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वैदिक सभ्यता

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वैदिक सभ्यता(Vedic Civilization)
वैदिक काल
● ससिंधु घाटी सभ्यता के पश्चात भारत में जिस नवीन सभ्यता का ववकास हुआ उसे ही आयय अथवा
वैदिक सभ्यता या वैदिक काल
के नाम से िाना िाता है ।
● वैदिक सभ्यता या वैदिक काल की िानकारी हमे मख्
ु यत: वेदों से प्राप्त होती है , जिसमे ऋग्वेद
सववप्राचीन होने के कारण सवावधधक महत्वपण
ू व है ।
● वैदिक काल को ऋग्वैदिक या पूवय वैदिक काल (1500 -1000 ई.पु.) तथा उत्तर वैदिक काल (1000 600 ई.पु.) में बािंटा गया है ।
1. ऋग्वैददक या पूवव वैददक काल (1500 -1000 ई.पु.)
2. उत्तर वैददक काल (1000 - 600 ई.पु.)
ऋग्वैदिक काल (1500 ई.प.ू से 1000 ई.प.ू )
● वैदिक सभ्यता या वैदिक काल
की िानकारी के स्रोत वेद हैं। इससलए इसे वैदिक सभ्यता के नाम
से िाना िाता है ।
● याकोबी एविं ततलक ने ग्रहादद सम्बन्धी उद्धरणों के आधार पर भारत में आयों का आगमन 4000
ई० पू० तनधावररत ककया है ।
● मैक्समूलर का अनुमान है कक ऋग्वेि काल 1200 ई० पू० से 1000 ई० पू० तक है ।
● मान्यततथि – भारत में आयों का आगमन 1500 ई० पू० के लगभग हुआ।
आयों का मल
ू स्िान
–
आयव ककस प्रदे श के मल
ू तनवासी थे, यह भारतीय इततहास का एक वववादास्पद प्रश्न है । इस सम्बन्ध
में ववसभन्न ववद्वानों द्वारा ददए गए मत सिंक्षेप में तनम्नसलखित हैं◆ आयों के मल
ू तनवास के सन्दभव में ववसभन्न ववद्वानों ने अलग-अलग ववचार व्यक्त ककये हैं।
◆ सववप्रथम जे० जी० रोड ने 1820 में ईरानी ग्रन्थ िेन्दा– अवेस्ता के आधार पर आयों को बैक्ट्रिया
का मूल तनवासी माना।
◆ 1859 में प्रससद्ध िमवन ववद्वान मैरसमूलर ने मध्य एसशया को आयों का आदद दे श घोवित
ककया।
◆ प्रोफेसर सेलस तिा एडवडय मेयर ने भी एसशया को हीआदद दे श स्वीकार ककया है ।ओल्डेन बगव एविं
कीथ का भी
यही मत है ।
◆ डा० अववनाश चन्र ने सप्त सैन्धव प्रिे श को आयों का मूल तनवास स्थान माना।
◆ गंगानाि झा के अनुसार आयों का आदद दे श भारतवर्य का ब्रह्मवर्य दे श था।
◆ ए० डी० कल्लू ने कश्मीर, डी० एस० त्रिदे व ने मुल्तान के दे ववका प्रदे श तथा डा० रािबली पाण्डेय
ने मध्य प्रिे श को आयों का आदद–दे श माना है ।
◆ ियानंि सरस्वती ने ततब्बत‘ को आयो का मूल तनवास स्थान माना।
◆ बाल गंगाधर ततलक के अनुसार आयों का आदद दे श उत्तरी ध्रुव था।
◆ यूरोप 5 िातीय ववशेिताओिं के आधार पर पेनका, हटव आदद ववद्वानों ने िमवनी को आयों का आदद
दे श स्वीकार ककया है ।
◆ गाइल्स ने आयों का आदद दे श हिं गरी अथवा डेन्यूब घाटी को माना है ।
◆ मेयर, पीक, गाडवन चाइल्ड, वपगट, नेहररिंग, बैण्डेस्टीन ने दक्षक्षणी रूस को आयों का मूल तनवास
स्थान माना है । (यह मत सवायथधक मान्य है ।)
● आयव भारोपीय भािा वगव की अनेक भािाओिं में से एक सिंस्कृत बोलते थे।
● भािा वैज्ञातनकों के अनुसार भारोपीय वगव की ववसभन्न भािाओिं का प्रयोग करने वाले लोगों का
सम्बन्ध शीतोष्ण िलवायु वाले ऐसे क्षेिों से था िो घास से आच्छाददत ववशाल मैदान थे।
● यह तनष्किव इस मत पर आधाररत है कक भारोपीय वगव की अधधकािंश भािाओिं में भेड़िया, भालू, घो़िे
िैसे पशुओिं और किंरि (बीच) तथा भोिवक्ष
ृ ों के सलए समान शब्दावली है ।
● प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर इस क्षेि की पहचान सामान्यतया आल्पस पववत के पूवी क्षेि यूराल
पववत श्रेणी के दक्षक्षण में मध्य एसशयाई इलाके के पास के स्टे प मैदानों (यूरेसशया) से की िाती है ।
● पुराताजत्वक साक्ष्यों के आधार पर इस क्षेि से एसशया और यूरोप के ववसभन्न भागों की ओर
वदहगावमी प्रवासन प्रकिया के धचह्न भी समलते हैं।
● मध्य एसशया से प्राप्त पुराताजत्वक साक्ष्य एसशया माइनर में बोगिकोई नामक स्थान से लगभग
1400 ई० प०
ू का एक लेि समला है जिसमें समि, इन्र, वरुण और नासत्य नामक वैददक दे वताओिं का
नाम सलिा हुआ है ।
● आयों ने ऋग्वेि की रचना की, जिसे मानव िाती का प्रथम ग्रन्थ माना िाता है ।
● ऋग्वेि द्वारा जिस काल का वववरण प्राप्त होता है उसे ऋग्वैदिक काल कहा िाता है ।
● ‘अस्तों मा सद्गमय’ वाक्य ऋग्वेि से सलया गया है ।
● वैदिक सभ्यता या वैदिक काल
के सिंस्थापक आयों का भारत आगमन लगभग 1500 ई.पू. के
आस-पास हुआ। हालााँकक उनके आगमन का कोई ठोस और स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीिं है ।
वैदिक सभ्यता के तनमायता कौन िे?
● वैदिक सभ्यता या वैदिक काल के सिंस्थापक आयय थे।
● आयों का आरिं सभक िीवन मुख्यतः पशुचारण था।
● वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।
● ऋग्वेि भारत-यूरोपीय भािाओँ का सबसे पुराना तनदशव है । इसमें अजग्न, इिंर, समि, वरुण, आदद
दे वताओिं की स्ततु तयााँ सिंगदृ हत हैं।
ऋग्वैदिक भौगोललक ववस्तार
● भारत में आयय सववप्रथम सप्तसैंधव प्रिे श में आकर बसे इस प्रदे श में प्रवादहत होने वाली सैट नददयों
का उल्लेि ऋग्वेि में समलता है ।
● ऋग्वेि में नददयों का उल्लेि समलता है ।
● नददयों से आयों के भौगोललक ववस्तार का पता चलता है ।
● ऋग्वेि की सबसे पववि नदी सरस्वती थी। इसे नदीतमा (नददयों की प्रमि
ु ) कहा गया है ।
● ऋग्वैदिक काल की सबसे महत्वपूणव नदी लसन्धु का वणवन कई बार आया है ।
● ऋग्वेद में गिंगा का एक बार और यमुना का तीन बार उल्लेि समलता है ।
● सप्तसैंधव प्रदे श के बाद आयों ने कुरुक्षेि के तनकट के प्रदे शों पर भी कब्ज़ा कर सलया, उस क्षेि को
‘ब्रह्मवतव’ कहा िाने लगा।
● यह क्षेि सरस्वती व दृशद्वती नददयों के बीच प़िता है ।
● इस क्षेि की सातों नददयों का उल्लेि ऋग्वेद में प्राप्त होता है –
◆ ससन्धु
◆ सरस्वती
◆ शतदु र (सतलि)
◆ ववपासा (व्यास)
◆ परुष्णी (रावी)
◆ अससक्नी (धचनाब)
◆ ववतस्ता (झेलम)
ऋग्वैदिक नदियााँ :प्राचीन नाम
आधुतनक नाम
शुतुदर
सतलि
अक्ट्स्कनी
धचनाब
ववपाशा
व्यास
कुभा
काबुल
सिानीरा
गिंडक
सव
ु स्तु
स्वात
पुरुष्णी
रावी
ववतस्ता
झेलम
गोमती
गोमल
दृशद्वती
घग्घर
कृमु
कुरव म
ऋग्वैदिक राजनीततक व्यवस्िा
● गंगा एवं यमुना के दोआब क्षेि एविं उसके सीमावती क्षेिो पर भी आयों ने कब्ज़ा कर सलया, जिसे
‘ब्रह्मविव दे श’ कहा गया।
● आयों ने दहमालय और ववन्ध्याचल पववतों के बीच के क्षेि पर कब्ज़ा करके उस क्षेि का नाम ‘मध्य
दे श’ रिा।
● कालािंतर में आयों ने सम्पूणव उत्तर भारत में अपने ववस्तार कर सलया, जिसे ‘आयायवतय’ कहा िाता
था।
● सभा, ससमतत, ववदथ िैसी अनेक पररिदों का उल्लेि समलता है ।
● ग्राम, ववश, और िन शासन की इकाई थे।
● ग्राम सिंभवतः कई पररवारों का समूह होता था।
● दशराज्ञ युद्ध में प्रत्येक पक्ष में आयव एविं अनायव थे। इसका उल्लेि ऋग्वेद के 10वें मिंडल में
समलता है ।
● यह युद्ध रावी (परु
ु ष्णी) नदी के ककनारे ल़िा गया, जिसमे भारत के प्रमि
ु कात्रबले के रािा सद
ु ास
ने अपने प्रततद्विंददयों को पराजित कर भारत कुल की श्रेष्ठता स्थावपत की।
● ऋग्वेि में आयों के पािंच कबीलों का उल्लेि समलता है 1.
परु
ु
2.
यद्
ु ध
3.
तव
व ु
ु स
4.
अिु
5.
प्रह्यु
● इन्हें ‘पिंचिन’ कहा िाता था।
● ऋग्वैदिक कालीन राजनीततक व्यवस्िा, कबीलाई प्रकार की थी।
● ऋग्वैदिक लोग िनों या कबीलों में ववभाजित थे।
● प्रत्येक कबीले का एक रािा होता था, जिसे ‘गोप’ कहा िाता था।
● भौगोसलक ववस्तार के दौरान आयों को भारत के मल
ू तनवाससयों, जिन्हें अनायव कहा गया है से सिंघिव
करना प़िा।
● ऋग्वेि में रािा को कबीले का सिंरक्षक (गोप्ता िनस्य) तथा पुरन भेत्ता (नगरों पर वविय प्राप्त
करने वाला) कहा गया है ।
● रािा के कुछ सहयोगी दै तनक प्रशासन में उसकी सहायता करते थे।
● ऋग्वेि में सेनापतत, पुरोदहत, ग्रामिी, परु
ु ि, स्पशव, दत
ू आदद शासकीय पदाधधकाररयों का उल्लेि
समलता है ।
● शासकीय पदाधधकारी रािा के प्रतत उत्तरदायी थे।
● इनकी तनयजु क्त तथा तनलिंबन का अधधकार रािा के हाथों में था।
● ऋग्वैदिक काल में मदहलाएिं भी रािनीती में भाग लेती थीिं।
● सभा एविं ववदथ पररिदों में मदहलाओिं की सकिय भागीदारी थी।
● सभा श्रेष्ठ एविं असभिात्य लोगों की सिंस्था थी।
● ससमतत केन्रीय राितनततक सिंस्था थी।
● ससमतत रािा की तनयजु क्त, पदच्युत करने व उस पर तनयिंिण रिती थी। सिंभवतः यह समस्त प्रिा
की सिंस्था थी।
● ऋग्वेि में तत्कालीन न्याय वयवस्था के वविय में बहुत कम िानकारी समलती है ।
● ऐसा प्रतीत होता है की रािा तथा पुरोदहत न्याय व्यवस्था के प्रमुि पदाधधकारी थे।
● वैदिक कालीन न्यायधीशों को ‘प्रश्नववनाक’ कहा िाता था।
● ववदथ आयों की प्राचीन सिंस्था थी।
● न्याय वयवस्था वगव पर आधाररत थी। हत्या के सलए 100 ग्रिंथों का दान अतनवायव था।
● रािा भूसम का स्वामी नहीिं होता था, िबकक भूसम का स्वासमत्व िनता में तनदहत था।
● ववश कई गावों का समूह था।
● अनेक ववशों का समूह ‘िन’ होता था।
ऋग्वैदिक सामाक्ट्जक व्यवस्िा
● संयुरत पररवार प्रिा प्रचलन में थी।
● वपत-ृ सत्तात्मक समाि के होते हुए इस काल में मदहलाओिं का यथोधचत सम्मान प्राप्त था।
● मदहलाएिं भी सशक्षक्षत होती थीिं।
● प्रारिं भ में ऋग्वैदिक समाज दो वगों आयों एवं अनायों में ववभाजित था।
● ककन्तु कालािंतर में िैसा की हम ऋग्वेि के दशक मिंडल के पुरुि सक्
ू त में पढ़ते हैं की समाि चार
वगों- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूर; मे ववभाजित हो गया।
● वववाह व्यजक्तगत तथा सामाजिक िीवन का प्रमि
ु अिंग था। अिंतरिातीय वववाह होता था, लेककन
बाल वववाह का तनर्ेध था। ववधवा वववाह की प्रथा प्रचलन में थी।
● पुि प्राजप्त के सलए तनयोग की प्रथा स्वीकार की गयी थी।
● िीवन भर अवववादहत रहने वाली ल़िककयों को ‘अमािू कहा िाता था।
● सती प्रथा और पदाव प्रथा का प्रचलन नहीिं था।
● ऋग्वैदिक समाज वपतस
ृ त्तात्मक था।
● वपता सम्पण
ू व पररवार, भूसम सिंपवत्त का अधधकारी होता था
● आयों के वस्ि सूत, ऊन तथा मग
ृ -चमव के बने होते थे।
● ऋग्वैदिक काल में दास प्रथा का प्रचलन था, परन्तु यह प्राचीन यूनान और रोम की भािंतत नहीिं थी।
● आयव मािंसाहारी और शाकाहारी दोनों प्रकार का भोिन करते थे।
ऋग्वैदिक धमय
● ऋग्वैदिक धमय की सबसे महत्वपण
ू व ववशेिता इसका व्यवसातयक एविं उपयोधगतावादी स्वरुप था।
● आयों का धमव बहुदेववादी था।
● वे प्राकृततक भजक्तयों-वाय,ु िल, विाव, बादल, अजग्न और सय
ू व आदद की उपासना ककया करते थे।
● ऋग्वेि में िे वताओं की सिंख्या 33 करोड़ बताई गयी है ।
● आयों के प्रमख
ु िे वताओं में इंर, अजग्न, रूर, मरुत, सोम और सय
ू व शासमल थे।
● ऋग्वैदिक काल का सबसे महत्वपूणव दे वता इिंर है । इसे युद्ध और विाव दोनों का दे वता माना गया
है । ऋग्वेद में इिंर का 250 सूक्तों में वणवन समलता है ।
● इंर के बाि िस
ू रा स्िान अक्ट्ग्न का था। अजग्न का कायव मनुष्य एविं दे वता के बीच मध्यस्थ
स्थावपत करने का था। 200 सूक्तों में अजग्न का उल्लेि समलता है ।
● ऋग्वैदिक लोग अपनी भौततक आकािंक्षाओिं की पतू तव के सलए यज्ञ और अनुष्ठान के माध्यम से
प्रकृतत का आह्वान करते थे।
● ऋग्वैदिक काल में मूततवपि
ू ा का उल्लेि नहीिं समलता है ।
● दे वताओिं में तीसरा स्थान वरुण का था। इसे िल का दे वता माना िाता है । सशव को ियम्बक कहा
गया है ।
● ऋग्वैदिक लोग एकेश्वरवाद में ववश्वास करते थे।
ऋग्वैदिक िे वता :● अंतररक्ष के िे वता- इन्र, मरुत, रूर और वाय।ु
● आकाश के िे वता- सय
ू ,व घौस, समस्र, पि
ू ण, ववष्ण,ु ऊिा और सववष्ह।
● पथ्
ृ वी के िे वता- अजग्न, सोम, पथ्
ृ वी by, वह
ृ स्पतत और सरस्वती।
● ऋग्वैदिक काल में पशुओिं के दे वता थे, िो उत्तर वैदिक काल में शर
ू ों के िे वता बन गए।
● ऋग्वैदिक काल में ििंगल की दे वी को ‘अरण्यानी’ कहा िाता था।
● ऋग्वेि में ऊिा, अददतत, सय
ू ाव आदद दे ववयों का उल्लेि समलता है ।
● प्रससद्द गायिी मन्ि, िो सूयव से सम्बिंधधत दे वी सावविी को सिंबोधधत है , सववप्रथम ऋग्वेद में समलता
है ।
ऋग्वैदिक अियव्यवस्िा
कृवर् एवं पशुपालन :● गें हू की िेती की िाती थी।
● वैदिक सभ्यता या वैदिक काल
के लोगों की मुख्य सिंपवत्त गोधन या गाय थी।
● ऋग्वेि में हल के सलए लािंगल अथवा ‘सीर’ शब्द का प्रयोग समलता है ।
● उपिाऊ भूसम को ‘उववरा’ कहा िाता था।
● ऋग्वेद के चौथे मिंडल में सम्पूणव मन्ि कृवि कायों से सम्बद्ध है ।
● ऋग्वेद के ‘गव्य’ एविं ‘गव्यपतत’ शब्द चारागाह के सलए प्रयुक्त हैं।
● ससिंचाई का कायव नहरों से सलए िाता था। ऋग्वेद में नाहर शब्द के सलए ‘कुल्या’ शब्द का प्रयोग
समलता है ।
● भूसम तनिी सिंपवत्त नहीिं होती थी उस पर सामूदहक अधधकार था।
● ऋग्वैदिक अियव्यवस्िा का आधार कृवर् और पशुपालन था।
● घोडा ा़ आयों का अतत उपयोगी पशु था।
वाणणज्य- व्यापार :● वाखणज्य-व्यापार पर पखणयों का एकाधधकार था।
● व्यापार स्थल और िल मागव दोनों से होता था।
● सद
ू िोर को ‘वेकनाट’ कहा िाता था।
● िय वविय के सलए ववतनमय प्रणाली का अववभावव हो चक
ु ा था।
● गाय और तनष्क ववतनमय के साधन थे।
● ऋग्वेद में नगरों का उल्लेि नहीिं समलता है । इस काल में सोना तािंबा और कािंसा धातुओिं का प्रयोग
होता था।
● ऋण लेने व बसल दे ने की प्रथा प्रचसलत थी, जिसे ‘कुसीद’ कहा िाता था।
व्यवसाय एवं उद्योग धंधे :● ऋग्वेद में बढ़ई, सथकार, बन
ु कर, चमवकार, कुम्हार, आदद कारीगरों के उल्लेि से इस काल के व्यवसाय
का पता चलता है ।
● तािंबे या कािंसे के अथव में ‘आपस’ का प्रयोग यह सिंके करता है , की धातु एक कमव उद्योग था।
● ऋग्वेद में वैद्य के सलए ‘भीिक’ शब्द का प्रयोग समलता है । ‘करघा’ को ‘तसर’ कहा िाता था।
बढ़ई के सलए ‘तसण’ शब्द का उल्लेि समलता है ।
● समटटी के बतवन बनाने का कायव एक व्यवसाय था।
स्मरणीय तथ्य :● ऋग्वेद में ककसी पररवार का एक सदस्य कहता है - मैं कवव हूाँ, मेरे वपता वैद्य हैं और माता चक्की
चलने वाली है , सभन्न सभन्न व्यवसायों से िीवकोपािवन करते हुए हम एक साथ रहते हैं।
● ‘पखण’ व्यापार के साथ-साथ मवेसशयों की भी चोरी करते थे। उन्हें आयों का शिु माना िाता था
● ‘दहरव्य’ एविं ‘तनष्क’ शब्द का प्रयोग स्वणव के सलए ककया िाता था। इनका उपयोग रव्य के रूप में
भी ककया िाता था।
● ऋग्वेद में ‘अनस’ शब्द का प्रयोग बैलगा़िी के सलए ककया गया है ।
● ऋग्वैददक काल में दो अमूतव दे वता थे, जिन्हें श्रद्धा एविं मनु कहा िाता था।
● वैददक लोगों ने सववप्रथ तािंबे की धातु का इस्तेमाल ककया।
● िब आयव भारत में आये, तब वे तीन श्रेखणयों में ववभाजित थे1.
योद्धा
2.
पुरोदहत
3.
सामान्य
● िन आयों का प्रारिं सभक ववभािन था। शुरो के चौथे वगव का उद्भव ऋग्वैददक काल के अिंततम दौर
में हुआ।
● ऋग्वेद में सोम दे वता के बारे में सवावधधक उल्लेि समलता है ।
● इस काल में रािा की कोई तनयसमत सेना नहीिं थी। युद्ध के समय सिंगदठत की गयी सेना को
‘नागररक सेना’ कहते थे।
● अजग्न को अधथतत कहा गया है क्योंकक मातररश्वन उन्हें स्वगव से धरती पर लाया था।
● यज्ञों का सिंपादन कायव ‘ऋद्ववि’ करते थे। इनके चार प्रकार थे1.
होता
2.
अध्वयुव
3.
उद्गाता
4.
ब्रह्म।
● सिंतान की इचुक मदहलाएिं तनयोग प्रथा का वरण करती थीिं, जिसके अिंतगवत उन्हें अपने दे वर के साथ
साहचयव स्थावपत करना प़िता था।
● आयों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। वे गाय, बैल, भैंस घो़िे और बकरी आदद पालते थे।
ऋग्वैदिक /वैदिक सादहत्य :● ऋग्वेद स्तुतत मन्िों का सिंकलन है । इस मिंडल में ववभक्त 1017 सक्
ू त हैं।
● इन सूिों में 11 बालखिल्य सूिों को िो़ि दे ने पर कुल सूक्तों की सिंख्या 1028 हो िाती है ।
ऋग्वेि के रचतयता
मण्डल
ऋवर्
द्ववतीय
गत्ृ समद
तत
ृ ीय
ववश्वासमि
चतुिय
अिी
पंचम
भारद्वाि
र्ष्ट
वसशष्ठ
सप्तम
कण्व तथा अिंगीरम
अष्टम
झेलम
● ऋग्वेद का नाम मिंडल पूरी तरह से सोम को समवपवत है ।
● ऋग्वेद में 2 से 7 मण्डलों की रचना हुई, िो गुल्समि, ववश्वालमि, वामिे व, अलभ, भारद्वाज और
वलशष्ठ ऋवर्यों के नाम से है ।
● प्रथम एविं दसवें मण्डल की रचना सिंभवतः सबसे बाद में की गयी। इन्हें सतधचवन कहा िाता है ।
● गायिी मिंि ऋग्वेद के दसवें मिंडल के पुरुि सक्
ू त में हुआ है ।
● ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 95वें सूक्त में पुरुरवा,ऐल और उववशी बुह सिंवाद है।
● 10वें मिंडल में मत्ृ यु सक्
ू त है , जिसमे ववधवा के सलए ववलाप का वणवन है ।
● ऋग्वेद के नदी सक्
ू त में व्यास (ववपाशा) नदी को ‘पररगखणत’ नदी कहा गया है ।
● वैददक सादहत्य के अन्तगवत चारों वेद–ऋग्वेद, सामवेद, यिुवेद एविं अथवववेद–ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक
एविं उपतनिदों का पररगणन ककया िाता है ।
● वेदों का सिंकलनकताव महविव कृष्ण द्वैपायन व्यास को माना िाता है ।
● ‘वेद‘ शब्द सिंस्कृत के ववद् धातु से बना है जिसका अथव है ‘ज्ञान‘ प्राप्त करना या िानना।
● वेदियी के अन्तगवत प्रथम तीनों वेद अथावत ् ऋग्वेद, सामवेद तथा यिुवेद आते हैं।
● वेदों को अपौरुिेय कहा गया है ।
● गुरु द्वारा सशष्यों को मौखिक रुप से कण्ठस्थ कराने के कारण वेदों को श्रतु त की सिंज्ञा दी गयी है ।
ऋग्वेि:● ऋग्वेद दे वताओिं की स्ततु त से सम्बजन्धत रचनाओिं का सिंग्रह है । ऋग्वेद मानव िातत की प्राचीनतम
रचना मानी िाती है ।
● ऋग्वेद 10 मण्डलों में सिंगदठत है । इसमें 2 से 7 तक के मण्डल प्राचीनतम माने िाते हैं।
● प्रथम एविं दशम मण्डल बाद में िो़िे गये माने िाते हैं।
● ऋग्वेद में इसमें कुल 1028 सक्
ू त हैं।
● गत्ृ समद, ववश्वासमि, वामदे व, भारद्वाि, अत्रि और वसशष्ठ आदद के नाम ऋग्वेद के मन्ि रचतयताओिं
के रूप में समलते हैं।
● मन्ि रचतयताओिं में जस्ियों के भी नाम समलते हैं, जिनमें प्रमि
ु हैं–लोपामर
ु ा, घोिा, शची, पौलोमी एविं
कक्षावत
ृ ी आदद।
● ववद्वानों के अनुसार ऋग्वेद की रचना पिंिाब में हुई थी।
● ऋग्वेद की रचना–काल के सम्बन्ध में ववसभन्न ववद्वानों ने सभन्न–सभन्न मत प्रस्तुत ककये हैं।
● मैक्समूलर 1200 ई० प०
ू से 1000 के बीच, िौकोबी–तत
ृ ीय सहस्राब्दी ई० पू०, बाल गिंगाधर ततलक–
6000 ई० प०
ू के लगभग, ववण्टरतनत्ि–2500–2000 11500 1000 के बीच की अवधध ऋग्वैददक काल की
प्रामाखणक रचना अवधध के रूप में स्वीकृत है ।
● ऋग्वेद का पाठ करने वाले ब्राह्मण को होत ृ कहा गया है । यज्ञ के समय यह ऋग्वेद की ऋचाओिं
का पाठ करता था।
● ‘असतो मा सद्गमय‘ वाक्य ऋग्वेद से सलया गया है |
यजुवेि:● यिुः का अथव होता है यज्ञ। यिुवेद में अनेक प्रकार की यज्ञ ववधधयों का वणवन ककया गया है ।
● इसे अध्वयववेद भी कहते हैं। यह वेद दो भाग में ववभक्त है –(1) कृष्ण यिुवेद (2) शक्
े , कृष्ण
ु ल यिुवद
यिुवेद की चार शािायें हैं–(1) काठक (2) कवपण्ठल (3) मैिायणी (4) तैत्तरीय।
● यिुवेद की पािंचवी शािा को वािसनेयी कहा िाता है जिसे शक्
ु ल यिुवेद के अन्तगवत रिा िाता
है ।
● यिुवेद कमवकाण्ड प्रधान है । इसका पाठ करने वाले ब्राह्मणों को अध्वयुव कहा गया है ।
सामवेि:● साम का अथव ‘गान‘ से है। यज्ञ के अवसर पर दे वताओिं का स्तुतत करते हुए सामवेद की ऋचाओिं
का गान करने वाले ब्राह्मणों को उद्गात ृ कहते थे।
● सामवेद में कुल 1810 ऋचायें हैं। इसमें से अधधकािंश ऋग्वैददक ऋचाओिं की पुनराववृ त्त हैं ।
● माि 78 ऋचायें नयी एविं मौसलक हैं |
● सामवेद तीन शािाओिं में ववभक्त है-(1) कौथुम (2) राणायनीय (3) िैसमनीय।
अिवयवि
े :● अथवववेद की रचना अथवाव ऋवि ने की थी। इसकी दो शािायें हैं–(1) शौनक (2) वपप्लाद
● अथवववेद 20 अध्यायों में सिंगदठत है । इसमें 731 सक्
ू त एविं 6000 के लगभग मन्ि हैं।
● इसमें रोग तनवारण, रािभजक्त, वववाह, प्रणय–गीत, मारण, उच्चारण, मोहन आदद के मन्ि, भूत–प्रेतों,
अन्धववश्वासों का उल्लेि तथा नाना प्रकार की औिधधयों का वणवन है ।
● अथवववेद में ववसभन्न राज्यों का वणवन प्राप्त होता है जिसमें कुरु प्रमुि है ।
● इसमें परीक्षक्षत को कुरुओिं का रािा कहा गया है एविं कुरु दे श की समद्
ृ धध का वणवन प्राप्त होता है ।
ब्राह्मण ग्रन्ि :● वैददक सिंदहताओिं के कमवकाण्ड की व्याख्या के सलए ब्राह्मण ग्रन्थों की रचना हुई । इनका अधधकािंश
भाग गद्य में है ।
● प्रत्येक वैददक सिंदहता के सलए अलग-अलग ब्राह्मण ग्रन्थ हैं।
● ऋग्वेद से सम्बजन्धत ब्राह्मण ग्रन्थ– ऐतरे य एविं कौिीतकी।
● यिुवेद से सम्बजन्धत ब्राह्मण ग्रन्थ– तैवत्तरीय एविं शतपथ।
● सामवेद से सम्बजन्धत ब्राह्मण ग्रन्थ- पिंचवविंश।
● अथवववेद से सम्बजन्धत ब्राह्मण ग्रन्थ- गोपथ।
● ब्राह्मण ग्रन्थों से हमें परीक्षक्षत के बाद तथा त्रबजम्बसार के पूवव की घटनाओिं का ज्ञान प्राप्त होता है ।
● ऐतरे य ब्राह्मण में राज्यासभिेक के तनयम प्राप्त होते हैं ।
● शतपथ ब्राह्मण में गन्धार, शल्य, कैकय, कुरु, पािंचाल, कोसल, ववदे ह आदद के उल्लेि प्राप्त होते हैं
आरण्यक :● आरण्यकों में कमवकाण्ड की अपेक्षा ज्ञान पक्ष को अधधक महत्व प्रदान ककया गया है । वतवमान में
सात आरण्यक उपलब्ध हैं (1) ऐतरे य आरण्यक (2) तैवत्तरीय आरण्यक (3) शािंिायन आरण्यक (4)
मैिायणी आरण्यक (5) माध्यजन्दन आरण्यक (6) तल्वकार आरण्यक उपतनिद्
● उपतनिदों में प्राचीनतम दाशवतनक ववचारों का सिंग्रह है । ये ववशुद्ध रूप से ज्ञान-पक्ष को प्रस्तुत करते
हैं। सजृ ष्ट के रचतयता ईश्वर, िीव आदद पर दाशवतनक वववेचन इन ग्रन्थों में उपलब्ध होता है ।
● अपनी सववश्रेष्ठ सशक्षा के रूप में उपतनिद हमें यह बताते हैं कक िीवन का उद्दे श्य मनुष्य की
आत्मा का ववश्व की आत्मा, से समलना है ।
● मुख्य उपतनिद हैं-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैवत्तरीय, ऐतरे य, छान्दोग्य, वह
ृ दारण्यक,
श्वेताश्वर, कौिीतकी आदद।
● भारत का प्रससद्ध आदशव राष्रीय वाक्य ‘सत्यमेव ियते’ मुण्डकोपतनिद से सलया गया है ।
ऋग्वेदिक काल में
सामाक्ट्जक क्ट्स्ितत :-
● ऋग्वैददक काल में सामाजिक सिंगठन की न्यूनतम इकाई पररवार था।
● सामाजिक सिंरचना का आधार सगोिता थी ।
● व्यजक्त की पहचान उसके गोि से होती थी।
● पररवार में कई पीदढ़यािं एक साथ रहती थीिं। नाना, नानी, दादा, दादी, नाती, पोते आदद सभी के सलए
नत ृ शब्द का उल्लेि समलता है ।
● पररवार वपतस
ृ त्तात्मक होता था। वपता के अधधकार असीसमत होते थे। वह पररवार के सदस्यों को
कठोर से कठोर दण्ड दे सकता था।
● ऋग्वेद में एक स्थान पर ऋज्रास्व का उल्लेि है जिसे उसके वपता ने अन्धा बना ददया था।
ऋग्वेद
● ऋग्वेद
में ही शुन:शेि का वववरण प्राप्त होता है जिसे उसके वपता ने बेच ददया था। |
में पररवार के सलए कुल का नहीिं बजल्क गह
ृ का प्रयोग हुआ है ।
● िीवन में स्थातयत्व का पट
ु कम था।
● मवेशी, रथ, दास, घो़िे आदद के दान के उदाहरण तो प्राप्त होते हैं ककन्तु भूसमदान के नहीिं।
● अचल सम्पवत्त के रूप में भूसम एविं गह
ृ अभी स्थान नहीिं बना पाये थे ।
● समाि काफी हद तक कबीलाई और समतावादी था।
● समाि में मदहलाओिं को सम्मानपूवव स्थान प्राप्त था । जस्ियों की सशक्षा की व्यवस्था थी।
● अपाला, लोपामर
ु ा, ववश्ववारा, घोिा आदद नाररयों के मन्ि रष्टा होकर ऋविपद प्राप्त करने का उल्लेि
प्राप्त होता है । पि
ु की भााँतत पि
ु ी को भी उपनयन, सशक्षा एविं यज्ञादद का अधधकार था।
● एक पववि सिंस्कार एविं प्रथा के रूप में ‘वववाह‘ की स्थापना हो चक
ु ी थी।
● बहु वववाह यद्यवप ववद्यमान था परन्तु एक पत्नीव्रत प्रथा का ही समाि में प्रचलन था।
● प्रेम एविं धन के सलए वववाह होने की बात ऋग्वेद से ज्ञात होती है ।
● वववाह में कन्याओिं को अपना मत रिने की छूट थी। कभी–कभी कन्यायें लम्बी उम्र तक या
आिीवन ब्रह्मचयव का पालन करती थीिं, इन्हें अमाि:ू कहते थे।
● ऋग्वेद में अन्तिावतीय वववाहों
पर प्रततबन्ध नहीिं था। वयस्क होने पर वववाह सम्पन्न होते थे।
● वववाह ववच्छे द सम्भव था। ववधवा वववाह का भी प्रचलन था।
● कन्या की ववदाई के समय उपहार एविं रव्य ददए िाते थे जिसे वहतु‘ कहते थे। जस्ियााँ पुनववववाह
कर सकती थीिं।
● ऋग्वेद में उल्लेि
आया है कक वसशष्ठ उनके पुरोदहत हुए और त्रित्सुओिं ने उन्नतत की।
● भरत लोगों के रािविंश का नाम त्रित्सु मालुम प़िता है । जिसके सबसे प्रससद्ध प्रतततनधध ददवोदास
और उसका पि
ु या पौि सद
ु ास
● ऋग्वेद की महत्वपूणव नदी ससन्धु एविं सरस्वती तथा प्रमुि दे वता इन्र
थे
● यज्ञ में बसल - यज्ञों में पशुओिं के बसल का उल्लेि समलता है ।
● समाि वपतस
ृ त्तात्मक वणव व्यवस्था नहीिं जस्ियों की दशा बेहतर, यज्ञों में भाग लेने एविं सशक्षा ग्रहण
करने का अधधकार था।
● सामाजिक जस्थतत ववधवा वववाह, अन्तिावतीय वववाह, पुनववववाह, तनयोग, प्रथा का प्रचलन था। पदाव
प्रथा का प्रचलन नहीिं था।
● वास अधधवास और नीवी िन आयव लोग िनों में ववभक्त थे जिसका मुखिया रािा होता था।
● रािा िनता चुनती थी मि
ु पदाधधकारी पुरोदहत, सेनानी सभा वद्
ृ धिनों की छोटी चुनी हुई।
● मत्ृ युदण्ड प्रचसलत था परन्तु अधधकतर शारीररक दण्ड ददया िाता था।
● अजग्न परीक्षा, िल परीक्षा, सिंतप्त पर परीक्षा के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं।
● ऋग्वेद में िातीय युद्ध के अनेक उदाहरण प्राप्त होते है ।
● एक यद्
व ों और उनके समि वच
ु ध में सि
ू यों ने तुवश
ृ ीवतों की सेनाओिं को तछन्न–सभन्न कर ददया।
िाशराज्ञ यद्
ु ध :● दशराज्ञ युद्ध का वणवन ऋग्वेद में समलता है । यह ऋग्वेद की सववधधक प्रससद्द ऐततहाससक घटना
मानी िाती है ।
● दाशराज्ञ यद्
ु ध
में भरत िन के रािन सद
ु ास ने दस रािाओिं के एक सिंघ को पराजित ककया था।
यह युद्ध परुष्णी (रावी) नदी के ककनारे हुआ था।
● युद्ध का कारण यह था कक प्रारम्भ में ववश्वासमि भरत िन के पुरोदहत थे। ववश्वासमि की ही
प्रेरणा से भरतों ने पिंिाब में ववपासा और शतर
ु ी को िीता था।
● परिं तु बाद में सुदास ने वसशष्ठ को अपना पुरोदहत तनयुक्त ककया।
● ववश्वासमि ने दस रािाओिं का एक सिंघ बनाया और सुदास के खिलाफ युद्ध घोवित कर ददया।
इस युद्ध में पािंच आयव िाततयों के कबीले थे और पााँच आयेतर िनों के। इसी युद्ध में वविय के
पश्चात भरत िन, जिनके आधार पर इस दे श का नाम भारत प़िा, की प्रधानता स्थावपत हुई।
ऋग्वैदिक राजनीततक अवस्िा राजनीततक संगठन
● ऋग्वेद में अनेक रािनीततक सिंगठनों का उल्लेि समलता है यथा राष्र, िन, ववश एविं ग्राम।
ऋग्वेद में यद्यवप राष्र शब्द का उल्लेि प्राप्त होता है, परन्तु ऐसा माना गया है कक भौगोसलक क्षेि
ववशेि पर आधाररत स्थायी राज्यों का उदय अभी नहीिं हुआ था।
● राष्र में अनेक िन होते थे।
● िनों में पिंचिन–अनु, रयु, यद,ु तुवस
व एविं परु
ु प्रससद्ध थे।
● अन्य िन थे भारत, त्रित्स,ु सुिंिय, त्रिवव आदद।
● िन सम्भवतः ववश में ववभक्त होते थे।
● ववश 1(कैं टन या जिला) के प्रधान को ववशाम्पतत कहा गया है ।
● ववश ग्रामों में ववभक्त रहते थे। ग्राम का मुखिया ग्रामणी होता था।
● रािा ऋग्वेद में रािा के सलए रािन ्, सम्राट, िनस्य गोप्ता आदद शब्दों का व्यवहार हुआ है ।
● ऋग्वैददक काल में सामान्यत: राितन्ि का प्रचलन था। रािा का पद दै वी नहीिं माना िाता था।
● ऋग्वैददक काल में रािा का पद आनुविंसशक होता था। परन्तु हमें ससमतत अथवा कबीलाई सभा
द्वारा ककए िाने वाले चन
ु ावों के बारे में की सच
ू ना समलती है ।
● ऋग्वैददक काल में रािन ् एक प्रकार से कबीले का मखु िया होता था ।
● रािपद पर रािा ववधधवत असभविक्त होता था।
● रािा को िनस्य गोपा (कबीले का रक्षक) कहा गया है । वह गोधन की रक्षा करता था, यद्
ु ध का
नेतत्ृ व करता था तथा कबीले की ओर से दे वताओिं की आराधना करता था।
● ऋग्वेद में हमें सभा, ससमतत, ववदथ और गण िैसे कबीलाई पररिदों के उल्लेि समलते हैं। इन
पररिदों में िनता के दहतों, सैतनक असभयानों और धासमवक अनष्ु ठानों के बारे में ववचार–ववमशव होता
था। सभा एविं ससमतत की कायववाही में जस्ियााँ भी भाग लेती थीिं।
● पदाधधकारी परु ोदहत, सेनानी, स्पश (गप्ु तचर) दै तनक कायों में रािा की सहायता करते थे। तनयसमत
कर व्यवस्था की शरु
ु आत नहीिं हुई थी।
● लोग स्वेच्छा से अपनी सम्पवत्त का एक भाग रािन ् को उसकी सेवा के बदले में दे दे ते थे।इस भें ट
को बसल कहते थे। कर वसल
ू ने वाले ककसी अधधकारी का नाम नहीिं समलता है । गोचर–भूसम के
अधधकारी को व्रािपतत कहा गया है ।
● कुलप पररवार का मुखिया होता था ।
● ऋग्वैददक काल में रािा तनयसमत सेना नहीिं रिता था। युद्ध के अवसर पर सेनायें ववसभन्न
कबीलों से एकि कर ली िाती थी।
● युद्ध के अवसर पर िो सेना एकि की िाती थी उनमें व्रात, गण, ग्राम और शधव नामक ववववध
कबीलाई सैतनक सजम्मसलत होते थे।
● ऋग्वैददक प्रशासन मुख्यत: एक कबीलाई व्यवस्था वाला शासन था जिसमें सैतनक भावना प्रधान
होती थी।
● नागररक व्यवस्था अथवा प्रादे सशक प्रशासन िैसी ककसी चीि का अजस्तत्व नहीिं था, क्योंकक लोग
ववस्तार कर अपना स्थान बदलते िा रहे थे।
● ऋग्वेद में न्यायाधीश का उल्लेि नहीिं प्राप्त होता है । समाि में कई प्रकार के अपराध होते थे।
गायों की चोरी आम बात थी।
● इसके अततररक्त लेन–दे न के झग़िे भी होते थे।
● सामाजिक परम्पराओिं का उल्लिंघन करने पर दण्ड ददया िाता था।
भौततक जीवन :● ऋग्वैददक लोग मुख्यत: पशुपालक थे। वे स्थायी िीवन नहीिं व्यतीत करते थे।
● पशु ही सम्पवत्त की वस्तु समझे िाते थे। गवेिण, गोिु, गव्य आदद शब्दों का प्रयोग युद्ध के सलए
ककया िाता था। िन–िीवन में युद्ध के वातावरण का बोलबाला था।
● लोग समट्टी एविं घास फूस से बने मकानों में रहते थे। लोग लोहे से अपररधचत थे।
● कृष्ण अयस शब्द का सववप्रथम उल्लेि िेसमनी उपतनिद (उत्तर वैददक काल) में समलता है ।
● ऋग्वैददक लोग कोर वाली कुल्हाड़ियािं, कािंसे की कटारें और ि़िग का इस्तेमाल करते थे। तािंबा
रािस्थान की िेिी िानों से प्राप्त ककया िाता था।
● भारत में आयों की सफलता के कारण थे–घो़िे, रथ और तााँबे के बने कुछ हधथयार।
● कृवि कायों की िानकारी लोगों को थी।
● भूसम को सुतनयोजित पद्धतत का तनयोजित सिंपवत्त का रूप नहीिं ददया गया था।
● ववसभन्न सशल्पों की िानकारी भी प्राप्त होती है ।
● ऋग्वेद से बढ़ई, रथकार, बुनकर, चमवकार एविं कारीगर आदद सशल्पवगव की िानकारी प्राप्त होती है ।
● हररयाणा के भगवान पुरा में तेरह कमरों वाला एक मकान प्राप्त हुआ है , यहााँ तेरह कमरों वाला एक
समट्टी का घर प्रकाश में आया है । यहााँ समली वस्तओ
ु िं की ततधथ का तनधावरण 1600 ई० प०
ू से 1000
ई० पू० तक ककया गया है ।
● ऋग्वेदकालीन सिंस्कृतत ग्राम–प्रधान थी। नगर स्थापना ऋग्वेद काल की ववशेिता नहीिं है ।
● तनयोग प्रथा के प्रचलन के सिंकेत भी ऋग्वेद से प्राप्त होते हैं जिसके अन्तगवत पुि ववहीन ववधवा
पुि प्राजप्त के तनसमत्त अपने दे वर के साथ यौन सम्बन्ध स्थावपत करती थी।
● ऋग्वैददक काल में बाल वववाह नहीिं होते थे, प्राय: 16–17 विव की आयु में वववाह होते थे।
● पदाव प्रथा का प्रचलन नहीिं था। सती प्रथा का भी प्रचलन नहीिं था।
● जस्ियों को रािनीतत में भाग लेने का अधधकार नहीिं था।
● अन्त्येजष्ट किया पुिों द्वारा ही सम्पन्न की िाती थी, पुत्रियों द्वारा नहीिं।
● जस्ियों को सम्पवत्त सम्बन्धी अधधकार नहीिं थे।
● वपता की सम्पवत्त का अधधकारी पि
ु होता था, पुिी नहीिं। वपता, पुि के अभाव में गोद लेने का
अधधकारी था।
वणय व्यवस्िा एवं सामाक्ट्जक वगीकरण :● ऋग्वेदकालीन समाि
प्रारम्भ में वगव ववभेद से रदहत था। िन के सभी सदस्यों की सामाजिक
प्रततष्ठा समान थी। ऋग्वेद में वणव शब्द कहीिं–कहीिं रिं ग तथा कहीिं–कहीिं व्यवसाय के रूप में प्रयक्
ु त
हुआ
● प्रारम्भ में ऋग्वेद में तीनों वगों का उल्लेि प्राप्त होता है –ब्रह्म, क्षेि तथा ववशः ब्रमेय यज्ञों को
सम्पन्न करवाते थे, हातन से रक्षा करने वाले क्षि (क्षत्रिय) कहलाते थे। शेि िनता ववश कहलाती थी।
● इन तीनों वगों में कोई कठोरता नहीिं थी। एक ही पररवार के लोग ब्रह्म, क्षि या ववश हो सकते थे।
● ऋग्वैददक काल में सामाजिक ववभेद का सबसे ब़िा कारण था आयों का स्थानीय तनवाससयों पर
वविय।
● आयों ने दासों और दस्यओ
ु िं को िीतकर उन्हें गल
ु ाम और शूर बना सलया।
● शूरों का सववप्रथम उल्लेि ऋग्वेद के दशवें मण्डल (पुरुि सुक्त) में हुआ है । अत: यह प्रतीत होता
है कक शूरों की उत्पवत्त ऋग्वैददक काल के अिंततम चरण में हुई।
● डा० आर० एस० शमाव का ववचार है कक शर
ू वगव में आयव एविं अनायव दोनों ही वगों के लोग
सजम्मसलत थे। आधथवक तथा सामाजिक वविमताओिं के फलस्वरूप समाि में उददत हुए। |
● श्रसमक वगव की ही सामान्य सिंज्ञा शूर हो गयी।
● ऋग्वेद के दशवें मण्डल (पुरुि सूक्त) में वणव व्यवस्था की उत्पवत्त के दै वी ससद्धान्त का वणवन
प्राप्त होता है । इसमें शूर शब्द का सववप्रथम उल्लेि करते हुए कहा गया है कक ववराट पुरुि के मि
ु
से ब्राह्मण, उसकी बाहुओिं से क्षत्रिय, ििंघाओिं से वैश्य तथा पैरों से शर
ू उत्पन्न हुए।
● परन्तु इस समय वगों में िदटलता नहीिं आई थी तथा समाि के ववसभन्न वगव या वणव या व्यवसाय
पैतक
ृ नहीिं बने थे।
● वणव व्यवस्था
िन्मिात न होकर व्यवसाय पर आधाररत थी। व्यवसाय पररवतवन सम्भव था। एक
ही पररवार के सदस्य ववसभन्न प्रकार अथवा वगव के व्यवसाय करते थे। एक वैददक ऋवि अिंधगरस ने
ऋग्वेद में कहा है , ‘मैं कवव हूाँ। मेरे वपता वैद्य हैं और मेरी मााँ अन्न पीसने वाली है । अत: वणव
व्यवस्था पाररवाररक सदस्यों के बीच भी अन्त:पररवतवनीय थी।
● समाि में कोई भी ववशेिाधधकार सम्पन्न वगव नहीिं था।
● शूरों पर ककसी तरह की अपािता नहीिं लगाई गयी थी। उनके साथ वैवादहक सम्बन्ध अन्य वगों
की तरह सामान्य था। ववसभन्न वगों के साथ सहभोि पर कोई प्रततबन्ध नहीिं था। अस्पश्ृ यता भी
ववद्यमान नहीिं थी।
● ऋग्वैददक काल में दास प्रथा ववद्यमान थी। गायों, रथों, घो़िों के साथ–साथ दास दाससयों के दान
दे ने के उदाहरण प्राप्त होते हैं।
● धनी वगव में सम्भवत: घरे लू दास प्रथा ऐश्वयव के एक स्रोत के रूप में ववद्यमान थी ककन्तु आधथवक
उत्पादन में दास प्रथा के प्रयोग की प्रथा प्रचसलत न थी।
● ऋग्वैददक
आयव मािंसाहारी एविं शाकाहारी दोनों प्रकार के भोिन करते थे। भोिन में दध
ू , घी, दही,
मधु, मािंस आदद का प्रयोग होता था।
● नमक का उल्लेि ऋग्वेद में अप्राप्य है । पीने के सलए िल नददयों, तनघवरों (उत्स) तथा कृत्रिम कूपों
से प्राप्त ककया िाता था।
● सोम भी एक पेय पदाथव के रूप में प्रससद्ध था।इस अह्लादक पेय की स्तुतत में ऋग्वेद का नौवााँ
मण्डल भरा प़िा है ।
● सोम वस्तुत: एक पौधे का रस था िो दहमालय के मूिवन्त नामक पववत पर समलता था। इसका
प्रयोग केवल धासमवक उत्सवों पर होता था। सुरा भी पेय पदाथव था परन्तु इसका पान वजिवत था।
● वस्ि कपास, ऊन, रे शम एविं चम़िे के बनते थे। आयव ससलाई से पररधचत थे।
● गन्धार प्रदे श भें ़ि की ऊनों के सलए प्रससद्ध था। पोशाक के तीन भाग थे–नीवी अथावत ् कमर के नीचे
पहना िाने वाला वस्ि, वास–अथावत ् कमर के ऊपर पहना िाने वाला वस्ि, अधधवास या अत्क या रावप–
अथावत ् ऊपर से धारण ककया िाने वाला चादर या ओढ़नी।
● लोग स्वणावभूिणों का प्रयोग करते थे। स्िी और परु
ु ि दोनों ही पग़िी का प्रयोग करते थे।
● ऋग्वेद में नाई को वत ृ कहा गया है । आमोद–प्रमोद 6 रथ दौ़ि, आिेट, युद्ध एविं नत्ृ य आयों के
वप्रय मनोववनोद थे। िुआ भी िेला िाता था।
● वाद्य सिंगीत में वीणा, दन्ु दभ
ु ी, करताल, आधार और मद
ृ िं ग का प्रयोग ककया िाता था।
उत्तरवैदिक काल(1000 - 600 ई.प.ु )
स्िोत:● उत्तरवैददक कालीन सभ्यता
की िानकारी के स्रोत तीन वैददक सिंदहताएाँ—यिुवद
े , सामवेद, अथवववेद,
ब्राह्मण ग्रन्थ, आरण्यक ग्रन्थ एविं उपतनिद ग्रन्थ हैं।
● यहााँ यह ध्यातव्य है कक वेदािंग वैददक सादहत्य के अन्तगवत पररगखणत नहीिं होते हैं।
उत्तरवैदिक आयों का भौगोललक ववस्तार :● उत्तरवैददक काल में आयों की भौगोसलक
सीमा का ववस्तार गिंगा के पूवव में हुआ।
● शतपथ ब्राह्मण में आयों के भौगोसलक ववस्तार की आख्यातयका के अनुसार-ववदे थ माधव ने
वैश्वानर अजग्न को मुाँह में धारण ककया।
● धत
ृ का नाम लेते ही वह अजग्न पथ्
ृ वी पर धगर गया तथा सब कुछ िलाता हुआ पूवव की तरफ बढ़ा।
पीछे -पीछे ववदे थ माधव एविं उनका पुरोदहत गौतम राहूगण चला। अकस्मात ् वह सदानीरा (गिंडक) नदी
को नहीिं िला पाया।
● सप्तसैंधव प्रदे श से आगे बढ़ते हुए आयों ने सम्पण
ू व गिंगा घाटी पर प्रभुत्व िमा सलया। इस प्रकिया
में कुरु एविं पािंचाल ने अत्यधधक प्रससद्धध प्राप्त की। कुरु की रािधानी आसन्दीवत तथा पािंचाल की
कािंवपल्य थी।
● कुरु लोगों ने सरस्वती और दृिद्वती के अग्रभाग (‘कुरुक्षेि,-और ददल्ली एविं मेरठ के जिलों) को
अधधकार में कर सलया।
● पािंचाल लोगों
ने वतवमान उत्तर प्रदे श
के अधधकािंश भागों (बरे ली, बदायूाँ और फरुव िाबाद जिलों) पर
अधधकार कर सलया।
● कुरु िातत कई छोटी-छोटी िाततयों के समलने से बनी थी, जिनमें पुरुओिं और भरतों के भी दल थे।
पािंचाल िातत कृवि िातत से तनकली थी जिसका सुिंियों और तुवश
व ों का सम्बन्ध था।
● कुरुविंश में कई प्रतापी रािाओिं के नाम अथवववेद एविं ववसभन्न उत्तरवैददक कालीन ग्रन्थों में समलते
हैं। अथवववेद
में प्राप्त एक स्तुतत का नायक परीक्षक्षत है । जिसे ववश्विनीन रािा कहा गया है इसका
पुि िनमेिय था।
● पािंचाल लोगों में भी प्रवाहण, िैवासल एविं ऋवि आरुखण-श्वेतकेतु िैसे प्रतापी नरे शों के नाम समलते हैं,
ये उच्च कोदट के दाशवतनक थे।
● उत्तरवैददक काल में कुरु, पन्चाल कोशल, काशी तथा ववदे ह प्रमि
ु राज्य थे। आयव सभ्यता का
ववस्तार उत्तरवैददक काल में ववन्ध्य में दक्षक्षण में नहीिं हो पाया था।
राजनीततक क्ट्स्ितत :● राज्य सिंस्था—कबीलाई तत्व अब कमिोर हो गये तथा अनेक छोटे –छोटे कबीले एक–दस
ू रे में ववलीन
होकर ब़िे क्षेिगत िनपदों को िन्म दे रहे थे। उदाहरणाथव, पूरु एविं भरत समलकर कुरु और तुवस
व
एविं किवव समलकर पािंचाल कहलाए।
● ऋग्वेद में
इस बात के सिंकेत समलते हैं कक राज्यों या िनपदों का आधार िातत या कबीला था
परन्तु अब क्षेिीयता के तत्वों में वद्
ृ धध हो रहा था। प्रारम्भ में प्रत्येक प्रदे श को वहााँ बसे हुए कबीले
का नाम ददया गया।
● आरम्भ में पािंचाल एक कबीले
का नाम था परन्तु अब उत्तरवैददक काल में यह एक (क्षेिगत)
प्रदे श का नाम हो गया। तात्पयव यह कक अब इस क्षेि पर चाहे जिस कबीले का प्रधान या चाहे िो
भी राज्य करता, इसका नाम पािंचाल
ही रहता।
● ववसभन्न प्रदे शों में आयों के स्थायी राज्य स्थावपत हो गये। राष्र शब्द, िो प्रदे श का सूचक है ,
पहली बार इसी काल में प्रकट होता है ।
● उत्तरवैददक काल
में मध्य दे श के रािा साधारणतः केवल रािा की उपाधध से ही सन्तुष्ट रहते थे।
पूवव के रािा सम्राट, दक्षक्षण के भोि पजश्चम के स्वरा, और उत्तरी िनपदों के शासक ववराट कहलाते थे।
● उत्तरवैददक काल के प्रमि
ु राज्यों में कुरु-पािंचाल (ददल्ली-मेरठ और मथुरा के क्षेि) पर कुरु लोग
हजस्तनापुर से शासन करते थे। गिंगा-यमुना के सिंगम के पूवव कोशल का राज्य जस्थत था। कोसल
के पूवव में काशी राज्य था।
● ववदे ह नामक एक अन्य राज्य था जिसके रािा िनक कहलाते थे। गिंगा के दक्षक्षणी भाग में ववदे ह
के दक्षक्षण में मगध राज्य था।
● राज्य के आकार में वद्
ृ धध के साथ ही साथ रािा के शजक्त और अधधकार में वद्
ृ धध हुई।
● अब रािा अपनी सारी प्रिा का स्वतिंि स्वामी होने का दावा करता था।
● शासन पद्धतत राितन्िात्मक थी। रािा का पदिं विंशानुगत होता था। यद्यवप िनता द्वारा रािा के
चुनाव के उदाहरण भी प्राप्त होते हैं।
● रािा अब केवल िन या कबीले का रक्षक या नेता न होकर एक ववस्तत
ृ भाग का एकछि शासक
होता था।
राज पि की उत्पवत्त के लसद्धान्त :● रािा के पद के िन्म के बारे में ऐतरे य ब्राह्मण से सववप्रथम िानकारी समलती है ।उत्तरवैददक
सादहत्य में राज्य एविं रािा के प्रादभ
ु ावव के वविय में अनेक ससद्धान्त समलते हैं–
(1) सैतनक आवश्यकता का लसद्धान्त :● ऐतरे य ब्राह्मण
का उल्लेि है कक एक बार दे वासुर–सिंग्राम हुआ।
● असुर बार–बार पराजित होने के पश्चात सब इस तनष्किव पर पहुाँचे कक रािाववहीन होने के कारण ही
हमारी परािय होती है ।
● अतः उन्होंने सोम को अपना रािा बनाया और पुन: युद्ध ककया।
● इस बार उनकी वविय हुई।
● अतः इससे ज्ञात होता है कक रािा का प्रादभ
ु ावव सैतनक आवश्यकताओिं की पतू तव के सलए हुआ था।
● तैवत्तरीय ब्राह्मण में भी इसी मत से सम्बजन्धत एक उल्लेि प्राप्त होता है , इसमें यह कहा गया है
कक समस्त दे वताओिं ने समलकर इन्र को रािा बनाने का तनश्चय ककया, क्योंकक वह सबसे अधधक
सबल और प्रततभाशाली दे वता था।
(2) समझौते का लसद्धान्त :–
● शतपथ ब्राह्मण में एक उल्लेि के अनुसार िब कभी अनावजृ ष्ट काल होता है तो सबल तनबवल
का उत्पी़िन करते हैं। इस दव
व पररजस्थतत को दरू करने के सलए समाि ने अपने सबसे सबल और
ु ह
सुयोग्य सदस्य को रािा बनाया था और समझौते के अनुसार अपने असीम अधधकारों को रािा के
प्रतत समवपवत कर ददया।
(3) िै वी लसद्धान्त :● उत्तरवैददक काल
में रािा को दै व पद भी ददया िाने लगा था।
● रािा के शजक्त और अधधकार ववसभन्न प्रकार के अनष्ु ठानों ने रािा की शजक्त को बढ़ाया।
● कई तरह के लिंबे और रािकीय यज्ञानुष्ठान प्रचसलत हो गये।
● रािाओिं का राज्यासभिेक होता था।
● राज्यासभिेक के समय रािा रािसूय यज्ञ करता था।
● यह यज्ञ सम्राट का पद प्राप्त करने के सलए ककया िाता था, तथा इससे यह माना िाता था कक इन
यज्ञों से रािाओिं को ददव्य शजक्त प्राप्त होती है ।
● रािसय
ू यज्ञ
में रसलन नामक अधधकाररयों के घरों में दे वताओिं को बसल दी िाती थी।
● यह अश्वमेध यज्ञ तीन ददनों तक चलने वाला यज्ञ होता था।
● समझा िाता था कक अश्वमेध–अनष्ु ठान से वविय और सम्प्रभत
ु ा की प्राजप्त होती है ।
● अश्वमेध यज्ञ में घो़िा प्रयक्
ु त होता था।
● वािपेय यज्ञ
में , िो सिह ददनों तक चलता था, रािा की अपने सगोिीय बन्धओ
ु िं के साथ रथ की
दौ़ि होती थी।
● रािा दे वता का प्रतीक समझा िाता था।
● अथवववेद
में रािा परीक्षक्षत को ‘मत्ृ यल
ु ोक का दे वता‘ कहा गया है ।
● रािा के प्रधानकायव सैतनक और न्याय सम्बन्धी होते थे। वह अपनी प्रिा और कानन
ू ों का रक्षक
तथा शिओ
ु िं का सिंहारक था।
● रािा स्वयिं दण्ड से मक्
ु त था परन्तु वह रािदण्ड का उपयोग करता था।
● लसद्धान्ततः रािा तनरिं कुश होता था परन्तु राज्य की स्वेच्छाचाररता कई प्रकार से मयावददत रहती
थी िैसे :-
(1) रािा के वरण में िनता की सहमतत की उपेक्षा नहीिं हो सकती थी।
(2) असभिेक के समय राज्य के स्वायत्त अधधकारों पर लगायी गयी मयावदाओिं का तनवावह करना रािा
का कतवव्य होता था।
(3) रािा को रािकायव के सलए मिंत्रिपररिद पर तनभवर रहना प़िता था।
(4) सभा और ससमतत नामक दो सिंस्थायें रािा के तनरिं कुश होने पर रोक लगाती थीिं।
(5) रािा की तनरिं कुशता पर सबसे ब़िा अिंकुश धमव का होता था। अथवववेद के कुछ सूक्तों से पता
चलता है कक रािा िनता की भजक्त और समथवन प्राप्त करने के सलए लालातयत रहता था। कुछ
मन्िों से पता चलता है कक अन्यायी रािाओिं को प्रिा दण्ड दे सकती थी तथा उन्हें राज्य से
बदहष्कृत कर सकती थी। कुरुविंशीय परीक्षक्षत िनमेिय तथा पािंचाल विंश के रािाओिं प्रवाहन, िैवासल
अरुखण एविं श्वेतकेतु के समद्
ृ धध के बारे में िानकारी अथवववेद में समलती है ।
राजा का तनवायचन :● अनेक वैददक
● अथवववेद
साक्ष्यों से हमें रािा के तनवावचन की सूचना प्राप्त होती है ।
में एक स्थान पर रािा के तनवावचन की सच
ू ना प्राप्त होती है ।
● राज्यासभिेक के अवसरों पर रािा रजत्नयों के घर िाता था।
● शतपथ ब्राह्मण में रजत्नयों की सिंख्या 11 दी गई है –
(1) सेनानी
(2) पुरोदहत
(3) युवराि
(4) मदहिी
(5) सूत
(6) ग्रासमणी
(7) क्षत्ता
(8) सिंग्रहीता (कोिाध्यक्ष)
(9) भागद्ध (कर सिंग्रहकताव)
(10) अक्षवाप (पासे के िेल में रािा का सहयोगी)
(11) पालागल (रािा का समि और ववदि
ू क)।
● राज्यासभिेक में 17 प्रकार के िलों से रािा का असभिेक ककया िाता था।
प्रशासतनक संस्िायें :● उत्तरवैददक काल में
िन पररिदों, सभा, ससमतत, ववदथ का महत्व कम हो गया।
● रािा की शजक्त बढ़ने के साथ ही साथ इनके अधधकारों में काफी धगरावट आयी।
● ववदथ पण
व या लुप्त हो गये थे।
ू त
● सभा–ससमतत का अजस्तत्व था परन्तु या तो इनके पास कोई अधधकार शेि नहीिं था या इन पर
सम्पवत्तशाली एविं धनी लोगों का अधधकार हो गया था।
● जस्ियााँ अब सभा ससमतत में भाग नहीिं ले पाती थीिं।
पिाथधकारी :● पुरोदहत, सेनानी एविं ग्रासमणी के अलावा उत्तरवैददक कालीन ग्रन्थों में हमें सिंग्रदहत ृ (कोिाध्यक्ष),
भागदध
ु (कर सिंग्रह करने वाला), सूत (रािकीय चारण, कवव या रथ वाहक), क्षतु, अक्षवाप (िुए का
तनरीक्षक) गोववकतवन (आिेट में रािा का साथी) पालागल िैसे कमवचाररयों का उल्लेि प्राप्त होता है ।
● सधचव नामक उपाधध का उल्लेि भी समलता है , िो आगे चलकर मजन्ियों के सलए प्रयुक्त हुई है ।
● उत्तरवैददक काल के अन्त तक में बसल और शुल्क के रूप में तनयसमत रूप से कर दे ना लगभग
अतनवायव बनता िा रहा।
● रािा न्याय का सवोच्च अधधकारी होता था। अपराध सम्बन्धी मुकदमों में व्यजक्तगत प्रततशोध का
स्थान था। न्याय में दै वी न्याय का व्यवहार भी होता था।
● तनम्न स्तर पर प्रशासन एविं न्यायकायव ग्राम पिंचायतों के जिम्मे था, िो स्थानीय झग़िों का फैसला
करती थी।
सामाक्ट्जक क्ट्स्ितत :उत्तरवैदिक काल में सामाक्ट्जक व्यवस्िा
● उत्तरवैददक काल में सामाजिक व्यवस्था का आधार वणावश्रम व्यवस्था ही था, यद्यवप वणव व्यवस्था
में कठोरता आने लगी थी।
● समाि में चार वणव–ब्राह्मण, रािन्य, वैश्य और शूर थे।
● ब्राह्मण के सलए ऐदह, क्षत्रिय के सलए आगच्छ, वैश्य के सलए आरव तथा शर
ू के सलए आधव शब्द
प्रयुक्त होते थे।
● ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य इन तीनों को द्ववि कहा िाता था। ये उपनयन सिंस्कार के अधधकारी
थे।
● चौथा वणव (शर
ू ) उपनयन सिंस्कार का अधधकारी नहीिं था और यहीिं से शर
ू ों को अपाि या आधारहीन
मानने की प्रकिया शुरू हो गई।
आथियक क्ट्स्ितत :● उत्तरवैददक काल में कृवि आयों का मुख्य पेशा हो गया। लोहे के उपकरणों के प्रयोग से कृवि क्षेि
में िाजन्त आ गई।
● यिुवेद में लोहे
के सलए श्याम अयस एविं कृष्ण अयस शब्द का प्रयोग हुआ है ।
● शतपथ ब्राह्मण में कृवि की चार कियाओिं–िुताई, बआ
ु ई, कटाई और म़िाई का उल्लेि हुआ है ।
● पशुपालन गौण पेशा हो गया। अथवववेद में ससिंचाई के साधन के रूप में वणावकूप एविं नहर (कुल्या)
का उल्लेि समलता है ।
● हल की नाली को सीता कहा िाता था।
● अथवववेद के वववरण के अनुसार सववप्रथम पथ्
ृ वीवेन ने हल और कृवि को िन्म ददया।
● इस काल की मुख्य फसल धान और गेहूाँ हो गई।
● यिुवेद में ब्रीदह (धान), यव (िौ), माण (उ़िद) मुद्ग (मूिंग), गोधूम (गेहूाँ), मसूर आदद अनािों का
वणवन समलता है ।
● अथवववेद
में सववप्रथम नहरों का उल्लेि हुआ है ।
● इस काल में हाथी को पालतू बनाए िाने के साक्ष्य प्राप्त होने लगते हैं।
●जिसके सलए हजस्त या वारण शब्द समलता है । वह
ृ दारण्यक उपतनिद्
ब्राह्मण
में श्रेजष्ठन शब्द तथा ऐतरे य
में श्रेष््य शब्द से व्यापाररयों की श्रेणी का अनुमान लगाया िाता है ।
● तैत्तरीय सिंदहता में ऋण के सलए कुसीद शब्द समलता है । शतपथ ब्राह्मण में महािनी प्रथा का
पहली बार जिि हुआ है तथा सूदिोर को कुसीददन कहा गया है ।
● तनष्क, शतमान, पाद, कृष्णल आदद माप की ववसभन्न इकाइयााँ थीिं।
● रोण अनाि मापने के सलए प्रयुक्त ककए िाते थे।
● उत्तरवैददक काल के लोग चार प्रकार के मद्
ृ भाण्डों से पररधचत थे—काला व लाल मभ
ृ ाण्ड, काले
पॉसलशदार मद्
ृ भाण्ड, धचत्रित धूसर मद्
ृ भाण्ड और लाल मद्
ृ भाण्ड।
● उत्तरवैददक आयों को समुर का ज्ञान हो गया था। इस काल के सादहत्य में पजश्चमी और पूवी दोनों
प्रकार के समुरों का वणवन है । वैददक ग्रन्थों में समर
ु यािा की भी चचाव है , जिससे वाखणज्य एविं
व्यापार का सिंकेत समलता है ।
● ससक्कों का अभी तनयसमत प्रचलन नहीिं हुआ था। उत्तरवैददक
ग्रन्थों में कपास का उल्लेि नहीिं हुआ
है , बजल्क ऊनी (ऊन) शब्द का प्रयोग कई बार आया हैं। बुनाई का काम प्रायः जस्ियााँ करती थीिं।
● कढ़ाई करने वाली जस्ियों को पेशस्करी कहा िाता था। तैतरीय अरण्यक में पहली बार नगर की
चचाव हुई हैं। उत्तरवैददक काल के अन्त में हम केवल नगरों का आभास पाते हैं।
● हजस्तनापुर और कौशाम्बी प्रारजम्भक नगर थे, जिन्हें आद्य नगरीय स्थल कहा िा सकता है ।
धालमयक क्ट्स्ितत :● उत्तरवैदिक आयों के धालमयक जीवन
में मुख्यत: तीन पररवतवन दृजष्टगोचर होते हैं–
◆ दे वताओिं की महत्ता में पररवतवन
◆ अराधना की रीतत में पररवतवन
◆ धासमवक उद्दे श्यों में पररवतवन।
● उत्तरवैददक काल में इन्र के स्थान पर सि
ृ न के दे वता प्रजापतत को सवोच्च स्थान समला।
● रूर और ववष्णु दो अन्य प्रमि
ु दे वता इस काल के माने िाते हैं।
● वरुण
माि जल के िे वता
माने िाने लगे, िबकक पि
ू न अब शर
ू ों के िे वता हो गए।
● इस काल में प्रत्येक वेद के अपने परु ोदहत हो गए ◆ ऋग्वेि का परु ोदहत कहलाता था।
◆ सामवेि
का उद्गाता कहलाता था।
◆ यजव
े
ु ि
का अध्वयुव एविं कहलाता था।
◆ अिवयवेि का ब्रह्मा कहलाता था।
● उत्तरवैददक काल
में अनेक प्रकार के यज्ञ प्रचसलत थे, जिनमें सोमयज्ञ या अजग्नष्टोम यज्ञ, अश्वमेघ
यज्ञ, वािपेय यज्ञ एविं रािसय
ू यज्ञ महत्त्वपण
ू व थे।
● मत्ृ यु की चचाव सववप्रथम शतपथ ब्राह्मण तथा मोक्ष की चचाव सववप्रथम उपतनिद् में समलती है ।
पुनिवन्म की अवधारणा वह
ृ दराण्यक उपतनिद् में समलती है ।
● तनष्काम कमव के ससद्धान्त का प्रततपादन सववप्रथम ईशोपतनिद् में ककया गया है ।
● प्रमख
ु यज्ञ :◆ अक्ट्ग्नहोत ृ यज्ञ :- पापों के क्षय और स्वगव की ओर ले िाने वाले नाव के रूप में वखणवत
◆ सोिामणण यज्ञ :- यज्ञ में पशु एविं सुरा की आहुतत
◆ परु
ु र्मेघ यज्ञ :- पुरुिों की बसल, सवावधधक 25 यूपों (यज्ञ स्तम्भ) का तनमावण
◆ अश्वमेध यज्ञ :- सवावधधक महत्त्वपूणव यज्ञ, रािा द्वारा साम्राज्य की सीमा में वद्
ृ धध के सलए, सािंडों
तथा घो़िों की बसल।।
◆ राजसूय यज्ञ :- रािा के राज्यासभिेक से सम्बजन्धत
◆ वाजपेय यज्ञ :- रािा द्वारा अपनी शजक्त के प्रदशवन के सलए, रथदौ़ि का आयोिन।
ऋगवेद में उजल्लखित शब्द
ऋग्वेि के मिंडल और उनके रचतयता
वैदिक कालीन सि
ू सादहत्य
वैदिक कालीन िे वता
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