विदुर महाराज के इतिहास में प्रससद्ध व्यवियों में से एक थे | महाराज पाण्डु की मािा अविका की दासी के गर्भ से व्यासदे ि के द्वारा उत्पन्न हुए थे | िैसे विदुर यमराज के अििार हैं वकन्तु मंडू क मुवि से शापग्रस्त होिे के कारण उन्हें शुद्र होिा पड़ा | यमराज जो महाजिों में से एक थे | उिका कर्त्भव्य बििा हैं की िे विश्ि के लोगो को र्वि सम्प्रदाय का उसी प्रकार उपदे श दे सजस प्रकार िारद ब्रह्मा िथा अन्य महाजि करिे हे | वकन्तु यमराज के रूप में उन्हें सदै ि अपिे राज्य में पापकमभ करिेिालों को दंड दे िे के कायभ में ही व्यस्त रहिे थे और इस उर्त्रदायी काम से उन्हें फुसभि िहीं वमल पािी थी | लेवकि यमराज की इच्छा थी की िे र्गिाि की मवहमा का उपदे श दे अिएि र्गिि इच्छा से मंडू क मुवि के शाप से उन्हें विदुर के रूप में इस पृथ्वी पर आिे का मौका वमला और महाि र्ि की िरह विरंिर र्गिाि की सेिा में जुटिे का मौका वमला | ऐसा र्ि िा िो शूद्र होिा हे िा ब्राह्मण सजस प्रकार र्गिाि शूकर के रूप में अििररि होकर र्ी ि िो शूकर है ि ही ब्रह्मा है क्ू ं वक कर्ी कर्ी र्गिाि िथा उिके वितर्न्न अतधकृि र्िो को बद्धजीिों का उद्धार करिे के ललए विम्निर प्रालणयों की र्ूवमका विर्ािी पड़िी हे लेवकि र्गिाि िथा उिके शुद्ध र्ि दोिों सदै ि वदव्य पद पर बिे रहिे है | विदुर अपिे बड़े र्ाई के प्रति अत्यतधक अिुरि थे और िह सदै ि उन्हें सही मागभ पर ले जािा चाहिे थे | लेवकि अ ं ि में दुयोधि से अपमाविि होिे के कारण अपिा घर छोड़कर िीथाटि करिे चले गए | जहां उिकी र्ेंट मैत्रेय मुवि से हुई |उन्होंिे मैत्रेय मुवि जैसे प्रमालणक गुरु से आध्यातिक सशक्षा ग्रहण की और जब अपिे आपको र्गिाि की वदव्य प्रेमा र्वि में सथथर कर ललया िब उन्होंिे उिसे प्रश्न करिा बंद कर वदया | कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद जब युतधविर महाराज का शासि थथावपि हुआ िब िे हसस्तिापुर िापस आए | उन्हें दे खकर महाराज युतधविर , उिके बड़े र्ाई धृिराष्ट्र , सात्यवक , संजय , कृपाचायभ क ं ु िी , गांधारी , द्रोपदी , सुर्द्रा आवद सर्ी लोग अत्य ं ि खुश होकर उिसे वमलिे आए | मािो बहुि समय बाद उि लोगों को अपिी चेििा वफर प्राप्त हो गई हो | स्नाि एिं समुतचि र्ोजि की व्यिथथा की गई | वफर पयाप्त विश्राम करिे के बाद महाराज युतधविर िे अन्य सर्ी सदस्यों की उपसथथति में विदुर से बािें की , बहुि से प्रश्न वकए | वफर द्वारका के विषय में पूछा वक "हे चाचा आप द्वारका र्ी गए होंगे ? उस पवित्र थथाि में यदुिंशी हमारे वमत्र िथा शुर्चचंिक है जो वित्य ही र्गिाि श्री कृष्ण की सेिा में ित्पर रहिे हैं आप उिसे वमले होंगे िथा उिके विषय में सुिा होगा ? िह अपिे अपिे घरों में सुख पूिभक रह रहे हैं ि ? महाराज युतधविर द्वारा इस प्रकार पूछिे पर महािा विदुर िे सब कुछ कह सुिाया केिल यदुिंश के वििाश की बाि उन्होंिे िहीं कही क्ोंवक विदुर जाििे थे की पांडि जो सदा र्गिाि कृष्ण एिं उिकी वितर्न्न वदव्य लीलाओं के विचार में मग्न रहिे हैं | यदुिंश के वििाश सुिकर िह उसे सह िहीं सकेंगे और अत्य ं ि दुखी हो जाएंगे | यदुिंश के वििाश की बाि जाििे के बाद सर्ी पांडि इस संसार में िहीं रहिा चाहेंगे और इसका त्याग कर सकिे हैं | इस कारण दयािाि महािा विदुर पांडिों को कर्ी दुखी िहीं दे खिा चाहिे थे | अिएि उन्होंिे इस अवप्रय िथा असह्य घटिा को प्रकट िहीं होिे वदया | िीति शास्त्र के अिुसार ऐसा सत्य जो अवप्रय हो उसे िहीं कहिा चावहए सजससे अन्यों को कष्ट हो | विपदा हमेशा प्रकृति के वियम अिुसार आिी रहेगी | उसका प्रचार करके उसको अतधक उर्ारिा िहीं चावहए | इसललए विदुर जािबूझकर यदुिंश के वििाश जैसे अवप्रय घटिा को िहीं बिाएं | धृिराष्ट्र अपिे वपिा के सबसे बड़े पुत्र थे | अिएि वियमों के अिुसार हसस्तिापुर के सस ं हासि पर उन्हें राजा के रूप में बैठिा था | कक ं िु जन्म से अ ं धे होिे के कारण िे अपिे न्यायोतचि अतधकार से अयोग माि ललए गए | िह इस शोकािथथा को र्ूल िहीं पाए | उिके छोटे र्ाई जो हसस्तिापुर के राजा बिे | उिकी मृत्यु के बाद उिकी विराशा कुछ कम हो गई | क्ोंवक उन्हें पांडु के सस ं हासि पर अतर्र्ािक के रूप में बैठिे का अिसर वमल गया था | कक ं िु उिकी हार्दभ क इच्छा थी वक िह असली राजा बिे और अपिा राज्य दुयोधि आवद पुत्रों को हस्तांिररि कर दे | इि राजसी महत्वकांक्षाओं को लेकर धृिराष्ट्र राजा बििा चाह रहे थे | अिएि िे अपिे साले शकुिी से वमलकर सर्ी प्रकार से पांडिों के लखलाफ षड्य ं त्र रचे | कक ं िु र्गिाि की इच्छा से सारी योजिाएं विफल हो गई | कुरुक्षेत्र के युद्ध में उिके एक सौ पुत्र िथा सारे पौत्र , अन्य समस्त वहिेषी िथा र्ीष्मदे ि , द्रोणाचायभ ,कणभ िथा अन्य बहुि से राजा िथा वमत्र सर्ी मारे जा चुके थे | इस प्रकार उिके सारे जि िथा उिका सारा धि िष्ट हो चुका था | और अब िे अपिे र्िीजे की कृपा पर जीविि थे | सजसे उन्होंिे सर्ी प्रकार की मुसीबिों में डाला था | इि सारी विफलिाओं के बािजूद िे सोच रहे थे वक िे अपिा जीिि दीघभकाल िक ऐसे ही चलािे रहेंगे | इस िरह लार् सवहि सुखी रह कर जीविि रहिे की योजिाएं बिािे थे | और जीिि की समस्त विषमिाओं के बीच सुख पूिभक जीविि रहिे की आशा लगाए रहिे थे | विदुर धृिराष्ट्र के छोटे किभव्यविि स्नेही र्ाई एिं एक साधु पुरुष होिे के कारण उन्हें रोग िथा बुढापे की िींद से जगािा चाहिे थे | इस कारण िे धृिराष्ट्र को दुत्कारिे हुए कहिे हैं वक "आप एक घरेलू कुर्त्े की र्ाँिी रह रहे हैं और र्ीमसेि द्वारा वदए गए झूटि को खा रहे हैं | और िे धृिराष्ट्र को जोर डालिा चाहिे थे वक इस िरह अपमाविि होकर जीिे की उपेक्षा अपिे पुत्रों की र्ांति मर जािा अतधक श्रेयस्कर है |" इस प्रकार विदुर अपिे कटु िचिों के द्वारा र्ौतिक असस्तत्व के संकटों से अविसश्चि जीिि के विषय में उन्हें सचेि करिा चाह रहे थे | क्ोंवक धृिराष्ट्र गृहथथ जीिि के प्रति आसि िृद्ध पुरुष के जीिे जागिे उदाहरण थे | जो जीिि की अ ं तिम अिथथा में र्ी अपिा सब खोकर राजा बिे रहिा चाहिे थे | िृद्धािथथा के सारे लक्षण धृिराष्ट्र में प्रकट हो चुके थे | सजसे विदुर जी एक एक करके बिला कर उन्हें आग्रह कर रहे थे वक उिकी मृत्यु अत्य ं ि विकट है और ऐसी कोई शवि िहीं है जो मृत्यु के क्रूर पंजे को रोक सके | वहरण्यकसशपु का उग्र िपस्या द्वारा प्राप्त िरदाि र्ी उसे मृत्यु के क्रूर पंजे से िहीं बचा पाई | मूखभ व्यवि यह िहीं जाििा वक उसे यह शरीर सीवमि अितध के ललए बंदी के रूप में वबिािे के ललए वमला है और मिुष्य शरीर अिेक जन्मों के बाद वमलिा है | जो र्गिि धाम िापस जािे के ललए आि साक्षात्कार का सुअिसर होिा है | विदुर जैसे साधू धृिराष्ट्र जैसे अ ं ध व्यवियों को सािधाि करिे के ललए िथा शाश्िि जीिि वबिािे के ललए र्गिि धाम जािे में सहायिा करिे के ललए होिे हैं | एक बार िहां जाकर कोई इस दुखमय संसार में िापस िहीं आिा चाहिा है | इसललए िे धृिराष्ट्र को बिा दे िा चाहिे थे वक हर एक को अपिे कमभ िथा र्गिि कृपा द्वारा अपिी रक्षा करिी होिी है | मिुष्य को श्रद्धा पूिभक अपिा कमभ करिा चावहए और र्गिाि की इच्छा पर छोड़ दे िा चावहए | जो व्यवि र्गिाि के द्वारा रसक्षि िहीं होिा उसकी रक्षा उसका वमत्र , संिाि , वपिा , र्ाई र्ी िहीं कर सकिे | अिएि मिुष्य को र्गिाि के संरक्षण की खोज करिी चावहए क्ोंवक मिुष्य जीिि इसी खोज के ललए वमला है | इस प्रकार विदुर धृिराष्ट्र को जीिि की िास्तविक सथथति से अिगि करा रहे थे और यह बिा रहे थे वक ऐसे विपतर्त्यों से अपिे आप को वकस प्रकार बचाया जाए | विदुर साधु पुरुष थे और अपिे सुखमय जीिि वबिािे की इच्छा से राजाओं िथा धवियों की कर्ी चापलूसी िहीं वकये | बलि अपिे र्ाई को जगािे के ललए कटु शब्द बोलिे से र्ी िहीं चूके |