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राहु केतु की उच्च

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राहु केतु की उच्च-नीच राशि और नीचभंग स्थिशत ================================ राहु केतु दोनो
रहस्यात्मक ग्रह है ।यह दोनों शकसी भी घटना को अचानक घशटत करने का कायय करते है ।आपको पता भी नही होगा आज
आपके साि क्या स्थिशत है और कल क्या होने वाली है यह सब स्थिशत राहु केतु के कारण उत्पन्न होती है ।इनकी दिाअन्तदय िा में अचानक जीवन में पररवतय न आते है ।शकसी भी स्थिशत में अचानक पररवतय न कर दे ना राहु केतु का ही काम
होता है ।इन दोनों के कायो में कई समानताएं है ।राहु केतु दोनों छाया ग्रह है 12 राशियों में यह शकसी भी राशि के स्वामी नही
होते शिर भी राहु बु ध की कन्या राशि और केतु बृ हस्पशत की मीन राशि पर स्वराशि जै सा िल दे ता है ।इन राशियों पर राहुकेतु अपना स्वाशमत्व मानते है ।राहु केतु की ज्योशतषिास्त्र में उच्च-नीच राशि मानी गई है ।राहु की उच्च राशि शमिुन तो नीच
राशि धनु मानी गई है तो केतु की उच्च राशि धनु और नीच राशि शमिुन मानी गई है ।उच्च राशि पर ग्रह पूणय बली होता है
और नीच राशि पर ग्रह पूणय शनबयल।जो ग्रह अपनी नीच राशि पर होते है शकन्ही कारणों से उन नीच ग्रहो का नीचभंग हो
जाता है ।राहु केतु दोनों एक दू सरे से 180अंि की दु री पर रहते है ।दोनो के साि लगभग कई चीजे एक सी है ।जै से राहु यशद
उच्च होगा तो केतु भी उच्च होगा।राहु नीच होगा तो केतु भी नीच होगा।राहु वगोत्तम होगा तो केतु भी वगोत्तम होगा।अब
प्रश्न यह है ।राहु केतु यशद नीच राशि पर है तो इनका नीचभंग बृ हस्पशत और बु ध के कारण ही हो सकता है ।क्योंशक राहु
बृ हस्पशत की धनु राशि पर नीच का और केतु बु ध की शमिुन राशि पर नीच का होता है ।इसमें भी दो प्रकार से राहु केतु का
नीचभंग होता है तो पूणय तरह से नीचभंग होगा जो श्रेष्ठ िल भी दे गा।जब धनु राशि में बै ठे नीच के राहु को बृ हस्पशत अपनी
5वीं, 7वीं, 9वीं पूणय दृशि से दे खें या राहु के साि धनु राशि में बृ हस्पशत स्वयं बै ठा हो और केतु का नीचभंग जब ही श्रेष्ठ होगा
जब केतु के साि बु ध शमिुन राशि में बै ठा हो या बु ध धनु राशि में बै ठकर अपनी शमिुन राशि में नीच के केतु को दे खता
हो।कई कुंडशलयो में राहु केतु की नीचभंग की स्थिशतयों में पाया गया है शक गु रु के कारण राहु का नीचभंग हो जाता है और
केतु का आसानी से नीचभंग नही हो पाता क्योंशक गु रु की 3पूणय दृशियां होती है 5, 7 और 9 और बु ध की केवल सातवीं ही
पूणय दृशि होती है ।अशधकां ि कुंडशलयो में यह स्थिशत दे खी गई है गु रु की 3 पूणय दृशियो के कारण राहु के नीचभंग होने के
स्थिशतयां अशधक बन जाते है और बु ध की केवल एक पूणय दृशि होने कारण केतु के नीचभंग होने की स्थिशतयां कम बन पाती
है ।अब यशद बृ हस्पशत के कारण राहु का नीचभंग हो जाता है और केतु का नीचभंग बु ध के साि न बै ठ पाने या दृशि के
कारण न होने के कारण केतु का नीचभंग न हो तो राहु केतु के िल ठीक नही शमलते जातक राहु केतु की ओर से संघषय में
ही रहता है क्योंशक राहु केतु दोनों एक दू सरे से सम-सप्तक होते है इस कारण एक दू सरे को पूरी तरह से प्रभाशवत करते
है ।ऐसे में राहु का नीचभंग हो और केतु का नीचभंग न हो पाए तब भी नीच राशि में बे ठे राहु केतु व शकसी एक ही का
नीचभंग होने पर िु भ िल अशधक नही दे पाते इसी तरह केतु का नीचभंग बु ध की यु शत या दृशि के कारण हो गया हो और
गु रु के कारण राहु का नीचभंग न हुआ हो तब भी स्थिशत असामान्य जै सी रहती है ।जब एक साि राहु का बृ हस्पशत से और
केतु का बु ध से नीचभंग होता है तब यह श्रेष्ठ स्तर का नीचभंग होगा और पूरी तरह से राहु केतु के नीचभंग होने के िु भ
पररणाम शमलेंगे।राहु केतु दोनों के नीचभंग होने से इनकी स्थिशत एक जै सी ही सामान्य रहती है ।जब शकसी एक का नीचभंग
हो गया गया हो दू सरे का न हो पाया हो तब स्थिशत असामान्य रहती है ।
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