� बैठक� म� सेवा�नव� ृ न्यायाधीश� क� उपिस्थ�त–इस अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, 2[ राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग], �कसी भी समय, राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त से �कसी व्यिक्त से, जो उच्चतम न्यायालय या फेडरल 3 न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चक ु ा है [या जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चक ु ा है और उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश �नयक् ु त होने के �लए सम्यक्त रूप से अ�हर्त है,] उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� बैठने और कायर् करने का अनरु ोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यिक्त, िजससे इस प्रकार अनरु ोध �कया जाता है, इस प्रकार बैठने और कायर् करने के दौरान, ऐसे भ�� का हकदार होगा जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अवधा�रत करे और उसको उस न्यायालय के न्यायाधीश क� सभी अ�धका�रता, शिक्तयां और �वशेषा�धकार ह�गे, �कन्तु उसे अन्यथा उस न्यायालय का न्यायाधीश नह�ं समझा जाएगा : 1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 4 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमू�तर् राष्ट्रप�त क� पूवर् सहम�त से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । 2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 5 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत का मुख्य न्यायमू�तर्,” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । 3. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 3 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 61 (भाग 5—संघ) परन्तु जब तक यथापव ू �क्त व्यिक्त उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� बैठने और कायर् करने क� सहम�त नह�ं दे दे ता है तब तक इस अनच् ु छे द क� कोई बात उससे ऐसा करने क� अपे�ा करने वाल� नह�ं समझी जाएगी । 129. उच्चतम न्यायालय का अ�भलेख न्यायालय होना–उच्चतम न्यायालय अ�भलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त स�हत ऐसे न्यायालय क� सभी शिक्तयां ह�गी । 130. उच्चतम न्यायालय का स्थान–उच्चतम न्यायालय �दल्ल� म� अथवा ऐसे अन्य स्थान या स्थान� म� अ�ध�वष्ट होगा िजन्ह� भारत का मुख्य न्यायमू�तर्, राष्ट्रप�त के अनम ु ोदन से समय-समय पर, �नयत करे । 131. उच्चतम न्यायालय क� आरं �भक अ�धका�रता–इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए,– (क) भारत सरकार और एक या अ�धक राज्य� के बीच, या (ख) एक ओर भारत सरकार और �कसी राज्य या राज्य� और दस ू र� ओर एक या अ�धक अन्य राज्य� के बीच, या (ग) दो या अ�धक राज्य� के बीच, �कसी �ववाद म� , य�द और जहां तक उस �ववाद म� (�व�ध का या तथ्य का) ऐसा कोई प्रश्न अंतवर्�लत है िजस पर �कसी �व�धक अ�धकार का अिस्तत्व या �वस्तार �नभर्र है तो और वहां तक अन्य न्यायालय� का अपवजर्न करके उच्चतम न्यायालय को आरं �भक अ�धका�रता होगी : 1 [परन्तु उक्त अ�धका�रता का �वस्तार उस �ववाद पर नह�ं होगा जो �कसी ऐसी सं�ध, करार, प्रसं�वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह� अन्य �लखत से उत्पन्न हुआ है जो इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले क� गई थी या �नष्पा�दत क� गई थी और ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् प्रवतर्न म� है या जो यह उपबंध करती है �क उक्त अ�धका�रता का �वस्तार ऐसे �ववाद पर नह�ं होगा ।] 2 [131क. [केन्द्र�य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्रश्न� के बारे म� उच्चतम न्यायालय क� अनन्य अ�धका�रता ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 4 द्वारा (13-4-1978) से लोप �कया गया । 132. कुछ मामल� म� उच्च न्यायालय� से अपील� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील� अ�धका�रता–(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� �स�वल, दां�डक या अन्य कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� होगी 3[य�द वह उच्च न्यायालय अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर दे ता है] �क उस मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवर्�लत है । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 द्वारा (1-11-1956 से) परन्तुक के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 23 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय प्रमा�णत कर दे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 62 (भाग 5—संघ) (2)* * * * (3) जहां ऐसा प्रमाणपत्र दे �दया गया है 2*** वहां उस मामले म� कोई प�कार इस आधार पर उच्चतम न्यायालय म� अपील कर सकेगा �क पव ू �क्त �कसी प्रश्न का �व�नश्चय गलत �कया गया है 4***। स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, “अं�तम आदे श” पद के अंतगर्त ऐसे �ववाद्यक का �व�नश्चय करने वाला आदे श है जो, य�द अपीलाथ� के प� म� �व�निश्चत �कया जाता है तो, उस मामले के अं�तम �नपटारे के �लए पयार्प्त होगा । 133. उच्च न्यायालय� से �स�वल �वषय� से संब�ं धत अपील� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील� अ�धका�रता– 3[(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� �स�वल कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� होगी 4[य�द उच्च न्यायालय अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर दे ता है �क]– (क) उस मामले म� �व�ध का व्यापक महत्व का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवर्�लत है ; और (ख) उच्च न्यायालय क� राय म� उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा �व�नश्चय आवश्यक है ।] (2) अनच् ु छे द 132 म� �कसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय म� खंड (1) के अधीन अपील करने वाला कोई प�कार ऐसी अपील के आधार� म� यह आधार भी बता सकेगा �क इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी सारवान ् प्रश्न का �व�नश्चय गलत �कया गया है । (3) इस अनच् ु छे द म� �कसी बात के होते हुए भी, उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के �नणर्य, �डक्र� या अं�तम आदे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� तब तक नह�ं होगी जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे । 134. दां�डक �वषय� म� उच्चतम न्यायालय क� अपील� अ�धका�रता–(1) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� दां�डक कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, अं�तम आदे श या दं डादे श क� अपील उच्चतम न्यायालय म� होगी य�द– (क) उस उच्च न्यायालय ने अपील म� �कसी अ�भयक् ु त व्यिक्त क� दोषमुिक्त के आदे श को उलट �दया है और उसको मत्ृ यु दं डादे श �दया है ; या (ख) उस उच्च न्यायालय ने अपने प्रा�धकार के अधीनस्थ �कसी न्यायालय से �कसी मामले को �वचारण के �लए अपने पास मंगा �लया है और ऐसे �वचारण म� अ�भयक् ु त व्यिक्त को �सद्धदोष ठहराया है और उसको मत्ृ यु दंडादे श �दया है ; या (ग) वह उच्च न्यायालय 5[अनच् ु छे द 134क के अधीन प्रमा�णत कर दे ता है] �क मामला उच्चतम न्यायालय म� अपील �कए जाने योग्य है : 68 1 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय प्रमा�णत करता है” खंड (2) का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 17 द्वारा (1-8-1979 से) कुछ शब्द� गया । का लोप �कया 3. सं�वधान (तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (27-2-1973 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 18 द्वारा (1-8-1979 से) “य�द उच्च न्यायालय प्रमा�णत करे ” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 19 द्वारा (1-8-1979 से) “प्रमा�णत करता है” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 63 (भाग 5—संघ) परन्तु उपखंड (ग) के अधीन अपील ऐसे उपबंध� के अधीन रहते हुए होगी जो अनच् ु छे द 145 के खंड (1) के अधीन इस �न�म� बनाए जाएं और ऐसी शत� के अधीन रहते हुए होगी जो उच्च न्यायालय �नयत या अपे��त करे । (2) संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय क� दां�डक कायर्वाह� म� �दए गए �कसी �नणर्य, अं�तम आदे श या दं डादे श क� अपील ऐसी शत� और प�रसीमाओं के अधीन रहते हुए, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, ग्रहण करने और सुनने क� अ�त�रक्त शिक्त दे सकेगी । [134क. उच्चतम न्यायालय म� अपील के �लए प्रमाणपत्र–प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दंडादे श पा�रत करता है या दे ता है, इस प्रकार पा�रत �कए जाने या �दए जाने के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, इस प्रश्न का अवधारण �क उस मामले के संबध ं म� , यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 132 के खंड (1) या अनच् ु छे द 133 के खंड (1) या अनच् ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) म� �न�दर्ष्ट प्रकृ�त का प्रमाणपत्र �दया जाए या नह�ं,– 1 (क) य�द वह ऐसा करना ठ�क समझता है तो स्वप्रेरणा से कर सकेगा ; और (ख) य�द ऐसा �नणर्य, �डक्र�, अं�तम आदे श या दं डादे श पा�रत �कए जाने या �दए जाने के ठ�क पश्चात ् व्य�थत प�कार द्वारा या उसक� ओर से मौ�खक आवेदन �कया जाता है तो करे गा ।] 135. �वद्यमान �व�ध के अधीन फेडरल न्यायालय क� अ�धका�रता और शिक्तय� का उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य होना–जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक उच्चतम न्यायालय को भी �कसी ऐसे �वषय के संबध ं म� , िजसको अनच् ु छे द 133 या अनच् ु छे द 134 के उपबंध लागू नह�ं होते ह�, अ�धका�रता और शिक्तयां ह�गी य�द उस �वषय के संबध ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी �वद्यमान �व�ध के अधीन अ�धका�रता और शिक्तयां फेडरल न्यायालय द्वारा प्रयोक्तव्य थीं । 136. अपील के �लए उच्चतम न्यायालय क� �वशेष इजाजत–(1) इस अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, उच्चतम न्यायालय अपने �ववेकानस ु ार भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा �कसी वाद या मामले म� पा�रत �कए गए या �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र�, अवधारण, दं डादे श या आदे श क� अपील के �लए �वशेष इजाजत दे सकेगा । (2) खंड (1) क� कोई बात सशस्त्र बल� से संब�ं धत �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन ग�ठत �कसी न्यायालय या अ�धकरण द्वारा पा�रत �कए गए या �दए गए �कसी �नणर्य, अवधारण, दं डादे श या आदे श को लागू नह�ं होगी । 137. �नणर्य� या आदे श� का उच्चतम न्यायालय द्वारा पन ु �वर्लोकन–संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के या अनच् ु छे द 145 के अधीन बनाए गए �नयम� के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को अपने द्वारा सुनाए गए �नणर्य या �दए गए आदे श का पन ु �वर्लोकन करने क� शिक्त होगी । 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 20 द्वारा (1-8-1979 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 64 (भाग 5—संघ) 138. उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता क� वद् ृ �ध–(1) उच्चतम न्यायालय को संघ सूची के �वषय� म� से �कसी के संबध ं म� ऐसी अ�त�रक्त अ�धका�रता और शिक्तयां ह�गी जो संसद् �व�ध द्वारा प्रदान करे । (2) य�द संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय द्वारा ऐसी अ�धका�रता और शिक्तय� के प्रयोग का उपबंध करती है तो उच्चतम न्यायालय को �कसी �वषय के संबध ं म� ऐसी अ�त�रक्त अ�धका�रता और शिक्तयां ह�गी जो भारत सरकार और �कसी राज्य क� सरकार �वशेष करार द्वारा प्रदान करे । 139. कुछ �रट �नकालने क� शिक्तय� का उच्चतम न्यायालय को प्रद� �कया जाना–संसद् �व�ध द्वारा उच्चतम न्यायालय को अनच् ु छे द 32 के खंड (2) म� व�णर्त प्रयोजन� से �भन्न �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए ऐसे �नदे श, आदे श या �रट, िजनके अंतगर्त बंद� प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार पच्ृ छा और उप्रेषण �रट ह�, या उनम� से कोई �नकालने क� शिक्त प्रदान कर सकेगी । 1 [139क. कुछ मामल� का अंतरण– 2[(1) य�द ऐसे मामले, िजनम� �व�ध के समान या सारतः समान प्रश्न अंतवर्�लत ह�, उच्चतम न्यायालय के और एक या अ�धक उच्च न्यायालय� के अथवा दो या अ�धक उच्च न्यायालय� के सम� लं�बत ह� और उच्चतम न्यायालय का स्वप्रेरणा से अथवा भारत के महान्यायवाद� द्वारा या ऐसे �कसी मामले के �कसी प�कार द्वारा �कए गए आवेदन पर यह समाधान हो जाता है �क ऐसे प्रश्न व्यापक महत्व के सारवान ् प्रश्न ह� तो, उच्चतम न्यायालय उस उच्च न्यायालय या उन उच्च न्यायालय� के सम� लं�बत मामले या मामल� को अपने पास मंगा सकेगा और उन सभी मामल� को स्वंय �नपटा सकेगा : परन्तु उच्चतम न्यायालय इस प्रकार मंगाए गए मामले को उक्त �व�ध के प्रश्न� का अवधारण करने के पश्चात ् ऐसे प्रश्न� पर अपने �नणर्य क� प्र�त�ल�प स�हत उस उच्च न्यायालय को, िजससे मामला मंगा �लया गया है, लौटा सकेगा और वह उच्च न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे �नणर्य के अनरू ु प �नपटाने के �लए आगे कायर्वाह� करे गा ।] (2) य�द उच्चतम न्यायालय न्याय के उद्दे श्य क� प�ू तर् के �लए ऐसा करना समीचीन समझता है तो वह �कसी उच्च न्यायालय के सम� लं�बत �कसी मामले, अपील या अन्य कायर्वाह� का अंतरण �कसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा ।] 140. उच्चतम न्यायालय क� आनष ु ं�गक शिक्तयां–संसद्, �व�ध द्वारा, उच्चतम न्यायालय को ऐसी अनप ु रू क शिक्तयां प्रदान करने के �लए उपबंध कर सकेगी जो इस सं�वधान के उपबंध� म� से �कसी से असंगत न ह� और जो उस न्यायालय को इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन प्रद� अ�धका�रता का अ�धक प्रभावी रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के �लए आवश्यक या वांछनीय प्रतीत ह� । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 24 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 21 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 65 भारत का सं�वधान (भाग 5—संघ) 141. उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध का सभी न्यायालय� पर आबद्धकर होना–उच्चतम न्यायालय द्वारा घो�षत �व�ध भारत के राज्य�ेत्र के भीतर सभी न्यायालय� पर आबद्धकर होगी । 142. उच्चतम न्यायालय क� �ड�क्रय� और आदे श� का प्रवतर्न और प्रकट�करण आ�द के बारे म� आदे श–(1) उच्चतम न्यायालय अपनी अ�धका�रता का प्रयोग करते हुए ऐसी �डक्र� पा�रत कर सकेगा या ऐसा आदे श कर सकेगा जो उसके सम� लं�बत �कसी वाद या �वषय म� पण ू र् न्याय करने के �लए आवश्यक हो और इस प्रकार पा�रत �डक्र� या �कया गया आदे श भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र ऐसी र��त से, जो संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत क� जाए, और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक, ऐसी र��त से जो राष्ट्रप�त आदे श 1 द्वारा �व�हत करे , प्रवतर्नीय होगा । (2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय को भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र के बारे म� �कसी व्यिक्त को हािजर कराने के, �कन्ह�ं दस्तावेज� के प्रकट�करण या पेश कराने के अथवा अपने �कसी अवमान का अन्वेषण करने या दं ड दे ने के प्रयोजन के �लए कोई आदे श करने क� समस्त और प्रत्येक शिक्त होगी । 143. उच्चतम न्यायालय से परामशर् करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त–(1) य�द �कसी समय राष्ट्रप�त को प्रतीत होता है �क �व�ध या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने क� संभावना है, जो ऐसी प्रकृ�त का और ऐसे व्यापक महत्व का है �क उस पर उच्चतम न्यायालय क� राय प्राप्त करना समीचीन है, तो वह उस प्रश्न को �वचार करने के �लए उस न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और वह न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात ् जो वह ठ�क समझता है, राष्ट्रप�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत कर सकेगा । 2 (2) राष्ट्रप�त अनच् ु छे द 131 *** के परन्तुक म� �कसी बात के होते हुए भी, इस प्रकार के �ववाद को, जो 3[उक्त परन्तुक] म� व�णर्त है, राय दे ने के �लए उच्चतम न्यायालय को �नद� �शत कर सकेगा और उच्चतम न्यायालय, ऐसी सुनवाई के पश्चात ् जो वह ठ�क समझता है, राष्ट्रप�त को उस पर अपनी राय प्र�तवे�दत करे गा । 144. �स�वल और न्या�यक प्रा�धका�रय� द्वारा उच्चतम न्यायालय क� सहायता म� कायर् �कया जाना–भारत के राज्य�ेत्र के सभी �स�वल और न्या�यक प्रा�धकार� उच्चतम न्यायालय क� सहायता म� कायर् कर� गे । 4 144क. [�व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्रश्न� के �नपटारे के बारे म� �वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 5 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया । 145. न्यायालय के �नयम आ�द–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय समय-समय पर, राष्ट्रप�त के अनम ु ोदन से न्यायालय क� पद्ध�त और प्र�क्रया के, साधारणतया, �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगा िजसके अंतगर्त �नम्न�ल�खत भी ह�, अथार्त ् :– (क) उस न्यायालय म� �व�ध-व्यवसाय करने वाले व्यिक्तय� के बारे म� �नयम ; 76 1. उच्चतम न्यायालय (�डक्र� और आदे श) प्रवतर्न आदे श, 1954 (सं.आ. 47) दे �खए । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “के खंड (i)” शब्द�, कोष्ठक� और अंक का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “उक्त खंड” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 25 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 66 (भाग 5—संघ) (ख) अपील� सुनने के �लए प्र�क्रया के बारे म� और अपील� संबध ं ी अन्य �वषय� के बारे म� , िजनके अंतगर्त वह समय भी है िजसके भीतर अपील� उस न्यायालय म� ग्रहण क� जानी ह�, �नयम ; (ग) भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी का प्रवतर्न कराने के �लए उस न्यायालय म� कायर्वा�हय� के बारे म� �नयम ; 1 [(गग) 2[अनच् ु छे द 139क] के अधीन उस न्यायालय म� कायर्वा�हय� के बारे म� �नयम ;] (घ) अनच् ु छे द 134 के खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन अपील� को ग्रहण �कए जाने के बारे म� �नयम ; (ङ) उस न्यायालय द्वारा सुनाए गए �कसी �नणर्य या �कए गए आदे श का िजन शत� के अधीन रहते हुए पन ु �वर्लोकन �कया जा सकेगा उनके बारे म� और ऐसे पन र् वह समय भी है िजसके ु �वर्लोकन के �लए प्र�क्रया के बारे म� , िजसके अतंगत भीतर ऐसे पन ु �वर्लोकन के �लए आवेदन उस न्यायालय म� ग्रहण �कए जाने ह�, �नयम ; (च) उस न्यायालय म� �कन्ह�ं कायर्वा�हय� के और उनके आनष ु �ं गक खच� के बारे म� , तथा उसम� कायर्वा�हय� के संबध ं म� प्रभा�रत क� जाने वाल� फ�स� के बारे म� �नयम ; (छ) जमानत मंजरू करने के बारे म� �नयम ; (ज) कायर्वा�हय� को रोकने के बारे म� �नयम ; (झ) िजस अपील के बारे म� उस न्यायालय को यह प्रतीत होता है �क वह तुच्छ या तंग करने वाल� है अथवा �वलंब करने के प्रयोजन से क� गई है, उसके सं��प्त अवधारण के �लए उपबंध करने वाले �नयम ; (ञ) अनच् ु छे द 317 के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट जांच� के �लए प्र�क्रया के बारे म� �नयम । (2) 3[ 4*** खंड (3) के उपबंध�] के अधीन रहते हुए, इस अनच् ु छे द के अधीन बनाए गए �नयम, उन न्यायाधीश� क� न्यन ू तम संख्या �नयत कर सक�गे जो �कसी प्रयोजन के �लए बैठ�गे तथा एकल न्यायाधीश� और खंड न्यायालय� क� शिक्त के �लए उपबंध कर सक�गे । (3) िजस मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ् प्रश्न अतंव�र् लत है उसका �व�नश्चय करने के प्रयोजन के �लए या इस सं�वधान के अनच् ु छे द 143 के अधीन �नद� श क� सुनवाई करने के प्रयोजन के �लए बैठने वाले न्यायाधीश� क� 5 4*** [ न्यन ू तम संख्या] पांच होगी : 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छे द 131क और अनुच्छे द 139क” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “खंड (3) के उपबंध�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 6 द्वारा (13-4-1978 से) कुछ शब्द� लोप �कया गया । 5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 26 द्वारा (1-2-1977 से) “न्यूनतम संख्या” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 67 (भाग 5—संघ) परन्तु जहां अनच् ु छे द 132 से �भन्न इस अध्याय के उपबंध� के अधीन अपील क� सुनवाई करने वाला न्यायालय पांच से कम न्यायाधीश� से �मलकर बना है और अपील क� सुनवाई के दौरान उस न्यायालय का समाधान हो जाता है �क अपील म� सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का ऐसा सारवान ् प्रश्न अंतवर्�लत है िजसका अवधारण अपील के �नपटारे के �लए आवश्यक है वहां वह न्यायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न को अंतवर्�लत करने वाले �कसी मामले के �व�नश्चय के �लए इस खंड क� अपे�ानस ु ार ग�ठत �कया जाता है, उसक� राय के �लए �नद� �शत करे गा और ऐसी राय क� प्रािप्त पर उस अपील को उस राय के अनरू ु प �नपटाएगा । (4) उच्चतम न्यायालय प्रत्येक �नणर्य खल ु े न्यायालय म� ह� सुनाएगा, अन्यथा नह�ं और अनच् ु छे द 143 के अधीन प्रत्येक प्र�तवेदन खल ु े न्यायालय म� सुनाई गई राय के अनस ु ार ह� �दया जाएगा, अन्यथा नह�ं । (5) उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक �नणर्य और ऐसी प्रत्येक राय, मामले क� सुनवाई म� उपिस्थत न्यायाधीश� क� बहुसंख्या क� सहम�त से ह� द� जाएगी, अन्यथा नह�ं, �कन्तु इस खंड क� कोई बात �कसी ऐसे न्यायाधीश को, जो सहमत नह�ं है, अपना �वसम्मत �नणर्य या राय दे ने से �नवा�रत नह�ं करे गी । 146. उच्चतम न्यायालय के अ�धकार� और सेवक तथा व्यय–(1) उच्चतम न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� �नयिु क्तयां भारत का मुख्य न्यायमू�तर् करे गा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� करे गा िजसे वह �न�दष्ट करे : परन्तु राष्ट्रप�त �नयम द्वारा यह अपे�ा कर सकेगा �क ऐसी �कन्ह�ं दशाओं म� , जो �नयम म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, �कसी ऐसे व्यिक्त को, जो पहले से ह� न्यायालय से संलग्न नह�ं है, न्यायालय से संब�ं धत �कसी पद पर संघ लोक सेवा आयोग से परामशर् करके ह� �नयक् ु त �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं । (2) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� सेवा क� शत� ऐसी ह�गी जो भारत के मुख्य न्यायमू�तर् या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� द्वारा, िजसे भारत के मुख्य न्यायमू�तर् ने इस प्रयोजन के �लए �नयम बनाने के �लए प्रा�धकृत �कया है, बनाए गए �नयम� द्वारा �व�हत क� जाएं : परन्तु इस खंड के अधीन बनाए गए �नयम� के �लए, जहां तक वे वेतन�, भ��, छुट्ट� या प� शन� से संब�ं धत ह�, राष्ट्रप�त के अनम ु ोदन क� अपे�ा होगी । (3) उच्चतम न्यायालय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अतंगत र् उस न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� को या उनके संबध ं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और प� शन ह�, भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे और उस न्यायालय द्वारा ल� गई फ�स� और अन्य धनरा�शयां उस �न�ध का भाग ह�गी । भारत का सं�वधान 68 (भाग 5—संघ) 147. �नवर्चन–इस अध्याय म� और भाग 6 के अध्याय 5 म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी सारवान ् प्रश्न के प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया जाएगा �क उनके अतंगत र् भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 के (िजसके अंतगर्त उस अ�ध�नयम क� संशोधक या अनप ु रू क कोई अ�ध�नय�म�त है) अथवा �कसी सप�रषद् आदे श या उसके अधीन बनाए गए �कसी आदे श के अथवा भारतीय स्वतंत्रता अ�ध�नयम, 1947 के या उसके अधीन बनाए गए �कसी आदे श के �नवर्चन के बारे म� �व�ध के �कसी सारवान ् प्रश्न के प्र�त �नद� श ह� । अध्याय 5–भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क 148. भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क–(1) भारत का एक �नयंत्रकमहालेखापर��क होगा िजसको राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र और मुद्रा स�हत अ�धपत्र द्वारा �नयक् ु त करे गा और उसे उसके पद से केवल उसी र��त से और उन्ह�ं आधार� पर हटाया जाएगा िजस र��त से और िजन आधार� पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है । (2) प्रत्येक व्यिक्त, जो भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क �नयक् ु त �कया जाता है अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रप�त या उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त व्यिक्त के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा । (3) �नयंत्रक-महालेखापर��क का वेतन और सेवा क� अन्य शत� ऐसी ह�गी जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक वे इस प्रकार अवधा�रत नह�ं क� जाती ह� तब तक ऐसी ह�गी जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� : परन्तु �नयंत्रक-महालेखापर��क के वेतन म� और अनप ु िस्थ�त छुट्ट�, प� शन या �नव�ृ � क� आयु के संबध ं म� उसके अ�धकार� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । (4) �नयंत्रक-महालेखापर��क, अपने पद पर न रह जाने के पश्चात ्, भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी और पद का पात्र नह�ं होगा । (5) इस सं�वधान के और संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, भारतीय लेखापर��ा और लेखा �वभाग म� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� और �नयंत्रक-महालेखापर��क क� प्रशास�नक शिक्तयां ऐसी ह�गी जो �नयंत्रकमहालेखापर��क से परामशर् करने के पश्चात ् राष्ट्रप�त द्वारा बनाए गए �नयम� द्वारा �व�हत क� जाएं । (6) �नयंत्रक-महालेखापर��क के कायार्लय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अंतगर्त उस कायार्लय म� सेवा करने वाले व्यिक्तय� को या उनके संबध ं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और प� शन ह�, भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे । भारत का सं�वधान 69 (भाग 5—संघ) 149. �नयंत्रक-महालेखापर��क के कतर्व्य और शिक्तयां–�नयंत्रक-महालेखापर��क संघ के और राज्य� के तथा �कसी अन्य प्रा�धकार� या �नकाय के लेखाओं के संबध ं म� ऐसे कतर्व्य� का पालन और ऐसी शिक्तय� का प्रयोग करे गा िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत �कया जाए और जब तक इस �न�म� इस प्रकार ं म� ऐसे उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक, संघ के और राज्य� के लेखाओं के संबध कतर्व्य� का पालन और ऐसी शिक्तय� का प्रयोग करे गा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले क्रमशः भारत डो�म�नयन के और प्रांत� के लेखाओं के संबध ं म� भारत के महालेखापर��क को प्रद� थीं या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य थीं । [150. संघ के और राज्य� के लेखाओं का प्ररूप–संघ के और राज्य� के लेखाओं को ऐसे प्ररूप म� रखा जाएगा जो राष्ट्रप�त, भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क 2[क� सलाह पर] �व�हत करे ।] 1 151. संपर��ा प्र�तवेदन–(1) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के संघ के लेखाओं संबध ं ी प्र�तवेदन� को राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा, जो उनको संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा । (2) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के �कसी राज्य के लेखाओं संबध ं ी प्र�तवेदन� को उस राज्य के राज्यपाल 3*** के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा, जो उनको राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 27 द्वारा (1-4-1977 से) “अनुच्छे द 150” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 22 द्वारा (20-6-1979 से) “से परामशर् के पश्चात ्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भाग 6 1*** राज्य अध्याय 1–साधारण 152. प�रभाषा–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, “राज्य” पद 2[के अंतगर्त जम्मू-कश्मीर राज्य नह�ं है] । अध्याय 2–कायर्पा�लका राज्यपाल 153. राज्य� के राज्यपाल–प्रत्येक राज्य के �लए एक राज्यपाल होगा : [परन्तु इस अनच् ु छे द क� कोई बात एक ह� व्यिक्त को दो या अ�धक राज्य� के �लए राज्यपाल �नयक् ु त �कए जाने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।] 3 154. राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त–(1) राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त राज्यपाल म� �न�हत होगी और वह इसका प्रयोग इस सं�वधान के अनस ु ार स्वयं या अपने अधीनस्थ अ�धका�रय� के द्वारा करे गा । (2) इस अनच् ु छे द क� कोई बात– (क) �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा �कसी अन्य प्रा�धकार� को प्रदान �कए गए कृत्य राज्यपाल को अंत�रत करने वाल� नह�ं समझी जाएगी ; या (ख) राज्यपाल के अधीनस्थ �कसी प्रा�धकार� को �व�ध द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद् या राज्य के �वधान-मंडल को �नवा�रत नह�ं करे गी । 155. राज्यपाल क� �नयिु क्त–राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र और मद्र ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा �नयक् ु त करे गा । 156. राज्यपाल क� करे गा । पदाव�ध–(1) राज्यपाल, राष्ट्रप�त के प्रसादपय�त पद धारण (2) राज्यपाल, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा । (3) इस अनच् र् ामी उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्यपाल अपने ु छे द के पव ू ग पदग्रहण क� तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध तक पद धारण करे गा : 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क म� के” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “का अथर् पहल� अनुसूची के भाग क म� उिल्ल�खत राज्य है” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 6 द्वारा (1-11-1956 से) जोड़ा गया । 70 भारत का सं�वधान 71 (भाग 6—राज्य) परन्तु राज्यपाल, अपने पद क� अव�ध समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उ�रा�धकार� अपना पदग्रहण नह�ं कर लेता है । 157. राज्यपाल �नयक् ु त होने के �लए अहर्ताएं–कोई व्यिक्त राज्यपाल �नयक् ु त होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नाग�रक है और प�तीस वषर् क� आयु परू � कर चक ु ा है । 158. राज्यपाल के पद के �लए शत�–(1) राज्यपाल संसद् के �कसी सदन का या पहल� अनस ु च ू ी म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य नह�ं होगा और य�द संसद् के �कसी सदन का या ऐसे �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल �नयक् ु त हो जाता है तो यह समझा जाएगा �क उसने उस सदन म� अपना स्थान राज्यपाल के रूप म� अपने पदग्रहण क� तार�ख से �रक्त कर �दया है । (2) राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नह�ं करे गा । (3) राज्यपाल, �बना �कराया �दए, अपने शासक�य �नवास� के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का भी, जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का, जो दस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, ू र� अनस हकदार होगा । 1 [(3क) जहां एक ह� व्यिक्त को दो या अ�धक राज्य� का राज्यपाल �नयक् ु त �कया जाता है वहां उस राज्यपाल को संदेय उपलिब्धयां और भ�े उन राज्य� के बीच ऐसे अनप ु ात म� आबं�टत �कए जाएंगे जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अवधा�रत करे ।] (4) राज्यपाल क� उपलिब्धयां और भ�े उसक� पदाव�ध के दौरान कम नह�ं �कए जाएंगे । 159. राज्यपाल द्वारा शपथ या प्र�त�ान–प्रत्येक राज्यपाल और प्रत्येक व्यिक्त जो राज्यपाल के कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है, अपना पदग्रहण करने से पहले उस राज्य के संबध ं म� अ�धका�रता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् या उसक� अनप ु िस्थ�त म� उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के सम� �नम्न�ल�खत प्ररूप म� शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा, अथार्त ् :– ईश्वर क� शपथ लेता हूं “म�, अमुक,----------------------------------------- �क म� श्रद्धापव र् ............... ू क सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं (राज्य का नाम) के राज्यपाल के पद का कायर्पालन (अथवा राज्यपाल के कृत्य� का �नवर्हन) करूंगा तथा अपनी परू � योग्यता से सं�वधान और �व�ध का प�रर�ण, संर�ण और प्र�तर�ण करूंगा और म�.............. (राज्य का नाम) क� जनता क� सेवा और कल्याण म� �नरत रहूंगा ।” । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 7 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 72 (भाग 6—राज्य) 160. कुछ आकिस्मकताओं म� राज्यपाल के कृत्य� का �नवर्हन–राष्ट्रप�त ऐसी �कसी आकिस्मकता म� , जो इस अध्याय म� उपबं�धत नह�ं है, राज्य के राज्यपाल के कृत्य� के �नवर्हन के �लए ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठ�क समझता है । 161. �मा आ�द क� और कुछ मामल� म� दंडादे श के �नलंबन, प�रहार या लघक ं ी, िजस ु रण क� राज्यपाल क� शिक्त–�कसी राज्य के राज्यपाल को उस �वषय संबध �वषय पर उस राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार है, �कसी �व�ध के �वरुद्ध �कसी अपराध के �लए �सद्धदोष ठहराए गए �कसी व्यिक्त के दं ड को �मा, उसका प्र�वलंबन, �वराम या प�रहार करने क� अथवा दं डादे श म� �नलंबन, प�रहार या लघक ु रण क� शिक्त होगी । 162. राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार–इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए �कसी राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार उन �वषय� पर होगा िजनके संबध ं म� उस राज्य के �वधान-मंडल को �व�ध बनाने क� शिक्त है : परं तु िजस �वषय के संबध ं म� राज्य के �वधान-मंडल और संसद् को �व�ध बनाने क� शिक्त है उसम� राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त इस सं�वधान द्वारा या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा, संघ या उसके प्रा�धका�रय� को अ�भव्यक्त रूप से प्रद� कायर्पा�लका शिक्त के अधीन और उससे प�रसी�मत होगी । मं�त्र-प�रषद् 163. राज्यपाल को सहायता और सलाह दे ने के �लए मं�त्र-प�रषद्–(1) िजन बात� म� इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपे��त है �क वह अपने कृत्य� या उनम� से �कसी को अपने �ववेकानस ु ार करे , उन बात� को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्य� का प्रयोग करने म� सहायता और सलाह दे ने के �लए एक मं�त्र-प�रषद् होगी िजसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा । (2) य�द कोई प्रश्न उठता है �क कोई �वषय ऐसा है या नह�ं िजसके संबध ं म� इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपे��त है �क वह अपने �ववेकानस ु ार कायर् करे तो राज्यपाल का अपने �ववेकानस ु ार �कया गया �व�नश्चय अं�तम होगा और राज्यपाल द्वारा क� गई �कसी बात क� �व�धमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी �क उसे अपने �ववेकानस ु ार कायर् करना चा�हए था या नह�ं । (3) इस प्रश्न क� �कसी न्यायालय म� जांच नह�ं क� जाएगी �क क्या मं�त्रय� ने राज्यपाल को कोई सलाह द�, और य�द द� तो क्या द� । 164. मं�त्रय� के बारे म� अन्य उपबंध–(1) मुख्यमंत्री क� �नयिु क्त राज्यपाल करे गा और अन्य मं�त्रय� क� �नयिु क्त राज्यपाल, मख् ु यमंत्री क� सलाह पर करे गा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपय�त अपने पद धारण कर� गे : भारत का सं�वधान 73 (भाग 6—राज्य) परं तु 1[छ�ीसगढ़, झारखंड,] मध्य प्रदे श और 2[ओ�डशा] राज्य� म� जनजा�तय� के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ह� अनस ु ू�चत जा�तय� और �पछड़े वग� के कल्याण का या �कसी अन्य कायर् का भी भारसाधक हो सकेगा । [(1क) �कसी राज्य क� मं�त्र-प�रषद् म� मुख्यमंत्री स�हत मं�त्रय� क� कुल संख्या उस राज्य क� �वधान सभा के सदस्य� क� कुल संख्या के पंद्रह प्र�तशत से अ�धक नह�ं होगी : 3 परं तु �कसी राज्य म� मुख्यमंत्री स�हत मं�त्रय� क� संख्या बारह से कम नह�ं होगी : परं तु यह और �क जहां सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 के प्रारं भ पर �कसी राज्य क� मं�त्र-प�रषद् म� मुख्यमंत्री स�हत मं�त्रय� क� कुल संख्या, यथािस्थ�त, उक्त पंद्रह प्र�तशत या पहले परं तुक म� �व�न�दर्ष्ट संख्या से अ�धक है वहां उस राज्य म� मं�त्रय� क� कुल संख्या ऐसी तार�ख 4 से, जो राष्ट्रप�त लोक अ�धसूचना द्वारा �नयत करे , छह मास के भीतर इस खंड के उपबंध� के अनरू ु प लाई जाएगी । 7 (1ख) �कसी राजनी�तक दल का �कसी राज्य क� �वधान सभा का या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का िजसम� �वधान प�रषद् है, कोई सदस्य जो दसवीं अनस ु ूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त है, अपनी �नरहर्ता क� तार�ख से प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख तक िजसको ऐसे सदस्य के रूप म� उसक� पदाव�ध समाप्त होगी या जहां वह, ऐसी अव�ध क� समािप्त के पव ू ,र् यथािस्थ�त, �कसी राज्य क� �वधान सभा के �लए या �वधान प�रषद् वाले �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन के �लए कोई �नवार्चन लड़ता है उस तार�ख तक िजसको र् र हो, क� अव�ध के दौरान, वह �नवार्�चत घो�षत �कया जाता है, इनम� से जो भी पव ू त खंड (1) के अधीन मंत्री के रूप म� �नयक् ु त �कए जाने के �लए भी �नर�हर्त होगा ।] (2) मं�त्र-प�रषद् राज्य क� �वधान सभा के प्र�त सामू�हक रूप से उ�रदायी होगी । (3) �कसी मंत्री द्वारा अपना पदग्रहण करने से पहले, राज्यपाल तीसर� अनस ु च ू ी म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप� के अनस ु ार उसको पद क� और गोपनीयता क� शपथ �दलाएगा । 1. सं�वधान (चौरानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2006 क� धारा 2 द्वारा (12-6-2006 से) “�बहार” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2 उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 (2011 का 15) क� धारा 4 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत । 4. दे �खए अ�धसूचना सं. का.आ. 21(अ), तार�ख 7-1-2004 । 74 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) (4) कोई मंत्री, जो �नरं तर छह मास क� �कसी अव�ध तक राज्य के �वधान-मंडल का सदस्य नह�ं है, उस अव�ध क� समािप्त पर मंत्री नह�ं रहेगा । (5) मं�त्रय� के वेतन और भ�े ऐसे ह�गे जो उस राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, समय-समय पर अवधा�रत करे और जब तक उस राज्य का �वधान-मंडल इस प्रकार अवधा�रत नह�ं करता है तब तक ऐसे ह�गे जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� । राज्य का महा�धवक्ता 165. राज्य का महा�धवक्ता–(1) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश �नयक् ु त होने के �लए अ�हर्त �कसी व्यिक्त को राज्य का महा�धवक्ता �नयक् ु त करे गा । (2) महा�धवक्ता का यह कतर्व्य होगा �क वह उस राज्य क� सरकार को �व�ध संबध ं ी ऐसे �वषय� पर सलाह दे और �व�धक स्वरूप के ऐसे अन्य कतर्व्य� का पालन करे जो राज्यपाल उसको समय-समय पर �नद� �शत करे या स�पे और उन कृत्य� का �नवर्हन करे जो उसको इस सं�वधान अथवा तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध द्वारा या उसके अधीन प्रदान �कए गए ह� । (3) महा�धवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपय�त पा�रश्र�मक प्राप्त करे गा जो राज्यपाल अवधा�रत करे । पद धारण करे गा और ऐसा सरकार� कायर् का संचालन 166. राज्य क� सरकार के कायर् का संचालन–(1) �कसी राज्य क� सरकार क� समस्त कायर्पा�लका कारर्वाई राज्यपाल के नाम से क� हुई कह� जाएगी । (2) राज्यपाल के नाम से �कए गए और �नष्पा�दत आदे श� और अन्य �लखत� को ऐसी र��त से अ�धप्रमा�णत �कया जाएगा जो राज्यपाल द्वारा बनाए जाने वाले �नयम� म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए और इस प्रकार अ�धप्रमा�णत आदे श या �लखत क� �व�धमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी �क वह राज्यपाल द्वारा �कया गया या �नष्पा�दत आदे श या �लखत नह�ं है । (3) राज्यपाल, राज्य क� सरकार का कायर् अ�धक सु�वधापव र् �कए जाने के �लए ू क और जहां तक वह कायर् ऐसा कायर् नह�ं है िजसके �वषय म� इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपे��त है �क वह अपने �ववेकानस ु ार कायर् करे वहां तक मं�त्रय� म� उक्त कायर् के आबंटन के �लए �नयम बनाएगा । 8 (4)* 1 * * * 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 28 द्वारा (3-1-1977 से) और उसका सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 23 द्वारा (20-6-1979 से) अन्तःस्था�पत । भारत का सं�वधान 75 (भाग 6—राज्य) 167. राज्यपाल को जानकार� दे ने आ�द के संबध ं म� मुख्यमंत्री के कतर्व्य–प्रत्येक राज्य के मख् ु यमंत्री का यह कतर्व्य होगा �क वह– (क) राज्य के काय� के प्रशासन संबध ं ी और �वधान �वषयक प्रस्थापनाओं संबध ं ी मं�त्र-प�रषद् के सभी �व�नश्चय राज्यपाल को संस�ू चत करे ; (ख) राज्य के काय� के प्रशासन संबध ं ी और �वधान �वषयक प्रस्थापनाओं संबध ं ी जो जानकार� राज्यपाल मांगे, वह दे ; और (ग) �कसी �वषय को िजस पर �कसी मंत्री ने �व�नश्चय कर �दया है �कं तु मं�त्र-प�रषद् ने �वचार नह�ं �कया है, राज्यपाल द्वारा अपे�ा �कए जाने पर प�रषद् के सम� �वचार के �लए रखे । अध्याय 3–राज्य का �वधान-मंडल साधारण 168. राज्य� के �वधान-मंडल� का गठन–(1) प्रत्येक राज्य के �लए एक �वधानमंडल होगा जो राज्यपाल और– (क) 1*** 2[आंध्र प्रदे श], �बहार, 3*** 4[मध्य प्रदे श,] 5*** 6[महाराष्ट्र], 7 [कनार्टक] 8*** 9[ 10[त�मलनाडु, तेलग ं ाना]] 11[और उ�र प्रदे श] राज्य� म� दो सदन� से ; 17 1. “आंध्र प्रदे श” शब्द� का आंध्र प्रदे श �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1985 (1985 का 34) क� धारा 4 द्वारा (1-6-1985 से) लोप �कया गया । 2. आंध्र प्रदे श �वधान प�रषद् अ�ध�नयम, 2005 (2006 का 1) क� धारा 3 द्वारा (30-3-2007 से) अंतःस्था�पत । 3. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई” शब्द का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत क� जानी है) अंतःस्था�पत । 5. त�मलनाडु �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 40) क� धारा 4 द्वारा (1-11-1986 से) “त�मलनाडु ” शब्द का लोप �कया गया । 6. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 20 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत । 7. मैसूर राज्य (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) “मैसूर” के स्थान पर प्र�तस्था�पत, िजसे सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8(1) द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत �कया गया था । 8. पंजाब �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 46) क� धारा 4 द्वारा (7-1-1970 से) “पंजाब” शब्द का लोप �कया गया । 9. त�मलनाडु �वधान प�रषद् अ�ध�नयम, 2010 (2010 का 16) क� धारा 3 द्वारा (अ�धसूचना क� तार�ख से) अंतःस्था�पत । 10. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 96 द्वारा (1-6-2014 से) "त�मलनाडु " के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 11. बंगाल �वधान प�रषद् (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 20) क� धारा 4 द्वारा (1-8-1969 से) “उ�र प्रदे श और पिश्चमी बंगाल” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 76 (भाग 6—राज्य) (ख) अन्य राज्य� म� एक सदन से, �मलकर बनेगा । (2) जहां �कसी राज्य के �वधान-मंडल के दो सदन ह� वहां एक का नाम �वधान प�रषद् और दस ू रे का नाम �वधान सभा होगा और जहां केवल एक सदन है वहां उसका नाम �वधान सभा होगा । 169. राज्य� म� �वधान प�रषद� का उत्सादन या सज ु छे द 168 म� ृ न–(1) अनच् �कसी बात के होते हुए भी, संसद् �व�ध द्वारा �कसी �वधान प�रषद् वाले राज्य म� �वधान प�रषद् के उत्सादन के �लए या ऐसे राज्य म� , िजसम� �वधान प�रषद् नह�ं है, �वधान प�रषद् के सज ृ न के �लए उपबंध कर सकेगी, य�द उस राज्य क� �वधान सभा ने इस आशय का संकल्प �वधान सभा क� कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� क� संख्या के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा पा�रत कर �दया है । (2) खंड (1) म� �व�न�दर्ष्ट �कसी �व�ध म� इस सं�वधान के संशोधन के �लए ऐसे उपबंध अंत�वर्ष्ट ह�गे जो उस �व�ध के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए आवश्यक ह� तथा ऐसे अनप ु रू क, आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध भी अंत�वर्ष्ट हो सक�गे िजन्ह� संसद् आवश्यक समझे । (3) पव ू �क्त प्रकार क� कोई �व�ध अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी । 1 [170. �वधान सभाओं क� संरचना–(1) अनच् ु छे द 333 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा उस राज्य म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन ु े हुए पांच सौ से अन�धक और साठ से अन्यन ू , सदस्य� से �मलकर बनेगी । (2) खंड (1) के प्रयोजन� के �लए, प्रत्येक राज्य को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� ऐसी र��त से �वभािजत �कया जाएगा �क प्रत्येक �नवार्चन-�ेत्र क� जनसंख्या का उसको आबं�टत स्थान� क� संख्या से अनप ु ात समस्त राज्य म� यथासाध्य एक ह� हो । [स्पष्ट�करण–इस खंड म� “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव र् त� जनगणना म� ू व अ�भ�निश्चत क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस ं त आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� : ु ग 2 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 9 द्वारा (1-11-1956 से) “अनुच्छे द 170” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) स्पष्ट�करण के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 77 (भाग 6—राज्य) परं तु इस स्पष्ट�करण म� अं�तम पव र् त� जनगणना के प्र�त िजसके सुसंगत ू व आंकड़े प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 1[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह 2 [2001] क� जनगणना के प्र�त�नद� श है ।] (3) प्रत्येक जनगणना क� समािप्त पर प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभाजन का ऐसे प्रा�धकार� द्वारा और ऐसी र��त से पन ु ःसमायोजन �कया जाएगा जो संसद् �व�ध द्वारा अवधा�रत करे : परं तु ऐसे पन ु : समायोजन से �वधान सभा म� प्र�त�न�धत्व पद पर तब तक कोई प्रभाव नह�ं पड़ेगा जब तक उस समय �वद्यमान �वधान सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है : 3 [परं तु यह और �क ऐसा पुन: समायोजन उस तार�ख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे और ऐसे पन ु : समायोजन के प्रभावी होने तक �वधान सभा के �लए कोई �नवार्चन उन प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पन ु : समायोजन के पहले �वद्यमान ह� : परं तु यह और भी �क जब तक सन ् 1[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� जनगणना के सुसग ं त आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह� तब तक 4[इस खंड के अधीन,– (i) प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा म� 1971 क� जनगणना के आधार पर पन ु : समायोिजत स्थान� क� कुल संख्या का ; और (ii) ऐसे राज्य के प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभाजन का, जो 2[2001] क� जनगणना के आधार पर पन ु : समायोिजत �कए जाएं, पन ु : समायोजन आवश्यक नह�ं होगा ।] 171. �वधान प�रषद� क� संरचना–(1) �वधान प�रषद् वाले राज्य क� �वधान प�रषद् के सदस्य� क� कुल संख्या उस राज्य क� �वधान सभा के सदस्य� क� कुल संख्या के 5[एक-�तहाई] से अ�धक नह�ं होगी : 1. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 4 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) मूल अंक "1971 के स्थान पर "1991"" अंक प्र�तस्था�पत �कए गए थे । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 29 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 5 द्वारा (21-2-2002 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 10 द्वारा (1-11-1956 से) “एक चौथाई” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 78 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) परं तु �कसी राज्य क� �वधान प�रषद् के सदस्य� क� कुल संख्या �कसी भी दशा म� चाल�स से कम नह�ं होगी । (2) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक �कसी राज्य क� �वधान प�रषद् क� संरचना खंड (3) म� उपबं�धत र��त से होगी । (3) �कसी राज्य क� �वधान प�रषद् के सदस्य� क� कुल संख्या का– (क) यथाशक्य �नकटतम एक-�तहाई भाग उस राज्य क� नगरपा�लकाओं, िजला बोड� और अन्य ऐसे स्थानीय प्रा�धका�रय� के, जो संसद् �व�ध द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे , सदस्य� से �मलकर बनने वाले �नवार्चक-मंडल� द्वारा �नवार्�चत होगा ; (ख) यथाशक्य �नकटतम बारहवां भाग उस राज्य म� �नवास करने वाले ऐसे व्यिक्तय� से �मलकर बनने वाले �नवार्चक-मंडल� द्वारा �नवार्�चत होगा, जो भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वश्व�वद्यालय के कम से कम तीन वषर् से स्नातक ह� या िजनके पास कम से कम तीन वषर् से ऐसी अहर्ताएं ह� जो संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध या उसके अधीन ऐसे �कसी �वश्व�वद्यालय के स्नातक क� अहर्ताओं के समतुल्य �व�हत क� गई ह� ; (ग) यथाशक्य �नकटतम बारहवां भाग ऐसे व्यिक्तय� वाले �नवार्चक-मंडल� द्वारा �नवार्�चत होगा जो राज्य के पाठशालाओं से अ�नम्न स्तर क� ऐसी �श�ा संस्थाओं म� , जो गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत क� जाएं, पढ़ाने कम तीन वषर् से लगे हुए ह� ; से �मलकर बनने भीतर माध्य�मक संसद् द्वारा बनाई के काम म� कम से (घ) यथाशक्य �नकटतम एक-�तहाई भाग राज्य क� �वधान सभा के सदस्य� द्वारा ऐसे व्यिक्तय� म� से �नवार्�चत होगा जो �वधान सभा के सदस्य नह�ं ह� ; (ङ) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खंड (5) के उपबंध� के अनस ु ार नाम�नद� �शत �कए जाएंगे । (4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग) के अधीन �नवार्�चत होने वाले सदस्य ऐसे प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� चन ु े जाएंगे, जो संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत �कए जाएं तथा उक्त उपखंड� के और उक्त खंड के उपखंड (घ) के अधीन �नवार्चन आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा ह�गे । (5) राज्यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ङ) के अधीन नाम�नद� �शत �कए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यिक्त ह�गे िजन्ह� �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� �वशेष �ान या व्यावहा�रक अनभ ु व है, अथार्त ् :– भारत का सं�वधान 79 (भाग 6—राज्य) सा�हत्य, �व�ान, कला, सहकार� आंदोलन और समाज सेवा । 172. राज्य� के �वधान-मंडल� क� अव�ध–(1) प्रत्येक राज्य क� प्रत्येक �वधान सभा, य�द पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, अपने प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से 1[पांच वषर्] तक बनी रहे गी, इससे अ�धक नह�ं और 1[पांच वषर्] क� उक्त अव�ध क� समािप्त का प�रणाम �वधान सभा का �वघटन होगा : परं तु उक्त अव�ध को, जब आपात ् क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, तब संसद् �व�ध द्वारा, ऐसी अव�ध के �लए बढ़ा सकेगी, जो एक बार म� एक वषर् से अ�धक नह�ं होगी और उद्घोषणा के प्रवतर्न म� न रह जाने के पश्चात ् �कसी भी दशा म� उसका �वस्तार छह मास क� अव�ध से अ�धक नह�ं होगा । (2) राज्य क� �वधान प�रषद् का �वघटन नह�ं होगा, �कं तु उसके सदस्य� म� से यथासंभव �नकटतम एक-�तहाई सदस्य संसद् द्वारा �व�ध द्वारा इस �न�म� बनाए गए उपबंध� के अनस ु ार, प्रत्येक द्�वतीय वषर् क� समािप्त पर यथाशक्य शीघ्र �नव� ृ हो जाएंगे । 173. राज्य के �वधान-मंडल क� सदस्यता के �लए अहर्ता–कोई व्यिक्त �कसी राज्य म� �वधान-मंडल के �कसी स्थान को भरने के �लए चन ु े जाने के �लए अ�हर्त तभी होगा जब– 2 [(क) वह भारत का नाग�रक है और �नवार्चन आयोग द्वारा इस �न�म� प्रा�धकृत �कसी व्यिक्त के सम� तीसर� अनस ु च ू ी म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ार शपथ ले त ा है या प्र�त�ान करता है और उस पर अपने हस्ता�र ु करता है ;] (ख) वह �वधान सभा के स्थान के �लए कम से कम पच्चीस वषर् क� आयु का और �वधान प�रषद् के स्थान के �लए कम से कम तीस वषर् क� आयु का है ; और (ग) उसके पास ऐसी अन्य अहर्ताएं ह� जो इस �न�म� संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन �व�हत क� जाएं । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 30 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 24 द्वारा (6-9-1979 से) “छह वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 4 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (क) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 80 (भाग 6—राज्य) 1 [174. राज्य के �वधान-मंडल के सत्र, सत्रावसान और �वघटन–(1) राज्यपाल, समय-समय पर, राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठ�क समझे, अ�धवेशन के �लए आहूत करे गा, �कं तु उसके एक सत्र क� अं�तम बैठक और आगामी सत्र क� प्रथम बैठक के �लए �नयत तार�ख के बीच छह मास का अंतर नह�ं होगा । (2) राज्यपाल, समय-समय पर,– (क) सदन का या �कसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा ; (ख) �वधान सभा का �वघटन कर सकेगा ।] 175. सदन या सदन� म� अ�भभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अ�धकार–(1) राज्यपाल, �वधान सभा म� या �वधान प�रषद् वाले राज्य क� दशा म� उस राज्य के �वधान-मंडल के �कसी एक सदन म� या एक साथ समवेत दोन� सदन� म� , अ�भभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के �लए सदस्य� क� उपिस्थ�त क� अपे�ा कर सकेगा । (2) राज्यपाल, राज्य के �वधान-मंडल म� उस समय लं�बत �कसी �वधेयक के संबध ं म� संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� को भेज सकेगा और िजस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा �वचार करने के �लए अपे��त �वषय पर सु�वधानस ु ार शीघ्रता से �वचार करे गा । 176. राज्यपाल का �वशेष अ�भभाषण–(1) राज्यपाल, 2[�वधान सभा के �लए प्रत्येक साधारण �नवार्चन के पश्चात ् प्रथम सत्र के आरं भ म� ] और प्रत्येक वषर् के प्रथम सत्र के आरं भ म� �वधान सभा म� या �वधान प�रषद् वाले राज्य क� दशा म� एक साथ समवेत दोन� सदन� म� अ�भभाषण करे गा और �वधान-मंडल को उसके आह्वान के कारण बताएगा । (2) सदन या प्रत्येक सदन क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� द्वारा ऐसे अ�भभाषण म� �न�दर्ष्ट �वषय� क� चचार् के �लए समय �नयत करने के �लए 3*** उपबंध �कया जाएगा । 177. सदन� के बारे म� मं�त्रय� और महा�धवक्ता के अ�धकार–प्रत्येक मंत्री और राज्य के महा�धवक्ता को यह अ�धकार होगा �क वह उस राज्य क� �वधान सभा म� या �वधान प�रषद् वाले राज्य क� दशा म� दोन� सदन� म� बोले और उनक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग ले और �वधान-मंडल क� �कसी स�म�त म� , िजसम� उसका नाम सदस्य के रूप म� �दया गया है, बोले और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग ले, �कन्तु इस अनच् ु छे द के आधार पर वह मत दे ने का हकदार नह�ं होगा । 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 8 द्वारा (18-6-1951 से) “अनुच्छे द 174” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 9 द्वारा (18-6-1951 से) “प्रत्येक सत्र” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 9 द्वारा (18-6-1951 से) “तथा सदन के अन्य कायर् पर इस चचार् को अग्रता दे ने के �लए” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 81 (भाग 6—राज्य) राज्य के �वधान-मंडल के अ�धकार� 178. �वधान सभा का अध्य� और उपाध्य�–प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्य� को अपना अध्य� और उपाध्य� चन े ी और जब-जब ु ग अध्य� या उपाध्य� का पद �रक्त होता है तब-तब �वधान सभा �कसी अन्य सदस्य को, यथािस्थ�त, अध्य� या उपाध्य� चन ु ेगी । 179. अध्य� और उपाध्य� का पद �रक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना–�वधान सभा के अध्य� या उपाध्य� के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य– दे गा ; (क) य�द �वधान सभा का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �रक्त कर (ख) �कसी भी समय, य�द वह सदस्य अध्य� है तो उपाध्य� को संबो�धत और य�द वह सदस्य उपाध्य� है तो अध्य� को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और (ग) �वधान सभा के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा : परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सूचना न दे द� गई हो : परं तु यह और �क जब कभी �वधान सभा का �वघटन �कया जाता है तो �वघटन के पश्चात ् होने वाले �वधान सभा के प्रथम अ�धवेशन के ठ�क पहले तक अध्य� अपने पद को �रक्त नह�ं करे गा । 180. अध्य� के पद के कतर्व्य� का पालन करने या अध्य� के रूप म� कायर् करने क� उपाध्य� या अन्य व्यिक्त क� शिक्त–(1) जब अध्य� का पद �रक्त है तो उपाध्य�, या य�द उपाध्य� का पद भी �रक्त है तो �वधान सभा का ऐसा सदस्य, िजसको राज्यपाल इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा । (2) �वधान सभा क� �कसी बैठक से अध्य� क� अनप ु िस्थ�त म� उपाध्य�, या य�द वह भी अनप ु िस्थत है तो ऐसा व्यिक्त, जो �वधान सभा क� प्र�क्रया के �नयम� द्वारा अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्यिक्त उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य व्यिक्त, जो �वधान सभा द्वारा अवधा�रत �कया जाए, अध्य� के रूप म� कायर् करे गा । 181. जब अध्य� या उपाध्य� को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना–(1) �वधान सभा क� �कसी बैठक म� , जब अध्य� को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब अध्य�, या जब उपाध्य� को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपाध्य�, उपिस्थत रहने पर भी, पीठासीन नह�ं होगा और अनच् ं म� वैसे ु छे द 180 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबध ह� लागू ह�गे जैसे वह उस बैठक के संबध ं म� लागू होते ह� िजससे, यथािस्थ�त, अध्य� या उपाध्य� अनप ु िस्थत है । भारत का सं�वधान 82 (भाग 6—राज्य) (2) जब अध्य� को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वधान सभा म� �वचाराधीन है तब उसको �वधान सभा म� बोलने और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का अ�धकार होगा और वह अनच् ु छे द 189 म� �कसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कायर्वा�हय� के दौरान �कसी अन्य �वषय पर प्रथमत: ह� मत दे ने का हकदार होगा �कं तु मत बराबर होने क� दशा म� मत दे ने का हकदार नह�ं होगा । 182. �वधान प�रषद् का सभाप�त और उपसभाप�त–�वधान प�रषद् वाले प्रत्येक राज्य क� �वधान प�रषद्, यथाशीघ्र, अपने दो सदस्य� को अपना सभाप�त और उपसभाप�त चन े ी और जब-जब सभाप�त या उपसभाप�त का पद �रक्त होता है तब-तब ु ग प�रषद् �कसी अन्य सदस्य को, यथािस्थ�त, सभाप�त या उपसभाप�त चन े ी । ु ग 183. सभाप�त और उपसभाप�त का पद �रक्त होना, पदत्याग और पद से हटाया जाना–�वधान प�रषद् के सभाप�त या उपसभाप�त के रूप म� पद धारण करने वाला सदस्य– दे गा ; (क) य�द �वधान प�रषद् का सदस्य नह�ं रहता है तो अपना पद �रक्त कर (ख) �कसी भी समय, य�द वह सदस्य सभाप�त है तो उपसभाप�त को संबो�धत और य�द वह सदस्य उपसभाप�त है तो सभाप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; और (ग) �वधान प�रषद् के तत्काल�न समस्त सदस्य� के बहुमत से पा�रत संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा : परं तु खंड (ग) के प्रयोजन के �लए कोई संकल्प तब तक प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा जब तक �क उस संकल्प को प्रस्ता�वत करने के आशय क� कम से कम चौदह �दन क� सूचना न दे द� गई हो । 184. सभाप�त के पद के कतर्व्य� का पालन करने या सभाप�त के रूप म� कायर् करने क� उपसभाप�त या अन्य व्यिक्त क� शिक्त–(1) जब सभाप�त का पद �रक्त है तब उपसभाप�त, य�द उपसभाप�त का पद भी �रक्त है तो �वधान प�रषद् का ऐसा सदस्य, िजसको राज्यपाल इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा । (2) �वधान प�रषद् क� �कसी बैठक से सभाप�त क� अनप ु िस्थ�त म� उपसभाप�त, या य�द वह भी अनप िस्थत है तो ऐसा व्यिक्त, जो �वधान प�रषद् क� प्र�क्रया के �नयम� ु द्वारा अवधा�रत �कया जाए, या य�द ऐसा कोई व्यिक्त उपिस्थत नह�ं है तो ऐसा अन्य व्यिक्त, जो �वधान प�रषद् द्वारा अवधा�रत �कया जाए, सभाप�त के रूप म� कायर् करे गा । भारत का सं�वधान 83 (भाग 6—राज्य) 185. जब सभाप�त या उपसभाप�त को पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना–(1) �वधान प�रषद् क� �कसी बैठक म� , जब सभाप�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब सभाप�त, या जब उपसभाप�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वचाराधीन है तब उपसभाप�त, उपिस्थत रहने पर भी पीठासीन नह�ं होगा और अनच् ु छे द 184 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे उस बैठक के संबध ं म� लागू होते ह� िजससे, यथािस्थ�त, सभाप�त या उपसभाप�त अनप ु िस्थत है । (2) जब सभाप�त को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प �वधान प�रषद् म� �वचाराधीन है तब उसको �वधान प�रषद् म� बोलने और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का अ�धकार होगा और वह अनच् ु छे द 189 म� �कसी बात के होते हुए भी, ऐसे संकल्प पर या ऐसी कायर्वा�हय� के दौरान �कसी अन्य �वषय पर प्रथमत: ह� मत दे ने का हकदार होगा �कं तु मत बराबर होने क� दशा म� मत दे ने का हकदार नह�ं होगा । 186. अध्य� और उपाध्य� तथा सभाप�त और उपसभाप�त के वेतन और भ�े– �वधान सभा के अध्य� और उपाध्य� को तथा �वधान प�रषद् के सभाप�त और उपसभाप�त को, ऐसे वेतन और भ�� का जो राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, �नयत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भ�� का जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, संदाय �कया जाएगा । 187. राज्य के �वधान-मंडल का स�चवालय–(1) राज्य के �वधान-मंडल के सदन का या प्रत्येक सदन का पथ ृ क् स�चवीय कमर्चा�रवन्ृ द होगा : परं तु �वधान प�रषद् वाले राज्य के �वधान-मंडल क� दशा म� , इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसे �वधान-मंडल के दोन� सदन� के �लए सिम्म�लत पद� के सज ृ न को �नवा�रत करती है । (2) राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� के स�चवीय कमर्चा�रवद ंृ म� भत� का और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन कर सकेगा । (3) जब तक राज्य का �वधान-मंडल खंड (2) के अधीन उपबंध नह�ं करता है तब तक राज्यपाल, यथािस्थ�त, �वधान सभा के अध्य� या �वधान प�रषद् के सभाप�त से परामशर् करने के पश्चात ् �वधान सभा के या �वधान प�रषद् के स�चवीय कमर्चा�रवद ंृ म� भत� के और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए �नयम उक्त खंड के अधीन बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, प्रभावी ह�गे । भारत का सं�वधान 84 (भाग 6—राज्य) कायर् संचालन 188. सदस्य� द्वारा शपथ या प्र�त�ान–राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल या उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त व्यिक्त के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा । 189. सदन� म� मतदान, �रिक्तय� के होते हुए भी सदन� क� कायर् करने क� शिक्त और गणप�ू तर्–(1) इस सं�वधान म� यथा अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� बैठक म� सभी प्रश्न� का अवधारण, अध्य� या सभाप�त को अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्यिक्त को छोड़कर, उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� के बहुमत से �कया जाएगा । अध्य� या सभाप�त, अथवा उस रूप म� कायर् करने वाला व्यिक्त प्रथमत: मत नह�ं दे गा, �कं तु मत बराबर होने क� दशा म� उसका �नणार्यक मत होगा और वह उसका प्रयोग करे गा । (2) राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� सदस्यता म� कोई �रिक्त होने पर भी, उस सदन को कायर् करने क� शिक्त होगी और य�द बाद म� यह पता चलता है �क कोई व्यिक्त, जो ऐसा करने का हकदार नह�ं था, कायर्वा�हय� म� उपिस्थत रहा है या उसने मत �दया है या अन्यथा भाग �लया है तो भी राज्य के �वधान-मंडल क� कायर्वाह� �व�धमान्य होगी । 1 [(3) जब तक राज्य का �वधान-मंडल �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का अ�धवेशन ग�ठत करने के �लए गणप�ू तर् दस सदस्य या सदन के सदस्य� क� कुल संख्या का दसवां भाग, इसम� से जो भी अ�धक हो, होगी । (4) य�द राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् के अ�धवेशन म� �कसी समय गणप�ू तर् नह�ं है तो अध्य� या सभाप�त अथवा उस रूप म� कायर् करने वाले व्यिक्त का यह कतर्व्य होगा �क वह सदन को स्थ�गत कर दे या अ�धवेशन को तब तक के �लए �नलं�बत कर दे जब तक गणप�ू तर् नह�ं हो जाती है ।] सदस्य� क� �नरहर्ताएं 190. स्थान� का �रक्त होना–(1) कोई व्यिक्त राज्य के �वधान-मंडल के दोन� सदन� का सदस्य नह�ं होगा और जो व्यिक्त दोन� सदन� का सदस्य चन ु �लया जाता है उसके एक या दस ू रे सदन के स्थान को �रक्त करने के �लए उस राज्य का �वधान-मंडल �व�ध द्वारा उपबंध करे गा । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 31 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया । भारत का सं�वधान 85 (भाग 6—राज्य) (2) कोई व्यिक्त पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट दो या अ�धक राज्य� के �वधानमंडल� का सदस्य नह�ं होगा और य�द कोई व्यिक्त दो या अ�धक ऐसे राज्य� के �वधानमंडल� का सदस्य चन ु �लया जाता है तो ऐसी अव�ध क� समािप्त के पश्चात ् जो राष्ट्रप�त द्वारा बनाए गए �नयम� 1 म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, ऐसे सभी राज्य� के �वधानमंडल� म� ऐसे व्यिक्त का स्थान �रक्त हो जाएगा य�द उसने एक राज्य को छोड़कर अन्य राज्य� के �वधान-मंडल� म� अपने स्थान को पहले ह� नह�ं त्याग �दया है । 33 (3) य�द राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य– (क) 2[अनच् ु छे द 191 के खंड (2)] म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो जाता है, या [(ख) यथािस्थ�त, अध्य� या सभाप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपने स्थान का त्याग कर दे ता है और उसका त्यागपत्र, यथािस्थ�त, अध्य� या सभाप�त द्वारा स्वीकार कर �लया जाता है,] 3 तो ऐसा होने पर उसका स्थान �रक्त हो जाएगा : [परं तु उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट त्यागपत्र क� दशा म� , य�द प्राप्त जानकार� से या अन्यथा और ऐसी जांच करने के पश्चात ्, जो वह ठ�क समझे, यथािस्थ�त, अध्य� या सभाप�त का यह समाधान हो जाता है �क ऐसा त्यागपत्र स्वैिच्छक या असल� नह�ं है तो वह ऐसे त्यागपत्र को स्वीकार नह�ं करे गा ।] 4 (4) य�द �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का सदस्य साठ �दन क� अव�ध तक सदन क� अन� ु ा के �बना उसके सभी अ�धवेशन� से अनप ु िस्थत रहता है तो सदन उसके स्थान को �रक्त घो�षत कर सकेगा : परं तु साठ �दन क� उक्त अव�ध क� संगणना करने म� �कसी ऐसी अव�ध को �हसाब म� नह�ं �लया जाएगा िजसके दौरान सदन सत्राव�सत या �नरं तर चार से अ�धक �दन� के �लए स्थ�गत रहता है । 191. सदस्यता के �लए �नरहर्ताएं–(1) कोई व्यिक्त �कसी राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् का सदस्य चन ु े जाने के �लए और सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा– 1. दे �खए �व�ध मंत्रालय क� अ�धसूचना सं0 एफ0 46/50-सी, �दनांक 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, प0ृ 678 म� प्रका�शत समसाम�यक सदस्यता प्र�तषेध �नयम, 1950 । 2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 4 द्वारा (1-3-1985 से) “अनुच्छे द 191 के खंड (1)” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (त�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 3 द्वारा (19-5-1974 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 86 (भाग 6—राज्य) 1 [(क) य�द वह भारत सरकार के या पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य क� सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर िजसको धारण करने वाले का �नर�हर्त न होना राज्य के �वधान-मंडल ने �व�ध द्वारा घो�षत �कया है, कोई लाभ का पद धारण करता है ;] (ख) य�द वह �वकृत�च� है और स�म न्यायालय क� ऐसी घोषणा �वद्यमान है ; (ग) य�द वह अनन् ु मो�चत �दवा�लया है ; (घ) य�द वह भारत का नाग�रक नह�ं है या उसने �कसी �वदे शी राज्य क� नाग�रकता स्वेच्छा से अिजर्त कर ल� है या वह �कसी �वदे शी राज्य के प्र�त �नष्ठा या अनष ु िक्त को अ�भस्वीकार �कए हुए है ; (ङ) य�द वह संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है । 2 [स्पष्ट�करण–इस खंड के प्रयोजन� के �लए,] कोई व्यिक्त केवल इस कारण भारत सरकार के या पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य क� सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नह�ं समझा जाएगा �क वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है । 3 [(2) कोई व्यिक्त �कसी राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा य�द वह दसवीं अनस ु ूची के अधीन इस प्रकार �नर�हर्त हो जाता है ।] 4 [192. सदस्य� क� �नरहर्ताओं से संब�ं धत प्रश्न� पर �व�नश्चय–(1) य�द यह प्रश्न उठता है �क �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन का कोई सदस्य अनच् ु छे द 191 के खंड (1) म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्रश्न राज्यपाल को �व�नश्चय के �लए �नद� �शत �कया जाएगा और उसका �व�नश्चय अं�तम होगा । (2) ऐसे �कसी प्रश्न पर �व�नश्चय करने से पहले राज्यपाल �नवार्चन आयोग क� राय लेगा और ऐसी राय के अनस ु ार कायर् करे गा ।] 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 32 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) इस प्रकार पढ़े जाने के �लए प्र�तस्था�पत �कया गया : "(क) य�द वह भारत सरकार के या पहल� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट �कसी राज्य सरकार के अधीन कोई ऐसा लाभ का पद धारण करता है, िजसे संसद् ने �व�ध द्वारा उसके धारक को �नर�हर्त घो�षत �कया है ।"। इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया । 2. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) “(2) इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के �लए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 33 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 25 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द 192 प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 87 (भाग 6—राज्य) 193. अनच् ु छे द 188 के अधीन शपथ लेने या प्र�त�ान करने से पहले या अ�हर्त न होते हुए या �नर�हर्त �कए जाने पर बैठने और मत दे ने के �लए शािस्त–य�द �कसी राज्य क� �वधान सभा या �वधान प�रषद् म� कोई व्यिक्त अनच् ु छे द 188 क� अपे�ाओं का अनप ु ालन करने से पहले, या यह जानते हुए �क म� उसक� सदस्यता के �लए अ�हर्त नह�ं हूं या �नर�हर्त कर �दया गया हूं या संसद् या राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� द्वारा ऐसा करने से प्र�त�षद्ध कर �दया गया हूं, सदस्य के रूप म� बैठता है या मत दे ता है तो वह प्रत्येक �दन के �लए जब वह इस प्रकार बैठता है या मत दे ता है, पांच सौ रुपए क� शािस्त का भागी होगा जो राज्य को दे य ऋण के रूप म� वसल ू क� जाएगी । राज्य� के �वधान-मंडल� और उनके सदस्य� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां 194. �वधान-मंडल� के सदन� क� तथा उनके सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार, आ�द–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के और �वधान-मंडल क� प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� और स्थायी आदे श� के अधीन रहते हुए, प्रत्येक राज्य के �वधान-मंडल म� वाक् -स्वातं�य होगा । (2) राज्य के �वधान-मंडल म� या उसक� �कसी स�म�त म� �वधान-मंडल के �कसी सदस्य द्वारा कह� गई �कसी बात या �दए गए �कसी मत के संबध ं म� उसके �वरुद्ध �कसी न्यायालय म� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी और �कसी व्यिक्त के �वरुद्ध ऐसे �वधान-मंडल के �कसी सदन के प्रा�धकार द्वारा या उसके अधीन �कसी प्र�तवेदन पत्र, मत� या कायर्वा�हय� के प्रकाशन के संबध ं म� इस प्रकार क� कोई कायर्वाह� नह�ं क� जाएगी । [(3) अन्य बात� म� राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� और ऐसे �वधानमंडल के �कसी सदन के सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां ऐसी ह�गी जो वह �वधान-मंडल, समय-समय पर, �व�ध द्वारा प�र�निश्चत करे और जब तक वे इस प्रकार प�र�निश्चत नह�ं क� जाती ह� तब तक 2[वह� ह�गी जो सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 26 के प्रव� ृ होने से ठ�क पहले उस सदन क� और उसके सदस्य� और स�म�तय� क� थीं ।] 1 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) �नम्न�ल�खत रूप म� पढ़े जाने के �लए प्र�तस्था�पत �कया गया :-- "(3) अन्य बात� म� �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� और ऐसे �वधान-मंडल के �कसी सदन के सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां वे ह�गी, जो सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 34 के प्रारं भ पर थी और जो लोक सभा द्वारा ऐसे सदन और उसके सदस्य� और स�म�तय� के �लए व्यक्त क� जाएं, जहां ऐसा सदन �वधान सभा है और राज्य सभा द्वारा ऐसे सदन और उसके सदस्य� और स�म�तय� के �लए व्यक्त क� जाएं, जहां ऐसा सदन �वधान प�रषद् है ।"। इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (19-6-1979 से) लोप कर �दया गया । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 26 द्वारा (20-6-1979 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 88 (भाग 6—राज्य) (4) िजन व्यिक्तय� को इस सं�वधान के आधार पर राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन या उसक� �कसी स�म�त म� बोलने का और उसक� कायर्वा�हय� म� अन्यथा भाग लेने का अ�धकार है, उनके संबध ं म� खंड (1), खंड (2) और खंड (3) के उपबंध उसी प्रकार लागू ह�गे िजस प्रकार वे उस �वधान-मंडल के सदस्य� के संबध ं म� लागू होते ह� । 195. सदस्य� के वेतन और भ�े–राज्य क� �वधान सभा और �वधान प�रषद् के सदस्य ऐसे वेतन और भ�े, िजन्ह� उस राज्य का �वधान-मंडल, समय-समय पर, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस संबध ं म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन और भ�े, ऐसी दर� से और ऐसी शत� पर, जो तत्स्थानी प्रांत क� �वधान सभा के सदस्य� को इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले लागू थीं, प्राप्त करने के हकदार ह�गे । �वधायी प्र�क्रया 196. �वधेयक� के परु ःस्थापन और पा�रत �कए जाने के संबध ं म� उपबंध–(1) धन �वधेयक� और अन्य �व� �वधेयक� के संबध ं म� अनच् ु छे द 198 और अनच् ु छे द 207 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई �वधेयक �वधान प�रषद् वाले राज्य के �वधान-मंडल के �कसी भी सदन म� आरं भ हो सकेगा । (2) अनच् ु छे द 197 और अनच् ु छे द 198 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, कोई �वधेयक �वधान प�रषद् वाले राज्य के �वधान-मंडल के सदन� द्वारा तब तक पा�रत �कया गया नह�ं समझा जाएगा जब तक संशोधन के �बना या केवल ऐसे संशोधन� स�हत, िजन पर दोन� सदन सहमत हो गए ह�, उस पर दोन� सदन सहमत नह�ं हो जाते ह� । (3) �कसी राज्य के �वधान-मंडल म� लं�बत �वधेयक उसके सदन या सदन� के सत्रावसान के कारण व्यपगत नह�ं होगा । (4) �कसी राज्य क� �वधान प�रषद् म� लं�बत �वधेयक, िजसको �वधान सभा ने पा�रत नह�ं �कया है, �वधान सभा के �वघटन पर व्यपगत नह�ं होगा। (5) कोई �वधेयक, जो �कसी राज्य क� �वधान सभा म� लं�बत है या जो �वधान सभा द्वारा पा�रत कर �दया गया है और �वधान प�रषद् म� लं�बत है, �वधान सभा के �वघटन पर व्यपगत हो जाएगा । 197. धन �वधेयक� से �भन्न �वधेयक� के बारे म� �वधान प�रषद् क� शिक्तय� पर �नब�धन–(1) य�द �वधान प�रषद् वाले राज्य क� �वधान सभा द्वारा �कसी �वधेयक के पा�रत �कए जाने और �वधान प�रषद् को पारे �षत �कए जाने के पश्चात ्– (क) �वधान प�रषद् द्वारा �वधेयक अस्वीकार कर �दया जाता है, या (ख) �वधान प�रषद् के सम� �वधेयक रखे जाने क� तार�ख से, उसके द्वारा �वधेयक पा�रत �कए �बना, तीन मास से अ�धक बीत गए ह�, या भारत का सं�वधान 89 (भाग 6—राज्य) (ग) �वधान प�रषद् द्वारा �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत पा�रत �कया जाता है िजनसे �वधान सभा सहमत नह�ं होती है, तो �वधान सभा �वधेयक को, अपनी प्र�क्रया का �व�नयमन करने वाले �नयम� के अधीन रहते हुए, उसी या �कसी पश्चातवत� सत्र म� ऐसे संशोधन� स�हत या उसके �बना, य�द कोई ह�, जो �वधान प�रषद् ने �कए ह�, सझ ु ाए ह� या िजनसे �वधान प�रषद् सहमत है, पन ु ःपा�रत कर सकेगी और तब इस प्रकार पा�रत �वधेयक को �वधान प�रषद् को पारे �षत कर सकेगी । (2) य�द �वधान सभा द्वारा �वधेयक इस प्रकार दब ु ारा पा�रत कर �दए जाने और �वधान प�रषद् को पारे �षत �कए जाने के पश्चात ्– (क) �वधान प�रषद् द्वारा �वधेयक अस्वीकार कर �दया जाता है, या (ख) �वधान प�रषद् के सम� �वधेयक रखे जाने क� तार�ख से, उसके द्वारा �वधेयक पा�रत �कए �बना, एक मास से अ�धक बीत गया है, या (ग) �वधान प�रषद् द्वारा �वधेयक ऐसे संशोधन� स�हत पा�रत �कया जाता है िजनसे �वधान सभा सहमत नह�ं होती है, तो �वधेयक राज्य के �वधान-मंडल के सदन� द्वारा ऐसे संशोधन� स�हत, य�द कोई ह�, जो �वधान प�रषद् ने �कए ह� या सझ ु ाए ह� और िजनसे �वधान सभा सहमत है, उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह �वधान सभा द्वारा दब ु ारा पा�रत �कया गया था । (3) इस अनच् ु छे द क� कोई बात धन �वधेयक को लागू नह�ं होगी । 198. धन �वधेयक� के संबध ं म� �वशेष प्र�क्रया–(1) धन �वधेयक �वधान प�रषद् म� परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा । (2) धन �वधेयक �वधान प�रषद् वाले राज्य क� �वधान सभा द्वारा पा�रत �कए जाने के पश्चात ् �वधान प�रषद् को उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत �कया जाएगा और �वधान प�रषद् �वधेयक क� प्रािप्त क� तार�ख से चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधेयक को अपनी �सफा�रश� स�हत �वधान सभा को लौटा दे गी और ऐसा होने पर �वधान सभा, �वधान प�रषद् क� सभी या �कन्ह�ं �सफा�रश� को स्वीकार या अस्वीकार कर सकेगी । (3) य�द �वधान सभा, �वधान प�रषद् क� �कसी �सफा�रश को स्वीकार कर लेती है तो धन �वधेयक �वधान प�रषद् द्वारा �सफा�रश �कए गए और �वधान सभा द्वारा स्वीकार �कए गए संशोधन� स�हत दोन� सदन� द्वारा पा�रत �कया गया समझा जाएगा । (4) य�द �वधान सभा, �वधान प�रषद् क� �कसी भी �सफा�रश को स्वीकार नह�ं करती है तो धन �वधेयक �वधान प�रषद् द्वारा �सफा�रश �कए गए �कसी संशोधन के �बना, दोन� सदन� द्वारा उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह �वधान सभा द्वारा पा�रत �कया गया था । 90 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) (5) य�द �वधान सभा द्वारा पा�रत और �वधान प�रषद् को उसक� �सफा�रश� के �लए पारे �षत धन �वधेयक उक्त चौदह �दन क� अव�ध के भीतर �वधान सभा को नह�ं लौटाया जाता है तो उक्त अव�ध क� समािप्त पर वह दोन� सदन� द्वारा उस रूप म� पा�रत �कया गया समझा जाएगा िजसम� वह �वधान सभा द्वारा पा�रत �कया गया था । 199. “धन �वधेयक” क� प�रभाषा–(1) इस अध्याय के प्रयोजन� के �लए, कोई �वधेयक धन �वधेयक समझा जाएगा य�द उसम� केवल �नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं �वषय� से संब�ं धत उपबंध ह�, अथार्त ् :– (क) �कसी �व�नयमन ; कर का अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या (ख) राज्य द्वारा धन उधार लेने का या कोई प्रत्याभू�त दे ने का �व�नयमन अथवा राज्य द्वारा अपने ऊपर ल� गई या ल� जाने वाल� �कन्ह�ं �व�ीय बाध्यताओं से संब�ं धत �व�ध का संशोधन ; (ग) राज्य क� सं�चत �न�ध या आकिस्मकता �न�ध क� अ�भर�ा, ऐसी �कसी �न�ध म� धन जमा करना या उसम� से धन �नकालना ; (घ) राज्य क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग ; (ङ) �कसी व्यय को राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय घो�षत करना या ऐसे �कसी व्यय क� रकम को बढ़ाना ; (च) राज्य क� सं�चत �न�ध या राज्य के लोक लेखे मद्धे धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन क� अ�भर�ा या उसका �नगर्मन ; या (छ) उपखंड (क) से उपखंड (च) आनष ु �ं गक कोई �वषय । म� �व�न�दर्ष्ट �कसी �वषय का (2) कोई �वधेयक केवल इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा, �क वह जम ु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के अ�धरोपण का अथवा अन� ु िप्तय� के �लए फ�स� क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क� मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण धन �वधेयक नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है । (3) य�द यह प्रश्न उठता है �क �वधान प�रषद् वाले �कसी राज्य के �वधान-मंडल म� परु ःस्था�पत कोई �वधेयक धन �वधेयक है या नह�ं तो उस पर उस राज्य क� �वधान सभा के अध्य� का �व�नश्चय अं�तम होगा । भारत का सं�वधान 91 (भाग 6—राज्य) (4) जब धन �वधेयक अनच् ु छे द 198 के अधीन �वधान प�रषद् को पारे �षत �कया जाता है और जब वह अनच् ु छे द 200 के अधीन अनम ु �त के �लए राज्यपाल के सम� प्रस्तुत �कया जाता है तब प्रत्येक धन �वधेयक पर �वधान सभा के अध्य� के हस्ता�र स�हत यह प्रमाण पष्ृ ठां�कत �कया जाएगा �क वह धन �वधेयक है । 200. �वधे यक� पर अनुम �त–जब कोई �वधे यक राज्य क� �वधान सभा द्वारा या �वधान प�रषद् वाले राज्य म� �वधान-मंडल के दोन� सदन� द्वारा पा�रत कर �दया गया है तब वह राज्यपाल के सम� प्रस्तुत �कया जाएगा और राज्यपाल घो�षत करे गा �क वह �वधे यक पर अनुम �त दे ता है या अनुम �त रोक लेता है अथवा वह �वधे यक को राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखता है : परं तु राज्यपाल अनुम �त के �लए अपने सम� �वधे यक प्रस्तुत �कए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र उस �वधे यक को, य�द वह धन �वधे यक नह�ं है तो, सदन या सदन� को इस संदेश के साथ लौटा सकेगा �क सदन या दोन� सदन �वधे यक पर या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर् ष्ट उपबंध� पर पुन�वर्चार कर� और �व�शष्टतया �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� के पुरःस्थापन क� वांछनीयता पर �वचार कर� िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �वधे यक इस प्रकार लौटा �दया जाता है तब सदन या दोन� सदन �वधे यक पर तदनुसार पुन�वर्चार कर� गे और य�द �वधे यक सदन या सदन� द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर �दया जाता है और राज्यपाल के सम� अनुम �त के �लए प्रस्तुत �कया जाता है तो राज्यपाल उस पर अनुम �त नह�ं रोकेगा : परं तु यह और �क िजस �वधेयक से, उसके �व�ध बन जाने पर, राज्यपाल क� राय म� उच्च न्यायालय क� शिक्तय� का ऐसा अल्पीकरण होगा �क वह स्थान, िजसक� प�ू तर् के �लए वह न्यायालय इस सं�वधान द्वारा प�रकिल्पत है, संकटापन्न हो जाएगा, उस �वधेयक पर राज्यपाल अनम ु �त नह�ं दे गा, �कं तु उसे राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखेगा । 201. �वचार के �लए आर��त �वधेयक–जब कोई �वधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रख �लया जाता है तब राष्ट्रप�त घो�षत करे गा �क वह �वधेयक पर अनम ु �त रोक लेता है : ु �त दे ता है या अनम परं तु जहां �वधेयक धन �वधेयक नह�ं है वहां राष्ट्रप�त राज्यपाल को यह �नदे श दे सकेगा �क वह �वधेयक को, यथािस्थ�त, राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� को ऐसे संदेश के साथ, जो अनच् ु छे द 200 के पहले परं तुक म� व�णर्त है, लौटा दे और जब कोई �वधेयक इस प्रकार लौटा �दया जाता है तब ऐसा संदेश �मलने क� तार�ख से छह मास क� अव�ध के भीतर सदन या सदन� द्वारा उस पर तदनस ु ार पन ु �वर्चार �कया जाएगा और य�द वह सदन या सदन� द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर �दया जाता है तो उसे राष्ट्रप�त के सम� उसके �वचार के �लए �फर से प्रस्तुत �कया जाएगा । भारत का सं�वधान 92 (भाग 6—राज्य) �व�ीय �वषय� के संबध ं म� प्र�क्रया 202. वा�षर्क �व�ीय �ववरण–(1) राज्यपाल प्रत्येक �व�ीय वषर् के संबध ं म� राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� के सम� उस राज्य क� उस वषर् के �लए प्राक्क�लत प्रािप्तय� और व्यय का �ववरण रखवाएगा िजसे इस भाग म� “वा�षर्क �व�ीय �ववरण” कहा गया है । (2) वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� �दए हुए व्यय के प्राक्कलन� म�– (क) इस सं�वधान म� राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय के रूप म� व�णर्त व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां, और (ख) राज्य क� सं�चत �न�ध म� से �कए जाने के �लए प्रस्था�पत अन्य व्यय क� प�ू तर् के �लए अपे��त रा�शयां, पथ ृ क् -पथ ृ क् �दखाई जाएंगी और राजस्व लेखे होने वाले व्यय का अन्य व्यय से भेद �कया जाएगा । (3) �नम्न�ल�खत व्यय प्रत्येक राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय होगा, अथार्त ् :– व्यय ; (क) राज्यपाल क� उपलिब्धयां और भ�े तथा उसके पद से संब�ं धत अन्य (ख) �वधान सभा के अध्य� और उपाध्य� के तथा �वधान प�रषद् वाले राज्य क� दशा म� �वधान प�रषद् के सभाप�त और उपसभाप�त के भी वेतन और भ�े ; (ग) ऐसे ऋण भार िजनका दा�यत्व राज्य पर है, िजनके अंतगर्त ब्याज, �न�ेप �न�ध भार और मोचन भार तथा उधार लेने और ऋण सेवा और ऋण मोचन से संब�ं धत अन्य व्यय ह� ; व्यय ; (घ) �कसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� के वेतन� और भ�� के संबध ं म� (ङ) �कसी न्यायालय या माध्यस्थम ् अ�धकरण के �नणर्य, �डक्र� या पंचाट क� तुिष्ट के �लए अपे��त रा�शयां ; (च) कोई अन्य व्यय जो इस सं�वधान द्वारा या राज्य के �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, इस प्रकार भा�रत घो�षत �कया जाता है । 203. �वधान-मंडल म� प्राक्कलन� के संबध ं म� प्र�क्रया–(1) प्राक्कलन� म� से िजतने प्राक्कलन राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय से संब�ं धत ह� वे �वधान सभा म� मतदान के �लए नह�ं रखे जाएंगे, �कन्तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह �वधान-मंडल म� उन प्राक्कलन� म� से �कसी प्राक्कलन पर चचार् को �नवा�रत करती है । भारत का सं�वधान 93 (भाग 6—राज्य) (2) उक्त प्राक्कलन� म� से िजतने प्राक्कलन अन्य व्यय से संब�ं धत ह� वे �वधान सभा के सम� अनद ु ान� क� मांग� के रूप म� रखे जाएंगे और �वधान सभा को शिक्त होगी �क वह �कसी मांग को अनम ु �त दे या अनम ु �त दे ने से इंकार कर दे अथवा �कसी मांग को, उसम� �व�न�दर्ष्ट रकम को कम करके, अनम ु �त दे । नह�ं । (3) �कसी अनद ु ान क� मांग राज्यपाल क� �सफा�रश पर ह� क� जाएगी, अन्यथा 204. �व�नयोग �वधेयक–(1) �वधान सभा द्वारा अनच् ु छे द 203 के अधीन अनद ु ान �कए जाने के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, राज्य क� सं�चत �न�ध म� से– (क) �वधान सभा द्वारा इस प्रकार �कए गए अनद ु ान� क�, और (ख) राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत, �कन्तु सदन या सदन� के सम� पहले रखे गए �ववरण म� द�शर्त रकम से �कसी भी दशा म� अन�धक व्यय क�, प�ू तर् के �लए अपे��त सभी धनरा�शय� के �व�नयोग का उपबंध करने के �लए �वधेयक परु ःस्था�पत �कया जाएगा । (2) इस प्रकार �कए गए �कसी अनद ु ान क� रकम म� प�रवतर्न करने या अनद ु ान के ल�य को बदलने अथवा राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत व्यय क� रकम म� प�रवतर्न करने का प्रभाव रखने वाला कोई संशोधन, ऐसे �कसी �वधेयक म� राज्य के �वधान-मंडल के सदन म� या �कसी सदन म� प्रस्था�पत नह�ं �कया जाएगा और पीठासीन व्यिक्त का इस बारे म� �व�नश्चय अं�तम होगा �क कोई संशोधन इस खंड के अधीन अग्राह्य है या नह�ं । (3) अनच् ु छे द 205 और अनच् ु छे द 206 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्य क� सं�चत �न�ध म� से इस अनच् ु छे द के उपबंध� के अनस ु ार पा�रत �व�ध द्वारा �कए गए �व�नयोग के अधीन ह� कोई धन �नकाला जाएगा, अन्यथा नह�ं । 205. अनप ु रू क, अ�त�रक्त या अ�धक अनद ु ान–(1) य�द– (क) अनच् ु छे द 204 के उपबंध� के अनस ु ार बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा �कसी �व�शष्ट सेवा पर चालू �व�ीय वषर् के �लए व्यय �कए जाने के �लए प्रा�धकृत कोई रकम उस वषर् के प्रयोजन� के �लए अपयार्प्त पाई जाती है या उस वषर् के वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� अनध् ु यात न क� गई �कसी नई सेवा पर अनप ु रू क या अ�त�रक्त व्यय क� चालू �व�ीय वषर् के दौरान आवश्यकता पैदा हो गई है, या (ख) �कसी �व�ीय वषर् के दौरान �कसी सेवा पर उस वषर् और उस सेवा के �लए अनद ु ान क� गई रकम से अ�धक कोई धन व्यय हो गया है, भारत का सं�वधान 94 (भाग 6—राज्य) तो राज्यपाल, यथािस्थ�त, राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� के सम� उस व्यय क� प्राक्क�लत रकम को द�शर्त करने वाला दस ू रा �ववरण रखवाएगा या राज्य क� �वधान सभा म� ऐसे आ�धक्य के �लए मांग प्रस्तुत करवाएगा । (2) ऐसे �कसी �ववरण और व्यय या मांग के संबध ं म� तथा राज्य क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या ऐसी मांग से संब�ं धत अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� भी, अनच् ु छे द 202, अनच् ु छे द 203 और अनच् ु छे द 204 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण और उसम� व�णर्त व्यय के संबध ं म� या �कसी अनद ु ान क� �कसी मांग के संबध ं म� और राज्य क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय या अनद ु ान क� प�ू तर् के �लए धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ं म� प्रभावी ह� । 206. लेखानद र् ामी ु ान, प्रत्ययानद ु ान और अपवादानुदान–(1) इस अध्याय के पव ू ग उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी राज्य क� �वधान सभा को– (क) �कसी �व�ीय वषर् के भाग के �लए प्राक्क�लत व्यय के संबध ं म� कोई अनद ु ान, उस अनद ु ान के �लए मतदान करने के �लए अनच् ु छे द 203 म� �व�हत प्र�क्रया के परू ा होने तक और उस व्यय के संबध ं म� अनच् ु छे द 204 के उपबंध� के अनस ु ार �व�ध के पा�रत होने तक, अ�ग्रम दे ने क� ; (ख) जब �कसी सेवा क� मह�ा या उसके अ�निश्चत रूप के कारण मांग ऐसे ब्यौरे के साथ व�णर्त नह�ं क� जा सकती है जो वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� सामान्यतया �दया जाता है तब राज्य के संप�� स्रोत� पर अप्रत्या�शत मांग क� प�ू तर् के �लए अनद ु ान करने क� ; (ग) �कसी �व�ीय वषर् क� चालू सेवा का जो अनद ु ान भाग नह�ं है ऐसा कोई अपवादानद ु ान करने क�, शिक्त होगी और िजन प्रयोजन� के �लए उक्त अनद ु ान �कए गए ह� उनके �लए राज्य क� सं�चत �न�ध म� से धन �नकालना �व�ध द्वारा प्रा�धकृत करने क� राज्य के �वधान-मंडल को शिक्त होगी । (2) खंड (1) के अधीन �कए जाने वाले �कसी अनद ु ान और उस खंड के अधीन बनाई जाने वाल� �कसी �व�ध के संबध ं म� अनच् ु छे द 203 और अनच् ु छे द 204 के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे जैसे वे वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� व�णर्त �कसी व्यय के बारे म� कोई अनद ं म� और राज्य क� सं�चत �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए ु ान करने के संबध ं म� प्रभावी धन का �व�नयोग प्रा�धकृत करने के �लए बनाई जाने वाल� �व�ध के संबध ह� । भारत का सं�वधान 95 (भाग 6—राज्य) 207. �व� �वधेयक� के बारे म� �वशेष उपबंध–(1) अनच् ु छे द 199 के खंड (1) के उपखंड (क) से उपखंड (च) म� �व�न�दर्ष्ट �कसी �वषय के �लए उपबंध करने वाला �वधेयक या संशोधन राज्यपाल क� �सफा�रश से ह� परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं और ऐसा उपबंध करने वाला �वधेयक �वधान प�रषद् म� परु ःस्था�पत नह�ं �कया जाएगा : परं तु �कसी कर के घटाने या उत्सादन के �लए उपबंध करने वाले �कसी संशोधन के प्रस्ताव के �लए इस खंड के अधीन �सफा�रश क� अपे�ा नह�ं होगी । (2) कोई �वधेयक या संशोधन उक्त �वषय� म� से �कसी �वषय के �लए उपबंध करने वाला केवल इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क वह जम ु ार्न� या अन्य धनीय शािस्तय� के अ�धरोपण का अथवा अन� ु िप्तय� के �लए फ�स� क� या क� गई सेवाओं के �लए फ�स� क� मांग का या उनके संदाय का उपबंध करता है अथवा इस कारण नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजन� के �लए �कसी कर के अ�धरोपण, उत्सादन, प�रहार, प�रवतर्न या �व�नयमन का उपबंध करता है । (3) िजस �वधेयक को अ�ध�नय�मत और प्रव�तर्त �कए जाने पर राज्य क� सं�चत �न�ध म� से व्यय करना पड़ेगा वह �वधेयक राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन द्वारा तब तक पा�रत नह�ं �कया जाएगा जब तक ऐसे �वधेयक पर �वचार करने के �लए उस सदन से राज्यपाल ने �सफा�रश नह�ं क� है । साधारणतया प्र�क्रया 208. प्र�क्रया के �नयम–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्य के �वधान-मंडल का कोई सदन अपनी प्र�क्रया ∗ और अपने कायर् संचालन के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगा । (2) जब तक खंड (1) के अधीन �नयम नह�ं बनाए जाते ह� तब तक इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले तत्स्थानी प्रांत के �वधान-मंडल के संबध ं म� जो प्र�क्रया के �नयम और स्थायी आदे श प्रव� ु ू लन� के अधीन रहते ृ थे वे ऐसे उपांतरण� और अनक हुए उस राज्य के �वधान-मंडल के संबध ं म� प्रभावी ह�गे िजन्ह� , यथािस्थ�त, �वधान सभा का अध्य� या �वधान प�रषद् का सभाप�त उनम� करे । (3) राज्यपाल, �वधान प�रषद् वाले राज्य म� �वधान सभा के अध्य� और �वधान प�रषद् के सभाप�त से परामशर् करने के पश्चात ्, दोन� सदन� म� परस्पर संचार से संब�ं धत प्र�क्रया के �नयम बना सकेगा । ∗ सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 35 द्वारा (तार�ख अ�धसू�चत नह�ं क� गई) "(िजसके अन्तगर्त सदन क� बैठक का गठन करने के �लए गणपू�तर् सिम्म�लत है)" शब्द और कोष्ठक से अंतःस्था�पत । इस संशोधन का सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 45 द्वारा (20-6-1979 से) लोप कर �दया गया । 96 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) 209. राज्य के �वधान-मंडल म� �व�ीय कायर् संबध ं ी प्र�क्रया का �व�ध द्वारा �व�नयमन–�कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ीय कायर् को समय के भीतर परू ा करने के प्रयोजन के �लए �कसी �व�ीय �वषय से संब�ं धत या राज्य क� सं�चत �न�ध म� से धन का �व�नयोग करने के �लए �कसी �वधेयक से संब�ं धत, राज्य के �वधान-मंडल के सदन या सदन� क� प्र�क्रया और कायर् संचालन का �व�नयमन �व�ध द्वारा कर सकेगा तथा य�द और जहां तक इस प्रकार बनाई गई �कसी �व�ध का कोई उपबंध अनच् ु छे द 208 के खंड (1) के अधीन राज्य के �वधान-मंडल के सदन या �कसी सदन द्वारा बनाए गए �नयम से या उस अनच् ं म� प्रभावी �कसी ु छे द के खंड (2) के अधीन राज्य �वधान-मंडल के संबध �नयम या स्थायी आदे श से असंगत है तो और वहां तक ऐसा उपबंध अ�भभावी होगा । 210. �वधान-मंडल म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा–(1) होते हुए भी, �कन्तु अनच् ु छे द 348 के उपबंध� के अधीन रहते म� कायर् राज्य क� राजभाषा या राजभाषाओं म� या �हंद� म� या भाग 17 म� �कसी बात के हुए, राज्य के �वधान-मंडल अंग्रेजी म� �कया जाएगा : परं तु, यथािस्थ�त, �वधान सभा का अध्य� या �वधान प�रषद् का सभाप�त अथवा उस रूप म� कायर् करने वाला व्यिक्त �कसी सदस्य को, जो पव ू �क्त भाषाओं म� से �कसी भाषा म� अपनी पयार्प्त अ�भव्यिक्त नह�ं कर सकता है, अपनी मातभ ृ ाषा म� सदन को संबो�धत करने क� अन� ु ा दे सकेगा । (2) जब तक राज्य का �वधान-मंडल �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक इस सं�वधान के प्रारं भ से पंद्रह वषर् क� अव�ध क� समािप्त के पश्चात ् यह अनच् ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो “या अंग्रेजी म�” शब्द� का उसम� से लोप कर �दया गया हो : [परं तु 2[�हमाचल प्रदे श, म�णपरु , मेघालय और �त्रपरु ा राज्य� के �वधान-मंडल�] के संबध ं म� यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम� आने वाले “पंद्रह वषर्” शब्द� के स्थान पर “पच्चीस वषर्” शब्द रख �दए गए ह� :] 1 3 [परं तु यह और �क 4[ 5[अरुणाचल प्रदे श, गोवा और �मजोरम राज्य� के �वधानमंडल�]] के संबध ं म� यह खंड इस प्रकार प्रभावी होगा मानो इसम� आने वाले “पंद्रह वषर्” शब्द� के स्थान पर “चाल�स वषर्” शब्द रख �दए गए ह� ।] 1. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 46 द्वारा (25-1-1971 से ) अंतःस्था�पत । 2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “�हमाचल प्रदे श राज्य के �वधान-मंडल” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । 4. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) “�मजोरम राज्य के �वधान-मंडल” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अरुणाचल प्रदे श और �मजोरम” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 97 (भाग 6—राज्य) 211. �वधान-मंडल म� चचार् पर �नब�धन–उच्चतम न्यायालय या �कसी उच्च न्यायालय के �कसी न्यायाधीश के अपने कतर्व्य� के �नवर्हन म� �कए गए, आचरण के �वषय म� राज्य के �वधान-मंडल म� कोई चचार् नह�ं होगी । 212. न्यायालय� द्वारा �वधान-मंडल क� कायर्वा�हय� क� जांच न �कया जाना–(1) राज्य के �वधान-मंडल क� �कसी कायर्वाह� क� �व�धमान्यता को प्र�क्रया क� �कसी अ�भक�थत अ�नय�मतता के आधार पर प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा । (2) राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�धकार� या सदस्य, िजसम� इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन उस �वधान-मंडल म� प्र�क्रया या कायर् संचालन का �व�नयमन करने क� अथवा व्यवस्था बनाए रखने क� शिक्तयां �न�हत ह�, उन शिक्तय� के अपने द्वारा प्रयोग के �वषय म� �कसी न्यायालय क� अ�धका�रता के अधीन नह�ं होगा । अध्याय 4 - राज्यपाल क� �वधायी शिक्त 213. �वधान-मंडल के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� राज्यपाल क� शिक्त–(1) उस समय को छोड़कर जब �कसी राज्य क� �वधान सभा सत्र म� है या �वधान प�रषद् वाले राज्य म� �वधान-मंडल के दोन� सदन सत्र म� ह�, य�द �कसी समय राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है �क ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण तुरन्त कारर्वाई करना उसके �लए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्या�पत कर सकेगा जो उसे उन प�रिस्थ�तय� म� अपे��त प्रतीत ह� : परं तु राज्यपाल, राष्ट्रप�त के अनद ु े श� के �बना, कोई ऐसा अध्यादे श प्रख्या�पत नह�ं करे गा य�द– (क) वैसे ह� उपबंध अंत�वर्ष्ट करने वाले �वधेयक को �वधान-मंडल म� परु :स्था�पत �कए जाने के �लए राष्ट्रप�त क� पव ू र् मंजरू � क� अपे�ा इस सं�वधान के अधीन होती ; या (ख) वह वैसे ह� उपबंध अंत�वर्ष्ट करने वाले �वधेयक को राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखना आवश्यक समझता ; या (ग) वैसे हर उपबंध अंत�वर्ष्ट करने वाला राज्य के �वधान-मंडल का अ�ध�नयम इस सं�वधान के अधीन तब तक अ�व�धमान्य होता जब तक राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखे जाने पर उसे राष्ट्रप�त क� अनम ु �त प्राप्त नह�ं हो गई होती । (2) इस अनच् ु छे द के अधीन प्रख्या�पत अध्यादे श का वह� बल और प्रभाव होगा जो राज्य के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम का होता है िजसे राज्यपाल ने अनम ु �त दे द� है, �कं तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श– भारत का सं�वधान 98 (भाग 6—राज्य) (क) राज्य क� �वधान सभा के सम� और �वधान प�रषद् वाले राज्य म� दोन� सदन� के सम� रखा जाएगा तथा �वधान-मंडल के पन ु : समवेत होने से छह सप्ताह क� समािप्त पर या य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले �वधान सभा उसके अननम ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ती है और य�द �वधान प�रषद् है तो वह उससे सहमत हो जाती है तो, यथािस्थ�त, संकल्प के पा�रत होने पर या �वधान प�रषद् द्वारा संकल्प से सहमत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा ; और (ख) राज्यपाल द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा । स्पष्ट�करण–जहां �वधान प�रषद् वाले राज्य के �वधान-मंडल के सदन, �भन्न�भन्न तार�ख� को पन ु : समवेत होने के �लए, आहूत �कए जाते ह� वहां इस खंड के प्रयोजन� के �लए छह सप्ताह क� अव�ध क� गणना उन तार�ख� म� से पश्चात्वत� तार�ख से क� जाएगी । (3) य�द और जहां तक इस अनच् ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता है जो राज्य के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम म� , िजसे राज्यपाल ने अनम ु �त दे द� है, अ�ध�नय�मत �कए जाने पर �व�धमान्य नह�ं होता तो और वहां तक वह अध्यादे श शून्य होगा : परं तु राज्य के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम के, जो समवत� सच ू ी म� प्रग�णत �कसी �वषय के बारे म� संसद् के �कसी अ�ध�नयम या �कसी �वद्यमान �व�ध के �वरुद्ध है, प्रभाव से संब�ं धत इस सं�वधान के उपबंध� के प्रयोजन� के �लए यह है �क कोई अध्यादे श, जो राष्ट्रप�त के अनद ु े श� के अनस ु रण म� इस अनच् ु छे द के अधीन प्रख्या�पत �कया जाता है, राज्य के �वधान-मंडल का ऐसा अ�ध�नयम समझा जाएगा जो राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखा गया था और िजसे उसने अनम ु �त दे द� है । 1 (4)* * * * अध्याय 5–राज्य� के उच्च न्यायालय 214. राज्य� के �लए उच्च न्यायालय– 2*** प्रत्येक राज्य के �लए एक उच्च न्यायालय होगा । 3 (2)* * * * 3 (3)* * * * 215. उच्च न्यायालय� का अ�भलेख न्यायालय होना–प्रत्येक उच्च न्यायालय अ�भलेख न्यायालय होगा और उसको अपने अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त स�हत ऐसे न्यायालय क� सभी शिक्तयां ह�गी । 51 1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (4) अंतःस्था�पत �कया गया था और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा �कया गया । 27 द्वारा (20-6-1979 से) लोप 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) कोष्ठक और अंक “(1)” का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (2) और खंड (3) का लोप �कया गया । 99 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) 216. उच्च न्यायालय� का गठन–प्रत्येक उच्च न्यायालय मुख्य न्यायमू�तर् और ऐसे अन्य न्यायाधीश� से �मलकर बनेगा िजन्ह� राष्ट्रप�त समय-समय पर �नयक् ु त करना आवश्यक समझे । 1 * * * * 217. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश क� �नयिु क्त और उसके पद क� शत�–(1) [अनच् ु छे द 124क म� �न�दर्ष्ट राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग क� �सफा�रश पर, राष्ट्रप�त] अपने हस्ता�र और मुद्रा स�हत अ�धपत्र द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक 3 न्यायाधीश को �नयक् ु त करे गा और वह न्यायाधीश [अपर या कायर्कार� न्यायाधीश क� दशा म� अनच् ु छे द 224 म� उपबं�धत रूप म� पद धारण करे गा और �कसी अन्य दशा म� तब तक पद धारण करे गा जब तक वह 4[बासठ वषर्] क� आयु प्राप्त नह�ं कर लेता है :]] 2 परं त–ु (क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रप�त को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; (ख) �कसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के �लए अनच् ु छे द 124 के खंड (4) म� उपबं�धत र��त से उसके पद से राष्ट्रप�त द्वारा हटाया जा सकेगा ; (ग) �कसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रप�त द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश �नयक् ु त �कए जाने पर या राष्ट्रप�त द्वारा उसे भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी अन्य उच्च न्यायालय को, अंत�रत �कए जाने पर �रक्त हो जाएगा । (2) कोई व्यिक्त, �कसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� �नयिु क्त के �लए तभी अ�हर्त होगा जब वह भारत का नाग�रक है और– (क) भारत के राज्य�ेत्र म� कम से कम दस वषर् तक न्या�यक पद धारण कर चक ु ा है ; या 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 11 द्वारा (1-11-1956 से) परन्तुक का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 6 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य न्यायमू�तर् से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न �कसी न्यायाधीश क� �नयुिक्त क� दशा म� उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् से परामशर् करने के पश्चात ्, राष्ट्रप�त” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 12 द्वारा (1-11-1956 से) “तब तक पद धारण करे गा जब तक �क वह साठ वषर् क� आयु प्राप्त न कर ले” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 4(क) द्वारा (5-10-1963 से) “साठ वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 100 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) (ख) �कसी *** उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अ�धक न्यायालय� का लगातार कम से कम दस वषर् तक अ�धवक्ता रहा है ; 2*** 2 (ग)* * * * स्पष्ट�करण – इस खंड के प्रयोजन� के �लए– 3 [(क) भारत के राज्य�ेत्र म� न्या�यक पद धारण करने क� अव�ध क� संगणना करने म� वह अव�ध भी सिम्म�लत क� जाएगी िजसके दौरान कोई व्यिक्त न्या�यक पद धारण करने के पश्चात ् �कसी उच्च न्यायालय का अ�धवक्ता रहा है या उसने �कसी अ�धकरण के सदस्य का पद धारण �कया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण �कया है िजसके �लए �व�ध का �वशेष �ान अपे��त है ;] 4 [(कक) �कसी उच्च न्यायालय का अ�धवक्ता रहने क� अव�ध क� संगणना करने म� वह अव�ध भी सिम्म�लत क� जाएगी िजसके दौरान �कसी व्यिक्त ने अ�धवक्ता होने के पश्चात ् 5[न्या�यक पद धारण �कया है या �कसी अ�धकरण के सदस्य का पद धारण �कया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण �कया है िजसके �लए �व�ध का �वशेष �ान अपे��त है ;] (ख) भारत के राज्य�ेत्र म� न्या�यक पद धारण करने या �कसी उच्च न्यायालय का अ�धवक्ता रहने क� अव�ध क� संगणना करने म� इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले क� वह अव�ध भी सिम्म�लत क� जाएगी िजसके दौरान �कसी व्यिक्त ने, यथािस्थ�त, ऐसे �ेत्र म� जो 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 म� प�रभा�षत भारत म� समा�वष्ट था, न्या�यक पद धारण �कया है या वह ऐसे �कसी �ेत्र म� �कसी उच्च न्यायालय का अ�धवक्ता रहा है । 1 6 [(3) य�द उच्च न्यायालय के �कसी न्यायाधीश क� आयु के बारे म� कोई प्रश्न उठता है तो उस प्रश्न का �व�नश्चय भारत के मख् ु य न्यायम�ू तर् से परामशर् करने के पश्चात ् राष्ट्रप�त द्वारा �कया जाएगा और राष्ट्रप�त का �व�नश्चय अं�तम होगा ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट �कसी राज्य म� के” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) शब्द “या” और उपखंड (ग) अंतःस्था�पत �कए गए और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) उनका लोप �कया गया । 3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 28 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (क) को खंड (कक) के रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया । 5. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 36 द्वारा (3-1-1977 से) हो” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । “न्या�यक पद धारण �कया 6. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 4(ख) द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 101 (भाग 6—राज्य) 218. उच्चतम न्यायालय से संब�ं धत कुछ उपबंध� का उच्च न्यायालय� को लागू होना–अनच् ु छे द 124 के खंड (4) और खंड (5) के उपबंध, जहां-जहां उनम� उच्चतम न्यायालय के प्र�त �नद� श है वहां-वहां उच्च न्यायालय के प्र�त �नद� श प्र�तस्था�पत करके, उच्च न्यायालय के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे उच्चतम न्यायालय के संबध ं म� लागू होते ह� । 219. उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� द्वारा शपथ या प्र�त�ान– 1*** उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने के �लए �नयक् ु त प्रत्येक व्यिक्त, अपना पदग्रहण करने से पहले, उस राज्य के राज्यपाल या उसके द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त व्यिक्त के सम�, तीसर� अनस ु ूची म� इस प्रयोजन के �लए �दए गए प्ररूप के अनस ु ार, शपथ लेगा या प्र�त�ान करे गा और उस पर अपने हस्ता�र करे गा । [220. स्थायी न्यायाधीश रहने के पश्चात ् �व�ध-व्यवसाय पर �नब�धन–कोई व्यिक्त, िजसने इस सं�वधान के प्रारं भ के पश्चात ् �कसी उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप म� पद धारण �कया है, उच्चतम न्यायालय और अन्य उच्च न्यायालय� के �सवाय भारत म� �कसी न्यायालय या �कसी प्रा�धकार� के सम� अ�भवचन या कायर् नह�ं करे गा । 2 स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द म� , “उच्च न्यायालय” पद के अंतगर्त सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ 3 से पहले �वद्यमान पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट राज्य का उच्च न्यायालय नह�ं है ।] 64 221. न्यायाधीश� के वेतन आ�द– 4[(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� को ऐसे वेतन� का संदाय �कया जाएगा जो संसद्, �व�ध द्वारा, अवधा�रत करे और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसे वेतन� का संदाय �कया जाएगा जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह� ।] ं (2) प्रत्येक न्यायाधीश ऐसे भ�� का तथा अनप ु िस्थ�त छुट्ट� और प� शन के संबध म� ऐसे अ�धकार� का, जो संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन समयसमय पर अवधा�रत �कए जाएं, और जब तक इस प्रकार अवधा�रत नह�ं �कए जाते ह� तब तक ऐसे भ�� और अ�धकार� का, जो दस ू र� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट ह�, हकदार होगा : ं म� परं तु �कसी न्यायाधीश के भ�� म� और अनप ु िस्थ�त छुट्ट� या प� शन के संबध उसके अ�धकार� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “�कसी राज्य म� ” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 13 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत । 3. 1 नवम्बर, 1956 । 4. सं�वधान (चौवनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 3 द्वारा (1-4-1986 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 102 (भाग 6—राज्य) 222. �कसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दस ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण–(1) राष्ट्रप�त, 1[अऩच् ु छे द 124क म� �न�दर्ष्ट राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग क� �सफा�रश पर] 2*** �कसी न्यायाधीश का एक उच्च न्यायालय से दस ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण कर सकेगा । 3 [(2) जब कोई न्यायाधीश इस प्रकार अंत�रत �कया गया है या �कया जाता है तब वह उस अव�ध के दौरान, िजसके दौरान वह सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 के प्रारं भ के पश्चात ् दस ू रे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� सेवा करता है, अपने वेतन के अ�त�रक्त ऐसा प्र�तकरात्मक भ�ा, जो संसद् �व�ध द्वारा अवधा�रत करे , और जब तक इस प्रकार अवधा�रत नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसा प्र�तकरात्मक भ�ा, जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा �नयत करे , प्राप्त करने का हकदार होगा ।] 223. कायर्कार� मुख्य न्यायमू�तर् क� �नयिु क्त–जब �कसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् का पद �रक्त है या जब ऐसा मुख्य न्यायमू�तर् अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्यथा अपने पद के कतर्व्य� का पालन करने म� असमथर् है तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीश� म� से ऐसा एक न्यायाधीश, िजसे राष्ट्रप�त इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उस पद के कतर्व्य� का पालन करे गा । [224. अपर और कायर्कार� न्यायाधीश� क� �नयिु क्त–(1) य�द �कसी उच्च न्यायालय के कायर् म� �कसी अस्थायी वद् ृ �ध के कारण या उसम� कायर् क� बकाया के कारण राष्ट्रप�त को यह प्रतीत होता है �क उस न्यायालय के न्यायाधीश� क� संख्या को तत्समय बढ़ा दे ना चा�हए 5[तो राष्ट्रप�त, राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग के परामशर् से, सम्यक् रूप से] अ�हर्त व्यिक्तय� को दो वषर् से अन�धक क� ऐसी अव�ध के �लए जो वह �व�न�दर्ष्ट करे , उस न्यायालय के अपर न्यायाधीश �नयक् ु त कर सकेगा । 4 (2) जब �कसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न कोई न्यायाधीश 1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 7 द्वारा (13-4-2015 से) “भारत के मुख्य न्यायमू�तर् से परामशर् करने के पश्चात ्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 1610-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 14 द्वारा (1-11-1956 से) “भारत के राज्य�ेत्र म� के” शब्द� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 14 द्वारा (1-11-1956 से) मूल खंड (2) का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 15 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 224 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तो राष्ट्रप�त सम्यक् रूप से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । भारत का सं�वधान 103 (भाग 6—राज्य) अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कतर्व्य� का पालन करने म� असमथर् है या मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� अस्थायी रूप से कायर् करने के �लए �नयक् ु त �कया जाता है 1[तो राष्ट्रप�त, राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग के परामशर् से, सम्यक् रूप से] अ�हर्त �कसी व्यिक्त को तब तक के �लए उस न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� कायर् करने के �लए �नयक् ु त कर सकेगा जब तक स्थायी न्यायाधीश अपने कतर्व्य� को �फर से नह�ं संभाल लेता है । (3) उच्च न्यायालय के अपर या कायर्कार� न्यायाधीश के रूप म� �नयक् ु त कोई व्यिक्त 2[बासठ वषर्] क� आयु प्राप्त कर लेने के पश्चात ् पद धारण नह�ं करे गा । 3 [224क. उच्च न्यायालय� क� बैठक� म� सेवा�नव� ृ न्यायाधीश� क� �नयिु क्त–इस अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, 4[राष्ट्र�य न्या�यक �नयिु क्त आयोग �कसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् द्वारा उसे �कए गए �कसी �नद� श पर, राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त से,] �कसी व्यिक्त से, जो उस उच्च न्यायालय या �कसी अन्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का पद धारण कर चक ु ा है, उस राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� बैठने और कायर् करने का अनरु ोध कर सकेगा और प्रत्येक ऐसा व्यिक्त, िजससे इस प्रकार अनरु ोध �कया जाता है, इस प्रकार बैठने और कायर् करने के दौरान ऐसे भ�� का हकदार होगा जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अवधा�रत करे और उसको उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश क� सभी अ�धका�रता, शिक्तयां और �वशेषा�धकार ह�गे, �कं तु उसे अन्यथा उस उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नह�ं समझा जाएगा : परं तु जब तक यथापव ू �क्त व्यिक्त उस उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप म� बैठने और कायर् करने क� सहम�त नह�ं दे दे ता है तब तक इस अनच् ु छे द क� कोई बात उससे ऐसा करने क� अपे�ा करने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।] 225. �वद्यमान उच्च न्यायालय� क� अ�धका�रता–इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए और इस सं�वधान द्वारा समु�चत �वधान-मंडल को प्रद� शिक्तय� के आधार पर उस �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी �वद्यमान उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता और उसम� प्रशा�सत �व�ध तथा उस न्यायालय म� न्याय प्रशासन के संबध ं म� उसके न्यायाधीश� क� अपनी-अपनी शिक्तयां, िजनके अंतगर्त न्यायालय के �नयम बनाने क� शिक्त तथा उस न्यायालय और उसके सदस्य� क� बैठक� का चाहे वे अकेले बैठ� या खंड न्यायालय� म� बैठ� �व�नयमन करने क� शिक्त है, वह� ह�गी जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले थीं : 1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 8 द्वारा (13-4-2015 से) “तब राष्ट्रप�त सम्यक् रूप से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । 2. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 6 द्वारा (5-10-1963 से) “साठ वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 7 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 9 द्वारा (13-4-2015 से) “�कसी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर्, �कसी भी समय, राष्ट्रप�त क� पूवर् सहम�त से” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117 म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । भारत का सं�वधान 104 (भाग 6—राज्य) 1 [परं तु राजस्व संबध ं ी अथवा उसका संग्रहण करने म� आ�दष्ट या �कए गए �कसी कायर् संबध ं ी �वषय क� बाबत उच्च न्यायालय� म� से �कसी क� आरं �भक अ�धका�रता का प्रयोग, इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले, िजस �कसी �नब�धन के अधीन था वह �नब�धन ऐसी अ�धका�रता के प्रयोग को ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् लागू नह�ं होगा ।] [226. कुछ �रट �नकालने क� उच्च न्यायालय क� शिक्त – (1) अनच् ु छे द 32 म� �कसी बात के होते हुए भी 3*** प्रत्येक उच्च न्यायालय को उन राज्य�ेत्र� म� सवर्त्र, िजनके संबध ं म� वह अपनी अ�धका�रता का प्रयोग करता है, 3[भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार� म� से �कसी को प्रव�तर्त कराने के �लए और �कसी अन्य प्रयोजन के �लए] उन राज्य�ेत्र� के भीतर �कसी व्यिक्त या प्रा�धकार� को या समु�चत मामल� म� �कसी सरकार को ऐसे �नदे श, आदे श या �रट िजनके अंतगर्त 4[बंद� प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार-पच् ृ छा और उत्प्रेषण �रट ह�, या उनम� से कोई] �नकालने क� शिक्त होगी ।] 2 78 (2) �कसी सरकार, प्रा�धकार� या व्यिक्त को �नदे श, आदे श या �रट �नकालने क� खंड (1) द्वारा प्रद� शिक्त का प्रयोग उन राज्य�ेत्र� के संबध ं म� , िजनके भीतर ऐसी शिक्त के प्रयोग के �लए वादहे तुक पण र् : या भागत: उत्पन्न होता है, अ�धका�रता का ू त प्रयोग करने वाले �कसी उच्च न्यायालय द्वारा भी, इस बात के होते हुए भी �कया जा सकेगा �क ऐसी सरकार या प्रा�धकार� का स्थान या ऐसे व्यिक्त का �नवास-स्थान उन राज्य�ेत्र� के भीतर नह�ं है । [(3) जहां कोई प�कार, िजसके �वरुद्ध खंड (1) के अधीन �कसी या�चका पर या उससे संब�ं धत �कसी कायर्वाह� म� व्यादे श के रूप म� या रोक के रूप म� या �कसी अन्य र��त से कोई अंत�रम आदे श– 5 (क) ऐसे प�कार को ऐसी या�चका क� और ऐसे अंत�रम आदे श के �लए अ�भवाक् के समथर्न म� सभी दस्तावेज� क� प्र�त�ल�पयां, और 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 37 द्वारा (1-2-1977 से) लोप �कया गया और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 29 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 38 द्वारा (1-2-1977 से) अनुच्छे द 226 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 7 द्वारा (13-4-1978 से) “�कं तु अनुच्छे द 131क और अनुच्छे द 226क के उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द�, अंक� और अ�र� का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) “िजनके अंतगर्त बंद� प्रत्य�ीकरण, परमादे श, प्र�तषेध, अ�धकार-पच् ृ छा और उत्प्रेषण के प्रकार के लेख भी ह� अथवा उनम� से �कसी को” से आरं भ होकर “न्याय क� सारवान ् �नष्फलता हुई है, �कसी ��त के प्र�ततोष के �लए” के साथ समाप्त होने वाले भाग के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से) खंड (3), खंड (4), खंड (5) और खंड (6) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 105 (भाग 6—राज्य) (ख) ऐसे प�कार को सुनवाई का अवसर, �दए �बना �कया गया है, ऐसे आदे श को रद्द कराने के �लए उच्च न्यायालय को आवेदन करता है और ऐसे आवेदन क� एक प्र�त�ल�प उस प�कार को िजसके प� म� ऐसा आदे श �कया गया है या उसके काउं सेल को दे ता है वहां उच्च न्यायालय उसक� प्रािप्त क� तार�ख से या ऐसे आवेदन क� प्र�त�ल�प इस प्रकार �दए जाने क� तार�ख से दो सप्ताह क� अव�ध के भीतर, इनम� से जो भी पश्चात्वत� हो, या जहां उच्च न्यायालय उस अव�ध के अं�तम �दन बंद है वहां उसके ठ�क बाद वाले �दन क� समािप्त से पहले िजस �दन उच्च न्यायालय खुला है, आवेदन को �नपटाएगा और य�द आवेदन इस प्रकार नह�ं �नपटाया जाता है तो अंत�रम आदे श, यथािस्थ�त, उक्त अव�ध क� या उक्त ठ�क बाद वाले �दन क� समािप्त पर रद्द हो जाएगा ।] 1 [(4) इस अनच् ु छे द द्वारा उच्च न्यायालय को प्रद� शिक्त से, अनच् ु छे द 32 के खंड (2) द्वारा उच्चतम न्यायालय को प्रद� शिक्त का अल्पीकरण नह�ं होगा ।] 2 [226क. अनच् ु छे द 226 के अधीन कायर्वा�हय� म� केन्द्र�य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता पर �वचार न �कया जाना ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 8 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया । 227. सभी न्यायालय� के अधी�ण क� उच्च न्यायालय क� शिक्त– 3[(1) प्रत्येक उच्च न्यायालय उन राज्य�ेत्र� म� सवर्त्र, िजनके संबध ं म� वह अपनी अ�धका�रता का प्रयोग करता है, सभी न्यायालय� और अ�धकरण� का अधी�ण करे गा ।] (2) पव र् ामी उपबंध क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, उच्च ू ग न्यायालय– (क) ऐसे न्यायालय� से �ववरणी मंगा सकेगा ; (ख) ऐसे न्यायालय� क� पद्ध�त और कायर्वा�हय� के �व�नयमन के �लए साधारण �नयम और प्ररूप बना सकेगा, और �नकाल सकेगा तथा �व�हत कर सकेगा ; और (ग) �कन्ह�ं ऐसे न्यायालय� के अ�धका�रय� द्वारा रखी जाने वाल� पस् ु तक�, प्र�विष्टय� और लेखाओं के प्ररूप �व�हत कर सकेगा । (3) उच्च न्यायालय उन फ�स� क� सार�णयां भी िस्थर कर सकेगा जो ऐसे न्यायालय� के शै�रफ को तथा सभी �ल�पक� और अ�धका�रय� को तथा उनम� �व�धव्यवसाय करने वाले अट�नर्य�, अ�धवक्ताओं और प्ल�डर� को अन� ु ेय ह�गी : 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 30 द्वारा (1-8-1979 से), खंड (7) को खंड (4) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 39 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 106 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) परं तु खंड (2) या खंड (3) के अधीन बनाए गए कोई �नयम, �व�हत �कए गए कोई प्ररूप या िस्थर क� गई कोई सारणी तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के उपबंध से असंगत नह�ं होगी और इनके �लए राज्यपाल के पव ू र् अनम ु ोदन क� अपे�ा होगी । (4) इस अनच् ु छे द क� कोई बात उच्च न्यायालय को सशस्त्र बल� से संब�ं धत �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन ग�ठत �कसी न्यायालय या अ�धकरण पर अधी�ण क� शिक्तयां दे ने वाल� नह�ं समझी जाएगी । 83 (5)* 1 * * * 228. कुछ मामल� का उच्च न्यायालय को अंतरण–य�द उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है �क उसके अधीनस्थ �कसी न्यायालय म� लं�बत �कसी मामले म� इस सं�वधान के �नवर्चन के बारे म� �व�ध का कोई सारवान ् प्रश्न अंतवर्�लत है िजसका अवधारण मामले के �नपटारे के �लए आवश्यक है 2[तो वह 3***उस मामले को अपने पास मंगा लेगा और–] (क) मामले को स्वयं �नपटा सकेगा, या (ख) उक्त �व�ध के प्रश्न का अवधारण कर सकेगा और उस मामले को ऐसे प्रश्न पर �नणर्य क� प्र�त�ल�प स�हत उस न्यायालय को, िजससे मामला इस प्रकार मंगा �लया गया है, लौटा सकेगा और उक्त न्यायालय उसके प्राप्त होने पर उस मामले को ऐसे �नणर्य के अनरू ु प �नपटाने के �लए आगे कायर्वाह� करे गा । 4 [228क. राज्य �व�धय� क� सां�वधा�नक वैधता से संब�ं धत प्रश्न� के �नपटारे के बारे म� �वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 10 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया । 229. उच्च न्यायालय� के अ�धकार� और सेवक तथा व्यय–(1) �कसी उच्च न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� �नयिु क्तयां उस न्यायालय का मख् ु य न्यायम�ू तर् करे गा या उस न्यायालय का ऐसा अन्य न्यायाधीश या अ�धकार� करे गा िजसे वह �न�दष्ट करे : 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 40 द्वारा (1-2-1977 से ) खंड (5) अंतःस्था�पत �कया गया और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 31 द्वारा (20-6-1979 से) उसका लोप �कया गया । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 41 द्वारा (1-2-1977 से) “तो वह उस मामले को अपने पास मंगा लेगा तथा--” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 9 द्वारा (13-4-1978 से) “अनुच्छे द 131क के उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द�, अंक� और अ�र का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 42 द्वारा (1-2-1977 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 107 (भाग 6—राज्य) परं तु उस राज्य का राज्यपाल 1*** �नयम द्वारा यह अपे�ा कर सकेगा �क ऐसी �कन्ह�ं दशाओं म� जो �नयम म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, �कसी ऐसे व्यिक्त को, जो पहले से ह� न्यायालय से संलग्न नह�ं है, न्यायालय से संब�ं धत �कसी पद पर राज्य लोक सेवा आयोग से परामशर् करके ह� �नयक् ु त �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं । (2) राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अधीन उच्च न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� क� सेवा क� शत� ऐसी ह�गी न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् या उस न्यायालय के ऐसे अन्य न्यायाधीश या द्वारा, िजसे मुख्य न्यायमू�तर् ने इस प्रयोजन के �लए �नयम बनाने के �लए �कया है, बनाए गए �नयम� द्वारा �व�हत क� जाएं : रहते हुए, जो उस अ�धकार� प्रा�धकृत परं तु इस खंड के अधीन बनाए गए �नयम� के �लए, जहां तक वे वेतन�, भ��, छुट्ट� या प� शन� से संब�ं धत ह�, उस राज्य के राज्यपाल के 1*** अनम ु ोदन क� अपे�ा होगी । (3) उच्च न्यायालय के प्रशास�नक व्यय, िजनके अंतगर्त उस न्यायालय के अ�धका�रय� और सेवक� को या उनके संबध ं म� संदेय सभी वेतन, भ�े और प� शन ह�, राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे और उस न्यायालय द्वारा ल� गई फ�स� और अन्य धनरा�शयां उस �न�ध का भाग ह�गी । [230. उच्च न्यायालय� क� अ�धका�रता का संघ राज्य�ेत्र� पर �वस्तार–(1) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी संघ राज्य�ेत्र पर �कसी उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता का �वस्तार कर सकेगी या �कसी संघ राज्य�ेत्र से �कसी उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता का अपवजर्न कर सकेगी । 2 (2) जहां �कसी राज्य का उच्च न्यायालय �कसी संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म� अ�धका�रता का प्रयोग करता है, वहां– (क) इस सं�वधान क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह उस राज्य के �वधान-मंडल को उस अ�धका�रता म� वद् ृ �ध, उसका �नब�धन या उत्सादन करने के �लए सशक्त करती है ; और (ख) उस राज्य�ेत्र म� अधीनस्थ न्यायालय� के �लए �कन्ह�ं �नयम�, प्ररूप� या सार�णय� के संबध ं म� , अनच् ु छे द 227 म� राज्यपाल के प्र�त �नद� श का, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह राष्ट्रप�त के प्र�त �नद� श है । 231. दो या अ�धक राज्य� के �लए एक ह� उच्च न्यायालय क� स्थापना–(1) इस अध्याय के पव र् त� उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद्, �व�ध द्वारा, दो या ू व अ�धक राज्य� के �लए अथवा दो या अ�धक राज्य� और �कसी संघ राज्य�ेत्र के �लए एक ह� उच्च न्यायालय स्था�पत कर सकेगी । (2) �कसी ऐसे उच्च न्यायालय के संबध ं म� ,– 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “िजसम� उच्च न्यायालय का मुख्य स्थान है,” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 16 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 230, 231 और 232 के स्थान पर अनुच्छे द 230 और 231 प्र�तस्था�पत । 108 भारत का सं�वधान (भाग 6—राज्य) (क) * 1 * * * (ख) अधीनस्थ न्यायालय� के �लए �कन्ह�ं �नयम�, प्ररूप� या सार�णय� के संबध ं म� , अनच् ु छे द 227 म� राज्यपाल के प्र�त �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह उस राज्य के राज्यपाल के प्र�त �नद� श ह� िजसम� वे अधीनस्थ न्यायालय िस्थत ह� ; और (ग) अनच् ु छे द 219 और अनच् ु छे द 229 म� राज्य के प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया जाएगा �क वे उस राज्य के प्र�त �नद� श ह�, िजसम� उस उच्च न्यायालय का मख् ु य स्थान है : परं तु य�द ऐसा मख् ु य स्थान �कसी संघ राज्य�ेत्र म� है तो अनच् ु छे द 219 और अनच् ु छे द 229 म� राज्य के राज्यपाल, लोक सेवा आयोग, �वधान-मंडल और सं�चत �न�ध के प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया जाएगा �क वे क्रमश: राष्ट्रप�त, संघ लोक सेवा आयोग, संसद् और भारत क� सं�चत �न�ध के प्र�त �नद� श ह� ।] [232. �नवर्चन–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 6 द्वारा (1-11-1956 से) अनच् ु छे द 230, 231 और 232 के स्थान पर अनच् ु छे द 230, और 231 को प्र�तस्था�पत �कया गया ।] अध्याय 6–अधीनस्थ न्यायालय 233. िजला न्यायाधीश� क� �नयिु क्त–(1) �कसी राज्य म� िजला न्यायाधीश �नयक् ु त होने वाले व्यिक्तय� क� �नयिु क्त तथा िजला न्यायाधीश क� पदस्थापना और प्रोन्न�त उस राज्य का राज्यपाल ऐसे राज्य के संबध ं म� अ�धका�रता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामशर् करके करे गा । (2) वह व्यिक्त, जो संघ क� या राज्य क� सेवा म� पहले से ह� नह�ं है, िजला न्यायाधीश �नयक् ु त होने के �लए केवल तभी पात्र होगा जब वह कम से कम सात वषर् तक अ�धवक्ता या प्ल�डर रहा है और उसक� �नयिु क्त के �लए उच्च न्यायालय ने �सफा�रश क� है । 1. सं�वधान (�नन्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 10 द्वारा (13-4-2015 से) खंड (क) का लोप �कया गया । यह संशोधन सुप्रीम कोटर् एडवोकेट्स आन �रकाडर् एसो�सएशन और अन्य बनाम भारत संघ (ए.आई.आर. 2016 एस.सी. 117) वाले मामले म� उच्चतम न्यायालय के तार�ख 16-10-2015 के आदे श द्वारा अ�भखं�डत कर �दया गया है । संशोधन के पूवर् खंड (क) �नम्नानुसार था :-- “(क) अनुच्छे द 217 म� उस राज्य के राज्यपाल के प्र�त �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह उन सभी राज्य� के राज्यपाल� के प्र�त �नद� श है िजनके संबंध म� वह उच्च न्यायालय अ�धका�रता का प्रयोग करता है ;” भारत का सं�वधान 109 (भाग 6—राज्य) 1 [233क. कुछ िजला न्यायाधीश� क� �नयिु क्तय� का और उनके द्वारा �कए गए �नणर्य� आ�द का �व�धमान्यकरण–�कसी न्यायालय का कोई �नणर्य, �डक्र� या आदे श होते हुए भी, – (क) (i) उस व्यिक्त क� जो राज्य क� न्या�यक सेवा म� पहले से ह� है या उस व्यिक्त क�, जो कम से कम सात वषर् तक अ�धवक्ता या प्ल�डर रहा है, उस राज्य म� िजला न्यायाधीश के रूप म� �नयिु क्त क� बाबत, और (ii) ऐसे व्यिक्त क� िजला न्यायाधीश के रूप म� पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण क� बाबत, जो सं�वधान (बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 के प्रारं भ से पहले �कसी समय अनच् ु छे द 233 या अनच् ु छे द 235 के उपबंध� के अनस ु ार न करके अन्यथा �कया गया है, केवल इस तथ्य के कारण �क ऐसी �नयिु क्त, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण उक्त उपबंध� के अनस ु ार नह�ं �कया गया था, यह नह�ं समझा जाएगा �क वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था ; (ख) �कसी राज्य म� िजला न्यायाधीश के रूप म� अनच् ु छे द 233 या अनच् ु छे द 235 के उपबंध� के अनस ु ार न करके अन्यथा �नयक् ु त, पदस्था�पत, प्रोन्नत या अंत�रत �कसी व्यिक्त द्वारा या उसके सम� सं�वधान (बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 के प्रारं भ से पहले प्रयक् ु त अ�धका�रता क�, पा�रत �कए गए या �दए गए �नणर्य, �डक्र�, दं डादे श या आदे श क� और �कए गए अन्य कायर् या कायर्वाह� क� बाबत, केवल इस तथ्य के कारण �क ऐसी �नयिु क्त, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण उक्त उपबंध� के अनस ु ार नह�ं �कया गया था, यह नह�ं समझा जाएगा �क वह अवैध या अ�व�धमान्य है या कभी भी अवैध या अ�व�धमान्य रहा था ।] 234. न्या�यक सेवा म� िजला न्यायाधीश� से �भन्न व्यिक्तय� क� भत�–िजला न्यायाधीश� से �भन्न व्यिक्तय� क� �कसी राज्य क� न्या�यक सेवा म� �नयिु क्त उस राज्य के राज्यपाल द्वारा, राज्य लोक सेवा आयोग से और ऐसे राज्य के संबध ं म� अ�धका�रता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय से परामशर् करने के पश्चात ्, और राज्यपाल द्वारा इस �न�म� बनाए गए �नयम� के अनस ु ार क� जाएगी । 235. अधीनस्थ न्यायालय� पर �नयंत्रण–िजला न्यायालय� और उनके अधीनस्थ न्यायालय� का �नयंत्रण, िजसके अंतगर्त राज्य क� न्या�यक सेवा के व्यिक्तय� और िजला न्यायाधीश के पद से अवर �कसी पद को धारण करने वाले व्यिक्तय� क� पदस्थापना, प्रोन्न�त और उनको छुट्ट� दे ना है, उच्च न्यायालय म� �न�हत होगा, �कं तु इस अनच् ु छे द क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसे �कसी व्यिक्त से उसके अपील के अ�धकार को छ�नती है जो उसक� सेवा क� शत� का �व�नयमन करने वाल� �व�ध के अधीन उसे है या उच्च न्यायालय को इस बात के �लए प्रा�धकृत करती है �क वह उससे ऐसी �व�ध के अधीन �व�हत उसक� सेवा क� शत� के अनस ु ार व्यवहार न करके अन्यथा व्यवहार करे । 1. सं�वधान (बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 2 द्वारा (22-12-1966 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 110 (भाग 6—राज्य) 236. �नवर्चन–इस अध्याय म� , – (क) “िजला न्यायाधीश” पद के अंतगर्त नगर �स�वल न्यायालय का न्यायाधीश, अपर िजला न्यायाधीश, संयक् ु त िजला न्यायाधीश, सहायक िजला न्यायाधीश, लघव ु ाद न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, मुख्य प्रे�सड�सी मिजस्ट्रे ट, अपर मुख्य प्रे�सड�सी मिजस्ट्रे ट, सेशन न्यायाधीश, अपर सेशन न्यायाधीश और सहायक सेशन न्यायाधीश ह� ; (ख) “न्या�यक सेवा” पद से ऐसी सेवा अ�भप्रेत है जो अनन्यतः ऐसे व्यिक्तय� से �मलकर बनी है, िजनके द्वारा िजला न्यायाधीश के पद का और िजला न्यायाधीश के पद से अवर अन्य �स�वल न्या�यक पद� का भरा जाना आश�यत है । 237. कुछ वगर् या वग� के मिजस्ट्रे ट� पर इस अध्याय के उपबंध� का लागू होना– राज्यपाल, लोक अ�धसूचना द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क इस अध्याय के पव र् ामी उपबंध ू ग और उनके अधीन बनाए गए �नयम ऐसी तार�ख से, जो वह इस �न�म� �नयत करे , ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, जो ऐसी अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, राज्य म� �कसी वगर् या वग� के मिजस्ट्रे ट� के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे राज्य क� न्या�यक सेवा म� �नयक् ं म� लागू होते ह� । ु त व्यिक्तय� के संबध ∗ भाग 7 [पहल� अनस ु ूची के भाग ख के राज्य ।] ∗ सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 111 1 भाग 8 [संघ राज्य�ेत्र] 2 [239. संघ राज्य�ेत्र� का प्रशासन–(1) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा यथा अन्यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक संघ राज्य�ेत्र का प्रशासन राष्ट्रप�त द्वारा �कया जाएगा, और वह अपने द्वारा ऐसे पदा�भधान स�हत, जो वह �व�न�दर्ष्ट करे , �नयक् ु त �कए गए प्रशासक के माध्यम से उस मात्रा तक कायर् करे गा िजतनी वह ठ�क समझता है । (2) भाग 6 म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त �कसी राज्य के राज्यपाल को �कसी �नकटवत� संघ राज्य�ेत्र का प्रशासक �नयक् ु त कर सकेगा और जहां कोई राज्यपाल इस प्रकार �नयक् ु त �कया जाता है वहां वह ऐसे प्रशासक के रूप म� अपने कृत्य� का प्रयोग अपनी मं�त्र-प�रषद् से स्वतंत्र रूप से करे गा । [239क. कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए स्थानीय �वधान-मंडल� या मं�त्र-प�रषद� का 4 5 या दोन� का सज ु ु चेर�,]] संघ राज्य�ेत्र के �लए,] – ृ न–(1) संसद्, �व�ध द्वारा [ [ ∗पड 3 (क) उस संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के रूप म� कायर् करने के �लए �नवार्�चत या भागतः नाम�नद� �शत और भागतः �नवार्�चत �नकाय का, या (ख) मं�त्र-प�रषद् का, या दोन� का सज ृ न कर सकेगी, िजनम� से प्रत्येक का गठन, शिक्तयां और कृत्य वे ह�गे जो उस �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं । (2) खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध को, अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नह�ं समझा जाएगा �क उसम� कोई ऐसा उपबंध अंत�वर्ष्ट है जो इस सं�वधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग ग म� के राज्य” शीषर्क के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 17 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 239 और अनुच्छे द 240 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 4 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत । 4. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “गोवा, दमण और द�व और पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र� म� से �कसी के �लए” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । ∗ अनुच्छे द 239क जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 13 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर संघ राज्य�ेत्र को लागू �कया गया है । 112 भारत का सं�वधान 113 (भाग 8—संघ राज्य�ेत्र) [239कक. �दल्ल� के संबध ं म� �वशेष उपबंध–(1) सं�वधान (उनह�रवां संशोधन) 1 अ�ध�नयम, 1991 के प्रारं भ से �दल्ल� संघ राज्य�ेत्र को �दल्ल� राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र (िजसे इस भाग म� इसके पश्चात ् राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र कहा गया है) कहा जाएगा और अनच् ु छे द 239 के अधीन �नयक् ु त उसके प्रशासक का पदा�भधान उपराज्यपाल होगा । (2)(क) राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र के �लए एक �वधान सभा होगी और ऐसी �वधान सभा म� स्थान राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन ु े हुए सदस्य� से भरे जाएंगे । (ख) �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या, अनस ु ू�चत जा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या, राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र के प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभाजन (िजसके अंतगर्त ऐसे �वभाजन का आधार है) तथा �वधान सभा के कायर्करण से संब�ं धत सभी अन्य �वषय� का �व�नयमन, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा �कया जाएगा । (ग) अनच् ु छे द 324 से अनच् ु छे द 327 और अनच् ु छे द 329 के उपबंध राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र, राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र क� �वधान सभा और उसके सदस्य� के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे, �कसी राज्य, �कसी राज्य क� �वधान सभा और उसके सदस्य� के संबध ं म� लागू होते ह� तथा अनच् ु छे द 326 और अनच् ु छे द 329 म� “समु�चत �वधान-मंडल” के प्र�त �नद� श के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह संसद् के प्र�त �नद� श है । (3)(क) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �वधान सभा को राज्य सच ू ी क� प्र�विष्ट 1, प्र�विष्ट 2 और प्र�विष्ट 18 से तथा उस सूची क� प्र�विष्ट 64, प्र�विष्ट 65 और प्र�विष्ट 66 से, जहां तक उनका संबध ं उक्त प्र�विष्ट 1, प्र�विष्ट 2 और प्र�विष्ट 18 से है, संब�ं धत �वषय� से �भन्न राज्य सच ू ी म� प्रग�णत �कसी ू ी म� या समवत� सच भी �वषय के संबध ं म� , जहां तक ऐसा कोई �वषय संघ राज्य�ेत्र� को लागू है, संपण ू र् राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बनाने क� शिक्त होगी । (ख) उपखंड (क) क� �कसी बात से संघ राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए �कसी भी �वषय के संबध ं म� इस सं�वधान के अधीन �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त का अल्पीकरण नह�ं होगा । 1. सं�वधान (उनहतरवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1991 क� धारा 2 द्वारा (1-2-1992 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 114 (भाग 8—संघ राज्य�ेत्र) (ग) य�द �वधान सभा द्वारा �कसी �वषय के संबध ं म� बनाई गई �व�ध का कोई उपबंध संसद् द्वारा उस �वषय के संबध ं म� बनाई गई �व�ध के, चाहे वह �वधान सभा द्वारा बनाई गई �व�ध से पहले या उसके बाद म� पा�रत क� गई हो, या �कसी पव र् र ू त �व�ध के, जो �वधान सभा द्वारा बनाई गई �व�ध से �भन्न है, �कसी उपबंध के �वरुद्ध र् र �व�ध है तो, दोन� दशाओं म� , यथािस्थ�त, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध, या ऐसी पव ू त अ�भभावी होगी और �वधान सभा द्वारा बनाई गई �व�ध उस �वरोध क� मात्रा तक शून्य होगी : परं तु य�द �वधान सभा द्वारा बनाई गई �कसी ऐसी �व�ध को राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखा गया है और उस पर उसक� अनम ु �त �मल गई है तो ऐसी �व�ध राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र म� अ�भभावी होगी : परं तु यह और �क इस उपखंड क� कोई बात संसद् को उसी �वषय के संबध ं म� कोई �व�ध, िजसके अंतगर्त ऐसी �व�ध है जो �वधान सभा द्वारा इस प्रकार बनाई गई �व�ध का प�रवधर्न, संशोधन, प�रवतर्न या �नरसन करती है, �कसी भी समय अ�ध�नय�मत करने से �नवा�रत नह�ं करे गी । (4) िजन बात� म� �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन उप-राज्यपाल से यह अपे��त है �क वह अपने �ववेकानस ु ार कायर् करे उन बात� को छोड़कर, उप-राज्यपाल क�, उन �वषय� के संबध ं म� , िजनक� बाबत �वधान सभा को �व�ध बनाने क� शिक्त है, अपने कृत्य� का प्रयोग करने म� सहायता और सलाह दे ने के �लए एक मं�त्र-प�रषद् होगी जो �वधान सभा क� कुल सदस्य संख्या के दस प्र�तशत से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी, िजसका प्रधान, मख् ु यमंत्री होगा : परं तु उप-राज्यपाल और उसके मं�त्रय� के बीच �कसी �वषय पर मतभेद क� दशा म� , उप-राज्यपाल उसे राष्ट्रप�त को �व�नश्चय के �लए �नद� �शत करे गा और राष्ट्रप�त द्वारा उस पर �कए गए �व�नश्चय के अनस ु ार कायर् करे गा तथा ऐसा �व�नश्चय होने तक उप-राज्यपाल �कसी ऐसे मामले म� , जहां वह �वषय, उसक� राय म� , इतना आवश्यक है िजसके कारण तुरन्त कारर्वाई करना उसके �लए आवश्यक है वहां, उस �वषय म� ऐसी कारर्वाई करने या ऐसा �नदे श दे ने के �लए, जो वह आवश्यक समझे, स�म होगा । (5) मख् ु यमंत्री क� �नयिु क्त राष्ट्रप�त करे गा और अन्य मं�त्रय� क� �नयिु क्त राष्ट्रप�त, मख् यमं त्री क� सलाह पर करे गा तथा मंत्री, राष्ट्रप�त के प्रसादपयर्न्त अपने पद ु धारण कर� गे । (6) मं�त्र-प�रषद् �वधान सभा के प्र�त सामू�हक रूप से उ�रदायी होगी । भारत का सं�वधान 115 (भाग 8—संघ राज्य�ेत्र) [(7)(क)] संसद्, पव र् ामी खंड� को प्रभावी करने के �लए, या उनम� अंत�वर्ष्ट ू ग उपबंध� क� अनप ु �ू तर् के �लए और उनके आनष ु �ं गक या पा�रणा�मक सभी �वषय� के �लए, �व�ध द्वारा, उपबंध कर सकेगी । 1 2 [(ख) उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �व�ध को, अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नह�ं समझा जाएगा �क उसम� कोई ऐसा उपबंध अंत�वर्ष्ट है जो इस सं�वधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है ।] (8) अनच् ु छे द 239ख के उपबंध, जहां तक हो सके, राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र, उप-राज्यपाल और �वधान सभा के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे 3[पड ु ु चेर�] संघ राज्य�ेत्र, प्रशासक और उसके �वधान-मंडल के संबध ं म� लागू होते ह� ; और उस अनच् ु छे द म� “अनच् ु छे द 239क के खंड (1)” के प्र�त �नद� श के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह, यथािस्थ�त, इस अनच् ु छे द या अनच् ु छे द 239कख के प्र�त �नद� श है । 239कख. सां�वधा�नक तंत्र के �वफल हो जाने क� दशा म� उपबंध–य�द राष्ट्रप�त का, उप-राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है �क,– (क) ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजसम� राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र का प्रशासन अनच् ु छे द 239कक या उस अनच् ु छे द के अनस ु रण म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अनस ु ार नह�ं चलाया जा सकता है ; या (ख) राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र के उ�चत प्रशासन के �लए ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है, तो राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा, अनच् ु छे द 239कक के �कसी उपबंध के अथवा उस अनच् ु छे द के अनस ु रण म� बनाई गई �कसी �व�ध के सभी या �कन्ह�ं उपबंध� के प्रवतर्न को, ऐसी अव�ध के �लए और ऐसी शत� के अधीन रहते हुए, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, �नलं�बत कर सकेगा, तथा ऐसे आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध कर सकेगा जो अनच् ु छे द 239 और अनच् ु छे द 239कक के उपबंध� के अनस ु ार राष्ट्र�य राजधानी राज्य�ेत्र के प्रशासन के �लए उसे आवश्यक या समीचीन प्रतीत ह� ।] 1. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) “(7)” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (स�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (21-12-1991 से) अंतःस्था�पत । 3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 116 भारत का सं�वधान (भाग 8—संघ राज्य�ेत्र) 1 [239ख. �वधान-मंडल के �वश्रां�तकाल म� अध्यादे श प्रख्या�पत करने क� प्रशासक क� शिक्त–(1) उस समय को छोड़कर जब 2[ 3[पुडुचेर�] संघ राज्य�ेत्र] का �वधान-मंडल सत्र म� है , य�द �कसी समय उसके प्रशासक का यह समाधान हो जाता है �क ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण तुरन्त कारर् वाई करना उसके �लए आवश्यक हो गया है तो वह ऐसे अध्यादे श प्रख्या�पत कर सकेगा जो उसे उन प�रिस्थ�तय� म� अपे��त प्रतीत ह� : परं तु प्रशासक, कोई ऐसा अध्यादे श राष्ट्रप�त से इस �न�म� अनद ु े श अ�भप्राप्त करने के पश्चात ् ह� प्रख्या�पत करे गा, अन्यथा नह�ं : परं तु यह और �क जब कभी उक्त �वधान-मंडल का �वघटन कर �दया जाता है या अनच् ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध के अधीन क� गई �कसी कारर्वाई के कारण उसका कायर्करण �नलं�बत रहता है तब प्रशासक ऐसे �वघटन या �नलंबन क� अव�ध के दौरान कोई अध्यादे श प्रख्या�पत नह�ं करे गा । (2) राष्ट्रप�त के अनद ु े श� के अनस ु रण म� इस अनच् ु छे द के अधीन प्रख्या�पत अध्यादे श संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल का ऐसा अ�ध�नयम समझा जाएगा जो अनच् ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध म� , उस �न�म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� का अनप ु ालन करने के पश्चात ् सम्यक् रूप से अ�ध�नय�मत �कया गया है, �कं तु प्रत्येक ऐसा अध्यादे श— (क) संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के सम� रखा जाएगा और �वधानमंडल के पन ु ः समवेत होने से छह सप्ताह क� समािप्त पर या य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले �वधान-मंडल उसके अननम ु ोदन का संकल्प पा�रत कर दे ता है तो संकल्प के पा�रत होने पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा ; और (ख) राष्ट्रप�त से इस �न�म� अनद ु े श अ�भप्राप्त करने के पश्चात ् प्रशासक द्वारा �कसी भी समय वापस �लया जा सकेगा । (3) य�द और जहां तक इस अनच् ु छे द के अधीन अध्यादे श कोई ऐसा उपबंध करता है जो संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के ऐसे अ�ध�नयम म� , िजसे अनच् ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध म� इस �न�म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� का अनप ु ालन करने के पश्चात ् बनाया गया है, अ�ध�नय�मत �कए जाने पर �व�धमान्य नह�ं होता तो और वहां तक वह अध्यादे श शून्य होगा ।] (4)* 4 * * * 1. सं�वधान (सताईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (30-12-1971 से) अंतःस्था�पत । 2. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 63 द्वारा (30-5-1987 से) “अनुच्छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर् ष्ट संघ राज्य�ेत्र�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा स्थान पर प्र�तस्था�पत । (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के 4. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 4 द्वारा (भूतल�ी रूप से) अंतःस्था�पत और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 32 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 117 (भाग 8—संघ राज्य�ेत्र) 240. कुछ संघ राज्य�ेत्र� के �लए �व�नयम बनाने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त–(1) राष्ट्रप�त– (क) अंदमान और �नकोबार द्वीप ; [(ख) ल�द्वीप ;] 1 [(ग) दादरा और नागर हवेल� और दमण और द�व;] 2 3 [(घ)****;] [(ङ) 5[पड ु ु चेर�] ;] 4 19 20 (च)* * * * (छ)* * * * 6 7 संघ राज्य�ेत्र क� शां�त, प्रग�त और सश ु ासन के �लए �व�नयम बना सकेगा : 8 5 [परं तु जब 9[पड ु ु चेर�] [संघ राज्य�ेत्र] के �लए �वधान-मंडल के रूप म� कायर् करने के �लए अनच् ु छे द 239क के अधीन �कसी �नकाय का सज ृ न �कया जाता है तब राष्ट्रप�त �वधान-मंडल के प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से उस संघ राज्य�ेत्र क� शां�त, प्रग�त और सश ु ासन के �लए �व�नयम नह�ं बनाएगा :] 1. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 4 द्वारा (1-11-1973 से) प्र�विष्ट (ख) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क� धारा 4(i) द्वारा (26-1-2020 से) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 3 द्वारा (26-1-2020 से) प्र�विष्ट ग अंतःस्था�पत क� गई थी । 3. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क� धारा 4(iii) द्वारा लोप �कया गया । 4. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 द्वारा (16-8-1962 से) अंतःस्था�पत । 5. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�विष्ट (च) का लोप �कया गया । 7. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 42 द्वारा (20-2-1987 से) अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�विष्ट (छ) का लोप �कया गया । 8. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 5 द्वारा (28-12-1962 से) अंतःस्था�पत । 9. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “गोवा, दमण और द�व या पां�डचेर� संघ राज्य�ेत्र” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 118 (भाग 8—संघ राज्य�ेत्र) [परं तु यह और �क जब कभी 2[पड ु ु चेर�]] संघ राज्य�ेत्र के �वधान-मंडल के रूप म� कायर् करने वाले �नकाय का �वघटन कर �दया जाता है या उस �नकाय का ऐसे �वधान-मंडल के रूप म� कायर्करण, अनच् ु छे द 239क के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध के अधीन क� गई कारर्वाई के कारण �नलं�बत रहता है तब राष्ट्रप�त ऐसे �वघटन या �नलंबन क� अव�ध के दौरान उस संघ राज्य�ेत्र क� शां�त, प्रग�त और सश ु ासन के �लए �व�नयम बना सकेगा ।] (2) इस प्रकार बनाया गया कोई �व�नयम संसद् द्वारा बनाए गए �कसी अ�ध�नयम या 3[�कसी अन्य �व�ध] का, जो उस संघ राज्य�ेत्र को तत्समय लागू है, �नरसन या संशोधन कर सकेगा और राष्ट्रप�त द्वारा प्रख्या�पत �कए जाने पर उसका वह� बल और प्रभाव होगा जो संसद् के �कसी ऐसे अ�ध�नयम का है जो उस राज्य�ेत्र को लागू होता है ।] 241. संघ राज्य�ेत्र� के �लए उच्च न्यायालय–(1) संसद् �व�ध द्वारा, �कसी 4 [संघ राज्य�ेत्र] के �लए उच्च न्यायालय ग�ठत कर सकेगी या 5[ऐसे राज्य�ेत्र] म� �कसी न्यायालय को इस सं�वधान के सभी या �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए उच्च न्यायालय घो�षत कर सकेगी । (2) भाग 6 के अध्याय 5 के उपबंध, ऐसे उपांतरण� या अपवाद� के अधीन रहते हुए, जो संसद् �व�ध द्वारा उपबं�धत करे , खंड (1) म� �न�दर्ष्ट प्रत्येक उच्च न्यायालय के संबध ं म� वैसे ह� लागू ह�गे जैसे वे अनच् ु छे द 214 म� �न�दर्ष्ट �कसी उच्च न्यायालय के संबध ं म� लागू होते ह� । 6 [(3) इस सं�वधान के उपबंध� के और इस सं�वधान द्वारा या इसके अधीन समु�चत �वधान-मंडल को प्रद� शिक्तय� के आधार पर बनाई गई उस �वधान-मंडल क� �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म� अ�धका�रता का प्रयोग करता था, ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् उस राज्य�ेत्र के संबध ं म� उस अ�धका�रता का प्रयोग करता रहे गा । (4) इस अनच् ु छे द क� �कसी बात से �कसी राज्य के उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता का �कसी संघ राज्य�ेत्र या उसके भाग पर �वस्तार करने या उससे अपवजर्न करने क� संसद् क� शिक्त का अल्पीकरण नह�ं होगा ।] 242. [कोड़गू ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च ू ी द्वारा लोप �कया गया । 1 1. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत । 2. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) "पां�डचेर�" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (15-2-1972 से) “�कसी �वद्यमान �व�ध” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग ग म� �व�न�दर् ष्ट राज्य” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसा राज्य” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (3) और खंड (4) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । [भाग 9 1 पंचायत 243. प�रभाषाएं–इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,– (क) “िजला” से �कसी राज्य का िजला अ�भप्रेत है ; (ख) “ग्राम सभा” से ग्राम स्तर पर पंचायत के �ेत्र के भीतर समा�वष्ट �कसी ग्राम से संब�ं धत �नवार्चक नामावल� म� रिजस्ट्र�कृत व्यिक्तय� से �मलकर बना �नकाय अ�भप्रेत है ; (ग) “मध्यवत� स्तर” से ग्राम और िजला स्तर� के बीच का ऐसा स्तर अ�भप्रेत है िजसे �कसी राज्य का राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजन� के �लए, लोक अ�धसच ू ना द्वारा, मध्यवत� स्तर के रूप म� �व�न�दर्ष्ट करे ; (घ) “पंचायत” से ग्रामीण �ेत्र� के �लए अनच् ु छे द 243ख के अधीन ग�ठत स्वाय� शासन क� कोई संस्था (चाहे वह �कसी भी नाम से �ात हो) अ�भप्रेत है ; (ङ) “पंचायत �ेत्र” से पंचायत का प्रादे �शक �ेत्र अ�भप्रेत है ; (च) “जनसंख्या” से ऐसी अं�तम पव र् त� जनगणना म� अ�भ�निश्चत क� ू व गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस ं त आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� ; ु ग (छ) “ग्राम” से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजन� के �लए, लोक अ�धसूचना द्वारा, ग्राम के रूप म� �व�न�दर्ष्ट ग्राम अ�भप्रेत है और इसके अंतगर्त इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट ग्राम� का समह ू भी है । 243क. ग्राम सभा–ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शिक्तय� का प्रयोग और ऐसे कृत्य� का पालन कर सकेगी, जो �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, उपबं�धत �कए जाएं । 243ख. पंचायत� का गठन–(1) प्रत्येक राज्य म� ग्राम, मध्यवत� और िजला स्तर पर इस भाग के उपबंध� के अनस ु ार पंचायत� का गठन �कया जाएगा । (2) खंड (1) म� �कसी बात के होते हुए भी, मध्यवत� स्तर पर पंचायत का उस राज्य म� गठन नह�ं �कया जा सकेगा िजसक� जनसंख्या बीस लाख से अन�धक है । 243ग. पंचायत� क� संरचना–(1) इस भाग के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, पंचायत� क� संरचना क� बाबत उपबंध कर सकेगा : 1. सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (24-4-1993 से) अंतःस्था�पत । सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) मूल भाग 9 का लोप �कया गया था । 119 भारत का सं�वधान 120 (भाग 9—पंचायत) परं तु �कसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादे �शक �ेत्र क� जनसंख्या का ऐसी पंचायत म� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� संख्या से अनप ु ात समस्त राज्य म� यथासाध्य एक ह� हो । (2) �कसी पंचायत के सभी स्थान, पंचायत �ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन ु े हुए व्यिक्तय� से भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के �लए, प्रत्येक पंचायत �ेत्र को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� ऐसी र��त से �वभािजत �कया जाएगा �क प्रत्येक �नवार्चन-�ेत्र क� जनसंख्या का उसको आबं�टत स्थान� क� संख्या से अनप ु ात समस्त पंचायत �ेत्र म� यथासाध्य एक ह� हो । (3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा,– (क) ग्राम स्तर पर पंचायत� के अध्य�� का मध्यवत� स्तर पर पंचायत� म� या ऐसे राज्य क� दशा म� , जहां मध्यवत� स्तर पर पंचायत� नह�ं ह�, िजला स्तर पर पंचायत� म� ; म� ; (ख) मध्यवत� स्तर पर पंचायत� के अध्य�� का िजला स्तर पर पंचायत� (ग) लोक सभा के ऐसे सदस्य� का और राज्य क� �वधान सभा के ऐसे सदस्य� का, जो उन �नवार्चन-�ेत्र� का प्र�त�न�धत्व करते ह� िजनम� ग्राम स्तर से �भन्न स्तर पर कोई पंचायत �ेत्र पण र् ः या भागतः समा�वष्ट है, ऐसी पंचायत ू त म� ; (घ) राज्य सभा के सदस्य� का और राज्य क� �वधान प�रषद् के सदस्य� का, जहां वे,– (i) मध्यवत� स्तर पर �कसी पंचायत �ेत्र के भीतर �नवार्चक� के रूप म� रिजस्ट्र�कृत है, मध्यवत� स्तर पर पंचायत म� ; (ii) िजला स्तर पर �कसी पंचायत �ेत्र के भीतर �नवार्चक� के रूप म� रिजस्ट्र�कृत ह�, िजला स्तर पर पंचायत म� , प्र�त�न�धत्व करने के �लए उपबंध कर सकेगा । (4) �कसी पंचायत के अध्य� और �कसी पंचायत के ऐसे अन्य सदस्य� को, चाहे वे पंचायत �ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन ु े गए ह� या नह�ं, पंचायत� के अ�धवेशन� म� मत दे ने का अ�धकार होगा । (5)(क) ग्राम स्तर पर �कसी पंचायत के अध्य� का �नवार्चन ऐसी र��त से, जो राज्य के �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, उपबं�धत क� जाए, �कया जाएगा ; और (ख) मध्यवत� स्तर या िजला स्तर पर �कसी पंचायत के अध्य� का �नवार्चन, उसके �नवार्�चत सदस्य� द्वारा अपने म� से �कया जाएगा । भारत का सं�वधान 121 (भाग 9—पंचायत) 243घ. स्थान� का आर�ण – (1) प्रत्येक पंचायत म� – (क) अनस ु ू�चत जा�तय� ; और (ख) अनस ु ू�चत जनजा�तय�, के �लए स्थान आर��त रह� गे और इस प्रकार आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, उस पंचायत म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा जो उस पंचायत �ेत्र म� अनस ु ू�चत जा�तय� क� अथवा उस पंचायत �ेत्र म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप ु ात उस �ेत्र क� कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान �कसी पंचायत म� �भन्न-�भन्न �नवार्चन �ेत्र� को चक्रानक्र ु म से आबं�टत �कए जा सक�गे । (2) खंड (1) के अधीन आर��त स्थान� क� कुल संख्या के कम से कम एक-�तहाई स्थान, यथािस्थ�त, अनस ु ू�चत जा�तय� या अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए आर��त रह� गे । (3) प्रत्येक पंचायत म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� कुल संख्या के कम से कम एक-�तहाई स्थान (िजनके अंतगर्त अनस ु ू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या भी है) िस्त्रय� के �लए आर��त रह� गे और ऐसे स्थान �कसी पंचायत म� �भन्न-�भन्न �नवार्चन-�ेत्र� को चक्रानक्र ु म से आबं�टत �कए जा सक�गे । (4) ग्राम या �कसी अन्य स्तर पर पंचायत� म� अध्य�� के पद अनस ु ू�चत जा�तय�, अनस ु ू�चत जनजा�तय� और िस्त्रय� के �लए ऐसी र��त से आर��त रह� गे, जो राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, उपबं�धत करे : परं तु �कसी राज्य म� प्रत्येक स्तर पर पंचायत� म� अनस ु ू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त अध्य�� के पद� क� संख्या का अनप ु ात, प्रत्येक स्तर पर उन पंचायत� म� ऐसे पद� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा, जो उस राज्य म� अनस ु �ू चत जा�तय� क� अथवा उस राज्य म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप ु ात उस राज्य क� कुल जनसंख्या से है : परं तु यह और �क प्रत्येक स्तर पर पंचायत� म� अध्य�� के पद� क� कुल संख्या के कम से कम एक-�तहाई पद िस्त्रय� के �लए आर��त रह� गे : परं तु यह भी �क इस खंड के अधीन आर��त पद� क� संख्या प्रत्येक स्तर पर �भन्न-�भन्न पंचायत� को चक्रानक्र ु म से आबं�टत क� जाएगी । (5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थान� का आर�ण और खंड (4) के अधीन अध्य�� के पद� का आर�ण (जो िस्त्रय� के �लए आर�ण से �भन्न है) अनच् ु छे द 334 म� �व�न�दर्ष्ट अव�ध क� समािप्त पर प्रभावी नह�ं रहे गा । (6) इस भाग क� कोई बात �कसी राज्य के �वधान-मंडल को �पछड़े हुए नाग�रक� के �कसी वगर् के प� म� �कसी स्तर पर �कसी पंचायत म� स्थान� के या पंचायत� म� अध्य�� के पद� के आर�ण के �लए कोई उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी । भारत का सं�वधान 122 (भाग 9—पंचायत) 243ङ. पंचायत� क� अव�ध, आ�द–(1) प्रत्येक पंचायत, य�द तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, अपने प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अ�धक नह�ं । (2) तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के �कसी संशोधन से �कसी स्तर पर ऐसी पंचायत का, जो ऐसे संशोधन के ठ�क पव ू र् कायर् कर रह� है, तब तक �वघटन नह�ं होगा जब तक खंड (1) म� �व�न�दर्ष्ट उसक� अव�ध समाप्त नह�ं हो जाती । (3) �कसी पंचायत का गठन करने के �लए �नवार्चन,– (क) खंड (1) म� �व�न�दर्ष्ट उसक� अव�ध क� समािप्त के पव ू र् ; पव ू ,र् (ख) उसके �वघटन क� तार�ख से छह मास क� अव�ध क� समािप्त के परू ा �कया जाएगा : परं तु जहां वह शेष अव�ध, िजसके �लए कोई �वघ�टत पंचायत बनी रहती, छह मास से कम है वहां ऐसी अव�ध के �लए उस पंचायत का गठन करने के �लए इस खंड के अधीन कोई �नवार्चन कराना आवश्यक नह�ं होगा । (4) �कसी पंचायत क� अव�ध क� समािप्त के पव ू र् उस पंचायत के �वघटन पर ग�ठत क� गई कोई पंचायत, उस अव�ध के केवल शेष भाग के �लए बनी रहे गी िजसके �लए �वघ�टत पंचायत खंड (1) के अधीन बनी रहती, य�द वह इस प्रकार �वघ�टत नह�ं क� जाती । 243च. सदस्यता के �लए �नरहर्ताएं–(1) कोई व्यिक्त �कसी पंचायत का सदस्य चन ु े जाने के �लए और सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा, – (क) य�द वह संब�ं धत राज्य के �वधान-मंडल के �नवार्चन� के प्रयोजन� के �लए तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है : परं तु कोई व्यिक्त इस आधार पर �नर�हर्त नह�ं होगा �क उसक� आयु पच्चीस वषर् से कम है, य�द उसने इक्क�स वषर् क� आयु प्राप्त कर ल� है ; (ख) य�द वह राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है । (2) य�द यह प्रश्न उठता है �क �कसी पंचायत का कोई सदस्य खंड (1) म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्रश्न ऐसे प्रा�धकार� को और ऐसी र��त से, जो राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, उपबं�धत करे , �व�नश्चय के �लए �नद� �शत �कया जाएगा । भारत का सं�वधान 123 (भाग 9—पंचायत) 243छ. पंचायत� क� शिक्तयां, प्रा�धकार और उ�रदा�यत्व – सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, पंचायत� को ऐसी शिक्तयां और प्रा�धकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्ह� स्वाय� शासन क� संस्थाओं के रूप म� कायर् करने म� समथर् बनाने के �लए आवश्यक ह� और ऐसी �व�ध म� पंचायत� को उपयक् ु त स्तर पर, ऐसी शत� के अधीन रहते हुए, जो उसम� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, �नम्न�ल�खत के संबध ं म� शिक्तयां और उ�रदा�यत्व न्यागत करने के �लए उपबंध �कए जा सक�गे, अथार्त ् :– करना ; (क) आ�थर्क �वकास और सामािजक न्याय के �लए योजनाएं तैयार (ख) आ�थर्क �वकास और सामािजक न्याय क� ऐसी स्क�म� को, जो उन्ह� स�पी जाएं, िजनके अंतगर्त वे स्क�म� भी ह�, जो ग्यारहवीं अनस ु ूची म� सच ू ीबद्ध �वषय� के संबध ं म� ह�, कायार्िन्वत करना । 243ज. पंचायत� द्वारा कर अ�धरो�पत करने क� शिक्तयां और उनक� �न�धयां– �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा,– (क) ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फ�स� उद्गह ृ �त, संगह ृ �त और �व�नयोिजत करने के �लए �कसी पंचायत को, ऐसी प्र�क्रया के अनस ु ार और ऐसे �नब�धन� के अधीन रहते हुए, प्रा�धकृत कर सकेगा ; (ख) राज्य सरकार द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फ�स� �कसी पंचायत को, ऐसे प्रयोजन� के �लए, तथा ऐसी शत� और �नब�धन� के अधीन रहते हुए, समन�ु दष्ट कर सकेगा ; (ग) राज्य क� सं�चत �न�ध म� से पंचायत� के �लए ऐसे सहायता-अनद ु ान दे ने के �लए उपबंध कर सकेगा ; और (घ) पंचायत� द्वारा या उनक� ओर से क्रमशः प्राप्त �कए गए सभी धन� को जमा करने के �लए ऐसी �न�धय� का गठन करने और उन �न�धय� म� से ऐसे धन� को �नकालने के �लए भी उपबंध कर सकेगा, जो �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं । 243झ. �व�ीय िस्थ�त के पन ु �वर्लोकन के �लए �व� आयोग का गठन–(1) राज्य का राज्यपाल, सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 के प्रारं भ से एक वषर् के भीतर यथाशीघ्र, और तत्पश्चात ्, प्रत्येक पांचव� वषर् क� समािप्त पर, �व� आयोग का गठन करे गा जो पंचायत� क� �व�ीय िस्थ�त का पन ु �वर्लोकन करे गा, और जो– (क)(i) राज्य द्वारा उद्गह ृ �त कर�, शुल्क�, पथकर� और फ�स� के ऐसे शुद्ध आगम� के राज्य और पंचायत� के बीच, जो इस भाग के अधीन उनम� �वभािजत �कए जाएं, �वतरण को और सभी स्तर� पर पंचायत� के बीच ऐसे आगम� के तत्संबध ं ी भाग के आबंटन को ; भारत का सं�वधान 124 (भाग 9—पंचायत) (ii) ऐसे कर�, शुल्क�, पथकर� और फ�स� के अवधारण को, जो पंचायत� को समन�ु दष्ट क� जा सक�गी या उनके द्वारा �व�नयोिजत क� जा सक�गी ; (iii) राज्य क� सं�चत �न�ध म� से पंचायत� के �लए सहायता अनद ु ान को, शा�सत करने वाले �सद्धांत� के बारे म� ; (ख) पंचायत� क� �व�ीय िस्थ�त को सध ु ारने के �लए आवश्यक अध्यप ु ाय� के बारे म� ; (ग) पंचायत� के सुदृढ़ �व� के �हत म� राज्यपाल द्वारा �व� आयोग को �न�दर्ष्ट �कए गए �कसी अन्य �वषय के बारे म� , राज्यपाल को �सफा�रश करे गा । (2) राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, आयोग क� संरचना का, उन अहर्ताओं का, जो आयोग के सदस्य� के रूप म� �नयिु क्त के �लए अपे��त ह�गी, और उस र��त का, िजससे उनका चयन �कया जाएगा, उपबंध कर सकेगा । (3) आयोग अपनी प्र�क्रया अवधा�रत करे गा और उसे अपने कृत्य� के पालन म� ऐसी शिक्तयां ह�गी जो राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, उसे प्रदान करे । (4) राज्यपाल इस अनच् ु छे द के अधीन आयोग द्वारा क� गई प्रत्येक �सफा�रश को, उस पर क� गई कारर्वाई के स्पष्ट�कारक �ापन स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा । 243ञ. पंचायत� के लेखाओं क� संपर��ा–�कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, पंचायत� द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं क� संपर��ा करने के बारे म� उपबंध कर सकेगा । 243ट. पंचायत� के �लए �नवार्चन–(1) पंचायत� के �लए कराए जाने वाले सभी �नवार्चन� के �लए �नवार्चक नामावल� तैयार कराने का और उन सभी �नवार्चन� के संचालन का अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण एक राज्य �नवार्चन आयोग म� �न�हत होगा, िजसम� एक राज्य �नवार्चन आयक् ु त �कया जाएगा । ु त होगा, जो राज्यपाल द्वारा �नयक् (2) �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्य �नवार्चन आयक् ु त क� सेवा क� शत� और पदाव�ध ऐसी ह�गी जो राज्यपाल �नयम द्वारा अवधा�रत करे : परं तु राज्य �नवार्चन आयक् ु त को उसके पद से उसी र��त से और उन्ह�ं आधार� पर ह� हटाया जाएगा, िजस र��त से और िजन आधार� पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है, अन्यथा नह�ं और राज्य �नवार्चन आयक् ु त क� सेवा क� शत� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । भारत का सं�वधान 125 (भाग 9—पंचायत) (3) जब राज्य �नवार्चन आयोग ऐसा अनरु ोध करे तब �कसी राज्य का राज्यपाल, राज्य �नवार्चन आयोग को उतने कमर्चा�रवद ंृ उपलब्ध कराएगा िजतने खंड (1) द्वारा राज्य �नवार्चन आयोग को उसे स�पे गए कृत्य� के �नवर्हन के �लए आवश्यक ह� । (4) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, पंचायत� के �नवार्चन� से संब�ं धत या संसक्त सभी �वषय� के संबध ं म� उपबंध कर सकेगा । 243ठ. संघ राज्य�ेत्र� को लागू होना–इस भाग के उपबंध संघ राज्य�ेत्र� को लागू ह�गे और �कसी संघ राज्य�ेत्र को उनके लागू होने म� इस प्रकार प्रभावी ह�गे मानो �कसी राज्य के राज्यपाल के प्र�त �नद� श, अनच् ु छे द 239 के अधीन �नयक् ु त संघ राज्य�ेत्र के प्रशासक के प्र�त �नद� श ह� और �कसी राज्य के �वधान-मंडल या �वधान सभा के प्र�त ं म� , िजसम� �वधान सभा है, उस �वधान सभा के �नद� श, �कसी ऐसे संघ राज्य�ेत्र के संबध प्र�त �नद� श ह� : परं तु राष्ट्रप�त, लोक अ�धसच ू ना द्वारा, यह �नदे श दे सकेगा �क इस भाग के उपबंध �कसी संघ राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, लागू ह�गे, जो वह अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट करे । 243ड. इस भाग का क�तपय �ेत्र� को लागू न होना–(1) इस भाग क� कोई बात अनच् ु छे द 244 के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट अनस ु ू�चत �ेत्र� और उसके खंड (2) म� �न�दर्ष्ट जनजा�त �ेत्र� को लागू नह�ं होगी । (2) इस भाग क� कोई बात �नम्न�ल�खत को लागू नह�ं होगी, अथार्त ् : – (क) नागाल�ड, मेघालय और �मजोरम राज्य ; (ख) म�णपरु राज्य म� ऐसे पवर्तीय �ेत्र िजनके �लए तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन िजला प�रषद� �वद्यमान ह� । (3) इस भाग क� – (क) कोई बात िजला स्तर पर पंचायत� के संबध ं म� पिश्चमी बंगाल राज्य के दािजर्�लंग िजले के ऐसे पवर्तीय �ेत्र� को लागू नह�ं होगी िजनके �लए तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन दािजर्�लंग गोरखा पवर्तीय प�रषद् �वद्यमान है ; (ख) �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसी �व�ध के अधीन ग�ठत दािजर्�लंग गोरखा पवर्तीय प�रषद् के कृत्य� और शिक्तय� पर प्रभाव डालती है । भारत का सं�वधान 126 (भाग 9—पंचायत) 1 [(3क) अनस ु �ू चत जा�तय� के �लए स्थान� के आर�ण से संब�ं धत अनच् ु छे द 243घ क� कोई बात अरुणाचल प्रदे श राज्य को लागू नह�ं होगी ।] (4) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – (क) खंड (2) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, इस भाग का �वस्तार, खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �ेत्र� के �सवाय, य�द कोई ह�, उस राज्य पर उस दशा म� कर सकेगा जब उस राज्य क� �वधान सभा इस आशय का एक संकल्प उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा पा�रत कर दे ती है ; (ख) संसद्, �व�ध द्वारा, इस भाग के उपबंध� का �वस्तार, खंड (1) म� �न�दर्ष्ट अनस ु �ू चत �ेत्र� और जनजा�त �ेत्र� पर, ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं और ऐसी �कसी �व�ध को अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन नह�ं समझा जाएगा । 243ढ. �वद्यमान �व�धय� और पंचायत� का बना रहना – इस भाग म� �कसी बात के होते हुए भी, सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 के प्रारं भ के ठ�क पव ू र् �कसी राज्य म� प्रव� ृ पंचायत� से संब�ं धत �कसी �व�ध का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंध� से असंगत है, जब तक स�म �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा उसे संशो�धत या �नर�सत नह�ं कर �दया जाता है या जब तक ऐसे प्रारं भ से एक वषर् समाप्त नह�ं हो जाता है, इनम� से जो भी पहले हो, तब तक प्रव� ृ बना रहे गा : परं तु ऐसे प्रारं भ के ठ�क पव ू र् �वद्यमान सभी पंचायत� , य�द उस राज्य क� �वधान सभा द्वारा या ऐसे राज्य क� दशा म� , िजसम� �वधान प�रषद् है, उस राज्य के �वधानमंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पा�रत इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती ह� तो, अपनी अव�ध क� समािप्त तक बनी रह� गी । 243ण. �नवार्चन संबध ं ी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – (क) अनच् ु छे द 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के �लए तात्प�यर्त �कसी ऐसी �व�ध क� �व�धमान्यता, जो �नवार्चन-�ेत्र� के प�रसीमन या ऐसे �नवार्चन-�ेत्र� को स्थान� के आबंटन से संब�ं धत है, �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी ; (ख) �कसी पंचायत के �लए कोई �नवार्चन, ऐसी �नवार्चन अज� पर ह� प्रश्नगत �कया जाएगा जो ऐसे प्रा�धकार� को और ऐसी र��त से प्रस्तुत क� गई है, िजसका �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन उपबंध �कया जाए, अन्यथा नह�ं ।] 1. सं�वधान (�तरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (8-9-2000 से) अंतःस्था�पत । [भाग 9क 1 नगरपा�लकाएं हो, – 243त. प�रभाषाएं – इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न (क) “स�म�त” से अनच् ु छे द 243ध के अधीन ग�ठत स�म�त अ�भप्रेत है ; (ख) “िजला” से �कसी राज्य का िजला अ�भप्रेत है ; (ग) “महानगर �ेत्र” से दस लाख या उससे अ�धक जनसंख्या वाला ऐसा �ेत्र अ�भप्रेत है िजसम� एक या अ�धक िजले समा�वष्ट ह� और जो दो या अ�धक नगरपा�लकाओं या पंचायत� या अन्य संलग्न �ेत्र� से �मलकर बनता है तथा िजसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजन� के �लए, लोक अ�धसूचना द्वारा, महानगर �ेत्र के रूप म� �व�न�दर्ष्ट करे ; (घ) “नगरपा�लका �ेत्र” से नगरपा�लका का प्रादे �शक �ेत्र अ�भप्रेत राज्यपाल है ; द्वारा अ�धस�ू चत �कसी (ङ) “नगरपा�लका” से अनच् ु छे द 243थ के अधीन ग�ठत स्वाय� शासन क� कोई संस्था अ�भप्रेत है ; है ; (च) “पंचायत” से अनच् ु छे द 243ख के अधीन ग�ठत कोई पंचायत अ�भप्रेत (छ) “जनसंख्या” से ऐसी अं�तम पव र् त� जनगणना म� अ�भ�निश्चत क� ू व गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सस ं त आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� । ु ग 243थ. नगरपा�लकाओं का गठन – (1) प्रत्येक राज्य म� , इस भाग के उपबंध� के अनस ार,– ु (क) �कसी संक्रमणशील �ेत्र के �लए, अथार्त ्, ग्रामीण �ेत्र से नगर�य �ेत्र म� संक्रमणगत �ेत्र के �लए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह �कसी भी नाम से �ात हो) ; (ख) �कसी लघत ु र नगर�य �ेत्र के �लए नगरपा�लका प�रषद् का ; और (ग) �कसी वह ृ �र नगर�य �ेत्र के �लए नगर �नगम का, गठन �कया जाएगा : 1. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्था�पत । 127 भारत का सं�वधान 128 (भाग 9क—पंचायत) परं तु इस खंड के अधीन कोई नगरपा�लका ऐसे नगर�य �ेत्र या उसके �कसी भाग म� ग�ठत नह�ं क� जा सकेगी िजसे राज्यपाल, �ेत्र के आकार और उस �ेत्र म� �कसी औद्यो�गक स्थापन द्वारा द� जा रह� या �दए जाने के �लए प्रस्ता�वत नगरपा�लक सेवाओं और ऐसी अन्य बात� को, जो वह ठ�क समझे, ध्यान म� रखते हुए, लोक अ�धसूचना द्वारा, औद्यो�गक नगर� के रूप म� �व�न�दर्ष्ट करे । (2) इस अनच् ु छे द म� , “संक्रमणशील �ेत्र”, “लघत ु र नगर�य �ेत्र” या “वह ृ �र नगर�य �ेत्र” से ऐसा �ेत्र अ�भप्रेत है िजसे राज्यपाल, इस भाग के प्रयोजन� के �लए, उस �ेत्र क� जनसंख्या, उसम� जनसंख्या क� सघनता, स्थानीय प्रशासन के �लए उत्पन्न राजस्व, कृ�ष से �भन्न �क्रयाकलाप� म� �नयोजन क� प्र�तशतता, आ�थर्क महत्व या ऐसी अन्य बात� को, जो वह ठ�क समझे, ध्यान म� रखते हुए, लोक अ�धसूचना द्वारा, �व�न�दर्ष्ट करे । 243द. नगरपा�लकाओं क� संरचना – (1) खंड (2) म� जैसा उपबं�धत है उसके �सवाय, �कसी नगरपा�लका के सभी स्थान, नगरपा�लका �ेत्र म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन द्वारा चन ु े हुए व्यिक्तय� द्वारा भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के �लए, प्रत्येक नगरपा�लका �ेत्र को प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� म� �वभािजत �कया जाएगा जो वाडर् के नाम से �ात ह�गे । (2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, – (क) नगरपा�लका म� , – (i) नगरपा�लका प्रशासन का �वशेष �ान या अनभ ु व रखने वाले व्यिक्तय� का ; (ii) लोक सभा के ऐसे सदस्य� का और राज्य क� �वधान सभा के ऐसे सदस्य� का, जो उन �नवार्चन-�ेत्र� का प्र�त�न�धत्व करते ह� िजनम� कोई नगरपा�लका �ेत्र पण र् ः या भागतः समा�वष्ट ह� ; ू त (iii) राज्य सभा के ऐसे सदस्य� का और राज्य क� �वधान प�रषद् के ऐसे सदस्य� का, जो नगरपा�लका �ेत्र के भीतर �नवार्चक� के रूप म� रिजस्ट्र�कृत ह� ; (iv) अनच् ु छे द 243ध के खंड (5) के अधीन ग�ठत स�म�तय� के अध्य�� का, प्र�त�न�धत्व करने के �लए उपबंध कर सकेगा : परं तु पैरा (i) म� �न�दर्ष्ट व्यिक्तय� को नगरपा�लका के अ�धवेशन� म� मत दे ने का अ�धकार नह�ं होगा ; (ख) �कसी नगरपा�लका के अध्य� के �नवार्चन क� र��त का उपबंध कर सकेगा । भारत का सं�वधान 129 (भाग 9क—पंचायत) 243ध. वाडर् स�म�तय�, आ�द का गठन और संरचना – (1) ऐसी नगरपा�लका के, िजसक� जनसंख्या तीन लाख या उससे अ�धक है, प्रादे �शक �ेत्र के भीतर वाडर् स�म�तय� का गठन �कया जाएगा, जो एक या अ�धक वाड� से �मलकर बनेगी । (2) राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, – (क) वाडर् स�म�त क� संरचना और उसके प्रादे �शक �ेत्र क� बाबत ; (ख) उस र��त क� बाबत िजससे �कसी वाडर् स�म�त म� स्थान भरे जाएंगे, उपबंध कर सकेगा । (3) वाडर् स�म�त के प्रादे �शक �ेत्र के भीतर �कसी वाडर् का प्र�त�न�धत्व करने वाला �कसी नगरपा�लका का सदस्य उस स�म�त का सदस्य होगा । (4) जहां कोई वाडर् स�म�त, – (क) एक वाडर् से �मलकर बनती है वहां नगरपा�लका म� उस वाडर् का प्र�त�न�धत्व करने वाला सदस्य ; या (ख) दो या अ�धक वाड� से �मलकर बनती है वहां नगरपा�लका म� ऐसे वाड� का प्र�त�न�धत्व करने वाले सदस्य� म� से एक सदस्य, जो उस वाडर् स�म�त के सदस्य� द्वारा �नवार्�चत �कया जाएगा, उस स�म�त का अध्य� होगा । (5) इस अनच् ु छे द क� �कसी बात से यह नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी राज्य के �वधान-मंडल को वाडर् स�म�तय� के अ�त�रक्त स�म�तय� का गठन करने के �लए कोई उपबंध करने से �नवा�रत करती है । 243न. स्थान� का आर�ण – (1) प्रत्येक नगरपा�लका म� अनस ु ू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान आर��त रह� गे और इस प्रकार आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, उस नगरपा�लका म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा जो उस नगरपा�लका �ेत्र म� अनस ु �ू चत जा�तय� क� अथवा उस नगरपा�लका �ेत्र म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप ु ात उस �ेत्र क� कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान �कसी नगरपा�लका के �भन्न-�भन्न �नवार्चन-�ेत्र� को चक्रानक्र ु म से आबं�टत �कए जा सक�गे । (2) खंड (1) के अधीन आर��त स्थान� क� कुल संख्या के कम से कम एक-�तहाई स्थान, यथािस्थ�त, अनस ु ू�चत जा�तय� या अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए आर��त रह� गे । भारत का सं�वधान 130 (भाग 9क—पंचायत) (3) प्रत्येक नगरपा�लका म� प्रत्य� �नवार्चन द्वारा भरे जाने वाले स्थान� क� कुल संख्या के कम से कम एक-�तहाई स्थान (िजनके अंतगर्त अनस ु ू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� िस्त्रय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या भी है) िस्त्रय� के �लए आर��त रह� गे और ऐसे स्थान �कसी नगरपा�लका के �भन्न-�भन्न �नवार्चन-�ेत्र� को चक्रानक्र ु म से आबं�टत �कए जा सक�गे । (4) नगरपा�लकाओं म� अध्य�� के पद अनस ु �ू चत जा�तय�, अनस ु �ू चत जनजा�तय� और िस्त्रय� के �लए ऐसी र��त से आर��त रह� गे, जो राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, उपबं�धत करे । (5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थान� का आर�ण और खंड (4) के अधीन अध्य�� के पद� का आर�ण (जो िस्त्रय� के �लए आर�ण से �भन्न है) अनच् ु छे द 334 म� �व�न�दर्ष्ट अव�ध क� समािप्त पर प्रभावी नह�ं रहे गा । (6) इस भाग क� कोई बात �कसी राज्य के �वधान-मंडल को �पछड़े हुए नाग�रक� के �कसी वगर् के प� म� �कसी नगरपा�लका म� स्थान� के या नगरपा�लकाओं म� अध्य�� के पद के आर�ण के �लए कोई उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी । 243प. नगरपा�लकाओं क� अव�ध, आ�द – (1) प्रत्येक नगरपा�लका, य�द तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, अपने प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से पांच वषर् तक बनी रहे गी, इससे अ�धक नह�ं : परं तु �कसी नगरपा�लका का �वघटन करने के पव ू र् उसे सुनवाई का उ�चत अवसर �दया जाएगा । (2) तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के �कसी संशोधन से �कसी स्तर पर ऐसी नगरपा�लका का, जो ऐसे संशोधन के ठ�क पव ू र् कायर् कर रह� है, तब तक �वघटन नह�ं होगा जब तक खंड (1) म� �व�न�दर्ष्ट उसक� अव�ध समाप्त नह�ं हो जाती । (3) �कसी नगरपा�लका का गठन करने के �लए �नवार्चन, – (क) खंड (1) म� �व�न�दर्ष्ट उसक� अव�ध क� समािप्त के पव ू र् ; पव ू ,र् (ख) उसके �वघटन क� तार�ख से छह मास क� अव�ध क� समािप्त के परू ा �कया जाएगा : परं तु जहां वह शेष अव�ध, िजसके �लए कोई �वघ�टत नगरपा�लका बनी रहती, छह मास से कम है वहां ऐसी अव�ध के �लए उस नगरपा�लका का गठन करने के �लए इस खंड के अधीन कोई �नवार्चन कराना आवश्यक नह�ं होगा । (4) �कसी �वघटन पर ग�ठत बनी रहे गी िजसके इस प्रकार �वघ�टत नगरपा�लका क� अव�ध क� समािप्त के पव ू र् उस नगरपा�लका के क� गई कोई नगरपा�लका, उस अव�ध के केवल शेष भाग के �लए �लए �वघ�टत नगरपा�लका खंड (1) के अधीन बनी रहती, य�द वह नह�ं क� जाती । भारत का सं�वधान 131 (भाग 9क—पंचायत) 243फ. सदस्यता के �लए �नरहर्ताएं – (1) कोई व्यिक्त �कसी नगरपा�लका का सदस्य चन ु े जाने के �लए और सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा, – (क) य�द वह संब�ं धत राज्य के �वधान-मंडल के �नवार्चन� के प्रयोजन� के �लए तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है : परं तु कोई व्यिक्त इस आधार पर �नर�हर्त नह�ं होगा �क उसक� आयु पच्चीस वषर् से कम है, य�द उसने इक्क�स वषर् क� आयु प्राप्त कर ल� है ; (ख) य�द वह राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार �नर�हर्त कर �दया जाता है । (2) य�द यह प्रश्न उठता है �क �कसी नगरपा�लका का कोई सदस्य खंड (1) म� व�णर्त �कसी �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्रश्न ऐसे प्रा�धकार� को, और ऐसी र��त से, जो राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, उपबं�धत करे , �व�नश्चय के �लए �नद� �शत �कया जाएगा । 243ब. नगरपा�लकाओं, आ�द क� शिक्तयां, प्रा�धकार और उ�रदा�यत्व – इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, – (क) नगरपा�लकाओं को ऐसी शिक्तयां और प्रा�धकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्ह� स्वाय� शासन क� संस्थाओं के रूप म� कायर् करने म� समथर् बनाने के �लए आवश्यक ह� और ऐसी �व�ध म� नगरपा�लकाओं को, ऐसी शत� के अधीन रहते हुए, जो उसम� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं, �नम्न�ल�खत के संबध ं म� शिक्तयां और उ�रदा�यत्व न्यागत करने के �लए उपबंध �कए जा सक�गे, अथार्त ् : – करना ; (i) आ�थर्क �वकास और सामािजक न्याय के �लए योजनाएं तैयार (ii) ऐसे कृत्य� का पालन करना और ऐसी स्क�म� को, जो उन्ह� स�पी जाएं, िजनके अंतगर्त वे स्क�म� भी ह�, जो बारहवीं अनस ु ूची म� सूचीबद्ध �वषय� के संबध ं म� ह�, कायार्िन्वत करना ; (ख) स�म�तय� को ऐसी शिक्तयां और प्रा�धकार प्रदान कर सकेगा जो उन्ह� अपने को प्रद� उ�रदा�यत्व� को, िजनके अन्तगर्त वे उ�रदा�यत्व भी ह� जो बारहवीं अनस ं म� ह�, कायार्िन्वत करने म� समथर् बनाने के ु ूची म� सूचीबद्ध �वषय� के संबध �लए आवश्यक ह� । 243भ. नगरपा�लकाओं द्वारा कर अ�धरो�पत करने क� शिक्त और उनक� �न�धयां – �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, – (क) ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फ�स� उद्गह ृ �त, संगह ृ �त और �व�नयोिजत करने के �लए �कसी नगरपा�लका को, ऐसी प्र�क्रया के अनस ु ार और ऐसे �नब�धन� के अधीन रहते हुए, प्रा�धकृत कर सकेगा ; भारत का सं�वधान 132 (भाग 9क—पंचायत) (ख) राज्य सरकार द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फ�स� �कसी नगरपा�लका को, ऐसे प्रयोजन� के �लए, तथा ऐसी शत� और �नब�धन� के अधीन रहते हुए, समन�ु दष्ट कर सकेगा ; (ग) राज्य क� सं�चत �न�ध म� से नगरपा�लकाओं के �लए ऐसे सहायताअनद ु ान दे ने के �लए उपबंध कर सकेगा ; और (घ) नगरपा�लकाओं द्वारा या उनक� ओर से क्रमशः प्राप्त �कए गए सभी धन� को जमा करने के �लए ऐसी �न�धय� का गठन करने और उन �न�धय� म� से ऐसे धन� को �नकालने के �लए भी उपबंध कर सकेगा, जो �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं । 243म. �व� आयोग – (1) अनच् ु छे द 243झ के अधीन ग�ठत �व� आयोग नगरपा�लकाओं क� �व�ीय िस्थ�त का भी पन ु �वर्लोकन करे गा और जो– (क)(i) राज्य द्वारा उद्ग्रहणीय ऐसे कर�, शुल्क�, पथकर� और फ�स� के ऐसे शुद्ध आगम� के राज्य और नगरपा�लकाओं के बीच, जो इस भाग के अधीन उनम� �वभािजत �कए जाएं, �वतरण को और सभी स्तर� पर नगरपा�लकाओं के बीच ऐसे आगम� के तत्संबध ं ी भाग के आबंटन को ; (ii) ऐसे कर�, शुल्क�, पथकर� और फ�स� के अवधारण को, जो नगरपा�लकाओं को समन�ु दष्ट क� जा सक�गी या उनके द्वारा �व�नयोिजत क� जा सक�गी ; (iii) राज्य क� सं�चत �न�ध म� से नगरपा�लकाओं के �लए सहायता अनद ु ान को, शा�सत करने वाले �सद्धांत� के बारे म� ; (ख) नगरपा�लकाओं क� �व�ीय िस्थ�त को सुधारने के �लए आवश्यक अध्यप ु ाय� के बारे म� ; (ग) नगरपा�लकाओं के सुदृढ़ �व� के �हत म� राज्यपाल द्वारा �व� आयोग को �न�दर्ष्ट �कए गए �कसी अन्य �वषय के बारे म� , राज्यपाल को �सफा�रश करे गा । (2) राज्यपाल इस अनच् ु छे द के अधीन आयोग द्वारा क� गई प्रत्येक �सफा�रश को, उस पर क� गई कारर्वाई के स्पष्ट�कारक �ापन स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा । 243य. नगरपा�लकाओं के लेखाओं क� संपर��ा – �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, नगरपा�लकाओं द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं क� संपर��ा करने के बारे म� उपबंध कर सकेगा । भारत का सं�वधान 133 (भाग 9क—पंचायत) 243यक. नगरपा�लकाओं के �लए �नवार्चन – (1) नगरपा�लकाओं के �लए कराए जाने वाले सभी �नवार्चन� के �लए �नवार्चक नामावल� तैयार कराने का और उन सभी �नवार्चन� के संचालन का अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण, अनच् ु छे द 243ट म� �न�दर्ष्ट राज्य �नवार्चन आयोग म� �न�हत होगा । (2) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, नगरपा�लकाओं के �नवार्चन� से संब�ं धत या संसक्त सभी �वषय� के संबध ं म� उपबंध कर सकेगा । 243यख. संघ राज्य�ेत्र� को लागू होना – इस भाग के उपबंध संघ राज्य�ेत्र� को लागू ह�गे और �कसी संघ राज्य�ेत्र को उनके लागू होने म� इस प्रकार प्रभावी ह�गे मानो �कसी राज्य के राज्यपाल के प्र�त �नद� श, अनच् ु छे द 239 के अधीन �नयक् ु त संघ राज्य�ेत्र के प्रशासक के प्र�त �नद� श ह� और �कसी राज्य के �वधान-मंडल या �वधान सभा के प्र�त �नद� श, �कसी ऐसे संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म� , िजसम� �वधान सभा है, उस �वधान सभा के प्र�त �नद� श ह� : परं तु राष्ट्रप�त, लोक अ�धसूचना द्वारा, यह �नदे श दे सकेगा �क इस भाग के उपबंध �कसी संघ राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, लागू ह�गे, जो वह अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट करे । 243यग. इस भाग का क�तपय �ेत्र� को लागू न होना – (1) इस भाग क� कोई बात अनच् ु छे द 244 के खंड (1) म� �न�दर्ष्ट अनस ु �ू चत �ेत्र� और इसके खंड (2) म� �न�दर्ष्ट जनजा�त �ेत्र� को लागू नह�ं होगी । (2) इस भाग क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह पिश्चमी बंगाल राज्य के दािजर्�लंग िजले के पवर्तीय �ेत्र� के �लए तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन ग�ठत दािजर्�लंग गोरखा पवर्तीय प�रषद् के कृत्य� और शिक्तय� पर प्रभाव डालती है । (3) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद्, �व�ध द्वारा, इस भाग के उपबंध� का �वस्तार खंड (1) म� �न�दर्ष्ट अनस ु ू�चत �ेत्र� और जनजा�त �ेत्र� पर, ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, कर सकेगी, जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं और ऐसी �कसी �व�ध को अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन नह�ं समझा जाएगा । 243यघ. िजला योजना के �लए स�म�त – (1) प्रत्येक राज्य म� िजला स्तर पर, िजले म� पंचायत� और नगरपा�लकाओं द्वारा तैयार क� गई योजनाओं का समेकन करने और संपण ू र् िजले के �लए एक �वकास योजना प्रारूप तैयार करने के �लए, एक िजला योजना स�म�त का गठन �कया जाएगा । (2) राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, �नम्न�ल�खत क� बाबत उपबंध कर सकेगा, अथार्त ् :– भारत का सं�वधान 134 (भाग 9क—पंचायत) (क) िजला योजना स�म�तय� क� संरचना ; (ख) वह र��त, िजससे ऐसी स�म�तय� म� स्थान भरे जाएंगे : परं तु ऐसी स�म�त क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम चार बटा पांच सदस्य, िजला स्तर पर पंचायत के और िजले म� नगरपा�लकाओं के �नवार्�चत सदस्य� द्वारा, अपने म� से, िजले म� ग्रामीण �ेत्र� क� और नगर�य �ेत्र� क� जनसंख्या के अनप ु ात के अनस ु ार �नवार्�चत �कए जाएंगे ; (ग) िजला योजना से संब�ं धत ऐसे कृत्य जो ऐसी स�म�तय� को समन�ु दष्ट �कए जाएं ; (घ) वह र��त, िजससे ऐसी स�म�तय� के अध्य� चन ु े जाएंगे । (3) प्रत्येक िजला योजना स�म�त, �वकास योजना प्रारूप तैयार करने म� ,– (क) �नम्न�ल�खत का ध्यान रखेगी, अथार्त ् :– (i) पंचायत� और नगरपा�लकाओं के सामान्य �हत के �वषय, िजनके अंतगर्त स्था�नक योजना, जल तथा अन्य भौ�तक और प्राकृ�तक संसाधन� म� �हस्सा बंटाना, अवसंरचना का एक�कृत �वकास और पयार्वरण संर�ण है ; (ii) उपलब्ध �व�ीय या अन्य संसाधन� क� मात्रा और प्रकार ; (ख) ऐसी संस्थाओं और संगठन� से परामशर् करे गी िजन्ह� राज्यपाल, आदे श द्वारा, �व�न�दर्ष्ट करे । (4) प्रत्येक िजला योजना स�म�त का अध्य�, वह �वकास योजना, िजसक� ऐसी स�म�त द्वारा �सफा�रश क� जाती है, राज्य सरकार को भेजेगा । 243यङ. महानगर योजना के �लए स�म�त – (1) प्रत्येक महानगर �ेत्र म� , संपण ू र् महानगर �ेत्र के �लए �वकास योजना प्रारूप तैयार करने के �लए, एक महानगर योजना स�म�त का गठन �कया जाएगा । (2) राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, �नम्न�ल�खत क� बाबत उपबंध कर सकेगा, अथार्त ् :– (क) महानगर योजना स�म�तय� क� संरचना ; (ख) वह र��त िजससे ऐसी स�म�तय� म� स्थान भरे जाएंगे : भारत का सं�वधान 135 (भाग 9क—पंचायत) परं तु ऐसी स�म�त के कम से कम दो-�तहाई सदस्य, महानगर �ेत्र म� नगरपा�लकाओं के �नवार्�चत सदस्य� और पंचायत� के अध्य�� द्वारा, अपने म� से, उस �ेत्र म� नगरपा�लकाओं क� और पंचायत� क� जनसंख्या के अनप ु ात के अनस ु ार �नवार्�चत �कए जाएंगे ; (ग) ऐसी स�म�तय� म� भारत सरकार और राज्य सरकार का तथा ऐसे संगठन� और संस्थाओं का प्र�त�न�धत्व जो ऐसी स�म�तय� को समन�ु दष्ट कृत्य� को कायार्िन्वत करने के �लए आवश्यक समझे जाएं ; (घ) महानगर �ेत्र के �लए योजना और समन्वय से संब�ं धत ऐसे कृत्य जो ऐसी स�म�तय� को समन�ु दष्ट �कए जाएं ; (ङ) वह र��त, िजससे ऐसी स�म�तय� के अध्य� चन ु े जाएंगे । (3) प्रत्येक महानगर योजना स�म�त, �वकास योजना प्रारूप तैयार करने म� , – (क) �नम्न�ल�खत का ध्यान रखेगी, अथार्त ् : – (i) महानगर �ेत्र म� नगरपा�लकाओं और पंचायत� द्वारा तैयार क� गई योजनाएं ; (ii) नगरपा�लकाओं और पंचायत� के सामान्य �हत के �वषय, िजनके अंतगर्त उस �ेत्र क� समिन्वत स्था�नक योजना, जल तथा अन्य भौ�तक और प्राकृ�तक संसाधन� म� �हस्सा बंटाना, अवसंरचना का एक�कृत �वकास और पयार्वरण संर�ण है ; (iii) भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा �निश्चत समस्त उद्दे श्य और प�ू वर्कताएं ; (iv) उन �व�नधान� क� मात्रा और प्रकृ�त जो भारत सरकार और राज्य सरकार के अ�भकरण� द्वारा महानगर �ेत्र म� �कए जाने संभाव्य ह� तथा अन्य उपलब्ध �व�ीय या अन्य संसाधन ; (ख) ऐसी संस्थाओं और संगठन� से परामशर् करे गी िजन्ह� राज्यपाल, आदे श द्वारा, �व�न�दर्ष्ट करे । (4) प्रत्येक महानगर योजना स�म�त का अध्य�, वह �वकास योजना, िजसक� ऐसी स�म�त द्वारा �सफा�रश क� जाती है, राज्य सरकार को भेजग े ा । भारत का सं�वधान 136 (भाग 9क—पंचायत) 243यच. �वद्यमान �व�धय� और नगरपा�लकाओं का बना रहना – इस भाग म� �कसी बात के होते हुए भी, सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 के प्रारं भ के ठ�क पव ू र् �कसी राज्य म� प्रव� ृ नगरपा�लकाओं से संब�ं धत �कसी �व�ध का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंध� से असंगत है, जब तक स�म �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा उसे संशो�धत या �नर�सत नह�ं कर �दया जाता है या जब तक ऐसे प्रारं भ से एक वषर् समाप्त नह�ं हो जाता है, इनम� से जो भी पहले हो, तब तक प्रव� ृ बना रहे गा : परं तु ऐसे प्रारं भ के ठ�क पव ू र् �वद्यमान सभी नगरपा�लकाएं, य�द उस राज्य क� �वधान सभा द्वारा या ऐसे राज्य क� दशा म� , िजसम� �वधान प�रषद् है, उस राज्य के �वधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पा�रत इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती ह� तो, अपनी अव�ध क� समािप्त तक बनी रह� गी । 243यछ. �नवार्चन संबध ं ी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – (क) अनच् ु छे द 243यक के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के �लए तात्प�यर्त �कसी ऐसी �व�ध क� �व�धमान्यता, जो �नवार्चन-�ेत्र� के प�रसीमन या ऐसे �नवार्चन-�ेत्र� को स्थान� के आबंटन से संब�ं धत है, �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी ; (ख) �कसी नगरपा�लका के �लए कोई �नवार्चन, ऐसी �नवार्चन अज� पर ह� प्रश्नगत �कया जाएगा जो ऐसे प्रा�धकार� को और ऐसी र��त से प्रस्तुत क� गई है, िजसका �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन उपबंध �कया जाए, अन्यथा नह�ं ।] [भाग 9ख 1 सहकार� सोसाइ�टयां 243यज. प�रभाषाएं--इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,-- (क) “प्रा�धकृत व्यिक्त” से अनच् ु छे द 243यथ म� उस रूप म� �न�दर् ष्ट कोई व्यिक्त अ�भप्रेत है ; (ख) “बोडर्” से �कसी सहकार� सोसाइट� का �नदे शक बोडर् या शासी �नकाय, चाहे �कसी भी नाम से �ात हो, िजसको �कसी सोसाइट� के कायर्कलाप� के प्रबंध का �नदे शन और �नयंत्रण स�पा गया हो, अ�भप्रेत है ; (ग) “सहकार� सोसाइट�” से ऐसी सोसाइट� अ�भप्रेत है , जो �कसी राज्य म� तत्समय प्रव� ृ सहकार� सोसाइ�टय� से संबं�धत �कसी �व�ध के अधीन रिजस्ट्र�कृत है या रिजस्ट्र�कृत समझी गई है ; (घ) “बहुराज्य सहकार� सोसाइट�” से ऐसी सोसाइट� अ�भप्रेत है , िजसके उद्दे श्य एक राज्य तक सी�मत नह�ं ह� और जो ऐसी सहकार� सोसाइ�टय� से संब�ं धत तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन रिजस्ट्र�कृत है या रिजस्ट्र�कृत समझी गई है ; (ङ) “पदा�धकार�” से �कसी सहकार� सोसाइट� का अध्य�, उपाध्य�, सभाप�त, उपसभाप�त, स�चव या कोषाध्य� अ�भप्रेत है और िजनम� �कसी सहकार� सोसाइट� के बोडर् द्वारा �नवार्�चत �कया जाने वाला कोई अन्य व्यिक्त भी सिम्म�लत है ; (च) “रिजस्ट्रार” से बहुराज्य सहकार� सोसाइ�टय� के संबंध म� केन्द्र�य सरकार द्वारा �नयुक्त केन्द्र�य रिजस्ट्रार और सहकार� सोसाइ�टय� के संबंध म� �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध के अधीन राज्य सरकार द्वारा �नयक् ु त सहकार� सोसाइ�टय� का रिजस्ट्रार अ�भप्रेत है ; (छ) “राज्य अ�ध�नयम” से �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई �व�ध अ�भप्रेत है ; (ज) “राज्य स्तर�य सहकार� सोसाइट�” से ऐसी सहकार� सोसाइट� अ�भप्रेत है , िजसका सम्पूणर् राज्य पर �वस्ता�रत अपना प्रचालन �ेत्र है और िजसको �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध म� उस रूप म� प�रभा�षत �कया गया है । 243यझ. सहकार� सोसाइ�टय� का �नगमन -- इस भाग के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, स्वैिच्छक �वरचना, लोकतां�त्रक सदस्य-�नयंत्रण, सदस्य-आ�थर्क भागीदार� और स्वशासी कायर्करण के �सद्धांत� पर आधा�रत सहकार� सोसाइ�टय� के �नगमन, �व�नयमन और प�रसमापन के संबंध म� उपबंध कर सकेगा । 1. सं�वधान (सतानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 4 द्वारा (15-2-2012 से) अंतःस्था�पत । 137 भारत का सं�वधान 138 (भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां) 243यञ. बोडर् के सदस्य� और उसके पदा�धका�रय� क� संख्या और पदाव�ध -- (1) बोडर् म� उतनी संख्या म� �नदे शक ह�गे, िजतने राज्य �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, उपबं�धत �कए जाएं : होगी : परं तु सहकार� सोसाइट� के �नदे शक� क� अ�धकतम संख्या इक्क�स से अ�धक नह�ं परं तु यह और �क �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसी प्रत्येक सहकार� सोसाइट� के बोडर् म� जो सदस्य� के रूप म� व्यिष्टय� से �मलकर बनी हो और उसम� अनुस�ू चत जा�तय� या अनस ु �ू चत जनजा�तय� अथवा िस्त्रय� के वगर् या प्रवगर् से सदस्य ह�, एक स्थान अनुस�ू चत जा�तय� या अनस ु ू�चत जनजा�तय� और दो स्थान िस्त्रय� के �लए आर��त करे गा । (2) बोडर् के �नवार्�चत सदस्य� तथा उसके पदा�धका�रय� क� पदाव�ध, �नवार्चन क� तार�ख से पांच वषर् क� होगी और पदा�धका�रय� क� पदाव�ध बोडर् क� अव�ध के साथ सहावसानी होगी : परं तु बोडर्, बोडर् क� आकिस्मक �रिक्त को नाम�नद� शन द्वारा उसी वगर् के सदस्य� म� से, िजसके संबंध म� आकिस्मक �रिक्त हुई है , भर सकेगा, य�द बोडर् क� पदाव�ध उसक� मल ू पदाव�ध के आधे से कम है । (3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसी सोसाइट� के बोडर् के सदस्य� के रूप म� ब�ककार�, प्रबंधन, �व� के �ेत्र म� अनभ ु व रखने वाले या सहकार� सोसाइट� के उद्दे श्य� और उसके द्वारा �कए जाने वाले �क्रयाकलाप से संब�ं धत �कसी अन्य �ेत्र म� �वशेष�ता रखने वाले बोडर् के सदस्य होने वाले व्यिक्तय� को सहयोिजत करने के �लए, उपबंध कर सकेगा : परं तु ऐसे सहयोिजत सदस्य खंड (1) के पहले परं तुक म� �व�न�दर् ष्ट इक्क�स �नदे शक� के अ�त�रक्त दो से अ�धक नह�ं ह�गे : परं तु यह और �क ऐसे सहयोिजत सदस्य� को ऐसे सदस्य के रूप म� उनक� है �सयत म� सहकार� सोसाइट� के �कसी �नवार्चन म� मतदान करने का या बोडर् के पदा�धका�रय� के रूप म� �नवार्�चत होने के �लए पात्र होने का अ�धकार नह�ं होगा : परं तु यह भी �क �कसी सहकार� सोसाइट� के कृत्यकार� �नदे शक, बोडर् के सदस्य भी ह�गे और ऐसे सदस्य� को खंड (1) के पहले परं तक ु म� �व�न�दर्ष्ट कुल �नदे शक� क� कुल संख्या क� गणना करने के प्रयोजन के �लए अपविजर्त �कया जाएगा । भारत का सं�वधान 139 (भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां) 243यट. बोडर् के सदस्य� का �नवार्चन -- (1) �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी, बोडर् का �नवार्चन, बोडर् क� अव�ध के अवसान से पव ू र् संचा�लत �कया जाएगा, िजससे यह स�ु निश्चत �कया जा सके �क नव�नवार्�चत बोडर् के सदस्य, पदावरोह� बोडर् के सदस्य� क� पदाव�ध के अवसान होते ह� पद ग्रहण कर ल� । (2) �कसी सहकार� सोसाइट� के सभी �नवार्चन� के �लए �नवार्चक नामाव�लयां तैयार करने का और उन सभी �नवार्चन� के संचालन का अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण, ऐसे प्रा�धकार� या �नकाय म� , जो राज्य �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, उपबं�धत �कया जाए, �न�हत होगा : परं तु �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसे �नवार्चन� के संचालन के �लए प्र�क्रया और मागर्दशर्क �सद्धान्त� का उपबंध कर सकेगा । 243यठ. बोडर् का अ�धक्रमण और �नलंबन तथा अन्त�रम प्रबंध -- (1) तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई बोडर्, छह मास से अ�धक क� अव�ध के �लए अ�तिष्ठत नह�ं �कया जाएगा या �नलंबनाधीन नह�ं रखा जाएगा : परं तु बोडर् को-- (i) उसके लगातार व्य�तक्रम क� दशा म� ; या (ii) अपने कतर्व्य� के अनप ु ालन म� उपे�ा करने क� दशा म� ; या (iii) बोडर् द्वारा सहकार� सोसाइट� या उसके सदस्य� के �हत� के प्र�तकूल कोई कायर् करने क� दशा म� ; या या (iv) बोडर् के गठन या उसके कृत्य� म� कोई ग�तरोध उत्पन्न होने क� दशा म� ; (v) राज्य �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, अनच् ु छे द 243यट के खंड (2) के अधीन यथा उपबं�धत प्रा�धकार� या �नकाय के राज्य अ�ध�नयम के उपबंध� के अनस ु ार �नवार्चन कराने म� असफल रहने क� दशा म� , अ�तिष्ठत �कया जा सकेगा या �नलंबनाधीन रखा जा सकेगा : परं तु यह और �क जहां कोई सरकार� शेयर धारण या सरकार द्वारा कोई उधार या �व�ीय सहायता या प्रत्याभ�ू त नह�ं है वहां ऐसी �कसी सहकार� सोसाइट� के बोडर् को अ�तिष्ठत नह�ं �कया जाएगा या �नलंबनाधीन नह�ं रखा जाएगा : परं तु यह भी �क ब�ककार� कारबार करने वाल� �कसी सहकार� सोसाइट� क� दशा म� ब�ककार� �व�नयमन अ�ध�नयम, 1949 के उपबंध भी लागू ह�गे : भारत का सं�वधान 140 (भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां) परन्तु यह भी �क बहुराज्य सहकार� सोसाइट� से �भन्न ब�ककार� कारबार करने वाल� �कसी सहकार� सोसाइट� क� दशा म� , इस खंड के उपबंध वैसे ह� प्रभावी ह�गे मानो “छह मास” शब्द� के स्थान पर “एक वषर्” शब्द रखे गए थे । (2) बोडर् के अ�धक्रमण क� दशा म� , ऐसी सहकार� सोसाइट� के कायर्कलाप का प्रबंध करने के �लए �नयुक्त प्रशासक, खंड (1) म� �व�न�दर् ष्ट अव�ध के भीतर �नवार्चन� के संचालन के �लए व्यवस्था करे गा और उसका प्रबंध �नवार्�चत बोडर् को स�पेगा । (3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, प्रशासक क� सेवा क� शत� के �लए उपबंध कर सकेगा । 243यड. सहकार� सोसाइ�टय� के लेखाओं क� संपर��ा -- (1) �कसी राज्य का �वधान- मंडल, �व�ध द्वारा, सहकार� सोसाइ�टय� द्वारा लेखाओं के रखे जाने और ऐसे लेखाओं क� प्रत्येक �व�ीय वषर् म� कम से कम एक बार संपर��ा �कए जाने के संबंध म� उपबंध कर सकेगा । (2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसे संपर��क� और संपर��ा करने वाल� ऐसी फम� क�, जो सहकार� सोसाइ�टय� के लेखाओं क� संपर��ा करने के �लए पात्र ह�गी, न्यन ू तम अहर् ताएं और अनुभव अ�धक�थत करे गा । (3) प्रत्येक सहकार� सोसाइट�, सहकार� सोसाइट� के साधारण �नकाय द्वारा �नयुक्त, खंड (2) म� �न�दर् ष्ट �कसी संपर��क या संपर��ा करने वाल� फम� द्वारा संपर��ा करवाएगी : परं तु ऐसे संपर��क� या संपर��ा करने वाल� फम� को राज्य सरकार द्वारा या राज्य सरकार द्वारा इस �न�म� प्रा�धकृत �कसी प्रा�धकार� द्वारा �कया जाएगा । अनुमो�दत पैनल म� से �नयुक्त (4) प्रत्येक सहकार� सोसाइट� के लेखाओं क� संपर��ा उस �व�ीय वषर् क�, िजससे ऐसे लेखे संबं�धत ह� , समािप्त के छह मास के भीतर क� जाएगी । (5) राज्य अ�ध�नयम द्वारा यथा प�रभा�षत �कसी सव�च्च सहकार� सोसाइट� के लेखाओं क� संपर��ा �रपोटर् राज्य �वधान-मंडल के सम� ऐसी र��त से रखी जाएगी जो राज्य �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा उपबं�धत क� जाए । 243यढ. साधारण �नकाय क� बैठक संयोिजत करना -- �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, यह उपबंध कर सकेगा �क प्रत्येक सहकार� सोसाइट� के साधारण �नकाय क� वा�षर्क बैठक, ऐसे कारबार का संव्यवहार करने के, जो ऐसी �व�ध म� उपबं�धत �कया जाए, �व�ीय वषर् क� समािप्त के छह मास क� अव�ध के भीतर, संयोिजत क� जाएगी । भारत का सं�वधान 141 (भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां) 243यण. सूचना प्राप्त करने का मंडल, �व�ध द्वारा, सहकार� सोसाइट� के सूचना और लेखाओं तक, जो ऐसे सदस्य गए ह�, पहुंच के �लए उपबंध कर सकेगा सदस्य का अ�धकार -- (1) �कसी राज्य का �वधानप्रत्येक सदस्य क� सहकार� सोसाइट� क� ऐसी ब�हय�, के साथ उसके कारबार के �नय�मत संव्यवहार म� रखे । (2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, सहकार� सोसाइट� के प्रबंधन म� सदस्य� क� भागीदार� सु�निश्चत करने के �लए, सदस्य� द्वारा बैठक� म� उपिस्थ�त क� ऐसी न्यन ू तम अपे�ा का उपबंध करते हुए और सेवाओं के ऐसे न्यूनतम स्तर का उपयोग करते हुए, जो ऐसी �व�ध म� उपबंध �कया जाए, उपबंध कर सकेगा । (3) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, अपने सदस्य� के �लए सहकार� �श�ा और प्र�श�ण का उपबंध कर सकेगा । 243यत. �ववर�णयां -- प्रत्येक सहकार� सोसाइट�, प्रत्येक �व�ीय वषर् क� समािप्त के छह मास के भीतर राज्य सरकार द्वारा अ�भ�हत प्रा�धकार� को ऐसी �ववर�णयां फाइल करे गी, िजनम� �नम्न�ल�खत बात� सिम्म�लत ह�गी, अथार्त ् :-(क) उसके �क्रयाकलाप क� वा�षर्क �रपोटर् ; (ख) उसके लेखाओं का संपर���त �ववरण ; (ग) अ�धशेष के व्ययन क� योजना, जो सहकार� सोसाइट� के साधारण �नकाय द्वारा यथा अनम ु ो�दत हो ; (घ) सहकार� सोसाइट� क� उप�व�धय� के संशोधन�, य�द कोई ह�, क� सूची ; (ङ) उसके साधारण �नकाय क� बैठक आयोिजत करने क� तार�ख और �नवार्चन� का, जब �नयत ह�, संचालन करने के संबंध म� घोषणा ; और (च) राज्य अ�ध�नयम के �कन्ह�ं उपबंध� के अनस ु रण म� रिजस्ट्रार द्वारा अपे��त कोई अन्य जानकार� । 243यथ. अपराध और शािस्तयां -- (1) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, सहकार� सोसाइ�टय� से संबं�धत अपराध� और ऐसे अपराध� के �लए शािस्तय� से संबं�धत उपबंध कर सकेगा । (2) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध म� �नम्न�ल�खत कायर् करना या उसका लोप करना अपराध के रूप म� सिम्म�लत होगा, अथार्त ् :-- (क) कोई सहकार� सोसाइट� या उसका कोई अ�धकार� या सदस्य जानबूझकर �मथ्या �ववरणी बनाता है या �मथ्या जानकार� दे ता है अथवा कोई व्यिक्त जानबूझकर ऐसी जानकार� नह�ं दे ता है , जो इस �न�म� राज्य अ�ध�नयम के उपबंध� के अधीन प्रा�धकृत व्यिक्त द्वारा उससे अपे��त क� गई हो ; भारत का सं�वधान 142 (भाग 9ख—सहकार� सोसाइ�टयां) (ख) कोई व्यिक्त जानबूझकर या �कसी युिक्तयुक्त कारण के �बना राज्य अ�ध�नयम के उपबंध� के अधीन जार� �कए गए �कसी समन, अध्यपे�ा या �व�धपूणर् �ल�खत आदे श क� अव�ा करता है ; (ग) कोई �नयोजक, जो पयार्प्त कारण के �बना, उसके द्वारा उसके कमर्चार� से काट� गई रकम का, उस तार�ख से, िजसको ऐसी कटौती क� गई है , चौदह �दन क� अव�ध के भीतर सहकार� सोसाइट� को संदाय करने म� असफल रहता है ; (घ) ऐसा कोई अ�धकार� या अ�भर�क, जो ऐसी �कसी सहकार� सोसाइट� क�, िजसका वह अ�धकार� या अ�भर�क है , ब�हय�, लेखाओं, दस्तावेज�, अ�भलेख�, रोकड़, प्र�तभू�त या अन्य संप�� क� अ�भर�ा �कसी प्रा�धकृत व्यिक्त को स�पने म� असफल रहता है ; और (ङ) जो कोई बोडर् के सदस्य� या पदा�धका�रय� के �नवार्चन से पहले, उसके दौरान या पश्चात ् कोई भ्रष्ट आचरण अपनाता है । 243यद. बहुराज्य सहकार� सोसाइ�टय� को लागू होना -- इस भाग के उपबंध, बहुराज्य सहकार� सोसाइ�टय� को इस उपांतरण के अधीन रहते हुए लागू ह�गे �क “राज्य का �वधानमंडल”, “राज्य अ�ध�नयम” या “राज्य सरकार” के प्र�त �कसी �नद� श का वह� अथर् लगाया जाएगा जो क्रमशः, “संसद्”, “केन्द्र�य अ�ध�नयम” या “केन्द्र�य सरकार” का है । 243यध. संघ राज्य�ेत्र� को लागू होना -- इस भाग के उपबंध, संघ राज्य�ेत्र� को लागू ह�गे और ऐसे संघ राज्य�ेत्र को, िजसक� कोई �वधान सभा नह�ं है , उसी प्रकार लागू ह�गे मानो �कसी राज्य के �वधान-मंडल के प्र�त�नद� श, अनच् ु छे द 239 के अधीन �नयक् ु त उसके प्रशासक के प्र�त और ऐसे संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म� , िजसक� कोई �वधान सभा है , उस �वधान सभा के प्र�त�नद� श है : परं तु राष्ट्रप�त, राजपत्र म� , अ�धसूचना द्वारा, यह �नदे श दे सकेगा �क इस भाग के उपबंध ऐसे �कसी संघ राज्य�ेत्र या उसके भाग को, िजसे वह अ�धसच ू ना म� �व�न�दर् ष्ट करे , लागू नह�ं ह�गे । 243यन. �वद्यमान �व�धय� का जार� रहना -- इस भाग म� �कसी बात के होते हुए भी, सं�वधान (सतानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 के प्रारं भ से ठ�क पव ू र् �कसी राज्य म� प्रव� ृ सहकार� सोसाइ�टय� से संबं�धत �कसी �व�ध का कोई उपबंध, जो इस भाग के उपबंध� से असंगत है , उसे स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा संशो�धत या �नर�सत �कए जाने तक या ऐसे प्रारं भ से एक वषर् के समाप्त होने तक, इनम� से जो भी कम हो, प्रव� ृ बना रहे गा ।] भाग 10 अनुसू�चत और जनजा�त �ेत्र 244. अनस ु �ू चत �ेत्र� और जनजा�त �ेत्र� का प्रशासन – (1) पांचवीं अनस ु ूची के उपबंध 1[असम, 2[ 3[मेघालय, �त्रपरु ा और �मजोरम]] राज्य�] से �भन्न 4*** �कसी राज्य के अनस ु ू�चत �ेत्र� और अनस ु �ू चत जनजा�तय� के प्रशासन और �नयंत्रण के �लए लागू ह�गे । 1 2 5 (2) छठ� अनस ु ूची के उपबंध [असम, [ [मेघालय, �त्रपरु ा] और �मजोरम राज्य�] के] जनजा�त �ेत्र� के प्रशासन के �लए लागू ह�गे । 6 [244क. असम के कुछ जनजा�त �ेत्र� को समा�वष्ट करने वाला एक स्वशासी राज्य बनाना और उसके �लए स्थानीय �वधान-मंडल या मं�त्र-प�रषद् का या दोन� का सज ृ न – (1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् �व�ध द्वारा असम राज्य के भीतर एक स्वशासी राज्य बना सकेगी, िजसम� छठ� अनस ु ूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के 7[भाग 1] म� �व�न�दर्ष्ट सभी या कोई जनजा�त �ेत्र (पण र् ः या भागतः) ू त समा�वष्ट ह�गे और उसके �लए – (क) उस स्वशासी राज्य के �वधान-मंडल के रूप म� कायर् करने के �लए �नवार्�चत या भागतः नाम�नद� �शत और भागतः �नवार्�चत �नकाय का, या (ख) मं�त्र-प�रषद् का, या दोन� का सज ृ न कर सकेगी, िजनम� से प्रत्येक का गठन, शिक्तयां और कृत्य वे ह�गे जो उस �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं । (2) खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �व�ध, �व�शष्टतया, – 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (1-4-1985 से) “और मेघालय” स्थान पर प्र�तस्था�पत । शब्द� के 4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और �त्रपुरा” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और �त्रपुरा राज्य� और �मजोरम संघ राज्य�ेत्र” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 2 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत । 7. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 143 भारत का सं�वधान 144 (भाग 10-अनस ु ू�चत और जनजा�त �ेत्र) (क) राज्य सूची या समवत� सूची म� प्रग�णत वे �वषय �व�न�दर्ष्ट कर सकेगी िजनके संबध ं म� स्वशासी राज्य के �वधान-मंडल को संपण ू र् स्वशासी राज्य के �लए या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बनाने क� शिक्त, असम राज्य के �वधान-मंडल का अपवजर्न करके या अन्यथा, होगी ; (ख) वे �वषय प�र�निश्चत कर सकेगी िजन पर उस स्वशासी राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार होगा ; (ग) यह उपबंध कर सकेगी �क असम राज्य द्वारा उद्गह ृ �त कोई कर स्वशासी राज्य को वहां तक स�पा जाएगा जहां तक उसके आगम स्वशासी राज्य से प्राप्त हुए माने जा सकते ह� ; (घ) यह उपबंध कर सकेगी �क इस सं�वधान के �कसी अनच् ु छे द म� राज्य के प्र�त �कसी �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क उसके अंतगर्त स्वशासी राज्य के प्र�त �नद� श है ; और (ङ) ऐसे अनप ु रू क, आनष ु �ं गक या पा�रणा�मक उपबंध कर सकेगी जो आवश्यक समझे जाएं । (3) पव ू �क्त प्रकार क� �कसी �व�ध का कोई संशोधन, जहां तक वह संशोधन खंड (2) के उपखंड (क) या उपखंड (ख) म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी से संब�ं धत है, तब तक प्रभावी नह�ं होगा जब तक वह संशोधन संसद् के प्रत्येक सदन म� उपिस्थत और मत दे ने वाले कम से कम दो-�तहाई सदस्य� द्वारा पा�रत नह�ं कर �दया जाता है । (4) इस अनच् ु छे द म� �न�दर्ष्ट �व�ध को अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन इस बात के होते हुए भी नह�ं समझा जाएगा �क उसम� कोई ऐसा उपबंध अंत�वर्ष्ट है जो इस सं�वधान का संशोधन करता है या संशोधन करने का प्रभाव रखता है ।] भाग 11 संघ और राज्य� के बीच संबंध अध्याय 1 – �वधायी संबध ं �वधायी शिक्तय� का �वतरण 245. संसद् द्वारा और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� का �वस्तार–(1) इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद् भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बना सकेगी और �कसी राज्य का �वधान-मंडल संपण ू र् राज्य या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बना सकेगा । (2) संसद् द्वारा बनाई गई कोई �व�ध इस आधार पर अ�व�धमान्य नह�ं समझी जाएगी �क उसका राज्य�ेत्रातीत प्रवतर्न होगा । 246. संसद् द्वारा और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� क� �वषय-वस्त–ु (1) खंड (2) और खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् को सातवीं अनस ु ूची क� सूची 1 म� (िजसे इस सं�वधान म� “संघ सूची” कहा गया है) प्रग�णत �कसी भी �वषय के संबध ं म� �व�ध बनाने क� अनन्य शिक्त है । (2) खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् को और खंड (1) के अधीन रहते हुए, 1*** �कसी राज्य के �वधान-मंडल को भी, सातवीं अनस ु ूची क� सूची 3 म� (िजसे इस सं�वधान म� “समवत� सूची” कहा गया है) प्रग�णत �कसी भी �वषय के संबध ं म� �व�ध बनाने क� शिक्त है । (3) खंड (1) और खंड (2) के अधीन रहते हुए, 1*** �कसी राज्य के �वधानमंडल को, सातवीं अनस ु च ू ी क� सच ू ी 2 म� (िजसे इस सं�वधान म� “राज्य सच ू ी” कहा गया है) प्रग�णत �कसी भी �वषय के संबध ं म� उस राज्य या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बनाने क� अनन्य शिक्त है । (4) संसद् को भारत के राज्य�ेत्र के ऐसे भाग के �लए 2[जो �कसी राज्य] के अंतगर्त नह�ं है, �कसी भी �वषय के संबध ं म� �व�ध बनाने क� शिक्त है, चाहे वह �वषय राज्य सूची म� प्रग�णत �वषय ह� क्य� न हो । [246क. माल और सेवा कर के संबध ं म� �वशेष उपबंध--(1) अनच् ु छे द 246 और अनच् ु छे द 254 म� �कसी बात के होते हए भी, संसद् को, और खंड (2) के अधीन रहते हुए प्रत्येक राज्य के �वधान-मंडल को, संघ द्वारा या उस राज्य द्वारा अ�धरो�पत माल और सेवा कर के संबध ं म� �व�धयां बनाने क� शिक्त होगी । 3 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� ” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 2 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । 145 भारत का सं�वधान 146 (भाग 11—संघ और राज्य� के बीच संबध ं ) (2) जहां माल का या सेवाओं का अथवा दोन� का प्रदाय अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ं म� ु म म� होता है वहां संसद् को, माल और सेवा कर के संबध �व�धयां बनाने क� अनन्य शिक्त प्राप्त है । स्पष्ट�करण--इस अनच् ु छे द के उपबंध, अनच् ु छे द 279क के खंड (5) म� �न�दर्ष्ट माल और सेवा कर के संबध ं म� , माल और सेवा कर प�रषद् द्वारा �सफा�रश क� गई तार�ख से प्रभावी ह�गे ।]। 247. कुछ अ�त�रक्त न्यायालय� क� स्थापना का उपबंध करने क� संसद् क� शिक्त– इस अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् अपने द्वारा बनाई गई �व�धय� के या �कसी �वद्यमान �व�ध के, जो संघ सच ं म� ू ी म� प्रग�णत �वषय के संबध है, अ�धक अच्छे प्रशासन के �लए अ�त�रक्त न्यायालय� क� स्थापना का �व�ध द्वारा उपबंध कर सकेगी । 248. अव�शष्ट �वधायी शिक्तयां–(1) 1[अनच् ु छे द 246क के अधीन रहते हुए, संसद्] को �कसी ऐसे �वषय के संबध ं म� , जो समवत� सच ू ी या राज्य सच ू ी म� प्रग�णत नह�ं है, �व�ध बनाने क� अनन्य शिक्त है । (2) ऐसी शिक्त के अंतगर्त ऐसे कर के अ�धरोपण के �लए जो उन सू�चय� म� से �कसी म� व�णर्त नह�ं है, �व�ध बनाने क� शिक्त है । ं म� राष्ट्र�य �हत म� �व�ध बनाने क� संसद् 249. राज्य सूची म� के �वषय के संबध क� शिक्त–(1) इस अध्याय के पव र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द राज्य ू ग सभा ने उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� म� से कम से कम दो-�तहाई सदस्य� द्वारा सम�थर्त संकल्प द्वारा घो�षत �कया है �क राष्ट्र�य �हत म� यह आवश्यक या समीचीन है �क संसद् 2[अनच् ु छे द 246क के अधीन उपबं�धत माल और सेवा कर या] राज्य सच ू ी म� प्रग�णत ऐसे �वषय के संबध ं म� , जो उस संकल्प म� �व�न�दर्ष्ट है, �व�ध बनाए तो जब तक वह संकल्प प्रव� ं म� भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र ृ है, संसद् के �लए उस �वषय के संबध या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बनाना �व�धपण ू र् होगा । (2) खंड (1) के अधीन पा�रत संकल्प एक वषर् से अन�धक ऐसी अव�ध के �लए प्रव� ृ रहेगा जो उसम� �व�न�दर्ष्ट क� जाए : परं तु य�द और िजतनी बार �कसी ऐसे संकल्प को प्रव� ृ बनाए रखने का अनम ु ोदन करने वाला संकल्प खंड (1) म� उपबं�धत र��त से पा�रत हो जाता है तो और उतनी बार ऐसा संकल्प उस तार�ख से, िजसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रव� ृ नह�ं रहता, एक वषर् क� और अव�ध तक प्रव� ृ रहेगा । (3) संसद् द्वारा बनाई गई कोई �व�ध, िजसे संसद् खंड (1) के अधीन संकल्प के पा�रत होने के अभाव म� बनाने के �लए स�म नह�ं होती, संकल्प के प्रव� ृ न रहने के पश्चात ् छह मास क� अव�ध क� समािप्त पर अ�मता क� मात्रा तक उन बात� के �सवाय प्रभावी नह�ं रहे गी िजन्ह� उक्त अव�ध क� समािप्त से पहले �कया गया है या करने का लोप �कया गया है । 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 3 द्वारा (16-9-2016 से) “संसद्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 4 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 147 (भाग 11—संघ और राज्य� के बीच संबध ं ) 250. य�द आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� हो तो राज्य सच ू ी म� के �वषय के संबध ं म� �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त – (1) इस अध्याय म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् को, जब तक आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, 1[अनच् ु छे द 246क के अधीन उपबं�धत माल या सेवा कर या] राज्य सूची म� प्रग�णत �कसी भी �वषय के संबध ं म� भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए �व�ध बनाने क� शिक्त होगी । (2) संसद् द्वारा बनाई गई कोई �व�ध, िजसे संसद् आपात क� उद्घोषणा के अभाव म� बनाने के �लए स�म नह�ं होती, उद्घोषणा के प्रवतर्न म� न रहने के पश्चात ् छह मास क� अव�ध क� समािप्त पर अ�मता क� मात्रा तक उन बात� के �सवाय प्रभावी नह�ं रहे गी िजन्ह� उक्त अव�ध क� समािप्त से पहले �कया गया है या करने का लोप �कया गया है । 251. संसद् द्वारा अनच् ु छे द 249 और अनच् ु छे द 250 के अधीन बनाई गई �व�धय� और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� म� असंग�त – अनच् ु छे द 249 और अनच् ु छे द 250 क� कोई बात �कसी राज्य के �वधान-मंडल क� ऐसी �व�ध बनाने क� शिक्त को, िजसे इस सं�वधान के अधीन बनाने क� शिक्त उसको है, �नब��धत नह�ं करे गी �कं तु य�द �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध का कोई उपबंध संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के, िजसे उक्त अनच् ु छे द� म� से �कसी अनच् ु छे द के अधीन बनाने क� शिक्त संसद् को है, �कसी उपबंध के �वरुद्ध है तो संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध अ�भभावी होगी चाहे वह राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध से पहले या उसके बाद म� पा�रत क� गई हो और राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध उस �वरोध क� मात्रा तक अप्रवतर्नीय होगी �कं तु ऐसा तभी तक होगा जब तक संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध प्रभावी रहती है । 252. दो या अ�धक राज्य� के �लए उनक� सहम�त से �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त और ऐसी �व�ध का �कसी अन्य राज्य द्वारा अंगीकार �कया जाना – (1) य�द �कन्ह�ं दो या अ�धक राज्य� के �वधान-मंडल� को यह वांछनीय प्रतीत होता है �क उन �वषय� म� से, िजनके संबध ं म� संसद् को अनच् ु छे द 249 और अनच् ु छे द 250 म� यथा उपबं�धत के �सवाय राज्य� के �लए �व�ध बनाने क� शिक्त नह�ं है, �कसी �वषय का �व�नयमन ऐसे राज्य� म� संसद् �व�ध द्वारा करे और य�द उन राज्य� के �वधान-मंडल� के सभी सदन उस आशय के संकल्प पा�रत करते ह� तो उस �वषय का तदनस ु ार �व�नयमन करने के �लए कोई अ�ध�नयम पा�रत करना संसद् के �लए �व�धपण ू र् होगा और इस प्रकार पा�रत अ�ध�नयम ऐसे राज्य� को लागू होगा और ऐसे अन्य राज्य को लागू होगा, जो तत्पश्चात ् अपने �वधान-मंडल के सदन द्वारा या जहां दो सदन ह� वहां दोन� सदन� म� से प्रत्येक सदन इस �न�म� पा�रत संकल्प द्वारा उसको अंगीकार कर लेता है । 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 5 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 148 (भाग 11—संघ और राज्य� के बीच संबध ं ) (2) संसद् द्वारा इस प्रकार पा�रत �कसी अ�ध�नयम का संशोधन या �नरसन इसी र��त से पा�रत या अंगीकृत संसद् के अ�ध�नयम द्वारा �कया जा सकेगा, �कं तु उसका उस राज्य के संबध ं म� संशोधन या �नरसन िजसको वह लागू होता है, उस राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम द्वारा नह�ं �कया जाएगा । 253. अंतरराष्ट्र�य करार� को प्रभावी करने के �लए �वधान – इस अध्याय के पव र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् को �कसी अन्य दे श या दे श� के ू ग साथ क� गई �कसी सं�ध, करार या अ�भसमय अथवा �कसी अंतरराष्ट्र�य सम्मेलन, संगम या अन्य �नकाय म� �कए गए �कसी �व�नश्चय के कायार्न्वयन के �लए भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग के �लए कोई �व�ध बनाने क� शिक्त है । 254. संसद् द्वारा बनाई गई �व�धय� और राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा बनाई गई �व�धय� म� असंग�त – (1) य�द �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध का कोई उपबंध संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के, िजसे अ�ध�नय�मत करने के �लए संसद् स�म है, �कसी उपबंध के या समवत� सूची म� प्रग�णत �कसी �वषय के संबध ं म� �वद्यमान �व�ध के �कसी उपबंध के �वरुद्ध है तो खंड (2) के उपबंध� के अधीन रहते हुए, यथािस्थ�त, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध, चाहे वह ऐसे राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध से पहले या उसके बाद म� पा�रत क� गई हो, या �वद्यमान �व�ध, अ�भभावी होगी और उस राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध उस �वरोध क� मात्रा तक शन् ू य होगी । (2) जहां 1*** राज्य के �वधान-मंडल द्वारा समवत� सूची म� प्रग�णत �कसी �वषय के संबध ं म� बनाई गई �व�ध म� कोई ऐसा उपबंध अंत�वर्ष्ट है जो संसद् द्वारा पहले बनाई गई �व�ध के या उस �वषय के संबध ं म� �कसी �वद्यमान �व�ध के उपबंध� के �वरुद्ध है तो य�द ऐसे राज्य के �वधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई �व�ध को राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखा गया है और उस पर उसक� अनम ु �त �मल गई है तो वह �व�ध उस राज्य म� अ�भभावी होगी : परं तु इस खंड क� कोई बात संसद् को उसी �वषय के संबध ं म� कोई �व�ध, िजसके अंतगर्त ऐसी �व�ध है, जो राज्य के �वधान-मंडल द्वारा इस प्रकार बनाई गई �व�ध का प�रवधर्न, संशोधन, प�रवतर्न या �नरसन करती है, �कसी भी समय अ�ध�नय�मत करने से �नवा�रत नह�ं करे गी । 255. �सफा�रश� और पव ू र् मंजरू � के बारे म� अपे�ाओं को केवल प्र�क्रया के �वषय मानना – य�द संसद् के या 1*** �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी अ�ध�नयम को – 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 149 (भाग 11—संघ और राज्य� के बीच संबध ं ) (क) जहां राज्यपाल क� �सफा�रश अपे��त थी वहां राज्यपाल या राष्ट्रप�त ने, (ख) जहां राजप्रमुख क� �सफा�रश अपे��त थी वहां राजप्रमुख या राष्ट्रप�त ने, (ग) जहां राष्ट्रप�त क� �सफा�रश या पव ू र् मंजरू � अपे��त थी वहां राष्ट्रप�त ने, अनम ु �त दे द� है तो ऐसा अ�ध�नयम और ऐसे अ�ध�नयम का कोई उपबंध केवल इस कारण अ�व�धमान्य नह�ं होगा �क इस सं�वधान द्वारा अपे��त कोई �सफा�रश नह�ं क� गई थी या पव ू र् मंजरू � नह�ं द� गई थी । अध्याय 2 – प्रशास�नक संबध ं साधारण 256. राज्य� क� और संघ क� बाध्यता – प्रत्येक राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का इस प्रकार प्रयोग �कया जाएगा िजससे संसद् द्वारा बनाई गई �व�धय� का और ऐसी �वद्यमान �व�धय� का, जो उस राज्य म� लागू ह�, अनप ु ालन सु�निश्चत रहे और संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार �कसी राज्य को ऐसे �नदे श दे ने तक होगा जो भारत सरकार को उस प्रयोजन के �लए आवश्यक प्रतीत ह� । 257. कुछ दशाओं म� राज्य� पर संघ का �नयंत्रण – (1) प्रत्येक राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का इस प्रकार प्रयोग �कया जाएगा िजससे संघ क� कायर्पा�लका शिक्त के प्रयोग म� कोई अड़चन न हो या उस पर कोई प्र�तकूल प्रभाव न पड़े और संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार �कसी राज्य को ऐसे �नदे श दे ने तक होगा जो भारत सरकार को इस प्रयोजन के �लए आवश्यक प्रतीत ह� । (2) संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार राज्य को ऐसे संचार साधन� के �नमार्ण और बनाए रखने के बारे म� �नदे श दे ने तक भी होगा िजनका राष्ट्र�य या सै�नक महत्व का होना उस �नदे श म� घो�षत �कया गया है : परं तु इस खंड क� कोई बात �कसी राजमागर् या जलमागर् को राष्ट्र�य राजमागर् या राष्ट्र�य जलमागर् घो�षत करने क� संसद् क� शिक्त को अथवा इस प्रकार घो�षत राजमागर् या जलमागर् के बारे म� संघ क� शिक्त को अथवा सेना, नौसेना और वायस ु ेना संकमर् �वषयक अपने कृत्य� के भागरूप संचार साधन� के �नमार्ण और बनाए रखने क� संघ क� शिक्त को �नब��धत करने वाल� नह�ं मानी जाएगी । (3) संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार �कसी राज्य म� रे ल� के संर�ण के �लए �कए जाने वाले उपाय� के बारे म� उस राज्य को �नदे श दे ने तक भी होगा । (4) जहां खंड (2) के अधीन संचार साधन� के �नमार्ण या बनाए रखने के बारे म� अथवा खंड (3) के अधीन �कसी रे ल के संर�ण के �लए �कए जाने वाले उपाय� के बारे म� �कसी राज्य को �दए गए �कसी �नदे श के पालन म� उस खचर् से अ�धक खचर् हो गया है जो, य�द ऐसा �नदे श नह�ं �दया गया होता तो राज्य के प्रसामान्य कतर्व्य� के �नवर्हन म� खचर् होता वहां उस राज्य द्वारा इस प्रकार �कए गए अ�त�रक्त खच� के संबध ं म� भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी रा�श का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव म� ऐसी रा�श का, िजसे भारत के मुख्य न्यायमू�तर् द्वारा �नयक् ु त मध्यस्थ अवधा�रत करे , संदाय �कया जाएगा । भारत का सं�वधान 150 (भाग 11—संघ और राज्य� के बीच संबध ं ) [257क. [संघ के सशस्त्र बल� या अन्य बल� के अ�भ�नयोजन द्वारा राज्य� क� सहायता ।]–सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 33 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया ।] 1 258. कुछ दशाओं म� राज्य� को शिक्त प्रदान करने आ�द क� संघ क� शिक्त – (1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त, �कसी राज्य क� सरकार क� सहम�त से उस सरकार को या उसके अ�धका�रय� को ऐसे �कसी �वषय से संब�ं धत कृत्य, िजन पर संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार है, सशतर् या �बना शतर् स�प सकेगा । (2) संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध, जो �कसी राज्य को लागू होती है ऐसे �वषय से संब�ं धत होने पर भी, िजसके संबध ं म� राज्य के �वधान-मंडल को �व�ध बनाने क� शिक्त नह�ं है, उस राज्य या उसके अ�धका�रय� और प्रा�धका�रय� को शिक्त प्रदान कर सकेगी और उन पर कतर्व्य अ�धरो�पत कर सकेगी या शिक्तय� का प्रदान �कया जाना और कतर्व्य� का अ�धरो�पत �कया जाना प्रा�धकृत कर सकेगी । (3) जहां इस अनच् ु छे द के आधार पर �कसी राज्य अथवा उसके अ�धका�रय� या प्रा�धका�रय� को शिक्तयां प्रदान क� गई ह� या उन पर कतर्व्य अ�धरो�पत �कए गए ह� वहां उन शिक्तय� और कतर्व्य� के प्रयोग के संबध ं म� राज्य द्वारा प्रशासन म� �कए गए अ�त�रक्त खच� के संबध ं म� भारत सरकार द्वारा उस राज्य को ऐसी रा�श का, जो करार पाई जाए या करार के अभाव म� ऐसी रा�श का, िजसे भारत के मुख्य न्यायमू�तर् द्वारा �नयक् ु त मध्यस्थ अवधा�रत करे , संदाय �कया जाएगा । 2 [258क. संघ को कृत्य स�पने क� राज्य� क� शिक्त – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी राज्य का राज्यपाल, भारत सरकार क� सहम�त से उस सरकार को या उसके अ�धका�रय� को ऐसे �कसी �वषय से संब�ं धत कृत्य, िजन पर उस राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार है, सशतर् या �बना शतर् स�प सकेगा ।] [259. पहल� अनस ु ूची के भाग ख के राज्य� के सशस्त्र बल ।] – सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च ू ी द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । ं म� संघ क� अ�धका�रता – भारत 260. भारत के बाहर के राज्य�ेत्र� के संबध सरकार �कसी ऐसे राज्य�ेत्र क� सरकार से, जो भारत के राज्य�ेत्र का भाग नह�ं है, करार करके ऐसे राज्य�ेत्र क� सरकार म� �न�हत �कन्ह�ं कायर्पालक, �वधायी या न्या�यक कृत्य� का भार अपने ऊपर ले सकेगी, �कन्तु प्रत्येक ऐसा करार �वदे शी अ�धका�रता के प्रयोग से संब�ं धत तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध के अधीन होगा और उससे शा�सत होगा । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 43 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 18 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 151 (भाग 11—संघ और राज्य� के बीच संबध ं ) 261. सावर्ज�नक कायर्, अ�भलेख और न्या�यक कायर्वा�हयां – (1) भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र, संघ के और प्रत्येक राज्य के सावर्ज�नक काय�, अ�भलेख� और न्या�यक कायर्वा�हय� को परू ा �वश्वास और परू � मान्यता द� जाएगी । (2) खंड (1) म� �न�दर्ष्ट काय�, अ�भलेख� और कायर्वा�हय� को सा�बत करने क� र��त और शत� तथा उनके प्रभाव का अवधारण संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा उपबं�धत र��त के अनस ु ार �कया जाएगा । (3) भारत के राज्य�ेत्र के �कसी भाग म� �स�वल न्यायालय� द्वारा �दए गए अं�तम �नणर्य� या आदे श� का उस राज्य�ेत्र के भीतर कह�ं भी �व�ध के अनस ु ार �नष्पादन �कया जा सकेगा । जल संबध ं ी �ववाद 262. अंतररािज्यक न�दय� या नद�-दन ं ी �ववाद� का ू � के जल संबध न्याय�नणर्यन – (1) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी अंतररािज्यक नद� या नद�-दन ू के या ं म� �कसी �ववाद या प�रवाद के उसम� जल के प्रयोग, �वतरण या �नयंत्रण के संबध न्याय�नणर्यन के �लए उपबंध कर सकेगी । (2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद्, �व�ध द्वारा, उपबंध कर सकेगी �क उच्चतम न्यायालय या कोई अन्य न्यायालय खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �कसी �ववाद या प�रवाद के संबध ं म� अ�धका�रता का प्रयोग नह�ं करे गा । राज्य� के बीच समन्वय 263. अंतरराज्य प�रषद् के संबध ं म� उपबंध – य�द �कसी समय राष्ट्रप�त को यह प्रतीत होता है �क ऐसी प�रषद् क� स्थापना से लोक �हत क� �सद्�ध होगी िजसे – (क) राज्य� के बीच जो �ववाद उत्पन्न हो गए ह� उनक� जांच करने और उन पर सलाह दे ने; (ख) कुछ या सभी राज्य� के अथवा संघ और एक या अ�धक राज्य� के सामान्य �हत से संब�ं धत �वषय� के अन्वेषण और उन पर �वचार-�वमशर् करने; या (ग) ऐसे �कसी �वषय पर �सफा�रश करने और �व�शष्टतया उस �वषय के संबध ं म� नी�त और कारर्वाई के अ�धक अच्छे समन्वय के �लए �सफा�रश करने, के कतर्व्य का भार स�पा जाए तो राष्ट्रप�त के �लए यह �व�धपण ू र् होगा �क वह आदे श द्वारा ऐसी प�रषद् क� स्थापना करे और उस प�रषद् द्वारा �कए जाने वाले कतर्व्य� क� प्रकृ�त को तथा उसके संगठन और प्र�क्रया को प�र�निश्चत करे । भाग 12 �व�, संप��, सं�वदाएं और वाद अध्याय 1 – �व� साधारण [264. �नवर्चन – इस भाग म� , “�व� आयोग” से अनच् ु छे द 280 के अधीन ग�ठत �व� आयोग अ�भप्रेत है ।] 1 265. �व�ध के प्रा�धकार के �बना कर� का अ�धरोपण न �कया जाना – कोई कर �व�ध के प्रा�धकार से ह� अ�धरो�पत या संगह ृ �त �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं । 266. भारत और राज्य� क� सं�चत �न�धयां और लोक लेखे – (1) अनच् ु छे द 267 र् ः या भागतः राज्य� को के उपबंध� के तथा कुछ कर� और शल् ू त ु क� के शुद्ध आगम पण स�प �दए जाने के संबध ं म� इस अध्याय के उपबंध� के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुं�डयां �नगर्�मत करके, उधार द्वारा या अथ�पाय अ�ग्रम� द्वारा �लए गए सभी उधार और उधार� के प्र�तसंदाय म� उस सरकार को प्राप्त सभी धनरा�शय� क� एक सं�चत �न�ध बनेगी जो “भारत क� सं�चत �न�ध” के नाम से �ात होगी तथा �कसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुं�डयां �नगर्�मत करके, उधार द्वारा या अथ�पाय अ�ग्रम� द्वारा �लए गए सभी उधार और उधार� के प्र�तसंदाय म� उस सरकार को प्राप्त सभी धनरा�शय� क� एक सं�चत �न�ध बनेगी जो “राज्य क� सं�चत �न�ध” के नाम से �ात होगी । (2) भारत सरकार या �कसी राज्य सरकार द्वारा या उसक� ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनरा�शयां, यथािस्थ�त, भारत के लोक लेखे म� या राज्य के लोक लेखे म� जमा क� जाएंगी । (3) भारत क� सं�चत �न�ध या राज्य क� सं�चत �न�ध म� से कोई धनरा�शयां �व�ध के अनस ु ार तथा इस सं�वधान म� उपबं�धत प्रयोजन� के �लए और र��त से ह� �व�नयोिजत क� जाएंगी, अन्यथा नह�ं । 267. आकिस्मकता �न�ध – (1) संसद्, �व�ध द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप क� एक आकिस्मकता �न�ध क� स्थापना कर सकेगी जो “भारत क� आकिस्मकता �न�ध” के नाम से �ात होगी िजसम� ऐसी �व�ध द्वारा अवधा�रत रा�शयां समय-समय पर जमा क� जाएंगी और अनवे��त व्यय का अनच् ु छे द 115 या अनच् ु छे द 116 के अधीन संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा, प्रा�धकृत �कया जाना लं�बत रहने तक ऐसी �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए अ�ग्रम धन दे ने के �लए राष्ट्रप�त को समथर् बनाने के �लए उक्त �न�ध राष्ट्रप�त के व्ययनाधीन रखी जाएगी । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 264 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 152 153 भारत का सं�वधान (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (2) राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप क� एक आकिस्मकता �न�ध क� स्थापना कर सकेगा जो “राज्य क� आकिस्मकता �न�ध” के नाम से �ात होगी िजसम� ऐसी �व�ध द्वारा अवधा�रत रा�शयां समय-समय पर जमा क� जाएंगी और अनवे��त व्यय का अनच् ु छे द 205 या अनच् ु छे द 206 के अधीन राज्य के �वधान-मंडल द्वारा, �व�ध द्वारा, प्रा�धकृत �कया जाना लं�बत रहने तक ऐसी �न�ध म� से ऐसे व्यय क� प�ू तर् के �लए अ�ग्रम धन दे ने के �लए राज्यपाल को समथर् बनाने के �लए उक्त �न�ध राज्य के राज्यपाल 1*** के व्ययनाधीन रखी जाएगी । संघ और राज्य� के बीच राजस्व� का �वतरण 268. संघ द्वारा उद्गह ृ �त �कए जाने वाले �कं तु राज्य� द्वारा संगह ृ �त और 2 *** जो सं घ स च ी म� व�णर्त �व�नयोिजत �कए जाने वाले शल् क – (1) ऐसे स्टां प -श ल् क ू ु ु �त �कए जाएं ग े , �कं त – ह�, भारत सरकार द्वारा उद्गह ु ृ (क) उस दशा म� , िजसम� ऐसे शुल्क 3[संघ राज्य�ेत्र] के भीतर उद्ग्रहणीय ह�, भारत सरकार द्वारा, और (ख) अन्य दशाओं म� िजन-िजन राज्य� के भीतर ऐसे शुल्क उद्ग्रहणीय ह�, उन-उन राज्य� द्वारा, संगह ृ �त �कए जाएंगे । (2) �कसी राज्य के भीतर उद्ग्रहणीय �कसी ऐसे शुल्क के �कसी �व�ीय वषर् म� आगम, भारत क� सं�चत �न�ध के भाग नह�ं ह�गे, �कन्तु उस राज्य को स�प �दए जाएंगे । 268क. [संघ द्वारा उद्गह ृ �त �कए जाने वाला और संघ तथा राज्य� द्वारा 4 संगह ृ �त और �व�नयोिजत �कया जाने वाला सेवा-कर ।]–सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 7 द्वारा (16-9-2016 से) लोप �कया गया । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 6 द्वारा प्रसाधन �न�मर्�तय� पर ऐसे उत्पाद-शुल्क, " शब्द� का लोप �कया गया । (16-9-2016 से) "तथा औषधीय और 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग ग म� �व�न�दर् ष्ट राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (अठासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (प्रव� ृ नह�ं हुआ है) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 154 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) 269. संघ द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त �कं तु राज्य� को स�पे जाने वाले कर– [(1) 2[अनच् ु छे द 269क म� यथा उपबं�धत के �सवाय,] माल के क्रय] या �वक्रय पर कर और माल के परे षण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त �कए जाएंगे �कन्तु खंड (2) म� उपबं�धत र��त से राज्य� को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात ् स�प �दए जाएंगे या स�प �दए गए समझे जाएंगे । 1 स्पष्ट�करण – इस खंड के प्रयोजन� के �लए – (क) “माल के क्रय या �वक्रय पर कर” पद से समाचारपत्र� से �भन्न माल के क्रय या �वक्रय पर उस दशा म� कर अ�भप्रेत है िजसम� ऐसा क्रय या �वक्रय अंतररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के दौरान होता है ; (ख) “माल के परे षण पर कर” पद से माल के परे षण पर (चाहे परे षण उसके करने वाले व्यिक्त को या �कसी अन्य व्यिक्त को �कया गया हो) उस दशा म� कर अ�भप्रेत है िजसम� ऐसा परे षण अंतररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के दौरान होता है । (2) �कसी �व�ीय वषर् म� �कसी ऐसे कर के शुद्ध आगम वहां तक के �सवाय, जहां तक वे आगम संघ राज्य�ेत्र� से प्राप्त हुए आगम माने जा सकते ह�, भारत क� सं�चत �न�ध के भाग नह�ं ह�गे, �कं तु उन राज्य� को स�प �दए जाएंगे िजनके भीतर वह कर उस वषर् म� उद्ग्रहणीय ह� और �वतरण के ऐसे �सद्धांत� के अनस ु ार, जो संसद् �व�ध द्वारा बनाए, उन राज्य� के बीच �वत�रत �कए जाएंगे ।] [(3) संसद्, यह अवधा�रत करने के �लए �क 4[माल का क्रय या �वक्रय या परे षण] कब अंतररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के दौरान होता है, �व�ध द्वारा �सद्धांत बना सकेगी ।] 3 5 [269क. अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ु म म� माल और सेवा कर का उद्ग्रहण और संग्रहण--(1) अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ु म म� प्रदाय पर माल और सेवा कर भारत सरकार द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त �कया जाएगा तथा ऐसा कर उस र��त म� , जो संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा, माल और सेवा कर प�रषद् क� �सफा�रश� पर उपबं�धत क� जाए, संघ और राज्य� के बीच प्रभािजत �कया जाएगा । 1. सं�वधान (अस्सीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) खंड (1) और खंड (2) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 8 द्वारा (16-9-2016 से) प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (11-9-1956 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (�छयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 क� धारा 2 द्वारा (2-2-1983 से) “माल का क्रय या �वक्रय” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 9 द्वारा (16-9-2016 से) प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 155 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) स्पष्ट�करण--इस खंड के प्रयोजन के �लए, भारत के राज्य�ेत्र म� आयात के अनक्र ु म म� माल के या सेवाओं के या दोन� के प्रदाय को अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ु म म� माल का या सेवाओं का या दोन� का प्रदाय समझा जाएगा । (2) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य को प्रभािजत रकम भारत क� सं�चत �न�ध का भाग नह�ं होगी । (3) जहां खंड (1) के अधीन उद्गह ृ �त कर के रूप म� संगह ृ �त रकम का उपयोग अनच् ु छे द 246क के अधीन �कसी राज्य द्वारा उद्गह ृ �त कर का संदाय करने के �लए �कया गया है, वहां ऐसी रकम भारत क� सं�चत �न�ध का भाग नह�ं होगी । (4) जहां अनच् ु छे द 246क के अधीन �कसी राज्य द्वारा उद्गह ृ �त कर के रूप म� संगह ृ �त रकम का उपयोग खंड (1) के अधीन उद्गह ृ �त कर का संदाय करने के �लए �कया गया है, वहां ऐसी रकम राज्य क� सं�चत �न�ध का भाग नह�ं होगी । (5) संसद्, �व�ध द्वारा, प्रदाय के स्थान का और इस बात का �क माल का या सेवाओं का अथवा दोन� का प्रदाय अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ु म म� कब होता है, अवधारण करने संबध ं ी �सद्धांत बना सकेगी ।] [270. उद्गह ृ �त कर और उनका संघ तथा राज्य� के बीच �वतरण–(1) क्रमशः [अनच् ु छे द 268, अनच् ु छे द 269 और अनच् ु छे द 269क] म� �न�दर्ष्ट शुल्क� और कर� के �सवाय, संघ सच ू ी म� �न�दर्ष्ट सभी कर और शल् ु क ; अनच् ु छे द 271 म� �न�दर्ष्ट कर� और शुल्क� पर अ�धभार और संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के अधीन �व�न�दर्ष्ट प्रयोजन� के �लए उद्गह ृ �त कोई उपकर भारत सरकार द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त �कए जाएंगे तथा खंड (2) म� उपबं�धत र��त से संघ और राज्य� के बीच �वत�रत �कए जाएंगे । 1 2 [(1क) अनच् ु छे द 246क के खंड (1) के अधीन संघ द्वारा संगह ृ �त कर भी, संघ और राज्य� के बीच खंड (2) म� उपबं�धत र��त म� �वत�रत �कया जाएगा । 3 (1ख) अनच् ु छे द 246क के खंड (2) और अनच् ु छे द 269क के अधीन संघ द्वारा उद्गह ु छे द 246क के खंड (1) के अधीन ृ �त और संगह ृ �त ऐसा कर, िजसका उपयोग अनच् संघ द्वारा उद्गह ु छे द 269क के ृ �त कर का संदाय करने के �लए �कया गया है, और अनच् खंड (1) के अधीन संघ को प्रभािजत रकम भी, संघ और राज्य� के बीच खंड (2) म� उपबं�धत र��त म� �वत�रत क� जाएगी ।] 1. सं�वधान (अस्सीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 द्वारा (1-4-1996 से) अनुच्चेद 270 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (अठासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003, धारा 3 द्वारा “अनुच्छे द 268 और अनुच्छे द 269” (अ�धसू�चत नह�ं हुई है) के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 10 द्वारा (16-9-2016 से) अनुच्छे द 268, 268क और 269 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 10 द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । 156 भारत का सं�वधान (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (2) �कसी �व�ीय वषर् म� �कसी ऐसे कर या शुल्क के शुद्ध प्र�तशत, जो �व�हत �कया जाए, भारत क� सं�चत �न�ध का भाग नह�ं राज्य� को स�प �दया जाएगा िजनके भीतर वह कर या शुल्क उस वषर् और ऐसी र��त से और ऐसे समय से, जो खंड (3) म� उपबं�धत र��त जाए, उन राज्य� के बीच �वत�रत �कया जाएगा । आगम� का ऐसा होगा, �कन्तु उन म� उद्ग्रहणीय है से �व�हत �कया (3) इस अनच् ु छे द म� , “�व�हत” से अ�भप्रेत है – (i) जब तक �व� आयोग का गठन नह�ं �कया जाता है तब तक राष्ट्रप�त द्वारा आदे श द्वारा �व�हत ; और (ii) �व� आयोग का गठन �कए जाने के पश्चात ् �व� आयोग क� �सफा�रश� पर �वचार करने के पश्चात ् राष्ट्रप�त द्वारा आदे श द्वारा �व�हत ।] 271. कुछ शुल्क� और कर� पर संघ के प्रयोजन� के �लए अ�धभार – अनच् ु छे द 1 269 और अनच् ु छे द 246क के ु छे द 270 म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद्, [अनच् अधीन माल और सेवा कर के �सवाय,] उन अनच् ु छे द� म� �न�दर्ष्ट शुल्क� या कर� म� से �कसी म� �कसी भी समय संघ के प्रयोजन� के �लए अ�धभार द्वारा वद् ृ �ध कर सकेगी और �कसी ऐसे अ�धभार के संपण ू र् आगम भारत क� सं�चत �न�ध के भाग ह�गे । 272. [कर जो संघ द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त �कए जाते ह� तथा जो संघ और राज्य� के बीच �वत�रत �कए जा सक�गे ।] –सं�वधान (अस्सीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 4 द्वारा (9-6-2000 से) लोप �कया गया । 273. जट ू पर और जट ू उत्पाद� पर �नयार्त शुल्क के स्थान पर अनद ु ान – (1) जट ू पर और जट ू उत्पाद� पर �नयार्त शल् ु क के प्रत्येक वषर् के शद् ु ध आगम का कोई भाग असम, �बहार, 2[ओ�ड़शा] और पिश्चमी बंगाल राज्य� को स�प �दए जाने के स्थान पर उन राज्य� के राजस्व म� सहायता अनद ु ान के रूप म� प्रत्येक वषर् भारत क� सं�चत �न�ध पर ऐसी रा�शयां भा�रत क� जाएंगी जो �व�हत क� जाएं । (2) जट ू पर और जट ू उत्पाद� पर जब तक भारत सरकार कोई �नयार्त शुल्क उद्गह ृ �त करती रहती है तब तक या इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् क� समािप्त तक, इन दोन� म� से जो भी पहले हो, इस प्रकार �व�हत रा�शयां भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत बनी रह� गी । 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 11 (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । 2. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 (2011 का 15) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 157 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (3) इस अनच् ु छे द म� , “�व�हत” पद का वह� अथर् है जो अनच् ु छे द 270 म� है । 274. ऐसे कराधान पर िजसम� राज्य �हतबद्ध है, प्रभाव डालने वाले �वधेयक� के �लए राष्ट्रप�त क� पव ू र् �सफा�रश क� अपे�ा – (1) कोई �वधेयक या संशोधन, जो ऐसा कर या शुल्क, िजसम� राज्य �हतबद्ध है, अ�धरो�पत करता है या उसम� प�रवतर्न करता है अथवा जो भारतीय आय-कर से संब�ं धत अ�ध�नय�म�तय� के प्रयोजन� के �लए प�रभा�षत “कृ�ष-आय” पद के अथर् म� प�रवतर्न करता है अथवा जो उन �सद्धांत� को प्रभा�वत करता है िजनसे इस अध्याय के पव र् ामी उपबंध� म� से �कसी उपबंध के अधीन ू ग राज्य� को धनरा�शयां �वतरणीय ह� या हो सक�गी अथवा जो संघ के प्रयोजन� के �लए कोई ऐसा अ�धभार अ�धरो�पत करता है जो इस अध्याय के पव र् ामी उपबंध� म� व�णर्त ू ग है, संसद् के �कसी सदन म� राष्ट्रप�त क� �सफा�रश पर ह� परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं । (2) इस अनच् ु छे द म� , “ऐसा कर या शुल्क, िजसम� राज्य �हतबद्ध ह�” पद से ऐसा कोई कर या शुल्क अ�भप्रेत है – (क) िजसके शद् र् ः या भागतः �कसी राज्य को स�प �दए ु ध आगम पण ू त जाते ह�, या (ख) िजसके शुद्ध आगम के प्र�त �नद� श से भारत क� सं�चत �न�ध म� से �कसी राज्य को रा�शयां तत्समय संदेय ह� । 275. कुछ राज्य� को संघ से अनद ु ान – (1) ऐसी रा�शयां, िजनका संसद् �व�ध द्वारा उपबंध करे , उन राज्य� के राजस्व� म� सहायता अनद ु ान के रूप म� प्रत्येक वषर् भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गी िजन राज्य� के �वषय म� संसद् यह अवधा�रत करे �क उन्ह� सहायता क� आवश्यकता है और �भन्न-�भन्न राज्य� के �लए �भन्न-�भन्न रा�शयां �नयत क� जा सक�गी : परं तु �कसी राज्य के राजस्व� म� सहायता अनद ु ान के रूप म� भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसी पज ूं ी और आवत� रा�शयां संद� क� जाएंगी जो उस राज्य को उन �वकास स्क�म� के खच� को परू ा करने म� समथर् बनाने के �लए आवश्यक ह� िजन्ह� उस राज्य म� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के कल्याण क� अ�भवद् ृ �ध करने या उस राज्य म� अनस ु ू�चत �ेत्र� के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष �ेत्र� के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के �लए उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनम ु ोदन से हाथ म� �लया जाए : परं तु यह और �क असम राज्य के राजस्व म� सहायता अनद ु ान के रूप म� भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसी पज ूं ी और आवत� रा�शयां संद� क� जाएंगी – भारत का सं�वधान 158 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) 1 (क) जो छठ� अनस ु च ू ी के पैरा 20 से संलग्न सारणी के [भाग 1] म� �व�न�दर्ष्ट जनजा�त �ेत्र� के प्रशासन के संबध ं म� इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पव र् त� दो वषर् के दौरान औसत व्यय राजस्व से िजतना अ�धक है, उसके बराबर ू व ह� ; और (ख) जो उन �वकास स्क�म� के खच� के बराबर ह� िजन्ह� उक्त �ेत्र� के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष �ेत्र� के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के �लए उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनम ु ोदन से हाथ म� �लया जाए । 2 [(1क) अनच् ु छे द 244क के अधीन स्वशासी राज्य के बनाए जाने क� तार�ख को और से – (i) खंड (1) के दस ू रे परं तक ु के खंड (क) के अधीन संदेय कोई रा�शयां स्वशासी राज्य को उस दशा म� संद� क� जाएंगी जब उसम� �न�दर्ष्ट सभी जनजा�त �ेत्र उस स्वशासी राज्य म� समा�वष्ट ह� और य�द स्वशासी राज्य म� उन जनजा�त �ेत्र� म� से केवल कुछ ह� समा�वष्ट ह� तो वे रा�शयां असम राज्य और स्वशासी राज्य के बीच ऐसे प्रभािजत क� जाएंगी जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे ; (ii) स्वशासी राज्य के राजस्व� म� सहायता अनद ु ान के रूप म� भारत क� सं�चत �न�ध म� से ऐसी पज ूं ी और आवत� रा�शयां संद� क� जाएंगी जो उन �वकास स्क�म� के खच� के बराबर है िजन्ह� स्वशासी राज्य के प्रशासन स्तर को शेष असम राज्य के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के �लए स्वशासी राज्य द्वारा भारत सरकार के अनम ु ोदन से हाथ म� �लया जाए ।] (2) जब तक संसद् खंड (1) के अधीन उपबंध नह�ं करती है तब तक उस खंड के अधीन संसद् को प्रद� शिक्तयां राष्ट्रप�त द्वारा, आदे श द्वारा, प्रयोक्तव्य ह�गी और राष्ट्रप�त द्वारा इस खंड के अधीन �कया गया कोई आदे श संसद् द्वारा इस प्रकार �कए गए �कसी उपबंध के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा : परं तु �व� आयोग का गठन �कए जाने के पश्चात ् राष्ट्रप�त द्वारा इस खंड के अधीन कोई आदे श �व� आयोग क� �सफा�रश� पर �वचार करने के पश्चात ् ह� �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं । 276. व�ृ �य�, व्यापार�, आजी�वकाओं और �नयोजन� पर कर – (1) अनच् ु छे द 246 म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी राज्य के �वधान-मंडल क� ऐसे कर� से संब�ं धत कोई �व�ध, जो उस राज्य के या उसम� �कसी नगरपा�लका, िजला बोडर्, स्थानीय बोडर् या अन्य स्थानीय प्रा�धकार� के फायदे के �लए व�ृ �य�, व्यापार�, आजी�वकाओं या �नयोजन� के संबध ं म� है, इस आधार पर अ�व�धमान्य नह�ं होगी �क वह आय पर कर से संब�ं धत है । 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 3 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 159 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (2) राज्य को या उस राज्य म� �कसी एक नगरपा�लका, िजला बोडर्, स्थानीय बोडर् या अन्य स्थानीय प्रा�धकार� को �कसी एक व्यिक्त के बारे म� व�ृ �य�, व्यापार�, आजी�वकाओं और �नयोजन� पर कर� के रूप म� संदेय कुल रकम 1[दो हजार पांच सौ रुपए] प्र�त वषर् से अ�धक नह�ं होगी । 2 * * * * ं म� पव (3) व�ृ �य�, व्यापार�, आजी�वकाओं और �नयोजन� पर कर� के संबध ू �क्त रूप म� �व�धयां बनाने क� राज्य के �वधान-मंडल क� शिक्त का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह व�ृ �य�, व्यापार�, आजी�वकाओं और �नयोजन� से प्रोद्भूत या उद्भूत आय पर कर� के संबध ं म� �व�धयां बनाने क� संसद् क� शिक्त को �कसी प्रकार सी�मत करती है । 277. व्याव�ृ � – ऐसे कर, शुल्क, उपकर या फ�स�, जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी राज्य क� सरकार द्वारा अथवा �कसी नगरपा�लका या अन्य स्थानीय प्रा�धकार� या �नकाय द्वारा उस राज्य, नगरपा�लका, िजला या अन्य स्थानीय �ेत्र के प्रयोजन� के �लए �व�धपव र् उद्गह ू क ृ �त क� जा रह� थी, इस बात के होते हुए भी �क वे कर, शुल्क, उपकर या फ�स� संघ सूची म� व�णर्त ह�, तब तक उद्गह ृ �त क� जाती रह� गी और उन्ह�ं प्रयोजन� के �लए उपयोिजत क� जाती रह� गी जब तक संसद्, �व�ध द्वारा, इसके प्र�तकूल उपबंध नह�ं करती है । 278. [कुछ �व�ीय �वषय� के संबध ं म� पहल� अनस ु ूची के भाग ख के राज्य� से करार ।] – सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 279. “शुद्ध आगम” आ�द क� गणना – (1) इस अध्याय के पव र् ामी उपबंध� म� ू ग “शुद्ध आगम” से �कसी कर या शल् ं म� उसका वह आगम अ�भप्रेत है जो ु क के संबध उसके संग्रहण के खच� को घटाकर आए और उन उपबंध� के प्रयोजन� के �लए �कसी �ेत्र म� या उससे प्राप्त हुए माने जा सकने वाले �कसी कर या शुल्क का अथवा �कसी कर या शुल्क के �कसी भाग का शुद्ध आगम भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क द्वारा अ�भ�निश्चत और प्रमा�णत �कया जाएगा और उसका प्रमाणपत्र अं�तम होगा । (2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके और इस अध्याय के �कसी अन्य अ�भव्यक्त उपबंध के अधीन रहते हुए, �कसी ऐसी दशा म� , िजसम� इस भाग के अधीन �कसी शुल्क या कर का आगम �कसी राज्य को स�प �दया जाता है या स�प �दया जाए, संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध या राष्ट्रप�त का कोई आदे श उस र��त का, िजससे आगम क� गणना क� जानी है, उस समय का, िजससे या िजसम� और उस र��त का, िजससे कोई संदाय �कए जाने ह�, एक �व�ीय वषर् और दस ू रे �व�ीय वषर् म� समायोजन करने का और अन्य आनष ु �ं गक या सहायक �वषय� का उपबंध कर सकेगा । 1. सं�वधान (साठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 2 द्वारा (20-12-1988 से) “दो सौ पचास रुपए” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (साठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 2 द्वारा (20-12-1988 से) परन्तुक का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 160 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) 1 [279क. माल और सेवा कर प�रषद्–(1) राष्ट्रप�त, सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 के प्रारं भ क� तार�ख से साठ �दन के भीतर, आदे श द्वारा, माल और सेवा कर प�रषद् के नाम से �ात एक प�रषद् का गठन करे गा । (2) माल और सेवा कर प�रषद् �नम्न�ल�खत सदस्य� से �मलकर बनेगी, अथार्त ् :-(क) संघ का �व� मंत्री -- अध्य� ; (ख) संघ का राजस्व या �व� का भारसाधक राज्यमंत्री -- सदस्य ; (ग) प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा नाम�न�दर्ष्ट �व� या कराधान का भारसाधक मंत्री या कोई अन्य मंत्री -- सदस्य । (3) खंड (2) के उपखंड (ग) म� �न�दर्ष्ट माल और सेवा कर प�रषद् के सदस्य, यथाशीघ्र अपने म� से एक सदस्य को ऐसी अव�ध के �लए, जो वे �व�निश्चत कर� , प�रषद् का उपाध्य� चन ु �गे । ं म� संघ और राज्य� को (4) माल और सेवा कर प�रषद् �नम्न�ल�खत के संबध �सफा�रश� करे गी-(क) संघ, राज्य� और स्थानीय �नकाय� द्वारा उद्गह ृ �त कर, उपकर और अ�धभार, जो माल और सेवा कर म� सिम्म�लत �कए जा सक�गे ; (ख) माल और सेवाएं जो माल और सेवा कर के अध्यधीन हो सक�गी या िजन्ह� माल और सेवा कर से छूट प्राप्त हो सकेगी ; (ग) आदशर् माल और सेवा कर �व�धयां, अनच् ु छे द 269क के अधीन अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ु म म� प्रदाय माल पर उदगह ृ �त माल और सेवा कर के उद्ग्रहण, प्रभाजन के �सद्धांत तथा वे �सद्धांत जो प्रदाय के स्थान को शा�सत करते ह� ; (घ) आवतर् क� वह अवसीमा िजसके नीचे माल और सेवाओं को माल और सेवा कर से छूट प्रदान क� जा सकेगी ; (ङ) माल और सेवा कर के समूह� के साथ दर� िजनके अंतगर्त न्यन ू तम दर� भी ह� ; (च) �कसी प्राकृ�तक �वप�� या आपदा के दौरान अ�त�रक्त संसाधन जट ु ाने के �लए �कसी �व�न�दर्ष्ट अव�ध के �लए कोई �वशेष दर या दर� ; 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 12 द्वारा (12-9-2016 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 161 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (छ) अरुणाचल प्रदे श, असम, जम्मू-कश्मीर, म�णपरु , मेघालय, �मजोरम, नागाल�ड, �सिक्कम, �त्रपरु ा, �हमाचल प्रदे श और उ�राखंड राज्य� के संबध ं म� �वशेष उपबंध ; और (ज) माल और सेवा कर से संब�ं धत कोई अन्य �वषय, जो प�रषद् द्वारा �व�निश्चत �कया जाए । (5) माल और सेवा कर प�रषद् उस तार�ख क� �सफा�रश करे गी िजसको अप�रष्कृत पेट्रो�लयम, उच्च ग�त डीजल, मोटर िस्प�रट (सामान्यतया पेट्रोल के रूप म� �ात), प्राकृ�तक गैस और �वमानन टरबाइन �धन पर माल और सेवा कर उद्गह ृ �त �कया जाए । (6) इस अनच् ु छे द द्वारा प्रद� कृत्य� का �नवर्हन करते समय, माल और सेवा कर प�रषद् माल और सेवा कर क� सामंजस्यपण ू र् संरचना और माल और सेवाओं के �लए सुव्यविस्थत राष्ट्र�य बाजार के �वकास क� आवश्यकता द्वारा मागर्द�शर्त होगी । (7) माल और सेवा कर प�रषद् क�, उसक� बैठक� म� , गणप�ू तर् प�रषद् के कुल सदस्य� के आधे सदस्य� से �मलकर होगी । (8) माल और सेवा कर प�रषद् अपने कृत्य� के पालन के �लए प्र�क्रया अवधा�रत करे गी । (9) माल और सेवा कर प�रषद् का प्रत्येक �व�नश्चय बैठक म� उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� के अ�धमानप्राप्त मत� के कम से कम तीन-चौथाई के बहुमत द्वारा �नम्न�ल�खत �सद्धांत� के अनस ु ार �कया जाएगा, अथार्त ् :-उस बैठक म� ,-- (क) केन्द्र�य सरकार के मत को डाले गए कुल मत� के एक-�तहाई का अ�धमान प्राप्त होगा ; और (ख) सभी राज्य सरकार� के मत� को एक साथ लेने पर डाले गए कुल मत� के दो-�तहाई का अ�धमान प्राप्त होगा । (10) माल और सेवा कर प�रषद् का कोई भी कायर् या कायर्वा�हयां केवल इस कारण से अ�व�धमान्य नह�ं ह�गी �क-(क) प�रषद् म� कोई �रिक्त है या उसके गठन म� कोई त्र�ु ट है ; या (ख) प�रषद् के �कसी सदस्य के रूप म� �कसी व्यिक्त क� �नयिु क्त म� कोई त्र�ु ट है ; या (ग) प�रषद् क� प्र�क्रया म� कोई अ�नय�मतता है जो मामले के गण ु ावगण ु को प्रभा�वत नह�ं करती है । (11) माल और सेवा कर प�रषद्,-- भारत का सं�वधान 162 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (क) भारत सरकार और एक या अ�धक राज्य� के बीच ; या (ख) एक ओर भारत सरकार और �कसी राज्य या राज्य� तथा दस ू र� ओर एक या अ�धक अन्य राज्य� के बीच ; या (ग) दो या अ�धक राज्य� के बीच, प�रषद् क� �सफा�रश� या उनके कायार्न्वयन से उद्भत ू �कसी �ववाद के न्याय�नणर्यन के �लए एक तंत्र क� स्थापना करे गी ।] 280. �व� आयोग – (1) राष्ट्रप�त, इस सं�वधान के प्रारं भ से दो वषर् के भीतर और तत्पश्चात ् प्रत्येक पांचव� वषर् क� समािप्त पर या ऐसे पव र् र समय पर, िजसे ू त राष्ट्रप�त आवश्यक समझता है, आदे श द्वारा, �व� आयोग का गठन करे गा जो राष्ट्रप�त द्वारा �नयक् ु त �कए जाने वाले एक अध्य� और चार अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा । (2) संसद् �व�ध द्वारा, उन अहर्ताओं का, जो आयोग के सदस्य� के रूप म� �नयिु क्त के �लए अपे��त ह�गी और उस र��त का, िजससे उनका चयन �कया जाएगा, अवधारण कर सकेगी । (3) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह – (क) संघ और राज्य� के बीच कर� के शुद्ध आगम� के, जो इस अध्याय के अधीन उनम� �वभािजत �कए जाने ह� या �कए जाएं, �वतरण के बारे म� और राज्य� के बीच ऐसे आगम� के तत्संबध ं ी भाग के आबंटन के बारे म� ; (ख) भारत क� सं�चत �न�ध म� से राज्य� के राजस्व म� सहायता अनद ु ान को शा�सत करने वाले �सद्धांत� के बारे म� ; [(खख) राज्य के �व� आयोग द्वारा क� गई �सफा�रश� के आधार पर राज्य म� पंचायत� के संसाधन� क� अनप ु �ू तर् के �लए �कसी राज्य क� सं�चत �न�ध के संवधर्न के �लए आवश्यक अध्यप ु ाय� के बारे म� ;] 1 [(ग) राज्य के �व� आयोग द्वारा क� गई �सफा�रश� के आधार पर राज्य म� नगरपा�लकाओं के संसाधन� क� अनप ु �ू तर् के �लए �कसी राज्य क� सं�चत �न�ध के संवधर्न के �लए आवश्यक अध्यप ु ाय� के बारे म� ;] 2 3 [(घ)] सुदृढ़ �व� के �हत म� राष्ट्रप�त द्वारा आयोग को �न�दर्ष्ट �कए गए �कसी अन्य �वषय के बारे म� , राष्ट्रप�त को �सफा�रश करे । (4) आयोग अपनी प्र�क्रया अवधा�रत करे गा और अपने कृत्य� के पालन म� उसे ऐसी शिक्तयां ह�गी जो संसद्, �व�ध द्वारा, उसे प्रदान करे । 1. सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (24-4-1993 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) उपखंड (ग) को उपखंड (घ) के रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया । भारत का सं�वधान 163 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) 281. �व� आयोग क� �सफा�रश� – राष्ट्रप�त इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन �व� आयोग द्वारा क� गई प्रत्येक �सफा�रश को, उस पर क� गई कारर्वाई के स्पष्ट�कारक �ापन स�हत, संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा । प्रक�णर् �व�ीय उपबंध 282. संघ या राज्य द्वारा अपने राजस्व से �कए जाने वाले व्यय – संघ या राज्य �कसी लोक प्रयोजन के �लए कोई अनद ु ान इस बात के होते हुए भी दे सकेगा �क वह प्रयोजन ऐसा नह�ं है िजसके संबध ं म� , यथािस्थ�त, संसद् या उस राज्य का �वधानमंडल �व�ध बना सकता है । 283. सं�चत �न�धय�, आकिस्मकता �न�धय� और लोक लेखाओं म� जमा धनरा�शय� क� अ�भर�ा आ�द – (1) भारत क� सं�चत �न�ध और भारत क� आकिस्मकता �न�ध क� अ�भर�ा, ऐसी �न�धय� म� धनरा�शय� के संदाय, उनसे धनरा�शय� के �नकाले जाने, ऐसी �न�धय� म� जमा धनरा�शय� से �भन्न भारत सरकार द्वारा या उसक� ओर से प्राप्त लोक धनरा�शय� क� अ�भर�ा, भारत के लोक लेखे म� उनके संदाय और ऐसे लेखे से धनरा�शय� के �नकाले जाने का तथा पव ू �क्त �वषय� से संब�ं धत या उनके आनष ु �ं गक अन्य सभी �वषय� का �व�नयमन संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा �कया जाएगा और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक राष्ट्रप�त द्वारा बनाए गए �नयम� द्वारा �कया जाएगा । (2) राज्य क� सं�चत �न�ध और राज्य क� आकिस्मकता �न�ध क� अ�भर�ा, ऐसी �न�धय� म� धनरा�शय� के संदाय, उनसे धनरा�शय� के �नकाले जाने, ऐसी �न�धय� म� जमा धनरा�शय� से �भन्न राज्य क� सरकार द्वारा या उसक� ओर से प्राप्त लोक धनरा�शय� क� अ�भर�ा, राज्य के लोक लेखे म� उनके संदाय और ऐसे लेखे से धनरा�शय� के �नकाले जाने का तथा पव ू �क्त �वषय� से संब�ं धत या उनके आनष ु �ं गक अन्य सभी �वषय� का �व�नयमन राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा �कया जाएगा और जब तक इस �न�म� इस प्रकार उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा बनाए गए �नयम� द्वारा �कया जाएगा । 284. लोक सेवक� और न्यायालय� द्वारा प्राप्त वादकतार्ओं क� जमा रा�शय� और अन्य धनरा�शय� क� अ�भर�ा – ऐसी सभी धनरा�शयां, जो – (क) यथािस्थ�त, भारत सरकार या राज्य क� सरकार द्वारा जट ु ाए गए या प्राप्त राजस्व या लोक धनरा�शय� से �भन्न ह�, और संघ या �कसी राज्य के कायर्कलाप के संबध ं म� �नयोिजत �कसी अ�धकार� को उसक� उस है�सयत म� , या (ख) �कसी वाद, �वषय, लेखे या व्यिक्तय� के नाम म� जमा भारत के राज्य�ेत्र के भीतर �कसी न्यायालय को, 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 164 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) प्राप्त होती है या उसके पास �न��प्त क� जाती है, यथािस्थ�त, भारत के लोक लेखे म� या राज्य के लोक लेखे म� जमा क� जाएगी । 285. संघ क� संप�� को राज्य के कराधान से छूट – (1) वहां तक के �सवाय, जहां तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध करे , �कसी राज्य द्वारा या राज्य के भीतर �कसी प्रा�धकार� द्वारा अ�धरो�पत सभी कर� से संघ क� संप�� को छूट होगी । (2) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक खंड (1) क� कोई बात �कसी राज्य के भीतर �कसी प्रा�धकार� को संघ क� �कसी संप�� पर कोई ऐसा कर, िजसका दा�यत्व इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले, ऐसी संप�� पर था या माना जाता था, उद्गह ृ �त करने से तब तक नह�ं रोकेगी जब तक वह कर उस राज्य म� उद्गह ृ �त होता रहता है । 286. माल के क्रय या �वक्रय पर कर के अ�धरोपण के बारे म� �नब�धन – (1) राज्य क� कोई �व�ध, 1[माल के या सेवाओं के या दोन� के प्रदाय पर, जहां ऐसा प्रदाय]– (क) राज्य के बाहर, या (ख) भारत के राज्य�ेत्र म� 2[माल के या सेवाओं के या दोन� के आयात अथवा माल के या सेवाओं के या दोन� के] बाहर �नयार्त के दौरान, होता है वहां, कोई कर अ�धरो�पत नह�ं करे गी या अ�धरो�पत करना प्रा�धकृत नह�ं करे गी । 3 [* * * *] 4 [(2) संसद्, यह अवधा�रत करने के �लए �क 5[माल का या सेवाओं का या दोन� का प्रदाय] खंड (1) म� व�णर्त र��तय� म� से �कसी र��त से कब होता है �व�ध द्वारा, �सद्धांत बना सकेगी । 6 [(3)* * * *] 287. �वद्यत ु पर कर� से छूट – वहां तक के �सवाय, जहां तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध करे , �कसी राज्य क� कोई �व�ध (�कसी सरकार द्वारा या अन्य व्यिक्तय� द्वारा उत्पा�दत) �वद्यत ु के उपभोग या �वक्रय पर िजसका – 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(i)(अ) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के क्रय या �वक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या �वक्रय" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(i)(आ) द्वारा (16-9-2016 से) "माल के आयात या उसके" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (1) के स्पष्ट�करण का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 द्वारा (11-9-1956 से) खंड (2) और खंड (3) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(ii) द्वारा (16-9-2016 से) "माल का क्रय या �वक्रय" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 13(iii) द्वारा (16-9-2016 से) खंड (3) का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 165 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (क) भारत सरकार द्वारा उपभोग �कया जाता है या भारत सरकार द्वारा उपभोग �कए जाने के �लए उस सरकार को �वक्रय �कया जाता है, या (ख) �कसी रे ल के �नमार्ण, बनाए रखने या चलाने म� भारत सरकार या �कसी रे ल कंपनी द्वारा, जो उस रे ल को चलाती है, उपभोग �कया जाता है अथवा �कसी रे ल के �नमार्ण, बनाए रखने या चलाने म� उपभोग के �लए उस सरकार या �कसी ऐसी रे ल कंपनी को �वक्रय �कया जाता है, कोई कर अ�धरो�पत नह�ं करे गी या कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत नह�ं करे गी और �वद्यत ु के �वक्रय पर कोई कर अ�धरो�पत करने या कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत करने वाल� कोई ऐसी �व�ध यह सु�निश्चत करे गी �क भारत सरकार द्वारा उपभोग �कए जाने के �लए उस सरकार को, या �कसी रे ल के �नमार्ण, बनाए रखने या चलाने म� उपभोग के �लए यथापव ू �क्त �कसी रे ल कंपनी को �वक्रय क� गई �वद्यत ु क� क�मत, उस क�मत से जो �वद्यत ु का प्रचरु मात्रा म� उपभोग करने वाले अन्य उपभोक्ताओं से ल� जाती है, उतनी कम होगी िजतनी कर क� रकम है । 288. जल या �वद्यत ं म� राज्य� द्वारा कराधान से कुछ दशाओं म� ु के संबध छूट – (1) वहां तक के �सवाय जहां तक राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अन्यथा उपबंध करे , इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी राज्य क� कोई प्रव� ु ृ �व�ध �कसी जल या �वद्यत के संबध ं म� , जो �कसी अंतररािज्यक नद� या नद�-दन ू के �व�नयमन या �वकास के �लए �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा या संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा स्था�पत �कसी प्रा�धकार� द्वारा सं�चत, उत्पा�दत, उपभुक्त, �वत�रत या �वक्र�त क� जाती है, कोई कर अ�धरो�पत नह�ं करे गी या कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत नह�ं करे गी । स्पष्ट�करण – इस खंड म� , “�कसी राज्य क� कोई प्रव� ृ �व�ध” पद के अंतगर्त �कसी राज्य क� ऐसी �व�ध होगी जो इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले पा�रत या बनाई गई है और जो पहले ह� �नर�सत नह�ं कर द� गई है, चाहे वह या उसके कोई भाग उस समय �बल्कुल या �व�शष्ट �ेत्र� म� प्रवतर्न म� न ह� । (2) �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, खंड (1) म� व�णर्त कोई कर अ�धरो�पत कर सकेगा या ऐसे कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत कर सकेगा, �कन्तु ऐसी �कसी �व�ध का तब तक कोई प्रभाव नह�ं होगा जब तक उसे राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखे जाने के पश्चात ् उसक� अनम ु �त न �मल गई हो और य�द ऐसी कोई �व�ध ऐसे कर� क� दर� और अन्य प्रसंग�तय� को �कसी प्रा�धकार� द्वारा, उस �व�ध के अधीन बनाए जाने वाले �नयम� या आदे श� द्वारा, �नयत �कए जाने का उपबंध करती है तो वह �व�ध ऐसे �कसी �नयम या आदे श के बनाने के �लए राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त अ�भप्राप्त �कए जाने का उपबंध करे गी । 289. राज्य� क� संप�� और आय को संघ के कराधान से छूट – (1) �कसी राज्य क� संप�� और आय को संघ के कर� से छूट होगी । भारत का सं�वधान 166 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (2) खंड (1) क� कोई बात संघ को �कसी राज्य क� सरकार द्वारा या उसक� ओर से �कए जाने वाले �कसी प्रकार के व्यापार या कारबार के संबध ं म� अथवा उससे संब�ं धत �कन्ह�ं �क्रयाओं के संबध ं म� अथवा ऐसे व्यापार या कारबार के प्रयोजन� के �लए प्रयक् ु त या अ�धभुक्त �कसी संप�� के संबध ं म� अथवा उसके संबध ं म� प्रोद्भूत या उद्भत ू �कसी आय के बारे म� , �कसी कर को ऐसी मात्रा तक, य�द कोई हो, िजसका संसद् �व�ध द्वारा उपबंध करे , अ�धरो�पत करने या कर का अ�धरोपण प्रा�धकृत करने से नह�ं रोकेगी । (3) खंड (2) क� कोई बात �कसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के �कसी ऐसे वगर् को लागू नह�ं होगी िजसके बारे म� संसद् �व�ध द्वारा घोषणा करे �क वह सरकार के मामूल� कृत्य� का आनष ु �ं गक है । 290. कुछ व्यय� और प� शन� के संबध ं म� समायोजन – जहां इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन �कसी न्यायालय या आयोग के व्यय अथवा �कसी व्यिक्त को या उसके संबध ं म� , िजसने इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले भारत म� क्राउन के अधीन अथवा ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् संघ के या �कसी राज्य के कायर्कलाप के संबध ं म� सेवा क� है, संदेय प� शन भारत क� सं�चत �न�ध या �कसी राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत है वहां, य�द – (क) भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत होने क� दशा म� , वह न्यायालय या आयोग �कसी राज्य क� पथ ृ क् आवश्यकताओं म� से �कसी क� प�ू तर् करता है या उस व्यिक्त ने �कसी राज्य के कायर्कलाप के संबध ं म� पण र् ः या भागतः सेवा ू त क� है, या (ख) �कसी राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत होने क� दशा म� , वह न्यायालय या आयोग संघ क� या अन्य राज्य क� पथ ृ क् आवश्यकताओं म� से �कसी क� प�ू तर् करता है या उस व्यिक्त ने संघ या अन्य राज्य के कायर्कलाप के संबध ं म� पण र् ः या भागतः सेवा क� है, ू त तो, यथािस्थ�त, उस राज्य क� सं�चत �न�ध पर अथवा, भारत क� सं�चत �न�ध अथवा अन्य राज्य क� सं�चत �न�ध पर, व्यय या प� शन के संबध ं म� उतना अंशदान, िजतना करार पाया जाए या करार के अभाव म� , िजतना भारत के मुख्य न्यायमू�तर् द्वारा �नयक् ु त मध्यस्थ अवधा�रत करे , भा�रत �कया जाएगा और उसका उस �न�ध म� से संदाय �कया जाएगा । 1 [290क. कुछ दे वस्वम ् �न�धय� को वा�षर्क संदाय – प्रत्येक वषर् �छयाल�स लाख पचास हजार रुपए क� रा�श केरल राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत क� जाएगी और उस �न�ध म� से �तरुवांकुर दे वस्वम ् �न�ध को संद� क� जाएगी और प्रत्येक वषर् तेरह लाख पचास हजार रुपए क� रा�श 2[त�मलनाडु] राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत क� जाएगी और उस �न�ध म� से 1 नवंबर, 1956 को उस राज्य को �तरुवांकुर-कोचीन राज्य से अंत�रत राज्य�ेत्र� के �हंद ू मं�दर� और प�वत्र स्थान� के अनरु �ण के �लए उस राज्य म� स्था�पत दे वस्वम ् �न�ध को संद� क� जाएगी ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 19 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । 2. मद्रास राज्य (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 167 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) 291. [शासक� क� �नजी थैल� क� रा�श ।] – सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । अध्याय 2 – उधार लेना 292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना – संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार, भारत क� सं�चत �न�ध क� प्र�तभू�त पर ऐसी सीमाओं के भीतर, य�द कोई ह�, िजन्ह� संसद् समय-समय पर �व�ध द्वारा �नयत करे , उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, य�द कोई ह�, िजन्ह� इस प्रकार �नयत �कया जाए, प्रत्याभ�ू त दे ने तक है । 293. राज्य� द्वारा उधार लेना – (1) इस अनच् ु छे द के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार, उस राज्य क� सं�चत �न�ध क� प्र�तभू�त पर ऐसी सीमाओं के भीतर, य�द कोई ह�, िजन्ह� ऐसे राज्य का �वधान-मंडल, समयसमय पर, �व�ध द्वारा, �नयत करे , भारत के राज्य�ेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी सीमाओं के भीतर, य�द कोई ह�, िजन्ह� इस प्रकार �नयत �कया जाए, प्रत्याभू�त दे ने तक है । (2) भारत सरकार, ऐसी शत� के अधीन रहते हुए, जो संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन अ�धक�थत क� जाएं, �कसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहां तक अनच् ु छे द 292 के अधीन �नयत �कन्ह�ं सीमाओं का उल्लंघन नह�ं ं म� प्रत्याभू�त दे होता है वहां तक �कसी ऐसे राज्य द्वारा �लए गए उधार� के संबध सकेगी और ऐसे उधार दे ने के प्रयोजन के �लए अपे��त रा�शयां भारत क� सं�चत �न�ध पर भा�रत क� जाएंगी । (3) य�द �कसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसक� पव र् त� सरकार ने ू व उस राज्य को �दया था अथवा िजसके संबध ं म� भारत सरकार ने या उसक� पव र् त� ू व सरकार ने प्रत्याभू�त द� थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार क� सहम�त के �बना कोई उधार नह�ं ले सकेगा । (4) खंड (3) के अधीन सहम�त उन शत� के अधीन, य�द कोई ह�, द� जा सकेगी िजन्ह� भारत सरकार अ�धरो�पत करना ठ�क समझे । अध्याय 3 – संप��, सं�वदाएं, अ�धकार, दा�यत्व, बाध्यताएं और वाद 294. कुछ दशाओं म� संप��, आिस्तय�, अ�धकार�, दा�यत्व� और बाध्यताओं का उ�रा�धकार – इस सं�वधान के प्रारं भ से ह�– (क) जो संप�� और आिस्तयां ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन क� सरकार के प्रयोजन� के �लए �हज मजेस्ट� म� �न�हत थीं और जो संप�� और आिस्तयां ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत क� सरकार के प्रयोजन� के �लए �हज मजेस्ट� म� �न�हत थीं, वे सभी इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले पा�कस्तान डो�म�नयन के या पिश्चमी बंगाल, पव ू � बंगाल, पिश्चमी पंजाब और पव ू � पंजाब प्रांत� के सज ृ न के कारण �कए गए या �कए जाने वाले �कसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः संघ और तत्स्थानी राज्य म� �न�हत ह�गी; और भारत का सं�वधान 168 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) (ख) जो अ�धकार, दा�यत्व और बाध्यताएं भारत डो�म�नयन क� सरकार क� और प्रत्येक राज्यपाल वाले प्रांत क� सरकार क� थीं, चाहे वे �कसी सं�वदा से या अन्यथा उद्भूत हुई ह�, वे सभी इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले पा�कस्तान डो�म�नयन के या पिश्चमी बंगाल, पव ू � बंगाल, पिश्चमी पंजाब और पव ू � पंजाब प्रांत� के सज ृ न के कारण �कए गए या �कए जाने वाले �कसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः भारत सरकार और प्रत्येक तत्स्थानी राज्य क� सरकार के अ�धकार, दा�यत्व और बाध्यताएं ह�गी । 295. अन्य दशाओं म� संप��, आिस्तय�, अ�धकार�, दा�यत्व� और बाध्यताओं का उ�रा�धकार – (1) इस सं�वधान के प्रारं भ से ह� – (क) जो संप�� और आिस्तयां ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले पहल� अनस ु च ू ी के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट राज्य के तत्स्थानी �कसी दे शी राज्य म� �न�हत थीं, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस �न�म� उस राज्य क� सरकार से करे , संघ म� �न�हत ह�गी य�द वे प्रयोजन िजनके �लए ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले ऐसी संप�� और आिस्तयां धा�रत थीं, तत्पश्चात ् संघ सच ू ी म� प्रग�णत �कसी �वषय से संब�ं धत संघ के प्रयोजन ह�, और (ख) जो अ�धकार, दा�यत्व और बाध्यताएं पहल� अनस ु च ू ी के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट राज्य के तत्स्थानी �कसी दे शी राज्य क� सरकार क� थीं, चाहे वे �कसी सं�वदा से या अन्यथा उद्भूत हुई ह�, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस �न�म� उस राज्य क� सरकार से करे , भारत सरकार के अ�धकार, दा�यत्व और बाध्यताएं ह�गी य�द वे प्रयोजन, िजनके �लए ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले ऐसे अ�धकार अिजर्त �कए गए थे अथवा ऐसे दा�यत्व या बाध्यताएं उपगत क� गई थीं, तत्पश्चात ् संघ सच ू ी म� प्रग�णत �कसी �वषय से संब�ं धत भारत सरकार के प्रयोजन ह� । (2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके अधीन रहते हुए, पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट प्रत्येक राज्य क� सरकार, उन सभी संप�� और आिस्तय� तथा उन सभी अ�धकार�, दा�यत्व� और बाध्यताओं के संबध ं म� , चाहे वे �कसी सं�वदा से या अन्यथा उद्भूत हुई ह�, जो खंड (1) म� �न�दर्ष्ट से �भन्न ह�, इस सं�वधान के प्रारं भ से ह� तत्स्थानी दे शी राज्य क� सरकार क� उ�रा�धकार� होगी । 296. राजगामी या व्यपगत या स्वामी�वह�न होने से प्रोद्भूत संप�� – इसम� इसके पश्चात ् यथा उपबं�धत के अधीन रहते हुए, भारत के राज्य�ेत्र म� कोई संप��, जो य�द यह सं�वधान प्रवतर्न म� नह�ं आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अ�धकारवान ् स्वामी के अभाव म� स्वामी�वह�न होने से, यथािस्थ�त, �हज मजेस्ट� को या �कसी दे शी राज्य के शासक को प्रोद्भूत हुई होती, य�द वह संप�� �कसी राज्य म� िस्थत है तो ऐसे राज्य म� और �कसी अन्य दशा म� संघ म� �न�हत होगी : भारत का सं�वधान 169 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) परं तु कोई संप��, जो उस तार�ख को जब वह इस प्रकार �हज मजेस्ट� को या दे शी राज्य के शासक को प्रोद्भूत हुई होती, भारत सरकार के या �कसी राज्य क� सरकार के कब्जे या �नयंत्रण म� थी तब, य�द वे प्रयोजन, िजनके �लए वह उस समय प्रयक् ु त या धा�रत थीं, संघ के थे तो वह संघ म� या �कसी राज्य के थे तो वह उस राज्य म� �न�हत होगी । स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द म� , “शासक” और “दे शी राज्य” पद� के वह� अथर् ह� जो अनच् ु छे द 363 म� ह� । [297. राज्य�ेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भ�ू म म� िस्थत मूल्यवान चीज� और अनन्य आ�थर्क �ेत्र के संप�� स्रोत� का संघ म� �न�हत होना – (1) भारत के राज्य�ेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भू�म या अनन्य आ�थर्क �ेत्र म� समुद्र के नीचे क� सभी भू�म, ख�नज और अन्य मूल्यवान चीज� संघ म� �न�हत ह�गी और संघ के प्रयोजन� के �लए धारण क� जाएंगी । 1 (2) भारत के अनन्य आ�थर्क �ेत्र के अन्य सभी संप�� स्रोत भी संघ म� �न�हत ह�गे और संघ के प्रयोजन� के �लए धारण �कए जाएंगे । (3) भारत के राज्य�ेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मग्नतट भू�म, अनन्य आ�थर्क �ेत्र और अन्य सामु�द्रक �ेत्र� क� सीमाएं वे ह�गी जो संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर �व�न�दर्ष्ट क� जाएं ।] [298. व्यापार करने आ�द क� शिक्त – संघ क� और प्रत्येक राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार, व्यापार या कारबार करने और �कसी प्रयोजन के �लए संप�� का अजर्न, धारण और व्ययन तथा सं�वदा करने पर, भी होगा : 2 परं तु – (क) जहां तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नह�ं है िजसके संबध ं म� संसद् �व�ध बना सकती है वहां तक संघ क� उक्त कायर्पा�लका शिक्त प्रत्येक राज्य म� उस राज्य के �वधान के अधीन होगी ; और (ख) जहां तक ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नह�ं है िजसके संबध ं म� राज्य का �वधान-मंडल �व�ध बना सकता है वहां तक प्रत्येक राज्य क� उक्त कायर्पा�लका शिक्त संसद् के �वधान के अधीन होगी ।] 1. सं�वधान (चाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से) प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 20 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 170 (भाग 12—�व�, संप��, सं�वदाएं और वाद) 299. सं�वदाएं – (1) संघ क� या राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का प्रयोग करते हुए क� गई सभी सं�वदाएं, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त द्वारा या उस राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा क� गई कह� जाएंगी और वे सभी सं�वदाएं और संप�� संबध ं ी हस्तांतरण-पत्र, जो उस शिक्त का प्रयोग करते हुए �कए जाएं, राष्ट्रप�त या राज्यपाल 1*** क� ओर से ऐसे व्यिक्तय� द्वारा और र��त से �नष्पा�दत �कए जाएंगे िजसे वह �न�दर्ष्ट या प्रा�धकृत करे । (2) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य का राज्यपाल 2*** इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए या भारत सरकार के संबध ं म� इससे पव ू र् प्रव� ृ �कसी अ�ध�नय�म�त के प्रयोजन� के �लए क� गई या �नष्पा�दत क� गई �कसी सं�वदा या हस्तांतरण-पत्र के संबध ं म� वैयिक्तक रूप से दायी नह�ं होगा या उनम� से �कसी क� ओर से ऐसी सं�वदा या हस्तांतरण-पत्र करने या �नष्पा�दत करने वाला व्यिक्त उसके संबध ं म� वैयिक्तक रूप से दायी नह�ं होगा । 300. वाद और कायर्वा�हयां – (1) भारत सरकार भारत संघ के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और �कसी राज्य क� सरकार उस राज्य के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और ऐसे उपबंध� के अधीन रहते हुए, जो इस सं�वधान द्वारा प्रद� शिक्तय� के आधार पर अ�ध�नय�मत संसद् के या ऐसे राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम द्वारा �कए जाएं, वे अपने-अपने कायर्कलाप के संबध ं म� उसी प्रकार वाद ला सक�गे या उन पर उसी प्रकार वाद लाया जा सकेगा िजस प्रकार, य�द यह सं�वधान अ�ध�नय�मत नह�ं �कया गया होता तो, भारत डो�म�नयन और तत्स्थानी प्रांत या तत्स्थानी दे शी राज्य वाद ला सकते थे या उन पर वाद लाया जा सकता था । (2) य�द इस सं�वधान के प्रारं भ पर– (क) कोई ऐसी �व�धक कायर्वा�हयां लं�बत ह� िजनम� भारत डो�म�नयन एक प�कार है तो उन कायर्वा�हय� म� उस डो�म�नयन के स्थान पर भारत संघ प्र�तस्था�पत �कया गया समझा जाएगा ; और (ख) कोई ऐसी �व�धक कायर्वा�हयां लं�बत ह� िजनम� कोई प्रांत या कोई दे शी राज्य एक प�कार है तो उन कायर्वा�हय� म� उस प्रांत या दे शी राज्य के स्थान पर तत्स्थानी राज्य प्र�तस्था�पत �कया गया समझा जाएगा । 3 [अध्याय 4 – संप�� का अ�धकार 300क. �व�ध के प्रा�धकार के �बना व्यिक्तय� को संप�� से वं�चत न �कया जाना – �कसी व्यिक्त को उसक� संप�� से �व�ध के प्रा�धकार से ह� वं�चत �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ना राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 34 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । भाग 13 भारत के राज्य�ेत्र के भीतर व्यापार, वा�णज्य और समागम 301. व्यापार, वा�णज्य और समागम क� स्वतंत्रता – इस भाग के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए, भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र व्यापार, वा�णज्य और समागम अबाध होगा । 302. व्यापार, वा�णज्य और समागम पर �नब�धन अ�धरो�पत करने क� संसद् क� शिक्त – संसद् �व�ध द्वारा, एक राज्य और दस ू रे राज्य के बीच या भारत के राज्य�ेत्र के �कसी भाग के भीतर व्यापार, वा�णज्य या समागम क� स्वतंत्रता पर ऐसे �नब�धन अ�धरो�पत कर सकेगी जो लोक �हत म� अपे��त ह� । 303. व्यापार और वा�णज्य के संबध ं म� संघ और राज्य� क� �वधायी शिक्तय� पर �नब�धन – (1) अनच् ु छे द 302 म� �कसी बात के होते हुए भी, सातवीं अनस ु ूची क� सू�चय� म� से �कसी म� व्यापार और वा�णज्य संबध ं ी �कसी प्र�विष्ट के आधार पर, संसद् को या राज्य के �वधान-मंडल को, कोई ऐसी �व�ध बनाने क� शिक्त नह�ं होगी जो एक राज्य को दस ू रे राज्य से अ�धमान दे ती है या �दया जाना प्रा�धकृत करती है अथवा एक राज्य और दस ू रे राज्य के बीच कोई �वभेद करती है या �कया जाना प्रा�धकृत करती है । (2) खंड (1) क� कोई बात संसद् को कोई ऐसी �व�ध बनाने से नह�ं रोकेगी जो कोई ऐसा अ�धमान दे ती है या �दया जाना प्रा�धकृत करती है अथवा कोई ऐसा �वभेद करती है या �कया जाना प्रा�धकृत करती है, य�द ऐसी �व�ध द्वारा यह घो�षत �कया जाता है �क भारत के राज्य�ेत्र के �कसी भाग म� माल क� कमी से उत्पन्न �कसी िस्थ�त से �नपटने के प्रयोजन के �लए ऐसा करना आवश्यक है । 304. राज्य� के बीच व्यापार, वा�णज्य और समागम पर �नब�धन – अनच् ु छे द 301 या अनच् ु छे द 303 म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा,– (क) अन्य राज्य� 1[या संघ राज्य�ेत्र�] से आयात �कए गए माल पर कोई ऐसा कर अ�धरो�पत कर सकेगा जो उस राज्य म� �व�न�मर्त या उत्पा�दत वैसे ह� माल पर लगता है, �कन्तु इस प्रकार �क उससे इस तरह आयात �कए गए माल और ऐसे �व�न�मर्त या उत्पा�दत माल के बीच कोई �वभेद न हो ; या (ख) उस राज्य के साथ या उसके भीतर व्यापार, वा�णज्य और समागम क� स्वतंत्रता पर ऐसे यिु क्तयक् ु त �नब�धन अ�धरो�पत कर सकेगा जो लोक �हत म� अपे��त ह� : 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । 171 भारत का सं�वधान 172 (भाग 13—भारत के राज्य�ेत्र के भीतर व्यापार, वा�णज्य और समागम) परं तु खंड (ख) के प्रयोजन� के �लए कोई �वधेयक या संशोधन राष्ट्रप�त क� पव ू र् मंजरू � के �बना �कसी राज्य के �वधान-मंडल म� परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा । [305. �वद्यमान �व�धय� और राज्य के एका�धकार का उपबंध करने वाल� �व�धय� क� व्याव�ृ � – वहां तक के �सवाय जहां तक राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अन्यथा �नदे श दे अनच् ु छे द 301 और अनच् ु छे द 303 क� कोई बात �कसी �वद्यमान �व�ध के उपबंध� पर कोई प्रभाव नह�ं डालेगी और अनच् ु छे द 301 क� कोई बात सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 के प्रारं भ से पहले बनाई गई �कसी �व�ध के प्रवतर्न पर वहां तक कोई प्रभाव नह�ं डालेगी जहां तक वह �व�ध �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है, जो अनच् ु छे द 19 के खंड (6) के उपखंड (ii) म� �न�दर्ष्ट है या वह �व�ध ऐसे �कसी �वषय के संबध ं म� , जो अनच् ु छे द 19 के खंड (6) के उपखंड (ii) म� �न�दर्ष्ट है, �व�ध बनाने से संसद् या �कसी राज्य के �वधान-मंडल को नह�ं रोकेगी ।] 1 306. [पहल� अनस ु ूची के भाग ख के कुछ राज्य� क� व्यापार और वा�णज्य पर �नब�धन� के अ�धरोपण क� शिक्त ।] – सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा लोप �कया गया । 307. अनच् ु छे द 301 से अनच् ु छे द 304 के प्रयोजन� को कायार्िन्वत करने के �लए प्रा�धकार� क� �नयिु क्त – संसद् �व�ध द्वारा, ऐसे प्रा�धकार� क� �नयिु क्त कर सकेगी जो वह अनच् ु छे द 301, अनच् ु छे द 302, अनच् ु छे द 303 और अनच् ु छे द 304 के प्रयोजन� को कायार्िन्वत करने के �लए समु�चत समझे और इस प्रकार �नयक् ु त प्रा�धकार� को ऐसी शिक्तयां प्रदान कर सकेगी और ऐसे कतर्व्य स�प सकेगी जो वह आवश्यक समझे । 1. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 4 द्वारा (27-4-1955 से) अनुच्छे द 305 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भाग 14 संघ और राज्य� के अधीन सेवाएं अध्याय 1 – सेवाएं 308. �नवर्चन – इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, “राज्य” पद 1[के अंतगर्त जम्म-ू कश्मीर राज्य नह�ं है ।] 309. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� भत� और सेवा क� शत� – इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, समु�चत �वधान-मंडल के अ�ध�नयम संघ या �कसी राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत लोक सेवाओं और पद� के �लए भत� का और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन कर सक�गे : परं तु जब तक इस अनच् ु छे द के अधीन समु�चत �वधान-मंडल के अ�ध�नयम द्वारा या उसके अधीन इस �न�म� उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक, यथािस्थ�त, संघ के कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं और पद� क� दशा म� राष्ट्रप�त या ऐसा व्यिक्त िजसे वह �न�दष्ट करे और राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं और पद� क� दशा म� राज्य का राज्यपाल 2*** या ऐसा व्यिक्त िजसे वह �न�दष्ट करे , ऐसी सेवाओं और पद� के �लए भत� का और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन करने वाले �नयम बनाने के �लए स�म होगा और इस प्रकार बनाए गए �नयम �कसी ऐसे अ�ध�नयम के उपबंध� के अधीन रहते हुए प्रभावी ह�गे । 310. संघ या राज्य क� सेवा करने वाले व्यिक्तय� क� पदाव�ध – (1) इस सं�वधान द्वारा अ�भव्यक्त रूप से यथा उपबं�धत के �सवाय, प्रत्येक व्यिक्त जो र�ा सेवा का या संघ क� �स�वल सेवा का या अ�खल भारतीय सेवा का सदस्य है अथवा र�ा से संब�ं धत कोई पद या संघ के अधीन कोई �स�वल पद धारण करता है, राष्ट्रप�त के प्रसादपय�त पद धारण करता है और प्रत्येक व्यिक्त जो �कसी राज्य क� �स�वल सेवा का सदस्य है या राज्य के अधीन कोई �स�वल पद धारण करता है, उस राज्य के राज्यपाल 3 के प्रसादपय�त पद धारण करता है । (2) इस बात के होते हुए भी �क संघ या �कसी राज्य के अधीन �स�वल पद धारण करने वाला व्यिक्त, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या राज्य के राज्यपाल 2*** के प्रसादपय�त पद धारण करता है, कोई सं�वदा िजसके अधीन कोई व्यिक्त जो र�ा सेवा का या अ�खल भारतीय सेवा का या संघ या राज्य क� �स�वल सेवा का सदस्य नह�ं है, ऐसे �कसी पद को धारण करने के �लए इस सं�वधान के अधीन �नयक् ु त �कया जाता है, उस दशा म� , िजसम� , यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या राज्यपाल 4*** �वशेष अहर्ताओं वाले �कसी व्यिक्त क� सेवाएं 2 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “प्रथम अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट राज्य अ�भप्रेत है” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त, उस राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख” के स्थान पर उपरोक्त रूप म� रखा गया । 4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 173 भारत का सं�वधान 174 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) प्राप्त करने के �लए आवश्यक समझता है, यह उपबंध कर सकेगी �क य�द करार क� गई अव�ध क� समािप्त से पहले वह पद समाप्त कर �दया जाता है या ऐसे कारण� से, जो उसके �कसी अवचार से संब�ं धत नह�ं है, उससे वह पद �रक्त करने क� अपे�ा क� जाती है तो, उसे प्र�तकर �दया जाएगा । 311. संघ या राज्य के अधीन �स�वल है�सयत म� �नयोिजत व्यिक्तय� का पदच्यत ु �कया जाना, पद से हटाया जाना या पंिक्त म� अवनत �कया जाना – (1) �कसी व्यिक्त को जो संघ क� �स�वल सेवा का या अ�खल भारतीय सेवा का या राज्य क� �स�वल सेवा का सदस्य है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई �स�वल पद धारण करता है, उसक� �नयिु क्त करने वाले प्रा�धकार� के अधीनस्थ �कसी प्रा�धकार� द्वारा पदच्यत ु नह�ं �कया जाएगा या पद से नह�ं हटाया जाएगा । 1 [(2) यथापव ू �क्त �कसी व्यिक्त को, ऐसी जांच के पश्चात ् ह�, िजसम� उसे अपने �वरुद्ध आरोप� क� सूचना दे द� गई है और उन आरोप� के संबध ं म� 2*** सुनवाई का यिु क्तयक् ु त अवसर दे �दया गया है, पदच्यत ु �कया जाएगा या पद से हटाया जाएगा या पंिक्त म� अवनत �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं : 3 [परं तु जहां ऐसी जांच के पश्चात ् उस पर ऐसी कोई शािस्त अ�धरो�पत करने क� प्रस्थापना है वहां ऐसी शािस्त ऐसी जांच के दौरान �दए गए सा�य के आधार पर अ�धरो�पत क� जा सकेगी और ऐसे व्यिक्त को प्रस्था�पत शािस्त के �वषय म� अभ्यावेदन करने का अवसर दे ना आवश्यक नह�ं होगा : परं तु यह और �क यह खंड वहां लागू नह�ं होगा –] (क) जहां �कसी व्यिक्त को ऐसे आचरण के आधार पर पदच्यत ु �कया जाता है या पद से हटाया जाता है या पंिक्त म� अवनत �कया जाता है िजसके �लए आपरा�धक आरोप पर उसे �सद्धदोष ठहराया गया है ; या (ख) जहां �कसी व्यिक्त को पदच्यत ु करने या पद से हटाने या पंिक्त म� अवनत करने के �लए सशक्त प्रा�धकार� का यह समाधान हो जाता है �क �कसी कारण से, जो उस प्रा�धकार� द्वारा लेखबद्ध �कया जाएगा, यह यिु क्तयक् ु त रूप से साध्य नह�ं है �क ऐसी जांच क� जाए ; या (ग) जहां, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या राज्यपाल का यह समाधान हो जाता है �क राज्य क� सुर�ा के �हत म� यह समीचीन नह�ं है �क ऐसी जांच क� जाए । (3) य�द, यथापव ं म� यह प्रश्न उठता है �क खंड (2) म� ू �क्त �कसी व्यिक्त के संबध �न�दर्ष्ट जांच करना यिु क्तयक् ु त रूप से साध्य है या नह�ं तो उस व्यिक्त को पदच्यत ु करने या पद से हटाने या पंिक्त म� अवनत करने के �लए सशक्त प्रा�धकार� का उस पर �व�नश्चय अं�तम होगा ।] 1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधऩ) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 10 द्वारा (5-10-1963 से) खंड (2) और खंड (3) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधऩ) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 44 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 175 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) 312. अ�खल भारतीय सेवाएं – (1) 1[भाग 6 के अध्याय 6 या भाग 11] म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द राज्य सभा ने उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� म� से कम से कम दो-�तहाई सदस्य� द्वारा सम�थर्त संकल्प द्वारा यह घो�षत �कया है �क राष्ट्र�य �हत म� ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो संसद्, �व�ध द्वारा, संघ और राज्य� के �लए सिम्म�लत एक या अ�धक अ�खल भारतीय सेवाओं के 2[(िजनके अंतगर्त अ�खल भारतीय न्या�यक सेवा है)] सज ृ न के �लए उपबंध कर सकेगी और इस अध्याय के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी ऐसी सेवा के �लए भत� का और �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन कर सकेगी । (2) इस सं�वधान के प्रारं भ पर भारतीय प्रशास�नक सेवा और भारतीय प�ु लस सेवा के नाम से �ात सेवाएं इस अनच् ु छे द के अधीन संसद् द्वारा सिृ जत सेवाएं समझी जाएंगी । [(3) खंड (1) म� �न�दर्ष्ट अ�खल भारतीय न्या�यक सेवा के अंतगर्त अनच् ु छे द 236 म� प�रभा�षत िजला न्यायाधीश के पद से अवर कोई पद नह�ं होगा । 2 (4) पव ू �क्त अ�खल भारतीय न्या�यक सेवा के सज ृ न के �लए उपबंध करने वाल� �व�ध म� भाग 6 के अध्याय 6 के संशोधन के �लए ऐसे उपबंध अंत�वर्ष्ट हो सक�गे जो उस �व�ध के उपबंध� को कायार्िन्वत करने के �लए आवश्यक ह� और ऐसी कोई �व�ध अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी ।] [312क. कुछ सेवाओं के अ�धका�रय� क� सेवा क� शत� म� प�रवतर्न करने या उन्ह� प्र�तसंहृत करने क� संसद् क� शिक्त – (1) संसद्, �व�ध द्वारा – 3 (क) उन व्यिक्तय� क�, जो सेक्रेटर� आफ स्टे ट द्वारा या सेक्रेटर� आफ स्टे ट इन क��सल द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले भारत म� क्राउन क� �कसी �स�वल सेवा म� �नयक् ु त �कए गए थे और जो सं�वधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 के प्रारं भ पर और उसके पश्चात ्, भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी सेवा या पद पर बने रहते ह�, पा�रश्र�मक, छुट्ट� और प� शन संबध ं ी सेवा क� शत� तथा अनश ु ास�नक �वषय� संबध ं ी अ�धकार, भ�वष्यल�ी या भूतल�ी रूप से प�रव�तर्त कर सकेगी या प्र�तसंहृत कर सकेगी ; 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) “भाग 11” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 45 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (29-8-1972 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 176 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) (ख) उन व्यिक्तय� क�, जो सेक्रेटर� आफ स्टे ट द्वारा या सेक्रेटर� आफ स्टे ट इन क��सल द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले भारत म� क्राउन क� �कसी �स�वल सेवा म� �नयक् ु त �कए गए थे और जो सं�वधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 के प्रारंभ से पहले �कसी समय सेवा से �नव� ृ हो गए ह� या अन्यथा सेवा म� नह�ं रहे ह�, प� शन संबध ं ी सेवा क� शत� भ�वष्यल�ी या भूतल�ी रूप से प�रव�तर्त कर सकेगी या प्र�तसंहृत कर सकेगी : परं तु �कसी ऐसे व्यिक्त क� दशा म� , जो उच्चतम न्यायालय या �कसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश, भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क, संघ या �कसी राज्य के लोक सेवा आयोग के अध्य� या अन्य सदस्य अथवा मुख्य �नवार्चन आयक् ु त का पद धारण कर रहा है या कर चक ु ा है, उपखंड (क) या उपखंड (ख) क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह संसद् को, उस व्यिक्त क� उक्त पद पर �नयिु क्त के पश्चात ्, उसक� सेवा क� शत� म� , वहां तक के �सवाय जहां तक ऐसी सेवा क� शत� उसे सेक्रेटर� आफ स्टे ट द्वारा या सेक्रेटर� आफ स्टे ट इन क��सल द्वारा भारत म� क्राउन क� �कसी �स�वल सेवा म� �नयक् ु त �कया गया व्यिक्त होने के कारण लागू ह�, उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न करने के �लए या उन्ह� प्र�तसंहृत करने के �लए सशक्त करती है । (2) वहां तक के �सवाय जहां तक संसद्, �व�ध द्वारा, इस अनच् ु छे द के अधीन उपबंध करे इस अनच् ु छे द क� कोई बात खंड (1) म� �न�दर्ष्ट व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� का �व�नयमन करने क� इस सं�वधान के �कसी अन्य उपबंध के अधीन �कसी �वधानमंडल या अन्य प्रा�धकार� क� शिक्त पर प्रभाव नह�ं डालेगी । (3) उच्चतम न्यायालय को या �कसी अन्य न्यायालय को �नम्न�ल�खत �ववाद� म� कोई अ�धका�रता नह�ं होगी, अथार्त ् : – (क) �कसी प्रसं�वदा, करार या अन्य ऐसी ह� �लखत के, िजसे खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �कसी व्यिक्त ने �कया है या �नष्पा�दत �कया है, �कसी उपबंध से या उस पर �कए गए �कसी पष्ृ ठांकन से उत्पन्न कोई �ववाद अथवा ऐसे व्यिक्त को, भारत म� क्राउन क� �कसी �स�वल सेवा म� उसक� �नयिु क्त या भारत डो�म�नयन क� या उसके �कसी प्रांत क� सरकार के अधीन सेवा म� उसके बने रहने के संबध ं म� भेजे गए �कसी पत्र के आधार पर उत्पन्न कोई �ववाद ; (ख) मूल रूप म� यथा अ�ध�नय�मत अनच् ु छे द 314 के अधीन �कसी अ�धकार, दा�यत्व या बाध्यता के संबध ं म� कोई �ववाद । (4) इस अनच् ू रूप म� यथा अ�ध�नय�मत अनच् ु छे द 314 म� या ु छे द के उपबंध मल इस सं�वधान के �कसी अन्य उपबंध म� �कसी बात के होते हुए भी प्रभावी ह�गे ।] भारत का सं�वधान 177 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) 313. संक्रमणकाल�न उपबंध – जब तक इस सं�वधान के अधीन इस �न�म� अन्य उपबंध नह�ं �कया जाता है तब तक ऐसी सभी �व�धयां जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले प्रव� ृ ह� और �कसी ऐसी लोक सेवा या �कसी ऐसे पद को, जो इस सं�वधान के प्रारं भ के पश्चात ् अ�खल भारतीय सेवा के अथवा संघ या �कसी राज्य के अधीन सेवा या पद के रूप म� बना रहता है, लागू ह� वहां तक प्रव� ृ बनी रह� गी जहां तक वे इस सं�वधान के उपबंध� से संगत है । 314. [कुछ सेवाओं के �वद्यमान अ�धका�रय� के संर�ण के �लए उपबंध ।] सं�वधान (अट्ठाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 3 द्वारा (29-8-1972 से) लोप �कया गया । अध्याय 2 – लोक सेवा आयोग 315. संघ और राज्य� के �लए लोक सेवा आयोग – (1) इस अनच् ु छे द के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संघ के �लए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के �लए एक लोक सेवा आयोग होगा । (2) दो या अ�धक राज्य यह करार कर सक�गे �क राज्य� के उस समूह के �लए एक ह� लोक सेवा आयोग होगा और य�द इस आशय का संकल्प उन राज्य� म� से प्रत्येक राज्य के �वधान-मंडल के सदन द्वारा या जहां दो सदन ह� वहां प्रत्येक सदन द्वारा पा�रत कर �दया जाता है तो संसद् उन राज्य� क� आवश्यकताओं क� प�ू तर् करने के �लए �व�ध द्वारा संयक् ु त राज्य लोक सेवा आयोग क� (िजसे इस अध्याय म� “संयक् ु त आयोग” कहा गया है) �नयिु क्त का उपबंध कर सकेगी । (3) पव ू �क्त प्रकार क� �कसी �व�ध म� ऐसे आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध हो सक�गे जो उस �व�ध के प्रयोजन� को प्रभावी करने के �लए आवश्यक या वांछनीय ह� । (4) य�द �कसी राज्य का राज्यपाल 1*** संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनरु ोध करता है तो वह राष्ट्रप�त के अनम ु ोदन से उस राज्य क� सभी या �कन्ह�ं आवश्यकताओं क� प�ू तर् करने के �लए सहमत हो सकेगा । (5) इस सं�वधान म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो संघ लोक सेवा आयोग या �कसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया जाएगा �क वे ऐसे आयोग के प्र�त �नद� श ह� जो प्रश्नगत �कसी �व�शष्ट �वषय के संबध ं म� , यथािस्थ�त, संघ क� या राज्य क� आवश्यकताओं क� प�ू तर् करता है । 316. सदस्य� क� �नयिु क्त और पदाव�ध – (1) लोक सेवा आयोग के अध्य� और अन्य सदस्य� क� �नयिु क्त, य�द वह संघ आयोग या संयक् ु त आयोग है तो, राष्ट्रप�त द्वारा और, य�द वह राज्य आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा क� जाएगी : 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 178 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) परं तु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्य� म� से यथाशक्य �नकटतम आधे ऐसे व्यिक्त ह�गे जो अपनी-अपनी �नयिु क्त क� तार�ख पर भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन कम से कम दस वषर् तक पद धारण कर चक ु े ह� और उक्त दस वषर् क� अव�ध क� संगणना करने म� इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले क� ऐसी अव�ध भी सिम्म�लत क� जाएगी िजसके दौरान �कसी व्यिक्त ने भारत म� क्राउन के अधीन या �कसी दे शी राज्य क� सरकार के अधीन पद धारण �कया है । [(1क) य�द आयोग के अध्य� का पद �रक्त हो जाता है या य�द कोई ऐसा अध्य� अनप ु िस्थ�त के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कतर्व्य� का पालन करने म� असमथर् है तो, यथािस्थ�त, जब तक �रक्त पद पर खंड (1) के अधीन �नयक् ु त कोई व्यिक्त उस पद का कतर्व्य भार ग्रहण नह�ं कर लेता है या जब तक अध्य� अपने कतर्व्य� को �फर से नह�ं संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्य� म� से ऐसा एक सदस्य, िजसे संघ आयोग या संयक् ु त आयोग क� दशा म� राष्ट्रप�त और राज्य आयोग क� दशा म� उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के �लए �नयक् ु त करे , उन कतर्व्य� का पालन करे गा ।] 1 (2) लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण क� तार�ख से छह वषर् क� अव�ध तक या संघ आयोग क� दशा म� प�सठ वषर् क� आयु प्राप्त कर लेने तक और 2 राज्य आयोग या संयक् ु त आयोग क� दशा म� [बासठ वषर्] क� आयु प्राप्त कर लेने तक इनम� से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करे गा : परं तु – (क) लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग या संयक् ु त आयोग क� दशा म� राष्ट्रप�त को और राज्य आयोग क� दशा म� राज्य के राज्यपाल 3*** को संबो�धत अपने हस्ता�र स�हत लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा ; (ख) लोक सेवा आयोग के �कसी सदस्य को, अनच् ु छे द 317 के खंड (1) या खंड (3) म� उपबं�धत र��त से उसके पद से हटाया जा सकेगा । (3) कोई व्यिक्त जो लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप म� पद धारण करता है, अपनी पदाव�ध क� समािप्त पर उस पद पर पन ु �नर्यिु क्त का पात्र नह�ं होगा । 1. सं�वधान (पन्द्रहवां संशोधऩ) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 11 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (इकताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से) “साठ वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 179 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) 317. लोक सेवा आयोग के �कसी सदस्य का हटाया जाना और �नलं�बत �कया जाना – (1) खंड (3) के उपबंध� के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अध्य� या �कसी अन्य सदस्य को केवल कदाचार के आधार पर �कए गए राष्ट्रप�त के ऐसे आदे श से उसके पद से हटाया जाएगा जो उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रप�त द्वारा �नद� श �कए जाने पर उस न्यायालय द्वारा अनच् ु छे द 145 के अधीन इस �न�म� �व�हत प्र�क्रया के अनस ु ार क� गई जांच पर, यह प्र�तवेदन �कए जाने के पश्चात ् �कया गया है �क, यथािस्थ�त, अध्य� या ऐसे �कसी सदस्य को ऐसे �कसी आधार पर हटा �दया जाए । (2) आयोग के अध्य� या �कसी अन्य सदस्य को, िजसके संबध ं म� खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को �नद� श �कया गया है, 1*** संघ आयोग या संयक् ु त आयोग क� दशा म� राष्ट्रप�त और राज्य आयोग क� दशा म� राज्यपाल उसके पद से तब तक के �लए �नलं�बत कर सकेगा जब तक राष्ट्रप�त ऐसे �नद� श पर उच्चतम न्यायालय का प्र�तवेदन �मलने पर अपना आदे श पा�रत नह�ं कर दे ता है । (3) खंड (1) म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द लोक सेवा आयोग का, यथािस्थ�त, अध्य� या कोई अन्य सदस्य – (क) �दवा�लया न्याय�नण�त �कया जाता है, या (ख) अपनी पदाव�ध म� अपने पद के कतर्व्य� के बाहर �कसी सवेतन �नयोजन म� लगता है, या (ग) राष्ट्रप�त क� राय म� मान�सक या शार��रक शै�थल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के �लए अयोग्य है, तो राष्ट्रप�त, अध्य� या ऐसे अन्य सदस्य को आदे श द्वारा पद से हटा सकेगा । (4) य�द लोक सेवा आयोग का अध्य� या कोई अन्य सदस्य, �नग�मत कंपनी के सदस्य के रूप म� और कंपनी के अन्य सदस्य� के साथ सिम्म�लत रूप से अन्यथा, उस सं�वदा या करार से, जो भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या �न�म� क� गई या �कया गया है, �कसी प्रकार से संपक् ृ त या �हतबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या उससे उद्भत �कसी फायदे या उपलिब्ध म� भाग लेता है तो वह खंड (1) के ू प्रयोजन� के �लए कदाचार का दोषी समझा जाएगा । 318. आयोग के सदस्य� और कमर्चा�रवद ंृ क� सेवा क� शत� के बारे म� �व�नयम बनाने क� शिक्त – संघ आयोग या संयक् ु त आयोग क� दशा म� राष्ट्रप�त और राज्य आयोग क� दशा म� उस राज्य का राज्यपाल 1*** �व�नयम� द्वारा – 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 180 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) (क) आयोग के सदस्य� क� संख्या और उनक� सेवा क� शत� का अवधारण कर सकेगा ; और (ख) आयोग के कमर्चा�रवद ंृ के सदस्य� क� संख्या और उनक� सेवा क� शत� के संबध ं म� उपबंध कर सकेगा : परं तु लोक सेवा आयोग के सदस्य क� सेवा क� शत� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । ं 319. आयोग के सदस्य� द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबध म� प्र�तषेध – पद पर न रह जाने पर – (क) संघ लोक सेवा आयोग का अध्य� भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी भी और �नयोजन का पात्र नह�ं होगा ; (ख) �कसी राज्य लोक सेवा आयोग का अध्य� संघ लोक सेवा आयोग के अध्य� या अन्य सदस्य के रूप म� अथवा �कसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्य� के रूप म� �नयक् ु त होने का पात्र होगा, �कन्तु भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी अन्य �नयोजन का पात्र नह�ं होगा ; (ग) संघ लोक सेवा आयोग के अध्य� से �भन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्य� के रूप म� या �कसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्य� के रूप म� �नयक् ु त होने का पात्र होगा, �कन्तु भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी अन्य �नयोजन का पात्र नह�ं होगा ; (घ) �कसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्य� से �भन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्य� या �कसी अन्य सदस्य के रूप म� अथवा उसी या �कसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्य� के रूप म� �नयक् ु त होने का पात्र होगा, �कन्तु भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन �कसी अन्य �नयोजन का पात्र नह�ं होगा । 320. लोक सेवा आयोग� के कृत्य – (1) संघ और राज्य लोक सेवा आयोग� का यह कतर्व्य होगा �क वे क्रमशः संघ क� सेवाओं और राज्य क� सेवाओं म� �नयिु क्तय� के �लए पर��ाओं का संचालन कर� । (2) य�द संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अ�धक राज्य ऐसा करने का अनरु ोध करते ह� तो उसका यह भी कतर्व्य होगा �क वह ऐसी �कन्ह�ं सेवाओं के �लए, िजनके �लए �वशेष अहर्ताओं वाले अभ्यथ� अपे��त ह�, संयक् ु त भत� क� स्क�म� बनाने और उनका प्रवतर्न करने म� उन राज्य� क� सहायता करे । (3) यथािस्थ�त, संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग से – 181 भारत का सं�वधान (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) (क) �स�वल सेवाओं म� और �स�वल पद� के �लए भत� क� पद्ध�तय� से संब�ं धत सभी �वषय� पर, (ख) �स�वल सेवाओं और पद� पर �नयिु क्त करने म� तथा एक सेवा से दस ू र� सेवा म� प्रोन्न�त और अंतरण करने म� अनस ु रण �कए जाने वाले �सद्धांत� पर और ऐसी �नयिु क्त, प्रोन्न�त या अंतरण के �लए अभ्य�थर्य� क� उपयक् ु तता पर, (ग) ऐसे व्यिक्त पर, जो भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार क� �स�वल है�सयत म� सेवा कर रहा है, प्रभाव डालने वाले, सभी अनश ु ास�नक �वषय� पर, िजनके अंतगर्त ऐसे �वषय� से संब�ं धत अभ्यावेदन या या�चकाएं ह�, (घ) ऐसे व्यिक्त द्वारा या उसके संबध ं म� , जो भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के अधीन या भारत म� क्राउन के अधीन या �कसी दे शी राज्य क� सरकार के अधीन �स�वल है�सयत म� सेवा कर रहा है या कर चक ु ा है, इस दावे पर �क अपने कतर्व्य के �नष्पादन म� �कए गए या �कए जाने के �लए तात्प�यर्त काय� के संबध ं म� उसके �वरुद्ध संिस्थत �व�धक कायर्वा�हय� क� प्र�तर�ा म� उसके द्वारा उपगत खचर् का, यथािस्थ�त, भारत क� सं�चत �न�ध म� से या राज्य क� सं�चत �न�ध म� से संदाय �कया जाना चा�हए, (ङ) भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार या भारत म� क्राउन के अधीन या �कसी दे शी राज्य क� सरकार के अधीन �स�वल है�सयत म� सेवा करते समय �कसी व्यिक्त को हुई ��तय� के बारे म� प� शन अ�ध�नण�त �कए जाने के �लए �कसी दावे पर और ऐसे अ�ध�नणर्य क� रकम �वषयक प्रश्न पर, परामशर् �कया जाएगा और इस प्रकार उसे �नद� �शत �कए गए �कसी �वषय पर तथा ऐसे �कसी अन्य �वषय पर, िजसे, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या उस राज्य का राज्यपाल 1*** उसे �नद� �शत करे , परामशर् दे ने का लोक सेवा आयोग का कतर्व्य होगा : परं तु अ�खल भारतीय सेवाओं के संबध ं म� तथा संघ के कायर्कलाप से संब�ं धत अन्य सेवाओं और पद� के संबध ं म� भी राष्ट्रप�त तथा राज्य के कायर्कलाप से संब�धत अन्य सेवाओं और पद� के संबध ं म� राज्यपाल 2 उन �वषय� को �व�न�दर्ष्ट करने वाले �व�नयम बना सकेगा िजनम� साधारणतया या �कसी �व�शष्ट वगर् के मामले म� या �कन्ह�ं �व�शष्ट प�रिस्थ�तय� म� लोक सेवा आयोग से परामशर् �कया जाना आवश्यक नह�ं होगा । (4) खंड (3) क� �कसी बात से यह अपे�ा नह�ं होगी �क लोक सेवा आयोग से उस र��त के संबध ं म� , िजससे अनच् ु छे द 16 के खंड (4) म� �न�दर् ष्ट कोई उपबंध �कया जाना है या उस र��त के संबध ं म� , िजससे अनच् ु छे द 335 के उपबंध� को प्रभावी �कया जाना है, परामशर् �कया जाए । 15 16 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त, राज्यपाल या राजप्रमुख” शब्द� के स्थान पर उपरोक्त रूप से रखा गया । भारत का सं�वधान 182 (भाग 14—संग और राज्य� के अधीन सेवाएं) (5) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा खंड (3) के परं तुक के अधीन बनाए गए सभी �व�नयम, बनाए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र, यथािस्थ�त, संसद् के प्रत्येक सदन या राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के सम� कम से कम चौदह �दन के �लए रखे जाएंगे और �नरसन या संशोधन द्वारा �कए गए ऐसे उपांतरण� के अधीन ह�गे जो संसद् के दोन� सदन या उस राज्य के �वधान-मंडल का सदन या दोन� सदन उस सत्र म� कर� िजसम� वे इस प्रकार रखे गए ह� । 17 321. लोक सेवा आयोग� के कृत्य� का �वस्तार करने क� शिक्त – यथािस्थ�त, संसद् द्वारा या �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अ�ध�नयम संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा संघ क� या राज्य क� सेवाओं के संबध ं म� और �कसी स्थानीय प्रा�धकार� या �व�ध द्वारा ग�ठत अन्य �नग�मत �नकाय या �कसी लोक संस्था क� सेवाओं के संबध ं म� भी अ�त�रक्त कृत्य� के प्रयोग के �लए उपबंध कर सकेगा । 322. लोक सेवा आयोग� के व्यय – संघ या राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय, िजनके अंतगर्त आयोग के सदस्य� या कमर्चा�रवंद ं म� संदेय कोई ृ को या उनके संबध वेतन, भ�े और प� शन ह�, यथािस्थ�त, भारत क� सं�चत �न�ध या राज्य क� सं�चत �न�ध पर भा�रत ह�गे । 323. लोक सेवा आयोग� के प्र�तवेदन – (1) संघ आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह राष्ट्रप�त को आयोग द्वारा �कए गए कायर् के बारे म� प्र�तवषर् प्र�तवेदन दे और राष्ट्रप�त ऐसा प्र�तवेदन प्राप्त होने पर उन मामल� के संबध ं म� , य�द कोई ह�, िजनम� आयोग क� सलाह स्वीकार नह�ं क� गई थी, ऐसी अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाले �ापन स�हत उस प्र�तवेदन क� प्र�त संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा । (2) राज्य आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह राज्य के राज्यपाल 1*** को आयोग द्वारा �कए गए कायर् के बारे म� प्र�तवषर् प्र�तवेदन दे और संयक् ु त आयोग का यह कतर्व्य होगा �क ऐसे राज्य� म� से प्रत्येक के, िजनक� आवश्यकताओं क� प�ू तर् संयक् ु त आयोग द्वारा क� जाती है, राज्यपाल 1*** को उस राज्य के संबध ं म� आयोग द्वारा �कए गए कायर् के बारे म� प्र�तवषर् प्र�तवेदन दे और दोन� म� से प्रत्येक दशा म� ऐसा प्र�तवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल 2*** उन मामल� के संबध ं म� , य�द कोई ह�, िजनम� आयोग क� सलाह स्वीकार नह�ं क� गई थी, ऐसी अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाले �ापन स�हत उस प्र�तवेदन क� प्र�त राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त, राज्यपाल या राजप्रमुख” शब्द� के स्थान पर उपरोक्त रूप से रखा गया । [भाग 14क 1 अ�धकरण 323क. प्रशास�नक अ�धकरण – (1) संसद्, �व�ध द्वारा, संघ या �कसी राज्य के अथवा भारत के राज्य�ेत्र के भीतर या भारत सरकार के �नयंत्रण के अधीन �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अथवा सरकार के स्वा�मत्व या �नयंत्रण के अधीन �कसी �नगम के कायर्कलाप से संब�ं धत लोक सेवाओं और पद� के �लए भत� तथा �नयक् ु त व्यिक्तय� क� सेवा क� शत� के संबध ं म� �ववाद� और प�रवाद� के प्रशास�नक अ�धकरण� द्वारा न्याय�नणर्यन या �वचारण के �लए उपबंध कर सकेगी । (2) खंड (1) के अधीन बनाई गई �व�ध – (क) संघ के �लए एक प्रशास�नक अ�धकरण और प्रत्येक राज्य के �लए अथवा दो या अ�धक राज्य� के �लए एक पथ ृ क् प्रशास�नक अ�धकरण क� स्थापना के �लए उपबंध कर सकेगी ; (ख) उक्त अ�धकरण� म� से प्रत्येक अ�धकरण द्वारा प्रयोग क� जाने वाल� अ�धका�रता, शिक्तयां (िजनके अंतगर्त अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त है) और प्रा�धकार �व�न�दर्ष्ट कर सकेगी ; (ग) उक्त अ�धकरण� द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया के �लए (िजसके अंतगर्त प�रसीमा के बारे म� और सा�य के �नयम� के बारे म� उपबंध ह�) उपबंध कर सकेगी ; (घ) अनच् ु छे द 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता के �सवाय सभी न्यायालय� क� अ�धका�रता का खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �ववाद� या प�रवाद� के संबध म� अपवजर्न कर सकेगी ; (ङ) प्रत्येक ऐसे प्रशास�नक अ�धकरण को उन मामल� के अंतरण के �लए उपबंध कर सकेगी जो ऐसे अ�धकरण क� स्थापना से ठ�क पहले �कसी न्यायालय या अन्य प्रा�धकार� के सम� लं�बत ह� और जो, य�द ऐसे वाद हेतुक िजन पर ऐसे वाद या कायर्वा�हयां आधा�रत ह�, अ�धकरण क� स्थापना के पश्चात ् उत्पन्न होते तो, ऐसे अ�धकरण क� अ�धका�रता के भीतर होते ; (च) राष्ट्रप�त द्वारा अनच् ु छे द 371घ के खंड (3) के अधीन �कए गए आदे श का �नरसन या संशोधन कर सकेगी ; (छ) ऐसे अनप ु रू क, आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त फ�स के बारे म� उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगी जो संसद् ऐसे अ�धकरण� के प्रभावी कायर्करण के �लए और उनके द्वारा मामल� के शीघ्र �नपटारे के �लए और उनके आदे श� के प्रवतर्न के �लए आवश्यक समझे । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 46 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 183 भारत का सं�वधान 184 (भाग 14क—अ�धकरण) (3) इस अनच् ु छे द के उपबंध इस सं�वधान के �कसी अन्य उपबंध म� या तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी प्रभावी ह�गे । 323ख. अन्य �वषय� के �लए अ�धकरण–(1) समु�चत �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, ऐसे �ववाद�, प�रवाद� या अपराध� के अ�धकरण� द्वारा न्याय�नणर्यन या �वचारण के �लए उपबंध कर सकेगा जो खंड (2) म� �व�न�दर्ष्ट उन सभी या �कन्ह�ं �वषय� से संब�ं धत ह� िजनके संबध ं म� ऐसे �वधान-मंडल को �व�ध बनाने क� शिक्त है । (2) खंड (1) म� �न�दर्ष्ट �वषय �नम्न�ल�खत ह�, अथार्त ् :– (क) �कसी कर का उद्ग्रहण, �नधार्रण, संग्रहण और प्रवतर्न ; (ख) �वदे शी मुद्रा, सीमाशुल्क सीमांत� के आर-पार आयात और �नयार्त ; (ग) औद्यो�गक और श्रम �ववाद ; (घ) अनच् ु छे द 31क म� यथाप�रभा�षत �कसी संपदा या उसम� �कन्ह�ं अ�धकार� के राज्य द्वारा अजर्न या ऐसे �कन्ह�ं अ�धकार� के �नवार्पन या उपांतरण द्वारा या कृ�ष भू�म क� अ�धकतम सीमा द्वारा या �कसी अन्य प्रकार से भ�ू म सध ु ार ; (ङ) नगर संप�� क� अ�धकतम सीमा ; (च) संसद् के प्रत्येक सदन या �कसी राज्य �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के �लए �नवार्चन, �कन्तु अनच् ु छे द 329 और अनच् ु छे द 329क म� �न�दर्ष्ट �वषय� को छोड़कर ; (छ) खाद्य पदाथ� का (िजनके अंतगर्त खाद्य �तलहन और तेल ह�) और ऐसे अन्य माल का उत्पादन, उपापन, प्रदाय और �वतरण, िजन्ह� राष्ट्रप�त, लोक अ�धसूचना द्वारा, इस अनच् ु छे द के प्रयोजन के �लए आवश्यक माल घो�षत करे और ऐसे माल क� क�मत का �नयंत्रण ; [(ज) �कराया, उसका �व�नयमन और �नयंत्रण तथा �कराएदार� संबध ं ी �ववाद्यक, िजनके अंतगर्त मकान मा�लक� और �कराएदार� के अ�धकार, हक और �हत ह� ;] 1 [(झ)] उपखंड (क) से उपखंड 3[(ज)] म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी �वषय से संब�ं धत �व�धय� के �वरुद्ध अपराध और उन �वषय� म� से �कसी क� बाबत फ�स ; 2 1. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (झ) को उपखंड (ञ) के रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया । 3. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(छ)” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 185 (भाग 14क—अ�धकरण) 1 [(ञ)] उपखंड (क) से उपखंड 2[(झ)] म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी का आनष � ं गक कोई �वषय । ु (3) खंड (1) के अधीन बनाई गई �व�ध – (क) अ�धकरण� के उत्क्रम क� स्थापना के �लए उपबंध कर सकेगी ; (ख) उक्त अ�धकरण� म� से प्रत्येक अ�धकरण द्वारा प्रयोग क� जाने वाल� अ�धका�रता, शिक्तयां (िजनके अंतगर्त अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त है) और प्रा�धकार �व�न�दर्ष्ट कर सकेगी ; (ग) उक्त अ�धकरण� द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया के �लए (िजसके अंतगर्त प�रसीमा के बारे म� और सा�य के �नयम� के बारे म� उपबंध ह�) उपबंध कर सकेगी ; (घ) अनच् ु छे द 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय क� अ�धका�रता के �सवाय सभी न्यायालय� क� अ�धका�रता का उन सभी या �कन्ह�ं �वषय� के संबध ं म� अपवजर्न कर सकेगी जो उक्त अ�धकरण� क� अ�धका�रता के अंतगर्त आते ह� ; (ङ) प्रत्येक ऐसे अ�धकरण को उन मामल� के अंतरण के �लए उपबंध कर सकेगी जो ऐसे अ�धकरण क� स्थापना से ठ�क पहले �कसी न्यायालय या अन्य प्रा�धकार� के सम� लं�बत ह� और जो, य�द ऐसे वाद हेतुक िजन पर ऐसे वाद या कायर्वा�हयां आधा�रत ह�, अ�धकरण क� स्थापना के पश्चात ् उत्पन्न होते तो ऐसे अ�धकरण क� अ�धका�रता के भीतर होते ; (च) ऐसे अनप ु रू क, आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त फ�स के बारे म� उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगी जो सम�ु चत �वधान-मंडल ऐसे अ�धकरण� के प्रभावी कायर्करण के �लए और उनके द्वारा मामल� के शीघ्र �नपटारे के �लए और उनके आदे श� के प्रवतर्न के �लए आवश्यक समझे । (4) इस अनच् ु छे द के उपबंध इस सं�वधान के �कसी अन्य उपबंध म� या तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी प्रभावी ह�गे । स्पष्ट�करण–इस अनच् ं म� , “समु�चत �वधान-मंडल” ु छे द म� , �कसी �वषय के संबध से, यथािस्थ�त, संसद् या �कसी राज्य का �वधान-मंडल अ�भप्रेत है, जो भाग 11 के उपबंध� के अनस ं म� �व�ध बनाने के �लए स�म है ।] ु ार ऐसे �वषय के संबध 1. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (ज) और उपखंड (झ) को उपखंड (झ) और और उपखंड (ञ) के रूप म� पुनःअ�रां�कत �कया गया । 2. सं�वधान (पचह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1993 क� धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(ज)” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भाग 15 �नवार्चन 324. �नवार्चन� के अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण का �नवार्चन आयोग म� �न�हत होना--(1) इस सं�वधान के अधीन संसद् और प्रत्येक राज्य के �वधान-मंडल के �लए कराए जाने वाले सभी �नवार्चन� के �लए तथा राष्ट्रप�त और उपराष्ट्रप�त के पद� के �लए �नवार्चन� के �लए �नवार्चक-नामावल� तैयार कराने का और उन सभी �नवार्चन� के संचालन का अधी�ण, �नदे शन और �नयंत्रण, 1*** एक आयोग म� �न�हत होगा (िजसे इस सं�वधान म� �नवार्चन आयोग कहा गया है) । (2) �नवार्चन आयोग मुख्य �नवार्चन आयक् ु त और उतने अन्य �नवार्चन आयक् ु त� से, य�द कोई ह�, िजतने राष्ट्रप�त समय-समय पर �नयत करे , �मलकर बनेगा तथा मुख्य �नवार्चन आयक् ु त और अन्य �नवार्चन आयक् ु त� क� �नयिु क्त, संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राष्ट्रप�त द्वारा क� जाएगी । (3) जब कोई अन्य �नवार्चन आयक् ु त इस प्रकार �नयक् ु त �कया जाता है तब मुख्य �नवार्चन आयक् ु त �नवार्चन आयोग के अध्य� के रूप म� कायर् करे गा । (4) लोक सभा के और प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा के प्रत्येक साधारण �नवार्चन से पहले तथा �वधान प�रषद् वाले प्रत्येक राज्य क� �वधान प�रषद् के �लए प्रथम साधारण �नवार्चन से पहले और उसके पश्चात ् प्रत्येक द्�ववा�षर्क �नवार्चन से पहले, राष्ट्रप�त �नवार्चन आयोग से परामशर् करने के पश्चात ्, खंड (1) द्वारा �नवार्चन आयोग को स�पे गए कृत्य� के पालन म� आयोग क� सहायता के �लए उतने प्रादे �शक आयक् ु त� क� भी �नयिु क्त कर सकेगा िजतने वह आवश्यक समझे । (5) संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नवार्चन आयक् ु त� और प्रादे �शक आयक् ु त� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध ऐसी ह�गी जो राष्ट्रप�त �नयम द्वारा अवधा�रत करे : परन्तु मुख्य �नवार्चन आयक् ु त को उसके पद से उसी र��त से और उन्ह�ं आधार� पर ह� हटाया जाएगा, िजस र��त से और िजन आधार� पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है अन्यथा नह�ं और मुख्य �नवार्चन आयक् ु त क� सेवा क� शत� म� उसक� �नयिु क्त के पश्चात ् उसके �लए अलाभकार� प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा : 1. सं�वधान (उन्नीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 2 द्वारा (11-12-1966 से) “िजसके अंतगर्त संसद् के और राज्य के �वधान-मंडल� के �नवार्चन� से उद्भूत या संसक्त संदेह� और �ववाद के �नणर्य के �लए �नवार्चन न्याया�धकरण क� �नयुिक्त भी है” शब्द� का लोप �कया गया । 186 भारत का सं�वधान 187 (भाग 15—�नवार्चन) परन्तु यह और �क �कसी अन्य �नवार्चन आयक् ु त या प्रादे �शक आयक् ु त को मुख्य �नवार्चन आयक् ु त क� �सफा�रश पर ह� पद से हटाया जाएगा, अन्यथा नह�ं । (6) जब �नवार्चन आयोग ऐसा अनरु ोध करे तब, राष्ट्रप�त या �कसी राज्य का राज्यपाल 1*** �नवार्चन आयोग या प्रादे �शक आयक् ु त को उतने कमर्चा�रवन्ृ द उपलब्ध कराएगा िजतने खंड (1) द्वारा �नवार्चन आयोग को स�पे गए कृत्य� के �नवर्हन के �लए आवश्यक ह� । 325. धमर्, मल ू वंश, जा�त या �लंग के आधार पर �कसी व्यिक्त का �नवार्चकनामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने के �लए अपात्र न होना और उसके द्वारा �कसी �वशेष �नवार्चक-नामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने का दावा न �कया जाना–संसद् के प्रत्येक सदन या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के �लए �नवार्चन के �लए प्रत्येक प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र के �लए एक साधारण �नवार्चक-नामावल� होगी और केवल धमर्, मल ू वंश, जा�त, �लंग या इनम� से �कसी के आधार पर कोई व्यिक्त ऐसी �कसी नामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने के �लए अपात्र नह�ं होगा या ऐसे �कसी �नवार्चन-�ेत्र के �लए �कसी �वशेष �नवार्चक-नामावल� म� सिम्म�लत �कए जाने का दावा नह�ं करे गा । 326. लोक सभा और राज्य� क� �वधान सभाओं के �लए �नवार्चन� का वयस्क मता�धकार के आधार पर होना–लोक सभा और प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा के �लए �नवार्चन वयस्क मता�धकार के आधार पर ह�गे अथार्त ् प्रत्येक व्यिक्त, जो भारत का नाग�रक है और ऐसी तार�ख को, जो सम�ु चत �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके अधीन इस �न�म� �नयत क� जाए, कम से कम 2[अठारह वषर्] क� आयु का है और इस सं�वधान या समु�चत �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के अधीन अ�नवास, �च��वकृ�त, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा �नर�हर्त नह�ं कर �दया जाता है, ऐसे �कसी �नवार्चन म� मतदाता के रूप म� रिजस्ट्र�कृत होने का हकदार होगा । 327. �वधान-मंडल� के �लए �नवार्चन� के संबध ं म� उपबंध करने क� संसद् क� शिक्त– इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, संसद् समय-समय पर, �व�ध द्वारा, संसद् के प्रत्येक सदन या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के �लए �नवार्चन� से संब�ं धत या संसक्त सभी �वषय� के संबध ं म� , िजनके अंतगर्त �नवार्चक-नामावल� तैयार कराना, �नवार्चन-�ेत्र� का प�रसीमन और ऐसे सदन या सदन� का सम्यक् गठन सु�निश्चत करने के �लए अन्य सभी आवश्यक �वषय ह�, उपबंध कर सकेगी । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (इकसठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 2 द्वारा (28-3-1989 से) “इक्क�स वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 188 (भाग 15—�नवार्चन) 328. �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन� के संबध ं म� उपबंध करने क� उस �वधान-मंडल क� शिक्त–इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए और जहां तक संसद् इस �न�म� उपबंध नह�ं करती है वहां तक, �कसी राज्य का �वधान-मंडल समय-समय पर, �व�ध द्वारा, उस राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के ं म� , िजनके अंतगर्त �लए �नवार्चन� से संब�ं धत या संसक्त सभी �वषय� के संबध �नवार्चक-नामावल� तैयार कराना और ऐसे सदन या सदन� का सम्यक् गठन स�ु निश्चत करने के �लए अन्य सभी आवश्यक �वषय ह�, उपबंध कर सकेगा । 329. �नवार्चन संबध ं ी मामल� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न– 1[इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी 2***--] (क) अनच् ु छे द 327 या अनच् ु छे द 328 के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के �लए तात्प�यर्त �कसी ऐसी �व�ध क� �व�धमान्यता, जो �नवार्चन-�ेत्र� के प�रसीमन या ऐसे �नवार्चन-�ेत्र� को स्थान� के आबंटन से संब�ं धत है, �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी ; (ख) संसद् के प्रत्येक सदन या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के �लए कोई �नवार्चन ऐसी �नवार्चन अज� पर ह� प्रश्नगत �कया जाएगा, जो ऐसे प्रा�धकार� को और ऐसी र��त से प्रस्तत ु क� गई है िजसका समु�चत �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन उपबंध �कया जाए, अन्यथा नह�ं । 329क. [प्रधान मंत्री और अध्य� के मामले म� संसद् के �लए �नवार्चन� के बारे म� �वशेष उपबंध ।]--सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 36 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया । 3 1. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (10-8-1975 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 35 द्वारा (20-6-1979 से) “परन्तु अनुच्छे द 329क के उपबंध� के अधीन रहते हुए” शब्द�, अंक� और अ�र का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 4 द्वारा (10-8-1975 से) अंतःस्था�पत । भाग 16 कुछ वग� के संबंध म� �वशेष उपबंध 330. लोक सभा म� अनस ु ू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान� का आर�ण–(1) लोक सभा म� – (क) अनस ु ू�चत जा�तय� के �लए, 1 [(ख) असम के स्वशासी िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� को छोड़कर अन्य अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए, और] (ग) असम के स्वशासी िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए, स्थान आर��त रह� गे । (2) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] म� अनस ु ू�चत जा�तय� या अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, लोक सभा म� उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] को आबं�टत स्थान� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा जो, यथािस्थ�त, उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� अनस ु ू�चत जा�तय� क� अथवा उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� या उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] के भाग क� अनस ं म� स्थान इस प्रकार आर��त ह�, जनसंख्या का ु ू�चत जनजा�तय� क�, िजनके संबध अनप ु ात उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] क� कुल जनसंख्या से है । 3 [(3) खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, लोक सभा म� असम के स्वशासी िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, उस राज्य को आबं�टत स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप ु ात से कम नह�ं होगा जो उक्त स्वशासी िजल� क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� जनसंख्या का अनप ु ात उस राज्य क� कुल जनसंख्या से है ।] 4 [स्पष्ट�करण–इस अनच् ु छे द म� और अनच् ु छे द 332 म� , “जनसंख्या” पद से ऐसी अं�तम पव र् त� जनगणना म� अ�भ�निश्चत क� गई जनसंख्या अ�भप्रेत है िजसके सुसग ं त ू व आंकड़े प्रका�शत हो गए ह� : परन्तु इस स्पष्ट�करण म� अं�तम पव र् त� जनगणना के प्र�त, िजसके सस ू व ु ंगत आंकड़े प्रका�शत हो गए ह�, �नद� श का, जब तक सन ् 5[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रका�शत नह�ं हो जाते ह�, यह अथर् लगाया जाएगा �क वह 6 [2001] क� जनगणना के प्र�त �नद� श है ।] 1. सं�वधान (इक्यावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (इकतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (17-10-1973 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 5. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 6 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. सं�वधान (सतासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा (22-6-2003 से) “1991” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 189 भारत का सं�वधान 190 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) 331. लोक सभा म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व–अनच् ु छे द 81 म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द राष्ट्रप�त क� यह राय है �क लोक सभा म� आंग्लभारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व पयार्प्त नह�ं है तो वह लोक सभा म� उस समुदाय के दो से अन�धक सदस्य नाम�नद� �शत कर सकेगा । 332. राज्य� क� �वधान सभाओं म� अनस ु �ू चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान� का आर�ण–(1) 1*** प्रत्येक राज्य क� �वधान सभा म� 2 अनस ु ू�चत जनजा�तय� ु ू�चत जा�तय� के �लए और [असम के स्वशासी िजल� क� अनस को छोड़कर] अन्य अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए स्थान आर��त रह� गे । (2) असम राज्य क� �वधान सभा म� स्वशासी िजल� के �लए भी स्थान आर��त रह� गे । (3) खंड (1) के अधीन �कसी राज्य क� �वधान सभा म� अनस ु ू�चत जा�तय� या अनस ु ात, उस �वधान सभा ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप म� स्थान� क� कुल संख्या से यथाशक्य वह� होगा जो, यथािस्थ�त, उस राज्य क� अनस ु ू�चत जा�तय� क� अथवा उस राज्य क� या उस राज्य के भाग क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� क�, िजनके संबध ं म� स्थान इस प्रकार आर��त ह�, जनसंख्या का अनप ु ात उस राज्य क� कुल जनसंख्या से है । 3 [(3क) खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, सन ् 4[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� जनगणना के आधार पर, अरुणाचल प्रदे श, मेघालय, �मजोरम और नागाल�ड राज्य� क� �वधान सभाओं म� स्थान� क� संख्या के, अनच् ु छे द 170 के अधीन, पन ु ःसमायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान ऐसे �कसी राज्य क� �वधान सभा म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए आर��त �कए जाएंगे, वे– (क) य�द सं�वधान (स�ावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 के प्रव� ृ होने क� तार�ख को ऐसे राज्य क� �वद्यमान �वधान सभा म� (िजसे इस खंड म� इसके पश्चात ् �वद्यमान �वधान सभा कहा गया है) सभी स्थान अनस ु ू�चत जनजा�तय� के सदस्य� द्वारा धा�रत ह� तो, एक स्थान को छोड़कर सभी स्थान ह�गे ; और (ख) �कसी अन्य दशा म� , उतने स्थान ह�गे, िजनक� संख्या का अनप ु ात, स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप ु ात से कम नह�ं होगा जो �वद्यमान �वधान सभा म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के सदस्य� क� (उक्त तार�ख को यथा�वद्यमान) संख्या का अनप ु ात �वद्यमान �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या से ह� ।] 1. सं�वधान (इक्यावनव� संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से) कुछ शब्द� के स्थान प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (स�ावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (21-9-1987 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 7 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 191 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) 1 [(3ख) खंड (3) म� �कसी बात के होते हुए भी, सन ् 2[2026] के पश्चात ् क� गई पहल� जनगणना के आधार पर, �त्रपरु ा राज्य क� �वधान सभा म� स्थान� क� संख्या के, अनच् ु छे द 170 के अधीन, पन ु ःसमायोजन के प्रभावी होने तक, जो स्थान उस �वधान सभा म� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के �लए आर��त �कए जाएंगे वे उतने स्थान ह�गे िजनक� संख्या का अनप ु ात से कम नह�ं होगा जो ु ात, स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप �वद्यमान �वधान सभा म� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के सदस्य� क�, सं�वधान (बह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 के प्रव� ृ होने क� तार�ख को यथा�वद्यमान संख्या का अनप ु ात उक्त तार�ख को उस �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या से है ।] (4) असम राज्य क� �वधान सभा म� �कसी स्वशासी िजले के �लए आर��त स्थान� क� संख्या का अनप ु ात, उस �वधान सभा म� स्थान� क� कुल संख्या के उस अनप ु ात से कम नह�ं होगा जो उस िजले क� जनसंख्या का अनप ु ात उस राज्य क� कुल जनसंख्या से है । (5) 3*** असम के �कसी स्वशासी िजले के �लए आर��त स्थान� के �नवार्चन-�ेत्र� म� उस िजले के बाहर का कोई �ेत्र समा�वष्ट नह�ं होगा । (6) कोई व्यिक्त जो असम राज्य के �कसी स्वशासी िजले क� अनस ु ू�चत जनजा�त का सदस्य नह�ं है, उस राज्य क� �वधान सभा के �लए 3*** उस िजले के �कसी �नवार्चन-�ेत्र से �नवार्�चत होने का पात्र नह�ं होगा : 4 [परं तु असम राज्य क� �वधान सभा के �नवार्चन� के �लए, बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् �ेत्र िजला म� सिम्म�लत �नवार्चन-�ेत्र� म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� और गैरअनस ु ू�चत जनजा�तय� का प्र�त�न�धत्व, जो उस प्रकार अ�धसू�चत �कया गया था और बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजला के गठन से पव ू र् �वद्यमान था, बनाए रखा जाएगा ।] 333. राज्य� क� �वधान सभाओं म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व– 5 अनच् ु छे द 170 म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द �कसी राज्य के राज्यपाल *** क� यह राय है �क उस राज्य क� �वधान सभा म� आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्र�त�न�धत्व आवश्यक है और उसम� उसका प्र�त�न�धत्व पयार्प्त नह�ं है तो वह उस �वधान सभा म� 6 [उस समुदाय का एक सदस्य नाम�नद� �शत कर सकेगा] । 1. सं�वधान (बह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (5-12-1992 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (चौरासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2001 क� धारा 7 द्वारा (21-2-2002 से) “2000” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्द� का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (नब्बेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (28-9-2003 से) अंतःस्था�पत । 5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 6. सं�वधान (तेईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा (23-1-1970 से) “उस �वधान सभा म� उस समुदाय के िजतने सदस्य वह समु�चत समझे नाम�नद� �शत कर सकेगा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 192 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) 334. 1[स्थान� के आर�ण और �वशेष प्र�त�न�धत्व का क�तपय अव�ध] के पश्चात ् न रहना–इस भाग के पव र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी,– ू ग (क) लोक सभा म� और राज्य� क� �वधान सभाओं म� अनस ु ू�चत जा�तय� और अनस ं ी, और ु �ू चत जनजा�तय� के �लए स्थान� के आर�ण संबध (ख) लोक सभा म� और राज्य� क� �वधान सभाओं म� नाम�नद� शन द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्र�त�न�धत्व संबध ं ी, ं म� अस्सी वषर् और इस सं�वधान के उपबंध इस सं�वधान के प्रारं भ से 2[खंड (क) के संबध खंड (ख) के संबध ं म� स�र वषर्] क� अव�ध क� समािप्त पर प्रभावी नह�ं रह� गे : परन्तु इस अनच् ु छे द क� �कसी बात से लोक सभा म� या �कसी राज्य क� �वधान सभा म� �कसी प्र�त�न�धत्व पर तब तक कोई प्रभाव नह�ं पड़ेगा जब तक, यथािस्थ�त, उस समय �वद्यमान लोक सभा या �वधान सभा का �वघटन नह�ं हो जाता है । 335. सेवाओं और पद� के �लए अनस ु �ू चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के दावे–संघ या �कसी राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं और पद� के �लए �नयिु क्तयां करने म� , अनस ु �ू चत जा�तय� और अनस ु �ू चत जनजा�तय� के सदस्य� के दाव� का प्रशासन क� द�ता बनाए रखने क� संग�त के अनस ु ार ध्यान रखा जाएगा : 3 [परन्तु इस अनच् ु छे द क� कोई बात अनस ु �ू चत जा�तय� और अनस ु �ू चत जनजा�तय� के सदस्य� के प� म� , संघ या �कसी राज्य के कायर्कलाप से संब�ं धत सेवाओं के �कसी वगर् या वग� म� या पद� पर प्रोन्न�त के मामल� म� आर�ण के �लए, �कसी पर��ा म� अहर्क अंक� म� छूट दे ने या मल् ू यांकन के मानक� को घटाने के �लए उपबंध करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ।] 336. कुछ सेवाओं म� आंग्ल-भारतीय समद ु ाय के �लए �वशेष उपबंध–(1) इस सं�वधान के प्रारं भ के पश्चात ्, प्रथम दो वषर् के दौरान, संघ क� रे ल, सीमाशुल्क, डाक और तार संबध ं ी सेवाओं म� पद� के �लए आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्य� क� �नयिु क्तयां उसी आधार पर क� जाएंगी िजस आधार पर 15 अगस्त, 1947 से ठ�क पहले क� जाती थीं । 1. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) से प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (एक सौ चारवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2020 से) “स�र वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (पचानव� वां संशोधन) अ�ध�नयम, 2009 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2010 से) “साठ वषर्” के स्थान “स�र वषर्” प्र�तस्था�पत । सं�वधान (उनासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2004 क� धारा 2 द्वारा (25-1-2000 से) “पचास वषर्” के स्थान पर “साठ वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत । सं�वधान (बासठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क� धारा 2 द्वारा (20-12-1989 से) “चाल�स वषर्” के स्थान पर “पाचस वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत । सं�वधान (प�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 क� धारा 2 द्वारा (25-1-1980) “तीस वषर्” मूल शब्द� के स्थान पर “चाल�स वषर्” शब्द प्र�तस्था�पत �कए गए थे । 3. सं�वधान (बयासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 2 द्वारा (6-9-2000 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 193 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) प्रत्येक उ�रवत� दो वषर् क� अव�ध के दौरान उक्त समुदाय के सदस्य� के �लए, उक्त सेवाओं म� आर��त पद� क� संख्या ठ�क पव र् त� दो वषर् क� अव�ध के दौरान इस ू व प्रकार आर��त संख्या से यथासंभव �नकटतम दस प्र�तशत कम होगी : परन्तु इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् के अंत म� ऐसे सभी आर�ण समाप्त हो जाएंगे । (2) य�द आंग्ल-भारतीय समद ु ाय के सदस्य अन्य समद ु ाय� के सदस्य� क� तल ु ना म� गण ु ागण ु के आधार पर �नयिु क्त के �लए अ�हर्त पाए जाएं तो खंड (1) के अधीन उस समुदाय के �लए आर��त पद� से �भन्न या उनके अ�त�रक्त पद� पर आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्य� क� �नयिु क्त को उस खंड क� कोई बात विजर्त नह�ं करे गी । 337. आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के �लए शै��क अनद ु ान के �लए �वशेष उपबंध–इस सं�वधान के प्रारं भ के पश्चात ्, प्रथम तीन �व�ीय वष� के दौरान आंग्लभारतीय समद ं म� संघ और 1*** प्रत्येक राज्य ु ाय के फायदे के �लए �श�ा के संबध द्वारा वह� अनद ु ान, य�द कोई ह�, �दए जाएंगे जो 31 माचर्, 1948 को समाप्त होने वाले �व�ीय वषर् म� �दए गए थे । प्रत्येक उ�रवत� तीन वषर् क� अव�ध के दौरान अनद र् त� तीन वषर् क� ु ान ठ�क पव ू व अव�ध क� अपे�ा दस प्र�तशत कम हो सक�गे : परन्तु इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् के अंत म� ऐसे अनद ु ान, िजस मात्रा तक वे आंग्ल-भारतीय समुदाय के �लए �वशेष �रयायत है उस मात्रा तक, समाप्त हो जाएंगे : परन्तु यह और �क कोई �श�ा संस्था इस अनच् ु छे द के अधीन अनद ु ान प्राप्त करने क� तब तक हकदार नह�ं होगी जब तक उसके वा�षर्क प्रवेश� म� कम से कम चाल�स प्र�तशत प्रवेश आंग्ल-भारतीय समद ु ाय से �भन्न समद ु ाय� के सदस्य� के �लए उपलब्ध नह�ं �कए जाते ह� । 3 4 338. 2[राष्ट्र�य अनस ु �ू चत जा�त आयोग]– [ [(1) अनस ु �ू चत जा�तय� के �लए एक आयोग होगा जो राष्ट्र�य अनस ु ू�चत जा�त आयोग के नाम से �ात होगा । 1. 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) पाश्वर् शीषर् के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (1) और खंड (2) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) खंड (1) और पर प्र�तस्था�पत । (2) के स्थान भारत का सं�वधान 194 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) (2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, आयोग एक अध्य�, एक उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस प्रकार �नयक् ु त �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध ऐसी ह�गी जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा, अवधा�रत करे ।] (3) राष्ट्रप�त अपने हस्ता�र और मद्र ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नयक् ु त करे गा । (4) आयोग को अपनी प्र�क्रया स्वयं �व�नय�मत करने क� शिक्त होगी । (5) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह,– (क) अनस ु ू�चत �कसी अन्य �व�ध या संब�ं धत सभी �वषय� र�ोपाय� के कायर्करण जा�तय� 1*** के �लए इस सं�वधान या तत्समय प्रव� ृ सरकार के �कसी आदे श के अधीन उपबं�धत र�ोपाय� से का अन्वेषण करे और उन पर �नगरानी रखे तथा ऐसे का मूल्यांकन करे ; (ख) अनस ु ू�चत जा�तय� 1*** को उनके अ�धकार� और र�ोपाय� से वं�चत करने क� बाबत �व�न�दर्ष्ट �शकायत� क� जांच करे ; (ग) अनस ु ू�चत जा�तय� 1*** के सामािजक-आ�थर्क �वकास क� योजना प्र�क्रया म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के अधीन उनके �वकास क� प्रग�त का मूल्यांकन करे ; (घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर्, और ऐसे अन्य समय� पर, जो आयोग ठ�क समझे, राष्ट्रप�त को प्र�तवेदन दे ; (ङ) ऐसे प्र�तवेदन� म� कायार्न्वयन के �लए संघ 1 अनस ु �ू चत जा�तय� *** के �लए अन्य उपाय� के बारे म� उन उपाय� के बारे म� जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण ू र् या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हएं, तथा संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क �वकास के �सफा�रश करे ; 1 (च) अनस ु �ू चत जा�तय� *** के संर�ण, कल्याण, �वकास तथा उन्नयन के संबध ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे जो राष्ट्रप�त, संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नयम द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे । (6) राष्ट्रप�त ऐसे सभी प्र�तवेदन� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा और उसके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा । 1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 195 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) (7) जहां कोई ऐसा प्र�तवेदन, या उसका कोई भाग �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है िजसका �कसी राज्य सरकार से संबध ं है तो ऐसे प्र�तवेदन क� एक प्र�त उस राज्य के राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा । (8) आयोग को खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी �वषय का अन्वेषण करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय, �व�शष्टतया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� , वे सभी शिक्तयां ह�गी जो वाद का �वचारण करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :– (क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्यिक्त को समन करना और हािजर कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ; (ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ; (ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ; (घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त क� अपे�ा करना ; (ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ; (च) कोई अन्य �वषय जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा, अवधा�रत करे । 1 (9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार अनस ु ू�चत जा�तय� *** को प्रभा�वत करने वाले सभी महत्वपण र् नी�तगत �वषय� पर आयोग से परामशर् करे गी ।] ू 1 [(10)] इस अनच् ु छे द म� , अनस ु ू�चत जा�तय� *** के प्र�त �नद� श का यह अथर् 3 लगाया जाएगा �क इसके अंतगर्त *** आंग्ल-भारतीय समुदाय के प्र�त �नद� श भी है । 2 1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) “और अनुसू�चत जनजा�तय�” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (प�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1992 से) खंड (3) को खंड (10) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 3. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 2 द्वारा (15-8-2018 से) "ऐसे अन्य �पछड़े वग� के प्र�त �नद� श, िजनको राष्ट्रप�त अनुच्छे द 340 के खंड (1) के अधीन �नयुक्त आयोग के प्र�तवेदन क� प्रािप्त पर आदे श द्वारा �व�न�दर् ष्ट करे , और आंग्ल-भारतीय समुदाय प्र�त �नद� श भी है" शब्द�, अंक� और कोष्ठक� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 196 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) 1 [338क. राष्ट्र�य अनस ु ू�चत जनजा�त आयोग–(1) अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए एक आयोग होगा जो राष्ट्र�य अनस ु �ू चत जनजा�त आयोग के नाम से �ात होगा । (2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबध� के अधीन रहते हुए, आयोग एक अध्य�, उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस प्रकार �नयक् ु त �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध ऐसी ह�गी जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे । (3) राष्ट्रप�त, अपने हस्ता�र और मद्र ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नयक् ु त करे गा । (4) आयोग को अपनी प्र�क्रया स्वयं �व�नय�मत करने क� शिक्त होगी । (5) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह,– (क) अनस ु ू�चत जनजा�तय� के �लए इस सं�वधान या तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध या सरकार के �कसी आदे श के अधीन उपबं�धत र�ोपाय� से संब�ं धत सभी �वषय� का अन्वेषण करे और उन पर �नगरानी रखे तथा ऐसे र�ोपाय� के कायर्करण का मल् ू यांकन करे ; (ख) अनस ु ू�चत जनजा�तय� को उनके अ�धकार� और र�ोपाय� से वं�चत करने के सम्बन्ध म� �व�न�दर्ष्ट �शकायत� क� जांच करे ; (ग) अनस ु �ू चत जनजा�तय� के सामािजक-आ�थर्क �वकास क� योजना प्र�क्रया म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के अधीन उनके �वकास क� प्रग�त का मल् ू यांकन करे ; (घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर् और ऐसे अन्य समय� पर, जो आयोग ठ�क समझे, राष्ट्रप�त को �रपोटर् प्रस्तत ु करे ; (ङ) ऐसी �रपोट� म� उन उपाय� के बारे म� , जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण ू र् कायार्न्वयन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हएं, तथा अनस ु ू�चत जनजा�तय� के संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क �वकास के �लए अन्य उपाय� के बारे म� �सफा�रश करे ; और (च) अनस ु �ू चत जनजा�तय� के संर�ण, कल्याण और �वकास तथा उन्नयन के संबध ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे जो राष्ट्रप�त, संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नयम द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे । 1. सं�वधान (नवासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 3 द्वारा (19-2-2004 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 197 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) (6) राष्ट्रप�त ऐसी सभी �रपोट� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा और उनके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा । (7) जहां कोई ऐसी �रपोटर् या उसका कोई भाग, �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है ं है तो ऐसी �रपोटर् क� एक प्र�त उस राज्य के िजसका �कसी राज्य सरकार से संबध राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा । (8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी �वषय का अन्वेषण करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय, �व�शष्टतया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� , वे सभी शिक्तयां ह�गी, जो वाद का �वचारण करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :– (क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्यिक्त को समन करना और हािजर कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ; (ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ; (ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ; (घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त क� अध्यपे�ा करना ; (ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ; (च) कोई अन्य �वषय, जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे । (9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनस ु ू�चत जनजा�तय� को प्रभा�वत करने वाले सभी महत्वपण ू र् नी�तगत �वषय� पर आयोग से परामशर् करे गी ।] [338ख. �पछड़े वग� के �लए राष्ट्र�य आयोग–(1) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के �लए एक आयोग होगा जो राष्ट्र�य �पछड़ा वगर् आयोग के नाम से �ात होगा । 1 (2) संसद् द्वारा इस �न�म� बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, आयोग एक अध्य�, उपाध्य� और तीन अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा और इस प्रकार �नयक् ु त �कए गए अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� क� सेवा क� शत� और पदाव�ध ऐसी ह�गी, जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे । (3) राष्ट्रप�त, अपने हस्ता�र और मद्र ु ा स�हत अ�धपत्र द्वारा आयोग के अध्य�, उपाध्य� और अन्य सदस्य� को �नयक् ु त करे गा । 1. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 3 द्वारा (15-8-2018 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 198 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) (4) आयोग को अपनी प्र�क्रया स्वयं �व�नय�मत करने क� शिक्त होगी । (5) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह,— (क) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के �लए इस सं�वधान या तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध या सरकार के �कसी आदे श के अधीन उपबं�धत र�ोपाय� से संब�ं धत सभी �वषय� का अन्वेषण करे और उन पर �नगरानी रखे तथा ऐसे र�ोपाय� के कायर्करण का मल् ू यांकन करे ; (ख) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� को उनके अ�धकार� और र�ोपाय� से वं�चत करने के संबध ं म� �व�न�दर्ष्ट �शकायत� क� जांच करे ; (ग) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के सामािजक- आ�थर्क �वकास के संबध ं म� भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और �कसी राज्य के अधीन उनके �वकास क� प्रग�त का मल् ू यांकन करे ; (घ) उन र�ोपाय� के कायर्करण के बारे म� प्र�तवषर् और ऐसे अन्य समय� पर, जो आयोग ठ�क समझे, राष्ट्रप�त को �रपोटर् प्रस्तत ु करे ; (ङ) ऐसी �रपोट� म� उन उपाय� के बारे म� , जो उन र�ोपाय� के प्रभावपण ू र् कायार्न्वयन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा �कए जाने चा�हए तथा सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के संर�ण, कल्याण और सामािजक-आ�थर्क �वकास के �लए अन्य उपाय� के बारे म� �सफा�रश करे ; और (च) सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� के संर�ण, कल्याण और �वकास तथा उन्नयन के संबध ं म� ऐसे अन्य कृत्य� का �नवर्हन करे , जो राष्ट्रप�त, संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �नयम द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे । (6) राष्ट्रप�त, ऐसी सभी �रपोट� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा और उनके साथ संघ से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा । (7) जहां कोई ऐसी �रपोटर् या उसका कोई भाग, �कसी ऐसे �वषय से संब�ं धत है, िजसका राज्य सरकार से संबध ं है, तो ऐसी �रपोटर् क� एक प्र�त उस राज्य सरकार को भेजी जाएगी, जो उसे राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखवाएगी और उसके साथ राज्य से संब�ं धत �सफा�रश� पर क� गई या �कए जाने के �लए प्रस्था�पत कारर्वाई तथा य�द कोई ऐसी �सफा�रश अस्वीकृत क� गई है तो अस्वीकृ�त के कारण� को स्पष्ट करने वाला �ापन भी होगा । (8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी �वषय का अन्वेषण करते समय या उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट �कसी प�रवाद के बारे म� जांच करते समय, �व�शष्टतया �नम्न�ल�खत �वषय� के संबध ं म� , वे सभी शिक्तयां ह�गी, जो वाद का �वचारण करते समय �स�वल न्यायालय को ह�, अथार्त ् :-- भारत का सं�वधान 199 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) (क) भारत के �कसी भी भाग से �कसी व्यिक्त को समन करना और हािजर कराना तथा शपथ पर उसक� पर��ा करना ; (ख) �कसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने क� अपे�ा करना ; (ग) शपथपत्र� पर सा�य ग्रहण करना ; (घ) �कसी न्यायालय या कायार्लय से �कसी लोक अ�भलेख या उसक� प्र�त क� अध्यपे�ा करना ; (ङ) सा��य� और दस्तावेज� क� पर��ा के �लए कमीशन �नकालना ; (च) कोई अन्य �वषय, जो राष्ट्रप�त, �नयम द्वारा अवधा�रत करे । (9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� को प्रभा�वत करने वाले सभी महत्वपण ू र् नी�तगत �वषय� पर आयोग से परामशर् करे गी :] 1 [परं तु इस खंड क� कोई बात अनच् ु छे द 342क के खंड (3) के प्रयोजन� के �लए लागू नह�ं होगी ।] 339. अनस ु ू�चत �ेत्र� के प्रशासन और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के कल्याण के बारे म� संघ का �नयंत्रण–(1) राष्ट्रप�त 2*** राज्य� के अनस ु ू�चत �ेत्र� के प्रशासन और अनस ु ू�चत जनजा�तय� के कल्याण के बारे म� प्र�तवेदन दे ने के �लए आयोग क� �नयिु क्त, आदे श द्वारा, �कसी भी समय कर सकेगा और इस सं�वधान के प्रारं भ से दस वषर् क� समािप्त पर करे गा । आदे श म� आयोग क� संरचना, शिक्तयां और प्र�क्रया प�र�निश्चत क� जा सक�गी और उसम� ऐसे आनष ु �ं गक या सहायक उपबंध समा�वष्ट हो सक�गे िजन्ह� राष्ट्रप�त आवश्यक या वांछनीय समझे । (2) संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार 3[�कसी राज्य] को ऐसे �नदे श दे ने तक होगा जो उस राज्य क� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के कल्याण के �लए �नदे श म� आवश्यक बताई गई स्क�म� के बनाने और �नष्पादन के बारे म� है । 340. �पछड़े वग� क� दशाओं के अन्वेषण के �लए आयोग क� �नयिु क्त– (1) राष्ट्रप�त, भारत के राज्य�ेत्र के भीतर सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� क� दशाओं के और िजन क�ठनाइय� को वे झेल रहे ह� उनके अन्वेषण के �लए और उन क�ठनाइय� को दरू करने और उनक� दशा को सुधारने के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा जो उपाय �कए जाने चा�हएं उनके बारे म� और उस प्रयोजन के �लए संघ या �कसी राज्य द्वारा जो अनद ु ान �कए जाने चा�हएं और िजन शत� के अधीन वे अनद ु ान �कए जाने चा�हएं उनके बारे म� �सफा�रश करने के �लए, आदे श द्वारा, एक आयोग �नयक् ु त कर सकेगा जो ऐसे व्यिक्तय� से �मलकर बनेगा जो वह ठ�क समझे और ऐसे आयोग को �नयक् ु त करने वाले आदे श म� आयोग द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया प�र�निश्चत क� जाएगी । 1. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 2 द्वारा (तार�ख 15-9-2021 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क और भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “�कसी ऐसे राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 200 भारत का सं�वधान (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) (2) इस प्रकार �नयक् ु त आयोग अपने को �नद� �शत �वषय� का अन्वेषण करे गा और राष्ट्रप�त को प्र�तवेदन दे गा, िजसम� उसके द्वारा पाए गए तथ्य उपव�णर्त �कए जाएंगे और िजसम� ऐसी �सफा�रश� क� जाएंगी िजन्ह� आयोग उ�चत समझे । (3) राष्ट्रप�त, इस प्रकार �दए गए प्र�तवेदन क� एक प्र�त, उस पर क� गई कारर्वाई को स्पष्ट करने वाले �ापन स�हत, संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा । 341. अनस ु ू�चत जा�तयां–(1) राष्ट्रप�त, [�कसी राज्य 1 [या संघ राज्य�ेत्र] के 2 *** राज्य है वहां उसके राज्यपाल 4*** से परामशर् करने के संबध ं म� और जहां वह 3 5 पश्चात ्] लोक अ�धसच ू ना द्वारा, उन जा�तय�, मूलवंश� या जनजा�तय�, अथवा जा�तय�, 36 मूलवंश� या जनजा�तय� के भाग� या उनम� के यथ ू � को �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा, िजन्ह� इस ं म� सं�वधान के प्रयोजन� के �लए 2[यथािस्थ�त,] उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] के संबध अनस ु ू�चत जा�तयां समझा जाएगा । (2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी जा�त, मूलवंश या जनजा�त को अथवा जा�त, मूलवंश या जनजा�त के भाग या उसम� के यथ ू को खंड (1) के अधीन �नकाल� गई अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट अनस ु �ू चत जा�तय� क� सच ू ी म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम� से अपविजर्त कर सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उक्त खंड के अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना म� �कसी पश्चातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । 1. 2. 3. 4. 5. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 10 द्वारा (18-6-1951 से) “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशर् करने के पश्चात ्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । सं�वधान (अऩुसू�चत जा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 19), सं�वधान (अनुसू�चत जा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र) आदे श, 1951 (सं.आ. 32), सं�वधान (जम्मू-कश्मीर) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1956 (सं.आ. 52), सं�वधान (दादरा और नागर हवेल�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 64). सं�वधान (पां�डचेर�) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1964 (सं.आ. 68), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1968 (सं.आ. 81) और सं�वधान (�सिक्कम) अनुसू�चत जा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 110) दे �खए । 201 भारत का सं�वधान (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) 1 2 342. अनस ु ू�चत जनजा�तयां–(1) राष्ट्रप�त, [�कसी राज्य [या संघ राज्य�ेत्र] के संबध ं म� और जहां वह 3*** राज्य है वहां उसके राज्यपाल 3*** से परामशर् करने के पश्चात ्] लोक अ�धसूचना 4 द्वारा, उन जनजा�तय� या जनजा�त समद ु ाय� अथवा जनजा�तय� या जनजा�त समुदाय� के भाग� या उनम� के यथ ू � को �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा, िजन्ह� इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए, 2[यथािस्थ�त,] उस राज्य 2[या संघ राज्य�ेत्र] के संबध ं म� अनस ु �ू चत जनजा�तयां समझा जाएगा । 38 40 (2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी जनजा�त या जनजा�त समुदाय को अथवा �कसी जनजा�त या जनजा�त समद ु ाय के भाग या उसम� के यथ ू को खंड (1) के अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट अनस ु ू�चत जनजा�तय� क� सूची म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम� से अपविजर्त कर सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उक्त खंड के अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना म� �कसी पश्चातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । [342क. सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर्–(1) राष्ट्रप�त, �कसी राज्य या संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म� और जहां वह राज्य है, वहां उसके राज्यपाल से परामशर् 6 करने के पश्चात ् लोक अ�धसच ू ना द्वारा, [क�द्र�य सच ू ी म� सामािजक और शै��क दृिष्ट से ऐसे �पछड़े वग� को �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा, िजन्ह� केन्द्र�य सरकार के प्रयोजन� के �लए,] यथािस्थ�त, उस राज्य या संघ राज्य�ेत्र के संबध ं म� सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़ा वगर् समझा जाएगा । 5 42 (2) संसद्, �व�ध द्वारा, �कसी सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वगर् को खंड (1) के अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� क� केन्द्र�य सच ू ी म� सिम्म�लत कर सकेगी या उसम� से अपविजर्त कर सकेगी, �कन्तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय उक्त खंड के अधीन �नकाल� गई अ�धसूचना म� �कसी पश्चातवत� अ�धसूचना द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा ।] 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 11 द्वारा (18-6-1951 से) “राज्य के राज्यपाल या राजप्रमुख से परामशर् करने के पश्चात ्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 4. सं�वधान (अऩुस�ू चत जनजा�तयां) आदे श, 1950 (सं.आ. 22), सं�वधान (अनुसू�चत जनजा�तयां) (संघ राज्य�ेत्र) आदे श, 1951 (सं.आ. 33), सं�वधान (अंडमान और �नकोबार द्वीप) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1959 (सं.आ. 58), सं�वधान (दादरा और नागर हवेल�) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1962 (सं.आ. 65), सं�वधान (अनुसू�चत जनजा�तयां) (उ�र प्रदे श) आदे श, 1967 (सं.आ. 78), सं�वधान (गोवा, दमण और द�व) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1968 (सं.आ. 82), सं�वधान (नागाल�ड) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1970 (सं.आ. 88) और सं�वधान (�सिक्कम) अनुसू�चत जनजा�तयां आदे श, 1978 (सं.आ. 111) दे �खए । 5. सं�वधान (एक सौ दोवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2018 क� धारा 4 द्वारा (15-8-2018 से) प्र�तस्था�पत । 6. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 3 द्वारा (15-9-2021 से) प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 202 (भाग 16—कुछ वग� के संबध ं म� �वशेष उपबंध) [स्पष्ट�करण—खंड (1) और खंड (2) के प्रयोजन� के �लए, “क�द्र�य सूची” 1 अ�भव्यिक्त से क�द्र�य सरकार द्वारा और उसके �लए सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� क� तैयार क� गई और रखी गई सूची अ�भप्रेत है । (3) खंड (1) और खंड (2) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी, प्रत्येक राज्य या संघ राज्य�ेत्र, �व�ध द्वारा, अपने स्वयं के प्रयोजन� के �लए, सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग� क� एक सूची तैयार कर सकेगा और रख सकेगा, िजसम� प्र�विष्टयां क�द्र�य सूची से �भन्न हो सक�गी ।] 1. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 3 द्वारा (तार�ख 15-9-2021) अंतःस्था�पत । भाग 17 राजभाषा होगी । अध्याय 1 – संघ क� भाषा 343. संघ क� राजभाषा – (1) संघ क� राजभाषा �हन्द� और �ल�प दे वनागर� संघ के शासक�य प्रयोजन� के �लए प्रयोग होने वाले अंक� का रूप भारतीय अंक� का अंतरराष्ट्र�य रूप होगा । (2) खंड (1) म� �कसी बात के होते हुए भी, इस सं�वधान के प्रारं भ से पन्द्रह वषर् क� अव�ध तक संघ के उन सभी शासक�य प्रयोजन� के �लए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग �कया जाता रहे गा िजनके �लए उसका ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले प्रयोग �कया जा रहा था : परन्तु राष्ट्रप�त उक्त अव�ध के दौरान, आदे श 1 द्वारा, संघ के शासक�य प्रयोजन� म� से �कसी के �लए अंग्रेजी भाषा के अ�त�रक्त �हन्द� भाषा का और भारतीय अंक� के अंतरराष्ट्र�य रूप के अ�त�रक्त दे वनागर� रूप का प्रयोग प्रा�धकृत कर सकेगा । (3) इस अनच् ु छे द म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् उक्त पन्द्रह वषर् क� अव�ध के पश्चात ्, �व�ध द्वारा – (क) अंग्रेजी भाषा का, या (ख) अंक� के दे वनागर� रूप का, ऐसे प्रयोजन� के �लए प्रयोग उपबं�धत कर सकेगी जो ऐसी �व�ध म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं । 344. राजभाषा के संबध ं म� आयोग और संसद् क� स�म�त – (1) राष्ट्रप�त, इस सं�वधान के प्रारं भ से पांच वषर् क� समािप्त पर और तत्पश्चात ् ऐसे प्रारं भ से दस वषर् क� समािप्त पर, आदे श द्वारा, एक आयोग ग�ठत करे गा जो एक अध्य� और आठवीं अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट �व�भन्न भाषाओं का प्र�त�न�धत्व करने वाले ऐसे अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगा िजनको राष्ट्रप�त �नयक् ु त करे और आदे श म� आयोग द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया प�र�निश्चत क� जाएगी । (2) आयोग का यह कतर्व्य होगा �क वह राष्ट्रप�त को – (क) संघ के शासक�य प्रयोजन� के �लए �हन्द� भाषा के अ�धका�धक प्रयोग, (ख) संघ के सभी या �कन्ह�ं शासक�य प्रयोजन� के �लए अंग्रेजी भाषा के प्रयोग पर �नब�धन�, (ग) अनच् ु छे द 348 म� उिल्ल�खत सभी या �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए प्रयोग क� जाने वाल� भाषा, 0 1. सं.आ. 41 दे �खए । 203 भारत का सं�वधान 204 (भाग 17—राजभाषा) (घ) संघ के �कसी एक या अ�धक �व�न�दर्ष्ट प्रयोजन� के �लए प्रयोग �कए जाने वाले अंक� के रूप, (ङ) संघ क� राजभाषा तथा संघ और �कसी राज्य के बीच या एक राज्य और दस ं म� राष्ट्रप�त ू रे राज्य के बीच पत्रा�द क� भाषा और उनके प्रयोग के संबध द्वारा आयोग को �नद� �शत �कए गए �कसी अन्य �वषय, के बारे म� �सफा�रश करे । (3) खंड (2) के अधीन अपनी �सफा�रश� करने म� , आयोग भारत क� औद्यो�गक, सांस्कृ�तक और वै�ा�नक उन्न�त का और लोक सेवाओं के संबध ं म� अ�हन्द� भाषी �ेत्र� के व्यिक्तय� के न्यायसंगत दाव� और �हत� का सम्यक् ध्यान रखेगा । (4) एक स�म�त ग�ठत क� जाएगी जो तीस सदस्य� से �मलकर बनेगी िजनम� से बीस लोक सभा के सदस्य ह�गे और दस राज्य सभा के सदस्य ह�गे जो क्रमशः लोक सभा के सदस्य� और राज्य सभा के सदस्य� द्वारा आनप ु ा�तक प्र�त�न�धत्व पद्ध�त के अनस ु ार एकल संक्रमणीय मत द्वारा �नवार्�चत ह�गे । (5) स�म�त का यह कतर्व्य होगा �क वह खंड (1) के अधीन ग�ठत आयोग क� �सफा�रश� क� पर��ा करे और राष्ट्रप�त को उन पर अपनी राय के बारे म� प्र�तवेदन दे । (6) अनच् ु छे द 343 म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त खंड (5) म� �न�दर्ष्ट प्र�तवेदन पर �वचार करने के पश्चात ् उस संपण ू र् प्र�तवेदन के या उसके �कसी भाग के अनस ु ार �नदे श दे सकेगा । अध्याय 2 – प्रादे �शक भाषाएं 345. राज्य क� राजभाषा या राजभाषाएं – अनच् ु छे द 346 और अनच् ु छे द 347 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, उस राज्य म� प्रयोग होने वाल� भाषाओं म� से �कसी एक या अ�धक भाषाओं को या �हन्द� को उस राज्य के सभी या �कन्ह�ं शासक�य प्रयोजन� के �लए प्रयोग क� जाने वाल� भाषा या भाषाओं के रूप म� अंगीकार कर सकेगा : परन्तु जब तक राज्य का �वधान-मंडल, �व�ध द्वारा, अन्यथा उपबंध न करे तब तक राज्य के भीतर उन शासक�य प्रयोजन� के �लए अंग्रेजी भाषा का प्रयोग �कया जाता रहे गा िजनके �लए उसका इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले प्रयोग �कया जा रहा था । 346. एक राज्य और दस ू रे राज्य के बीच या �कसी राज्य और संघ के बीच पत्रा�द क� राजभाषा – संघ म� शासक�य प्रयोजन� के �लए प्रयोग �कए जाने के �लए तत्समय प्रा�धकृत भाषा, एक राज्य और दस ू रे राज्य के बीच तथा �कसी राज्य और संघ के बीच पत्रा�द क� राजभाषा होगी : भारत का सं�वधान 205 (भाग 17—राजभाषा) परन्तु य�द दो या अ�धक राज्य यह करार करते ह� �क उन राज्य� के बीच पत्रा�द क� राजभाषा �हन्द� भाषा होगी तो ऐसे पत्रा�द के �लए उस भाषा का प्रयोग �कया जा सकेगा । 347. �कसी राज्य क� जनसंख्या के �कसी अनभ ु ाग द्वारा बोल� जाने वाल� भाषा के संबध ं म� �वशेष उपबंध – य�द इस �न�म� मांग �कए जाने पर राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क �कसी राज्य क� जनसंख्या का पयार्प्त भाग यह चाहता है �क उसके द्वारा बोल� जाने वाल� भाषा को राज्य द्वारा मान्यता द� जाए तो वह �नदे श दे सकेगा �क ऐसी भाषा को भी उस राज्य म� सवर्त्र या उसके �कसी भाग म� ऐसे प्रयोजन के �लए, जो वह �व�न�दर्ष्ट करे , शासक�य मान्यता द� जाए । अध्याय 3 – उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय�, आ�द क� भाषा 348. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय� म� और अ�ध�नयम�, �वधेयक� आ�द के �लए प्रयोग क� जाने वाल� भाषा – (1) इस भाग के पव र् ामी उपबंध� म� �कसी ू ग बात के होते हुए भी, जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक – (क) उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय म� सभी कायर्वा�हयां अंग्रेजी भाषा म� ह�गी, (ख) (i) संसद् या प्रत्येक सदन म� �कए जाने वाले उनके के प्रत्येक सदन या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदन परु ःस्था�पत �कए जाने वाले सभी �वधेयक� या प्रस्ता�वत संशोधन� के, (ii) संसद् या �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा पा�रत सभी अ�ध�नयम� के और राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा प्रख्या�पत सभी अध्यादे श� के, और (iii) इस सं�वधान के अधीन अथवा संसद् या �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के अधीन �नकाले गए या बनाए गए सभी आदे श�, �नयम�, �व�नयम� और उप�व�धय� के, प्रा�धकृत पाठ अंग्रेजी भाषा म� ह�गे । (2) खंड (1) के उपखंड (क) म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी राज्य का राज्यपाल 1*** राष्ट्रप�त क� पव ू र् सहम�त से उस उच्च न्यायालय क� कायर्वा�हय� म� , िजसका मुख्य स्थान उस राज्य म� है, �हन्द� भाषा का या उस राज्य के शासक�य प्रयोजन� के �लए प्रयोग होने वाल� �कसी अन्य भाषा का प्रयोग प्रा�धकृत कर सकेगा : 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 206 (भाग 17—राजभाषा) परन्तु इस खंड क� कोई बात ऐसे उच्च न्यायालय द्वारा �दए गए �कसी �नणर्य, �डक्र� या आदे श को लागू नह�ं होगी । (3) खंड (1) के उपखंड (ख) म� �कसी बात के होते हुए भी, जहां �कसी राज्य के �वधान-मंडल ने, उस �वधान-मंडल म� परु ःस्था�पत �वधेयक� म� या उसके द्वारा पा�रत अ�ध�नयम� म� अथवा उस राज्य के राज्यपाल 1*** द्वारा प्रख्या�पत अध्यादे श� म� अथवा उस उपखंड के पैरा (iii) म� �न�दर्ष्ट �कसी आदे श, �नयम, �व�नयम या उप�व�ध म� प्रयोग के �लए अंग्रेजी भाषा से �भन्न कोई भाषा �व�हत क� है वहां उस राज्य के राजपत्र म� उस राज्य के राज्यपाल 1*** के प्रा�धकार से प्रका�शत अंग्रेजी भाषा म� उसका अनव ु ाद इस अनच् ु छे द के अधीन उसका अंग्रेजी भाषा म� प्रा�धकृत पाठ समझा जाएगा । 349. भाषा से संब�ं धत कुछ �व�धयां अ�ध�नय�मत करने के �लए �वशेष प्र�क्रया – इस सं�वधान के प्रारं भ से पन्द्रह वषर् क� अव�ध के दौरान, अनच् ु छे द 348 के खंड (1) म� उिल्ल�खत �कसी प्रयोजन के �लए प्रयोग क� जाने वाल� भाषा के �लए उपबंध करने वाला कोई �वधेयक या संशोधन संसद् के �कसी सदन म� राष्ट्रप�त क� पव ू र् मंजरू � के �बना परु ःस्था�पत या प्रस्ता�वत नह�ं �कया जाएगा और राष्ट्रप�त �कसी ऐसे �वधेयक को परु ःस्था�पत या �कसी ऐसे संशोधन को प्रस्ता�वत �कए जाने क� मंजरू � अनच् ु छे द 344 के खंड (1) के अधीन ग�ठत आयोग क� �सफा�रश� पर और उस अऩच् ु छे द के खंड (4) के अधीन ग�ठत स�म�त के प्र�तवेदन पर �वचार करने के पश्चात ् ह� दे गा, अन्यथा नह�ं । अध्याय 4 – �वशेष �नदे श 350. व्यथा के �नवारण के �लए अभ्यावेदन म� प्रयोग क� जाने वाल� भाषा – प्रत्येक व्यिक्त �कसी व्यथा के �नवारण के �लए संघ या राज्य के �कसी अ�धकार� या प्रा�धकार� को, यथािस्थ�त, संघ म� या राज्य म� प्रयोग होने वाल� �कसी भाषा म� अभ्यावेदन दे ने का हकदार होगा । [350क. प्राथ�मक स्तर पर मातभ ृ ाषा म� �श�ा क� सु�वधाएं – प्रत्येक राज्य और राज्य के भीतर प्रत्येक स्थानीय प्रा�धकार� भाषाई अल्पसंख्यक वग� के बालक� को �श�ा के प्राथ�मक स्तर पर मातभ ृ ाषा म� �श�ा क� पयार्प्त सु�वधाओं क� व्यवस्था करने का प्रयास करे गा और राष्ट्रप�त �कसी राज्य को ऐसे �नदे श दे सकेगा जो वह ऐसी स�ु वधाओं का उपबंध स�ु निश्चत कराने के �लए आवश्यक या उ�चत समझता है । 2 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 207 (भाग 17—राजभाषा) 350ख. भाषाई अल्पसंख्यक-वग� के �लए �वशेष अ�धकार� – (1) भाषाई अल्पसंख्यक-वग� के �लए एक �वशेष अ�धकार� होगा िजसे राष्ट्रप�त �नयक् ु त करे गा । (2) �वशेष अ�धकार� का यह कतर्व्य होगा �क वह इस सं�वधान के अधीन भाषाई अल्पसंख्यक-वग� के �लए उपबं�धत र�ोपाय� से संब�ं धत सभी �वषय� का अन्वेषण करे और उन �वषय� के संबध ं म� ऐसे अंतराल� पर जो राष्ट्रप�त �न�दर्ष्ट करे , राष्ट्रप�त को प्र�तवेदन दे और राष्ट्रप�त ऐसे सभी प्र�तवेदन� को संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखवाएगा और संब�ं धत राज्य� क� सरकार� को �भजवाएगा ।] 351. �हन्द� भाषा के �वकास के �लए �नदे श – संघ का यह कतर्व्य होगा �क वह �हन्द� भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका �वकास करे िजससे वह भारत क� सामा�सक संस्कृ�त के सभी तत्व� क� अ�भव्यिक्त का माध्यम बन सके और उसक� प्रकृ�त म� हस्त�ेप �कए �बना �हन्दस् ु तानी म� और आठवीं अनस ु च ू ी म� �व�न�दर्ष्ट भारत क� अन्य भाषाओं म� प्रयक् त रूप, शै ल � और पद� को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या ु वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के �लए मख् यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य ु भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसक� समद् �ध स � निश्चत करे । ु ृ भाग 18 आपात उपबंध 352. आपात क� उद्घोषणा – (1) य�द राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है 1 �क गंभीर आपात �वद्यमान है िजससे यद् ु ध या बाह्य आक्रमण या [सशस्त्र �वद्रोह] के कारण भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क� सुर�ा संकट म� है तो वह उद्घोषणा ं म� जो उद्घोषणा म� द्वारा 2[संपण ू र् भारत या उसके राज्य�ेत्र के ऐसे भाग के संबध �व�न�दर्ष्ट �कया जाए] इस आशय क� घोषणा कर सकेगा । [स्पष्ट�करण – य�द राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क यद् ु ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र �वद्रोह का संकट सिन्नकट है तो यह घो�षत करने वाल� आपात क� उद्घोषणा �क यद् ु ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र �वद्रोह से भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क� सुर�ा संकट म� है, यद् ु ध या ऐसे �कसी आक्रमण या �वद्रोह के वास्तव म� होने से पहले भी क� जा सकेगी ।] 3 [(2) खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा म� �कसी पश्चातवत� उद्घोषणा द्वारा प�रवतर्न �कया जा सकेगा या उसको वापस �लया जा सकेगा । 4 (3) राष्ट्रप�त, खंड (1) के अधीन उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा म� प�रवतर्न करने वाल� उद्घोषणा तब तक नह�ं करे गा जब तक संघ के मं�त्रमंडल का (अथार्त ् उस प�रषद् का जो अनच् ु छे द 75 के अधीन प्रधान मंत्री और मं�त्रमंडल स्तर के अन्य मं�त्रय� से �मलकर बनती है) यह �व�नश्चय �क ऐसी उद्घोषणा क� जाए, उसे �ल�खत रूप म� संसू�चत नह�ं �कया जाता है । (4) इस अनच् ु छे द के अधीन क� गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखी जाएगी और जहां वह पव र् त� उद्घोषणा को वापस लेने वाल� उद्घोषणा नह�ं ू व है वहां वह एक मास क� समािप्त पर, य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले संसद् के दोन� सदन� के संकल्प� द्वारा उसका अनम ु ोदन नह�ं कर �दया जाता है तो, प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी : 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आंत�रक अशािन्त” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 48 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2), खंड (2क) और खंड (3) के स्थान पर खंड (2) से खंड (8) तक प्र�तस्था�पत �कए गए । 208 भारत का सं�वधान 209 (भाग 18—आपात उपबंध) परन्तु य�द ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पव र् त� उद्घोषणा को वापस लेने वाल� ू व उद्घोषणा नह�ं है) उस समय क� जाती है जब लोक सभा का �वघटन हो गया है या लोक सभा का �वघटन इस खंड म� �न�दर्ष्ट एक मास क� अव�ध के दौरान हो जाता है और य�द उद्घोषणा का अनम ु ोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पा�रत कर �दया ं म� कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अव�ध क� गया है, �कन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबध समािप्त से पहले पा�रत नह�ं �कया गया है तो, उद्घोषणा उस तार�ख से िजसको लोक सभा अपने पन ु गर्ठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है, तीस �दन क� समािप्त पर, प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी य�द उक्त तीस �दन क� अव�ध क� समािप्त से पहले उद्घोषणा का अनम ु ोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पा�रत नह�ं कर �दया जाता है । (5) इस प्रकार अनम ु ो�दत उद्घोषणा, य�द वापस नह�ं ल� जाती है तो, खंड (4) के अधीन उद्घोषणा का अनम ु ोदन करने वाले संकल्प� म� से दस ू रे संकल्प के पा�रत �कए जाने क� तार�ख से छह मास क� अव�ध क� समािप्त पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगी : परन्तु य�द करने वाला संकल्प बार वह उद्घोषणा, के अधीन अन्यथा रहे गी : और िजतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रव� ु ोदन ृ बनाए रखने का अनम संसद् के दोन� सदन� द्वारा पा�रत कर �दया जाता है तो और उतनी य�द वापस नह�ं ल� जाती है तो, उस तार�ख से िजसको वह इस खंड प्रवतर्न म� नह�ं रहती, छह मास क� और अव�ध तक प्रव� ृ बनी परन्तु यह और �क य�द लोक सभा का �वघटन छह मास क� ऐसी अव�ध के दौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रव� ु ोदन करने वाला ृ बनाए रखने का अनम संकल्प राज्य सभा द्वारा पा�रत कर �दया गया है, �कन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रव� ृ बनाए रखने के संबध ं म� कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अव�ध के दौरान पा�रत नह�ं �कया गया है तो, उद्घोषणा उस तार�ख से िजसको लोक सभा अपने पन ु गर्ठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है, तीस �दन क� समािप्त पर, प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी य�द उक्त तीस �दन क� अव�ध क� समािप्त से पहले उद्घोषणा को प्रव� ु ोदन ृ बनाए रखने का अनम करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पा�रत नह�ं कर �दया जाता है । (6) खंड (4) और खंड (5) के प्रयोजन� के �लए, संकल्प संसद् के �कसी सदन द्वारा उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� म� से कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा ह� पा�रत �कया जा सकेगा । (7) पव र् ामी खंड� म� �कसी बात के होते हुए भी, य�द लोक सभा खंड (1) के ू ग अधीन क� गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा म� प�रवतर्न करने वाल� उद्घोषणा का, यथािस्थ�त, अननम ु ोदन या उसे प्रव� ु ोदन करने वाला संकल्प ृ बनाए रखने का अननम पा�रत कर दे ती है तो राष्ट्रप�त ऐसी उद्घोषणा को वापस ले लेगा । 210 भारत का सं�वधान (भाग 18—आपात उपबंध) (8) जहां खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा या ऐसी उद्घोषणा म� प�रवतर्न करने वाल� उद्घोषणा का, यथािस्थ�त, अननम ु ोदन या उसको प्रव� ृ बनाए रखने का अननम ु ोदन करने वाले संकल्प को प्रस्ता�वत करने के अपने आशय क� सूचना लोक सभा क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम दसव� भाग द्वारा हस्ता�र करके �ल�खत रूप म� ,– (क) य�द लोक सभा सत्र म� है तो अध्य� को, या (ख) य�द लोक सभा सत्र म� नह�ं है तो राष्ट्रप�त को, द� गई है वहां ऐसे संकल्प पर �वचार करने के प्रयोजन के �लए लोक सभा क� �वशेष बैठक, यथािस्थ�त, अध्य� या राष्ट्रप�त को ऐसी सूचना प्राप्त होने क� तार�ख से चौदह �दन के भीतर क� जाएगी ।] 1 [(9)] इस अनच् ु छे द द्वारा राष्ट्रप�त को प्रद� शिक्त के अंतगर्त, यद् ु ध या बाह्य 2 आक्रमण या 2[सशस्त्र �वद्रोह] के अथवा यद् ु ध या बाह्य आक्रमण या [सशस्त्र �वद्रोह] का संकट सिन्नकट होने के �व�भन्न आधार� पर �व�भन्न उद्घोषणाएं करने क� शिक्त होगी चाहे राष्ट्रप�त ने खंड (1) के अधीन पहले ह� कोई उद्घोषणा क� है या नह�ं और ऐसी उद्घोषणा प्रवतर्न म� है या नह�ं । 1 [* तब – * * *] 353. आपात क� उद्घोषणा का प्रभाव – जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है (क) सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार �कसी राज्य को इस बारे म� �नदे श दे ने तक होगा �क वह राज्य अपनी कायर्पा�लका शिक्त का �कस र��त से प्रयोग करे ; (ख) �कसी �वषय के संबध ं म� �व�धयां बनाने क� संसद् क� शिक्त के अंतगर्त इस बात के होते हुए भी �क वह संघ सूची म� प्रग�णत �वषय नह�ं है, ऐसी �व�धयां बनाने क� शिक्त होगी जो उस �वषय के संबध ं म� संघ को या संघ के अ�धका�रय� और प्रा�धका�रय� को शिक्तयां प्रदान करती ह� और उन पर कतर्व्य अ�धरो�पत करती ह� या शिक्तय� का प्रदान �कया जाना और कतर्व्य� का अ�धरो�पत �कया जाना प्रा�धकृत करती है : 1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) खंड (4) और खंड (5) अन्तःस्ता�पत और तत्पश्चात ् खंड (4) और खंड (5), खंड (9) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत और सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (5) का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 37 द्वारा (20-6-1979 से) “आतं�रक अशािन्त” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 211 (भाग 18—आपात उपबंध) 1 [परन्तु जहां आपात क� उद्घोषणा भारत के राज्य�ेत्र के केवल �कसी भाग म� प्रवतर्न म� है वहां य�द और जहां तक भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क� सुर�ा, भारत के राज्य�ेत्र के उस भाग म� या उसके संबध ं म� , िजसम� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, होने वाले �क्रयाकलाप के कारण संकट म� है तो और वहां तक,– और (i) खंड (क) के अधीन �नदे श दे ने क� संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का, (ii) खंड (ख) के अधीन �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त का, �वस्तार �कसी ऐसे राज्य पर भी होगा जो उस राज्य से �भन्न है िजसम� या िजसके �कसी भाग म� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है ।] 354. जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब राजस्व� के �वतरण संबंधी उपबंध� का लागू होना – (1) जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा, यह �नदे श दे सकेगा �क इस सं�वधान के अनच् ु छे द 268 से अनच् ु छे द 279 के सभी या कोई उपबंध ऐसी �कसी अव�ध के �लए, जो उस आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए और जो �कसी भी दशा म� उस �व�ीय वषर् क� समािप्त से आगे नह�ं बढ़े गी, िजसम� ऐसी उद्घोषणा प्रवतर्न म� नह�ं रहती है , ऐसे अपवाद� या उपान्तरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी ह�गे, जो वह ठ�क समझे । (2) खंड (1) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श, �कए जाने के पश्चात ् यथाशक्य शीध्र, संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखा जाएगा । 355. बाह्य आक्रमण और आंत�रक अशां�त से राज्य क� संर�ा करने का संघ का कतर्व्य – संघ का यह कतर्व्य होगा �क वह बाह्य आक्रमण और आंत�रक अशािन्त से प्रत्येक राज्य क� संर�ा करे और प्रत्येक राज्य क� सरकार का इस सं�वधान के उपबंध� के अनस ु ार चलाया जाना स�ु निश्चत करे । 356. राज्य� म� सां�वधा�नक तंत्र के �वफल हो जाने क� दशा म� उपबंध – (1) य�द राष्ट्रप�त का �कसी राज्य के राज्यपाल 2*** से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा, यह समाधान हो जाता है �क ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजसम� उस राज्य का शासन इस सं�वधान के उपबंध� के अनस ु ार नह�ं चलाया जा सकता है तो राष्ट्रप�त उद्घोषणा द्वारा – 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 49 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 212 (भाग 18—आपात उपबंध) (क) उस राज्य क� सरकार के सभी या कोई कृत्य और 1[राज्यपाल] म� या राज्य के �वधान-मंडल से �भन्न राज्य के �कसी �नकाय या प्रा�धकार� म� �न�हत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई शिक्तयां अपने हाथ म� ले सकेगा ; (ख) यह घोषणा कर सकेगा �क राज्य के �वधान-मंडल क� शिक्तयां संसद् द्वारा या उसके प्रा�धकार के अधीन प्रयोक्तव्य ह�गी ; (ग) राज्य के �कसी �नकाय या प्रा�धकार� से संब�ं धत इस सं�वधान के �कन्ह�ं उपबंध� के प्रवतर्न को पण र् ः या भागतः �नलं�बत करने के �लए उपबंध� ू त स�हत ऐसे आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध कर सकेगा जो उद्घोषणा के उद्दे श्य� को प्रभावी करने के �लए राष्ट्रप�त को आवश्यक या वांछनीय प्रतीत ह� : परन्तु इस खंड क� कोई बात राष्ट्रप�त को उच्च न्यायालय म� �न�हत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य �कसी शिक्त को अपने हाथ म� लेने या उच्च न्यायालय� से संब�ं धत इस सं�वधान के �कसी उपबंध के प्रवतर्न को पण र् ः या भागतः �नलं�बत करने के �लए ू त प्रा�धकृत नह�ं करे गी । (2) ऐसी कोई उद्घोषणा �कसी पश्चातवत� उद्घोषणा द्वारा वापस ल� जा सकेगी या उसम� प�रवतर्न �कया जा सकेगा । (3) इस अनच् ु छे द के अधीन क� गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखी जाएगी और जहां वह पव र् त� उद्घोषणा को वापस लेने वाल� उद्घोषणा नह�ं ू व है वहां वह दो मास क� समािप्त पर प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले संसद् के दोन� सदन� के संकल्प� द्वारा उसका अनम ु ोदन नह�ं कर �दया जाता है : परन्तु य�द ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पव र् त� उद्घोषणा को वापस लेने वाल� ू व उद्घोषणा नह�ं है) उस समय क� जाती है जब लोक सभा का �वघटन हो गया है या लोक सभा का �वघटन इस खंड म� �न�दर्ष्ट दो मास क� अव�ध के दौरान हो जाता है और य�द उद्घोषणा का अनम ु ोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पा�रत कर �दया गया है, �कन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबध ं म� कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अव�ध क� समािप्त से पहले पा�रत नह�ं �कया गया है तो, उद्घोषणा उस तार�ख से िजसको लोक सभा अपने पन ु गर्ठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है, तीस �दन क� समािप्त पर, प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी य�द उक्त तीस �दन क� अव�ध क� समािप्त से पहले उद्घोषणा का अनम ु ोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पा�रत नह�ं कर �दया जाता है । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त, या राजप्रमुख” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 213 (भाग 18—आपात उपबंध) 1 (4) इस प्रकार अनम ु ो�दत उद्घोषणा, य�द वापस नह�ं ल� जाती है तो, [ऐसी उद्घोषणा के �कए जाने क� तार�ख से छह मास] क� अव�ध क� समािप्त पर प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी : परन्तु य�द और िजतनी बार ऐसी उद्घोषणा को प्रव� ु ोदन ृ बनाए रखने का अनम करने वाला संकल्प संसद् के दोन� सदन� द्वारा पा�रत कर �दया जाता है तो और उतनी बार वह उद्घोषणा, य�द वापस नह�ं ल� जाती है तो, उस तार�ख से िजसको वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवतर्न म� नह�ं रहती, 2[छह मास] क� अव�ध तक प्रव� ृ बनी रहे गी, �कन्तु ऐसी उद्घोषणा �कसी भी दशा म� तीन वषर् से अ�धक प्रव� ृ नह�ं रहेगी : परन्तु यह और �क य�द लोक सभा का �वघटन 2[छह मास] क� ऐसी अव�ध के दौरान हो जाता है और ऐसी उद्घोषणा को प्रव� ु ोदन करने वाला ृ बनाए रखने का अनम संकल्प राज्य सभा द्वारा पा�रत कर �दया गया है, �कन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रव� ृ बनाए रखने के संबध ं म� कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उक्त अव�ध के दौरान पा�रत नह�ं �कया गया है तो, उद्घोषणा उस तार�ख से, िजसको लोक सभा अपने पन ु गर्ठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है, तीस �दन क� समािप्त पर, प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी य�द उक्त तीस �दन क� अव�ध क� समािप्त से पहले उद्घोषणा को प्रव� ु ोदन ृ बनाए रखने का अनम करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पा�रत नह�ं कर �दया जाता है : [परन्तु यह भी �क पंजाब राज्य क� बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा क� दशा म�, इस खंड के पहले परन्तुक म� “तीन वषर्” के प्र�त �नद� श का इस प्रकार अथर् लगाया जाएगा मानो वह 4[“पांच वषर्”] के प्र�त �नद� श हो ।] 3 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) "छह मास" के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 38 द्वारा (20-6-1979 से) "खंड (3) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्प� म� से दूसरे के पा�रत हो जाने क� तार�ख से एक वषर्" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 50 द्वारा (3-1-1977 से) "छह मास" के स्थान पर "एक वषर्" प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् द्वारा सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 38 क्रमशः (20- 6-1979 से) प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (च�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (सड़सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (4-10-1990 से) प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (अड़सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1991 क� धारा 2 द्वारा (12-3-1991 से) संशो�धत होकर उपरोक्त रूप म� आया । भारत का सं�वधान 214 (भाग 18—आपात उपबंध) 1 [(5) खंड (4) म� �कसी बात के होते हुए भी, खंड (3) के अधीन अनम ु ो�दत उद्घोषणा के �कए जाने क� तार�ख से एक वषर् क� समािप्त से आगे �कसी अव�ध के �लए ऐसी उद्घोषणा को प्रव� ं म� कोई संकल्प संसद् के �कसी ृ बनाए रखने के संबध सदन द्वारा तभी पा�रत �कया जाएगा जब– (क) ऐसे संकल्प के पा�रत �कए जाने के समय आपात क� उद्घोषणा, यथािस्थ�त, संपण ू र् भारत म� अथवा संपण ू र् राज्य या उसके �कसी भाग म� प्रवतर्न म� है ; और (ख) �नवार्चन आयोग यह प्रमा�णत कर दे ता है �क ऐसे संकल्प म� �व�न�दर्ष्ट अव�ध के दौरान खंड (3) के अधीन अनम ु ो�दत उद्घोषणा को प्रव� ृ बनाए रखना, संब�ं धत राज्य क� �वधान सभा के साधारण �नवार्चन कराने म� क�ठनाइय� के कारण, आवश्यक है :] 2 [परन्तु इस खंड क� कोई बात पंजाब राज्य क� बाबत 11 मई, 1987 को खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा को लागू नह�ं होगी ।] 357. अनच् ु छे द 356 के अधीन क� गई उद्घोषणा के अधीन �वधायी शिक्तय� का प्रयोग – (1) जहां अनच् ु छे द 356 के खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा द्वारा यह घोषणा क� गई है �क राज्य के �वधान-मंडल क� शिक्तयां संसद् द्वारा या उसके प्रा�धकार के अधीन प्रयोक्तव्य ह�गी वहां– (क) राज्य के �वधान-मंडल क� �व�ध बनाने क� शिक्त राष्ट्रप�त को प्रदान करने क� और इस प्रकार प्रद� शिक्त का �कसी अन्य प्रा�धकार� को, िजसे राष्ट्रप�त इस �न�म� �व�न�दर्ष्ट करे , ऐसी शत� के अधीन, िजन्ह� राष्ट्रप�त अ�धरो�पत करना ठ�क समझे, प्रत्यायोजन करने के �लए राष्ट्रप�त को प्रा�धकृत करने क� संसद् को ; (ख) संघ या उसके अ�धका�रय� और प्रा�धका�रय� को शिक्तयां प्रदान करने या उन पर कतर्व्य अ�धरो�पत करने के �लए अथवा शिक्तय� का प्रदान �कया जाना या कतर्व्य� का अ�धरो�पत �कया जाना प्रा�धकृत करने के �लए, �व�ध बनाने क� संसद् को अथवा राष्ट्रप�त को या ऐसे अन्य प्रा�धकार� को, िजसम� ऐसी �व�ध बनाने क� शिक्त उपखंड (क) के अधीन �न�हत है ; (ग) जब लोक सभा सत्र म� नह�ं है तब राज्य क� सं�चत �न�ध म� से व्यय के �लए, संसद् क� मंजरू � लं�बत रहने तक ऐसे व्यय को प्रा�धकृत करने क� राष्ट्रप�त को, �मता होगी । 1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 6 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 धारा 38 (20-6-1979 से) खंड (5) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (�तरसठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क� धारा 2 द्वारा (6-1-1990 से) लोप �कया गया िजसे सं�वधान (च�सठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (16-4-1990 से) अंतःस्था�पत �कया गया था । भारत का सं�वधान 215 (भाग 18—आपात उपबंध) [(2) राज्य के �वधान-मंडल क� शिक्त का प्रयोग करते हुए संसद् द्वारा, अथवा राष्ट्रप�त या खंड (1) के उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट अन्य प्रा�धकार� द्वारा, बनाई गई ऐसी �व�ध, िजसे संसद् अथवा राष्ट्रप�त या ऐसा अन्य प्रा�धकार� अनच् ु छे द 356 के अधीन क� गई उद्घोषणा के अभाव म� बनाने के �लए स�म नह�ं होता, उद्घोषणा के प्रवतर्न म� न रहने के पश्चात ् तब तक प्रव� ृ बनी रहे गी जब तक स�म �वधान-मंडल या अन्य प्रा�धकार� द्वारा उसका प�रवतर्न या �नरसन या संशोधन नह�ं कर �दया जाता है ।] 1 2 3 358. आपात के दौरान अनच् ु छे द 19 के उपबंध� का �नलंबन – [(1)] [जब यद् ु ध या बाह्य आक्रमण के कारण भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क� सुर�ा के संकट म� होने क� घोषणा करने वाल� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है] तब अनच् ु छे द 19 क� कोई बात भाग 3 म� यथा प�रभा�षत राज्य क� कोई ऐसी �व�ध बनाने क� या कोई ऐसी कायर्पा�लका कारर्वाई करने क� शिक्त को, िजसे वह राज्य उस भाग म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� के अभाव म� बनाने या करने के �लए स�म होता, �नब��धत नह�ं करे गी, �कन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई �व�ध उद्घोषणा के प्रवतर्न म� न रहने पर अ�मता क� मात्रा तक उन बात� के �सवाय तुरन्त प्रभावह�न हो जाएगी, िजन्ह� �व�ध के इस प्रकार प्रभावह�न होने के पहले �कया गया है या करने का लोप �कया गया है : [परन्तु 5[जहां आपात क� ऐसी उद्घोषणा] भारत के राज्य�ेत्र के केवल �कसी भाग म� प्रवतर्न म� है वहां, य�द और जहां तक भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क� सुर�ा, भारत के राज्य�ेत्र के उस भाग म� या उसके संबध ं म� , िजसम� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, होने वाले �क्रयाकलाप के कारण संकट म� है तो और वहां तक, ऐसे राज्य या संघ राज्य�ेत्र म� या उसके संबध ं म� , िजसम� या िजसके �कसी भाग म� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� नह�ं है, इस अनच् ु छे द के अधीन ऐसी कोई �व�ध बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कायर्पा�लका कारर्वाई क� जा सकेगी ।] 4 [(2) खंड (1) क� कोई बात,– 6 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 51 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अनुच्छे द 358 को खंड (1) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 3. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 52 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया । 5. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) “जहां आपात क� उद्घोषणा” शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 39 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 216 (भाग 18—आपात उपबंध) (क) �कसी ऐसी �व�ध को लागू नह�ं होगी िजसम� इस आशय का उल्लेख अंत�वर्ष्ट नह�ं है �क ऐसी �व�ध उसके बनाए जाने के समय प्रव� ृ आपात क� उद्घोषणा के संबध ं म� है ; या (ख) �कसी ऐसी कायर्पा�लका कारर्वाई को लागू नह�ं होगी जो ऐसा उल्लेख अंत�वर्ष्ट करने वाल� �व�ध के अधीन न करके अन्यथा क� गई है । 359. आपात के दौरान भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार� के प्रवतर्न का �नलबंन – (1) जहां आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है वहां राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा यह घोषणा कर सकेगा �क 1[(अनच् ु छे द 20 और अनच् ु छे द 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रद� ऐसे अ�धकार�] को प्रव�तर्त कराने के �लए, जो उस आदे श म� उिल्ल�खत �कए जाएं, �कसी न्यायालय को समावेदन करने का अ�धकार और इस प्रकार उिल्ल�खत अ�धकार� को प्रव�तर्त कराने के �लए �कसी न्यायालय म� लं�बत सभी कायर्वा�हयां उस अव�ध के �लए िजसके दौरान उद्घोषणा प्रव� ु र ऐसी अव�ध के �लए जो आदे श ृ रहती है या उससे लघत म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, �नलं�बत रह� गी । [(1क) जब 2[(अनच् ु छे द 20 और अनच् ु छे द 21 को छोड़कर) भाग 3 द्वारा प्रद� �कन्ह�ं अ�धकार�] को उिल्ल�खत करने वाला खंड (1) के अधीन �कया गया आदे श प्रवतर्न म� है तब उस भाग म� उन अ�धकार� को प्रदान करने वाल� कोई बात उस भाग म� यथाप�रभा�षत राज्य क� कोई ऐसी �व�ध बनाने क� या कोई ऐसी कायर्पा�लका कारर्वाई करने क� शिक्त को, िजसे वह राज्य उस भाग म� अंत�वर्ष्ट उपबंध� के अभाव म� बनाने या करने के �लए स�म होता, �नब��धत नह�ं करे गी, �कन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई �व�ध पव ू �क्त आदे श के प्रवतर्न म� न रहने पर अ�मता क� मात्रा तक उन बात� के �सवाय तुरन्त प्रभावह�न हो जाएगी, िजन्ह� �व�ध के इस प्रकार प्रभावह�न होने के पहले �कया गया है या करने का लोप �कया गया है :] 2 [परन्तु जहां आपात क� उद्घोषणा भारत के राज्य�ेत्र के केवल �कसी भाग म� प्रवतर्न म� है वहां, य�द और जहां तक भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क� सुर�ा, भारत के राज्य�ेत्र के उस भाग म� या उसके संबध ं म� , िजसम� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, होने वाले �क्रयाकलाप के कारण संकट म� है तो और वहां तक, ऐसे राज्य या संघ राज्य�ेत्र म� या उसके संबध ं म� , िजसम� या िजसके �कसी भाग म� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� नह�ं है, इस अनच् ु छे द के अधीन ऐसी कोई �व�ध बनाई जा सकेगी या ऐसी कोई कायर्पा�लका कारर्वाई क� जा सकेगी ।] 3 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) “भाग 3 द्वारा प्रद� अ�धकार�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 7 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा गया । भारत का सं�वधान 217 (भाग 18—आपात उपबंध) [(1ख) खंड (1क) क� कोई बात – 1 (क) �कसी ऐसी �व�ध को लागू नह�ं होगी िजसम� इस आशय का उल्लेख अंत�वर्ष्ट नह�ं है �क ऐसी �व�ध उसके बनाए जाने के समय प्रव� ृ आपात क� उद्घोषणा के संबध ं म� है ; या (ख) �कसी ऐसी कायर्पा�लका कारर्वाई को लागू नह�ं होगी जो ऐसा उल्लेख अंत�वर्ष्ट करने वाल� �व�ध के अधीन न करके अन्यथा क� गई है ।] (2) पव ू �क्त रूप म� �कए गए आदे श का �वस्तार भारत के संपण ू र् राज्य�ेत्र या उसके �कसी भाग पर हो सकेगा : 2 [परन्तु जहां आपात क� उद्घोषणा भारत के राज्य�ेत्र के केवल �कसी भाग म� प्रवतर्न म� है वहां �कसी ऐसे आदे श का �वस्तार भारत के राज्य�ेत्र के �कसी अन्य भाग पर तभी होगा जब राष्ट्रप�त, यह समाधान हो जाने पर �क भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग क� सरु �ा, भारत के राज्य�ेत्र के उस भाग म� या उसके संबध ं म� , िजसम� आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है, होने वाले �क्रयाकलाप के कारण संकट म� है, ऐसा �वस्तार आवश्यक समझता है ।] (3) खंड (1) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श, �कए जाने के पश्चात ् यथाशक्य शीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखा जाएगा । [359क. इस भाग का पंजाब राज्य को लागू होना ।] – सं�वधान (�तरसठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 क� धारा 3 द्वारा (6-1-1990 से) लोप �कया गया । 3 360. �व�ीय आपात के बारे म� उपबंध – (1) य�द राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजससे भारत या उसके राज्य�ेत्र के �कसी भाग का �व�ीय स्था�यत्व या प्रत्यय संकट म� है तो वह उद्घोषणा द्वारा इस आशय क� घोषणा कर सकेगा । [(2) खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा– 4 (क) �कसी पश्चातवत� उद्घोषणा द्वारा वापस ल� जा सकेगी या प�रव�तर्त क� जा सकेगी ; (ख) संसद् के प्रत्येक सदन के सम� रखी जाएगी ; 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 40 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 53 द्वारा (3-1-1977 से) जोड़ा़ गया । 3. सं�वधान (उनसठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 क� धारा 3 द्वारा (30-3-1988 से) अंतःस्था�पत । यह, उस अ�ध�नयम के प्रारं भ से, अथार्त ् 1988 के माचर् के तीसव� �दन से दो वषर् क� अव�ध क� समािप्त के पश्चात ् प्रव� ृ नह�ं रहे गी । 4. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) खंड (2) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 218 भारत का सं�वधान (भाग 18—आपात उपबंध) (ग) दो मास क� समािप्त पर, प्रवतर्न म� नह�ं रहे गी य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले संसद् के दोन� सदन� के संकल्प� द्वारा उसका अनम ु ोदन नह�ं कर �दया जाता है : परन्तु य�द ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय क� जाती है जब लोक सभा का �वघटन हो गया है या लोक सभा का �वघटन उपखंड (ग) म� �न�दर्ष्ट दो मास क� अव�ध के दौरान हो जाता है और य�द उद्घोषणा का अनम ु ोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पा�रत कर �दया गया है, �कन्तु ऐसी उद्घोषणा के संबध ं म� कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अव�ध क� समािप्त से पहले पा�रत नह�ं �कया गया है तो उद्घोषणा उस तार�ख से, िजसको लोक सभा अपने पन ु गर्ठन के पश्चात ् प्रथम बार बैठती है, तीस �दन क� समािप्त पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगी य�द उक्त तीस �दन क� अव�ध क� समािप्त से पहले उद्घोषणा का अनम ु ोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पा�रत नह�ं कर �दया जाता है ।] (3) उस अव�ध के दौरान, िजसम� खंड (1) म� उिल्ल�खत उद्घोषणा प्रव� ृ रहती है, संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार �कसी राज्य को �व�ीय औ�चत्य संबध ं ी ऐसे �सद्धांत� का पालन करने के �लए �नदे श दे ने तक, जो �नदे श� म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, और ऐसे अन्य �नदे श दे ने तक होगा िजन्ह� राष्ट्रप�त उस प्रयोजन के �लए दे ना आवश्यक और पयार्प्त समझे । (4) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – (क) ऐसे �कसी �नदे श के अंतगर्त– (i) �कसी राज्य के कायर्कलाप के संबध ं म� सेवा करने वाले सभी या �कसी वगर् के व्यिक्तय� के वेतन� और भ�� म� कमी क� अपे�ा करने वाला उपबंध ; (ii) धन �वधेयक� या अन्य ऐसे �वधेयक� को, िजनको अनच् ु छे द 207 के उपबंध लागू होते ह�, राज्य के �वधान-मंडल द्वारा पा�रत �कए जाने के पश्चात ् राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखने के �लए उपबंध, हो सक�गे ; (ख) राष्ट्रप�त, उस अव�ध के दौरान, िजसम� इस अनच् ु छे द के अधीन क� गई उद्घोषणा प्रव� ं म� सेवा करने वाले सभी ृ रहती है, संघ के कायर्कलाप के संबध या �कसी वगर् के व्यिक्तय� के, िजनके अंतगर्त उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश ह�, वेतन� और भ�� म� कमी करने के �लए �नदे श दे ने के �लए स�म होगा । 28 (5)* 1 * * * * 1. सं�वधान (अड़तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 8 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत और उसका सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 41 द्वारा (20-6-1979 से) लोप �कया गया । भाग 19 प्रक�णर् 361. राष्ट्रप�त और राज्यपाल� और राजप्रमुख� का संर�ण – (1) राष्ट्रप�त अथवा राज्य का राज्यपाल या राजप्रमुख अपने पद क� शिक्तय� के प्रयोग और कतर्व्य� के पालन के �लए या उन शिक्तय� का प्रयोग और कतर्व्य� का पालन करते हुए अपने द्वारा �कए गए या �कए जाने के �लए तात्प�यर्त �कसी कायर् के �लए �कसी न्यायालय को उ�रदायी नह�ं होगा : परन्तु अनच् ु छे द 61 के अधीन आरोप के अन्वेषण के �लए संसद् के �कसी सदन द्वारा �नयक् ु त या अ�भ�हत �कसी न्यायालय, अ�धकरण या �नकाय द्वारा राष्ट्रप�त के आचरण का पन ु �वर्लोकन �कया जा सकेगा : परन्तु यह और �क इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार के �वरुद्ध समु�चत कायर्वा�हयां चलाने के �कसी व्यिक्त के अ�धकार को �नब��धत करती है । (2) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** के �वरुद्ध उसक� पदाव�ध के दौरान �कसी न्यायालय म� �कसी भी प्रकार क� दां�डक कायर्वाह� संिस्थत नह�ं क� जाएगी या चालू नह�ं रखी जाएगी । 0 (3) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** क� पदाव�ध के दौरान उसक� �गरफ्तार� या कारावास के �लए �कसी न्यायालय से कोई आदे �शका �नकाल� नह�ं जाएगी । (4) राष्ट्रप�त या �कसी राज्य के राज्यपाल 1*** के रूप म� अपना पद ग्रहण करने से पहले या उसके पश्चात ्, उसके द्वारा अपनी वैयिक्तक है�सयत म� �कए गए या �कए जाने के �लए तात्प�यर्त �कसी कायर् के संबध ं म� कोई �स�वल कायर्वा�हयां, िजनम� राष्ट्रप�त या ऐसे राज्य के राज्यपाल 1*** के �वरुद्ध अनत ु ोष का दावा �कया जाता है, उसक� पदाव�ध के दौरान �कसी न्यायालय म� तब तक संिस्थत नह�ं क� जाएगी जब तक कायर्वा�हय� क� प्रकृ�त, उनके �लए वाद हे तुक, ऐसी कायर्वा�हय� को संिस्थत करने वाले प�कार का नाम, वणर्न, �नवास-स्थान और उस अनत ु ोष का िजसका वह दावा करता है, कथन करने वाल� �ल�खत सूचना, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त या राज्यपाल 1*** को प�रद� �कए जाने या उसके कायार्लय म� छोड़े जाने के पश्चात ् दो मास का समय समाप्त नह�ं हो गया है । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 219 भारत का सं�वधान 220 (भाग 19—प्रक�णर्) [361क. संसद् और राज्य� के �वधान-मंडल� क� कायर्वा�हय� के प्रकाशन का संर�ण–(1) कोई व्यिक्त संसद् के �कसी सदन या, यथािस्थ�त, �कसी राज्य क� �वधान सभा या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� �कन्ह� कायर्वा�हय� के सारतः सह� �ववरण के �कसी समाचारपत्र म� प्रकाशन के संबध ं म� �कसी न्यायालय म� �कसी भी प्रकार क� �स�वल या दां�डक कायर्वाह� का तब तक भागी नह�ं होगा जब तक यह सा�बत नह�ं कर �दया जाता है �क प्रकाशन �वद्वेषपव र् �कया गया है : ू क 1 परन्तु इस खंड क� कोई बात संसद् के �कसी सदन या, यथािस्थ�त, �कसी राज्य क� �वधान सभा या �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �कसी सदन क� गुप्त बैठक क� कायर्वा�हय� के �ववरण के प्रकाशन को लागू नह�ं होगी । (2) खंड (1) �कसी प्रसारण केन्द्र के माध्यम से उपलब्ध �कसी कायर्क्रम या सेवा के भागरूप बेतार तारयां�त्रक� के माध्यम से प्रसा�रत �रपोट� या सामग्री के संबध ं म� उसी प्रकार लागू होगा िजस प्रकार वह �कसी समाचारपत्र म� प्रका�शत �रपोट� या सामग्री के संबध ं म� लागू होता है । स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द म� , “समाचारपत्र” के अंतगर्त समाचार एज�सी क� ऐसी �रपोटर् है िजसम� �कसी समाचारपत्र म� प्रकाशन के �लए सामग्री अंत�वर्ष्ट है ।] [361ख. लाभप्रद राजनी�तक पद पर �नयिु क्त के �लए �नरहर्ता – �कसी राजनी�तक दल का �कसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनस ु ूची के पैरा 2 के अधीन सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त है, अपनी �नरहर्ता क� तार�ख से प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख तक िजसको ऐसे सदस्य के रूप म� उसक� पदाव�ध समाप्त होगी या उस तार�ख तक िजसको वह �कसी सदन के �लए कोई �नवार्चन लड़ता है, और �नवार्�चत घो�षत �कया जाता है, इनम� से जो भी पव र् र हो, क� अव�ध के दौरान, कोई लाभप्रद ू त राजनी�तक पद धारण करने के �लए भी �नर�हर्त होगा । 2 स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, – (क) “सदन” पद का वह� अथर् है जो उसका दसवीं अनस ु च ू ी के पैरा 1 के खंड (क) म� है ; (ख) “लाभप्रद राजनी�तक पद” अ�भव्यिक्त से अ�भप्रेत है, – (i) भारत सरकार या �कसी राज्य सरकार के अधीन कोई पद, जहां ऐसे पद के �लए वेतन या पा�रश्र�मक का संदाय, यथािस्थ�त, भारत सरकार या राज्य सरकार के लोक राजस्व से �कया जाता है ; या 1. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 42 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 4 द्वारा (1-1-2004 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 221 (भाग 19—प्रक�णर्) (ii) �कसी �नकाय के अधीन, चाहे �नग�मत हो या नह�ं, जो भारत सरकार या �कसी राज्य सरकार के पण र् ः या भागतः स्वा�मत्वाधीन है, ू त कोई पद और ऐसे पद के �लए वेतन या पा�रश्र�मक का संदाय ऐसे �नकाय से �कया जाता है, �सवाय वहां के जहां संद� ऐसा वेतन या पा�रश्र�मक प्र�तकरात्मक स्वरूप का है ।] 362. [दे शी राज्य� के शासक� के अ�धकार और �वशेषा�धकार ।] – सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 2 द्वारा (28-12-1971 से) लोप �कया गया । 363. कुछ सं�धय�, करार� आ�द से उत्पन्न �ववाद� म� न्यायालय� के हस्त�ेप का वजर्न – (1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, �कन्तु अनच् ु छे द 143 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उच्चतम न्यायालय या �कसी अन्य न्यायालय को �कसी ऐसी सं�ध, करार, प्रसं�वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह� अन्य �लखत के �कसी उपबंध से, जो इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले �कसी दे शी राज्य के शासक द्वारा क� गई थी या �नष्पा�दत क� गई थी और िजसम� भारत डो�म�नयन क� सरकार या उसक� पव र् त� कोई ू व सरकार और िजसम� भारत डो�म�नयन क� सरकार या उसक� पव र् त� कोई सरकार एक ू व प�कार थी और जो ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् प्रवतर्न म� है या प्रवतर्न म� बनी रह� है, उत्पन्न �कसी �ववाद म� या ऐसी सं�ध, करार, प्रसं�वदा, वचनबंध, सनद या वैसी ह� अन्य �लखत से संब�ं धत इस सं�वधान के �कसी उपबंध के अधीन प्रोद्भूत �कसी अ�धकार या उससे उद्भत ं म� �कसी �ववाद म� ू �कसी दा�यत्व या बाध्यता के संबध अ�धका�रता नह�ं होगी । (2) इस अनच् ु छे द म� – (क) “दे शी राज्य” से ऐसा राज्य�ेत्र अ�भप्रेत है िजसे �हज मजेस्ट� से या भारत डो�म�नयन क� सरकार से इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले ऐसे राज्य के रूप म� मान्यता प्राप्त थी ; और (ख) “शासक” के अंतगर्त ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यिक्त है िजसे �हज मजेस्ट� से या भारत डो�म�नयन क� सरकार से ऐसे प्रारं भ से पहले �कसी दे शी राज्य के शासक के रूप म� मान्यता प्राप्त थी । 1 [363क. दे शी राज्य� के शासक� को द� गई मान्यता क� समािप्त और �नजी थै�लय� का अंत – इस सं�वधान या तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी – (क) ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यिक्त, िजसे सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 के प्रारं भ से पहले �कसी समय राष्ट्रप�त से �कसी दे शी राज्य के शासक के रूप म� मान्यता प्राप्त थी, या ऐसा व्यिक्त, िजसे ऐसे प्रारं भ से पहले �कसी समय राष्ट्रप�त से ऐसे शासक के उ�रा�धकार� के रूप म� मान्यता प्राप्त थी, ऐसे प्रारं भ को और से ऐसे शासक या ऐसे शासक के उ�रा�धकार� के रूप म� मान्यता प्राप्त नह�ं रह जाएगा ; 1. सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (28-12-1971 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 222 (भाग 19—प्रक�णर्) (ख) सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 के प्रारं भ को और से �नजी थैल� का अंत �कया जाता है और �नजी थैल� क� बाबत सभी अ�धकार, दा�यत्व और बाध्यताएं �नवार्�पत क� जाती ह� और तद्नस ु ार खंड (क) म� �न�दर्ष्ट, यथािस्थ�त, शासक या ऐसे शासक के उ�रा�धकार� को या अन्य व्यिक्त को �कसी रा�श का �नजी थैल� के रूप म� संदाय नह�ं �कया जाएगा ।] 364. महाप�न� और �वमान�ेत्र� के बारे म� �वशेष उपबंध – (1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त लोक अ�धसूचना द्वारा �नदे श दे सकेगा �क ऐसी तार�ख से, जो उस अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए,– (क) संसद् या �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई �व�ध �कसी महाप�न या �वमान�ेत्र को लागू नह�ं होगी अथवा ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगी जो उस अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं ; या (ख) कोई �वद्यमान �व�ध �कसी महाप�न या �वमान�ेत्र म� �सवाय प्रभावी नह�ं रहे गी िजन्ह� उक्त तार�ख से पहले �कया गया है लोप �कया गया है अथवा ऐसे प�न या �वमान�ेत्र को लागू होने म� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी जो उस अ�धसूचना �कए जाएं । उन बात� के या करने का ऐसे अपवाद� म� �व�न�दर्ष्ट (2) इस अनच् ु छे द म�– (क) “महाप�न” से ऐसा प�न अ�भप्रेत है िजसे संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध या �कसी �वद्यमान �व�ध द्वारा या उसके अधीन महाप�न घो�षत �कया गया है और इसके अंतगर्त ऐसे सभी �ेत्र ह� जो उस समय ऐसे प�न क� सीमाओं के भीतर ह� ; (ख) “�वमान�ेत्र” से वायु माग�, वायय ु ान� और �वमान चालन से संब�ं धत अ�ध�नय�म�तय� के प्रयोजन� के �लए यथा प�रभा�षत �वमान�ेत्र अ�भप्रेत है । 365. संघ द्वारा �दए गए �नदे श� का अनप ु ालन करने म� या उनको प्रभावी करने म� असफलता का प्रभाव – जहां इस सं�वधान के �कसी उपबंध के अधीन संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का प्रयोग करते हुए �दए गए �कन्ह�ं �नदे श� का अनप ु ालन करने म� या उनको प्रभावी करने म� कोई राज्य असफल रहता है वहां राष्ट्रप�त के �लए यह मानना �व�धपण ू र् होगा �क ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजसम� उस राज्य का शासन इस सं�वधान के उपबंध� के अनस ु ार नह�ं चलाया जा सकता है । 366. प�रभाषाएं – इस सं�वधान म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, �नम्न�ल�खत पद� के �नम्न�ल�खत अथर् ह�, अथार्त ् :– (1) “कृ�ष-आय” से भारतीय आय-कर से संब�ं धत अ�ध�नय�म�तय� के प्रयोजन� के �लए यथा प�रभा�षत कृ�ष-आय अ�भप्रेत है ; 223 भारत का सं�वधान (भाग 19—प्रक�णर्) (2) “आंग्ल-भारतीय” से ऐसा व्यिक्त अ�भप्रेत है िजसका �पता या �पत-ृ परं परा म� कोई अन्य परु ु ष जनक यरू ोपीय उद्भव का है या था, �कन्तु जो भारत के राज्य�ेत्र म� अ�धवासी है और जो ऐसे राज्य�ेत्र म� ऐसे माता-�पता से जन्मा है या जन्मा था जो वहां साधारणतया �नवासी रहे ह� और केवल अस्थायी प्रयोजन� के �लए वास नह�ं कर रहे ह� ; (3) “अनच् ु छे द अ�भप्रेत है ; ु छे द” से इस सं�वधान का अनच् (4) “उधार लेना” के अंतगर्त वा�षर्�कयां दे कर धन लेना है और “उधार” का तद्नस ु ार अथर् लगाया जाएगा ; 1 [(4क)* * * *] (5) “खंड” से उस अनच् ु छे द का खंड अ�भप्रेत है िजसम� वह पद आता है ; (6) “�नगम कर” से कोई आय पर कर अ�भप्रेत है, जहां तक वह कर ं म� �नम्न�ल�खत शत� परू � कंप�नय� द्वारा संदेय है और ऐसा कर है िजसके संबध होती ह�, अथार्त ् :– (क) वह कृ�ष-आय के संबध ं म� प्रभायर् नह�ं है ; (ख) कंप�नय� द्वारा संद� कर के संबध ं म� कंप�नय� द्वारा व्यिष्टय� को संदेय लाभांश� म� से �कसी कटौती का �कया जाना उस कर को लागू अ�ध�नय�म�तय� द्वारा प्रा�धकृत नह�ं है ; (ग) ऐसे लाभांश प्राप्त करने वाले भारतीय आय-कर के प्रयोजन� के �लए व्यिष्टय� द्वारा संदेय या उनको प्र�तदे य करने म� , इस प्रकार संद� कर को �हसाब �वद्यमान नह�ं है ; व्यिष्टय� क� कुल आय क� गणना करने म� अथवा ऐसे भारतीय आय-कर क� गणना म� लेने के �लए कोई उपबंध (7) शंका क� दशा म� , “तत्स्थानी प्रांत”, “तत्स्थानी दे शी राज्य” या “तत्स्थानी राज्य” से ऐसा प्रांत, दे शी राज्य या राज्य अ�भप्रेत है िजसे राष्ट्रप�त प्रश्नगत �कसी �व�शष्ट प्रयोजन के �लए, यथािस्थ�त, तत्स्थानी प्रांत, तत्स्थानी 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (4क) अन्तःस्था�पत �कया गया और उसका सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 224 (भाग 19—प्रक�णर्) दे शी राज्य या तत्स्थानी राज्य अवधा�रत करे ; (8) “ऋण” के अंतगर्त वा�षर्�कय� के रूप म� मल ू धन के प्र�तसंदाय क� �कसी बाध्यता के संबध ं म� कोई दा�यत्व और �कसी प्रत्याभू�त के अधीन कोई दा�यत्व है और “ऋणभार” का तद्नस ु ार अथर् लगाया जाएगा ; (9) “संपदा शुल्क” से वह शुल्क अ�भप्रेत है जो ऐसे �नयम� के अनस ु ार ं म� बनाई जो संसद् या �कसी राज्य के �वधान-मंडल द्वारा ऐसे शुल्क के संबध गई �व�धय� द्वारा या उनके अधीन �व�हत �कए जाएं, मत्ृ यु पर संक्रांत होने वाल� या उक्त �व�धय� के उपबंध� के अधीन इस प्रकार संक्रांत हुई समझी गई सभी संप�� के मूल मूल्य पर या उसके प्र�त �नद� श से, �नधार्�रत �कया जाए ; (10) “�वद्यमान �व�ध” से ऐसी �व�ध, अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम या �व�नयम अ�भप्रेत है जो इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले ऐसी �व�ध, अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम या �व�नयम बनाने क� शिक्त रखने वाले �कसी �वधान-मंडल, प्रा�धकार� या व्यिक्त द्वारा पा�रत �कया गया है या बनाया गया है ; (11) “फेडरल न्यायालय” से भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 के अधीन ग�ठत फेडरल न्यायालय अ�भप्रेत है ; (12) “माल” के अंतगर्त सभी सामग्री, वा�णज्या और वस्तुएं ह� ; 1 [(12क) “माल और सेवा कर” से मानवीय उपभोग के �लए एल्कोहाल� �लकर के प्रदाय पर कर के �सवाय माल या सेवाओं अथवा दोन� के प्रदाय पर कोई कर अ�भप्रेत है ;] (13) “प्रत्याभू�त” के अंतगर्त ऐसी बाध्यता है िजसका, �कसी उपक्रम के लाभ� के �कसी �व�न�दर्ष्ट रकम से कम होने क� दशा म� , संदाय करने का वचनबंध इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले �कया गया है ; (14) “उच्च न्यायालय” से ऐसा न्यायालय अ�भप्रेत है जो इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए �कसी राज्य के �लए उच्च न्यायालय समझा जाता है और इसके अंतगर्त – (क) भारत के राज्य�ेत्र म� इस सं�वधान के अधीन उच्च न्यायालय के रूप म� ग�ठत या पन ु गर्�ठत कोई न्यायालय है, और (ख) भारत के राज्य�ेत्र म� संसद् द्वारा �व�ध द्वारा इस सं�वधान के सभी या �कन्ह�ं प्रयोजन� के �लए उच्च न्यायालय के रूप म� घो�षत कोई अन्य न्यायालय है ; (15) “दे शी राज्य” से ऐसा राज्य�ेत्र अ�भप्रेत है िजसे भारत डो�म�नयन क� 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 14(i) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । 225 भारत का सं�वधान (भाग 19—प्रक�णर्) सरकार से ऐसे राज्य के रूप म� मान्यता प्राप्त थी ; (16) “भाग” से इस सं�वधान का भाग अ�भप्रेत है ; (17) “प� शन” से �कसी व्यिक्त को या उसके संबध ं म� संदेय �कसी प्रकार क� प� शन अ�भप्रेत है चाहे वह अ�भदायी है या नह�ं है और इसके अंतगर्त इस प्रकार संदेय सेवा�नव�ृ � वेतन, इस प्रकार संदेय उपदान और �कसी भ�वष्य �न�ध के अ�भदान� क�, उन पर ब्याज या उनम� अन्य प�रवधर्न स�हत या उसके �बना, वापसी के रूप म� इस प्रकार संदेय कोई रा�श या रा�शयां ह� ; (18) “आपात क� उद्घोषणा” से अनच् ु छे द 352 के खंड (1) के अधीन क� गई उद्घोषणा अ�भप्रेत है ; (19) “लोक अ�धसूचना” से, यथािस्थ�त, भारत के राजपत्र म� या �कसी राज्य के राजपत्र म� अ�धसच ू ना अ�भप्रेत है ; (20) “रे ल” के अंतगर्त– र् या िस्थत ट्राम नह�ं है, या (क) �कसी नगरपा�लक �ेत्र म� पण ू त (ख) �कसी राज्य म� पण र् या िस्थत संचार क� ऐसी अन्य लाइन ू त नह�ं है िजसक� बाबत संसद् ने �व�ध द्वारा घो�षत �कया है �क वह रे ल नह�ं है ; (21)* 1 * * * [(22) “शासक” से ऐसा राजा, प्रमुख या अन्य व्यिक्त अ�भप्रेत है िजसे सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 के प्रारं भ से पहले �कसी समय, राष्ट्रप�त से �कसी दे शी राज्य के शासक के रूप म� मान्यता प्राप्त थी या ऐसा व्यिक्त अ�भप्रेत है िजसे ऐसे प्रारं भ से पहले �कसी समय, राष्ट्रप�त से ऐसे शासक के उ�रा�धकार� के रूप म� मान्यता प्राप्त थी ;] 2 (23) “अनस ु ूची” से इस सं�वधान क� अनस ु ूची अ�भप्रेत है ; (24) “अनस ु ू�चत जा�तय�” से ऐसी जा�तयां, मूलवंश या जनजा�तयां अथवा ऐसी जा�तय�, मूलवंश� या जनजा�तय� के भाग या उनम� के यथ ू अ�भप्रेत ह� िजन्ह� इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए अनच् ु छे द 341 के अधीन अनस ु �ू चत जा�तयां समझा जाता है ; (25) “अनस ु �ू चत जनजा�तय�” से ऐसी जनजा�तयां या जनजा�त समद ु ाय अथवा ऐसी जनजा�तय� या जनजा�त समुदाय� के भाग या उनम� के यथ ू अ�भप्रेत ह� िजन्ह� इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए अनच् ु छे द 342 के अधीन अनस ु ू�चत 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (21) का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (छब्बीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 4 द्वारा (28-12-1971 से) प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 226 (भाग 19—प्रक�णर्) जनजा�तयां समझा जाता है ; (26) “प्र�तभ�ू तय�” के अंतगर्त स्टाक है ; *** 1 [(26क) “सेवाओं” से माल से �भन्न कुछ भी अ�भप्रेत है ; 2 (26ख) “राज्य” के अंतगर्त, अनच् ु छे द 246क, अनच् ु छे द 268, अनच् ु छे द 269, अनच् ु छे द 269क और अनच् ु छे द 279क के संदभर् म� , �वधान-मंडल वाला कोई संघ राज्य�ेत्र भी आता है ;] [(26ग) “सामािजक और शै��क दृिष्ट से �पछड़े वग�” से ऐसे �पछड़े वगर् 3 अ�भप्रेत ह�, िजन्ह� , यथािस्थ�त, क�द्र�य सरकार या राज्य या संघ राज्य�ेत्र के प्रयोजन� के �लए अनच् ु छे द 342क के अधीन ऐसा समझा गया है ।] (27) “उपखंड” से उस खंड का उपखंड अ�भप्रेत है िजसम� वह पद आता है ; (28) “कराधान” के अंतगर्त �कसी कर या लाग का अ�धरोपण है चाहे वह साधारण या स्थानीय या �वशेष है और “कर” का तद्नस ु ार अथर् लगाया जाएगा ; (29) “आय पर कर” के अंतगर्त अ�तलाभ-कर क� प्रकृ�त का कर है ; [(29क) “माल के क्रय या �वक्रय पर कर” के अंतगर्त– 4 (क) वह कर है जो नकद�, आस्थ�गत संदाय या अन्य मल् ू यवान प्र�तफल के �लए �कसी माल म� संप�� के ऐसे अंतरण पर है जो �कसी सं�वदा के अनस ु रण म� न करके अन्यथा �कया गया है ; (ख) वह कर है जो माल म� संप�� के (चाहे वह माल के रूप म� हो या �कसी अन्य रूप म� ) ऐसे अंतरण पर है जो �कसी संकमर् सं�वदा के �नष्पादन म� अंतवर्�लत है ; (ग) वह कर है जो अवक्रय या �कस्त� म� संदाय क� पद्ध�त से माल के प�रदान पर है ; (घ) वह कर है जो नकद�, आस्थ�गत संदाय या अन्य मल् ू यवान प्र�तफल के �लए �कसी माल का �कसी प्रयोजन के �लए उपयोग करने के 1 सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 54 द्वारा (1-2-1977 से) खंड (26क) अंतःस्था�पत �कया गया था और उसका सं�वधान (त�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 क� धारा 11 द्वारा (13-4-1978 से) लोप �कया गया था । 2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 14(ii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (एक सौ पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2021 क� धारा 4 द्वारा (15-9-2021) प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (�छयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 क� धारा 4 द्वारा (2-2-1983 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 227 (भाग 19—प्रक�णर्) अ�धकार के (चाहे वह �व�न�दर्ष्ट अव�ध के �लए हो या नह�ं) अतंरण पर है ; (ङ) वह कर है जो नकद�, आस्थ�गत संदाय या अन्य मूल्यवान प्र�तफल के �लए �कसी माल के प्रदाय पर है जो �कसी अ�नग�मत संगम या व्यिक्त-�नकाय द्वारा अपने �कसी सदस्य को �कया गया है ; (च) वह कर है, जो ऐसे माल के, जो खाद्य या मानव उपभोग के �लए कोई अन्य पदाथर् या कोई पेय है (चाहे वह मादक हो या नह�ं) ऐसे प्रदाय पर है, जो �कसी सेवा के रूप म� या सेवा के भाग के रूप म� या �कसी भी अन्य र��त से �कया गया है और ऐसा प्रदाय या सेवा नकद�, आस्थ�गत संदाय या अन्य मूल्यवान प्र�तफल के �लए क� गई है, और माल के ऐसे अंतरण, प�रदान या प्रदाय के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह उस व्यिक्त द्वारा, जो ऐसा अंतरण, प�रदान या प्रदाय कर रहा है, उस माल का �वक्रय है, और उस व्यिक्त द्वारा, िजसको ऐसा अंतरण, प�रदान या प्रदाय �कया जाता है, उस माल का क्रय है ।] 1 [(30) “संघ राज्य�ेत्र” से पहल� अनस ु ूची म� �व�न�दर्ष्ट कोई संघ राज्य�ेत्र अ�भप्रेत है और इसके अंतगर्त ऐसा अन्य राज्य�ेत्र है जो भारत के राज्य�ेत्र म� समा�वष्ट है �कं तु उस अनस ु च ू ी म� �व�न�दर्ष्ट नह�ं है ।] 367. �नवर्चन – (1) जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, इस सं�वधान के �नवर्चन के �लए साधारण खंड अ�ध�नयम, 1897, ऐसे अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, जो अनच् ु छे द 372 के अधीन उसम� �कए जाएं, वैसे ह� लागू होगा जैसे वह भारत डो�म�नयन के �वधान-मंडल के �कसी अ�ध�नयम के �नवर्चन के �लए लागू होता है । (2) इस सं�वधान म� संसद् के या उसके द्वारा बनाए गए अ�ध�नयम� या �व�धय� के प्र�त �कसी �नद� श का अथवा 2*** �कसी राज्य के �वधान-मंडल के या उसके द्वारा बनाए गए अ�ध�नयम� या �व�धय� के प्र�त �कसी �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क उसके अंतगर्त, यथािस्थ�त, राष्ट्रप�त द्वारा �न�मर्त अध्यादे श या �कसी राज्यपाल 3*** द्वारा �न�मर्त अध्यादे श के प्र�त �नद� श है । (3) इस सं�वधान के प्रयोजन� के �लए, “�वदे शी राज्य” से भारत से �भन्न कोई राज्य अ�भप्रेत है : परं तु संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राष्ट्रप�त आदे श 4 द्वारा यह घोषणा कर सकेगा �क कोई राज्य उन प्रयोजन� के �लए, जो उस आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, �वदे शी राज्य नह�ं ह� । 15 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) खंड (30) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहल� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट भाग क और भाग ख” (1-11-1956 से) का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (�वदे शी राज्य� के बारे म� घोषणा) आदे श, 1950, (सं. आ. 2) दे �खए । 228 भारत का सं�वधान (भाग 19—प्रक�णर्) [(4) * 1 * * *] 1. सं�वधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदे श, 2019 (स.आ. 272) इस सं�वधान आदे श के पाठ के �लए प�र�शष्ट 2 दे ख� । भाग 20 सं�वधान का संशोधन 368. 1[सं�वधान का संशोधन करने प्र�क्रया] – 2[(1) इस सं�वधान म� �कसी बात शिक्त का प्रयोग करते हुए इस सं�वधान के �नरसन के रूप म� संशोधन इस अनच् ु छे द सकेगी ।] क� संसद् क� शिक्त और उसके �लए के होते हुए भी, संसद् अपनी सं�वधायी �कसी उपबंध का प�रवधर्न, प�रवतर्न या म� अ�धक�थत प्र�क्रया के अनस ु ार कर 3 [(2)] इस सं�वधान के संशोधन का आरं भ संसद् के �कसी सदन म� इस प्रयोजन के �लए �वधेयक परु ःस्था�पत करके ह� �कया जा सकेगा और जब वह �वधेयक प्रत्येक सदन म� उस सदन क� कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपिस्थत और मत दे ने वाले सदस्य� के कम से कम दो-�तहाई बहुमत द्वारा पा�रत कर �दया जाता है तब 4[वह राष्ट्रप�त के सम� प्रस्तत ु �कया जाएगा, जो �वधेयक को अपनी अनम ु �त दे गा और तब] सं�वधान उस �वधेयक के �नबंधन� के अनस ु ार संशो�धत हो जाएगा : परं तु य�द ऐसा संशोधन – (क) अनच् ु छे द 54, अनच् ु छे द 55, अनुच्छे द 73, 241 या अनच् ु छे द 279क] म� , या म� , या [अनच् ु छे द 162, अनच् ु छे द 5 (ख) भाग 5 के अध्याय 4, भाग 6 के अध्याय 5 या भाग 11 के अध्याय 1 (ग) सातवीं अनस ु ूची क� �कसी सूची म� , या (घ) संसद् म� राज्य� के प्र�त�न�धत्व म� , या (ङ) इस अनच् ु छे द के उपबंध� म� , 1. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) "सं�वधान म� संशोधन करने क� प्र�क्रया" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) अनुच्छे द 368 को उसके खंड (2) के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 4. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 से) प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 15 द्वारा अनुच्छे द 241" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 228 (16-9-2016 से) "अनुच्छे द 162 या 229 भारत का सं�वधान (भाग 20—सं�वधान का संशोधन) कोई प�रवतर्न करने के �लए है तो ऐसे संशोधन के �लए उपबंध करने वाला �वधेयक राष्ट्रप�त के सम� अनम ु �त के �लए प्रस्तत ु �कए जाने से पहले उस संशोधन के �लए 1 *** कम से कम आधे राज्य� के �वधान-मंडल� द्वारा पा�रत इस आशय के संकल्प� द्वारा उन �वधान-मंडल� का अनस ु मथर्न भी अपे��त होगा । 2 [(3) अनच् ु छे द 13 क� कोई बात इस अनच् ु छे द के अधीन �कए गए �कसी संशोधन को लागू नह�ं होगी ।] [(4) इस सं�वधान का (िजसके अंतगर्त भाग 3 के उपबंध ह�) इस अनच् ु छे द के अधीन सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 55 के प्रारं भ से पहले या उसके पश्चात ् �कया गया या �कया गया तात्प�यर्त कोई संशोधन �कसी न्यायालय म� �कसी भी आधार पर प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा । 3 (5) शंकाओं को दरू करने के �लए यह घो�षत �कया जाता है �क इस अनच् ु छे द के अधीन इस सं�वधान के उपबंध� का प�रवधर्न, प�रवतर्न या �नरसन के रूप म� संशोधन करने के �लए संसद् क� सं�वधायी शिक्त पर �कसी प्रकार का �नबर्न्धन नह�ं होगा ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क और भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (चौबीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 3 द्वारा (5-11-1971 3. से) अंतःस्था�पत । सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 55 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । उच्चतम न्यायालय ने �मनवार् �मल्स �ल�मटे ड और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य ए.आई.आर. 1980 एस.सी. 1789 के मामले म� इस धारा को अ�व�धमान्य घो�षत �कया है । 1 भाग 21 [अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध] 369. राज्य सच ं म� �व�ध बनाने क� संसद् क� इस ू ी के कुछ �वषय� के संबध प्रकार अस्थायी शिक्त मानो वे समवत� सच ू ी के �वषय ह� – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, संसद् को इस सं�वधान के प्रारं भ से पांच वषर् क� अव�ध के दौरान �नम्न�ल�खत �वषय� के बारे म� �व�ध बनाने क� इस प्रकार शिक्त होगी मानो वे �वषय समवत� सूची म� प्रग�णत ह�, अथार्त ् :– (क) सूती और ऊनी वस्त्र�, कच्ची कपास (िजसके अंतगर्त ओट� हुई रुई और �बना ओट� रुई या कपास है), �बनौले, कागज (िजसके अंतगर्त अखबार� कागज है), खाद्य पदाथर् (िजसके अंतगर्त खाद्य �तलहन और तेल ह�), पशओ ु ं के चारे (िजसके अंतगर्त खल� और अन्य सारकृत चारे ह�), कोयले (िजसके अंतगर्त कोक और कोयले के व्यत्ु पाद ह�), लोहे , इस्पात और अभ्रक का �कसी राज्य के भीतर व्यापार और वा�णज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और �वतरण ; (ख) खंड (क) म� व�णर्त �वषय� म� से �कसी �वषय से संब�ं धत �व�धय� के �वरुद्ध अपराध, उन �वषय� म� से �कसी के संबध ं म� उच्चतम न्यायालय से �भन्न सभी न्यायालय� क� अ�धका�रता और शिक्तयां, तथा उन �वषय� म� से �कसी के संबध ं म� फ�स �कं तु इसके अंतगर्त �कसी न्यायालय म� ल� जाने वाल� फ�स नह�ं है, �कं तु संसद् द्वारा बनाई गई कोई �व�ध, िजसे संसद् इस अनच् ु छे द के उपबंध� के अभाव म� बनाने के �लए स�म नह�ं होती, उक्त अव�ध क� समािप्त पर अ�मता क� मात्रा तक उन बात� के �सवाय प्रभावी नह�ं रहेगी िजन्ह� उस अव�ध क� समािप्त के पहले �कया गया है या करने का लोप �कया गया है । 1. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) “अस्थायी तथा अंतःकाल�न उपबंध” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 230 भारत का सं�वधान 231 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) 370. जम्मू-कश्मीर राज्य के संबध ं म� अस्थायी उपबंध – (1) इस सं�वधान म� ∗∗1 �कसी बात के होते हुए भी, – (क) अनच् ं म� लागू नह�ं ु छे द 238 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबध ह�गे ; (ख) उक्त राज्य के �लए �व�ध बनाने क� संसद् क� शिक्त,– (i) संघ सूची और समवत� सूची के उन �वषय� तक सी�मत होगी िजनको राष्ट्रप�त, उस राज्य क� सरकार से परामशर् करके, उन �वषय� के तत्स्थानी �वषय घो�षत कर दे , जो भारत डो�म�नयन म� उस राज्य के अ�ध�मलन को शा�सत करने वाले अ�ध�मलन पत्र म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर्ष्ट ह� िजनके संबध ं म� डो�म�नयन �वधान-मंडल उस राज्य के �लए �व�ध बना सकता है; और ∗∗ राष्ट्रप�त, संसद् क� �सफा�रश पर भारत के सं�वधान के अनुच्छे द 370 के खंड (1) के साथ प�ठत अनुच्छे द 370 के खंड (3) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए यह घोषणा करते ह� �क 6 अगस्त, 2019 से उक्त अनुच्छे द 370 के सभी खंड, �सवाय �नम्न�ल�खत के, जो नीचे �दए गए ह� के अनुसार है, प्रचालन म� नह�ं रह� गे, अथार्त ् :– “370. इस सं�वधान के समय-समय पर यथा संशो�धत, सभी उपबंध �बना �कन्ह�ं उपातंरण� या अपवाद� के अनुच्छे द 152 या अनुच्छे द 308 या इस सं�वधान के �कसी अन्य अनुच्छे द या जम्मू-कश्मीर के सं�वधान म� �कसी अन्य उपाबंध या �कसी �व�ध, दस्तावेज, �नणर्य, अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम, �व�नयम, अ�धसूचना या भारत के राज्य�ेत्र म� �व�ध का बल रखने वाल� �कसी रू�ढ़ या प्रथा या �कसी अन्य �लखत, संघी या करार जो अनुच्छे द 363 के अधीन यथा प�रकिल्पत या अन्यथा है, म� तत्प्र�तकूल �कसी बात के अन्त�वर्ष्ट होते हुए भी, जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू ह�गे ।”। (प�र�शष्ट 3 दे ख�) । 1. भारत का सं�वधान क� खंड (3) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए राष्ट्रप�त ने जम्मू-कश्मीर राज्य क� सं�वधान सभा क� �सफा�रश पर यह घोषणा क�, �क 17 नवंबर, 1952 से उक्त अनुच्छे द 370 इस उपांतरण के साथ प्रवतर्नीय होगा �क उसके खंड (1) म� स्पष्ट�करण के स्थान पर �नम्न�ल�खत स्पष्ट�करण रख �दया गया है, अथार्त ् :– “स्पष्ट�करण – इस अनुच्छे द के प्रयोजन� के �लए राज्य क� सरकार से वह व्यिक्त अ�भप्रेत है िजसे राज्य क� �वधान सभा क� �सफा�रश पर राष्ट्रप�त ने राज्य क� तत्समय पदारूढ़ मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर् करने वाले जम्मू-कश्मीर के सदरे �रयासत के रूप म� मान्यता प्रदान क� हो ।”। (सं.आ. 44, �दनांक 15 नवंबर, 1952) । * अब “राज्यपाल” 232 भारत का सं�वधान (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (ii) उक्त सू�चय� के उन अन्य �वषय� तक सी�मत होगी जो राष्ट्रप�त, उस राज्य क� सरकार क� सहम�त से, आदे श द्वारा, �व�न�दर्ष्ट करे । स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द के प्रयोजन� के �लए, उस राज्य क� सरकार से वह व्यिक्त अ�भप्रेत है िजसे राष्ट्रप�त से, जम्मू-कश्मीर के महाराजा क� 5 माचर्, 1948 क� उद्घोषणा के अधीन तत्समय पदस्थ मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर् करने वाले जम्मू-कश्मीर के महाराजा के रूप म� तत्समय मान्यता प्राप्त थी ; ह�गे ; (ग) अनच् ं म� लागू ु छे द 1 और इस अनच् ु छे द के उपबंध उस राज्य के संबध (घ) इस सं�वधान के ऐसे अन्य उपबंध ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के ं अधीन रहते हुए, जो राष्ट्रप�त आदे श ∗ द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे , उस राज्य के संबध म� लागू ह�गे : परं तु ऐसा कोई आदे श जो उपखंड (ख) के पैरा (i) म� �न�दर्ष्ट राज्य के अ�ध�मलन पत्र म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� से संब�ं धत है, उस राज्य क� सरकार से परामशर् करके ह� �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं : परं तु यह और �क ऐसा कोई आदे श जो अं�तम पव र् त� परंतक ू व ु म� �न�दर्ष्ट �वषय� से �भन्न �वषय� से संब�ं धत है, उस सरकार क� सहम�त से ह� �कया जाएगा, अन्यथा नह�ं । (2) य�द खंड (1) के उपखंड (ख) के पैरा (ii) म� या उस खंड के उपखंड (घ) के दस ू रे परं तुक म� �न�दर्ष्ट उस राज्य क� सरकार क� सहम�त, उस राज्य का सं�वधान बनाने के प्रयोजन के �लए सं�वधान सभा के बल ु ाए जाने से पहले द� जाए तो उसे ऐसी सं�वधान सभा के सम� ऐसे �व�नश्चय के �लए रखा जाएगा जो वह उस पर करे । (3) इस अनच् र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त ु छे द के पव ू ग लोक अ�धसूचना द्वारा घोषणा कर सकेगा �क यह अनच् ु छे द प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा या ऐसे अपवाद� और उपांतरण� स�हत ह� और ऐसी तार�ख से, प्रवतर्न म� रहे गा, जो वह �व�न�दर्ष्ट करे : परं तु राष्ट्रप�त द्वारा ऐसी अ�धसच ू ना �नकाले जाने से पहले �न�दर्ष्ट उस राज्य क� सं�वधान सभा] क� �सफा�रश आवश्यक होगी । ∗ प�र�शष्ट 2 म� दे �खए । 1. सं�वधान (जम्मू-कश्मीर पर [खंड (2) म� 1 लागू) आदे श, 2019 इस सं�वधान आदे श म� “खंड (2) म� उिल्ल�खत राज्य क� सं�वधान सभा” अ�भव्यिक्त को “राज्य क� �वधान सभा” पढ़ा जाएगा ।” प�र�शष्ट 2 म� दे �खए । 233 भारत का सं�वधान (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) [371. 2*** महाराष्ट्र और गुजरात राज्य� के संबध ं म� �वशेष उपबंध– 3[(1)***] 1 (2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त, 4[महाराष्ट्र या गुजरात राज्य] के संबध ं म� �कए गए आदे श द्वारा – (क) यथािस्थ�त, �वदभर्, मराठवाड़ा 5[और शेष महाराष्ट्र या] सौराष्ट्र, कच्छ और शेष गुजरात के �लए पथ ृ क् �वकास बोड� क� स्थापना के �लए, इस उपबंध स�हत �क इन बोड� म� से प्रत्येक के कायर्करण पर एक प्र�तवेदन राज्य �वधान सभा के सम� प्र�तवषर् रखा जाएगा, (ख) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उक्त �ेत्र� के �वकास व्यय के �लए �न�धय� के साम्यापण ू र् आबंटन के �लए, और (ग) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए, उक्त सभी �ेत्र� के संबध ं म� , तकनीक� �श�ा और व्यावसा�यक प्र�श�ण के �लए पयार्प्त सु�वधाओं क� और राज्य सरकार के �नयंत्रण के अधीन सेवाओं म� �नयोजन के �लए पयार्प्त अवसर� क� व्यवस्था करने वाल� साम्यापण ू र् व्यवस्था करने के �लए, राज्यपाल के �कसी �वशेष उ�रदा�यत्व के �लए उपबंध कर सकेगा ।] 6 [371क. नागाल�ड राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – (1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – (क) �नम्न�ल�खत के संबध ं म� संसद् का कोई अ�ध�नयम नागाल�ड राज्य को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक नागाल�ड क� �वधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा �व�नश्चय नह�ं करती है, अथार्त ्,– (i) नागाओं क� धा�मर्क या सामािजक प्रथाएं ; (ii) नागा रू�ढ़जन्य �व�ध और प्र�क्रया ; (iii) �स�वल और दां�डक न्याय प्रशासन, जहां �व�नश्चय नागा रू�ढ़जन्य �व�ध के अनस ु ार होने ह� ; (iv) भ�ू म और उसके संप�� स्रोत� का स्वा�मत्व और अंतरण ; 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 22 द्वारा (1-11-1956 से) अनुच्छे द 371 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) �कया गया । “आंध्र प्रदे श,” शब्द� का लोप 3. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 2 द्वारा (1-7-1974 से) खंड (1) का लोप �कया गया । 4. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “मुंबई राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 85 द्वारा (1-5-1960 से) “शेष महाराष्ट्र” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. सं�वधान (तेरहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 2 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 234 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (ख) नागाल�ड के राज्यपाल का नागाल�ड राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के संबध म� तब तक �वशेष उ�रदा�यत्व रहे गा जब तक उस राज्य के �नमार्ण के ठ�क पहले नागा पहाड़ी त्यए ु नसांग �ेत्र म� �वद्यमान आंत�रक अशां�त, उसक� राय म� , उसम� या उसके �कसी भाग म� बनी रहती है और राज्यपाल, उस संबध ं म� अपने कृत्य� का �नवर्हन करने म� क� जाने वाल� कारर्वाई के बारे म� अपने व्यिक्तगत �नणर्य का प्रयोग, मं�त्र-प�रषद् से परामशर् करने के पश्चात ् करे गा : परं तु य�द यह प्रश्न उठता है �क कोई मामला ऐसा मामला है या नह�ं िजसके संबध ं म� राज्यपाल से इस उपखंड के अधीन अपे�ा क� गई है �क वह अपने व्यिक्तगत �नणर्य का प्रयोग करके कायर् करे तो राज्यपाल का अपने �ववेक से �कया गया �व�नश्चय अं�तम होगा और राज्यपाल द्वारा क� गई �कसी बात क� �व�धमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी �क उसे अपने व्यिक्तगत �नणर्य का प्रयोग करके कायर् करना चा�हए था या नह�ं : परं तु यह और �क य�द राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क अब यह आवश्यक नह�ं है �क नागाल�ड राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के संबध ं म� राज्यपाल का �वशेष उ�रदा�यत्व रहे तो वह, आदे श द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क राज्यपाल का ऐसा उ�रदा�यत्व उस तार�ख से नह�ं रहेगा जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए ; (ग) अनद ं म� अपनी �सफा�रश करने म� , ु ान क� �कसी मांग के संबध नागाल�ड का राज्यपाल यह स�ु निश्चत करे गा �क �कसी �व�न�दर्ष्ट सेवा या प्रयोजन के �लए भारत क� सं�चत �न�ध म� से भारत सरकार द्वारा �दया गया कोई धन उस सेवा या प्रयोजन से संब�ं धत अनद ु ान क� मांग म� , न �क �कसी अन्य मांग म� , सिम्म�लत �कया जाए ; (घ) उस तार�ख से िजसे नागाल�ड का राज्यपाल इस �न�म� लोक अ�धसूचना द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे , त्युएनसांग िजले के �लए एक प्रादे �शक प�रषद् स्था�पत क� जाएगी जो प�तीस सदस्य� से �मलकर बनेगी और राज्यपाल �नम्न�ल�खत बात� का उपबंध करने के �लए �नयम अपने �ववेक से बनाएगा, अथार्त ् :– (i) प्रादे �शक प�रषद् क� संरचना और वह र��त िजससे प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य चन ु े जाएंगे : परं तु त्यए ु नसांग िजले का उपायक् ु त प्रादे �शक प�रषद् का पदे न अध्य� होगा और प्रादे �शक प�रषद् का उपाध्य� उसके सदस्य� द्वारा अपने म� से �नवार्�चत �कया जाएगा ; (ii) प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य चन ु े जाने के �लए और सदस्य होने के �लए अहर्ताएं ; (iii) प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य� क� पदाव�ध और उनको �दए जाने वाले वेतन और भ�े, य�द कोई ह� ; 235 भारत का सं�वधान (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (iv) प्रादे �शक प�रषद् क� प्र�क्रया और कायर् संचालन ; (v) प्रादे �शक प�रषद् के अ�धका�रय� और कमर्चा�रवद ंृ क� �नयिु क्त और उनक� सेवा क� शत� ; और (vi) कोई अन्य �वषय िजसके संबध ं म� प्रादे �शक प�रषद् के गठन और उसके उ�चत कायर्करण के �लए �नयम बनाने आवश्यक ह� । (2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, नागाल�ड राज्य के �नमार्ण क� तार�ख से दस वषर् क� अव�ध तक या ऐसी अ�त�रक्त अव�ध के �लए िजसे राज्यपाल, प्रादे �शक प�रषद् क� �सफा�रश पर, लोक अ�धसूचना द्वारा, इस �न�म� �व�न�दर्ष्ट करे ,– (क) त्यए ु नसांग िजले का प्रशासन राज्यपाल द्वारा चलाया जाएगा ; (ख) जहां भारत सरकार द्वारा नागाल�ड सरकार को, संपण ू र् नागाल�ड राज्य क� आवश्यकताओं क� प�ू तर् के �लए कोई धन �दया जाता है वहां, राज्यपाल अपने �ववेक से त्यए ू र् आबंटन ु नसांग िजले और शेष राज्य के बीच उस धन के साम्यापण के �लए प्रबंध करे गा ; (ग) नागाल�ड �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम त्यए ु नसांग िजले को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक राज्यपाल, प्रादे �शक प�रषद् क� �सफा�रश पर, लोक अ�धसूचना द्वारा, इस प्रकार �नदे श नह�ं दे ता है और ऐसे �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� ऐसा �नदे श दे ते हुए राज्यपाल यह �न�दष्ट कर सकेगा �क वह अ�ध�नयम त्यए ु नसांग िजले या उसके �कसी भाग को लागू होने म� ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए, प्रभावी होगा िजन्ह� राज्यपाल प्रादे �शक प�रषद् क� �सफा�रश पर �व�न�दर्ष्ट करे : परं तु इस उपखंड के अधीन �दया गया कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भत ू ल�ी प्रभाव हो ; (घ) राज्यपाल त्यए ु नसांग िजले क� शां�त, उन्न�त और सुशासन के �लए �व�नयम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए �व�नयम उस िजले को तत्समय लागू संसद् के �कसी अ�ध�नयम या �कसी अन्य �व�ध का, य�द आवश्यक हो तो भूतल�ी प्रभाव से �नरसन या संशोधन कर सक�गे ; (ङ) (i) नागाल�ड �वधान सभा म� त्यए ु नसांग िजले का प्र�त�न�धत्व करने वाले सदस्य� म� से एक सदस्य को राज्यपाल, मुख्यमंत्री क� सलाह पर त्यए ु नसांग 1 कायर् मंत्री �नयक् ु त करे गा और मुख्यमंत्री अपनी सलाह दे ने म� पव ू �क्त सदस्य� क� बहुसंख्या क� �सफा�रश पर कायर् करे गा ; 11 1. सं�वधान (क�ठनाइय� का �नराकरण) आदे श, सं0 10 के पैरा 2 म� (1-12-1963 से) यह उपबंध है �क भारत के सं�वधान का अनुच्छे द 371क इस प्रकार प्रभावी होगा मानो उसके खंड (2) के उपखंड (ङ) के पैरा �नम्न�ल�खत परं तुक जोड़ �दया गया हो, अथार्त ् :-- (i) म� “परं तु राज्यपाल, मुख्यमंत्री क� सलाह पर, �कसी व्यिक्त को त्युएनसांग कायर् मंत्री के रूप म� ऐसे समय तक के �लए �नयुक्त कर सकेगा, जब तक �क नागाल�ड क� �वधान सभा म� त्युएनसांग िजले के �लए, आबं�टत स्थान� को भरने के �लए �व�ध के अनुसार व्यिक्तय� को चुन नह�ं �लया जाता है ।” भारत का सं�वधान 236 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (ii) त्यए ु नसांग कायर् मंत्री त्यए ु नसांग िजले से संब�ं धत सभी �वषय� क� बाबत कायर् करे गा और उनके संबध ं म� राज्यपाल के पास उसक� सीधी पहुंच होगी �कं तु वह उनके संबध ं म� मुख्यमंत्री को जानकार� दे ता रहे गा ; (च) इस खंड के पव र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, ू ग त्यए ु नसांग िजले से संब�ं धत सभी �वषय� पर अं�तम �व�नश्चय राज्यपाल अपने �ववेक से करे गा ; (छ) अनच् ु छे द 54 और अनच् ु छे द 55 म� तथा अनच् ु छे द 80 के खंड (4) म� राज्य क� �वधान सभा के �नवार्�चत सदस्य� के या ऐसे प्रत्येक सदस्य के प्र�त �नद� श� के अंतगर्त इस अनच् ु छे द के अधीन स्था�पत प्रादे �शक प�रषद् द्वारा �नवार्�चत नागाल�ड �वधान सभा के सदस्य� या सदस्य के प्र�त �नद� श ह�गे ; (ज) अनच् ु छे द 170 म� – (i) खंड (1) नागाल�ड �वधान सभा के संबध ं म� इस प्रकार प्रभावी होगा मानो “साठ” शब्द के स्थान पर “�छयाल�स” शब्द रख �दया गया हो ; (ii) उक्त खंड म� , उस राज्य म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� से प्रत्य� �नवार्चन के प्र�त �नद� श के अंतगर्त इस अनच् ु छे द के अधीन स्था�पत प्रादे �शक प�रषद् के सदस्य� द्वारा �नवार्चन होगा ; (iii) खंड (2) और खंड (3) म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के प्र�त �नद� श से को�हमा और मोकोकचग ुं िजल� म� प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� के प्र�त �नद� श अ�भप्रेत ह�गे । (3) य�द इस अनच् र् ामी उपबंध� म� से �कसी उपबंध को प्रभावी करने ु छे द के पव ू ग म� कोई क�ठनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा, कोई ऐसी बात (िजसके अंतगर्त �कसी अन्य अनच् ु छे द का कोई अनक ु ू लन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस क�ठनाई को दरू करने के प्रयोजन के �लए उसे आवश्यक प्रतीत होती है : परं तु ऐसा कोई आदे श नागाल�ड राज्य के �नमार्ण क� तार�ख से तीन वषर् क� समािप्त के पश्चात ् नह�ं �कया जाएगा । स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द म� , को�हमा, मोकोकचग ुं और त्यए ु नसांग िजल� का वह� अथर् है जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 म� है ।] [371ख. असम राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त, असम राज्य के संबध ं म� �कए गए आदे श द्वारा, उस राज्य क� �वधान सभा क� एक स�म�त के गठन और कृत्य� के �लए, जो स�म�त छठ� अनस ु ूची 1 1. सं�वधान (बाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 क� धारा 4 द्वारा (25-9-1969 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 237 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) के पैरा 20 से संलग्न सारणी के 1[भाग 1] म� �व�न�दर्ष्ट जनजा�त �ेत्र� से �नवार्�चत उस �वधान सभा के सदस्य� से और उस �वधान सभा के उतने अन्य सदस्य� से �मलकर बनेगी िजतने आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं तथा ऐसी स�म�त के गठन और उसके उ�चत कायर्करण के �लए उस �वधान सभा क� प्र�क्रया के �नयम� म� �कए जाने वाले उपांतरण� के �लए उपबंध कर सकेगा ।] [371ग. म�णपरु राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – (1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, राष्ट्रप�त, म�णपरु राज्य के संबध ं म� �कए गए आदे श द्वारा, उस राज्य क� �वधान सभा क� एक स�म�त के गठन और कृत्य� के �लए, जो स�म�त उस राज्य के पहाड़ी �ेत्र� से �नवार्�चत उस �वधान सभा के सदस्य� से �मलकर बनेगी, राज्य क� सरकार के कामकाज के �नयम� म� और राज्य क� �वधान सभा क� प्र�क्रया के �नयम� म� �कए जाने वाले उपांतरण� के �लए और ऐसी स�म�त का उ�चत कायर्करण सु�निश्चत करने के उद्दे श्य से राज्यपाल के �कसी �वशेष उ�रदा�यत्व के �लए उपबंध कर सकेगा । 2 (2) राज्यपाल प्र�तवषर् या जब कभी राष्ट्रप�त ऐसी अपे�ा करे , म�णपरु राज्य के पहाड़ी �ेत्र� के प्रशासन के संबध ं म� राष्ट्रप�त को प्र�तवेदन दे गा और संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार उक्त �ेत्र� के प्रशासन के बारे म� राज्य को �नदे श दे ने तक होगा । स्पष्ट�करण – इस अनच् ु छे द म� , “पहाड़ी �ेत्र�” से ऐसे �ेत्र अ�भप्रेत ह� िजन्ह� राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा, पहाड़ी �ेत्र घो�षत करे ।] 3 [371घ. 4[आंध्र प्रदे श राज्य या तेलग ं ाना राज्य] के संबध ं म� �वशेष उपबंध – [(1) राष्ट्रप�त, आंध्र प्रदे श राज्य या तेलंगाना राज्य के संबध ं म� �कए गए आदे श द्वारा, प्रत्येक राज्य क� आवश्यकताओं को ध्यान म� रखते हुए दोन� राज्य� के �व�भन्न भाग� के लोग� के �लए लोक �नयोजन के �वषय म� और �श�ा के �वषय म� साम्यापण ू र् अवसर� और सु�वधाओं का उपबंध कर सकेगा और दोन� राज्य� के �व�भन्न भाग� के �लए �भन्न-�भन्न उपबंध �कए जा सक�गे ।] 5 (2) खंड (1) के अधीन �कया गया आदे श, �व�शष्टतया, – 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (स�ाईसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5 द्वारा (15-2-1972 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 3 द्वारा (1-7-1974 से) अंतःस्था�पत । 4. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) खंड (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 238 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (क) राज्य सरकार से यह अपे�ा कर सकेगा �क वह राज्य क� �स�वल सेवा म� पद� के �कसी वगर् या वग� का अथवा राज्य के अधीन �स�वल पद� के �कसी वगर् या वग� का राज्य के �भन्न भाग� के �लए �भन्न स्थानीय काडर� म� गठन करे और ऐसे �सद्धांत� और प्र�क्रया के अनस ु ार जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, ऐसे पद� को धारण करने वाले व्यिक्तय� का इस प्रकार ग�ठत स्थानीय काडर� म� आबंटन करे ; (ख) राज्य के ऐसे भाग या भाग� को �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा जो– (i) राज्य सरकार के अधीन �कसी स्थानीय काडर म� (चाहे उसका गठन इस अनच् ु छे द के अधीन आदे श के अनस ु रण म� या अन्यथा �कया गया है) पद� के �लए सीधी भत� के �लए, (ii) राज्य के भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के अधीन �कसी काडर म� पद� के �लए सीधी भत� के �लए, और (iii) राज्य के भीतर �कसी �वश्व�वद्यालय म� या राज्य सरकार के �नयंत्रण के अधीन �कसी अन्य �श�ा संस्था म� प्रवेश के प्रयोजन के �लए, स्थानीय �ेत्र समझे जाएंगे; (ग) वह �वस्तार �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा िजस तक, वह र��त �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा िजससे और वे शत� �व�न�दर्ष्ट कर सकेगा िजनके अधीन, यथािस्थ�त, ऐसे ं म� ऐसे अभ्य�थर्य� को, काडर, �वश्व�वद्यालय या अन्य �श�ा संस्था के संबध िजन्ह�ने आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कसी अव�ध के �लए स्थानीय �ेत्र म� �नवास या अध्ययन �कया है – (i) उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट ऐसे काडर म� जो इस �न�म� आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कया जाए, पद� के �लए सीधी भत� के �वषय म� ; (ii) उपखंड (ख) म� �न�दर्ष्ट ऐसे �वश्व�वद्यालय या अन्य �श�ा संस्था म� जो इस �न�म� आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, प्रवेश के �वषय म� , अ�धमान �दया जाएगा या उनके �लए आर�ण �कया जाएगा । (3) राष्ट्रप�त, आदे श द्वारा, 1[आंध्र प्रदे श राज्य के �लए और तेलग ं ाना राज्य के �लए] एक प्रशास�नक अ�धकरण के गठन के �लए उपबंध कर सकेगा जो अ�धकरण �नम्न�ल�खत �वषय� क� बाबत ऐसी अ�धका�रता, शिक्त और प्रा�धकार का िजसके अंतगर्त वह अ�धका�रता, शिक्त या प्रा�धकार है जो सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 के प्रारं भ से ठ�क पहले (उच्चतम न्यायालय से �भन्न) �कसी न्यायालय द्वारा अथवा �कसी अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� द्वारा प्रयोक्तव्य था प्रयोग करे गा जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कया जाए, अथार्त ् :– 1. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 97 द्वारा (2-6-2014 से) “आंध्र प्रदे श राज्य के �लए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 239 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (क) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, �नयिु क्त, आबंटन या प्रोन्न�त ; (ख) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, �नयक् ु त, आबं�टत या प्रोन्नत व्यिक्तय� क� ज्येष्ठता ; (ग) राज्य क� �स�वल सेवा म� ऐसे वगर् या वग� के पद� पर अथवा राज्य के अधीन ऐसे वगर् या वग� के �स�वल पद� पर अथवा राज्य के भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के �नयंत्रण के अधीन ऐसे वगर् या वग� के पद� पर �नयक् ु त, आबं�टत या प्रोन्नत व्यिक्तय� क� सेवा क� ऐसी अन्य शत� जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाएं । (4) खंड (3) के अधीन �कया गया आदे श– (क) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर �कसी �वषय से संब�ं धत व्यथाओं के �नवारण के �लए ऐसे अभ्यावेदन प्राप्त करने के �लए, जो राष्ट्रप�त आदे श म� �व�न�दर्ष्ट करे और उस पर ऐसे आदे श करने के �लए जो वह प्रशास�नक अ�धकरण ठ�क समझता है, प्रा�धकृत कर सकेगा ; (ख) प्रशास�नक अ�धकरण क� शिक्तय� और प्रा�धकार� और प्र�क्रया के संबध ं म� ऐसे उपबंध (िजनके अंतगर्त प्रशास�नक अ�धकरण क� अपने अवमान के �लए दं ड दे ने क� शिक्त के संबध ं म� उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रप�त आवश्यक समझे ; (ग) प्रशास�नक अ�धकरण को उसक� अ�धका�रता के भीतर आने वाले �वषय� से संब�ं धत और उस आदे श के प्रारं भ से ठ�क पहले (उच्चतम न्यायालय से �भन्न) �कसी न्यायालय अथवा �कसी अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के सम� लं�बत कायर्वा�हय� के ऐसे वग� के, जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �कए जाएं, अंतरण के �लए उपबंध कर सकेगा ; (घ) ऐसे अनप ु रू क, आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त फ�स के बारे म� और प�रसीमा, सा�य के बारे म� या तत्समय प्रव� ृ �कसी �व�ध को �कन्ह�ं अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू करने के �लए उपबंध ह�) अंत�वर्ष्ट कर सकेगा जो राष्ट्रप�त आवश्यक समझे । भारत का सं�वधान 240 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (5) प्रशास�नक अ�धकरण का �कसी मामले को अं�तम रूप से �नपटाने वाला आदे श, राज्य सरकार द्वारा उसक� पुिष्ट �कए जाने पर या आदे श �कए जाने क� तार�ख से तीन मास क� समािप्त पर, इनम� से जो भी पहले हो, प्रभावी हो जाएगा : ∗ परं तु राज्य सरकार, �वशेष आदे श द्वारा, जो �ल�खत रूप म� �कया जाएगा और िजसम� उसके कारण �व�न�दर्ष्ट �कए जाएंगे, प्रशास�नक अ�धकरण के �कसी आदे श को उसके प्रभावी होने के पहले उपांत�रत या रद्द कर सकेगी और ऐसे मामले म� प्रशास�नक अ�धकरण का आदे श, यथािस्थ�त, ऐसे उपांत�रत रूप म� ह� प्रभावी होगा या वह �नष्प्रभाव हो जाएगा । (6) राज्य सरकार द्वारा खंड (5) के परं तक ु के अधीन �कया गया प्रत्येक �वशेष आदे श, �कए जाने के पश्चात ्, यथाशक्य, शीघ्र, राज्य �वधान-मंडल के दोन� सदन� के सम� रखा जाएगा । (7) राज्य के उच्च न्यायालय को प्रशास�नक अ�धकरण पर अधी�ण क� शिक्त नह�ं होगी और (उच्चतम न्यायालय से �भन्न) कोई न्यायालय अथवा कोई अ�धकरण, प्रशास�नक अ�धकरण क� या उसके संबध ं म� अ�धका�रता, शिक्त या प्रा�धकार के अधीन �कसी �वषय क� बाबत �कसी अ�धका�रता, शिक्त या प्रा�धकार का प्रयोग नह�ं करे गा । (8) य�द राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क प्रशास�नक अ�धकरण का �नरं तर बने रहना आवश्यक नह�ं है तो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा प्रशास�नक अ�धकरण का उत्सादन कर सकेगा और ऐसे उत्सादन से ठ�क पहले अ�धकरण के सम� लं�बत मामल� के अंतरण और �नपटारे के �लए ऐसे आदे श म� ऐसे उपबंध कर सकेगा जो वह ठ�क समझे । (9) �कसी न्यायालय, अ�धकरण या अन्य प्रा�धकार� के �कसी �नणर्य, �डक्र� या आदे श के होते हुए भी,– (क) �कसी व्यिक्त क� कोई �नयिु क्त, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण क� बाबत जो– (i) 1 नवंबर, 1956 से पहले यथा�वद्यमान हैदराबाद राज्य क� सरकार के या उसके भीतर �कसी स्थानीय प्रा�धकार� के अधीन उस तार�ख से पहले �कसी पद पर �कया गया था, या (ii) सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 के प्रारं भ से पहले आंध्र प्रदे श राज्य क� सरकार के अधीन या उस राज्य के भीतर �कसी स्थानीय या अन्य प्रा�धकार� के अधीन �कसी पद पर �कया गया था, और (ख) उपखंड (क) म� �न�दर्ष्ट �कसी व्यिक्त द्वारा या उसके सम� क� गई �कसी कारर्वाई या बात क� बाबत, ∗ उच्चतम न्यायालय ने पी. सांबमू�तर् और अन्य बनाम आंध्र प्रदे श राज्य और एक अन्य (1987) 1 एस.एस.सी., 362, अनुच्छे द 371घ के खंड (5) और उसके परं तुक को असंवैधा�नक और शून्य घो�षत �कया । भारत का सं�वधान 241 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) केवल इस आधार पर �क ऐसे व्यिक्त क� �नयिु क्त, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण, ऐसी �नयिु क्त, पदस्थापना, प्रोन्न�त या अंतरण क� बाबत, यथािस्थ�त, हैदराबाद राज्य के भीतर या आंध्र प्रदे श राज्य के �कसी भाग के भीतर �नवास के बारे म� �कसी अपे�ा का उपबंध करने वाल� तत्समय प्रव� ु ार नह�ं �कया गया था, यह नह�ं समझा ृ �व�ध के अनस जाएगा �क वह अवैध या शून्य है या कभी भी अवैध या शून्य रहा था । (10) इस अनच् ु छे द के और राष्ट्रप�त द्वारा इसके अधीन �कए गए �कसी आदे श के उपबंध इस सं�वधान के �कसी अन्य उपबंध म� या तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध म� �कसी बात के होते हुए भी प्रभावी ह�गे । 371ङ. आंध्र प्रदे श म� क�द्र�य �वश्व�वद्यालय क� स्थापना – संसद् �व�ध द्वारा, आंध्र प्रदे श राज्य म� एक �वश्व�वद्यालय क� स्थापना के �लए उपबंध कर सकेगी ।] 1 [371च. �सिक्कम राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – बनेगी ; (क) �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा कम से कम तीस सदस्य� से �मलकर (ख) सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 के प्रारं भ क� तार�ख से (िजसे इस अनच् ु छे द म� इसके पश्चात ् �नयत �दन कहा गया है) – (i) �सिक्कम क� �वधान सभा, जो अप्रैल, 1974 म� �सिक्कम म� हुए �नवार्चन� के प�रणामस्वरूप उक्त �नवार्चन� म� �नवार्�चत ब�ीस सदस्य� से (िजन्ह� इसम� इसके पश्चात ् आसीन सदस्य कहा गया है) �मलकर बनी है, इस सं�वधान के अधीन सम्यक् रूप से ग�ठत �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा समझी जाएगी ; (ii) आसीन सदस्य इस सं�वधान के अधीन सम्यक् रूप से �नवार्�चत �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा के सदस्य समझे जाएंगे ; और (iii) �सिक्कम राज्य क� उक्त �वधान सभा इस सं�वधान के अधीन राज्य क� �वधान सभा क� शिक्तय� का प्रयोग और कृत्य� का पालन करे गी ; 1. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 3 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 242 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (ग) खंड (ख) के अधीन �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा समझी गई 1 �वधान सभा क� दशा म� , अनच् ु छे द 172 के खंड (1) म� [पांच वषर्] क� अव�ध के प्र�त �नद� श� का यह अथर् लगाया जाएगा �क वे 2[चार वषर्] क� अव�ध के प्र�त �नद� श ह� और 2[चार वषर्] क� उक्त अव�ध �नयत �दन से प्रारं भ हुई समझी जाएगी ; (घ) जब तक संसद् �व�ध द्वारा अन्य उपबंध नह�ं करती है तब तक �सिक्कम राज्य को लोक सभा म� एक स्थान आबं�टत �कया जाएगा और �सिक्कम राज्य एक संसद�य �नवार्चन-�ेत्र होगा िजसका नाम �सिक्कम संसद�य �नवार्चन-�ेत्र होगा ; (ङ) �नयत �दन को �वद्यमान लोक सभा म� �सिक्कम राज्य का प्र�त�न�ध �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा के सदस्य� द्वारा �नवार्�चत �कया जाएगा ; (च) संसद्, �सिक्कम क� जनता के �व�भन्न अनभ ु ाग� के अ�धकार� और �हत� क� संर�ा करने के प्रयोजन के �लए �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा म� उन स्थान� क� संख्या के �लए जो ऐसे अनभ ु ाग� के अभ्य�थर्य� द्वारा भरे जा सक�गे और ऐसे सभा �नवार्चन-�ेत्र� के प�रसीमन के �लए, िजनसे केवल ऐसे अनभ ु ाग� के अभ्यथ� ह� �सिक्कम राज्य क� �वधान सभा के �नवार्चन के �लए खड़े हो सक�गे, उपबंध कर सकेगी ; (छ) �सिक्कम के राज्यपाल का, शां�त के �लए और �सिक्कम क� जनता के �व�भन्न अनभ ु ाग� क� सामािजक और आ�थर्क उन्न�त सु�निश्चत करने के �लए साम्यापण ू र् व्यवस्था करने के �लए �वशेष उ�रदा�यत्व होगा और इस खंड के अधीन अपने �वशेष उ�रदा�यत्व का �नवर्हन करने म� �सिक्कम का राज्यपाल ऐसे �नदे श� के अधीन रहते हुए जो राष्ट्रप�त समय-समय पर दे ना ठ�क समझे, अपने �ववेक से कायर् करे गा ; (ज) सभी संप�� और आिस्तयां (चाहे वे �सिक्कम राज्य म� समा�वष्ट राज्य�ेत्र� के भीतर ह� या बाहर) जो �नयत �दन से ठ�क पहले �सिक्कम सरकार म� या �सिक्कम सरकार के प्रयोजन� के �लए �कसी अन्य प्रा�धकार� या व्यिक्त म� �न�हत थीं, �नयत �दन से �सिक्कम राज्य क� सरकार म� �न�हत हो जाएंगी ; 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “पांच वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से “छह वषर्” के स्थान पर) प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 56 द्वारा (3-1-1977 से) “चार वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत और तत्पश्चात ् सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 43 द्वारा (6-9-1979 से) क्रमशः “पांच वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 243 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (झ) �सिक्कम राज्य म� समा�वष्ट राज्य�ेत्र� म� �नयत �दन से ठ�क पहले उच्च न्यायालय के रूप म� कायर्रत उच्च न्यायालय �नयत �दन को और से �सिक्कम राज्य का उच्च न्यायालय समझा जाएगा ; (ञ) �सिक्कम राज्य के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र �स�वल, दां�डक और राजस्व अ�धका�रता वाले सभी न्यायालय तथा सभी न्या�यक, कायर्पालक और अनस ु �चवीय प्रा�धकार� और अ�धकार� �नयत �दन को और से अपने-अपने कृत्य� को इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, करते रह� गे ; (ट) �सिक्कम राज्य म� समा�वष्ट राज्य�ेत्र म� या उसके �कसी भाग म� �नयत �दन से ठ�क पहले प्रव� ृ सभी �व�धयां वहां तब तक प्रव� ृ बनी रह� गी जब तक �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा उनका संशोधन या �नरसन नह�ं कर �दया जाता है ; (ठ) �सिक्कम राज्य के प्रशासन के संबध ं म� �कसी ऐसी �व�ध को, जो खंड (ट) म� �न�दर्ष्ट है, लागू �कए जाने को सुकर बनाने के प्रयोजन के �लए और �कसी ऐसी �व�ध के उपबंध� को इस सं�वधान के उपबंध� के अनरू ु प बनाने के प्रयोजन के �लए राष्ट्रप�त, �नयत �दन से दो वषर् के भीतर, आदे श द्वारा, ऐसी �व�ध म� �नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे अनक ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन ह� और तब प्रत्येक ऐसी �व�ध इस प्रकार �कए गए अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी ऐसे अनक ु ू लन या उपांतरण को �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा ; (ड) उच्चतम न्यायालय या �कसी अन्य न्यायालय को, �सिक्कम के संबध ं म� �कसी ऐसी सं�ध, करार, वचनबंध या वैसी ह� अन्य �लखत से, जो �नयत �दन से पहले क� गई थी या �नष्पा�दत क� गई थी और िजसम� भारत सरकार या उसक� पव र् त� कोई सरकार प�कार थी, उत्पन्न �कसी �ववाद या अन्य �वषय के ू व संबध ं म� अ�धका�रता नह�ं होगी, �कं तु इस खंड क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह अनच् ु छे द 143 के उपबंध� का अल्पीकरण करती है ; (ढ) राष्ट्रप�त, लोक अ�धसूचना द्वारा, �कसी ऐसी अ�ध�नय�म�त का �वस्तार, जो उस अ�धसूचना क� तार�ख को भारत के �कसी राज्य म� प्रव� ृ है, ऐसे �नबर्न्धन� या उपांतरण� स�हत, जो वह ठ�क समझता है, �सिक्कम राज्य पर कर सकेगा ; (ण) य�द इस अनच् र् ामी उपबंध� म� से �कसी उपबंध को प्रभावी ु छे द के पव ू ग करने म� कोई क�ठनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रप�त, आदे श ∗ द्वारा, कोई ऐसी बात (िजसके अंतगर्त �कसी अन्य अनच् ु छे द का कोई अनक ु ू लन या उपांतरण है) कर सकेगा जो उस क�ठनाई को दरू करने के प्रयोजन के �लए उसे आवश्यक प्रतीत होती है : ∗ सं�वधान (क�ठनाइय� का �नराकरण) आदे श सं0 11 (सं0 आ0 99) दे �खए । भारत का सं�वधान 244 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) परं तु ऐसा कोई आदे श �नयत �दन से दो वषर् क� समािप्त के पश्चात ् नह�ं �कया जाएगा ; (त) �सिक्कम राज्य या उसम� समा�वष्ट राज्य�ेत्र� म� या उनके संबध ं म� , �नयत �दन को प्रारं भ होने वाल� और उस तार�ख से िजसको सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 राष्ट्रप�त क� अनम ु �त प्राप्त करता है, ठ�क पहले समाप्त होने वाल� अव�ध के दौरान क� गई सभी बात� और कारर्वाइयां, जहां तक वे सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 द्वारा यथासंशो�धत इस सं�वधान के उपबंध� के अनरू ु प ह�, सभी प्रयोजन� के �लए इस प्रकार यथासंशो�धत इस सं�वधान के अधीन �व�धमान्यतः क� गई समझी जाएंगी ।] 1 [371छ. �मजोरम राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी,– (क) �नम्न�ल�खत के संबध ं म� संसद् का कोई अ�ध�नयम �मजोरम राज्य को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक �मजोरम राज्य क� �वधान सभा संकल्प द्वारा ऐसा �व�नश्चय नह�ं करती है, अथार्त ् :– (i) �मजो लोग� क� धा�मर्क या सामािजक प्रथाएं ; (ii) �मजो रू�ढ़जन्य �व�ध और प्र�क्रया ; (iii) �स�वल और दां�डक न्याय प्रशासन, जहां �व�नश्चय �मजो रू�ढ़जन्य �व�ध के अनस ु ार होने ह� ; (iv) भ�ू म का स्वा�मत्व और अंतरण : परं तु इस खंड क� कोई बात, सं�वधान (�तरपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 के प्रारं भ से ठ�क पहले �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� प्रव� ृ �कसी क�द्र�य अ�ध�नयम को लागू नह�ं होगी ; (ख) �मजोरम राज्य क� �वधान सभा कम से कम चाल�स सदस्य� से �मलकर बनेगी ।] 2 [371ज. अरुणाचल प्रदे श राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी,– (क) अरुणाचल प्रदे श के राज्यपाल का अरुणाचल प्रदे श राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के संबध ं म� �वशेष उ�रदा�यत्व रहे गा और राज्यपाल, उस संबध ं म� अपने कृत्य� का �नवर्हन करने म� क� जाने वाल� कारर्वाई के बारे म� अपने व्यिक्तगत �नणर्य का प्रयोग मं�त्र-प�रषद् से परामशर् करने के पश्चात ् करे गा : 1. सं�वधान (�तरपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (पचपनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 2 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 245 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) परं तु य�द यह प्रश्न उठता है �क कोई मामला ऐसा मामला है या नह�ं िजसके संबध ं म� राज्यपाल से इस खंड के अधीन अपे�ा क� गई है �क वह अपने व्यिक्तगत �नणर्य का प्रयोग करके कायर् करे तो राज्यपाल का अपने �ववेक से �कया गया �व�नश्चय अं�तम होगा और राज्यपाल द्वारा क� गई �कसी बात क� �व�धमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नह�ं क� जाएगी �क उसे अपने व्यिक्तगत �नणर्य का प्रयोग करके कायर् करना चा�हए था या नह�ं : परं तु यह और �क य�द राज्यपाल से प्र�तवेदन �मलने पर या अन्यथा राष्ट्रप�त का यह समाधान हो जाता है �क अब यह आवश्यक नह�ं है �क अरुणाचल प्रदे श राज्य म� �व�ध और व्यवस्था के संबध ं म� राज्यपाल का �वशेष उ�रदा�यत्व रहे तो वह, आदे श द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क राज्यपाल का ऐसा उ�रदा�यत्व उस तार�ख से नह�ं रहे गा जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए ; (ख) अरुणाचल प्रदे श राज्य क� �वधान सभा कम से कम तीस सदस्य� से �मलकर बनेगी ।] 1 [371झ. गोवा राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, गोवा राज्य क� �वधान सभा कम से कम तीस सदस्य� से �मलकर बनेगी ।] 2 [371ञ. कनार्टक राज्य के संबध ं म� �वशेष उपबंध -- (1) राष्ट्रप�त, कनार्टक राज्य के संबध ं म� �कए गए आदे श द्वारा,– (क) हैदराबाद-कनार्टक �ेत्र के �लए, एक पथ ृ क् �वकास बोडर् क� स्थापना के �लए, इस उपबंध स�हत �क इस बोडर् के कायर्करण पर एक प्र�तवेदन प्रत्येक वषर् राज्य �वधान सभा के सम� रखा जाएगा ; (ख) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं को ध्यान म� रखते हुए, उक्त �ेत्र के �वकास व्यय के �लए �न�धय� के साम्यापण ू र् आबंटन के �लए ; और (ग) समस्त राज्य क� आवश्यकताओं को ध्यान म� रखते हुए, उक्त �ेत्र से संब�ं धत लोग� के �लए लोक �नयोजन, �श�ा और व्यावसा�यक प्र�श�ण के �वषय� म� साम्यापण ू र् अवसर और सु�वधाओं के �लए, राज्यपाल के �कसी �वशेष उ�रदा�यत्व के �लए उपबंध कर सकेगा । (2) खंड (1) के उपखंड (ग) के अधीन �कए गए आदे श द्वारा,– (क) हैदराबाद-कनार्टक �ेत्र म� शै��णक और व्यावसा�यक प्र�श�ण संस्थाओं म� , ऐसे छात्र� के �लए जो जन्म से या अ�धवास द्वारा उस �ेत्र के ह�, स्थान� के आनप ु ा�तक आर�ण के �लए उपबंध �कया जा सकेगा ; और 1. सं�वधान (छप्पनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्था�पत । 2 सं�वधान (अठानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2012 क� धारा 2 द्वारा (1-10-2013 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 246 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) (ख) हैदराबाद-कनार्टक �ेत्र म� राज्य सरकार के अधीन और राज्य सरकार के �नयंत्रणाधीन �कसी �नकाय या संगठन म� पद� या पद� के वग� क� पहचान के �लए और उन व्यिक्तय� के �लए, जो जन्म से या अ�धवास द्वारा उस �ेत्र के ह�, ऐसे पद� के आनप ु ा�तक आर�ण के �लए और उन पद� पर सीधे भत� द्वारा या प्रोन्न�त द्वारा अथवा ऐसी �कसी अन्य र��त म� , जो आदे श द्वारा �व�न�दर्ष्ट क� जाए, �नयिु क्त के �लए उपबंध �कया जा सकेगा ।] 372. �वद्यमान �व�धय� का प्रव� ु ू लन – (1) अनच् ु छे द ृ बने रहना और उनका अनक 395 म� �न�दर्ष्ट अ�ध�नय�म�तय� का इस सं�वधान द्वारा �नरसन होने पर भी, �कं तु इस सं�वधान के अन्य उपबंध� के अधीन रहते हुए, इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के राज्य�ेत्र म� सभी प्रव� ृ �व�ध वहां तब तक प्रव� ृ बनी रहे गी जब तक �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा उसे प�रव�तर्त या �नर�सत या संशो�धत नह�ं कर �दया जाता है । (2) भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी प्रव� ृ �व�ध के उपबंध� को इस सं�वधान के उपबंध� के अनरू ु प बनाने के प्रयोजन के �लए राष्ट्रप�त, आदे श ∗ द्वारा, ऐसी �व�ध म� �नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे अनक ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन ह� और यह उपबंध कर सकेगा �क वह �व�ध ऐसी तार�ख से जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, इस प्रकार �कए गए अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी ऐसे अनक ु ू लन या उपांतरण को �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा । (3) खंड (2) क� कोई बात– (क) राष्ट्रप�त को इस सं�वधान के प्रारं भ से 1[तीन वषर्] क� समािप्त के पश्चात ् �कसी �व�ध का कोई अनक ु ू लन या उपांतरण करने के �लए सशक्त करने वाल�, या (ख) �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� को, राष्ट्रप�त द्वारा उक्त खंड के अधीन अनक ु ू �लत या उपांत�रत �कसी �व�ध का �नरसन या संशोधन करने से रोकने वाल�, नह�ं समझी जाएगी । ∗ दे �खए, अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 115, तार�ख 5 जून 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0 ृ 51; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 870, तार�ख 4 नवंबर, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0 ृ 903; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 508, तार�ख 4 अप्रैल, 1951, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0 ृ 287; अ�धसूचना सं0 का0�न0आ0 1140ख, तार�ख 2 जुलाई, 1952, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0 ृ 616/I, और त्रावणकोर-कोचीन भू�म अजर्न �व�ध अनुकूलन आदे श, 1952, तार�ख 20 नवंबर, 1952, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, अनुभाग 3, प0 ृ 923 द्वारा यथासंशो�धत �व�ध अनुकूलन आदे श, 1950, तार�ख 26 जनवर�, 1950, भारत का राजपत्र, असाधारण, प0 ृ 449 । 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 12 द्वारा (18-6-1951 से) “दो वषर्” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 247 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) स्पष्ट�करण 1 – इस अनच् ु छे द म� , “प्रव� ृ �व�ध” पद के अंतगर्त ऐसी �व�ध है जो इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा पा�रत क� गई है या बनाई गई है और पहले ह� �नर�सत नह�ं कर द� गई है, भले ह� वह या उसके कोई भाग तब पण र् ः या �कन्ह�ं �व�शष्ट �ेत्र� ू त म� प्रवतर्न म� न ह� । स्पष्ट�करण 2 – भारत के राज्य�ेत्र म� �कसी �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा पा�रत क� गई या बनाई गई ऐसी �व�ध का, िजसका इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले राज्य�ेत्रातीत प्रभाव था और भारत के राज्य�ेत्र म� भी प्रभाव था, यथापव ू �क्त �कन्ह�ं अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए, ऐसा राज्य�ेत्रातीत प्रभाव बना रहे गा । स्पष्ट�करण 3 – इस अनच् ु छे द क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह �कसी अस्थायी प्रव� ृ �व�ध को, उसक� समािप्त के �लए �नयत तार�ख से, या उस तार�ख से िजसको, य�द वह सं�वधान प्रव� ृ न हुआ होता तो, वह समाप्त हो जाती, आगे प्रव� ृ बनाए रखती है । स्पष्ट�करण 4 – �कसी प्रांत के राज्यपाल द्वारा भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 क� धारा 88 के अधीन प्रख्या�पत और इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले प्रव� ृ अध्यादे श, य�द तत्स्थानी राज्य के राज्यपाल द्वारा पहले ह� वापस नह�ं ले �लया गया है तो, ऐसे प्रारं भ के पश्चात ् अनच् ु छे द 382 के खंड (1) के अधीन कायर्रत उस राज्य क� �वधान सभा के प्रथम अ�धवेशन से छह सप्ताह क� समािप्त पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा और इस अनच् ु छे द क� �कसी बात का यह अथर् नह�ं लगाया जाएगा �क वह ऐसे �कसी अध्यादे श को उक्त अव�ध से आगे प्रव� ृ बनाए रखती है । 1 [372क. �व�धय� का अनक ु ू लन करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त – (1) सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत म� या उसके �कसी भाग म� प्रव� ृ �कसी �व�ध के उपबंध� को उस अ�ध�नयम द्वारा यथासंशो�धत इस सं�वधान के उपबंध� के अनरू ु प बनाने के प्रयोजन� के �लए, राष्ट्रप�त, 1 नवंबर, 1957 से पहले �कए गए आदे श∗ द्वारा, ऐसी �व�ध म� �नरसन के रूप म� या संशोधन के रूप म� ऐसे अनक ु ू लन और उपांतरण कर सकेगा जो आवश्यक या समीचीन ह� और यह उपबंध कर सकेगा �क वह �व�ध ऐसी तार�ख से जो आदे श म� �व�न�दर्ष्ट क� जाए, इस प्रकार �कए गए अनक ु ू लन� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगी और �कसी ऐसे अनक ु ू लन या उपांतरण को �कसी न्यायालय म� प्रश्नगत नह�ं �कया जाएगा । (2) खंड (1) क� कोई बात, �कसी स�म �वधान-मंडल या अन्य स�म प्रा�धकार� को, राष्ट्रप�त द्वारा उक्त खंड के अधीन अनक ु ू �लत या उपांत�रत �कसी �व�ध का �नरसन या संशोधन करने से रोकने वाल� नह�ं समझी जाएगी ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 23 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । ∗ दे �खए 1956 और 1957 के �व�ध अनुकूलन आदे श । भारत का सं�वधान 248 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) 373. �नवारक �नरोध म� रखे गए व्यिक्तय� के संबध ं म� कुछ दशाओं म� आदे श करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त – जब तक अनच् ु छे द 22 के खंड (7) के अधीन संसद् उपबंध नह�ं करती है या जब तक इस सं�वधान के प्रारं भ से एक वषर् समाप्त नह�ं हो जाता है, इनम� से जो भी पहले हो, तब तक उक्त अनच् ु छे द ऐसे प्रभावी होगा मानो उसके खंड (4) और खंड (7) म� संसद् के प्र�त �कसी �नद� श के स्थान पर राष्ट्रप�त के प्र�त �नद� श और उन खंड� म� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध के प्र�त �नद� श के स्थान पर राष्ट्रप�त द्वारा �कए गए आदे श के प्र�त �नद� श रख �दया गया हो । 374. फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� और फेडरल न्यायालय म� या सप�रषद् �हज मजेस्ट� के सम� लं�बत कायर्वा�हय� के बारे म� उपबंध--(1) इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले फेडरल न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और तब ऐसे वेतन� और भ�� तथा अनप ं म� ऐसे ु िस्थ�त छुट्ट� और प� शन के संबध अ�धकार� के हकदार ह�गे जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� के संबध ं म� अनच् ु छे द 125 के अधीन उपबं�धत ह� । (2) इस सं�वधान के प्रारं भ पर फेडरल न्यायालय म� लं�बत सभी �स�वल या दां�डक वाद, अपील और कायर्वा�हयां, उच्चतम न्यायालय को अंत�रत हो जाएंगी और उच्चतम न्यायालय को उनको सुनने और उनका अवधारण करने क� अ�धका�रता होगी और फेडरल न्यायालय द्वारा इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले सुनाए गए या �दए गए �नणर्य� और आदे श� का वह� बल और प्रभाव होगा मानो वे उच्चतम न्यायालय द्वारा सन ु ाए गए ह� या �दए गए ह� । (3) इस सं�वधान क� कोई बात भारत के राज्य�ेत्र के भीतर �कसी न्यायालय के �कसी �नणर्य, �डक्र� या आदे श क� या उसके संबध ं म� अपील� और या�चकाओं को �नपटाने के �लए स�परषद् �हज मजेस्ट� द्वारा अ�धका�रता के प्रयोग को वहां तक अ�व�धमान्य नह�ं करे गी जहां तक ऐसी अ�धका�रता का प्रयोग �व�ध द्वारा प्रा�धकृत है और ऐसी अपील या या�चका पर इस सं�वधान के प्रारं भ के पश्चात ् �कया गया सप�रषद् �हज मजेस्ट� का कोई आदे श सभी प्रयोजन� के �लए ऐसे प्रभावी होगा मानो वह उच्चतम न्यायालय द्वारा उस अ�धका�रता के प्रयोग म� जो ऐसे न्यायालय को इस सं�वधान द्वारा प्रदान क� गई है, �कया गया कोई आदे श या �डक्र� हो । (4) इस सं�वधान के प्रारं भ से ह� पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य म� �प्रवी क��सल के रूप म� कायर्रत प्रा�धकार� क� उस राज्य के भीतर �कसी न्यायालय के �कसी �नणर्य, �डक्र� या आदे श क� या उसके संबध ं म� अपील� और या�चकाओं को ग्रहण करने या �नपटाने क� अ�धका�रता समाप्त हो जाएगी और उक्त प्रा�धकार� के सम� ऐसे प्रारं भ पर लं�बत सभी अपील� और अन्य कायर्वा�हयां उच्चतम न्यायालय को अंत�रत कर द� जाएंगी और उसके द्वारा �नपटाई जाएंगी । (5) इस अनच् ु छे द के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए संसद् �व�ध द्वारा और उपबंध कर सकेगी । भारत का सं�वधान 249 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) 375. सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए न्यायालय�, प्रा�धका�रय� और अ�धका�रय� का कृत्य करते रहना – भारत के राज्य�ेत्र म� सवर्त्र �स�वल, दां�डक और राजस्व अ�धका�रता वाले सभी न्यायालय और सभी न्या�यक, कायर्पालक और अनस ु �चवीय प्रा�धकार� और अ�धकार� अपने-अपने कृत्य� को, इस सं�वधान के उपबंध� के अधीन रहते हुए, करते रह� गे । 376. उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� के बारे म� उपबंध–(1) अनच् ु छे द 217 के खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी प्रांत के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और तब ऐसे वेतन� और भ�� तथा अनप ं म� ऐसे ु िस्थ�त छुट्ट� और प� शन के संबध ं म� अनच् अ�धकार� के हकदार ह�गे जो ऐसे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� के संबध ु छे द 221 के अधीन उपबं�धत ह� । 1[ऐसा न्यायाधीश इस बात के होते हुए भी �क वह भारत का नाग�रक नह�ं है, ऐसे उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् अथवा �कसी अन्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश �नयक् ु त होने का पात्र होगा ।] (2) इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य के तत्स्थानी �कसी दे शी राज्य के उच्च न्यायालय के पद धारण करने वाले न्यायाधीश, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हो जाएंगे और अनच् ु छे द 217 के खंड (1) और खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, �कं तु उस अनच् ु छे द के खंड (1) के परं तक ु के अधीन रहते हुए, ऐसी अव�ध क� समािप्त तक पद धारण करते रह� गे जो राष्ट्रप�त आदे श द्वारा अवधा�रत करे । (3) इस अनच् ु छे द म� , “न्यायाधीश” पद के अंतगर्त कायर्कार� न्यायाधीश या अपर न्यायाधीश नह�ं है । 377. भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के बारे म� उपबंध – इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले पद धारण करने वाला भारत का महालेखापर��क, य�द वह अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु ा हो तो, ऐसे प्रारं भ पर भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क हो जाएगा और तब ऐसे वेतन� तथा अनप ं म� ऐसे ु िस्थ�त छुट्ट� और प� शन के संबध अ�धकार� का हकदार होगा जो भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के संबध ं म� अनच् ु छे द 148 के खंड (3) के अधीन उपबं�धत है और अपनी उस पदाव�ध क� समािप्त तक पद धारण करने का हकदार होगा जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले उसे लागू होने वाले उपबंध� के अधीन अवधा�रत क� जाए । 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 13 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया । भारत का सं�वधान 250 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) 378. लोक सेवा आयोग� के बारे म� उपबंध–(1) इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन के लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो ऐसे प्रारं भ पर संघ के लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएंगे और अनच् ु छे द 316 के खंड (1) और खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, �कं तु उस अनच् ु छे द के खंड (2) के परं तुक के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदाव�ध क� समािप्त तक पद धारण करते रह� गे जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले ऐसे सदस्य� को लागू �नयम� के अधीन अवधा�रत है । (2) इस स�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी प्रांत के लोक सेवा आयोग के या प्रांत� के समह ू क� आवश्यकताओं क� प�ू तर् करने वाले �कसी लोक सेवा आयोग के पद धारण करने वाले सदस्य, य�द वे अन्यथा �नवार्चन न कर चक ु े ह� तो, ऐसे प्रारं भ पर, यथािस्थ�त, तत्स्थानी राज्य के लोक सेवा आयोग के सदस्य या तत्स्थानी राज्य� क� आवश्यकताओं क� प�ू तर् करने वाले संयक् ु त राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य हो जाएंगे और अनच् ु छे द 316 के खंड (1) और खंड (2) म� �कसी बात के होते हुए भी, �कं तु उस अनच् ु छे द के खंड (2) के परंतुक के अधीन रहते हुए, अपनी उस पदाव�ध क� समािप्त तक पद धारण करते रह� गे जो ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले ऐसे सदस्य� को लागू �नयम� के अधीन अवधा�रत है । 1 [378क. आंध्र प्रदे श �वधान सभा क� अव�ध के बारे म� �वशेष उपबंध – अनच् ु छे द 172 म� �कसी बात के होते हुए भी, राज्य पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 28 और धारा 29 के उपबंध� के अधीन ग�ठत आंध्र प्रदे श राज्य क� �वधान सभा, य�द पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, उक्त धारा 29 म� �न�दर्ष्ट तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध तक बनी रहे गी, इससे अ�धक नह�ं और उक्त अव�ध क� समािप्त का प�रणाम उस �वधान सभा का �वघटन होगा ।] 379. [अन्तकार्ल�न संसद् तथा उसके अध्य� और उपाध्य� के बारे म� उपबंध ।]– सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च ू ी द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 380. [राष्ट्रप�त के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 381. [राष्ट्रप�त क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 382. [पहल� अनस ु ूची के भाग क म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 383. [प्रान्त� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 24 द्वारा (1-11-1956 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 251 (भाग 21—अस्थायी, संक्रमणकाल�न और �वशेष उपबंध) 384. [राज्यपाल� क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च ू ी द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 385. [पहल� अनस च ी क े भाग ख म� के राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� के ु ू बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 386. [पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� के राज्य� क� मं�त्र-प�रषद् ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च ू ी द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 387. [कुछ �नवार्चन� के प�रयोजन� के �लए जनसंख्या के �नधार्रण के बारे म� �वशेष उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च ू ी द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 388. [अन्तकार्ल�न संसद् तथा राज्य� के अन्तकार्ल�न �वधान-मंडल� म� आकिस्मक �रिक्तय� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 389. [डोमी�नयन �वधान-मंडल तथा प्रान्त� और दे शी राज्य� के �वधान-मंडल� म� लं�बत �वधेयक� के बारे म� उपबंध ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 390. [इस सं�वधान के प्रारं भ और 1950 के 31 माचर् के बीच प्राप्त या उत्थापत या व्यय �कया हुआ धन ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु च ू ी द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 391. [कुछ आकिस्मकताओं म� पहल� और चौथी अनस ु ूची का संशोधन करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त ।]–सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनस ु ूची द्वारा (1-11-1956 से) लोप �कया गया । 392. क�ठनाइय� को दरू करने क� राष्ट्रप�त क� शिक्त–(1) राष्ट्रप�त, �कन्ह�ं ऐसी क�ठनाइय� को, जो �व�शष्टतया भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 के उपबंध� से इस ं म� ह�, दरू करने के प्रयोजन के �लए आदे श सं�वधान के उपबंध� को संक्रमण के संबध द्वारा �नदे श दे सकेगा �क यह सं�वधान उस आदे श म� �व�न�दर्ष्ट अव�ध के दौरान उपांतरण, प�रवधर्न या लोप के रूप म� ऐसे अनक ु ू लन� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह आवश्यक या समीचीन समझे : परं तु ऐसा कोई आदे श भाग 5 के अध्याय 2 के अधीन सम्यक् रूप से ग�ठत संसद् के प्रथम अ�धवेशन के पश्चात ् नह�ं �कया जाएगा । (2) खंड (1) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श संसद् के सम� रखा जाएगा । (3) इस अनच् ु छे द, अनच् ु छे द 324, अनच् ु छे द 367 के खंड (3) और अनच् ु छे द 391 द्वारा राष्ट्रप�त को प्रद� शिक्तयां, इस सं�वधान के प्रारं भ से पहले, भारत डो�म�नयन के गवनर्र जनरल द्वारा प्रयोक्तव्य ह�गी । भाग 22 सं��प्त नाम, प्रारं भ, 1[�हंद� म� प्रा�धकृत पाठ] और �नरसन 393. सं��प्त नाम – इस सं�वधान का सं��प्त नाम भारत का सं�वधान है । 394. प्रारं भ – यह अनच् ु छे द और अनच् ु छे द 5, 6, 7, 8, 9, 60, 324, 366, 367, 379, 380, 388, 391, 392 और 393 तरु न्त प्रव� ृ ह�गे और इस सं�वधान के शेष उपबंध 26 जनवर�, 1950 को प्रव� ह�गे जो �दन इस सं � वधान म� इस सं�वधान के प्रारं भ के रूप म� ृ �न�दर् ष्ट �कया गया है । 2 [394क. �हंद� भाषा म� प्रा�धकृत पाठ–(1) राष्ट्रप�त— (क) इस सं�वधान के �हंद� भाषा म� अनव ु ाद को, िजस पर सं�वधान सभा के सदस्य� ने हस्ता�र �कए थे, ऐसे उपांतरण� के साथ जो उसे क�द्र�य अ�ध�नयम� के �हंद� भाषा म� प्रा�धकृत पाठ� म� अपनाई गई भाषा, शैल� और शब्दावल� के अनरू ु प बनाने के �लए आवश्यक ह� , और ऐसे प्रकाशन के पव र् �कए गए इस सं � वधान क े ऐसे ू सभी संशोधन� को उसम� सिम्म�लत करते हुए, तथा (ख) अंग्रेजी भाषा म� �कए गए इस सं�वधान के प्रत्येक संशोधन के �हंद� भाषा म� अनुवाद को, अपने प्रा�धकार से प्रका�शत कराएगा । (2) खंड (1) के अधीन प्रका�शत इस सं�वधान और इसके प्रत्येक संशोधन के अनुवाद का वह� अथर् लगाया जाएगा जो उसके मूल का है और य�द ऐसे अनव ु ाद के �कसी भाग का इस प्रकार अथर् लगाने म� कोई क�ठनाई उत्पन्न होती है तो राष्ट्रप�त उसका उपयुक्त पन ु र��ण कराएगा । (3) इस सं�वधान का और इसके प्रत्येक संशोधन का इस अनच् ु छे द के अधीन प्रका�शत अनव ु ाद, सभी प्रयोजन� के �लए, उसका �हंद� भाषा म� प्रा�धकृत पाठ समझा जाएगा । 395. �नरसन – भारत स्वतंत्रता अ�ध�नयम, 1947 और भारत शासन अ�ध�नयम, 1935 का, पश्चात ् क�थत अ�ध�नयम क�, संशोधक या अनुपरू क सभी अ�ध�नय�म�तय� के साथ, िजनके अंतगर्त �प्रवी क��सल अ�धका�रता उत्सादन अ�ध�नयम, 1949 नह�ं है , इसके द्वारा �नरसन �कया जाता है । 1. सं�वधान (अठावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 2 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (अठावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 3 द्वारा (9-12-1987 से) अंतःस्था�पत । 252 अनस ु ूची (अनुच्छे द 1 और अनुच्छे द 4) 1[पहल� 1. राज्य नाम 1. आंध्र प्रदे श राज्य�ेत्र 2 [वे राज्य�ेत्र जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� , राज्य पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� , आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसच ू ी म� और आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 क� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� 3 द्�वतीय अनुसच ू ी म� [तथा आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 म� ] �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 2. असम वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले असम प्रांत, खासी राज्य� और असम जनजा�त �ेत्र� म� समा�वष्ट थे, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो असम (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1951 क� अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट ह� 4 [और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ] 5[और वे राज्य�ेत्र] भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� [जो पव ू ��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 5, धारा 6 और धारा 7 म� 5 �व�न�दर् ष्ट ह� । 6[और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह�], जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के खंड (क) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबंध सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनुसूची के भाग 1 म� �न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनुसूची के भाग 1 म� �न�दर् ष्ट ह� ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (1-11-1956 से)पहल� अनुसूची के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से) पूवव र् त� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत । 4. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) जोड़ा गया । 5. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) जोड़ा गया । 6. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया । उक्त अ�ध�नयम के पाठ के �लए प�र�शष्ट 1 द� खे । 253 254 भारत का सं�वधान (पहल� अनस ु ूची) नाम 3. �बहार राज्य�ेत्र 1 [वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो �बहार प्रांत म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे ह� और वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (क) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार और पिश्चमी बंगाल (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो प्रथम व�णर्त अ�ध�नयम क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह� 2[और वे राज्य�ेत्र जो �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]] 3 [4. गुजरात 5. केरल वे राज्य�ेत्र जो मंब ु ई पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �न�दर् ष्ट ह� ।] वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� । 6. मध्य प्रदे श वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 9 क� उपधारा (1) म� 4 [तथा राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट ह� 5 [�कन्तु इनके अंतगर्त मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र नह�ं ह� ]।] 1. �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 24) क� धारा 4 द्वारा (10-6-1970 से) पूवव र् त� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) जोड़ा गया । 3. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 4 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1959 से) अंतःस्था�पत । 5. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) अन्तःस्था�पत । भारत का सं�वधान 255 (पहल� अनस ु ूची) नाम 1 [7. त�मलनाडु] राज्य�ेत्र वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो मद्रास प्रांत म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे ह� और वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 4 म� 2 [तथा आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� द्�वतीय अनुसूची म� ] �व�न�दर् ष्ट ह�,] �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो आंध्र राज्य अ�ध�नयम, 1953 क� धारा 3 क� उपधारा (1) और धारा 4 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और 3[वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 5 क� उपधारा (1) के खंड (ख), धारा 6 और धारा 7 क� उपधारा (1) के खंड (घ) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 4 [8. महाराष्ट्र वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 8 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो मंब ु ई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �न�दर् ष्ट ह� ।] [ [9.] कनार्टक] 5 6 वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगठर् न अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 7 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, 7[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो आंध्र प्रदे श और मैसरू (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 क� अनुसच ू ी म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 1. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “7. मद्रास” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56 ) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से) अंतःस्था�पत । 3. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 6 द्वारा (1-4-1960 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत । 5. मैसूर राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “9. मैसूर” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 7. आंध्र प्रदे श और मैसूर (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 36) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1968 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 256 (पहल� अनस ु ूची) नाम 1 [10.] 2[ओ�डशा] राज्य�ेत्र वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारम्भ से ठ�क पहले या तो उड़ीसा प्रांत म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे ह� । 1 [11.] पंजाब वे राज्य�ेत्र जो राज्य पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 11 म� �व�न�दर् ष्ट ह� 3[और वे राज्य�ेत्र जो अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन) अ�ध�नयम, 1960 क� प्रथम अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट ह�,] 4[�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट ह� ] 5[और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 3 क� उपधारा (1), धारा 4 और धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 1 [12.] राजस्थान वे राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 10 म� �व�न�दर् ष्ट ह�, [�कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 क� प्रथम अनुसूची 6 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 2. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 6 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. अिजर्त राज्य�ेत्र (�वलयन) अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 64) क� धारा 4 द्वारा (17-1-1961 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 द्वारा (17-1-1961 से) जोड़ा गया । 5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत । 6. राजस्थान और मध्य प्रदे श (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 47) क� धारा 4 द्वारा (1-10-1959 से) अंतःस्था�पत । 257 भारत का सं�वधान (पहल� अनस ु ूची) नाम 1 राज्य�ेत्र [13.] उ�र प्रदे श [वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो संयुक्त प्रांत नाम से �ात प्रांत म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो 2 वे उस प्रांत के भाग रहे ह�, वे राज्य�ेत्र जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो �बहार और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 क� धारा 3 क� उपधारा (1) के खंड (क) 3 [तथा उ�र प्रदे श पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3] म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (क) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 1 [14.] बंगाल पिश्चमी वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले या तो पिश्चमी बंगाल प्रांत म� समा�वष्ट थे या इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे उस प्रांत के भाग रहे ह� और चंद्रनगर (�वलयन) अ�ध�नयम, 1954 क� धारा 2 के खंड (ग) म� यथा प�रभा�षत चंद्रनगर का राज्य�ेत्र और वे राज्य�ेत्र भी जो �बहार और पिश्चमी बंगाल (राज्य�ेत्र अंतरण) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� 4 [और वे राज्य�ेत्र भी, जो पहल� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् ष्ट ह� �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के खंड (ग) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबंध सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र� और दस ू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनुसूची के भाग 3 म� �न�दर् ष्ट ह� ।] 1. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 2. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से) “13. उ�र प्रदे श” के सामने क� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत । 4. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया । उक्त अ�ध�नयम के पाठ के �लए प�र�शष्ट 1 द� खे । भारत का सं�वधान 258 (पहल� अनस ु ूची) नाम राज्य�ेत्र [ [** * [ [15.] नागाल�ड वे राज्य�ेत्र जो नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 क� उपधारा [ [16.] ह�रयाणा 6 [वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 3 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� और वे राज्य�ेत्र जो ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम,1979 क� धारा 4 क� उपधारा (1) के 1 2 3 4 3 5 * *]] (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] खंड (क) म� �व�न�दर् ष्ट ह�, �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह� जो उस अ�ध�नयम क� धारा 4 क� उपधारा (1) के खंड (ख) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।]] 3 7 [ [17.] �हमाचल प्रदे श [ [18. म�णपुर 3 8 वे राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार प्रशा�सत थे मानो वे �हमाचल प्रदे श और �बलासपुर के नाम से �ात मुख्य आयुक्त वाले प्रांत रहे ह� और वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पन ु गर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 5 क� उपधारा (1) म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार प्रशा�सत था मानो वह म�णपुर के नाम से �ात मुख्य आयुक्त वाला प्रांत रहा हो ।] 1. ** जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर से संब�धत प्र�विष्ट 15 को हटा �दया गया । 2. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 4 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट 8 से 14 तक को प्र�विष्ट 9 से 15 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 3. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 16 से प्र�विष्ट 29 को प्र�विष्ट 15 से प्र�विष्ट 28 के रूप म� पुनःसंखयां�कत �कया गया । 4. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 4 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत । 5. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत और तत्पश्चात ् ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से) उसम� क� प्र�विष्ट को संशो�धत �कया गया । 6. ह�रयाणा और उ�र प्रदे श (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का 31) क� धारा 5 द्वारा (15-9-1983 से) “17. ह�रयाणा” के सामने क� प्र�विष्ट के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 7. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) अंतःस्था�पत । 8. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) अंतःस्था�पत । 259 भारत का सं�वधान (पहल� अनस ु ूची) नाम राज्य�ेत्र [19.] �त्रपुरा वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले इस प्रकार प्रशा�सत था मानो वह �त्रपुरा के नाम से �ात मुख्य आयुक्त वाला प्रांत रहा हो 2[और वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के खंड (घ) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी जहां तक उनका संबंध सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र� से है , सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनुसूची के भाग 2 म� �न�दर् ष्ट ह� ।] [20. मेघालय वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� �व�न�दर् ष्ट ह� 2[और वे राज्य�ेत्र, जो पहल� अनुसच ू ी के भाग 1 ह� �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनस ु च ू ी के भाग 2 ह� ।] [ [21. �सिक्कम वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 के प्रारं भ से ठ�क पहले �सिक्कम म� समा�वष्ट थे ।] [ [22. �मजोरम वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 6 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] [ [23. अरुणाचल प्रदे श वे राज्य�ेत्र जो पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 7 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] [ [24 गोवा वे राज्य�ेत्र जो गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 क� 1 1 1 3 1 4 1 5 1 6 धारा 5 म� म� �न�दर् ष्ट (एक सौवां म� �न�दर् ष्ट धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 1. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 16 से प्र�विष्ट 29 को प्र�विष्ट 15 से प्र�विष्ट 28 के रूप म� पुनःसंखयां�कत �कया गया । 2. सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� धारा 3 द्वारा (31-7-2015 से) जोड़ा गया । उक्त अ�ध�नयम के पाठ के �लए प�र�शष्ट 1 द� खे । 3. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 2 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत । 4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । 5. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । 6. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्था�पत । 260 भारत का सं�वधान (पहल� अनस ु ूची) नाम राज्य�ेत्र [ [25.] छ�ीसगढ़ मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट राज्य�ेत्र ।] [ [26. 4[उ�राखंड] वे राज्य�ेत्र जो उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] [ [27. झारखंड वे राज्य�ेत्र जो �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] [ [28. तेलंगाना वे राज्य�ेत्र जो आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 1 2 1 3 1 5 1 6 2. संघ राज्य�ेत्र नाम �वस्तार 1. �दल्ल� 7 [* 8 [2.] अंदमान और �नकोबार द्वीप वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले �दल्ल� के मुख्य आयक् ु त वाले प्रांत म� समा�वष्ट था । * * * *] वह राज्य�ेत्र जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले अंदमान और �नकोबार द्वीप के मुख्य आयुक्त वाले प्रांत म� समा�वष्ट था । 1. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 16 से प्र�विष्ट 29 को प्र�विष्ट 15 से प्र�विष्ट 28 के रूप म� पुनःसंखयां�कत �कया गया । 2. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 5 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत । 3. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 5 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत । 4. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 4 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” शब्द के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 5 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत । 6. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 10 द्वारा (2-6-2014 से) अंतःस्था�पत । 7. �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 4 द्वारा (25-1-1971 से) “�हमाचल प्रदे श” से संबं�धत प्र�विष्ट 2 का लोप �कया गया और प्र�विष्ट 3 से प्र�विष्ट 10 तक को प्र�विष्ट 2 से प्र�विष्ट 9 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया तथा तत्पश्चात ् पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) म�णपुर और �त्रपुरा आ�द से संबं�धत प्र�विष्ट 2 और प्र�विष्ट 3 का लोप �कया गया और प्र�विष्ट 2 से प्र�विष्ट 7 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 8. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) प्र�विष्ट 4 से 9 तक को क्रमशः प्र�विष्ट 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 261 भारत का सं�वधान (पहल� अनस ु ूची) नाम 1 [3.] 2 [ल�द्वीप] �वस्तार वह राज्य�ेत्र जो राज्य पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 6 म� �व�न�दर् ष्ट है । [ [4.] दादरा और नागर 3 1 वह राज्य�ेत्र जो 11 अगस्त, 1961 से ठ�क पहले स्वतंत्र दादरा हवेल� और दमण और और नागर हवेल� म� समा�वष्ट था तथा वे राज्य�ेत्र जो गोवा, दमण द�व और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 क� धारा 4 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 4 1 [ [*] * [ [6.] 6[पुडुचेर�] वे राज्य�ेत्र जो 16 अगस्त, 1962 से ठ�क पहले भारत म� 5 1 * *] पां�डचेर�, का�रकल, माह� और यनम के नाम से �ात फ्रांसीसी बिस्तय� म� समा�वष्ट थे ।] [ [7.] चंडीगढ़ 7 1 वे राज्य�ेत्र जो पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 क� धारा 4 म� �व�न�दर् ष्ट ह� ।] 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 9 द्वारा (21-1-1972 से) क्रमशः प्र�विष्ट 4 से 9 तक को प्र�विष्ट 2 से 7 तक के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 2. लक्काद�व, �म�नकोय और अमीनद�वी द्वीप (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 34) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “लक्काद�व, �म�नकोय, अमीनद�वी द्वीप” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. दादरा और नागर हवेल� तथा दमण और द�व (संघ राज्य�ेत्र� का �वलयन) अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 44) क� धारा 5 द्वारा (19-12-2919 से) प्र�विष्ट 4 और प्र�विष्ट 5 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । सं�वधान (दसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 क� धारा 2 द्वारा (11-8-1961 से) दादरा और नागर हवेल� से संबं�धत प्र�विष्ट 4 अन्तःस्था�पत क� गई थी । 4. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 5 द्वारा (30-5-1987 से) प्र�विष्ट 5 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (चौदहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1962 क� धारा 3 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत । 6. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 5 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 7. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 7 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत । 262 भारत का सं�वधान (पहल� अनस ु ूची) नाम 1 [* 1 [* [ [8.] जम्मू-कश्मीर 2 1 �वस्तार * * * *] * *] वे राज्य�ेत्र, जो जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 4 म� �व�न�दर् ष्ट है । 9. लद्दाख वे राज्य�ेत्र, जो जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 क� धारा 3 म� �व�न�दर् ष्ट है ।] 1. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 4 द्वारा (15-4-1987 से) �मजोरम संबंधी प्र�विष्ट 8 का लोप �कया गया और अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�विष्ट 9 को प्र�विष्ट 8 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया और अरुणाचल प्रदे श संबंधी प्र�विष्ट 8 का अरुणाचल प्रदे श अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 4 द्वारा (20-2-1987 से) लोप �कया गया । 2. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 6 द्वारा (31-10-2019 से) अन्तःस्था�पत । दस ू र� अनुसूची [अनच् ु छे द 59(3), 65(3), 75(6), 97, 125, 148(3), 158(3), 164(5), 186 और 221] भाग क राष्ट्रप�त और *** राज्य� के राज्यपाल� के बारे म� उपबंध 1 1. राष्ट्रप�त और 1*** राज्य� के राज्यपाल� को प्र�त मास �नम्न�ल�खत उपलिब्धय� का संदाय �कया जाएगा, अथार्त ् :– 10,000 रुपए * । राष्ट्रप�त 1 5,500 रुपए **। राज्य का राज्यपाल 2. राष्ट्रप�त और 2*** राज्य� के राज्यपाल� को ऐसे भ�� का भी संदाय �कया जाएगा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले क्रमशः भारत डो�म�नयन के गवनर्र जनरल को तथा तत्स्थानी प्रांत� के गवनर्र� को संदेय थे । 3. राष्ट्रप�त और 3[राज्य�] के राज्यपाल अपनी-अपनी संपण ू र् पदाव�ध म� ऐसे �वशेषा�धकार� के हकदार ह�गे िजनके इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले क्रमशः गवनर्र जनरल और तत्स्थानी प्रांत� के गवनर्र हकदार थे । 4. जब उपराष्ट्रप�त या कोई अन्य व्यिक्त राष्ट्रप�त के कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है या उसके रूप म� कायर् कर रहा है या कोई व्यिक्त राज्यपाल के कृत्य� का �नवर्हन कर रहा है तब वह ऐसी उपलिब्धय�, भ�� और �वशेषा�धकार� का हकदार होगा िजनका, यथािस्थ�त, वह राष्ट्रप�त या राज्यपाल हकदार है िजसके कृत्य� का वह �नवर्हन करता है या, यथािस्थ�त, िजसके रूप म� वह कायर् करता है । 4 * 1. * ** * * * सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क म� �व�न�दर् ष्ट” शब्द� और अ�र का लोप �कया गया । �व� अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 13) क� धारा 137 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “पांच लाख रुपए” है । �व� अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 13) क� धारा 161 द्वारा (1-1-2016 से) अब यह “तीन लाख पचास हजार रुपए” है । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसे �व�न�दर् ष्ट” 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “ऐसे राज्य�” के 4. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) भाग ख का शब्द� का लोप �कया गया । स्थान पर प्र�तस्था�पत । लोप �कया गया । 263 भारत का सं�वधान 264 (दस ू र� अनस ु च ू ी) भाग ग लोक सभा के अध्य� और उपाध्य� के तथा राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त के तथा 1*** 2[राज्य] क� �वधान सभा के अध्य� और उपाध्य� के तथा �वधान प�रषद् के सभाप�त और उपसभाप�त के बारे म� उपबंध 7. लोक सभा के अध्य� और राज्य सभा के सभाप�त को ऐसे वेतन और भ�� का संदाय �कया जाएगा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन क� सं�वधान सभा के अध्य� को संदेय थे तथा लोक सभा के उपाध्य� को और राज्य सभा के उपसभाप�त को ऐसे वेतन और भ�� का संदाय �कया जाएगा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत डो�म�नयन क� सं�वधान सभा के उपाध्य� को संदेय थे । 8. 3*** राज्य क� �वधान सभा के अध्य� और उपाध्य� को तथा 4[राज्य] क� �वधान प�रषद् के सभाप�त और उपसभाप�त को ऐसे वेतन और भ�� का संदाय �कया जाएगा जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले क्रमशः तत्स्थानी प्रांत क� �वधान सभा के अध्य� और उपाध्य� को तथा �वधान प�रषद् के सभाप�त और उपसभाप�त को संदेय थे और जहां ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले तत्स्थानी प्रांत क� कोई �वधान प�रषद् नह�ं थी वहां उस राज्य क� �वधान प�रषद् के सभाप�त और उपसभाप�त को ऐसे वेतन और भ�� का संदाय �कया जाएगा जो उस राज्य का राज्यपाल अवधा�रत करे । 1. सं�वधान (सातवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “�कसी ऐसे 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची 4. के भाग क म� के �कसी राज्य का” शब्द� और अ�र का लोप �कया गया । राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । के भाग क म� �व�न�दर् ष्ट �कसी राज्य का” शब्द� और अ�र का लोप �कया गया । सं�वधान (सातवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “कोई ऐसा राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 265 (दस ू र� अनस ु च ू ी) भाग घ उच्चतम न्यायालय और 1*** उच्च न्यायालय� के न्यायाधीश� के बारे म� उपबंध 9. 2[(1) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� को वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के �लए प्र�त मास �नम्न�ल�खत दर से वेतन का संदाय �कया जाएगा, अथार्त ् : – 3 [10,000 रुपए] ∗ मुख्य न्यायमू�तर् 4 [9,000 रुपए:] ** कोई अन्य न्यायाधीश परं तु य�द उच्चतम न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी �नयिु क्त के समय र् त� सरकार� म� से �कसी क� अथवा राज्य क� सरकार भारत सरकार क� या उसक� पव ू व क� या उसक� पव र् त� सरकार� म� से �कसी क� पव ं म� (�नःशक्तता या ू व ू र् सेवा के संबध ��त प�शन से �भन्न) कोई प�शन प्राप्त कर रहा है तो उच्चतम न्यायालय म� सेवा के �लए उसके वेतन म� से 5[�नम्न�ल�खत को घटा �दया जाएगा, अथार्त ् : – (क) उस प� शन क� रकम ; और ं म� अपने (ख) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव ू र् सेवा के संबध को दे य प� शन के एक भाग के बदले उसका संरा�शत मूल्य प्राप्त �कया है तो प� शन के उस भाग क� रकम ; और (ग) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव ं म� �नव�ृ �ू र् सेवा के संबध उपदान प्राप्त �कया है तो उस उपदान के समतुल्य प� शन ।] (2) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश, �बना �कराया �दए, शासक�य �नवास के उपयोग का हकदार होगा । (3) इस पैरा के उपपैरा (2) क� कोई बात उस न्यायाधीश को, जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले– 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(क) द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क म� के राज्य� म� ” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(ख) द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “5,000 रुपए” के स्थान पर ∗ “10,000 रूपए” प्र�तस्था�पत । उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 10) क� धारा 6 के अनुसार (1-1-2016 से) अब यह “दो लाख अस्सी हजार रुपए” है । 4. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । ** उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 10) क� धारा 6 के अनुसार (1-1-2016 से) अब यह “दो लाख पचास हजार रुपए” है । 5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25 द्वारा (1-11-1956 से) “उस प� शन क� रा�श घटा द� जाएगी” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 266 (दस ू र� अनस ु च ू ी) (क) फेडरल न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 374 के खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय का मख् ु य न्यायमू�तर् बन गया है, या (ख) फेडरल न्यायालय के �कसी अन्य न्यायाधीश के रूप म� पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त खंड के अधीन उच्चतम न्यायालय का (मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न) न्यायाधीश बन गया है, उस अव�ध म� , िजसम� वह ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश के रूप म� पद धारण करता है, लागू नह�ं होगी और ऐसा प्रत्येक न्यायाधीश, जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश बन जाता है, यथािस्थ�त, ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश के जो इस प्रकार उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश बन जाता है, यथािस्थ�त, ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश के रूप म� वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के �लए इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट वेतन के अ�त�रक्त �वशेष वेतन के रूप म� ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले प्राप्त कर रहा था । (4) उच्चतम न्यायालय का प्रत्येक न्यायाधीश भारत के राज्य�ेत्र के भीतर अपने कतर्व्य पालन म� क� गई यात्रा म� उपगत व्यय क� प्र�तप�ू तर् के �लए ऐसे यिु क्तयक् ु त भ�े प्राप्त करे गा और यात्रा संबध ं ी उसे ऐसी यिु क्तयक् ु त सु�वधाएं द� जाएंगी जो राष्ट्रप�त समय-समय पर �व�हत करे । (5) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� क� अनप ु िस्थ�त छुट्ट� के (िजसके अंतगर्त छुट्ट� भ�े ह�) और प� शन के संबध ं म� अ�धकार उन उपबंध� से शा�सत ह�गे जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले फेडरल न्यायालय के न्यायाधीश� को लागू थे । 10. 1[(1) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� को वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के �लए प्र�त मास �नम्न�ल�खत दर से वेतन का संदाय �कया जाएगा, अथार्त ् : – 2 [9,000 रुपए] ∗ मुख्य न्यायमू�तर् 3 [8,000 रुपए :] ∗∗ कोई अन्य न्यायाधीश 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(ग)(i) द्वारा (1-11-1956 से) उपपैरा (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “4,000 रुपए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । ∗ उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वे तन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 10) क� धारा 4 के अनुसार (1-1-2016 भूतल�ी प्रभाव से) अब यह “दो लाख पचास हजार रुपए” है । 3. सं�वधान (चौवनवां सशोधन) अ�ध�नयम, 1986 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1986 से) “3,500 रुपए” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । ∗∗ उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 10) क� धारा 2 के अनुसार (1-1-2016 भूतल�ी प्रभाव से) अब यह “दो लाख पच्चीस हजार रुपए” है । भारत का सं�वधान 267 (दस ू र� अनस ु च ू ी) परं तु य�द �कसी उच्च न्यायालय का कोई न्यायाधीश अपनी �नयिु क्त के समय भारत सरकार क� या उसक� पव र् त� सरकार� म� से �कसी क� अथवा राज्य क� सरकार ू व क� या उसक� पव र् त� सरकार� म� से �कसी क� पव ं म� (�नःशक्तता या ू व ू र् सेवा के संबध ��त प� शन से �भन्न) कोई प�शन प्राप्त कर रहा है तो उच्च न्यायालय म� सेवा के �लए उसके वेतन म� से �नम्न�ल�खत को घटा �दया जाएगा, अथार्त ् : – (क) उस प� शन क� रकम ; और (ख) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव ं म� अपने ू र् सेवा के संबध को दे य प� शन के एक भाग के बदले म� उसका संरा�शत मूल्य प्राप्त �कया है तो प� शन के उस भाग क� रकम ; और (ग) य�द उसने ऐसी �नयिु क्त से पहले, ऐसी पव ं म� �नव�ृ �ू र् सेवा के संबध उपदान प्राप्त �कया है तो उस उपदान के समतल् ु य प� शन ।] (2) ऐसा प्रत्येक व्यिक्त, जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले– (क) �कसी प्रांत के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 376 के खंड (1) के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् बन गया है, या (ख) �कसी प्रांत के उच्च न्यायालय के �कसी अन्य न्यायाधीश के रूप म� पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त खंड के अधीन तत्स्थानी राज्य के उच्च न्यायालय का (मुख्य न्यायमू�तर् से �भन्न) न्यायाधीश बन गया है, य�द वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट दर से उच्चतर दर पर वेतन प्राप्त कर रहा था तो, यथािस्थ�त, ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् या अन्य न्यायाधीश के रूप म� वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के �लए इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट वेतन के अ�त�रक्त �वशेष वेतन के रूप म� ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले प्राप्त कर रहा था । 1 [(3) ऐसा कोई व्यिक्त, जो सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 के प्रारं भ से ठ�क पहले, पहल� अनस ु ूची के भाग ख म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर उक्त अ�ध�नयम द्वारा यथासंशो�धत उक्त अनस ु च ू ी म� �व�न�दर्ष्ट �कसी राज्य के उच्च न्यायालय का मख् ु य न्यायमू�तर् बन गया है, य�द वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले अपने वेतन के अ�त�रक्त भ�े के रूप म� कोई रकम प्राप्त कर रहा था तो, ऐसे मुख्य न्यायमू�तर् के रूप म� वास्त�वक सेवा म� �बताए समय के �लए इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट वेतन के अ�त�रक्त भ�े के रूप म� वह� रकम प्राप्त करने का हकदार होगा ।] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 25(ग)(ii) द्वारा (1-11-1956 से) उपपैरा (3) और उपपैरा (4) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 268 भारत का सं�वधान (दस ू र� अनस ु च ू ी) 11. इस भाग म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,– (क) “मुख्य न्यायमू�तर्” पद के अंतगर्त कायर्कार� मुख्य न्यायमू�तर् है और “न्यायाधीश” पद के अंतगर्त तद्र्थ न्यायाधीश है ; (ख) “वास्त�वक सेवा” के अंतगर्त– (i) न्यायाधीश द्वारा न्यायाधीश के रूप म� कतर्व्य पालन म� या ऐसे अन्य कृत्य� के पालन म� , िजनका राष्ट्रप�त के अनरु ोध पर उसने �नवर्हन करने का भार अपने ऊपर �लया है, �बताया गया समय है ; (ii) उस समय को छोड़कर िजसम� अनप ु िस्थत है, द�घार्वकाश है ; और न्यायाधीश छुट्ट� लेकर (iii) उच्च न्यायालय से उच्चतम न्यायालय को या एक उच्च न्यायालय से दस ू रे उच्च न्यायालय को अंतरण पर जाने पर पदग्रहण-काल है । भाग ङ भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क के बारे म� उपबंध 12. (1) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क को ∗चार हजार रुपए प्र�तमास क� दर से वेतन का संदाय �कया जाएगा । (2) ऐसा कोई व्यिक्त, जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के महालेखापर��क के रूप म� पद धारण कर रहा था और जो ऐसे प्रारं भ पर अनच् ु छे द 377 के अधीन भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क बन गया है, इस पैरा के उपपैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट वेतन के अ�त�रक्त �वशेष वेतन के रूप म� ऐसी रकम प्राप्त करने का हकदार होगा जो इस प्रकार �व�न�दर्ष्ट वेतन और ऐसे वेतन के अंतर के बराबर है जो वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के महालेखापर��क के रूप म� प्राप्त कर रहा था । (3) भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क क� अनप ु िस्थ�त छुट्ट� और प� शन तथा अन्य सेवा-शत� के संबध ं म� अ�धकार उन उपबंध� से, यथािस्थ�त, शा�सत ह�गे या शा�सत होते रह� गे जो इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले भारत के महालेखापर��क को लागू थे और उन उपबंध� म� गवनर्र जनरल के प्र�त सभी �नद� श� का यह अथर् लगाया जाएगा �क वे राष्ट्रप�त के प्र�त �नद� श ह� । ∗ �नयंत्रक-महालेखापर��क (कतर्व्य, शिक्तयां तथा सेवा क� शत�) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 56) क� धारा 3 द्वारा भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� के बराबर वेतन का संदाय �कया जाएगा । उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश (वेतन और सेवा शतर्) संशोधन अ�ध�नयम, 2018 (2018 का 10) क� धारा 6 द्वारा (1-1-2016 भूतल�ी प्रभाव से) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� का वेतन “दो लाख पचास हजार रुपए” प्र�त मास तक बढ़ा �दया गया है । तीसर� अनस ु च ू ी * [अनच् ु छे द 75(4), 99, 124(6), 148(2), 164(3), 188 और 219] शपथ या प्र�त�ान के प्ररूप 1 संघ के मंत्री के �लए पद क� शपथ का प्ररूप :– “म�, अमक ु , ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखूंगा, 1[म� भारत क� प्रभुता और अखंडता अ�ुण्ण रखूंगा,] म� संघ के मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� का श्रद्धापव र् और शुद्ध ू क अंतःकरण से �नवर्हन करूंगा तथा म� भय या प�पात, अनरु ाग या द्वेष के �बना, सभी प्रकार के लोग� के प्र�त सं�वधान और �व�ध के अनस ु ार न्याय करूंगा ।” 2 संघ के मंत्री के �लए गोपनीयता क� शपथ का प्ररूप :– “म�, अमुक, ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क जो �वषय संघ के मंत्री के रूप म� मेरे �वचार के �लए लाया जाएगा अथवा मुझे �ात होगा उसे �कसी व्यिक्त या व्यिक्तय� को, तब के �सवाय जब�क ऐसे मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� के सम्यक् �नवर्हन के �लए ऐसा करना अपे��त हो, म� प्रत्य� अथवा अप्रत्य� रूप से संसू�चत या प्रकट नह�ं करूंगा ।” 2 [3 क संसद् के �लए �नवार्चन के �लए अभ्यथ� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप : – * अनुच्छे द 84(क) और अनुच्छे द 173(क) भी दे �खए । 1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) प्ररूप 3 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 269 270 भारत का सं�वधान (तीसर� अनस ु च ू ी) “म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) म� स्थान भरने के �लए अभ्यथ� के रूप म� नाम�नद� �शत हुआ हूं के सं�वधान के प्र�त ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखंग ू ा, और म� भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखग ूं ा ।” ख संसद् के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :– “म�, अमुक, जो राज्य सभा (या लोक सभा) का सदस्य �नवार्�चत (या नाम�नद� �शत) हुआ हूं ईश्वर क� शपथ लेता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग ूं ा, म� भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखूंगा तथा िजस पद को म� ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव र् ू क �नवर्हन करूंगा ।”] 4 उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश� और भारत के �नयंत्रक-महालेखापर��क द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :– “म�, अमुक, जो भारत के उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् (या न्यायाधीश) (या भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क) �नयक् ु त हुआ हूं, ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग ूं ा, [म� भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखग ूं ा,] तथा म� सम्यक् प्रकार से और 1 श्रद्धापव र् तथा अपनी परू � योग्यता, �ान और �ववेक से अपने पद के कतर्व्य� का भय ू क या प�पात, अनरु ाग या द्वेष के �बना पालन करूंगा तथा म� सं�वधान और �व�धय� क� मयार्दा बनाए रखूंगा ।” 1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । 271 भारत का सं�वधान (तीसर� अनस ु च ू ी) 5 �कसी राज्य के मंत्री के �लए पद क� शपथ का प्ररूप :– “म�, अमुक, ईश्वर क� शपथ लेता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग ंू ा, 1[म� भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखंग ा,] म� ----------------------राज्य क े मं त्र ी क े रूप म� अपने कतर्व्य� का ू श्रद्धापव क र् और श द् ध अं त ःकरण से �नवर् ह न करू ं गा तथा म� भय या प�पात, अनरु ाग या ू ु द्वेष के �बना, सभी प्रकार के लोग� के प्र�त सं�वधान और �व�ध के अनस ु ार न्याय करूंगा ।” 6 �कसी राज्य के मंत्री के �लए गोपनीयता क� शपथ का प्ररूप :– “म�, अमुक, ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क जो �वषय ----------------------- राज्य के मंत्री के रूप म� मेरे �वचार के �लए लाया जाएगा अथवा मुझे �ात होगा उसे �कसी व्यिक्त या व्यिक्तय� को, तब के �सवाय जब�क ऐसे मंत्री के रूप म� अपने कतर्व्य� के सम्यक् �नवर्हन के �लए ऐसा करना अपे��त हो, म� प्रत्य� अथवा अप्रत्य� रूप से संसू�चत या प्रकट नह�ं करूंगा ।” 2 [7 क �कसी राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन के �लए अभ्यथ� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :– “म�, अमुक, ---------------- जो �वधान सभा (या �वधान प�रषद्) म� स्थान भरने के �लए अभ्यथ� के रूप म� नाम�नद� �शत हुआ हूं, ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखूंगा, और म� भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखग ूं ा ।” 1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) प्ररूप 7 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 272 भारत का सं�वधान (तीसर� अनस ु च ू ी) ख �कसी राज्य के �वधान-मंडल के सदस्य द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :– “म�, अमुक, जो �वधान सभा (या �वधान प�रषद्) का सदस्य �नवार्�चत (या नाम�नद� �शत) हुआ हूं ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखूंगा, म� भारत क� प्रभत ु ा और अखंडता अ�ुण्ण रखंग र् �नवर्हन ू ा तथा िजस पद को म� ग्रहण करने वाला हूं उसके कतर्व्य� का श्रद्धापव ू क करूंगा ।”] 8 उच्च न्यायालय के न्यायाधीश� द्वारा ल� जाने वाल� शपथ या �कए जाने वाले प्र�त�ान का प्ररूप :– “म�, अमक ु , जो ------------ उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायमू�तर् (या न्यायाधीश) �नयुक्त हुआ हूं ईश्वर क� शपथ लेता हूं सत्य�नष्ठा से प्र�त�ान करता हूं �क म� �व�ध द्वारा स्था�पत भारत 1 के सं�वधान के प्र�त सच्ची श्रद्धा और �नष्ठा रखग ूं ा, [म� भारत क� प्रभुता और अखंडता अ�ुण्ण रखूंगा,] तथा म� सम्यक् प्रकार से और श्रद्धापव र् तथा अपनी परू � योग्यता, ू क �ान और �ववेक से अपने पद के कतर्व्य� का भय या प�पात, अनरु ाग या द्वेष के �बना पालन करूंगा तथा म� सं�वधान और �व�धय� क� मयार्दा बनाए रखूंगा ।” 1. सं�वधान (सोलहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 5 द्वारा (5-10-1963 से) अंतःस्था�पत । [चौथी अनुसूची 1 [अनच् ु छे द 4(1) और अनच् ु छे द 80(2)] राज्य सभा म� स्थान� का आबंटन �नम्न�ल�खत सारणी के पहले स्तंभ म� �व�न�दर्ष्ट प्रत्येक राज्य या संघ राज्य�ेत्र को उतने स्थान आबं�टत �कए जाएंगे िजतने उसके दस ू रे स्तंभ म� , यथािस्थ�त, उस राज्य या उस संघ राज्य�ेत्र के सामने �व�न�दर्ष्ट ह� : सारणी 1. आंध्र प्रदे श ...................................................................................... 2 [11] 7] [2. तेलंगाना........................................................................................ 3 [3.] असम ......................................................................................... 4 [4.] �बहार ......................................................................................... 4 5 7 [16] [ [5.] झारखंड .................................................................................... 6] गुजरात 11] [ [ [8.] ह�रयाणा ............................................................................... 5] 6 4 [ [ [6.]] गोवा .................................................................................... 7 8 4 9 8 4 [ [ [7.]] ................................................................................. 10 8 4 1] 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 3 द्वारा (1-11-1956 से) चौथी अनुसच ू ी के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) “18” के स्थान पर प्र�तस्था�पत। 3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) अन्तःस्था�पत । 4. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�विष्टय� को क्रमशः 3 से 31 तक क� प्र�विष्टय� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 5. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) “22” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) अंतःस्था�पत । 7. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से) अंतःस्था�पत । 8. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�विष्ट 4 से 29 को क्रमशः प्र�विष्ट 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 9. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) प्र�विष्ट "4" के स्थान पर “प्र�विष्ट 6” पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) अंतःस्था�पत । 273 274 भारत का सं�वधान (चौथी अनस ु च ू ी) [ [9.] केरल ..................................................................................... 8 4 1 2 [ [10.] मध्य प्रदे श ............................................................................ 4 1 2 [ [ [11.]] छ�ीसगढ़ .................................................................................. 5 1 2 [ [ [12.] त�मलनाड़ ................................................................................... 7 1 2 [ [ [13.] महाराष्ट्र ................................................................................... 8 1 2 [ [ [14.]9 कनार्टक .................................................................................... 1 2 [ [15.] [ओ�डशा] ..................................................................................... 1 2 [ [16.] पजाब ........................................................................................... 1 2 [ [17.] राजस्थान ..................................................................................... 1 2 [ [18.]] उ�र प्रदे श .................................................................................. 13 12 1 2 [ [ [19.] [उ�राखड ............................................................................... 1[2[20.] पिश्चमी बगाल ............................................................................. 14[ 15[1[2[**]] * * * ................................................................................ 16 15 1 2 [ [ [ [21.]] नागाल�ड ................................................................................ 3 9] [11] 5]] [18]] 19]] 12]] 10] 10 [7] 10] 11 [31] 3]] 16] *] 1] 6 1. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�विष्ट 4 से 29 को क्रमशः प्र�विष्ट 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 2. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�विष्टय� को क्रमशः 3 से 31 तक क� प्र�विष्टय� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 3. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) “16” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. मध्य प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 28) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2000 से) अंतःस्था�पत । 5. मद्रास राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का 53) क� धारा 5 द्वारा (14-1-1969 से) “8. मद्रास” (“11” के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 6. आंध्र प्रदे श और मद्रास (सीमा-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1959 (1959 का 56) क� धारा 8 द्वारा (1-4-1960 से) “17” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 7. मुंबई पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1960 (1960 का 11) क� धारा 6 द्वारा (1-5-1960 से) अंतःस्था�पत । 8. मैसरू राज्य (नाम-प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का 31) क� धारा 5 द्वारा (1-11-1973 से) “10. मैसरू ” (“13” के रूप म� पुनःसंख्यां�कत) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 9. उड़ीसा (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2011 (2011 का 15) क� धारा 7 द्वारा (1-11-2011 से) “उड़ीसा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत। 10. पंजाब पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1966 (1966 का 31) क� धारा 9 द्वारा (1-11-1966 से) “11” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 11. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) “34” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 12. उ�र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 29) क� धारा 7 द्वारा (9-11-2000 से) अंतःस्था�पत । 13. उ�रांचल (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 52) क� धारा 5 द्वारा (1-1-2007 से) “उ�रांचल” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 14. ** जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) जम्मू-कश्मीर . से संबं�धत प्र�विष्ट 21 को हटा �दया गया है । 15 जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 22 से प्र�विष्ट 31 को क्रमशः प्र�विष्ट 21 से प्र�विष्ट 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया है । 16. नागाल�ड राज्य अ�ध�नयम, 1962 (1962 का 27) क� धारा 6 द्वारा (1-12-1963 से) अंतःस्था�पत । 275 भारत का सं�वधान (चौथी अनस ु च ू ी) 1[ 2[ 3[ 4[22.]] 3 2 4 [ [ [23.]] 3 2 4 [ [ [24.]] 3 2 4 [ [ [25.]] 3] �हमाचल प्रदे श..... .................................................. 1 म�णपरु .................................................................. 1 �त्रपरु ा ............................................................... 1 मेघालय .............................................................. 5 3 2 4 [ [ [ [26.]] �सिक्कम ............................................................ 1] 7 3 2 4 [ [ [ [28.]] अरुणाचल प्रदे श ................................................. 1] 6 3 2 4 [ [ [ [27.]] 3 2 4 [ [ [29.]] 1] �मजोरम ............................................................. 3 �दल्ल� ............................................................ 1 3 2 4 [ [ [30.] 8[पडचेर� .......................................................... ु ु 9[3[2[4[31. जम्म-कश्मीर ू योग :– 10 4 [233]] . 1 �हमाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1970 (1970 का 53) क� धारा 5 द्वारा (25-1-1971 से) अंतःस्था�पत । 2. �बहार पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2000 (2000 का 30) क� धारा 7 द्वारा (15-11-2000 से) प्र�विष्ट 4 से 29 को क्रमशः प्र�विष्ट 5 से 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 3. आंध्र प्रदे श पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2014 (2014 का 6) क� धारा 12 द्वारा (2-6-2014 से) 2 से 30 तक क� प्र�विष्टय� को क्रमशः 3 से 31 तक क� प्र�विष्टय� के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 4. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) प्र�विष्ट 22 से प्र�विष्ट 31 को क्रमशः प्र�विष्ट 21 से प्र�विष्ट 30 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया है । 5. सं�वधान (छ�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 4 द्वारा (26-4-1975 से) अंतःस्था�पत । 6. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । 7. अरुणाचल प्रदे श राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 69) क� धारा 5 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । 8. पां�डचेर� (नाम प�रवतर्न) अ�ध�नयम, 2006 (2006 का 44) क� धारा 4 द्वारा (1-10-2006 से) “पां�डचेर�” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 9. जम्मू-कश्मीर पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 2019 (2019 का 34) क� धारा 8 द्वारा (31-10-2019 से) अन्तःस्था�पत । 10. गोवा, दमण और द�व पुनगर्ठन अ�ध�नयम, 1987 (1987 का 18) क� धारा 6 द्वारा (30-5-1987 से) “232” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । पांचवीं अनुसूची [अनच् ु छे द 244 (1)] अनस ु ू�चत �ेत्र� और अनस ु �ू चत जनजा�तय� के प्रशासन और �नयंत्रण के बारे म� उपबंध भाग क साधारण 1. �नवर्चन – इस अनस ु ूची म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो, “राज्य” पद के अंतगर्त 1*** 2[असम, 3[ 4[मेघालय, �त्रपरु ा और �मजोरम]] राज्य] नह�ं ह� । 2. अनस ु ू�चत �ेत्र� म� �कसी राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त – इस अनस ु ूची के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �कसी राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार उसके अनस ु ू�चत �ेत्र� पर है । 3. अनस ं म� राष्ट्रप�त को राज्यपाल 5*** द्वारा ु �ू चत �ेत्र� के प्रशासन के संबध प्र�तवेदन – ऐसे प्रत्येक राज्य का राज्यपाल 5***, िजसम� अनस ु ू�चत �ेत्र ह�, प्र�तवषर् या जब भी राष्ट्रप�त इस प्रकार अपे�ा करे , उस राज्य के अनस ु ू�चत �ेत्र� के प्रशासन के संबध ं म� राष्ट्रप�त को प्र�तवेदन दे गा और संघ क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार राज्य को उक्त �ेत्र� के प्रशासन के बारे म� �नदे श दे ने तक होगा । भाग ख अनस ु ू�चत �ेत्र� और अनस ु �ू चत जनजा�तय� का प्रशासन और �नयंत्रण 4. जनजा�त सलाहकार प�रषद् – (1) ऐसे प्रत्येक राज्य म� , िजसम� अनस ु ू�चत �ेत्र ह� और य�द राष्ट्रप�त ऐसा �नदे श दे तो, �कसी ऐसे राज्य म� भी, िजसम� अनस ु ू�चत जनजा�तयां ह� �कं तु अनस ु ू�चत �ेत्र नह�ं है, एक जनजा�त सलाहकार प�रषद् स्था�पत क� जाएगी जो बीस से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी िजनम� से यथाशक्य �नकटतम तीन-चौथाई उस राज्य क� �वधान सभा म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के प्र�त�न�ध ह�गे : 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “पहल� अनुसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट राज्य अ�भप्रेत ह� परन्तु” शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “असम राज्य” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 3 द्वारा (1-4-1985 से) “और मेघालय” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) “मेघालय और �त्रपुरा” के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 276 भारत का सं�वधान 277 (पांचवीं अनस ु च ू ी) परं तु य�द उस राज्य क� �वधान सभा म� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के प्र�त�न�धय� क� संख्या जनजा�त सलाहकार प�रषद् म� ऐसे प्र�त�न�धय� से भरे जाने वाले स्थान� क� संख्या से कम है तो शेष स्थान उन जनजा�तय� के अन्य सदस्य� से भरे जाएंगे । (2) जनजा�त सलाहकार प�रषद् का यह कतर्व्य होगा �क वह उस राज्य क� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के कल्याण और उन्न�त से संब�ं धत ऐसे �वषय� पर सलाह दे जो उसको राज्यपाल 1*** द्वारा �न�दर्ष्ट �कए जाएं । (3) राज्यपाल 2***– 6 (क) प�रषद् के सदस्य� क� संख्या को, उनक� �नयिु क्त क� और प�रषद् के अध्य� तथा उसके अ�धका�रय� और सेवक� क� �नयिु क्त क� र��त को ; और (ख) उसके अ�धवेशन� के संचालन तथा साधारणतया उसक� प्र�क्रया को, (ग) अन्य सभी आनष ु �ं गक �वषय� को, यथािस्थ�त, �व�हत या �व�नय�मत करने के �लए �नयम बना सकेगा । 5. अनस ु ू�चत �ेत्र� को लागू �व�ध – (1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, राज्यपाल 1*** लोक अ�धसच ू ना द्वारा �नदे श दे सकेगा �क संसद् का या उस राज्य के �वधान-मंडल का कोई �व�शष्ट अ�ध�नयम उस राज्य के अनस ु ू�चत �ेत्र या उसके �कसी भाग को लागू नह�ं होगा अथवा उस राज्य के अनस ु ू�चत �ेत्र या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� और उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट करे और इस उपपैरा के अधीन �दया गया कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भत ू ल�ी प्रभाव हो । (2) राज्यपाल 1*** �कसी राज्य म� �कसी ऐसे �ेत्र क� शां�त और सुशासन के �लए �व�नयम बना सकेगा जो तत्समय अनस ु �ू चत �ेत्र है । �व�शष्टतया और पव र् ामी शिक्त क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, ू ग ऐसे �व�नयम– (क) ऐसे �ेत्र क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के सदस्य� द्वारा या उनम� भू�म के अंतरण का प्र�तषेध या �नब�धन कर सक�गे ; (ख) ऐसे �ेत्र क� जनजा�तय� के सदस्य� को भ�ू म के आबंटन का �व�नयमन कर सक�गे ; 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “यथािस्थ�त, राज्यपाल या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 278 (पांचवीं अनस ु च ू ी) (ग) ऐसे व्यिक्तय� द्वारा जो ऐसे �ेत्र क� अनस ु �ू चत जनजा�तय� के सदस्य� को धन उधार दे ते ह�, साहूकार के रूप म� कारबार करने का �व�नयमन कर सक�गे । (3) ऐसे �कसी �व�नयम को बनाने म� जो इस पैरा के उपपैरा (2) म� �न�दर्ष्ट है, राज्यपाल 1*** संसद् के या उस राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम का या �कसी �वद्यमान �व�ध का, जो प्रश्नगत �ेत्र म� तत्समय लागू है, �नरसन या संशोधन कर सकेगा । (4) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी �व�नयम राष्ट्रप�त के सम� तुरन्त प्रस्तत ु �कए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनम ु �त नह�ं दे दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नह�ं होगा । (5) इस पैरा के अधीन कोई �व�नयम तब तक नह�ं बनाया जाएगा जब तक �व�नयम बनाने वाले राज्यपाल 2*** ने जनजा�त सलाहकार प�रषद् वाले राज्य क� दशा म� ऐसी प�रषद् से परामशर् नह�ं कर �लया है । भाग ग अनस ु ू�चत �ेत्र 6. अनस ु ू�चत �ेत्र – (1) इस सं�वधान म� , “अनस ु ू�चत �ेत्र” पद से ऐसे �ेत्र अ�भप्रेत ह� िजन्ह� राष्ट्रप�त आदे श ∗ द्वारा अनस ु �ू चत �ेत्र घो�षत करे । (2) राष्ट्रप�त, �कसी भी समय आदे श ∗∗ द्वारा – (क) �नदे श दे सकेगा �क कोई संपण ू र् अनस ु ू�चत �ेत्र या उसका कोई �व�न�दर्ष्ट भाग अनस ु ू�चत �ेत्र या ऐसे �ेत्र का भाग नह�ं रहे गा, 3 [(कक) �कसी राज्य के �कसी अनस ु �ू चत �ेत्र के �ेत्र को उस राज्य के राज्यपाल से परामशर् करने के पश्चात ् बढ़ा सकेगा,] (ख) �कसी अनस ु ू�चत �ेत्र म� , केवल सीमाओं का प�रशोधन करके ह�, प�रवतर्न कर सकेगा, 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसच ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप (1-11-1956 से) �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसच ू ी द्वारा “या राजप्रमुख” शब्द� का लोप ∗ (1-11-1956 से) �कया गया । अनुसू�चत �ेत्र (भाग क राज्य) आदे श, 1950 (सं.आ. 9), अनुसू�चत �ेत्र (भाग ख राज्य) आदे श, 1950 (सं.आ. 26), अनुसू�चत �ेत्र (�हमाचल प्रदे श) आदे श, 1975 (सं.आ. 102) और अनुसू�चत �ेत्र (�बहार, गुजरात, मध्य प्रदे श और उड़ीसा राज्य) आदे श, 1977 (सं.आ. 109) दे �खए । ∗∗ मद्रास अनुसू�चत �ेत्र (समािप्त) आदे श, 1950 (सं.आ. 30) और आंध्र अनुसू�चत �ेत्र (समािप्त) आदे श, 1955 (सं.आ. 50) दे �खए । 3. सं�वधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का 101) क� धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 279 (पांचवीं अनस ु च ू ी) (ग) �कसी राज्य क� सीमाओं के �कसी प�रवतर्न पर या संघ म� �कसी नए राज्य के प्रवेश पर या नए राज्य क� स्थापना पर ऐसे �कसी �ेत्र को, जो पहले से �कसी राज्य म� सिम्म�लत नह�ं है, अनस ु ू�चत �ेत्र या उसका भाग घो�षत कर सकेगा, [(घ) �कसी राज्य या राज्य� के संबध ं म� इस पैरा के अधीन �कए गए आदे श या आदे श� को �वखं�डत कर सकेगा और संब�ं धत राज्य के राज्यपाल से परामशर् करके उन �ेत्र� को, जो अनस ु ू�चत �ेत्र ह�गे, पन ु ः प�र�निश्चत करने के �लए नए आदे श कर सकेगा,] 1 और ऐसे �कसी आदे श म� ऐसे आनष ु ां�गक और पा�रणा�मक उपबंध हो सक�गे जो राष्ट्रप�त को आवश्यक और उ�चत प्रतीत ह�, �कं तु जैसा ऊपर कहा गया है उसके �सवाय इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन �कए गए आदे श म� �कसी पश्चातवत� आदे श द्वारा प�रवतर्न नह�ं �कया जाएगा । भाग घ अनस ु च ू ी का संशोधन 7. अनस ु ूची का संशोधन – (1) संसद्, समय-समय पर �व�ध द्वारा, इस अनस ु ूची के उपबंध� म� से �कसी का, प�रवधर्न, प�रवतर्न या �नरसन के रूप म� , संशोधन कर सकेगी और जब अनस ु ूची का इस प्रकार संशोधन �कया जाता है तब इस सं�वधान म� इस अनस ु ूची के प्र�त �कसी �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह इस प्रकार संशो�धत ऐसी अनस ु ूची के प्र�त �नद� श है । (2) ऐसी कोई �व�ध, जो इस पैरा के उपपैरा (1) म� उिल्ल�खत है, इस सं�वधान के अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी । 1. सं�वधान पांचवीं अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का 101) क� धारा 2 द्वारा (7-9-1976 से) अंतःस्था�पत । छठ� अनुसूची 1 [अनच् ु छे द 244(2) और अनच् ु छे द 275(1)] [असम, मेघालय, �त्रपुरा और �मजोरम राज्य�] के जनजा�त �ेत्र� के प्रशासन के बारे म� उपबंध 1. स्वशासी िजले और स्वशासी प्रदे श – (1) इस पैरा के उपबंध� के अधीन रहते 3 4 हुए, इस अनस ु ूची के पैरा 20 से संलग्न सारणी के [ [भाग 1, भाग 2 और भाग 2क] क� प्रत्येक मद के और भाग 3] के जनजा�त �ेत्र� का एक स्वशासी िजला होगा । 2 (2) य�द �कसी स्वशासी िजले म� �भन्न-�भन्न अनस ु ू�चत जनजा�तयां ह� तो राज्यपाल, लोक अ�धसूचना द्वारा, ऐसे �ेत्र या �ेत्र� को, िजनम� वे बसे हुए ह�, स्वशासी प्रदे श� म� �वभािजत कर सकेगा । (3) राज्यपाल, लोक अ�धसूचना द्वारा, – (क) उक्त सारणी के 3 (ख) उक्त सारणी के सकेगा ; 3 सकेगा; [�कसी भाग] म� �कसी �ेत्र को सिम्म�लत कर [�कसी भाग] म� �कसी �ेत्र को अपविजर्त कर (ग) नया स्वशासी िजला बना सकेगा ; (घ) �कसी स्वशासी िजले का �ेत्र बढ़ा सकेगा ; (ङ) �कसी स्वशासी िजले का �ेत्र घटा सकेगा ; (च) दो या अ�धक स्वशासी िजल� या उनके भाग� को �मला सकेगा िजससे एक स्वशासी िजला बन सके ; [(चच) �कसी स्वशासी िजले के नाम म� प�रवतर्न कर सकेगा ;] 5 (छ) �कसी स्वशासी िजले क� सीमाएं प�र�निश्चत कर सकेगा : 1. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के �लए पैरा 1 म� उप-पैरा (2) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-“परन्तु इस उप-पैरा क� कोई बात, बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले को (7-9-2003 से) लागू नह�ं होगी ।”। 3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(i) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "भाग क" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) "भाग 1 और भाग 2" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) अंतःस्था�पत । 280 भारत का सं�वधान 281 (छठ� अनस ु च ू ी) परं तु राज्यपाल इस उप-पैरा के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) के अधीन कोई आदे श इस अनस ु च ू ी के पैरा 14 के उप-पैरा (1) के अधीन �नयक् ु त आयोग के प्र�तवेदन पर �वचार करने के पश्चात ् ह� करे गा, अन्यथा नह�ं : [परं तु यह और �क राज्यपाल द्वारा इस उप-पैरा के अधीन �कए गए आदे श म� 1 ऐसे आनष ु �ं गक और पा�रणा�मक उपबंध (िजनके अंतगर्त पैरा 20 का और उक्त सारणी के �कसी भाग क� �कसी मद का कोई संशोधन है) अंत�वर्ष्ट हो सक�गे जो राज्यपाल को उस आदे श के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए आवश्यक प्रतीत ह� ।] 2. िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� का गठन – 5[(1) प्रत्येक स्वशासी 2- 3- 4 िजले के �लए एक िजला प�रषद् होगी जो तीस से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी िजनम� से चार से अन�धक व्यिक्त राज्यपाल द्वारा नाम�नद� �शत �कए जाएंगे और शेष वयस्क मता�धकार के आधार पर �नवार्�चत �कए जाएंगे । 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के �लए पैरा 2 म� उप-पैरा (1) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-- “परं तु यह �क बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् �छयाल�स से अन�धक सदस्य� से �मलकर बनेगी िजनम� से चाल�स सदस्य� को वयस्क मता�धकार के आधार पर �नवार्�चत �कया जाएगा, िजनम� से तीस अनुसू�चत जनजा�तय� के �लए, पांच गैर जनजातीय समुदाय� के �लए, पांच सभी समुदाय� के �लए आर��त ह�गे तथा शेष छह राज्यपाल द्वारा नाम�नद� �शत �कए जाएंगे िजनके अ�धकार और �वशेषा�धकार, िजनके अंतगर्त मत दे ने के अ�धकार भी ह�, वह� ह�गे जो अन्य सदस्य� के ह�, बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के उन समुदाय� म� से, िजनका प्र�त�न�धत्व नह�ं है, कम से कम दो म�हलाएं ह�गी :” । 3. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के �लए पैरा 2 म� उप-पैरा (3) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-- “परं तु उ�र� कछार पहाड़ी िजले के �लए ग�ठत िजला प�रषद्, उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् कहलाएगी . और काब� आंगलांग िजले के �लए ग�ठत िजला प�रषद्, काब� आंगलांग स्वशासी प�रषद् कहलाएगी ।”; 4 सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा आसाम म� लागू होने के �लए पैरा 2 के उप-पैरा (3) म� परन्तुक के पश्चात ् �नम्न�ल�खत परं तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-- “परं तु यह और �क बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के �लए ग�ठत िजला प�रषद् बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् कहलाएगी ।” । 5. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) उप-पैरा (1) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 282 (छठ� अनस ु च ू ी) (2) इस अनस ु ूची के पैरा 1 के उप-पैरा (2) के अधीन स्वशासी प्रदे श के रूप म� ग�ठत प्रत्येक �ेत्र के �लए पथ ृ क् प्रादे �शक प�रषद् होगी । (3) प्रत्येक िजला प�रषद् और प्रत्येक प्रादे �शक प�रषद् क्रमशः “(िजले का नाम) क� िजला प�रषद्” और “(प्रदे श का नाम) क� प्रादे �शक प�रषद्” नामक �नग�मत �नकाय होगी, उसका शाश्वत उ�रा�धकार होगा और उसक� सामान्य मुद्रा होगी और उक्त नाम से वह वाद लाएगी और उस पर वाद लाया जाएगा । (4) इस अनस ु च ू ी के उपबंध� के अधीन रहते हुए, स्वशासी िजले का प्रशासन ऐसे िजले क� िजला प�रषद् म� वहां तक �न�हत होगा जहां तक वह इस अनस ू च ू ी के अधीन ऐसे िजले के भीतर �कसी प्रादे �शक प�रषद् म� �न�हत नह�ं ह� और स्वशासी प्रदे श का प्रशासन ऐसे प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् म� �न�हत होगा । (5) प्रादे �शक प�रषद् वाले स्वशासी िजले म� प्रादे �शक प�रषद् के प्रा�धकार� के अधीन �ेत्र� के संबध ं म� िजला प�रषद् को, इस अनस ं म� ु ूची द्वारा ऐसे �ेत्र� के संबध प्रद� शिक्तय� के अ�त�रक्त केवल ऐसी शिक्तयां ह�गी जो उसे प्रादे �शक प�रषद् द्वारा प्रत्यायोिजत क� जाएं । (6) राज्यपाल, संब�ं धत स्वशासी िजल� या प्रदे श� के भीतर �वद्यमान जनजा�त प�रषद� या अन्य प्र�त�न�ध जनजा�त संगठन� से परामशर् करके, िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� के प्रथम गठन के �लए �नयम बनाएगा और ऐसे �नयम� म� �नम्न�ल�खत के �लए उपबंध �कए जाएंगे, अथार्त ् : – (क) िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� क� संरचना तथा उनम� स्थान� का आबंटन ; (ख) उन प�रषद� के �लए �नवार्चन� के प्रयोजन के �लए प्रादे �शक �नवार्चन-�ेत्र� का प�रसीमन ; (ग) ऐसे �नवार्चन� म� मतदान के �लए अहर्ताएं और उनके �लए �नवार्चक नामाव�लय� क� तैयार� ; (घ) ऐसे �नवार्चन� म� ऐसी प�रषद� के सदस्य �नवार्�चत होने के �लए अहर्ताएं ; (ङ) 1[प्रादे �शक प�रषद�] के सदस्य� क� पदाव�ध ; 1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) "ऐसी प�रषद�" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 283 (छठ� अनस ु च ू ी) (च) ऐसी प�रषद� के �लए �नवार्चन या नाम�नद� शन से संब�ं धत या संसक्त कोई अन्य �वषय ; (छ) िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� क� प्र�क्रया और उनका कायर् संचालन 1[(िजसके अंतगर्त �कसी �रिक्त के होते हुए भी कायर् करने क� शिक्त है)] ; (ज) िजला और प्रादे �शक प�रषद� के अ�धका�रय� और कमर्चा�रवद ंृ क� �नयिु क्त । [(6क) िजला प�रषद् के �नवार्�चत सदस्य, य�द िजला प�रषद् पैरा 16 के अधीन पहले ह� �वघ�टत नह�ं कर द� जाती है तो, प�रषद् के �लए साधारण �नवार्चन के पश्चात ् प�रषद् के प्रथम अ�धवेशन के �लए �नयत तार�ख से पांच वषर् क� अव�ध तक पद धारण कर� गे और नाम�नद� �शत सदस्य राज्यपाल के प्रसादपय�त पद धारण करे गा : 1 परं तु पांच वषर् क� उक्त अव�ध को, जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब या य�द ऐसी प�रिस्थ�तयां �वद्यमान ह� िजनके कारण �नवार्चन कराना राज्यपाल क� राय म� असाध्य है तो, राज्यपाल ऐसी अव�ध के �लए बढ़ा सकेगा जो एक बार म� एक वषर् से अ�धक नह�ं होगी और जब आपात क� उद्घोषणा प्रवतर्न म� है तब उद्घोषणा के प्रव� ृ न रह जाने के पश्चात ् �कसी भी दशा म� उसका �वस्तार छह मास क� अव�ध से अ�धक नह�ं होगा : परं तु यह और �क आकिस्मक �रिक्त को भरने के �लए �नवार्�चत सदस्य उस सदस्य क�, िजसका स्थान वह लेता है, शेष पदाव�ध के �लए पद धारण करे गा ।] (7) िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् अपने प्रथम गठन के पश्चात ् [राज्यपाल के अनम ोदन से] इस पैरा के उप-पैरा (6) म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� के �लए �नयम बना सकेगी ु और 1[वैसे ह� अनम ु ोदन से] – (क) अधीनस्थ स्थानीय प�रषद� या बोड� के बनाए जाने तथा उनक� प्र�क्रया और उनके कायर् संचालन का, और (ख) यथािस्थ�त, िजले या प्रदे श के प्रशासन �वषयक कायर् करने से संब�ं धत साधारणतया सभी �वषय� का, �व�नयमन करने वाले �नयम भी, बना सकेगी : 1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) अंतःस्था�पत । 284 भारत का सं�वधान (छठ� अनस ु च ू ी) परं तु जब तक िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् द्वारा इस उप-पैरा के अधीन �नयम नह�ं बनाए जाते ह� तब तक राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (6) के अधीन बनाए गए �नयम, प्रत्येक ऐसी प�रषद् के �लए �नवार्चन�, उसके अ�धका�रय� और कमर्चा�रय� तथा उसक� प्र�क्रया और उसके कायर् संचालन के संबध ं म� प्रभावी ह�गे । 1* 13 * * * 3. �व�ध बनाने क� िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� क� शिक्त – (1) स्वशासी प्रदे श 2- 3-4 14 1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) द्�वतीय परन्तुक का लोप �कया गया । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 3 आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (3) �नम्न�ल�खत रूप से प्र�तस्था�पत हो सके, अथार्त ् :-- “(3) पैरा 3क के उप-पैरा (2) या पैरा 3ख के उप-पैरा (2) म� जैसा अन्यथा उपबं�धत है , उसके �सवाय इस पैरा या पैरा 3क के उप-पैरा (1) या पैरा 3ख के उप-पैरा (1) के अधीन बनाई गई सभी �व�धयां राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तुत क� जाएंगी और जब तक वह उन पर अनुम�त नह�ं दे दे ता है तब तक प्रभावी नह�ं ह�गी ।”। 3. सं�वधान छठ� अनुसच ू ी (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा आसाम राज्य को लागू होने के �लए पैरा 3 के पश्चात ् �नम्न�ल�खत पैरा अंतःस्था�पत �कया गया, अथार्त ् :-- “3क. उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् और काब� आंगलांग स्वशासी प�रषद् क� �व�ध बनाने क� अ�त�रक्त शिक्तयां--(1) पैरा 3 के उपबंध� पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् और काब� आंगलांग स्वशासी प�रषद् को, संबं�धत िजल� के भीतर �नम्न�ल�खत क� बाबत �व�धयां बनाने क� शिक्त होगी, अथार्त ् :-- (क) सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 7 और प्र�विष्ट 52 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, उद्योग ; (ख) संचार, अथार्त ्, सड़क�, पुल, फेर� और अन्य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची क� सूची 1 म� �व�न�दर् ष्ट नह�ं ह�, नगरपा�लक ट्राम, रज्जुमागर्, अंतद� शीय जलमाग� के संबंध म� सातवीं अनुसच ू ी क� सूची 1 और सूची 3 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अंतद� शीय जलमागर् और उन पर यातायात, यंत्र नो�दत यान� से �भन्न यान ; (ग) पशुधन का प�रर�ण, संर�ण और सुधार तथा जीवजंतुओं के रोग� का �नवारण, पशु �च�कत्सा प्र�श�ण और व्यवसाय ; कांजी हाउस ; (घ) प्राथ�मक और माध्य�मक �श�ा ; (ङ) कृ�ष िजसके अंतगर्त कृ�ष �श�ा और अनुसंधान, नाशक जीव� से संर�ण और पादप रोग� का �नवारण है ; (च) मत्स्य उद्योग ; भारत का सं�वधान 285 (छठ� अनस ु च ू ी) (पाद-�टप्पण जार�),-- (छ) सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 56 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, जल, अथार्त ्, जल प्रदाय, �संचाई और नहर� , जल �नकासी और तटबंध, जल भंडारण और जल शिक्त ; (ज) सामािजक सुर�ा और सामािजक बीमा ; �नयोजन और बेकार� ; (झ) ग्राम�, धान के खेत�, बाजार�, शहर� आ�द के संर�ण के �लए बाढ़ �नयंत्रण स्क�म� (जो तकनीक� प्रकृ�त क� न ह�) ; (ञ) नाट्यशाला औंर नाट्य प्रदशर्न ; सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 60 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �सनेमा, खेल-कूद, मनोरं जन और आमोद ; (ट) लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय ; (ठ) लघु �संचा� ; (ड) खाद्य पदाथर्, पशुओं के चारे , कच्ची कपास और कच्चे जूट का व्यापार और वा�णज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और �वतरण ; (ढ) राज्य द्वारा �नयं�त्रत या �व�पो�षत पुस्तकालय, संग्रहालय और वैसी ह� अन्य संस्थाएं संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन राष्ट्र�य महत्व के घो�षत �कए गए प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक� और अ�भलेख� से �भन्न प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक और अ�भलेख ; और (ण) भू�म का अन्य संक्रामण । (2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् और काब� आगंलांग स्वशासी प�रषद् द्वारा बनाई गई सभी �व�धयां, जहां तक उनका संबंध सातवीं अनुसूची क� सूची 3 म� �व�न�दर् ष्ट �वषय� से है, राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तुत क� जाएंगी, जो उन्ह� राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखे गा । (3) जब कोई �व�ध राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रख ल� जाती है तब राष्ट्रप�त घो�षत करे गा �क वह उक्त �व�ध पर अनुम�त दे ता है या अनुम�त रोक लेता है : परं तु राष्ट्रप�त राज्यपाल को यह �नदे श दे सकेगा �क वह �व�ध को, यथािस्थ�त, उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् या काब� आगंलांग स्वशासी प�रषद् को ऐसे संदेश के साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे �क उक्त प�रषद् �व�ध या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर् ष्ट उपबंध� पर पुन�वर्चार करे और �व�शष्टतया, �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� पर पुरःस्थापन क� वांछनीयता पर �वचार करे िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �व�ध इस प्रकार लौटा द� जाती है तब ऐसा संदेश �मलने क� तार�ख से छह मास क� अव�ध के भीतर प�रषद् ऐसी �व�ध पर तदनुसार �वचार करे गी और य�द �व�ध उक्त प�रषद् द्वारा संशोधन स�हत या उसके �बना �फर से पा�रत कर द� जाती है तो उसे राष्ट्रप�त के सम� उसके �वचार के �लए �फर से प्रस्तुत �कया जाएगा । 4. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा असम राज्य को लागू होने के �लए पैरा 3क के पश्चात ् क्रमशः �नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया गया, अथार्त ् :-- 3ख. बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् क� �व�धयां बनाने क� अ�त�रक्त शिक्तयां -- (1) पैरा 3 के उपबंध� पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् को, अपने �ेत्र� म� , �नम्न�ल�खत के संबंध म� �व�धयां बनाने क� शिक्त होगी, अथार्त ् :-- (i) कृ�ष, िजसके अंतगर्त कृ�ष �श�ा और अनुसंधान, नाशक जीव� से संर�ण और पादप रोग� का �नवारण है ; (ii) पशुपालन और पशु �च�कत्सा अथार्त ् पशुधन का प�रर�ण, संर�ण और सुधार तथा जीव जंतुओं के रोग� का �नवारण, पशु �च�कत्सा प्र�श�ण और व्यवसाय, कांजी हाऊस ; (iii) सहका�रता ; (iv) सांस्कृ�तक कायर्; (v) �श�ा अथार्त ् प्राइमर� �श�ा, उच्चतर माध्य�मक �श�ा िजसम� व�ृ �क प्र�श�ण, प्रौढ़ �श�ा, महा�वद्यालय �श�ा (साधारण) भी है ; (vi) मत्स्य उद्योग ; (vii) ग्राम, धान के खेत�, बाजार� और भारत का सं�वधान 286 (छठ� अनस ु च ू ी) शहर� के संर�ण के �लए बाढ़ �नयंत्रण (जो तकनीक� प्रकृ�त का न हो) ; (viii) खाद्य और �स�वल आपू�तर् ; (ix) वन (आर��त वन� को छोड़कर) ; (x) हथकरघा और वस्त्र ; (xi) स्वास्थ्य और प�रवार कल्याण ; (xii) सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 84 के उपबंध� के अधीन रहते हुए मादक �लकर, अफ�म और व्युत्पन्न ; (xiii) �संचाई ; (xiv) श्रम और रोजगार ; (xv) भू�म और राजस्व ; (xvi) पुस्तकालय सेवाएं (राज्य सरकार द्वारा �व�पो�षत और �नयं�त्रत) ; (xvii) लाटर� (सातवीं अनुसच ू ी क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 40 के उपबंध� के अधीन रहते हुए), नाट्यशाला, नाट्य प्रदशर्न और �सनेमा (सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 60 के उपबंध� के अधीन रहते हुए) ; (xviii) बाजार और मेले; (xix) नगर �नगम, सुधार न्यास, िजला बोडर् और अन्य स्थानीय प्रा�धकार� ; (xx) राज्य द्वारा �नयं�त्रत या �व�पो�षत संग्रहालय और पुरातत्व �व�ान संस्थान, संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध द्वारा या उसके राष्ट्र�य महत्व के घो�षत �कए गए प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक� और अ�भलेख� से �भन्न, प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक और अ�भलेख ; (xxi) पंचायत और ग्रामीण �वकास ; (xxii) योजना और �वकास ; (xxiii) मुद्रण और लेखन सामग्री ; (xxiv) लोक स्वास्थ्य इंजी�नयर� ; (xxv) लोक �नमार्ण �वभाग; (xxvi) प्रचार और लोक संपकर्; (xxvii) जन्म और मत्ृ यु का रिजस्ट्र�करण ; (xxviii) सहायता और पुनवार्स ; (xxix) रे शम उत्पादन ; (xxx) सातवीं अऩुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 7 और प्र�विष्ट 52 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, लघु, कुट�र और ग्रामीण उद्योग ; (xxxi) समाज कल्याण ; (xxxii) मद ृ ा संर�ण ; (xxxiii) खेलकूद और युवा कल्याण ; (xxxiv) सांिख्यक� ; (xxxv) पयर्टन ; (xxxvi) प�रवहन (सड़क�, पुल, फेर� और अन्य संचार साधन, जो सातवीं अनुसूची क� सूची 1 म� �व�न�दर् ष्ट नह�ं ह�, नगरपा�लका ट्राम, रज्जुमागर्, अन्तद� शीय जलमाग� के संबंध म� सातवीं अनुसूची क� सूची 1 और सूची 3 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अन्तद� शीय जलमागर् और उन पर यातायात, यंत्र नो�दत यान� से �भन्न यान) ; (xxxvii) राज्य सरकार द्वारा �नयं�त्रत और �व�पो�षत जनजा�त अनुसंधान संस्थान ; (xxxviii) शहर� �वकास-नगर और ग्रामीण योजना) ; (xxxix) सातवीं अनुसूची क� सूची 1 क� प्र�विष्ट 50 के उपबंध� के अधीन रहते हुए बाट और माप ; और �पछड़े वग� का कल्याण : और (xl) मैदानी जनजा�तय� परं तु ऐसी �व�धय� क� कोई बात, -- (क) इस अ�ध�नयम के प्रारं भ क� तार�ख पर �कसी नाग�रक के उसक� भू�म के संबंध म� �वद्यमान अ�धकार� और �वशेषा�धकार� को समाप्त या उपांत�रत नह�ं करे गी ; और (ख) �कसी नाग�रक को �वरासत, आबंटन, व्यवस्थापन के रूप म� या अंतरण क� �कसी अन्य र��त से भू�म अिजर्त करने से अनु�ात नह�ं करे गी य�द ऐसा नाग�रक बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के भीतर भू�म के ऐसे अजर्न के �लए अन्यथा पात्र है । (2) पैरा 3 के अधीन या इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी �व�धयां, जहां तक उनका संबंध सातवीं अनुसच ू ी क� सूची 3 म� �व�न�दर् ष्ट �वषय� से है, राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तुत क� जाएंगी जो उन्ह� राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रखेगा । (3) जब कोई �व�ध राष्ट्रप�त के �वचार के �लए आर��त रख ल� जाती है, तब राष्ट्रप�त घो�षत करे गा �क वह उक्त �व�ध पर अनुम�त दे ता है या अनुम�त रोक लेता है : परं तु राष्ट्रप�त राज्यपाल को यह संदेश दे सकेगा �क वह �व�ध को, बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् को ऐसे संदेश के साथ यह अनुरोध करते हुए लौटा दे �क उक्त प�रषद् �व�ध या उसके �कन्ह�ं �व�न�दर् ष्ट उपबंध� पर पुन�वर्चार करे और �व�शष्टतया, �कन्ह�ं ऐसे संशोधन� को पुरःस्था�पत करने क� वांछनीयता पर �वचार करे िजनक� उसने अपने संदेश म� �सफा�रश क� है और जब �व�ध इस प्रकार लौटा द� जाती है तब उक्त प�रषद्, ऐसे संदेश क� प्रािप्त क� तार�ख से छह मास क� अव�ध के भीतर ऐसी �व�ध पर तदनुसार �वचार करे गी और य�द �व�ध उक्त प�रषद् द्वारा, संशोधन स�हत या उसके �बना, �फर से पा�रत कर द� जाती है तो उसे राष्ट्रप�त के सम� उसके �वचार के �लए �फर से प्रस्तुत �कया जाएगा ।”। भारत का सं�वधान 287 (छठ� अनस ु च ू ी) क� प्रादे �शक प�रषद् को ऐसे प्रदे श के भीतर के सभी �ेत्र� के संबध ं म� और स्वशासी िजले क� िजला प�रषद् को ऐसे �ेत्र� को छोड़कर जो उस िजले के भीतर क� प्रादे �शक प�रषद� के, य�द कोई ह�, प्रा�धकार के अधीन ह�, उस िजले के भीतर के अन्य सभी �ेत्र� के संबध ं म� �नम्न�ल�खत �वषय� के �लए �व�ध बनाने क� शिक्त होगी, अथार्त ् :– (क) �कसी आर��त वन क� भू�म से �भन्न अन्य भ�ू म का, कृ�ष या चराई के प्रयोजन� के �लए अथवा �नवास के या कृ�ष से �भन्न अन्य प्रयोजन� के �लए अथवा �कसी ऐसे अन्य प्रयोजन के �लए िजससे �कसी ग्राम या नगर के �नवा�सय� के �हत� क� अ�भवद् ृ �ध संभाव्य है, आंबटन, अ�धभोग या उपयोग अथवा अलग रखा जाना : परं तु ऐसी �व�धय� क� कोई बात 1[संब�ं धत राज्य क� सरकार को] अ�नवायर् अजर्न प्रा�धकृत करने वाल� तत्समय प्रव� ु ार �कसी भू�म का, चाहे ृ �व�ध के अनस वह अ�धभोग म� हो या नह�ं, लोक प्रयोजन� के �लए अ�नवायर् अजर्न करने से �नवा�रत नह�ं करे गी ; (ख) �कसी ऐसे वन का प्रबंध जो आर��त वन नह�ं है ; (ग) कृ�ष के प्रयोजन के �लए �कसी नहर या जलसरणी का उपयोग ; (घ) झम क� पद्ध�त का या प�रवत� खेती क� अन्य पद्ध�तय� का ू �व�नयमन ; (ङ) ग्राम या नगर स�म�तय� या प�रषद� क� स्थापना और उनक� शिक्तयां ; (च) ग्राम या नगर प्रशासन से संब�ं धत कोई अन्य �वषय िजसके अंतगर्त ग्राम या नगर प�ु लस और लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता है ; (छ) प्रमख ु � या म�ु खय� क� �नयिु क्त या उ�रा�धकार ; (ज) संप�� क� �वरासत ; [(झ) �ववाह और �ववाह-�वच्छे द ;] 2 (ञ) सामािजक रू�ढ़यां । (2) इस पैरा म� , “आर��त वन” से ऐसा �ेत्र अ�भप्रेत है जो असम वन �व�नयम, 1891 के अधीन या प्रश्नगत �ेत्र म� तत्समय प्रव� ृ �कसी अन्य �व�ध के अधीन आर��त वन है । 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) खंड झ के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 288 (छठ� अनस ु च ू ी) (3) इस पैरा के अधीन बनाई गई सभी �व�धयां राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तत ु क� जाएंगी और जब तक वह उन पर अनम ु �त नह�ं दे दे ता है तब तक प्रभावी नह�ं ह�गी । 1 4. स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� म� न्याय प्रशासन – (1) स्वशासी प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् ऐसे प्रदे श के भीतर के �ेत्र� के संबध ं म� और स्वशासी िजले क� िजला प�रषद् ऐसे �ेत्र� से �भन्न जो उस िजले के भीतर क� प्रादे �शक प�रषद� के, य�द कोई ह�, प्रा�धकार के अधीन ह�, उस िजले के भीतर के अन्य �ेत्र� के संबध ं म� , ऐसे वाद� और मामल� के �वचारण के �लए जो ऐसे प�कार� के बीच ह� िजनम� से सभी प�कार ऐसे �ेत्र� के भीतर क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के ह� तथा जो उन वाद� और मामल� से �भन्न ह� िजनको इस अनस ु ूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते ह�, उस राज्य के �कसी न्यायालय का अपवजर्न करके ग्राम प�रषद� या न्यायालय� का गठन कर सकेगी और उपय ु क्त व्यिक्तय� को ऐसी ग्राम प�रषद् के सदस्य या ऐसे न्यायालय� के पीठासीन अ�धकार� �नयक् ु त कर सकेगी और ऐसे अ�धकार� भी �नयक् ु त कर सकेगी जो इस अनस ु ूची के पैरा 3 के अधीन बनाई गई �व�धय� के प्रशासन के �लए आवश्यक ह� । (2) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, स्वशासी प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् या उस प्रादे �शक प�रषद् द्वारा इस �न�म� ग�ठत कोई न्यायालय या य�द �कसी स्वशासी िजले के भीतर के �कसी �ेत्र के �लए कोई प्रादे �शक प�रषद् नह�ं है तो, ऐसे िजले क� िजला प�रषद् या उस िजला प�रषद् द्वारा इस �न�म� ग�ठत कोई न्यायालय ऐसे सभी वाद� और मामल� के संबध ं म� जो, यथािस्थ�त, ऐसे प्रदे श या �ेत्र के भीतर इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन ग�ठत �कसी ग्राम प�रषद् या न्यायालय द्वारा �वचारणीय ह� तथा जो उन वाद� और मामल� से �भन्न ह� िजनको इस अनस ु ूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते ह� अपील न्यायालय क� शिक्तय� का प्रयोग करे गा तथा उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय से �भन्न �कसी अन्य न्यायालय को ऐसे वाद� या मामल� म� अ�धका�रता नह�ं होगी । (3) उच्च न्यायालय 2*** को, उन वाद� और मामल� म� िजनको इस पैरा के उपपैरा (2) के उपबंध लागू होते ह�, ऐसी अ�धका�रता होगी और वह उसका प्रयोग करे गा जो राज्यपाल समय-समय पर आदे श द्वारा �व�न�दर्ष्ट करे । 1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 4 आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (5) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया जा सके, अथार्त ् :-- “(6) इस पैरा क� कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परं तुक के अधीन ग�ठत बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् को लागू नह�ं होगी ।”। 2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "आसाम के" शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 289 (छठ� अनस ु च ू ी) (4) यथािस्थ�त, प्रादे �शक प�रषद् या िजला प�रषद् राज्यपाल के पव ू र् अनम ु ोदन से �नम्न�ल�खत के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगी, अथार्त ् : – (क) ग्राम प�रषद� और न्यायालय� का गठन और इस पैरा के अधीन उनके द्वारा प्रयोक्तव्य शिक्तयां ; (ख) इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन वाद� और मामल� के �वचारण म� ग्राम प�रषद� या न्यायालय� द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया ; (ग) इस पैरा के उप-पैरा (2) के अधीन अपील� और अन्य कायर्वा�हय� म� प्रादे �शक प�रषद् या िजला प�रषद् अथवा ऐसी प�रषद् द्वारा ग�ठत �कसी न्यायालय द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया ; (घ) ऐसी प�रषद� और न्यायालय� के �व�नश्चय� और आदे श� का प्रवतर्न ; (ङ) इस पैरा के उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2) के उपबंध� को कायार्िन्वत करने के �लए अन्य सभी आनष ु �ं गक �वषय । [(5) उस तार�ख को और से जो राष्ट्रप�त 2[संब�ं धत राज्य क� सरकार से परामशर् करने के पश्चात ्] अ�धसूचना द्वारा, इस �न�म� �नयत करे , यह पैरा ऐसे स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श के संबध ं म� , जो उस अ�धसच ू ना म� �व�न�दर् ष्ट �कया जाए, इस प्रकार प्रभावी होगा मानो – 1 (i) उप-पैरा (1) म� , “जो ऐसे प�कार� के बीच ह� िजनम� से सभी प�कार ऐसे �ेत्र� के भीतर क� अनस ु ू�चत जनजा�तय� के ह� तथा जो उन वाद� और मामल� से �भन्न ह� िजनको इस अनस ु च ू ी के पैरा 5 के उप-पैरा (1) के उपबंध लागू होते ह�,” शब्द� के स्थान पर, “जो इस अनस ु ूची के पैरा 5 के उप-पैरा (1) म� �न�दर्ष्ट प्रकृ�त के ऐसे वाद और मामले नह�ं ह� िजन्ह� राज्यपाल इस �न�म� �व�न�दर्ष्ट करे ,” शब्द रख �दए गए ह� ; (ii) उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3) का लोप कर �दया गया हो ; (iii) उप-पैरा (4) म�– (क) “यथािस्थ�त, प्रादे �शक प�रषद् या िजला प�रषद्, राज्यपाल के पव ू र् अनम ु ोदन से, �नम्न�ल�खत के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगी, अथार्त ् :–” शब्द� के स्थान पर, “राज्यपाल �नम्न�ल�खत के �व�नयमन के �लए �नयम बना सकेगा, अथार्त ् :–” शब्द रख �दए गए ह� ; और (ख) खंड (क) के स्थान पर, �नम्न�ल�खत खंड रख �दया गया हो, अथार्त ् :– 1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) अंतःस्था�पत । 2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 290 (छठ� अनस ु च ू ी) “(क) ग्राम प�रषद� और न्यायालय� का गठन, इस पैरा के अधीन उनके द्वारा प्रयोक्तव्य शिक्तयां और वे न्यायालय िजनको ग्राम प�रषद� और न्यायालय� के �व�नश्चय� से अपील� हो सक�गी ;”; (ग) खंड (ग) के स्थान पर, �नम्न�ल�खत खंड रख �दया गया हो, अथार्त ् :– “(ग) प्रादे �शक प�रषद् या िजला प�रषद् अथवा ऐसी प�रषद् द्वारा ग�ठत �कसी न्यायालय के सम� उप-पैरा (5) के अधीन राष्ट्रप�त द्वारा �नयत तार�ख से ठ�क पहले लं�बत अपील� और अन्य कायर्वा�हय� का अंतरण,”; और (घ) खंड (ङ) म� “उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2)” शब्द�, कोष्ठक� और अंक� के स्थान पर, “उप-पैरा (1)” शब्द, कोष्ठक और अंक रख �दए गए ह� ।] 5. कुछ वाद�, मामल� और अपराध� के �वचारण के �लए प्रादे �शक प�रषद� और िजला प�रषद� को तथा �कन्ह�ं न्यायालय� और अ�धका�रय� को �स�वल प्र�क्रया सं�हता, 1908 और दं ड प्र�क्रया सं�हता, 1898 1 के अधीन शिक्तय� का प्रदान �कया जाना – (1) राज्यपाल, �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श म� �कसी ऐसी प्रव� ृ �व�ध से, जो ऐसी �व�ध है िजसे राज्यपाल इस �न�म� �व�न�दर्ष्ट करे , उद्भूत वाद� या मामल� के �वचारण के �लए अथवा भारतीय दं ड सं�हता के अधीन या ऐसे िजले या प्रदे श म� तत्समय लागू �कसी अन्य �व�ध के अधीन मत्ृ यु से, आजीवन �नवार्सन से या पांच वषर् से अन्यन ू अव�ध के �लए कारावास से दं डनीय अपराध� के �वचारण के �लए, ऐसे िजले या प्रदे श पर प्रा�धकार रखने वाल� िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् को अथवा ऐसी िजला प�रषद् द्वारा ग�ठत न्यायालय� को अथवा राज्यपाल द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त �कसी अ�धकार� को, यथािस्थ�त, �स�वल प्र�क्रया सं�हता, 1908 या दं ड प्र�क्रया सं�हता, 18981 के अधीन ऐसी शिक्तयां प्रदान कर सकेगा जो वह सम�ु चत समझे और तब उक्त प�रषद्, न्यायालय या अ�धकार� इस प्रकार प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए वाद�, मामल� या अपराध� का �वचारण करे गा । (2) राज्यपाल, इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन �कसी िजला प�रषद्, प्रादे �शक प�रषद्, न्यायालय या अ�धकार� को प्रद� शिक्तय� म� से �कसी शिक्त को वापस ले सकेगा या उपांत�रत कर सकेगा । (3) इस पैरा म� अ�भव्यक्त रूप से यथा उपबं�धत के �सवाय, �स�वल प्र�क्रया सं�हता, 1908 और दं ड प्र�क्रया सं�हता, 18981 �कसी स्वशासी िजले म� या �कसी स्वशासी प्रदे श म� , िजसको इस पैरा के उपबंध लागू होते ह�, �कन्ह�ं वाद�, मामल� या अपराध� के �वचारण को लागू नह�ं होगी । 1. दं ड प्र�क्रया सं�हता, 1973 (1974 का 2) दे �खए । भारत का सं�वधान 291 (छठ� अनस ु च ू ी) [(4) राष्ट्रप�त द्वारा �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श के संबध ं म� पैरा 4 के उप-पैरा (5) के अधीन �नयत तार�ख को और से, उस िजले या प्रदे श को लागू होने म� इस पैरा क� �कसी बात के बारे म� यह नह�ं समझा जाएगा �क वह �कसी िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् को या िजला प�रषद् द्वारा ग�ठत न्यायालय� को इस पैरा के उपपैरा (1) म� �न�दर् ष्ट शिक्तय� म� से कोई शिक्त प्रदान करने के �लए राज्यपाल को प्रा�धकृत करती है ।] 1 2 [6. प्राथ�मक �वद्यालय, आ�द स्था�पत करने क� िजला प�रषद् क� शिक्त – (1) स्वशासी िजले क� िजला प�रषद् िजले म� प्राथ�मक �वद्यालय�, औषधालय�, बाजार�, 3 [कांजी हाउस�,] फेर�, मीन�ेत्र�, सड़क�, सड़क प�रवहन और जलमाग� क� स्थापना, �नमार्ण और प्रबंध कर सकेगी तथा राज्यपाल के पव ू र् अनम ु ोदन से, उनके �व�नयमन और �नयंत्रण के �लए �व�नयम बना सकेगी और, �व�शष्टतया, वह भाषा और वह र��त �व�हत कर सकेगी, िजससे िजले के प्राथ�मक �वद्यालय� म� प्राथ�मक �श�ा द� जाएगी । (2) राज्यपाल, िजला प�रषद् क� सहम�त से उस प�रषद् को या उसके अ�धका�रय� को कृ�ष, पशुपालन, सामुदा�यक प�रयोजनाओं, सहकार� सोसाइ�टय�, समाज कल्याण, ग्राम योजना या �कसी अन्य ऐसे �वषय के संबध ं म� , िजस पर 4*** राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार है, कृत्य सशतर् या �बना शतर् स�प सकेगा । 7. िजला और प्रादे �शक �न�धयां – (1) प्रत्येक स्वशासी िजले के �लए एक िजला �न�ध और प्रत्येक स्वशासी प्रदे श के �लए एक प्रादे �शक �न�ध ग�ठत क� जाएगी िजसम� क्रमशः उस िजले क� िजला प�रषद् द्वारा और उस प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् द्वारा इस सं�वधान के उपबंध� के अनस ु म ु ार, यथािस्थ�त, उस िजले या प्रदे श के प्रशासन के अनक्र म� प्राप्त सभी धनरा�शयां जमा क� जाएंगी । 1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) अंतःस्था�पत । 2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) पैरा 6 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. �नरसन और संशोधन अ�ध�नयम, 1974 (1974 का 56) क� धारा 4 द्वारा (20-12-1974 से) स्थान पर प्र�तस्था�पत । "कांजी हाउस" के 4. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "यथािस्थ�त, आसाम या मेघालय" शब्द� का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 292 (छठ� अनस ु च ू ी) [(2) राज्यपाल, यथािस्थ�त, िजला �न�ध या प्रादे �शक �न�ध के प्रबंध के �लए और उक्त �न�ध म� धन जमा करने, उसम� से धनरा�शयां �नकालने, उसके धन क� अ�भर�ा और पव ं म� ू �क्त �वषय� से संब�ं धत या आनष ु �ं गक �कसी अन्य �वषय के संबध अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया के �लए �नयम बना सकेगा । 1 (3) यथािस्थ�त, िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् के लेखे ऐसे प्ररूप म� रखे जाएंगे जो भारत का �नयंत्रक-महालेखापर��क राष्ट्रप�त के अनम ु ोदन से, �व�हत करे । (4) �नयंत्रक-महालेखापर��क िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� के लेखाओं क� संपर��ा ऐसी र��त से कराएगा जो वह ठ�क समझे और �नयंत्रक-महालेखापर��क के ऐसे लेखाओं से संब�ं धत प्र�तवेदन राज्यपाल के सम� प्रस्तत ु �कए जाएंगे जो उन्ह� प�रषद् के सम� रखवाएगा ।] 8. भू-राजस्व का �नधार्रण और संग्रहण करने तथा कर का अ�धरोपण करने क� शिक्तयां–(1) स्वशासी प्रदे श के भीतर क� सभी भू�मय� के संबध ं म� ऐसे प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् को और य�द िजले म� कोई प्रादे �शक प�रषद् ह� तो उनके प्रा�धकार के अधीन आने वाले �ेत्र� म� िस्थत भ�ू मय� को छोड़कर िजले के भीतर क� सभी भ�ू मय� के संबध ं म� स्वशासी िजले क� िजला प�रषद् को ऐसी भ�ू मय� क� बाबत, उन �सद्धांत� के 2 अनस ु ार राजस्व का �नधार्रण और संग्रहण करने क� शिक्त होगी, िजनका [साधारणतया राज्य म� भू-राजस्व के प्रयोजन के �लए भू�म के �नधार्रण म� राज्य क� सरकार द्वारा तत्समय अनस ु रण �कया जाता है ।] (2) स्वशासी प्रदे श के भीतर के �ेत्र� के संबध ं म� ऐसे प्रदे श क� प्रादे �शक प�रषद् को और य�द िजले म� कोई प्रादे �शक प�रषद् ह� तो उनके प्रा�धकार के अधीन आने वाले ं म� स्वशासी िजले क� िजला �ेत्र� को छोड़कर िजले के भीतर के सभी �ेत्र� के संबध प�रषद् को, भू�म और भवन� पर कर� का तथा ऐसे �ेत्र� म� �नवासी व्यिक्तय� पर पथकर का उद्ग्रहण और संग्रहण करने क� शिक्त होगी । (3) स्वशासी िजले क� िजला प�रषद् को ऐसे िजले के भीतर �नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं कर� का उद्ग्रहण और संग्रहण करने क� शिक्त होगी, अथार्त ् :– (क) व�ृ �, व्यापार, आजी�वका और �नयोजन पर कर ; (ख) जीवजंतुओ,ं यान� और नौकाओं पर कर ; 1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) उप-पैरा (2) के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 293 (छठ� अनस ु च ू ी) (ग) �कसी बाजार म� �वक्रय के �लए माल के प्रवेश पर कर और फेर� से ले जाए जाने वाले या�त्रय� और माल पर पथकर ; 1*** 2 [और] (घ) �वद्यालय�, औषधालय� या सड़क� को बनाए रखने के �लए कर ; [(ङ) मनोरं जन और आमोद-प्रमोद पर कर ।] 3 (4) इस पैरा के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3) म� �व�न�दर्ष्ट कर� म� से �कसी कर के उद्ग्रहण और संग्रहण का उपबंध करने के �लए, यथािस्थ�त, प्रादे �शक प�रषद् या िजला प�रषद् �व�नयम बना सकेगी 4[और ऐसा प्रत्येक �व�नयम राज्यपाल के सम� तरु न्त प्रस्तुत �कया जाएगा और जब तक वह उस पर अनम ु �त नह�ं दे दे ता है तब तक उसका कोई प्रभाव नह�ं होगा] । 5 9. ख�नज� के पव ू ��ण या �नष्कषर्ण के प्रयोजन के �लए अन� ु िप्तयां या पट्टे – (1) �कसी स्वशासी िजले के भीतर के �कसी �ेत्र के संबध ं म� 6[राज्य क� सरकार] द्वारा ख�नज� के पव ू ��ण या �नष्कषर्ण के प्रयोजन के �लए द� गई अन� ु िप्तय� या पट्ट� से प्रत्येक वषर् प्रोद्भत ू होने वाले स्वा�मस्व का ऐसा अंश, िजला प�रषद् को �दया जाएगा जो उस 6[राज्य क� सरकार] और ऐसे िजले क� िजला प�रषद् के बीच करार पाया जाए । (2) य�द िजला प�रषद् को �दए जाने वाले ऐसे स्वा�मस्व के अंश के बारे म� कोई �ववाद उत्पन्न होता है तो वह राज्यपाल को अवधारण के �लए �नद� �शत �कया जाएगा और राज्यपाल द्वारा अपने �ववेक के अनस ु ार अवधा�रत रकम इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन िजला प�रषद् को संदेय रकम समझी जाएगी और राज्यपाल का �व�नश्चय अं�तम होगा । 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 16(i) द्वारा (16-9-2016 से) "और" शब्द का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 16(ii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 16(iii) द्वारा (16-9-2016 से) अंतःस्था�पत । 4. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) अंतःस्था�पत । 5. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 9 �त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (2) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत उप-पैरा अंतःस्था�पत �कया जा सके, अथार्त ् :-- “(3) राज्यपाल, आदे श द्वारा, यह �नदे श दे सकेगा �क इस पैरा के अधीन िजला प�रषद् को �दया जाने वाला स्वा�मस्व का अंश उस प�रषद् को, यथािस्थ�त, उप-पैरा (1) के अधीन �कसी करार या उप-पैरा (2) के अधीन �कसी अवधारण क� तार�ख से एक वषर् क� अव�ध के भीतर �कया जाएगा ।”। 6. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "आसाम सरकार" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 294 (छठ� अनस ु च ू ी) 10. जनजा�तय� से �भन्न व्यिक्तय� क� साहूकार� और व्यापार के �नयंत्रण के 1 �लए �व�नयम बनाने क� िजला प�रषद् क� शिक्त – (1) स्वशासी िजले क� िजला प�रषद् उस िजले म� �नवासी जनजा�तय� से �भन्न व्यिक्तय� क� उस िजले के भीतर साहूकार� या व्यापार के �व�नयमन और �नयंत्रण के �लए �व�नयम बना सकेगी । (2) �व�शष्टतया और पव र् ामी शिक्त क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, ऐसे ू ग �व�नयम– (क) �व�हत कर सक�गे �क उस �न�म� द� गई अन� ु िप्त के धारक के अ�त�रक्त और कोई साहूकार� का कारोबार नह�ं करे गा ; (ख) साहूकार द्वारा प्रभा�रत या वसल �कए जाने वाले ब्याज क� ू अ�धकतम दर �व�हत कर सक�गे ; (ग) साहूकार� द्वारा लेखे रखे जाने का और िजला प�रषद� द्वारा इस �न�म� �नयक् ु त अ�धका�रय� द्वारा ऐसे लेखाओं के �नर��ण का उपबंध कर सक�गे ; (घ) �व�हत कर सक�गे �क कोई व्यिक्त, जो िजले म� �नवासी अनस ु ू�चत जनजा�तय� का सदस्य नह�ं है, िजला प�रषद् द्वारा इस �न�म� द� गई अन� ु िप्त के अधीन ह� �कसी वस्तु का थोक या फुटकर कारबार करे गा, अन्यथा नह�ं : 1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 10 �त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया :-- (क) शीषर्क म� से “जनजा�तय� से �भन्न व्यिक्तय� क�” शब्द� का लोप �कया जाएगा ; (ख) उप-पैरा (1) म� से “जनजा�तय� से �भन्न” शब्द� का लोप �कया जाएगा ; (ग) उप-पैरा (2) म� , खंड (घ) के स्थान पर, �नम्न�ल�खत खंड रखा जाएगा, अथार्त ् :-- “(घ) �व�हत कर सक�गे �क कोई व्यिक्त, जो िजले म� �नवासी है िजला प�रषद् द्वारा इस �न�म� द� गई अनु�िप्त के अधीन कोई थोक या फुटकर व्यापार करे गा अन्यथा नह�ं ।”। 295 भारत का सं�वधान (छठ� अनस ु च ू ी) परं तु इस पैरा के अधीन ऐसे �व�नयम तब तक नह�ं बनाए जा सक�गे जब तक वे िजला प�रषद् क� कुल सदस्य संख्या के कम से कम तीन चौथाई बहुमत द्वारा पा�रत नह�ं कर �दए जाते ह� : परं तु यह और �क ऐसे �कन्ह�ं �व�नयम� के अधीन �कसी ऐसे साहूकार या व्यापार� को जो ऐसे �व�नयम� के बनाए जाने के पहले से उस िजले के भीतर कारबार करता रहा है, अन� ु िप्त दे ने से इंकार करना स�म नह�ं होगा । (3) इस पैरा के अधीन बनाए गए सभी �व�नयम राज्यपाल के सम� तुरन्त प्रस्तुत �कए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनम ु �त नह�ं दे दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नह�ं होगा ।] ∗ * * * 11. अनस ु च ू ी के अधीन बनाई गई �व�धय�, �नयम� और �व�नयम� का प्रकाशन – िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् द्वारा इस अनस ु ूची के अधीन बनाई गई सभी �व�धयां, �नयम और �व�नयम राज्य के राजपत्र म� तुरन्त प्रका�शत �कए जाएंगे और ऐसे प्रकाशन पर �व�ध का बल रख�गे । ∗∗--∗∗∗ 12. 1[असम राज्य म� स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� को संसद् के और असम राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम� का लागू होना] –(1) इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – ∗ सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 10 आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजसम� उप-पैरा (3) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया गया :-- "(4) इस पैरा क� कोई बात, इस अनुसूची के पैरा 2 के उप-पैरा (3) के परन्तुक के अधीन ग�ठत बोडोल�ड प्रादे �शक प�रषद् को लागू नह�ं होगी ।"। ∗∗ सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा (12-9-1995 से) पैरा 12 आसाम राज्य को लागू करने के �लए �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-- 'पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म� , “इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द�, अंक� और अ�र के स्थान पर, “इस अनुसच ू ी के पैरा 3 या पैरा 3क या पैरा 3ख म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द, अंक और अ�र रखे जाएंगे ;'। ∗∗∗ सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 12 आसाम राज्य को लागू करने के �लए �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-- 'पैरा 12 के उप-पैरा (1) के खंड (क) म� , “ इस अनुसूची के पैरा 3 या पैरा 3क म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द�, अंक� और अ�र के स्थान पर, “इस अनुसूची के पैरा 3क या पैरा 3ख म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर् ष्ट �कया गया है” शब्द, अंक और अ�र रखे जाएंगे ;'। 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) शीषर्क के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 296 (छठ� अनस ु च ू ी) (क) [असम राज्य के �वधान-मंडल] का कोई अ�ध�नयम, जो ऐसे �वषय� 1 म� से �कसी �वषय के संबध ं म� है िजनको इस अनस ु च ू ी के पैरा 3 म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर्ष्ट �कया गया है, िजनके संबध ं म� िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् �व�धयां बना सकेगी और [असम राज्य के �वधान-मंडल] का कोई 1 अ�ध�नयम, जो �कसी अनासुत ऐल्कोहाल� �लकर के उपभोग को प्र�त�षद्ध या �नब��धत करता है, 2[उस राज्य म� ] �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक दोन� दशाओं म� से हर एक म� ऐसे िजले क� िजला प�रषद् या ऐसे प्रदे श पर अ�धका�रता रखने वाल� िजला प�रषद्, लोक अ�धसूचना द्वारा, इस प्रकार �नदे श नह�ं दे दे ती है और िजला प�रषद् �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� ऐसा �नदे श दे ते समय यह �नदे श दे सकेगी �क वह अ�ध�नयम ऐसे िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को लागू होने म� ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठ�क समझती है ; (ख) राज्यपाल, लोक अ�धसूचना द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क संसद् का या [असम राज्य के �वधान-मंडल] का कोई अ�ध�नयम, िजसे इस उप-पैरा के खंड 1 (क) के उपबंध लागू नह�ं होते ह� 2[उस राज्य म� ] �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को लागू नह�ं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट करे । (2) इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन �दया गया कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भत ू ल�ी प्रभाव हो । [12क. मेघालय राज्य म� स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� को संसद् के और 3 मेघालय राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम� का लागू होना – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी – 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "राज्य का �वधान-मंडल" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) अंतःस्था�पत । 3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) पैरा 12क के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 297 (छठ� अनस ु च ू ी) (क) य�द इस अनस ु ूची के पैरा 3 के उप-पैरा (1) म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� मेघालय राज्य म� �कसी िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध का कोई उपबंध या य�द इस अनस ू ूची के पैरा 8 या पैरा 10 के अधीन उस राज्य म� �कसी िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् द्वारा बनाए गए �कसी �व�नयम का कोई उपबंध, मेघालय राज्य के �वधान-मंडल द्वारा उस �वषय के संबध ं म� बनाई गई �कसी �व�ध के �कसी उपबंध के �वरुद्ध है तो, यथािस्थ�त, उस िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् द्वारा बनाई गई �व�ध या बनाया गया �व�नयम, चाहे वे मेघालय राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध से पहले बनाया गया हो या उसके पश्चात ्, उस �वरोध क� मात्रा तक शून्य होगा और मेघालय राज्य के �वधान-मंडल द्वारा बनाई गई �व�ध अ�भभावी होगी ; (ख) राष्ट्रप�त, संसद् के �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� , अ�धसच ू ना द्वारा �नदे श दे सकेगा �क वह मेघालय राज्य म� �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को लागू नह�ं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट करे और ऐसा कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भूतल�ी प्रभाव हो ।] [12कक. �त्रपरु ा राज्य म� स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� को संसद् के और �त्रपरु ा राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम� का लागू होना – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – 1 (क) �त्रपरु ा राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम, जो ऐसे �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� है िजनको इस अनस ु ूची के पैरा 3 म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर्ष्ट �कया गया है िजनके संबध ं म� िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् �व�धयां बना सकेगी, और �त्रपरु ा राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम जो �कसी अनासुत ऐल्कोहा�लक �लकर के उपभोग को प्र�त�षद्ध या �नब��धत करता है, उस राज्य म� �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक, दोन� दशाओं म� से हर एक म� , उस िजले क� िजला प�रषद् या ऐसे प्रदे श पर अ�धका�रता रखने वाल� िजला प�रषद् लोक अ�धसूचना द्वारा, इस प्रकार �नदे श नह�ं दे दे ती है और िजला प�रषद् �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� ऐसा �नदे श दे ते समय यह �नदे श दे सकेगी �क वह अ�ध�नयम उस िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को लागू होने म� ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठ�क समझती है ; 1. पैरा 12कक सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत �कया गया और तत्पश्चात ् सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 12कक और 12ख के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 298 (छठ� अनस ु च ू ी) (ख) राज्यपाल, लोक अ�धसूचना द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क �त्रपरु ा राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम, िजसे इस उप-पैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नह�ं होते ह�, उस राज्य म� �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को लागू नह�ं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अ�धसूचना म� �व�न�दर्ष्ट करे ; (ग) राष्ट्रप�त, संसद् के �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� , अ�धसूचना द्वारा �नदे श दे सकेगा �क वह �त्रपरु ा राज्य म� �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को लागू नह�ं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट करे और ऐसा कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भूतल�ी प्रभाव हो । 12ख. �मजोरम राज्य म� स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� को संसद् के और �मजोरम राज्य के �वधान-मंडल के अ�ध�नयम� को लागू होना – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, – (क) �मजोरम राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम जो ऐसे �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� है िजनको इस अनस ु ूची के पैरा 3 म� ऐसे �वषय� के रूप म� �व�न�दर्ष्ट �कया गया है िजनके संबध ं म� िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् �व�धयां बना सकेगी, और �मजोरम राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम, जो �कसी अनासुत ऐल्कोहा�लक �लकर के उपभोग को प्र�त�षद्ध या �नब��धत करता है, उस राज्य म� �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को तब तक लागू नह�ं होगा, जब तक, दोन� दशाओं म� से हर एक म� , उस िजले क� िजला प�रषद् या ऐसे प्रदे श पर अ�धका�रता रखने वाल� िजला प�रषद्, लोक अ�धसूचना द्वारा, इस प्रकार �नदे श नह�ं दे दे ती है और िजला प�रषद् �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� ऐसा �नदे श दे ते समय यह �नदे श दे सकेगी �क वह अ�ध�नयम उस िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को लागू होने म� ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठ�क समझती है ; (ख) राज्यपाल, लोक अ�धसच ू ना द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क �मजोरम राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम, िजसे इस उप-पैरा के खंड (क) के उपबंध लागू नह�ं होते ह�, उस राज्य म� �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को लागू नह�ं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह उस अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट करे ; भारत का सं�वधान 299 (छठ� अनस ु च ू ी) (ग) राष्ट्रप�त, संसद् के �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� , अ�धसूचना द्वारा �नदे श दे सकेगा �क वह �मजोरम राज्य म� �कसी स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श को लागू नह�ं होगा अथवा ऐसे िजले या प्रदे श या उसके �कसी भाग को ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए लागू होगा जो वह अ�धसच ू ना म� �व�न�दर्ष्ट करे और ऐसा कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भत ू ल�ी प्रभाव हो ।] 13. स्वशासी िजल� से संब�ं धत प्राक्क�लत प्रािप्तय� और व्यय का वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� पथ ृ क् रूप से �दखाया जाना – �कसी स्वशासी िजले से संब�ं धत प्राक्क�लत प्रािप्तयां और व्यय, जो 1*** राज्य क� सं�चत �न�ध म� जमा होनी ह� या उसम� से �कए जाने ह�, पहले िजला प�रषद् के सम� �वचार-�वमशर् के �लए रखे जाएंगे और �फर ऐसे �वचार-�वमशर् के पश्चात ् अनच् ु छे द 202 के अधीन राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखे जाने वाले वा�षर्क �व�ीय �ववरण म� पथ ृ क् रूप से �दखाए जाएंगे । 2 14. स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� के प्रशासन क� जांच करने और उस पर प्र�तवेदन दे ने के �लए आयोग क� �नयिु क्त – (1) राज्यपाल, राज्य म� स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� के प्रशासन के संबध ं म� अपने द्वारा �व�न�दर्ष्ट �कसी �वषय क�, िजसके अंतगर्त इस अनस ु ूची के पैरा 1 के उप-पैरा (3) के खंड (ग), खंड (घ), खंड (ङ) और खंड (च) म� �व�न�दर्ष्ट �वषय ह�, जांच करने और उस पर प्र�तवेदन दे ने के �लए �कसी भी समय आयोग �नयक् ु त कर सकेगा, या राज्य म� स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� के साधारणतया प्रशासन क� और �व�शष्टतया– (क) ऐसे िजल� और प्रदे श� म� �श�ा और �च�कत्सा क� स�ु वधाओं क� और संचार क� व्यवस्था क�, (ख) ऐसे िजल� और प्रदे श� के संबध ं म� �कसी नए या �वशेष �वधान क� आवश्यकता थी, और (ग) िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� द्वारा बनाई गई �व�धय�, �नयम� और �व�नयम� के प्रशासन क�, समय-समय पर जांच करने और उस पर प्र�तवेदन दे ने के �लए आयोग �नयक् ु त कर सकेगा और ऐसे आयोग द्वारा अनस ु रण क� जाने वाल� प्र�क्रया प�र�निश्चत कर सकेगा । 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "आसाम" शब्द का लोप �कया गया । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा पैरा 14 आसाम राज्य म� लागू होने के �लए �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-- 'पैरा 14 के उप-पैरा (2) म� , “राज्यपाल क� उससे संबं�धत �सफा�रश� के साथ” शब्द� का लोप �कया जाएगा ।'। भारत का सं�वधान 300 (छठ� अनस ु च ू ी) (2) संब�ं धत मंत्री, प्रत्येक ऐसे आयोग के प्र�तवेदन को, राज्यपाल क� उससे संब�ं धत �सफा�रश� के साथ, उस पर 1[राज्य क� सरकार] द्वारा क� जाने के �लए प्रस्ता�वत कारर्वाई के संबध ं म� स्पष्ट�कारक �ापन स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखेगा । (3) राज्यपाल राज्य क� सरकार के कायर् का अपने मं�त्रय� म� आबंटन करते समय अपने मं�त्रय� म� से एक मंत्री को राज्य के स्वशासी िजल� और स्वशासी प्रदे श� के कल्याण का �वशेषतया भारसाधक बना सकेगा । 15. िजला प�रषद� और प्रादे �शक प�रषद� के काय� और संकल्प� का �नप्रभाव या �नलं�बत �कया जाना – (1) य�द राज्यपाल का �कसी समय यह समाधान हो जाता है �क िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् के �कसी कायर् या संकल्प से भारत क� सुर�ा का संकटापन्न होना संभाव्य है 3[या लोक व्यवस्था पर प्र�तकूल प्रभाव पड़ना संभाव्य है] तो वह ऐसे कायर् या संकल्प को �नप्रभाव या �नलं�बत कर सकेगा और ऐसी कारर्वाई (िजसके अंतगर्त प�रषद् का �नलंबन और प�रषद् म� �न�हत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या �कन्ह�ं शिक्तय� को अपने हाथ म� ले लेना है) कर सकेगा जो वह ऐसे कायर् को �कए जाने या उसके चालू रखे जाने का अथवा ऐसे संकल्प को प्रभावी �कए जाने का �नवारण करने के �लए आवश्यक समझे । 2 (2) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन �कया गया आदे श, उसके �लए जो कारण ह� उनके स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� यथासंभवशीघ्र रखा जाएगा और य�द वह आदे श, राज्य के �वधान-मंडल द्वारा प्र�तसंहृत नह�ं कर �दया जाता है तो वह उस तार�ख से, िजसको वह इस प्रकार �कया गया था, बारह मास क� अव�ध तक प्रव� ृ बना रहे गा : परन्तु य�द और िजतनी बार, ऐसे आदे श को प्रव� ु ोदन ृ बनाए रखने का अनम करने वाला संकल्प राज्य के �वधान-मंडल द्वारा पा�रत कर �दया जाता है तो और उतनी बार वह आदे श, य�द राज्यपाल द्वारा रद्द नह�ं कर �दया जाता है तो, उस तार�ख से, िजसको वह इस पैरा के अधीन अन्यथा प्रवतर्न म� नह�ं रहता, बारह मास क� और अव�ध तक प्रव� ृ बना रहे गा । 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "आसाम सरकार" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 15 �त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया है :-- '(क) आरं �भक भाग म� , “राज्य के �वधान-मंडल द्वारा” शब्द� के स्थान पर, “राज्यपाल द्वारा” शब्द रखे जाएंगे ; (ख) परन्तुक का लोप �कया जाएगा ।'। 3. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) अंतःस्था�पत । 301 भारत का सं�वधान (छठ� अनस ु च ू ी) 16. िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् का �वघटन – 1 [(1) राज्यपाल, इस 2 अनस ु ूची के पैरा 14 के अधीन �नयक् ु त आयोग क� �सफा�रश पर, लोक अ�धसूचना द्वारा, �कसी िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् का �वघटन कर सकेगा, और– (क) �नदे श दे सकेगा �क प�रषद् के पन ु गर्ठन के �लए नया साधारण �नवार्चन तुरन्त कराया जाए ; या (ख) राज्य के �वधान-मंडल के पव ू र् अनम ु ोदन से ऐसी प�रषद् के प्रा�धकार के अधीन आने वाले �ेत्र का प्रशासन बारह मास से अन�धक अव�ध के �लए अपने हाथ म� ले सकेगा अथवा ऐसे �ेत्र का प्रशासन ऐसे आयोग को िजसे उक्त पैरा के अधीन �नयक् ु त �कया गया है या अन्य ऐसे �कसी �नकाय को िजसे वह उपयक् ु त समझता है, उक्त अव�ध के �लए दे सकेगा : परन्तु जब इस पैरा के खंड (क) के अधीन कोई आदे श �कया गया है तब राज्यपाल प्रश्नगत �ेत्र के प्रशासन के संबध ं म� , नया साधारण �नवार्चन होने पर प�रषद् के पन ु गर्ठन के लं�बत रहने तक, इस पैरा के खंड (ख) म� �न�दर्ष्ट कारर्वाई कर सकेगा : परन्तु यह और �क, यथािस्थ�त, िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् को राज्य के �वधान-मंडल के सम� अपने �वचार� को रखने का अवसर �दए �बना उस पैरा के खंड (ख) के अधीन कोई कारर्वाई नह�ं क� जाएगी । 1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) पैरा 16 �त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया है :-- '(क) उप-पैरा (1) के खंड (ख) म� आने वाले “राज्य के �वधान-मंडल के पूवर् अनुमोदन से” शब्द� और दूसरे परन्तुक का लोप �कया जाएगा ; (ख) उप-पैरा (3) के स्थान पर �नम्न�ल�खत उप-पैरा रखा जाएगा, अथार्त ् :-- “(3) इस पैरा के उप-पैरा (1) या उप-पैरा (2) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श, उसके �लए जो कारण है उनके स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखा जाएगा ।”।'. 2. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) पैरा 16 को उसके उप-पैरा (1) के रूप म� पुनस�ख्यां�कत �कया गया । 302 भारत का सं�वधान (छठ� अनस ु च ू ी) 1 [(2) य�द राज्यपाल का �कसी समय यह समाधान हो जाता है �क ऐसी िस्थ�त उत्पन्न हो गई है िजसम� स्वशासी िजले या स्वशासी प्रदे श का प्रशासन इस अनस ु ूची के उपबंध� के अनस ु ार नह�ं चलाया जा सकता है तो वह, यथािस्थ�त, िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् म� �न�हत या उसके द्वारा प्रयोक्तव्य सभी या कोई कृत्य या शिक्तयां, लोक अ�धसूचना द्वारा, छह मास से अन�धक अव�ध के �लए अपने हाथ म� ले सकेगा और यह घोषणा कर सकेगा �क ऐसे कृत्य या शिक्तयां उक्त अव�ध के दौरान ऐसे व्यिक्त या प्रा�धकार� द्वारा प्रयोक्तव्य ह�गी िजसे वह इस �न�म� �व�न�दर्ष्ट करे : परन्तु राज्यपाल आरं �भक आदे श का प्रवतर्न, अ�त�रक्त आदे श या आदे श� द्वारा, एक बार म� छह मास से अन�धक अव�ध के �लए बढ़ा सकेगा । (3) इस पैरा के उप-पैरा (2) के अधीन �कया गया प्रत्येक आदे श, उसके �लए जो कारण ह� उनके स�हत, राज्य के �वधान-मंडल के सम� रखा जाएगा और वह आदे श उस तार�ख से िजसको राज्य �वधान-मंडल उस आदे श के �कए जाने के पश्चात ् प्रथम बार बैठता है, तीस �दन क� समािप्त पर प्रवतर्न म� नह�ं रहेगा य�द उस अव�ध क� समािप्त से पहले राज्य �वधान-मंडल द्वारा उसका अनम ु ोदन नह�ं कर �दया जाता है ।] 2 17. स्वशासी िजल� म� �नवार्चन-�ेत्र� के बनाने म� ऐसे िजल� से �ेत्र� का अपवजर्न – राज्यपाल, 3[असम या मेघालय 4[या �त्रपरु ा 5[या �मजोरम]] क� �वधान सभा] के �नवार्चन� के प्रयोजन� के �लए, आदे श द्वारा, यह घोषणा कर सकेगा �क, 6[यथािस्थ�त, असम या मेघालय 4[या �त्रपरु ा 5[या �मजोरम]] राज्य म� ] �कसी स्वशासी िजले के भीतर का कोई �ेत्र ऐसे �कसी िजले के �लए �वधान सभा म� आर��त स्थान या स्थान� को भरने के �लए �कसी �नवार्चन-�ेत्र का भाग नह�ं होगा, �कन्तु �वधान सभा म� इस प्रकार आर��त न �कए गए ऐसे स्थान या स्थान� को भरने के �लए आदे श म� �व�न�दर्ष्ट �नवार्चन-�ेत्र का भाग होगा । [18.* 7 * * 1. आसाम पुनगर्ठन (मेघालय) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का 55) क� धारा 74 और चौथी अनुसूची द्वारा (2-4-1970 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा पैरा 17 आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत परन्तुक अंतःस्था�पत कर संशो�धत �कया गया, अथार्त ् :-- “परन्तु इस पैरा क� कोई बात बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजला को लागू नह�ं होगी ।”। 3. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "आसाम क� �वधान सभा" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत । 5. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) अंतःस्था�पत । 6. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) "आसाम क� �वधान सभा" के स्थान पर अंतःस्था�पत । 7. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) पैरा 18 का लोप �कया गया । 303 भारत का सं�वधान (छठ� अनस ु च ू ी) *] 19. संक्रमणकाल�न उपबंध – (1) राज्यपाल, इस सं�वधान के प्रारं भ के 1 पश्चात ् यथासंभव शीघ्र, इस अनस ु च ू ी के अधीन राज्य म� प्रत्येक स्वशासी िजले के �लए िजला प�रषद् के गठन के �लए कारर्वाई करे गा और जब तक �कसी स्वशासी िजले के �लए िजला प�रषद् इस प्रकार ग�ठत नह�ं क� जाती है राज्यपाल म� �न�हत होगा और ऐसे िजले के भीतर के तब तक ऐसे िजले का प्रशासन �ेत्र� के प्रशासन को इस अनस ु ूची के पव र् ामी उपबंध� के स्थान पर �नम्न�ल�खत उपबंध लागू ह�गे, अथार्त ् : – ू ग (क) संसद् का या उस राज्य के �वधान-मंडल का कोई अ�ध�नयम ऐसे �ेत्र को तब तक लागू नह�ं होगा जब तक राज्यपाल, लोक अ�धसच ू ना द्वारा, इस प्रकार �नदे श नह�ं दे दे ता है और राज्यपाल �कसी अ�ध�नयम के संबध ं म� ऐसा �नदे श दे ते समय यह �नदे श दे सकेगा �क वह अ�ध�नयम ऐसे �ेत्र या उसके �कसी �व�न�दर्ष्ट भाग को लागू होने म� ऐसे अपवाद� या उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा जो वह ठ�क समझता है ; (ख) राज्यपाल ऐसे �कसी �ेत्र क� शां�त और सुशासन के �लए �व�नयम बना सकेगा और इस प्रकार बनाए गए �व�नयम संसद् के या उस राज्य के �वधान-मंडल के �कसी अ�ध�नयम का या �कसी �वद्यमान �व�ध का, जो ऐसे �ेत्र को तत्समय लागू ह�, �नरसन या संशोधन कर सक�गे । (2) राज्यपाल द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (क) के अधीन �दया गया कोई �नदे श इस प्रकार �दया जा सकेगा �क उसका भत ू ल�ी प्रभाव हो । 1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) पैरा 19 आसाम राज्य को लागू करने म� �नम्न�ल�खत रूप से संशो�धत �कया गया िजससे उप-पैरा (3) के पश्चात ् �नम्न�ल�खत अंतःस्था�पत �कया गया, अथार्त ् :-- '(4) इस अ�ध�नयम के प्रारं भ के पश्चात ्, यथाशीघ्र आसाम म� बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजले के �लए एक अंत�रम कायर्पालक प�रषद्, राज्यपाल द्वारा बोडो आन्दोलन के नेताओं म� से, िजनके अंतगर्त समझौते के �ापन के हस्ता�रकतार् भी ह�, बनाई जाएगी और उसम� उस �ेत्र के गैर जनजातीय समुदाय� को भी पयार्प्त प्र�त�न�धत्व �दया जाएगा : परं तु अन्त�रम प�रषद् छह मास क� अव�ध के �लए होगी िजसके दौरान प�रषद् का �नवार्चन कराने का प्रयास �कया जाएगा । स्पष्ट�करण--इस उप-पैरा के प्रयोजन� के �लए, “समझौते का �ापन” पद से भारत सरकार, आसाम सरकार और बोडो �लबरे शन टाइगसर् के बीच 10 फरवर�, 2003 को हस्ता��रत �ापन अ�भप्रेत है ।'। 304 भारत का सं�वधान (छठ� अनस ु च ू ी) (3) इस पैरा के उप-पैरा (1) के खंड (ख) के अधीन बनाए गए सभी �व�नयम राष्ट्रप�त के सम� तरु न्त प्रस्तत ु �कए जाएंगे और जब तक वह उन पर अनम ु �त नह�ं दे दे ता है तब तक उनका कोई प्रभाव नह�ं होगा । [20. जनजा�त �ेत्र – (1) नीचे द� गई सारणी के भाग 1, भाग 2, 2[भाग 2क] 1 और भाग 3 म� �व�न�दर्ष्ट �ेत्र क्रमशः असम राज्य, मेघालय राज्य, 2[�त्रपरु ा राज्य] और �मजोरम 3[राज्य] के जनजा�त �ेत्र ह�गे । (2) 4[नीचे द� गई सारणी के भाग 1, भाग 2 या भाग 3 म� ] �कसी िजले के प्र�त �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह पव ू ��र �ेत्र (पन ु गर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 क� धारा 2 के खंड (ख) के अधीन �नयत �कए गए �दन से ठ�क पहले �वद्यमान उस नाम के स्वशासी िजले म� समा�वष्ट राज्य�ेत्र� के प्र�त �नद� श ह� : परन्तु इस अनस ु ूची के पैरा 3 के उप-पैरा (1) के खंड (ङ) और खंड (च), पैरा 4, पैरा 5, पैरा 6, पैरा 8 के उप-पैरा (2), उप-पैरा (3) के खंड (क), खंड (ख) और खंड (घ) और उप-पैरा (4) तथा पैरा 10 के उप-पैरा (2) के खंड (घ) के प्रयोजन� के �लए, �शलांग नगरपा�लका म� समा�वष्ट �ेत्र के �कसी भाग के बारे म� यह नह�ं समझा जाएगा �क वह 5[खासी पहाड़ी िजले] के भीतर है । [(3) नीचे द� गई सारणी के भाग 2क म� “�त्रपरु ा जनजा�त �ेत्र िजला” के प्र�त 2 �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह �त्रपरु ा जनजा�त �ेत्र स्वशासी िजला प�रषद् अ�ध�नयम, 1979 क� पहल� अनस ु च ू ी म� �व�न�दर्ष्ट जनजा�त �ेत्र� म� समा�वष्ट राज्य�ेत्र के प्र�त �नद� श है ।] 1. पूव��र �ेत्र (पुनगर्ठन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 81) क� धारा 71(झ) और आठवीं अनुसूची द्वारा (21-1-1972 से) पैरा 20 और 20क के स्थान पर प्र�तस्था�पत । पैरा 20क को तत्पश्चात ् भारत संघ राज्य�ेत्र (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 83) क� धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) प्र�तस्था�पत �कया गया था । 2. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत । 3. �मजोरम राज्य अ�ध�नयम, 1986 (1986 का 34) क� धारा 39 द्वारा (20-2-1987 से) "संघ राज्य�ेत्र" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) प्र�तस्था�पत । 5. मेघालय सरकार क� अ�धसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तार�ख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क. तार�ख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 305 (छठ� अनस ु च ू ी) सारणी भाग 1 1. उ�र� कछार पहाड़ी िजला । 2. 1[काब� आंगलांग िजला ।] 2 [3. बोडोल�ड प्रादे �शक �ेत्र िजला ।] भाग 2 3 [1. खासी पहाड़ी िजला । 2. जयं�तया पहाड़ी िजला ।] 3. गारो पहाड़ी िजला । 4 [भाग 2क �त्रपरु ा जनजा�त �ेत्र िजला ।] भाग 3 5 * * * 6 [1. चकमा िजला । 7 [2. मारा िजला । 3. लई िजला ।]] 8 [20क. �मजो िजला प�रषद् का �वघटन – (1) इस अनस ु च ू ी म� �कसी बात के होते हुए भी, �व�हत तार�ख से ठ�क पहले �वद्यमान �मजो िजले क� िजला प�रषद् (िजसे इसम� इसके पश्चात ् �मजो िजला प�रषद् कहा गया है) �वघ�टत हो जाएगी और �वद्यमान नह�ं रह जाएगी । 1. आसाम सरकार द्वारा तार�ख 14-10-1976 क� अ�धसूचना सं. ट�.ए.डी./आर.115/74/47 द्वारा "�मक�र पहाड़ी िजला" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 (2003 का 44) क� धारा 2 द्वारा (7-9-2003 से) अंतःस्था�पत । 3. मेघालय सरकार क� अ�धसूचना सं. डी.सी.ए. 31/72/11, तार�ख 14 जून, 1973, मेघालय का राजपत्र, भाग 5क. तार�ख 23-6-1973, प.ृ 200 द्वारा प्र�तस्था�पत । 4. सं�वधान (उनचासवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 4 द्वारा (1-4-1985 से) अंतःस्था�पत । 5. संघ राज्य�ेत्र शासन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 83) क� धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) "�मजो िजला" शब्द� का लोप �कया गया । 6. �मजोरम का राजपत्र 1972. तार�ख 5 मई, 1972, िजल्द 1, भाग 2, प.ृ 17 म� प्रका�शत �मजोरम िजला प�रषद् (प्रक�णर् उपबंध) आदे श, 1972 द्वारा (29-4-1972 से) अंतःस्था�पत । 7. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) क्रम सं0 2 और 3 तथा उनसे संब�ं धत प्र�विष्टय� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 8. संघ राज्य�ेत्र शासन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का 83) क� धारा 13 द्वारा (29-4-1972 से) पैरा 20क के स्थान पर पैरा 20क, 20ख और 20ग प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 306 (छठ� अनस ु च ू ी) (2) �मजोरम संघ राज्य�ेत्र का प्रशासक, एक या अ�धक आदे श� द्वारा, �नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं �वषय� के �लए उपबंध कर सकेगा, अथार्त ् :– (क) �मजो िजला प�रषद् क� आिस्तय�, अ�धकार� और दा�यत्व� का (िजनके अतंगत र् उसके द्वारा क� गई �कसी सं�वदा के अधीन अ�धकार और दा�यत्व ह�) पण र् ः या भागतः संघ को या �कसी अन्य प्रा�धकार� को अंतरण ; ू त (ख) �कन्ह�ं ऐसी �व�धक कायर्वा�हय� म� , िजनम� �मजो िजला प�रषद् एक प�कार है, �मजो िजला प�रषद् के स्थान पर संघ का या �कसी अन्य प्रा�धकार� का प�कार के रूप म� रखा जाना अथवा संघ का या �कसी अन्य प्रा�धकार� का प�कार के रूप म� जोड़ा जाना ; (ग) �मजो िजला प�रषद् के �कन्ह�ं कमर्चा�रय� का संघ को या �कसी अन्य प्रा�धकार� को अथवा उसके द्वारा अंतरण या पन ु �नर्योजन, ऐसे अंतरण या पन ु �नर्योजन के पश्चात ् उन कमर्चा�रय� को लागू होने वाले सेवा के �नबंधन और शत� ; (घ) �मजो िजला प�रषद् द्वारा बनाई गई और उसके �वघटन से ठ�क पहले प्रव� ु ू लन� और उपांतरण� के, चाहे वे �नरसन के ृ �कन्ह�ं �व�धय� का, ऐसे अनक रूप म� ह� या संशोधन के रूप म� , अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस �न�म� �कए जाएं, तब तक प्रव� ृ बना रहना जब तक �कसी स�म �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा ऐसी �व�धय� म� प�रवतर्न, �नरसन या संशोधन नह�ं कर �दया जाता है ; (ङ) ऐसे आनष ु �ं गक, पा�रणा�मक और अनप ु ूरक �वषय जो प्रशासक आवश्यक समझे । स्पष्ट�करण – इस पैरा म� और इस अनस ु ूची के पैरा 20ख म� , “�व�हत तार�ख” पद से वह तार�ख अ�भप्रेत है िजसको �मजोरम संघ राज्य�ेत्र क� �वधान सभा का, संघ राज्य�ेत्र शासन अ�ध�नयम, 1963 के उपबंध� के अधीन और उनके अनस ु ार, सम्यक् रूप से गठन होता है । 20ख. �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� स्वशासी प्रदे श� का स्वशासी िजले होना और उसके पा�रणा�मक संक्रमणकाल�न उपबंध – (1) इस अनस ु ूची म� �कसी बात के होते हुए भी,– (क) �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� �व�हत तार�ख से ठ�क पहले �वद्यमान प्रत्येक स्वशासी प्रदे श उस तार�ख को और से उस संघ राज्य�ेत्र का स्वशासी िजला (िजसे इसम� इसके पश्चात ्, तत्स्थानी नया िजला कहा गया है) हो जाएगा और उसका प्रशासक, एक या अ�धक आदे श� द्वारा, �नदे श दे सकेगा �क इस अनस ु ूची के पैरा 20 म� (िजसके अंतगर्त उस पैरा से संलग्न सारणी का भाग 3 है) ऐसे पा�रणा�मक संशोधन �कए जाएंगे जो इस खंड के उपबंध� को प्रभावी करने के �लए आवश्यक ह� और तब उक्त पैरा और उक्त भाग 3 के बारे म� यह समझा जाएगा �क उनका तद्नस ु ार संशोधन कर �दया गया है ; भारत का सं�वधान 307 (छठ� अनस ु च ू ी) (ख) �मजोरम संघ राज्य�ेत्र म� �व�हत तार�ख से ठ�क पहले �वद्यमान स्वशासी प्रदे श क� प्रत्येक प्रादे �शक प�रषद् (िजसे इसम� इसके पश्चात ् �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् कहा गया है) उस तार�ख को और से और जब तक तत्स्थानी नए िजले के �लए प�रषद् का सम्यक् रूप से गठन नह�ं होता है तब तक, उस िजले क� िजला प�रषद् (िजसे इसम� इसके पश्चात ् तत्स्थानी नई िजला प�रषद् कहा गया है) समझी जाएगी । (2) �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् का प्रत्येक �नवार्�चत या नाम�नद� �शत सदस्य तत्स्थानी नई िजला प�रषद् के �लए, यथािस्थ�त, �नवार्�चत या नाम�नद� �शत समझा जाएगा और तब तक पद धारण करे गा जब तक इस अनस ु च ू ी के अधीन तत्स्थानी नए िजले के �लए िजला प�रषद् का सम्यक् रूप से गठन नह�ं होता है । (3) जब तक तत्स्थानी नई िजला प�रषद् द्वारा इस अनस ु च ू ी के पैरा 2 के उपपैरा (7) और पैरा 4 के उप-पैरा (4) के अधीन �नयम नह�ं बनाए जाते ह� तब तक �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् द्वारा उक्त उपबंध� के अधीन बनाए गए �नयम, जो �व�हत तार�ख से ठ�क पहले प्रव� ं म� ऐसे अनक ु ू लन� ृ ह�, तत्स्थानी नई िजला प�रषद् के संबध और उपांतरण� के अधीन रहते हुए प्रभावी ह�गे जो �मजोरम संघ राज्य�ेत्र के प्रशासक द्वारा उनम� �कए जाएं । (4) �मजोरम संघ राज्य�ेत्र का प्रशासक, एक या अ�धक आदे श� द्वारा, �नम्न�ल�खत सभी या �कन्ह�ं �वषय� के �लए उपबंध कर सकेगा, अथार्त ् : – (क) �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् क� आिस्तय�, अ�धकार� और दा�यत्व� का (िजनके अंतगर्त उसके द्वारा क� गई �कसी सं�वदा के अधीन अ�धकार और दा�यत्व ह�) पण र् ः या भागतः तत्स्थानी नई िजला प�रषद् को अंतरण ; ू त (ख) �कन्ह�ं ऐसी �व�धक कायर्वा�हय� म� , िजनम� �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् एक प�कार है, �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् के स्थान पर तत्स्थानी नई िजला प�रषद् का प�कार के रूप म� रखा जाना ; (ग) �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् के �कन्ह�ं कमर्चा�रय� का तत्स्थानी नई िजला प�रषद् को अथवा उसके द्वारा अंतरण या पन ु �नर्योजन ; ऐसे अंतरण या पन ु �नर्योजन के पश्चात ् उन कमर्चा�रय� को लागू होने वाले सेवा के �नबंधन और शत� ; भारत का सं�वधान 308 (छठ� अनस ु च ू ी) (घ) �वद्यमान प्रादे �शक प�रषद् द्वारा बनाई गई और �व�हत तार�ख से ठ�क पहले प्रव� ु ू लन� और उपांतरण� के, चाहे वे ृ �कन्ह�ं �व�धय� का, ऐसे अनक �नरसन के रूप म� ह� या संशोधन के रूप म� , अधीन रहते हुए जो प्रशासक द्वारा इस �न�म� �कए जाएं, तब तक प्रव� ृ बना रहना जब तक स�म �वधान-मंडल द्वारा या अन्य स�म प्रा�धकार� द्वारा ऐसी �व�धय� म� प�रवतर्न, �नरसन या संशोधन नह�ं कर �दया जाता है ; (ङ) ऐसे आनष ु �ं गक, पा�रणा�मक और अनप ु ूरक �वषय जो प्रशासक आवश्यक समझे । [20खक. राज्यपाल द्वारा अपने कृत्य� के �नवर्हन म� वैव�े कक शिक्तय� का प्रयोग -- राज्यपाल, इस अनस ु ूची के पैरा 1 के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3), पैरा 2 के 1 उप-पैरा (1), उप-पैरा (6), उप-पैरा (6क) के पहले परन्तक ु को छोड़कर और उप-पैरा (7), पैरा 3 के उप-पैरा (3), पैरा 4 के उप-पैरा (4), पैरा 5, पैरा 6 के उप-पैरा (1), पैरा 7 के उप-पैरा (2), पैरा 8 के उप-पैरा (4), पैरा 9 के उप-पैरा (3), पैरा 10 के उप-पैरा (3), पैरा 14 के उप-पैरा (1), पैरा 15 के उप-पैरा (1) और पैरा 16 के उप-पैरा (1) और उपपैरा (2) के अधीन अपने कृत्य� के �नवर्हन म� , मं�त्र-प�रषद् और, यथािस्थ�त, उ�र� कछार पहाड़ी स्वशासी प�रषद् या काब� आंगलांग पहाड़ी स्वशासी प�रषद् से परामशर् करने के पश्चात ् ऐसी कारर्वाई करे गा, जो वह स्व�ववेकानस ु ार आवश्यक मानता है ।] [20खख. राज्यपाल द्वारा अपने कृत्य� के �नवर्हन म� वैवे�कक शिक्तय� का प्रयोग -- राज्यपाल, इस अनस ु ूची के पैरा 1 के उप-पैरा (2) और उप-पैरा (3), पैरा 2 के 2 उप-पैरा (1) और उप-पैरा (7), पैरा 3 का उप-पैरा (3), पैरा 4 का उप-पैरा (4), पैरा 5, पैरा 6 का उप-पैरा (1), पैरा 7 का उप-पैरा (2), पैरा 9 का उप-पैरा (3), पैरा 14 का उप-पैरा (1), पैरा 15 का उप-पैरा (1) और पैरा 16 का उप-पैरा (1) और उप-पैरा (2) के अधीन अपने कृत्य� के �नवर्हन म� , मं�त्र-प�रषद् से और य�द वह आवश्यक समझे तो संब�ं धत िजला प�रषद् या प्रादे �शक प�रषद् से परामशर् करने के पश्चात ्, ऐसी कारर्वाई करे गा, जो वह स्व�ववेकानस ु ार आवश्यक समझे ।] 1. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 (1995 का 42) क� धारा 2 द्वारा (12-9-1995 से) आसाम म� लागू होने के �लए पैरा 20खक अंतःस्था�पत �कया गया । 2. सं�वधान छठ� अनुसूची (संशोधन) अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 67) क� धारा 2 द्वारा (16-12-1988 से) �त्रपुरा और �मजोरम राज्य� को लागू करने म� , पैरा 20खख अंतःस्था�पत �कया गया । भारत का सं�वधान 309 (छठ� अनस ु च ू ी) 20ग. �नवर्चन – इस �न�म� बनाए गए �कसी उपबंध के अधीन रहते हुए, इस अनस ु च ू ी के उपबंध �मजोरम संघ राज्य�ेत्र को उनके लागू होने म� इस प्रकार प्रभावी ह�गे – (1) मानो राज्य के राज्यपाल और राज्य क� सरकार के प्र�त �नद� श अनच् ु छे द 239 के अधीन �नयक् ु त संघ राज्य�ेत्र के प्रशासक के प्र�त �नद� श ह� ; (“राज्य क� सरकार” पद के �सवाय) राज्य के प्र�त �नद� श �मजोरम संघ राज्य�ेत्र के प्र�त �नद� श ह� और राज्य �वधान-मंडल के प्र�त �नद� श �मजोरम संघ राज्य�ेत्र क� �वधान सभा के प्र�त �नद� श ह� ; (2) मानो– (क) पैरा 4 के उप-पैरा (5) म� संब�ं धत राज्य क� सरकार से परामशर् करने के उपबंध का लोप कर �दया गया हो ; (ख) पैरा 6 के उप-पैरा (2) म� , “िजस पर राज्य क� कायर्पा�लका शिक्त का �वस्तार है” शब्द� के स्थान पर “िजसके संबध ं म� �मजोरम संघ राज्य�ेत्र क� �वधान सभा को �व�धयां बनाने क� शिक्त है” शब्द रख �दए गए ह� ; (ग) पैरा 13 म� , “अनच् ु छे द 202 के अधीन” शब्द� और अंक� का लोप कर �दया गया हो । 21. अनस ु ूची का संशोधन – (1) संसद्, समय-समय पर �व�ध द्वारा, इस अनस ु ूची के उपबंध� म� से �कसी का, प�रवधर्न, प�रवतर्न या �नरसन के रूप म� संशोधन कर सकेगी और जब अनस ु च ू ी का इस प्रकार संशोधन �कया जाता है तब इस सं�वधान म� इस अनस ु च ू ी के प्र�त �कसी �नद� श का यह अथर् लगाया जाएगा �क वह इस प्रकार संशो�धत ऐसी अनस ु ूची के प्र�त �नद� श है । (2) ऐसी कोई �व�ध जो इस पैरा के उप-पैरा (1) म� उिल्ल�खत है, इस सं�वधान के अनच् ु छे द 368 के प्रयोजन� के �लए इस सं�वधान का संशोधन नह�ं समझी जाएगी । सातवीं अनुसच ू ी (अऩच् ु छे द 246) सच ू ी 1 – संघ सच ू ी 1. भारत क� और उसके प्रत्येक भाग क� र�ा, िजसके अंतगर्त र�ा के �लए तैयार� और ऐसे सभी कायर् ह�, जो यद् ु ध के समय यद् ु ध के संचालन और उसक� समािप्त के पश्चात ् प्रभावी सैन्य�वयोजन म� सहायक ह� । 2. नौसेना, सेना और वायस ु ेना ; संघ के अन्य सशस्त्र बल । 1 [2क. संघ के �कसी सशस्त्र बल या संघ के �नयंत्रण के अधीन �कसी अन्य बल का या उसक� �कसी टुकड़ी या य�ू नट का �कसी राज्य म� �स�वल शिक्त क� सहायता म� अ�भ�नयोजन; ऐसे अ�भ�नयोजन के समय ऐसे बल� के सदस्य� क� शिक्तयां, अ�धका�रता, �वशेषा�धकार और दा�यत्व । ] 3. छावनी �ेत्र� का प�रसीमन, ऐसे �ेत्र� म� स्थानीय स्वशासन, ऐसे �ेत्र� के भीतर छावनी प्रा�धका�रय� का गठन और उनक� शिक्तयां तथा ऐसे �ेत्र� म� गह ृ वाससु�वधा का �व�नयमन (िजसके अंतगर्त भाटक का �नयंत्रण है) । 4. नौसेना, सेना और वायस ु ेना संकमर् । 5. आयध ु , अग्न्यायध ु , गोलाबारूद और �वस्फोटक । 6. परमाणु ऊजार् और उसके उत्पादन के �लए आवश्यक ख�नज संप�� स्रोत । 7. संसद् द्वारा �व�ध द्वारा र�ा के प्रयोजन के �लए या यद् ु ध के संचालन के �लए आवश्यक घो�षत �कए गए उद्योग । 8. केन्द्र�य आसूचना और अन्वेषण ब्यरू ो । ं ी कारण� से �नवारक �नरोध ; इस 9. र�ा, �वदे श कायर् या भारत क� सरु �ा संबध प्रकार �नरोध म� रखे गए व्यिक्त । है । 10. �वदे श कायर्, सभी �वषय िजनके द्वारा संघ का �कसी �वदे श से संबध ं होता 11. राजन�यक, क�सल�य और व्यापा�रक प्र�त�न�धत्व । 12. संयक् ु त राष्ट्र संघ । 13. अंतरराष्ट्र�य सम्मेलन�, संगम� और अन्य �नकाय� म� भाग लेना और उनम� �कए गए �व�नश्चय� का कायार्न्वयन। 14. �वदे श� से सं�ध और करार करना और �वदे श� से क� गई सं�धय�, करार� और अ�भसमय� का कायार्न्वयन । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 310 भारत का सं�वधान 311 (सातवीं अनस ु ूची) 15. यद् ु ध और शां�त । 16. वैदे�शक अ�धका�रता । 17. नाग�रकता, दे शीयकरण और अन्यदे शीय । 18. प्रत्यपर्ण । 19. भारत म� प्रवेश और उसम� से उत्प्रवास और �नष्कासन, पासपोटर् और वीजा । 20. भारत से बाहर के स्थान� क� तीथर्यात्राएं । 21. खल ु े समद्र ु या आकाश म� क� गई दस्यत ु ा और अपराध; स्थल या खल ु े समद्र ु या आकाश म� राष्ट्र� क� �व�ध के �वरुद्ध �कए गए अपराध । 22. रे ल । 23. ऐसे राजमागर् िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन राष्ट्र�य राजमागर् घो�षत �कया गया है । 24. यंत्र नो�दत जलयान� के संबध ं म� ऐसे अंतद� शीय जलमाग� पर पोत प�रवहन और नौ प�रवहन जो संसद् द्वारा �व�ध द्वारा राष्ट्र�य जलमागर् घो�षत �कए गए ह�; ऐसे जलमाग� पर मागर् का �नयम । 25.समद्र र् ज्वार�य जल म� पोतु � पोत प�रवहन और नौ प�रवहन, िजसके अतंगत प�रवहन और नौ प�रवहन है ; वा�णिज्यक समुद्र� बेड़े के �लए �श�ा और प्र�श�ण क� व्यवस्था तथा राज्य� और अन्य अ�भकरण� द्वारा द� जाने वाल� ऐसी �श�ा और प्र�श�ण का �व�नयमन । 26. प्रकाशस्तंभ, िजनके अंतगर्त प्रकाशपोत, बीकन तथा पोत प�रवहन और वायय ु ान� क� सरु �ा के �लए अन्य व्यवस्था है । 27. ऐसे प�न िजन्ह� संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध या �वद्यमान �व�ध द्वारा या उसके अधीन महाप�न घो�षत �कया जाता है, िजसके अंतगर्त उनका प�रसीमन और उनम� प�न प्रा�धका�रय� का गठन और उनक� शिक्तयां ह� । 28. प�न कंरतीन, िजसके अंतगर्त उससे संबद्ध अस्पताल ह� ; ना�वक और समुद्र�य अस्पताल । 29. वायम ु ागर्, वायय ु ान और �वमान चालन; �वमान�ेत्र� क� व्यवस्था ; �वमान यातायात और �वमान�ेत्र� का �व�नयमन और संगठन; वैमा�नक �श�ा और प्र�श�ण के �लए व्यवस्था तथा राज्य� और अन्य अ�भकरण� द्वारा द� जाने वाल� ऐसी �श�ा और प्र�श�ण का �व�नयमन । 30. रे ल, समुद्र या वायु मागर् द्वारा अथवा यंत्र नो�दत जलयान� म� राष्ट्र�य जलमाग� द्वारा या�त्रय� और माल का वहन । 312 भारत का सं�वधान (सातवीं अनस ु ूची) 31. डाक-तार; टे ल�फोन, बेतार, प्रसारण और वैसे ह� अन्य संचार साधन । 32. संघ क� संप�� और उससे राजस्व, �कं तु �कसी 1*** राज्य म� िस्थत संप�� के संबध ं म� , वहां तक के �सवाय जहां तक संसद् �व�ध द्वारा अन्यथा उपबंध करे , उस राज्य के �वधान के अधीन रहते हुए । 1 2 [33* * * * *] 34. दे शी राज्य� के शासक� क� संपदा के �लए प्र�तपाल्य अ�धकरण । 35. संघ का लोक ऋण । 36. कर� सी, �सक्का �नमार्ण और वैध �न�वदा, �वदे शी मुद्रा । 37. �वदे शी ऋण । 38. भारतीय �रजवर् ब�क । 39. डाकघर बचत ब�क । 40. भारत सरकार या �कसी राज्य क� सरकार द्वारा संचा�लत लाटर� । 41. �वदे श� के साथ व्यापार और वा�णज्य ; सीमाशुल्क सीमांत� के आर-पार आयात और �नयार्त ; सीमाशुल्क सीमांत� का प�र�नश्चय । 42. अंतररािज्यक व्यापार और वा�णज्य । 43. व्यापार �नगम� का, िजनके अंतगर्त ब�ककार�, बीमा और �व�ीय �नगम ह� �कं तु सहकार� सोसाइट� नह�ं ह�, �नगमन, �व�नयमन और प�रसमापन । 44. �वश्व�वद्यालय� को छोड़कर ऐसे �नगम� का, चाहे वे व्यापार �नगम ह� या नह�ं, िजनके उद्दे श्य एक राज्य तक सी�मत नह�ं ह�, �नगमन, �व�नयमन और प�रसमापन । 45. ब�ककार� । 46. �व�नमय-पत्र, चेक, बचत पत्र और वैसी ह� अन्य �लखत� । 47. बीमा । 48. स्टाक एक्सच� ज और वायदा बाजार । 49. पेट�ट, आ�वष्कार और �डजाइन; प्र�त�लप्य�धकार; व्यापार �चह्न और पण्य वस्तु �चह्न । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) "पहल� अनूसूची के भाग क या भाग ख म� �व�न�दर् ष्ट" शब्द� और अ�र� का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 33 का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 313 (सातवीं अनस ु ूची) 50. बाट� और माप� के मानक �नयत करना । 51. भारत से बाहर �नयार्त �कए जाने वाले या एक राज्य से दस ू रे राज्य को प�रवहन �कए जाने वाले माल क� क्वा�लट� के मानक �नयत करना । 52. वे उद्योग िजनके संबध ं म� संसद् ने �व�ध द्वारा घोषणा क� है �क उन पर संघ का �नयंत्रण लोक�हत म� समीचीन है । 53. तेल�ेत्र� और ख�नज तेल संप�� स्रोत� का �व�नयमन और �वकास; पेट्रो�लयम और पेट्रो�लयम उत्पाद; अन्य द्रव और पदाथर् िजनके �वषय म� संसद् ने �व�ध द्वारा घोषणा क� है �क वे खतरनाक रूप से ज्वलनशील ह� । 54. उस सीमा तक खान� का �व�नयमन और ख�नज� का �वकास िजस तक संघ के �नयंत्रण के अधीन ऐसे �व�नयमन और �वकास को संसद्, �व�ध द्वारा, लोक �हत म� समीचीन घो�षत करे । 55. खान� और तेल�ेत्र� म� श्रम और सुर�ा का �व�नयमन । 56. उस सीमा तक अंतररािज्यक न�दय� और नद� दन ू � का �व�नयमन और �वकास िजस तक संघ के �नयंत्रण के अधीन ऐसे �व�नयमन और �वकास को संसद्, �व�ध द्वारा, लोक�हत म� समीचीन घो�षत करे । 57. राज्य�ेत्रीय सागरखंड से परे मछल� पकड़ना और मीन �ेत्र । 58. संघ के अ�भकरण� द्वारा नमक का �व�नमार्ण, प्रदाय और �वतरण; अन्य अ�भकरण� द्वारा �कए गए नमक के �व�नमार्ण, प्रदाय और �वतरण का �व�नयमन और �नयंत्रण । 59. अफ�म क� खेती, उसका �व�नमार्ण और �नयार्त के �लए �वक्रय । 60. प्रदशर्न के �लए चल�चत्र �फल्म� क� मंजरू � । 61. संघ के कमर्चा�रय� से संब�ं धत औद्यो�गक �ववाद । 62. इस सं�वधान के प्रारं भ पर राष्ट्र�य पस् ु तकालय, भारतीय संग्रहालय, इंपी�रयल यद् ु ध संग्रहालय, �वक्टो�रया स्मारक और भारतीय यद् ु ध स्मारक नाम� से �ात संस्थाएं और भारत सरकार द्वारा पण र् ः या भागतः �व�पो�षत और संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा, ू त राष्ट्र�य महत्व क� घो�षत वैसी ह� कोई अन्य संस्था । 63. इस सं�वधान के प्रारं भ पर काशी �हन्द ू �वश्व�वद्यालय, अल�गढ़ मुिस्लम �वश्व�वद्यालय और 1[�दल्ल� �वश्व�वद्यालय] नाम� से �ात संस्थाएं ; 1[अनच् ु छे द 371ङ के अनस ु रण म� स्था�पत �वश्व�वद्यालय ;] संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा राष्ट्र�य महत्व क� घो�षत कोई अन्य संस्था । 1. सं�वधान (ब�ीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 क� धारा 4 द्वारा (1-7-1974 से) "�दल्ल� �वश्व�वद्यालय और" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 314 (सातवीं अनस ु ूची) 64. भारत सरकार द्वारा पण र् ः या भागतः �व�पो�षत और संसद् द्वारा, �व�ध ू त द्वारा, राष्ट्र�य महत्व क� घो�षत वै�ा�नक या तकनीक� �श�ा संस्थाएं । 65. संघ के अ�भकरण और संस्थाएं जो– (क) व�ृ �क, व्यावसा�यक या तकनीक� प्र�श�ण के �लए ह� िजसके अंतगर्त प�ु लस अ�धका�रय� का प्र�श�ण है ; या (ख) �वशेष अध्ययन या अनस ु ंधान क� अ�भवद् ृ �ध के �लए ह� ; या (ग) अपराध के अन्वेषण या पता चलाने म� वै�ा�नक या तकनीक� सहायता के �लए ह� । 66. उच्चतर �श�ा या अनस ु ंधान संस्थाओं म� तथा वै�ा�नक और तकनीक� संस्थाओं म� मानक� का समन्वय और अवधारण । 67. 1[संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन] राष्ट्र�य महत्व के [घो�षत] प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक और अ�भलेख तथा परु ातत्वीय स्थल और अवशेष । 1 68. भारतीय सव��ण, भारतीय भू-वै�ा�नक, वनस्प�त �व�ान, प्राणी �व�ान और मानव शास्त्र सव��ण ; मौसम �व�ान संगठन । 69. जनगणना । 70. संघ लोक सेवाएं ; अ�खल भारतीय सेवाएं, संघ लोक सेवा आयोग । 71. संघ क� प� शन� , अथार्त ् भारत सरकार द्वारा या भारत क� सं�चत से संदेय प�शन� । �न�ध म� 72. संसद् के �लए, राज्य� के �वधान-मंडल� के �लए तथा राष्ट्रप�त और उपराष्ट्रप�त के पद� के �लए �नवार्चन; �नवार्चन आयोग । 73. संसद् सदस्य� के, राज्य सभा के सभाप�त और उपसभाप�त के तथा लोक सभा के अध्य� और उपाध्य� के वेतन और भ�े । 74. संसद् के प्रत्येक सदन क� और प्रत्येक सदन के सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मुिक्तयां; संसद् क� स�म�तय� या संसद् द्वारा �नयक् ु त आयोग� के सम� सा�य दे ने या दस्तावेज पेश करने के �लए व्यिक्तय� को हािजर कराना । 75. राष्ट्रप�त और राज्यपाल� क� उपलिब्धयां, भ�े, �वशेषा�धकार और अनप ं म� अ�धकार ; संघ के मं�त्रय� के वेतन और भ�े ; �नयंत्रकु िस्थ�त छुट्ट� के संबध महालेखापर��क के वेतन, भ�े और अनप ं म� अ�धकार और सेवा ु िस्थ�त छुट्ट� के संबध क� अन्य शत� । 1. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संसद् द्वारा �व�ध द्वारा घो�षत" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 315 (सातवीं अनस ु ूची) 76. संघ के और राज्य� के लेखाओं क� संपर��ा । 77. उच्चतम न्यायालय का गठन, संगठन, अ�धका�रता और शिक्तयां (िजनके अंतगर्त उस न्यायालय का अवमान है) और उसम� ल� जाने वाल� फ�स ; उच्चतम न्यायालय के सम� �व�ध-व्यवसाय करने के हकदार व्यिक्त । 78. उच्च न्यायालय� के अ�धका�रय� और सेवक� के बारे म� उपबंध� को छोड़कर उच्च न्यायालय� का गठन और संगठन 1[(िजसके अंतगर्त द�घार्वकाश है)] ; उच्च न्यायालय� के सम� �व�ध-व्यवसाय करने के हकदार व्यिक्त। [79. �कसी उच्च न्यायालय क� अ�धका�रता का �कसी संघ राज्य�ेत्र पर �वस्तारण और उससे अपवजर्न ।] 2 80. �कसी राज्य के प�ु लस बल के सदस्य� क� शिक्तय� और अ�धका�रता का उस राज्य से बाहर �कसी �ेत्र पर �वस्तारण, �कन्तु इस प्रकार नह�ं �क एक राज्य क� प�ु लस उस राज्य से बाहर �कसी �ेत्र म� उस राज्य क� सरकार क� सहम�त के �बना िजसम� ऐसा �ेत्र िस्थत है, शिक्तय� और अ�धका�रता का प्रयोग करने म� समथर् हो सके; �कसी राज्य के प�ु लस बल के सदस्य� क� शिक्तय� और अ�धका�रता का उस राज्य से बाहर रे ल �ेत्र� पर �वस्तारण । 81. अंतररािज्यक प्रव्रजन ; अंतररािज्यक करं तीन । 82. कृ�ष-आय से �भन्न आय पर कर । 83. सीमाशुल्क िजसके अंतगर्त �नयार्त शुल्क है । [84. भारत म� �व�न�मर्त या उत्पा�दत �नम्न�ल�खत माल पर उत्पाद-शुल्क,-- 3 (क) अप�रष्कृत पैट्रो�लयम ; (ख) उच्च ग�त डीजल ; (ग) मोटर िस्प�रट (सामान्य रूप से पेट्रोल के रूप म� �ात) ; (घ) प्राकृ�तक गैस ; (ङ) �वमानन टबार्इन �धन ; और (च) तंबाकू और तंबाकू उत्पाद ।] 85. �नगम कर । 1. सं�वधान (पंद्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1963 क� धारा 12 द्वारा (भूतल�ी प्रभाव से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 29 और अनुसूची द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 79 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(क)(i) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 84 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 316 (सातवीं अनस ु ूची) 86. व्यिष्टय� और कंप�नय� क� आिस्तय� के, िजनके अंतगर्त कृ�ष भ�ू म नह�ं है, पज ूं ी मल् ू य पर कर ; कंप�नय� क� पज ूं ी पर कर । 87. कृ�ष भू�म से �भन्न संप�� के संबध ं म� संपदा शुल्क । 88. कृ�ष भू�म से �भन्न संप�� के उ�रा�धकार के संबध ं म� शुल्क । 89. रे ल, समुद्र या वायम ु ागर् द्वारा ले जाए जाने वाले माल या या�त्रय� पर सीमा कर ; रे ल भाड़� और माल भाड़� पर कर । कर । 90. स्टाक एक्सच� ज� और वायदा बाजार� के संव्यवहार� पर स्टांप-शुल्क से �भन्न 91. �व�नमय-पत्र�, चेक�, वचनपत्र�, वहनपत्र�, प्रत्ययपत्र�, बीमा पा�ल�सय�, शेयर� के अंतरण, �डब� चर�, परो��य� और प्रािप्तय� के संबध ं म� स्टांप-शल् ु क क� दर । 1 [92. * * * * *] [92क. समाचारपत्र� से �भन्न माल के िजसम� ऐसा क्रय या �वक्रय अंतररािज्यक व्यापार 3 [92ख. माल के परे षण पर (चाहे परे षण अन्य व्यिक्त को �कया गया है), उस दशा म� व्यापार या वा�णज्य के दौरान होता है ।] 4 [92ग. * * * 93. इस सूची के �वषय� म� से �कसी अपराध । 2 क्रय या �वक्रय पर उस दशा म� कर या वा�णज्य के दौरान होता है ।] उसके करने वाले व्यिक्त को या �कसी कर िजसम� ऐसा परे षण अंतररािज्यक * *] �वषय से संब�ं धत �व�धय� के �वरुद्ध 94. इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के प्रयोजन� के �लए जांच, सव��ण और आंकड़े । 95. उच्चतम न्यायालय से �भन्न सभी न्यायालय� क� इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� अ�धका�रता और शिक्तयां ; नाव�धकरण �वषयक अ�धका�रता । 96. इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� फ�स, �कन्तु इसके अंतगर्त �कसी न्यायालय म� ल� जाने वाल� फ�स नह�ं है । 97. कोई अन्य �वषय जो सच ू ी 2 या सच ू ी 3 म� प्रग�णत नह�ं है और िजसके अंतगर्त कोई ऐसा कर है जो उन सू�चय� म� से �कसी सूची म� उिल्ल�खत नह�ं है । 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 92 का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) अंतःस्था�पत । 3. सं�वधान (�छयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 क� धारा 5 द्वारा (2-2-1983 से) अंतःस्था�पत । 4. प्र�विष्ट 92ग सं�वधान (अठासीवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 4 द्वारा (जो प्रव� ृ नह�ं हुई) अंतःस्था�पत क� गई थी और उसका सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(क)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) लोप �कया गया । 317 भारत का सं�वधान (सातवीं अनस ु ूची) सच ू ी 2 – राज्य सच ू ी 1. लोक व्यवस्था (�कं तु इसके अंतगर्त �स�वल शिक्त क� सहायता के �लए [नौसेना, सेना या वायु सेना या संघ के �कसी अन्य सशस्त्र बल का या संघ के �नयंत्रण के अधीन �कसी अन्य बल का या उसक� �कसी टुकड़ी या य�ू नट का प्रयोग] नह�ं है) । 1 [2. सूची 1 क� प्र�विष्ट 2क के उपबंध� के अधीन रहते हुए प�ु लस (िजसके अंतगर्त रे ल और ग्राम प�ु लस है)।] 2 3. 3*** उच्च न्यायालय के अ�धकार� और सेवक; भाटक और राजस्व न्यायालय� क� प्र�क्रया ; उच्चतम न्यायालय से �भन्न सभी न्यायालय� म� ल� जाने वाल� फ�स । 4. कारागार, सुधारालय, बौस्टर्ल संस्थाएं और उसी प्रकार क� अन्य संस्थाएं और उनम� �नरुद्ध व्यिक्त ; कारागार� और अन्य संस्थाओं के उपयोग के �लए अन्य राज्य� से ठहराव । 5. स्थानीय शासन, अथार्त ् नगर �नगम�, सुधार न्यास�, िजला बोड�, खनन-बस्ती प्रा�धका�रय� और स्थानीय स्वशासन या ग्राम प्रशासन के प्रयोजन� के �लए अन्य स्थानीय प्रा�धका�रय� का गठन और शिक्तयां । 6. लोक स्वास्थ्य और स्वच्छता ; अस्पताल और औषधालय । 7. भारत से बाहर के स्थान� क� तीथर्यात्राओं से �भन्न तीथर्यात्राएं । 8. मादक �लकर, अथार्त ् मादक �लकर का उत्पादन, �व�नमार्ण, कब्जा, प�रवहन, क्रय और �वक्रय । 9. �नःशक्त और �नयोजन के �लए अयोग्य व्यिक्तय� क� सहायता । 10. शव गाड़ना और क�ब्रस्तान; शवदाह और श्मशान । 4 [11* * * * *] 12. राज्य द्वारा �नयं�त्रत या �व�पो�षत पस् ु तकालय, संग्रहालय या वैसी ह� अन्य संस्थाएं; 5[संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन] राष्ट्र�य महत्व के 5 [घो�षत] �कए गए प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक� और अ�भलेख� से �भन्न प्राचीन और ऐ�तहा�सक संस्मारक और अ�भलेख । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 2 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) कुछ शब्द� का लोप �कया गया । 4. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 11 का लोप �कया गया । 5. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संसद् द्वारा �व�ध द्वारा घो�षत" प्र�तस्था�पत । 318 भारत का सं�वधान (सातवीं अनस ु ूची) 13. संचार, अथार्त ् सड़क�, पल ु , फेर� और अन्य संचार साधन जो सच ू ी 1 म� �व�न�दर्ष्ट नह�ं ह� ; नगरपा�लक ट्राम ; रज्जम ं म� सच ु ागर् ; अंतद� शीय जलमाग� के संबध ू ी 1 और सूची 3 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अंतद� शीय जलमागर् और उन पर यातायात; यंत्र-नो�दत यान� से �भन्न यान । 14. कृ�ष िजसके अंतगर्त कृ�ष �श�ा और अनस ु ंधान, नाशक जीव� से संर�ण और पादप रोग� का �नवारण है । 15. पशुधन का प�रर�ण, संर�ण और सुधार तथा जीवजंतुओं के रोग� का �नवारण ; पशु�च�कत्सा प्र�श�ण और व्यवसाय । 16. कांजी हाउस और पशु अ�तचार का �नवारण । 17. सच ू ी 1 क� प्र�विष्ट 56 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, जल अथार्त ् जल प्रदाय, �संचाई और नहर� , जल �नकास और तटबंध, जल भंडारकरण और जल शिक्त । 18. भू�म, अथार्त ् भू�म म� या उस पर अ�धकार, भूध�ृ त िजसके अंतगर्त भूस्वामी और अ�भधार� का संबध ं है और भाटक का संग्रहण ; कृ�ष भू�म का अंतरण और अन्य संक्रामण; भ�ू म �वकास और कृ�ष उधार ; उप�नवेशन । 1 * * * * 20* * * * *] [19* 21. मित्स्यक� । 22. सच ू ी 1 क� प्र�विष्ट 34 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, प्र�तपाल्य-अ�धकरण ; �वल्लंग�मत और कुकर् क� गई संपदा । 23. संघ के �नयंत्रण के अधीन �व�नयमन और �वकास के संबध ं म� सूची 1 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, खान� का �व�नयमन और ख�नज �वकास । 24. सच ू ी 1 क� उद्योग । [प्र�विष्ट 7 और प्र�विष्ट 52] के उपबंध� के अधीन रहते हुए, 2 25. गैस और गैस-संकमर् । 26. सूची 3 क� प्र�विष्ट 33 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्य के भीतर व्यापार और वा�णज्य । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 19 और प्र�विष्ट 20 का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 28 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 52 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 319 भारत का सं�वधान (सातवीं अनस ु ूची) 27. सूची 3 क� प्र�विष्ट 33 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, माल का उत्पादन, प्रदाय और �वतरण । 28. बाजार और मेले । [29. * 1 * * * 30. साहूकार� और साहूकार; कृ�ष ऋ�णता से मुिक्त । 31. पांथशाला और पांथशालापाल । *] 32. ऐसे �नगम� का, जो सूची 1 म� �व�न�दर्ष्ट �नगम� से �भन्न ह� और �वश्व�वद्यालय� का �नगमन, �व�नयमन और प�रसमापन ; अ�नग�मत व्यापा�रक, सा�हित्यक, वै�ा�नक, धा�मर्क और अन्य सोसाइ�टयां और संगम ; सहकार� सोसाइ�टयां । 33. नाटय़शाला और नाट्यप्रदशर्न ; सूची 1 क� प्र�विष्ट अधीन रहते हुए, �सनेमा; खेलकूद, मनोरं जन और आमोद । 34. दांव और द्यत ू । 60 के उपबंध� के 35. राज्य म� �न�हत या उसके कब्जे के संकमर्, भू�म और भवन । [36. 2 * * * *] 37. संसद् द्वारा बनाई गई �कसी �व�ध के उपबंध� के अधीन रहते हुए, राज्य के �वधान-मंडल के �लए �नवार्चन । 38. राज्य के �वधान-मंडल के सदस्य� के, �वधान सभा के अध्य� और उपाध्य� के और, य�द �वधान प�रषद् है तो, उसके सभाप�त और उपसभाप�त के वेतन और भ�े । 39. �वधान सभा क� और उसके सदस्य� और स�म�तय� क� तथा, य�द �वधान प�रषद् है तो, उस �वधान प�रषद् क� और उसके सदस्य� और स�म�तय� क� शिक्तयां, �वशेषा�धकार और उन्मिु क्तयां; राज्य के �वधान-मंडल क� स�म�तय� के सम� सा�य दे ने या दस्तावेज पेश करने के �लए व्यिक्तय� को हािजर कराना । 40. राज्य के मं�त्रय� के वेतन और भ�े । 41. राज्य लोक सेवाएं ; राज्य लोक सेवा आयोग । प� शन । 42. राज्य क� प� शन� , अथार्त ् राज्य द्वारा या राज्य क� सं�चत �न�ध म� से संदेय 43. राज्य का लोक ऋण । 44. �नखात �न�ध । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�विष्ट 29 का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�विष्ट 36 का लोप �कया गया । 320 भारत का सं�वधान (सातवीं अनस ु ूची) 45. भू-राजस्व िजसके अंतगर्त राजस्व का �नधार्रण और संग्रहण, भ-ू अ�भलेख रखना, राजस्व के प्रयोजन� के �लए और अ�धकार� के अ�भलेख� के �लए सव��ण और राजस्व का अन्य संक्रामण है । 46. कृ�ष आय पर कर । 47. कृ�ष भ�ू म के उ�रा�धकार के संबध ं म� शुल्क । 48. कृ�ष भू�म के संबध ं म� संपदा-शुल्क । 49. भू�म और भवन� पर कर । ं म� अ�धरो�पत �नबर्न्धन� 50. संसद् द्वारा, �व�ध द्वारा, ख�नज �वकास के संबध के अधीन रहते हुए, ख�नज संबध ं ी अ�धकार� पर कर । 51. राज्य म� �व�न�मर्त या उत्पा�दत �नम्न�ल�खत माल पर उत्पाद-शुल्क और भारत म� अन्यत्र �व�न�मर्त या उत्पा�दत वैसे ह� माल पर उसी दर या �नम्नतर दर से प्र�तशुल्क– (क) मानवीय उपभोग के �लए ऐल्कोहाल� �लकर ; पदाथर्, (ख) अफ�म, इं�डयन ह� प और अन्य स्वापक ओष�धयां तथा स्वापक �कन्तु िजसके अंतगर्त ऐसी ओष�धयां और प्रसाधन �न�मर्�तयां नह�ं ह� िजनम� ऐल्कोहाल या इस प्र�विष्ट के उपपैरा (ख) का कोई पदाथर् अंत�वर्ष्ट है । 1 [52. * * * 53. �वद्यत ु के उपभोग या �वक्रय पर कर । [54. अप�रष्कृत पैट्रो�लयम, उच्च ग�त पेट्रोल के रूप म� �ात), प्राकृ�तक गैस, �वमानन �लए एल्कोहाल� �लकर के �वक्रय पर कर अन्तररािज्यक व्यापार या वा�णज्य के अनक्र ु म वा�णज्य के दौरान �वक्रय नह�ं आता है ।] 2 3 [55. * * * * डीजल, मोटर टबार्इन �धन �कं तु इसके म� �वक्रय या * *] िस्प�रट (सामान्य रूप और मानवीय उपभोग अंतगर्त ऐसे माल अन्तरराष्ट्र�य व्यापार से के का या *] 56. सड़क� या अन्तद� शीय जलमाग� द्वारा ले जाए जाने वाले माल और या�त्रय� पर कर । 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(i) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 52 का लोप �कया गया । 2. सं�वधान (छठा संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 2 द्वारा (11-9-1956 से) प्र�तस्था�पत तथा पुनः सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(ii) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(iii) द्वारा (16-9-2016 से) लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 321 (सातवीं अनस ु ूची) 57. सूची 3 क� प्र�विष्ट 35 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, सड़क� पर उपयोग के योग्य यान� पर कर, चाहे वे यंत्र नो�दत ह� या नह�ं, िजनके अंतगर्त ट्रामकार ह� । 58. जीवजंतओ ु ं और नौकाओं पर कर । 59. पथकर । 60. व�ृ �य�, व्यापार�, आजी�वकाओं और �नयोजन पर कर । 61. प्र�तव्यिक्त कर । 1 [62. मनोरं जन और आमोद-प्रमोद पर उस सीमा तक कर जो �कसी पंचायत या �कसी नगरपा�लका या �कसी प्रादे �शक प�रषद् या �कसी िजला प�रषद् द्वारा उद्गह ृ �त और संगह ृ �त �कया जाए ।] 63. स्टांप-शुल्क क� दर� के संबध ं म� सच ू ी 1 के उपबंध� म� �व�न�दर्ष्ट दस्तावेज� से �भन्न दस्तावेज� के संबध ं म� स्टांप-शुल्क क� दर । 64. इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय से संब�ं धत �व�धय� के �वरुद्ध अपराध । 65. उच्चतम न्यायालय से �भन्न सभी न्यायालय� क� इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� अ�धका�रता और शिक्तयां । 66. इस सच ं म� फ�स, �कन्तु इसके ू ी के �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध अंतगर्त �कसी न्यायालय म� ल� जाने वाल� फ�स नह�ं है । सच ू ी 3 – समवत� सूची 1. दं ड �व�ध िजसके अंतगर्त ऐसे सभी �वषय ह� जो इस सं�वधान के प्रारं भ पर भारतीय दं ड सं�हता के अंतगर्त आते ह�, �कन्तु इसके अंतगर्त सूची 1 या सूची 2 म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी �वषय से संब�ं धत �व�धय� के �वरुद्ध अपराध और �स�वल शिक्त क� सहायता के �लए नौसेना, सेना या वायस ु ेना अथवा संघ के �कसी अन्य सशस्त्र बल का प्रयोग नह�ं है । 2. दं ड प्र�क्रया िजसके अंतगर्त ऐसे सभी �वषय ह� जो इस सं�वधान के प्रारं भ पर दं ड प्र�क्रया सं�हता के अंतगर्त ह� । 3. �कसी राज्य क� सुर�ा, लोक व्यवस्था बनाए रखने या समुदाय के �लए आवश्यक प्रदाय� और सेवाओं को बनाए रखने संबध ं ी कारण� से �नवारक �नरोध, इस प्रकार �नरोध म� रखे गए व्यिक्त । 4. बं�दय�, अ�भयक् ु त व्यिक्तय� और इस सूची क� प्र�विष्ट 3 म� �व�न�दर्ष्ट कारण� से �नवारक �नरोध म� रखे गए व्यिक्तय� का एक राज्य से दस ू रे राज्य को हटाया जाना । 1. सं�वधान (एक सौ एकवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2016 क� धारा 17(ख)(iv) द्वारा (16-9-2016 से) प्र�विष्ट 62 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 322 (सातवीं अनस ु ूची) 5. �ववाह और �ववाह-�वच्छे द; �शशु और अवयस्क; द�क- ग्रहण; �वल, �नवर्सीयतता और उ�रा�धकार ; अ�वभक्त कुटुम्ब और �वभाजन ; वे सभी �वषय, िजनके संबंध म� न्या�यक कायर्वा�हय� म� प�कार इस सं�वधान के प्रारं भ से ठ�क पहले अपनी स्वीय �व�ध के अधीन थे । 6. कृ�ष भ�ू म से �भन्न संप�� का अंतरण ; �वलेख� और दस्तावेज� का रिजस्ट्र�करण । 7. सं�वदाएं, िजनके अंतगर्त भागीदार�, अ�भकरण, वहन क� सं�वदाएं और अन्य �वशेष प्रकार क� सं�वदाएं ह�, �कन्तु कृ�ष भ�ू म संबध ं ी सं�वदाएं नह�ं ह� । 8. अनय ु ोज्य दोष । 9. शोधन अ�मता और �दवाला । 10. न्यास और न्यासी । 11. महाप्रशासक और शासक�य न्यासी । 1 [11क. न्याय प्रशासन ; उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय� से �भन्न सभी न्यायालय� का गठन और संगठन ।] 12. सा�य और शपथ ; �व�धय�, लोक काय� और अ�भलेख� और न्या�यक कायर्वा�हय� को मान्यता । 13. �स�वल प्र�क्रया, िजसके अंतगर्त ऐसे सभी �वषय ह� जो इस सं�वधान के प्रारं भ पर �स�वल प्र�क्रया सं�हता के अंतगर्त आते ह�, प�रसीमा और माध्यस्थम ् । 14. न्यायालय का अवमान, �कन्तु इसके अंतगर्त उच्चतम न्यायालय का अवमान नह�ं है । 15. आ�हंडन ; यायावर� और प्रव्राजी जनजा�तयां । 16. पागलपन और मनोवैकल्य, िजसके अंतगर्त पागल� और मनो�वकल व्यिक्तय� को ग्रहण करने या उनका उपचार करने के स्थान ह� । 17. पशुओं के प्र�त क्रूरता का �नवारण । [17क. वन । 1 17ख. वन्य जीवजंतुओं और प��य� का संर�ण ।] 18. खाद्य पदाथ� और अन्य माल का अप�मश्रण । 19. अफ�म के संबध ं म� सूची 1 क� प्र�विष्ट 59 के उपबंध� के अधीन रहते हुए मादक द्रव्य और �वष । 20. आ�थर्क और सामािजक योजना । [20क. जनसंख्या �नयंत्रण और प�रवार �नयोजन ।] 1 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 323 (सातवीं अनस ु ूची) 21. वा�णिज्यक और औद्यो�गक एका�धकार, गुट और न्यास । 22. व्यापार संघ ; औद्यो�गक और श्रम �ववाद । 23. सामािजक सुर�ा और सामािजक बीमा ; �नयोजन और बेकार� । 24. श्र�मक� का कल्याण िजसके अंतगर्त कायर् क� दशाएं, भ�वष्य �न�ध, �नयोजक का दा�यत्व, कमर्कार प्र�तकर, अशक्तता और वाधर्क्य प� शन तथा प्रस�ू त सु�वधाएं ह� । [25. सूची 1 क� प्र�विष्ट 63, 64, 65 और 66 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, �श�ा िजसके अंतगर्त तकनीक� �श�ा, आय�ु वर्�ान �श�ा और �वश्व�वद्यालय ह� ; श्र�मक� का व्यावसा�यक और तकनीक� प्र�श�ण ।] 1 26. �व�ध व�ृ �, �च�कत्सा व�ृ � और अन्य व�ृ �यां । 27. भारत और पा�कस्तान डो�म�नयन� के स्था�पत होने के कारण अपने मूल �नवास-स्थान से �वस्था�पत व्यिक्तय� क� सहायता और पन ु वार्स । 28. पत ू र् कायर् और पत ू र् संस्थाएं, पत ू र् और धा�मर्क �वन्यास और धा�मर्क संस्थाएं । 29. मानव�, जीव-जंतुओं या पौध� पर प्रभाव डालने वाले संक्रामक या सांस�गर्क रोग� अथवा नाशकजीव� के एक राज्य से दस ू रे राज्य म� फैलने का �नवारण । 30. जन्म-मरण सांिख्यक�, िजसके अंतगर्त जन्म और मत्ृ यु रिजस्ट्र�करण है । 31. संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध या �वद्यमान �व�ध द्वारा या उसके अधीन महाप�न घो�षत प�न� से �भन्न प�न । 32. राष्ट्र�य जलमाग� के संबध ं म� सूची 1 के उपबंध� के अधीन रहते हुए, अंतद� शीय जलमाग� पर यंत्र नो�दत जलयान� के संबध ं म� पोत प�रवहन और नौ प�रवहन तथा ऐसे जलमाग� पर मागर् का �नयम और अंतद� शीय जलमाग� द्वारा या�त्रय� और माल का वहन । [33. (क) जहां संसद् द्वारा �व�ध द्वारा �कसी उद्योग का संघ द्वारा �नयंत्रण लोक�हत म� समीचीन घो�षत �कया जाता है वहां उस उद्योग के उत्पाद� का और उसी प्रकार के आयात �कए गए माल का ऐसे उत्पाद� के रूप म� , 2 (ख) खाद्य पदाथ� का िजनके अंतगर्त खाद्य �तलहन और तेल ह�, (ग) पशुओं के चारे का िजसके अंतगर्त खल� और अन्य सारकृत चारे ह�, और (घ) कच्ची कपास का, चाहे वह ओट� हुई हो या �बना ओट� हो, और �बनौले का, (ङ) कच्चे जट ू का, 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) प्र�तस्था�पत । 2. सं�वधान (तीसरा संशोधन) अ�ध�नयम, 1954 क� धारा 2 द्वारा (22-2-1955 से) प्र�विष्ट 33 के स्थान पर प्र�तस्था�पत । भारत का सं�वधान 324 (सातवीं अनस ु ूची) व्यापार और वा�णज्य तथा उनका उत्पादन, प्रदाय और �वतरण ।] [33क. बाट और माप, िजनके अंतगर्त मानक� का �नयत �कया जाना नह�ं है ।] 1 34. क�मत �नयंत्रण । 35. यंत्र नो�दत यान िजसके अंतगर्त वे �सद्धान्त ह� िजनके अनस ु ार ऐसे यान� पर कर उद्गह ृ �त �कया जाना है । 36. कारखाने । 37. बायलर । 38. �वद्यत ु । 39. समाचारपत्र, पस् ु तक� और मुद्रणालय । 40. 2[संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन] राष्ट्र�य महत्व के 2 [घो�षत] परु ातत्वीय स्थल� और अवशेष� से �भन्न परु ातत्वीय स्थल और अवशेष । 41. ऐसी संप�� क� (िजसके अंतगर्त कृ�ष भ�ू म है) अ�भर�ा, प्रबंध और व्ययन जो �व�ध द्वारा �नष्क्रांत संप�� घो�षत क� जाए । [42. संप�� का अजर्न और अ�धग्रहण ।] 3 43. �कसी राज्य म� , उस राज्य से बाहर उद्भूत कर से संब�ं धत दाव� और अन्य लोक मांग� क� वसूल� िजनके अंतगर्त भू-राजस्व क� बकाया और ऐसी बकाया के रूप म� वसूल क� जा सकने वाल� रा�शयां ह� । 44. न्या�यक स्टांप� के द्वारा संगह ृ �त शुल्क� या फ�स� से �भन्न स्टांप-शुल्क, �कन्तु इसके अंतगर्त स्टांप-शुल्क क� दर� नह�ं ह� । 45. सच ू ी 2 या सच ू ी 3 म� �व�न�दर्ष्ट �वषय� म� से �कसी �वषय़ के प्रयोजन� के �लए जांच और आंकड़े । 46. उच्चतम न्यायालय से �भन्न सभी न्यायालय� क� इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� अ�धका�रता और शिक्तयां । 47. इस सूची के �वषय� म� से �कसी �वषय के संबध ं म� फ�स, �कन्तु इसके अंतगर्त �कसी न्यायालय म� ल� जाने वाल� फ�स नह�ं है । 1. सं�वधान (बयाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 57 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 27 द्वारा (1-11-1956 से) "संसद् द्वारा बनाई गई �व�ध द्वारा या उसके अधीन घो�षत" के स्थान पर प्र�तस्था�पत । 3. सं�वधान (सातवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1956 क� धारा 26 द्वारा (1-11-1956 से) प्र�तस्था�पत । आठवीं अनुसूची [अनच् ु छे द 344(1) और अनच् ु छे द 351] 1. अस�मया । भाषाएं 2. बंगला । [3. बोडो । 1 4. डोगर� ।] [5.] गज ु राती । 2 [6.] �हन्द� । 3 [7.] कन्नड । 3 [8.] कश्मीर� । 3 [ [9.] क�कणी ।] 4 3 [10. मै�थल� ।] 1 [11.] मलयालम । 5 [ [12.] म�णपरु � ।] 4 6 [13.] मराठ� । 6 [ [14.] नेपाल� ।] 4 6 [15.] 7[ओ�डया] 6 [16.] पंजाबी । 6 [17.] संस्कृत । 6 1. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अन्तःस्था�पत । 2. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 3 को प्र�विष्ट 5 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 3. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 4 से 7 को प्र�विष्ट 6 से प्र�विष्ट 9 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 4. सं�वधान (इकह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 2 द्वारा (31-8-1992 से) अन्तःस्था�पत । 5. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 8 को प्र�विष्ट 11 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 6. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 9 से प्र�विष्ट 14 को प्र�विष्ट 12 से प्र�विष्ट 17 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 7. सं�वधान (�छयानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2011 क� धारा 2 द्वारा (23-9-2011 से) “उ�ड़या” के स्थान पर प्र�तस्था�पत। 325 भारत का सं�वधान 326 (आठवीं अनस ु च ू ी) [18. संथाल� ।] 1 [ [19.] �संधी ।] 2 3 [20.] त�मल । 4 [21.] तेलग ु ू । 4 [22.] उदर् ू । 4 1. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) अन्तःस्था�पत । 2. सं�वधान (इक्क�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1967 क� धारा 2 द्वारा (10-4-1967 से) जोड़ा गया । 3. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 15 को प्र�विष्ट 19 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । 4. सं�वधान (बानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 2 द्वारा (7-1-2004 से) प्र�विष्ट 16 से प्र�विष्ट 18 को प्र�विष्ट 20 से प्र�विष्ट 22 के रूप म� पुनःसंख्यां�कत �कया गया । [नवीं अनुसूची (अनच् ु छे द 31ख) 1 67)। 61)। 1. �बहार भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1950 (1950 का �बहार अ�ध�नयम 30) । 2. मंब ु ई अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म अ�ध�नयम, 1948 (1948 का मुंबई अ�ध�नयम 3. मुंबई मा�लक� भूध�ृ त उत्सादन अ�ध�नयम, 1949 (1949 का मुंबई अ�ध�नयम 4. मुंबई तालुकदार� भूध�ृ त उत्सादन अ�ध�नयम, 1949 (1949 का मुंबई अ�ध�नयम 62)। 5. पंच महल मेहवासी भूध�ृ त उत्सादन अ�ध�नयम, 1949 (1949 का मुंबई अ�ध�नयम 63)। 6. मुंबई खेती उत्सादन अ�ध�नयम, 1950 (1950 का मुंबई अ�ध�नयम 6)। 7. मंब ु ई परगना और कुलकण� वतन उत्सादन अ�ध�नयम, 1950 (1950 का मुंबई अ�ध�नयम 60)। 8. मध्य प्रदे श सांप��क अ�धकार (संपदा, महल, अन्य संक्रांत भ�ू म) उत्सादन अ�ध�नयम, 1950 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 1 सन ् 1951)। 9. मद्रास संपदा (उत्सादन और रै य्यतवाड़ी म� संप�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1948 (1948 का मद्रास अ�ध�नयम 26)। 10. मद्रास संपदा (उत्सादन और रै य्यतवाड़ी म� संप�रवतर्न) संशोधन अ�ध�नयम, 1950 (1950 का मद्रास अ�ध�नयम 1)। 11. 1950 ई0 का उ�र प्रदे श जमींदार� �वनाश और भ�ू म-व्यवस्था अ�ध�नयम (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 1, 1951)। 12. हैदराबाद (जागीर उत्सादन) �व�नयम, 1358फ (1358 फसल� का सं0 69)। 13. हैदराबाद जागीर (प�रवतर्न) �व�नयम, 1359फ (1359 फसल� का सं0 25)। 2 [14. �बहार �वस्था�पत व्यिक्त पन ु वार्स (भ�ू म अजर्न) अ�ध�नयम, 1950 (1950 का �बहार अ�ध�नयम 38) । 15. संयक् ु त प्रांत के शरणा�थर्य� को बसाने के �लए भू�म प्राप्त करने का ऐक्ट, 1948 ई0 (संयक् ु त प्रांतीय ऐक्ट संख्या 26, 1948) । 16. �वस्था�पत व्यिक्त पन ु वार्स (भू�म अजर्न) अ�ध�नयम, 1948 (1948 का अ�ध�नयम 60) । 17. बीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1950 (1950 का अ�ध�नयम 47) क� धारा 42 द्वारा य़था अंतःस्था�पत बीमा अ�ध�नयम, 1938 (1938 का अ�ध�नयम 4) क� धारा 52क से धारा 52छ । 18. रे ल कंपनी (आपात उपबंध) अ�ध�नयम, 1951 (1951 का अ�ध�नयम 51) । 1. सं�वधान (पहला संशोधन) अ�ध�नयम, 1951 क� धारा 14 द्वारा (18-6-1951 से) जोड़ा गया । 2. सं�वधान (चौथा संशोधन) अ�ध�नयम, 1955 क� धारा 5 द्वारा (27-4-1955 से) जोड़ा गया । 327 भारत का सं�वधान 328 (नवीं अनस ु च ू ी) 19. उद्योग (�वकास और �व�नयमन) संशोधन अ�ध�नयम, 1953 (1953 का अ�ध�नयम 26) क� धारा 13 द्वारा यथा अंतःस्था�पत उद्योग (�वकास और �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1951 (1951 का अ�ध�नयम 65) का अध्याय 3क । 20. 1951 के पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 29 द्वारा यथा संशो�धत पिश्चमी बंगाल भू�म �वकास और योजना अ�ध�नयम, 1948 (1948 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 21) ।] 1 [21. आंध्र प्रदे श अ�धकतम कृ�ष जोत सीमा अ�ध�नयम, 1961 (1961 का आंध्र प्रदे श अ�ध�नयम 10) । ं ाना �ेत्र) अ�भध�ृ त और कृ�ष भ�ू म (�व�धमान्यकरण) 22. आंध्र प्रदे श (तेलग अ�ध�नयम, 1961 (1961 का आंध्र प्रदे श अ�ध�नयम 21)। 23. आंध्र प्रदे श (तेलग ं ाना �ेत्र) इजारा और कौल� भू�म अ�नय�मत पट्टा रद्दकरण और �रयायती �नधार्रण उत्सादन अ�ध�नयम, 1961 (1961 का आंध्र प्रदे श अ�ध�नयम 36)। 24. असम राज्य लोक प्रकृ�त क� धा�मर्क या पत ू र् संस्था भू�म अजर्न अ�ध�नयम, 1959 (1961 का असम अ�ध�नयम 9) । 25. �बहार भ�ू म सध ु ार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1953 (1954 का �बहार अ�ध�नयम 20) । 26. �बहार भ�ू म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भ�ू म अजर्न) अ�ध�नयम, 1961 (1962 का �बहार अ�ध�नयम सं0 12), िजसके अंतगर्त इस अ�ध�नयम क� धारा 28 नह�ं है । 27. मुंबई तालुकदार� भूध�ृ त उत्सादन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1954 (1955 का मंब ु ई अ�ध�नयम 1) । 28. मंब ु ई तालक ु दार� भध ू �ृ त उत्सादन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1957 (1958 का मुंबई अ�ध�नयम 18) । 29. मुंबई इनाम (कच्छ �ेत्र) उत्सादन अ�ध�नयम, 1958 (1958 का मुंबई अ�ध�नयम 98) । 30. मुंबई अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म (गुजरात संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 (1960 का गुजरात अ�ध�नयम 16)। 31. गुजरात कृ�ष भू�म अ�धकतम सीमा अ�ध�नयम, 1960 (1961 का गुजरात अ�ध�नयम 26) । 32. सगबारा और मेहवासी संपदा (सांप��क अ�धकार उत्सादन, आ�द) �व�नयम, 1962 (1962 का गुजरात �व�नयम 1) । 1. सं�वधान (सत्रहवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 क� धारा 3 द्वारा (20-6-1964 से) जोड़ा गया । भारत का सं�वधान 329 (नवीं अनस ु च ू ी) 33. गुजरात शेष अन्य संक्रामण उत्सादन अ�ध�नयम, 1963 (1963 का गुजरात अ�ध�नयम 33), वहां तक के �सवाय जहां तक यह अ�ध�नयम इसक� धारा 2 के खंड (3) के उपखंड (घ) म� �न�दर्ष्ट अन्य संक्रामण के संबध ं म� है । 34. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 27) । 35. हैदाराबाद अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म (पन ु ःअ�ध�नयमन, �व�धमान्यकरण और अ�त�रक्त संशोधन) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 45) । 36. हैदराबाद अ�भध�ृ त और कृ�ष भ�ू म अ�ध�नयम, 1950 (1950 का हैदराबाद अ�ध�नयम 21) । 37. जन्मीकरम संदाय (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1960 (1961 का केरल अ�ध�नयम 3) । 38. केरल भू�म-कर अ�ध�नयम, 1961 (1961 का केरल अ�ध�नयम 13) । 39. केरल भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1963 (1964 का केरल अ�ध�नयम 1) । 40. मध्य प्रदे श भू-राजस्व सं�हता, 1959 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम, क्रमांक 20 सन ् 1959) । 41. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा अ�ध�नयम, 1960 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 20 सन ् 1960)। 42. मद्रास खे�तहर अ�भधार� संर�ण अ�ध�नयम, 1955 (1955 का मद्रास अ�ध�नयम 25) । 43. मद्रास खे�तहर अ�भधार� (उ�चत लगान संदाय) अ�ध�नयम, 1956 (1956 का मद्रास अ�ध�नयम 24) । 44. मद्रास कुडीइरूपु अ�धभोगी (बेदखल� से संर�ण) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का मद्रास अ�ध�नयम 38) । 45. मद्रास लोक न्यास (कृ�ष भू�म प्रशासन �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का मद्रास अ�ध�नयम 57)। 46. मद्रास भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का मद्रास अ�ध�नयम 58)। 47. मैसरू अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1952 (1952 का मैसरू अ�ध�नयम 13) । 48. कोड़गू अ�भधार� अ�ध�नयम, 1957 (1957 का मैसरू अ�ध�नयम 14) । 49. मैसरू ग्राम-पद उत्सादन अ�ध�नयम, 1961 (1961 का मैसरू अ�ध�नयम 14) । 50. हैदराबाद अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म (�व�धमान्यकरण) अ�ध�नयम, 1961 (1961 का मैसूर अ�ध�नयम 36)। 51. मैसूर भू�म सध ु ार अ�ध�नयम, 1961 (1962 का मैसूर अ�ध�नयम 10) । भारत का सं�वधान 330 (नवीं अनस ु च ू ी) 52. उड़ीसा भ�ू म सुधार अ�ध�नयम, 1960 (1960 का उड़ीसा अ�ध�नयम 16) । 53. उड़ीसा �वल�न राज्य�ेत्र (ग्राम-पद उत्सादन) अ�ध�नयम, 1963 (1963 का उड़ीसा अ�ध�नयम 10) । 54. पंजाब भू-ध�ृ त सुर�ा अ�ध�नयम, 1953 (1953 का पंजाब अ�ध�नयम 10) । 55. राजस्थान अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1955 (1955 का राजस्थान अ�ध�नयम 3) । 56. राजस्थान जमींदार� और �बस्वेदार� उत्सादन अ�ध�नयम, 1959 (1959 का राजस्थान अ�ध�नयम 8) । 57. कुमायंू तथा उ�राखंड जमींदार� �वनाश तथा भ�ू म-व्यवस्था अ�ध�नयम, 1960 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम 17, 1960) । 58. उ�र प्रदे श अ�धकतम जोत-सीमा आरोपण अ�ध�नयम, 1960 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 1, 1961)। 59. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न अ�ध�नयम, 1953 (1954 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 1) । 60. पिश्चमी बंगाल भ�ू म सुधार अ�ध�नयम, 1955 (1956 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 10) । 61. �दल्ल� भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1954 (1954 का �दल्ल� अ�ध�नयम 8) । 62. �दल्ल� भ�ू म जोत (अ�धकतम सीमा) अ�ध�नयम, 1960 (1960 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 24) । 63. म�णपरु भू-राजस्व और भू�म सध ु ार अ�ध�नयम, 1960 (1960 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 33) । 64. �त्रपरु ा भ-ू राजस्व और भ�ू म सध ु ार अ�ध�नयम, 1960 (1960 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 43) । 1 [65. केरल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का केरल अ�ध�नयम 35) । 66. केरल भ�ू म सध ु ार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का केरल अ�ध�नयम 25) ।] 2 [67. आंध्र प्रदे श भू�म सुधार (अ�धकतम कृ�ष जोत सीमा) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का आंध्र प्रदे श अ�ध�नयम 1) । 68. �बहार भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भ�ू म अजर्न) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1973 का �बहार अ�ध�नयम 1) । 1. सं�वधान (उनतीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 क� धारा 2 द्वारा (9-6-1972 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (च�तीसवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 क� धारा 2 द्वारा (7-9-1974 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 331 (नवीं अनस ु च ू ी) 69. �बहार भ�ू म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भ�ू म अजर्न) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का �बहार अ�ध�नयम 9) । 70. �बहार भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का �बहार अ�ध�नयम सं0 5) । 71. गुजरात अ�धकतम कृ�ष भू�म सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1974 का गुजरात अ�ध�नयम 2) । 72. ह�रयाणा भ�ू म जोत क� अ�धकतम सीमा अ�ध�नयम, 1972 (1972 का ह�रयाणा अ�ध�नयम 26) । 73. �हमाचल प्रदे श अ�धकतम भू�म जोत सीमा अ�ध�नयम, 1972 (1973 का �हमाचल प्रदे श अ�ध�नयम 19) । 74. केरल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का केरल अ�ध�नयम 17) । 75. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 12 सन ् 1974) । 76. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (द्�वतीय संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 13 सन ् 1974) । 77. मैसूर भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1974 का कनार्टक अ�ध�नयम 1) । 78. पंजाब भू�म सुधार अ�ध�नयम, 1972 (1973 का पंजाब अ�ध�नयम 10) । 79. राजस्थान कृ�ष जोत� पर अ�धकतम सीमा अ�धरोपण अ�ध�नयम, 1973 (1973 का राजस्थान अ�ध�नयम 11)। 80. गड ु लरू जन्मम ् संपदा (उत्सादन और रै य्यतवाड़ी म� संप�रवतर्न) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का त�मलनाड़ु अ�ध�नयम 24)। 81. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 12) । 82. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 (1964 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 22) । 83. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 33) । 84. मंब ु ई अ�भध�ृ त और कृ�ष भ�ू म (गज ु रात संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1973 का गुजरात अ�ध�नयम 5) । 85. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का उड़ीसा अ�ध�नयम 9) । 86. �त्रपरु ा भ-ू राजस्व और भ�ू म सध ु ार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का �त्रपरु ा अ�ध�नयम 7) ।] 332 भारत का सं�वधान (नवीं अनस ु च ू ी) 1- 2 5 6 [87. * * * * *] 88. उद्योग (�वकास और �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1951 (1951 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 65) । 89. स्थावर संप�� अ�धग्रहण और अजर्न अ�ध�नयम, 1952 (1952 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 30) । 90. खान और ख�नज (�व�नयमन और �वकास) अ�ध�नयम, 1957 (1957 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 67) । 91. एका�धकार तथा अवरोधक व्यापा�रक व्यवहार अ�ध�नयम, 1969 (1969 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 54) । ∗ [92. 2 * * * *] 93. कोककार� कोयला खान (आपात उपबंध) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 64) । 94. कोककार� कोयला खान (राष्ट्र�यकरण) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 36) । 95. साधारण बीमा कारबार केन्द्र�य अ�ध�नयम 57) । (राष्ट्र�यकरण) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का 96. इं�डयन कॉपर कारपोरे शन (उपक्रम का अजर्न) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 58) । 97. रुग्ण कपड़ा उपक्रम (प्रबंध ग्रहण) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 72) । 98. कोयला अ�ध�नयम 15) । 99. कोयला अ�ध�नयम 26) । खान (प्रबंध ग्रहण) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का केन्द्र�य खान (राष्ट्र�यकरण) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का केन्द्र�य अ�ध�नयम, 1973 (1973 का केन्द्र�य ∗∗ 100. �वदे शी अ�ध�नयम 46) । मुद्रा �व�नयमन 101. एलकाक एशडाउन कंपनी �ल�मटे ड (उपक्रम� का अजर्न) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 56) । 1. सं�वधान (उनताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 क� धारा 5 द्वारा (10-8-1975 से) अंतःस्था�पत । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्र�विष्ट 87 और प्र�विष्ट 92 का लोप �कया गया । ∗ प्र�तस्पधार् अ�ध�नयम, 2002 (2003 का 12) क� धारा 66 द्वारा (1-9-2009 से) �नर�सत । ∗∗ �वदे शी मुद्रा प्रबंध अ�ध�नयम, 1999 (1999 का 42) क� धारा 49 द्वारा (1-6-2000 से) �नर�सत । भारत का सं�वधान 333 (नवीं अनस ु च ू ी) 102. कोयला खान (संर�ण और �वकास) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 28) । 103. अ�त�रक्त उपलिब्धयां (अ�नवायर् �न�ेप) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 37) । 104. �वदे शी मुद्रा संर�ण और तस्कर� �नवारण अ�ध�नयम, 1974 (1974 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 52) । 105. रुग्ण कपड़ा उपक्रम (राष्ट्र�यकरण) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 57) । 106. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1964 (1965 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 16) । 107. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1965 (1965 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 32) । 108. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 16) । 109. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1968 (1968 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 33) । 110. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 37) । 111. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 38) । 112. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1970 (1970 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 27) । 113. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 13) । 114. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1973 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 50) । 115. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1965 (1965 का उड़ीसा अ�ध�नयम 13) । 116. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 (1967 का उड़ीसा अ�ध�नयम 8) । 117. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1967 (1967 का उड़ीसा अ�ध�नयम 13) । 334 भारत का सं�वधान (नवीं अनस ु च ू ी) 118. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का उड़ीसा अ�ध�नयम 13) । 119. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1970 (1970 का उड़ीसा अ�ध�नयम 18) । 120. उ�र प्रदे श अ�धकतम जोत सीमा आरोपण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम 18, 1973) । 121. उ�र प्रदे श अ�धकतम जोत सीमा आरोपण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम 2, 1975) । 122. �त्रपुरा भू-राजस्व और भू�म सुधार (तीसरा संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 (1975 का �त्रपरु ा अ�ध�नयम 3)। 123. दादरा और नागर हवेल� भू�म सुधार �व�नयम, 1971 (1971 का 3) । 124. दादरा (1973 का 5) । और नागर हवेल� भू�म सुधार (संशोधन) �व�नयम, 1973 [125. मोटर यान अ�ध�नयम, 1939 (1939 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 4) क� धारा 66क और अध्याय 4क * । 1 10 126. आवश्यक वस्तु अ�ध�नयम, 1955 (1955 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 10) । 127. तस्कर और �वदे शी मुद्रा छलसाधक (संप�� समपहरण) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 13)। 128. बं�धत श्रम पद्ध�त (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 19) । 129. �वदे शी मुद्रा संर�ण और तस्कर� �नवारण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 20) । 130* 2 11 * * * 131. लेवी चीनी समान क�मत �न�ध अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 31) । 132. नगर-भू�म (अ�धकतम सीमा और �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 33) । 1. सं�वधान (चाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 क� धारा 3 द्वारा (27-5-1976 से) प्र�विष्ट 125 से प्र�विष्ट 188 तक अंतःस्था�पत । * अब मोटर यान अ�ध�नयम, 1988 (1988 का 59) के सुसंगत उपबंध दे �खए । 2. सं�वधान (चवाल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 क� धारा 44 द्वारा (20-6-1979 से) प्र�विष्ट 130 का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 335 (नवीं अनस ु च ू ी) 133. संघ लेखा �वभागीकरण (का�मर्क अंतरण) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 59) । 134. असम अ�धकतम भू�म जोत सीमा �नयतन अ�ध�नयम, 1956 (1957 का असम अ�ध�नयम 1) । 135. मुंबई अ�भध�ृ त और कृ�ष भू�म (�वदभर् �ेत्र) अ�ध�नयम, 1958 (1958 का मुंबई अ�ध�नयम 99) । 136. गुजरात प्राइवेट वन (अजर्न) अ�ध�नयम, 1972 (1973 का गुजरात अ�ध�नयम 14) । 137. ह�रयाणा भू�म-जोत क� अ�धकतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का ह�रयाणा अ�ध�नयम 17) । 138. �हमाचल प्रदे श अ�भध�ृ त और भू�म सध ु ार अ�ध�नयम, 1972 (1974 का �हमाचल प्रदे श अ�ध�नयम 8) । 139. �हमाचल प्रदे श ग्राम शा�मलाती भू�म �नधान और उपयोजन अ�ध�नयम, 1974 (1974 का �हमाचल प्रदे श अ�ध�नयम 18) । 140. कनार्टक भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन और प्रक�णर् उपबंध) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का कनार्टक अ�ध�नयम 31) । 141. कनार्टक भू�म सध ु ार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का कनार्टक अ�ध�नयम 27) । 142. केरल बेदखल� �नवारण अ�ध�नयम, 1966 (1966 का केरल अ�ध�नयम 12) । 143. �तरुप्पव ु ारम ् संदाय (उत्सादन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का केरल अ�ध�नयम 19) । 144. श्री पादम ् भू�म �वमुिक्त अ�ध�नयम, 1969 (1969 का केरल अ�ध�नयम 20) । 145. श्रीपणडारवका भू�म (�नधान और �वमुिक्त) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का केरल अ�ध�नयम 20) । 146. केरल प्राइवेट वन (�नधान और समनद ु े शन) अ�ध�नयम, 1971 (1971 का केरल अ�ध�नयम 26) । 147. केरल कृ�ष कमर्कार अ�ध�नयम, 1974 (1974 का केरल अ�ध�नयम 18) । 148. केरल काजू कारखाना (अजर्न) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का केरल अ�ध�नयम 29) । 149. केरल �चट्ट� अ�ध�नयम, 1975 (1975 का केरल अ�ध�नयम 23) । 150. केरल अनस ु ू�चत जनजा�त (भू�म के अंतरण पर �नब�धन और अन्य संक्रांत भ�ू म का प्रत्यावतर्न) अ�ध�नयम, 1975 (1975 का केरल अ�ध�नयम 31) । भारत का सं�वधान 336 (नवीं अनस ु च ू ी) 151. केरल भ�ू म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केरल अ�ध�नयम 15) । 152. काणम ् अ�भध�ृ त उत्सादन अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केरल अ�ध�नयम 16) । 153. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 20 सन ् 1974)। 154. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 (मध्य प्रदे श अ�ध�नयम क्रमांक 2 सन ् 1976) । 155. पिश्चमी खानदे श मेहवासी संपदा (सांप��क अ�धकार उत्सादन, आ�द) �व�नयम, 1961 (1962 का महाराष्ट्र �व�नयम 1) । 156. महाराष्ट्र अनस ु ू�चत जनजा�तय� को भू�म का प्रत्यावतर्न अ�ध�नयम, 1974 (1975 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 14) । 157. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा घटाना) और (संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1975 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 21)। 158. महाराष्ट्र प्राइवेट वन (अजर्न) अ�ध�नयम, 1975 (1975 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 29) । 159. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा घटाना) और (संशोधन) संशोधन अ�ध�नयम, 1975 (1975 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 47)। 160. महाराष्ट्र कृ�ष भू�म (अ�धकतम जोत सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 (1976 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 2)। 161. उड़ीसा संपदा उत्सादन अ�ध�नयम, 1951 (1952 का उड़ीसा अ�ध�नयम 1)। 162. राजस्थान उप�नवेशन अ�ध�नयम, 1954 (1954 का राजस्थान अ�ध�नयम 27) । 163. राजस्थान भू�म सुधार तथा भू-स्वा�मय� क� संपदा का अजर्न अ�ध�नयम, 1963 (1964 का राजस्थान अ�ध�नयम सं0 11) । 164. राजस्थान कृ�ष जोत� पर अ�धकतम सीमा अ�धरोपण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का राजस्थान अ�ध�नयम सं0 8) । 165. राजस्थान अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का राजस्थान अ�ध�नयम सं0 12) । 166. त�मलनाडु भ�ू म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा घटाना) अ�ध�नयम, 1970 (1970 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 17) । 167. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1971 (1971 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 41) । भारत का सं�वधान 337 (नवीं अनस ु च ू ी) 168. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 10) । 169. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन अ�ध�नयम, 1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 20) । 170. त�मलनाडु भ�ू म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) तीसरा संशोधन अ�ध�नयम, 1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 37) । 171. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) चौथा संशोधन अ�ध�नयम, 1972 (1972 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 39) । 172. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) छठा संशोधन अ�ध�नयम, 1972 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 7) । 173. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) पांचवां संशोधन अ�ध�नयम, 1972 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 10) । 174. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1974 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 15) । 175. त�मलनाडु भ�ू म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) तीसरा संशोधन अ�ध�नयम, 1974 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 30) । 176. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन अ�ध�नयम, 1974 (1974 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 32) । 177. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1975 (1975 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 11) । 178. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन अ�ध�नयम, 1975 (1975 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 21) । 179. उ�र प्रदे श भू�म-�व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1971 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 21,1971) तथा उ�र प्रदे श भू�म-�व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 34,1974) द्वारा 1950 ई0 का उ�र प्रदे श जमींदार� �वनाश और भू�म-व्यवस्था अ�ध�नयम (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 1,1951) म� �कए गए संशोधन । 180. उ�र प्रदे श अ�धकतम जोत-सीमा आरोपण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (उ�र प्रदे श अ�ध�नयम संख्या 20,1976) । 181. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1972 (1972 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 28) । 182. पिश्चमी बंगाल अन्य संक्रात भ�ू म का प्रत्यावतर्न अ�ध�नयम, 1973 (1973 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23) । भारत का सं�वधान 338 (नवीं अनस ु च ू ी) 183. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 33) । 184. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 (1975 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23) । 185. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 12) । 186. �दल्ल� भू�म जोत (अ�धकतम सीमा) संशोधन अ�ध�नयम, 1976 (1976 का केन्द्र�य अ�ध�नयम 15) । 187. गोवा, दमण और द�व मुंडकार (बेदखल� से संर�ण) अ�ध�नयम, 1975 (1976 का गोवा, दमण और द�व अ�ध�नयम 1) । 188. पां�डचेर� भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) अ�ध�नयम, 1973 (1974 का पां�डचेर� अ�ध�नयम 9)।] [189. असम (अस्थायी रूप से व्यवस्था�पत �ेत्र) अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1971 (1971 का असम अ�ध�नयम 23) । 1 190. असम (अस्थायी रूप से व्यवस्था�पत �ेत्र) अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1974 (1974 का असम अ�ध�नयम 18) । 191. �बहार भू�म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भू�म अजर्न) (संशोधन) संशोधी अ�ध�नयम, 1974 (1975 का �बहार अ�ध�नयम 13) । 192. �बहार भू�म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भू�म अजर्न) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का �बहार अ�ध�नयम 22) । 193. �बहार भू�म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भू�म अजर्न) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 (1978 का �बहार अ�ध�नयम 7) । 194. भू�म अजर्न (�बहार संशोधन) अ�ध�नयम, 1979 (1980 का �बहार अ�ध�नयम 2) । 195. ह�रयाणा (भ�ू म-जोत क� अ�धकतम सीमा) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 (1977 का ह�रयाणा अ�ध�नयम 14) । 196. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1978 (1978 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 25) । 197. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1979 (1979 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 11) । 1. सं�वधान (स�ताल�सवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 क� धारा 2 द्वारा (26-8-1984 से) प्र�विष्ट 189 से प्र�विष्ट 202 तक अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 339 (नवीं अनस ु च ू ी) 198. उ�र प्रदे श जमींदार� �वनाश �व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 (1978 का उ�र प्रदे श अ�ध�नयम 15) । 199. पिश्चमी बंगाल अन्य संक्रात भू�म का प्रत्यावतर्न (संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 (1978 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 24) । 200. पिश्चमी बंगाल अन्य संक्रात भ�ू म का प्रत्यावतर्न (संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 (1980 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 56) । 201. गोवा, दमण और द�व कृ�ष अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1964 (1964 का गोवा, दमण और द�व अ�ध�नयम 7) । 202. गोवा, दमण और द�व कृ�ष अ�भध�ृ त (पांचवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का गोवा, दमण और द�व अ�ध�नयम 17) ।] [203. आंध्र प्रदे श अनस ु ू�चत �ेत्र भ�ू म अंतरण �व�नयम, 1959 (1959 का आंध्र प्रदे श �व�नयम 1) । 1 204. आंध्र प्रदे श अनस ु ू�चत �ेत्र �व�ध (�वस्तारण और संशोधन) �व�नयम, 1963 (1963 का आंध्र प्रदे श �व�नयम 2)। 205. आंध्र प्रदे श अनस ु �ू चत �ेत्र भ�ू म अंतरण (संशोधन) �व�नयम, 1970 (1970 का आंध्र प्रदे श �व�नयम 1) । 206. आंध्र प्रदे श अनस ु �ू चत �ेत्र भ�ू म अंतरण (संशोधन) �व�नयम, 1971 (1971 का आंध्र प्रदे श �व�नयम 1) । 207. आंध्र प्रदे श अनस ु �ू चत �ेत्र भ�ू म अंतरण (संशोधन) �व�नयम, 1978 (1978 का आंध्र प्रदे श �व�नयम 1) । 208. �बहार काश्तकार� अ�ध�नयम, 1885 (1885 का �बहार अ�ध�नयम 8) । 209. छोटा नागपरु काश्तकार� अ�ध�नयम, 1908 (1908 का बंगाल अ�ध�नयम 6) (अध्याय 8--धारा 46, धारा 47, धारा 48, धारा 48क और धारा 49; अध्याय 10 -- धारा 71, धारा 71क और धारा 71ख और अध्याय 18--धारा 240, धारा 241, धारा 242) । 210. संथाल परगना काश्तकार� (परू क प्रावधान) अ�ध�नयम, 1949 (1949 का �बहार अ�ध�नयम 14) धारा 53 को छोड़कर । 211. �बहार अनस ु �ू चत �ेत्र �व�नयम, 1969 (1969 का �बहार �व�नयम 1) 212. �बहार भू�म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भू�म अजर्न) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 (1982 का �बहार अ�ध�नयम 55) । 1. सं�वधान (�छयासठवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 क� धारा 2 द्वारा (7-6-1990 से) प्र�विष्ट 203 से 257 तक अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 340 (नवीं अनस ु च ू ी) 213. गुजरात दे वस्थान इनाम उत्सादन अ�ध�नयम, 1969 (1969 का गुजरात अ�ध�नयम 16) । 214. गज ु रात अ�भध�ृ त �व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का गज ु रात अ�ध�नयम 37) । 215. गुजरात अ�धकतम कृ�ष भू�म सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का राष्ट्रप�त अ�ध�नयम 43) । 216. गुजरात दे वस्थान इनाम उत्सादन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 (1977 का गुजरात अ�ध�नयम 27) । 217. गुजरात अ�भध�ृ त �व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 (1977 का गुजरात अ�ध�नयम 30) । 218. मम् ु बई भ-ू राजस्व (गज ु रात दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 (1980 का गुजरात अ�ध�नयम 37) । 219. मुम्बई भू-राजस्व सं�हता और भूध�ृ त उत्सादन �व�ध (गुजरात संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 (1982 का गुजरात अ�ध�नयम 8) । 220. �हमाचल प्रदे श भू�म अंतरण (�व�नयमन) अ�ध�नयम, 1968 (1969 का �हमाचल प्रदे श अ�ध�नयम 15) । 221. �हमाचल प्रदे श भू�म अंतरण (�व�नयमन) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 (1986 का �हमाचल प्रदे श अ�ध�नयम 16)। 222. कनार्टक अनस ु �ू चत जा�त और अनस ु �ू चत जनजा�त (क�तपय भ�ू म अंतरण प्र�तषेध) अ�ध�नयम, 1978 (1979 का कनार्टक अ�ध�नयम 2) । 223. केरल भ�ू म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1978 (1978 का केरल अ�ध�नयम 13) । 224. केरल भ�ू म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1981 (1981 का केरल अ�ध�नयम 19) । 225. मध्य प्रदे श भू-राजस्व सं�हता (तत ृ ीय संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का मध्य प्रदे श अ�ध�नयम 61) । 226. मध्य प्रदे श भ-ू राजस्व सं�हता (संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 (1980 का मध्य प्रदे श अ�ध�नयम 15) । 227. मध्य प्रदे श अकृ�षक जोत उच्चतम सीमा अ�ध�नयम, 1981 (1981 का मध्य प्रदे श अ�ध�नयम 11) । 228. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (द्�वतीय संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1984 का मध्य प्रदे श अ�ध�नयम 1) । 229. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का मध्य प्रदे श अ�ध�नयम 14) । भारत का सं�वधान 341 (नवीं अनस ु च ू ी) 230. मध्य प्रदे श कृ�षक जोत उच्चतम सीमा (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का मध्य प्रदे श अ�ध�नयम 8)। 231. महाराष्ट्र भू-राजस्व सं�हता, 1966 (1966 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 41) धारा 36, धारा 36क और धारा 36ख । 232. महाराष्ट्र भ-ू राजस्व सं�हता और महाराष्ट्र अनस ु �ू चत जनजा�त भ�ू म प्रत्यावतर्न (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1977 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 30) । 233. महाराष्ट्र क�तपय भ�ू म म� खान� और ख�नज� के �वद्यमान सांप��क अ�धकार� का उत्सादन अ�ध�नयम, 1985 (1985 का महाराष्ट्र अ�ध�नयम 16) । 234. उड़ीसा अनस ु ू�चत �ेत्र (अनस ु ू�चत जनजा�तय� द्वारा) स्थावर संप�� अंतरण �व�नयम, 1956 (1956 का उड़ीसा �व�नयम 2) । 235. उड़ीसा भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1975 (1976 का उड़ीसा अ�ध�नयम 29) । 30) । 236. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अ�ध�नयम 237. उड़ीसा भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1976 (1976 का उड़ीसा अ�ध�नयम 44) । 238. राजस्थान उप�नवेशन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का राजस्थान अ�ध�नयम 12) । 239. राजस्थान अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का राजस्थान अ�ध�नयम 13) । 240. राजस्थान अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 (1987 का राजस्थान अ�ध�नयम 21) । 241. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन अ�ध�नयम, 1979 (1980 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 8) । 242. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1980 (1980 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 21) । 243. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1981 (1981 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 59) । 244. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन अ�ध�नयम, 1983 (1984 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 2) । 245. उ�र प्रदे श भू�म �व�ध (संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 (1982 का उ�र प्रदे श अ�ध�नयम 20) । भारत का सं�वधान 342 (नवीं अनस ु च ू ी) 246. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1965 (1965 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 18) । 247. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1966 (1966 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 11) । 248. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1969 (1969 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23)। 249. पिश्चमी बंगाल संपदा अजर्न (संशोधन) अ�ध�नयम, 1977 (1977 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 36) । 250. पिश्चमी बंगाल भू�म जोत राजस्व अ�ध�नयम, 1979 (1979 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 44)। 251. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 (1980 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 41) । 252. पिश्चमी बंगाल भू�म जोत राजस्व (संशोधन) अ�ध�नयम, 1981 (1981 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 33)। 253. कलक�ा ठे का अ�भध�ृ त (अजर्न और �व�नयमन) अ�ध�नयम, 1981 (1981 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 37) । 254. पिश्चमी बंगाल भू�म जोत राजस्व (संशोधन) अ�ध�नयम, 1982 (1982 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23)। 255. कलक�ा ठे का अ�भध�ृ त (अजर्न और �व�नयमन) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 41) । 256. माहे भ�ू म सुधार अ�ध�नयम, 1968 (1968 का पां�डचेर� अ�ध�नयम 1) । 257. माहे भू�म सुधार अ�ध�नयम 1) ।] (संशोधन) अ�ध�नयम, 1980 (1981 का पां�डचेर� [257क. त�मलनाडु �पछड़ा वगर्, अनस ु ू�चत जा�त और अनस ु ू�चत जनजा�त (राज्य 1 के अधीन �श�ा संस्थाओं म� स्थान� और सेवाओं म� �नयिु क्तय� या पद� का आर�ण) अ�ध�नयम, 1993 (1994 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 45)।] 1. सं�वधान (�छह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1994 क� धारा 2 द्वारा (31-8-1994 से) अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 343 (नवीं अनस ु च ू ी) 1 [258. �बहार �वशेषा�धकार प्राप्त व्यिक्त वासभू�म अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1947 (1948 का �बहार अ�ध�नयम 4) । 259. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण अ�ध�नयम, 1956 (1956 का �बहार अ�ध�नयम 22) । 260. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण अ�ध�नयम, 1970 (1970 का �बहार अ�ध�नयम 7) । 261. �बहार �वशेषा�धकार प्राप्त व्यिक्त वासभ�ू म अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1970 (1970 का �बहार अ�ध�नयम 9)। 262. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1973 (1975 का �बहार अ�ध�नयम 27) । 263. �बहार चकबंद� और खंडकरण �नवारण (संशोधन) अ�ध�नयम, 1981 (1982 का �बहार अ�ध�नयम 35) । 264. �बहार भू�म सुधार (अ�धकतम सीमा �नधार्रण और अ�धशेष भू�म अजर्न) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 (1987 का �बहार अ�ध�नयम 21) । 265. �बहार �वशेषा�धकार प्राप्त व्यिक्त वासभ�ू म अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का �बहार अ�ध�नयम 11) । 266. �बहार भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1990 का �बहार अ�ध�नयम 11) । 267. कनार्टक अनस ु ू�चत जा�त और अनस ु ू�चत जनजा�त (क�तपय भ�ू म अंतरण प्र�तषेध) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1984 (1984 का कनार्टक अ�ध�नयम 3) । 268. केरल भ�ू म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का केरल अ�ध�नयम 16) । 269. केरल भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1990 का केरल अ�ध�नयम 2) । 270. उड़ीसा भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1990 का उड़ीसा अ�ध�नयम 9) । 271. राजस्थान अ�भध�ृ त (संशोधन) अ�ध�नयम, 1979 (1979 का राजस्थान अ�ध�नयम 16) । 272. राजस्थान उप�नवेशन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1987 (1987 का राजस्थान अ�ध�नयम 2) । 273. राजस्थान उप�नवेशन (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का राजस्थान अ�ध�नयम 12) । 1. सं�वधान (अठहतरवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1995 क� धारा 2 द्वारा (30-8-1995 से) प्र�विष्ट 258 से प्र�विष्ट 284 तक अंतःस्था�पत । भारत का सं�वधान 344 (नवीं अनस ु च ू ी) 274. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1983 (1984 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 3) । 275. त�मलनाडु भ�ू म सध ु ार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) संशोधन अ�ध�नयम, 1986 (1986 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 57) । 276. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भू�म सीमा �नयतन) दस ू रा संशोधन अ�ध�नयम, 1987 (1988 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 4) । 277. त�मलनाडु भू�म सुधार (अ�धकतम भ�ू म सीमा �नयतन) (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का त�मलनाडु अ�ध�नयम 30) । 278. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1981 (1981 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 50) । 279. पिश्चमी बंगाल भ�ू म सध ु ार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 (1986 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 5) । 280. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (दस ू रा संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 (1986 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 19)। 281. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (तीसरा संशोधन) अ�ध�नयम, 1986 (1986 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 35) । 282. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1989 (1989 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 23) । 283. पिश्चमी बंगाल भ�ू म सध ु ार (संशोधन) अ�ध�नयम, 1990 (1990 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 24) । 284. पिश्चमी बंगाल भू�म सुधार अ�धकरण अ�ध�नयम, 1991 (1991 का पिश्चमी बंगाल अ�ध�नयम 12) ।] स्पष्ट�करण--राजस्थान अ�भध�ृ त अ�ध�नयम, 1955 (1955 का राजस्थान अ�ध�नयम सं0 3) के अधीन, अनच् ु छे द 31क के खंड (1) के दस ू रे परंतुक के उल्लंघन म� �कया गया अजर्न उस उल्लंघन क� मात्रा तक शन् ू य होगा ।] [दसवीं अनुसूची 1 [अनच् ु छे द 102(2) और अनच् ु छे द 191(2)] दल प�रवतर्न के आधार पर �नरहर्ता के बारे म� उपबंध 1. �नवर्चन – इस अनस ु ूची म� , जब तक �क संदभर् से अन्यथा अपे��त न हो,— (क) “सदन” से, संसद् का कोई सदन या �कसी राज्य क�, यथािस्थ�त, �वधान सभा या, �वधान-मंडल का कोई सदन अ�भप्रेत है ; (ख) सदन के �कसी ऐसे सदस्य के संबध ं म� जो, यथािस्थ�त, पैरा 2 या 2 *** पैरा 4 के उपबंध� के अनस ु ार �कसी राजनी�तक दल का सदस्य है, “�वधान-दल” से, उस सदन के ऐसे सभी सदस्य� का समूह अ�भप्रेत है जो उक्त उपबंध� के अनस ु ार तत्समय उस राजनी�तक दल के सदस्य ह� ; (ग) सदन के �कसी सदस्य के संबध ं म� , “मूल राजनी�तक दल” से ऐसा राजनी�तक दल अ�भप्रेत है िजसका वह पैरा 2 के उप-पैरा (1) के प्रयोजन� के �लए सदस्य है ; (घ) “पैरा” से इस अनस ु ूची का पैरा अ�भप्रेत है । 2. दल प�रवतर्न के आधार पर �नरहर्ता – (1) 3[पैरा 4 और पैरा 5] के उपबंध� के अधीन रहते हुए, सदन का कोई सदस्य, जो �कसी राजनी�तक दल का सदस्य है, सदन का सदस्य होने के �लए उस दशा म� �नर�हर्त होगा िजसम� – (क) उसने ऐसे राजनी�तक दल क� अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ द� है ; या (ख) वह ऐसे राजनी�तक दल द्वारा िजसका वह सदस्य है अथवा उसके द्वारा इस �न�म� प्रा�धकृत �कसी व्यिक्त या प्रा�धकार� द्वारा �दए गए �कसी �नदे श के �वरुद्ध, ऐसे राजनी�तक दल, व्यिक्त या प्रा�धकार� क� पव ू र् अन� ु ा के �बना, ऐसे सदन म� मतदान करता है या मतदान करने से �वरत रहता है और ऐसे मतदान या मतदान करने से �वरत रहने को ऐसे राजनी�तक दल, व्यिक्त या प्रा�धकार� ने ऐसे मतदान या मतदान करने से �वरत रहने क� तार�ख से पंद्रह �दन के भीतर माफ नह�ं �कया है । स्पष्ट�करण – इस उप-पैरा के प्रयोजन� के �लए, – (क) सदन के �कसी �नवार्�चत सदस्य के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह ऐसे राजनी�तक दल का, य�द कोई हो, सदस्य है िजसने उसे ऐसे सदस्य के रूप म� �नवार्चन के �लए अभ्यथ� के रूप म� खड़ा �कया था; (ख) सदन के �कसी नाम�नद� �शत सदस्य के बारे म� , – 1. सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 क� धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया । 2. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) कुछ शब्द� का लोप �कया गया । 3. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा "पैरा 3, 4, और 5" के स्थान प्र�तस्था�पत । 345 भारत का सं�वधान 346 (दसवीं अनस ु ूची (i) उस दशा म� , िजसम� वह ऐसे सदस्य के रूप म� अपने नाम�नद� शन क� तार�ख को �कसी राजनी�तक दल का सदस्य है, यह समझा जाएगा �क वह ऐसे राजनी�तक दल का सदस्य है ; (ii) �कसी अन्य दशा म� , यह समझा जाएगा �क वह उस राजनी�तक दल का सदस्य है िजसका, यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 99 या अनच् ु छे द 188 क� अपे�ाओं का अनप ु ालन करने के पश्चात ् अपना स्थान ग्रहण करने क� तार�ख से छह मास क� समािप्त के पव ू र् वह, यथािस्थ�त, सदस्य बनता है या पहल� बार बनता है । (2) सदन का कोई �नवार्�चत सदस्य, जो �कसी राजनी�तक दल द्वारा खड़े �कए गए अभ्यथ� से �भन्न रूप म� सदस्य �नवार्�चत हुआ है, सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा य�द वह ऐसे �नवार्चन के पश्चात ् �कसी राजनी�तक दल म� सिम्म�लत हो जाता है । (3) सदन का कोई नाम�नद� �शत सदस्य, सदन का सदस्य होने के �लए �नर�हर्त होगा य�द वह, यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 99 या अनच् ु छे द 188 क� अपे�ाओं का अनप ु ालन करने के पश्चात ् अपना स्थान ग्रहण करने क� तार�ख से छह मास क� समािप्त के पश्चात ् �कसी राजनी�तक दल म� सिम्म�लत हो जाता है । (4) इस पैरा के पव र् ामी उपबंध� म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी ऐसे ू ग व्यिक्त के बारे म� जो, सं�वधान (बावनवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1985 के प्रारं भ पर, सदन का सदस्य है (चाहे वह �नवार्�चत सदस्य हो या नाम�नद� �शत) – (i) उस दशा म� , िजसम� वह ऐसे प्रारं भ से ठ�क पहले �कसी राजनी�तक दल का सदस्य था वहां, इस पैरा के उप-पैरा (1) के प्रयोजन� के �लए यह समझा जाएगा �क वह ऐसे राजनी�तक दल द्वारा खड़े �कए गए अभ्यथ� के रूप म� ऐसे सदन का सदस्य �नवार्�चत हुआ है; (ii) �कसी अन्य दशा म� , यथािस्थ�त, इस पैरा के उप-पैरा (2) के प्रयोजन� के �लए, यह समझा जाएगा �क वह सदन का ऐसा �नवार्�चत सदस्य है जो �कसी राजनी�तक दल द्वारा खड़े �कए गए अभ्यथ� से �भन्न रूप म� सदस्य �नवार्�चत हुआ है या, इस पैरा के उप-पैरा (3) के प्रयोजन� के �लए, यह समझा जाएगा �क वह सदन का नाम�नद� �शत सदस्य है । 1 * * * * 4. दल प�रवतर्न के आधार पर �नरहर्ता का �वलय क� दशा म� लागू न होना – (1) सदन का कोई सदस्य पैरा 2 के उप-पैरा (1) के अधीन �नर�हर्त नह�ं होगा य�द उसके मूल राजनी�तक दल का �कसी अन्य राजनी�तक दल म� �वलय हो जाता है और वह यह दावा करता है �क वह और उसके मल ू राजनी�तक दल के अन्य सदस्य – (क) यथािस्थ�त, ऐसे अन्य राजनी�तक दल के या ऐसे �वलय से बने नए राजनी�तक दल के सदस्य बन गए ह�; या (ख) उन्ह�ने �वलय स्वीकार नह�ं �कया है और एक पथ ृ क् समूह के रूप म� कायर् करने का �व�नश्चय �कया है, 1. सं�वधान (इक्यानवेवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2003 क� धारा 5 द्वारा (1-1-2004 से) पैरा 3 का लोप �कया गया । भारत का सं�वधान 347 (दसवीं अनस ु ूची और ऐसे �वलय के समय से, यथािस्थ�त, ऐसे अन्य राजनी�तक दल या नए राजनी�तक दल या समह ू के बारे म� यह समझा जाएगा �क वह, पैरा 2 के उप-पैरा (1) के प्रयोजन� के �लए, ऐसा राजनी�तक दल है िजसका वह सदस्य है और वह इस उप-पैरा के प्रयोजन� के �लए उसका मूल राजनी�तक दल है । (2) इस पैरा के उप-पैरा (1) के प्रयोजन� के �लए, सदन के �कसी सदस्य के मल ू राजनी�तक दल का �वलय हुआ तभी समझा जाएगा जब संब�ं धत �वधान-दल के कम से कम दो-�तहाई सदस्य ऐसे �वलय के �लए सहमत हो गए ह� । 5. छूट – इस अनस ु च ू ी म� �कसी बात के होते हुए भी, कोई व्यिक्त, जो लोक सभा के अध्य� या उपाध्य� अथवा राज्य सभा के उपसभाप�त अथवा �कसी राज्य क� �वधान प�रषद् के सभाप�त या उपसभाप�त अथवा �कसी राज्य क� �वधान सभा के अध्य� या उपाध्य� के पद पर �नवार्�चत हुआ है, इस अनस ु ूची के अधीन �नर�हर्त नह�ं होगा, – (क) य�द वह, ऐसे पद पर अपने �नवार्चन के कारण ऐसे राजनी�तक दल क� िजसका वह ऐसे �नवार्चन से ठ�क पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दे ता है और उसके पश्चात ् जब तक वह पद धारण �कए रहता है तब तक, उस राजनी�तक दल म� पन ु ः सिम्म�लत नह�ं होता है या �कसी दस ू रे राजनी�तक दल का सदस्य नह�ं बनता है; या (ख) य�द वह, ऐसे पद पर अपने �नवार्चन के कारण, ऐसे राजनी�तक दल क� िजसका वह ऐसे �नवार्चन से ठ�क पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता छोड़ दे ता है और ऐसे पद पर न रह जाने के पश्चात ् ऐसे राजनी�तक दल म� पन ु ः सिम्म�लत हो जाता है । 6. दल प�रवतर्न के आधार पर �नरहर्ता के बारे म� प्रश्न� का �व�नश्चय – (1) य�द यह प्रश्न उठता है �क सदन का कोई सदस्य इस अनस ु ूची के अधीन �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं तो वह प्रश्न, ऐसे सदन के, यथािस्थ�त, सभाप�त या अध्य� के �व�नश्चय के �लए �नद� �शत �कया जाएगा और उसका �व�नश्चय अं�तम होगा : परं तु जहां यह प्रश्न उठता है �क सदन का सभाप�त या अध्य� �नरहर्ता से ग्रस्त हो गया है या नह�ं वहां वह प्रश्न सदन के ऐसे सदस्य के �व�नश्चय के �लए �नद� �शत �कया जाएगा िजसे वह सदन इस �न�म� �नवार्�चत करे और उसका �व�नश्चय अं�तम होगा । (2) इस अनस ु ूची के अधीन सदन के �कसी सदस्य क� �नरहर्ता के बारे म� �कसी प्रश्न के संबध ं म� इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन सभी कायर्वा�हय� के बारे म� यह समझा जाएगा �क वे, यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 122 के अथर् म� संसद् क� कायर्वा�हयां ह� या अनच् ु छे द 212 के अथर् म� राज्य के �वधान-मंडल क� कायर्वा�हयां ह� । भारत का सं�वधान 348 (दसवीं अनस ु ूची ∗ 7. न्यायालय� क� अ�धका�रता का वजर्न – इस सं�वधान म� �कसी बात के होते हुए भी, �कसी न्यायालय को इस अनस ु ूची के अधीन सदन के �कसी सदस्य क� �नरहर्ता से संब�ं धत �कसी �वषय के बारे म� कोई अ�धका�रता नह�ं होगी । 8. �नयम – (1) इस पैरा के उप-पैरा (2) के उपबंध� के अधीन रहते हुए, सदन का सभाप�त या अध्य�, इस अनस ु च ू ी के उपबंध� को कायार्िन्वत करने के �लए �नयम बना सकेगा तथा �व�शष्टतया और पव र् ामी शिक्त क� व्यापकता पर प्र�तकूल प्रभाव डाले ू ग �बना, ऐसे �नयम� म� �नम्न�ल�खत के �लए उपबंध �कया जा सकेगा, अथार्त ् : – (क) सदन के �व�भन्न सदस्य िजन राजनी�तक दल� के सदस्य ह�, उनके बारे म� रिजस्टर या अन्य अ�भलेख रखना ; (ख) ऐसा प्र�तवेदन जो सदन के �कसी सदस्य के संबध ं म� �वधान-दल का नेता, उस सदस्य क� बाबत पैरा 2 के उप-पैरा (1) के खंड (ख) म� �न�दर्ष्ट प्रकृ�त क� माफ� के संबध ं म� दे गा, वह समय िजसके भीतर और वह प्रा�धकार� िजसको ऐसा प्र�तवेदन �दया जाएगा ; (ग) ऐसे प्र�तवेदन िजन्ह� कोई राजनी�तक दल सदन के �कसी सदस्य को ऐसे राजनी�तक दल म� प्र�वष्ट करने के संबध ं म� दे गा और सदन का ऐसा अ�धकार� िजसको ऐसे प्र�तवेदन �दए जाएंगे ; और (घ) पैरा 6 के उप-पैरा (1) म� �न�दर्ष्ट �कसी प्रश्न का �व�नश्चय करने क� प्र�क्रया िजसके अंतगर्त ऐसी जांच क� प्र�क्रया है, जो ऐसे प्रश्न का �व�नश्चय करने के प्रयोजन के �लए क� जाए । (2) सदन के सभाप�त या अध्य� द्वारा इस पैरा के उप-पैरा (1) के अधीन बनाए गए �नयम, बनाए जाने के पश्चात ् यथाशीघ्र, सदन के सम�, कुल तीस �दन क� अव�ध के �लए रखे जाएंगे । यह अव�ध एक सत्र म� अथवा दो या अ�धक आनक्र ु �मक सत्र� म� परू � हो सकेगी । वे �नयम तीस �दन क� उक्त अव�ध क� समािप्त पर प्रभावी ह�गे जब तक �क उनका सदन द्वारा प�रवतर्न� स�हत या उनके �बना पहले ह� अनम ु ोदन या अननम ु ोदन नह�ं कर �दया जाता है । य�द वे �नयम इस प्रकार अनम ु ो�दत कर �दए जाते ह� तो वे, यथािस्थ�त, ऐसे रूप म� िजसम� वे रखे गए थे या ऐसे प�रव�तर्त रूप म� ह� प्रभावी ह�गे । य�द �नयम इस प्रकार अननम ु ो�दत कर �दए जाते ह� तो वे �नष्प्रभाव हो जाएंगे । (3) सदन का सभाप�त या अध्य�, यथािस्थ�त, अनच् ु छे द 105 या अनच् ु छे द 194 के उपबंध� पर और �कसी ऐसी अन्य शिक्त पर जो उसे इस सं�वधान के अधीन प्राप्त है, प्र�तकूल प्रभाव डाले �बना, यह �नदे श दे सकेगा �क इस पैरा के अधीन बनाए गए �नयम� के �कसी व्यिक्त द्वारा जानबझ ू कर �कए गए �कसी उल्लंघन के बारे म� उसी र��त से कारर्वाई क� जाए िजस र��त से सदन के �वशेषा�धकार के भंग के बारे म� क� जाती है ।] ∗ पैरा 7 को �कहोतो होलोहन बनाम जे�चल्हु और अन्य ए.आई.आर. 1993 एस.सी. 412 म� बहुमत क� राय के अनुसार अनुच्छे द 368 के खंड (2) के परं तुक के अनुसार अनुसमथर्न के अभाव म� अ�व�धमान्य घो�षत �कया गया । [ग्यारहवीं अनस ु ूची 1 (अनच् ु छे द 243छ) 1. कृ�ष, िजसके अंतगर्त कृ�ष-�वस्तार है । 2. भ�ू म �वकास, भू�म सुधार का कायार्न्वयन, चकबंद� और भू�म संर�ण । 3. लघु �संचाई, जल प्रबंध और जल�वभाजक �ेत्र का �वकास । 4. पशप ु ालन, डेर� उद्योग और कुक्कुट-पालन । 5. मत्स्य उद्योग । 6. सामािजक वा�नक� और फामर् वा�नक� । 7. लघु वन उपज । 8. लघु उद्योग, िजनके अंतगर्त खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी ह� । 9. खाद�, ग्रामोद्योग और कुट�र उद्योग । 10. ग्रामीण आवासन । 11. पेय जल । 12. �धन और चारा । 13. सड़क�, प�ु लया, पल ु , फेर�, जलमागर् और अन्य संचार साधन । 14. ग्रामीण �वद्यत ु ीकरण, िजसके अंतगर्त �वद्यत ु का �वतरण है । 15. अपारं प�रक ऊजार् स्रोत । 16. गर�बी उन्मल ू न कायर्क्रम । 17. �श�ा, िजसके अंतगर्त प्राथ�मक और माध्य�मक �वद्यालय भी है । 18. तकनीक� प्र�श�ण और व्यावसा�यक �श�ा । 19. प्रौढ़ और अनौपचा�रक �श�ा । 20. पस् ु तकालय । 21. सांस्कृ�तक �क्रयाकलाप । 22. बाजार और मेले । 23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, िजनके अंतगर्त अस्पताल, प्राथ�मक स्वास्थ्य केन्द्र और औषधालय भी है । 24. प�रवार कल्याण । 25. म�हला और बाल �वकास । 26. समाज कल्याण, िजसके अंतगर्त �वकलांग� और मान�सक रूप से मंद व्यिक्तय� का कल्याण भी है । र् वग� का और �व�शष्टतया, अनस 27. दब ु ल ु ू�चत जा�तय� और अनस ु ू�चत जनजा�तय� का कल्याण । 28. सावर्ज�नक �वतरण प्रणाल� । 29. सामुदा�यक आिस्तय� का अनरु �ण ।] 1. सं�वधान (�तह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 4 द्वारा (24-4-1993 से) जोड़ा गया । 349 [बारहवीं अनुसूची 1 (अनच् ु छे द 243ब) 1. नगर�य योजना िजसके अंतगर्त नगर योजना भी है । 2. भ�ू म उपयोग का �व�नयमन और भवन� का �नमार्ण । 3. आ�थर्क और सामािजक �वकास योजना । 4. सङक� और पल ु । 5. घरे लू, औद्यो�गक और वा�णिज्यक प्रयोजन� के �लए जल प्रदाय । 6. लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई और कूड़ा-करकट प्रबंध । 7. अिग्नशमन सेवाएं । 8. नगर�य वा�नक�, पयार्वरण का संर�ण और पा�रस्थ�तक� आयाम� क� अ�भवद् ृ �ध । 9. समाज के दब र् वग� के, िजनके अंतगर्त �वकलांग और मान�सक रूप से मंद ु ल व्यिक्त भी ह�, �हत� क� र�ा । 10. गंद�-बस्ती सध ु ार और प्रोन्नयन । 11. नगर�य �नधर्नता उन्मूलन । 12. नगर�य सख ु -स�ु वधाओं और स�ु वधाओं, जैसे पाकर्, उद्यान, खेल के मैदान� क� व्यवस्था । 13. सांस्कृ�तक, शै��णक और स�दयर्परक आयाम� क� अ�भवद् ृ �ध । 14. शव गाड़ना और क�ब्रस्तान; शवदाह और श्मशान और �वद्यत ु शवदाह गह ृ । 15. कांजी हाउस ; पशुओं के प्र�त क्रूरता का �नवारण । 16. जन्म-मरण सांिख्यक�, िजसके अंतगर्त जन्म और मत्ृ यु रिजस्ट्र�करण भी है । 17. सावर्ज�नक सख ु -सु�वधाएं, िजनके अंतगर्त सड़क� पर प्रकाश, पा�क�ग स्थल, बस स्टाप और जन सु�वधाएं भी ह� । 18. वधशालाओं और चमर्शोधनशालाओं का �व�नयमन ।] 1. सं�वधान (चौह�रवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1992 क� धारा 4 द्वारा (1-6-1993 से) जोड़ा गया । 350 प�र�शष्ट 1 सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 [28 मई, 2015] भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच �कए गए करार और उसके प्रोटोकाल के अनस ु रण म� राज्य�ेत्र� का भारत द्वारा अजर्न �कए जाने और क�तपय राज्य�ेत्र� का बांग्लादे श को अंतरण �कए जाने को प्रभावी करने के �लए भारत के सं�वधान का और संशोधन करने के �लए अ�ध�नयम भारत गणराज्य के �छयासठव� वषर् म� संसद् द्वारा �नम्न�ल�खत रूप म� यह अ�ध�नय�मत हो :-- 1. सं��प्त नाम--इस अ�ध�नयम का सं��प्त नाम सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 है । 2. प�रभाषाएं--इस अ�ध�नयम म� ,-- (क) “अिजर्त राज्य�ेत्र” से भारत-बांग्लादे श समा�वष्ट तथा पहल� अनस ु ूची म� �न�दर्ष्ट उतने खंड (ग) म� �न�दर्ष्ट करार और उसके प्रोटोकाल बांग्लादे श से अजर्न �कए जाने के प्रयोजन के �लए करार और उसके प्रोटोकाल म� राज्य�ेत्र अ�भप्रेत ह�, िजनका के अनस ु रण म� भारत द्वारा अभ्यंकन �कया गया है ; (ख) ∗“�नयत �दन” से ऐसी तार�ख अ�भप्रेत है, जो क�द्र�य सरकार, राजपत्र म� , अ�धसूचना द्वारा, भारत-बांग्लादे श करार तथा उसके प्रोटोकाल के अनस ु रण म� पहल� अनस ु ूची और दस ू र� अनस ु ूची म� यथा�न�दर्ष्ट कुछ राज्य�ेत्र� का, िजनका इस प्रकार अजर्न और अंतरण कराए जाने और उस प्रयोजन के �लए अभ्यंकन कराए जाने के पश्चात ् बांग्लादे श से राज्य�ेत्र� के अजर्न और बांग्लादे श को राज्य�ेत्र� के अंतरण के �लए तार�ख �नयत करे ; (ग) “भारत-बांग्लादे श करार” से भारत और बांग्लादे श के बीच भू�म सीमा के अभ्यंकन और संबद्ध �वषय� के संबध ं म� भारत गणराज्य क� सरकार और बांग्लादे श जनवाद� गणराज्य क� सरकार के बीच तार�ख 16 मई, 1974 को हुआ करार, तार�ख 26 �दसम्बर, 1974, तार�ख 30 �दसम्बर, 1974, तार�ख 7 अक्तूबर, 1982 और तार�ख 26 माचर्, 1992 का पत्र �व�नमय तथा भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच हुए तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के उक्त करार का प्रोटोकाल अ�भप्रेत है, िजसके सुसग ं त उद्धरण तीसर� अनस ु ूची म� �दए गए ह� ; ∗ तार�ख 31 जुलाई, 2015, अ�धसूचना सं0 का.आ. 2094(अ) द्वारा अ�धसू�चत । 351 भारत का सं�वधान 352 (प�र�शष्ट 1) (घ) “अंत�रत राज्य�ेत्र” से भारत-बांग्लादे श करार और उसके प्रोटोकाल म� समा�वष्ट तथा दस ू र� अनस ु ूची म� �न�दर्ष्ट उतने राज्य�ेत्र अ�भप्रेत ह�, िजनका खंड (ग) म� �न�दर्ष्ट करार और उसके प्रोटोकाल के अनस ु रण म� भारत द्वारा बांग्लादे श को अंत�रत �कए जाने के प्रयोजन के �लए अभ्यंकन �कया गया है । 3. सं�वधान क� पहल� अनस ु ूची का संशोधन--सं�वधान क� पहल� अनस ु च ू ी म� , �नयत �दन से ह�,-(क) असम राज्य के राज्य�ेत्र� से संब�ं धत पैरा म� , “और वे राज्य�ेत्र भी इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के खंड (क) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबध ं सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनस ु ूची के भाग 1 म� �न�दर्ष्ट राज्य�ेत्र� से है, सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनस ु च ू ी के भाग 1 म� �न�दर्ष्ट ह�” शब्द, कोष्ठक, अंक और अ�र, अंत म� , जोड़े जाएंगे ; (ख) पिश्चमी बंगाल राज्य के राज्य�ेत्र� से संब�ं धत पैरा म� , “और वे राज्य�ेत्र भी, जो पहल� अनस ु ूची के भाग 3 म� �न�दर्ष्ट ह� �कं तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के खंड (ग) म� अंत�वर्ष्ट �कसी बात के होते हुए भी, जहां तक उसका संबध ं सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनस ु ूची के भाग 3 म� �न�दर्ष्ट राज्य�ेत्र� और दस ू र� अनस ु च ू ी के भाग 3 म� �न�दर्ष्ट राज्य�ेत्र� से है, सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनस ु ूची के भाग 3 म� �न�दर्ष्ट ह�” शब्द, अंक, कोष्ठक और अ�र, अंत म� , जोड़े जाएंगे ; (ग) मेघालय राज्य के राज्य�ेत्र� से संब�ं धत पैरा म� , “और वे राज्य�ेत्र, जो पहल� अनस ु च ू ी के भाग 1 म� �न�दर्ष्ट ह� �कन्तु वे राज्य�ेत्र इसके अंतगर्त नह�ं ह�, जो सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� दस ू र� अनस ु ूची के भाग 2 म� �न�दर्ष्ट ह�” शब्द, अंक और कोष्ठक, अंत म� , जोड़े जाएंगे ; (घ) �त्रपरु ा राज्य के राज्य�ेत्र� से संब�ं धत पैरा म� , “और वे राज्य�ेत्र जो सं�वधान (नवां संशोधन) अ�ध�नयम, 1960 क� धारा 3 के खंड (घ) म� अंत�वर्ष्ट ं सं�वधान (एक सौवां संशोधन) �कसी बात के होते हुए भी जहां तक उनका संबध अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनस ु च ू ी के भाग 2 म� �न�दर्ष्ट राज्य�ेत्र� से है, सं�वधान (एक सौवां संशोधन) अ�ध�नयम, 2015 क� पहल� अनस ु ूची के भाग 2 म� �न�दर्ष्ट ह�” शब्द, कोष्ठक, अंक और अ�र, अंत म� , जोड़े जाएंगे । भारत का सं�वधान 353 (प�र�शष्ट 1) पहल� अनस ु च ू ी [धारा 2(क), धारा 2(ख) और धारा 3 दे �खए] भाग 1 तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 और तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनच् ं म� अिजर्त राज्य�ेत्र । ु छे द 3(I)(ख)(ii)(iii)(iv)( v) के संबध भाग 2 तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 और तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनच् ं म� अिजर्त राज्य�ेत्र । ु छे द 3(I)(ग)(i) के संबध भाग 3 तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 तथा तार�ख ु छे द 1(12) और अनच् 6 �सतम्बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनच् ु छे द अिजर्त राज्य�ेत्र । 2(II), 3(I)(क)(iii)(iv)(v)(vi) के संबध ं म� दस ू र� अनस ु च ू ी [धारा 2(ख), धारा 2(घ) और धारा 3 दे �खए] भाग 1 तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 और तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनच् ं म� अन्त�रत राज्य�ेत्र । ु छे द 3(I)(घ)(i)(ii) के संबध भाग 2 तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 और तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनच् ं म� अन्त�रत राज्य�ेत्र । ु छे द 3(I)(ख)(i) के संबध भाग 3 तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 1(12) और अनच् ु छे द 2 तथा तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के प्रोटोकाल के अनच् ु छे द अन्त�रत राज्य�ेत्र । 2(II), 3(I)(क)(i)(ii)(vi) के संबध ं म� भारत का सं�वधान 354 (प�र�शष्ट 1) तीसर� अनुसूची [धारा 2(ग) दे �खए] I. भारत गणराज्य क� सरकार और बांग्लादे श जनवाद� गणराज्य क� सरकार के बीच भारत और बांग्लादे श के बीच भू�म सीमा के अभ्यंकन तथा संब�ं धत �वषय� के संबध ं म� तार�ख 16 मई, 1974 को हुए करार से उद्धरण अनच् ु छे द 1(12) : �वदे शी अंतः�ेत्र (एन्क्लेव) बांग्लादे श िस्थत भारतीय एन्क्लेव� और भारत िस्थत बांग्लादे श एन्क्लेव� का, पैरा 14 म� उिल्ल�खत एन्क्लेव� को छोड़कर, बांग्लादे श म� जाने वाले अ�त�रक्त �ेत्र के �लए प्र�तकर का दावा �कए �बना शीघ्र�तशीघ्र आदान-प्रदान �कया जाना चा�हए । अनच् ु छे द 2 : भारत और बांग्लादे श क� सरकार� इस बात के �लए सहमत ह� �क पहले से अभ्यं�कत �ेत्र� म� प्र�तकूल कब्जे वाले राज्य�ेत्र, िजनके संबध ं म� सीमा पट्ट� मान�चत्र पहले से तैयार ह�, पण ू ार्�धका�रय� द्वारा सीमा पट्ट� मान�चत्र� पर हस्ता�र �कए जाने के छह मास के भीतर आदान-प्रदान �कए जाएंगे । वे सुसंगत मान�चत्र� पर यथासंभवशीघ्र और �कसी भी दशा म� 31 �दसम्बर, 1974 के अपश्चात ् हस्ता�र कर सकते ह� । ऐसे अन्य �ेत्र� के, िजनक� बाबत अभ्यंकन पहले ह� �कया जा चक ु ा है, मान�चत्र� के मुद्रण हे तु शीघ्र उपाय �कए जाएं । इन्ह� 31 मई, 1975 तक मु�द्रत करा �लया जाना चा�हए और तत्पश्चात ् उन पर पण ू ार्�धका�रय� द्वारा हस्ता�र करवा �लए जाने चा�हएं िजससे �क इन �ेत्र� म� प्र�तकूलतः धा�रत कब्ज� का आदान-प्रदान 31 �दसम्बर, 1975 तक �कया जा सके । िजन सेक्टर� का अभी भी अभ्यंकन �कया जाना है, उनम� राज्य�ेत्रीय अ�धका�रता का अन्तरण संब�ं धत सीमा पट्ट� मान�चत्र� पर पण ू ार्�धका�रय� द्वारा हस्ता�र �कए जाने के छह मास के भीतर हो सकता है । II. भारत गणराज्य क� सरकार और बांग्लादे श जनवाद� गणराज्य क� सरकार के बीच भारत और बांग्लादे श के बीच भू�म सीमा के अभ्यंकन तथा संब�ं धत �वषय� के संबध ं म� तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 को हुए करार के प्रोटोकाल से उद्धरण अनच् ु छे द 2 : (II) 1974 के करार के अनच् ु छे द 1, खंड 12 को कायार्िन्वत �नम्नानस ु ार �कया जाएगा : भारत का सं�वधान 355 (प�र�शष्ट 1) एन्क्लेव संयक् ु त रूप से सत्या�पत और डी.जी.एल.आर.एंड एस., बांग्लादे श तथा डी.एल.आर.एंड एस., पिश्चमी बंगाल (भारत) के स्तर पर अप्रैल, 1997 म� हस्ता�र �कए गए भू-कर एन्क्लेव मान�चत्र� के अनस ु ार बांग्लादे श म� के 111 भारतीय एन्क्लेव और भारत म� के 51 बांग्लादे श एन्क्लेव का बांग्लादे श म� जाने वाले अ�त�रक्त �ेत्र� के �लए प्र�तकर का दावा �कए �बना आदान-प्रदान �कया जाएगा । अनच् ु छे द 3 : (I) 1974 के करार के अनच् ु छे द 2 को �नम्नानस ु ार कायार्िन्वत �कया जाएगा : भारत सरकार और बांग्लादे श सरकार के बीच यह करार हुआ है �क प्र�तकूल कब्जे म� धा�रत राज्य�ेत्र� के �लए, जैसा �क संयक् ु त सव��ण के माध्यम से अवधा�रत �कया गया था और अपने-अपने प्र�तकूल कब्जा भू�ेत्र सूचक मान�चत्र (एपीएल मान�चत्र) म� , िजसे �दसम्बर, 2010 और अगस्त, 2011 के बीच दोन� दे श� के भू-अ�भलेख और सव��ण �वभाग� र् या �च�त्रत �कया गया था, िजनका द्वारा अं�तम रूप �दया गया है, पण ू त पण र् या वणर्न नीचे खंड (क) से खंड (घ) म� �कया गया है, एक �नयत ू त सीमा के रूप म� सीमा रे खा खींची जाएगी । सुसंगत सीमा पट्ट� से मान�चत्र� को मु�द्रत �कया जाएगा और उन पर पण ू ार्�धका�रय� द्वारा हस्ता�र �कए जाएंगे और राज्य�ेत्रीय अ�धका�रता का अन्तरण एन्क्लेव� के आदान-प्रदान के साथ-साथ पण ू र् �कया जाएगा । ऊपर व�णर्त सूचक मान�चत्र� म� यथा �च�त्रत सीमा का अभ्यंकन �नम्नानस ु ार होगा : (क) पिश्चमी बंगाल सेक्टर (i) बौसमार�-मधग ु र� (कुिश्तया-ना�डया) �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 154/5-एस से 157/1एस से होते हुए मथबंगा नद� के परु ाने बहाव मागर् के मध्य तक, जैसा �क 1962 के चकबंद� मान�चत्र म� �च�त्रत है एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जन ू , 2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । (ii) अंधारकोटा (कुिश्तया-ना�डया) �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 152/5-एस से सीमा स्तंभ सं0 153/1-एस से होते हुए �वद्यमान मथबंगा नद� के �कनारे तक एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जन ू , 2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । 356 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) (iii) पकु�रया (कुिश्तया-ना�डया) �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 151/1-एस से सीमा स्तंभ सं0 152/2-एस से होते हुए मथबंगा नद� के �कनारे तक एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जन ू , 2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । (iv) चार म�हष्कंु डी (कुिश्तया-ना�डया) �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 153/1-एस से सीमा स्तंभ सं0 153/9-एस से होते हुए मथबंगा नद� के �कनारे तक एक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जन ू , 2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । (v) ह�रपाल/खत ु ादाह/बटोल�/सपामेर�/एलएन (नौगांव-मालदा) �ेत्र परु (पटार�) �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 242/एस/13 से सीमा स्तंभ सं0 243/7-एस/5 को जोड़ने वाल� रे खा के रूप म� सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जन ू , 2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । (vi) बेरुबाडी (पंचगढ़-जलपाईगड़ ु ी) �ेत्र बांग्लादे शी द्वारा प्र�तकूलतः धा�रत बेरुबाडी �ेत्र (पंचगढ़-जलपाईगड़ ु ी) और भारत द्वारा प्र�तकूलतः धा�रत बेरुबाडी और �संघपारा-खुडीपारा (पंचगढ़-जलपाईगड़ ु ी) म� सीमा रे खा 1996-1998 के दौरान संयक् ु त रूप से �कए गए अभ्यंकन के अनस ु ार खींची जाएगी । (ख) मेघालय सेक्टर (i) लोबाचेरा-नन ू चेरा लईलांग-ब�लचेरा म� �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1315/4-एस से सीमा स्तंभ सं0 1315/15-एस तक लईलांग-नन ू चेरा म� सीमा स्तंभ सं0 1316/1-एस से सीमा स्तंभ सं0 1316/11-एस तक लईलांग-ल�ह�लंग म� सीमा स्तंभ सं0 1317 से सीमा स्तंभ सं0 1317/13-एस तक और लईलांग-लभ ु ाचेरा म� सीमा स्तंभ सं0 1318/1-एस से सीमा स्तंभ सं0 1318/2-एस से होते हुए चाय बागान� के �कनारे तक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क �दसम्बर, 2010 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । 357 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) (ii) �परडीवाह/पडुआ �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1270/1-एस से सीमा स्तंभ सं0 1271/1-ट� तक, संयक् ु त रूप से �कए गए सव��ण और परस्पर सहम�त अनस ु ार सीमा रे खा खींची जाएगी । प�कार� के बीच सहम�त हुई है �क �परडीवाह गांव से भारतीय रािष्ट्रक� को उस मान�चत्र के, िजस पर सहम�त हुई है, �बन्द ु सं0 6 के �नकट �पयांग नद� से पानी लेने क� अनम ु �त द� जाएगी । (iii) �लंगखाट �ेत्र (कक) II/कुलुमचेरा �लंगखाट-I/कुलुमचेरा और �लंगखाट- �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1264/4-एस से सीमा स्तंभ सं0 1265 और सीमा स्तंभ सं0 1265/6-एस से सीमा स्तंभ सं0 1265/9-एस तक उस रे खा के अनस ु ार सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और परस्पर सहम�त हुई थी । (कख) �लंगखाट-III/सोनारहाट �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1266/13-एस से द��ण �दशा के नाले के साथ-साथ वहां तक सीमा रे खा जहां तक वह पव ू -र् पिश्चम �दशा म� दस ू रे नाले से �मलती है, खींची जाएगी उसके पश्चात ् यह पव ू र् �दशा म� नाले के उ�र� �कनारे से होते हुए वहां तक चलेगी, जहां तक वह संदभर् स्तंभ सं0 1267/4-आर. बी. और 1267/3-आर. आई के उ�र म� �वद्यमान अन्तरराष्ट्र�य सीमा से �मलती है । (iv) दावक�/तमा�बल �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1275/1-एस से सीमा स्तंभ सं0 1275/7-एस को जोड़ने वाल� एक सीधी रे खा से सीमा रे खा खींची जाएगी । प�कार इस �ेत्र म� “शून्य रे खा” पर बाड़ लगाने पर सहमत ह� । भारत का सं�वधान 358 (प�र�शष्ट 1) (v) नलजरू �/श्रीपरु �ेत्र (कक) नलजरू �-I सीमा रे खा द��ण �दशा म� �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1277/2-एस से पट्ट� मान�चत्र सं0 166 म� यथा द�शर्त तीन भ-ू खंड� तक वहां तक क� एक ऐसी रे खा होगी जहां तक वह सीमा स्तंभ सं0 1277/5-ट� से बहने वाले नाले से �मलती है तत्पश्चात ् वह द��ण �दशा म� नाले के पिश्चमी �कनारे के साथ-साथ बांग्लादे श क� ओर के दो भ-ू खंड� तक चलेगी, तत्पश्चात ् वह पव ू र् क� ओर वहां तक चलेगी जहां तक सीमा स्तंभ सं0 1277/4-एस से द��ण �दशा म� खींची गई रे खा से �मलती है । (कख) नलजरू �-III �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1278/2-एस से सीमा स्तंभ सं0 1279/3-एस तक सीमा रे खा एक सीधी रे खा के रूप म� खींची जाएगी । (vi) मुक्तापरु /�ड�बर हावोर �ेत्र प�कार इस बात से सहमत ह� �क भारतीय रािष्ट्रक� को काल� मं�दर जाने क� अनम ु �त द� जाएगी और उन्ह� मक् ताप र क� ओर क े तट से म क् ु ु ु तापरु /�ड�बर हावोर �ेत्र म� िस्थत जलाशय से पानी लेने और मछल� पकड़ने के अ�धकार� का प्रयोग करने क� भी अन� ु ा द� जाएगी । (ग) �त्रपरु ा सेक्टर (i) �त्रपरु ा/मौलवी बाजार सेक्टर म� चन्दन नगर-चंपाराई चाय बागान �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1904 से सीमा स्तंभ सं0 1905 तक सोनार चेर� नद� के साथ सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क जल ु ाई, 2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । 359 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) (घ) असम सेक्टर (i) असम सेक्टर म� कालाबाड़ी (बोरोईबार�) �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1066/24-ट� से सीमा स्तंभ सं0 1067/16-ट� तक सीमा रे खा खींची जाएगी, जैसा�क अगस्त, 2011 म� संयक् ु त रूप से सव��ण �कया गया था और सहम�त हुई थी । (ii) असम सेक्टर म� पल्लाथाल �ेत्र �वद्यमान सीमा स्तंभ सं0 1370/3-एस से सीमा स्तंभ सं0 1371/6-एस से होते हुए चाय बागान के बाहर� �कनारे से होते हुए पान बागान �ेत्र के बाहर� �कनारे के साथ-साथ सीमा स्तंभ सं0 1372 से 1373/2-एस तक सीमा रे खा खींची जाएगी । III. तार�ख 16 मई, 1974 के करार के अनच् ु छे द 1(12) और तार�ख 6 �सतम्बर, 2011 के करार के प्रोटोकाल के अनस ु रण म� भारत और बांग्लादे श के बीच एन्क्लेव� के आदान-प्रदान क� सूची क्रम सं0 अ. बांग्लादे श म� के आदान-प्रदान योग्य भारतीय एन्क्लेव, �ेत्रफल स�हत �छट� का नाम �छट सं0 बांग्लादे श के पिश्चमी स्टे शन के प�ु लस प�ु लस भीतर िस्थत बंगाल के स्टे शन के भीतर �ेत्रफल एकड़ म� िस्थत 1 2 3 4 5 6 क. स्वतंत्र �छट� वाले एन्क्लेव 1. गराट� 75 पोचागर हल्द�बाड़ी 3. गराट� 77 पोचागर हल्द�बाड़ी 2. 4. 5. 6. 7. गराट� गराट� गराट� गराट� �बंगीमार� भाग-I 76 78 79 80 73 पोचागर पोचागर पोचागर पोचागर पोचागर हल्द�बाड़ी 58.23 0.79 18 हल्द�बाड़ी 958.66 हल्द�बाड़ी 73.75 हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी 1.74 6.07 360 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 3 8. नजीरगंज 41 बोडा 10. नजीरगंज 44 बोडा 9. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. 28. 29. 30. 31. 32. 33. 34. नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज नजीरगंज पट ु �मार� दै खाता छट सल्बर� काजल �दघी नटकटोका नटकटोका बेउलाडांगा छट बलापारा इगराबार बला खन�कखर�जा �सतलदहा 42 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 60 59 38 37 36 32 33 35 3 30 4 बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा बोडा दे बीगंज �डमला 5 हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी 6 58.32 434.29 53.47 1.07 हल्द�बाड़ी 17.95 हल्द�बाड़ी 73.27 हल्द�बाड़ी 5.05 हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी 3.89 49.05 0.77 1.04 1.02 3.87 हल्द�बाड़ी 12.18 हल्द�बाड़ी 8.27 हल्द�बाड़ी 54.04 हल्द�बाड़ी 14.22 हल्द�बाड़ी 122.8 हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी 0.52 499.21 हल्द�बाड़ी 1188.93 हल्द�बाड़ी 162.26 हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी 771.44 0.26 0.83 1752.44 7.71 361 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 3 4 5 6 35. बला खन�कखर�जा 29 �डमला हल्द�बाड़ी 36.83 36. बराखनगीर 28 �डमला हल्द�बाड़ी 30.53 कुचल�बार� 26 पटग्राम मेकल�गंज 5.78 37. 38. 39. 40 �सतलदहा नगरजीकोबर� कुचल�बार� बरा कुचल�बार� 31 �डमला 27 पटग्राम थाना मेकल�गंज पटग्राम हल्द�बाड़ी मेकल�गंज मेकल�गंज 33.41 2.04 4.35 के जे0एल0 107 41. 42. 43. 44. 45. 46. 47. 48. 49. 50. 51. जमालोहाबेलापख ु ार� अपखंड का 6 पटग्राम मेकल�गंज 5.24 115/2 पटग्राम मेकल�गंज 0.32 7 पटग्राम मेकल�गंज 44.04 भोथनर� 11 पटग्राम मेकल�गंज 36.83 बाराखानगीर 4 पटग्राम मेकल�गंज 50.51 उपनचौक� कुचल�बार� उपनचौक� कुचल�बार� बालापख ु ार� बाराखानगीर छठ बोगडोकरा रतनपरु बोगडोकरा पल ु कर डाबर� 5 9 10 11 12 थाना मेकल�गंज के जे0एल0 107 का अपखंड पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम मेकल�गंज मेकल�गंज मेकल�गंज 55.91 87.42 41.7 मेकल�गंज 58.91 मेकल�गंज 0.88 मेकल�गंज 25.49 362 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 3 4 5 52. खरखर�या 15 पटग्राम मेकल�गंज 54. लोटामार� 14 पटग्राम मेकल�गंज 53. 55. 56. 57. 58. 59. 60. 61. 62. 63. 64. 65. 66. 67. 68. 69. 70. 71. 72. 73. 74. 75. 76. 77. 78. 79. खरखर�या भूतबार� 13 16 कोमट चांग्रबधा 16ए पनीसाला 17 कोमट चांग्रबधा द्वा�रकामार� खासबाश पनीसाला 17ए 18 द्वा�रकामार� छट भोथाट 20 22 23 25 24 बाकाटा 130 चेनाकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा मेकल�गंज मेकल�गंज मेकल�गंज 131 भोग्रामगुर� पटग्राम मेकल�गंज पटग्राम बाकाटा बाकाटा पटग्राम मेकल�गंज 19 21 द्वा�रकामार� पटग्राम मेकल�गंज पनीसाला लोटामार� पटग्राम मेकल�गंज पटग्राम 153/ओ लोटामार� पटग्राम मेकल�गंज 153/पी पनीसाला पनीसाला पटग्राम 132 133 134 119 120 121 113 112 114 पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम 6 60.74 51.62 110.92 205.46 42.8 16.01 137.66 36.5 0.27 मेकल�गंज 18.01 मेकल�गंज 51.4 64.63 मेकल�गंज 283.53 मेकल�गंज 39.52 मेकल�गंज मेकल�गंज मेकल�गंज हथभंगा हथभंगा हथभंगा हथभंगा मेकल�गंज 98.85 45.73 56.11 22.35 11.96 20.48 1.44 7.81 मथबंगा 413.81 मथबंगा 12.15 मथबंगा मथबंगा मथबंगा मथबंगा 30.75 57.86 315.04 0.77 363 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 3 4 5 80. बांसकाटा 115 पटग्राम मथबंगा 82. बांसकाटा 127 पटग्राम मथबंगा 81. 83. 84. 85. 86. 87. 88. 89. 90. 91. 92. 93. 94. 95. 96. बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा बांसकाटा गोटामार� �छट गोटामार� �छट बनापचाई बनापचाई भीतरकुथी 122 128 117 118 125 126 129 116 123 124 135 136 151 152 पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम हा�तबंधा हा�तबंधा 29.2 मथबंगा 33.22 मथबंगा 2.33 मथबंगा 12.72 2.55 मथबंगा 30.98 मथबंगा 1.39 मथबंगा मथबंगा 0.64 1.37 मथबंगा 16.96 मथबंगा 0.28 मथबंगा �सतलकुची लालमो�नरहाट �सतलकुची �दनहाटा लालमो�नरहाट 6 �दनहाटा 24.37 126.59 20.02 217.29 81.71 द�सआर छारा 150 फुलबार� �दनहाटा 1643.44 कलामती 141 भुंगामार� �दनहाटा 21.21 101. बाओ�तकुरसा बरा कोआचल् ु का 142 भुंगामार� �दनहाटा 45.63 103. गावचल् ु का I 97. 98. 99. 100. 102. 104. 105. 106. दकुरहाटद�क�नरकुथी भाहोबगंज गावचल् ु का II �दघालतर� II �दघालतर� I छोटूगरलझोरा II 156 153 143 147 146 145 144 149 कुर�ग्राम भुंगामार� भुंगामार� भुंगामार� भुंगामार� भुंगामार� भुंगामार� भुंगामार� �दनहाटा �दनहाटा �दनहाटा �दनहाटा 14.27 31.58 39.99 0.9 �दनहाटा 8.92 �दनहाटा 12.31 �दनहाटा �दनहाटा 8.81 17.85 364 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 107. 108. 2 छोटू गरलझोरा I जे0एल0सं0 के 38 द��णी छोर 3 148 157 4 भुरुंगामार� पटग्राम 5 �दनहाटा मथभंगा 6 35.74 3.5 और जे0एल0सं0 39 छोर नाम के पर द��णी �बना जे0एल0सं0 1 और का �छट ∗ (स्थानीय रूप से अशोकाबाड़ी ** के 2 रूप म� �ात) 109 (i) बेवलाडांगा 110. (i) कोतभाजनी बोडा 2 हल्द�बाड़ी दे बीगंज (ii) कोतभाजनी अपखंड (iv) कोतभाजनी अपखंड (i) दहाला (ii) दहाला (iv) दहाला ** हल्द�बाड़ी अपखंड (iii) दहाला ∗ 34 (ii) बेवलाडांगा (iii) कोतभाजनी 111. ख. अपखंड �छट वाले एन्क्लेव अपखंड खागराबार� अपखंड अपखंड अपखंड हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी दे बीगंज दे बीगंज 862.46 2012.27 दे बीगंज दे बीगंज दे बीगंज दे बीगंज 2650.35 दे बीगंज दे बीगंज 29 �सतम्बर, 2002 से 2 अक्तूबर, 2002 तक कोलकाता म� आयोिजत एक सौ पचासव� (चौवनव� ) भारत-बांग्लादे श सीमा सम्मेलन द्वारा संशो�धत । 18 �सतम्बर, 2003 से 20 �सतम्बर, 2003 तक कूच �बहार (भारत) म� आयोिजत एक सौ बावनव� (छप्पनव� ) भारत-बांग्लादे श सीमा सम्मेलन द्वारा संशो�धत । 365 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 (v) दहाला (vi) दहाला 3 4 अपखंड अपखंड 5 हल्द�बाड़ी हल्द�बाड़ी 6 दे बीगंज दे बीगंज 17160.63 एन्क्लेव� के उपरोक्त ब्यौर� का 9 अक्तब ू र, 1996 से 12 अक्तब ू र, 1996 के दौरान कलक�ा म� आयोिजत भारत-बांग्लादे श सम्मेलन के दौरान और साथ ह� 21 नवम्बर, 1996 से 24 नवम्बर, 1996 के दौरान जलपाईगड़ ु ी (पिश्चमी बंगाल)-पांचागढ़ (बांग्लादे श) सेक्टर म� संयक् ु त �ेत्र �नर��ण के दौरान भी भारत और बांग्लादे श द्वारा धा�रत अ�भलेख� से संयक् ु त रूप से �मलान �कया गया है और उन्ह� समाधानप्रद बनाया गया है । �टप्पण : �ेत्र सीमन काल 1996-97 के दौरान संयक् ु त भ�ू म सत्यापन द्वारा उपयक् ुर् त क्रम सं0 108 के एन्क्लेव के नाम क� अशोकाबाड़ी एन्क्लेव के रूप म� पहचान क� गई । �बग्रे�डयर जे0आर0 पीटर �नदे शक, भू-अ�भलेख और सव��ण (पदे न), पिश्चमी बंगाल, भारत और �नदे शक, पव ू � �ेत्र भारतीय सव��ण, कलक�ा मो0 शफ� उद्द�न महा�नदे शक, भू-अ�भलेख और सव��ण, बांग्लादे श आ. भारत म� के आदान-प्रदान योग्य बांग्लादे श एन्क्लेव, �ेत्रफल स�हत क्रम सं0 �छट� का नाम बांग्लादे श भीतर िस्थत के पु�लस स्टे शन के 1 2 1. 2. �छट कुचल�बार� कुचल�बार� क� �छट भू�म बालापख ु ार� पनबार� सं0 2 क� �छट भू�म 3. 4. पिश्चमी बंगाल के 3 के पु�लस स्टे शन िस्थत क. स्वतंत्र �छट� वाले एन्क्लेव जे0एल0 सं0 भीतर 4 �ेत्रफल एकड़ म� 5 6 मेकल�गंज मेकल�गंज पटग्राम पटग्राम 22 24 370.64 1.83 मेकल�गंज मेकल�गंज पटग्राम पटग्राम 21 20 331.64 1.13 366 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 3 4 5 6 5. �छट पनबार� मेकल�गंज पटग्राम 18 108.59 7. बामनदल मेकल�गंज पटग्राम 11 2.24 6. 8. 9. 10. 11. 12. 13. 14. 15. 16. 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. धाबलसाती �मग�परु �छट धाबलसाती धाबलसाती श्रीरामपरु जोते �नज्जमा जगतबेर सं0 3 क� �छट भू�म मेकल�गंज मेकल�गंज मेकल�गंज मेकल�गंज मेकल�गंज मथबंगा पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम पटग्राम 15 173.88 14 66.58 8 1.05 13 60.45 पटग्राम 37 3 87.54 69.84 जगतबेर सं0 1 क� �छट भू�म मथबंगा पटग्राम 35 30.66 जगतबेर सं0 2 क� �छट भ�ू म मथबंगा पटग्राम 36 27.09 �छट कोकोआबार� �छट भंदारदाहा मथबंगा पटग्राम 47 29.49 धाबलगुड़ी मथबंगा मथबंगा पटग्राम 52 �छट धाबलगुड़ी धाबलगुड़ी सं0 3 क� �छट भू�म मथबंगा मथबंगा पटग्राम पटग्राम पटग्राम 67 39.96 12.5 53 22.31 70 1.33 धाबलगुड़ी सं0 4 क� �छट भ�ू म मथबंगा पटग्राम 71 4.55 धाबलगुड़ी सं0 5 क� �छट भू�म मथबंगा पटग्राम 72 4.12 धाबलगुड़ी सं0 1 क� �छट भू�म मथबंगा पटग्राम 68 26.83 धाबलगड़ ु ी सं0 2 क� �छट भू�म मथबंगा पटग्राम 69 13.95 म�हशमार� बरु ा सराडुबी �सतलकुची �सतलकुची पटग्राम 54 122.77 हा�तंबधा 13 34.96 367 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 3 4 5 6 26. फलनापरु �सतलकुची पटग्राम 64 506.56 27. अमझोल �सतलकुची हा�तंबधा 57 1.25 28. �कसमत भातर�गाछ �दनहाटा काल�गंज 82 209.95 29. दग ु ार्परु �दनहाटा काल�गंज 83 20.96 30. बंसुआ खामर �गतालदाहा �दनहाटा लालमो�नरहाट 1 24.54 31. पाओतुकुथी �दनहाटा लालमो�नरहाट 37 589.94 32. पिश्चम बाकाल�र छरा �दनहाटा भुंगामार� 38 151.98 33. मध्य बाकाल�र छरा �दनहाटा भुंगामार� 39 32.72 34. परू बा बाकाल�र छरा �दनहाटा भुंगामार� 40 12.23 35. मध्य मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� 3 136.66 36. मध्य �छट मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� 8 11.87 37. पिश्चम �छट मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� 7 7.6 38. उ�र मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� 2 27.29 39. कचआ ु �दनहाटा भुंगामार� 5 119.74 40. उ�र बंसजानी तूफानगंज भुंगामार� 1 47.17 41. छत �तलाई तूफानगंज भुंगामार� 17 81.56 1397.34 ख. अपखंड �छट वाले एन्क्लेव 42. (i) नलग्राम �सतलकुची पटग्राम 65 (ii) नलग्राम (अपखंड) �सतलकुची पटग्राम 65 (iii) नलग्राम (अपखंड) �सतलकुची पटग्राम 65 368 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 43. 44. 45. 46. 47. 2 3 4 5 (i) �छट नलग्राम �सतलकुची पटग्राम 66 (ii) �छट नलग्राम (अपखंड) �सतलकुची पटग्राम 66 (i) बतर�गाछ �दनहाटा काल�गंज 81 (ii) बतर�गाछ (अपखंड) �दनहाटा काल�गंज 81 (iii) बतर�गाछ (अपखंड) �दनहाटा फुलबार� 9 (i) कराला �दनहाटा फुलबार� 9 (ii) कराला (अपखंड) �दनहाटा फुलबार� 9 (iii) कराला (अपखंड) �दनहाटा फुलबार� 8 (i) �सबप्रसाद मुस्तती �दनहाटा फुलबार� 8 (ii) �सबप्रसाद मस् ु तती (अपखंड) �दनहाटा फुलबार� 6 (i) द��ण मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� 6 (ii) द��ण मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा भुंगामार� 6 (iii) द��ण मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा भुंगामार� 6 (iv) द��ण मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा भुंगामार� 6 (v) द��ण मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा भुंगामार� 6 (vi) द��ण मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा भंग ु ामार� 6 6 49.5 577.37 269.91 373.2 571.38 369 भारत का सं�वधान (प�र�शष्ट 1) 1 2 48. 49. 50. 51. 3 4 5 6 (i) पिश्चम मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� (ii) पिश्चम मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा भुंगामार� 4 (i) परू बा �छट मसालडांगा �दनहाटा भुंगामार� 10 (ii) परू बा �छट मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा भुंगामार� 10 (i) परू बा मसालडांगा (ii) परू बा मसालडांगा (अपखंड) �दनहाटा �दनहाटा भंग ु ामार� 11 153.89 (i) उ�र धालडांगा (ii) उ�र धालडांगा (अपखंड) (iii) उ�र धालडांगा (अपखंड) कुल �ेत्र तूफानगंज तफ ू ानगंज भुंगामार� भंग ु ामार� 14 14 24.98 तूफानगंज भुंगामार� 14 भुंगामार� 4 29.49 35.01 11 7,110.02 एन्क्लेव� के उपरोक्त ब्यौर� का 9 अक्तब ू र, 1996 से 12 अक्तब ू र, 1996 के दौरान कलक�ा म� आयोिजत भारत-बांग्लादे श सम्मेलन के दौरान और साथ ह� 21 नवम्बर, 1996 से 24 नवम्बर, 1996 के दौरान जलपाईगड़ ु ी (पिश्चमी बंगाल)-पांचागढ़ (बांग्लादे श) सेक्टर म� संयक् ु त �ेत्र �नर��ण के दौरान भी भारत और बांग्लादे श द्वारा धा�रत अ�भलेख� से संयक् ु त रूप से �मलान �कया गया है और उन्ह� समाधानप्रद बनाया गया है । �बग्रे�डयर जे0आर0 पीटर �नदे शक, भू-अ�भलेख और सव��ण (पदे न) पिश्चमी बंगाल, भारत और �नदे शक, पव ू � �ेत्र भारतीय सव��ण, कलक�ा । मो0 शफ� उद्द�न महा�नदे शक, भू-अ�भलेख और सव��ण, बांग्लादे श । 0 1 प�र�शष्ट 2 सं�वधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदे श, 2019 सं.आ. 272 सं�वधान के अनच् ु छे द 370 के खंड (1) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए, राष्ट्रप�त, जम्मू-कश्मीर राज्य सरकार क� सहम�त से �नम्न�ल�खत आदे श करते ह�,— 1. (1) इस आदे श नाम सं�वधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदे श, 2019 है । (2) यह तुरन्त प्रव� ृ होगा और इसके बाद यह समय-समय पर यथा संशो�धत सं�वधान (जम्मू-कश्मीर पर लागू) आदे श, 1954 का अ�धक्रमण करे गा । 2. समय-समय पर यथा संशो�धत सं�वधान के सभी उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबध ं म� लागू ह�गे और िजन अपवाद� और आशोधन� के अधीन ये लागू ह�गे �नम्न प्रकार ह�गे :— अनच् ु छे द 367 म� �नम्न�ल�खत खंड जोड़ा जाएगा, अथार्त ् :— “(4) सं�वधान, जहां तक यह जम्मू-कश्मीर के संबध ं म� लागू ह�, के प्रयोजन� के �लए— (क) इस सं�वधान या इसके उपबंध� के �नद� श� को, उक्त राज्य के संबध ं म� यथा लागू सं�वधान और उसके उपबंध� का �नद� श माना जाएगा ; (ख) िजस व्यिक्त को राज्य क� �वधान सभा क� �सफा�रश पर राष्ट्रप�त द्वारा जम्मू-कश्मीर के सदर-ए-�रयासत, जो तत्स्था�नक रूप से पदासीन राज्य क� मंत्री-प�रषद् क� सलाह पर कायर् कर रहे ह�, के रूप म� तत्स्था�नक रूप से मान्यता द� गई है, उनके �लए �नद� श� को जम्मूकश्मीर के राजपाल के �लए �नद� श माना जाएगा ; (ग) उक्त राज्य क� सरकार के �नद� श� को, उनक� मं�त्र-प�रषद् क� सलाह पर कायर् कर रहे जम्मू-कश्मीर के राजपाल के �लए �नद� श� को शा�मल करता हुआ माना जाएगा ; तथा (घ) इस सं�वधान के अनच् ु छे द 370 के परन्तुक म� “खंड (2) म� उिल्ल�खत राज्य क� सं�वधान सभा” अ�भव्यिक्त को “राज्य क� �वधान सभा” पढ़ा जाएगा ।”। 1. �व�ध और न्याय मंत्रालय (�वधायी �वभाग) क� अ�धसूचना सं0 सा0का0�न0 551 (अ), तार�ख 5 अगस्त, 2019 भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खंड 3 उपखंड (i) म� प्रका�शत । 370 प�र�शष्ट 3 0 1 सं�वधान के अनुच्छे द 370(3) के अधीन घोषणा सं.आ. 273 राष्ट्रप�त, संसद् क� �सफा�रश पर भारत के सं�वधान के अनच् ु छे द 370 के खंड (1) के साथ प�ठत अनच् ु छे द 370 के खंड (3) द्वारा प्रद� शिक्तय� का प्रयोग करते हुए यह घोषणा करते ह� �क 6 अगस्त, 2019 से उक्त अनच् ु छे द 370 के सभी खंड, �सवाय �नम्न�ल�खत के, जो नीचे �दए गए के अनस ु ार है, प्रचालन म� नह�ं रह� गे, अथार्त ् :— “370. इस सं�वधान के समय-समय पर यथा संशो�धत, सभी उपबंध �बना �कन्ह�ं उपांतरण� या अपवाद� के अनच् ु छे द 152 या अनच् ु छे द 308 या इस सं�वधान के �कसी अन्य अनच् ु छे द या जम्म-ू कश्मीर के सं�वधान म� �कसी अन्य उपबंध या �कसी �व�ध, दस्तावेज, �नणर्य, अध्यादे श, आदे श, उप�व�ध, �नयम, �व�नयम, अ�धसूचना या भारत के राज्य�ेत्र म� �व�ध का बल रखने वाल� �कसी रू�ढ़ या प्रथा या �कसी अन्य �लखत, सं�ध या करार जो अनच् ु छे द 363 के अधीन यथा प�रकिल्पत या अन्यथा है, म� तत्प्र�तकूल �कसी बात के अन्त�वर्ष्ट होते हुए भी, जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू ह�गे ।”। 1. �व�ध और न्याय मंत्रालय (�वधायी �वभाग) क� अ�धसूचना सं0 सा0का0�न0 562(अ), तार�ख 6 अगस्त, 2019 भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 2, खंड 3 उपखंड (i) म� प्रका�शत । 371