श्री लोगस्स सूत्र का हिन्दी भावार्थ लोगस्स उज्जोयगरे , धम्म-हित्थयरे , हिणे। अररिं िे हकत्तइस्सं, चउवीसं हि केवली ।1। अखिल विश्व में धमम का उद्योत-प्रकाश करने िाले, धममतीर्म की स्र्ापना करनेिाले राग द्वे ष के) जीतने िाले, (अंतरं ग काम क्रोधावि) शत्रुओं को नष्ट करनेिाले, केिलज्ञानी चौबीस तीर्ं करो का मैं कीतमन कर ं गा-स्तुवत कर ं गा। ॥१॥ उसभ-महियं च वंदे, संभव-महभणं दणं च, सुमइं च। िउमप्पिं सुिासं , हिणं च, चंदप्पिं वंदे ।2। श्री ऋषभिे ि को और अवजत नार् जी को िंिना करता हं । संभि, अवभनन्दन, सुमवत, पद्मप्रभु , सुपाश्वम और राग-द्वे ष-विजेता चन्द्र प्रभ वजनेश्वर को भी नमस्कार करता हूँ ॥२॥ सुहवहिं च, िुप्फदं िं, सीयल-हसज्जंस-वासुिुज्जं च। हवमल-मणंिं च हिणं, धम्मं संहिं च वंदाहम ।3। श्री पुष्पिन्त (सुविवधनार्) शीतलनार् श्रेयां स, िासुपूज्य, विमलनार्, राग द्वे ष के विजेता अनन्त, धमम तर्ा श्री शां वतनार् भगिान् को नमस्कार करता हूँ ॥३॥ कंु र्ुं अरं च मल्लं, वंदे मुहणसुव्वयं , नहम-हिणं च। वंदाहम ररट्ठने हमं , िासं िि, वद्धमाणं च ।4। श्री कुन्थुनार्, अरनार्, मखिनार्, मुवन सुव्रत, एिं राग-द्वे ष के विजेता नेवमनार् जी को िन्दना करता हूँ । इसी प्रकार भगिान् अररष्टनेमी, श्री पाश्वमिनार्, और श्री िधममान महािीर स्वामी को भी नमस्कार करता हं ।। ४ ।। एवं मए अहभत्थुआ, हवहूय-रय-मला ििीण-िर-मरणा। चउवीसं हि हिणवरा, हित्थयरा मे िसीयंिु ।5। वजनकी मैंने स्तुवत की है , जो कमम रप धूल के मल से रवहत हैं , जो जरा-मरण िोनों से सिमर्ा मुक्त हैं , िे अन्तः शत्रुओं पर विजय पाने िाले धमम-प्रितमक चौबीस तीर्म ङ्कर मुझ पर प्रसन्न हों ।।५।। हकहत्तय-वंहदय-महिया, िे ए लोगस्स उत्तमा हसद्धा। आरुग्ग-बोहिलाभं , समाहि-वर-मुत्तमं हदं िु ।6। वजनकी इन्द्रावि िे िों तर्ा मनुष्ों ने स्तुवत की है , िन्दना की है , पूजा-अचाम की है , और जो अखिल संसार में सबसे उत्तम हैं , िे वसद्ध- तीर्ं कर भगिान् मुझे आरोग्य, वसद्धत्व अर्ाम त् आत्मशाखन्त, बोध-सम्यग्दशमनावि रत्नत्रय धमम का पूणम लाभ, तर्ा उत्तम समावध प्रिान करें ॥६॥ चंदेसु हनम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं ियासयरा। सागर-वर-गं भीरा, हसद्धा, हसल्द्धं मम हदसंिु ।7। जो कोवि-कोवि चन्द्रमानों से भी विशेष वनममल हैं , जो सूयों से भी अवधक प्रकाशमान हैं , जो स्वयंभू रमण जैसे महासमुद्र के समान गम्भीर है , िे वसद्ध भगिान् मुझे वसखद्ध अपमण करें , अर्ाम त् उनके आलम्बन से मुझे वसखद्ध-मोक्ष प्राप्त हो ॥७॥