Uploaded by Raunak Singh Chauhan

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Q(1).तुलसी के युग की बेकारी क क्या कारण
हो सकते हैं ? आज्ञ को समस्या के साथ उसे
ममलाकर अपने शब्ोों में वणणन करें । और
वतणमान पररस्थथमत से तुलसी के युग की तुलना
की प्रासोंमगकता का वणणन करें ।
गोस्वामी तुलसीदास का जन्मथथान मववामदत है । अमिकाों श मवद्वानोों व
राजकीय साक्ष्ोों के अनुसार इनका जन्म सोरोों शूकरक्षेत्र,
जनपद कासगोंज, उत्तर प्रदे श में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म
राजापुर मजला मित्रकूट में हुआ मानते हैं । सोरोों उत्तर
प्रदे श के कासगोंज जनपद के अोंतगणत एक सतयुगीन तीथणथथल
शूकरक्षेत्र है । वहाों पों० सस्िदानोंद शु क्ल नामक एक प्रमतमित
सनाढ्य ब्राह्मण रहते थे। उनके दो पुत्र थे, पों० आत्माराम शुक्ल और
पों० जीवाराम शु क्ल। पों० आत्माराम शुक्ल एवों हुलसी के पुत्र का नाम
महाकमव गोस्वामी तुलसीदास था, मजन्ोोंने श्रीरामिररतमानस
महाग्रोंथ की रिना की थी। नोंददास जी के छोटे भाई का नाम
िँदहास था। नोंददास जी, तुलसीदास जी के सगे ििेरे भाई थे।
नोंददास जी के पुत्र का नाम कृष्णदास था।
भगवान की प्रेरणा से शूकरक्षेत्र में रहकर पाठशाला िलाने वाले गुरु
नृमसोंह िौिरी ने इस रामबोला के नाम से बहुिमिणत हो िुके इस
बालक को ढू ँ ढ मनकाला और मवमिवत उसका नाम तुलसीदास रखा।
गुरु नृमसोंह िौिरी ने ही इन्ें रामायण, मपोंगलशास्त्र व गुरु हररहरानोंद
ने इन्ें सोंगीत की मशक्षा दी। तदोपरान्त बदररया मनवासी दीनबोंिु
पाठक की पुत्री रत्नावली से इनका मववाह हुआ। एक पुत्र भी इन्ें
प्राप्त हुआ, मजसका नाम तारापमत/तारक था, जोमक कुछ समय बाद
ही काल कवमलत हो गया। रत्नावली के पीहर (बदररया) िले जाने पर
ये रात में ही गोंगा को तैरकर पार करके बदररया जा पहुों िे। तब
रत्नावली ने लस्ित होकर इन्ें मिक्कारा। उन्ीों विनोों को सुनकर
इनके मन में वैराग्य के अोंकुर फूट गए और 36 वर्ण की अवथथा में
शूकरक्षेत्र सोरोों को सदा के मलए त्यागकर िले गए।
कुछ काल राजापु र रहने के बाद वे पुन: काशी िले गये और वहाँ की
जनता को राम-कथा सुनाने लगे। कथा के दौरान उन्ें एक मदन
मनुष्य के वेर् में एक प्रेत ममला, मजसने उन्ें हनुमान जी का पता
बतलाया। हनुमान जी से ममलकर तुलसीदास ने
उनसे श्रीरघुनाथजी का दशणन कराने की प्राथणना की। हनुमान्‌जी ने
कहा- "तुम्हें मित्रकूट में रघुनाथजी दशणन होोंगें।" इस पर तुलसीदास
जी मित्रकूट की ओर िल पडे ।
तुलसी के समय में बेकारी के बहुत कारण रहे होगें। वे इस प्रकार हैं (क) अत्यमिक लगान
(ख) प्रकृमत प्रकोप (सूखा या बाढ़)
(ग) मुस्िम शासकोों द्वारा लगाए गए अनैमतक कर
(घ) मोंमत्रयोों द्वारा शोर्ण
आज के समय में बेकारी की समस्या के पीछे मनम्नमलस्खत कारण हैं (क) मशक्षा का अभाव
(ख) कृमर् के प्रमत लोगोों में उपेक्षा भाव
(ग) प्रकृमत का प्रकोप (सूखा या बाढ़)
(घ) अत्यमिक कजण
(ङ) मशीनोों का अत्यमिक प्रयोग मजसके कारण फैक्टरी में लोगोों की
आवश्यकता कम हो जाना
तुलसी के युग की बेकारी के पीछे कई कारण हैं , जो इस मूल्यवान
पौिे की महत्ता को अनदे खा करते हैं । पहला कारण है ज्ञान की
कमी। व्यस्िगत और सामामजक स्तर पर, लोगोों को तुलसी के
आयुवेमदक गुणोों, िाममणक महत्त्व और प्राकृमतक मिमकत्सा में उसकी
महत्ता का ठीक से ज्ञान नहीों होता।
दू सरा कारण है तकनीकी मवकास और आिुमनक जीवनशैली। ध्यान
और उपासना की भावना गुम हो जाती है जब लोगोों का जीवन
व्यस्तताओों और तकनीकी उन्नमत में डूब जाता है । इससे वे तुलसी
जैसी प्राकृमतक िीजोों को अनदे खा करते हैं ।
तीसरा कारण है सामामजक बदलाव और मविारिारा की
पररवतणनशीलता। आिुमनक समाज में तुलसी को केवल िाममणक अथण
में ही दे खा जाता है , मजससे उसकी सावणभौममक महत्ता को
नजरअोंदाज मकया जाता है ।
इन सभी कारणोों से, तुलसी का युग बेकार हो जाता है । यह मूल्यवान
पौिा हमारी सेहत और सोंतुलन को सोंरमक्षत करने में सहायक हो
सकता है , लेमकन उसका सही से उपयोग न करने से हम इस लाभ
से वोंमित रहते हैं ।
िाममणक सोंस्कृमत और प्रािीन मविारिारा में कई बदलाव हुए हैं ,
मजससे तुलसी के प्रमत समथणन और जागरूकता कम हो गई है ।
लोगोों की जीवनशै ली में तेजी से बदलाव आया है , मजससे प्राकृमतक
उपिार और पौिोों के उपयोग को उनकी प्राथममकता से हटाया गया
है ।
आिुमनकता की दु मनया में तुलसी का महत्त्व ध्वमनत हो गया है ।
आिुमनक मिमकत्सा, मवज्ञान, और तकनीकी उपयोग में ध्यान केंमित
होने से प्राकृमतक उपिार और तुलसी जैसी पौिोों का महत्त्व कम हो
गया है । भले ही कई अध्ययन और तस्करी प्रमाण स्वीकार करते हैं
मक तुलसी में मवशे र् गुण होते हैं , लेमकन उनका समय मान्यताओों
और तकनीकी उन्नमत के बीि टकराव का सामना करना पड रहा है ।
वतणमान पररस्थथमत में, तुलसी के युग की प्रासोंमगकता मवशेर् रूप से
स्वास्थ्य और पयाण वरण में जागरूकता के सोंदभण में उभरती है । लोग
मफर से प्राकृमतक और आयुवेमदक उपिारोों की ओर ध्यान दे ने लग
रहे हैं । तुलसी के प्रमत जागरूकता बढ़ रही है क्योोंमक लोग स्वास्थ्य
और मानमसक समृस्ि के मलए प्राकृमतक उपिारोों की तलाश में हैं ।
इससे, तुलसी का युग मफर से मानव समाज के मलए महत्त्वपूणण हो
रहा है , यहाँ तक मक आिुमनक मिमकत्सा में भी इसका महत्त्व बढ़ा
है ।
Q(2).शारीररक वोंश परों परा और सामामजक उत्तरामिकार
की दृमि से मनु ष्योों में में असमानता सोंभामवत होने के
बावजूद आों बेडकर समता को एक व्यवहायण मसिाों त
मानने का आग्रह क्योों करते है ? इसक पमछ उनके क्या
तकण हैं ? आदशण समाज के तीन तत्ोों में से भ्रातृत को
रखकर लेखक ने अपने आदशण समाज में स्स्त्रयोों को भी
सस्िमलत करने के पीछे लेखक को क्या मे शा रही होगी?
आप कहाँ तक इससे सहमत है ? तकणपूणण उत्तर दें
भीमराव रामजी आम्बेडकर (14 अप्रैल, 1891 – 6 मदसोंबर,
1951), डॉ॰ बाबासाहब आम्बेडकर नाम से लोकमप्रय,
भारतीय बहुज्ञ, मवमिवेत्ता, अथणशास्त्री, राजनीमतज्ञ,
और समाजसुिारक थे।उन्ोोंने दमलत बौि आों दोलन को प्रेररत मकया
और अछूतोों (दमलतोों) से सामामजक भेदभाव के मवरुि अमभयान
िलाया था। श्रममकोों, मकसानोों और ममहलाओों के अमिकारोों का
समथणन भी मकया था। वे स्वतोंत्र भारत के प्रथम मवमि एवों न्याय
मन्त्री, भारतीय सोंमविान के जनक एवों भारत गणराज्य के मनमाण ताओों
में से एक थे।
आम्बेडकर मवपुल प्रमतभा के छात्र थे। उन्ोोंने कोलोंमबया
मवश्वमवद्यालय और लोंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉममक्स दोनोों ही
मवश्वमवद्यालयोों से अथणशास्त्र में डॉक्टरे ट की उपामियाँ प्राप्त कीों
तथा मवमि, अथणशास्त्र और राजनीमत मवज्ञान में शोि कायण भी मकये
थे। व्यावसामयक जीवन के आरस्िक भाग में ये अथणशास्त्र के
प्रोफेसर रहे एवों वकालत भी की तथा बाद का जीवन राजनीमतक
गमतमवमियोों में अमिक बीता। इसके बाद आम्बेडकर भारत की
स्वतोंत्रता के मलए प्रिार और ििाण ओों में शाममल हो गए और
पमत्रकाओों को प्रकामशत करने, राजनीमतक अमिकारोों की वकालत
करने और दमलतोों के मलए सामामजक स्वतोंत्रता की वकालत की और
भारत के मनमाण ण में उनका महत्पू णण योगदान रहा।
महों दू पोंथ में व्याप्त कुरूमतयोों और छु आछूत की प्रथा से तोंग आकार
सन 1951 में उन्ोोंने बौि िमण अपना मलया था। सन 1990 में,
उन्ें भारत रत्न, भारत के सवोि नागररक सिान से मरणोपराों त
सिामनत मकया गया था। 14 अप्रैल को उनका जन्म
मदवस आम्बेडकर जयोंती के तौर पर भारत समेत दु मनया भर में
मनाया जाता है ।[9] डॉक्टर आम्बेडकर की मवरासत में लोकमप्रय
सोंस्कृमत में कई स्मारक और मित्रण शाममल हैं ।
भारतीय सोंमविान के मशल्पकार, आिुमनक भारतीय मिोंतक, समाज
सुिारक एवों भारत रत्न से सिामनत बाबासाहे ब भीमराव
आों बेडकर का मनिन 6 मदसोंबर 1956 को हुआ. डॉ. भीमराव
अोंबेडकर द्वारा मदये गए सामामजक योगदान और उनकी उपलस्ियोों
को याद करने के मलए हर साल 6 मदसोंबर को महापररमनवाण ण मदवस
मनाया जाता है ।
आों बेडकर समता को व्यवहायण मसिाों त मानने का आग्रह इसीमलए
करते हैं क्योोंमक उन्ोोंने समाज में व्यस्िगत और सामामजक
असमानता को बदलने और समानता को प्राप्त करने की
आवश्यकता को समझा था। उन्ोोंने यह माना मक शारीररक वोंश
परों परा और सामामजक उत्तरामिकार के आिार पर होने वाली
असमानता को समाप्त करना आवश्यक है और समता को थथामपत
करने के मलए यह आवश्यक है मक हर व्यस्ि को समान अमिकार,
समान अवसर, और समान सिान प्राप्त हो।
उनके तकण में, समानता का अथण मसफण अमिकारोों का साझा करना
नहीों होता, बस्ि यह समानता सभी व्यस्ियोों के मलए समान
अवसर, समान सोंवेदनशीलता, और समान मवकास का अमिकार
होना िामहए। उन्ोोंने समाज में उत्तरामिकार की बािा को हटाने के
मलए समान अमिकारोों के मलए अपील की।
आों बेडकर का मानना था मक समाज में समानता का मसिाों त व्यापक
रूप से प्रयोग होना िामहए, मजससे हर व्यस्ि को उसके पोटें मशयल
को पूरी तरह से मवकमसत करने का मौका ममले। उन्ोोंने यह भी
सुमनमित करने के मलए आवाज उठाई मक समाज के सभी वगों,
जामतयोों, और मलोंगोों के लोगोों को समान रूप से सिामनत मकया
जाना िामहए।
उनके तकण में समता का व्यापक मानना और समान अमिकारोों की
माों ग करना यह दशाण ता है मक मवशेर्तः उस समय, जब व्यस्िगत
और सामामजक असमानता बहुत हामनकारक थी, समाज में समानता
को थथामपत करना था।
लेखक ने भ्रातृता के तत् को ध्यान में रखते हुए अपने आदशण समाज
में स्स्त्रयोों को सस्िमलत करने का मतलब हो सकता है मक वे समाज
में स्त्री-पुरुर्ोों के बीि समानता, समरसता और सहयोग को
प्रोत्सामहत करना िाहते हैं । उनका मानना हो सकता है मक समाज में
भ्रातृता का मूल अथण है समूिे समाज के सभी अमिकारोों और
मजिेदाररयोों को समान रूप से सोंभालना।
स्स्त्रयोों को सस्िमलत करने के पीछे लेखक की इच्छा यह भी हो
सकती है मक समाज में स्त्री-पुरुर्ोों के बीि एक समान साझेदारी
और सामोंजस्य बनानी िामहए। वे स्स्त्रयोों को समाज में उनकी
योगदान की महत्ता को मानते होोंगे और इसे समझते होोंगे मक समाज
का पूणणता और मवकास मसफण मदों के साथ ही नहीों, बस्ि स्स्त्रयोों के
समथणन और सहयोग से ही सोंभव होगा।
मुझे यह सोि से सहमती है मक स्स्त्रयोों को समाज में सस्िमलत
करना एक समृि समाज के मनमाण ण में महत्त्वपूणण है । स्त्री-पुरुर्ोों के
बीि साझेदारी और समरसता से ही एक समृि और समान समाज
की नीोंव रखी जा सकती हैं ।
Q(3).हाय, वह अविूत आज कहाँ है । ऐसा कहकर
लेखक ने आत्मबल पू र दे ह-बल के विणस्व की वतणमान
सभ्यता के सोंकट की ओर सों केत मकया है । कैसे ? पाठ के
आिार पर स्पि करें । कोमूल और कठोर दोनोों भाव
मकस प्रकार से गाँ िी के व्यस्ित् की मवशेर्ता बन गए ।
पाठ के आिार पर कथन की साथणकता को स्पि करें ।
प्रािीन भारत में सदै व से ही आत्मबल पर ध्यान रखने के मलए कहा
गया है । हमारा मानना है मक मजस मनुष्य की आत्मा प्रबल है , वह इस
सोंसार के हर कि से परे है । वे सोंतोर्ी है और जीवन में हर प्रकार की
सुख-समविाएँ तथा कि उसके मलए मनरािार है । आत्मबल के माध्यम
से वह इों मियोों से ले कर मन तक को अपने वश में कर लेता है । इस
तरह वह महात्मा हो जाता है । यहाँ पर अविूत ही ऐसे व्यस्ि के मलए
कहा गया है , मजसने मवर्य-वासनाओों पर मवजय प्राप्त कर ली है ।
आज के समय में ऐसे लोग दे खने को नहीों ममलते हैं । आज हर मकसी
के अोंदर दे ह-बल का विणस्व छाया हुआ है । सब शारीररक बल को
लोग अमिक महत् दे ते हैं और इसका प्रयोग भी कर रहे हैं । यह
हमारी सभ्यता का पतन का मागण है । क्योोंमक कोई सभ्यता दे ह-बल से
फली-फूली नहीों है । उसके फलने-फूलने का कारण आत्मबल है । दे हबल में शस्ि का प्रदशणन होता है । अपने मवरोिी को परास्त कर उसे
गुलाम बनाना होता है ।
लेमकन आत्मबल में हम अपने शत्रु यानी मक मोह, काम, क्रोि, वासना,
अहों कार इत्यामद पर मवजय प्राप्त करते हैं और शाों मत का प्रसार करते
हैं । यह समाज को दे ता ही है लेता नहीों है । पर आज ऐसी स्थथमत
मदखाई नहीों दे ती है ।
लेखक ने 'हाय, वह अविूत आज कहाँ है ' यह कहकर सोंकेत मकया
है मक आज की समामजक सभ्यता में आत्मबल और दे ह-बल के
विणस्व की बजाय सोंकट और असहजता का समय है ।
वह इस मविार को सोंकेत के रूप में उठा रहे हैं मक वतणमान समाज
में आत्मबल और दे ह-बल के प्रमत मवशेर् महत्ता की जगह अस्थथरता,
असुरक्षा, और सोंकट की स्थथमत बढ़ गई है ।
इस वाक्य में 'अविूत' एक व्यस्ि का नाम है जो आत्मबल और दे हबल के बजाय अथथायी समामजक और आध्यास्त्मक समस्याओों के
प्रमत ध्यान केंमित करता है ।
'हाय, वह अविूत आज कहाँ है ' इस वाक्य से यह सोंकेत ममलता है
मक आज की समामजक सभ्यता में लोग आत्मबल और दे ह-बल के
प्रमत अमिक जोर दे ते हैं , लेमकन उन्ें आत्मसात की अविारणा और
समय-समय पर आवश्यक ध्यान दे ने वाले व्यस्ियोों की कमी है ।
इससे समाज में सों कट और असुरक्षा की स्थथमत बढ़ रही है , जो मक
उसकी अथथायीता का प्रतीक हो सकता है ।
महात्मा गाँ िी के व्यस्ित् में कोमलता और कठोरता दोनोों के तत्
सस्िमलत थे। उनका अदभुत तरीके से सोंतोर्ी और शाों मतपूणण
व्यवहार उनकी कोमलता को दशाण ता था, जबमक उनका मनमणल
आत्मसमपणण और सख्त मनिा अपने आदशों और मसिाों तोों के प्रमत
उनकी कठोरता को प्रकट करते थे।
गाँ िीजी की कोमलता उनके सोंवेदनशीलता और सहानुभूमत को
दशाण ती है । उनका अपने सामथयोों और दू सरोों के प्रमत मामूली और
प्रेमपूणण बताण व उनकी कोमलता को प्रकट करता है । वे अपने दू सरोों
के ददण को समझते थे और उन्ें समािान ढू ों ढने के मलए कोमशश
करते थे।
वहीों, उनकी कठोरता उनकी मनिा और सोंकस्ल्पतता को प्रकट
करती थी। उनका आदशों के प्रमत अटल और मनमणल मवश्वास उनकी
कठोरता को दशाण ता था। उन्ोोंने अपने लक्ष्ोों को प्राप्त करने के मलए
सख्ती से काम मकया और मकसी भी स्थथमत में अपने मूल्योों के प्रमत
पक्षपात नहीों मकया।
गाँ िीजी के व्यस्ित् में ये दोनोों गुण सही मायनोों में सों तुमलत थे।
उन्ोोंने अपने अदभुत कमों के माध्यम से दु मनया को यह मसखाया मक
कैसे कठोरता और कोमलता को सों तुमलत करके एक सकारात्मक
पररवतणन लाया जा सकता है ।
लेखक ने गाों िीजी में कोमल और कठोर दोनोों भावोों का समावेश
बताया है । गाों िीजी ने अपने जीवन में सत्य, प्रेम, अमहों सा जैसे भावोों को
अपने जीवन का आिार बनाया। उन्ोोंने इनके पालन में कठोरता से
काम मलया है । ये तीनोों भाव मजतने कोमल है , उनके पालन के मलए
उतना ही कठोर अनुशासन अपना होता है ।
जहाँ आप इससे हठे आपके कोमल भाव समाप्त हो जाते हैं । एक
मनुष्य सारे जीवनभर सत्य का आिरण करे यह सोंभव नहीों है । उसे
पररस्थथमत सत्य का आिरण न करने के मलए मववश करती है लेमकन
गाों िी जी ने ऐसा नहीों मकया।
वहीों दू सरी ओर जहाँ कदम-कदम पर मनुष्य महों सक हो जाता है , वहाँ
पर अमहों सा का पालन करना सोंभव नहीों है । इसके अमतररि जहाँ
लोगोों में दू सरे के प्रमत प्रेम भाव की कमी है , वहाँ भी लोगोों से प्रेम करना
असोंभव सा प्रतीत होता है । गाों िीजी ने अपने कठोर वतण के माध्यम से
इन्ें जीवनभर अपनाए रखा।
गाँ िीजी हृदय से बडे कोमल, करुणाशील और सहृदय थे। वे
सामान्यजनोों एवों पीमडतोों के प्रमत दयालु बने रहते थे। लेमकन मनयमोों
के पालन करने में, अनुशासन एवों अमहों सा आमद के सम्बन्ध में कठोर
बने रहते थे। शस्िशाली एवों अन्यायी मब्रमटश शासन का मवरोि करने
में वे कठोर थे। इस प्रकार वे मशरीर् पुष्प के समान कोमल और वज्र
के . समान कठोर थे। ये दोनोों भाव उनके व्यस्ित् के पररिायक थ
गाों िी जी जन सामान्य की पीडा से िमवत हो जाते थे परों तु वहीों अोंग्रेजोों
के स्खलाफ़ वज्र की भाों मत
तनकर खडे हो जाते थे। एक ओर तो गाों िी जी के मन में सत्य,
अमहों सा जैसे कोमल भाव थे तो दू सरी ओर
अनुशासन के मामले में बडे ही कठोर थे अत: हम कह सकते हैं मक
कोमल और कठोर दोनोों भाव गाों िीजी
के व्यस्ित् की मवशेर्ता बन गए।
गाँ िीजी हृदय से बडे कोमल थे। वे सत्य, अमहों सा, प्रेम आमद कोमल
भावोों को अपनाने वाले व्यस्ि थे। उन्ोोंने सदा दू सरोों का भला
िाहा। अोंग्रेजोों के प्रमत भी वे कठोर न थे। दू सरी ओर वे अनुशासन
एवों मनयमोों के मामले में कठोर थे। ये दोनोों मवपरीत भाव गाँ िीजी के
व्यस्ित् की मवशे र्ता बन गए थे।
Q(4).पुरातत् के मिहनोों के मसोंिु सभ्यता ताकत
अनुशामसत सभ्यता आिार पर आप यह कह सकते हैं
मक से शामसत होने की थी।" अपेक्षा समझ से पाठ के
आिार पर स्पि करते हुए बताइए मक "मसोंिु-सभ्यता की
खूबी उसका सौदयण-. बोि है , जो राज-पोमर्त न होकर
समाज - पोमर्त था।"" ऐसा क्योों कहा गया ?
मसोंिु घाटी सभ्यता ( आईवीसी ), मजसे मसोंिु सभ्यता के रूप में भी
जाना जाता है , दमक्षण एमशया के उत्तर-पमिमी क्षेत्रोों में एक काों स्य
युग की सभ्यता थी , जो 3300 ईसा पूवण से 1300 ईसा पूवण तक
िली, और अपने पररपक्व रूप में 2600 ईसा पूवण से 1900 ईसा पूवण
तक िली। और मेसोपोटाममया के साथ , यह मनकट पूवण और दमक्षण
एमशया की तीन प्रारों मभक सभ्यताओों में से एक थी , और तीनोों में से,
सबसे व्यापक, इसके थथल पामकस्तान के अमिकाों श भाग से लेकर
पूवोत्तर अफगामनस्तान तक फैले हुए थे।
उत्तर पमिमी भारत . सभ्यता मसोंिु नदी के जलोढ़ मैदान में, जो
पामकस्तान की सीमा तक बहती है , और बारहमासी मानसून -पोमर्त
नमदयोों की प्रणाली में, जो कभी घग्गर-हकरा के आसपास बहती थीों ,
दोनोों जगह फली-फूली। उत्तर पमिम भारत और पूवी पामकस्तान में
मौसमी नदी
हडप्पा शब् कभी-कभी मसोंिु सभ्यता के मलए इसके प्रकार
थथल हडप्पा के बाद प्रयोग मकया जाता है , मजसकी खुदाई 20वीों
सदी की शुरुआत में की गई थी जो तब मब्रमटश भारत का पोंजाब
प्राों त था और अब पोंजाब, पामकस्तान है ।
खोज उस काम की पररणमत थी जो 1861 में मब्रमटश राज में भारतीय
पुरातत् सवेक्षण की थथापना के बाद शुरू हुई थी। पहले और बाद
की सोंस्कृमतयोों को कहा जाता था प्रारों मभक हडप्पा और उत्तर हडप्पा
एक ही क्षेत्र में।
प्रारों मभक हडप्पा सोंस्कृमतयाँ नवपार्ाण सोंस्कृमतयोों से आबाद हुई थीों,
मजनमें से सबसे प्रारों मभक और सबसे प्रमसि मेहरगढ़ , बलूमिस्तान ,
पामकस्तान में है । हडप्पा सभ्यता को पहले की सोंस्कृमतयोों से अलग
करने के मलए इसे कभी-कभी पररपक्व हडप्पा भी कहा जाता है ।
प्रािीन मसोंिु के शहर अपनी शहरी योजना , पक्की ईोंटोों के घरोों,
मवस्तृत जल मनकासी प्रणामलयोों, जल आपूमतण प्रणामलयोों, बडे गैरआवासीय भवनोों के समूहोों और हस्तमशल्प और िातु मवज्ञान की
तकनीकोों के मलए जाने जाते थे ।
मोहनजो-दारो और हडप्पा में सोंभवतः 30,000 से 60,000 व्यस्ि
शाममल थे, और सभ्यता में इसके पुष्पक्रम के दौरान एक से पाों ि
मममलयन व्यस्ि शाममल रहे होोंगे। तीसरी सहस्राब्ी ईसा पूवण के
दौरान क्षेत्र का िीरे -िीरे सूखना इसके शहरीकरण के मलए प्रारों मभक
प्रेरणा हो सकता है । आम़िरकार इसने पानी की आपूमतण को भी
इतना कम कर मदया मक सभ्यता ़ित्म हो गई और इसकी आबादी
पूवण की ओर फैल गई।
यद्यमप एक हजार से अमिक पररपक्व हडप्पा थथलोों की सूिना ममली
है और लगभग सौ की खुदाई की गई पाों ि प्रमुख शहरी केंि
हैं : मनिली मसोंिु घाटी में मोहनजो-दारो ( 1980 में " मोनजोदडो के
पुरातास्त्क खोंडहर " ), पमिमी पोंजाब क्षेत्र में हडप्पा , िोमलस्तान
रे मगस्तान में गनेरीवाला , पमिमी गुजरात में िोलावीरा (2021 में
" िोलावीरा: एक हडप्पा शहर) के रूप में यूनेस्को मवश्व िरोहर थथल
घोमर्त मकया गया । "), और हररयाणा में राखीगढ़ी ।
हडप्पा भार्ा सीिे तौर पर प्रमामणत नहीों है , और इसकी सोंबिताएों
अमनमित हैं , क्योोंमक मसोंिु मलमप अभी तक समझ में नहीों आई
है । मवद्वानोों के एक वगण द्वारा िमवड या एलामो-िमवड भार्ा पररवार
के साथ सोंबोंि का समथणन मकया जाता है ।
पुरातत् में एक परों परा का पालन करते हुए, सभ्यता को कभीकभी हडप्पा के रूप में जाना जाता है , इसके प्रकार की साइट के
बाद , हडप्पा , 1920 के दशक में खुदाई की जाने वाली पहली
साइट; यह 1947 में भारत की आजादी के बाद भारतीय पुरातत्
सवेक्षण द्वारा मनयोमजत उपयोग के मलए मवशेर् रूप से सि है ।
उत्तर पमिम भारत और पूवी पामकस्तान में घग्गर-हकरा नदी
के मकनारे अच्छी सोंख्या में थथल पाए जाने के कारण मसोंिु सभ्यता
पर लागू आिुमनक लेबलोों में "घग्गर-हकरा" शब् प्रमु खता से अोंमकत
है । भजनोों के सोंग्रह ऋग्वेद के प्रारों मभक अध्यायोों में
वमणणत सरस्वती नदी के साथ घग्गर-हकरा की एक मनमित पहिान
के बाद "मसोंिु-सरस्वती सभ्यता" और "मसोंिु-सरस्वती सभ्यता" शब्ोों
का भी सामहत्य में उपयोग मकया गया है । दू सरी सहस्राब्ी ईसा पूवण
में रमित पुरातन सोंस्कृत में।
हाल के भूभौमतकीय शोि से पता िलता है मक ऋग्वेद में बफण से
पोमर्त नदी के रूप में वमणणत सरस्वती के मवपरीत, घग्गर-हकरा
बारहमासी मानसू न से पोमर्त नमदयोों की एक प्रणाली थी, जो लगभग
4,000 साल पहले सभ्यता के लुप्त होने के समय मौसमी बन गई
थी।
मसोंिु सभ्यता के मिह्ोों से जुडे पु रातत्ीय अवशेर्ोों को दे खते हुए,
कुछ मवशेर्ताओों के आिार पर यह कहा जा सकता है मक यह
सभ्यता अनुशामसत ताकत से नहीों, बस्ि सौोंदयण और बोि के
माध्यम से समाज को पोमर्त करती थी।
मसोंिु सभ्यता के खों डहरोों और उनकी मवमविता से यह स्पि होता है
मक उनका ध्यान समृस्ि और सौोंदयण की ओर था। उनकी शहरोों की
योजना, सडकें, जलसोंरिना, बागवानी, और वास्तुकला उनकी
समृस्ि और सजीवता का प्रमाण हैं । इन शहरोों की व्यवथथा में
सुशासन, सोंरिना, और समरसता का प्रतीक है |
इस सभ्यता के खों डहरोों में पाए जाने वाले सोंग्रहीत वस्त्र, आभूर्ण,
और कलाकृमतयाँ उनकी सौोंदयणशीलता को दशाण ती हैं । यहाों तक मक
उनके स्वयों के उपयोगी उपकरण भी िमकदार और िाममणक
सोंस्कृमत का प्रतीक हैं ।
इस दृमिकोण से, इस अवलोकन का कहना है मक मसोंिु सभ्यता ने
अपनी समृस्ि, सौोंदयण, और जीवन की गुणवत्ता के माध्यम से समाज
को पोमर्त मकया था, न मक केवल अनुशासन या शासन से।
मसोंिु घाटी सभ्यता मोटे तौर पर प्रािीन दु मनया की अन्य नदी
सभ्यताओों के समकालीन थी: नील नदी के मकनारे प्रािीन
ममस्र , यूफ्रेटस और टाइमग्रस द्वारा मसोंमित भूमम में मेसोपोटाममया ,
और पीली नदी और याों ग्त्जी के जल मनकासी बेमसन में िीन । अपने
पररपक्व िरण के समय तक, सभ्यता अन्य की तुलना में बडे क्षेत्र में
फैल गई थी, मजसमें मसोंिु और उसकी सहायक नमदयोों के जलोढ़
मैदान तक 1,500 मकलोमीटर (900 मील) का कोर शाममल
था। इसके अलावा, असमान वनस्पमतयोों, जीवोों और आवासोों वाला
एक क्षेत्र था, जो दस गुना तक बडा था, मजसे मसोंिु ने साों स्कृमतक
और आमथणक रूप से आकार मदया था।
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