Shiv Mahimna Stotra शिव महिमन सतोतर Lyrics

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Shiv Mahimna Stotra (िशव मिह न: तोतर् ) Lyrics
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नव बर 7, 2021
Shiv Mahimna Stotra (िशव मिह न: तोत्र) Lyrics
िशव मिह न: तोत्र (Shiv Mahimna Stotra) भगवान िशव के भ तों के बीच बहुत लोकिप्रय है और भगवान िशव
को अिपत िकए जाने वाले सभी तोत्रों म सबसे लोकिप्रय माना जाता है।
इस तोत्र की रचना की पिरि थितयों के बारे म िकंवदंती इस प्रकार है।
एक बार िचत्ररथ नाम का एक राजा था। राजा ने एक अ छा बगीचा बनवाया था। इस बाग म सु दर फूल थे। इन
फूलों का उपयोग राजा प्रितिदन भगवान िशव की पूजा म करते थे।
एक िदन पु पदंत नामक एक गंधव (इंदर् के दरबार म गायक, वग के देवता) ने सुंदर फूलों से मोिहत होकर उ ह चुराना
शु कर िदया, िजसके पिरणाम व प राजा िचत्ररथ भगवान िशव को फूल नहीं चढ़ा सके। राजा ने चोर को पकड़ने
की बहुत कोिशश की, लेिकन सब यथ हो गया योंिक गंधव के पास अदृ य रहने की िद य शि त थी।
अंत म राजा ने िशव िनमा य को अपने बगीचे म फैला िदया। िशव िनमा य म िब व पत्र, फूल आिद होते ह िजनका
उपयोग भगवान िशव की पूजा म िकया जाता है। िशव िनमा य को पिवत्र माना जाता है।
चोर पु पदंत, यह नहीं जानते हुए, िशव िनमा य पर चला गया, और इससे उसने भगवान िशव के क् रोध को झेल ा और
अदृ यता की िद य शि त खो दी। िफर उ होंने भगवान िशव से मा के िलए प्राथना की। इस प्राथना म उ होंने प्रभु
की महानता को गाया।
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यही प्राथना ‘िशव मिह न: तोत्र (Shiv Mahimna Stotra)‘ के नाम से प्रिस हुई। इस तोत्र से भगवान
िशव प्रस न हुए, और पु पदंत की िद य शि तयों को वापस कर िदया।
िकंवदंती का कु छ आधार है योंिक लेखक के नाम का उ लेख तोत्रम के लोक सं या 38 म िकया गया है। इस
तोत्र का पाठ बहुत ही लाभदायक है और उ नीसवीं शता दी के प्रिस संतों म से एक श्री रामकृ ण इस तोत्र के
कु छ लोकों का पाठ करके ही समािध म चले गए।
िशव मिह न: तोत्र (Shiv Mahimna Stotra) पाठ आपके िलए भी लाभकारी हो!
Benefits of Shiv Mahimna Stotra (िशव मिह न: तोत्र के लाभ)
िशव मिह न: तोत्र (Shiv Mahimna Stotra) का पाठ करने के मु य लाभ िन निलिखत ह:
जो कोई भी िशव मिह न: तोत्र (Shiv Mahimna Stotra) का पाठ करता है, वह िशव की पूजा म आनंिदत
होता है।
यह डर पर काबू पाने म मदद करता है।
जो कोई भी इस तोत्र (Shiv Mahimna Stotra) का पाठ करता है उसे भगवान िशव की िद य कृपा प्रा त
होती है।
जो कोई भी इस तोत्र (Shiv Mahimna Stotra) का पाठ करता है, उसके सारे पाप न ट हो जाते ह।
Shiv Mahimna Stotra (िशव मिह न: तोत्र)
मिह नः पारं ते परमिवदुषो य सदृशी।
तुितब्र ादीनामिप तदवस ना विय िगरः।।
ृ न्।
अथाऽवा यः सवः वमितपिरणामाविध गण
ममा येष तोत्रे हर िनरपवादः पिरकरः।। १।।
अतीतः पंथानं तव च मिहमा वांमनसयोः।
अत यावृ या यं चिकतमिभध े श् ितरिप।।
स क य तोत यः कितिवधग ुणः क य िवषयः।
पदे ववाचीने पतित न मनः क य न वचः।। २।।
ृ ं िनिमतवतः।
मधु फीता वाचः परमममत
तव ब्र न् िकं वागिप सुरग ुरोिव मयपदम्।।
मम वे तां वाणीं ग ुणकथनपु येन भवतः।
पुनामी यथऽि मन् पुरमथन बुि यविसता।। ३।।
तवै वय य जगदुदयर ाप्रलयकृत्।
त्रयीव तु य तं ितस् षु ग ुणिभ नासु तनुष।
ु ।
अभ यानामि मन् वरद रमणीयामरमणीं।
िवह तुं याक् रोशीं िवदधत इहैके जडिधयः।। ४।।
िकमीहः िकंकायः स खलु िकमुपायि त्रभुवनं।
िकमाधारो धाता सृजित िकमुपादान इित च।।
अत य वय व यनवसर दुः थो हतिधयः।
कु तकोऽयं कांि चत् मुखरयित मोहाय जगतः।। ५।।
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अज मानो लोकाः िकमवयवव तोऽिप जगतां।
अिध ठातारं िकं भविविधरनादृ य भवित।।
अनीशो वा कु याद् भुवनजनने कः पिरकरो।
यतो म दा वां प्र यमरवर संशेरत इमे।। ६।।
त्रयी सां यं योगः पशुपितमतं वै णविमित।
प्रिभ ने प्र थाने परिमदमदः प यिमित च।।
चीनां वै िच यादृजक
ु ु िटल नानापथजुषां।
ृ ामेको ग य वमिस पयसामणव इव।। ७।।
नण
महो ः ख वांग ं परशुरिजनं भ म फिणनः।
कपालं चेतीय व वरद त त्रोपकरणम्।।
सुरा तां तामिृ ं दधित तु भव प्ू रिणिहतां।
न िह वा मारामं िवष यमगृ त ृ णा भ्रमयित।। ८।।
ध् वं कि चत् सव सकलमपर वध् विमदं।
परो ध्रौ याऽध्रौ ये जगित गदित य तिवषये।।
सम तेऽ येति मन् पुरमथन तैिवि मत इव।
तुवन् िजह्रेिम वां न खलु ननु ध ृ टा मुखरता।। ९।।
तवै वय य नाद् यदुपिर िविरंिचहिररधः।
पिर छे तं ु याताविनलमनल क धवपुषः।।
ृ यां िगिरश यत्।
ततो भि तश्र ा-भरग ु -गण
वयं त थे ता यां तव िकमनुवृि न फलित।। १०।।
अय नादापा ित्रभुवनमवै र यितकरं।
ृ -रणक डू-परवशान्।।
दशा यो य ाहूनभत
िशरःप मश्रेणी-रिचतचरणा भो ह-बलेः।
ि थराया व तेि त्रपुरहर िव फूिजतिमदम्।। ११।।
अमु य व सेवा-समिधगतसारं भुजवनं।
बलात् कैलासेऽिप वदिधवसतौ िवक् रमयतः।।
अल यापातालेऽ यलसचिलतांग ु ठिशरिस।
प्रित ठा व यासीद् ध् वमुपिचतो मु ित खलः।। १२।।
यदृि ं सुतर् ा णो वरद परमो चैरिप सतीं।
अध चक् रे बाणः पिरजनिवधेयित्रभुवनः।।
न ति चत्रं ति मन् विरविसतिर व चरणयोः।
न क या यु न यै भवित िशरस व यवनितः।। १३।।
अका ड-ब्र ा ड- यचिकत-देवासुरकृपािवधेय याऽऽसीद् यि त्रनयन िवषं सं तवतः।।
स क माषः क ठे तव न कु ते न िश्रयमहो।
िवकारोऽिप ला यो भुवन-भय-भंग- यसिननः।। १४।।
अिस ाथा नैव विचदिप सदेवासुरनरे।
िनवत ते िन यं जगित जियनो य य िविशखाः।।
ू ।
स प य नीश वािमतरसुरसाधारणमभत
्
3/7
मरः मत या मा न िह विशषु प यः पिरभवः।। १५।।
मही पादाघाताद् व्रजित सहसा संशयपदं।
पदं िव णोभ्रा यद् भुज-पिरघ- ण-ग्रह-गणम्।।
ृ -जटा-तािडत-तटा।
मुहु ौदौ यं या यिनभत
जगद्र ायै वं नटिस ननु वामैव िवभुता।। १६।।
िवय यापी तारा-गण-ग ुिणत-फेनो गम- िचः।
प्रवाहो वारां यः पृषतलघुदृ टः िशरिस ते।।
जग वीपाकारं जलिधवलयं तेन कृतिमित।
ृ मिहम िद यं तव वपुः।। १७।।
अनेनैवो नेयं धत
रथः ोणी य ता शतधिृ तरगे द्रो धनुरथो।
रथांगे च द्राकौ रथ-चरण-पािणः शर इित।।
ृ माड बर िविधः।
िदध ो ते कोऽयं ित्रपुरतण
िवधेयैः क् रीड यो न खलु परत त्राः प्रभुिधयः।। १८।।
हिर ते साहस्रं कमल बिलमाधाय पदयोः।
यदेकोने ति मन् िनजमुदहर नेतर् कमलम्।।
गतो भ युदर् ेकः पिरणितमसौ चक् रवपुषः।
त्रयाणां र ायै ित्रपुरहर जागित जगताम्।। १९।।
क् रतौ सु ते जाग्रत् वमिस फलयोगे क् रतुमतां।
ृ े।।
व कम प्र व तं फलित पु षाराधनमत
अत वां स प्रे य क् रतुष ु फलदान-प्रितभुवं।
श् तौ श्र ां ब वा दृढपिरकरः कमसु जनः।। २०।।
ृ ां।
िक् रयाद ो द ः क् रतुपितरधीश तनुभत
ऋषीणामाि व यं शरणद सद याः सुर-गणाः।।
क् रतुभर् ंश व ः क् रतुफल-िवधान- यसिननः।
ध् वं कतु श्र ा िवधुरमिभचाराय िह मखाः।। २१।।
प्रजानाथं नाथ प्रसभमिभकं वां दुिहतरं।
ू ां िररमियषुम ृ य य वपुषा।।
गतं रोिहद् भत
धनु पाणेयातं िदवमिप सपत्राकृतममु।
त्रस तं तेऽ ािप यजित न मगृ याधरभसः।। २२।।
ृ धनुषम ाय तण
ृ वत्।
वलाव याशंसा धत
पुरः लु टं दृ वा पुरमथन पु पायुधमिप।।
यिद त्रैणं देवी यमिनरत-देहाध-घटनात्।
अवै ित वाम ा बत वरद मु धा युवतयः।। २३।।
मशाने वाक् रीडा मरहर िपशाचाः सहचराः।
ृ रोटी-पिरकरः।।
िचता-भ मालेपः स्रगिप नक
अमंग यं शीलं तव भवतु नामैवमिखलं।
तथािप मतॄणां वरद परमं मंगलमिस।। २४।।
4/7
मनः प्र यक् िच े सिवधमिवधाया -म तः।
प्र यद्रोमाणः प्रमद-सिललो संगित-दृशः।।
ृ मये।
यदालो या ादं ह्रद इव िनम यामत
दध य त त वं िकमिप यिमन तत् िकल भवान्।। २५।।
वमक वं सोम वमिस पवन वं हुतवहः।
वमाप वं योम वमु धरिणरा मा विमित च।।
पिरि छ नामेवं विय पिरणता िबभ्रित िगरं।
न िव म त वं वयिमह तु यत् वं न भविस।। २६।।
त्रयीं ितस्रो वृ ीि त्रभुवनमथो त्रीनिप सुरान्।
अकारा ैवणि त्रिभरिभदधत् तीणिवकृित।।
तुरीयं ते धाम विनिभरव धानमणुिभः।
ृ ा योिमित पदम्।। २७।।
सम त- य तं वां शरणद गण
भवः शवो द्रः पशुपितरथोग्रः सहमहान्।
तथा भीमेशानािवित यदिभधाना टकिमदम्।।
अमुि मन् प्र येकं प्रिवचरित देव श् ितरिप।
िप्रयाया मैधा ने प्रिणिहत-नम योऽि म भवते।। २८।।
नमो नेिद ठाय िप्रयदव दिव ठाय च नमः।
नमः ोिद ठाय मरहर मिह ठाय च नमः।।
नमो विष ठाय ित्रनयन यिव ठाय च नमः।
नमः सव मै ते तिददमितसवाय च नमः।। २९।।
बहुल -रजसे िव वो प ौ, भवाय नमो नमः।
प्रबल-तमसे तत् संहारे, हराय नमो नमः।।
ृ ाय नमो नमः।
जन-सुखकृते स वोिद्र तौ, मड
प्रमहिस पदे िन त्रैग ु ये, िशवाय नमो नमः।। ३०।।
कृश-पिरणित-चेतः लेशव यं व चेदं।
व च तव ग ुण-सीमो लंिघनी श वदृि ः।।
इित चिकतमम दीकृ य मां भि तराधाद्।
वरद चरणयो ते वा य-पु पोपहारम्।। ३१।।
अिसत-िगिर-समं यात् क जलं िस धु-पात्रे।
सुर-त वर-शाखा लेखनी पत्रमुव ।।
िलखित यिद गहृ ी वा शारदा सवकालं।
तदिप तव ग ुणानामीश पारं न याित।। ३२।।
असुर-सुर-मुनी द्रैरिचत ये दु-मौलेः।
ग्रिथत-ग ुणमिह नो िनग ुण ये वर य।।
सकल-गण-विर ठः पु पद तािभधानः।
िचरमलघुवृ ैः तोत्रमेत चकार।। ३३।।
ू टे ः तोत्रमेतत्।
अहरहरनव ं धज
पठित परमभ या शु -िच ः पुमान् यः।।
स भवित िशवलोके द्रतु य तथाऽत्र।
5/7
प्रचुरतर-धनायुः पुतर् वान् कीितमां च।। ३४।।
महेशा नापरो देवो मिह नो नापरा तुितः।
अघोरा नापरो म त्रो नाि त त वं ग ुरोः परम्।। ३५।।
दी ा दानं तप तीथ ानं यागािदकाः िक् रयाः।
मिह न तव पाठ य कलां नाहि त षोडशीम्।। ३६।।
कु सुमदशन-नामा सव-ग धव-राजः।
शिशधरवर-मौलेदवदेव य दासः।।
स खलु िनज-मिह नो भ्र ट एवा य रोषात्।
तवनिमदमकाष द् िद य-िद यं मिह नः।। ३७।।
पठित यिद मनु यः प्रांजिलना य-चेताः।।
व्रजित िशव-समीपं िक नरैः तयू मानः।
तवनिमदममोघं पु पद तप्रणीतम्।। ३८।।
आसमा तिमदं तोत्रं पु यं ग धव-भािषतम्।
अनौप यं मनोहािर सवमी वरवणनम्।। ३९।।
ू ा श्रीम छंकर-पादयोः।
इ येषा वा मयी पज
अिपता तेन देवेशः प्रीयतां म सदािशवः।। ४०।।
तव त वं न जानािम कीदृशोऽिस महे वर।
यादृशोऽिस महादेव तादृशाय नमो नमः।। ४१।।
एककालं ि कालं वा ित्रकालं यः पठे नरः।
सवपाप-िविनमु तः िशव लोके महीयते।। ४२।।
श्री पु पद त-मुख-पंकज-िनगतेन।
तोत्रेण िकि बष-हरेण हर-िप्रयेण।।
क ठि थतेन पिठतेन समािहतेन।
ू पितमहेशः।। ४३।।
सुप्रीिणतो भवित भत
।। इित श्री पु पद त िवरिचतं िशवमिह नः तोत्रं स पूणम्।।
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इस मह वपूण ले ख को भी पढ़ - Shani Stotra (शिन
तोत्र )
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