श्रीकृ� क� बाल ल�ला हम� कृ� के �वषय म� सुनना चा�हए । हम हमारे सव�� �पता श्रीकृ� को भौ�तकता के कारण भूल गए ह�, �क�ु य�द हम उनके �वषय म� श्रवण कर� तो उनका �रण हम� होने लगेगा । आप सभी भा�शाल� ह� �क आप सब यह� कृ� के �वषय म� सुनने के �लए आए ह� । इसी �कार श्रवण करते र�हए और आपका जीवन सफल हो जाएगा । — (श्रील �भुपाद �वचन सं�ह, १८/१०) काले न �जता�ेन गोकुले रामकेशवौ । जानु�� सह पा�ण�� िर�माणौ �वज�तुः ॥ (श्रीम�ागवतम् १०/८/२१) य�ी�डताऽ�हरहबर्� �नर्रेशैः / न �ं क्षमा�मवने �जहा�तोऽ�स । ध�े�त िर�ण�मषा��ज-ह�तोऽ�ाः / �ो�ाहनं �कृत भूिर स पृ�भागे ॥ — (श्री हिरसूिर) आदावूव�शयोगेन ततो बा�जयोगतः । �वहरे य�म�त ज्ञ�ै सजानुकरिर�णः ॥ — (श्री हिरसूिर) �कं क्षीरं न �कमु�मं द�ध ननो �कं कू�चर्का वा नना�मक्षा �कं न न �कं तवे��तमहो हैय�वीनं घनम् । दा�ामो न �वषीद व� नतर� कु�� मात्रे गृहोत्प�े नो ��चिर�ुद�ु�लदलः शीत��मालोकयत् — (आन�-वृ�ावन-च�ूः ५.४६) कलय न �पतरे तद् ह�! हैय�वीनं / �तर�त कलहंसो �ोमवीथीतडागम् । अहम�प कलहंसं �ाथर्ये खेलनाथ� / त�पनयत याव�ैष पारं �या�त ॥ — (आन�-वृ�ावन-च�ूः ५.४७) हैय�वीन�मदमेव न रजहंसः / पीयूषर��र�प नैष न तत् �देयम् । प�ात्र दैववशतो गरलं �वल�ं / तेनैत��ममपीह न कोऽ�प भु�े ॥ — (आन�-वृ�ावन-च�ूः ५.४८) ����दं��सजल��जक�के�ः / ��डापराव�तचलौ �सुतौ �नषे�म् ु । गृ�ा�ण कतुर्म�प यत्र न त�न�ौ / शेकात आपतुरलं मनसोऽनव�ाम् ॥ जब माता यशोदा तथा रो�हणी ब�� को स�ग वाल� गाय� से, आग से, पंजे तथा द�त वाले प�ओं यथा ब�र�, कु�� तथा �ब��य� से एवं क�ट� से, जमीन पर रखी तलवार� तथा अ� ह�थयार� से होने वाल� �घर्टनाओं से रक्षा करने म� अपने को असमथर् पात� तो वे सदा �च�ा�� हो जात� �जससे उनके घरे � कामकाज म� बाधा प�ँचती। उस समय वे भौ�तक �ेह के क� नामक �द� भाव से स�ुलन �ा� करत� ���क यह उनके मन� के भीतर से उठता था। — (श्रीम�ागवत १०/८/२५) -------- कृ� क� अ�त आकषर्क बाल-सुलभ च�लता को देखकर पड़ोस क� सार� गो�पय� कृ� क� ��ड़ाओं के �वषय म� बार�ार सुनने के �लए माता यशोदा के पास प�ँचत� और उनसे इस �कार कहत�। “हे सखी यशोदा, आपका बेटा कभी कभी हमारे घर� म� गौव� �हने के पहले आ जाता है और बछड़� को खोल देता है और जब घर का मा�लक �ोध करता है, तो आपका बेटा केवल मुसका देता है। कभी कभी वह कोई ऐसी यु�� �नकालता है, �जससे वह �ा�द� दही, म�न तथा �ध चुरा ले ता है और तब उ�� खाता-पीता है। जब ब�र एकत्र होते ह�, तो वह उनम� ये सब ब�ट देता है और जब उनके पेट भर जाते ह� और वे अ�धक नह� खा पाते तो वह बतर्न� को तोड़ जाता है। कभी कभी, य�द उसे घर से म�न या �ध चुराने का अवसर नह� �मलता तो वह घरवाल� पर �ो�धत होता है और बदला ले ने के �लए वह छोटे-छोटे ब�� को �चकुटी काट कर भडक़ा जाता है। और जब ब�े रोने लगते ह�, तो कृ� भाग ले ता है। — (श्रीम�ागवत १०/८/२८ – २९) त�त्-सु�रम��र��तपयोद�ा�दचौय���त- �����रबालकै�वर्र�चता पाट�र�या ततः । वृ��म� न �ह सं�ृशे�द�त �धया श्रीनायको ल�लया बालानेव सहानय�जगृहं �ायः �भु��ृते ॥ — (श्री हिरसूिर) केवलाघः केवलादी भवती�त श्रु�तं �रन् । यु�म् एवाघहत�सौ द�ाऽ�े�ो जघास तत् ॥ — (श्री हिरसूिर) केवलाघो भव�त केवलादी —(ऋ�ेद १०(१७.६. व�ैरेव फलै �र्य�क�लतैराक� वृ��ं �नज� सेवा मे वनवा�सनोऽ�प �व�हता �ागे�भर�ाजतः । — (श्री हिरसूिर) आ�स�� पदा�ुश�र�शरोव�ं च वक्षो रमा- �ृ�ं �पमृषी�से�मवनावा�ायग�� यः । स श्रीमान् �जब�वी�भर�भतो नीतोऽपमानं यतो मु�ानादरहेतवेऽ�तसहवासाया�ु त�ै नमः ॥ — (श्री हिरसूिर) एकदा ��डमाना�े रामा�ा गोपदारका। : कृ�ो मृदं भ�क्षतवा�न�त मात्रे �वेदयन् ॥ — (श्रीम�ागवत १०/८/३२) महीसुरे�ो �न�खला धरा पुरा मया�पर्ता य��ल रे णुकाभुवा । समपर्णीया �धुनाऽ�प स�शत���त ��जे�ोऽ�दशदंशतः स ताम् ॥ — (श्री हिरसूिर) अहो ब�हिरवे�ते जग�ददं मुखा��रे �शशो�दनु भूिरयं भु�व च माथुरं म�लम् । इह �जकुलं यद��प मया धृतो बालकः स एव तदहो कथं �क�मव ह� �कं �स��त ॥ — (गोपालच�ूः, पूवर्, स�म पूरण) य�ृ�ं �त्रदशैरल�मसत� �ेयं च य�ो�गन� �ा�ं �ात् �कमु तद् रजो �जगतं गोगो�पकापादगम् । इ�ं भूिर �नजोदर�जनस�ा�� �चरं �च�यन् म�े पूणर्दयाणर्वः �कमकरो��क्षणं त�ृते ॥ — (श्री हिरसूिर) अ�ूढक�नगमे�म�ण�त्रलोक� / नो क��र्ते सकलगोकुलभूसम�े । एक�देशगतया�प मृदा यद�ा��प ू तः �श�मुखे पिरण�ते � ॥ येष� बालतया सुखोदयकर�ेष� न षा��तो ु येष� ता�श�पत� सुखद�ेष� न बाल�तः । स���प ू तया च बालकतया �नःसीमसौ��द- �ेषामेव सुभ��म� इह येऽत्रोदा��तग��पका ॥ — (श्री हिरसूिर)