श्री सागर टीका प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा श्री रा स वााीी 1 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी श्री तारती ाााी सागर टीका ा भाााकर श्री रा स वााीी प्रकाशक श्री प्राासाक ञासपीठ सकुड ररोड, सरसााा, सहारसपुर, उ.प्र. www.spjin.org साारधधिकार सुरधकत (चौपाई छरोडकर) © २००८, श्री प्राासाक ञासपीठ ट््ञवट पी.डी.एफ. संवकरा – २०१८८ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 2 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी असुक्रीणाका 1 असुभमू ीका 10 भरोी तले की क्य कहूं 13 (सागर पेहेला सूर का) 2 हक बैठे रहय मीलाए के 138 (सागर दस ू रा रहय की शरोभा) 3 लेहेरी सुख सागर की 176 (ढाल दस ू रा इसी सागर) 4 अब कहूं सागर तीसरा 195 (सागर तीसरा एक मदली रहस की) 5 चौदे तबक की दस ु ी ीे (श्री रा 226 ी का ससिससगार पेहेला - ींगलाचरस) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 3 / 992 श्री सागर टीका 6 श्री रा स वााीी बरसस करं बडी रह की (श्री ठकुरासी 342 ी करो ससिससगार पेहेलरो - ींगलाचरस) 7 इस मबधि साक ी ामगए 455 (चौसठ कंभ चौक खखलात का बेारा) 8 असर तुीारा ीेरा मदल है (श्री रा 484 ी करो ससिससगार दस ू ररो - ींगलाचरस) 9 बरसस करं बडी रह की 581 (श्री ठकुरासी ी का ससिससगार दस ू रा - ींगलाचरस) 10 फेर फेर सरप (श्री रा रो मसरखखए 703 ी का ससिससगार तीसरा) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 4 / 992 श्री सागर टीका 11 श्री रा स वााीी सुन्दर साक बैठा अचर सय 772 (श्री सुन्दर साक करो ससिससगार) 12 पांचीा सागर पूरस 819 (सागर पांचीा इवक का) 13 सागर छठा है अधत बडा 862 (सागर छठा खद ु ाई इली का) 14 अब कहूं दरर्ा सातीा 909 (सागर सातीा मससबत का) 15 और सागर रो ीेहेर का 941 (सागर आठीा ीेहेर का) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 5 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रवताासा प्राााधिार श्री सुन्दरसाक ी! अकरातीत श्री रा ी के हद् ीे ञास के असन्त सागर है। उसकी एक बूँद श्री ीहाीधत ी के धिाी-हद् ीे आ्ी, रो सागर का वारप बस ग्ी। इसखल्े कहा ग्ा है मक "सूर सागर सूर ीारफत, सब मदलय करसी ररोसस " अकारत् ्ह तारती ाााी ीाररफत के ञास का सू्र है। ्ह ब्ाााी सबके हद् ीे ब्ञास का उ ाला करती है। "हक इली से हरोत है, असर बका दीदार" का ककस अकरशः श सत् है। इस ब्ाााी की अलौमकक ज्रोधत सुन्दरसाक के हद् ीे ीा्ा का अन्धिकार कदामप सहीप रहसे देगी। इस तारती ाााी की करोडी सी भी अीृती्ी बूँदय का रसावाादस ीा के खल्े परब् के साकातकार एां अखणड ीुमक का दार खरोल देता है। अतः श ाैधशक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 6 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वतर पर इस ब्ाााी का प्रसार करसा हीारा कतर व्् है। इस लक् की पूरत के खल्े ्ह आाश्क है मक असेक भारती् भाषाओं ीे अातररत इस ब्ाााी की टीका सरल भाषा ीे प्रवतुत हरो। ्दमप ातर ीास ीे असेक सम्ीाससी् ीसीमष्य की टीका्े प्रचखलत है, मकन्तु ऐसा असुभा मक्ा ा रहा का मक एक ऐसी भी टीका हरो, रो माश्लेषाातीक हरो, सन्दभर , भाााकर , वपष्टीकरा, एां मटप्पणा्य से ्क ु हरो। ीुझ स ै े अलपञ एां अलप बुधद ााले व््मक के खल्े ्ह कदामप सम्भा सहीप का , मकन्तु ीेरे ीस ीे अचासक ही ्ह माचार आ्ा मक ्मद सन्त कबीर और ञासेशर ी ी अपसे ्रोगबल से भैसे से ाेद ीन््य का उच्चारा कराा सकते है, तरो ीेरे प्रााालभ अकरातीत ीेरे से ाााी की टीका की सेाा क्य सहीप कराा सकते ? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 7 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसी आशा के साक ीैसे अकरातीत श्री ी के चराय ीे अन्तरातीा से प्राकर सा की। धिाी धिसी श्री रा राीरतस दास ी एां सदर ु ीहारा श्री ी की ीेहर की छाँा तले ीैसे ्ह का्र प्रारम्भ मक्ा। सरकार श्री गदीश चन्् ीुझे इस का्र ीे दढ़तापूारक ी की प्रेराा से ुटे रहसे के खल्े प्रेररत मक्ा। ब्ाााी के गु् रहव्य के ञाता श्री अमसल श्रीाावता ी का इस टीका ीे माशेष सह्रोग रहा है। सभी सम्ीाससी् पूार टीकाकारय के प्रधत श्रदासुीस सीरपत करते हुए ीै ्ह आशा करता हूँ मक ्ह टीका आपकरो रधचकर लगेगी। सभी सुन्दरसाक से मसाेदस है मक इसीे हरोसे ााली ्ुमट्य करो सुधिारकर ीुझे भी सूधचत करसे की कृपा करे, ससि ससे ीै भी आपके असीरोल ाचसय से लाभ उठा सकँू एां अपसे करो धिन््-धिन्् कर सकँू । प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 8 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आप सबकी चरा-र रा स वााीी श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ससि ला सहारसपुर (उ.प्र) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 9 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी श्री कुल ी सरप मस साी श्री ी सामहब ी, असामद अछरातीत। सरो तरो अब ाहेर भए, सब माधि ातस सहीत।। सागर श्री मकताब आठय सागर ीूल मीलााे के खलखे है अकरातीत का हद् मदव््ताओं का सागर है। सागर शब्द का प्र्रोग ्हाँ "असन्त" के भाा ीे मक्ा ग्ा है। ससि स प्रकार ीासाी् बुधद के खल्े ीा्ा की दमष्ट से सागर का श्री रा ल असन्त (अकाह) हरोता है, उसी प्रकार ी के मदल के सागरय करो सीीाबद करसा असम्भा है। सागर की गहराई ीापसे का प्र्ास करसे ााला सीक का टु कडा स ै े ही सागर ीे गरोता लगाता है , ाैसे ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 10 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोडी देर ीे अपसे असवतता करो उस असन्त सागर ीे मालीस कर लेता है। ावतुतः श उसका प्रकटस भी तरो उसी सागर से हुआ है, ससि सकी ाह ीाप करसा चाहता का। अकरातीत श्री रा ी के हद् ीे प्रेी , सौन्द्र , ञास, ते , एकता आमद के असन्त सागर लहरा रहे है , ससि सका प्रकट रप परीधिाी के पच्चीस पक, श्ाीा ी, सखख्ाँ, अकर ब्, और ीहालकीी आमद है। सागर अपसी लहरय के साक कैसे लीला करता है , इसका असुभा सागर ीे डु बकी लगा कर सहीप , बसलक सागर के मकसारे बैठकर ही खल्ा ा सकता है? असहरोसी घटसा के रप ीे परीधिाी की आतीाओं का इस सशर गत ीे पदापर ा हुआ , ससि सके कारा वा्ं अकरातीत भी अपसे आाेश वारप से इस संसार ीे ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे प्रगट हुए तका सागर गन्क प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 11 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के रप ीे उन्हयसे अीृत की ऐसी धिारा बहा्ी, ससि सका पास करसे ााली आतीाओं से सागरय के उस गु् भेदय करो भी ास खल्ा, ससि सकरो ाे परीधिाी ीे भी सहीप ास सकी कीप। सागर गन्क का अातरा मा.सं. १८७४४ ीे पदााती पुरी धिाी (पन्ना) ीे हुआ है। ्ह गन्क अकरातीत के मदल एां वारप के आठय सागरय पर माशेष रप से प्रकाश डालता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 12 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर पहला सूर का इस प्रकरा ीे सूर की माशेषताओं करो प्रकट मक्ा ग्ा है। भरोी तले की क्य कहू,ं मावतार बडरो अतंत। सेक सेक मससास मदए हामद्य, ीै करं सरोई ससिसफत।।१८।। श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक ीै रंगीहल की प्रकी भूमीका ीे सवकत पहली गरोल हाेली का कैसे ाार स करँ, ससि सका मावतार बहुत अधधिक (असन्त) है? उसके बारे ीे ीुहम्ीद सामहब तका सदर ु धिसी श्री देाचन्् ी से करोडा ाार स मक्ा है। अब ीै उस ीूल मीलााे की शरोभा के सम्बन्धि ीे कह रही हूँ। भाााकर - ीुहम्ीद सामहब से कुरआस ीे ीा् संकेतय के दारा ही ीूल मीलााे का ाार स मक्ा है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा बमक सदर ु 13 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिसी श्री देाचन्् ी चचार के दारा ीूल मीलााे का वपष्ट रप से ाार स करते के तका ाहाँ का ध््ास भी कराते के। ्ह प्रसंग बीतक ीे इस प्रकार ारात हैभाा काढ़ मदखााहीप, सब चरचा करो रप। बरसस करे श्री रा करो, सुन्दर रप असूप।। बीतक १८१८/१८९ इस दरोसय वारपय (बशरी तका ीलकी) करो हादी कहसे का कारा ्ह है मक इसके दारा ब्सृमष्ट्य करो महदा्त (ससिसखापस, मसदरशस) दी ग्ी है। हकी सूरत श्री प्राासाक ी के दारा ही इसका वपष्ट मााेचस हुआ है। इस चौपाई के दस ू रे चरस ीे "असन्त" शब्द का प्र्रोग हुआ है, रो अपसे ीे गहस रहव् णछपा्े हुए है। परीधिाी ीे ाहदत की भूमीका है , ससि सके कारा ाहाँ के एक-एक का ीे सम्पूार परीधिाी की शरोभा सीा्ी हुई प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 14 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। ाहाँ की मकसी भी ावतु करो गणात की ीाप ीे सहीप बाँधिा ा सकता। इस सम्बन्धि ीे इसी प्रकरा की चौपाई ५६,५७ ीे कह मद्ा ग्ा है मक ब्सृमष्ट्य के मदल ीे ाहाँ की शरोभा करो वपष्ट करसे के खल्े ही असीी करो सीीाबद कर मद्ा ग्ा है। चौसठ कंभ चबूतरा, दराा े तखत बरसस। रह ीरोमीस हरोए सरो देखख्रो, करके मदल ररोसस।।२।। ीूल मीलााा ीे कीर भर ऊँचा चबूतरा है , ससि सके मकसारे पर चौसठ कम्भय (वतम्भय) की शरोभा आ्ी है। चबूतरे के ीध्् ीे ससहासस है तका ीसन्दरय ीे दराा े सुशरोणभत है। रो भी ब्सृमष्ट हरो, ाह तारती ाााी से अपसे मदल ीे ञास का उ ाला करे , और प्रेी भरकर ध््ास (धचतामस) दारा ाहाँ की शरोभा का दीदार करे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 15 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - रंगीहल की प्रकी भूमीका (ीसन् ल) ीे चार चौरस हाेखल्य करो पार करसे के पशात् पाँचाी हाेली गरोलाकार आती है, ससि से ीूल मीलााा कहते है। इस हाेली ीे ६० ीसन्दरय की एक हार तका ६४-६४ कम्भय की तीस हारे आ्ी है। इस हाेली ीे अधत सुन्दर दराा े शरोभा्ीास है। चबूतरे के ीध्् ीे तखत (ससहासस) है, ससि स पर ्गु ल वारप मारा ीास है। ीे्रा हुआ ीहंीद पर, परोहयच््ा हक ह ूर। सरो साहेदी दई ीहंीदे, सरो ीरोमीस करे ी कूर।।३।। ीुहम्ीद सामहब करो परब् (अलाह तआला) का दशर स हुआ और ाे ीूल मीलााा ीे धिसी के सम्ीुख पहुँचे। उन्हयसे ीूल मीलााा की साकी दी है, ससि सके माष् ीे ब्सृमष्ट्ाँ चचार करती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 16 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - कुरआस के पारः श २७ ीे "ीे्रा " का ाार स है, ससि सीे खलखा है मक ीुहम्ीद सामहब की आती -दमष्ट हद तका बेहद करो पार कर परीधिाी पहुँचती है और परब् का साकातकार करती है। इस घटसाक्री से ीूल मीलााा की साकी मीलती है। इस रहव् करो ीा् ब्सृमष्ट्ाँ ही ्काकर रप से ासती है। सरो रहे असर दरगाह की, कही ीहंीद बारे ह ार। दे साहेदी मगररो ीहंीदी, ाकरो ातस सूर के पार।।४।। परीधिाी से इस खेल ीे आसे ााली ब्सृमष्ट्य की संख्ा ीुहम्ीद सामहब से बारह ह ार कही है। श्ाीा ी की अंगवारपा ब्सृमष्ट्ाँ ससि सका घर अकर धिाी से भी परे परीधिाी ीे है , ाे भी उस ीूल मीलााे की साकी दे रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 17 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - कुरआस के पारा ३० सूरत अीेत सालूस की व््ाख्ा ीे तका "तफ्सीर-ए-हुसैसी" के पृष ७ ीे ब्सृमष्ट्य की बारह ह ार संख्ा के माष् ीे संकेत है। इसी प्रकार पुराा संमहता ३१८/७६ ीे तका ीाहेशर तन्् ९/१८४, १८३/३७ ीे भी १८२००० की संख्ा बता्ी ग्ी है। हुकी से अब केहेत हय, सुमस्रो ीरोमीस मदल दे। हक सहूरे माचारर्रो, हके सरोभा दई तुीे ए।।५।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक हे सुन्दरसाक ी ! आप मदल देकर (सच्चे ीस से) ीेरी बात सुमस्े, अब ीै धिाी धिसी के हुकी से कह रहा हूँ। श्री रा ी का धचन्तस करते हुए ीेरे ाचसय पर माचार करसा। धिाी धिसी से ीा् आपकरो ही इस प्रकार की शरोभा दी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 18 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हके असर मक्ा मदल ीरोमीस, सरो ीता आ्ा हक मदल से। तुीे ऐसी बडाई हके खलखी, हाए हाए ीरोमीस गल सा गए इस ीे।।६।। मप्र्ती अकरातीत ब्सृमष्ट्य के धिाी हद् ीे मारा ीास है। धिाी धिसी के हद् ीे ञास का रो असन्त सागर लहरा रहा है, उससे ही ब्सृमष्ट्य के अन्दर ब्ञास का प्रााह आ रहा है। हे सुन्दरसाक ी! आप इस बात का माचार कीससि ए मक धिीर गन्कय ीे आपकी इतसी अधधिक ीमहीा खलखी है, मफर भी मकतसे खेद की बात है मक आप अभी भी धिसी के प्रेी ीे डू ब सहीप पा रहे है। भाााकर - तैतरी्रोपमसषद ीे कहा ग्ा है मक "सत्ं ञासं असन्तं ब्" तका "ब्मादरो ब्ेा भाधत" अकारत् रो परब् सत् है , प्रकृष्ट ञास वारप है , और असन्त साीर्र ााला है , उसे ाससे ााला (साकातकार करसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 19 / 992 श्री सागर टीका ााला) उसके श्री रा स वााीी स ै ा ही हरो ाता है। इसका भाा ्ह है मक अकरातीत करो अपसे हद् धिाी ीे बसा लेसे पर , ्दमप साकात् अकरातीत तरो हद् ीे सहीप आ सकते , मकन्तु उसके हद् ीे अकरातीत की ञासधिारा अखणड रप से प्राामहत हरोसे लगती है। ाह संसार ीे ब् वारप कहा ासे लगता है। सूर ससिसफत दार ससीुख, और सूर दार पीछल। एक दाएं बाएं एक, हुआ बेारा चारय मील।।७।। सूरी्ी ीूल मीलााे की शरोभा इस प्रकार की है मक उसके चबूतरे की चारय मदशाओं ीे चार ीेहराबी दार है। साीसे की ओर पूार मदशा ीे एक दार है तका पीछे की ओर पधशी मदशा ीे दस ू रा दार है। उतर मदशा ीे बा्ीप ओर तीसरा दार है, तरो दधका मदशा ीे दा्ीप ओर चौका प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 20 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दार है। चारय दारय का ्ह इस प्रकार का माारा है। भाााकर - चबूतरे की चारय मदशाओं से ३ -३ सीमढ़्ाँ उतरी है। इस सीमढ़्य के दा्े -बा्े चबूतरे पर रो दरो कम्भ है, उसके ीेहराब करो ही ्हाँ दार कहा है। ्हीप से चबूतरे ीे प्राेश कर सकते है , बाकी गह ीे कम्भय के ीध्् कठे डा शरोभा्ीास है। सरोणभत दार ससीुख का, सूर कंभ पाच के दरोए। कंभ सीलाी दरो इसय लगते, सरोभा लेत अधत सरोए।।८।। साीसे की ओर पूार मदशा ीे रो ीेहराबी दार है , उसीे पाच के दरो सूरी कम्भ शरोभा ले रहे है, ससि सका रंग हरा है। इसके दा्े-बा्े दरोसय ओर सीलाी के दरो कम्भ है , ससि सकी बहुत अधधिक शरोभा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 21 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस साीी दार पीछल, कंभ दरोए सीलाी के। दरो कंभ रो इसय लगते, सूर पाच के कंभ ए।।९।। पूार मदशा ीे पाच के रो दरो कम्भ (ीेहराबी दार के) आ्े है, उसके ठीक साीसे पधशी मदशा ीे भी ीेहराबी दार है, ससि सीे सीलाी के दरो कम्भ आ्े है। इसके दा्े बा्े पाच के दरो सूरी कम्भ शरोभा ले रहे है। सूर दार कंभ दरो ीामसक, धतस पासे दरो पुखरा । ए दार तरफ दामहसी, र्ा सूर इत मबरा ।।१८०।। ीूल मीलााा ीे दधका मदशा ीे दा्ीप ओर रो सूरी्ी ीेहराबी दार आ्ा है, उसके दरोसय कम्भ ीाणाक के लाल रंग के है। इसके अगल-बगल पुखरा के दरो कम्भ आ्े है। श्री रा के पीले रंग ी के सूर की ्हाँ अलौमकक शरोभा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 22 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - अकरातीत का सूर इस संसार के सू्र, चन््ीा, और तारय का ड प्रकाश सहीप है , बसलक धिाी धिसी के माञास (ीाररफत) वारप हद् का प्रकट रप (हकीकत) है। इसे श्रीीुखाााी ीे इस शब्दय ीे व््क मक्ा ग्ा हैरो गुस महरदे अन्दर, सरो ीुख देखे ासे ाए। ऊपर सागरता पूरस, ताके मदल की सब देखाए।। ससिससगार २०/३६ सूर ही शाशत् प्रेी, सौन्द्र , आसन्द, और ीास है। ाह अकरातीत के हद् का उलास है। प्रफुलता और द्ा उसी ीे मसमहत है। मप्र्ती के से्य का आकषर ा तका ीुख की कासन्त भी ाही है। धिाी धिसी के ीुखारमान्द की छटा, आभा, वाच्छता, चीक, और उ लापस भी सूर ही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 23 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तरफ बांई दार पुखरा ी, दरो ीामसक कंभ धतस पास। चार कंभ सूर सरभर, ए अदभुत सूर खूबी खास।।१८१८।। हाेली की उतर मदशा ीे बा्ीप ओर ीेहराबी दार ीे पुखरा के पीले रंग के दरो कम्भ है। उसके अगल-बगल ीाणाक के दरो कम्भ है। इस चारय कम्भय की ्ह सूरी्ी शरोभा सीास है और माशेष रप से अलौमकक है। सूर चारय पौरी बराबर, रो करत है झलकार। ए रो पाइए काहूं सुीार।।१८२।। ुबां खूबी तरो कहे, इस सूरी्ी कम्भय पर बसे हुई चारय ीेहराबी दार सीास रप से झलझला ( गीगा) रहे है। ्मद इसकी शरोभा सीमीत हरोती, तब तरो कुछ ाार स भी मक्ा ा सकता। उसकी असन्त शरोभा का ाार स करसा इस संसार के शब्दय से सम्भा सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 24 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कंभ बारे बारे चारय खांचय, कहूं धतसका बेारा कर। बारे संग चार धिात के, रंग ुदे रोत बराबर।।१८३।। इस प्रकार (उपररोक चारय मदशाओं के ४-४ कम्भय के अधतररक) चारय भागय (खाँचय) ीे १८२-१८२ कम्भ बचते है, ससि सका माारा ीै देती हूँ। ाैसे एक दराा े से दस ू रे दराा े तक कुल १८६ कम्भ है, ससि सीे से १८२ कम्भ सगय के है तका ४ कम्भ धिातुओं के है। ्दमप इस सभी कम्भय के रंग अलग-अलग है, परन्तु उसकी सूरी्ी ज्रोधत ाहदत के कारा एक सीास है। भाााकर - मदशाओं के ४-४ कम्भय के अधतररक चारय खाँचय ीे रो १८२ -१८२ कम्भ है, ाे इस प्रकार है- १८. हीरा, २. लसमस्ा (लहसुमस्ा), ३. गरोीामदक (गरोीेद), ४. ीरोती, ५. पन्ना, ६. प्रााल (ीूँगा), ७. मपररो ा, ८. कपूररर्ा, ९. पाच, १८०. सीली (सीलाी), प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 25 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी १८१८. ीाणाक, १८२. पुखरा । कुल मीलाकर प्रत्ेक खाँचे ीे रो १८६ -१८६ कम्भ है, उसीे से चार कम्भ धिातुओं (हेी अकारत् सरोसा, चाँदी, लरोहा और कञस) के है। वाार करो ब साढ़े सरोलह बार अम् ीे तपा्ा तरो ाह लाखलीा से भरपूर हरो ाता है , ाता है। इसे ही कञस कहते है। इस प्रकार वाार तका कञस ीे अन्तर है। सेक देखाए रंग असर के, कई खब ू ी रंग अलेखे। रह सहूर करे हक इलीे, हक देखाएं देखे।।१८४।। ्हाँ पर तरो ीैसे परीधिाी के सगय की एक हलकी सी झलक मदखा्ी है। परीधिाी ीे असन्त प्रकार के रंग है और उसकी बहुत सी माशेषता्े भी है। उसका असुभा तब हरोता है, ब आतीा ्ा तरो ब्ाााी के धचन्तस ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 26 / 992 श्री सागर टीका गहराई तक डू ब श्री रा स वााीी ा्े ्ा धिाी धिसी अपसी ीेहर से उसकी आती-दमष्ट करो खरोलकर प्रत्क रप से दीदार करा दे। भाााकर - इस सशर गत ीे भी इस प्रकार की ीान््ता है मक शेत प्रकाश ीे असन्त प्रकार के रंग णछपे हरोते है , मकन्तु केाल सात प्रकार के ही रंगय की तरंगय का असुभा हरो पाता है। ्ही कारा है मक सात प्रकार के ही रंगय (हरा, पीला, सीला, लाल, आसीासी, सारंगी, बैगसी) की कलपसा की ाती है। ब ीा्ााी गत के प्रकाश ीे कई रंग हरो सकते है , तरो परीधिाी के सूरी्ी प्रकाश ीे कई रंग क्य सहीप हरो सकते ? धिाी धिसी की कृपा से ब आती-दमष्ट खल ु ती है, तरो परीधिाी के रंगय का साकातकार हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 27 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी असल पांच साी रंग के, सीला पीला लाल सेत व्ाी। एक एक रंग ीे कई रंग, सरो क्य कहे ाएं मबसा साी।।१८५।। ीूल रप से पाँच रंग हरोते है- १८. सीला २. पीला ३. लाल ४. शेत और ५. काला। इस एक-एक रंग से असेक प्रकार के रंग प्रकट हरो ाते है, ससि न्हे अलग- अलग साीय से सम्बरोधधित मक्ा ाता है। भाााकर - रंगय के मीश्रा से असेक प्रकार के स्े रंगय की उतपखत हरोती है, स ै े लाल और पीला मीलासे से सारंगी, सीला और पीला मीलासे से हरा, लाल तका सीला मीलासे से बैगसी, इत्ामद। परीधिाी ीे तरो वातः श ही एक-एक रंग से असन्त रंगय का प्रकटीकरा हरोता है , क्यमक ाहाँ का प्रत्ेक का ाहदत का वारप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 28 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी देखरो चौसठ कंभ चबूतरा, रंग संग असेक असर । साी खलए स हे साक ांए रंगय के, रंग एक पे और सरस।।१८६।। ी! चौंसठ कम्भय से सुशरोणभत उस गरोल चबूतरे की शरोभा करो देखखए, ससि सीे परीधिाी के असेक रंगय के सग झलझला रहे है। ाहाँ तरो इतसे (असन्त) रंग है मक उसके साीय का ाार स ही सहीप हरो सकता। इसके साक ही एक और माशेषता ्ह है मक हर रंग द स ू रे से अधधिक अच्छा लगता है। भाााकर - परीधिाी ीे रंगय की संख्ा करो सीीा ीे सहीप बाँधिा ा सकता। एक रंग करो दस ू रे से अच्छा कहसे का भाा ्ह सहीप सीझसा चामहए मक ाहाँ के रंगय की सुन्दरता ीे कीी ्ा अधधिकता है। ावतुतः श ्ह बात आलंकाररक रप ीे कही ग्ी है मक प्रत्ेक रंग दस ू रे से अधधिक सुन्दर है अकारत् सभी की सुन्दरता सीास है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 29 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ाहदत ीे की ्ा अधधिक सुन्दर हरोसे का प्रश ही सहीप उठता। सौन्द्र का ाार स प्रा्ः श तुलसातीक दमष्ट से ही मक्ा ाता है। ीै तरो साी लेत ाेरय, ासय बरोहरोत साी खलए ांए। संग साी धिात कहे मबसा, रंग साी आाे सा ुबांए।।१८७।। ब ीै ााहरात का साी लेती हूँ , तरो ऐसा लगता है मक बहुत से ाेरय के साीय का ाार स हरोसा चामहए। साीान््त्ा सगय और धिातुओं के साी का ाार स हुए मबसा उसके रंगय करो अपसी ाााी से व््क सहीप मक्ा ा सकता। भाााकर - इस ीा्ााी का एक मसधशत रंग है, गत ीे प्रत्ेक धिातु और संग स ै े पुखरा (पुष्पराग) का रंग पीला और ीाणाक् का रंग लाल है। इस आधिार पर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 30 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिातु का साी लेसे पर रंग का बरोधि हरो ाता है , मकन्तु परीधिाी की प्रत्ेक धिातु ्ा संग धिसी का ही वारप है। ाह सधच्चदासन्दी्ी है। उसके एक-एक रंग से असंख्य रंगय का प्रकटस हरोता है , ऐसी सवकधत ीे रंगय के आधिार पर धिातु ्ा ााहरातय का मसार ् करसा सम्भा सहीप है , मकन्तु लीला रप ीे सीझ ीे आसे के खल्े ही इस सीमीत रंगय के साीय का प्र्रोग मक्ा ग्ा है। एकै रस के सब रंग, करे ुदे रंग संग धिात तरो कमहए, द ु े झलकार। रो आाे कहूं सुीार।।१८८।। परीधिाी के सभी रंगय ीे एकरसता है। ाे आपस ीे अलग-अलग रपय ीे झलकार कर रहे है। धिाी के रंगय, सगय, और धिातुओं की संख्ा असन्त है। इसका ाार स तरो तभी सम्भा है, ब इसकी सीीा मसधिारररत हरो। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 31 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - एक ही सूर तता अपसे ीे ाहदत , मसवबत, खखलात, सौन्द्र , और इशक के रस करो सीा्े हुए है। इस प्रकार परीधिाी के सूरी्ी सगय और धिातुओं के रंगय ीे सौन्द्र की एकरपता है। सौन्द्र की कहीप भी कीी ्ा अधधिकता सहीप है। इसे ही एकरस शब्द से सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है। पर महरदे आासे रहय के, ीै कई मबधि करत ब्ास। सा तरो क्य कहूं रंग संग धिात की, ए तरो खखलात बका सुभास।।१८९।। मकन्तु ब्सृमष्ट्य के हद् ीे ाहाँ की शरोभा बस ा्े , इसखल्े ीै असेक प्रकार से कह रही हूँ , अन््का परीधिाी के रंगय, सगय, और धिातुओं की शरोभा का ाार स करसा कदामप सम्भा सहीप है। भला ्ह मकसका साीर्र है मक अकरातीत की अखणड प्रेीी्ी लीला के वकास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 32 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का ाार स कर सके? भाााकर - परीधिाी के का-का ीे ीा् अकरातीत ही सभी रपय ीे लीला कर रहे है। इस सम्बन्धि ीे खल ु ासा गन्क का ्ह ककस बहुत ही ीहतापूार हैस असर ससि मीएं दस ू रा, करोई और धिरााे साउँ । ए खलख्ा ाेद कतेब ीे, करोई साहीप खद ु ा मबस काहू।ं । और खेलौसे एक रो हक के, सरो दस ू रा क्य केहेलाए। रा कमहए तरो दस ू रा, रो हक मबसा हरोए इपदाए।। खल ु ासा १८६/८३,८४ इससे ्ह वपष्ट हरोता है मक ब परीधिाी की सम्पूार साीगी ही सधच्चदासन्दी्ी है, तरो ाहाँ के सगय, धिातुओं, और रंगय की शरोभा का ्काकर ाार स सम्भा सहीप। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 33 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी असर धिात सा रंग संग रेसी, ससि त स्ा स पुरासा हरोए। ससि त पैदा कछू स्ा सहीप, धतत क्य साी धिरे ाएं सरोए।।२०।। परीधिाी ीे प्रत्ेक ावतु श्री रा ी का ही वारप है। ाहाँ अलग-अलग लौमकक धिातुओं, सगय, रंगय, और रेशीी ासय की उपसवकधत सहीप है। ाहाँ स तरो करोई ावतु स्े रप ीे उतपन्न हरोती है और स पुरासी ही हरोती है। ससि स असामद परीधिाी ीे करोई स्ी ची पैदा स हरो और स मकसी स्े रप ीे मदखा्ी पडे , ाहाँ पर मकसी का साीकरा कैसे मक्ा ा सकता है? भाााकर - परीधिाी ीे श्री रा ी का सूर ही असंख् पदाकर (संग, धिातु, रेशी आमद) के रप ीे दमष्टगरोचर हरोता है। पूाारधतपूार धिाी ीे उतपखत और मासाश की प्रमक्र्ा सहीप हरोती, इसखल्े मकसी के भी साीकरा का प्रश ही सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 34 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्हाँ ्ह संश् हरोता है मक खल ु ासा, पररक्रीा, तका श्री ााहर दास कही ी की ाृत आमद के आधिार पर ्ह बात ाती है मक परीधिाी ीे ब ही मकसी ाृक के फल की इच्छा करते है तरो पल भर ीे ही ाह हीारे हाकय ीे आ ाता है, मकन्तु उस डाल पर भी ैसा का तैसा ही फल मदखा्ी देता है। तरो क्ा हाक ीे आसे के बाद डाल पर मदखा्ी देसे ााला फल स्ा सहीप है? ीेाे चामहए सरो लीससि ए, फल फूल ीूल पात। धतत र्ा तैसा ही बन््ा, ए बका बागय की बात।। खल ु ासा ५/४६ कालीा्ा के ब्ाणड ीे भी ्व्् की अमासाणशता का ससिसदान्त ीासा ाता है, ससि सके असुसार ्व्् ीूलतः श 2 सष्ट सहीप हरोता , बसलक ऊ ार (E=mc ) ीे रपान्तररत हरो ाता है। स ै े मक लकडी करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा लासे पर ाह राख ीे 35 / 992 श्री सागर टीका बदल तरो श्री रा स वााीी ाती है, मकन्तु लकडी का कुछ अंश ऊ ार (उष्ीा+प्रकाश) ीे पररारतत हरो ीे साीान्् रप से ्ही कहा ाता है। इस सवकधत ा सकता है मक लकडी सष्ट हरो ग्ी। ाावतमाकता ्ह है मक उसका ातर ीास वारप अाश् सष्ट हरो ग्ा, मकन्तु ीूल वारप सष्ट सहीप हुआ। ्व्् से मसकलसे ााली ऊ ार उधचत पररसवकधत्य ीे पुसः श ्व्् का रप धिारा कर लेती है। कालीा्ा का ्ह ब्ाणड अव््ाकृत के वाप्स का पररााी है। अव््ाकृत से लेकर सतवारप तक एक ही सूरी्ी तता क्रीडा कर रहा है। ाहाँ इच्छा ीा् से करोई भी ावतु पल भर ीे दमष्टगरोचर हरो ाती है और असन्त काल तक बसी रहती है, मकन्तु कालीा्ा का ्ह ब्ाणड वाप्स का है, ससि सके कारा ्हाँ की प्रत्ेक ावतु का रप सशर है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 36 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसके मापरीत परीधिाी ीे अकरातीत का सूरी्ी वारप ही सार ् लीला कर रहा है। ाहाँ के का-का ीे ब्रपता है। इसखल्े लीला रप ीे ्मद मकसी ावतु की इच्छा हरो, तरो ाह मदखा्ी भी देती है, उसका रसावाादस भी मक्ा ाता है, मकन्तु उसके ीूल ्ा ातर ीास वारप ीे मकसी भी प्रकार की माकृधत सहीप हरोती, क्यमक परीधिाी ्ा परब् वा्ं ीे पूार (असन्त) है। उसकी शरोभा, शमक, लीला, और आसन्द आमद ीे साी ीा् के खल्े भी न््स ू ता सहीप आ सकती। इसखल्े तरो धिीर गन्कय (बृहदारण्करोपमसषद) ीे कहा ग्ा हैपूारीदः श पूारमीदी् पूाारत् पूारीुदच्ु ्ते। पूारव् पूारीादा् पूारीेााऽाणशष््ते।। अकारत् सधच्चदासन्द परब् पूार (असन्त) आसन्द के वारप है। उसके प्रेी, आसन्द, और ते प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा से ्ह सम्पूार 37 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी भी ाैसा ही है। उस असन्त परीधिाी ीे ्मद असन्त रोडा ा्े ्ा मसकाला ा्े , तरो असन्त ही बचता है। हेी ाेर ्ा रो कछू, सरो सब ससि ीी पैदास। इत साी पैदास के क्य कमहए, ससि त पैदा स सास।।२१८।। इस सशर गत ीे सरोसा आमद धिातुएँ तका अन्् ााहरात भी पृराी के अन्दर से मसकाले ाते है। ससि स असामद परीधिाी ीे स तरो करोई सई ावतु पैदा हरो सकती है और स सष्ट हरो सकती है , ाहाँ की ावतुओं (सरोसा, चाँदी इत्ामद) का साी ्हाँ की सशर ावतुओं के आधिार पर कैसे रखा ा सकता है? भाााकर - असामद परीधिाी इशक, आसन्द, और ाहदत (एकमदली) की भूमीका है। ऐसी अावका ीे ाहाँ साी की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 38 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोई भी आाश्कता सहीप हरोती। हीारी ीासाी् बुधद ीे ाहाँ की शब्दातीत लीला सीझ ीे आ सके , इसखल्े ही ्गु ल वारप समहत सभी लीला रपी पदाकर के सम्बरोधिस ीे साी का प्र्रोग मक्ा ग्ा है। कंभ और ची स आाे सब्द ीे, कर ीरोमीस देखरो सहूर। असर बासी देख माचाररए, तब महरदे हरोए हे साक हूर।।२२।। ी! ्मद आप गहस धचन्तस करके देखे तरो ्ह वपष्ट हरोगा मक परीधिाी के सूरी्ी कम्भय और अन्् ावतुओं की शरोभा का ाार स शब्दय ीे सहीप आ सकता। ्मद आप इस ब्ाााी का धचन्तस -ीसस करे, तरो आपके हद् ीे ाहाँ की शरोभा की एक झलक आ ा्ेगी। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक ससि स प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 39 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी शरोभा करो शब्दातीत कहा ग्ा है, उसे अगली ही पंमक ीे अपसे हद् ीे बसासे की बात क्य कही ग्ी है? ावतुतः श परीधिाी की शरोभा शब्दातीत ही है। ्हाँ की उपीा देकर भी मस धिाी की ाावतमाक शरोभा का ाार स सम्भा सहीप है। ्ह ब्ाााी धिाी धिसी के आाेश से अातररत है और ्हाँ के भााय के आधिार पर गागर ीे सागर करो भरा ग्ा है, मकन्तु ्मद ही उसका धचन्तसीसस और धचतामस (ध््ास) करते है, तरो हीारे हद् धिाी ीे ाहाँ की शब्दातीत शरोभा अाश् ही बस ाती है। साी मससास इत झूठ है, तरो भी धतस पर हरोत साबूत। रोत झूठी देख सासूत की, अधधिक है ीलकूत।।२३।। ्दमप इस गत् के सभी पदाकर और साी झूठे है, मफर भी इसकी उपीा से ाहाँ की कुछ पहचास हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती है। 40 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीृत्ल ु रोक ीे सू्र , चन््ीा, तका तारय ीे रो ज्रोधत मदखा्ी पडती है, ाैकुणठ लरोक ीे उससे अधधिक ज्रोधत है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह ससि ञासा हरोती है मक इस पृराी लरोक ीे ब सू्र , चन््ीा, और सक्य की ज्रोधत मदखा्ी पडती है, तरो ाैकुणठ की ज्रोधत कहाँ है ? क्ा इस ताराीणडल के परे ाैकुणठ है? इसके सीाधिास ीे ्ही कहा ा सकता है मक सू्र , चन््ीा, तका तारागा वकूल पदाकर है और इसकी ज्रोधत भी वकूल हरोती है , रो आँ खय से दमष्टगरोचर हरोती है। ाैकुणठ लरोक सूकी लरोक है, ससि से इस भौधतक आँ खय से सहीप देखा ा सकता। ससि स प्रकार शरीर ीे ीस, धचत, बुधद, अहंकार, तका ीा का असवतता है, मकन्तु उन्हे आँ खय से देखसा सम्भा सहीप, बसलक ध््ास -सीाधधि की अावका ीे ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 41 / 992 श्री सागर टीका देखा श्री रा स वााीी ा सकता है, उसी प्रकार ाैकुणठ लरोक का असवतता भी ताराीणडल से परे खरो सा उधचत सहीप। बसलक सूकीता ीे ही खरो ा ा सकता है। सासा (National Aeronautics and Space Administration) की ररपरोटर के असुसार कालीा्ा के इस ब्ाणड ीे लगभग १८२५ अरब मसहाररका्े (आकाशगँगा्े) है, ससि सीे असँख् तारे है। इसके परे ाैकुणठ की कलपसा उधचत सहीप। साीान्् अावका ीे रो ीा शरीर ीे रहसे पर ्ा बाहर मसकलते सी् आँ खय से मदखा्ी सहीप देता, ाही सीाधधि की अावका ीे १८६ सू्र से भी अधधिक प्रकाशीास अावका ीे मदखाई देता है। इसी प्रकार ीस, धचत, बुधद आमद भी चन््ीा , सू्र, तका मादुत की चीक के सीास प्रकाश रप ीे मदखा्ी पडते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 42 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस प्रकार ाैकुणठ प्रकृधत ीणडल का ाह सूकी लरोक है, हाँ सूकी प्रकाश है और ीा् सूकी शरीरधिारी ीा ही ाहाँ रहते है। पृराी लरोक के वकूल दश्य से ाहाँ की तुलसा सहीप की ा सकती। सरो ीलकूत पैदा फसा पल ीे, कई करत खाांद बरत। सरो ररोससी मसीूसा देख के, पीछे देखरो असर लाहूत।।२४।। अकर धिाी के वााीी अकर ब् पल भर ीे ही कररोडय ाैकुणठ उतपन्न करते है और ल् कर देते है। हे सुन्दरसाक ी! आप पृराी लरोक तका ाैकुणठ लरोक की ज्रोधत करो देखकर ( ासकर) परीधिाी की अखणड सूरी्ी ज्रोधत करो देखखए (सीससिझए)। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 43 / 992 श्री सागर टीका इस मबधि सहूर श्री रा स वााीी रो कीससि ए, कछू तब आाे रह लजत। और भांत मसीूसा सा बसे, ए तरो असर अ ीी खखलात।।२५।। पृराी, ाैकुणठ, तका परीधिाी की ज्रोधत की ्मद आप सीीका (सम््क् ईका अकारत् देखसा) करते है, तब आपकी आतीा करो परीधिाी की सूरी्ी शरोभा का करोडा सा वााद (असुभा) मील सकता है। कालीा्ा्रोगीा्ा से भी परे परीधिाी के ीूल मीलााा की शरोभा करो सीझसे के खल्े सीीकातीक दमष्ट के अधतररक अन्् करोई भी साधिस सहीप है। भाााकर - पृराी लरोक ीे सू्र के माशाल ते पररधचत है। ऐसे १८० २१८ से सभी अकारत् एक लाख कररोड अरब सू्र हीारी आकाशगंगा ीे है और इस कालीा्ा ीे लगभग १८२५ अरब आकाशगंगा्े है, बमक ्ह ब्ाणड के ञात रप करोडा सा ही अंश है। अभी अञात रप ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 44 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकतसी आकाशगंगा्े है , इसका ञास मकसी भी ीासा करो सहीप है। ्रोगीा्ा के ते के साीसे कालीा्ा के सू्र कुछ भी असवतता सहीप रखते। मसत् ाृन्दाास की शरोभा का ाार स देखखएएक रा धतस ससि ीी का, ताके ते सरो सूर हेी सरोभा आगे सूर करोट। दष्टे स आाहीप, इस ससि ीी रे की ओट।। ाेर के बस कहू,ं तरो ए सब झूठी ावत। रो अमासास की, कही स ाए ीुख हवत।। बरसस करं एक पात की, सरो भी इस करोट ससी ब ु ां कही स ाए। रो सूर कहू,ं तरो एक पात तले ढंपाए।। कलस महन्दवु तासी २०/१८८-२० ससि स रास ीणडल की ऐसी शरोभा है, ाह सतवारप की पहली बमहशत के साीसे फीकी ही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 45 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हद सब्द दस ु ी ीे रह्ा, परोहयच््ा सहीप सूर रास। तरो क्य परोहयचे असल सूर करो, ससि सकी ए पैदास।। सूर रास भी बरन््रो सा ग्रो, तरो णभवत बरसस क्य हरोए। बरोहरोत बडी तफाात, रास णभवत इस दरोए।। ससंधि ३९/३०,३२ ्ह ध््ास देसे ्रोग् तर् है मक रास ीणडल ्ा सतवारप ीे धिाी है, रो सूरी्ी ते है , उसका ीूल ाह अकर हाँ अकर ब् मारा ीास है- रास णभवत ्ा रो कछू, ए सब पैदा असल सूर। धतस असल सूर की क्य कहूं, ए रो दार आगूं ह ूर।। रो सूर ीकास आगूं असर के, सूर बका असल। ए रहे असलूं कासय सुमस्रो, असल तसय के मदल।। ससंधि ३९/३६,३७ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 46 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वा्ं अकर ब् भी अकरातीत के सूर कहे ाते है। ऐसी सवकधत ीे उस शरोभा का ाार स कैसे सम्भा है , रो ीूल मीलााे ीे दमष्टगरोचर हरो रही है? रास और सतवारप की बमहशत का ते तरो सूर सागर की लहर ीा् है- रास णभवत लेहेरे कही, कही सूर ीकास की माधि। आगे तरो सूर त ला, सरो ए देऊं सेक सुधि।। हां पर ले बराईल, इतके आगे स सके चल। दरगाह असर अ ीी की, हक हादी रहे असल।। सूर ीाल अंग का सूर रो, बडी रह रहय ससिसरदार। बडी रह के अंग का सूर पेहेले क्ा सूर ीकास रो, रहे बु रक बारे ह ार।। रो, सरो सूर ीाहे ााहेदत। हक हादी रहे खखलात, ए ााहेदत सब मससबत।। ससंधि ३९/४५,४६,४८,५३ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 47 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस प्रकार परीधिाी की ाहदत के सूर की शरोभा का ाार स कदामप सम्भा सहीप है। आगूं सूर-ीकास की कंकरी, देखत सा करोट सूर। धतस ससि ीी संग ररोससी, सरो कैसरो हरोसी सूर।।२६।। अकरधिाी की एक छरोटी सी कंकरी के साीसे इस कालीा्ा के कररोडय सू्र का ते (मसवते हरो असुीास लगा्ा णछप ाता है ाता है)। ऐसी सवकधत ीे ्ह सह ही ा सकता है मक उस अकरधिाी के सगय के सूर की ज्रोधत (ररोशसी) कैसी हरोगी? ए सूर ीकास कह्ा रसूले, आगूं ाए सा सके क्य ए कर। धतस लाहूत ीे क्य परोहयचहीप, ससि त ले बराईल पर।।२७।। ीुहम्ीद सामहब से इस अकरधिाी का ाार स मक्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 48 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि बरील फररशता भी इसे उलंघकर परीधिाी ीे सहीप सका। आगे बढ़से पर उसके पर ा लसे लगे। भाााकर - अकरधिाी की सीीा ीे आसे ााले सूर , सीर, रस, और सार रस सागर भी परीधिाी के अन्दर ही ीासे ा्ेगे। ावतुतः श अकरधिाी भी परीधिाी के अन्दर ही है। सखख्य समहत श्री रा ी सूर , सीर, रस, और सार रस सागर ीे भी लीला करसे ाते है। अकर ब् का मसाास हरोसे से इसे अकरधिाी की संञा अाश् प्राप है , मकन्तु लीला रप ीे अकरधिाी सतवारप ीासा उलंघकर ससि बरील परीधिाी ीे सहीप ा्ेगा, ससि से ा सका। कुरआस के पारः श १८७ तका पारः श २७ ीे सूरः श ५३ सजी आ्त ३-१८७ तक ीे ससि बरील के दारा सतवारप तक ासे का ाार स मक्ा ग्ा है। सार रस सागर से ही इशक और ाहदत की भूमीका शुर हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती है, ससि सीे सत के 49 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रोश का प्राेश सम्भा सहीप है। ाहाँ पर ीा् इशक (असन्् प्रेी) के दारा ही ा्ा कारा है मक ससि बरील के पर ा सकता है। ्ही लसे की बात कही ग्ी है। ्ह ककस ीा् आलंकाररक है। ससि बरील करोई पकी सहीप, बसलक अकर ब् के रोश की शमक (फररशता) है। ए देखरो तुी ररोससी, हक असर इस हाल। ससि त पर ले बराईल, करोई फररवता स इस मीसाल।।२८।। हे साक ी! आप श्री रा ी के उस परीधिाी की असन्त सूरी्ी ज्रोधत के बारे ीे माचार कीससि ए, ससि सके ते से ससि बरील के भी पर लसे लगते है, बमक शमक ीे ससि बरील के सीास करोई भी सहीप है। भाााकर - खल ु ासा १८२/४५ ीे ्ह बात वपष्ट रप से कही ग्ी है मक " बराईल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रोश धिसी का" अकारत् 50 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि बरील धिसी का रा रोश है। ्हाँ ससि बरील का तातप्र श्री ी के सत् अंग अकर ब् के इशक के रोश से सहीप। ्मद इशक का हरोता, तरो उसे परीधिाी ीे सकता का। सत् अंग का रोश (शमक) से है, रोश ही ससि बरील ासे से करोई भी सहीप ररोक रोश हरोसे से ही उसे साारधधिक शमकशाली कहा ग्ा है। ीे्रा हुआ ीहंीद पर, सेक धतस मक्ा ररोसस। अब ीुतलक ाहेर तरो हुआ, रो असर ीे ीरोमीसय तस।।२९।। ीुहम्ीद सामहब करो श्री रा ी का दशर स हुआ और उन्हयसे परीधिाी का करोडा सा ञास संसार ीे मद्ा। परीधिाी ीे ब्सृमष्ट्य के ीूल तस है , इसखल्े इसके कारा ही ब्ाााी के रप ीे परीधिाी का सारा ञास अातररत हुआ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 51 / 992 श्री सागर टीका भाााकर - द ू श्री रा स वााीी (मदती्ा) का चन््ीा ससि तसा उ ाला करता है, उतसा ही उ ाला ीुहम्ीद सामहब के मद्े हुए ञास से संसार ीे हरो सका। आखरल इीाी ीुहम्ीद ीहदी सामहब्बुजीाँ श्री प्राासाक दरोपहर के सूर ी का ञास उस के सीास है, ससि सके प्रकाश ीे परीधिाी की करोई भी ावतु (लीला, शरोभा, इशक, ीाररफत, ाहदत आमद) णछपी सहीप रह सकती। मदल असर भी तरो क्ा, हके ास ए मससबत। इस मगररो पर ीे्रा तरो हुआ, रो मदस ऊग्ा हक ीारफत।।३०।। इस ब्सृमष्ट्य से अपसा ीूल सम्बन्धि हरोसे के कारा ही धिाी धिसी से इसके मदल (हद्) करो अपसा असर (परीधिाी) कहा है। अब अञासता की राम् सीाप हरो चुकी है तका अकरातीत की पूार पहचास (ीाररफत) का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 52 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ञास तारती ाााी के रप ीे अातररत हरो चुका है। ऐसा लग रहा है मक अब मदस का उ ाला फैल ग्ा है। ऐसी सवकधत ीे इस ब्सृमष्ट्य के खल्े मप्र्ती अकरातीत के दीदार का दराा ा भी खल ु ग्ा है। भाााकर - अञासता के अन्धिकार ीे आ तक मकसी करो भी परीधिाी का साकातकार स हरो सका का। परीधिाी की इस ब्ाााी के अातररत हरोते ही ब्सृमष्ट्य समहत सभी के खल्े परीधिाी के साकातकार का ीागर प्राप हरो ग्ा है। इसखल्े तरो कहा ग्ा है मक "हक इली से हरोत है, असर बका दीदार।" ए रो अंदर असर अ ीी के, खखलात ीासूक ्ा आससिसक। सूर त ला क्य कहू,ं बका ााहेदत हक।।३१८।। परीधिाी के ीूल मीलााे ीे एक-दस ू रे के आणशक ्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 53 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीाशूक के रप ीे श्री रा श्ाीा मारा ीास है। भला श्री रा ी और सखख्ाँ ी की शरोभा का ाार स कैसे हरो सकता है? उसकी अखणड ाहदत (एकमदली) तरो परीधिाी के का-का ीे दमष्टगरोचर हरो रही है। भाााकर - परीधिाी ीे सभी एक-दस ू रे के आणशक है। ीासूक तुम्हारी अंगसा, तुी अंगसा के ीासूक। ससिससगार २/४५ का ककस ्ही बात वपष्ट करता है। हकीकत के रप ीे श्री रा ी का ही वारप सार ् लीला कर रहा है , इसखल्े सभी की शरोभा सीास है, और सबके मदल ीे एकरपता है, अकारत् एक (श्री रा बात आ्ेगी, ाही श्ाीा ी) के ीस ीे रो ी, सखख्य, खूब- खश ु ाखल्य, तका पशु-पधक्य के अन्दर भी आ्ेगी। इस ककस ीे ्ह संश् हरो सकता है मक ्मद सखख्य प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 54 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के मदल की बाते पशु -पधक्य ीे भी आ ाती है , तरो उन्हयसे खेल क्य सहीप ीाँगा और ीूल मीलााे ीे क्य सहीप बैठे? इसके सीाधिास ीे ्ही कहा ा सकता है मक परीधिाी की लीला करो ्हाँ के भााय के असुसार ही दशार्ा ग्ा है। ाहाँ की प्रत्ेक ावतु आती-वारप है। ्ह बात इसी प्रकरा की ४०,४१८ चौपाई ीे भी दशार्ी ग्ी है। ब अकरातीत के अधतररक ाहाँ अन्् कुछ है ही सहीप, तरो इस संसार की तरह पशु-पधक्य करो आतीाओं से अलग सीझसे की भूल क्य? इस भांत मसीूसा लीससि ए, करर्रो हक सहूर ीरोमीस। तुी ताले आ्ा लदन्न ु ी, तुी देखरो असर ररोसस।।३२।। हे साक ी! आप इस प्रकार सीीकातीक दमष्ट से धिसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 55 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की सूरी्ी शरोभा का धचन्तस करते रहसा। सौभाग्ाश, तुम्हे ब्ाााी का अीृतरस प्राप हुआ है। इसके दारा तुी अपसे हद् धिाी ीे अखणड परीधिाी करो देखरो। ए तुी ताले तरो आइ्ा, रो तुी असल खखलात। मससमदस सहूर एही चामहए, हक बैठे तुीे खेलाात।।३३।। तुम्हारे भाग् ीे ्ह ब्ाााी भी इसखल्े है , क्यमक ीूल मीलााे ीे तुम्हारे ीूल तस मारा ीास है। अब तुम्हे मदस-रात ीा् इसी बात का धचन्तस करसा चामहए मक धिाी धिसी तुम्हे अपसे चराय ीे मबठाकर ीा्ा का ्ह झूठा खेल मदखा रहे है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह प्रश हरोता है मक ब्ाााी का रसावाादस तरो ईशरी सृमष्ट और ीा सृमष्ट भी कर रही है, पुसः श ्ह क्य कहा ग्ा है मक ्ह ाााी ीा् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 56 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्य के कारा ही अातररत हुई है? इसके उतर ीे ्ही कहा इस ाााी से ईशरी और ा सकता है मक अाश् ही ीा सृमष्ट भी लाभ उठा रही है , मकन्तु इसका अातरा ीा् ब्सृमष्ट्य करो ागत करसे के खल्े ही हुआ है। इस सम्बन्धि ीे श्रीीुखाााी के ्े ककस ्ष्टव्् हैमकस एक बूद ं स पाइ्ा, रससा भी ाचस। ब्ाणड धिमस्य देखख्ा, रो कहााे ्ैगुस।। प्रकास महन्दवु तासी ३१८/१८०२ स केहेाा् ीा्ा ीांहे आ ाााी, पा साक ीाटे कहे ाााी। रास १८/४४ ल्ाए मपऊ ातस के, बल ीा्ा ासी। प्रकास महन्दवु तासी ३१८/१८३८ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 57 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्मद ब्सृमष्ट इस संसार ीे सहीप आती , तरो अकरातीत के चरा कील भी सहीप आते और ब्ाााी का अातरा भी सहीप हरोताकरोई ाेद पांचय ीुख पढ़रो, कई ्ैगुस ात पढ़त। पर ए चरस स आाे ब्सृष्ट मबसा, ाकी ब् सय मससबत।। ससिससगार ७/३३ अब मगस देखरो कंभ चौसठ, बीच चारय महवसय चार दार। साी रंग संग तरो कमहए, रो मकत खाली देखूं झलकार।।३४।। हे साक ी! अब चबूतरे की मकसार पर आ्े हुए ६४ कम्भय करो मगसकर देखखए , ससि सके चारय मदशा ीे चार ीेहराबी दारय (३-३ सीमढ़्य) के आसे के कारा कम्भय की हार के चार महवसे (खाँचे) हरो ग्े है। सगय के साी तका उसके रंगय का ाार स तरो तब मक्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा सकता है , 58 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब उसकी सूरी्ी झलकार से करोडी भी गह बाकी हरो। भाााकर - प्रत्ेक सग से असंख् प्रकार की मकराे मसकलकर चारय ओर गीगा रही है। सभी आपस ीे एक-दस ू रे से मीलकर एकरप भी हरो रही है। ऐसी सवकधत ीे ्ह मसार ् करसा सम्भा सहीप है मक मकस कम्भ से मकस रंग की मकरा मसकल रही है। एक रोत सागर सब हरो र्ा, और ऊपर तले सब रोत। कई सूर उडे आगूं कं करी, धतस भरोी की रोत उदरोत।।३५।। इस ीूल मीलााा ीे ऊपर-सीचे चारय ओर ज्रोधत ही ज्रोधत मदखा्ी पड रही है। ऐसा लग रहा है मक ्हाँ ज्रोधत का सागर ही लहरा रहा है। हाँ की एक छरोटी सी कँकडी (का) के साीसे असेकय सू्र मसवते (णछप) हरो ाते है, ाहाँ की ज्रोधत के प्रकाश का ाार स ीै प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 59 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कैसे करँ? चं्ाा दल ु ीचा तमकए, सब रोतै का अंबार। ससि त देखरो धतत रोत ीे, सूर क्य कहूं लेहेरे अपार।।३६।। चाहे चबूतरे की फशर पर मबछी हुई पशीी मगली (दल ु ीचा) हरो, ्ा ऊपर चन््ाा, ्ा ससहासस और कम्भय के बीच आए हुए तमक्य की शरोभा हरो , सभी सूरी्ी ज्रोधत के भणडार के रप ीे दमष्टगरोचर हरो रहे है। हाँ भी देखखए, ाहाँ ज्रोधत की असन्त लहरे ही मदखा्ी पड रही है। ऐसी सूरी्ी शरोभा का ाार स भला कैसे मक्ा ा सकता है? दरो दरो संग कंभय के बीच ीे, मबसा सूर स पाइए ठौर। मदााल बंधिाई सूर की, क्य कहूं रंग संग और।।३७।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 60 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीूल मीलााा के चबूतरे के मकसारे पर रो ६४ कम्भ आ्े है, उसीे ीेहराबय की शरोभा है। प्रत्ेक ीेहराब दरोदरो सगय के रंग की है। आधिी ीेहराब दा्ीप ओर के कम्भ के सग के रंग की है, तरो आधिी ीेहराब बा्ीप ओर के कम्भ के रंग की है। इस प्रकार दरो कम्भय के बीच ीे दरो सगय के रंगय की मकराे दीाार के रप ीे गीगा रही है। एक भी वकास सूर से खाली सहीप है। ऐसी सवकधत ीे ीै सगय के रंगय की शरोभा का ाार स कैसे करँ? बीच खाली ससि त उत ाएगा, धतत लरत कंभय का सूर। ंग हरोत संगस की, धतत अधधिक सूर हूर।।३८।। रो भी खाली वकास है, उसीे कम्भय से मसकलसे ााला सूर आपस ीे टकरासे के कारा लडता हुआ सा प्रतीत हरोता है। सगय से मसकलसे ााली मकराे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ब आपस ीे 61 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी टकराती है, तरो एक आसन्ददा्क ्द ु का दश् प्रवतुत हरो बढ़ती ाता है और सूरी्ी प्रकाश की आभा उतररोतर ाती है। सूर सूर सब एक हरो गई, एक द ू ी करो खेचत। दसू ी रोत बीच खाली मीसे, रंग क्य मगसे ाएं इत।।३९।। ीूल मीलााा की इस गरोल हाेली ीे चारय ओर सूर ही सूर दमष्टगरोचर हरो रहा है। प्रत्ेक सूरी्ी तरंग दस ू री तरंग करो अपसी ओर आकरषत करती है, ससि ससे खाली वकास ीे दरोगुसी ज्रोधत उतपन्न हरो ाती है। ्हाँ ऐसी अलौमकक शरोभा है, ससि सीे रंगय की मगसती करसा सम्भा ही सहीप है। भाााकर - ससि स प्रकार सीु् की लहरे उीडा करती है , उसी प्रकार सूरी्ी ज्रोधत के सागर से असंख् रंगय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 62 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ााली मकराय का सीूह तरंगय के रप ीे एक -दस ू रे करो अपसी ओर आकरषत करता है, ससि ससे अलौमकक शरोभा ााले प्रकाश का प्रकटस हरोता है। ससि ीी ात भी रह की, रह ात आसीास। ल ते ााए सब रह करो, रह ात असर सुभास।।४०।। परीधिाी ीे सभी ब्सृमष्ट्ाँ श्री रा ी की अँगरपा है, इसखलए ाे उसकी ही वारपा है। ाहाँ की धिरती भी आती-वारप है। ्हाँ तक मक आकाश भी आती वारप हरोकर अपसे प्रााालभ करो ररझाता है। परीधिाी ीे लीला रप ीे मदखा्ी देसे ााला ल, ाा्,ु और अम् भी आतीा के ही वारप ीे धिसी करो ररझाते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 63 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पसु पंखी ्ा दरखत, रह ससि सस है सब। हक असर ााहेदत ीे, द ू ा मीले सा कछुए कब।।४१८।। उस वालीला अदैत परीधिाी ीे चाहे करोई पशु हरो , पकी हरो, ्ा ाृक ही क्य स हरो, सभी आती-वारप है। परीधिाी ीे श्री रा ी की ाहदत ीे उसके (धिसी के) अधतररक अन्् मकसी ावतु का असवतता हरो ही सहीप सकता। भाााकर - श्री रा ी का मदल ीाररफत (माञास) का वारप है, ससि सका हकीकत (सत्) के रप ीे प्रकटीकरा परीधिाी के पच्चीस पकय, श्ाीा ी, सखख्य, अकर ब्, ीहालकीी, खूब-खश ु ाखल्य, पशुपधक्य, और ाृकय के रप ीे है। सभी श्री रा ी के ही वारप है। हकीकत ीे ्े अलग-अलग रपय ीे लीला कर रहे है, मकन्तु ीाररफत की दमष्ट से इन्हे श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 64 / 992 ी श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का ही वारप सीझसा चामहए। हकीकत की दमष्ट से भी सभी पशु-पकी, ाृक, धिरती, आकाश, चाँद-ससिसतारे आती-वारप हरोकर ही अपसे प्राामप्र्ती करो ररझाते है। द ू ा तरो कछू है सहीप, द ू ी है हुकी कुदरत। सरो पैदा फसा देखस की, फसा मीले स ीाहे ााहेदत।।४२।। परीधिाी ीे श्री रा ी के अधतररक और करोई दस ू रा है ही सहीप। ्मद करोई दस ू रा है, तरो ीा् उसके हुकी की शमक अकारत् उसका सत् अंग अकर ब्। ाे अकर ब् अपसी इच्छा ीा् से ्रोगीा्ा के दारा उतपन्न और ल् हरोसे ााले असंख् ब्ाणडय करो बसाते है। इस ीा्ााी खेल करो देखसे के खल्े ही ब्सृमष्ट्ाँ ्हाँ आई हु्ी है। उस अखणड ाहदत से इस साशाास ब्ाणड की तुलसा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 65 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सहीप हरो सकती। भाााकर - धचद्घस वारप श्री रा ी के दरो अंग है- सत् अंग अकर ब् तका आसन्द अंग श्ाीा ी। इस प्रकार उसके हुकी अकारत् मदल की इच्छा शमक दरो रपय ीे का्र करती है। पहले रप ीे सत् अंग के दारा ाह असंख् ब्ाणडय का सृ स -ल् करती है, तरो दस ू रे रप ीे आसन्द वारप श्ाीा ी के दारा सखख्य के साक प्रेी और आसन्द की लीला करती है। इसे श्रीीुखाााी ीे इस प्रकार कहा ग्ा हैीेरे सब अंगय हक हुकी, मबसा हुकी रा साहे। सरोई हुकी हक ीे, हक बसे असर ीे तांहे।। ससिससगार २/१८१८ हक हुकी तरो है सबीे, मबसा हुकी करोई साहे। पर ्ाीे हुकी स र खलए, और रह का बडा ीता ्ा ीाहे।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 66 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससिससगार २७/१८७ हके मक्ा हुकी ातस ीे, सरो उप त अंग असल। स ै ा देखत सुपस ीे, ए रो बरतत इत सकल।। खखलात ५/३७ रो कछुए ची असर ीे, सरो सब ााहेदत ीाहे। रा एक मबसा ााहेदत, सरो तरो कछुए साहे।।४३।। परीधिाी ीे लीला रप ीे प्रत्ेक ावतु एकमदली (ाहदत) के अन्दर है, अकारत् सबकी शरोभा, इच्छा, आसन्द सीास है। रंच ीा् भी भेद सहीप है। ाहाँ का एक का भी ाहदत के मबसा सहीप है। सच तरो ्ह है मक परीधिाी ीे ाहदत के मबसा अन्् मकसी का भी असवतता सहीप है। भाााकर - श्री रा ी की ाहदत की लीला सार ् है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 67 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अन्तर केाल इतसा है मक लीला रप ीे उसकी ाहदत के दरो भेद हरो ाते है। अकर ब् के साक सत् की ाहदत, तका श्ाीा ी, सखख्य, तका ीहालकीी के साक आसन्द और प्रेी की ाहदत। ए खखलात हक सूर की, सूर आला सूर ीकास। मबछौसा सब सूर का, सब सूरै का साीास।।४४।। ्ह सम्पूार ीूल मीलााा श्री रा ी के सूर से ही सुशरोणभत है। ्ह सारपरर सूर का धिाी है। चबूतरे पर मबछी हुई सुन्दर मगली भी सूर की है तका शरोभा रपी सम्पूार साीगी भी सूरी्ी है। भाााकर - "आला" शब्द का अकर सारपरर हरोता है। ीूल मीलााे करो सार श्रेष सूर का वकास कहसे का कारा ्ह है मक ातर ीास सी् ीे श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी लीला रप ीे ीूल 68 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मीलााे ीे ही ससहासस पर मारा ीास है। उसके ही सूर से सम्पूार परीधिाी की शरोभा है। उसके सत् अंग अकर ब् से ही ्रोगीा्ा का सूर है , मकन्तु उसीे ाहदत की एकरसता सहीप है। अव््ाकृत के सूर की अपेका सबखलक के सूर ीे प्रेी , आसन्द, और ते की अधधिकता है। इसी प्रकार केाल ब् ीे सबखलक से, तका सतवारप ीे केाल ब् से भी अधधिक प्रेी , ते , और आसन्द है। सम्पूार परीधिाी ीे ाहदत का रस है, रो ्रोगीा्ा ीे सहीप है। ससन्धि गन्क प्रकरा ३९ ीे इस माष् पर अच्छा प्रकाश डाला ग्ा है। ्ही कारा है मक ीूल मीलााे के सूर करो "सूर आला" कहा ग्ा है। सूर चं्ाा क्य कहू,ं सूरै की झालर। तले तरफे सब सूर की, देखरो सूरै की स र।।४५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 69 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सूरी्ी चन््ाा (चन्दरोाा) की अलौमकक शरोभा का ाार स कैसे मक्ा ा्े? उसीे लटकती हुई झालर भी सूरी्ी है। चन््ाा के सीचे चबूतरे की सारी शरोभा सूर से ही पररपूार है। हे साक ी! अपसी सूरी्ी दमष्ट से इस शरोभा करो देखखए। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा का आश् ्ह है मक ीूल मीलााा की इस शरोभा करो लौमकक भााय से सहीप देखसा चामह्े। ऐसी भी कलपसा सहीप करसी चामह्े मक ाहाँ भौधतक प्रकाश से बसी हुई शरोभा हरोगी। अकरातीत श्री रा ी का सख से णशख तक का रो वारप है, उसी के तदरोगद (हुबहू) ीूल मीलााा ्ा परीधिाी के का-का का वारप है। इसे ही सूर की दमष्ट से देखसा कहते है। ्ह दमष्ट मबसा प्रेी के सहीप प्राप हरो सकती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 70 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रहे मीलााा सूर ीे, बीच कठे डा सूर भर। कंभ तमकए सब सूर के, कछू और सा सूर मबगर।।४६।। चारय ीेहराबी दारय करो छरोडकर कम्भय के बीच ीे कठे डे की शरोभा आ्ी है। कठे डे से तमक्े लगे है। ससहासस से लेकर कठे डे तक सखख्ाँ सट-सट कर बैठी है। ्ह सारी शरोभा सूरी्ी है। कम्भ और तमक्े सभी सूर के है। ाहाँ सूर के अधतररक और कुछ है ही सहीप। तखत सरोणभत बीच सूर का, सूर ीे ुगल मकसरोर। बैठे हक बडी रह सूर ीे, सूर सरोभा अधत रोर।।४७।। चबूतरे के बीच ीे सूरी्ी ससहासस शरोभा्ीास है। उस पर सूरी्ी शरोभा धिारा मक्े हुए ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी मारा ीास है। ्ह सूरी्ी शरोभा बहुत अधधिक ीरोहक है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 71 / 992 श्री सागर टीका भाााकर - श्री लालदास श्री रा स वााीी ी की ाृत के इस ककस के आधिार पर ्ह ीाससा उधचत सहीप है मक ससहासस चबूतरे के बीच ीे सहीप बसलक पधशी मदशा ीे पाच और सीलाी के कम्भय से लगते हुए हैइस दल ु ीचे पर सरोणभत, कंचस रंग ससहासस। पाच सीलाी के लगते, झलकत सूर ररोसस।। बडी ाृत १८५/८३ ससि स प्रकार अपसे हाक की दरो अँगुखल्य करो दरू सवकत दरो कम्भय की सीधि ीे करके देखते है , तरो ऐसा प्रतीत हरोता है मक दरोसय अँगुखल्ाँ दरोसय कम्भय से सटी हुई है , बमक व््ाहार ीे ऐसा सहीप हरोता। अँगुखल्य और कम्भय के बीच बहुत दरू ी हरोती है। इसी प्रकार श्री लालदास ी के ककस का आश् ्ह है मक ्दमप ससहासस तरो पशीी मगली के बीचय -बीच प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 72 / 992 श्री सागर टीका है, मकन्तु श्री रा स वााीी ब पूार मदशा से ससहासस के मकसारे के पा्य करो देखते है, तरो ऐसा प्रतीत हरोता है मक पधशी मदशा ीे इसके दरोसय पा्े पाच और सीलाी के कम्भय से सटे हुए है। चौपाई ीे "लगते" शब्द का प्र्रोग हुआ है, ससि सका अकर हरोता है प्रतीत हरोसा। परीधिाी शब्दातीत है। ाहाँ प्रत्ेक इसन््् ीे पाँचय गुा मसमहत है, इसखल्े ीस ीे कभी भी ऐसा संश् सहीप रखसा चामहए मक ्मद ससहासस बीच ीे हरोगा तरो पीछे की सखख्ाँ श्री रा ी की ओर कैसे देख सकेगी? ब्ाााी का ककस असन्ती सत् है। श्री लालदास ी का भी ककस सत् है, मकन्तु उपररोक चौपाई के अकर ीे उधचत अाधिाराा की आाश्कता है। श्रीीुखाााी ीे कई वकासय पर चबूतरे के बीच ीे ही ससहासस की सवकधत बता्ी ग्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 73 / 992 श्री सागर टीका एह रोत श्री रा स वााीी रो रोत ीे, बैमठ्ां ज्य सब मील। क्य कहूं सरोभा इस ुबां, बीच सुन्दर रोत ुगल।। सागर २/४ मगरदााए तखत के, कई बैमठ्ां तले चरस। ासय ससि स हरोाे ुमद्ां, पकड रहे ही सरस।। सागर २/१८० स ै े सरप रहस के, चरसय लगे मगरदााए। त्य पुतखल्ां ीरोधतस की, कदीय रही लपटाए।। ससिससगार १८८/६१८ सूर सरप रप सूर के, सूर ावतर भूखस। सरोभा सुन्दरता सूर की, सब सूरै सूर ररोसस।।४८।। परीधिाी ीे ्गु ल वारप और सखख्य आमद के रप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 74 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तका वारप दरोसय ही सूरी्ी है। उसके ास एां आभूषा भी सूरी्ी है। उसकी सुन्दरता तका शरोभा भी सूरी्ी है। सार ् सूर ही सूर लीला कर रहा है। भाााकर - इस कालीा्ा के ब्ाणड ीे मकसी के बा् शरीर करो "रप" कहते है, मकन्तु उसके अन्दर णछपा हुआ ाह तता ससि ससे पूरा शरीर चेतस रहता है "वारप" कहलाता है। इस संसार ीे वारप के मबसा रप मससष्क्र् और मस रा है, मकन्तु परीधिाी ीे एक ही परब् का वारप, सूर रप ीे अन्दर-बाहर एकरस हरो रहा है। ् ुारद ४०/५ ीे इसे इस रप ीे व््क मक्ा ग्ा है- "तदन्तरव् सार व् तद ु सार व्ाव् बा्तः श" अकारत् ाह ब् ही अन्दर-बाहर सार ् एकरस हरो रहा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 75 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्ैाेदीीृतं पुरवताद ब् पशाद ब् दधकातशरोतरेा। अधिशरोधां च प्रसृतं ब्ैाेदं माशमीदं ाररषी्।। ीुणडक उपमसषद २/१८१८ अकारत् ्ह अ र-अीर ब् ही आगे , पीछे , दा्े, बा्े, ऊपर, सीचे, सार ् मारा ीास है। ्ह ही सारतकृष्ट है। गुस अंग इं्ी सूर की, सूरै बास ाचस। पपड प्रकृत सब सूर की, सूरै केहेस सुसस।।४९।। प्रकृधत के सता, र , और ती के मापरीत ाहाँ ्व्् के गुा के रप ीे ीा् सूर है , अकारत् सूर ही गुा है और सूर ही ्व्् है। अन्तः शकरा और इसन्््ाँ भी सूरी्ी है। ाााी तका शब्द भी सूर के है। ाहाँ के शरीर तका प्रकृधत भी सूरी्ी है। कहसा-सुससा भी सूरी्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 76 / 992 श्री सागर टीका भाााकर - श्री रा स वााीी ब परीधिाी ीे श्री रा ी के अधतररक अन्् करोई है ही सहीप, तरो उसके वारप से णभन्न अन्् मकसी पदाकर के असवतता की कलपसा सहीप की सकती। इस भौधतक ा गत् ीे ससि स प्रकार म्गुाासतीक प्रकृधत से कारा शरीर (अन्तः शकरा), सूकी शरीर (१८० इसन््् तका ५ सूकी भूत तका ४ अन्तः शकरा), और वकूल शरीर की रचसा हरोती है, ाैसी सवकधत परीधिाी ीे सहीप है। ाहाँ सार ् एकीा् सूर की लीला है। रहे बडी रह सूर ीे, सूर हक के सदा खस ु ाल। हक सूर मससमदस बरसत, सूर अरस-परस सूर ीाल।।५०।। श्ाीा ी एां सखख्य का वारप सूरी्ी है। ाे सूरी्ी वारप ााले श्री रा ी करो हीेशा ही अपसे प्रेी से ररझाती है। इसके ऊपर भी श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के इशकी्ी सूर 77 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की ाषार हरोती है। इस प्रकार श्री रा ी और सूर के सभी वारप अरस-परस (ओत-प्ररोत) है। भाााकर - श्री रा ी का ही वारप सभी रपय ीे लीला कर रहा है। परीधिाी के पच्चीस पकय ीे रो कु छ भी दमष्टगरोचर हरो रहा है, सब धिाी धिसी का सूर ही है। साी ठाी सब सूर के, कहूं रा सा सूर मबस। ीरोहरोल ीसन्दर सब सूर के, ीाहे बाहेर सूर पूरस।।५१८।। परीधिाी के सभी वकास और साी सूरी्ी है। एक का भी सूर के मबसा सहीप है। ्हाँ तक मक सभी ीहल और ीसन्दर भी सूरी्ी शरोभा से ओत-प्ररोत है। ाहाँ के सभी पदाकर ीे अन्दर-बाहर एक ही सूर पूार हरो रहा है। भाााकर - तारती ञास से असणभञ हरोसे के कारा , संसार के ीसीषी स इस सशर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा गत् करो ही ब्रप 78 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीासकर "सार ी् खसलादं ब्" का उद्घरोष करसे लगे। ावतुतः श उपमसषदय का ्ह ककस ीा् परीधिाी के खल्े ही घमटत हरोता है। असर भरोी सब सूर की, सूरै के कंभ मदााल। दार बार कीाडी सूर के, सूर गरोख ाली पडसाल।।५२।। परीधिाी की सम्पूार भूमीका ही सूरी्ी है। ाहाँ के कम्भ और दीाारे भी सूरी्ी और चेतस है। मस धिाी के दराा े (दार) और पले भी सूर के है। ालीदार दीाारे, छजे, तका पडसाले (देहलासे) भी सूरी्ी है। भाााकर - ्दमप "दार" और "बार" एकाकर ााची शब्द है, मकन्तु इसीे सूकी अन्तर हरोता है। बार शब्द केाल छरोटे दराा य के खल्े प्र्क ु हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 79 / 992 श्री सागर टीका ीेहेराा झररोखे सूर के, श्री रा स वााीी रे रा सब सूर। असर ीाहे बाहेर सब सूर ीे, सूर स ीक सूर दरू ।।५३।। परीधिाी का एक-एक का सूरी्ी है। ाहाँ की ीेहराबे तका खखडमक्ाँ (झररोखे) सभी सूर के है। उस वालीला अदैत परीधिाी ीे दरू हरो ्ा मसकट, लीला रपी सभी पदाकर ीे एकीा् सूर ही अन्दर -बाहर क्रीडा कर रहा है। सूर साी ररोसस का, दस ु ी ासत ्य कर। सरो तरो ररोससी ससि द अंधिेर की, दसु ी क्ा ासे लदन्नु ी मबगर।।५४।। संसार के लरोग ऐसा सीझते है मक ररोशसी (प्रकाश) ही सूर है, बमक ाावतमाकता कुछ और है। भला तारती ञास के मबसा ाे सूर के वारप के बारे ीे क्ा ास सकते है? ाे तरो इस ीा्ााी ब्ाणड की ररोशसी करो ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 80 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सूर सीझसे की भूल कर बैठते है। भाााकर - इस कालीा्ा के ब्ाणड ीे प्रत्ेक प्रकाशी्ी ावतु, चाहे ाह सू्र, सक्, मादुत आमद ही क्य स हरो, अम् तता का वारप है , रो ड है। अम् तता ाा्ु तता से प्रकट हुआ है और ाा्ु तता ड आकाश से प्रकट हुआ है। आकाश का वारप मसराकार है, तका अहंकार, ीहतता, एां ीरोह सागर (अन्धिकार) का भी वारप मसराकार है। इस प्रकार मसराकार ाा् ु एां मसराकार आकाश से प्रकट हरोसे ााले सू्र आमद सक्य की ज्रोधत (ररोशसी) करो सूर सीझ लेसा शीशे करो हीरा सीझसे स ै ी बात है। ब्लैक हरोल के अन्दर स मकतसे सू्र ल् हरो ासे ा्ा करते है? ्दमप इसी प्रकरा की चौपाई २८ ीे "ररोससी" शब्द का प्र्रोग मक्ा ग्ा है, मकन्तु ाह परीधिाी के खल्े है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 81 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी का प्रकाश अकरातीत का ही वारप है, रो सत्, धचत, आसन्दी्ी, वालीला अदैत, और असन्त है, बमक इस संसार का प्रकाश असत् , दाहकारक, ीा्ाी्ी, और ाा्ु तता ीे लीस हरो ड, ासे ााला है। तले भरोी चबूतरा, बैठा हक मीलााा इत। हक हादी ऊपर बैठ के, मगररो करो खेलाात।।५५।। रंगीहल की प्रकी भूमीका ीे पाँचाी गरोल हाेली है , ससि सके चबूतरे पर सुन्दरसाक के बीच ीे ्गु ल वारप ससहासस पर मारा ीास है, और ाहीप बैठे-बैठे ीा्ा का खेल मदखा रहे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 82 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी असर ीता अपार है, मदल ीे स आाे मबसा सुीार। ताके ल्ाऊं बीच महसाब के, ज्य रहे करे माचार।।५६।। परीधिाी की लीला, शरोभा, तका मावतार-सम्बन्धिी ञास असन्त है। ब तक ाह सीीाबद स हरो, तब तक ाह ञास हद् ीे सहीप आ पाता, इसखल्े ीैसे परीधिाी के इस ञास करो बहुत ही सीमीत कर मद्ा है, तामक सुन्दरसाक उसका धचन्तस कर सके। भाााकर - श्रीीुखाााी ीे परीधिाी का ाार स ाैसे ही है , स ै े महीाल् पार त करो सरसय के एक दासे के रप ीे दशारसा। इतसा ाार स भी परब् के आाेश के कारा सम्भा हरो सका, अन््का संसार के ीसीषी स तरो सेधतसेधत कहकर ीौस हरो ग्े। "अदैत सब्द रो बरोखल्े, तरो ससिसर पडे उतर" का ककस इसी सम्बन्धि ीे है। परीधिाी का ाार स मकतसा कमठस है, ्ह ससिससगार गन्क के इस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 83 / 992 श्री सागर टीका ककस से वपष्ट हरो श्री रा स वााीी ाता है- ए मसरसे करसा असर का, धतसीे भी हक ात। इत सूर अकल भी क्ा करे, ससि त लदन्न ु ी गरोते खात।। ससिससगार २२/१८२४ असर साहीप सुीार ीे, सरो हक ल्ाए ीाहे मदल ीरोमीस। बेसुीार ल्ाए सुीार ीे, ीाहे आासे मदल रहस।।५७।। ्दमप परीधिाी हर दमष्ट (शरोभा, लीला, एां मावतार आमद) से असन्त है, मकन्तु ब्सृमष्ट्य के मदल ीे इसका ञास अातररत करसे के खल्े धिाी धिसी से शब्दय करो सीीा ीे बाँधि मद्ा है। इस प्रकार मप्र्ती अकरातीत की कृपा (ीेहर) से ही ्ह शब्दातीत ञास सुन्दरसाक के धिाी हद् ीे प्रकाणशत हरो सका है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 84 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इत मफरते साठ ीसन्दर, धतस बीच गखल्ां चार। चारय तरफय देखखए, ासय रोतै का अंबार।।५८।। ीूल मीलााा ीे गरोलाई ीे ६० ीसन्दरय की एक हार मादीास है, ससि सकी चारय मदशा ीे चार -चार दराा े (गखल्ाँ) शरोभा्ीास है। इस हाेली ीे कभी भी देखा ा्े तरो चारय ओर ज्रोधत ही ज्रोधत का भणडार स र आता है। चौकठ ताके घरोडले, और मदाालय धच्ाीस। सरोभा क्य कहूं रोत ीे, भर्रो सूर ररोसस।।५९।। दराा य की सुन्दर चौकठय, तका उससे लगे हुए आलय (घरोडलय), ताकय, एां दीाारय पर बसे हुए धच्य की शरोभा का ाार स करसा सम्भा सहीप है। चारय ओर सूरी्ी ज्रोधत गीगा रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 85 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - छत करो सहारा देसे के खल्े दीाार से घरोडे की आकृधत ीे रो ावतु रोडी ाती है , उसे घरोडला कहते है। इसी प्रकार दीाार के अन्दर छरोटी-छरोटी ावतुओं करो रखसे के खल्े एक खाली वकास बसा हरोता है, ससि से ताका (ताखा) कहते है। मदाालय धच्ाीस, कई रोत उठे तरंग। साी साीी ले उठत, करत ीाहय ीाहे ंग।।६०।। दीाारय पर बहुत ही सुन्दर धच् बसे हुए है , ससि ससे असेक प्रकार की ज्रोधत की तरंगे मसकलती है। ब आीसे-साीसे की दीाारय से मसकलसे ााली सूरी्ी तरंगे आपस ीे टकराती है , तरो ऐसा प्रतीत हरोता है ैसे ाे ्द ु कर रही हय। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 86 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मबररख बेली कई ाेर की, सकल ासवपधत। सकस कटाा केते कहू,ं बसी पसु पंखी ात ेती।।६१८।। दीाारय पर ााहरातय से बसे हुए असेक प्रकार के ाृकय तका उससे खलपटी हुई लताओं की शरोभा है। ससि तसी भी प्रकार की ासवपधत्ाँ ्ा पशु-पधक्य की ाधत्ाँ हरो सकती है, उस सबकी शरोभा दीाारय पर आ्ी हुई है। दीाारय पर मदखसे ााले बेल -बूटेदार धच्य की असन्त सुन्दरता का ाार स ीै कैसे करँ। देख देख के देखखए, सरोभा अधत सुन्दर। स ै ी देखख्त मदाालय, धतससे अधधिक अन्दर।।६२।। हे साक ी! असन्त सौन्द्र से भरी हुई इस शरोभा करो आप बारम्बार देखखए। रो शरोभा आप दीाारय पर देख रहे है, उससे अधधिक शरोभा ीसन्दरय के अन्दर है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 87 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - ्दमप परीधिाी ीे ाहदत हरोसे के कारा प्रत्ेक ावतु की सुन्दरता सीास है, मकन्तु उपीा की दमष्ट से स्ी ावतु के ाार स ीे उसे पूार की ावतु की अपेका अधधिक सुन्दर कह मद्ा ाता है। इस चौपाई ीे "अन्दर" शब्द का प्र्रोग ीसन्दर के अन्दर रखी हुई ावतुओं के खल्े मक्ा ग्ा है, रो आगे की चौपाइ्य (६४,६५,६६) ीे ारात है। अधधिक धच्ाीस अन्दर, क्ा क्ा देखय इत। ससि सकरो देखय मसरख के, ासय एही अधधिक सरोणभत।।६३।। ीसन्दरय के अन्दर इतसे अधधिक (असन्त) धच् है मक ्ह प्रश उपसवकत हरो ाता है मक मकस-मकसकरो देखे? मकसी करो भी गौर से (ध््ास से, गहराई से) देखसे पर ्ही प्रतीत हरोता है मक ्ही सबसे अधधिक सुन्दर है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 88 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अन्दर कई ावतां धिरी, कई सेज्ा चौकी सन्दक ू । ससि त सरोभा रो लेत है, धतत देखखए धतस सलूक।।६४।। ीसन्दरय के अन्दर असेक प्रकार की ावतुएँ रखी हुई है। श्स करसे के खल्े असेक शय्ा्े (सेज्ा) है। बैठसे के खल्े चौमक्ाँ है तका ावतुऐं रखसे के खल्े सन्द क ू है। हाँ पर ससि स ावतु की शरोभा उधचत हरोती है, ाहाँ पर ाही ावतु मदखा्ी देती है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक परीधिाी पूार है तरो ाहाँ पर ीा्ााी ब गत् की तरह सन्दक ू य, धडब्बय, तका शाध्काओं आमद की क्ा आाश्कता है? इसके माष् ीे ्ही बात कही ा सकती है मक "असर बका बरसस मक्ा, ले ीसाला इत का", अकारत् ्हाँ की उपीा देकर उस शब्दातीत परीधिाी करो ारात करसे का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 89 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्र्ास मक्ा ग्ा है, ससि ससे ब्सृमष्ट्ाँ उसे अपसे धिाी हद् ीे बसा सके। इसी प्रकरा की चौपाई ५७ ीे ्ह बात वपष्ट रप से कह भी दी ग्ी है मक "बेसुीार ल्ाए सुीार ीे, ीाहे आासे मदल रहस।" ्ही कारा है मक परीधिाी ीे सार ् ब्रपता तका असन्तता हरोते हुए भी लौमकक गत की तरह ाार स मक्ा ग्ा है। पररक्रीा गन्क ीे अष्ट प्रहर की लीला के प्रसंग ीे ्ह बात दमष्टगरोचर हरो ाती है। कई सीसे प््ाले डब्बे, कई अन्दर मगरद देखत। कई तबके छरोटी बमड्ां, कई सीमक्ां लटकत।।६५।। ीसन्दरय के अन्दर चारय ओर देखसे पर असेक प्रकार की बरोतले, प््ाले, और धडब्बे मदखा्ी पडते है। छरोटी-बडी बहुत सी काखल्ाँ (तशतरर्ाँ) भी रखी है, तरो बहुत से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 90 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी छीपके भी लटक रहे है। भाााकर - इस चौपाई ीे उस ावतुओं का ाार स मक्ा ग्ा है, ससि सीे कुछ रखा ाता है। ्हाँ "सीसे" का तातप्र दपर ा से सहीप है , बसलक शीशे की छरोटी -बडी बरोतलय से है। घडे ्ा उसके सीास आकार ााले बतर सय करो कुछ रसवस्य के सहारे लटका कर रखा आाश्क ावतुएँ रखी ाता है। इसीे ाती है और इन्हे छीका कहते है। अन्दर की ावतां क्य कहू,ं और क्य कहूं धच्ाीस। रो ीसन्दरय अन्दर देखखए, तरो मदल हरोाे ररोसस।।६६।। ीसन्दरय के अन्दर रखी हुई ावतुओं की संख्ा और स ााट के माष् ीे ीै क्ा कहूँ ? इसी प्रकार धच्य की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 91 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुन्दरता का ाार स कैसे हरो सकता है? ्मद ीसन्दरय के अन्दर की ाह शरोभा मदख ा्े , तरो हद् ीे आसन्द का प्रााह उीडता है। भाााकर - इस चौपाई ीे ारात "मदल हरोाे ररोसस" का तातप्र है - हद् ीे उस प्रेी और आसन्द का प्रकटीकरा हरो ासा, ससि ससे अन्धिकारी् कष्ट से पृकक हरो हद् ीा्ा के ा्े। बार-साखे दार से, सरोभे साठय ीसन्दरय के। सरोभे मगरदााए बराबर, एक एक पे अधधिक सरोभा ले।।६७।। ्दमप ीूल मीलााा की इस हाेली के साठय (६०) ीसन्दर चौरस है, मकन्तु गरोल घेरे ीे आ्े हुए है। इसीे प्रत्ेक ीसन्दर ीे दराा े के पले तका चौकठ बहुत अधधिक सुशरोणभत हरो रहे है। सभी की शरोभा एक-दस ू रे से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 92 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अधधिक है। बारीक इस कीामड्य, असेक धच्ाीस। रंग संग ्ा तखते, ए सब ाेर चेतस।।६८।। दराा य के पलय पर बहुत से सूकी धच् बसे हुए है। इस पलय (मकााडय) के धच्य ीे ्ा रो रंग और संग प्र्क ु हुए है रो पमट्ाँ लगी हुई है, सभी ााहरातय की है और चेतस है। सा धचतारे चेतरी, सा घडी सा मकस सीारी। ए असर ससि ीी कंभ ीरोहरोलाते, ्ा मदााले ्ा दारी।।६९।। परीधिाी की इस सूरी्ी धिरती, कम्भय, ीहलय, दीाारय, ्ा दराा य पर स तरो मकसी धच्कार से धच्कारी की है, स बसा्ा है, और स ही स ा्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 93 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - ससि स प्रकार अकरातीत वा्ंभू और असामद है, उसी प्रकार परीधिाी की लीला रपी प्रत्ेक ावतु भी वा्ंभू, ब्रप, और असामद है, क्यमक सब कुछ उन्हीप के ीाररफत वारप हद् का हकीकत (्काकर ) ीे प्रकट रप है। धिाी के धच्य करो देखकर ऐसा कभी भी सहीप सरोचसा चामहए मक मकसी धच्कार से इन्हे बसाकर रंगय से स ा्ा है। मकसार मदााले दार से, लाल दरोरी दरोए दरोए। ीसन्दर ीसन्दर की हद लग, सरोभा लेत अधत सरोए।।७०।। ीसन्दरय की दीाारय तका दराा य की मकसार पर लाल रंग की दरो-दरो डरोरर्ाँ (रेखा्े, पमट्ाँ) आ्ी है। ्े प्रत्ेक ीसन्दर की मकसार पर है तका बहुत अधधिक शरोभा ले रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 94 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - ६० ीसन्दरय की बाहरी दीाार पर लाल रंग की दरो दरोरी आ्ी है। इसके ऊपर साक-साक लगकर काँगरी चली ग्ी है। एक ीसन्दर की दीाार की शरोभा इस प्रकार है- हाँस के करोसय के साक लगकर ऊपर के मकसारे से दरो दरोरी लाल रंग की सौ हाक अकशी कम्भय के साक हरोती हुई सीचे उतरी है। मफर ्े ीीस के साक लगकर दीाार पर ३३ हाक की लम्बी चली ग्ी है। इसके पशात् चौखट के साक अकशी कम्भ के ऊपर हरोकर ३३ हाक की ऊँची ग्ी है। मफर ३३ हाक की छरोटी ीेहराब से हरोकर पुसः श अकशी कम्भ से ३३ हाक सीचे उतरकर ीीस के साक लगकर ३३ हाक ग्ी है। इसके बाद हाँस के करोसे के साक लगकर पुसः श ऊपर ग्ी है, मफर दस ू रे ीसन्दर के करोसय के साक लगकर सीचे उतरी है। इस दरोरी के साक-साक काँगरी की धच्कारी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 95 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की भी शरोभा आती ग्ी है। दरोरी लगती कांगरी, सब ठौरय मगरदााए। धच्ाीस धतसके बीच ीे, रो देखय सरो अधधिक सरोभाए।।७१८।। सभी गह दरोरी के साक-साक काँगरी की भी शरोभा आ्ी है। इसके बीच ीे सुन्दर-सुन्दर धच् बसे है। ससि स भी धच् करो देखख्े , ाह दस ू रे से अधधिक सुन्दर लगता है। साठय तरफय ीसन्दर, सई सई ुदी ुगत। ए साठय फेर के देखखए, सरोभा और पे और अतंत।।७२।। ीूल मीलााा के ्े ६० ीसन्दर अलग-अलग प्रकार की सई-सई शरोभा से ्क ु है। ्मद आप इस सभी ीसन्दरय करो बार-बार देखे, तरो इसीे से प्रत्ेक की शरोभा दस ू रे से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 96 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी असन्त गुसा अधधिक मदखती है। भाााकर - परीधिाी की प्रत्ेक ावतु असन्त ीे है , चाहे ाह गासा की दमष्ट हरो ्ा शरोभा-शमक की। प्रत्ेक ावतु परब् का वारप हरोसे से शरोभा ीे असन्त गुसा मदखती है, बमक ाावतमाकता ्ह हरोती है मक सभी की शरोभा सीास हरोती है, साी ीा् के खल्े भी की ्ा अधधिक सहीप। ऐसा केाल उपीा की दमष्ट से कहा ग्ा है। क्य कहूं ुगत अंदर की, क्य कहूं ुगत बाहेर। ससि त देखय धतत लग रहय, ासय स रय आाे ाहेर।।७३।। चाहे ीसन्दरय के अन्दर की शरोभा की बात हरो ्ा बाहरी शरोभा की, उसका ्काकर ाार स करसा बहुत कमठस है। ीै हाँ भी शरोभा करो देखती हूँ, उसी ीे डू ब ाती हूँ। ीुझे ऐसा प्रतीत हरोता है मक ीै उसे साकात् देख रही हूँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 97 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उपली भरोी चढ़स करो, सीमढ़्ां अधत सरोणभत। सई सई तरह सए रंगय, साीी ऊपर की भूमीकाओं ीे है, रोते रोत उठत।।७४।। ासे के खल्े सीमढ़्ाँ बसी हु ई रो बहुत अधधिक शरोभा ले रही है। ्े सीमढ़्ाँ हीेशा ही स्ी रहती है और असेक प्रकार के स्े -स्े रंगय ीे दमष्टगरोचर हरोती है। इस सीमढ़्य से सूरी्ी ज्रोधत मसकलकर साीसे की ओर गीगाती रहती है। भाााकर - ्दमप रसरोई की हाेली के ाार स ीे ्ह अाश् कहा ाता है मक "व्ाी वाेत के बीच ीे, सुन्दर सीमढ़्ां सरोणभत", मकन्तु इस प्रकरा की चौपाई ७४, ७५, ७६ तका ७७ से ्ही ससिसद हरोता है मक ीूल मीलााा के इस सभी ६० ीसन्दरय ीे ऊपर की भूमीकाओं ीे ासे के खल्े सीमढ़्ाँ शरोभा्ीास है। इतसा ही सहीप, प्रकी भूमीका ीे ६०००-६००० ीसन्दरय की दरोसय हारय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 98 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी समहत ससि तसे भी ीसन्दर आ्े है, सभी ीे ऊपर ासे के खल्े सीमढ़्ाँ है, क्यमक परीधिाी ीे कहीप भी साी ीा् की भी न््ूसता सहीप हरो सकती। सीमढ़्ां अधत झलकत, ब सखख्ां उतर चढ़त। प्रधतपबब सखख्य सरोणभत, पडघा ीीठे वार उठत।।७५।। ससि स सी् सखख्ाँ सीमढ़्य से चढ़ती-उतरती है, उस सी् सीमढ़्ाँ अपसे सूरी प्रकाश ीे झलकार करसे लगती है। दपर ा के सीास वाच्छ सीमढ़्य के अन्दर सखख्य का झलकता हुआ प्रधतमबम्ब सुशरोणभत हरोता है और उसके पैरय से बहुत ही ीधिुर ध्ामस मसकलती है। वार भूखस के बा त, ीीठे अधत रसाल। इसकी सरोभा क्य कहूं, ाकरो खाांद सूर ीाल।।७६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 99 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सीमढ़्य पर चलते सी् ब्सृमष्ट्य के आभूषाय से बहुत ही आसन्द देसे ााली ीधिुर ध्ामस मसकला करती है। इस ब्ातीाओं की शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ , ससि सके मप्र्ती अकरातीत है? सीमढ़्ां अधत सरोणभत, ीाहे ींमदरय सबस। कहूं कहूं देहेलास ीे, रो ससि त सरो धतत ररोसस।।७७।। सभी ीसन्दरय ीे सीमढ़्य की बहुत अधधिक शरोभा है। कहीप-कहीप दहलासय ीे भी सीमढ़्य की शरोभा आ्ी है। इस प्रकार सीमढ़्ाँ भले ही कहीप भी क्य स हय , उसकी शरोभा सार ् छा्ी है। दरो दरो कंभ आगूं दारसे, धतस आगूं दस ू री हार। ए कंभ अधत मबरा त, सरोभा साहीप सुीार।।७८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 100 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चारय ीुख् दारय के आगे दरो -दरो कम्भय की शरोभा है। उसके आगे कम्भय की दस ू री हार मादीास है। ्े कम्भ बहुत अधधिक सुन्दर है और इसकी शरोभा की करोई सीीा सहीप है। चार हांस तले कंभ के, आठ ऊपर धतस। सरोले बीच आठ धतस पर, और चार ऊपर इस।।७९।। प्रत्ेक कम्भ का मसचला महवसा ४ हाँस (पहल) का है। उसके ऊपर का महवसा ८ पहल का है। मफर १८६ पहल का आ्ा है। इसके बाद का महवसा पुसः श ८ पहल का है और असन्ती भाग ४ पहल का है। इस मबधि हांस कंभस की, ीाहे सकस कई कटाा। दु ी ुदी गु तय धच्ाीस, ीाहे ुदे दु े कई भाा।।८०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 101 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस प्रकार कम्भय ीे हाँसय की शरोभा आ्ी है। इसके साक ही इस कम्भय ीे अलग-अलग बसााट के बहुत से बेल-बूटेदार धच् अंमकत मक्े ग्े है। इस धच्य ीे अलग-अलग प्रकार के असेकय भाा णछपे हुए है। भाााकर - सकश करसे का तातप्र हरोता है - अंमकत करसा ्ा धचम्त करसा। ससि स प्रकार इस संसार ीे प्रेी , मारह, द्ा, कराा, सं्रोग मसत दः शु ख आमद के भााय करो धच्य के दारा प्रदरशत करसे की परम्परा रही है, उसी प्रकार परीधिाी के प्रेी (इशक), एकता (ाहदत), ीूल सम्बन्धि (मसवबत), तका कृपा (ीेहर) आमद के भााय करो दशारसे ााले धच् कम्भय आमद पर बसे हुए है। एक एक रंग का ुदे ाेर, उसी ाेर ीे सकस। ुदे कई कटाा, एक द ू े पे सरस।।८१८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 102 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकसी एक रंग के ााहरात का ्मद करोई कम्भ है , तरो उसीे अलग-अलग प्रकार के बहुत से बेल-बूटे धचम्त है। सभी बेल-बूटे एक-दस ू रे से अधधिक सुन्दर मदखा्ी दे रहे है। इसके बीच चबूतरा, इत कठे डा मगरदााए। ए खूबी इस चबूतरे, इस ुबां कही सा ाए।।८२।। इस ६४ कम्भय के बीच ीे गरोल चबूतरे की शरोभा आ्ी है, अकारत् चबूतरे के ऊपर मकसार पर चारय तरफ ६४ कम्भ मादीास है, ससि सके ीध्् चारय ओर चबूतरे की मकसार पर कठे डे की शरोभा है। चबूतरे की शरोभा ऐसी सुन्दर है, रो ्हाँ के शब्दय से सहीप कही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा सकती। 103 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तरो भी सेक कहूं ीै इस की, ए रो आए चढ़त है धचत। रो बैठक खाांद की, सरो सेक कहूं ससिसफत।।८३।। मफर भी ीेरे हद् (धचत) ीे चबूतरे की रो करोडी सी शरोभा बस पा रही है, उसे ीै कहती हूँ। ससि स चबूतरे पर अकरातीत अपसी मप्र्ातीाओं के साक मारा ीास है, उसकी करोडी सी शरोभा का ीै ाार स कर रही हूँ। भाााकर - धचत, ीस, बुधद, तका अहंकार- ्े चारय अन्तः शकरा है, रो हद् के ही घटक (अंग) ीासे ाते है। इस प्रकार धचत ्ा ीस ीे मकसी बात के आसे का अणभप्रा् है हद् ीे आसा। चबूतरे की ीमहीा (ससिसफत) कहसे का तातप्र है- ाहाँ की शरोभा का ाार स करसा। भरोी उजल कई सकस, कहा कहूं ससि ीी इस सूर। ासय करोटक उदे भए, असर के सीतल सूर।।८४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 104 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ह भूमीका बहुत ही उजाल (वाच्छ) है, ससि स पर असेक प्रकार के धच् अंमकत है। ्हाँ के सूर का ाार स ीै कैसे करँ? ीूल मीलााा की ते रोी्ी शरोभा करो देखकर तरो ्ही कहसा पडता है मक ्हाँ पर कररोडय सू्र उगे हु ए है, ससि सीे ते तरो है , मकन्तु ाह चेतस है, शीतल है, और आसन्दी्ी है। उसीे संसार के ड सू्र स ै ी दाहकता सहीप है। मफरते कंभ रो चौसठ, चारय तरफय दार। दरो दरो सीढ़ी आगूं दारसे, सरोणभत है अधत सार।।८५।। चबूतरे की मकसार पर ६४ कम्भ आ्े है और उसकी चारय मदशाओं ीे चार दार (ीेहराबी) आ्े है। प्रत्ेक दार के आगे दरो-दरो सीमढ़्ाँ आ्ी है, ससि सकी बहुत अधधिक शरोभा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 105 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - ्दमप कीर-भर ऊँचे चबूतरे पर चढ़से के खल्े हीेशा ही तीस सीमढ़्य का ाार स आता है , मकन्तु ्हाँ पर चबूतरे की सतह (फशर ) करो ही एक सीढ़ी का रप ीास खल्ा ग्ा है। ्ही कारा है मक ्हाँ पर ीा् दरो ही सीमढ़्य का ाार स मक्ा ग्ा है। कई कंभ है ीामसक के, कई पाच कई पुखरा । सूर ररोसस एक दस ू रे, मील रोते रोत मबरा ।।८६।। ीूल मीलााा ीे ीाणाक के कई कम्भ आ्े है। इसी प्रकार पाच तका पुखरा के भी कई कम्भ है। सभी सूरी्ी आभा से प्रकाशीास है और एक कम्भे की ज्रोधत दस ू रे की ज्रोधत से मीलकर अलौमकक शरोभा करो उतपन्न कर रही है। भाााकर - सग और धिातुओं के कुल १८६ प्रकार के (रंग प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 106 / 992 श्री सागर टीका के) कम्भ है, श्री रा स वााीी रो चार खाँचय ीे चार बार आ्े है। इस प्रकार प्रत्ेक कम्भ एक हार ीे चार बार आ्ा है और तीस हारय ीे प्रत्ेक सग ्ा धिातु के कम्भ (ीाणाक, पाच, और पुखरा आमद) १८२ की संख्ा ीे आ्े है। कई लसमस्ां सीलाी, एक कंभ एक रंग। ्य मफरते कंभ संगस के, ुदे ुदे सब संग।।८७।। लसमस्ा और सीलाी आमद के भी कई (१८२-१८२) कम्भ आ्े है। एक कम्भ का एक ही ीुख् रंग है। इस प्रकार चबूतरे की मकसार पर चारय ओर संगय के कम्भ आ्े है। सभी सग अलग अलग वकासय पर आ्े है। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा का भाा ्ह है मक एक ही प्रकार के चार कम्भ एक ही गह सहीप है , बसलक चार खांचय ीे अलग-अलग वकासय पर आ्े है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 107 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरोले कंभय कठे डा, ्य कंभ कठे डा मकसार। कठे डा कंभय लगता, सरोले सरोले तरफ चार।।८८।। चबूतरे की मकसार पर चारय खाँचय (भागय) ीे १८६-१८६ कम्भ है। प्रत्ेक खाँचे ीे १८६ कम्भय के ीध्् कठे डे की शरोभा आ्ी है। इस प्रकार चारय खाँचय ीे सरोलह-सरोलह कम्भय के ीध्् कठे डे की शरोभा है। भाााकर - चारय मदशाओं ीे ३ -३ सीमढ़्ाँ उतरी है। उसके साीसे कठे डा सहीप आ्ा है, बसलक बाकी गह ीे १८६-१८६ कम्भय के ीध्् कठे डा आ्ा है। इस प्रकार कम्भ ा कठे डे के चार भाग बस ाते है। कंभ कंभ करो देखत, ज्य सूर के साीी सूर। बढ़त है बीच ररोससी, क्य कहूं सूर करो सूर।।८९।। एक कम्भे के साीसे दस ू रा कम्भ इस प्रकार सवकत है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 108 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी स ै े एक सू्र के साीसे दस ू रा सू्र। इस कम्भय से मसकलसे ााली सूरी्ी ज्रोधत ब आपस ीे मीलती है , तरो ाहाँ पर बहुत अधधिक ज्रोधत दमष्टगरोचर हरोती है , ससि सका ाार स करसा असम्भा है। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा ीे कणकत "सूर करो सूर" का आश् ्ह है मक कम्भय का वारप सूरी्ी है। उससे मसकलसे ााला सूर एक गह मीलकर अलौमकक शरोभा करो धिारा करता है, ससि से "सूर का सूर" कहा ग्ा है। ्य कंभ कंभ ऊपर तले सब रोत ीे, देखरो सबस का रोत ीे, हूर। म््ा सूर भरपूर।।९०।। इस प्रकार प्रत्ेक कम्भ सूरी्ी ज्रोधत ीे डू बा हुआ है। हे साक ी! इस सभी कम्भय की सूरी शरोभा करो देखखए। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 109 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ऊपर, सीचे, चारय ओर ज्रोधत ही ज्रोधत मदखा्ी पड रही है। सार ् सूर ही पररपूार हरोकर ऊपर चं्ाा कंभय लगता, तले गीगा रहा है। ेता चबूतर। डाा ज्य अधत झलकत, एता ही इस पर।।९१८।। चबूतरे का रो ीाप है, उसी ीाप का चन््ाा ऊपर छत पर कम्भय से लगता हुआ आ्ा है। असेक प्रकार के सगय से डा हुआ, ्ह चन््ाा बहुत अधधिक झलकार कर रहा है। कई रंगय के ाेर, करत रोत अपार। कई बेल फूल पात सकस, ए ससिसफत स आाे सुीार।।९२।। चन््ाा के अन्दर असेक रंगय के ााहरात डे हुए है , ससि सकी अपार ज्रोधत फैल रही है। असेक प्रकार की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 110 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लताओं, फूलय, और पखत्य के धच् चन््ाा के अन्दर बसे हुए है, ससि सकी शरोभा करो शब्दय ीे सहीप बाँधिा सकता (सीमीत सहीप मक्ा ा ा सकता)। मबछौसा मबछाइ्ा, करत दल ु ीचा रोत। फल फूल पात सकस, कई उठत तरंग उदरोत।।९३।। सीचे चबूतरे पर अधत सुन्दर मगली (दल ु ीचा, मबछौसा) मबछी हुई है, ससि ससे सूरी्ी ज्रोधत मसकल रही है। इस दल ु ीचे पर असेक प्रकार के फलय, फूलय, और पखत्य के धच् बसे हुए है , ससि ससे सूरी्ी प्रकाश की तरंगे उठती रहती है। चारय तरफय दल ु ीचा, मफरता मबछा्ा भर कर। चबूतरे लग कठे डा, सरोभा अधत सुन्दर।।९४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 111 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चारय तरफ सम्पूार चबूतरे पर कठे डे तक मगली मबछी हुई है। इस प्रकार इसकी बहुत सुन्दर शरोभा हरो रही है। क्य कहूं रंग दल ु ीचे, मफरती दरोरी चार। व्ाी सेत हरी रद, ए मफरती रोत मकसार।।९५।। दल ु ीचे के रंग की सुन्दरता का ाार स कैसे करँ? उसकी मकसार पर काले, शेत, हरे, और पीले रंग की चार दरोरर्ाँ आ्ी हुई है, रो ज्रोधत के सीास चीक रही है। कई माधि के कटाा, कई मबररख बेल सकस। पात फूल बीच मफरते, और पे और सरस।।९६।। इस मगली पर असेक प्रकार के बेल-बूटे अंमकत है। असेक प्रकार के ाृकय और लताओं के धच् बसे है , ससि सके बीच उसकी पखत्य और फूलय के बसे हुए धच् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 112 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक-दस ू रे की अपेका अधधिक सुन्दर आ्े है। लग कठे डे तमकए, क्य कहूं तमक्य रंग। बारे ह ार दाब बैमठ्ां, एक द ू े के संग।।९७।। कठे डे से लगकर तमक्े आए हुए है, ससि सके रंगय की सुन्दरता का ाार स कैसे करँ? बारह ह ार सखख्ाँ तमक्य के सहारे एकसाक बैठी हुई है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक ब केाल कठे डे से लगकर ही तमक्े आ्े है और तमक्य के सहारे ही सखख्ाँ बैठी है, तरो ्ह कैसे सम्भा है मक सम्पूार बारह ह ार सखख्ाँ तमक्य के सहारे बैठ सके , क्यमक सखख्ाँ तरो कठे डे से लगकर ससहासस तक चारय ओर बैठी हुई है। इस सम्बन्धि ीे सागर २ /१८१८ का ककस हैप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 113 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ज्य मील बैमठ्ां बीच ीे, ्य ही बैमठ्ां मगरदााए। इसके सीाधिास ीे ्ही कहा ा सकता है मक परीधिाी ीे ाहदत की लीला है , ससि सके असुसार ्मद कुछ सखख्ाँ तमक्य के सहारे बैठी है , तरो सभी करो ्ही असुभा हरोगा मक ही भी तमक्य के सहारे ही बैठी है। ाहाँ मकसी भी के् ीे करोई भी मकसी से की सहीप है। इसी भाा करो दशारसे के खल्े १८२००० सखख्य करो तमक्य के सहारे बैठा हुआ कहा ग्ा है , बमक इस संसार के लौमकक व््ाहार (गणात) के असुसार ऐसा हरोसा सम्भा सहीप है , क्यमक ाे आपस ीे इस प्रकार सट-सटकर कर बैठी है मक उसके बीच ीे अंगुली भी सहीप ा सकती। ए ीेला बैठा एक हरोए के, रहे एक द ू ी करो लाग। आाे स मसकसे इतके, बीच हाक स अंगुरी ीाग।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 114 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर २/९ ऐसा कहसा भी उधचत सहीप है मक सखख्य की एक हार के आगे तमक्े रखे ा सकते है, ससि सके सहारे अगली हार ााली सखख्ाँ बैठ सकती है। इस प्रकार का ाार स श्रीीुखाााी ीे कहीप भी सहीप है। बैठक दरोऊ ससघासस, चार पाए एक तखत। पीछल तमकए दरोऊ ुदे, रख्ा ऊपर दल ु ीचे इत।।९८।। दल ु ीचे के बीच ीे एक ससहासस रखा हुआ है , ससि सके चारय करोसय ीे चार पाए है। इस ससहासस पर ्गु ल वारप मारा ीास है। ससहासस के मपछले भाग ीे दरो अलग-अलग तमक्े रखे हुए है। भाााकर - तखत और ससहासस सीासाकर क है। अन्तर केाल इतसा ही है मक तखत शब्द फारसी भाषा का है प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 115 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और ससहासस शब्द संवकृत ्ा महन्दी का। इस चौपाई ीे ऐसा सहीप ीास लेसा चामहए मक चार पा्य के तखत के ऊपर छः श पा्य ााला ससहासस रखा हुआ है। ावतुतः श तखत ही ससहासस है, ससि सके चार करोसय के चार पा्य का ाार स मक्ा ग्ा है। बीच के दरो पा्य का ाार स चौपाई सं० १८०३ ीे इस प्रकार मक्ा ग्ा हैदरोऊ छे डय ीे कंभ दरोए, बीच तीसरा सरभर। ीरोती रतस ीामसक, हीरे हेी पासे पुखरा । गरोीामदक पाच मपररो ा परााल, रहे कई रंग संग धिात मबरा ।।९९।। इस ससहासस के अन्दर हीरे, ीरोती, ीाणाक, वाार , पन्ना, पुखरा , गरोीेद, पाच, मपररो ा, और प्रााल आमद के रतस डे हुए है। असेक रंगय की धिातुएँ और सग भी इसीे सुशरोणभत हरो रहे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 116 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - ससहासस के इस प्रकार के ाार स करो मकसी लौमकक ससहासस का ाार स सहीप सीझसा चामहए, ससि सीे हीरे-ीरोती आमद रतसय का डाा रहता है। ावतुतः श ाहाँ का प्रत्ेक पदाकर ब्रप है। ीा् लीला रप ीे सीझसे के खल्े ही ऐसा ाार स मक्ा ाता है। संग साी केते कहू,ं कहूं केती असर धिात। बरसस तखत असर का, कहे ुबां सुपस संग ात।।१८००।। परीधिाी के असन्त सगय और धिातुओं के मकतसे साीय का ीै ाार स करँ ? ीूल मीलााा ीे मारा ीास श्री रा ी के ससहासस ीे डे हुए सगय और धिातुओं की शरोभा का ाार स इस संसार के सगय और धिातुओं से उपीा देकर मक्ा है, तामक उसे हद् ीे धिारा मक्ा ा सके। भाााकर - परीधिाी ीे सार ् ही असन्तता हरोसे के कारा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 117 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिातुओं और सगय की संख्ा असीमीत है। ्हाँ के सगय और धिातुओं से उपीा देकर इसखल्े ाार स मक्ा ाता है मक ाह ीस-बुधद के दारा गा् हरो सके। चार कंभ चार खूंट के, छ्ी सरोभा अधत रोर। रो कदी सैसय देखखए, तरो झूठे तस बंधि देाे तरोर।।१८०१८।। ससहासस के चारय करोसय ीे चार कम्भ आ्े है और ्गु ल वारप के बैठसे की गह के ऊपर दरो छम््ाँ आ्ी है, ससि सकी शरोभा बहुत अधधिक है। ्मद आतीचकुओं से ाह शरोभा मदख बन्धिस टू ट ा्े , तरो इस झूठे शरीर का ा्ेगा। भाााकर - ्ह तरो पूार रप से वपष्ट है मक छ्ी एक सहीप, बसलक दरो की संख्ा ीे है। शरीर के बन्धिस टू टसे का तातप्र शरीर छूटसा सहीप , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 118 / 992 श्री सागर टीका बसलक शरीर के ीरोह-अही् से रमहत हरो श्री रा स वााीी ासा है। इसी करो मकरंतस ९/४ ीे इस प्रकार दशार्ा ग्ा हैलगी ााली कछु और स देखे, पपड ब्ांड ााकरो है री साहीप। ारो खेलत प्रेीे पार मप्ा सय, देखस करो तस सागर ीांहीप।। पीछल तमकए दरोऊ तरफय, बीच चढ़ती कांगरी चार। फूल पात बेल कटाा कई, बु ां कहा कहे सकस अपार।।१८०२।। ्गु ल वारप के पीछे की ओर दरो तमक्े है तका दरो तमक्े दा्े-बा्े दरोसय ओर है। एक तमक्ा बीच ीे है। इस प्रकार कुल पाँच तमक्य की शरोभा आ्ी है। इसके बीच ीे चारय करोसय के चारय डाणडय पर चढ़ती हुई काँगरी की शरोभा है। काँगरी के अन्दर फूलय, पखत्य, तका लताओं के बहुत ही सुन्दर-सुन्दर धच् बसे है , ससि सकी असन्त शरोभा का ाार स इस ससि िहा से सहीप मक्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 119 / 992 ा श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सकता। दरोऊ छे डय ीे कंभ दरोए, बीच तीसरा सरभर। धतस गुल पर गुल कटाा, सूर ररोसस सरोभा सुन्दर।।१८०३।। साीसे की ओर ससहासस के दरोसय मकसारय पर दरो कम्भ आए है। इसके बीच ीे तीसरा कम्भ भी है , रो इन्हीप के बराबर है। इसी प्रकार पीछे की ओर भी तीस कम्भ आ्े है। इस प्रकार ससहासस ीे कुल छः श कम्भ (डाणडे) आ्े है। इस गरोलाकार कम्भय पर गुलाब आमद गरोलाकार फू लय की बहुत सुन्दर धच्कारी है, ससि सकी सूरी्ी शरोभा गीगा रही है। भाााकर - "गुल" शब्द का भाा गरोलाकृधत ्ा गुलाब से खल्ा ाता है। कम्भे गरोल है और उस पर सुन्दर-सुन्दर गरोल फूलय के धच् बसे हुए है। इसे ही "गुल पर गुल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 120 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कटाा" कहा ग्ा है। रो बरसस करं पूरे पात करो, तरो चल ाए काहू उीर। तरो पात स हरोाे बरसस, ए असर तखत ्य कर।।१८०४।। परीधिाी के इस ससहासस की शरोभा ही ऐसी है मक ्मद ीै उस पर बसे हुए केाल एक पते की शरोभा का ाार स करसे लगूँ तरो सम्भातः श सारी उम बीत ा्ेगी , मकन्तु एक पते की शरोभा का पूार ाार स सहीप हरो पा्ेगा। भाााकर - पुराा संमहता ३२/१८०,१८१८ ीे भी इस प्रकार का ककस हैतदद ु ासलताप्ीेकं ाार ध्तुं ीुसे। स कलपेसामप कलपरोहं मकीुताखखलधिाी तत्।। अकारत् ब उस परीधिाी के उदासय के मकसी लता की एक पती का ाार स करसे ीे ीै एक कलप ीे भी सीकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 121 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सहीप हूँ , तरो उस सम्पूार धिाी का ाार स कैसे कर सकता हूँ? परीधिाी ीे ाहदत हरोसे के कारा एक पते की शरोभा भी श्री रा ी के बराबर कही ा सकती है। ऐसी सवकधत ीे ्ह कैसे सम्भा है मक करोई भी उसकी शरोभा का पूार ाार स कर सके? एक पात कई बेल कांगरी, बेल फूल पात कटाा। धतस बेलय पात कई बेले, ऐसे बारीक अधत डाा।।१८०५।। एक पते के अन्दर कई प्रकार की लताओं की काँगरी आ्ी हुई है। उस बेलय (लताओं) ीे असेक प्रकार के फूलय और पखत्य के धच् अंमकत है। उस बेलय की पखत्य ीे भी कई प्रकार की बेले (लताएँ ) बसी हुई है। इस प्रकार एक ही पती के अन्दर बहुत ही सूकी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 122 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धच्कारी बसी हुई है। एक संग बारीक इत देखखए, ताकी रोत स ीाए आसीास। अपार रे असर की, सा आाे ीाहे ुबास।।१८०६।। ्मद परीधिाी के एक छरोटे से सग करो देखा ा्े , तरो उसकी ज्रोधत इतसी अधधिक है मक ाह आकाश ीे सहीप सीाती अकारत् सम्पूार आकाश ीे फैलसे के बाद भी ाह शेष रहती है। ऐसी सवकधत ीे असन्त परीधिाी की असन्त सूरी्ी ज्रोधत का ाार स इस ससि िहा से कैसे सम्भा है? दरोऊ तरफय ससघासस के, बगलय तमकए दरोए। बारीक धतस कटाा कई, ए बरसस कैसे हरोए।।१८०७।। ससहासस के दा्े-बा्े दरोसय ओर दरो तमक्े रखे हुए है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 123 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उस तमक्य ीे बहुत से सूकी बेल -बूटे बसे हुए है। उसकी असीी शरोभा का ाार स कैसे मक्ा ऊपर छम््ां क्य कहू,ं कई रंग संग ा्े? रोत मकसार। कई दरोरी बेली कांगरी, सरोभा मफरती तरफ चार।।१८०८।। ऊपर की दरोसय छम््य की शरोभा का ाार स कैसे मक्ा ाए? छम््य की मकसार पर असेक प्रकार के रंगय ााले सगय की ज्रोधत गीगा रही है। छम््य के चारय ओर काँगरी की शरोभा आ्ी है, ससि सीे असेक प्रकार की दरोरर्ाँ तका बेखल्ाँ (लता्े) बसी हुई है। चार कंभ रो पाइ्य पर, धतस ीे बेली असेक। रंग संग बारीक अलेखे, धतसकरो क्य कर हरोए मााेक।।१८०९।। ससहासस के चारय करोसय के चारय पा्य पर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो चार कम्भ 124 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आ्े है, उसीे असेक प्रकार के बेलय की शरोभा आ्ी है। उसीे असन्त रंगय के असन्त सूकी सग डे हुए है। उसकरो शब्दय ीे बाँधिसा मकसी भी प्रकार से सम्भा सहीप है। चार खूंसे के चार सकस, कई कांगरी कटाा फूल। बीच पांखडी मफरती फूल ज्य, ए असर तखत इस सूल।।१८१८०।। परीधिाी के इस ससहासस की शरोभा इस प्रकार की है मक उसके चारय करोसय के चारय कम्भय पर चार प्रकार की सकशकारी (धच्य का सं्रो स) है। इसीे असेक प्रकार की काँगरी, बेल-बूटय तका फूलय की बसााट है। बीच ीे फूलय की पँखमु ड्य की शरोभा घेरकर आ्ी है। भाााकर - उभरे हुए ्ा कढ़ाईदार धच्य करो कटाा कहते है। सकशकारी (धच्ांकस) कढ़ाईदार भी हरो सकती है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 125 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ा सतह पर रंगय के रप ीे भी हरो सकती है , तका खद ु ी हुई भी हरो सकती है। फूल कटाा कई बीच ीे, कई माधि के सकस। इस के बीच ीे ीामसक, मगरदााए सीलाी सरस।।१८१८१८।। इस कम्भय के बीच ीे असेक प्रकार के फूल, बेल-बूटे, तका बहुत से धच् अंमकत है। इसके ीध्् ीे ीाणाक तका शेष चारय ओर सीलाी के सुन्दर सग डे हुए है। दरोऊ सरपय ऊपर, दरो फूल ज्य मबरा त। देखी और असेक धच्ाीस, पर अचर एह ुगत।।१८१८२।। ससहासस के ऊपर हाँ ्गु ल वारप मारा ीास है, उसके ऊपर दरो छरोटी-छरोटी छम््ाँ लटक रही है। इसीे ीाणाक के लाल रंग के दरो फूल लटक रहे है। श्री प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 126 / 992 श्री सागर टीका ीहाीधत श्री रा स वााीी ी की आतीा कहती है मक ्दमप ीैसे बहुत से धच् देखे है , मकन्तु इस फूलय की शरोभा सबसे अधधिक आश्र ीे डालसे ााली है। भाााकर - ससहासस के ऊपरी महवसे ीे दरो छम््ाँ आ्ी है, ससि सीे दरो कलशय की शरोभा है , ्े बडी छम््ाँ है। इन्हे ही गुम्ीट भी कहा ग्ा है। ्गु ल वारप के ससिसर के ऊपर दरो छरोटी-छरोटी छम््ाँ लटक रही है, उसीे ही लाल कील के सीास ीाणाक के दरो फूलय की अधत सुन्दर बसााट है। दरोए कलस दरोए छम््य, छे कलस मगरदााए। ए आठ कलस है हेी के, सुन्दर अधत सरोभाए।।१८१८३।। दरोसय बडी छम््य ीे दरो कलश आ्े है तका छः श कलश छः श कम्भय के ऊपर घेरकर आ्े है। ्े आठय कलश शुद प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 127 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वाार के है तका बहुत ही सुन्दर शरोभा करो धिारा मक्े हुए है। रोर करे रोत ाेर, ऊपर हक तखत। ए सूर ससि ीी आसीास ीे, ररोसस बढ़्रो अतंत।।१८१८४।। श्री रा ज्रोधत ी के ससहासस ीे डे हुए ााहरातय की गीगा रही है। ्ह सूरी्ी ज्रोधत ीीस से लेकर आकाश तक असन्त प्रकाश फैला रही है। सरो ए धिर्ा इत तखत, ासय स र सा छरोडूं खखस। पल स चाहे बीच आासे, ऐसी सरोभा तखत बीच इस।।१८१८५।। पशीी मगली के बीच ्ह सुन्दर ससहासस रखा हुआ है। इस ससहासस की ऐसी असुपी शरोभा है मक ीेरी ्ही इच्छा करती है मक ीै इसे एक पल के खल्े भी अपसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 128 / 992 श्री सागर टीका स रय से ओझल स हरोसे दँ।ू श्री रा स वााीी ब ीै इसे देखँू , तरो एक का के खल्े भी ीेरी पलके झपकसे स पा्े। एक गादी दरोए चाकले, पीछल ााही ससि सस। चौखूंसे कटाा कई पसीी, रो देखय सरोई सरस।।१८१८६।। ससहासस पर एक गादी है तका दरो चाकले (आसस) है। ्े ीखील (पशी) के है तका चौकरोर है। इस पर अधत सुन्दर बहुत से बेल-बूटे बसे हुए है। ससहासस का आगे का भाग ससि तसा सुन्दर मदखा्ी देता है, पीछे का भी ाैसे ही सुन्दर है। ्हाँ तक मक ससहासस के ससि स भाग पर स र पहुँचती है, ाही भाग सूरी सुन्दरता से ओत-प्ररोत हरो रहा है। भाााकर - गादी और चाकले ीे करोडा सा अन्तर है। ्दमप ्े दरोसय ही ीखीली है और सीास शरोभा ााले है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 129 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकन्तु गादी पूरे ससहासस ीे मबछी है , और कुछ ीरोटी है, बमक दरोसय चाकलय करो गादी के ऊपर अलग -अलग मबछा्ा ग्ा है अकारत् श्री रा चाकला और श्ाीा ी के खल्े अलग ी के खल्े अलग चाकला। चाकलय की ीरोटाई काफी की है। मकसार बाएं बीच ाेर के, और ररोसस बेसुीार। ए तखत सूर ीाल का, असर सब ची य अपार।।१८१८७।। श्री रा ी के इस ससहासस के दा्े -बा्े ्ा बीच ीे डे हुए ााहरात असन्त प्रकाश करो प्रकट कर रहे है। ावतुतः श परीधिाी की सभी ावतुएँ अपार सूरी्ी ज्रोधत से पररपूार है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 130 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस ससघासस ऊपर, बैठे ुगल मकसरोर। ावतर भूखस ससिससगार, सुन्दर रोत अधत रोर।।१८१८८।। इस ससहासस के ऊपर ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी मारा ीास है। उसके ास, आभूषा, तका सम्पूार श्रृँगार बहुत अधधिक सुन्दर ज्रोधत से ओत-प्ररोत है। एक रोत ुगल की, और बीच बैठे ससघासस। बल बल ाऊं ीुखारपबद की, और बखल बखल ाऊं चरस।।१८१८९।। ससहासस पर श्री रा श्ाीा ी मारा ीास है। उसके वारप से मसकलती हुई ज्रोधत आपस ीे एकाकार हरो ग्ी है। ीै इस दरोसय के ीुखारमान्द तका चराय की शरोभा पर बारम्बार वा्ं करो न््रोछाार करती हूँ। भाााकर - इस चौपाई के पहले चरा का भाा ्ह है मक दरोसय वारपय की सूरी्ी ज्रोधत ऐसी मदखाई पड रही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 131 / 992 श्री सागर टीका है, श्री रा स वााीी स ै े एक ही वारप मारा ीास है। दस ू रे शब्दय ीे ऐसे भी कह सकते है मक दरोसय ीे एक ही वारप है। "अन्तर पट खरोल देखखए, दरोऊ आात एक स र" (सागर ६/३१८) का ककस इस तर् करो वपष्ट करता है। कहा कहूं रोत रहस की, और सीूह भूखस ावतर। ए कही रोत पूरस ससधि की, रो अव्ाल सूर सागर।।१८२०।। ब्सृमष्ट्य के वारप तका उसके ासय एां आभूषाय से मसकलसे ााली ज्रोधत के माष् ीे ीै क्ा कहूँ ? ावतुतः श सखख्य ीे मदखसे ााली ्ह ज्रोधत तरो उस पूाारधतपूार सागर की है, ससि से पहला सागर "सूर का सागर" कहा ग्ा है। भाााकर - श्रृंगार गन्क २०/३६ ीे वपष्ट रप से कहा ग्ा हैप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 132 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो गुस महरदे अंदर, सरो ीुख देखे ासे ाए। ऊपर सागरता पूरस, ताके मदल की सब देखाए।। अकरातीत के हद् ीे रो कुछ भी प्रेी (इशक), आसन्द, ञास (इली), ीूल सम्बन्धि (मसवबत) आमद है, ाह ही ीुखारमान्द पर सूर सागर के रप ीे प्रकट है। श्री रा ी के हद् का प्रेी ही उसके ीुखारमान्द पर शरोभा, सौन्द्र , कासन्त, आकषर ा आमद के रप ीे प्रकट हरोता है। अकरातीत का हद् परी सत् (ीाररफत) का सागर है। उसका प्रकट सत् रप (हकीकत) सार प्रकी उसके ीुखारमान्द पर सूर के रप ीे दमष्टगरोचर हरोता है। ्ही कारा है मक सूर सागर करो इस चौपाई ीे प्रकी (अव्ाल) सागर कहा ग्ा है। इस सूर सागर ीे अन्् सागर णछपे हरोते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 133 / 992 श्री सागर टीका श्री रा श्री रा स वााीी ी के सूर के वारप ीे असन्त सूर का रो पासी ससिझलमीलाता है, ाह सीर सागर है। उसके सूर के वारप ीे रो असन्त उजालता है, ाह कीर सागर है। अकरातीत के सूर के वारप ीे रो प्रेी रस की शीतल दमष्ट है, उसीे अपार आसन्द की शीतलता का रो सागर है, ाह दधधि सागर है। श्री रा ी के ाहदत वारप ीे रो असन्त सूर का प्रकाश है, ाह घृत सागर है। मप्र्ती अकरातीत के सूर के वारप ीे सख से णशख तक सभी अंगय ीे अीृत से भी कररोडय गुसा अधधिक रो मीठास है, ाह ीधिु (इली) सागर है। श्री रा ी के हद् ीे अपसी आतीाओं करो असन्त प्रकार से लाड-प््ार करसे का रो अपार सागर है, ाह रस सागर है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 134 / 992 श्री सागर टीका प्रााालभ श्री रा श्री रा स वााीी ी के मदल और सूरी्ी से्य ीे असन्त ीेहर और लाड-प््ार का रो सीु् है, ाह ीेहर का (सार रस) सागर है। ए सागर भर पूरस, ते रोत करो गं । कई इस सागर लेहेरे उठे , पूरस सूर करो पुं ।।१८२१८।। ्ह सूर का सागर वा्ं ीे पूार है। ते और ज्रोधत का असन्त भणडार है। इस पूाारधतपूार सूर के सागर से असन्त लहरय के सीास प्रेी और आसन्द की असंख् लीलाओं का प्रकटस हरोता रहता है। भाााकर - ससि स प्रकार अकाह सीु् से असंख् लहरे उठती रहती है, उसी प्रकार सूर के वारप श्री रा ी से ही प्रेी और आसन्द की लीला्े प्रकट हरोती है। लीला रप ीे उससे ही श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी , सखख्ाँ, अकर ब्, 135 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीहालकीी, खूब-खश ु ाखल्ाँ, और परीधिाी के २५ पक है। ्ही कारा है मक सभी का वारप सूरी्ी है। इस प्रकार परीधिाी की सम्पूार शरोभा, लीला, और आसन्द के केन्् ीे श्री रा ी का सूरी्ी वारप है , रो उसके मदल का ही प्रकट रप है। ्ही कारा है मक चौपाई १८२० तका १८२१८ ीे सूर सागर के खल्े "पूरस" शब्द का प्र्रोग मक्ा ग्ा है। ीहाीत कहे ससधि दस ू रा, सरोभा सरप रहस। ए सुखकारी अधत सुन्दर, ए बका ातस बीच तस।।१८२२।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक सूर के सागर के बाद दस ू रा सागर ब्सृमष्ट्य की शरोभा का है। अखणड परीधिाी ीे सखख्य के रो ीूल तस है , उसकी शरोभा का ्ह सागर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 136 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बहुत ही सुन्दर है और आसन्द देसे ााला है। प्रकरा ।।१८।। चौपाई ।।१८२२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 137 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर दस ू रा रहय की शरोभा ससि स प्रकार ीरोती आमद ीे पासी हरोता है , उसी प्रकार श्री रा ी के सूर के वारप ीे असन्त सूर का रो पासी ससिझलमीलाता है, उसे सीर सागर कहते है। इसे इस प्रकार भी कहा ा सकता है मक श्री रा वारपा सखख्य के ीुख ीे ी की ाहदत रो सूर का पासी है , ाह ही रहय की शरोभा है और उसे ही (रहय की शरोभा का सागर) कहा ग्ा है। ससि स प्रकार श्री रा ी के मदल ीे और बा् सूरी्ी वारप ीे आठय सागर सीा्े है , उसी प्रकार पराती के मदल ीे भी आठय सागर है। इस ीा्ााी गत ीे आ्ी हुई आतीा मकस प्रकार अपसे प्रााालभ करो प्राप करती है , उस ीागर करो आठ भागय ीे बाँटा ग्ा है , ससि से आठ सागर कहते है। ्े प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 138 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आठय सागर आती- ागधत के आठ सरोपास (सीमढ़्ाँ) है, ससि सका ाार स संकेप ीे इस प्रकार हैपराती के मस वारप ीे हाँ ाह पूार ागधत की अावका ीे मारा ीास है , ाह मससबत का सागर है। पराती की ागत अावका ीे ररोी -ररोी ीे रो अकाह इशक भरा है, ाह सार रस सागर है और रा वारप है। इसीे ीेहर का असन्त अशर मदल ीे ी का ल भरा हुआ है। रो वाप्साावका है, ाह सीर सागर है। ्ष्टव््- पराती की स र श्री रा संसार ीे आ्ी है , ी के हुकी से इस रो आतीा कहलाती है। इस प्रकार ाह पराती का प्रधतमबम्ब वारप कही ऐसी कही ीरोमीसय की , ाती है। "ससिसफत ाके अकस का मदल असर " (ससिससगार २१८/८१८) का ्ह ककस इसी सन्दभर ीे ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 139 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पराती का मदल ीाररफत का वारप है तका उसकी स र हकीकत का वारप है। ्ह तरो वपष्ट है मक रो कुछ भी पराती के मदल ीे हरोगा, ाह प्रधतमबम्ब रप से आतीा के मदल ीे भी हरोगा, क्यमक ससिससगार १८१८/९ ीे कहा ग्ा है मक "असर तस मदल ीे ए मदल, मदल अन्तर पट कछू साहे।" इस प्रकार ्ह मसधशत है मक दरोसय का मदल वाप्स से ुडा हुआ है, अन्तर केाल इतसा ही है मक पराती का मदल वाप्स करो देख रहा है तका ागत हरोसे से पूार आतीा का मदल वाप्स ीे डू बा हरोता है। पराती के मदल ीे तरो ाहदत के सम्बन्धि से आठय सागर अखणड रप से मारा ीास है ही, मकन्तु ्हाँ प्रसंग इस बात का है मक आतीा ्गु ल वारप के ध््ास (धचतामस) दारा मकस प्रकार अपसे मदल करो अशर कहलासे की कसौटी पर खरा ससिसद करती है और अकरातीत (सार रस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 140 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर) करो प्राप करती है। आतीा के खल्े वाप्स से परे हरोसे का ्ही असन्ती सरोपास है। आतीा वा्ं करो सीर सागर ीे पाती है , अकारत् ब ाह धिसी से मीलसे की चाहसा (प्राकर सा) करती है तरो धिाी धिसी उसे अपसी ीेहर से कौल (ककसी रप ञास) रपी शरोभा देते है। उस कौल से ब ाह फैल (करसी) अकारत् धिसी के ध््ास ीे लगसे लगती है , तरो ाह श्री रा ी से अपसा मदल रोडकर कीर सागर करो प्राप हरोती है। फैल से हाल (रहसी) ीे आसा दधधि सागर ीे आसा है , अकारत् अपसे गुा, अंग, इसन्््य करो ीतकर ्गु ल वारप की शरोभा करो बसासे के खल्े मारह ीे डू ब मारह के दारा श्री रा ी का बा् सूरी्ी वारप आतीा के धिाी मदल ीे अातररत हरो सागर ीे पहुँचसा कहते है। श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ासा। ाता है , इसे सूर ी के बा् सूरी्ी 141 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वारप करो मदल ीे बसासे के पशात् आतीा धिसी के गं ासगं इशक के बाधतसी (गु्) वारप करो प्राप करती है। इसे सूर सागर से घृत सागर ीे प्राेश करसा कहते है। इशक से धिसी का बेशक इली प्राप हरोता है। इसे ीधिु सागर की प्रामप कहते है। इली रपी इशक के सागर से आतीा अपसे ीूल वारप का दीदार करती है, ससि से मसवबत का सागर (रस सागर) कहते है। अब अपसी ीूल पराती का श्रृँगार लेकर आतीा अपसे प्राा मप्र्ती करो पा लेती है, ससि से सार रस सागर (ीेहर का सागर) कहते है। इस प्रकार आतीा सीर सागर से चलकर सभी सागरय से हरोते हुए ीूल मीलााा ीे मारा ीास ीूल वारप श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 142 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ी करो प्राप कर लेती है। हक बैठे रहय मीलाए के, खेल देखाास का । बडी भई रदबदल, रहे बडी रह सय रा ।।१८।। ीूल मीलााे ीे श्री रा ी अपसी अँगसाओं करो ीा्ा का खेल मदखासे के खल्े साक ीे लेकर बैठे है। श्री रा ी का श्ाीा ी और सखख्य के साक इशक के सम्बन्धि ीे बहुत अधधिक ाातारलाप हुआ। देखस खेल ुदागी् का, मदल ीे खल्ा रहस। हक आप बैठे तखत पर, खेल रहय करो देखाास।।२।। सखख्य से अपसे ीस ीे ्ह बात ले ली मक हीे ीा्ा का ाह खेल देखसा ही है, ससि सीे मा्रोग ( ुदा्गी) की लीला हरोती है। उसकी इच्छा पूार करसे के खल्े वा्ं श्री प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 143 / 992 श्री सागर टीका रा श्री रा स वााीी ी ीूल मीलााे ीे ससहासस पर मारा ीास हरो ग्े। देहेसत सबय ुदागी् की, पर खेल देखस की चाह। देखे पातसाही हक की, देखे इवक बडा मकस का।।३।। सभी सखख्य के ीस ीे श्री रा एक-दस ू रे से अलग हरो ी से तका आपस ीे ासे का डर तरो का, मकन्तु ीा्ा का खेल देखसे की प्रबल इच्छा भी की। ाे धिाी धिसी की प्रभुता (बादशाही) करो देखसा चाहती की। ाे ्ह भी ाससा चाहती कीप मक मकसका इशक बडा है - हीारा, श्ाीा एह ी का, ्ा श्री रा रोत रो ी का? रोत ीे, बैमठ्ां ज्य सब मील। क्य कहूं सरोभा इस ुबां, बीच सुन्दर रोत ुगल।।४।। सभी सखख्ाँ ीूल मीलााा ीे इस प्रकार मीलकर बैठी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 144 / 992 श्री सागर टीका हुई है, श्री रा स वााीी स ै े ज्रोधत ीे ज्रोधत सवकत हरो। सुन्दरसाक के बीच ीे मारा ीास सूरी्ी ज्रोधत ााले ्गु ल वारप की छमा इतसी असुपी है मक उसका ाार स करसा इस ससि िहा से सम्भा सहीप है। भाााकर - ीूल मीलााा ज्रोधतीर ् है और सखख्य का वारप भी ज्रोधतीर ् है, इसखल्े ीूल मीलााा ीे बैठी हुई सखख्य करो "ज्रोधत ीे ज्रोधत" कहकर ारात मक्ा ग्ा है। सुन्दर साक भराए के, बैमठ्ां सरप एक हरोए। ्य सबे महल मील रहीप, सरप कहे स ााे दरोए।।५।। सभी सुन्दरसाक (सखख्ाँ) सम्पूार चबूतरे पर एक वारप हरोकर बैठे है। सभी आपस ीे इस प्रकार सटसट कर बैठी है मक करोई ्ह कह ही सहीप सकता मक दरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 145 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वारप (व््मक) बैठे है। भाााकर - कुछ मादासय के ककसासुसार ीूल मीलााे के चबूतरे के चार भाग है। ससहासस से चारय दराा य के साीसे रावते है, रो खाली है, और सखख्ाँ भी तीस हारय ीे बैठी हुई है। ्मद सखख्य करो गले ीे बाँहे डालकर भी बैठा्ा ा्े, तरो भी इस ककस के असुसार १८२ वारप बस ा्ेगे, रो श्रीीुखाााी करो वाीकार सहीप है। इस प्रकरा की चौपाई ५,६,९ और १८३ ीे ्ह वपष्ट उलेख है मक सभी सखख्ाँ एक वारप हरोकर बैठी है। ्ह तभी सम्भा है, ब चार रावतय और तीस हारय का बन्धिस स हरो। एक सरप हरोए बैमठ्ां, ीाहे ावतरय कई रंग। क्य ए बरसस हरोाहीप, रंग रंग ीे कई तरंग।।६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 146 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सभी सखख्ाँ एक वारप हरोकर बैठी है। उसके ासय के असेक रंग है तका एक-एक रंग से प्रकाश की असेक रंगय की मकराे मसकलती है। भला इसकी शरोभा का ाार स कैसे हरो सकता है? भाााकर - ससि स प्रकार इस संसार ीे प्रकाश के शेत रंग से सात प्रकार की मकराे मसकलती है , उसी प्रकार परीधिाी के एक-एक रंग से असन्त प्रकार की मकराे मसकलती है। देखरो अंतर आं खे खरोल के, तरो आाे स रय मााेक। बरसस सा हरोाे एक करो, गलगल सय लगी असेक।।७।। हे साक ी! ्मद आप अपसी आसतीक दमष्ट से देखे तरो आपकी ञास दमष्ट ीे ्ह मााेक ागत हरो ा्ेगा मक सभी सखख्ाँ आपस ीे इस प्रकार गले खलपट कर बैठी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 147 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है मक उसीे से मकसी एक की शरोभा का ाार स सहीप हरो सकता। भाााकर - आती-दमष्ट से देखा दमष्ट से ासा ाता है , बमक ञास- ाता है। पढ़कर बुधद दारा रो ञास-दमष्ट प्राप हरोती है , उससे परी मााेक प्राप सहीप हरोता। उसे प्राप करसे के खल्े तरो आती -दमष्ट से असुभा मक्ा हुआ ञास चामहए। इस चौपाई से ्ह वपष्ट हरोता है मक ्मद सखख्य के बीच करोडी भी दरू ी हरोती, तरो मकसी एक की शरोभा का ाार स हरो एक सागर क्रो ते ासा सम्भा का। रोत करो, द ू रो सरोभा सुन्दर। कई तरंग उठे इस रंगय के, खरोल देखरो आँ ख अंदर।।८।। ते -ज्रोधत के सागर सूर सागर का पहले ाार स हरो चुका है। ्ह दस ू रा सागर सखख्य के सौन्द्र की शरोभा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 148 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का सागर है। हे साक ी! ्मद आप अपसे आसतीक चकुओं से देखे तरो ऐसा लगेगा , स ै े उस ज्रोधत के भणडार से मसकलसे ााले रंगय की तरंगे उठ रही है। ए ीेला बैठा एक हरोए के, रहे एक द ू ी करो लाग। आाे सा मसकसे इतके, बीच हाक स अंगुरी ीाग।।९।। सखख्य का ्ह सीूह एक वारप हरोकर बैठा है। सभी आपस ीे एक-दस ू रे से इस प्रकार सट-सट कर बैठी है मक करोई भी उसके बीच ीे स तरो आ सकता है और स उसके बीच से मसकल सकता है। ्हाँ तक मक अँगुली भी घुसासे की गह सहीप है। भाााकर - इस चौपाई से ्े प्रश उपसवकत हरोते है१८. ्मद बाहर से करोई भी ीूल मीलााे ीे सहीप सकता, तरो ीेअरा ा के सी् अकर ब् की आतीा से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 149 / 992 श्री सागर टीका श्री रा श्री रा स वााीी ी से ९०००० हरफ बाते कैसे की, बमक उस दरोसय के बीच "दरो गरोसे कीास" की दरू ी की? धिसुष के दरोसय करोसय के बीच की दरू ी करो "गरोसा" कहते है। २. णभन्न-णभन्न परीहंसय से तीस हारय एां चार खाली रावतय का ाार स क्य मक्ा है? ३. क्ा ्ह सम्भा सहीप है मक तीस हारय और चार रावतय के बीच तरो खाली गह है , मकन्तु सखख्ाँ हाँ बारह भागय ीे बैठी है , ाहाँ पर अंगुली भी घुसासे की गह सहीप है? ४. ्ह भी हरो सकता है मक ससि स प्रकार आँ खय का तारा हरोसे, मदल का टु कडा हरोसे, चराय ीे बैठसे , तसीस ीे आग लग ासे , तका मदल के फट सभी बाते अलंकारी्ी भाषा ीे कही ासे आमद की ाती है , उसी प्रकार सखख्य के बीच अँगुली स घुस पासे की बात भी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 150 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आलंकाररक भाषा ीे कही ग्ी हरो। इसका ीूल भाा ्ह है मक ाहदत ीे सभी सखख्य का वारप सीास है , इसखल्े सबकरो "एक वारप" कहकर ारात मक्ा ग्ा है। ाे धिाी धिसी का इशक तका बादशाही करो देखसे बैठी है। उसकी इस इच्छा ीे अन्् मकसी ावतु का प्राेश सहीप है, ससि सके कारा अँगुली भी स आ पासे की बात कही ग्ी है। ऐसा ाहदत के कारा ही है, ससि सीे सभी की एक ही इच्छा हरोती है। धिाी धिसी की कृपा से इस प्रशय के सीाधिास ीे ीेरे दारा अपसी अलप बुधद से इतसा ही कहा १८. वकूल ा सकता है- ड पदाकर से वकूल पदाकर टकराता है। ब परीधिाी ीे प्रत्ेक ावतु अकरातीत का ही वारप है , तरो ीेअरा के सी् अकर ब् की आतीा के सखख्य प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 151 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के तसय से टकरासे का प्रश ही सहीप हरोता , क्यमक सभी के शरीर सूकी अधत सूकी, चेतस, सूरी्ी, एां ब्रप है। "कही सूछी सूरत अीरद की" (ससिससगार ६/५) और "सूच्छी ा् उसीद अंगे" (सागर ६/१८१८४) का ककस इसी तर् की ओर संकेत करता है। परीहंस ीहारा श्री ्गु लदास ी दारा रधचत रसासन्द सागर ीे वपष्ट कहा ग्ा है मक ब श्री रा तखतरााँ पर बैठकर सागर आमद की सैर करो ीीस के ासार भी अपसे ीाशूक श्री रा ी ाते है, तरो ी के दीदार के खल्े दौड पडते है। उसकी राह ीे चाहे ीाणाक पहाड हरो, ्ा पुखरा झुक ाते है और उसकी ऊँचाई ीा् के बराबर ही रह ाे पुसः श हरो, ्ा २४ हाँस का ीहल हरो, सभी ाती है। ीीस की ऊँचाई ासारय के गु र ासे के बाद स ै े के तैसे मदखा्ी देसे लगते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ब ही 152 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वाप्स देखते है, तरो हीारा वकूल शरीर कीरे ीे अधिर मसम्त अावका ीे पडा रहता है , बमक हीारे ीस की तरंगे हीारे शरीर का हू -ब-हू (्काकर ) रप धिारा कर कहीप ऐसी गह पर भी पहुँच ाती है , हाँ पर दराा े और खखडमक्ाँ तक बन्द हरोते है। अकर ब् की ीूल पराती तरो अकर धिाी ीे है। उसकी सुरता (आतीा) ही अरब ीे आती है और उसकी आसतीक दमष्ट अपसी पराती का श्रृँगार स कर ीूल मीलााा ीे ाती है। ऐसी सवकधत ीे उसका सखख्य के तसय से टकरासे का प्रश ही सहीप हरोता। २- पररक्रीा २८/८ ीे कहा ग्ा हैधिसी इसय के कारसे, सरप धिरे कई कररोर। ले मदल चाह्ा दरसस, ऐसे आससिसक हक के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रोर।। 153 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब धिाी धिसी पशु-पधक्य की इच्छा पूरी करसे के खल्े कररोडय रप धिारा कर उसके वकास पर ही उन्हे दशर स दे देते है, तरो ब्ातीाओं की इच्छासुसार तीस हारय ीे भी ीूल मीलााा का दश् मदखा्ी दे सकता है। परीधिाी की लीला, शरोभा, एां गासा करो इस संसार के ीासकय (ीापदणडय) के आधिार पर त् सहीप मक्ा ा सकता। "कई करोट पाग बसे पल ीे " (सागर ८/४८) का ककस ्ह ससिसद करसे के खल्े प्ारप है मक श्री रा ी के श्रृँगार ीे लौमकक ीापदणड सहीप अपसा्ा ाता। उन्हे मकसी भी श्रृँगार माशेष के बन्धिस ीे बाँधिसा असम्भा है। अकर ब् करो पाँच ाषर के बालक स ै ा तका ीहालकीी ी करो तीस ाषर की बाखलका की अावका ााला कहा ासा श्रीीुखाााी के पूारत्ा मापरीत है। इस प्रकार का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 154 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ककस लकाय के असुसार तरो ठीक है , मकन्तु अावका के असुसार कदामप ठीक सहीप है। तारती ाााी के असुसार परीधिाी ीे सभी की शरोभा मकशरोर है। ऐसी अावका ीे मकसी भी व््मक का ककस श्रीीुखाााी से श्रेष सहीप हरो सकता है। ावतुतः श पूज् परीहंसय से ञास की अपेका प्रेी भाा करो अधधिक प्राकमीकता दी है। ्मद उसकी भाासा सखख्य करो तीस हारय ीे देखसे की रही हरो , तरो उसकरो उसी सवकधत ीे दीदार हरो सकता है। ाहाँ मकसी भी लौमकक ससिसदान्त की सीीा-रेखा सहीप खीपची श्रीीुखाााी ीे ्गु ल वारप का ा सकती। रो श्रृँगार ारात है , उसीे गु रात , रा वकास, तका ससिसन्धि के ासय एां आभूषाय की छाप अधधिक है। ऐसा इसखल्े है , क्यमक श्री मीमहररा ी के ीा का शरीर इन्हीप भागय के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 155 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी संवकारय ीे पला -बढ़ा का। उसके ीा ीे स ै ी भाासा की, उसके असुसार ही धिाी धिसी से अपसा वारप दशार्ा। क्ा अकरातीत उ.प्र., मबहार, असी, और दधका भारत ाालय के सहीप है ? इसी प्रकार की लीला परीहंस ीहारा श्री ्गु लदास ी के साक भी हुई है। ३. इस संसार ीे बैठसे का एक माधिास हरोता है , ससि सके असुसार भााय ीे भरकर ्मद मकसी ब्ातीा से तीस हारय के आधिार पर धचतामस की है, तरो उस रप ीे दशर स हरोसा करोई आश्र की बात सहीप, मकन्तु श्रीीुखाााी ीे तीस हारय का ाार स सहीप है। ्मद ससहासस पर श्री रा श्ाीा ी के मारा ीास हरोसे पर ्गु ल वारप कहा ाता है, तरो १८२००० सखख्य के एक वकास ीे बैठसे पर "एक वारप" कहे ासे का क्ा औधचत् है? इस प्रकरा की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 156 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चौपाई ५,६ ीे "एक वारप" तरो कहा ही ग्ा है, ्ह भी कहा ग्ा है मक "सरप कहे स ााे दरोए।" असामद काल से ाहदत ीे सबकी शरोभा एक सीास रही है। मफर भी ्ह क्य कहा ग्ा है मक "एक सरप हरोए बैमठ्ाँ?" सभी के एकसाक सटकर बैठसे के कारा ही इस बैठक करो माशेष कहा ग्ा है। इस प्रकरा की चौपाई १८३,१८४ ीे कहा ग्ा है मक "मील कर बैमठ्ां एक हरोए, बडी अचर बैठक ए" तका "कबूं स बैमठ्ां ्य कर", ससि ससे ्ह वपष्ट है मक गले ीे बाँहे डालकर एकसाक बैठसे से ही "एक वारप" कहा ग्ा है। इस सम्बन्धि ीे चौपाई २५ और ३०, तका प्रकरा १८१८/१८-२२ भी देखसे ्रोग् है। ४. ्दमप अँगुली स घुस पासे का ककस भी उपीा अलंकार के अन्तगर त ही है, मकन्तु इसका ्ह अकर है मक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 157 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सखख्ाँ मबलकुल सट-सट कर बैठी है, ससि सके बीच से अँगुली ैसी पतली ावतु भी सहीप मसकल सकती। अलंकार के साी से उन्हे दरू -दरू सहीप बैठा्ा ा सकता। खेल देखसे की सबकी सीास इच्छा हरोसे के कारा भी सबकरो "एक वारप" सहीप कहा एकीत ााला अाश् कहा ा सकता। हाँ ! उन्हे ा सकता है। अकरातीत की ब्ाााी का ाावतमाक आश् केाल अकरातीत ही ासते है। ही सभी सुन्दरसाक का ्ह सैधतक उतरदाध्ता है मक ाैचाररक ीतभेद की सवकधत ीे ही अपसे माचारय करो बलात् मकसी पर स करोपे और वा्ं करो ञास के सागर ीे एक बूँद ीासते हुए ्काकर ञास के प्रकाश के खल्े धिाी धिसी के चराय ीे प्राकर सा करे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 158 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मगरदााए तखत के, कई बैमठ्ां तले चरस। ासय ससि स हरोाे ुमद्ां, पकड रहे ही सरस।।१८०।। सभी सखख्ाँ श्री रा ी के चराय ीे ससहासस के चारय ओर बैठी हुई है। ाे अपसे ीस ीे ्ही बात सरोच रही है मक ही धिाी धिसी की शरा ीे ही रहे , तामक उसके चराय से दरू स हरो सके। चबूतरे लग कठे डा, रमह्ां चारय तरफय भराए। ज्य मील बैमठ्ां बीच ीे, ्य ही बैमठ्ां मगरदााए।।१८१८।। सखख्ाँ ससहासस के चारय ओर चबूतरे पर कठे डे तक भरकर बैठी है। ससि स प्रकार ाे ीध्् ीे सवकत ससहासस के पास बैठी है, उसी तरह चबूतरे की मकसार पर भी चारय ओर बैठी है। भाााकर - सम्पूार श्रीीुखाााी ीे ससहासस के पास से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 159 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लेकर कठे डे तक सखख्य के भरकर बैठसे की बात कही ग्ी है, मकन्तु तीस हारय का ाार स सहीप है। एक द ू ी करो अंक भर, लग रमह्ां अंगय अंग। मदल ीे खेल देखस का, है सबय अंगय उछरंग।।१८२।। सभी सखख्ाँ एक-दस ू रे के गले ीे बाँहे डालकर सटसटकर (अंग से अंग लगाकर) बैठी हुई है। उस सभी के मदल ीे ीा्ा का खेल देखसे के खल्े बहुत अधधिक उतसाह है। ासे ससि स करोई ुदी पडे, ए डर मदल ीे ले। मील कर बैमठ्ां एक हरोए, बडी अचर बैठक ए।।१८३।। उसके मदल ीे इस बात का डर सीा ग्ा है मक कहीप ही आपस ीे तका धिाी धिसी के चराय से अलग स हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 160 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ा्े, इसखल्े ाे सभी मीलकर इस प्रकार बैठ ग्ी है , स ै े एक ही वारप हय। उसकी ्ह बैठक बहुत ही आश्र ीे डालसे ााली है। ्ष्टव््- इस चौपाई के तीसरे चरा ीे कणकत "एक हरोए" का तातप्र "एकीत हरोकर" सहीप, बसलक सट सटकर बैठसे के कारा "एक वारप" हरोसे से है। ्हाँ अलग हरो ासे के डर का प्रसंग है, इसखल्े अकर "बैठसे" के सन्दभर ीे मक्ा ा्ेगा। अतंत सरोभा लेत है, कबूं सा बैमठ्ां ्य कर। ्य बैमठ्ां भर चबूतरे, द ू ा सरोभा अधत सागर।।१८४।। सखख्ाँ इस तरह से आ मदस तक कभी भी सहीप बैठीप। ाे सम्पूार चबूतरे पर भरकर बैठी है और उसकी असन्त शरोभा हरो रही है। उसकी ्ह असन्त शरोभा ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 161 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दस ू रा सागर है। ीाहे ऊँची सीची करोई सहीप, सब बैमठ्ां बराबर। अंग सकल उींग ीे, खेल देखस करो चाह कर।।१८५।। ाहदत के कारा सभी सखख्य का वारप सीास है। ्ही कारा है मक उसकी बैठक ीे करोई भी ऊँची -सीची सहीप है, बसलक सभी सीास है। ीा्ा का खेल देखसे की चाहसा से उसके सभी अंगय ीे उींग (उतसाह) भरा हुआ है। सरोभा सुन्दरता अधत बडी, हक बडी रह अरााहे। ए सरोभा सागर दस ू रा, ीुख कह्रो स ाए ुबांए।।१८६।। श्री रा श्ाीा ी और सखख्य के सौन्द्र की शरोभा बहुत अधधिक (असन्त) है, ससि सका ाार स ्हाँ के ीुख प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 162 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और ससि िहा से सहीप हरो सकता। सखख्य की शरोभा का ्ह सागर दस ू रा सागर कहा असर अरााहय ीुख की, ाता है। ुबां कहा करे बरसस। सैस श्रास ीुख साससिसका, सरोभा सुन्दर अधत घस।।१८७।। परीधिाी की ब्सृमष्ट्य के ीुख की शरोभा का ाार स भला ्हाँ की ससि िहा कैसे कर सकती है? असन्त शरोभा करो धिारा मक्े हुए उसके से्, कास, ीुख, और साससिसका बहुत अधधिक सुन्दर है। गौर रंग लालक खलए, सरोभा सुन्दरता अपार। रो एक अंग बरसस करँ, ााकरो भी स आाे पार।।१८८।। सखख्य का रंग लाखलीा खल्े हुए अत्धधिक गौर रंग का है। उसकी शरोभा और सुन्दरता असन्त है। ्मद ीै उसके प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 163 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकसी एक अंग के भी सौन्द्र का ाार स करँ , तरो भी उसका पूार ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। भाााकर - परीधिाी के गौर ाार करो इस ीा्ााी गत का गौर ाार सहीप सीझसा चामहए। दरोसय ीे धिरती आकाश का अन्तर है। परीधिाी का गौर ाार सूरी्ी है। ाहाँ के एक-एक का के ते ा्ेगे, ीे कररोडय सू्र णछप बमक इस संसार का गौर ाार उस पञभूतातीक शरीर का है रो हडी, ीाँस, ा ील-ीू् से भरा हरोता है। ीुख चौक छमब की क्य कहू,ं सरोभा हराटी दंत अधिूर। बीच लांक ीुसकसी कहां लग, केहे केहे कहूं ीुख सूर।।१८९।। अधत सुन्दर ठु डी, दाँत, और हयठय से ्क ु सखख्य के ीुखारमान्द की शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ ? ीुवकराते सी् दरोसय हयठय की अलौमकक शरोभा से ्क ु ीुख के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 164 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सूर करो ीै कहाँ तक कहकर ाार स करँ? भाााकर - साससिसका, हयठ, दाँत, और ठु डी का सम्पूार भाग ीुख का चौक कहलाता है। इसकी शरोभा करो गालय के साक मीलाकर ारात मक्ा साडी चरोली चरसी, कई ाता है। डाा रंग झलकार। ाेर केते कहू,ं सरोभा सागर सुखकार।।२०।। सखख्य के दारा धिारा की ग्ी साडी , चरोली, एां पेटीकरोट ीे डे हुए असेक रंगय के ााहरात झलझला रहे है। ्ह शरोभा सीु् के सीास है , रो हद् करो आसन्द देसे ााली है। इसका ाार स कैसे मक्ा रहे बैठी महल मील के, ्ाके ुदे ा्े ? ुदे ावतर। केते रंग कहूं सामड्य, मसपट बैमठ्ां मील कर।।२१८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 165 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्दमप सखख्ाँ आपस ीे महलमील कर बैठी है , मकन्तु उसके ासय का रंग अलग-अलग है। उसकी सामड्य के रंग इतसे अधधिक है मक ीै उसीे से मकतसे रंगय का ाार स करँ? ाे आपस ीे पूार रप से सट-सटकर बैठी है। कई साडी रंग सेत की, कई साडी रंग सीली। कई साडी रंग लाल है, कई साडी रंग पीली।।२२।। कई सामड्य का रंग सफेद है , तरो कई का सीला। कई सामड्ाँ लाल रंग की है, तरो कइ्य का रंग पीला भी है। एक लाल ीाहे कई रंग, और कई रंग सीली ीाहे। कई रंग पीली कई सेत ीे, कई रंग क्य कहूं ुबांए।।२३।। लाल रंग ााली सामड्य ीे असेक रंग णछपे हुए है। इसी प्रकार सीले रंग की साडी ीे बहुत रंग णछपे पडे है। पीले प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 166 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और शेत रंग की सामड्य ीे भी कई रंग णछपे हुए है। सामड्य ीे इतसे रंग है मक ीै उसका ाार स ्हाँ की ससि िहा से कैसे करँ? ीै साी लेत रंगय के, कहूं केते लाल ीाहे एक। एक साी सीला कहू,ं ीाहे सीले रंग असेक।।२४।। ्मद ीै सामड्य के रंगय का साी लेसा प्रारम्भ करँ , तरो एक ही लाल रंग ीे असेक प्रकार के लाल रंग मसकल आते है। इसी प्रकार ्मद ीै सीले रंग का ाार स करसा चाहूँ, तरो उसीे भी बहुत से सीले रंग मसकल आते है। भाााकर - ब इस संसार ीे एक -एक रंग ीे असेक प्रकार के भेद (shade) हरोते है, तरो परीधिाी के रंगय के माष् ीे क्ा कहसा? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 167 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस मबधि कई रंग ावतरय, ए बरन््रो क्य धतसीे भी ाए। ुमद्ां सहीप, सब बैमठ्ां अंग मीलाए।।२५।। इस प्रकार ासय के बहुत से रंग है तका सखख्ाँ भी आपस ीे अंग से अंग मीलाकर इस प्रकार बैठी है मक उसीे से करोई भी एक -दस ू रे से अलग सहीप है। ऐसी सवकधत ीे उसके ासय का ाार स करसा कैसे सम्भा है? असेक रंगय सामड्ां, ीाहे कई मबररख बेली पात। फल फूल सकस कटाा कई, ताके बरन््रो स ात।।२६।। असेक रंगय की सामड्ाँ है , ससि सीे कई प्रकार के ाृकय, लताओं, पखत्य, फलय, फूलय, आमद के बेल -बूटे अंमकत है। ्ही कारा है मक उसका ्काकर रप ीे ाार स सहीप हरो पाता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 168 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कई रंग कहूं ावतरय, के कहूं ाेरय रंग। इस मबधि रंग असेक है, ताके उठे कई तरंग।।२७।। ीै ासय के असेक रंगय का ाार स करँ ्ा ााहरातय के रंगय का ाार स करँ ? परीधिाी के ीूल मीलााा ीे मारा ीास सखख्य के ासय एां उसीे डे हुए ााहरातय के असेक (असन्त) रंग है, ससि ससे कई (असन्त) प्रकार की तरंगे मसकलती रहती है। ्ष्टव््- मकसी दीपक ्ा बलब के चारय ओर ध््ास से देखसे पर एक आभाीणडल मदखता है। उसीे प्रकाश की सूकी मकराय के सीूह का आभास हरोता है। उसीे ्ह असुभा मक्ा ाता है मक असेक रंगय की तरंगे मकस प्रकार प्राामहत हरोती है? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 169 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कई मकरसे उठे कंचस की, कई मकरसे हीरस। पाच पांसे ीरोती ीामसक, मकरसे ाए स कही ाेरस।।२८।। सखख्य के ासय और आभूषाय ीे डे हुए कञस और हीरे से असंख्य मकराे उठा करती है। इसी प्रकार पाच, पन्ना, ीरोती, ीाणाक आमद ााहरातय से भी इतसी अधधिक (असन्त) मकराे उठती है मक उसका ाार स सहीप हरो सकता। सरो मकरसे लगे ाए ऊपर, और दार मदाालय कंभस। आाे उतके मकरसे सामी्ां, ीाहय ीाहे गं करे ररोसस।।२९।। ्े मकराे ऊपर चन््ाा से टकराती है। ्हाँ तक मक ाे इस गरोल हाेली के ीसन्दरय के दराा य , दीाारय, और कम्भय से भी टकराती है। पुसः श ाापस लौटकर उठसे ााली स्ी मकराय से ब टकराती है , तरो ऐसा प्रतीत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 170 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हरोता है मक ाे ्द ु कर रही है। इस प्रकार ाहाँ अलौमकक प्रकाश सुशरोणभत हरोता है। और चरोली रो चरमस्ां, सब अंग ीे रहे सीाए। बरसस स हरोए एक अंग करो, ताीे बैमठ्ां सब लपटाए।।३०।। सखख्य की चरोली तका पेटीकरोट भी उसके अंगय से एकरप हरो रही है, ससि ससे उसके मकसी एक अंग का भी ्काकर ाार स करसा सम्भा सहीप है। इसके अधतररक सभी सखख्ाँ आपस ीे खलपटकर बैठी है। हेी हीरा ीरोती ीामसक, कई रंगय के हार। पाच पांसे सीलाी लसमसए, कई ाेरय अंबार।।३१८।। सभी सखख्य से सरोसा, हीरा, ीरोती, तका ीाणाक आमद के असेक रंगय के हारय करो धिारा मक्ा हुआ है। उसीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 171 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पाच, पन्ना, सीली, तका लसमस्ा आमद असेक प्रकार के बहुत से ााहरात डे हुए है। इसकी ते राणश झलकती रहती है। सरोभा अतंत है भूखसय, वार बा त हाक चरस। ीीठी बासी अधत सरीाई, खस ु बरोए और ररोसस।।३२।। सुन्दरसाक के दारा धिारा मक्े ग्े आभूषाय की शरोभा असन्त है। ्े सुगसन्धि और प्रकाश से भरपूर है। हाकय और पैरय के महलसे पर इससे बहुत ीीठी और करोील ाााी के (संगीती्) वार फूटा करते है। भाााकर - परीधिाी के आभूषा चेतस है। ाे इच्छा ीा् से मबसा महले-डु ले भी ीधिुर वार छरोडसे ीे सकी है। महलसे पर वारय का मसकलसा ्हाँ के भााय के असुसार कहा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 172 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ावतर भूखस सब अंगय, क्य कहूं केते रंग। एक एक संग के असेक रंग, धतस रंग रंग कई तरंग।।३३।। सखख्य के सभी अंगय ीे ास और आभूषा सुसखजत है। उसके इतसे रंग है मक उसका ाार स करसा बहुत कमठस है। एक-एक सग से असेक प्रकार के रंग मसकलते है और एक-एक रंग से असेक रंग की तरंगे मसकलती है। मसलाट श्रास साससिसका, ससिसर कंठ उर कई हार। हाक पांउं चरस भूखस, अधत अलेखे ससिससगार।।३४।। ब्ातीाओं के गले ीे कणठ से लगकर हद् पर आ्े हुए असेक हार शरोभा ले रहे है। उसके ीवतक, कासय, साससिसका, हाकय, तका पैरय की अँगुखल्य आमद ीे बहुत ही सुन्दर आभूषा मदखा्ी पड रहे है। इसकी शरोभाश्रृँगार का ्काकर ाार स करसा असम्भा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 173 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो हरोाे अराा असर की, सरो ली रो कर सहूर। अंग रंग संग सब ंग ीे, हरोए ग्रो एक हूर।।३५।। रो भी परीधिाी की ब्सृमष्ट हरो , ाह इस ञास का धचन्तस कर आसन्द का रसपास करे। ब सखख्य के अंगय की शरोभा तका ासय एां आभूषाय ीे डे हुए सगय के रंगय से मसकलसे ााली मकराे आपस ीे टकराती है , तरो ऐसा प्रतीत हरोता है स ै े ाे ्द ु कर रही हय। इस प्रकार ाहाँ चारय ओर एक ही सूरी्ी सौन्द्र की झलकार हरो रही है। ीहाीत कहे बैमठ्ां देख के, हक हँसत है ही पर। कहे देखरो इस मबधि खेल ीे, भेखल्ां रहे क्य कर।।३६।। श्री ीहाीधत ी कहती है मक हे सुन्दरसाक ी ! ही सबकरो इस प्रकार सट-सटकर बैठे हुए देखकर धिाी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 174 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिसी हँस रहे है और कह रहे है मक ्हाँ पर तरो ्े इस प्रकार बैठी हुई है, मकन्तु देखसा ्ह है मक ीा्ा के खेल ीे ासे पर ्े मकस प्रकार इकइी रहती है? प्रकरा ।।२।। चौपाई ।।१८५८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 175 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ढाल दस ू रा इसी सागर इस शीषर क ीे कणकत "ढाल दस ू रा" का तातप्र है अगली कडी ्ा अगला ककस, कहा रो दस ू रे सागर के बारे ीे ा रहा है। लेहेरी सुख सागर की, लेसी रहे असर । ्ाके सरप ्ाकरो देखसी, रो है अरस परस।।१८।। रहय की शरोभा का ्ह सागर सुख का सागर है। इसकी लहरय का रस ीा् परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ ही लेगी। आतीा्े ही अपसे ीूल तस से अरस-परस (एकाकार) है और एकीा् ाे ही अपसे ीूल तस (वारप) करो देख सकेगी। भाााकर - पराती करो अपसे धिाी धिसी से रो सुख मीलता है ाह सागर के सीास है, और आतीा अपसे ीूल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 176 / 992 श्री सागर टीका तस की शरोभा करो ध््ास दारा देखकर श्री रा स वााीी रो आसन्द प्राप करती है ाह लहर के सीास है। दस ू रे शब्दय ीे पराती करो, धिसी का तस हरोसे से, सुख का सागर भी कहा ाता है। एकीा् ब्सृमष्ट ही अपसे ीूल तस करो देख सकती है, अन्् करोई दस ू रा सहीप। इस सम्बन्धि ीे सागर गन्क १८४/२७ का ्ह ककस बहुत ही ीहतापूार हैए रो सरप मससबत के, काहूं स देाे देखाए। बदले आप देखाात, प््ारी मससबत रखे णछपाए।। ए रो सरप सुपस के, असल स र बीच इस। ाह देखे हीकरो खााब ीे, ाह असल हीारे तस।।२।। हीारी आतीा के दारा धिारा मक्ा ग्ा तस वाप्स का है और हीारी पराती का तस ही हीारा ीूल तस है। उस पराती की स र हुकी दारा इस वाप्स के संसार ीे हीारे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 177 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वाप्स के तसय करो देख रही है। भाााकर - पराती की सूरी स र सीधिे ही वाप्स के इस तसय करो सहीप देख रही है , बसलक श्री रा ी के मदल रपी परदे पर देख रही है, और हुकी दारा ाह स र सुरता (आतीा) के रप ीे इस वाप्स के तसय ीे मारा ीास हरोकर ीा्ााी खेल करो देख रही है। उसय अंतर आं खे तब खल ु े, अंदर चुभे ब ही देखे ाह स र। ब रह के, तब इतहीप बैठे बका घर।।३।। ससि स तरह से हीारी पराती पहले श्री रा ी करो देखती रही है, उसी प्रकार हीारी आतीा भी ब धिाी धिसी करो देखसे लगे, तरो हीे ्हीप बैठे -बैठे परीधिाी की असुभूधत हरोसे लगेगी और हीारी आतीा की अन्तदरमष्ट भी खल ु ा्ेगी अकारत् ाह ागत हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्ेगी। 178 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई के ककस पर ्ह संश् हरोता है मक ब श्रीीुखाााी क. मह. २३/२९ ीे ्ह बात वपष्ट रप से कही ग्ी है मक "पौढ़े भेले ागसी भेले, खेल देख्ा सबय एक ", अकारत् पराती ीे ागधत सभी की साक ीे ही हरोसी है, तरो ्हाँ पर ्ह क्य कहा ग्ा है मक ससि सकी आतीा के धिाी हद् ीे श्री रा बस ा्ेगी, उसकी पराती ीे इसके सीाधिास ीे ्ही कहा ागधत हरो ी की छमा ा्ेगी। ा सकता है मक ्ह तरो शाशत सत् है मक परीधिाी ीे ाहदत हरोसे के कारा सबकी पराती ीे ागधत एक ही साक हरोसी है , मकन्तु ्हाँ साीूमहक रप ीे ्ह बात दशार्ी ग्ी है मक आतीा के धिाी हद् ीे श्री रा ा्ेगा, तभी पराती ीे ब ी का साकातकार हरो ागसी हरो सकेगी। इस खेल ीे सभी आतीाओं की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ागसी धिीरे -धिीरे 179 / 992 श्री सागर टीका क्रीशः श हरो रही है। श्री रा स वााीी रो भी आतीा ागत हरो ाती है, ाह ्हीप बैठे -बैठे परीधिाी के सुखय का रसपास करती है , मकन्तु उसकी पराती पर फराीरोशी का आारा तब भी पडा ही रहता है। अपसे पञभौधतक तस का त्ाग करसे के पशात् ाह सूकी शरीर से गुम्ीट ी ीे श्री ी के चराय ीे रहकर परीधिाी के आसन्द का रसपास करती है। इस सम्बन्धि ीे छरोटा क्ीतसाीा १८ /८७ का ्ह ककस देखसे ्रोग् हैरो कदी ाह आगे चली, ससि ीी बैठी ाह ससि ीी ीांहे। पांचय परोहयचे पाचय ीे, रह अपसी असल छरोडे सांहे।। खेल खती हरोसे के बाद ही पराती की ागसी हरो सकेगी। उसके पहले केाल इतसा ही हरो सकेगा मक आतीा ागत हरोकर अपसे ीूल तस करो देखेगी तका पराती धिाी धिसी के मदल रपी परदे पर अपसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ागत 180 / 992 श्री सागर टीका आतीा की श्री रा स वााीी ागसी लीला देखती रहेगी। इस तर् करो सागर १८१८/४४ ीे इस प्रकार दशार्ा ग्ा हैअन्तवकरस आती के, ब ए रह्रो सीाए। तब आती परआती के, रहे स कछु अन्तराए।। सुरत उसय की ही ीे, ए ुदे द ु े हुए रो ही। ए रो बाते करे ही सुपस ीे, सरो कराात हक हुकी।।४।। उस ीूल तसय की सुरता इस सी् संसार ीे हीारे वाप्स के तसय ीे है। इस वाप्सी्ी संसार ीे ही अलग-अलग हरोकर रो भी बाते कर रहे है , ाह धिाी धिसी का हुकी ही हीसे ऐसा कराा रहा है। भाााकर - ससि स प्रकार परीधिाी ीे सारी लीला श्री रा ी के मदल से हरो रही है, उसी प्रकार इस संसार ीे सुरताओं के तस से हरोसे ााली सारी लीला श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 181 / 992 ी श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के हुकी (आदेश) से ही हरो रही है। इस मबधि हक का इली, हीकरो गाात। इली मकली हीकरो दई, धतससे बका दार खरोलत।।५।। इस प्रकार ्ह ब्ाााी हीे ागत कर रही है। धिाी धिसी से हीे ्ह तारती ञास रपी रो चाबी दी है, उससे अध््ाती के सभी रहव्य का ञास हरो ाता है , और इस वाप्सी्ी संसार ीे रहते हुए भी अखणड परीधिाी की पहचास हरो ाती है। बीच असल तस और सुपसे, पट सीपदै का का। सरो सीपद उडाए सुपसा रख्ा, ए देखरो मक्ा हक का।।६।। परीधिाी ााले ीूल तस तका इस संसार के वाप्स के तस के बीच फराीरोशी (सीपद) का पदार का। धिाी धिसी से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 182 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अपसी ीेहर की दमष्ट से ऐसी लीला की है मक ीा्ा की सीपद करो उडा मद्ा तका वाप्स के तस करो भी सुरधकत रखा है। सा तरो सीपद उडे पीछे सुपसा, कब लय रेहेाे ए। इस माधि सुपसा सा रहे, पर हुआ हाक हुकी के।।७।। सहीप तरो ीा्ा की सीपद के सीाप हरो ासे पर भला ्ह ीासाी् शरीर कैसे रह सकता है, अकारत् सहीप रह सकता? इस तरह ागत हरो ासे पर वाप्स के शरीर का असवतता सहीप रह सकता , मकन्तु श्री रा ी के हुकी से ही ्ह अब तक बसा हुआ है। भाााकर - इस पूाारक दरोसय चौपाइ्य का भाा ्ह है मक ससि स प्रकार सीपद आसे पर सपसा देखा ाता है, और सीपद के सीाप हरोते ही वाप्स भी टू ट ाता है तका प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 183 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सपसा टू टसे पर उसीे देखी ग्ी सभी ावतुओं का असवतता सीाप हरो ाता है , उसी प्रकार के दारा अकरातीत और अपसे मस की पहचास हरो ब ब्ाााी घर तका ीूल तस ाती है तरो ्ह वाप्स का शरीर सहीप रहसा चामहए, लेमकस धिाी धिसी से अपसे आदेश से इसे सुरधकत रखा है तामक ीा्ा का खेल देखा तारती ञास के दारा ा सके। ाससे तका प्रेी के दारा प्रत्क असुभा कर लेसे के बाद भी शरीर का बसा रहसा ्ही ससिसद करता है मक धिसी का हुकी ही सब कुछ कराा रहा है। हाँ! ागत अावका ीे इतसा अाश् हरोता है मक शरीर के प्रधत ीरोह सीाप हरो हुकीे खेल देखाइ्ा, खेल ीे ाता है। ुदे डारे फराीरोसी दे। गाए इलीे, अब हुकी मीलााे ले।।८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 184 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिाी धिसी से अपसे आदेश से ीा्ा का ्ह खेल मदखा्ा है और हीे फराीरोशी ीे डालकर अपसे धिाी से अलग कर मद्ा है। इस खेल ीे ब्ाााी से हीे ागत कर मद्ा है। अब मप्र्ती का हुकी ही सबकरो उसके चराय ीे ले चलेगा। बात परोहयची आए स ीक, अब रो करोई रेहेाे दी। उीेदां तुीारी पूरसे, राखी खसीे तुी हुकी।।९।। अब धिाी धिसी के चराय ीे ागत हरोसे का सी् बहुत मसकट है। इस सी् ्मद करोई भी आतीा इस संसार ीे रह रही है, तरो इसका ीूल कारा ्ही है मक उसकी ीा्ा का खेल देखसे की इच्छा पूरी करसे के खल्े धिाी धिसी से अपसे हुकी से ही रखा हुआ है। भाााकर - खखलात, पररक्रीा, सागर, तका ससिससगार की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 185 / 992 श्री सागर टीका ाााी आतीा करो श्री रा स वााीी ागत करसे के खल्े है। इस गन्कय के दारा परीधिाी, ्गु ल वारप, तका अपसे ीूल वारप की पहचास हरो ाती है। ्ही कारा है मक सागर गन्क की इस चौपाई ीे आती - ागधत के सी् करो बहुत मसकट ीासा ग्ा है। रो रहे असर अ ीी की, सरो मीखल्रो लेकर प््ार। ए बासी देख फ र की, सबे हू रो खबरदार।।१८०।। रो भी परीधिाी की ब्सृमष्ट हरो , ाह अपसे मदल ीे धिसी का प््ार लेकर उससे मीलस करे अकारत् उसका दीदार करके अपसे धिाी हद् ीे उन्हे बसा्े। सागर गन्क की ्ह ाााी हद् ीे परीधिाी के ञास का उ ाला करसे ााली है। आप सभी सााचेत हरो अलौमकक ञास करो पाकर भी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाइए, तामक इस ागत हरोसे का वाराी 186 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अासर स गँाा सके। अब फराीरोसी क्य रहे, ब खल ु ्ा बका दार। रबर मकए हीकरो, तस असल सूर के पार।।१८१८।। ब इस ब्ाााी के दारा अखणड परीधिाी का दराा ा खल ु ग्ा है, तरो हीारे अन्दर ीा्ा की फराीरोशी (सीपद) कैसे रह सकती है? धिाी धिसी से अपसे तारती ञास दारा हीे अपसे ीूल तस के सम्ीुख कर मद्ा है, रो अकर धिाी से भी परे है। भाााकर - रबर करासे का अकर है - साकातकार करा देसा। अकर ब् के ीस वारप अव््ाकृत के वाप्स ीे ्ह कालीा्ा का ब्ाणड बसा है, ससि सीे रहसे ाालय ीे से आ तक करोई भी परीधिाी ्ा अकरातीत की पहचास सहीप कर सका का। ्ह तारती ञास की ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 187 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीमहीा है मक इसके दारा हीे ्हीप बैठे -बैठे अपसी पराती का भी साकातकार हरोता है। बैठी कीप डर ससि सके, सब महल मील एक हरोए। हुकी हक के कौल पर, उलट तुीकरो गााे सरोए।।१८२।। सखख्य करो ीा्ा ीे अलग हरो ासे का डर का , इसखल्े सभी सखख्ाँ आपस ीे सट -सटकर एक वारप हरोकर बैठ ग्ी कीप। श्री रा ी के ससि स हुकी से सखख्य करो ीा्ा ीे आसा पडा का, अब ाही हुकी उन्हे गा रहा है, क्यमक धिाी धिसी से उन्हे गासे का ाा्दा मक्ा का। भाााकर - अकरातीत से ीूल मीलााा ीे ाा्दा मक्ा का मक ीै तुम्हे खेल ीे आकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ागत करँगा। 188 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बांधिे आप हुकी के, का ी हुए इत आए। कौल मक्ा ीरोमीसय सय, सरो पाल्ा खेल देखाए।। ससंधि ३२/४९ हरो सै्ा फुरीास ल्ाए ही, आए ातस से ाावते तुी। इस ीे खबर है तुीारी, हकीकत देखरो हीारी।। बडा क्ाीतसाीा ६/१८ सा तरो सुपस के सरप रो, सरो तरो खेलै करो खैचत। सरो हुकीे तुीे सुपसा, हक करो मीलाात।।१८३।। सहीप तरो , सपसे के तस तरो तुम्हे ीा्ा की ही ओर खीपचते है। अब धिाी धिसी का हुकी तुम्हे इस ीा्ााी तस का ीरोह छुडाकर मप्र्ती के चराय से भाााकर - ससि स ीा्ााी तसय ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रोड रहा है। ीा के ऊपर 189 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मारा ीास हरोकर आतीा इस खेल करो देख रही हरोती है, ाह ीा न्ी- न्ीान्तरय से माष्य के ाल ीे फँसा हरोता है। इसका पररााी ्ह हरोता है मक दलदल ीे फँससे की भांधत ाह ीा्ा ीे और अधधिक फँसता ाता है। धिाी धिसी का हुकी आतीा करो परीधिाी की ओर ीरोड देता है और ीा्ा से पार करा देता है। ्य सीधिी उलटी् से, कौस करे मबसा इली। इत गाए उीेदां पूरस कर, खैचत तरफ खसी।।१८४।। इस ब्ाााी के अधतररक ऐसा और कौस है , रो हीे ीा्ा (उलटी राह) से हटाकर परीधिाी की राह (सीधिी राह) पर ले चले? धिाी धिसी के ीुखारमान्द से अातररत ्ह ब्ाााी हीे मप्र्ती की ओर खीपचती है तका हीारी इच्छाओं करो पूार करके प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ागत भी करती है। 190 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए हरोत मक्ा सब हुकी का, सा तरो इस माधि क्य हरोए। ाग सुपसा ीूल तस का, गाए हुकी मीलााे सरोए।।१८५।। ्हाँ सब कुछ श्री रा ी के हुकी से ही हरो रहा है, अन््का ऐसा सहीप हरोता मक आतीा के ागत हरोसे पर भी ीूल तस ीे फराीरोशी बसी रहती। धिसी का हुकी ही आतीा करो ागत करके उसे पराती से मीला देता है। भाााकर - आसतीक दमष्ट से पराती करो देखसा ही आतीा और पराती का एकाकार हरो ासा है। इसे मकरंतस ८/३ ीे इस प्रकार कहा ग्ा हैब आती दमष्ट ड ु ी परआती, तब भ्रो आती मसाेद। ्मद आतीा अपसे धिाी हद् ीे अपसे प्रााालभ करो बसाकर पराती के तदरोगत हरो ाती है, तरो ससिसदान्ततः श पराती ीे मकसी भी प्रकार की फराीरोशी सहीप रहसी चामहए, क्यमक पराती अब ीा्ा का दश् स देखकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 191 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आतीा के धिाी हद् ीे अकरातीत करो देख रही हरोती है। मकन्तु पराती ीे फराीरोशी इसखल्े बसी रहती है मक ाहदत ीे लीला सीास हरोती है। परीधिाी ीे ्ह कदामप सम्भा सहीप है मक एक की पराती ागत हरो ा्े और शेष पर फराीरोशी (सीपद) का प्रभाा रहे। सरो सुधि आपस करो सहीप, रो माधि करत ीेहेरबास। सा तरो कई ीेहेर आपस पर, करत है रेहेीास।।१८६।। ही सब सुन्दरसाक करो इस बात की सुधि सहीप हरो पाती है मक ीेहर के सागर अकरातीत हीारे से मकतसा लाडप््ार करते है? अधत कृपालु अकरातीत हीारे ऊपर तरो कई प्रकार से पल-पल ीेहर करते ही रहते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 192 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीहाीत कहे ीेहेर की, रहय आाे एक स र। तरो तबहीप रात करो ीेट के, ाहेर करे फ र।।१८७।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक ्मद ब्सृमष्ट्य करो ीेहर की प्रामप हरो ा्े , तरो ाे उसी का अपसे अन्दर की ीा्ााी राम् के अन्धिकार करो सीाप कर देगी और अपसे हद् ीे दीमपीास ब्ञास के प्रकाश करो चारय ओर फैला देगी। भाााकर - "स र आसा" एक ीुहामारा है, ससि सका अकर हरोता है- दशर स करसा, साकातकार करसा, ्ा पहचास करसा। ीेहेर सरोई रो बातूसी, रो हक के मदल का प््ार। ीेहर के अन्दर श्री रा ी का सम्पूार सुख , वारप, और प्रेी णछपा हुआ है। हद् ीे धिसी का प्रेी आते ही ्गु ल वारप धिाी हद् ीे मारा ीास हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाते है। इसे 193 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ही ीेहर की एक स र आ की प्रामप हरो ासा कहते है। इस अावका ासे पर हद् ीे मप्र्ती के ञास , प्रेी, और आसन्द का प्रकाश छा ाता है तका ीा्ााी अन्धिकार का साीरोमसशास भी सहीप रहता। प्रकरा ।।३।। चौपाई ।।१८७५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 194 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर तीसरा एक मदली रहस की अकरातीत का मदल श्ाीा ी है और श्ाीा ी के मदल का वारप ब्सृमष्ट्ाँ है। इस प्रकार श्री रा श्ाीा ी और ब्सृमष्ट्ाँ एक ाहदत के अन्दर है। इस एकमदली करो तीसरा सागर कहा ग्ा है। पररक्रीा गन्क ९/३० ीे वपष्ट रप से कहा ग्ा है मक "पूरस पांचय इं्ी सरपे, एक एक ीे पांच पूरस ", अकारत् परीधिाी ीे एक-एक इसन््् ीे शेष सभी इसन्््य के गुा मादीास रहते है। ्दमप आँ ख का साीान्् गुा देखसा है , मफर भी ाह सुससे, सूँघसे, वपशर करसे , और रस लेसे का का्र करती है। इस संसार ीे भी सपर अपसी आँ खय से सुससे का का्र करता है , ससि सके कारा उसे चकुश्राा कहते है। अपसे रसासन्द सागर गन्क ीे परीहंस ीहारा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा श्री 195 / 992 श्री सागर टीका ्गु लदास श्री रा स वााीी ी से कहा है मक परीधिाी के एक फल ीे ही सभी (असन्त) फलय का वााद णछपा हरोता है। इस प्रकार ्ही कहा ा सकता है मक एक ही फल, आी ्ा अीरद, ीे उस सभी फलय का रस णछपा हरोता है रो परीधिाी ीे मादीास है। उपररोक ककसय से ्ही मसष्कषर मसकलता है मक परीधिाी के प्रत्ेक सागर ीे शेष सभी सागर सीामहत हरोसे चामहए, क्यमक परीधिाी वा्ं ीे पररपूार है और उसीे कहीप भी मकसी भी प्रकार की न््स ू ता सहीप है। पूार ीे श्री रा ी के सूरी्ी वारप ीे सभी सागरय का सीााेश ीासा ग्ा है। इसी प्रकार सार रस सागर ीे भी सभी सागरय का सीााेश ीासा ाता है। ब श्री रा ी के मदल ीे ्ा वारप ीे ही सभी सागर है और धिाी धिसी ब्सृमष्ट्य (पराती) के मदल ीे मारा ीास है , तरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 196 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दस ू रे सागर ीे सभी सागरय का सीााेश ीासा ा सकता है। एकमदली हरोसे से तीसरे सागर ीे भी श्री रा ी के मदल की सारी मसअीते मादीास है। चौका सागर ्गु ल वारप की शरोभा और श्रृँगार का सागर है। इस प्रकार चौके सागर ीे सभी सागरय का असवतता ीासा ा सकता है। ्ही सवकधत पाँचाे, छठे , और साताे सागर की है। इशक और इली एक दस ू रे के पूरक है और इसीे धिसी का वारप मारा ीास है। ीाररफत की अावका ीे तरो ्ही कहा ा सकता है मक परीधिाी के एक-एक का ीे सम्पूार परीधिाी ाैसे ही सीा्ा हुआ है , स ै े दपर ा के एक छरोटे से टु कडे ्ा पासी के छरोटे से बुलबुले ीे पृराी से १८३ लाख गुसा बडे आकार ााला सू्र प्रधतमबसम्बत हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 197 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अब कहूं सागर तीसरा, ीूल ीेला मबरा त। रह की आं खय देखखए, तरो पाइए इसय ससिसफत।।१८।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक अब ीै तीसरे सागर "एकमदली" (ाहदत) का ाार स कर रहा हूँ। परीधिाी के ीूल मीलााा ीे सभी सखख्ाँ मारा ीास है। उसके मदल ीे एकरपता है। ्मद आप अपसी आसतीक दमष्ट से देखखए तरो आपकरो इसके वारप की ीमहीा का पता लगेगा। असर की अरााहे ेती, ए ीाहे क्य हरोएं ुमद्ां, असल रहे एक तस।।२।। परीधिाी की ुदी हरोए सा सके एक खखस। रो भी ब्सृमष्ट है, ाे ाहाँ पर एक का के खल्े भी एक-दस ू रे से ्ा धिाी धिसी से अलग सहीप हरो सकती। सभी ब्सृमष्ट्ाँ धिाी धिसी के ही तस है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 198 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसखल्े आपस ीे कभी भी एक-दस ू रे से अलग सहीप हरो सकतीप। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक रा श्ाीा ब श्री ी तीसरी भूमीका ीे पौढ़ रहे हरोते है , तब सखख्ाँ अलग-अलग सीूहय ीे है। तरो क्ा इसीे श्री रा गह- गह घूीसे ाती ी से ्ा सखख्य ीे आपस ीे अलगाा सहीप हरोता? इसके सीाधिास ीे ्ही कहा ा सकता है मक बा् रप से लीला रप से सभी एक-दस ू रे से ुडे हरोते है, क्यमक ाहदत हरोसे के कारा सभी का मदल एक ही है। इस सबस की एक अकल, एक मदल एक धचत। एक इवक इसय का, ससेह का्ी महत।।३।। इस सभी ब्सृमष्ट्य की बुधद एक सीास है। मदल और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 199 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धचत भी एक ही है। सबका इशक सीरप है तका सबका कल्ाा करसे की भाासा करसे ााला वसेह भी इसके अन्दर सीास है। भाााकर - इस चौपाई के पहले चरा ीे "एक अकल" कहे ासे का अकर ्ह है मक सभी आतीाओं के अन्दर धिसी करो ररझासे ााली मस बुधद सीास रप से है। इस संसार की तरह मकसी ीे की ्ा अधधिक सहीप है। ्दमप मदल, अन्तः शकरा, और हद् (सूकी) एकाकर ााची है, तका ीस, धचत, बुधद, एां अहंकार भी इसके अन्तगर त ही है, मकन्तु ्हाँ मदल का प्र्रोग ीस के भाा ीे मक्ा ग्ा है। इसय मदल सागर तीसरा, एक सागर सबय मदल। देखरो इसय मदल पैठ के, मकस माधि बैमठ्ां मील।।४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 200 / 992 श्री सागर टीका हे साक श्री रा स वााीी ी! इसके मदल ीे बैठकर देखखए तरो आपकरो ्ह मामदत हरोगा मक इसका मदल ाहदत का असन्त सागर है, ससि से तीसरा सागर कहते है। इस सभी के मदल ीे ाहदत का सागर लहरा रहा है। उसी के कारा ्े सभी एक वारप हरोकर बैठी है। भाााकर - मदल ीे बैठसे का तातप्र है - अपसी आतीा के मदल का तार (सम्बन्धि) उस मदल (पराती के मदल) से रोडसा। पराती ाहदत ीे है , इसखल्े अपसी पराती का भेद मील ासे पर सभी की पराती से अपसा सम्बन्धि वकामपत हरो ाता है। ावतुतः श पराती के भााय ीे डू ब ासा ही पराती का भेद पासा है। मदल ीे बैठसा भी इसी सन्दभर ीे कहा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 201 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हाँस मालास सुख एक है, एक भांत एक चाल। तरो इस ााहेदत की क्य कहू,ं कौल फैल इस सखख्य की श्री रा रो हाल।।५।। ी के साक हरोसे ााली प्रेी और आसन्द की लीलाओं का सुख सीास है अकारत् सबकरो सीास सुख मीलता है। सभी का व््ाहार भी एक सीास हरोता है। ऐसी अावका ीे परीधिाी की उस ाहदत का ीै कैसे ाार स करँ , हाँ सब की ककसी, करसी, और रहसी एक है। तरो कह्ा ााहेदत इसकरो, असर अराा हक ात। ज्य रोते रोत उदरोत है त्य, सूरत की सूरत ससिसफात।।६।। इसखल्े तरो परीधिाी की इस ब्सृमष्ट्य करो ाहदत का वारप कहते है। ावतुतः श ्े सभी अकरातीत की अधिार्धांमगसी है। ससि स प्रकार ज्रोधत (दीपक की) से ज्रोधत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 202 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रकाणशत हरोती है, उसी प्रकार अकरातीत का ही वारप सबीे मारा ीास है अकारत् प्रत्ेक ब्सृमष्ट का वारप एक-दस ू रे के सीास है। भाााकर - एक दीपक से ब दस ू रा दीपक ला्ा ाता है, तरो दरोसय का वारप सीास हरोता है , उसीे रंच ीा् भी भेद सहीप हरोता। इसी प्रकार अकरातीत के हद् ीे बहसे ााले प्रेी ीे णछपे हुए आसन्द के वारप श्ाीा ी है और उन्हीप की अँगरपा (हद् वारपा) सखख्ाँ है। ऐसी सवकधत ीे ्ही कहा (श्ाीा ा सकता है मक एक दीपक ी) से प्रदीप मक्े हुए ( ला्े) १८२००० दीपकय के सीास सखख्य की शरोभा है। इस एक मदली रहस की, ए क्य कर कही ाए। एक रह कहे गुझ हक का, द ू ी अंग स उींग सीाए।।७।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 203 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्य की एकमदली का ाार स कैसे मक्ा ्मद एक ब्सृमष्ट श्री रा ा्े। ी के प्रेी की रहव्ी्ी गु् बात करो दस ू रे से कहती है, तरो उसे सुससे ीा् से अपार आसन्द का असुभा हरोता है। भाााकर - इस ीा्ााी गत ीे प्रा्ः श मकसी का प्रेी मकसी भी अन्् करो सुहाता सहीप है (अच्छा सहीप लगता)। इसके मापरीत परीधिाी ीे धिसी से एक का प्रेी शेष सभी आतीाओं करो आससन्दत करता है, क्यमक ाहाँ प्रत्ेक आतीा दस ू रे करो अपसे से कररोडय गुसा चाहती है। इसका ीुख् कारा ्ह है मक श्री रा ी का मदल ही श्ाीा ी है और उसका मदल सखख्ाँ है। श्री रा ीे ी के मदल रो कुछ भी इशक , इली, सूर, आसन्द आमद है , ाहदत के ससिसदान्त से श्ाीा ी और सखख्य के अन्दर ाैसे ही है, मकन्तु लीला रप ीे श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के दारा 204 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसका अहसास कराा्ा ाह सुख केहेाे अपसा, ाता है। रो मक्ा है हक से। मदल द ू ी के ्य आात, ए सब सुख खल्ा ीै।।८।। एक सखी ाार स करती है ब दस ू री सखी से उस प्रेीी्ी सुख का रो उससे धिसी से पा्ा हरोता है, तरो उसे सुसकर दस ू री सखी के ीस ीे भी ऐसा आता है मक ्ह सारा सुख ीैसे खल्ा है। एकै बात के ाावते, सुख द ू ी करो उपज्ा ्य। ्य सबस की एक मदली, ुदा बरसस हरोाे क्य।।९।। इस प्रकार परीधिाी ीे ाहदत हरोसे के कारा एक के सुख का असुभा दस ू रे करो हरोता है। परीधिाी ीे सभी का मदल एक है। ्ही कारा है मक ाहाँ मकसी करो भी एकप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 205 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दस ू रे से अलग सहीप सीझा भाााकर रा ब श्ाीा ा सकता। ी, सखख्ाँ, और २५ पक श्री ी के मदल के ही प्रकट वारप है, तरो ्ह वपष्ट है मक ाहाँ एकीा् श्री रा ी का मदल ही सारी लीला कर रहा है। एक रह बात करे हक सय, सुख द ू ी करो हरोए। ब देखखए ीुख बरोलते, तब सुख पााे दरोए।।१८०।। ब एक ब्सृमष्ट श्री रा ी से बात करती है , तरो उसका सुख दस ू री सखी करो भी प्राप हरोता है। रा ब ाे श्री ी करो बरोलते हुए देखती है, तरो उस दरोसय करो सीास रप से सुख प्राप हरोता है। भाााकर - इस ीा्ााी गत ीे "सौधत्ा डाह" से सभी पररधचत है। परीधिाी ीे इसके मापरीत है। ाहाँ एक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 206 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सखी करो धिसी से बाते करते देख दस ू री करो भी आसन्द आसे लगता है, क्यमक ाहाँ ाहदत ीे सभी एक ही वारप हरोते है। अरस परस ्य हक सय, आराी लेाे सब करोए। अधत सुख पााे बडीरह, ए धतसके अंग सब सरोए।।१८१८।। इस प्रकार परवपर सभी सखख्ाँ धिसी से प्रेी और आसन्द की लीला करती है। अकरातीत की हद् (मदल) वारपा श्री श्ाीा ी अपसे मप्र्ती के प्रेी ीे बहुत अधधिक आसन्द का असुभा करती है। ्े सभी सखख्ाँ उन्हीप की अंग वारपा है। रो सुख पाात बडीरह, सब धतसके सुख ससकूल। ज्य ल ीूल ीे सीपधचए, परोहयचे पात फल फूल।।१८२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 207 / 992 श्री सागर टीका श्ाीा श्री रा स वााीी ी धिाी धिसी से रो सुख प्राप करती है , ाह सुख सभी आतीाओं करो आससन्दत करसे ााला हरोता है, ससि स प्रकार मकसी ाृक की ड ीे पासी देसे पर ाह पती-पती, प्रत्ेक फूल और फल ीे पहुँच त्य सुख ाता है। ेता हक का, परोहयचत है बडीरह करो। बडीरह का सुख रहस, आात है सब ीय।।१८३।। उसी प्रकार श्री रा ी का आसन्द श्ाीा ी ीे पहुँच ाता है और उसका आसन्द सभी सखख्य ीे आ ाता है। भाााकर - ाृक की ड ीे पासी डालसे पर पते -पते और डाली-डाली तक उसके पहुँचसे की बात ीा् दष्टान्त के रप ीे इसखल्े कही ग्ी है , तामक ्ह दशार्ा ा सके मक ीाररफत ीे णछपा हुआ प्रेी और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 208 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आसन्द हकीकत के रप ीे मकस प्रकार प्रकट हरोता है ? इसकरो सांसाररक दमष्ट से सहीप देखसा चामहए। ावतुतः श परीधिाी की ाहदत ीे सबका प्रेी और आसन्द बराबर ही हरोता है। ्ा भूखस ्ा ावतर, ससिससगार के बखत। एक पेहेसे सुख द ू ी करो ्य, सबय सुख हरोत अतंत।।१८४।। श्रृँगार के सी् ब करोई ब्सृमष्ट मकसी ास ्ा आभूषा करो धिारा करती है, तरो उसका आसन्द दस ू री (सभी) करो हरोता है। इस प्रकार एकमदली हरोसे से सभी सखख्य करो ाह आसन्द प्राप हरोता है। ्ा रो बखत आररोगसे, ्ा करोई असर लजत। सरो एक रह से दस ू री, सुख देख केहे पाात।।१८५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 209 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भरो स के सी् ्ा परीधिाी की मकसी अन्् प्रेीी्ी लीला के सी्, मकसी सखी करो मीलसे ााला आसन्द देखसे ााली ्ा कहसे ााली सखख्य करो भी प्राप हरो ाता है। भाााकर - सम्पूार परीधिाी वालीला अदैत हरोसे से पूाररपेा ागत है। ाहाँ मकसी से करोई भी बात णछपी सहीप रहती। मकसी लीला के सी् ्मद करोई सखी ाहाँ उपसवकत स हरो, तरो भी इच्छा ीा् से ाह सब कुछ देखती है और उस आसन्द का रसपास करती है। इस चौपाई ीे देखसे ्ा कहसे से सीास आसन्द मीलसे की बात केाल ाहदत करो सीझासे के खल्े है। ए सुख बाते असर की, अलेखे अखंड। क्य बरसय ीै इस ुबां, बीच बैठ इस इंड।।१८६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 210 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी के आसन्द की ्े बाते अखणड और असन्त है, अकारत् ीासाी् बुधद से सीझ ीे स आसे ााली है। ाहाँ की लीला का ाार स ीै इस झूठे संसार ीे बैठकर इस झूठी ससि िहा से कैसे करँ। ीै सेक कही इस मबधि की, सरो असर ीे मबधि बेसुीार। इस ीुख बासी क्य कहूं, ाकरो ाार स पार।।१८७।। इस प्रकार परीधिाी ीे प्रेी और आसन्द की एकमदली ीे सराबरोर असन्त लीलाएँ है , ससि सके बहुत ही करोडे से अंश का ीैसे ाार स मक्ा है। एकमदली के ससि स आसन्द की करोई सीीा ही स हरो, उसका ाार स ीै इस संसार के ीुख और शब्दय से कैसे करँ? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 211 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तरो क्ा रसूल से, असर ीे ााहेदत। सरो क्ा इस ीाएसरो, ए रहे एक मदल एक धचत।।१८८।। इसखल्े तरो ीुहम्ीद सामहब से कहा है मक परीधिाी ीे ाहदत है। उन्हयसे ऐसा इसखल्े कहा है, क्यमक सभी सखख्य का मदल और ीस एक ही है। एक रह सुख लेत है, सुख पाात बारे ह ार। तरो कही रो ची असर की, सरो ची े ची अपार।।१८९।। करोई एक सखी ससि स आसन्द करो प्राप करती है , ाह सम्पूार बारह ह ार (सभी) करो प्राप हरोता है। ्ही कारा है मक परीधिाी की प्रत्ेक ावतु का पररीाा असन्त है। भाााकर - अकरातीत करो मकसी सीीा ीे सहीप बाँधिा ा सकता। चूँमक ाहदत के रप ीे वा्ं धिाी धिसी ही लीला प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 212 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करते है, इसखल्े ाहाँ मकसी भी पदाकर की सीीा सहीप है। ्मद एक सखी का भाा श्ाीा १८२००० कहा ी करो ले , तब तरो ा्ेगा, मकन्तु ्मद १८२००० सखख्य ीे से मकसी एक का प्रसंग हरो, तरो शेष १८१८९९९ सखख्य के दारा सुख प्राप हरोसे की बात हरोगी। ्दमप परीधिाी ीे सखख्य की संख्ा असन्त है , इस चौपाई ीे १८२००० का भाा सभी सखख्य से है। रो करोई ची असर ीे, बाग ससि ीी ासार। ताकरो सुख बल इवक का, पार स आाे क्य ए कर।।२०।। परीधिाी ीे रो कुछ भी बाग, धिरती, ्ा ासार है, उसके बल ्ा इशक के आसन्द की करोई सीीा सहीप है। भाााकर - परीधिाी की धिरती ्ा बाग ्हाँ की तरह वकाार सहीप है, बसलक ाे भी प्रेी और आसन्द के वारप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 213 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। ावतुतः श परीधिाी का का-का ही अकरातीत का वारप है। ्ा पसु ्ा मबररख करोई, अपार धतसय की बात। तरो रहय के सुख क्य कहूं, ए तरो है हक की ात।।२१८।। चाहे करोई पशु हरो ्ा करोई ाृक हरो, सबकी शरोभा, प्रेी, और आसन्द असन्त है। ऐसी अावका ीे अकरातीत परब् की अधिार्धांमगसी (अँगवारपा) कही ासे ााली ब्सृमष्ट्य के आसन्द का ाार स ीै कैसे करँ। ससि स मकसकरो संसे उप े, खेल देख के ्य। ए रो रहे असर की, धतसका इवक स र्ा क्य।।२२।। ातर ीास सी् ीे इस ीा्ााी गत की सवकधत करो देखकर मकसी करो भी अपसे ीस ीे इस माष् ीे संश् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 214 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सहीप करसा चामह्े मक इस संसार ीे अब परीधिाी की ब्सृमष्ट्य ीे अपसे मप्र्ती के प्रधत प्रेी (इशक) क्य सहीप रह ग्ा है? इवक रह दरोऊ का्ी, और का्ी असर के ीाहे। क्य इवक खरोाे आाे क्य, उत कीी करोई आात साहे।।२३।। असामद परीधिाी अखणड है और ाहाँ पराती का तस तका उसीे मसमहत इशक भी अखणड है। इसखल्े पराती स तरो अपसा इशक गँाा सकती है और स इस झूठे संसार ीे आ सकती है। ाहाँ मकसी भी ावतु की (बा्ी) कभी भी कीी सहीप हरो सकती। भाााकर - ीा्ा के प्रभाा से आतीा अपसे धिाी धिसी करो भूली रहती है, इसखल्े उसीे इशक का अभाा हरोता है। ब्ाााी दारा ब ाह धिाी धिसी करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ास लेती है , तरो 215 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मारह की राह अपसाकर प्रेी (इशक) करो प्राप कर लेती है। इसके मापरीत उसके ीूल तस पराती से कभी भी इशक अलग सहीप हरो सकता, क्यमक ाह वालीला अदैत परीधिाी ीे मारा ीास है। उत कीी क्य आाहीप, और रहे आाे क्य इत। और इवक ाए क्य इसय का, ससि सकी एती बडी ससिसफत।।२४।। परीधिाी ीे मकसी भी बा्ी ावतु की कीी सहीप आ सकती। ससि स ब्सृमष्ट्य की इतसी बडी ीमहीा कही ग्ी है, उसके ीूल तस स तरो इस ीा्ााी गत ीे आ सकते है और स उसके इशक ीे मकसी भी प्रकार की कीी हरो सकती है। भाााकर - परीधिाी ीे मकसी भी ावतु की कीी स हरोसे का तातप्र केाल बा्ी ावतुओं (सूर, प्रेी, शरोभा, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 216 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ञास) आमद से है। ाहाँ काी, क्ररोधि, ीरोह, आमद माकारय और दगु र न्धि्क ु सशर ावतुओं के असवतता की कलपसा भी सहीप की ा सकती। कीी की बात तरो दरू की है। ात हक की कहााहीप, और कहााे ीाहे ााहेदत। रो इली माचारे हक का, ताकरो इवक बढ़त।।२५।। ्े ब्सृमष्ट्ाँ अकरातीत परब् की अँगवारपा अधिार्धांमगसी कहलाती है। इसका वारप भी एकमदली के अन्दर ही है। रो भी सुन्दरसाक धिाी धिसी के दारा अातररत इस ब्ाााी के दारा अपसे मस वारप का धचन्तस करेगा, उसके हद् ीे मप्र्ती के प्रेी की ाृधद अाश् हरोगी। भाााकर - इस चौपाई के तीसरे चरा का आश् केाल ञास की शुष्कता ीे ही खरो्े रहसा सहीप, बसलक केाल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 217 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्ाााी दारा संसार की सशरता तका परीधिाी की अखणडता, ाहाँ के असन्त सौन्द्र एां आसन्दी्ी लीलाओं, तका मस वारप का धचन्तस करसा है। इसी के दारा हद् ीे धिसी का प्रेी प्रकट हरोता है। ए केहेती हय ीै धतसकरो, करोई संसे ल्ााे ससि स। ए असहरोसी हके करी, ाावते हाँसी ऊपर रहस।।२६।। श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक हे साक ी! ्ह बात ीै केाल परीधिाी की ब्सृमष्ट्य से ही कह रही हूँ। ीेरी इस बात ीे करोई भी संश् स करे। अपसी अँगसाओं पर हँसी करसे के खल्े धिाी धिसी से असहरोसी घटसा के रप ीे ीा्ा का ्ह खेल मदखा्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 218 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सा तरो ए कबहूं सहीप, एक रो हक रहे देखे सुपस। रा असर का, उडााे चौदे भास।।२७।। अन््का ्ह तरो कभी सम्भा ही सहीप है मक अकरातीत की अधिार्धांमगसी आतीा्े अपसी सूरी स रय से ्ा शरीर से खेल ीे आकर इस झूठे खेल करो देखे। परीधिाी के एक का के ते सीाप हरो के साीसे चौदह लरोकय का ्ह ब्ाणड ा्ेगा। ए हके महकीत करी, खेल देखा्ा झूठ रहस। पट दे झूठ देखाइ्ा, सैसय देखे बका ातस।।२८।। धिाी धिसी से ऐसी माधच् लीला की है , ससि सीे ब्सृमष्ट्ाँ उसके मदल रपी पदर पर इस झूठे खेल करो देख रही है। धिसी के हुकी से उसकी स र आतीा के रप ीे इस खेल ीे आ ग्ी है तका उसकी सूरी स र प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 219 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी ीे ही धिसी की ओर देख रही है। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा का ्ह भाा सहीप सीझसा चामहए मक ब्सृमष्ट्ाँ परीधिाी के पच्चीस पकय करो देख रही है। सच तरो ्ह है मक उसकी सूरी्ी आँ खे अाश् श्री रा ी की ओर है, मकन्तु ाे उन्हे भी सहीप देख पा रही है। उसकी अन्तदरमष्ट हुकी के दारा इस झूठे संसार करो देख रही है। मखखलात गन्क १८/३ ीे ्ह बात इस रप ीे दशार्ी ग्ी हैबैठी अंग लगाए के, ऐसी करी अन्तराए। सा कछु सैसय देखत, सा कछु आप ओलखाए।। आडा पट दे झूठ देखाइ्ा, पट स आडे हक। सरो हक करो हक देखत, हुई फराीरोसी रंचक।।२९।। धिाी धिसी से फराीरोशी (सीपद) का पदार देकर अपसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 220 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अँगसाओं करो ीा्ा का ्ह झूठा खेल मदखा्ा है, मकन्तु धिाी धिसी की दमष्ट ीे करोई भी पदार सहीप है। सखख्ाँ भी धिाी धिसी की वारपा है। ाे उसकरो अपसी स रय से देख तरो रही है, मकन्तु धिसी से अपसे हुकी के दारा उसकी दमष्ट ीे साी ीा् की फराीरोशी डाल दी है। भाााकर - पदर दरो है। एक तरो धिाी धिसी का मदल रपी परदा, ससि स पर पराती की सूरी स र फराीरोशी के खेल करो देख रही है। दस ू रा फराीरोशी (सीपद) का पदार है , ससि सके कारा आतीा्े ीूल मीलााा ीे मारा ीास अपसे ीूल तस करो ्ा धिाी धिसी करो सहीप देख पा रही है। ाहदत के कारा, फराीरोशी का ्ह पदार स तरो धिाी धिसी के खल्े है और स पराती के खल्े। धिाी धिसी सार दा ागत रहसे के कारा परीधिाी करो भी देख रहे है तका कालीा्ा करो भी। इसके मापरीत पराती के तस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 221 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी फराीरोशी की लीला करो तरो श्री रा ी के मदल रपी पदर पर देख रही है , मकन्तु फराीरोशी के ब्ाणड करो अपसी सूरी स रय से सहीप देख पा रही है। आतीा्े फराीरोशी के परदे करो तब तक उलंघ सहीप पाती , ब तक ाे ब्ाााी के ञास से धिसी करो पहचास कर प्रेी की राह सहीप अपसा लेतीप। इसी करो करोडी सी फराीरोशी हरोसा कहा ग्ा है अकारत् साीीा् के खल्े फराीरोशी का पदार है, बमक धिाी धिसी के खल्े करोई भी पदार सहीप है। ब्सृमष्ट्ाँ धिसी की अँगरपा है, इसखल्े इस चौपाई के तीसरे चरा ीे उन्हे हक कहकर सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है। इस मबधि खेल देखाइ्ा, सा तरो रहे झूठ देखे क्य कर। अपसे तस हके ास के, करी हाँसी रहय ऊपर।।३०।। इस प्रकार धिाी धिसी से अपसी अँगसाओं करो ीा्ा का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 222 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ह खेल मदखा्ा है, अन््का ब्सृमष्ट्ाँ इस झूठे गत करो सहीप देख सकतीप। मप्र्ती अकरातीत से अपसी मप्र्ातीाओं करो अपसा साकात् वारप (तस) ीासकर ही ्ह हँसी की है, अकारत् हँसी का ्ह खेल मदखा्ा है। सरोभी मक्ा सुख ाावते, पर अब सुधि मकसकरो साहे। खेल देसी सुख बडे, श्री रा ब ागे असर के ीाहे।।३१८।। ी से हँसी का ्ह खेल अपसी अँगसाओं करो सुख देसे के खल्े ही मक्ा है, लेमकस इसकी ाावतमाकता का ञास अभी मकसी करो भी सहीप है। ही परीधिाी ीे ब ागत हयगे , तब ीा्ा का ्ह खेल हीे बहुत अधधिक सुख देगा। भाााकर - ससि स प्रकार शीतल चन््ीा की मकराे दाहकारक सहीप हरो सकतीप, उसी प्रकार असन्त आसन्द प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 223 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के वारप अकरातीत की करोई भी लीला दः शु खदा्ी सहीप हरो सकती। धिाी धिसी से हीे दः शु ख का खेल अाश् मदखा्ा है, मकन्तु ब्ाााी दारा रो ीाररफत की पहचास दी है, ाह परीधिाी ीे भी सहीप की। अब परीधिाी ीे ्ा इस खेल ीे ागत हरोसे पर ही उस सुख का अहसास हरो सकता है। इस सम्बन्धि ीे ससिससगार १८२/३० का ्ह ककस देखसे ्रोग् हैसुख हक इवक के, ससि सकरो साहीप सुीार। सरो देखस की ठौर इत है, रो रह सरो कररो माचार।। हादी सूर है हक का, और रहे हादी अंग सूर। इस माधि असर ीे ााहेदत, ए सब हक का श्ाीा श्ाीा ी श्री रा हूर।।३२।। ी का सूर है और सखख्ाँ श्री ी की सूर है। इस प्रकार परीधिाी ीे एकमदली प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 224 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की लीला है। श्री रा ही श्ाीा ी के ीाररफत वारप हद् से ी एां सखख्य के वारप का असामद रप से प्रकटस है, अकारत् वा्ं श्री रा ी ही श्ाीा ी एां सखख्य के वारप ीे लीला कर रहे है। ीहाीत कहे ए तीसरा, ए रो रहय मदल सागर। अब कहूं चौका सागर, पट खरोल देखरो अन्तर।।३३।। श्री ीहाीधत सागर है, ी कहते है मक हे साक ी ! ्ह तीसरा रो सखख्य के मदल ीे सवकत एकमदली (ाहदत) का सागर है। अब ीै चौके सागर (्गु ल वारप की शरोभा और श्रृँगार) का ाार स करसे ा रहा हूँ। अब अपसी आसतीक दमष्ट से इस सागर करो हद-बेहद से परे परीधिाी के ीूल मीलााा ीे देखखए। प्रकरा ।।४।। चौपाई ।।२०८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 225 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर चौका श्री रा ुगल मकसरोर का ससिससगार ी का ससिससगार पेहेला – ींगला चरस अपसे अही् का मास र स करसे के पशात् ही करोई तस उस शब्दातीत परब् की शरोभा का ाार स करसे ीे सकी हरो सकता है। इसी भाा करो ध््ास ीे रखकर परब् के चराय ीे रो अपसी भाासा्े व््क की ाती है , उसे ीँगलाचरा कहते है। चौदे तबक की दस ु ी ीे, मकस कह्ा स बका हरफ। ए हरफ कैसे केहेाहीप, मकस पाई स बका तरफ।।१८।। चौदह लरोकय के इस ब्ाणड ीे आ मदस तक मकसी से भी अखणड परीधिाी के बारे ीे करोई शब्द सहीप कहा। ब मकसी करो इस बात का ञास ही सहीप का मक परीधिाी कहाँ है तरो इसके बारे ीे ाे क्ा ाार स करते? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 226 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - ्दमप ाेद -उपमसषदय के असेक ककसय ीे परीधिाी का ाार स है और उसे प्रकृधत ीणडल से परे कहा ग्ा है, मकन्तु मबसा तारती ञास के ्ह मसार ् सहीप हरो पाता मक ाह परीधिाी इस असन्त प्रकृधत के परे मकस ओर है। आमदत्ाार ः श तीसवपरवतात्। ् ु. ३१८/१८८ म्पादध ू ्ां उदैतपुरषः श। ् ु. ३१८/४ ्् ज्रोधत अ सं ्ासवम्ीस् लरोके वारहती। ऋ० ९/१८१८३/७ असतरो ीा सद गी्। शतपक बा्ा स त् सू्र भामास स चन्् तारकी्। कठ एां ीुणडकरोपमसषद का ककस ्ही ससिसद करता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 227 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आ्ा इली लदन्न ु ाए। ु ी, कहे साहेदी एक खद तरफ पाई हक इलीे, ीै बका परोहयची इस राह।।२।। श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक इस सशर गत ीे तारती ञास का अातरा हुआ , ससि सका वपष्ट ककस है मक एकीा् अकरातीत ही सधच्चदासन्द परब् है। अकरातीत के दारा मद्े ग्े इस तारती ञास की राह पर चलकर ही ीैसे उस असामद और अखणड परीधिाी करो प्राप कर खल्ा। असर देख्ा रहअला, हक सूरत मकसरोर सुन्दर। कही ााहेदत की ीारफत, श्री श्ाीा रा रो असर के अंदर।।३।। ी से परीधिाी तका उसीे मारा ीास श्री ी के अधत सुन्दर मकशरोर वारप का दीदार मक्ा। उन्हयसे परीधिाी के अन्दर मारा ीास ाहदत की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 228 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीाररफत के वारप श्री रा ी की शरोभा का ाार स मक्ा। भाााकर - मसवबत और ाहदत के वारप सखख्ाँ है, तका इसकी ीाररफत के वारप श्री रा सदी ताल बाग ासार, ी है। रो असर की हकीकत। रहअला दई साहेदी, हक हादी खास उीत।।४।। परीधिाी ीे प्रत्क दमष्टगरोचर हरोसे ााली शरोभा (हकीकत) के रप ीे मादीास ्ीुसा ी, हौ कौशर ताल, बाग बगीचय, तका पशु-पधक्य करो सदर ु धिसी श्री देाचन्् ी से देखा। उन्हयसे ीूल मीलााा ीे मारा ीास ्गु ल वारप तका सखख्य करो भी देखा और अपसे ाचसय के दारा उसकी साकी दी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 229 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीहंीद परोहयचे असर ीे, देखी हक सूरत। हौ रोए बाग ासार, कही सब हक ीारफत।।५।। ीुहम्ीद सामहब भी अपसी आसतीक दमष्ट से परीधिाी पहुँचे और उन्हयसे श्री रा कौशर ताल, ्ीुसा ी का दीदार मक्ा। हौ ी, बाग-बगीचय, एां पशु-पधक्य ीाररफत के वारप की शरोभा का भी ाार स मक्ा है। भाााकर - ीुहम्ीद सामहब अपसे पञभौधतक तस ्ा ीा से परीधिाी सहीप ग्े , बसलक उसकी आसतीक दमष्ट ही परीधिाी ीे पहुँची। इसे ही ीुहम्ीद सामहब का परीधिाी ीे पहुँचसा कहते है। ससि स प्रकार वाप्स ीे ीस की तरंगे ही शरीर ैसा रप धिारा कर लेती है , उसी प्रकार आतीा भी पराती का प्रधतमबम्ब लेकर ीा पर बैठी हरोती है तका ध््ास ीे उसकी दमष्ट भी पराती का प्रधतमबसम्बत वारप लेकर परीधिाी पहुँच प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती है। 230 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीाररफत (परीसत्) के वारप श्री रा ाेद ीे "ऋत्" की संञा प्राप है। हौ ी है। इसे ही करोशर, ्ीुसा ी, तका बाग-बगीचय का वारप सत् (हकीकत) है, रो लीला ीे प्र्क ु हरोता है। देखी अीरद कही बाते ुलफे हक की, और बरोहरोत करी ी कूर। ाहेर बातूस, परोहयच के हक ह ूर।।६।। ीुहम्ीद सामहब से श्री रा ी के मकशरोर वारप और उसके घुँघराले बालय करो भी देखा। उन्हयसे श्री रा ी से बहुत (९०,००० शब्दय ीे ) बाते भी की। परब् का साकातकार करके उन्हयसे ीाररफत वारप श्री रा ी और हकीकत के वारप परीधिाी की बात संकेतय ीे बता्ीप। भाााकर - "कवसुल अंमब्ा" के उदर ू संवकरा पृष प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 231 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी १८८०-१८८१८ ीे ीुहम्ीद सामहब से अपसी हदीस ीे कहा है मक उन्हरोेसे खद ु ा की मकशरोर सूरत तका घुँघराले बालय करो देखा है। ए साहेदी आई इस माधि की, कहे खदु ा एक ीहंीद बरहक। सरो क्य सुधि परे मबसा इली, हक इलीे करी बेसक।।७।। कुरआस-हदीसय ीे इस बात की साकी मीलती है मक एकीा् अकरातीत ही परब् (खद ु ा) है तका ीुहम्ीद सामहब का कहा हुआ ञास सत् है, मकन्तु इसका ाावतमाक बरोधि तारती ञास के मबसा सम्भा सहीप है। ब्ाााी से हीे अब पूार रप से संश् रमहत कर मद्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 232 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीहंीद की फुरीास ीे, कही तीस सूरत। बसरी ीलकी और हकी, एक अव्ाल दरो आखखरत।।८।। ीुहम्ीद सामहब के दारा अातररत कुरआस ीे तीस सूरतय का ाार स मक्ा ग्ा है। बशरी, ीलकी, तका हकी तीसय सूरतय के साी है। धिीर गन्कय ीे ्ह भी कहा ग्ा है मक लैल-तुल-क् के तीसरे तकरार के प्रारम्भ ीे बशरी सूरत का प्रकटस हरोगा, तका आखखरत ीे ीलकी और हकी सूरत प्रकटेगी। भाााकर - कुरआस के व््ाख्ा गन्क तफसीर-ए-हुसैसी ीे पारा १८५ सूरे ीरर्ी की व््ाख्ा ीे तीस सूरतय का ाार स मक्ा ग्ा है। बशरी सूरत का तातप्र ीुहम्ीद सामहब (सल.) से है, तका सदर ु धिसी श्री देाचन्् और श्री प्राासाक ी क्रीशः श ीलकी और हकी सूरत है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 233 / 992 ी श्री सागर टीका ीेरी रह श्री रा स वााीी रो बरसस करत है, करी हामद्य ीेहेरबासगी। सा तरो अव्ाल से आ लगे, कहूं ाहेर स बका की।।९।। ीेरी आतीा रो कुछ ाार स करसे वारप श्री रा श्ाीा ा रही है, ाह ्गु ल ी की कृपा से ही सम्भा हरो पा रहा है। अन््का, सृमष्ट के प्रारम्भ से लेकर आ मदस तक मकसी से भी अखणड परीधिाी तका ्गु ल वारप की शरोभा-श्रृंगार के बारे ीे कुछ भी सहीप कहा है। आती चाहे बरसस करं, ुगल मकसरोर माधि दरोए। ए दरोए बरसस कैसे करं, दरोऊ एक कहाात सरोए।।१८०।। ीेरी आतीा चाहती है मक ीै ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी की शरोभा का अलग-अलग ाार स करँ, मकन्तु ्ह प्रश खडा हरो ाता है मक ब दरोसय एक ही वारप कहलाते है तरो इसका अलग-अलग ाार स कैसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 234 / 992 श्री सागर टीका मक्ा श्री रा स वााीी ा सकता है? बरसस हरोए इली से, एक देखाऊं बातूस ीे, रो इली हक का हरोए। ाहेर बरसाूं दरोए।।१८१८।। शरोभा का ाार स तरो ञास के दारा ही हरोगा, मकन्तु ऐसा ञास चामह्े रो श्री रा ी के दारा मद्ा हुआ हरो, अकारत् ्मद धिाी धिसी ीेरे अन्दर बैठकर वा्ं ही ाार स करे तभी ऐसा हरोसा सम्भा है। ीै आन्तररक रप से दरोसय करो एक ीासते हुए भी बा् रप से ्गु ल वारप के रप ीे ाार स करँगी। रह चाहे बका सरप की, बरसस करं ससि ीी इस। इली लदन्न ु ी खदु ाई से, रो कबहूं स सुमस्ा मकस।।१८२।। ीेरी आतीा ्ही चाहती है मक ीै श्री रा श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के 235 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अखणड वारप का ाार स इस झूठे संसार ीे करँ। इस वारप का ाार स आ मदस तक इस संसार ीे मकसी से सुसा सहीप है, मकन्तु श्री रा ी के मदए हुए तारती ञास से ही ऐसा हरोसा सम्भा है। ्ष्टव््- पुराा संमहता तका ीाहेशर तन्् ीे श्री रा श्ाीा ी की शरोभा का रो ाार स दशार्ा ग्ा है, ावतुतः श ाह केाल ब् तका उसकी आसन्द शमक की शरोभा का ाार स है। अकरातीत के आाेश के मबसा ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ससि स ी का ाार स असम्भा है। ासरो ए बरसस, करत आदीी का। ए सबके न््ारा सुभास रो, असर अ ीी ीे बका।।१८३।। ऐसा मकसी करो भी सहीप सीझसा चामहए मक ्ह मकसी सुन्दर ीसुष्् के वारप का ाार स हरो रहा है। ्ह शरोभा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 236 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तरो उस अखणड वारप ााले अकरातीत की है, रो सभी ब्ाणडय से अलग सारपरर परीधिाी ीे मारा ीास है। ीलकूत ऊपर हाा सुन््, धतस पर सूर अछर। सूर पार सूरत ला, ए रो अछरातीत सब पर।।१८४।। ाैकुणठ के परे असन्त मसराकार का ीणडल है, उसके परे अकर ब् का बेहद -ीणडल है, ससि सके परे ाह परीधिाी है ससि सीे अकर तका अकरातीत का असामद सूरी्ी वारप है। असर ठौर हीेसगी, हीेसा हक सूरत। ससिससगार सबे हीेसगी, सा चल माचल इत।।१८५।। परीधिाी तका उसीे मारा ीास श्री रा ी की शरोभा-श्रृंगार सभी शाशत, मसत्, और अखणड है। इसीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 237 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कभी भी करोई माकृधत (अवत-व््वतता) सहीप हरोती। ससि त स ै ा रह चाहत, तहां तैसा बसत ससिससगार। मसत सए ााहेदत ीे, सरोभा अखंड अपार।।१८६।। परीधिाी ीे ब्सृमष्ट हाँ भी ैसा श्रृंगार चाहती है , ाहाँ पर ाैसा ही श्रृंगार तुरन्त मदखा्ी देसे लगता है। परीधिाी ीे एकमदली हरोसे से सभी का श्रृंगार मसत् सूतस अावका ीे असन्त शरोभा करो धिारा मक्े रहता है। उसीे कभी भी कीी सहीप हरोती। भाााकर - इस चौपाई ीे इच्छासुसार श्रृंगार बदलसे का सम्बन्धि केाल रा ी से सहीप है , बसलक श्ाीा ी, सखख्य, और ीहालकीी समहत खूब-खश ु ाखल्य से भी है। एकमदली हरोसे से सभी का श्रृंगार ीस ीे लेसे से पहले ही ाैसा श्रृंगार इच्छासुसार मदखा्ी पडता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 238 / 992 श्री सागर टीका ्ा ावतर ्ा भूखस, श्री रा स वााीी रो मदल रह चहे। सरो उस अंगय सरोभा खलए, ासय आगूं ही बस रहे।।१८७।। ्मद मकसी ब्सृमष्ट के अन्दर ्ह इच्छा हरोती है मक धिाी धिसी के ास ्ा आभूषा का श्रृंगार ऐसा हरोसा चामहए, तरो उसी का उस अंगय ीे ाैसा ही श्रृंगार मदखा्ी पडसे लगता है। ऐसा लगता है स ै े ीस ीे लेसे से पहले ही ाैसा श्रृंगार शरोभा देसे लगता है। हाक स लगे भूखस करो, रो दी े हाक ऊपर। धचत चा्ा अंगय सब लग र्ा, दु ा हरोए स अग्ा मबगर।।१८८।। ्मद मकसी आभूषा करो हाक से पकडसे का प्र्ास मक्ा ा्े, तरो ाह हाक ीे सहीप आता है क्यमक ाह सूरी्ी वारप का अंग हरोता है। धचत की इच्छासुसार सभी अंगय ीे आभूषाय की शरोभा हरोती है और मबसा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 239 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आञा के करोई भी आभूषा अदश् (अलग) सहीप हरो सकता। भाााकर - ्दमप इच्छा ीस ीे हरोती है , मकन्तु उसका बी धचत के संवकारय ीे ही मसमहत हरोता है , स ै े- गा् के अन्दर ीाँस खासे ्ा शेर के अन्दर घास खासे की ीूलतः श इच्छा सहीप हरोती। इस चौपाई ीे धचत के अन्दर इच्छा हरोसे की बात इसखल्े कही ग्ी है। ससि स खखस धचत रो चाहे, सरो आगूंही बमस आाे। इस माधि ससिससगार सब सीे, मसत सए रप देखााे।।१८९।। मकसी भी सखी के धचत ीे ससि स सी् ससि स प्रकार के श्रृंगार की इच्छा हरोती है, ाह पहले से ाैसा ही मदखा्ी देसे लगता है। इस प्रकार ाहाँ सखख्य की इच्छासुसार श्रृंगार मसत् ही स्े-स्े रपय ीे दमष्टगरोचर हरोता रहता प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 240 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। सा पेहेन््ा सा उतारर्ा, मदल चा्ा मसत सुख। ााहेदत हीेसा ए सुख, हक सीपचल ससीुख।।२०।। परीधिाी ीे स तरो मकसी ास ्ा आभूषा करो पहससा पडता है और स उतारसा पडता है। ाहाँ तरो हीेशा मदल की इच्छासुसार ासय एां आभूषाय के श्रृंगार का सुख प्राप हरोता रहता है। अकरातीत के से्य से प्रेी रपी सुधिा का पास करसे ााली ब्सृमष्ट्ाँ हीेशा एकमदली वारप ीे आसन्दी् रहा करती है। सब्द स लगे सरोभा असले, पर रह ीेरी सेाा चाहे। तरो बरसस करं इसका, ासय रहय भी मदल सीाए।।२१८।। इस संसार के शब्द श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी की शरोभा का 241 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ाावतमाक ाार स करसे ीे असीकर है , मकन्तु ीेरी आतीा मप्र्ती की शरोभा का ाार स करके सेाा करसा चाहती है। ीै श्री रा ी की शरोभा का ाार स इसखल्े कर रही हूँ , तामक अन्् ब्सृमष्ट्य के हद् ीे ्ह शरोभा बस इस ससि ीी ा्े। रे की ररोससी, ीाात सहीप आसीास। तरो ए बरसस क्य हरोाहीप, असर साहेब सुभास।।२२।। परीधिाी के एक का के अन्दर इतसा प्रकाश है मक ाह आकाश ीे सहीप सीाता अकारत् सम्पूार आकाश ीे फैल ाता है। ऐसी सवकधत ीे भला ्ह कैसे सम्भा है मक परीधिाी के साहेब श्री रा मक्ा ी की शरोभा का ाार स ा सके। भाााकर - साहेब ्ा सामहब शब्द अरबी भाषा का है। ावतुतः श ्ह सम्ीाससूचक शब्द है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो साी के अन्त ीे 242 / 992 श्री सागर टीका लगा्ा श्री रा स वााीी ाता है। इसका अकर हरोता है - वााीी, ीाखलक, मी्, सहा्क, साकी, ााला ैसे सामहब-ए-इली अकारत् इली ााला। इस ककस के आधिार पर ्ह वपष्ट हरोता है मक "श्री सामहब है। "श्री ी" ीे प्र्क ु "सामहब ी ी" शब्द सम्ीाससूचक ी" शब्द का अकर असन्त शरोभा से सम्पन्न सबके मप्र्ती रो अकरातीत है, ाे ही "श्री ी साहेब ी" है। इस चौपाई ीे ारात "साहेब" शब्द के अकर "वााीी" का प्र्रोग श्री प्राासाक ी के साक करसा उधचत सहीप, क्यमक इस संसार ीे साी के आगे "वााीी" शब्द प्रा्ः श साधिु-सन््ाससिस्य के खल्े मक्ा ाता है , स ै े- वााीी मााेकासन्द, वााीी द्ासन्द आमद। ही भी "वााीी प्राासाक" कहकर धिाी धिसी की गररीा करो की करते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 243 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सम्पूार बीतक ीे सुन्दरसाक से कहीप भी "श्री "वााीी ी" करो ी" कहकर सम्बरोधधित सहीप मक्ा है। हररदार के प्रसंग ीे तारती ञास से असणभञ अन्् ीताालसम्ब्य से अाश् "वााीी ्रोही" शब्द ी" कहा है। मकरंतस ४०/१८ ीे "वााी ीा के खल्े कहा ग्ा है, आतीा के खल्े सहीप। आससिसक क्य बरसस करे, इवक खलए रेहेीास। एक अंग करो देखस लगी, सरो धतत हीप भई गलतास।।२३।। आणशक ब्सृमष्ट के ररोी-ररोी ीे धिसी के खल्े प्रेी भरा हरोता है। उसके खल्े अपसे मप्र्ती की शरोभा का ाार स करसा बहुत ही कमठस हरोता है, क्यमक ाे अपसे प्रााालभ के ससि स अंग की शरोभा करो देखती है, उसी ीे डू ब ाती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 244 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - शरोभा का ाार स तरो तभी सम्भा है, का्र करे। शरोभा ीे डू ब ब बुधद ासे पर बेसुधधि की अावका ीे बुधद का्र सहीप कर सकती। ऐसी सवकधत ीे श्रृंगार का ाार स करसा सम्भा सहीप है। ्ह तरो ीा् श्री रा ी के आदेश (हुकी) से ही सम्भा है। सरोभा ुगल मकसरोर की, सुख सागर चौका ए। आाे लेहेरे सेहेरे अधत बडी, झीले अरााहे रो इस के।।२४।। ्ह चौका सागर ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा शरोभा का सागर है, ी की रो सुख का सागर है। इस सागर की उीडती हुई लहरय ीे सहरय के सीास प्रेी और आसन्द का ल भरा हरोता है, ससि सीे परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ वसास करती है। भाााकर - ्गु ल वारप की शरोभा करो अपसे हद् ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 245 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बसाकर ही प्रेी और आसन्द के सागर ीे वा्ं करो डु बरो्ा ा सकता है। संसार के दः शु खय से छूटसे और धिसी करो पासे का इसके अधतररक अन्् करोई भी ीागर सहीप है। खूबी ुगल मकसरोर की, प्रेी ाचस इस रीत। आससिसक इस ीासूक की, भर भर प््ाले पीत।।२५।। इस प्रकार, रो ब्सृमष्ट अपसे ीाशूक श्री रा श्ाीा ी की आणशक हरोती है, ाह ब्ाााी के इस प्रेी भरे ाचसय करो आतीसात् करती है और ्गु ल वारप की शरोभा करो अपसे मदल ीे बसाकर प्रेी तका आसन्द के प््ाले भर-भरकर पीती है। भाााकर - आतीा का हद् ही ाह प््ाला है, ससि सीे प्रेी और आसन्द का रस भरा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता है, ससि सका रसपास 246 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आतीा करती है। मकन्तु ्ह तभी सम्भा है, वारप की शरोभा करो मदल ीे बसा्ा ब ्गु ल ा्े। इस सम्बन्धि ीे सागर गन्क का ्ह ककस बहुत ीहतापूार हैताके महरदे आती के लीससि ए, बीच साक सरप सुरत स दी े टू टसे, फेर फेर ुगल। ाइए बल बल।। सागर १८१८ /४६ अगली चौपाई ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। ीेरी रह सैस की पुतली, धतस पुतखल्य के सैस। धतस सैसय ीे राखूं ीासूक करो, ज्य ीेरी रह पााे सुख चैस।।२६।। ीेरी आतीा पराती रपी सैस की पुतली है। उस आतीा रपी पुतली का सैस ्ह हद् है, ससि सीे अपसे ीाशूक श्री रा श्ाीा ी करो ीुझे बसा लेसा है। ऐसा करसे पर ही ीेरी आतीा अपसे मप्र्ती का आसन्द पा सकेगी और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 247 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तभी उसे आराी (सुकूस, सन्तरोष) भी प्राप हरोगा। भाााकर - ्ह सार ीान्् ससिसदान्त है मक प्रेी रस का पास से्य के दारा मक्ा ही श्री रा ाता है। परीधिाी ीे पराती के दारा ी से प्रेी की लीला सम्पामदत हरोती है, इसखल्े उसे से् की संञा दी ग्ी है। ससि स प्रकार मबसा पुतली के से् से सहीप देखा पराती की स र ा सकता , उसी प्रकार रो हुकी के दारा आतीा (सुरता) के रप ीे इस खेल ीे आ्ी है, उसके मबसा पराती भी धिसी से स तरो प्रेी कर पा रही है और स बाते कर पा रही है। इस कारा आतीा करो पराती रपी से् की पुतली कहा ग्ा है। अब पुतली रपी आतीा का से् ाह हद् है , ससि ससे मप्र्ती से प्रेी मक्ा ाता है और उसीे बसा्ा ाता है। इसी से मीलता- ुलता भाा कबीर ी से भी व््क मक्ा है। ाे कहते हैप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 248 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सैसय की कखल करोठरी, पुतली पलंग मबछा्। सैसय की धचक डारर के, मपऊ करो खल्ा ररझा्। इस ककस ीे आतीा करो से् तका पुतली करो हद् कहा ग्ा है। ीीराबाई के ककस "बसरो ीेरे सैसस ीे सन्दलाल " ीे "सैस" का तातप्र ीा के मदल से है। इस प्रकार अलग-अलग प्रसंगय ीे सैस , पुतली, और तारा का प्र्रोग मक्ा ग्ा है, मकन्तु ीूल भाा ्ह है मक हद् ीे शरोभा बसा्ी ाती है तका ्ष्टा आतीा ्ा के दारा उसका रसपास मक्ा ीा ाता है। ।। ींगलाचरस तीाी ।। ्ह ींगलाचरा सम्पूार हुआ। अब श्री रा से उसकी शरोभा का ाार स मक्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी की ीेहर ा रहा है। 249 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससिसर पाग बांधिी चतुराई सय, हके पेच हाक ीे ले। भाा मदल ीे ले् के, सुख क्य कहूं माधि ए।।२७।। धिाी धिसी से अपसे हाकय से ससिसर पर पेच (लपेट) मफराते हुए बहुत ही चतुराई से पाग बाँधिी है। सखख्य करो आससन्दत करसे के खल्े अपसे मदल ीे भाा लेकर उन्हयसे रो पाग बाँधिी है, उससे मीलसे ााले सुख का ाार स ीै सहीप कर सकती। केस चुए ीे भीगल, खलए ुगते पेच मफराए। पेच मदए ता पर बहु मबधि, बांधिी सारंगी बसाए।।२८।। श्री रा ी के घुँघराले बालय ीे सुगसन्धित इ् लगा हुआ है। उन्हयसे ्मु कपूारक अपसे ससिसर के ऊपर असेक प्रकार के पेच मफराते हुए इस प्रकार पाग बाँधिी है मक उसकी आकृधत सारंगी की तरह शरोभा ले रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 250 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - सारंगी एक प्रकार प्राचीस ााद्न्् है, ससि सके आधिार पर आधिुमसक ााद ाा्खलस की रचसा की ग्ी है। सारंगी के एक मकसारे पर ैसी आकृधत उभरती है , लगभग उसी से मीलती हुई शरोभा श्री रा ी के पाग की भी है। उजल हवत कील सय, करोील सरी अतंत। बांधिी महरदे माचार के, दरोऊ क्य कर करं ससिसफत।।२९।। श्री रा ी के दरोसय हवतकील अधत उजाल गौर ाार के है। उसकी करोीलता असन्त है। अपसी आतीाओं करो आससन्दत करसे का माचार लेकर धिाी धिसी से अपसे ससि स हाकय से ्ह सुन्दर पाग बाँधिी है , उस हाकय की सुन्दरता का ाार स ीै कैसे करँ? भाााकर - उजाल ाार का तातप्र ाह रंग है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो सफेदी 251 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीे गहरी गुलाबी आभा खल्े हरो। रंग लाल री ीाहे बेल कई, कई फूल पात सकस कटाा। कई रंग संग ाेर झलके, बखल ाऊं बांधिी ससि स भाा।३०।। पाग का रंग लाल है, ससि स पर सरोसे के तारय से असेक प्रकार की लताओं, फूलय, और पखत्य के धच् अंमकत मक्े ग्े है। पाग ीे असेक रंगय के सग और ााहरात झलकार करते रहते है। मप्र्ती अकरातीत से अपसी अँगसाओं करो आससन्दत करसे की ससि स भाासा से ्ह पाग बाँधिी है, उस भाा पर ीै बार -बार सीरपत (बखलहारी) हरोती हूँ। आससिसक एही माचार हीप, तब ्ाही ीे रहे लपटाए। अंदर हक पेचस से, क्य कर मसकव्रो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाए।।३१८।। 252 / 992 श्री सागर टीका श्री रा श्री रा स वााीी ी के प्रेी भाा ीे डू बी रहसे ााली ब्सृमष्ट ब धिसी के प्रेीी्ी भााय एां पाग की सुन्दरता के बारे ीे माचार करती है , तरो उसीे ी् हरो के पेचय की शरोभा ीे इतसी डू ब ाती है। ाह पाग ाती है मक उससे मसकल पासा उसके खल्े सम्भा सहीप हरोता। ऊपर कलंगी लटकत, झलकत है अधत रोत। ्ाकरो सूर आसीास ीे, भराए र्रो उदरोत।।३२।। पाग के ऊपर कलंगी लटक रही है, ससि सकी सूरी्ी ज्रोधत बहुत अधधिक झलकार कर रही है। उसका सूरी्ी प्रकाश आकाश ीे चारय ओर फैल रहा है। ऊपर सारंगी दगु दगु ी, करे ए देखे अंतर आं खे खल ु े, ए प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो झलझलाट। रो हैडे के कपाट।।३३।। 253 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सारंगी की आकृधत ााली उस पाग ीे दगु दगु ी झलकार कर रही है। उसकी शरोभा देखसे से हद् के बन्द दराा े खल ु ाते है और आसतीक दमष्ट परीधिाी ीे माहार करसे लगती है। भाााकर - ीा न्ी- न्ीान्तरय से ीा्ा के बन्धिस ीे बँधिा हरोता है। उसके हद् ीे ााससाओं का ाल मबछा हरोता है। ्मद ञास, भमक, मााेक, और ाैराग् आमद की अीृतधिारा उसके हद् ीे प्राेश सहीप कर पाती है , तरो साीान्् तौर पर ्ही कहा ाता है मक आध््ासतीक सम्पदा के खलए उसके हद् का दार बन्द है। ब ्ह आध््ासतीक सम्पदा उसके हद् ीसन्दर ीे प्राेश कर ाती है, तरो ्ही कहा ाता है मक अब उसके हद् के बन्द दार खल ु ग्े है। इस चौपाई का आश् ्ही है मक धिाी धिसी की ीेहर से ्मद पाग की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा गीगाती हुई 254 / 992 श्री सागर टीका दगु दगु ी की शरोभा मदख भर श्री रा स वााीी ा्े, तरो हद् ऐेसे आसन्द से ाता है मक ाह पुसः श ीा्ा ीे भटकसे की इच्छा सहीप करता और आसतीक दमष्ट अपसे प्रााालभ अकरातीत तका मस घर करो देखसे लगती है। इस परस का सूर क्य कहू,ं देख देख रह अटकत। और न््ारी रोत संगस की, ए रो दगु दगु ी लटकत।।३४।। कलंगी ीे लगे हुए परय के सूर का ाार स कैसे मक्ा ा सकता है। उसकी शरोभा देखकर तरो आतीा की स र ही ठहर ाती है। पाग ीे लटकती हुई दगु दगु ी ीे रो सग डे हुए है, उससे मसकलसे ााली ज्रोधत की शरोभा अलग ही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 255 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ऊपर दगु दगु ी रो ीामसक, आसीास भर्रो ताके ते । आसीास ससि ीी के बीच ीे, रोत परोहयची रे ा रे ।।३५।। दगु दगु ी के ऊपर ीाणाक डा हुआ है, ससि सका ते आकाश ीे चारय ओर फैला हुआ है। परीधिाी के आकाश और धिरती के एक-एक का तक उसकी ज्रोधत फैली हुई है। सुन्दरता इस ीुख की, सब्द स परोहयचे करोए। सूर करो सूर श्री रा रो सूर है, मकस ीुख कहूं रंग सरोए।।३६।। ी के ीुख के असन्त सौन्द्र का ाार स करसे ीे मकसी भाषा का करोई भी शब्द सीकर सहीप है। श्री रा ी के ससि स सूरी्ी वारप से श्ाीा ी और सखख्य का वारप दमष्टगरोचर हरो रहा है, उस वारप के ीुखारमान्द के रंग की शरोभा का ाार स कैसे मक्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्े। 256 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - श्री रा प्रकार भी कहा ी के ीुखारमान्द के सम्बन्धि ीे इस ा सकता है मक ब ्रोगीा्ा के एक का ीे इतसा सूर है मक उसके साीसे कररोडय सू्र णछप ाते है, तरो अकर ब् और उससे परे अकरातीत के ीुखारमान्द की शरोभा कैसी हरोगी। इस सम्बन्धि ीे कलश महन्दवु तासी २०/१८८,२०,२२ तका सागर १८/२६, २७ देखसे ्रोग् हैएक रा धतस ससि ीी का, ताके ते सरो सूर दष्टे स आाहीप, इस ससि ीी आगे सूर करोट। रे की ओट।। बरसस करं एक पात की, सरो भी इस ुबां कही स ाए। करोट ससी रो सूर कहूँ, तरो एक पात तले ढंपाए।। मकरसा ास ससि ीी् की, साीी मकरसा सससिस प्रकास। सूर ही पे खेले सूर ीे, प्रेीे मप्ा सय रास।। कलश मह. २०/१८८,२०,२२ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 257 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए उजल रंग अंग असर का, ीाहे गेहेरी लालक ले। ीुख चौक छमब इसकी, मकस माधि कहूं ीै ए।।३७।। परीधिाी ीे मारा ीास श्री रा ी के ीुखारमान्द का रंग उजालता (सफेदी) ीे गहरी लाखलीा खल्े हुए है। उसके ीुख की आकृधत इतसी सुन्दर है मक उसका ाार स कर पासा ीेरे खल्े मकसी प्रकार से सम्भा सहीप हरो पा रहा है। धतलक सरोणभत रंग कंचस, असल बन््रो सुन्दर। चारय तरफय करकरी, सरोहे लाल पबदी अंदर।।३८।। श्री रा ी के ललाट (ीाके) पर सरोसे के रंग से बसा हुआ बहुत ही सुन्दर धतलक शरोभा्ीास हरो रहा है। उसके चारय ओर छरोटी-छरोटी चीकती हुई मबसन्द्ाँ है। धतलक के अन्दर लाल रंग की सुन्दर मबन्दी लगी हुई है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 258 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लासे केस कासय पर, धतस केसय का रो सूर। आसीास ससि ीी के बीच ीे, रोत भराए रही हूर।।३९।। श्री रा ी के सुन्दर घुँघराले बाल कास के आभूषाय तक आ्े हुए है। उस बालय से मसकलसे ााली सूरी्ी ज्रोधत धिरती और आकाश के बीच ीे चारय ओर फैल रही है। सैसस की ीै क्य कहू,ं सूर रंग भरे तारे। सेत ीाहे लालक खलए, सरोहे टेढ़े अमस्ारे।।४०।। असन्त सौन्द्र से भरे हुए उसके से्य की शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ। दरोसय से्य के तारे सूर से भरपूर है। दरोसय से्य की सफेदी ीे लाखलीा मीली हुई है। से्य की आकृधत धतरछी है और उसके करोसे सुकीले है। भाााकर - आँ खय की गरोल पुतली के अन्दर एक और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 259 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी छरोटी सी गरोलाई हरोती है, ससि से तारा कहते है। आँ खय के सफेद परदे पर लाखलीा छा्े रहसा प्रेी की प्रगाढ़ता का दरोतक (पररचारक) है। धतरछे और सुकीले से् सौन्द्र का प्रधतीास ीासे ाते है। रह के सैसय से देखखए, अधत ीीठे लगे प््ारे। कई रंग रस छमब इसीे, मसीख स हयए न््ारे।।४१८।। हे साक ी! ्मद आप अपसे आसतीक से्य से श्री रा ी के से्य करो देखे , तरो ्े बहुत ही प््ारे लगते है और ीाधिु्रता के सागर के सीास मदखा्ी देते है। इसीे आठय सागरय की छमा मदखा्ी पडती है , ससि सीे उसका वारप और आसन्द झलकता रहता है। इसकरो देखसे पर एक का भी अलग हरोसे की इच्छा सहीप हरोती। भाााकर - मदल के भाा आँ खय ीे दमष्टगरोचर हरोते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ब 260 / 992 श्री सागर टीका श्री रा श्री रा स वााीी ी के मदल ीे आठय सागर सीा्े हुए है , तरो उसकी झलक अाश् ही से्य से प्रकट हरोगी। इस चौपाई के तीसरे चरा का ्ही भाा है। साससिसका की ीै क्य कहू,ं करोई इसका मसीूसा साहे।। ससि स देख्ा सरो ीै श्री रा ासहीप, ााके चुभ रहे हैडे ीाहे।।४२।। ी की साससिसका की शरोभा का ाार स कैसे करँ। इसकी सुन्दरता के ाार स ीे मकसी की भी उपीा सहीप दी ा सकती। ससि न्हयसे धिाी धिसी की साससिसका के सौन्द्र करो देखा है , ाे ही उसके आसन्द करो ासते है। साससिसका की अलौमकक छमा उसके धिाी हद् ीे हीेशा ही बसी रहती है (चुभ रही हरोती है)। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 261 / 992 श्री सागर टीका कासस ीरोती लटकत, उजल श्री रा स वााीी रोत प्रकास। बीच लाल की लालक, रोत ीाात सहीप आकास।।४३।। प्रााालभ अकरातीत के दरोसय कासय ीे ीरोती लटक रहे है, ससि सकी उजाल (शेत) ज्रोधत का प्रकाश चारय ओर फैल रहा है। उस ीरोधत्य के बीच ीे ीाणाक डे हु ए है , ससि सकी लाखलीा भरी ज्रोधत आकाश ीे सहीप सीाती अकारत् चारय ओर फैल रही है। लाल बाला असर धिात का, करडे बसे चार चार। इस ीरोती और लाल की, रह देख देख हरोए करार।।४४।। दरोसय कासय ीे सूरी्ी तता के लाल रंग के दरो बाले शरोभा दे रहे है। इसीे चार-चार ऐंठ (ीररोड) आ्ी है। ब इसीे लटकते हुए ीरोधत्य और ीाणाक की शरोभा करो आतीा देखती है, तरो उसे बहुत अधधिक आसन्द आता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 262 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी गौर रंग अधत गालय के, ीाहे गेहेरी लालक खलए। दरोऊ भकुटी बीच साससिसका, ऊपर सुन्दर धतलक मदए।।४५।। मप्र्ती के दरोसय गालय का रंग बहुत अधधिक गरोरा है। उसीे गहरी लाखलीा णछपी हुई है। दरोसय भौहय के बीच ीे साससिसका की सुन्दर शरोभा हरो रही है। ीाके (ललाट) पर अधत सुन्दर धतलक शरोभा्ीास हरो रहा है। भाााकर - ्गु ल वारप की शरोभा का ाार स भारती् संवकृधत की ीान््ताओं के असुसार मक्ा ग्ा है , क्यमक ब्सृमष्ट्य का अातरा एकीा् भारताषर ीे ही हुआ है। ्दमप कतेब परम्परा ीे धतलक , साडी आमद का ाार स सहीप है, मकन्तु ्गु ल वारप करो रो ससि स रप ीे प्रेीपूारक चाहता है , उसे उसी रप ीे दीदार मीलता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 263 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी गौर हराटी अधत सुन्दर, बीच लांक ऊपर अधिूर। बल बल ाऊं ीीठे ीुख की, मील दरोऊ करे ी कूर।।४६।। श्री रा ी की ठु डी गरोरे रंग की है और बहुत ही सुन्दर है। ठु डी और हयठ के बीच का गहरा वकास भी बहुत सुन्दर है। ब श्री रा श्ाीा ी आपस ीे प्रेी भरी बाते करते है, तरो उसके ीाधिु्रता भरे ीुख की शरोभा पर ीै बारम्बार बखलहारी ाती हूँ (सीरपत हरोती हूँ)। कमट करोील अधत पेट पांसली, पीठ गौर सरोभे सरस। गरदस केस पेच पाग के, छमब क्य कहूं अंग असर ।।४७।। श्री रा ी की कीर, पसली (कन्धिे के सीचे का भाग), और पेट बहुत ही करोील है। गरोरे रंग की पीठ बहुत ही सुन्दर सुशरोणभत हरो रही है। गरदस तक आ्े हुए घुँघराले बालय तका ससिसर के ऊपर बँधिी हुई पाग के लपेटय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 264 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की सुन्दरता अलौमकक है। सीझ ीे सहीप आता मक श्री रा ी के इस सूरी अंगय की शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ। ्ष्टव््- कन्धिे से सीचे आ्ी ीेरदणड से छाती की ओर आ्ी घुीाादार हधड्य ााला भाग पसली कहलाता है। करोील अंग कंठ हैडा, खभे ीछे गौर लाल। करोसी कांडे करोील देखत, आससिसक बदलत हाल।।४८।। ीेरे प्रााालभ अकरातीत का गला और हद् (छाती) अंग बहुत करोील है। दरोसय कन्धिय तका दरोसय बा ुओं का रंग लाखलीा खल्े हुए अत्धधिक गौर ाार का है। करोहसी और कलाइ्य की करोीलता करो देखकर आणशक आतीा की सवकधत बदल ाती है। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा का भाा ्ह है मक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 265 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब आतीा धिसी के इस करोील अंगय की शरोभा करो देखती है, तरो उस शरोभा ीे डू बकर वा्ं करो भुला देती है। उस सी् उसके अन्दर केाल "तू" का ही भाा रह ाता है। लीके सरोणभत हकेखल्ां, रंग उजल कहूं के गुलाल। रह के पलक स छूटहीप, अंग करोील सूर ीाल।।४९।। दरोसय हकेखल्य ीे पतली रेखा्े सुशरोणभत हरो रही है। हकेखल्य का रंग सफेदी ीे गहरी लाखलीा खल्े हु ए है। ्ह मीणश्रत रंग इस प्रकार ओत-प्ररोत है मक ्ह मसार ् करसा कमठस है मक उसका रंग क्ा कहा ा्े - उजाल ्ा लाल? मप्र्ती के ्े करोील अंग एक पल के खल्े भी आतीा की दमष्ट से अलग सहीप हरो सकते। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 266 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरी अंगुरर्ां पतली, परोहयचे सलूकी ुदे भाए। रंग सलूकी परोहयचे हकेखल्ां, मकस ीुख कहूं धचत ल्ाए।।५०।। अँगुखल्ां पतली और बहुत ही करोील है। पँ य की शरोभा अलग ही मदखा्ी दे रही है। दरोसय पँ य और हकेखल्य के रंगय की सुन्दरता का ीै मकस ीुख से ाार स करँ रो ीेरे धचत ीे बस ग्े है , अकारत् उसकी सुन्दरता का ाार स करसा सम्भा सहीप है। सैस श्रास ीुख साससिसका, ीुख छमब अधत सुन्दर। ए देखत हीप आससिसक अंगय, चुभ रहत हैडे अन्दर।।५१८।। श्री रा ी के दरोसय से्य, कासय, साससिसका, तका ीुख की छमा बहुत ही सुन्दर है। ब इस अलौमकक शरोभा करो आतीा (आणशक) देखती है, तरो उसके धिाी हद् ीे ्ह अंमकत हरो ाती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 267 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - हद् ीे शरोभा चुभसे का अकर है , अखणड हरो ासा ्ा अंमकत हरो ासा। बीडी सरोणभत ीुख ीरोरत, लेत तम्बरोल रंग लाल। ए बरसस रह तरोलय करे, रोलय लगे स हैडे भाल।।५२।। श्री रा ी ब अपसे ीुख ीे पासय की बीडी लेकर चबाते है, तरो पास समहत हयठय एां ीुख का आन्तररक भाग लाल हरो ाता है। इस अलौमकक शरोभा का ाार स आतीा तभी तक कर पा रही है, ब तक उसके हद् ीे इस शरोभा की चरोट सहीप लगती। भाााकर - पास की लाखलीा से और बढ़ हरो ब हयठय की लाखलीा ाती है, तरो ीुखारमान्द की शरोभा ीे बहुत ाृधद ाती है। ्दमप परीधिाी के ाहदत ीे "ाृधद" स ै े शब्द का प्र्रोग उधचत सहीप है, मकन्तु शरोभा के सन्दभर ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 268 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्हाँ के भााय से ऐसा कहा ग्ा है। हद् ीे चरोट लगसे का तातप्र है , उस शरोभा ीे इतसा डू ब करसे की दमष्ट से बुधद वतब्धि हरो ा्े (बन्द हरो ासय के ासा मक ाार स ा्े और ीुख ससिसल ा्े)। रोास सौतस, अ ूं चढ़ता है रंग रस। ऐसा का्ी हीेसा, इस माधि अंग असर ।।५३।। धिाी धिसी का वारप ऐसा है, स ै े सा्ौास की बहार आ्ी हरो और ससि सके आसन्द और उलास (ीवती) ीे पल-पल की ाृधद हरो रही हरो। श्री रा ी के सूरी्ी अंगय ीे इस प्रकार की शरोभा हीेशा ही बसी रहती है। सेत ाीा अंग लग र्ा, मीहीप चूडी बसी दरोऊ बांहे। दाास क्य बरसस करँ, इस अंग की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ुबांए।।५४।। 269 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्राा-मप्र्ती से शेत रंग का ाीा धिारा कर रखा है, ससि सकी दरोसय बाहय ीे ीहीस चुन्नटे बसी हुई है। इस ीा्ा की बास (ाााी) से दाास की शरोभा का ाार स करसा सम्भा सहीप है। भाााकर - " ाीा" शब्द फारसी भाषा का है, ससि सका अकर ास है। ्ह एक प्रकार का पहसााा है ससि सकी लम्बाई पैरय के टखसे तक रहती है , ससि से प्रा्ः श ीध््कालीस ्गु ीे रा दरबार ीे धिारा मक्ा ाता का। इसके सीचे कीर के महवसे (दाास) ीे चुन्नटे पडी हरोती है तका ्ह भाग लहंगे के सीास घेरदार हरोता है। दाास (दाीस) शब्द भी फारसी का है। ्ह ाीे का कीर के सीचे ााला भाग हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 270 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बेल सकस दरोऊ बगलय, चीस झलकत ीरोहरोरी डाा। सकस बेल मगरबास बन्धि, पीछे अतंत बन््रो कटाा।।५५।। आगे के दरोसय ओर लताओं (बेलय) के धच् अंमकत है। ाीे की बाँह की कलाई झलकार कर रही है। बाँहय की चुन्नटय ीे सग ाीे की डे हुए है। गले के पास (मगरबास बन्धि ीे) सुन्दर-सुन्दर लताओं के धच् अंमकत है। पीठ की तरफ भी असन्त प्रकार की धच्कारी की ग्ी है। भाााकर - चीस फारसी भाषा का शब्द है। ाीे की बाँह की कलाई करो "चीस" कहते है और बाँहय की चुन्नटय ााले भाग करो "ीरोहरोरी" कहा ाता है। इसी प्रकार कीर के चारय ओर इ ार के गरोल घेरे करो भी चीस कहते है। ्ही बात ीरोहरी पर भी लागू हरोती है। ातर ीास सी् ीे हाँ बटस लगा्े पहले बटस की ाते है, उसे "मगरबास बन्धि" कहते है। गह बाँधिसे के खल्े छरोटी-छरोटी डरोरर्य प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 271 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का प्र्रोग हरोता का, ए देत देखाई रंग रो ाीे ीे ुडी रहती कीप। ाेर, सकस कटाा बेली र। लगत साहीप हाक करो, रंग संग धिागा बराबर।।५६।। ्े रो ााहरातय के तरह-तरह के रंग तका सरोसे के तारय से बसे हुए असेक प्रकार की लताओं के धच् मदखा्ी देते है, हाकय से छूसे का प्र्ास करसे पर करोई भी रंग, सग, ्ा धिागा हाक ीे सहीप आता। इ ार रंग रो केसरी, झांई ाीे ीे लेत। दाास डाा अधत गीगे, रंग सरोभे केसरी पर सेत।।५७।। श्री रा ी के पैरय ीे केशरर्ा रंग का चूडीदार पा् ाीा (इ ार) है। इसका प्रधतमबम्ब शेत रंग के ाीे ीे मदखा्ी पड रहा है। केशरर्ा रंग की इ ार के ऊपरी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 272 / 992 श्री सागर टीका महवसे पर है, श्री रा स वााीी ाीे का मसचला महवसा "दाास" आ्ा हुआ रो सगय से डा हुआ है और बहुत अधधिक गीगा रहा है। सीले पीले के बीच ीे, झांई लेत रंग दरोए। सरो पटु का कीर बन््ा, रंग क्ा सुन्दरबाई सरोए।।५८।। सीले और पीले रंग करो मीणश्रत करसे पर हरा रंग हरो ाता है। धिाी धिसी की कीर ीे इस प्रकार के हरे रंग का (तरोते के पँख स ै ा) "पटु का" बँधिा हुआ है। इसीे कभी सीले रंग का प्रधतमबम्ब झलकता है, तरो कभी पीले रंग का। सदर ु धिसी श्री देाचन्् ी (श्ाीा ी) से भी पटु के का ्ही रंग बता्ा का। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 273 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी री पटु का कटाा कई, कई सकस बेल मकसार। पाच पांसे हीरे परोखरे, कई रंग संग झलकार।।५९।। पटु के की मकसारे पर सरोसे के तारय से असेक प्रकार की लताओं के धच् बसे हुए है। इसीे पाच, पन्ना, हीरा, और पुखरा आमद के सग डे हुए है, ससि ससे असेक रंगय की आभा झलकती रहती है। ीसी ीामसक लसमस्ां सीलाी, अतंत उदरोतकार। फूल पात बेल सकस, ए रोत स छे डय सुीार।।६०।। पटु के ीे ीणा, ीाणाक, लहसुमस्ा, और सीली आमद असेक प्रकार के ााहरात डे हुए है, ससि ससे हरोसे ााला उ ाला असन्त है। पटु के की मकसार पर रो लताओं, पखत्य, तका फूलय के धच् अंमकत है , उससे मसकलसे ााली ज्रोधत की करोई सीीा ही सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 274 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हेी ावतर संग सूर ीे, सरीाई अतंत। रो करोई ची असर की, खस ु बरोए अधत बेहेकत।।६१८।। परीधिाी ीे सरोसा आमद धिातुएँ , ास, ्ा सग आमद रो भी ावतुएँ है, सभी सूरी्ी है। उसकी करोीलता भी असन्त है तका उससे बहुत अधधिक सुगसन्धि मसकलती है। एक हार ीरोती एक सीलाी, और हार हीरय का एक। एक हार लाल ीामसक का, एक लसमस्ां मासेक।।६२।। धिाी धिसी के गले ीे पाँच हार शरोभा देते है। एक हार ीरोती का है और एक सीली का है। गीगाते हु ए हीरय का भी एक हार है, तरो लाल आभा ााले ीाणाक का भी एक हार है। पाँचाां हार माशेष है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो लहसुमस्ाँ का है। 275 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस हारय बीच दगु दगु ी, सूर संग क्रो स ाए। रोत अम्बर लय उठ के, अाकास र्रो भराए।।६३।। इस हारय के बीच ीे दगु दगु ी लगी हुई है, ससि सीे डे हुए सगय ीे इतसा सूर है मक इसका ाार स ही सहीप हरो सकता। सगय से मसकलसे ााली ज्रोधत आकाश ीे बहुत ऊँचाई तक उठकर चारय ओर फैल रही है। इस पांचय हार के फुीक, धतस फुीक पांचय रंग। रंग पांचय सरोभे ुदे ुदे, री सरोणभत धिागे संग।।६४।। इस पाँच हारय ीे अलग -अलग पाँच रंगय के फुम्ीक झूल रहे है। सरोसे के तारय ााले धिागे से ्े फुम्ीक डे हुए है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 276 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए पांच रंग एक कंचस, ताके बसे रो बा ूबन्धि। इस ुबां सरोभा क्य कहू,ं झूले फुन्दस भली ससन्धि।।६५।। कञस के बसे हुए बा ूबन्धि है, ससि सीे पाँच रंग के सग डे हुए है। इस दरोसय बा ूबन्धि ीे फुन्दस लटके हुए है , रो बहुत अच्छी तरह से झूल रहे है। ीै इस ससि िहा से बा ूबन्धिय की शरोभा का ाार स कैसे करँ। ्ष्टव््- फुन्दस फूल की आकृधत का छरोटा सा गुच्छा हरोता है, रो झालर ्ा धिागे से लटकता रहता है। इसे झब्बा भी कहते है। दरोए परोहयची दरोए ससि सस की, ीसी ीामसक ीरोती पुखरा । हेी हीरा लसमस्ां सीलाी, दरोऊ परोहयची रही मबरा ।।६६।। धिाी धिसी अपसे दरोसय परोहयचरो (पञ्जय) ीे दरो-दरो परोहयची धिारा मक्े हुए है। इस दरोसय परोहयधच्य ीे ीणा, ीाणाक, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 277 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीरोती, पुखरा , हीरा, लहसुमस्ा, और सीली के सग सरोसे ीे डे हुए है। भाााकर - कलाई से आगे एां हकेली के मापरीत का ऊपरी भाग पँ ा ्ा परोहयचा कहलाता है। श्री रा ी के प्रत्ेक हाक ीे दरो-दरो परोहयची है- एक छरोटी तका दस ू री बडी। छरोटी परोहयची करो आ कल कडा (बेसलेट, bracelet) भी कहा ाता है। बडी परोहयची कुछ पर "पँचांगुला" के साी से भी ासी गहय ाती है। एक परोहयची एक दगु दगु ी, और सात सात द ू ी करो। सरो सातय ससि सस ुदी दु ी, आात सा अकल ीय।।६७।। एक परोहयची ीे एक दगु दगु ी है तका दस ू री परोहयची ीे सात-सात दगु दगु ी। ्े सातय दगु दमु ग्ाँ अलग -अलग सगय की है। इसकी अलौमकक शरोभा बुधद ीे सहीप आती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 278 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पाच पांसे हीरे परोखरे, ीुंदरी अंगुरर्य सात। सीलाी ीरोती लसमस्ां, सा श्री रा सरोणभत हेी धिात।।६८।। ी की सात अँगुखल्य ीे सात ीुम्का्े (ीुँदरर्ां) है। इस वाार ी्ी ीुँदरर्य ीे पाच , पन्ना, हीरा, पुखरा , सीली, ीरोती, और लहसुमस्ा के डे हुए सग शरोभा्ीास हरो रहे है। ्ष्टव््- ीुँदरी (ीुम्का) और अँगूठी ीे सूकी अन्तर हरोता है। अँगूठे ीे रो धिारा की ाती है , ाह अंगूठी कहलाती है, और शेष अन्् अँगुखल्य ीे रो पहसी ाती है, ाह ीुम्का (ीुँदरी) कहलाती है। एक अंगूठी आठीी, सरो सरोभा लेत सब पर। सरो ए एक ीामसक की, ुड बैठी अंगूठे भर।।६९।। आठाीप अँगूठी की शरोभा सबसे अधधिक है। ाह माशुद प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 279 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीाणाक की है और अँगूठे ीे धिारा की ग्ी है। भाााकर - ीुम्का (ीुँदरी) और अँगूठी ीे भेद केाल अँगुली की दमष्ट से ही हरोता है , रचसा की दमष्ट से सहीप। इस चौपाई के पहले चरा ीे "एक अंगूठी आठीी" कहसे का ्ही आश् है। इस ीुख सख रोत क्य कहूं, कई करोट सूर ढंपाए। ए सुखकारी ते सीतल, ए ससिसफत स कही ाए।।७०।। अपसे इस ीुख से धिाी धिसी के सखय की ज्रोधत का ीै कैसे ाार स करँ। उसकी ज्रोधत के साीसे कररोडय सू्र णछप ाते है। इस सखय का ते तरह दाहकारक सहीप है , ड सू्र के ते बसलक शीतल की और आसन्ददा्क है। इसकी ीमहीा शब्दय ीे सहीप कही सकती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 280 / 992 ा श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अ ब रंग आसीासी का, ुडी ाीे मीहीप चादर। ए भूखस बेल कटाा ाीे, सब आात ीाहे स र।।७१८।। ाीे के ऊपर आसीासी रंग की बहुत ही अदत ु और पतली चादर आ्ी है। ्ह चादर इतसी बारीक है मक ाीे के ऊपर बसी हुई लताओं के धच्य और आभूषाय का दश् वपष्ट रप से दमष्टगरोचर हरोता है। ्ष्टव््- चादर सम्पूार ाीे के ऊपर सहीप आ्ी है बसलक कन्धिे के ऊपर आ्ी है , क्यमक ्ह ओढ़ी ाती है। इसे मपछौरी भी कहते है। लाल सीले पीले रंग कई, सरोभे छे डय बीच मकसार। ाीे चादर मील रही, लेहेरी आात मकरसे अपार।।७२।। चादर के (दरोसय) पलय की मकसार पर लाल, पीले, और सीले आमद कई प्रकार के रंग शरोभा दे रहे है , ससि ससे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 281 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी असन्त मकराय की लहरे सी उठती हुई प्रतीत हरो रही है। चादर (मपछौरी) की शरोभा गेहेरा रंग ाीे के ऊपर आ्ी हुई है। रो केसरी, लेत दाास झांई इ ार। सेत केसर दरोऊ रंग के, सरोभा हरोत सुखकार।।७३।। इ ार का रंग गहरा केशरर्ा है, ससि सका ीरोहक प्रधतमबम्ब ाीे के घेरे ीे मदखा्ी देता है। ाीे के शेत रंग तका इ ार की केशरर्ा रंग का संगी (मीलस) बहुत ही सुन्दर और आसन्ददा्ी दश् उपसवकत करता है। सेफे ीरोहरोरी चीस के, बेल बसी ीरोती संग। लाल सीली पीली चूमस्ां, सरोणभत कंचस संग।।७४।। कीर के भाग ीे आ्ी हुई इ ार के सेफे ीे चुन्नटे बसी है, ससि सीे ीरोधत्य के सगय से लताओं के धच् बसे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 282 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - "सेफा" शब्द फारसी भाषा का है। कीर पर आ्ी हुई इ ार का ाह भाग ससि सीे बाँधिसे के खल्े डरोरी डाली ाती है, सेफा कहलाता है। सरोसे के तारय से लाल, पीले, और सीले रंग के छरोटे -छरोटे रीदार बूटे शरोभा दे रहे है। कई रंग इ ार बंधि ीे, असेक माधि के संग। सारी उीर बरसस करं, तरो हरोए सा सुपस के अंग।।७५।। इ ार बन्द ीे असेक प्रकार के रंग है और असेक प्रकार के सग डे हुए है। इसकी शरोभा का ाार स ्मद ीै इस वाप्स के तस से करँ, तरो सारी उम ीे भी पूार ाार स हरोसा सम्भा सहीप है। भाााकर - ससि स प्रकार ाीे ीे गले के पास "मगरबास" हरोता है, उसी प्रकार इ ार करो ससि स डरोरी से बाँधिा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता 283 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है, उसे "इ ार बंधि" कहते है। एक एक संग साी लेत हय, रंग रंग ीे रंग असेक। एकै इ ार बंधि ीे, क्य कहूं रंग संग मााेक।।७६।। ्दमप ीैसे रंग समहत एक -एक संग का साी लेकर ाार स मक्ा है, मकन्तु एक ही इ ारबन्धि के एक-एक रंग ीे असेक रंग णछपे हुए है। ऐसी अावका ीे ्ह कैसे सम्भा है मक सगय का ाावतमाक रंग समहत ाार स मक्ा ा सके। ्ाकी रंग सलूकी क्य कहू,ं बका धिसी के चरस। लांक तली रंग सरोणभत, गहूं रह के अन्तवकरस।।७७।। धिसी के अखणड चराय के ीसरोहर सौन्द्र का ाार स ीै कैसे करँ। चराय की लाँक (गहराई) की सुन्दरता बहुत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 284 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अधधिक सुशरोणभत हरो रही है, ससि से ीै अपसी आतीा के अन्तः शकरा ीे गहा कर रही हूँ। देखूं रंग चरस अंगूठे, और सलूकी कहूं क्य कर। सख उतरते छरोटे छरोटे, सरोभा लेत अंगुरर्य पर।।७८।। श्री रा ी के चराय के अँगूठय की शरोभा-सुन्दरता करो देखकर भी उसका ाार स ीै कैसे कर सकती हूँ। चराय के सख अँगुखल्य पर सुशरोणभत हरो रहे है और अँगूठे से लेकर सबसे छरोटी अँगुली तक क्रीशः श छरोटे हरोते ग्े है। परोहयचे सरोणभत रंग सुन्दर, टांकस घूट ं ी काडे करोील। लांक एडी पीडी पकड, बेर बेर ाऊँ बल बल।।७९।। दरोसय चराय के पँ े (परोहयचे) बहुत ही सुन्दर रंग ीे शरोभा दे रहे है। टखसे, घूँटी, और कडे बहुत सुन्दर तका प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 285 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोील है। एमड्य की लाँक (गहराई) तका मपणडखल्य करो पकडकर ीै बारम्बार बखलहारी ाती हूँ (न््रोछाार हरोती हूँ)। ए चरस सख अधत सरोणभत, ासरो ते लेहेरे लगे आकास करो, सेहेरे चलत ते पुं भर पूर। सूर।।८०।। चराय के साखूस बहुत ही सुन्दर सुशरोणभत हरो रहे है। ऐसा प्रतीत हरोता है मक ैसे ्े बहुत बडे ते पुञ्ज (भणडार) है। इससे उठसे ााली लहरे आकाश ीे छा्ी रहती है, रो ते रोी्ी सूर की चलती हुई सहरय के सीास प्रतीत हरोती है। अब रो भूखस चरस के, हेी झांझर घूघ ं र कडी। असेक रंग संग झलके, ासय के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाेर डी।।८१८।। 286 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अब चराय के रो आभूषा है , ाे है- झांझरी, घूघ ं री, और कडी। ्े सरोसे के बसे हुए है और इसीे असेक प्रकार के रंगय के सग झलकार करते है। ऐसा लगता है मक ्े ााहरातय से स ै े डे ग्े है। डी स घडी सीारी मकसे, ए तरो का्ी सदा असल। सई स पुरासी असर ीे, इत हरोत स चल माचल।।८२।। सच तरो ्ह है मक इस आभूषाय ीे मकसी से ााहरातय करो स तरो डा है और स ही बसा्ा है। मकसी से इसकी सुन्दरता करो सँाारा भी सहीप है। ्े तरो हीेशा से ही अपसे ीूल रप ीे अखणड है। परीधिाी ीे करोई ावतु स तरो कभी सई हरोती है और स कभी पुरासी हरोती है। अवतव््वत हरोसे की भी प्रमक्र्ा सहीप हरोती। भाााकर - परीधिाी के एक-एक का ीे अकरातीत का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 287 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ही सूरी्ी वारप क्रीडा कर रहा है, अकारत् प्रत्ेक पदाकर ब्रप है। ऐसी सवकधत ीे ाहाँ मकसी भी पदाकर के उतपन्न हरोसे ्ा सष्ट हरोसे की कलपसा भी सहीप की ा सकती। री ाेर रंग रेसी, सकस बेल फूल पात। ए ससिससगार सरोभा कही इस ुबां, पर सब्द स इत सीात।।८३।। परीधिाी एां धिाी धिसी की शरोभा-श्रृंगार का ाार स करसे ीे ीैसे ्हाँ के शब्दय के असुसार ही सरोसे के तारय, ााहरातय, असेक प्रकार के रंगय, रेशी, असेक प्रकार की लताओं, पखत्य, और फूलय की शरोभा का ाार स मक्ा है, मकन्तु इस शब्दय से ाहाँ की शरोभा का ्काकर (ाावतमाक) ाार स करसा कदामप सम्भा सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 288 / 992 श्री सागर टीका अब श्री रा स वााीी रो ावतर भूखस की, क्य कर हरोए बरसस। इत अकल सा परोहयचत, और ठौर सहीप बरोलस।।८४।। ऐसी सवकधत ीे श्री रा ी के ासय एां आभूषाय की शरोभा का ाार स कैसे हरो सकता है। ाहाँ पर स तरो ्हाँ की बुधद पहुँच पा रही है और स ही कुछ कहसे का साीर्र रह सका है। भाााकर - "बरोलसे का मठकासा स रहसा" एक प्रकार का भाषा्ी सौन्द्र है , ससि सका अणभप्रा् हरोता है- कहसे का साीर्र स रह ए भूखस असर ासा। ाेर के, हक सूरत के अंग। कहा कहे रह इस ुबां, रंग रेसी सरोबस संग।।८५।। परीधिाी के ससि स आभूषाय और ााहरातय का ाार स मक्ा ग्ा है, ावतुतः श ाे धिाी धिसी के अंगय की ही शरोभा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 289 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रप है अकारत् उसके ही वारप है। ऐसी सवकधत ीे ्ह कैसे सम्भा है मक ीेरी आतीा ्हाँ की ससि िहा से परीधिाी के रंगय, सगय, वाार , और रेशी की सूरी्ी शरोभा का ाावतमाक ाार स कर सके। आससिसक इस चरस की, असर ीेला रहस। ए खखलात खासा गैब का, ससि स इत मक्ा ररोसस।।८६।। ब्सृमष्ट्ाँ धिसी के चराय की आणशक है और ाे परीधिाी ीे ीूल मीलााा ीे धिसी के सम्ीुख इकइा हरोकर बैठी है। परीधिाी के ीूल मीलााा का ञास इस सृमष्ट से पहले मकसी करो भी सहीप का। ब्ाााी के दारा ही इसका ञास प्रकट हरो सका है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 290 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चरस तली सा छूटत, रंग लाल खलए उजल। ताए क्य कमहए आससिसक, श्री रा रो इतके ाए चल।।८७।। ी के चराय के सीचे का भाग (तली) उजालता ीे गहरी लाखलीा खल्े हुए है। आतीाओं की स र ाहाँ से हटती ही सहीप है। ससि सकी दमष्ट धिसी के चराय की लाखलीा के सौन्द्र से हटकर कहीप और चली ा्े, उसे आणशक कहलासे का करोई अधधिकार ही सहीप है। पांउं तले पडी रहे, ्ाकरो इतहीप खास पास। एही दीदार दरोवती का्ी, रो हरोए अराा असर सुभास।।८८।। रो अकरातीत की अधिार्धांमगसी ब्सृमष्ट है , उसकी सच्ची पहचास ्ही है मक ाह मप्र्ती अकरातीत के चराय की तली के सौन्द्र ीे खरोई रहती है। उसका दीदार ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 291 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसके खल्े भरो स करसा और ल पीसा है। चराय की छमा के दशर स से मीलसे ााला अखणड आसन्द ही धिसी से इसके अखणड प्रेी का पररच् देता है। भाााकर - इस चौपाई के तीसरे चरा ीे कणकत "दरोवती" शब्द का भाा प्रेी से है। ्हाँ सांसाररक दरोवती का भाा सहीप सीझसा चामहए। इतहीप गात इत ारत, इत बंदगी परहे ी ास। और आससिसक स रखे ्ा मबसा, इतहीप हरोाे कुरबास।।८९।। संसार से ध््ास हटाकर धिसी के ीसरोहर चराय की शरोभा ीे डू बे रहसा ही ब्सृमष्ट्य के खल्े दास करसा ( कात देसा) और तीकर ्ा्ा (ससि ्ारत) करसा है। भमक (बन्दगी) और इसन्््य का सं्ीस (परहे ) भी मप्र्ती के चराय का ध््ास ही है। श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के प्रेी ीे 292 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी डू बी रहसे ााली उसकी अँगसाएं उसके चराय के प्रेी के अधतररक संसार की अन्् मकसी भी ावतु की इच्छा सहीप करतीप। ाे धिसी के चराय ीे ही अपसा सार वा न््रोछाार कर देती है। भाााकर - संसार के ीा हाँ कीर काणड और उपाससा (शरर्त तका तरीकत) करो ही सार वा ीासकर उसीे उलझे रहते है तका मसराकार से परे सहीप हरो पाते , ाहीप ब्सृमष्ट हद-बेहद से परे परीधिाी ीे मारा ीास धिसी के सूरी्ी चराय की शरोभा ीे डू बी रहती है। ्ह हकीकत और ीाररफत की राह है। इस ीागर पर चलसे ाालय के खल्े शरर्त-तरीकत की करोई आाश्कता सहीप हरोती। खासा दीदार इसका, ्ा सय ीाे लेाे वाांस। दरोवती इस सरप की, धतससे मीटत प््ास।।९०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 293 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अपसे प्रााालभ अकरातीत का दीदार करसा ही इसका भरो स करसा है। इसका ीमात रहसा ्ा साँस लेसा भी धिसी के दीदार पर ही मसभर र करता है, अकारत् मप्र्ती के दशर स मबसा ्े शरीर करो मसरकर क सीझती है और उससे मकसी भी प्रकार का ीरोह सहीप रखतीप। श्री रा के सख से णशख तक के वारप से इसका अखणड प्रेी हरोता है। इसी से इसके हद् की प््ास (प्रेीी्ी) बुझा करती है। हक खखलात ाहेर करी, इत ससिस दा है्ात। इतहीप इीाी इीाीत, इतहीप ीहंीद ससिसफात।।९१८।। अकरातीत श्री रा ी से श्री ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर ब्ाााी दारा ीूल मीलााा की सम्पूार शरोभा का ाार स कर मद्ा। इसके पहले ्ह ञास संसार ीे सहीप का। ्हाँ पर मक्ा हुआ प्रााी (ससिसजदा) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 294 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अखणड हरोता है, अकारत् ्गु ल वारप समहत ीूल मीलााा की शरोभा करो मदल ीे बसासा ही ाावतमाक प्रेी लकाा भमक है और इसका फल अखणड हरोता है। आखरल इीाी ीुहम्ीद ीहदी श्री प्राासाक ी का मसदरश भी इसी ीूल मीलााा के ध््ास के खल्े है तका ीुहम्ीद सामहब (सल.) से भी अशर (ीूल मीलााा) के ससिसजदे की ीमहीा गा्ी है। भाााकर - "इीाीत" का अकर सेतृता करसा हरोता है। ब्सृमष्ट्य करो ागत करसे के खल्े श्री प्राासाक ी से ीूल मीलााा ीे ध््ास करसे के खल्े कहा है (मसदरश मद्ा है)। इसे ही इीाी की इीाीत कहते है। श्रीीुखाााी का ्ह ककस "असर बका पर ससिस दा , कराासी इीाी" इसी ओर संकेत करता है। ीुहम्ीद सामहब (सल.) से कुरआस तका हदीसय ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 295 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एकीा् अलाह तआला की बन्दगी का मसदरश मद्ा है , रो अशर ीे मारा ीास है। शरर्त की सीा ीसव द ीे पढ़ी ससि स ाती है , उसीे परीधिाी के रंगीहल के ीुख् दार की ीेहराबय की आकृधत बसा्ी ग्ी हरोती है , रो अशर पर ससिसजदा करसे का संकेत है। करोई खाली स ग्ा इस खखलाते, कछू खल्ा हक का भेद। सरो कहूं ाए सा सके, पड्ा इवक के कैद।।९२।। ीूल मीलााा का ध््ास कभी भी मसष्फल सहीप ाता। उस पर धिसी की ीेहर अाश् हरोती है। ससि ससे भी श्री रा ी की कुछ शरोभा अपसे धिाी हद् ीे बसा ली, ाह कभी भी धिसी करो छरोडकर अन््् (ीा्ा ्ा देा पू स ीे) सहीप ा सकता, क्यमक ाह तरो अकरातीत के प्रेी ीे कैद हरो ग्ा हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 296 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - श्री रा ी का भेद लेसे का तातप्र हरोता है , उसकी शरोभा करो मदल ीे बसा लेसा। ्हाँ मदल के भेद लेसे का प्रसंग सहीप है। मदल के भेद केाल ीाररफत की अावका ीे ही खल्े ा सकते है। ्गु ल वारप का ध््ास ही ीा्ा से बचसे एां अपसे अन्दर इशक (प्रेी) पैदा करसे का एकीा् साधिस है। आससिसक पकडे रो दाास, तरो छूटे सहीप क्यए कर। देखत देखत चीस लगे, तरोलय ात मसकस उीर।।९३।। धिसी के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली आतीा दाास करो देखती है, तरो उसे देखती ही रह ब ाीे के ाती है। उसे ाह मकसी भी तरह छरोड सहीप पाती। ्मद उसकी स र चुन्नटय ीे लग ाती है , तरो ाह उसीे इतसी खरो ाती है मक ्मद सारी उम देखती रहे तरो भी उससे स र हटा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 297 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पासे की उसीे इच्छा सहीप हरोती। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा का भाा सम्पूार उम देखसे से है। ्हाँ शरीर छूटसे का प्रसंग सहीप है , बसलक ्ह कहा ग्ा है मक ्मद सारी उम भी उस शरोभा करो देखसे ीे लगा दी ा्े तरो उससे हटसे की इच्छा सहीप हरोगी। ्दमप व््ाहाररक रप ीे ऐसा सम्भा सहीप है मक करोई सम्पूार उम मबसा खा्े , पी्े, और सरो्े केाल दीदार ीे ही लगा रहे , क्यमक इस पञभौधतक शरीर की एक सीीा है। बरोहरोत अटकाा है आससिसक, कछू सेाा भी मक्ा चाहे। ए तरो बरसस ससिससगार, सेाा उींग रही भराए।।९४।। एक आणशक के खल्े धिसी के श्रृंगार का ाार स करसे ीे बहुत सी बाधिा्े (अटकाा) है, क्यमक शरोभा से स र प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 298 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हटती सहीप और बुधद वतब्धि रह श्री रा ाती है। ीेरे हद् ीे ी के श्रृंगार का ाार स करके सेाा करसे की बहुत अधधिक उींग है, इसखल्े ीेरी आतीा बहुत अटकाा हरोसे पर भी श्रृंगार-ाार स के रप ीे सेाा करसा चाहती है। भाााकर - इस चौपाई ीे सेाा का प्रसंग धिसी करो ररझासे के खल्े भी है और सुन्दरसाक के खल्े भी है। श्री ीहाीधत ी करो श्री रा ी से खडा मक्ा है और श्री ीहाीधत ागसी का्र के खल्े ी के तस से रो श्रृंगार का अातरा हरो रहा है, उससे पररोक रप ीे ाे धिाी धिसी की सेाा कर रही है। सुन्दरसाक इस ञास से लाभ उठा रहा है, इसखल्े ्हाँ सुन्दरसाक की भी सेाा ीासी ा्ेगी। बीतक ीे इसी प्रकार का प्रसंग है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 299 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो कदी कीर अटकी, तरो आससिसक स छरोडे ए। ए लांक पटु का छरोड के, ाए स सके उर ले।।९५।। ्मद प्रेी ीे ी् (सराबरोर) आतीा की स र धिसी की कीर पर मटक ग्ी, तरो ाहाँ से ाह हट सहीप पाती। ाह कीर की गहराई (लाँक) ााले महवसे तका पटु के की सुन्दरता ीे इतसी डू ब ाती है मक उसे छरोडकर उसकी दमष्ट ाकवकल (छाती) तक सहीप पहुँच पाती। रो मदल हक का देखखए, तरो पूरा इवक का पुन् । क्य छरोडे आससिसक इसकरो, हक मदल इवक गन् ।।९६।। ्मद श्री रा ी के मदल करो देखा ा्े तरो ाह इशक (प्रेी) का असन्त भणडार स र आता है। धिसी के ससि स मदल ीे इशक ही इशक भरा है , उससे आणशक रह (आतीा) कैसे अलग हरो सकती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 300 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीरोमीस मदल असर कह्ा, सरो असर हक का घर। इवक प््ाले हक फूल के, देत भर भर अपसी स र।।९७।। धिाी धिसी का वारप हाँ मारा ीास हरोता है, ाह परीधिाी (अशर ) कहलाता है और ाह अशर ब्सृमष्ट का हद् (मदल) है। मप्र्ती अकरातीत रीझकर मदल रपी प््ाले ीे इशक भर-भर कर अपसी अँगसाओं करो अपसी स रय से मपलाते है। भाााकर - काँसा एक मीणश्रत धिातु है करो मीलाकर बसा्ी रो ताँबे और टीस ाती है। शुद बतर स के रप ीे काँसे (फूल) का ाार स आता है, मकन्तु इसका ाावतमाक आश् प्रसन्नतापूारक (रीझकर) ्ा आसन्दपूारक मपलासे से है। ावतुतः श ्ह भााीूलक ककस है, ्व््ीूलक सहीप। फूला स सीासा, फूल के कुप्पा हरो का प्र्रोग इसी सन्दभर ीे मक्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ासा, आमद ीुहाारय ाता है। 301 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक ्हाँ आतीा के मदल ीे मारा ीास हरोसे का प्रसंग है ्ा पराती के मदल ीे? ्मद आतीा के मदल ीे मारा ीास हरोकर मपलासे का प्रसंग है तरो ्ह कैसे सम्भा हरो सकता है, क्यमक इस चौपाई के चौके चरा ीे कहा ग्ा है मक अपसी स रय से मपलाते है? इसके सीाधिास ीे ्ही कहा ा सकता है मक परीधिाी ीे पराती के मदल ीे धिसी असारत (मसरन्तर) मारा ीास है और ाहाँ अपसी सूरी स रय से प्रेी का अीृत (रस) मपलाते ही है। इस ीा्ााी खेल ीे भी आतीा ब अपसे मदल ीे धिसी की शरोभा करो बसाती है तरो उसे ऐसा प्रतीत हरोता है, स ै े ाह साकात् ीूल मीलााा ीे बैठी है और धिसी की स रय से उसकी स रे मीली हुई है। ससि स शरोभा करो ाह ीूल मीलााा ीे देख प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 302 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रही हरोती है, ाही शरोभा उसे अपसे मदल ीे भी मदखती है। इस अावका ीे उसका मदल धिसी का अशर (परीधिाी) हरो ाता है और उसकी आतीा अपसी पराती का श्रृंगार स कर परीधिाी की तरह प्रेी रस का पास करती है। इवक सुराही ले् के, आए बैठे मदल पर। इवक प््ाले आससिसकय, हक देत आप भर भर।।९८।। धिाी धिसी इशक की सुराही लेकर ब्सृमष्ट्य के मदल ीे मारा ीास हरो ग्े है और अपसी अँगसाओं (आणशकय) करो इशक के प््ाले भर-भर कर दे रहे है। भाााकर - इस चौपाई ीे ागसी-लीला का धच्ा है। आतीा का मदल प््ाला है और उसीे मारा ीास हरोसे ााली धिसी की शरोभा ही ाह सुराही है, ससि ससे इशक का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 303 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रस आतीा के मदल ीे प्राामहत हरोता है। परीधिाी ीे मारा ीास धिसी का सूरी्ी वारप तरो इशक का सागर है। रो कदी आाे ीवती ीे, तरो एक प््ाला देाे मगराए। सराब तहूरा ऐसा चढ़े, मदल तबहीप देाे मफराए।।९९।। ्मद कभी धिाी धिसी के हद् का लाड (प््ार) छलक पडता है, तरो आतीा के धिाी हद् ीे प्रेी का प््ाला भर ाता है अकारत् मप्र्ती की छमा मदल ीे अंमकत हरो ाती है। इसका पररााी ्ह हरोता है मक ाह बेसुधि हरो ाती है। उसके अन्दर प्रेी का ऐसा सशा चढ़ ाता है मक उसका मदल संसार से पूारत्ा हटकर धिसी की शरोभा ीे डू ब ाता है। भाााकर - ीवती ीे आसा धिसी के लाड-प््ार का सूचक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 304 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। इस चौपाई के दस ू रे चरा ीे कणकत "एक प््ाला" का तातप्र है, एक बार धिसी की झलक आ ासा ्ा मकसी एक अंग की शरोभा का मदल ीे बस ासा। इस चरा ीे "मगराए" शब्द बेसुधिी के भाा ीे है। ामहरी रप से मगरसे का ्हाँ करोई प्रसंग सहीप है। ाए हक सराब मपलाात, आस बांधित है सरोए। ााकरो असर सराब की, आात है खस ु बरोए।।१८००।। ससि से धिाी धिसी अपसी प्रेी-सुधिा का पास कराते है, उसके ीस ीे ्ह आशा बसी रहती है मक ्गु ल वारप ीेरे मदल ीे बस ा्े तका इसी तरह ीुझे प्रेी का आसन्द मीलता रहे। मप्र्ती अकरातीत की ीेहर से उसकी इच्छा के असुरप उसे प्रेी की सुगसन्धि मीलती रहती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 305 / 992 श्री सागर टीका आई श्री रा स वााीी रो कदी खस ु बरोए, ए रो असर की सराब। इस ीद के चढ़ाा से, देाे तबहीप उडाए खााब।।१८०१८।। ब कभी मकसी ब्सृमष्ट करो परीधिाी के प्रेी की सुगसन्धि मील ाती है , तरो उसे इतसा अधधिक आसन्द प्राप हरोता है मक उसकी दमष्ट ीे इस वाप्सी्ी शरीर और ब्ाणड का असवतता सहीप रह इसके ीरोह से परे हरो ाता अकारत् ाह ाती है। भाााकर - ्दमप इस चौपाई के चौके चरा का बा् अकर इस वाप्सी्ी शरीर का त्ाग करसा है , मकन्तु इसका ाावतमाक आश् ञास दमष्ट से छरोडसा है। आ लगे ढांप््ा र्ा, हके ीरोहरोर करी धतस पर। सरो अछूत प््ाला फूल का, हके खरोल मद्ा ीेहेर कर।।१८०२।। आ मदस तक परीधिाी का ्ह प्रेी रपी प््ाला णछपा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 306 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हुआ का। धिसी के आदेश से इस प्रेी रपी प््ाले का ीुख बन्द का। ससि स प्रेी रपी आसन्दी्ी प््ाले करो आ मदस तक करोई छू भी सहीप सका का, उसे धिाी धिसी से अपसी कृपा से सबके खल्े सुलभ कर मद्ा। भाााकर - प्रेी का ीूल सरोत अकरातीत है। ब संसार ीे तारती ञास का ही सहीप, तरो मकसी करो भी परब् के धिाी, वारप, और लीला का ञास कैसे हरो सकता का। ऐसी सवकधत ीे मकसी के पास परीधिाी का प्रेी हरोसा सम्भा ही सहीप का। ्ही कारा है मक इस चौपाई ीे प्रेी रपी प््ाले के ीुख करो बन्द तका असछुआ कहा ग्ा है। ्दमप संसार ीे बडे -बडे ्रोगी, ्धत, तपवाी, ससिसद, और भक हरो चुके है , मकन्तु उसका प्रेी ाैकुणठ, मसराकार, और बेहद तक ही सीमीत का। परीधिाी के प्रेी की झलक उसीे से मकसी करो भी प्राप सहीप हरो सकी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 307 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की। एकय मप्ा एक पीात है, एक प््ाले पीाेगे। खरोल्ा दराा ा असर का, ाावते असर अरााहय के।।१८०३।। धिाी धिसी से ब्सृमष्ट्य के खल्े परीधिाी के प्रेी का दराा ा खरोल मद्ा है। कुछ अँगसाओं (आतीाओं) से प्रेी के प््ाले करो पी खल्ा है, कुछ पी रही है, और कुछ पीसे ााली है। भाााकर - ्दमप इस प्रेी रपी प््ाले का रसपास करसे का सौभाग् सबकरो प्राप है , मकन्तु केाल ब्सृमष्ट्ाँ ही उसका ाावतमाक रसपास (शरोभा-श्रृंगार ीे डू बसा) कर पाती है। ईशरी सृमष्ट ञास और भमक ीे लग ीा सृमष्ट ीा् कीर काणड करो ही अपसे ाती है , तरो ीास का आधिार सीझ लेती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 308 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अंग आससिसक उपले देख के, इतहीप रहे ललचाए। रो कदी पैठे गं ीे, तरो क्य कर मसकव्रो ाए।।१८०४।। धिसी के प्रेी ीे डू बी हुई आतीा मप्र्ती के बा् अंगय की शरोभा करो देखकर पल-पल और अधधिक आकरषत हरोती ाती है। ्मद ाह श्री रा तरो उस गं ासगं ी के मदल ीे बैठ ग्ी, इशक के सागर से मसकल पासा उसके खल्े असम्भा (बहुत कमठस) हरोता है। भाााकर - ्दमप परीधिाी ीे अन्दर-बाहर एक ही तता है, मकन्तु ्हाँ के भााय से ऐसा सीझसा चामहए मक बा् वारप पर आकरषत हरोसे के बाद प्रेी बढ़ता है, मकन्तु उस प्रेी का ीूल हद् (मदल) से ुडा हरोता है। हद् ीे डू बे मबसा प्रेी का ाावतमाक रसपास सम्भा सहीप है। ्दमप परीधिाी ीे ाहदत हरोसे के कारा श्री रा ी के मकसी भी बा् अंग की शरोभा करो मदल ीे बसाकर बैठासे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 309 / 992 श्री सागर टीका (ीाररफत) की अावका करो प्राप मक्ा श्री रा स वााीी ा सकता है , मकन्तु ्हाँ चौपाई का भाा ्ह है मक कभी भी धिसी का दीदार हरोसे के पशात् अपसे प्रेी की झरोली बन्द सहीप कर देसी चामहए, बसलक उसकी शरोभा करो पल-पल मदल ीे बसाते हुए अपसी प््ास बढ़ाते रहसा चामहए और धिसी के मदल ीे डु बकी लगाकर सारच्च ीसन् ल करो प्राप करसे का प्र्ास करसा चामहए। इस चौपाई के दस ू रे चरा ीे "ललचाए" का तातप्र और अधधिक आकरषत हरोसे से है। रो ावतु सुन्दर मदखा्ी देती है, उसे देखसे की बारम्बार इच्छा हरोती है। इसी करो इस चौपाई ीे ललचासा कहा ग्ा है। हवत कील करो देखखए, तरो अधत खूबी करोील। ए छरोड आगे ाए सा सके, रो करोई आससिसक मदल।।१८०५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 310 / 992 श्री सागर टीका ्मद श्री रा श्री रा स वााीी ी के हवतकील (हाकय) करो देखा ा्े, तरो उसकी माशेषता ्ह है मक ाे बहुत अधधिक करोील है। ससि स आतीा के मदल ीे धिसी के खल्े प्रेी भरा हरोता है , ाह सौन्द्र से भरपूर इस करोील हाकय का दीदार छरोडकर अपसी दमष्ट और कहीप भी सहीप कर सकती। सख अंगुरर्ां मसरखतेे, ीुंदरर्ां अधत झलकत। ए रंग रेखा क्य छूटहीप, आससिसक धचत गखलत।।१८०६।। श्री रा ी के सखय और अँगुखल्य की शरोभा करो देखसे पर सूरी्ी आभा से झलकती हुई ीुम्का्े (ीुसन्््ाँ) मदखा्ी देती है। धिसी की शरोभा ीे ससि सका धचत गलतास (लीस) हरो ग्ा हरो, उससे हकेखल्य की सुन्दरता तका रेखाओं के प्रधत आकषर ा सहीप छूट सकता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 311 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परोहयची बांहे बा ू बन्धि, दरोऊ मसरखत सीके कर। एक संग और फुन्दस, चुभ रहत हैडे अन्दर।।१८०७।। श्री रा ी की बाँहय ीे परोहयची और बा ूबन्धि सुशरोणभत हरो रहे है। (अच्छी तरह) देखा ब इन्हे आसतीक दमष्ट से प्रेीपूारक ाता है, तरो उसीे और फुन्दसय की शरोभा हद् ीे चुभ भाााकर - परोहयची कलाई ीे पहसी बा ूबन्धि पहसा पहसा डे हुए सगय ाती है। ाती है , बा ुओं ीे ाता है, और हाक के पँ य ीे परोहयचा ाता है। महरदे कील अधत करोील, देख इस सरप के अंग। रो आससिसक कहााे आपकरो, क्य छरोडे इसकरो संग।।१८०८।। धिाी धिसी का ाकवकल (हद् कील) बहुत ही करोील है। श्री रा ी के इस अधत सुन्दर अंगय करो देखसे के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 312 / 992 श्री सागर टीका पशात्, श्री रा स वााीी रो भी सुन्दरसाक वा्ं करो धिसी का आणशक कहते है, इस अलौमकक शरोभा से कभी भी दरू सहीप हरोसा चाहेगे। भाााकर - ावतुतः श ाकवकल ीे हद् कील का मसाास ीासा ाता है। ्हाँ बा् अंगरोे की शरोभा का ाार स हरो रहा है, इसखल्े ्हाँ हद् कील का तातप्र ाकवकल (छाती) के सौन्द्र से खल्ा ा्ेगा, आन्तररक हद् से सहीप। इस चौपाई से ्ह वपष्ट है मक मप्र्ती की शरोभा ीे वा्ं करो डु बासे ााले ही सच्चे आणशक है। भ स एां साच-कूद के ीाध््ी से वा्ं करो आणशक ीास लेसे ााले सुन्दरसाक ाावतमाकता से करोसय दरू है। हार कणठ मगराास रो, अधत सुन्दर सुखदाए। लाल लटकत ीरोती पर, ए सरोभा छरोडी स ाए।।१८०९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 313 / 992 श्री सागर टीका श्री रा श्री रा स वााीी ी के कणठ ीे लटकते हुए हार ाीे के मगराास पर आ्े हुए है। ्े बहुत ही सुन्दर है तका आतीा करो आसन्द देसे ााले है। इसीे ीाणाक (लाल) तका ीरोती के सग डे हुए है। आतीा की स रय से ्ह अलौमकक शरोभा कभी अलग सहीप की ा सकती। ीुख सरप अधत सुन्दर, क्य कहूं सरोभा ीुख इस। एक अंग रो मसरखखए, तरो धततहीप कके बरसस।।१८१८०।। प्राा मप्र्ती का ीुखारमान्द बहुत ही सुन्दर है। ीै इस ीुख (ससि िहा) से असन्त शरोभा का ाार स कैसे करँ। ्मद धिसी के मकसी भी अंग करो देखा डू ब ा्े , तरो आतीा उसीे ाती है। उसका ाार स करसा सम्भा सहीप है। भाााकर - परीधिाी की ाहदत ीे श्री रा ी साार्धांग सुन्दर है। ्दमप मकसी भी अंग की सुन्दरता करो की ्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 314 / 992 श्री सागर टीका अधधिक सहीप ीासा श्री रा स वााीी ा सकता, मकन्तु इस संसार ीे ससि स प्रकार ीुखारमान्द की सुन्दरता करो सौन्द्र ीासा ाता है, उसी प्रकार धिाी धिसी के ीुख के सौन्द्र का ाार स मक्ा ग्ा है। छमब सरप ीुख छरोड के, देख सकय स लांक अधिूर। ए लाल की लालक क्य कहू,ं रो अीृत असर ीधिूर।।१८१८१८।। ीै ीुखारमान्द की अलौमकक शरोभा करो छरोडकर लाखलीा भरे हयठय की गहराई के सौन्द्र करो सहीप देख पा रही हूँ। अीृत के सीास ीधिुर (ीीठे ) इस लाल हयठय के लाखलीा भरे सौन्द्र का ाार स ीै कैसे कर सकती हूँ। भाााकर - इस संसार ीे अीृत करो अीरता देसे ााला कहा ाता है। प्रेी ही ीास है और प्रेी ीे ही शाशत आसन्द सीा्ा हरोता है। हयठय का सौन्द्र प्रेी की ाृधद प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 315 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करता है। ्ही कारा है मक हयठय ीे अीृत की कलपसा रससिसक कमा्य से की है। इसी भाा के आधिार पर श्री रा ी के हयठय करो अीृती् और ीाधिु्रता का सागर कहा ग्ा है। ाैसे तरो सम्पूार परीधिाी का का-का ही प्रेीी्ी, अीृती्ी, आसन्दी्ी, और ीाधिु्रता का सागर है। ए ीुख अधिुर लांक छरोड के, क्य कर दन्त लग ाए। देत साी मसीूसा इत का, सय इस सरपे क्य सरोभाए।।१८१८२।। ीुखारमान्द तका दरोसय अधिरय के बीच की गहराई ााला भाग इतसा सुन्दर है मक उसके सौन्द्र करो छरोडकर दाँतय की शरोभा की ओर दमष्ट सहीप ा पाती। ्मद इस वारप की शरोभा के ाार स ीे ीै इस संसार की करोई उपीा दँ,ू तरो ्ह कदामप उधचत सहीप हरोगा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 316 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई के दस ू रे चरा का अकर ्ह सहीप सीझसा चामहए मक दाँतय की शरोभा की है। परीधिाी ीे करोई भी ावतु की ्ा अधधिक सुन्दर सहीप है , बसलक आतीा अपसी दमष्ट से ससि स शरोभा करो देखती है , उसी ीे डू ब ाती है और उससे मसकलकर अन्् शरोभा करो देख पासा बहुत कमठस हरोता है। इस दस ू रे चरा ीे ्ही भाा दशार्ा ग्ा है। ्गु ल वारप की शरोभा-श्रृंगार का सम्पूार ाार स तरो ीा् धिसी के आाेश से ही सम्भा हरो सका है। करोई भी आतीा प्रत्क देखकर मबसा आाेश और आदेश (हुकी) के कुछ भी सहीप कह सकती। सरो दन्त अधिुर लांक छरोड के, ाए स सकय लग गाल। सरो गाल लाल ीुख छरोड के, आगूं स र स सके चाल।।१८१८३।। मकन्तु ्मद आतीा की स र दाँतय की शरोभा करो देखसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 317 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लगती है तरो दाँतय और हयठय की गहराई के सौन्द्र करो छरोडकर गालय करो सहीप देख पाती, और ्मद गालय तका लाल ीुखारमान्द की शरोभा करो देखसे लगती है तरो उन्हे छरोडकर कहीप और सहीप ा पाती। ीुख साससिसका देखत आससिसक, सुन्दर सरोभा अतंत। से् बीच मसलाट धतलक, आससिसक ्ाही सय ीात।।१८१८४।। श्री रा ी का ीुखारमान्द तका साससिसका बहुत ही सुन्दर है। इसकी शरोभा असन्त है, ससि सका रसपास आतीा्े करती है। दरोसय से्य के बीच ीाके पर धतलक बसा हुआ है। इसके ीधिुर दशर स (शरबत-ए-दीदार) ीे ही प्रेीी्ी ब्सृमष्ट्य का ीास णछपा है , अकारत् इसके मबसा करोई भी ब्सृमष्ट रह ही सहीप सकती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 318 / 992 श्री सागर टीका भृकुटी धतलक सरोभा छरोड के, श्री रा स वााीी ाए स सकय लग कास। सरो कास करोील अधत सुन्दर, सुख पाइए महरदे आस।।१८१८५।। भौंहय तका धतलक की ीसरोहर शरोभा इतसी अधधिक है मक ीेरी आतीा उसे छरोडकर कासय की ओर सहीप देख पा रही है। धिसी के ्े कास बहुत ही सुन्दर और करोील है। इसकी शरोभा करो मदल ीे बसा लेसे पर बहुत आसन्द प्राप हरोता है। और भी खूबी कासस की, मदल दरदां देाे भास। ाकरो केहे लेऊं पड उतर, करोई स सुख इस सीास।।१८१८६।। कासय की और भी माशेषता है। ्े मारह भरे मदल के ददर करो सीाप कर देते है। इस कासय से कहकर ही तरो ीै अपसे प्रशय के उतर ले पाती हूँ , ससि सके सीास अन्् करोई भी सुुख सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 319 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - आणशक (प्रेीी) के मारह की पीडा करो कासय के ीाध््ी से ीाशूक (प्रेीावपद) गहा कर लेता है। इसके पशात् ाह अपसे हद् का प्रेी अपसे आणशक पर उडेल देता है। ्ही भाा इस चौपाई ीे दशार्ा ग्ा है। कहे सुसे बाते करे, ए रो असर ीेहेरबास। सरो खखलात सुख छरोड के, लग ााए सहीप सैस बास।।१८१८७।। धिाी के धिसी ीेहर के सागर श्री रा ी ब्सृमष्ट्य से अपसी बाते कहते है तका उसकी बाते प्रेीपूारक सुसते है। इस प्रकार ाे बहुत ही प््ार से अपसी अँगसाओं से बाते करते है। ्ह सारी प्रेीी्ी लीला खखलात ीे ससि स कासय के दारा सम्पन्न हरोती है, उस कासय करो छरोडकर से्य की तरफ आतीा की दमष्ट सहीप ा पाती, बमक ्े से् प्रेेी के अीरोघ बाा छरोडा करते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 320 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए सैस बास सुभास के, क्य छरोडे रह ीरोमीस। ए सैस रस छरोड आगे चले, रहे साी धिरत है धतस।।१८१८८।। धिसी के ससि स से्य से दस ू रय के हद् करो बीपधिसे ााले प्रेी के बाा मसकला करते है, उस से्य के दीदार के सुख करो भला परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ कैसे छरोड सकती है। मप्र्ती के से्य के दीदार से मीलसे ााले आसन्द करो छरोडकर ससि स ब्सृमष्ट की स र कहीप और चली ाती है, आतीाओं की स र ीे उसका साी प्रेी के ऊपर धिब्बा लगासे ाालय ीे हरोता है। भाााकर - इस चौपाई ीे प्रेी के ऊपर धिब्बा लगासे ्ा प्रेी के के् ीे लखजत हरोसे की बात इस ागसी ब्ाणड से सम्बसन्धित है। परीधिाी की लीला ीे इस प्रकार की करोई भी बात सहीप हरोती है , क्यमक ाहाँ सबका इशक बराबर है। इस ागसी ब्ाणड ीे ्मद आतीा की स र प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 321 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हद-बेहद करो पार कर परीधिाी ीे ाकर श्री रा ी के से्य का अीृत रस पीसे लगे और पुसः श उसे छरोडकर कहीप और चली ा्े, तरो ्ह प्रश उठता है मक आखखरकार उससे ऐसा क्य मक्ा? क्ा श्री रा ी से मीलसे ााले प्रेी के आसन्द ीे कीी की ्ा उससे भी अधधिक कहीप और से आसन्द मीलसे की सम्भाासा की? अकरातीत के हद् का प्रेी ससि स से्य दारा प्राामहत हरोता है , उन्हे छरोडकर कहीप और स र कर लेसा मसधशत रप से प्रेी की उजाल चादर पर धिब्बा लगासे स ै ी बात है और इसी कारा हँसी ्ा लजा कराासे ााली आतीाओं ीे उसका साी ुड ाता है। सैस अमस्ारे अधत तीखे, पल देत तारे चंचल। व्ाी उजल लालक खलए, ए क्य कहूं सुपस अकल।।१८१८९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 322 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिसी के से् बाँके (टेढ़े, धतरछे ) और बहुत ही सुकीले है। प्रेी की अधधिकता के कारा आँ खय ीे चञलता है , ससि ससे प्रा्ः श पलके झपकती रहती है। से्य के बीच का भाग काला है, बमक शेष भाग शेत है। इसके साक ही प्रेी की लाखलीा सम्पूार से्य ीे फैली हुई है। वाप्स की बुधद ााले इस ब्ाणड ीे मप्र्ती के से्य की शरोभा का ाार स भला कैसे हरो सकता है। भाााकर - से्य का मबसा पलक झपका्े पूार रप से खल ु ा और सवकर रहसा ञास का दरोतक (पररचा्क) है, बमक प्रेी भरे से् अधिखल ु े रहते है और उसीे चञलता का मीश्रा रहता है। इस चौपाई के दस ू रे चरा का भाा ्ह कदामप सहीप सीझसा चामहए मक श्री इन््ााती ी कहती है मक ीै वाप्स की बुधद से कैसे ाार स करँ? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 323 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि स तस ीे अकरातीत अपसी पाँचय शमक्य के साक लीला कर रहे है, ्मद उसीे ही ागत बुधद और मस बुधद स हरो तरो अन्् मकसके पास हरोगी। ब ीहाीधत ी पहले ही कह चुके है मक "ीेरी बुधिे लुगा स मसकसे, धिसी ाहेर करे अखणड घर सुख", और सागर गन्क ीे वा्ं धिाी धिसी कह रहे है मक "साहेब ीांहे बैठ के, बताात है ठौर", तरो इसीे वाप्स की बुधद हरोसे का प्रश ही सहीप हरोता। हाँ! इतसा अाश् है मक प्रवतुतीकरा ीे वाप्स की बुधद का ्रोग अाश् हरोता है , ससि सके कारा ाावतमाक ाार स सहीप हरो पाता। ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोसे से ही अकर ब् की सब कुछ प्राप हुआ , ागत बुधद करो ाह रो असामद काल से अब तक प्राप सहीप हरो सका का। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 324 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेरी संगते ऐसी सुधिरी, बुधि बडी हुई अछर। तारतीे सब सुधि परी, लीला अन्दर की घर।। क० मह० २३/१८०३ धिसी ीेरे ध््ास तुीारे, बैठे बुधि ी बरस सहस चार। मकरंतस ५३/१८ सैस रसीले रंग भरे, खैचत बंके ीररोर। सरो आससिसक रह ाए सा सके, ाए लगे बास ए रोर।।१८२०।। मप्र्ती के से् प्रेी के रस और आसन्द से भरपूर है। ाे अपसी प्रेी भरी धचतामस (दमष्ट, स र) से आतीाओं करो अपसी ओर खीपच लेते है। उसके से्य से मसकले हुए प्रेी के बाा ससि से लग ाते है, ाह आतीा धिसी से कदामप अलग सहीप रह सकती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 325 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए से् रसीले मसरखते, उप त है सुख चैस। ए क्य न््ारे हरोए सैस रह के, साीी छरोड सैस की सैस।।१८२१८।। श्री रा ी के प्रेी भरे से्य की ओर देखसे पर आतीा के हद् ीे बहुत अधधिक आसन्द हरोता है। धिाी धिसी के से्य से हरोसे ााले प्रेी -संकेतय करो छरोडकर भला आतीा के से् कैसे अलग हरो सकते है। रो चल ाए सारी उीर, तरो क्य छरोमडए सुख सैसस। इस सुख से क्य अघाइए, आससिसक अंतवकरस।।१८२२।। ्मद प्रााालभ अकरातीत के से्य करो मसहारते मसहारते (देखते-देखते) इस शरीर की सारी उम भी बीत ा्े, तरो भी उस से्य से मीलसे ााले आसन्द करो सहीप छरोडसा चामहए। धिसी के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली ब्सृमष्ट का हद् इस आसन्द से भी तृप सहीप हरो पाता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 326 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक अतृमप तरो ीा्ााी माष्य से हरोती है बमक ब्ासन्द करो शाशत शासन्त (तृमप) देसे ााला कहा ाता है, मकन्तु इस चौपाई ीे ऐसा क्य कहा ग्ा है मक धिसी के से्य की ओर देखते रहसे पर भी तृमप सहीप हरोती? इसका सीाधिास ्ह है मक माष्य से मीलसे ााला सुख कणाक हरोता है और उसके सेास ीे लजा, भ्, तका अन्ततरोगताा गलामस का असुभा हरोता है , मकन्तु धचत ीे माष्-सुख का संवकार हरोसे के कारा उसकरो पुसः श भरोगसे की इच्छा बसी रहती है, और ्ह चक्र न्ी - न्ीान्तरय तक चलता रहता है। इसके मापरीत ब्ासन्द का सेास करसे ााला माष्य की सशरता और मसरकर कता करो ञास दमष्ट से हरोता है। ास चुका ब ाह धचतामस (ध््ास) की अावका ीे धिसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 327 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के से्य से ब्ासन्द का रसपास करता है तरो उसीे उसे असन्त आसन्द का असुभा हरोता है, मकन्तु कुछ सी् के पशात् उसे अपसा ध््ास तरोडसा पडता है, क्यमक इस शरीर करो मस्ा, भरो स आमद की अमसाा्र रप से आाश्कता पडती है। ध््ास तरोडसे के पशात् उसे ्ह असुभा हरोता है मक ्ह संसार तरो तृष्ााओं और कष्टय की अम् से लसे ााले भ्ंकर ास की तरह है। ऐसी दशा ीे ाह पुसः श ध््ास ीे ी् हरोकर ब्ासन्द का रसपास करसे लगता है और कभी भी संसार की ओर देखसे की इच्छा सहीप करता। इसे ही इस चौपाई ीे अतृप हरोसे की बात कही ग्ी है। मसलाट सुन्दर सुभास के, सरोभा ीीठी ीुखारपबद। ए छमब कही स ाए एक अंग की, ए तरो सरोभा सागर खाांद।।१८२३।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 328 / 992 श्री सागर टीका श्री रा श्री रा स वााीी ी का ीवतक बहुत सुन्दर है तका उसके ीुखारमान्द की शरोभा ीे बहुत ीाधिु्रता है। धिाी धिसी के मकसी एक अंग की शरोभा का ाार स करसा भी सम्भा सहीप है, बमक ाे तरो शरोभा के असन्त सागर है। हँसत सरोणभत हराटी, दंत अधिुर ीुख लाल। आससिसक से क्य छूटहीप, सब अंग रंग रसाल।।१८२४।। ब मप्र्ती अकरातीत हँसते है, तरो उसकी ठु डी, दँतााखल (दाँतय की पँमक्ां ), हयठ, और लाल ीुखारपाद की शरोभा बहुत (असन्त) हरोती है। धिसी के ्े सभी अंग प्रेी और आसन्द के रस से ओत-प्ररोत है। उसके प्रेी भाा ीे हीेशा डू बी रहसे ााली (आणशक) ब्सृमष्ट्य से इस अंगय की शरोभा कदामप अलग सहीप हरो सकती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 329 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अधत करोील अंग मकसरोर, का्ी अंग उसीद। ए छमब अंग असर के, परोहयचत सहीप सब्द।।१८२५।। धिसी के ्े सभी अंग बहुत करोील है, मकशरोराावका के है, अखणड सूरी्ी है, तका प्रेी और आसन्द से भरपूर (ीवत) है। ्ह सम्पूार शरोभा परीधिाी के उस सूरी्ी अंगय की है, ससि सका ाार स करसे का साीर्र इस संसार की मकसी भी भाषा के शब्दय ीे सहीप है। ीुख साससिसका से् भौंह, धतलक मसलाट और कास। हाक पांउ अंग हैडा, सब ीुसकत केहेत ीुख बास।।१८२६।। ीाधिु्रता के सागर श्री रा प्रतीत हरोता है ी ब बरोलते है , तरो ऐसा ैसे उसका ीुखारमान्द, साससिसका, से्, भौंहे, धतलक, ीवतक, कास, हाक, पैर, और ाकवकल आमद सभी प्रेीपूारक ीुवकरा रहे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 330 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो आससिसक इस ीासूक की, सरो अटक रहे एकै अंग। और अंग लग ाए सा सके, अंग एकै लग ाए रंग।।१८२७।। रो सुन्दरसाक ीाशूक श्री रा ी के सच्चे आणशक (प्रेीी) हरोते है, अपसे धिाी धिसी के मकसी भी अंग की शरोभा ीे डू बे (अटके) रहते है। उसकी दमष्ट ाहाँ से हटकर अन्् मकसी अंग ीे सहीप के दशर स (दीदार) ीे ी् हरो आसन्द प्राप हरो ा पाती। ाे एक ही अंग ाते है और उन्हे सारा ाता है। देख बीडी ीुख ीरोरत, रह अंग उप त सुख। पीऊं सराब लेऊं ीवती, ज्य बल बल ाऊं इस ीुख।।१८२८।। श्री इन््ााती ी कहती है मक ब धिाी धिसी पास का बीडा चबाते है, तरो उसके ीुखारमान्द की शरोभा करो देखकर आतीा के मदल ीे बहुत अधधिक आसन्द आता प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 331 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। ीेरे मदल की ्ही इच्छा है मक ीै मप्र्ती की प्रेीसुधिा का रसपास कर बेसुधि हरो ाऊँ, ससि ससे ीै उसके ीुखारमान्द की अलौमकक शरोभा पर बारम्बार न््रोछाार हरो सकँू । ए छमब छरोड के आससिसक, क्य कर आगे ाए। ीरोमह लेत ीुख ीासूक, सरो धचत र्रो चुभाए।।१८२९।। रो श्री रा ी से सच्चा प्रेी करसे ााला सुन्दरसाक (आणशक) हरोगा, ाह धिसी के ीुखारमान्द की शरोभा करो छरोडकर और कहीप से भरपूर श्री रा ा ही सहीप सकता। असन्त सौन्द्र ी का ीुखारमान्द सबके ीस करो ीुगधि कर लेता है और हद् ीे अखणड रप से अंमकत हरो ाता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 332 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सैसय मसलाट मसरखते, देखी बसी सारंगी पाग। दगु दगु ी कलंगी ए रोत, छमब रह महरदे रही लाग।।१८३०।। ब आसतीक स र श्री रा ी के ीवतक और उस पर बँधिी हुई सारंगी की आकृधत ााली पाग करो देखती है, तरो ाह इतसा ीुगधि हरो ाती है मक ज्रोधत से भरपूर दगु दगु ी और कलंगी की शरोभा आतीा के मदल ीे अखणड हरो ाती है। हरोए बरसस चतुराई से, आससिसक धिरे ताकरो साी। एक अंग छरोड ाए और लगे, सरो साहीप आससिसक करो काी।।१८३१८।। धिसी के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली ब्सृमष्ट्य (आणशकय) की दमष्ट ीे ाह आतीा हँसी की पा् बस ाती है , रो अपसी बुधद की चतुराई से सभी अंगय का ाार स करसे का प्र्ास करती है। ्ह का्र एक सच्चे आणशक का सहीप है प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 333 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मक एक अंग की शरोभा करो और देखसे लग लदी- लदी देखकर कहीप ा्े। आससिसक कमहए हक की, आससिसक ऐसी चामहए, रो लग रहे एकै ठौर। रो ले स सके अंग और।।१८३२।। अकरातीत से सच्चा प्रेी करसे ााली ब्सृमष्ट (आणशक) ाही है, ससि सकी स र ्मद मकसी भी अंग पर पडती है तरो उसी ीे डू बी रह ाती है। आणशक की पररभाषा भी ्ही है मक ाह मकसी एक अंग की शरोभा करो छरोडकर कहीप और सहीप ाती। इस आससिसक की स रय, मदल एकै हुआ सागर। सरो झीले ्ाही सुख ीे, मसकसे सहीप क्यए कर।।१८३३।। आतीा (आणशक) ब सौन्द्र के सागर अकरातीत की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 334 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी शरोभा करो देखती है, तरो उसका मदल धिसी के मदल से ाैसे ही एकरप हरो ाता है पशात् सदी उसी का वारप बस ीे ाह श्री रा स ै े सागर ीे मीलसे के ाती है। उस अावका ी के मदल ीे उीडसे ााले प्रेी और आसन्द के सागर ीे क्रीडा करती है तका उससे मसकल सहीप पाती। भाााकर - धिसी की शरोभा ीे डू बकर, अकरातीत के मदल से एकरप हरोकर, ीाररफत (माञास) की अावका ीे पहुँचसे का प्रसंग ससिससगार ीे इस प्रकार मद्ा ग्ा हैहक असर मदल ीरोमीस, और असर हक खखलात। ााहेदत बीच असर के, है असर ीे अपार न््ाीत।। ससिससगार २/२ ही अरस परस है हक के, ए देखरो ीरोमीसय महसाब। ही हकीे हक हीीे, और हक मबसा सब खााब।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 335 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससिससगार २/१८२ मदल करो तुी असर मक्ा, तुी आए बैठे मदल ीांहे। ही असर सीेत तुी मदल ीे, अ ूं क्य रोस आात साहे।। ससिससगार २/४७ तरो सरोभा सारे सरप की, क्य कहे ुबां इस। लेहेरे सेहेरे परोहयचे आकास लय, और ठौर स करोई ीरोमीस।।१८३४।। इस प्रकार श्री रा ी की सख से णशख (ससिसर) तक की सम्पूार शरोभा का ाार स इस ससि िहा से सहीप मक्ा ा सकता। उसकी शरोभा रपी सागर से इस प्रकार की लहरे आकाश ीे उठती (उीडती) है, स ै े ते की सहरे चल रही हय। इस शरोभा करो छरोडकर ब्सृमष्ट्य के खल्े और करोई गह सहीप है , अकारत् आती- ागधत के खल्े धिसी की शरोभा करो अपसे मदल ीे बसासे के अधतररक अन्् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 336 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोई ीागर सहीप है। आससिसक स लेाे दासाई, पर ए दासाई हक। इवक आपे पीाहीप, और मपलााे बेसक।।१८३५।। ्दमप मप्र्ती की शरोभा का ाार स करसे ीे आतीा (आणशक) करोई भी चतुराई सहीप लेसा चाहती , मकन्तु इस श्रृंगार-ाार स ीे रो बौधदक चातु्र मदख रहा है , ाह भी तरो धिाी धिसी का ही मद्ा हुआ है। इसीे करोई संश् सहीप है मक धिाी धिसी अपसी आतीाओं से लीला रप ीे इशक का रस वा्ं पीते है तका उसकरो मपलाते है। भाााकर - करोई भी आतीा धिसी की शरोभा करो देखकर उसीे डू ब ाती है। ्मद श्री रा ी उससे ाार स स कराा्े, तरो उसके खल्े वा्ं ाार स कर पासा सम्भा सहीप हरोता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 337 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए चतुराई हक की, और हकै का इली। ए सुख इस सरप के, देाे एही खसी।।१८३६।। श्रृंगार के ाार स ीे ससि स ञास और बुधद की चतुराई ्हाँ मदख रही है, ाह श्री रा ी की ही दी हुई है। अपसे वारप के ाार स से अपसी शरोभा ीे डु बरोसे का सुख वा्ं श्री रा ी ही अपसी अँगसाओं करो देते है। इस सरप करो बरसस, सरो ्ाही की चतुराए। ्ाकरो आससिसक ामसए, रो इतहीप रहे लपटाए।।१८३७।। धिसी की शरोभा का ाार स भी धिसी की दी हुई चतुराई से ही सम्भा हरोता है। ाही आतीा आणशक कहलासे का अधधिकार रखती है, रो उस शरोभा करो देखकर डू ब ा्े और अपसा असवतता भुला दे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 338 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए सुख इस सरप करो, और आससिसक एही आराी। रोलय इवक स आाहीप, तरोलय इली एही माश्राी।।१८३८।। मप्र्ती की शरोभा ीे दरो प्रकार का सुख णछपा हरोता है , ससि सका रसावाादस आतीा्े मक्ा करती है। एक सुख तरो शरोभा-श्रृंगार के ाार स का हरोता है और दस ू रा उसीे डू बसे का हरोता है। ब तक शरोभा ीे वा्ं करो डु बरोसे के खल्े आतीा के अन्दर प्रेी (इशक) सहीप आ ाता, तब तक ाह ञास (इली) के दारा ही शरोभा का रसपास करती है। इवक करो सुख और है, और सुख इली। पर न््ारी बात आससिसक की, ससि स रो देाे खसी।।१८३९।। इशक और इली (प्रेी और ञास) के सुख अलग-अलग है। इशक हाँ ाहदत के आसन्द ीे डु बरो देता है , ाहीप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 339 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इली आतीा करो उसके वााद का असुभा कराता है। ब्सृमष्ट्य की बात सबसे अलग हरोती है। ्ह धिाी धिसी की ीेहर के ऊपर मसभर र करता है मक उन्हे क्ा देसा है केाल इशक ्ा केाल इली ्ा दरोसय? ए इली ए इवक, दरोऊ इस हक करो चाहे। पर ससि सकरो हक रो देत है, सरो लेाे ससिसर चढ़ाए।।१८४०।। ब्सृमष्ट प्रेी और तारती ञास के दारा धिसी करो पासा चाहती है, मकन्तु श्री रा ी ससि सकरो प्रेी ्ा ञास ीे से रो कुछ भी देते है, ाह उसे णशररोधिा्र कर लेती है। ीहाीत कहे अपसी रहस करो, तुी रो अराा असर । सराब प््ाले इवक के, ल्रो प््ाले पर प््ाले सरस।।१८४१८।। श्री ीहाीधत ी ब्सृमष्ट्य से कहते है मक हे साक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी! 340 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्मद आपके अन्दर परीधिाी का अँकुर है , तरो आप आसन्द देसे ााले प्रेी के प््ाले पर प््ाले लीससि ए और उसका रसपास कीससि ए। भाााकर - इस चौपाई ीे ब्सृमष्ट्य की ्ह कसौटी बता्ी ग्ी है मक ्मद ाे अपसे मदल ीे धिसी का प्रेी सहीप बसा सकतीप, तरो उन्हे धिसी की अधिार्धांमगसी कहलासे का करोई अधधिकार सहीप है। ब्सृमष्ट की गररीा ही इसी ीे है मक ाह धिसी के हद् से प्राामहत हरोसे ााले प्रेी की अीृती्ी धिारा का रसावाादस करे। प््ाले पर प््ाले लेसे का तातप्र है - कई प््ाले लेसा। साीान््तः श ्मद करोई एक प््ाला पी ले और उसे अन्् प््ालय करो पीसे के खल्े कहा ा्े, तरो उस सी् प््ाले पर प््ाले का ककस चररताकर हरोता है। प्रकरा ।।५।। चौपाई ।।३४९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 341 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी श्री ठकुरासी ी करो ससिससगार पेहेलरो ींगला चरस इस प्रकरा ीे श्ाीा ी के श्रृंगार का ाार स मक्ा ग्ा है। बरसस करं बडी रह की, रहे इस अंग का सूर। अरााहे असर ीे ााहेदत, सरो सब इसका श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक अब ीै श्ाीा ी के श्रृंगार का ाार स करती हूँ। श्री रा अंग श्ाीा हूर।।१८।। ी के आसन्द ी है और सभी सखख्ाँ श्ाीा की अँगरपा है। परीधिाी की एकमदली ीे ी के सूर रो सखख्ाँ है , सभी इन्हीप की वारपा है। भाााकर - सखख्य करो श्री श्ाीा ी के अंग का सूर कहे ासे का ्ह अकर कदामप सहीप सीझसा चामहए मक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 342 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसका प्रेी और सौन्द्र श्ाीा ी से की है। उस शब्दातीत परीधिाी की अदैत लीला करो सीझसे के खल्े इस प्रकार की भाषा का प्र्रोग मक्ा ग्ा है। प्रकी लागूं दरोऊ चरस करो, धिसी ए स छरोडाइ्रो खखस। लांक तली लाल एमड्ां, ीेरे ीा के एही ीास।।२।। ीै सार प्रकी श्ाीा ी के दरोसय चरा-कीलय ीे प्रााी करती हूँ और श्री रा ी से ्ह प्राकर सा करती हूँ मक हे धिाी धिसी! ीुझे श्ाीा ी के इस चराय से अलग सहीप हरोसे देसा। श्री श्ाीा ी के चराय की लाल -लाल एमड्ाँ और तलाय की गहराई ााले भाग (लाँक) की सुन्दरता ही तरो ीेरे ीा के ीास का आधिार है। भाााकर - इस ींगलाचरा ीे प्रकी चौपाई करो छरोडकर शेष सभी चौपाइ्य ीे "ीेरे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ीा के एही ीास" कहकर 343 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चौपाई का चौका चरा पूार मक्ा ग्ा है। इस चौपाइ्य ीे ्ह ससि ञासा हरोती है मक ्हाँ "ीेरे ीास" से क्ा अणभप्रा् है? क्ा ीा के एही ीा इसके मबसा सहीप रह सकता ्ा आतीा सहीप रह सकती? ्मद ्हाँ आतीा का प्रसंग है तरो ीा शब्द क्य खलखा ग्ा है? चेतसा के तीस वारप है- ीा चेतसा, ईशरी् चेतसा, आसतीक चेतसा। " ीा" शब्द का भाा ीा् कालीा्ा एां ्रोगीा्ा के ब्ाणड ीे ही हरोता है। ्हाँ करो दरो रपय ीे व््क मक्ा ीा भाा ाता है। एक आमदसारा्ा की अंशीभूत चेतसा और दस ू री आती चेतसा। इन्हे ही " ीा" शब्द से सम्बरोधधित कर मद्ा तीकी अलगरो े रहूँ, ते ाता है। ीा ीारे स खीा्। एक पल ीांहे रे सखख्य, करोटास करोट प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा स ै े- ुग का्।। 344 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एाडां दख ु ते कां कररो, हुं दऊं एी केी छे ह। तीे ीारा प्राासां प्रीती, बांध््ा े ीूल ससेह।। रास ४७/१८०,१८३ ्े ककस अकरातीत श्री रा ी के है, रो उन्हयसे रास के ब्ाणड ीे सखख्य से कहे के। ्ह मसराााद सत् है मक रास के सी् श्री रा ी के उस सूरी्ी तस ीे ीा का असवतता सहीप का , मफर भी उन्हयसे अपसी आती-चेतसा करो " ीा" शब्द से सम्बरोधधित करके कहा। इसी प्रकार दस प्रााय का ककस भी ीा् कालीा्ा के ब्ाणड ीे ही प्र्क ु हरोता है , ्रोगीा्ा ्ा परीधिाी ीे सहीप, क्यमक ाहाँ न्ी-ीरा की प्रमक्र्ा है ही सहीप, मफर भी रास ४७/१८३ ीे अपसी आती-चेतसा करो वा्ं धिाी धिसी से "प्राा" शब्द से सम्बरोधधित मक्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 345 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसी प्रकार कलश महन्दवु तासी ीे वा्ं धिाी धिसी अपसी आतीाओं करो अपसे "प्रााय का मप्र्ती" कहते हैप्रीती ीेरे प्राा के, अंगसा आती सूर। ीस कलपे खेल देखते, सरो ए दख ु करं सब दरू ।। क. मह. २३/१८७ वपष्ट है मक श्रीीुखाााी के इस ककसय ीे ीा और प्राा ( ीास) का बा् अकर स लेकर गु् (लाकणाक) अकर खल्ा ग्ा है और इसे आतीपरक ीासा ग्ा है। इसी प्रकार श्री श्ाीा ीा के एही ी के श्रृंगार ाार स ीे कणकत "ीेरे ीास" का भाा सीझसा चामहए। ्हाँ " ीा" शब्द का तातप्र "आसतीक भाा" से ही है। मकन्तु ्मद ऐसा भी ीासा ा्े मक ीेरी आतीा ससि स ीा पर मारा ीास हरोकर इस खेल करो देख रही है, ाह प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 346 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीा धिसी की ाााी से प्रेी की राह अपसा चुका है और श्ाीा ी के चरा कीलय करो सहीप छरोडसा चाहता तका उसके मबसा ीमात भी सहीप रहसा चाहता, तरो इसीे करोई आपखत सहीप है। मकन्तु ्ह भी ध््ास रखसे ्रोग् तर् है मक श्ाीा ीा करो ी के चरा कीलय का दशर स सहीप हरो सकता। ाह प्रेी के दारा श्री रा ी के चरा कीलय का दशर स अाश् प्राप कर लेगा। सागर १८४/२७ का ्ह ककस "बदले आप देखाात, प््ारी मससबत रखे णछपाए" ्ही ससिसद करता है। ावतुतः श "आससिसक इस चरस की, आससिसक की रह चरस" (ससिससगार) के आधिार पर ्ही कहा ा सकता है मक धिसी के चरा कील ही ब्सृमष्ट्य के ीास के आधिार (सार वा) है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 347 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससिसफत सख कहूं के अंगुरर्य, के रंग परोहयचे ऊपर टांकस। कहूं करोीलता मकस ीै श्ाीा ुबां, ीेरे ीा के एही ीास।।३।। ी के चराय के सखय और अँगुखल्य के सौन्द्र की ीमहीा का कैसे ाार स करँ। ीेरी ससि िहा ीे ्ह साीर्र सहीप है मक ाह श्ाीा ी के चराय के पँ य और टखसय की करोीलता एां सुन्दरता का ाार स कर सके। ्े चरा कील ही तरो ीेरे ीास के आधिार है। रंग सरीाई सलूकी, असर अंग चरस। बल बल ाऊं देख देख के, ीेरे ीा के एही ीास।।४।। ीै श्ाीा ी के सूरी्ी चरा कीलय की सुन्दरता , करोीलता करो देख-देख कर बारम्बार न््रोछाार हरोती हूँ। ्े दरोसय चरा कील ही तरो ीेरे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ीास के आधिार है। 348 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस पांउं तले पडी रहू,ं धिसी स र खरोलरो बातस। पल स ाालूं मसरखूं से्े, ीेरे ीा के एही ीास।।५।। ीेरे प्रााालभ अकरातीत! ीेरी आपसे ्ही प्राकर सा है मक आप अपसी ीेहर से ीेरी आसतीक दमष्ट खरोल दीससि ए, ससि ससे ीै अपलक से्य से श्ाीा ी के चरा कीलय का दशर स करती रहूँ। ीेरी ्ही काीसा है मक ीेरी आसतीक दमष्ट हीेशा ही इस चराय ीे लगी रहे , क्यमक ्े ीेरे ीास के आधिार है। भाााकर - चराय ीे पडे रहसे का भाा आलंकाररक है। इसका तातप्र है , आसतीक दमष्ट से चराय का दीदार करते रहसा और उसके साधन्नध्् से कभी अलग सहीप हरोसा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 349 / 992 श्री सागर टीका चारय श्री रा स वााीी रोडे चरस के, और असाट मबणछ्ा ररोसस। बासी ीीठी सरीाई रोत धिरे, ीेरे ीा के एही ीास।।६।। श्ाीा ी के दरोसय चराय की एमड्य ीे झांझरी, घूघ ं री, कांबी, कडला, तका अंगूठय एां अंगुखल्य ीे असाट , मबणछ्ा के आभूषा करोील आाा गीगा रहे है। इसकी ीीठी और ीुगधि करसे ााली है। सूरी आभा से ्क ु इस आभूषाय की शरोभा ीेरे ीास का आधिार है। प््ारे ीेरे प्राा के, ीरोहे पल छरोडरो ससि स। ीै पाई ीेहेरे ीेहेबूब की, ीेरे ीा के एही ीास।।७।। ्े दरोसय चरा कील ीुझे प्रााय से भी अधधिक प््ारे है। अब एक पल के खल्े भी इस चराय की शरोभा ीेरे मदल से अलग सहीप हरोसी चामहए। धिाी धिसी की ीेहर से ीुझे इस चराय की पहचास हरो ग्ी है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो ीेरे ीास के 350 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आधिार है। ए चरस पुतखल्ां सैस की, सरो ीै राखूं बीच तारस। पकड राखूं पल ढांप के, ीेरे ीा के एही ीेरी ्ही चाहसा है मक श्ाीा ीास।।८।। ी के इस चराय करो अपसे से्य की पुतखल्य के तारय ीे बसा लूँ और पलकय से ढककर अन्दर ही पकडे रखँू। ावतुतः श ्े चरा कील ही तरो ीेरे ीास के सार वा है। भाााकर - इस चौपाई के गु् भाा ीे सैस पराती का तस है, तरो पुतली आतीा का वारप है। उसका मदल ही तारा है, ससि सीे श्ाीा ी के चरा कीलय करो बसासा है। ससि स प्रकार आँ खय की पलके बन्द कर लेसे पर बाहर की ावतुएँ मदखा्ी सहीप पडतीप , उसी प्रकार आतीा ब संसार से अपसा ध््ास हटाकर ्गु ल वारप की शरोभा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 351 / 992 श्री सागर टीका की ओर ीुड श्री रा स वााीी ाती है, तरो संसार से सम्बन्धि टू ट ाता है। इस प्रकार पलके आतीा की इच्छा शमक का प्रतीक है। रो ीूल सरप है अपसे, ाकरो कमहए परआती। सरो परआती ले् के, मालससिसए संग खसी।। सागर ७/४१८ ब तक आतीा (पुतली) अपसी दमष्ट संसार से हटाकर अपसी पराती का श्रृंगार सहीप कर लेती, तब तक उसके तारा रपी मदल ीे धिसी की शरोभा सहीप बस सकती। ीेरे ीीठे ीीठरडे आती के, सरो चुभ रहे अन्तवकरस। रह लागी ीीठी स रय, ीेरे ीा के एही ीास।।९।। ्े चरा कील ीेरी आतीा करो बहुत ही ीीठे (प््ारे) लगते है। उसकी ीधिुर छमा ीेरे हद् ीे बस चुकी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 352 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अब ीेरी आतीा अपसी ीधिुर दमष्ट से इस चराय की तरफ लग ग्ी है, क्यमक ्े चरा कील ीेरे ीास के आधिार है। ए चरस कील असर के, इससे खस ु बरोए आाे ातस। ए तस बका असर अ ीी, ीेरे ीा के एही ीास।।१८०।। ्े सूरी चरा कील परीधिाी के है। इसके ध््ास (धचतामस) से मस घर की सुगसन्धि का असुभा हरोता है। उस अखणड परीधिाी ीे श्ाीा ी का ाह सूरी तस मारा ीास है, ससि सके चरा ीेरी आतीा के आधिार है अकारत् उसके मबसा ीेरा करोई भी असवतता सहीप है। ए चरस मसीख स छरोमडए, राखखए ीाहे सैसस। ए मससबत हक असर की, ीेरे ीा के एही ीास।।१८१८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 353 / 992 श्री सागर टीका हे साक श्री रा स वााीी ी! इस चराय करो एक का के खल्े भी स छरोमड्े। इन्हे अपसी आतीा के मदल रपी से्य ीे बसा लीससि ए। श्री रा ी की अधिार्धांमगसी श्ाीा ी के इस चराय से ीेरा ीूल सम्बन्धि तरो परीधिाी से ही है। ावतुतः श ्े चरा कील ही ीेरे प्राााधिार है। ीेहेरे सेहेर ल्ाए चरस अन्दर, दार सूर पार खरोले इस। ीरोहे परोहयचाई बका मीसे, ीेरे ीा के एही ीास।।१८२।। श्री रा ी के ीेहर सागर की एक लहर ीेरे मदल ीे आ्ी, ससि ससे ीेरी सुरता (आसतीक दमष्ट) अकरधिाी से भी परे परीधिाी के रंगीहल ीे पहुँची और ीैसे ्गु ल वारप का दीदार मक्ा, ससि सके पररााीवारप श्ाीा ी के चरा कील अब ीेरे धिाी मदल ीे मारा ीास हरो चुके है। इस चराय ीे ही ीेरा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ीास है। 354 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरोभा ससिससगार अंग सुखकारी, ीेरी रह के कणठ भूखस। सब खूमब्ां ीेरे इस से, ीेरे श्ाीा ीा के एही ीास।।१८३।। ी के इस अंगय (चराय) की शरोभा तका श्रृंगार आतीा करो आसन्द देसे ााले है। ्े ीेरी आतीा के कणठहार के सीास है। ीुझीे अकारत् ीुझे संसार ीे रो भी माशेषता्े है , रो भी शरोभा प्राप हुई है , इस चराय की कृपा से ही प्राप हुई है। ावतुतः श ्े ीेरी आतीा के आधिार है। ए ीेहेर अलेखे असल, ीेरे ताले असर के तस। क्य स हरोए ीरोहे बु रमक्ां, ीेरे ीा के एही ीास।।१८४।। ीेरे ऊपर धिसी की ्ह ाावतमाक और असन्त ीेहर है मक ीेरे सौभाग् से परीधिाी ीे ीेरा तस है का ही अंग है। ब श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो श्ाीा ी ी के चरा कील ही ीेरे 355 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सार वा है, तरो ीुझे इस संसार ीे बडप्पस (ीहाीधत कहलासे की शरोभा) क्य सहीप मीलेगा। ्ष्टव््- "सबके बडी ीुझे करी , ऐसी और स द ू ी करोए" (मकरंतस १८०९/२) का ्ह ककस अकरशः श सत् है। ीहाीधत ी के सीास मकसी करो भी व , रास, ्ा ागसी ीे शरोभा सहीप मीली है। धचत खैच खल्ा इस चरसय, ीरोहे सब माधि करी धिंस धिंस। ए ससिसफत करं क्य इस ुबां, ीेरे ीा के एही ीास।।१८५।। श्ाीा ी के इस चराय से ीेरे हद् (धचत) करो अपसी ओर खीपच खल्ा है और ीुझे हर तरह से धिन््-धिन्् कर मद्ा। अपसी इस ससि िहा से ीै इस चराय की ीमहीा का ाार स कैसे करँ। ्े चरा ही तरो ीेरे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ीास के आधिार है। 356 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ज्य ासरो त्य ीेहेबूब कररो, ए सुख मद्ा स ाए द ू े मकस। कहूं तरो रो द ू ा करोई हरोाहीप, ीेरे ीा के एही ीास।।१८६।। हे धिाी धिसी! अब आप स ै ा चाहे, ाैसा कीससि ए। आपके अधतररक इस चराय का सुख और करोई दस ू रा सहीप दे सकता। ीै और मकसी करो तरो तब कहूँ , ब हीारा आपके अधतररक और करोई (मप्र्ती) हरो। ्काकर तरो ्ह है मक श्ाीा ी के ्े चरा ीेरे प्राााधिार है। क्य कहूं चरस की बु रमक्ां, इत साहीप ठौर बरोलस। ए पकड सरप पूरा देत है, ीेरे ीा के एही ीास।।१८७।। ीै श्ाीा ी के चराय की ीमहीा का ाार स कैसे करँ। इस सम्बन्धि ीे बरोलसे का साीर्र ही ीुझीे सहीप है। अन्ततः श ्े चरा कील ही ीेरे ीास है, क्यमक इसकी कृपा से ही ीेरे धिाी हद् ीे ्गु ल वारप मारा ीास हुए प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 357 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। भाााकर - इस चौपाई के तीसरे चरा का भाा ्ह है मक ब आतीा श्री रा ी ्ा श्ाीा ी के चराय का ध््ास करती है तरो हद् ीे प्रेी बढ़ता है , ससि ससे ्गु ल वारप की छमा मारा ीास हरो ाती है। इस सम्बन्धि ीे ससिससगार २१८/२२७ देखसे ्रोग् हैए ीेहेर करे चरस ससि स पर, देत महरदे पूरस सरप। ुगल मकसरोर धचत चुभत, सुख सुन्दर रप असूप।। करत चरस पूरी ीेहेर, धतस सरप आात पूरस। प््ार पूरा ताए आात, ीेरे ीा के एही ीास।।१८८।। इस चराय की ससि स पर पूार ीेहर हरोती है , उसके अन्दर ही धिसी का पूार प्रेी आता है और ्गु ल वारप का दीदार हरोता है। अन्ततः श ्े चरा कील ही तरो ीेरी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 358 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आतीा के आधिार है। ए चरस मदल आाे मससबते, ए ीता असर रहस। ए धिसी के मदए क्य छूटहीप, ीेरे ीा के एही ीास।।१८९।। ीूल सम्बन्धि हरोसे पर ही श्ाीा ी के चरा कील मदल ीे आते है। ्ह आध््ासतीक सम्पदा ीा् परीधिाी की ब्सृमष्ट्य के खल्े है। धिाी धिसी की ीेहर (कृपा) से ही ्े चरा कील प्राप हरोते है , इसखल्े मकसी भी सवकधत ीे इसका छूट पासा असम्भा है। ीेरी आतीा के सार वा तरो श्ाीा भाााकर - श्ाीा ी के ्े ीसरोहर चरा ही है। ी के चरा कील ीा् परीधिाी की ब्सृमष्ट्य के अन्दर मारा ीास हरोते है , अन्् मकसी के भी अन्दर सहीप, चाहे ाह मकतसा ही ञासी-तपवाी क्य स हरो। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 359 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिसी देाे सहूर सब मबधि, तरो सैसय मसरखूं मससमदस। आठय ाी चौंसठ घडी, ीेरे ीा के एही ीास।।२०।। ीेरी ्ही इच्छा है मक ्मद धिाी धिसी ीुझे पूार रप से आती-धचन्तस (सीूह) ीे लगा दे , तरो ीै मदस -रात, आठय प्रहर , चौंसठ घडी इस चरा कीलय करो ही मसहारती (देखती) रहूँ, क्यमक ्े चरा कील ही ीेरे ीास के आधिार है। ीहाीत चाहे इस चरस करो, कर ीससा ााचा करीस। आए बैठे ीेरे सब अंगय, ीेरे श्री ीहाीधत ीा के एही ीास।।२१८।। ी कहते है मक ीस , ाााी, और कीर से ीेरी एकीा् इच्छा ्ही है मक श्ाीा ी के ्े चरा कील ीेरे धिाी हद् ीे आकर मारा ीास हरो ा्े। ावतुतः श ्े ही ीेरी आतीा के आधिार है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 360 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ष्टव््- इस चौपाई ीे इस प्रकार का ककस सुन्दरसाक करो ससिसखापस ीा् देसे के खल्े कहा ग्ा है , तामक सुन्दरसाक ्गु ल वारप के चराय करो मदल ीे बसासे की राह अपसा्े। श्री इन््ााती ी के अन्दर तरो हब्से ीे ही ्गु ल वारप मारा ीास हरो ग्े के। ।। ींगला चरा संपूार ।। ए रह सरप सहीप तता करो, इसकरो अवाारी ीस। खास पास सुख ससिससगार, ए हरोए रह के धचतास।।२२।। श्री श्ाीा ी का वारप पाँच तता का सहीप है। ्ह वारप ीस की गधत के असुसार परीधिाी ीे कहीप भी आ- ा सकता है। लीला रप ीे तरह-तरह के भरोज् पदाकर करो खासा -पीसा, आसन्दी्ी क्रीडा्े करसा , तका श्रृंगार आमद आतीा की इच्छा ीा् से ही हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाते 361 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। भाााकर - ्दमप इस ड गत ीे वकूल शरीर करो आसे- ासे के खल्े ्ासय और ााहसय की आाश्कता पडती है, मकन्तु रो सूकी शरीरधिारी ससिसद ्रोगी हरोते है , ाे पल भर ीे ह ारय मकलरोीीटर की ्ा्ा पूरी कर लेते है। सम्पूार परीधिाी श्री रा ही व््क वारप है। ी के मदल (ीाररफत) का ब ाहाँ वालीला अदैत है , तरो आसे- ासे एां अन्् मक्र्ाओं का ीस की इच्छासुसार हरोसा करोई आश्र की बात सहीप है। रो पेहेसााा असर का, अचर अदभुत ास। कहूं दमु स्ाँ ीे मकस मबधि, मकस कबहूँ स सुमस्ा कास।।२३।। परीधिाी ीे रो ास एां आभूषा धिारा मक्े ाते है , ाे इतसे माधच् और आश्र ीे डालसे ााले है मक ीेरे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 362 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी साीसे ्ह प्रश हरोता है मक ीै इसे संसार ीे कैसे व््क करँ। आ तक मकसी से भी अपसे कासय से इस प्रकार का ाार स कभी सहीप सुसा है। कणठ कास ीुख साससिसका, ए रो पेहेसत है भूखस। ए दमु स्ां ज्य पेहेसत है, ससि स श्ाीा ासरो मबधि इस।।२४।। ी अपसे गले ीे तका ीुखारमान्द के कास और साससिसका ीे रो आभूषा धिारा करती है , उसके बारे ीे ऐसा सहीप सरोचसा चामहए मक आभूषा पहसते है, ाैसे ही श्ाीा स ै े संसार के लरोग ी भी पहसती है। ्ा ावतर ्ा भूखस, सकल अंग हाक पाए। सरो असल ऐसे ही देखत, श्ाीा स ै ा रह धचत चाहे।।२५।। ी के हाक-पैर आमद सभी अंगय ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो भी ास 363 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ा आभूषा मदखा्ी पडते है, ाावता ीे ाे ाैसे ही मदखा्ी पडते है स ै ा आतीा अपसे मदल ीे देखसा चाहती है। अंग संग भूखस सदा, मदलके तअलक ु असल। ए सरप ससिससगार मदल चाहे, असर ीे साहीप सकल।।२६।। श्ाीा ी के मदल की इच्छासुसार सभी आभूषा हीेशा ही शारीररक अंगय से ुडे रहते है। सारा श्रृंगार उसके हद् की इच्छा से सुशरोणभत हरोता है। परीधिाी के आभूषाय करो ्हाँ के आभूषाय की सकल सहीप सीझसा चामहए। ज्य अंग त्य ावतर भूखस, हरोत हीेसा बसे। मदल स ै ा चाहे खखस ीे, तैसा आगूंहीप पेहेसे।।२७।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 364 / 992 श्री सागर टीका ससि स प्रकार श्ाीा श्री रा स वााीी ी के सभी अंग सूरी्ी है, उसी प्रकार उसके ास और आभूषा भी सूरी्ी है। ाे हीेशा उसके अंगय पर बसे रहते है। श्ाीा ी के मदल ीे ससि स प्रकार के ास एां आभूषा धिारा करसे की इच्छा हरोती है, का भर ीे ही उसी तरह का श्रृंगार पहले से धिारा मक्ा हुआ मदखसे लगता है। ाकरो साीै का्ी, अखंड बका अपार। सरोई भूल ासरो अपसी, सरोभा ल्ाइए ीाहे सुीार।।२८।। वालीला अदैत सधच्चदासन्द परब् का परीधिाी असामद, असन्त, और अखणड है। ाहाँ की असन्त शरोभा करो इस संसार की सीमीत शरोभा ीे बाँधिसा अपसी बहुत बडी भूल है। भाााकर - परीधिाी के एक का के ते प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा के साीसे ब 365 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस ब्ाणड के कररोडय सू्र णछप रा श्ाीा ाते है , तरो श्री ी और सखख्य के एक-एक अंग की उपीा ्हाँ के पदाकर से देसा हीरे करो काँच कहसे के सीास है। पेहेले सरोभा कही सुभास की, सरोई सरोभा बडी रह ास। सहीप ुदागी इसीे, ुगल मकसरोर पराास।।२९।। स ै ी सूरी्ी शरोभा श्री रा ी की ारात की ग्ी है, ाैसी ही शरोभा श्ाीा ी की भी ाससी चामहए। ्गु ल मकशरोर श्री रा श्ाीा ी एक ही वारप है और इसीे मकसी प्रकार का अलगाा सहीप है। हक सूरत करो सूर है, ससि स ासरो अंग और। इसकरो सूर रहे ााहेदत, करोई और स पाइए इस ठौर।।३०।। श्ाीा ी करो अलग वारप सहीप सीझसा चामहए , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 366 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बसलक ्े श्री रा ी के ही सूरी्ी वारप के अंग है। इसकी अँगरपा सूरी्ी वारप ााली ब्सृमष्ट्ाँ है, ससि सका वारप एकमदली ीे है। इसके अधतररक परीधिाी ीे और करोई सहीप है। भाााकर - अकर ब् और आसन्द अंग श्ाीा ही श्री रा ी दरोसय ी के सूरी्ी अंग है और इसके समहत सम्पूार परीधिाी का वारप भी सूरी्ी है। अन्तर केाल इतसा है मक एक वारप सत् की लीला का प्रधतमसधधिता करता है, तरो दस ू रा आसन्द की लीला का। सरोभा व्ाीा ी् की, मसपट अधत सुन्दर। अन्तर पट खरोल देखखए, दरोऊ आात एक स र।।३१८।। श्ाीा ी की शरोभा बहुत अधधिक (असन्त) सुन्दर है। ्मद बा् दमष्ट करो छरोडकर आसतीक दमष्ट से देखा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्े 367 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तरो दरोसय एक ही वारप स र आते है। भाााकर - बा् दमष्ट का तातप्र है - लौमकक भााय से ुडी हुई ीा ा अन्तः शकरा की दमष्ट। आसतीक दमष्ट परीधिाी की एकमदली से रा श्ाीा ुडी हरोती है और ाही श्री ी के वारप की ाावतमाक पहचास करती है। लाल साडी कटाा कई, कई छापे बेली सकस। क्य कहूं छे डे मकसार की, सरोणभत अधत सरस।।३२।। श्ाीा ी की साडी का रंग लाल है, ससि स पर असेक प्रकार के बेल-बूटे बसे हुए है। उस पर असेक प्रकार की लताओं के धच् तका छापे भी अंमकत है। साडी के दरोसय छरोरय के मकसारे बहुत ही सुन्दर सुशरोणभत हरो रहे है। उसकी शरोभा का ाार स ीै कैसे करँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 368 / 992 श्री सागर टीका ीाहे री ससि त ुगत श्री रा स वााीी ाेर रंग कई, ासय आगूंहीप बसे असल। रो चामहए, सरोणभत अपसी मीसल।।३३।। साडी ीे सरोसे के तारय से असेक रंग के हुए है। ऐसा प्रतीत हरोता है मक ाावता ीे बसे हुए है। ााहरात डे स ै े ्े पहले से ही हाँ ससि स प्रकार की बसााट चामहए, ाहाँ ाैसी ही शरोभा सुशरोणभत हरो रही है। बेली मकसार छे डे बसी, सुन्दर अधत सरोणभत। कटाा फूल सकस कई, ुदी ुदी डाा ुगत।।३४।। साडी के पलू (छरोर) की मकसार पर बसी हुई लताएँ बहुत सुन्दर सुशरोणभत हरो रही है। उसीे असेक प्रकार के बेल-बूटे, फूल, तका धच्, बसााट ीे रो अलग-अलग प्रकार की डे हुए है, शरोभा दे रहे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 369 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ऐेसे ही असल के, सा कछू बुसे ावतर। ऐसे ही भूखस बसे, मकस घडे स घाट घडतर।।३५।। इसी प्रकार ्े ास भी ीूल (असामद काल) से ही है। इन्हे मकसी से बुसकर सहीप बसा्ा है। श्ाीा ी के वारप की तरह आभूषा भी असामद है। मकसी से इन्हे गढ़कर इतसा सुन्दर सहीप बसा्ा है। भाााकर - श्ाीा ी की तरह ही उसके सभी ास- आभूषा चेतस, सूरी्ी, और असामद काल से है। इस संसार के ास-आभूषाय की तरह इन्हे सहीप बसा्ा ग्ा है। चरोली व्ाी डाा संग, ीाहे हेी ाेर असेक। डतर कंठ उर बांहे, कहां लग कहूं मााेक।।३६।। श्ाीा ी की चरोली (ब्लाउ ) का रंग काला है। उसीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 370 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरोसे के साक असेक प्रकार के श्ाीा ााहरात डे हुए है। ी के गले, ाकवकल, तका बाहय के पास ााले भाग की चरोली ीे तरह-तरह के सग शरोभा का ाार स कहाँ तक मक्ा बुधद वतसम्भत हरो डे हुए है, ससि सका ा्े। उसके ाार स से ाती है। ससि त बेली बसी चामहए, और कांगरी फूल। कई सकस ख ूरे बूमट्ां, चरोली सरोणभत है इस सूल।।३७।। चरोली की शरोभा इस प्रकार की है मक हाँ भी लताओं , काँगरी, और फूलय की शरोभा की आाश्कता है , ाहाँ ाह पहले से ही बसी हुई है। कई गह लहरीदार बेल - बूमट्य के धच् भी बसे हुए है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 371 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी संग हेी मीले तरो कहू,ं रो मकस डे हरोए डतर। सकस कटाा बेली तरो कहू,ं रो मकस बसाए हयए हाकय कर।।३८।। ब्लाउ की शरोभा ीे सरोसे के साक का ाार स तरो तब मक्ा से ा्े , डे हुए ााहरातय ब मकसी से अपसे हाकय डकर बसा्ा हरो। इसी प्रकार तरह-तरह की लताओं और बेल-बूटय के धच्य का ाार स तभी सम्भा हरोता है, ब मकसी से इन्हे अपसे हाकय से बसा्ा हरो। चरसी सीली अतलस, ीाहे असेक मबधि के रंग। चीस पर बेली सकस, बीच श्ाीा री बेल फूल संग।।३९।। ी का पेटीकरोट रेशीी है और सीले रंग का है। इस सीले रंग ीे असेक प्रकार के रंग मदखा्ी देते है। इसकी चुन्नटय पर लताओं के धच् अंमकत है। बीच ीे सरोसे के तारय से लताओं और फूलय के धच् बसे है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 372 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि सीे तरह-तरह के ााहरात डे हुए है। क्य कहूं मकसार की कांगरी, ीामसक ीरोती सात संग। हीरे लसमसए पांसे परोखरे, ीाहे पाच कुन्दस करे ंग।।४०।। पेटीकरोट की मकसार पर काँगरी की शरोभा आ्ी है, ससि सका ाार स करसा सम्भा सहीप है। इसीे सरोसे के अन्दर सात प्रकार के अधधिक ााहरात गीगा रहे है। ्े डे हुए है रो बहुत ााहरात इस प्रकार है- ीाणाक, ीरोती, हीरा, लहसुमस्ा, पन्ना, पुखरा , और पाच। ावतर धिागा स सूझहीप, सरभर री सकस। ावतर भर्रो स बुन््रो मकसे, असल सबे एक रस।।४१८।। श्ाीा ी के ासय ीे सरोसे -चाँदी के तारय से इतसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 373 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अधधिक धच् अंमकत (सकशकारी) है मक ्ह पता ही सहीप चल पाता मक इसके धिागे कहाँ है। ाावतमाकता तरो ्ह है मक स तरो इस ासय ीे मकसी से कशीदाकारी (वाार ी्ी तारय से धच् अंमकत करसा) की है और स मकसी से धिागे से बुसा है, बसलक ्े सभी श्ाीा ी के सूरी्ी अंगय की अणभन्न शरोभा है। सारंग इस साडी मीसे, कंचस धिात उजल। ए केहेती हय सब असर के, ए देखरो मदल मसरील।।४२।। श्ाीा कञस ी के पेटीकरोट का साडा सौ रंगय का है , स ै ी वाच्छ (उजाल) धिातु के सीास रो गीगा रहा है। ्ह सारी शरोभा परीधिाी की है और इसीे करोई भी संश् सहीप करसा। हे साक ी ! अपसे हद् करो वाच्छ बसाकर आप इस अलौमकक शरोभा करो देखखए। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 374 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी क्ा ावतर क्ा भूखस, ची सबे सुखकार। खस ु बरोए ररोसस सरीाई, इस मबधि असर ससिससगार।।४३।। परीधिाी का श्रृंगार इस प्रकार का है मक ास और आभूषा आमद सभी ावतुएँ आसन्दी्ी है और सूरी्ी प्रकाश से ्क ु है। इसके अधतररक इसीे सुगसन्धि और करोीलता ओत-प्ररोत है। ससिसर पर सरोहे राखडी, रोत साडी ीे करे अपार। मफरते ीरोती ीाहे ीामसक, पांसे परोखरे दरोऊ मकसार।।४४।। श्ाीा ी के ससिसर पर राखडी सुशरोणभत है, रो साडी ीे अपार ज्रोधत कर रही है। राखडी के बीच ीे ीाणाक का लाल रंग का सग है, ससि से घेरकर ीरोधत्य की शरोभा आ्ी है। दरोसय मकसारय पर पन्ना और पुखरा गीगा रहे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 375 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ऊपर राखडी रो ीामसक, क्य देऊं इसकी मीसाल। आसीास ससि ीी के बीच ीे, हरोए ग्रो सब लाल।।४५।। राखडी के ऊपर ीाणाक की शरोभा इतसी अधधिक है मक उसकी उपीा सहीप दी ा सकती। ीाणाक की लाखलीा सेे धिरती और आकाश लाल ही लाल मदखा्ी पड रहे है। कुन्दस ीाहे धिरे अधत रोत, आकास स ीाए झलकार। बेस गूंकी तीस गरोफसे, मडत घूघ ं री घीकार।।४६।। कुन्दस ीे डे हुए इस ीाणाक की सूरी्ी ज्रोधत बहुत अधधिक है। इसकी झलकार आकाश ीे सहीप सीा पा रही है अकारत् आकाश ीे चारय ओर फैली हुई है। बालय की चरोटी परांदे के साक तीस भागय ीे गुँकी हुई है। इस तीसय गरोफसय ीे फुन्दस लटक रहे है , ससि सीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा डी हुई घुघ ं री 376 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी (घुघ ं र) बहुत ही ीीठी आाा तीस रंग कर रही है। री फुन्दस, गरोफसडे संग डतर। बारीक संग सीले सकस, ए बरसस हरोए क्य कर।।४७।। तीस रंग की री ीे फुन्दस लटके हुए है। गरोफसय ीे तरह-तरह के सग सगय से डे हुए है। सीले रंग के छरोटे -छरोटे रो धच्ांकस (सकशकारी) मक्ा ग्ा है, उसकी शरोभा का ाार स सहीप हरो सकता। भाााकर - सरोसे, चाँदी आमद के तारय करो री कहते है। श्ाीा ी के बालय ीे चरोटी तरो एक है, मकन्तु उसीे तीस लरे है रो आपस ीे परांदे के साक गुँकी हुई है। रेशी, ्ा धिागे से परांदा बसा्ा मीलाकर गुँका ाता है, री , रो बालय करो ाता है। गरोफसा फूल की आकृधत ीे गरोलाई खल्े हुए हरोता है प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 377 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और परांदे के मसचले महवसे से फुन्दस लमड्य के सहारे ुडा हरोता है। गरोफसय ीे ुडे हरोते है। ्े आकार ीे गरोफसय से बहुत छरोटे हरोते है और संख्ा ीे कई हरोते है , बमक गरोफसय की संख्ा ीा् तीस ही हरोती है। फुन्दस ीे घुघ ं रर्ां डी हरोती है। गरोफसय और गरोफसडे एकाकर ााची है। पांस सरोहे सेके पर, ीाहे बेल कांगरी कटाा। हारे ख ूरे बूमट्ां, ीासय के श्ाीा ुगत ी की ीांग ीे पास के पते डाा।।४८।। स ै ी शरोभा आ्ी है। उसीे तरह-तरह की लताओं, काँगरी, बेल-बूटय, तका लहरीदार बेल-बूमट्य की पंमक्ां इस प्रकार रही है, स ै े मकसी से उन्हे बडी ्मु कपूारक गीगा रोड मद्ा हरो। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 378 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससिसर पटली ीरोती सरे, ीाहेे पांच संग के रंग। ीरोती सर सेके लग, सीले पीले लाल सेत संग।।४९।। राखडी करो बाँधिसे के खल्े ससिसर पर पटली की शरोभा है , ससि सीे ीरोधत्य की लरे आ्ी है। इसीे ीरोती , सीलाी, पुखरा , ीाणाक, और हीरा- ्े पाँच तरह के सग शरोभा्ीास हरो रहे है। इसके रंग शेत, सीले, पीले, और लाल है। ीरोधत्य की लरे ीांग के ऊपर सुशरोणभत हरो रही है। ्ष्टव््- हीरा और ीरोती दरोसय का रंग शेत हरोता है। धतस संगय के फूल बसे, आगूं ससिसर पटली कांगरी। मसलाट से ले राखडी, बीच लाल ीांग भरी।।५०।। इस पाँचय प्रकार के सगय से फूल स ै ी आकृधत बसी हुई है। ससिसर के आगे पटली ीे कांगरी की भी बसााट है। ीाके प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 379 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से लेकर राखडी तक लाल ीांग सुशरोणभत हरो रही है। अदभुत सरोभा ए बसी, कहूं रो हरोाे और काहे। ए देखे ही बसत है, केहेसी ीे आात साहे।।५१८।। इस प्रकार की ्ह माधच् शरोभा है। ्मद ऐसी शरोभा कहीप और हरोती, तब तरो ीै उसकी उपीा देकर ाार स भी करती। ्ह सुन्दरता देखते ही बसती है। इस शब्दातीत शरोभा का ककस कर पासा मकसी भी प्रकार से सम्भा सहीप है। बेसी गूंकी एक भांत सय, पीठ गौर ऊपर लेहेकत। देत देखाई साडी मीसे, मफरती घूघ ं रडी घीकत।।५२।। श्ाीा ी के बालय की चरोटी बहुत ही माधच् तरीके से गूँकी हुई है। ाह उसकी गरोरे रंग की पीठ पर लहरा रही है प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 380 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और साडी के अन्दर मदखा्ी पड रही है अकारत् चरोटी के ऊपर साडी आ्ी है। चरोटी ीे लगे हुए फुन्दसय ीे घुघ ं रर्ां लगी है, ससि ससे बहुत ही ीधिुर ध्ामस गूँ ती रहती है। चरोली के बंधि चारय बंधिे, सरोणभत पीठ ऊपर। झलकत फुन्दस चरोली कांगरी, सरोभा देखत साडी अंदर।।५३।। ब्लाउ ीे चार बन्धि है , रो पीठ पर बँधिे हुए सुशरोणभत हरो रहे है। चरोली की डरोरी ीे लटकसे ााले फुन्दसय और काँगरी की झलझलाहट भरी शरोभा साडी के अन्दर मदखा्ी पड रही है। ए छमब पीठ की क्य कहू,ं रंग गौर लांक सलूक। ए सरोभा केहेत सखत ीारा, हुआ सहीप टूक टूक।।५४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 381 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीै पीठ की इस अलौमकक शरोभा का ाार स कैसे करँ। पीठ का रंग बहुत ही गरोरा है और बीच की गहराई बहुत ही सुन्दर है। ्ह आश्र की बात है रक इस असन्त शरोभा का ाास करते सी् ीेरा ीा टु कडे-टु कडे सहीप हरो ग्ा। क्ा ्ह इतसे कठरोर मदल का हरो ग्ा है? भाााकर - परब् के सौन्द्र का आकषर ा इतसा प्रबल हरोता है मक उसके पल भर के मा्रोग से भी ीा अपसे शरीर का पररत्ाग करसे की सवकधत ीे पहुँच ाता है। सौन्द्र की रसीाधिुरी का रसावाादस करसे के पशात् उसे शब्दय ीे व््क करसा भी इसी प्रकार कमठस हरोता है। इस चौपाई के चौकेे चरा ीे "टू क टू क" कहसे का ्ही भाा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 382 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीुख चौक छमब मसलाट बसी, क्य कर कहूं ससिसफत। ए सरोभा असर सरप की, क्य हरोए इस श्ाीा ुबां इत।।५५।। ी के ीुखारमान्द तका ीाके के अलौमकक सौन्द्र की ीमहीा का ाार स शब्दय ीे हरो पासा सम्भा सहीप है। ्ह शरोभा परीधिाी के उस सूरी्ी वारप की है। भला इसका ाार स ीा्ा की इस ससि िहा से हरो पासा कैसे सम्भा हरो सकता है। पाच हीरे ीरोती ीामसक, बेसा चौक टीका सरोणभत। सेके लाल तले ीरोती सरे, सूर ररोसस ते अतंत।।५६।। पाच, हीरा, ीाणाक, और ीरोती के सगय से डा सुन्दर बेदा ललाट पर टीके के सीास शरोभा दे रहा है। उसकी ीरोधत्य की लर लाल ीांग के सीचे इसका सूरी्ी ते गीगा रही है। और प्रकाश असन्त है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 383 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मडत पासडी श्रासय, लरे लाल ीरोती लटकत। ए री श्ाीा रोत कही स ााहीप, पांच संग झलकत।।५७।। ी से अपसे कासय ीे पासडी धिारा कर रखी है। उससे ीाणाक और ीरोती की लरे लटक रही है , ससि सीे सरोसे के तार ीे ीाणाक और ीरोती के सग लटक रहे है। उसकी ज्रोधत इतसी अधधिक है मक उसका ाार स ही सहीप हरो सकता। पासडी ीे पाँच सग डे हुए है , ससि सकी सूरी्ी आभा झलकार कर रही है। का ल रेखा तरो कहू,ं रो हरोए सुपस के सैस। ए व्ाी सेत लाल असल, सदा सुखकारी सुख चैस।।५८।। श्ाीा ी के से्य के का ल की काली रेखा का ाार स तरो तब मक्ा ाता, ब ाे वाप्सी्ी संसार के से् हरोते। इस प्रेी भरे काले और सफेद से्य ीे प्रेी की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 384 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लाखलीा हीेशा ही छा्ी रहती है। आसन्द के वारप ्े से् ब्सृमष्ट्य के खल्े हीेशा ही आसन्द की ाषार करते है। भाााकर - साीान््तः श आँ खय की भौंहय , तारय, तका पुतखल्य का रंग काला हरोता है , तका परदे का शेष भाग शेत हरोता है। प्रेी के उन्ीाद ीे (अधधिकता) लाखलीा छा ाती है, इसखल्े इस चौपाई ीे से्य के ाार स ीे काले , शेत, और लाल रंग का ाार स मक्ा ग्ा है। ावतुतः श काले रंग की अधधिकता हरोसे से आँ खय का रंग माशेषकर काला ही कहा ीे ाृधद की ाता है। का ल लगाकर उसके सौन्द्र ाती है , मकन्तु सूरी्ी आँ खय ीे भला का ल की क्ा आाश्कता। इस चौपाई ीे ्ही बात माशेष रप से दशार्ी ग्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 385 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए तस सैस असर के, सहीप और करोई देह। ए मसरखरो सैसय रह के, भीगल प्रेी ससेह।।५९।। श्ाीा ी का ्ह तस और से् परीधिाी के है। इसकी सवकधत ीा्ााी शरीरय स ै ी सहीप है। हे साक ी! प्रेी के रस ीे ओत -प्ररोत हरोकर इस अलौमकक वारप करो अपसे आसतीक से्य से देखखए। भाााकर - वागर और ाैकुणठ आमद लरोकय के शरीर भी प्रकाशी्ी हरोते है। ्े भी ीृत्,ु बुढ़ापे, और ररोग से रमहत हरोते है। इसी प्रकार मसराकार ीे वाच्छन्द माचरा करसे ााले ्रोमगरा भी अपसी इच्छासुसार मदव्् वारप धिारा कर लेते है, मकन्तु ्े सभी शरीर ीा्ा मसत हरोसे से काल के अधिीस है। परीधिाी के तस अकरातीत के अंग हरोसे से साकात् ब्वारप हरोते है। वाप्स ीे भी इसकी तुलसा ीा्ााी तसय से सहीप की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा सकती। 386 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सैस तीखे अधत अमस्ारे, सखी ए छमब कही स ाए। आधिे घूघ ं ट ीासूक करो, मसरखत सैस धतरछाए।।६०।। श्ाीा ी के से् सुकीले और बाँके (धतरछे ) है। इस शरोभा का ाार स ्हाँ के शब्दय ीे कदामप सम्भा सहीप है। ाे आधिे घूँघट से, अकारत् अपसे बा्े हाक की ओर से साडी करो कुछ खखसकाकर, प्रेी भरे धतरछे से्य से श्री रा ी की ओर देखती है। भाााकर - प्रेी की अणभव््मक के रप ीे ही "आधिे घूघ ं ट" से देखसे का ककस है, रो ्हाँ के भााय के असुसार मक्ा ग्ा है। वालीला अदैत परीधिाी की प्रेीी्ी लीला करो संसार के भााय एां लरोकाचार ीे सहीप बाँधिा ा सकता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 387 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सब अंग उींग करत है, करसे बात रेहेीास। मदल ीासूक का देख के, खैचत है प्रेी बास।।६१८।। अपसे मप्र्ती से बाते करसे के खल्े श्ाीा ी के अंग-अंग ीे एक माधच् सी उींग भरी हरोती है। श्री रा ी के मदल की इच्छासुसार, ाे अपसी प्रेी भरी बातय से उन्हे अपसी ओर आकरषत करती है। भाााकर - इस चौपाई ीे प्रेीी्ी लीला की एक हलकी सी झलक मदखा्ी ग्ी है। साीान््तः श करोई भी मदसरात बाते सहीप करता। आणशक और ीाशूक (प्रेीी और प्रेीावपद) ब एक-दस ू रे के प्रेी ीे खरो्े हरोते है , तरो कभी-कभी ीधिुर बाते भी करते है। आणशक की ्ही चाह हरोती है मक ब ीाशूक की इच्छा हरो , तभी ाह अपसे प्रेी की अीृतधिारा प्राामहत करे। इस चौपाई के तीसरे चरा ीे कणकत "मदल ीासूक का देख के" का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 388 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ही अणभप्रा् है। कहा कहूं सूर तारस का, सेत लालक खलए। का ल रेखा अमस्य पर, अंग असल ही मदए।।६२।। सफेदी और लाखलीा से भरपूर श्ाीा तारय ीे ी के से्य के रो चीक (सूर) है, उसका ीै कैसे ाार स करँ। आँ खय के करोसय पर रो काले का ल की पतली सी रेखा सुशरोणभत हरो रही है, ाह उसके ाावतमाक अंग की ही शरोभा है। भाााकर - हद् ीे लहराता हुआ प्रेी का सागर आँ खय से छलक उठता है, ससि से इस चौपाई ीे "सूर तारस का" से सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है। बुझी हुई आँ खे प्रेी से रमहत हरोसे का संकेत देती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 389 / 992 श्री सागर टीका धतस तारस ीे श्री रा स वााीी रो पुतखल्ां, ीाहे सूर रंग रस। मपउ देखे प््ारी सैसय, साी साीी अरस-परस।।६३।। से्य के तारय ीे रो पुतखल्ाँ है , उसीे प्रेी और आसन्द का ही सूर सीा्ा हुआ है। श्री रा श्ाीा ी आीसे- साीसे बैठकर आपस ीे एक -दस ू रे के से्य की ओर देखते है। इस लीला ीे श्री रा देखते है और श्ाीा ी श्री रा ी श्ाीा ी के से्य ीे ी के से्य ीे। भाााकर - मबसा बरोले अपसी भाासाओं (प्रेी ्ा घृाा) का प्रकटीकरा दस ू रय के से्य की ओर देखकर ही मक्ा ाता है, मकन्तु प्रेी लीला ीे से्य ीे देखसा उसके मदल ीे डू बसे और अपसे असवतता करो सीाप कर देसे के खल्े मक्ा ाता है। इस चौपाई ीे ्ही भाा दशार्ा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 390 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चकलाई चंचलाई की, छमब हरोए सहीप बरसस। रो धिसी देाे पट खरोल के, तरो तबहीप उडे एह तस।।६४।। श्ाीा ी के इस प्रेी भरे चञल से्य की आकृधत की सुन्दरता का ाार स कर पासा सम्भा सहीप है। ्मद धिाी धिसी अपसी ीेहर से हीारे आती-चकुओं करो खरोलकर श्ाीा ी के इस से्य का दीदार करा दे , तरो उसी का इस शरीर का असवतता सीाप हरो ाएगा। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा का भाा ्ह कदामप सहीप सीझसा चामहए की श्ाीा हरोते ही शरीर छूट ी के से्य का दशर स ा्ेगा (ीृत्ु आ इसका तातप्र ्ह है मक श्ाीा ा्ेगी)। ावतुतः श ी के से्य का दीदार हरोते ही आतीा इस शरीर और ब्ाणड से पूारत्ा अलग हरो ा्ेगी। उसे कुछ भी सुधि सहीप रहेगी, ्हाँ तक मक ाह वा्ं करो भी भूल ा्ेगी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 391 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बंके भौं भृकुटी खलए, सरोणभत गौर अंग। अंग अंग भूखस भूखस, करत ीाहय ीाहे श्ाीा ंग।।६५।। ी के गरोरे ीाके पर काली-काली धतरछी भौंहे बहुत अधधिक सुशरोणभत हरो रही है। उसके प्रत्ेक अंग और प्रत्ेक आभूषा से मसकलसे ााली सूरी्ी मकराे आपस ीे टकराकर ्द ु करती हुई प्रतीत हरोती है। ्ष्टव््- दरोसय भौंहय के बीच का ऊपरी भाग भृकुटी कहलाता है। दरोऊ डाा अदभुत, सात रंग संग झाल। सुच्छी झाल सरोभा अधत बडी, झांई उठत ीाहे गाल।।६६।। श्ाीा ी के दरोसय कासय ीे लटकते हुए दरोसय झाल बहुत ही अदत ु शरोभा करो धिारा मक्े हुए है। इसीे सात रंगय के सग डे हुए है। इस सूरी्ी झाल की शरोभा बहुत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 392 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अधधिक है। श्ाीा ी के दरोसय गालय ीे इसकी सूरी्ी झलक (झांई) मदखाई देती है। भाााकर - "झाल" एक प्रकार का आभूषा है, पासडी के सीचे हरोता है और इसीे से रो ााहरातय की झालर लटकती रहती है। "सुच्छी" (सूकी) शब्द का तातप्र म्गुाातीत वारप से है , स ै े- "सुच्छी सरप से उसीद अंगे"। फूल झालय के ीुख पर, सरोभा लेत अधत संग। धतस संगय श्ाीा रोत उठत है, धतसके असेक तरंग।।६७।। ी के ीुखारमान्द (दरोसय गालय) पर झालय ीे बसे हुए फूल प्रधतमबसम्बत हरो रहे है, ससि सीे बहुत ही शरोभा्ीास है। उस सगय से डे हुए सग रो सूरी्ी ज्रोधत मसकल रही है, उससे प्रकाश की बहुत अधधिक तरंगे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 393 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मसकल रही है। ऊपर मकसार साडी सरोणभत, लाल सीली पीली र। छब फब बसी करोई भांत की, सेके लासे झाल ऊपर।।६८।। ससिसर के ऊपर आ्ी हुई साडी की मकसार बहुत अधधिक सुशरोणभत हरो रही है। उसीे लाल, पीले, और सीले रंग की री की स ााट है। साडी की शरोभा कुछ इस प्रकार की है मक ाह ीांग के ऊपर से हरोकर दरोसय ओर के कासय के आभूषाय- झाल तका पासडी आमद- करो छूती हुई दमष्टगरोचर हरो रही है। ए रो कांगरी इस संग की, सरोणभत ीाहे मकसार। गौर मसलाट व्ाी केसय पर, ाए अंबर लगी झलकार।।६९।। साडी की मकसार ीे काँगरी बसी हुई है, ससि सीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा डे हुए 394 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ााहरातय के सगय की बहुत सुन्दर शरोभा हरो रही है। गरोरे ीाके पर काले-काले बालय की ीसरोहर लटय (अलकााली) की झलझलाहट आकाश ीे फैल रही है। सरोभा कहूं अंग ीाफक, इस सुपस ुबां अकल। सरो क्य परोहयचे इस सरप लय, रो बीच का्ी बका असल।।७०।। ्ह सारी शरोभा तरो ीै ्हाँ के अंगय के असुकूल ही कह रही हूँ। ीेरी ससि िहा वाप्स की है तका ससि स बुधद से ीै ्ह प्रवतुत कर रही हूँ, ाह भी ्हाँ की है। उस असामद परीधिाी ीे श्ाीा ी का रो अखणड सूरी्ी वारप है, ाहाँ तक ्ह ाार स कैसे पहुँच सकता है अकारत् ीै ाहाँ का ्काकर ाार स कैसे कर सकती हूँ। भाााकर - इस शरोभा के ाार स ीे वाप्स की बुधद के प्र्रोग की रो बात कही ग्ी है, उसका माणशष्ट आश् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 395 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। ्दमप ीहाीधत के धिाी हद् ीे ्गु ल वारप के मारा ीास हरोसे से परीधिाी की मस ब् की बुधद एां अकर ागत बुधद भी मारा ीास है और उसके अन्दर ञास (इली) का सागर भी लहरा रहा है, मकन्तु उसका प्रकटीकरा इस वाप्स के ब्ाणड ीे वाप्स के तस से हरो रहा है ससि सकी कुछ मसधशत सीीा्े है। ीा (ीर) ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे लहराते हुए ञास के सागर की लहरय करो ससि तसा आतीसात् कर रहा है, उतसा ही कह पा रहा है। ाावतमाकता तरो ्ह है मक ाह ससि तसा असुभूत करता है, उतसा भी कह सहीप पाता। ्ही कारा है मक ीेअरा (दशर स) के पशात् ीुहम्ीद सामहब भी परीधिाी का ्काकर ाार स सहीप कर सके। एक ीुख् तर् ्ह भी है मक आणशक (श्री ीहाीधत खल्े ीाशूक (श्री रा श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी) के ी) की शरोभा का ाार स 396 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कर पासा बहुत कमठस (लगभग असम्भा) हरोता है। ्ह ाार स तरो ीा् धिाी धिसी के हुकी से ही सम्भा हरो सका है। गौर रंग अधत गालय के, ए रंग अचर श्ाीा अदभुत ााही देखे, ासे इसके तस। रो है असर ीरोमीस।।७१८।। ी के गालय का रंग बहुत ही गरोरा है। इस रंग करो तरो ीा् ब्सृमष्ट्ाँ ही ्काकर रप से ासती है। आश्र ीे डालसे ााले गालय के इस अदत ु सौन्द्र करो ीा् परीधिाी की आतीा्े ही देख पाती है। ीुख चौक से् साससिसका, मसहा्त सरोभा अतंत। ीुरली साससिसका ते श्ाीा ीे, सरोभे संग ीरोती लटकत।।७२।। ी के गालय समहत सम्पूार ीुखारमान्द , से्य, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 397 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और साससिसका की शरोभा असन्त है। उसकी ते रोी्ी साससिसका ीे बेसर (ीुरली) है, ससि सीे ीरोती का सुन्दर सग लटक रहा है, ससि सकी शरोभा बहुत अधधिक है। एक खसखस के दासे ेता, संग ररोसस अंबर भराए। क्य कहूं संग ीुरली् के, ए ुबां इत क्य परोहयचाए।।७३।। एक खसखस के बराबर के सग की ररोशसी (ज्रोधत) ब पूरे आकाश ीे छा ीे ाती है , तरो साससिसका की ीुरली रो सग लटक रहा है उसकी ररोशसी का ाार स भला ्हाँ की ससि िहा कैसे कर सकती है। भाााकर - परीधिाी की ाहदत ीे सभी का ते बराबर हरोता है ाैसे ही स ै े हाकी और खरगरोश की शमक बराबर हरोती है, मकन्तु इस चौपाई ीे ीा् सीझसे के खल्े खसखस के दासे का दष्टान्त मद्ा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 398 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हक के अंग का सूर है, ए रो असर बका खाांद। ए छमब इस सरप की, क्य केहेसी ीत ींद।।७४।। श्री श्ाीा रा ी अखणड परीधिाी की वाामीसी है। ाे श्री ी के अंग का सूर है, अकारत् उसके मदल के प्रेी, ीास, आसन्द आमद का वारप है। ऐसी श्ाीा ी की शरोभा का ाार स ्हाँ की अलप बुधद से कैसे मक्ा ा सकता है। भाााकर - "हक के अंग का सूर" का तातप्र केाल बा् अंगय के सूर (ते , ज्रोधत) से सहीप है , बसलक अंग का अकर हद् भी है। आणशक श्री रा वारपा ीाशूक श्ाीा ी के मदल की ी है। आणशक के खल्े ीाशूक ही ीास का आधिार, सार वा हरोता है। इस आधिार पर श्ाीा ी करो परीधिाी की वाामीसी, आह्लामदसी, प्रााेशरी, हद्ेशरी आमद भी कहा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता है। इस चौपाई 399 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के चौके चरा ीे "ीत ींद" कहा ासा मासमता और शालीसता की पराकाषा है, ्काकर ता कदामप सहीप। इस प्रकार के ककस कीतर स गन्क ीे असेक वकासय पर प्र्क ु हुए है, रो हीारे खल्े ससिसखापस है मक हीे अहंकार से मकस प्रकार दरू रहसा है, स ै े- ररोी ररोी कई करोट अागुस, ऐसी ीै गुन्हेगार। मकरंतस ४१८/१८० मप्ा ऐसी मसपट ीै क्य भई, कमठस कठरोर अधत ढीठ। मकरंतस ४१८/२ दंत लालक खलए ीुख अधिुर, क्य कहूं रंग ए लाल। रो कछू हरोाे पेहेचास, तरो क्य दी े इस मीसाल।।७५।। श्ाीा ी के गालय और अधिरय की लाखलीा का ाार स ीै कैसे करँ। इसकी लाखलीा से दाँत भी लाल मदखा्ी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 400 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दे रहे है। ्मद ीुखारमान्द की इस असन्त शरोभा की करोडी सी भी पहचास हरो ा्े , तरो इस झूठे संसार की मकसी भी ावतु से उसकी उपीा सहीप दी ा सकती। भाााकर - ्दमप दाँतय और ीरोती का रंग शेत है , मकन्तु हयठय की लाखलीा से ्े भी लाल हरो ाते है। सुन्दर सरप व्ाीा ी् करो, असर अखंड ससिससगार। रह ीुख मसरख्रो चाहत, उर पर लटकत हार।।७६।। श्ाीा ी का वारप बहुत ही सुन्दर है। ाे परीधिाी के अखणड श्रृंगार से सुशरोणभत है। उसके हद् कील पर हार गीगा रहे है। ऐसी अलौमकक शरोभा ााली श्ाीा ी के सुन्दर ीुखारमान्द के दीदार की इच्छा आतीा ीे हीेशा ही बसी रहती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 401 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक हार ीरोती मसरील, और ीामसक रोत धिरत। तीसरा हार लसमस्ां, सरो सरोभा लेत अतंत।।७७।। श्ाीा ी के गले ीे एक हार ीरोती का है , रो बहुत ही वाच्छ (उजाल) है। दस ू रा हार ीाणाक का है, ससि ससे ज्रोधत मसकल रही है। तीसरा हार लहसुमस्ा का है , ससि सकी शरोभा असन्त है। चौका हार हीरस का, पांचीा सुन्दर सीलाी। इस हारय बीच दगु दगु ी, देखत सरोभा अधत भली।।७८।। चौका हार सुन्दर है, गीगाते हुए हीरय का है। पाँचाा हार बहुत रो सीली का है। इस हारय के बीच ीे दगु दगु ी मदखा्ी पड रही है, ससि सकी शरोभा बहुत ही प््ारी लग रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 402 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी क्य कहूं संग दगु दगु ी, ए पांचय सैन््ा चढ़ाए। ंग करे ीाहे ुदे द ु े, पांचय अंबर ीे स सीाए।।७९।। दगु दगु ी के पाँचय सगय की शरोभा का ाार स ीै कैसे करँ। ऐसा प्रतीत हरोता है, स ै े पाँच हारय की ज्रोधत रपी सेसा के मारद पाँच दगु दगु ी के सगय की ज्रोधत रपी सेसा ्द ु कर रही है , अकारत् पाँचय हार और पाँचय दगु दगु ी के सग आपस ीे ्द ु कर रहे है। इस पाँचय लॉकेटय की ज्रोधत से सम्पूार आकाश भरा हुआ है। भाााकर - दगु दगु ी करो लॉकेट (pendant) भी कहते है। ्ह सरोसे की गरोल आकृधत ीे बसी हरोती है , ससि सके बीच ीे ाही ााहरात ुडा हरोता है ससि सका हार हरोता है। उसे घेर कर चारय ओर अन्् छरोटे -छरोटे सग हरोते है। दगु दगु ी की शरोभा प्रत्ेक हार ीे आ्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 403 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पांचय ऊपर हार हेी का, ीुख ीरोती ससिसरे सीलाी। ए हार अधत मबरा त, डतर चौपकली।।८०।। इस पाँचय हारय के ऊपर सरोसे का बसा हुआ चौपकली का हार है, ससि सके ीुख पर ीरोती और मकसारे पर सीली डा हुआ है। ्ह हार बहुत ही सुन्दर लग रहा है। पांच पासे पुखरा , चौपकली का हार श्ाीा री ीांहे मडत। रो, उर ऊपर लटकत।।८१८।। ी के हद् कील पर ्ह चौपकली का हार सुशरोणभत हरो रहा है। इसीे सरोसे के तार ( ं ीर) ीे पाच, पन्ना, और पुखरा भी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा डे हुए है। 404 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ऊपर चरोली के कांठले, बेल लगत कांगरी। ऊपर चौपकली् के, ीरोती ीामसक पासे श्ाीा ी के ब्लाउ री।।८२।। के गले ााले भाग ीे काँगरी बसी है, ससि सीे लताओं (बेलय) की सुन्दर शरोभा आ्ी है। इसके ऊपर चौपकली का हार आ्ा है, ससि सीे सरोसे के तार ीे ीरोती, ीाणाक, और पन्ना डे हुए है। पांच लरी चीड धतस पर, कंठ लग आई सरोए। रंग संग धिात असर के, इस ुबां ससिसफत क्य हरोए।।८३।। चौपकली के ऊपर पाँच लमड्य ााला चीड का हार है। इसकी लमड्ाँ कणठ तक आई है। इस हारय ीे मदखा्ी देसे ााले रंग, सग, और धिातुएँ परीधिाी की है। इसकी ीमहीा का ाार स इस ससि िहा से हरो पासा सम्भा सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 405 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सात हार के फुीक, गीगे सातय रंग। ीूल बंधि बेसी तले, बस रहे ऊपर अंग।।८४।। इस सात हारय के सात फुम्ीक है , अपसी अलौमकक शरोभा से रो सात रंगय ीे गीगा रहे है। इस हारय के ीूल बन्धि पीठ पर चरोटी के सीचे बसे हुए है। बा ू बंधि दरोऊ बसे, री फुीक लटकत। हीरे लसमसएं सीलाी, देख देख रह अटकत।।८५।। श्ाीा ी के दरोसय हाकय ीे दरो बा ूबन्द सुशरोणभत हरो रहे है। इसीे सरोसे के तारय ीे फुम्ीक लटक रहे है , ससि सीे हीरा, लहसुमस्ा, और सीली के ीसरोहर सग डे हुए है। इसकी अलौमकक शरोभा करो देखते ही आतीा की दमष्ट अटकी रह (ठहर) ाती है। ाहाँ से ाह हटसे का साी ही सहीप लेती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 406 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सारंग रतस संग चूड के, असर धिात स सरोभा सुीार। चूड श्ाीा रोत रो करत है, आकास स ीाए झलकार।।८६।। ी की अधत करोील कलाइ्य ीे सौ रंग के रतसय के सगय ीे चूड (कंका) सुशरोणभत है। परीधिाी की ससि स धिातुओं ीे ्े सग डे हुए है , उसकी शरोभा की करोई सीीा ही सहीप है। चूड से मसकलसे ााली सूरी्ी ज्रोधत की झलझलाहट आकाश ीे सहीप सीा पा रही है , अकारत् चारय ओर ज्रोधत ही ज्रोधत मदखा्ी पड रही है। सारंग रतस चूड के, ुदी ुदी चूडी झलकत। रोत सय रोत लरत है, सरोभा असर कहूं क्य इत।।८७।। सौ रंग ााले इस रतसी्ी चूड ीे अलग-अलग चूमड्ाँ मदखा्ी दे रही है, ससि सकी झलकार चारय ओर फैल रही है। उससे मसकलसे ााली ज्रोधत आपस ीे टकराकर ्द ु प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 407 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करते हुए प्रतीत हरो रही है। परीधिाी की इस अलौमकक शरोभा का ाार स इस झूठे संसार ीे ीै कैसे करँ। अतंत रोत इस धिात ीे, इस संग ीे रोत अतंत। अतंत रोत रंग रेसी, तीसय सरीाई एक ससिसफत।।८८।। परीधिाी की इस धिातुओं और सगय ीे असन्त सूरी्ी ज्रोधत मादीास है। ाहाँ के रंगय और रेशीी ासय से भी असन्त ज्रोधत णछटक रही है। माशेष बात ्ह है मक परीधिाी की धिातुएँ और सग कालीा्ा की तरह कठरोर सहीप है , बसलक रेशी की तरह करोील है। ाहाँ की एकमदली ीे धिातुओं , सगय, और रेशी की करोीलता पूारत्ा सीास है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 408 / 992 श्री सागर टीका कंचस श्री रा स वााीी मडत बेल फूल सकस सगय से रो कन्कसी, ीाहे बा त झसझसकार। डे, झलकत चूड मकसार।।८९।। डी हुई सरोसे की कंकसी है , रो अन्दर से परोली है और झस्-झस् की ीधिुर ध्ामस करती है। इसीे सगय के दारा बसी हुई लताओं और फूलय के धच् अंमकत है। इसकी बगल ीे कलाई की मकसार पर साचूड अपसी सूरी्ी शरोभा से झलकार कर रहा है। मसरील परोहयची साघरी, पांच पांच दरोऊ के संग। असर रसा्स ीे डे, करत मीसरो मीसे ंग।।९०।। परोहयची और साघरी बहुत ही सुन्दर है। दरोसय ीे परीधिाी के रसा्स ीे ओत-प्ररोत पाँच-पाँच सग डे हुए है। इस सगय से इस प्रकार मकराे उठती है , स ै े उसका आपस ीे ्द ु हरो रहा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 409 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - परीधिाी की प्रत्ेक ावतु ीे प्रेी , आसन्द, सूरी्ी सौन्द्र , सुगसन्धि, और करोीलता णछपी हुई है। इसी करो परीधिाी का रसा्स कहते है। रसा्स का तातप्र है- " ीास करो आससन्दत करसे ााली औषधधि।" ावतुतः श ब्सृमष्ट्य के खल्े धिसी का प्रेी , सौन्द्र , और आसन्द ही "करत ीास का आधिार है, सार वा है। ंग" आलंकाररक भाषा है। ब मकराे आपस ीे टकराती है , तरो ऐसा प्रतीत हरोता है ैसे ाे ्द ु कर रही है। ाहाँ तरो ीा् प्रेी ही प्रेी है। ीा्ााी ्द ु की ाहाँ कलपसा भी सहीप की ा सकती। हकेली लीके क्य कहू,ं सरी हाक उजल। रंग परोहयचे का क्य कहू,ं इत श्ाीा ुबां सा सके चल।।९१८।। ी के दरोसय हाक बहुत ही करोील और उजाल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 410 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। हकेली ीे दमष्टगरोचर हरोसे ााली अधत सुन्दर रेखाओं का ीै कैसे ाार स करँ। पँ े की सुन्दरता का ाार स करसे ीे ीेरी ससि िहा मकसी प्रकार से सीकर सहीप है। पांच अंगुरर्ां पतली, ुदी ुदी पांचय ससि सस। असर अंग की क्य कहूं, उजल लाल रंग रस।।९२।। प्रत्ेक हाक की पाँचय अँगखु ल्ां पतली है और अलगअलग आकार की है अकारत् छरोटी-बडी है। परीधिाी के इस अंगय की शरोभा का ाार स ीै कैसे करँ , ससि सीे उजालता ीे लाखलीा घुली हुई है तका आसन्द और प्रेी का रस ओत-प्ररोत हरो रहा है। आठ रंग के संग की, पेहेरी रो ीुंदरी। एक कंचस एक आरसी, सरोणभत दसय अंगुरी।।९३।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 411 / 992 श्री सागर टीका श्ाीा श्री रा स वााीी ी की आठ अँगुखल्य ीे आठ ीुम्का्े है , रो आठ प्रकार के सगय की है तका इसके रंग भी अलग अलग आठ प्रकार के है। दरोसय अँगूठय ीे दरो अँगूमठ्ां है एक सरोसे की है और दस ू री ीे हीरा डा है रो दपर ा का का्र करता है। इस प्रकार की शरोभा से उसकी दसय अँगुखल्ां सुशरोणभत हरो रही है। ीामसक ीरोती लसमसएं , पाच पांसे पुखरा । गरोीामदक और सीलाी, आठय अंगुरी रही मबरा ।।९४।। ीाणाक, ीरोती, लहसुमस्ा, पाच, पन्ना, पुखरा , गरोीेद, और सीली के सगय की आठ ीुम्का्े है , आठ अँगुखल्य ीे शरोभा्ीास है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 412 / 992 रो श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अंगूठे हीरे की आरसी, दसीी ए मडत अधत सार। रो दरपस ीाहे देखत, अंबर स ीाए झलकार।।९५।। हाक के दरोसय अँगूठय ीे अँगूमठ्य की शरोभा है। एक शुद सरोसे की है, तरो दस ू री हीरे की है। अँगूठी ीे हीरा इस प्रकार डा हुआ है मक श्ाीा ी उसे दपर ा के रप ीे प्र्रोग करती है और उसीे अपसा श्रृंगार देखती है। इस हीरे की झलकार आकाश ीे चारय ओर फैली हुई है। सख मसीूसा देऊं हीरय का, सरो ीै मद्ा स ाए। एक सख रे की रोत तले, कई सूर करोट ढंपाए।।९६।। ्मद ीै श्ाीा ी के साखूसय की तुलसा हीरे से करँ , तरो ्ह कदामप उधचत सहीप हरोगा। उसके साखस ू के एक का की ज्रोधत के साीसे कररोडय सू्र का प्रकाश णछप ाता है (ढक ाता है)। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 413 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अब कहूं चरस कील की, रो असर रहय के ीास। बसत हीेसा चरस तले, रो अरााह असर के तस।।९७।। अब ीै श्ाीा ाार स करती हूँ, ी के उस चरा कीलय की शरोभा का रो परीधिाी की ब्सृमष्ट्य के ीास के आधिार है। ससि स आतीाओं के ीूल तस परीधिाी ीे है , ाे हीेशा ही इस चराय ीे ाास करती है , अकारत् उसका ध््ास हीेशा ही श्ाीा ी के सूरी चराय ीे बसा रहता है। चरस तली अधत करोील, रंग लाल लांके दरोए। मीहीप रेखा ीाहे कई माधि, ए बरसस कैसे हरोए।।९८।। श्ाीा ी के चराय की तखल्ाँ (तलाा) बहुत ही करोील है तका दरोसय चराय की एमड्य और पँ य के बीच की गहराई ााले भाग (लाँक) का रंग लाल है। उसीे कई प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 414 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रकार की बारीक रेखा्े है , ससि सकी शरोभा का ाार स कर पासा मकसी प्रकार से सम्भा सहीप है। ए रो सलूकी चरस की, मसपट सरोभा सुन्दर। रो करोई अराा असर की, चुभ रेहेत हैडे अन्दर।।९९।। इस चराय की बसााट की शरोभा बहुत ही सुन्दर है। ्ह अलौमकक शरोभा परीधिाी की आतीाओं के धिाी हद् ीे चुभ ाती है अकारत् अखणड रप से मारा ीास हरो ाती है। करोई साहीप इसका मसीूसा, परोहयचे अधत सरोणभत। टांकस घूटं ी काडे एमड्ां, पांउ तली अधत झलकत।।१८००।। दरोसय चराय के पँ य की शरोभा बहुत अधधिक है। इस संसार ीे इसकी सुन्दरता की उपीा अन्् मकसी भी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 415 / 992 श्री सागर टीका ावतु ीे सहीप दी श्री रा स वााीी ा सकती। दरोसय चराय के टखसे , घूमं ट्ां, काडे, एमड्ाँ, तका तलुए बहुत ही झलझला रहे है। भाााकर - एडी का ऊपरी भाग टखसा कहलाता है। उसके बगल ीे उभरी हुई हडी का भाग घूँटी कहलाता है, तका हाकय की कलाई की तरह पैर के ससि स भाग ीे पा्ल आमद आभूषा पहसे ाते है उसे काडा कहते है। ए छब फब सब देख के, इस चरस तले बसत। ए सुख असर रहे ासहीप, ससि सकी ए मससबत।।१८०१८।। इस अलौमकक सौन्द्र की सारी शरोभा करो देखकर ब्सृमष्ट्ाँ श्ाीा ी के चराय के ध््ास ीे ही डू बी रहती है। उससे मीलसे ााले आसन्द करो ीा् परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ ही ासती है, ससि सका इस चराय से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 416 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अखणड सम्बन्धि हरोता है। ्ष्टव््- इस चौपाई से धचतामस की ीहता मसराााद प्रीाणात हरोती है। चारय रोडे चरस के, झांझर घूघ ं र कडी। कांमबए संग असर के, श्ाीा ासय के चारय रोडे डी।।१८०२।। ी के दरोसय चरा कीलय ीे चार - चार आभूषा- झांझरी, घूघ ं री, कांबी, और कडी है। ऐसा प्रतीत हरोता है ही ्े सारे आभूषा गीगा रहे स ै े परीधिाी के सूरी्ी सगय से डे ग्े है। संग सीले पीले झांझरी, और ीरोती ीामसक पांसे री। मसरील साके कंचस, रंग लाल खलए घूघ ं री।।१८०३।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 417 / 992 श्री सागर टीका झांझरी के अन्दर श्री रा स वााीी री ीे ीरोती , ीाणाक, पन्ना, तका सीले-पीले रंग के अन्् बहुत से सग डे हुए है। घुघ ं रर्य का रंग लाल है। उसीे कञस के बहुत ही सुन्दर कुणडे लगे हुए है। भाााकर - झांझरी पैरय ीे पहसे है। घूघ ं री छरोटी पा्ल ासे ााली पा्ल हरोती स ै ी हरोती है। इसीे ऊपर ं ीर हरोती है, ससि सीे तरह-तरह की धच्कारी की ग्ी हरोती है। सीचे घुघ ं रर्ां लटक रही हरोती है। गांठे ााले रसा्स सय, असर के पांचय संग। घूघ ं री साकय बीच पीपर, फुीक करत ाेरय ंग।।१८०४।। आसन्द, प्रेी, सुगसन्धि, करोीलता, और सूरी्ीसौन्द्र रसा्स है। सभी घुघ ं रर्ां इससे ओत-प्ररोत है। इसी प्रकार परीधिाी के पाँचय सग - हीरा, ीाणाक, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 418 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीरोती, सीली और पुखरा - भी घुघ ं रर्य ीे डे हुए है। घुघ ं रर्य और कुणडय के बीच ीे पीपल के पते शरोभा है। इसीे लगे हुए फुम्ीकय की ज्रोधत स ै ी ााहरातय के सगय से हरोड (्द ु ) करती हुई प्रतीत हरो रही है, अकारत् दरोसय की ज्रोधत्ाँ आपस ीे टकरा रही है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह प्रश हरोता है मक इस पाँच सगय की ही इतसी ीहता क्य है मक उन्हे परीधिाी के सग कहा ग्ा है, क्ा परीधिाी ीे और सग सहीप है? ्ह बात बहुत पहले ही कही ा चुकी है मक परीधिाी ीे प्रत्ेक ावतु "असन्त" की संख्ा ीे है। ाहाँ मकसी भी ावतु करो सीीा ीे सही बाँधिा प्रकार परीधिाी ीे ााहरात और उसके सग भी असन्त है, मकन्तु इस ीा्ााी ीासा ा सकता है। इसी गत ीे इस पाँच सगय करो माणशष्ट ाता है। ्ही कारा है मक अधतमाणशष्टता ााले इस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 419 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सगय करो परीधिाी के श्रृंगार ीे भी प्राकमीकता दी ग्ी है। हीरे लसमसएं हेी ीे, कडी सीलाी कुन्दस कांमबए, रोत झलकत। ासय रोत एही अतंत।।१८०५।। कडी वाार की बसी है, ससि सीे हीरे और लहसुमस्ाँ के सग डे हुए है। इसकी ज्रोधत झलकार कर रही है। शुद वाार ी्ी (कुन्दसी्ी) कांबी ीे सीली के सग है। ऐसा प्रतीत हरोता है डे हुए स ै े इसकी सूरी ज्रोधत असन्त है (सबसे अच्छी है)। भाााकर - कांबी कमड्ाँ सग ं ीर की तरह हरोती है, ससि सीे असेक ुडी हरोती है। एक-एक कडी ीे असेक प्रकार के डे हरोते है। कांबी की प्रत्ेक ं ीर के ीसकय ीे पुतखल्ाँ बसी हरोती है। कडी अन्दर से परोली हरोती है और इसीे कई प्रकार के सग प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा डे हरोते है। 420 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बरोलत बासी ीाधिुरी, चलत हरोत रसकार। खस ु बरोए ते ब श्ाीा सरीाई, रोत करो साहीप पार।।१८०६।। ी चलती है, तरो इस आभूषाय से अधत ीधिुर शब्दय की ीन्द-ीन्द ध्ामस मसकला करती है। इस सभी आभूषाय ीे सुगसन्धि और करोीलता भरी हुई है। इसके ते और ज्रोधत की करोई सीीा सहीप है। अंगुररएं असाट मबणछ्ा, पांसे ीामसक ीरोती सार। वार ीीठे बा त चलते, करत है ठीकार।।१८०७।। श्ाीा ी के दरोसय चरा कीलय के अँगूठय ीे असाट तका अँगुखल्य ीे मबणछ्ा की शरोभा आ्ी है। इसीे माशेष रप से पन्ना, ीाणाक, तका ीरोती के सग है। ब श्ाीा डे हुए ी चलती है, तरो इस आभूषाय से बहुत ही ीीठे वार ब ा करते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 421 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सख अंगूठे अंगुरर्ां, अंबर स ीाए झलकार। ढांपत करोटक सूर , और सीतलता सुखकार।।१८०८।। चराय के अँगूठय तका अँगुखल्य के साखूसय ीे इतसा ते है मक उसकी झलकार से आकाश पररपूार हरो रहा है। इसके ते पड के साीसे कररोडय सू्र का प्रकाश फीका ाता है (णछप ाता है), मकन्तु ्ह दाहकारक सहीप है, बसलक शीतल और आसन्ददा्क है। एक सख के ते सय, ढांपत कई करोट सूर। रो कहूं करोटास करोटक, तरो स आाे एक सख के सूर।।१८०९।। उसके एक सख के ते के साीसे कररोडय सू्र णछप ाते है। ्मद ीै कररोडय सू्र के ते की तुलसा श्ाीा ी के केाल एक सख के सूर से करँ , तरो भी ्ह उधचत सहीप हरोगा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 422 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोई भांत तरह रो असर की, पेट पांसे उर अंग सब। हाक पांउं कंठ ीुख की, मकस मबधि कहूं ए छब।।१८१८०।। श्ाीा ी की परीधिाी ीे कुछ इस प्रकार की शरोभा है मक मकसी तरह से भी उसका ाार स सहीप मक्ा ा सकता। उसके पेट, पसखल्ाँ, हद् कील, तका अन्् सभी अंग सौन्द्र के साकात् वारप है। उसके हवतकील, पैर, गले, तका ीुखारमान्द की असन्त शरोभा का ाार स करसे का साीर्र ्हाँ के शब्दय ीे सहीप है। करोसी कलाई अंगुरी, पेट पांसे उर खभे। हाक पांउं पीठ ीुख छब, हक सूर के अंग सबे।।१८१८१८।। श्ाीा ी की करोहसी, कलाई, अँगुखल्ां, पेट, पसखल्ाँ, ाकवकल, दरोसय कन्धिे , हाक, पैर, पीठ, और ीुख आमद सभी अंग श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के सूर के अंग है , 423 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसखल्े इसकी शरोभा शब्दय से परे है। ीै सरोभा बरसय इस ुबां, ले ीसाला इत का। सरो क्य परोहयचे इस सांई करो, रो बीच असर बका।।१८१८२।। ीै श्ाीा ी की इस अलौमकक शरोभा का ाार स ्हाँ की ही उपीा देकर ्हाँ की ससि िहा से कर रही हूँ। परीधिाी ीे मारा ीास श्ाीा ी के अखणड वारप के ाार स ीे आसे ााले इस संसार के झूठे शब्द भला ाहाँ कैसे पहुँच सकते है। ्ह वपष्ट है मक इस संसार के शब्दय दारा उस अखणड शरोभा का ाार स कदामप सम्भा सहीप है। बीडी सरोणभत ीुख ीे, ीरोरत लाल तंबरोल। सरोभा इस सूरत की, सहीप पटंतर तौल।।१८१८३।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 424 / 992 श्री सागर टीका ब श्ाीा श्री रा स वााीी ी अपसे ीुख ीे पासय का बीडा चबाती है , तरो उसकी लाखलीा से उसका ीुखारमान्द इतसा सुन्दर मदखता है मक उसके सौन्द्र की तुलसा मकसी से भी सहीप हरो सकती। भाााकर - परीधिाी के ाहदत ीे मकसी भी प्रमक्र्ा से प्रेी ्ा सौन्द्र का घटसा -बढ़सा सम्भा सहीप है। ्ह ककस ्हाँ के भााय के असुसार कहा ग्ा है। सुच्छी ा् उसीद अंगे, सरोभा लेत मकसरोर। बका ा् कबूं स बदले, प्रेी ससेह भर श्ाीा रोर।।१८१८४।। ी की अावका म्गुाातीत है और पररातर स से रमहत है। ाे सार दा मकशरोराावका ीे ही शरोभा्ीास रहती है। अखणड परीधिाी ीे कभी भी अावका सहीप बदला करती। उसका अंग-अंग प्रेी की ीवती से भरपूर रहता प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 425 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। भाााकर - सूकी का मापरीत शब्द वकूल हरोता है। इस सशर गत की अावका हीेशा ही बदलती रहती है, इसखल्े परीधिाी की अावका करो सूकी कहसे का तातप्र एकरस रहसे ााली अपररातर सी् अावका से है। मकशरोर अावका सौन्द्र के ाावतमाक वारप करो दशारसे ााली हरोती है। इस प्रकार परीधिाी ीे श्री रा श्ाीा ी, सखख्ाँ, अकर ब्, ीहालकीी, खूब खश ु ाखल्ाँ, तका पशु-पकी सार दा मकशरोर अावका ीे ही रहते है। अकर ब् करो बाल वारप कहसा बहुत बडी भासन्त है। साी लेत इस सरप करो, सुपस देह उड ाए। रो लय रह सा इवक, तरोलय केहेत बसाए।।१८१८५।। श्ाीा ी की इस अलौमकक शरोभा का साी ीा् भी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 426 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धचन्तस शरीर की वीृधत (आभास) करो सीाप कर देता है। ब तक आतीा ीे मप्र्ती का प्रेी सहीप आता, तभी तक शरोभा-श्रृंगार करो शब्दय के ीाध््ी से कहा -सुसा ाता है। भाााकर - इस चौपाई ीे साी लेसे का तातप्र "श्ाीा ी" कहसे से सहीप है , बसलक श्ाीा करोडा भी खरो ासे से है। "सुपस देह उड ी की शरोभा ीे ाए" का भाा ्ह कदामप सहीप सीझसा चामहए मक ्हाँ शरीर छूटसे की बात कही ग्ी है। ्हाँ आश् ्ह है मक उस असन्त शरोभा की एक झलक ीे खरो ासे पर हीे ऐसा आभास हरोता है मक ही है ही सहीप। प्रेी (इशक) शब्दातीत है। उस अावका ीे शरोभा-श्रृंगार का ाार स करसा सम्भा सहीप हरोता। ्हाँ ्ह संश् हरो सकता है मक क्ा श्री ीहाीधत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के अन्दर इशक सहीप 427 / 992 श्री सागर टीका का, श्री रा स वााीी रो उन्हयसे ्गु ल वारप की शरोभा का ाार स मक्ा? इसके उतर ीे ्ही कहा ा सकता है मक श्री ीहाीधत ी के अन्दर तरो इशक के सागर वा्ं अकरातीत ही मारा ीास है और वा्ं अपसे हुकी दारा शरोभा-श्रृंगार का ाार स कराा रहे है, मकन्तु ्ह ककस उस सुन्दरसाक के खल्े ससिसखापस है ही इशक ीे डू ब रो ्गु ल वारप के श्रृंगार ाार स करो ासा ीास लेते है और अपसे करो कृताकर ीास बैठते है। करोटास करोट बेर इस ीुख पर, मसरख मसरख बखल ाऊँ। ए सुख कहूं ीै धतस आगे, अपसी रह असर की पाऊँ।।१८१८६।। श्ाीा ी के ीुख की इस अलौमकक शरोभा करो देख - देखकर ीै कररोडय बार बखलहारी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती हूँ (न््रोछाार 428 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हरोती हूँ)। उसके दशर स से मीलसे ााले सुख करो ीै केाल परीधिाी की ब्सृमष्ट्य से ही कहसा चाहूँगी। भाााकर - इस चौपाई ीे श्ाीा ी के ीुखारमान्द की शरोभा के दशर स से मीलसे ााले सुख करो केाल ब्सृमष्ट्य से ही कहसे का कारा ्ह है मक ीूल सम्बन्धि स हरोसे से ीा सृमष्ट ्गु ल वारप की शरोभा-श्रृंगार और धचतामस के ीहता करो सहीप ासती। ाह प्रेी लकाा भमक के साी पर केाल बा् मदखााे एां कीर काणड करो ही सब कुछ ीासे रहती है। ीुख छमब अधत मबरा त, सरोणभत सब ससिससगार। देख अंगूठे आरसी, भूखस करत झलकार।।१८१८७।। श्ाीा ी के ीुख की सुन्दरता बहुत अधधिक सुशरोणभत हरो रही है। उसके सम्पूार श्रृंगार की शरोभा भी अलौमकक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 429 / 992 श्री सागर टीका है। श्री रा स वााीी ब श्ाीा ी अँगूठे ीे लगे हीरे के दपर ा ीे अपसा श्रृंगार देखती है, तरो सभी आभूषा और अधधिक झलकार करसे लगते है। भाााकर - परीधिाी की सभी ावतुएँ श्री रा श्ाीा एां सखख्य के आणशक है। श्ाीा ी ी दारा धिारा मक्े ग्े ास-आभूषा भी चेतस (आती-वारप) है। इसखल्े श्ाीा ब ाे अपसा श्रृंगार देखती है, तरो आभूषा भी ी करो ररझासे के खल्े ीचल उठते है और अधधिक शरोभा से झलकार करसे लगते है। भौं भृकुटी सैस ीुख साससिसका, हराटी अधिुर गाल कास। हाक पांउं उर कणठ हँसे, सब साचत मीलस सुभास।।१८१८८।। उस सी् श्ाीा ी की दरोसय भौंहे , भृकुटी (दरोसय भौंहय के बीच का वकास), से्, ीुख, साससिसका, ठु डी, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 430 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हयठ, गाल, कास, हाक-पैर, हद्, और गला हँससे लगते है। सभी रा ी से मीलसे के खल्े प्रसन्नता से साच उठते है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह बात दशार्ी ग्ी है मक ीाशूक (श्री रा (श्ाीा ी) से मीलसे के खल्े आणशक ी) के एक-एक अंग ीे मकतसी प्रसन्नता और उींग भरी हरोती है। ावतुतः श परीधिाी का एक-एक का आणशक और ीाशूक के रप ीे लीलाी् है। ते रोत प्रकास ीे, सरोभा सुंदरता असेक। कहा कहूं ीुखारपबद की, सेक सेक से सेक।।१८१८९।। श्ाीा ी के सूरी्ी ते से मसकलसे ााली ज्रोधत के प्रकाश ीे उसकी शरोभा और सुन्दरता असेक रपय ीे दमष्टगरोचर हरोती है। ीै उसके ीुखारमान्द की असन्त प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 431 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी शरोभा का कैसे ाार स करँ। ीैसे तरो करोडे से भी करोडा (की से की) अंश ीा् ही ाार स मक्ा है। भाााकर - ते से ज्रोधत एां ज्रोधत से प्रकाश का प्रकटीकरा हरोता है। इस सम्बन्धि ीे अन््् भी कहा ग्ा है- "ते रोत प्रकास रो सूर, सब ठौरय सीतल सत सूर।" इसी प्रकार सौन्द्र से सुन्दरता प्रकट हरोती है, रो शरोभा के रप ीे दमष्टगरोचर हरोती है। श्रास कणठ हाक पांउं के, भूखस सरोणभत अपार। एक भूखस सकस कई रंग, रह कहा करे मदल माचार।।१८२०।। श्ाीा ी के दरोसय कासय , गले, तका हाक-पैरय के आभूषाय की शरोभा अपार है। एक-एक आभूषा के एक ही धच् ीे असेक प्रकार के रंग है। आतीा उसकी शरोभा के बारे ीे भला अपसे मदल ीे मकतसा माचार कर सकती प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 432 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। सेक ससिससगार क्ा इस ुबां, क्य बरसााए सुख ए। ए सरोभा सा आाे सब्द ीे, सेक क्ा ाावते रहय के।।१८२१८।। ीैसे तरो ्हाँ की ससि िहा से श्ाीा ी के श्रृंगार का अधत अलप अंश (बहुत करोडा सा) ही ाार स मक्ा है। श्ाीा ी की शरोभा और उसके दीदार से मीलसे ााले सुख का ाार स ्हाँ के शब्दय ीे सहीप हरो सकता। परीधिाी की आतीाओं के खल्े ीैसे करोडा सा ाार स कर मद्ा है। भाााकर - ्ह सम्पूार ाार स श्री ीहाीधत ी से हक की "ीै" लेकर मक्ा है। मदल ीे अकरातीत के मारा ीास हुए मबसा करोई भी अपसी शमक से उसकी शरोभा का ाार स सहीप कर सकता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 433 / 992 श्री सागर टीका ीीठी श्री रा स वााीी ुबां वार बास ीुख, बरोलत खलए अधत प्रेी। मपउ सय बाते ीुख हंसे, खलए करे ीर ादा सेी।।१८२२।। ब श्ाीा ी अपसे प्रााालभ श्री रा ी से बाते करती है, तरो उसके ीुख पर ीुवकराहट (ीन्द-ीन्द हँसी) छा्ी रहती है। ाे बरोलते सी् अपसे हद् ीे बहुत प्रेी खल्े हरोती है। उसके ीुख से मसकलसे ााले शब्दय के वार बहुत ही ीीठे हरोते है , मकन्तु उसकी ्ह ाातार ी्ारदा के असुकूल हरोती है। भाााकर - संसार ीे साीान््तः श सारी ागर ीे असााश्क रप से अत्धधिक बाते करसे की प्राृखत पा्ी ाती है। ्ह सवकधत उबाऊ और कष्टकारी हरोती है। श्ाीा ी तरो अकरातीत की आसन्द शमक है। उसकी ाातार ीे कदामप ााचालता सहीप आती। ्ही ी्ारदा का मस्ी है। ाााी का वारप सत्, मप्र्, और महतकारी हरोसा चामहए। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 434 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कटु ता और असााश्क ााचालता से भरी ाााी हद् के खल्े दः शु खदा्ी हरोती है। साीी सैस देत सुख चैस की, उतपस अंग अतंत। करोील महरदे अधत माचार, क्य कहूं सरीाई ससिसफत।।१८२३।। श्ाीा रा ी के से्य से मीलसे ााले प्रेी के संकेतय से श्री ी समहत सखख्य के हद् ीे बहुत ही (असन्त) सुख-चैस की असुभूधत हरोती है। श्ाीा ी के हद् और माचारय ीे बहुत ही करोीलता है। उसकी करोीलता की ीमहीा का ाार स करसे के खल्े इस संसार ीे करोई भी शब्द सहीप है। चातुरी गधत की क्य कहू,ं सब बरोले चाले सुधि हरोत। अव्ाल इवक सब खमू ब्ां, हक के अंग की रोत।।१८२४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 435 / 992 श्री सागर टीका श्ाीा ी श्री रा स वााीी ब अपसे सूरी चरा कील धिरती पर रखती है, तरो बहुत ही करोीलतापूारक रखती है। उसकी चाल ीे प्रेी भरी चतुराई हरोती है। इस प्रेीी्ी लीला की सुधि तरो बरोलसे से ही हरो सकती है। अकरातीत के मदल ीे ज्रोधत रपी रो प्रेी (इशक) का सागर लहरा रहा है, उसी का प्रकट रप ्ह प्रेीी्ी लीला है। भाााकर - परीधिाी की धिरती भी आतीा का वारप है और इशकी्ी है। उसका वारप सखख्य की तरह करोील है। ाह आणशक के रप ीे ्ही चाहती है मक श्ाीा ी के सूरी चरा कील मकस प्रकार ीेरे ऊपर पडे। इधिर, श्ाीा ी सरोचती है मक ीै अपसी ीाशूक धिरती के ऊपर मकतसी करोीलता से पाँा रखँ।ू इस प्रकार ाे बहुत ही सााधिासी से करोीलतापूारक अपसे चरा कील धिरती पर रखती है। इसी करो चलसे की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 436 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चतुराई कहा ग्ा है, ्ामस श्ाीा ी हार सहीप ीाससा चाहतीप, क्यमक उसके पाँाय के पडसे से कहीप उसके प्रेी ीे कीी स मदखे। दरोसय का ीौस प्रेी चल रहा है। धिरती अपसे करो अधधिक से अधधिक करोील बसासा चाहती है, तरो श्ाीा ी भी अपसे चराय करो अत्धधिक करोीलता से रखसा चाहती है। ्मद ाे दरोसय अपसे ीुख से कुछ कहते, तब तरो मकसी करो सुधि हरोती। ्ह भेद ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर वा्ं धिाी धिसी से खरोला है, तब इसकी सुधि हुई है। ्हाँ ्ह संश् हरोता है मक क्ा परीधिाी ीे सखख्य करो इसका ञास सहीप का? इसके उतर ीे ्ही कहा एकमदली है, ाह श्री रा ा्ेगा मक परीधिाी ीे रो ी करो ररझासे के खल्े है। ाहाँ सभी धिाी धिसी करो ररझाते है, इसखल्े सभी वा्ं करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 437 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आणशक ीासते है। सभी के मदल का प्रेी बराबर है , इसखल्े करोई भी वा्ं करो ीाशूक ीाससे के खल्े तै्ार सहीप है। इशक रब्द का ीूलतः श ्ही कारा है। अकरातीत के हद् ीे इशक का गं ासगं सागर लहरा रहा है, ससि से इस चौपाई ीे मदल (अंग) की ज्रोधत कहा ग्ा है। ाही ीूल इशक (ीाररफत) है, ससि सका प्रकट रप श्ाीा ी, सखख्य, खूब-खश ु ाखल्य, पधक्य, और पच्चीस पकय के रप ीे लीला कर रहा है। ्ह सभी श्री रा आणशक है और उन्हीप के वारप है। श्री रा ी के ी के इशक की ्ही माशेषता (खूबी) है मक ाे ही वा्ं सभी रपय ीे लीला कर रहे है, लेमकस लीला वारप अपसे ीूल वारप (श्री रा ी) करो ररझाते हुए भी उसकी पूार पहचास सहीप कर पा रहे है। ्ह सारी पहचास इस ब्ाााी दारा ही सम्भा हरो सकी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 438 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीुख ीीठी अधत रससा, चुभ रेहेत रह के ीाहे। सरो ासे रहे असर की, स आाे केहेसी ीे क्ाहे।।१८२५।। श्ाीा ी के ीुखारमान्द से बहुत ही ीीठी ाााी का झरसा बहता है, अकारत् ाे बहुत ही ीधिुर बरोलती है। अीृत से भी अधधिक ीीठे उसके शब्द आतीा के हद् ीे अंमकत हरो (चुभ) ाते है। इस आसन्द करो ीा् परीधिाी की आतीा्े ही ासती है। इसे शब्दय ीे व््क करसा सम्भा सहीप है। क्य कहूं गधत चलस की, रो व्ाीा ी पांउं भरत। साहीप मसीूसा इसका, रो गधत व्ाीा ी चलत।।१८२६।। श्ाीा ी अपसी प्रेी भरी अदा से चलते सी् ससि स प्रकार अपसे कदीय करो धिरती पर रखती है , उस शरोभा का ाार स सहीप मक्ा ा सकता और उसकी इस चाल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 439 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की तुलसा मकसी से भी सहीप की ा सकती। बखल बखल ाऊं चाल गधत की, भूखस ते करे झलकार। मगरदााए मीलााा रहस का, सब सरोभा सा ससिससगार।।१८२७।। ीै श्ाीा ी की उस प्रेी भरी ीवत चाल पर बखलहारी ाती हूँ, ससि ससे उसके आभूषाय का ते और अधधिक झलकार करसे लगता है। उसके चारय ओर सखख्य का सीूह हरोता है, रो सम्पूार शरोभा और श्रृंगार से ्क ु हरोता है। सरोभा बडी सब रहय की, सब के ावतर भूखस। रोत स ीाए आकास ीे, ्य घेर चली ररोेसस।।१८२८।। सभी सखख्य की शरोभा बहुत अधधिक है। उसके ासय तका आभूषाय की ज्रोधत इतसी अधधिक है मक ाह प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 440 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आकाश ीे सहीप सीाती, अकारत् चारय ओर फैली हुई है। इस प्रकार सभी सखख्ाँ श्ाीा ी करो घेरकर चलती है, अकारत् सखख्य से धघरी हुई श्ाीा ी चलती है। असर मीलााा ले चली, अपसे संग सुभास। मक्ा चाह्ा सब मदल का, आगूं आए खलए ीेहेरबास।।१८२९।। परीधिाी ीे श्ाीा लेकर श्री रा ी सभी सखख्य करो अपसे साक ी के पास आती है। धिाी धिसी आगे आकर उसकी अगाासी (वाागत) करते है और उसके मदल की सारी इच्छाओं करो पूार करते है। भाााकर - परीधिाी की लीला ीे ्ह प्रसंग श्ाीा ी का सखख्य समहत तीसरी भूमीका के आसीासी रंग के ीसन्दर से चलकर २८ कम्भ के चौक से हरोते हुए चबूतरे की सीमढ़्य पर श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के पास ासे का है , मकन्तु 441 / 992 श्री सागर टीका इस श्री रा स वााीी ागसी लीला ीे इसका अकर इस प्रकार हरोगा- श्ाीा ी अपसी रससा रपी ाााी के दारा सभी सखख्य की सुरताओं करो परीधिाी के ीूल मीलााा ीे ले ाती है। रो सुन्दरसाक अपसे मदल ीे धिसी की शरोभा करो बसाते है, श्री रा ी उसके धिाी मदल ीे आकर प्रत्क दशर स देते है और उसकी सारी आसतीक इच्छाओं करो पूार करते है। इस सम्बन्धि ीे श्रीीुखाााी की ्े चौपाइ्ाँ ध््ास देसे ्रोग् हैएही लैलत कदर की फ र, उग्ा बका मदस ररोसस। हक खखलात ाहेर करी, असर परोहयचे हादी ीरोमीस।। सागर ६/१८४० ीेहेदी हदां कर दई, घर इीाी बता्ी राह। परोहयचे असर ीे्रा करो, हंस मीखल्ां रहे खद ु ाए।। ससंधि ४२/२७ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 442 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीै खलख्ा है तुीकरो, एक बार कररो ीरोहे साद। दस बार ी ी कहू,ं कर कर तुीकरो ्ाद।। ससिससगार २१८/२३ ए सरोभा ुगल मकसरोर की, चौका सागर सुख। रो हक तरोहे पहीत देाहीप, तरो पी प््ाले हरो ससीुख।।१८३०।। हे ीेरी आतीा! ्ह चौका सागर ्गु ल मकशरोर श्री रा श्ाीा ी की शरोभा के सुख का है। ्मद धिाी धिसी अपसी ीेहर से तुझे अन्तः शप्रेराा (महम्ीत) देते है, तरो तू उसके सम्ीुख हरोकर अकारत् उसका दशर स कर उसकी शरोभा के अीृत रपी रस के प््ाले करो पी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 443 / 992 श्री सागर टीका ुगल के सुख केते कहू,ं श्री रा स वााीी रो देत खखलात कर हेत। सरो सुख इस सेहेरस सय, धिसी फेर फेर तरोकरो देत।।१८३१८।। ीेरी आतीा! ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा बहुत लाड-प््ार से एक-दस ू रे करो ी आपस ीे रो सुख देते है, उसका ाार स ीै ्हाँ के शब्दय से कैसे करँ। उसी सुख करो धिाी धिसी अपसी ब्ाााी रपी सहरय (खखलात, पररक्रीा, सागर, और ससिससगार) दारा तुम्हे बार-बार दे रहे है। भाााकर - प्रेी का सुख ही खखलात का सुख है, ससि सीे आणशक और ीाशूक (श्री रा श्ाीा ी) एक-दस ू रे के मदल ीे पूारत्ा बसे हरोते है। आतीाओं के धिाी हद् ीे परीधिाी की चार मकताबय (खखलात, पररक्रीा, सागर, और ससिससगार) दारा ्ह रस प्राामहत हरोता है, इसखलए इस मकताबय की उपीा सहरय से दी ग्ी है ससि सकी लहरय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 444 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी (चौपाइ्य) ीे णछपे आसन्द का रसपास ब्ातीा्े मक्ा करती है। ए बासी सब सुपस ीे, और सुपसे ीे करी ससिसफत। सरो क्य परोहयचे सरोभा ुगल करो, सुपस कौस मससबत।।१८३२।। ्गु ल वारप की शरोभा-श्रृंगार का ाार स करसे ााली ्ह सम्पूार ब्ाााी इस वाप्स के ब्ाणड ीे कही ग्ी है। वाप्सी्ी ब्ाणड के सशर पदाकर से उपीा देकर ही ्गु ल वारप की ीमहीा दशार्ी ग्ी है। ऐसी सवकधत ीे इस ाार स करो ्गु ल वारप की ाावतमाक शरोभा का ाार स सहीप ीासा ा सकता। इस ीा्ााी गत से परीधिाी का भला क्ा सम्बन्धि हरो सकता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 445 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सब्द स परोहयचे सुभास करो, तरो क्य रहय चौप कर। मदल कास ुबां ले चलत, हक तरफ बांए स र।।१८३३।। ्दमप ्हाँ के शब्द श्री रा ी तक सहीप पहुँचते , मफर भी ीै चुप क्य रहूँ। ीेरा मदल धिसी के दीदार का प््ासा है। ीेरे कास (आसतीक) उसकी ीधिुर ाााी सुससा चाहते है, तरो ीेरी ससि िहा (आसतीक) उससे बाते करसा चाहती है, इसखल्े ीेरी आतीा ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी की ओर ही अपसी दमष्ट रखती है। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा ीे "्गु ल वारप" श्री रा श्ाीा ी की ओर अपसी आसतीक दमष्ट रखसे की बात कही ग्ी है, अकेले श्री रा श्ाीा ी ्ा केाल श्री ी की ओर सहीप, क्यमक धचतामस ीे हीारा आसतीक वारप रो ्गु ल वारप के सम्ीुख हरोगा, उसके दा्ीप ओर श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी हयगी तका बा्ीप ओर रा 446 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ी हयगे। एते मदस ढांपे रहे, मकस कही सा हकीकत। रो अ ूं स बरोलत दसु ी ीे, तरो ाहेर हरोए सा हक सूरत।।१८३४।। आ मदस तक मकसी से भी ्गु ल वारप (हकीकत) की शरोभा-श्रृंगार का ाार स सहीप मक्ा का , इसखल्े सधच्चदासन्द परब् के प्रधत सारा संसार असणभञ ही रहा। ्मद ीै अब भी धिाी धिसी की शरोभा का ाार स सहीप करती, तरो ्ह शरोभा संसार ीे सहीप फैल पाती ( ामहर स हरो पाती)। ए दार दस ु ी ीे क्य खरोखलए, ए रो गैब हक खखलात। सरो दार खरोले ीै हुकीे, असर बका हक ीारफत।।१८३५।। अकरातीत के ीूल मीलााा की इस णछपी हुई गु् बातय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 447 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के भेद भला इस संसार ीे क्य कहे , मकन्तु धिाी धिसी का ऐसा हुकी का ससि सके कारा ीैसे उसकी ीै लेकर अखणड परीधिाी और श्री रा (ीाररफत की) बातय करो ी के मदल की गु्ती ामहर मक्ा। भाााकर - इस चौपाई ीे "खखलात" का तातप्र ीूल मीलााा से इसखल्े ीासा ग्ा है मक इस सागर गन्क ीे ्गु ल वारप तका सखख्य की शरोभा का ाार स मक्ा ग्ा है। "ीारफत" (माञास) का तातप्र ऐसे ञास से है , ससि सके दारा श्री रा हरोती है, ी के उस वारप की पूार पहचास रो परीधिाी ीे भी सहीप हरो सकी की। दमु स्ां से ढांपे रहे, असर बका एते मदस। रेहेत अब भी ढांमप्ा, रो करे सा रह ररोसस।।१८३६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 448 / 992 श्री सागर टीका आ श्री रा स वााीी तक संसार के लरोगय करो अखणड परीधिाी का ञास सहीप का। ्मद ीेरी आतीा के दारा इस ञास का उ ाला सहीप मक्ा अब भी करोई सहीप ाता, तरो इस परीधिाी के बारे ीे ास सकता का। ए खरोले बडा सुख हरोत है, ीेरी रह और रहस। इससे है्ाती पााहीप, चौदेे तबक ्ैगुस।।१८३७।। परीधिाी के ञास का दराा ा सभी के खल्े खल ु ासे से ीुझ समहत अन्् सभी आतीाओं करो बहुत ही आसन्द हरो रहा है। इस अलौमकक ञास के दारा ही ब्ा, माष्ा,ु और णशा समहत चौदह लरोकय के सभी प्रााी शाशत आसन्द की प्रामप करेगे। भाााकर - ्दमप भगाास माष्ाु और णशा अकर ब् की सुरता कहलाते है और इन्हे ्रोगीा्ा का सुख भी प्राप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 449 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है, मकन्तु इन्हे अकरातीत की पहचास सहीप है। तारती ञास दारा अकरातीत की पहचास हरो ासे पर इसके अखणड आसन्द का वारप कुछ और ही हरोगा। चौकेे चरा ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। क्ाीत सरत परोहयचे मबसा, तरो ढांपे रहे एते मदस। हके आखखर अपसे कौल पर, मकए ाहेर आगूं रहस।।१८३८।। मक्ाीत का सी् आसे से पहले परीधिाी का ्ह ञास ामहर सहीप हरो सका का। धिाी धिसी से मक्ाीत के सी् परीधिाी के अलौमकक ञास के अातरा करसे का रो ाचस मद्ा का, उसे अपसे सी् पर ब्सृमष्ट्य के बीच प्रकट कर मद्ा। भाााकर - तफ्सीर-ए-हुसैसी पारा २७ पृष ४४६ ीे संकेत ीे ्ह ाार स है मक मक्ाीत के सी् अशर -एप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 450 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अ ीी का गु् ञास अातररत हरोगा। ए रो कहे ीै सरप, ुगल मकसरोर असूप। दई साहेदी ीहंीद रहअला, मकए ाहेर असर सरप।।१८३९।। ीैसे परीधिाी ीे मारा ीास ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी की अलौमकक शरोभा का सुन्दरसाक ीे रो ाार स कर उसे ामहर मक्ा है , उसकी साकी ीुहम्ीद सामहब से कुरआस ीे दी है तका सदर ु धिसी श्री देाचन्् ी से भी उसका ाार स मक्ा है। भाााकर - कुरआस की व््ाख्ा तफ्सीर-ए-हुसैसी ीे पारा २८ सूरे सजी आ्त १८ पृष ४५६ ीे परब् के वारप के बारे ीे संकेत मक्ा ग्ा है , उसीे ीुहम्ीद सामहब कहते है मक ीैसे मदल की आँ खय से शब -एीेअरा ीे दरो बार सूर ीे खद ु ा तआला करो देखा। सूरे सूर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 451 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पृष १८१८३- अलाह का साी ही सूर है। पारा १८७ पृष ५३६ - साताे आसीास से भी परे सदरतुल ीुंतहा (सतवारप), बैतुल ीाीूर (अकर ब् के रंगीहल), हौ कौसर, ा सहर उल रहीत् (ीेहर का सागर) करो देखा। ह रत ससि बरील सदरतुल ीुंतहा से आगे सहीप ा सके। अलाह से कहा - ीेरे करीब आ ाओ। ्हाँ तक मक हाँ अलाह बैठे के , ाहाँ तक ाे पहुँच ग्े। उस दरोसय के बीच ीे धिसुष के दरो करोसय के बराबर की दरू ी की। एही लैलत कदर की फ र, ऊग्ा बका मदस ररोसस। हक खखलात ाहेर करी, असर परोहयचे हादी ीरोमीस।।१८४०।। मक्ाीत के सी् परीधिाी के ञास का अातरा ही लैल-तुल-क् की राम् ीे उ ाला हरोसा कहा ग्ा है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 452 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि सीे मदस के उ ाले के सीास परीधिाी का ञास फैल ा्ेगा। इस सी् परीधिाी की खखलात श्ाीा ामहर हरोसे से ी समहत ब्सृमष्ट्ाँ धचतामस (ध््ास) दारा ्हीप बैठे-बैठे परीधिाी का इस प्रकार साकातकार करेगी, स ै े ाे परीधिाी ीे ही हय। भाााकर - बृहतसदाणशा संमहता ीे ्ह वपष्ट रप से ारात है मक परब् के आाेश से ्क ु अकर ब् की ागत बुधद अातररत हरोगी , ससि ससे ब्मप्र्ाओं करो ागत करसे ााला ञास प्रकट हरोगाधचदााेशाती बुधदरकरव् ीहातीसः श प्रबरोधिा् मप्र्ाााी् भमाष््धत भारताससि रे। ीहाीत कहे अपसी रह करो, और असर रहस। इस सुख सागर ीे झीलते, आओ अपसे ातस।।१८४१८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 453 / 992 श्री सागर टीका श्री ीहाीधत श्री रा स वााीी ी अपसी आतीा एां परीधिाी की ब्सृमष्ट्य करो सम्बरोधधित करते हुए कहते है मक आप सभी ्गु ल वारप की शरोभा-श्रृंगार रपी इस आसन्द के सागर ीे वसास कीससि ए और अपसे मस धिाी लौमटए। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ही भाा दशार्ा ग्ा है मक इस संसार ीे ्मद अपसी आतीा करो ागत करसा है और परीधिाी के आसन्द की असुभूधत करसी है , तरो ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी की धचतामस के अधतररक अन्् करोई भी दस ू रा साधिस सहीप है। प्रकरा ।।६।। चौपाई ।।४९०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 454 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चौसठ कंभ चौक खखलात का बेारा इस प्रकरा ीे ीूल मीलााा की शरोभा का मावतृत ाार स मक्ा ग्ा है। इस माधि साक ी ामगए, बताए देऊं रे व्ाी व्ाीा ी साक श्री ीहाीधत ी कहते है मक ीेरे सुन्दरसाक ीास। ी, ससि त बैठे चौक ातस।।१८।। ी! ीै आपकरो ीास वारप हे ीसे की कला बता रहा हूँ। परीधिाी के ीूल मीलााा ीे ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी और आपके ीूल तस मारा ीास है। उसकी शरोभा करो अपसे धिाी हद् ीे बसाकर अपसी आतीा करो ागत कीससि ए। भाााकर - चार चौरस हाेखल्य के बाद चार गरोल हाेखल्ाँ आती है। ीूल मीलााा चार चौरस हाेखल्य के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 455 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बाद पाँचाीप गरोल हाेली के रप ीे है , इसखल्े ीूल मीलााा करो चौक के रप ीे ारात मक्ा ग्ा है। ाावतमाक ीास की कला तरो ीूल मीलााा के ध््ास ीे ही णछपी है। ्ाद कररो सरोई साइत, रो हँससे ीांग्ा खेल। सरो खेल खस ु ाली ले् के, उठरो की े केखल।।२।। हे साक ी! आप उस घडी करो ्ाद कीससि ए, ब आपसे धिाी धिसी से ्ह हँसी का खेल ीाँगा का। अब इस खेल के आसन्द करो लेकर ागत हरोइए और धिाी धिसी से प्रेी लीला का आसन्द लीससि ए। भाााकर - ्ह ससि ञासा हरो सकती है मक इस चौपाई ीे कहाँ ागत हरोसे की बात कही ग्ी है- पराती ीे ्ा इस संसार ीे? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 456 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ावतुतः श इस चौपाई ीे दरोसय गह की ागधत के खल्े सम्बरोधिस है। ्ह मसराााद सत् है मक इस संसार ीे ीा् आतीा की ही बमक पराती ीे ागसी हरोगी और ाह भी आगे -पीछे , ागसी साीूमहक ही हरोगी क्यमक ाहाँ ाहदत की भूमीका है। सुरत एकै राखखए, ीूल मीलााे ीाहे। व्ाी व्ाीा ी साक ी, तले भरोी बैठे है ाहे।।३।। हीे अपसी सुरता (ध््ास) प्रकी भूमीका के उस ीूल मीलााा ीे रखसी चामह्े , रा श्ाीा हाँ ्गु ल वारप श्री ी और सुन्दरसाक बैठे हुए है। चौसठ कंभ चबूतरा, इत कठे डा मबरा त। तले मगली ऊपर चन््ाा, चौसठ कंभय भर इत।।४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 457 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी गरोल चबूतरे की मकसार पर चौंसठ कम्भ आ्े है, ससि सके बीच ीे कठे डे की शरोभा है। चबूतरे की सतह पर एक हाक ीरोटी ीखीली मगली (कालीस) मबछी हुई है और चौंसठ कम्भय के ऊपर चन््ाा झलकार कर रहा है। कठे डा मकसार पर, चबूतरे मगरदााए। सरोले कंभय लगता, ए ुगत अधत सरोभाए।।५।। चबूतरे की मकसार पर चारय ओर कठे डे की शरोभा है , मकन्तु चारय मदशाओं ीे ३ -३ सीमढ़्य के हरोसे से ाहाँ कठे डा सहीप है। बाकी चारय खाँचय ीे सरोल -सरोलह कम्भय से लगकर कठे डा आ्ा है। इस प्रकार की बसााट बहुत शरोभा दे रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 458 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चार दार चारय तरफय, और कठे डा सब पर। चौसठ कंभय के बीच ीे, मगली मबछाई भर कर।।६।। चबूतरे की चारय मदशाओं ीे चार ीेहराबी दार है , से ३-३ सीमढ़्ाँ उतरी है। सीमढ़्य की बाकी हाँ गह छरोडकर गह ीे कम्भय के ीध्् कठे डा शरोभा्ीास है। चौंसठ कम्भय ााले इस चबूतरे की सम्पूार गह पर अधत करोील गलीचा मबछा हुआ है। कहूं चौसठ कंभय का बेारा, चार धिात बारे संग। बसे चारय तरफय ुदे ुदे, भए सरोले ससि ससय रंग।।७।। अब चौंसठ कम्भय का माारा बताती हूँ। इस चौंसठ कम्भय ीे सरोलह -सरोलह कम्भय के चार भाग (खाँचे) आ्े है। इसीे प्रत्ेक भाग ीे चार कम्भ धिातुओं के है तका बारह कम्भ सगय के है। इस कारा प्रत्ेक भाग ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 459 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रंग भी सरोलह प्रकार के हरो ग्े है। चारय तरफय एक एक रंग के, तैसी तरफय चार। सए सए रंग एक द ू े संग, चारय तरफय चौसठ सुीार।।८।। चारय भागय ीे एक-एक रंग (सग ्ा धिात) का एक-एक कम्भ ही आ्ा है। इस प्रकार प्रत्ेक भाग के १८६ कम्भ अलग-अलग १८६ रंगय के है। इस कारा प्रत्ेक भाग ीे अलग-अलग (स्े-स्े) रंग के कम्भ एक-दस ू रे के साक (क्रीशः श) गीगा रहे है। इस प्रकार चारय भागय ीे ६४ कम्भय की शरोभा है , ससि सीे अलग -अलग रंग के प्रत्ेक सग ्ा धिात चार बार आ्े है। ए चार साी कहे धिात के, हेी कंचस चांदी सूर। ए चार रंग का बेारा, खलए खडे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा हूर।।९।। 460 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि स धिातुओं के कम्भ आ्े है, उसके साी इस प्रकार है- वाार (हेी), कञस, चाँदी, और सूर (लरोहा)। इसके रंग भी अलग-अलग शरोभा से ्क ु है। भाााकर - वाार (हेी) का रंग कुछ पीलापस खल्े हरोता है, मकन्तु ब उसे साढ़े सरोलह बार अम् ीे तपा्ा ाता है तरो उसका रंग लाखलीा से भरपूर हरो और उसे कञस कहा ाता है ाता है। इस प्रकार चाँदी का रंग शेत तका लरोहे का रंग भूरा हरोता है। और बारे ाेरय का बेारा, पाच पांसे हीरे पुखरा । ीामसक ीरोती गरोीामदक, रहे मपररो े मबरा ।।१८०।। बारह ााहरातय का माारा इस प्रकार है- पाच, पन्ना, हीरा, पुखरा , ीाणाक, ीरोती, गरोीेद, और मपररो ा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 461 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सीलाी और लसमस्ां, और परााली लाल। और रंग कपूरर्ा, ए रंग बारे इस मीसाल।।१८१८।। सीली, लहसुमस्ा, प्रााल, और कपूररर्ा है। इसीे प्रााल का रंग लाल आ्ा है तका कपूररर्ा का रंग पूारत्ा शेत है। भाााकर - प्रााल तका कपूररर्ा के अधतररक अन्् ााहरातय के रंग इस प्रकार है- हरा (पाच), आसीासी (पन्ना), शेत (हीरा), पीला (पुखरा ), लाल (ीाणाक), शेत (ीरोती), हलका कतकई (गरोीेद), हलका सीला (मपररो ा), सीला (सीली), और लहसुस के रंग का (लहसुमस्ा)। चार दार चार रंग के, आठ कंभ भए रो इस। पाच ीामसक और सीलाी, दार पुखरा चौका ररोसस।।१८२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 462 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चबूतरे की चारय मदशाओं के चार दारय के कम्भय के रंग इस प्रकार है- पूार मदशा ीे पाच के दरो कम्भ , पधशी ीे सीली के दरो कम्भ, उतर मदशा ीे पुखरा के दरो कम्भ, तका दधका ीे दार के दरोसय कम्भ ीाणाक के आ्े है। इस प्रकार चार रंग के कुल आठ कम्भ हुए। और कंभ दरोए पाच के, दरोऊ तरफय सीलाी संग। दार सीलाी संग दरोए पाच के, करे साी साीी गं ।।१८३।। पूार मदशा ीे दराा े के दरो कम्भ रो पाच के आ्े है , उसके अगल-बगल के दरोसय कम्भ सीली के है। इसी प्रकार पधशी के दराा े ीे आ्े हुए सीली के दरोसय कम्भय के बगल ीे पाच के दरो कम्भ आ्े हुए है। इसके रंगय की ज्रोधत आीसे-साीसे टकराती है। भाााकर - पूार मदशा ीे आ्े हुए पाच के दरोसय कम्भ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 463 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पधशी मदशा ीे आ्े हुए पाच के दरोसय कम्भय के सीास है। इसकी ज्रोधत ब आीसे -साीसे मीलती है, तरो ऐसा प्रतीत हरोता है मक इसीे ्द ु चल रहा है। ्ही सवकधत सीलाी, पुखरा , ीाणाक, तका अन्् कम्भय की भी है। दरो कंभ दार ीामसक के, दरोए पुखरा धतस पास। दरोए कंभ दार पुखरा के, ता संग ीामसक करे प्रकास।।१८४।। दधका मदशा ीे दराा े के दरोसय कम्भ ीाणाक (लाल रंग) के है। उसके पास के (बगल के) दरोसय कम्भ पुखरा (पीले रंग) के है। इसी प्रकार उतर की मदशा ीे दरो कम्भ पुखरा के है और उसके बगल के दरोसय कम्भ ीाणाक के है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 464 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कंभ बारे भए इस मबधि, साी साीी एक एक। ्य बारे बसे साी साीी, तरफ चारय इस मााेक।।१८५।। इस प्रकार इस कम्भय करो छरोडकर सभी चारय भागय ीे बारह-बारह कम्भ बचते है। ्े सभी बारह कम्भ एकएक भाग ीे एक-एक रंग के आीसे-साीसे आ्े है। इस प्रकार चारय ओर इस अडतालीस कम्भय की माधच् शरोभा आ्ी है। हीरा लसमस्ां गरोीामदक, ीरोती पासे परााल। हेी चांदी कंभ सूर के, कंभ कंचस अधत लाल।।१८६।। ्मद पूार ्ा पधशी से इस कम्भय करो देखा ा्े , तरो उसका क्री इस प्रकार हरोता है- हीरा, लहसुमस्ा, गरोीेद, ीरोती, पन्ना, प्रााल, वाार , चाँदी, लरोहा, और अत्धधिक लाखलीा से ्क ु कञस के कम्भ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 465 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मपररो ा और कपूरर्ा, ्ाके आठ कंभ रंग दरोए। मगस छरोडे दरोए दार से, बसे हर रंग चार चार सरोए।।१८७।। इसके पशात् मपररो ा और कपूररर्ा के कम्भ शरोभा देते है। इस दरो रंगय ााले कुल आठ कम्भ है, रो प्रत्ेक खाँचे (भाग) ीे दरो-दरो (१८ मपररो ा, १८ कपूररर्ा) के महसाब से आ्े है। ्े १८२ कम्भ पूार ा पधशी के दराा य के पास ीे हीरे सेे शुर हरोकर उतर ा दधका के दराा य के पास ीे मपररो ा और कपूररर्ा पर खती हरोते है। इस प्रकार प्रत्ेक रंग के आीसे-साीसे चार-चार कम्भ आ्ेगे। ए सरोले कंभय का बेारा, कंभ चार चार एक रंग के। सरो चारय तरफय साी साीी, बसे मीसल चौसठ ए।।१८८।। इस प्रकार सरोलह कम्भय का ्ह संधकप माारा है। एक-एक रंग के कुल चार-चार कम्भ है और चारय भागय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 466 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीे आीसे -साीसे शरोभा देते है। इस चौसठ कम्भय की शरोभा इस प्रकार की आ्ी है। चारय तरफय चं्ाा, चौसठ कंभय के बीच। रोत करे सब ाेरय, ेता तले दल ु ीच।।१८९।। चौंसठ कम्भय के बीच की सम्पूार ऊपरी गह की छत पर चन््ाा आ्ा हुआ है। चबूतरे की सतह पर रो मगली (दल ु ीचा) मबछी है, उसके ऊपर चन््ाा ीे डे हुए ााहरातय की ज्रोधत फैली हुई है। भाााकर - चौंसठ कम्भय के बीच ीे ीेहरााे आ्ी हुई है। उस ीेहरााय के ऊपर छत की तरह चन््ाा की शरोभा आ्ी है। उसीे असेक प्रकार के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ााहरात डे हुए है। 467 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीाहे मबररख बेली कई कटाा, कई फूल पात सकस। देख ाेर ुगत कई चं्ाा, ासय के अधत सरस।।२०।। चन््ाा के अन्दर ााहरातय से असेक प्रकार के ाृकय, लताओं, बेल-बूटय, फूलय, तका पखत्य आमद के धच् अंमकत है। उसकी ्ह शरोभा बहुत ही सुन्दर मदखा्ी पड रही है। इस चौक मबछाई मगली, ता पर ससघासस। चारय तरफय झलकत, रोत लेहेरी उठत मकरस।।२१८।। चबूतरे के ऊपर ीखीली (पशीी) मगली मबछी हुई है। उसके ऊपर ीध्् ीे ससहासस रखा हुआ है। उसकी झलकार चारय ओर फैल रही है। सूरी्ी ससहासस से मसकलसे ााली ज्रोधतीर ्ी लहरय से प्रकाश की मकराे उठ रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 468 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी झलकत सुन्दर मगली, अधत सरोणभत ससघासस। ्य रोत ीी ाेरस की, बीच गु ल रोत ररोसस।।२२।। मबछी हुई सुन्दर मगली अपसी सूरी्ी आभा से झलकार कर रही है। उस पर रखा हुआ ससहासस भी बहुत अधधिक सुशरोणभत हरो रहा है। ाहाँ की धिरती (चबूतरे की सतह) ााहरातय की है , ससि ससे उठसे ााली सूरी्ी ज्रोधत के बीच ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी की ज्रोधत प्रकाणशत हरो रही है। लाल तमकए ऊपर सरोणभत, धिरे बराबर एक दरोर। सरीय ीे अधत सरी है, पसी भरे अधत रोर।।२३।। मगली के ऊपर कठे डे से लगते हुए लाल रंग के तमकए सुशरोणभत हरो रहे है। ाे सीास ऊँचाई ीे कम्भय के बीच ीे रखे हुए है। ाे ीखीली करोीलता से भरे है और इतसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 469 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोील है मक उसका ाार स ही सहीप मक्ा ा सकता। भाााकर - इस चौपाई के तीसरे चरा ीे "करोील से भी अधधिक करोील" कहसे का भाा ्ह है मक उसकी करोीलता शब्दातीत है। ेता एक कठे डा, सब ीे सुन्दर तमकए। धतस तमक्य साक भराए के, बैठे एक मदली ले।।२४।। दरो कम्भय के बीच ीे कठे डे की रो ीाप आ्ी है , उसी ीाप के बराबर के सुन्दर-सुन्दर तमक्े सभी कम्भय के बीच ीे आ्े है। उस तमक्य के साक लगकर सभी सुन्दरसाक एकमदली के भाा से सम्पूार मगली पर भरकर बैठे है। भाााकर - कठे डे के साक लगे हुए तमक्य के सहारे बैठसे का रो असुभा सुन्दरसाक करो हरोता है, ाही असुभा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 470 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आगे बैठे हुए मबसा तमक्े ााले सुन्दरसाक करो भी हरोता है क्यमक ाहाँ एकमदली है। इस चौपाई के चौके चरा ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। ससि स मबधि बैमठ्ां बीच ीे, ्ाही मबधि मगरदााए। तरफ चारय लग कठे डे, बीच बैठा साक भराए।।२५।। ससि स प्रकार सखख्ाँ ससहासस के पास बीच ीे बैठी हुई है, उसी प्रकार कठे डे के साक लगकर चारय ओर बैठी हुई है। सारा सुन्दरसाक कठे डे और ससहासस के बीच की गह ीे भरकर बैठा हुआ है। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा से ्ह भाा मसकलता है मक सुन्दरसाक असार के दासय की तरह इस प्रकार बैठा है मक उसीे कहीप भी आसे- ासे की करोई गह सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 471 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकरसा उठे सई सई, ससघासस की कई तरंग इस रोत। रोत के, सूर संगय से हरोत।।२६।। सूरी्ी ससहासस की ज्रोधत से सई -सई मकराे उठ रही है। ससहासस ीे डे हुए सूरी्ी सगय से ज्रोधत की असेक प्रकार की तरंगे प्राामहत हरोती रहती है। पाइए इस तखत के, उती रंग कंचस। छे डांडे छे पाइ्य पर, अधत सुन्दर ससघासस।।२७।। इस ससहासस के पाए बहुत ही श्रेष कञस रंग के आए है। छः श डाणडय और छः श पा्य पर अधत सुन्दर ससहासस सवकत है। भाााकर - ससहासस ीे तीस पा्े आगे तका तीस पीछे आ्े है। इन्हीप पा्य के ऊपर डाणडय की शरोभा है , ससि ससे ुडकर सम्पूार ससहासस की बसााट आ्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 472 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दस रंग डांडय देखत, सए सए सरोणभत हर तरफय रंग ुदे े। ुदे, दसय मदस देखत ए।।२८।। हर डाणडे ीे दस पहल है। प्रत्ेक पहल का रंग अलगअलग है। इस दस पहलय की दसय मदशाओं ीे डाणडे के अलग-अलग प्रकार के सए-सए रंग मदखा्ी देते है। भाााकर - इस चौपाई ीे डाणडे के प्रत्ेक पहल के साीसे की मदशा ही उसकी मदशा ीासी ाती है। ्हाँ पूार, पधशी, उतर, दधका, आ्े्, सैऋत्, ाा्व््, ईशास, ऊपर, और सीचे की इस दस मदशाओं से करोई भी सम्बन्धि सहीप है। एक तरफ देखत एक रंग, तरफ द ू ी द ू ा रंग। ्य दसरो मदस रंग देखत, धतस रंग रंग कई तरंग।।२९।। डाणडे के एक पहल की ओर एक रंग मदखा्ी पडता है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 473 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तरो दस ू री ओर दस ू रा रंग मदखा्ी पडता है। इस प्रकार दसय मदशाओं ीे अलग -अलग रंग मदखा्ी पडते है। इसीे प्रत्ेक रंग ीे से कई अन्् रंगय की तरंगे मसकलती है। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा का भाा ्ह है मक डाणडे के मकसी भी पहल के मकसी भी रंग से असेक प्रकार के सूरी्ी रंगय का प्रााह हरोता रहता है , स ै े- ्मद मकसी पहल का रंग पीला है , तरो उससे लाल, हरे, सीले, आमद असेक रंगय की तरंगे मसकलती हुई मदखा्ी देती है। तीस डांडे रो पीछले, दरो तमकए बीच धतस। कई रंग मबररख बेली बूमट्ां, ए कैसे हरोए बरसस।।३०।। ससहासस ीे रो पीछे के तीस डणडे आ्े है , उसके बीच प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 474 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीे दरो तमकए रखे हुए है। इस सूरी्ी तमक्य ीे असेक प्रकार के ाृकय, लताओं, तका बेल-बूटय की शरोभा आ्ी है, ससि सका ाार स करसा सम्भा सहीप है। चारय मकसारे चढ़ती, दरोरी बेली चढ़ती चार। चारय तरफय फूल चढ़ते, करत अधत झलकार।।३१८।। ससहासस के चारय मकसारय पर बेलय की बहुत ही सुन्दर चार-चार पँमक्ां आ्ी हुई है। इसीे डे हुए फूल बहुत अधधिक झलकार कर रहे है। धतस डांडय पर छम््ां, अधत सरोणभत है दरोए। ीाहे कई दरोरी बेली कांगरी, क्य कहूं सरोभा सरोए।।३२।। इस छः श डाणडय के आधिार पर दरो छम््ाँ आ्ी है , ससि सकी शरोभा बहुत अधधिक है। इस छम््य ीे लताओं प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 475 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तका काँगरी की असेकय पँमक्ां आ्ी है , ससि सकी अलौमकक शरोभा का ाार स ीै कैसे करँ। भाााकर - ावतुतः श दरोसय छम््ाँ ससहासस की उस छत ीे आ्ी है , रो छः श डाणडय के आधिार ीे सवकत है। ्ह तर् आगे की चौपाई ीे वपष्ट कर मद्ा ग्ा है। दरोए कलस दरोए छम््य, छे कलस ऊपर डांडस। आठय के अाकास ीे, करत ंग ररोसस।।३३।। दरोसय छम््य के ऊपर दरो कलशय की शरोभा है तका छः श डाणडय पर भी छः श कलश आ्े है। इस प्रकार कुल आठ कलश है। इस आठय कलश के बीच की खाली सूरी्ी मकराे गह ीे ब आपस ीे टकराती है , तरो ऐसा प्रतीत हरोता है मक ीासरो ाे ्द ु कर रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 476 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सकस फूल कटाा कई, कई ते रोत ुगत। देख देख के देखखए, सैसां क्यए स हरोए तृमपत।।३४।। इस कलशय ीे असेक प्रकार के फूलय और बेल-बूटय की शरोभा है, ससि सीे असेक प्रकार की ज्रोधत्य और ते का प्रकटीकरा हरो रहा है। इस कलशय की अमदती् शरोभा करो बारम्बार देखसे पर भी से्य ीे तृमप सहीप हरोती। चाकले दरोऊ पसीी, रोत ाेर सरी अपार। बैठे सुन्दर सरप दरोऊ, देख देख ाऊं बखलहार।।३५।। ससहासस के ऊपर बैठसे के खल्े दरो ीखीली चाकले (आससी) है, ससि सीे डे हुए ााहरातय की ज्रोधत गीग- गीग करती रहती है। इस ााहरातय की करोीलता भी असन्त है। इस चाकलय पर मारा ीास ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के अधत सुन्दर वारप 477 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करो देख-देखकर ीै बार -बार बखलहारी ाती हूँ (न््रोछाार हरोती हूँ)। रे ससि ीी की ररोससी, भराए रही आसीास। क्य कहूं रोत तखत की, ससि त बैठे बका सुभास।।३६।। ब परीधिाी की धिरती के एक का की ज्रोधत (ररोशसी) सम्पूार आकाश ीे फैल ाती है , तरो ससहासस की उस सूरी्ी ज्रोधत का ीै कैसे ाार स करँ , ससि स पर वा्ं श्री रा श्ाीा बरसस करं ीै इस ी मारा ीास है। ुबां, रंग संग इतके साी। ए सब्द धतत परोहयचे सहीप, पर कहे मबसा भा े स हाी।।३७।। ीै इस संसार के साीय के आधिार पर ही ्हाँ की ससि िहा से ीूल मीलााा के सगय और रंगय का ाार स करती हूँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 478 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्दमप ीेरे दारा कहे हुए ्े शब्द परीधिाी की शरोभा का ्काकर ाार स सहीप कर पाते है, मकन्तु ्मद ीै इतसा भी स कहूँ तरो ीेरे हद् ीे रो मप्र्ती की शरोभा का ाार स करसे की प्रबल चाहसा है, ाह पूरी सहीप हरो सकती। ए ाेर कई भांत के, सरोणभत भांत रप कई। सरो पल पल रप प्रकासहीप, ्य सकल रोत एक ीई।।३८।। परीधिाी ीे असेक (असन्त) प्रकार के ााहरात है, रो असेक प्रकार की बसााट ीे शरोभा्ीास हरो रहे है। उसका रप पल-पल बदलता रहता है। इस प्रकार सम्पूार परीधिाी श्री रा ी के सूर से ही असेक रपय ीे दमष्टगरोचर हरो रहा है। भाााकर - परीधिाी के ड ााहरातय करो इस संसार के ााहरात सहीप सीझसा चामहए। ाे सभी चेतस है , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 479 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सूरी्ी है, और श्री रा मगली ी के अणभन्न अंग है। रोत फूल बेखल्ां, रोत ऊपर की आाे उतर। रोते रोत सब मील रहीप, ए रंग ुदे कहूं क्य कर।।३९।। मगली पर बसे हुए फूलय तका लताओं आमद से सूरी ज्रोधत णछटक रही है। चन््ाा तका कम्भय से भी सूरासी ज्रोधत मगली पर पड रही है। इस प्रकार सभी ज्रोधत्ाँ आपस ीे एकरप हरो ाती है। ऐसी सवकधत ीे इसके रंगय का अलग-अलग रपय ीे ाार स करसा कैसे सम्भा है। भाााकर - ससि स प्रकार लाल रंग (ीाणाक) के कम्भ से लाल और हरे (पाच) रंग के कम्भ से हरी ज्रोधत मसकल रही है, उसी प्रकार चन््ाा और मगली की लताओं और फूलय से हरे तका लाल रंग की ज्रोधत णछटक रही हरोती है। मकन्तु ्मद सभी प्रकार की ज्रोधत्ाँ आपस ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 480 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मीलकर एकरप हरो कैसे मक्ा ा्े, तरो उसका अलग-अलग ाार स ा सकता है। इस चौपाई ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। ावतुतः श वालीला अदैत ीे मकसी भी ावतु करो दस ू रे से अलग ीाससा सम्भा ही सहीप है। ए ीूल मीलााा अपसा, स र दी े इत। पलक स पीछी फेररए, ज्य इवक अंग उप त।।४०।। हे साक ी! ्ह अपसा ीूल मीलााा है, हाँ धिाी धिसी के चराय ीे हीारे ीूल तस मारा ीास है। अपसी आसतीक दमष्ट से इसकी शरोभा देखख्े और अपसी पलकय करो कभी भी बन्द ीत कीससि ए, अकारत् अपसे और धिसी के बीच अन्् मकसी भी सांसाररक ावतु करो स आसे दीससि ए। ्मद आप ऐसा करते है तरो मसधशत ही आपके हद् ीे प्रेी पैदा हरो ा्ेगा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 481 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - ससि स प्रकार आँ खय की पलके बन्द कर लेसे पर मदखा्ी देसे ााली ावतु भी मदखसी बन्द हरो ाती है, उसी प्रकार ्मद हीारे हद् ीे धिसी के अधतररक मकसी अन्् ावतु की चाहत है तरो हीारा ध््ास धिसी से हट सकता है और हीे धिसी के दीदार से मीलसे ााले आसन्द से भी ांधचत हरोसा पड सकता है। इस चौपाई ीे ्ही बात ससिसखापस के रप ीे बता्ी ग्ी है। इशक पासे का ्ही सारती ीागर है मक ही इशक के सागर श्री रा ी की शरोभा करो हीेशा ही अपलक से्य से मसहारा (देखा) करे। रो ीूल सरप है अपसे, ाकरो कमहए परआती। सरो परआती ले् के, मालससिसए संग खसी।।४१८।। ीूल मीलााा ीे हीारी आतीा का ीूल वारप मारा ीास है, ससि से पराती कहते है। हीे ध््ास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 482 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी (धचतामस) ीे अपसे इस ीा्ा के सशर रप करो भुलाकर पराती करो ही अपसा वारप सीझसा चामहए और उसी भाा से ्गु ल वारप की शरोभा करो आतीा के धिाी हद् ीे बसासा चामहए। ऐसा करके ही ही आसन्द का रसपास कर सकते है। ीहाीत कहे ए ीरोमीसय, करं ीूल सरप बरसस। ीेहेर करी ीासूक से, ली रो रह के अन्तवकरस।।४२।। श्री ीहाीधत रा ी कहते है मक हे साक ी ! ीाशूक श्री ी से ीेरे ऊपर अपार ीेहर की है, ससि ससे अब ीेरी आतीा ीूल मीलााा ीे मारा ीास श्री रा श्ाीा ी के शरोभा-श्रृंगार का ाार स कर रही है। आप सभी इस श्रृंगार ाार स करो अपसी आतीा के धिाी हद् ीे धिारा करे। प्रकरा ।।७।। चौपाई ।।५३२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 483 / 992 श्री सागर टीका श्री रा श्री रा स वााीी ी करो ससिससगार दस ू ररो - ींगला चरा इस प्रकरा ीे श्री रा ी की शरोभा का ाार स मक्ा ग्ा है। असर तुीारा ीेरा मदल है, तुी आए कररो आराी। से मबछाई रच रच के, एही तुीारा माश्राी।।१८।। श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक हे धिाी धिसी ! ीेरा मदल (हद्) ही आपका परीधिाी है। इसीे मारा ीास हरोकर आप आराी कीससि ए। ीैसे बहुत ही प्रेीी्ी भााय ीे भरकर आपके खल्े अच्छी तरह से इस सेज (शैय्ा) करो मबछा्ा है। इसखल्े आप ीेरे धिाी हद् की से पर पधिारकर माश्राी कीससि ए। भाााकर - आणशक (आतीा) अपसे ीाशूक (श्री रा ी) करो अपसे धिाी हद् ीे बसाकर प्रेी करसा चाहती प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 484 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है, इसी ीे दरोसय का आसन्द णछपा हुआ है। ्दमप अकरातीत असन्त आसन्द के ीूल सरोत है, मकन्तु प्रेी लीला ीे ही उसका आसन्द फलीभूत हरोता है। इसे ही आराी ्ा माश्राी करसा कहा ग्ा है। कलश महन्दवु तासी का ्ह ककस "सुख देऊं सुख लेऊं, सुखे गाऊं साक" इसी ओर संकेत करता है। अपसे हद् ीे धिाी धिसी करो मारा ीास करसे के खल्े रो सेज्ा (से ) तै्ार की ग्ी है, उसीे तारती ञास का पलंग है, ईीास (अटू ट आवका ा माशास) का मबछौसा है, सीपर ा का तमक्ा है, तरो प्रेी की ीधिुरता एां सुगसन्धि से भरपूर फूलय से उसे सुसखजत मक्ा ग्ा है। असर क्ा मदल ीरोमीस, असर ीे सब मबसात। मसीख न््ारी क्य हरोए सके, रह मससबत हक ात।।२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 485 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्य का मदल ही धिसी का अशर (परीधिाी) हरोता है और परीधिाी ीे लीला रपी सारी साीगी (२५ पक) है। अकरातीत की अँगरपा हरोसे से धिसी से उसका असामद काल से ही अखणड सम्बन्धि है। ऐसी सवकधत ीे ाह अपसे प्राा ालभ से एक पल के खल्े भी कैसे अलग हरो सकती है, कदामप सहीप। इवक सुराही ले हाक ीे, मपलाओ आठय अपसी अंगसा ाी। रो असर की, ताए दी े अपसय ताी।।३।। ीेरे प्राा मप्र्ती! आप अपसे हाक ीे प्रेी (इशक) की सुराही लेकर हीारे हद् रपी प््ालय ीे आठय पहर उडेखल्े, तामक ही उसका रसपास कर सके। ही आपकी परीधिाी की अँगसा्े है , इसखल्े हीारे आहार (इशक) करो हीे दीससि ए। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 486 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - धिाी धिसी का मदल इशक की सुराही है और ब्सृमष्ट्य का मदल प््ाला है। अकरातीत ही अपसा प्रेी सभी सखख्य के मदल के अन्दर उडेलते है , ससि से इस चौपाई ीे दशार्ा ग्ा है। इली मद्ा आए अपसा, भे ी साहेदी अला कलाी। रहे म्खाांती हक की, सरो चाहे धिसी प्रेी काी।।४।। हे धिसी! आपसे वा्ं ही ीेरे धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर ब्ाााी का अातरा मक्ा। इसकी साकी भी आपसे १८१८०० ाषर पहले ीुहम्ीद सामहब के दारा कुरआस के रप ीे णभ ाा दी की। ब्सृमष्ट्ाँ तरो अपसे मप्र्ती अकरातीत के दीदार की प््ासी है। ाे तरो ीा् आपके अलौमकक प्रेी की इच्छुक है। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा ीे "प्रेी काी" शब्द प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 487 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्र्क ु हुआ है , ससि सका अकर हरोता है - मदव्् प्रेी। ्हाँ "काी" शब्द का प्र्रोग ाैकाररक (ीा्ा मसत) प्रेी के खल्े सहीप है, बसलक आतीा का परब् के साक मसराकार प्रेी के सन्दभर ीे मक्ा ग्ा है। "काी" का तातप्र इच्छा, चाहसा, ्ा काीसा करसे से है। आतीा परीातीा के अधतररक अन्् मकसी भी ावतु की काीसा सहीप करती, इसी प्रकार सधच्चदासन्द परब् भी अपसी अँगरपा अँगसाओं करो एक पल के खल्े भी अलग सहीप करते, इसखल्े इसके इस अखणड प्रेी करो "प्रेी काी" कहकर सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है। फुरीास ल्ा्ा दस ू रा, ाकरो सुक ी साी। दई तारती गााही ब्सृष्ट की, रो उतरी अव्ाल से धिाी।।५।। परब् के आदेश से साकी के रप ीे अातररत दस ू रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 488 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी गन्क श्रीीदागात् है, ससि से शुकदेा ी लेकर आ्े। उन्हयसे ीा्ा का खेल देखसे के खल्े परीधिाी से व रास ीे अातररत हरोसे ााली ब्सृमष्ट्य के पुसः श आसे तका तारती ञास के प्रकटस की साकी दी। भाााकर - श्रीीदागात् के दशी वकन्धि ीे परीधिाी की ब्सृमष्ट्य के साक अकरातीत की हरोसे ााली ब्लीला का ाार स है। इसे व लीला एां रास लीला के साी से धचम्त मक्ा ग्ा है। खखलात खासा असर का, बैठे बीच तखत व्ाीा व्ाी। ीवती दी े अपसी, ज्य गखलत हरोऊं ्ाही ठाी।।६।। परीधिाी के ीूल मीलााा ीे ससहासस पर आप ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा ी मारा ीास है। आपसे ीेरी एकीा् चाहसा ्ही है मक आप अपसे प्रेी की ऐसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 489 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीवती (रसधिारा) दीससि ए, ससि ससे ीै इस संसार ीे रहते हुए भी आपकी शरोभा-श्रृंगार ीे डू बी रहूँ। भाााकर - इस चौपाई ीे "्ाही ठाी" का तातप्र इस ब्ाणड से है, परीधिाी से सहीप, क्यमक "गखलत गा्" हरोसे का प्रसंग इस संसार ीे ही हरोता है। परीधिाी ीे तरो एकमदली है, हाँ प्रेी की अावका एकरस हरोती है। तुी खलख्ा फुरीास ीे, हक असर ीरोमीस कलूब। सरो सुकस पालरो अपसा, तुी हरो ीेरे ीेहेबूब।।७।। आपसे कुरआस ीे ्ह बात खलखी है मक ब्सृमष्ट्य का मदल ही अकरातीत का धिाी हरोता है। आप ीेरे मप्र्ती है। आपसे रो कुरआस ीे ाचस मद्ा है (खलखाा्ा है), उसका पालस कीससि ए अकारत् ीेरे धिाी हद् ीे आकर मारा ीास हरो ाइए। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 490 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - कुरआस के सूरा २ ीरोीसीस पारा ९ आ्त १८८६ ीे ्ह ारात है मक ब्सृमष्ट्य (ीरोमीसय) के धिाी हद् ीे सधच्चदासन्द परब् (अलाह तआला) का मसाास हरोता है। धिाी धिसी के आदेश से ही उसके रोश (ससि बरील) दारा कुरआस अातररत हुआ है, इसखल्े ्हाँ ्ह बात कही ग्ी है मक आपसे कुरआस ीे ऐसी बात खलखी (खलखाा्ी) है। और भी खलख्ा सीसूस करो, हक दरोवती ीे पातसाह। सरो कौल पालरो अपसा, ीै देखूं ीेहेबूब की राह।।८।। कुरआस ीे सीसूस बादशाह का प्रसंग खलखा है। उसीे आपसे (अलाह तआला से) सीसूस करो ्ह सन्देश मद्ा है मक "हे अहंकारी बादशाह! तू तरो झूठी ीा्ा का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 491 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बादशाह है और ीै अखणड से प्रेी करसे ाालय का बादशाह (वााीी) हूँ।" ीेरे मप्र्ती! ीेरे धिाी हद् ीे आ ाइए। ीै आपकी बाट देख रही हूँ। कुरआस ीे खलखाा्े हुए अपसे इस ाचसय करो पूरा कीससि ए। भाााकर - कुरआस के पा० १८ सू० २ आ० १८ से २८६ ीे ्ह प्रसंग आ्ा है मक सीसूस एक अत्ाचारी बादशाह का। ाह अपसे सी् के पैगम्बर तालूत से देष रखता का। ब सीसूस से सुसा मक तालूत सबकरो वागर ले ासे की बात करते है तरो उससे अपसे धिस के ीद ीे आकर एक कसलपत (कृम्ी) वागर बसाा्ा तका सारी प्र ा करो ्ह सन्देश मद्ा मक ीै वा्ं वागर का मसीारा करसे ीे सकी हूँ और सभी करो उसीे ले ाऊँगा। आप सभी तालूत से करोई भी सम्बन्धि स रखे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 492 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अपसे बसाा्े हुए वागर ीे ब ाह प्राेश करसे लगा तरो स ै े ही उसका एक पैर अन्दर और एक पैर वागर के बाहर का, अ राईल (ीृत्)ु से उसके प्राा हर खल्े। इस ककासक ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है मक अलाह तआला से अपसे प्रेीी तालूत की ला रखी और सीसूस के अहंकार करो तरोड मद्ा, अकारत् धिाी धिसी सीसूस रपी दजाल (अञास) करो ीारकर ब्सृमष्ट्य से प्रेी करते है और पल-पल उसके धिाी हद् ीे मारा ते है। कहूं अबलय ाहेर सा हुई, असर बका हक सूरत। महरदे आओ तरो कहू,ं इत बैठरो बीच तखत।।९।। ीेरे धिाी धिसी! आ मदस तक इस ब्ाणड ीे कहीप भी परीधिाी और आपकी शरोभा-श्रृंगार का ाार स सहीप हरो सका का। अब आप ीेरे धिाी हद् के ससहासस पर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 493 / 992 श्री सागर टीका आकर मारा ीास हरो श्री रा स वााीी ाइए, तामक ीै आपकी शरोभा का ाार स कर सकँू । ए ा ूद स खूबी खााब की, ए कदी हक बका के। ढू ंढ्ा बु रकय इपदाए से , इत ाहेर स हुए कबूं ए।।१८०।। मप्र्ती के ससि स वारप का ्ह ाार स हरोसे ा रहा है, ाह वाप्स का पञभूतातीक तस सहीप है। धिसी के ्े सूरी चरा कील उस अखणड परीधिाी के है, ससि से इस संसार के बडे-बडे ञासी एां भक स शुर से ही खरो ते-खरो ते कक ग्े, मकन्तु कभी भी मकसी करो इस शरोभा-श्रृंगार का ञास प्राप सहीप हरो सका। उजल लाल तली पाउं की, रंग रस भरे कदी। छब सलूकी अंग असर की, रह से छूटे क्य दी।।१८१८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 494 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मप्र्ती के दरोसय चराय की तखल्य ीे उजालता और लाखलीा का मीश्रा है। ्े दरोसय चरा कील परीधिाी के प्रेी और आसन्द से भरपूर है। इस अंगय की शरोभा सुन्दरता परीधिाी की है, रो एक पल के खल्े भी आतीा से सहीप छूट सकती। भाााकर - इस चौपाई के चौके चरा ीे कहा ग्ा है मक धिसी के चराय से एक पल के खल्े भी आतीा की दमष्ट अलग सहीप हरो सकती, मकन्तु ्ह प्रश हरोता है मक मस्ा, भरो स, ाातारलाप, एां अन्् लौमकक का्र ीे मसधशत ही हीारा ध््ास धिसी से हट ाता है। ऐसी सवकधत ीे ब्ाााी का ्ह ककस कहाँ तक उधचत है? इसका सीाधिास ्ह है मक मस्ा, भरो स, एां ाातारलाप आमद का्र ीे हीारी इसन्््ाँ , अन्तः शकरा, एां ीा ही भाग लेते है। आतीा ीा् दष्टा है। उसकी दमष्ट भले ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 495 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस ीा्ााी खेल करो देख रही हरोती है, मकन्तु ब उसके धिाी हद् ीे एक बार ्गु ल वारप की छमा बस ाती है तरो ाह हीेशा के खल्े अखणड हरो ाती है तका एक पल के खल्े भी आतीा से अलग सहीप हरो पाती। सांसाररक मक्र्ा-कलापय ीे भी आतीा से ्गु ल वारप की छमा अलग सहीप हरोती , करो उसकी मावीृधत (भूल) हरो बमक ीा के अन्तः शकरा ाती है। ्हाँ ्ह ध््ास रखसे ्रोग् तर् है मक ीा के अन्तः शकरा तका आतीा के अन्तः शकरा दरोसय ही अलगअलग है। धचतामस की अावका ीे आतीा के सम्बन्धि से ीा करो भी धिसी की शरोभा का आसन्द प्राप हरोता है , ससि सके कुछ अंश का आभास अन्तः शकरा करो हरोता है, रो उसे लौमकक मक्र्ाओं ीे भुला देता है। इसके मापरीत आतीा के अन्तः शकरा ीे ाह शरोभा अखणड रप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 496 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से मादीास रहती है और मस्ा आमद मक्र्ाओं ीे भी उससे अलग सहीप हरो पाती। ब आतीा पराती का प्रधतमबम्ब है, तरो तारती ञास के प्रकाश तका धचतामस से अशर मदल की शरोभा करो धिारा करसे ााली आतीा भला अपसे मप्र्ती की शरोभा करो कैसे भुला सकती है। मीहीप लीके चरसय तली, रह के महरदे से छूटत साहे। ए मससबत भई असर की, खलखी रह के ताले ीाहे।।१८२।। धिसी के चराय की तखल्य ीे रो ीहीस (बारीक) रेखा्े है, उसकी इतसी सुन्दरता है मक आतीा के हद् से कभी भी अलग सहीप हरो पाती। इस प्रकार का अलौमकक सौभाग् ब्सृमष्ट्य करो इसखल्े प्राप है , क्यमक परीधिाी से उसकी आतीा का अखणड सम्बन्धि है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 497 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सख अंगूठे अंगुरर्ां, ससिसफत स परोहयचे सुकस। आसीास ससि ीी के बीच ीे, रह ्ाही ीे देखे ररोसस।।१८३।। श्री रा ी के साखूसय, अँगूठय, और अँगुखल्य का सौन्द्र इतसा अधधिक (असन्त) है मक उसका ाार स ्हाँ के शब्दय से हरो पासा सम्भा ही सहीप है। इसकी सूरी्ी ज्रोधत आतीा करो परीधिाी के आकाश और धिरती के बीच ीे चारय ओर फैलती हुई मदखा्ी पडती है। एक छरोटे सख की ररोससी, ऐसा धतस का सूर। आसीास ससि ीी के बीच ीे, ससि ीी रे रा भई सब सूर।।१८४।। एक छरोटे से साखूस ीे इतसी अधधिक ज्रोधत है मक उसके सूर से सम्पूार धिरती और आकाश प्रकाणशत हरो ाते है। ाहाँ की धिरती का एक-एक का सू्र के सीास प्रकाणशत हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 498 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी देख सलूकी अंगूठय, और अंगुरर्य सलूकी। उतरती छरोटी छरोटेरी, रो महरदे ीे छमब फबी।।१८५।। अँगुखल्य की बसााट ऐसी है मक ीध््ीा अँगुली से अँगूठे तका असामीका अँगुली तक क्रीशः श दरोसय ओर आकार छरोटा हरोता ग्ा है। इसके अलौमकक सौन्द्र करो मसहारसे पर इसकी शरोभा हद् करो बहुत भाती है (अच्छी लगती है)। भाााकर - अँगूठे से लेकर अँगुखल्य के साी क्रीशः श इस प्रकार है- त र सी, ीध््ीा, कमसमषका, और असामीका। सबसे छरोटी अँगुली असामीका कहलाती है, बमक ीध््ीा अँगुली के दरोसय ओर की अँगुखल्ां त र सी और कमसमषका प्रा्ः श सीास हरोती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 499 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लाल सरी उजल अंगुरी, फसा टांकस घूट ं ी काडय। आठय ाी रस बका, परोहयचे रह के तालू ीय।।१८६।। दरोसय चराय की अँगुखल्ां बहुत ही करोील है। उसका रंग लाखलीा मीणश्रत उजालता खल्े हुए है। चराय के पँ य, टखसय, घूट ं ी, तका काडे की शरोभा अलौमकक है। इन्हीप चराय से परीधिाी के प्रेी का रस ब्सृमष्ट्य के तालू ीे अष्ट प्रहर पहुँचता रहता है , अकारत् ब्सृमष्ट्ाँ धिसी के चरा कीलय करो अपसे धिाी हद् ीे बसाकर अखणड प्रेी का मसरन्तर रसपास करती है। लाल लांके लाल एमड्ां, पांउं तली अधत उजल। ए पांउं बसत ससि स है्डे, सरोई आससिसक मदल।।१८७।। दरोसय चराय की एमड्य का रंग लाल है। दरोसय तखल्ाँ भी बहुत उजाल (वाच्छ) है। एडी तका तली के बीच प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 500 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का गहराई ााला भाग (लाँक) भी लाखलीा से भरपूर है। ससि सके हद् ीे धिसी के इस चराय का सौन्द्र बस ाता है, मसधशत रप से उन्हीप के मदल करो आणशक कहलासे की शरोभा मीलती है। भाााकर - चरा की एडी, लाँक, तका तलुाय का रंग एक सीास है अकारत् लाखलीा मीणश्रत उजालता खल्े है। इस चौपाई ीे तली करो उजाल कहसे का अणभप्रा् वाच्छता से है, ीा् सफेदी से सहीप। बसत सुखाले सरीाई ीे, आसीास लग ररोसस। ए पांउं प््ारे ीासूक के, रो करोई आससिसक ीरोमीस।।१८८।। धिसी के ्े चरा कील बहुत ही करोील है और सुख का भणडार है। इसकी सूरी आभा आकाश तक उ ाला करती है। रो भी धिसी का सच्चा प्रेीी (आणशक) हरोता है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 501 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसे ्े चरा कील बहुत ही प््ारे लगते है। आससिसक बसत असर तले, ्ा बसे असर के ीाहे। ए खस ु बरोए ीवती असर की, मससमदस पीाे ताहे।।१८९।। धिसी के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली ब्सृमष्ट्य का ध््ास हीेशा ही हद-बेहद से परे परीधिाी की ओर रहता है। ाे परीधिाी के पच्चीस पकय तका ्गु ल वारप की शरोभा ीे खरो्ी रहती है। इस प्रकार उन्हे मदस-रात परीधिाी के प्रेी की सुगसन्धि का रस मीलता रहता है और ाे उसके आसन्द ीे डू बी रहती है। भाााकर - इस चौपाई के पहले चरा ीे कणकत "असर तले" का तातप्र परीधिाी की ओर केसन््त हरोसे से है। ीा् धचतामस (आती-दमष्ट से देखसे) से ही परीधिाी के ाावतमाक आसन्द का रसपास मक्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा सकता है। 502 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुन्दर सलूकी छब सरोणभत, रंग रस प््ार भरे। सरोई ीरोमीस असर मदल, ससि त इस हके कदी धिरे।।२०।। ीा् उसी ब्सृमष्ट का मदल अशर (परीधिाी) कहा ाता है, ससि सके अन्दर धिसी के ाे चरा कील मारा ीास हरो ाते है ससि सकी शरोभा अधत सुन्दर और करोील है तका ररोी-ररोी ीे प्रेी और आसन्द का रस भरा हुआ है। भाााकर - इस चौपाई के ककस से ्ह संश् हरोता है मक क्ा सभी ब्सृमष्ट सुन्दरसाक का मदल धिसी का अशर सहीप हरोता है ? ्मद ऐसा ही है तरो "हक स ीक सेहेरग से" कहसे का क्ा अकर है? इसका सीाधिास इस प्रकार है मक ससि स प्रकार ल तता ीे ्ा लकडी ीे अम् णछपी रहती है , मकन्तु ल करो अम् सहीप कहा ा सकता क्यमक दरोसय ीे मापरीत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 503 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी गुा मदखा्ी पडते है, उसी प्रकार सभी आतीाओं के धिाी हद् ीे धिसी का मसाास अाश् हरोता है , मकन्तु ब तक मक्र्ातीक रप से मारह ीे डू बकर धिसी की शरोभा करो आतीसात् सहीप मक्ा ाता तब तक उसे अशर मदल की संञा सहीप प्राप हरो सकती। इसके खल्े अपसे कौल, फैल, हाल, ा ूद, तका मसवबत करो धिसी के साक रोडसा अमसाा्र है। इसका कारा ्ह है मक आतीा का मदल ीा के मदल से ुडकर मप्र्ती से माीुखता का असुभा करता रहता है। ए सुख देत असर के, करोई साहीप मसीूसा इस। ए सुख ासे अराा असर की, मससबत हकसय ससि स।।२१८।। धिसी के ्े चरा कील सुन्दरसाक करो परीधिाी के उस सुखय का रसपास कराते है , ससि सकी तुलसा ीे इस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 504 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी संसार का करोई भी सुख सहीप है। ीा् परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ ही इस सुख की गररीा करो ासती है क्यमक धिसी के चराय से इसका ही अखणड सम्बन्धि हरोता है। रहे इवक ीांगे धिसी पे, पकड धिसी के कदी। रो छरोडे इस कदी करो, सरो क्य कमहए आससिसक खसी।।२२।। ब्सृमष्ट्ाँ धिसी के चरा पकडकर अपसा प्रेी (इशक) ीाँगती है। रो धिाी धिसी के चराय (ईीास) से वा्ं करो दरू कर ले, उसे मप्र्ती की सच्ची चाहत रखसे ााली (आणशक) कहा ही सहीप ा सकता। भाााकर - इस चौपाई ीे चरा पकडसा आलंकाररक भाषा है। इसका तातप्र है - मप्र्ती अकरातीत के प्रधत अटू ट श्रदा ा माशास रखसा। ्हाँ लौमकक रीधत से चरा पकडसे का करोई प्रसंग सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 505 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरी तली लाल उजल, आससिसक एही धिसी ससि स छरोडाइ्रो कदी, श्री रा ीास। ाहेर ्ा बातस।।२३।। ी के दरोसय चराय की तखल्ाँ (तलुाे) बहुत ही करोील है। उसका रंग लाखलीा तका उजालता का मीश्रा खल्े हुए है। धिसी के ्े खूबसूरत चरा कील ही तरो ब्सृमष्ट्य के ीास के आधिार है , अकारत् उसके मबसा ब्सृमष्ट रह ही सहीप सकती। श्री ीहाीधत ी की आतीा ्ह मसाेदस करती है मक हे ीेरे मप्र्ती! आप इस चराय करो ीुझसे बा् ्ा आन्तररक मकसी भी रप से अलग स कीससि ए। भाााकर - इस चौपाई ीे ीास का तातप्र सार वा (प्राााधिार) से है। ब्सृमष्ट्य के खल्े धिसी के चराय से दरू रहसा मकसी भी सवकधत ीे सम्भा सहीप है। ससि स प्रकार सागर के मबसा लहरय और चन््ीा के मबसा चाँदसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 506 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का करोई असवतता सहीप है , उसी प्रकार धिसी के चरा कील ही ब्ातीाओं के आधिार है। ्हाँ प्रत्क ( ामहर) ्ा पररोक (बाधतस) का तातप्र इस प्रकार हैीूल मीलााा ीे धिसी के सम्ीुख हरोकर बैठसा ही प्रत्क रप से धिसी के चराय करो पकडे रहसा है। इसी प्रकार इस खेल ीे आतीाओं का हद् (मदल) ही धिसी का परीधिाी है, ससि सीे ीूल मीलााा भी सवकत है। उसीे ही अपसे प्रााालभ करो बसा लेसा पररोक (बाधतस) रप से धिसी के चराय से वा्ं करो रोडे रखसा है। दस ू रे शब्दय ीे श्रीीुखाााी के ञास दारा धिसी पर अटू ट श्रदा ा माशास रखसा ामहरी (ब् ्ा प्रत्क) रप से धिसी के चराय करो पकडसा है तका मारह-प्रेी ीे डू बकर मदल ीे धिसी करो बसासा बाधतसी (पररोक) रप ीे धिसी के चराय करो आतीसात् करसा (पकडसा) है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 507 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प््ारे कदी राखय छाती मीसे, और राखय सैसय पर। ससिसर ऊपर खलए मफरय, बैठरो मदल करो असर कर।।२४।। ीेरे प्राा मप्र्ती! आप ीेरे हद् करो ही अपसा परीधिाी बसाकर मारा ीास हरोइए, तामक ीै आपके चरा कीलय करो अपसी छाती से धचपकाए रखँू। ीै आपके करोील चराय करो अपसे से् की पलकय पर मबठाए रखसा चाहती हूँ। ीेरी ्ह भी चाहसा है मक ीै आपके चराय करो अपसे ससिसर पर रखकर चारय ओर घूीा करँ। भाााकर - ब मकसी बहुत ही मप्र् ावतु करो अपसी छाती से धचपका्ा ाता है, तरो ऐसा प्रतीत हरोता है मक ाह अन्दर प्राेश करते हुए हद् ीे आकर मारा ीास हरो ग्ी है। इस चौपाई के पहले चरा के अन्दर धिसी के चराय करो छाती के अन्दर रखसे का ्ही भाा है। से्य की पलकय पर मबठासा बहुत ही प्रेी का पररचा्क प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 508 / 992 श्री सागर टीका है, श्री रा स वााीी रो ीुहामारे की भाषा ीे कहा ग्ा है। इसी प्रकार ससिसर पर बैठा्े रखसा चराय के प्रधत श्रदा और सम्ीास करो प्रदरशत करसा है। तखत धिर्ा हके मदल ीे, राखूं मदल के बीच सैसस। धतस सैसय बीच सैसा रह के, राखय धतस सैसय बीच तारस।।२५।। अब मप्र्ती अकरातीत का ्गु ल वारप ससहासस समहत ीेरे धिाी हद् ीे मारा ीास हरो ग्ा है। ीै इस ीरोमहसी शरोभा करो अपसे मदल के से्य ीे बसाकर रखसा चाहती हूँ। मदल के इस से्य के बीच ीे ीेरी आतीा के से् है, ससि सके तारय ीे ीै अपसे प्रााालभ करो बसा्े रखसा चाहती हूँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 509 / 992 श्री सागर टीका धतस तारय बीच श्री रा स वााीी रो पुतली, धतस पुतखल्य के सैसय ीाहे। राखूं धतस सैसय बीच णछपाए के, कहूं ासे स देऊँ क्ाहे।।२६।। ीेरी आतीा के तारय ीे रो पुतखल्ाँ है, उस पुतखल्य के सैसय के बीच ीे ीै अपसे प्रााेशर करो णछपाकर रखसा चाहती हूँ और उन्हे कहीप भी मकसी तरह से अन््् सहीप ासे दँगू ी। भाााकर - ससि ससे देखा ाता है, उसे से् कहते है। इस लीला ीे पराती का मदल, आतीा तका उसका मदल सभी मक्र्ाशील है। ्दमप लीला रप ीे इसीे भेद करसा पडता है, मकन्तु परीधिाी की ाहदत ीे ीूलतः श इसीे करोई भी भेद सहीप है। ्ह बात श्रृंगार गन्क की इस चौपाइ्य से अच्छी प्रकार सीझी ा सकती है- ज्य सूरत मदल देखत, त्य रह रो देखे सूरत। तरो बेर सहीप रह लजत, तेरे अंग ात मससबत।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 510 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी फरक सहीप मदल रह के, एतरो दरोऊ रहे महल मील। असर ीे रो रह है, तरो हके कह्ा अरस मदल।। ससिससगार २२/८०,८१८ मदल ीरोमीस असर तस बीच ीे, उस मदल बीच ए मदल। केहेसे करो ए मदल है, है असर मदल असल।। ससिससगार २६/१८४ सागर गन्क ८/२५,२६ ीे मदल के सैस , आतीा के सैस, आतीा के सैसय के तारय , तका उसीे सवकत पुतखल्य के सैसय का ाार स मक्ा ग्ा है। इसका बाधतसी भेद ्ह है मक आतीा के धिाी हद् ीे धिसी की शरोभा बसा्ी ाती है और असुभा मक्ा ाता है, इसखल्े उसे से् की संञा प्राप हैताके महरदे आती के लीससि ए, बीच साक सरप सूरत स दी े टू टसे, फेर फेर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ुगल। ाइए बल बल।। 511 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर १८१८/४६ आती-दमष्ट से देखसे के कारा आतीा करो से् कहा ाता है, मकन्तु उसीे मसमहत तारा ही पराती का वारप है। ससि स प्रकार तारा के मबसा से् का असवतता सम्भा सहीप है , उसी प्रकार पराती के मबसा आतीा का वारप भी ससिसद सहीप हरो सकेगा। परीधिाी ीे पराती के मदल से ही सारी लीला चलती है, इसखल्े पराती के मदल करो आतीा रपी सैस की पुतली कहा ाता है। इसी के दारा सम्पूार लीला दमष्टगरोचर हरोती है। ्दमप पराती के मदल से धिसी की शरोभा कदामप अलग सहीप हरो सकती , मकन्तु इस चौपाई ीे उसे स छरोडसे (अखणड रखसे) का ककस गहस प्रेी की अणभव््मक है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 512 / 992 श्री सागर टीका ाके चरस श्री रा स वााीी ुदे हयए, सरो आससिसक खरोले क्य सैस। ए सैस का्ी सूर ीाल के, ासय आससिसक पााे सुख चैस।।२७।। अपसे से्य ीे मप्र्ती की बसी हुई शरोभा करो भला परीधिाी की ब्सृमष्ट कैसे छरोड सकती है। धिसी के ्े सूरी से् असारत ही प्रेी रस की ाषार करते है , ससि ससे आणशक ब्सृमष्ट्य करो प्रेी के आसन्द का रस प्राप हरोता है। भाााकर - इस चौपाई ीे चराय का तातप्र सम्पूार श्रृंगार से है, ीा् बा् चराय से ही सहीप। से्य करो बन्द कर लेसे का भाा है- मप्र्ती की शरोभा करो बसा लेसा। ससि स प्रकार ही अपसे बा् से्य करो बन्द कर हद् के आन्तररक से्य से धिसी करो देखते है और बा् से्य करो खरोलते ही आन्तररक से्य से मदखसा बन्द हरो ाता है , उसी प्रकार का भाा इस चौपाई ीे व््क मक्ा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 513 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक अंग छरोड द ू े अंग करो, क्य आससिसक लेसे ाए। ए कदी छरोडे ीासूक के, सरो आससिसक क्य केहेलाए।।२८।। धिसी करो चाहसे ााली (आणशक) ब्सृमष्ट मप्र्ती के एक अंग की शरोभा करो छरोडकर दस ू रे अंगय ीे सहीप उलझती। ाह ब्सृमष्ट भला कैसे आणशक कहला सकती है रो मप्र्ती के इस सूरी चराय करो छरोडकर कहीप और स र कर ले। भाााकर - इस चौपाई का भाा ्ह कदामप सहीप सीझसा चामहए मक ब्सृमष्ट्ाँ धिसी के ीा् एक ही अंग की शरोभा करो देखती है। ्मद ऐसा है तरो सागर-श्रृंगार गन्क ीे श्री रा ी का सख से णशख तक सात बार श्रृंगार का ाार स कैसे हुआ। इस चौपाई का ीूल भाा ्ह है मक परीधिाी की ाहदत ीे सभी अंगय का सौन्द्र बराबर है। असन्त सौन्द्र ााले मकसी भी अंग की तरफ ्मद आतीा की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 514 / 992 श्री सागर टीका स र श्री रा स वााीी ाती है, तरो ाह उसीेे इस प्रकार डू ब ाती है मक उससे मसकल पासा उसके खल्े सम्भा ही सहीप हरोता। एक रह लगी एक अंग करो, सरो क्य पकडे अंग दरोए। ीासूक अंग दरोऊ बराबर, क्य छरोडे पकडे अंग सरोए।।२९।। ्मद करोई आतीा धिसी के मकसी अंग की शरोभा करो देखती है, तरो उसे छरोडकर ाह अन्् अंगय की तरफ सहीप देख पाती। श्री रा ी के सभी अंगय की शरोभा बराबर हरोती है, इसखल्े एक करो छरोडकर दस ू रे करो पकडसा (देखसा) सम्भा सहीप हरोता। भाााकर - इस ीा्ााी गत ीे कुछ सी् के पशात् मकसी भी ावतु से ऊबाऊपस ्ा सीरसता का अहसास हरोसे लगता है, मकन्तु परीधिाी ीे ऐसा सहीप है। ाहाँ की प्रत्ेक ावतु ीे सीास रप से सौन्द्र , प्रेी, और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 515 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आसन्द भरा हुआ है। ्दमप आतीा्े अपसे मप्र्ती के सख से णशख तक सभी अंगय करो देखती है , मकन्तु सीरस भाा से एक-एक करो छरोडकर सहीप, बसलक प्रेी और सौन्द्र के एक अकाह सागर ीे डु बकी लगाते हुए देखती है। इस चौपाई का ीूल भाा ्ही है। रो करोई अंग हलका लगे, और द ू ा भारी हरोए। एक अंग छरोड द ू ा लेाहीप, पर आससिसक स हलका करोए।।३०।। ्मद ीाशूक का करोई अंग दस ू रे अंग से सौन्द्र आमद गुाय ीे की हरो , तब तरो उसे छरोडकर दस ू रे की तरफ स र उठासे की बात सरोची भी ा्े। परीधिाी की एकमदली ीे सभी अंगय की शरोभा सीास हरोती है , इसखल्े आतीाओं के खल्े मकसी एक अंग की शरोभा करो छरोडकर (सीरसता के कारा) दस ू रे अंग की शरोभा ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 516 / 992 श्री सागर टीका लग श्री रा स वााीी ासे का प्रश ही सहीप हरोता। द ू ा अंग आ्ा सहीप, तरो लय एक अंग क्य छूटत। ्य और अंग ले सा सके, एकै अंग ीे गखलत।।३१८।। ब तक आतीा की दमष्ट ीे दस ू रे अंग की शरोभा स आ ा्े, तब तक ाह पहले ााले अंग की शरोभा करो कैसे छरोड सकती है। ाह तरो एक ही अंग के असन्त सौन्द्र ीे इस प्रकार डू ब ाती है मक उसे छरोडकर दस ू रे अंगय की तरफ देखसे की सुधि ही सहीप रहती। रो आससिसक भूखस पकडे, सरो भी छूटे स आससिसक से। देख भूखस हक अंग के, आससिसक सुख पााे ्ाीे।।३२।। ्मद आतीा अपसे मप्र्ती के अंगय ीे सुशरोणभत मकसी आभूषा करो देखती है, तरो ाह उसीे ही डू ब प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती है 517 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और उसे छरोड सहीप पाती। धिसी के अंगय ीे शरोभा्ीास आभूषाय की सुन्दरता करो देखकर आतीाओं करो असन्त आसन्द प्राप हरोता है। भाााकर - सूरी परीधिाी ीे आभूषा भी धिसी के अंगय की ही शरोभा हरोते है। ाे पहसे ्ा उतारे सहीप ाते। उसकी शरोभा भी धिसी के अंगय के सीास हरोती है। हकके अंग के सुख रो, सरो ड भी छरोडे साहे। तरो क्य छरोडे अराा असर की, हक अंग आ्ा महरदे ीाहे।।३३।। प्रााालभ अकरातीत के अंगय से मीलसे ााले सुख करो ब ड ावतुएँ भी सहीप छरोडतीप, तरो भला परीधिाी की ाे ब्सृमष्ट्ाँ कैसे छरोड सकती है, ससि सके धिाी हद् ीे धिसी के चरा कील (सम्पूार वारप) मारा ीास हरोते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 518 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - परीधिाी ीे सार ् ही चेतसता और एकमदली है, इसखल्े ाहाँ ड साी की करोई ावतु है ही सहीप। ाहाँ की हाा, धिरती, दीाारे, कम्भे आमद भी मप्र्ती अकरातीत के सौन्द्र सागर ीे वा्ं करो डु बरो देते है। हेी संग सब चेतस, असर ससि ीी ड सा करोए। मदल चा्ा हरोत सब ची का, ची एकै से सब हरोए।।३४।। परीधिाी ीे ड साी की करोई ावतु है ही सहीप। ाहाँ की धिरती, सरोसा, तका ााहरातय के सग आमद सभी चेतस है। ाहाँ मदल की इच्छासुसार सभी ावतुओं का रप प्रकट हरो ाता है। धिाी ीे एकीा् सूर तता से ही सभी पदाकर का वारप दमष्टगरोचर हरोता है। भाााकर - ससि स प्रकार इस संसार ीे ीरोहतता से सीवत सृमष्ट प्रकट हरोती है, उसी प्रकार सम्पूार परीधिाी के २५ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 519 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पक धिाी धिसी की ीाररफत (परीसत्) के हकीकत (सत्) ीे प्रकट रप है। ाहाँ सरोसा, हीरा, और मीटी ीे ीूलतः श करोई भेद सहीप है। सब रंग गुस एक ची ीे, सरी रोत खस ु बरोए। सब गुस रखे हक ाावते, सुख लेाे हक का सरोए।।३५।। परीधिाी की प्रत्ेक ावतु ीे अन्् सभी ावतुओं के रंग और गुा णछपे हरोते है। प्रत्ेक ावतु ीे करोीलता , ज्रोधत, और सुगसन्धि भरी हरोती है। श्री रा ी करो ररझासे के खल्े ही इस ावतुओं ीे ्े गुा हरोते है। आती-वारप ्े सभी ावतुएँ धिाी धिसी के प्रेी और आसन्द का सुख लेती है। भाााकर - परीधिाी की प्रत्ेक ावतु (हाा, धिरती, कम्भ, दीाारे आमद) आतीा का ही वारप है। ्े सभी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 520 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ावतुएँ अपसे आती-वारप से प्राा मप्र्ती अकरातीत करो ररझा्ा करती है और उसके आसन्द ीे ी् रहा करती है। आससिसक एक अंग अटके, धतसकरो एह कारस। दरोऊ अंग ीासूक के, मकस छरोडे लेाे मकस।।३६।। धिसी के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली ब्सृमष्ट्य के खल्े एक ही अंग की शरोभा ीे अटके रहसे का कारा ्ह है मक श्री रा ी के सभी अंगय की शरोभा सीास है। ऐसी सवकधत ीे प्रश ्ह हरोता है मक मकसकरो पकडे और मकसकरो छरोडे, अकारत् मकसकरो देखे और मकसकरो स देखे। इस चौपाई ीे दरो अंगय का भाा तुलसातीक रप ीे है। इसका तातप्र सभी अंगय से है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 521 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सूर मबसा अंग करोई सा देख्ा, और सब अंगय बरसत सूर। अंबर ीे स सीाए सके, इस अंगय का श्री रा हूर।।३७।। ी का ऐसा करोई भी अंग सहीप है , रो सूरी्ी स हरो। उसके सभी अंगय ीे सूर ही सूर दमष्टगरोचर हरोता है। उसके अंगय से इतसा अधधिक सूरी प्रकाश फैलता है मक ाह आकाश ीे भी सहीप सीा पाता। एक अंग ीासूक के कई रंग, धतस रंग रंग कई तरंग। एक लेहेर परोहयचााे उीर लग, ्य छूटे स आससिसक से अंग।।३८।। ीाशूक श्री रा ी के एक ही अंग ीे असेक प्रकार के रंग हरोते है। उस रंगय ीे प्रत्ेक रंग की असेक प्रकार की तरंगे (लहरे) मसकलती है। ्मद एक ही लहर के सौन्द्र का आसन्द खल्ा ा्े तरो ्हाँ की सम्पूार आ् ु बीत ा्ेगी। इस प्रकार आणशक ब्सृमष्ट्य के मदल से धिसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 522 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के अंगरोे की शरोभा अलग सहीप हरो पाती। रो कदी ीेहेर करे ीासूक, तरो द ू ा अंग देाे मदल आस। तरो सुख लेाे सब अंग करो, रो सब सुख देाे सुभास।।३९।। ब कभी रा ी ीेहर करते है, तरो आतीा के मदल ीे अपसे दस ू रे अंग की शरोभा अातररत कर देते है। इस प्रकार धिाी धिसी ब अपसे सभी अंगय का सुख देसा चाहते है, तरो ाह आतीा अपसे मप्र्ती के सभी अंगय का सुख प्राप कर लेती है। भाााकर - इस चौपाई से ्ह वपष्ट है मक श्री रा ी के एक अंग ्ा सभी अंगय के दीदार का सुख उसकी ीेहर एां हुकी (कृपा तका आदेश) पर ही मसभर र करता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 523 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो कदी आससिसक खरोले सैस करो, पेहेले हाकय पकडे दरोऊ पाए। ए सैसै अंग सूर ीाल के, सरो इस आससिसक से क्य ाए।।४०।। ब कभी ब्सृमष्ट अपसे आसतीक से्य से मप्र्ती करो देखती है, तरो सबसे पहले अपसे दरोसय हाकय से धिसी के दरोसय चरारोे करो पकडती है। धिसी के से् तरो प्रेी के सागर है, भला आतीा उसका दीदार क्य सहीप करेगी। भाााकर - धिसी के दरोसय चराय करो पकडसा भााातीक और आलंकाररक अणभव््मक है। धचतामस की प्रमक्र्ा ीे प्रा्ः श ऐसा मक्ा ाता है, मकन्तु वालीला अदैत परीधिाी ीे चराय ीे प्रााी करसे की प्राृखत सहीप हरोती। इस चौपाई ीे से्य करो खरोलसे की बात कही ग्ी है तका इसी प्रकरा की सताइसाीप चौपाई ीे भी से्य करो खरोलसे की बात कही ग्ी है, मकन्तु दरोसय ककसय ीे बहुत अन्तर है। इस प्रकरा की चौपाई २७ ीे बा् से्य करो बन्द प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 524 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करसे और आसतीक से्य करो खरोलसे का प्रसंग है , तरो चौपाई ४० ीे ीा् आसतीक से्य करो खरोलकर दीदार करसे का प्रसंग है। ।। ींगला चरा सम्पूार ।। इ ार रो सीली लामह की, सेफा लाल अतलस। सेफे बेल ीरोहरोरी कांगरी, क्य कहूं संग री असर ।।४१८।। श्री रा ी की इ ार हरे रंग की है और उसका सेफा लाल रेशी का बसा हुआ है। सेफे पर लताओं और ीरोहरी ीे काँगरी की शरोभा है। उसीे वाार ी्ी तारय से डे हुए परीधिाी के सूरी्ी सगय की शरोभा का ीै ाार स कैसे करँ। भाााकर - लाल और सीले रंग करो मीलासे पर हरा रंग उतपन्न हरोता है। ्दमप इ ार का रंग सीला है , मकन्तु प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 525 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसीे लाल रंग की आभा पडसे से हरा रंग दमष्टगरोचर हरोसे लगता है। पा् ाीे की डरोरी (साडा) डालसे की गह करो सेफा कहते है। काडय पर पीडी तले, मीहीप चूडी सरोणभत इ ार। रोत करे ीाहे दाास, झांई उठे झलकार।।४२।। पैरय की मपणडली के सीचे ााले भाग (काडे) ीे इ ार की ीरोहरी आ्ी है, ससि सीे ीहीस चुन्नटे शरोभा दे रही है। सफेद ाीे के अन्दर से इ ार की ज्रोधत झलकार कर रही है और उसकी झलक वपष्ट रप से स र आ रही है।ै भाााकर - ्दमप "झांई" का अकर प्रधतमबम्ब भी हरोता है, मकन्तु ्हाँ पर झलक मीलसे से भाा है, क्यमक प्रधतमबम्ब दपर ा और ल आमद ीे बसता है। पारदशर कपडे के अन्दर अंग ्ा ास की झलक ही मदखा्ी देती प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 526 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। इ ार बंधि संग कई रंग, और कई कांगरी बेल ीाहे। फूल पात कई सकस, सब्द स परोहयचे ताहे।।४३।। पा् ाीे करो बाँधिसे ााली डरोरी (इ ारबन्द) ीे असेक रंग के सग डे हुए है। इसीे असेक प्रकार की काँगरी और बेलय की शरोभा है , ससि सीे असेक प्रकार के फूलय और पखत्य की सकशकारी (धच्ांकस) है। इसकी शरोभा का ाार स करसे के खल्े संसार के शब्दय ीे साीर्र सहीप है। कई रंग संग ीाहे रेसी, रंग संग धिागा स सूझत। हाक करो कछू लगे सहीप, सरी रोत अतंत।।४४।। इस रेशीी इ ारबन्द ीे असेक प्रकार के रंग है तका प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 527 / 992 श्री सागर टीका बहुत से सग भी श्री रा स वााीी डे हुए है। इस सूरी्ी साडे की शरोभा ऐसी है मक इसके रंगय, सगय, तका धिागे का पता ही सहीप चल पाता। हाक से छूसे पर हाक ीे भी सग ्ा धिागा सहीप आ पाता। इसकी करोीलता तका ज्रोधत असन्त है। अतंत साडी फुन्दस, रोत करो साहीप पार। एही ासय भूल अपसी, सरोभा ल्ाइए ीाहे सुीार।।४५।। साडे के फुन्दसय से ऐसी असन्त ज्रोधत प्रकट हरो रही है मक उसकी करोई सीीा सहीप है। इसकी शरोभा करो सीीाबद करसा बहुत बडी भूल है। रंग सीला क्ा इ ार का, कई रंग संग इस ीय। ते रोत रो झलकत, और कछू लगे सा हाक कय।।४६।। इ ार का रंग सीला कहा ग्ा है। इसके अन्दर असेक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 528 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रकार के रंगय के सग झलकते रहते है। इसीे ते और ज्रोधत की ससिझलमीलाहट हरोती रहती है , मकन्तु हाक से छूसे पर हाक ीे कुछ भी सहीप आता। सब अंग पीछे कहूगं ी, पेहेले कहूं पाग बांधिी े। ससिसफत स परोहयचे अंग करो, तरो भी क्ा चाहे रह ए।।४७।। धिाी धिसी के सभी अंगय की शरोभा का ाार स ीै बाद ीे करँगी। सबसे पहले ीै उस पाग की शरोभा का ाार स करसे ा रही हूँ, रो श्री रा ी से अपसे ससिसर पर बाँधि रखी है। ्दमप ्हाँ के शब्दय से मप्र्ती अकरातीत के मकसी भी अंग की शरोभा का ाार स सहीप हरो सकता, मफर भी ीेरी आतीा उसका ाार स करसा चाहती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 529 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हाकय पाग बांधिी तरो कमहए, रो हुकीे स हरोाे ए। कई करोट पाग बसे पल ीे, ससि स सीे मदल चाहे े।।४८।। अपसे हाकय से पाग बाँधिसे की बात तरो तब कही ा्े , ब हुकी से ऐसा स हरोता हरो। धिाी धिसी अपसे मदल ीे ब भी चाहते है, उसी सी् एक पल के अन्दर पाग के कररोडय रप बस ाते है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह प्रश हरोता है मक श्री रा ी पाग अपसे हाकय से बाँधिते है ्ा पाग के रप वातः श ही बसते रहते है? इसके उतर ीे ्ही कहा ा सकता है मक ्े दरोसय ही बाते परीधिाी ीे हरोती है। लीला रप ीे धिाी धिसी अपसे हाकय से पाग बाँधिते है, तका उसकी, श्ाीा ी की, और सखख्य की इच्छासुसार भी पाग ्ा सभी श्रृंगार पल भर ीे कररोडय रप धिारा कर लेते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 530 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पर हके बांधिी पाग रच के, सरी हाकय पेच मफराए। आससिसक देखे बांधिते, अतंत रह सुख पाए।।४९।। लेमकस श्री रा ी से अपसे करोील हाकय से पेच (लपेट) मफराते हुए बहुत ही रधच से पाग बाँधिी है , तामक उसकरो पाग बाँधिते हुए देखकर सखख्य करो असन्त आसन्द हरो सके। इस माधि सब ससिससगार, कमह्त इस ुबांए। तरो क्ा फसा का सब्द, बका करो परोहयचत साहे।।५०।। इस प्रकार श्री रा है, ी का सम्पूार श्रृंगार ही अलौमकक रो इस ससि िहा से कहा ा रहा है। ाैसे तरो इस सशर संसार के शब्दय से परीधिाी की शरोभा का ाावतमाक ाार स सम्भा ही सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 531 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चौप मकए भी सा बसे, ाकरो ए ताी मद्ा खसी। ताके ज्य त्य क्ा चामहए, सरो कहाात हक हुकी।।५१८।। ब धिाी धिसी से ीेरे हद् ीे अपसा सम्पूार श्रृंगार अातररत कर ही मद्ा है, तरो ीेरे खल्े चुप रहसा सम्भा सहीप है। इसखल्े ससि तसा ाार स हरोसा सम्भा है , ाह ीुझे कहसा पड रहा है। इस प्रकार श्री रा ी ही अपसे हुकी (आदेश) से ीेरे दारा कहलाा रहे है। भाााकर - ्दमप ्गु ल वारप का साकातकार असेक ब्ीुमस्य से मक्ा है, मकन्तु उसके ाार स की शरोभा ीा् ीहाीधत ी करो ही मीली है। ीूल वारप के आदेश के मबसा ब्ाााी का अातरा कदामप सम्भा सहीप है। "साहेब के हुकीे ए बासी, गाात है ीहाीत" (मकरंतस ५९/८) का ्ह ककस इसी तर् की ओर संकेत करता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 532 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बांधिी पाग सीार के, हाक सरी उजल लाल। इस पाग की सरोभा क्य कहू,ं ीेरा साहेब सूर ीाल।।५२।। श्री रा ी के हवतकील बहुत ही करोील है तका उजालता और लाखलीा के मीणश्रत रंग से सुशरोणभत है। इस ीसरोहर हाकय से उन्हयसे अपसी पाग करो बहुत ही अच्छी तरह से बाँधिा है। अपसे मप्र्ती अकरातीत की इस सुन्दर पाग की शरोभा का ाार स भला ीै कैसे कर सकती हूँ। लाल पाग बांधिी लटकती, कछू ए छमब कही स ाए। पेच मदए कई माधि के, महरदे सय धचत ल्ाए।।५३।। धिाी धिसी के ससिसर पर लाल रंग की बँधिी हुई पाग इस प्रकार मदख रही है मक उसकी इस अलौमकक शरोभा का ाार स शब्दय ीे हरोसा सम्भा ही सहीप है। उन्हयसे अपसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 533 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अँगसाओं के खल्े अपसे हद् ीे बहुत ही प्रेी भरकर असेक प्रकार के पेचय से इस पाग करो बाँधिा है। पाग बसाई करोई भांत की, बीच ीे कटाा फूल। बीच बेली बीच कांगरी, रह देख देख हरोए ससकूल।।५४।। पाग की बसााट ही कुछ इस प्रकार की है मक उसीे बीच-बीच ीे बेल -बूटे है ससि सीे फूलय , लताओं, तका काँगरी की शरोभा आ्ी है। इस मदव्् शरोभा करो देखदेख कर ीेरी आतीा आससन्दत हरोती है। रो आधिा फूल एक पेच ीे, आाे द ू े पेच का मील। ्य बसी बेल फूल पाग की, देख देख ाऊं बल बल।।५५।। ्मद मकसी लपेट (पेच) ीे फूल का आधिा महवसा मदखता है, तरो दस ू री लपेट का आधिा फूल मीलकर पूार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 534 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी फूल का रप ले लेता है। इस प्रकार सम्पूार पाग के अन्दर लताओं तका फूलय की शरोभा आ्ी हुई है। इसे देख-देखकर ीै बारम्बार बखलहारी (न््रोछाार) हरोती हूँ। कई रंग संग फूल पात ीे, ए ससि सस स आाे ुबांए। स आाे ीुख केहेसी मीसे, रो रह देखे महरदे ीाहे।।५६।। पाग के अन्दर बसी हुई लताओं की पखत्य और फूलय ीे असेक प्रकार के रंग है तका असेक प्रकार के सग भी डे हुए है। इस शरोभा का ाार स इस ससि िहा से सहीप मक्ा ा सकता। ्मद आतीा अपसे धिाी हद् ीे इस शरोभा करो देखती भी है, तरो भी इसे अपसे ीुख से व््क सहीप कर पाती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 535 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पाग बांधिी करोई तरह की, रो तरह हक मदल ीे ल्ाए। बल बल ाऊं ीै धतस पर, ससि स मदल पेच मफराए।।५७।। पाग कुछ इस तरह से बाँधिी ग्ी है मक ऐसा प्रतीत हरोता है, स ै े श्री रा ी से अपसे हद् ीे सखख्य करो ररझासे की भाासा से प्रेी का सागर लेकर बाँधिा हरो। श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक ससि स मदल से इतसा प्रेेी लेकर इस पेचय से पाग बाँधिी है , ीै उस पर बारम्बार न््रोछाार हरोती हूँ। भाााकर - आणशक (श्री रा ी) के ीस ीे सार दा ्ही भाासा हरोती है मक मकस तरह अपसे ीाशूक (श्ाीा ी एां सखख्य) करो ररझाऊँ। उसकी हर लीला इसी लक् की पूरत के खल्े हरोती है। इस चौपाई ीे भी ्ही भाा दशार्ा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 536 / 992 श्री सागर टीका पाग ऊपर श्री रा स वााीी रो दगु दगु ी, ए रो बसी सब पर। रोत हीरा परोहयचे आकास लय, पीछे पाच रहे क्य कर।।५८।। पाग के ऊपर रो दगु दगु ी की शरोभा आ्ी है, उसकी बसााट सबसे न््ारी है। उसीे डे हुए हीरे की ज्रोधत इतसी अधधिक है मक ाह आकाश तक पहुँच रही है। ऐसी सवकधत ीे भला पाच ही क्य पीछे रहे , उसकी भी सूरी ज्रोधत आकाश ीे चारय ओर फैली हुई स र आ रही है। ीामसक तहां मीलत है, परोहयचत धतत पुखरा । सीलाी तरो ते आसीासी, उत पांचय रहे मबरा ।।५९।। दगु दगु ी ीे डे हुए ीाणाक की ज्रोधत भी आकाश ीे पहुँच रही है। ाहीप पर पुखरा की भी ज्रोधत दमष्टगरोचर हरो रही है। अब सीलाी का सूरी ते पीछे क्य रहे , ाह भी आकाश ीे शरोभा्ीास हरो रहा है। इस प्रकार दगु दगु ी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 537 / 992 श्री सागर टीका ीे श्री रा स वााीी डे हुए हीरे , ीाणाक, पुखरा , पाच, तका सीलाी का अलौमकक प्रकाश ाहाँ पर मादीास है। कांधि पीछे केस सूर झलके, खलए पाग ीे पेच बसाए। गौर पीठ सुधि सलूकी, ुबां सके सा ससिसफत परोहयचाए।।६०।। धिाी धिसी के घुँघराले बालय के ऊपर ही पेचदार पाग की बसााट है। इस अधत ीसरोहर बालय का सूर उसके कन्धिय के पीछे झलकार कर रहा है। श्री रा ी की गरोरे रंग की पीठ इतसी सुन्दर है मक उसकी ीमहीा का ाार स इस ससि िहा से हरो पासा कदामप सम्भा सहीप है। कणठ खभे दरोऊ बांहयडी, पेट पांसली बीच हैडा। रह ीेरी इत अटके, देख छमब रंग रस भर्ा।।६१८।। श्री रा ी के गले, कन्धिे, दरोसय भु ाओं , पेट (उदर) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 538 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तका पसखल्य के बीच ीे सवकत हद् कील (छाती) की सुन्दरता अमदती् है। प्रेी और आसन्द के रस से भरपूर इस अंगय की शरोभा करो देखसे ीे ीेरी आती-दमष्ट अटकी रहती है। भाााकर - कन्धिय के सीचे तका हद् के दरोसय ओर का असवक्य ााला भाग पसली कहलाता है। "रंग" शब्द का तातप्र आसन्द से हरोता है। श्री रा ी का सख से णशख तक का वारप प्रेी और आसन्द से भरा हुआ है। ीच्छे दरोऊ बा ूअ के, सलूकी अधत सरोणभत। रंग छब करोील मदल की, आससिसक हैडे बसत।।६२।। दरोसय बा ुओं के डौलय की सुन्दरता बहुत अधधिक सुशरोणभत हरो रही है। श्री रा ी के अधत करोील मदल से प्रकट हरोसे ााली आसन्दी्ी छमा अँगसाओं के धिाी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 539 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हद् ीे अखणड रप से ाास करती है। भाााकर - काँख की मदशा ााला बा ू का भाग बहुत ही ीाँसल एां सुन्दर हरोता है, ससि से महन्दी ीे ीाँसपेशी (पुठ्ठा), पं ाबी भाषा ीे डौले , एां अंगे ी ीे muscle कहते है। हवत कील की क्य कहू,ं परोहयचे हकेली कई रंग। लाल उजल रंग केहेत हय, इस रंग ीे कई तरंग।।६३।। मप्र्ती अकरातीत के दरोसय हवत कीलय (हाकय) की सुन्दरता का ाार स ीै कैसे करँ। उसके परोहयचय और हकेखल्य ीे कई प्रकार के रंग है। ्दमप ीै सीझसे के खल्े लाखलीा-मीणश्रत उजाल रंग अाश् कहती हूँ, मकन्तु इस रंगय से असेक प्रकार के रंगय की तरंगे झलकती रहती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 540 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - हकेली की मापरीत मदशा का ऊपरी भाग पँ ा ्ा पहुँचा (परोहयचा) कहलाता है। करोसी काडे कलाइ्ां, रंग सरीाई सलूक। ऐसा सखत ीेरा ीारा, और हरोाे तरो हरोए टूक टूक।।६४।। ीेरा ीा इतसे कठरोर हद् का कैसे हरो ग्ा है रो प्राा मप्र्ती अकरातीत की बाँहय की करोहमस्य, काडय, और कलाइ्य के रंग , करोीलता, एां सौन्द्र करो देखकर भी शान्त बसा हुआ है। ीेरे अधतररक करोई और हरो, तरो इस अप्रधती सौन्द्र करो देखकर ही टुकडे -टु कडे हरो ा्े अकारत् अपसे असवतता करो मालीस कर दे। भाााकर - ीहाीधत ी के ीा से अधधिक मसीर ल और करोील मदल अन्् मकसी का भी सहीप है , मकन्तु इस चौपाई ीे अपसे ीा करो कठरोर कहकर उन्हयसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 541 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुन्दरसाक करो ्ह ससिसखापस दी है मक ाे अपसे मारहप्रेी की डीगे स हाँका करे। प्रा्ः श सुन्दरसाक करोडीख सी आध््ासतीक सफलता प्राप हरो ासे के पशात् अपसे प्रेी के साीसे दस ू रय के भाा करो कुछ भी सहीप सीझता और अपसे ीुख से अपसी प्रशंसा करके वा्ं करो गौराासन्ात सीझता है। ्ह बहुत बडी भूल है। सा तेहेकीक हरोाे रंग की, सा छमब हरोए तेहेकीक। क्य कहूं बीसय अंगुरर्ां, और पीही हकेखल्ां लीक।।६५।। धिाी धिसी के हाकय और पैरय की बीसय अँगुखल्य तका हकेखल्य की पतली रेखाओं का ाार स ीै कैसे करँ। इसके रंग की अलौमकक सुन्दरता तका असन्त शरोभा के ीाप का तरो मसार ् ही सहीप हरो पा रहा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 542 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरी अंगुरर्ां पतली, लगे ीीठी ीूठ ाालत। ए करोीलता क्य कहू,ं ससि स छमब अंगुरी खरोलत।।६६।। अँगुखल्ां करोील और पतली है। ब धिाी धिसी अपसी ीुइी बन्द करते है, तरो ाे बहुत ही प््ारी (ीधिुर, ीीठी) लगती है, मकन्तु ब ाे अपसी अँगुखल्य करो खरोलते है तरो उस सी् अँगुखल्य की सुन्दरता तका करोीलता का ाार स कर पासा सम्भा सहीप रह ाता। क्य देऊं मसीूसा सख का, इस अंगय सख का सूर। देत स देखाई कछुए, रो हरोाे करोटक सूर।।६७।। ीै इस संसार के ीस, बुधद, एां ससि िहा से सखय के सूर की उपीा कैसे दँ।ू ्मद कररोडय सू्र भी धिाी धिसी के एक सख के साीसे हय, तरो उसके (सख के) ते के साीसे ाे मदखा्ी भी सहीप पडेगे अकारत् पूारत्ा मसवते प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा हरो 543 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ा्ेगे। भाााकर - इस चौपाई के दस ू रे चरा ीे कणकत "इस अंगय" का तातप्र ्हाँ के ीस, बुधद आमद है , ससि सके ीाध््ी से कहा ा रहा है। कररोडय सू्र का ते एक सख के ते के बराबर सहीप है , तरो संसार के ीस- बुधद से ्ह कैसे बता्ा भी ब ा सकता है मक धिाी धिसी के सख कैसे है। अब देखरो पेट पांसली, और लांक चलत लेहेकत। ए सरोभा सलूकी लेऊं रह ीे, तरो भी उडे स ीारा सखत।।६८।। हे साक ी! अब आप धिाी धिसी के पेट एां पसखल्य ााले वकास के सौन्द्र करो देखखए। चलते सी् उसकी कीर बहुत ही सुशरोणभत हरोती (लहकती) है। ीै इस सौन्द्र सागर की अपार शरोभा करो अपसी आतीा के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 544 / 992 श्री सागर टीका अन्दर बसा रही हूँ, मफर भी ीेरा ्ह श्री रा स वााीी ीा इतसा कठरोर है मक अपसे असवतता करो अभी भी बसाए हुए है। देख हराटी अधत सुन्दर, और लाल गाल गौर। लांक अधिुर बीच हराटी, क्य कहूं सूर हूर।।६९।। हे ीेरी आतीा! तू अपसे प्रााालभ की अधत सुन्दर ठु डी करो देख। लाखलीा से भरे गौर गालय की शरोभा करो देख। ीै ठु डी तका दरोसय हयठय के बीच के सूरी सौन्द्र का ाार स कैसे करँ, ्ह तरो पूारत्ा असम्भा है। गाल सरोभा अधत देत है, क्य कहूं इस ीुख छब। उजल लाल रंग सुन्दर, क्य कहूं सलूकी फब।।७०।। धिाी धिसी के दरोसय गाल बहुत ही ीसरोहारराी शरोभा से ्क ु है। उसके इस ीुख की शरोभा का ाार स ीै कैसे कर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 545 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सकती हूँ। दरोसय गालय का रंग उजालता ीे लाखलीा खल्े हुए अधत सुन्दर है। ीेरी सीझ ीे सहीप आता मक इस सुन्दर शरोभा करो व््क कैसे करँ। कासस की मकस माधि कहू,ं रो सुसे आससिसक के बैस। सरो सुस देाे पडउतर, ज्य आससिसक पााे सुख चैस।।७१८।। ीै श्री रा करँ, ी के उस कासय की ीमहीा का ाार स कैसे रो सखख्य (आणशकय) की बातय करो अधत प््ार से सुसते है और उतर देते है। धिसी के उतर इतसे ीीठे हरोते है मक उसे सुसकर ब्सृमष्ट्य के हद् ीे सुख का सामाज् बसा रहता है। ीुख दंत लाल अधिुर छब, ीधिुरी बरोलत ीुख बास। खैच लेत अरााह करो, ए प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो बासी असर सुभास।।७२।। 546 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिाी धिसी के ीुखारमान्द, दाँतय, तका लाल हयठय की शरोभा असन्त है। ाे अपसे ीुख से अधत ीीठी ाााी बरोलते है। प्रेी रस से भरपूर उसकी ाााी इतसी ीधिुर हरोती है मक प्रत्ेक आतीा उसकी ओर खखची रहती है। भाााकर - परीधिाी की ाहदत (एकमदली) ीे श्री रा ी, श्ाीा ी, तका सखख्ाँ सभी एक-दस ू रे के प्रधत आकषर ा ीे बँधिे हरोते है, क्यमक श्री रा तरो श्ाीा ी का मदल ही ी, सखख्य, एां २५ पकय के रप ीे लीला कर रहा है। उसके आकषर ा ीे रञीा् भी कभी कीी सहीप हरोती। धिाी धिसी की ीधिुर ाााी की ीमहीा करो दशारसे के खल्े ही आकरषत हरोसे की बात कही ग्ी है और लीला ीे ऐसा हरोसा वााभामाक है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 547 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सैस अमस्ारे बंकी छब, चंचल चौपल रसाल। बास बंके ीारत खैच के, छाती छे द मसकसत भाल।।७३।। प्राा मप्र्ती के से् सुकीले तका धतरछी दमष्ट ााले है। प्रेी के रस से भरपूर इस से्य ीे वाभाातः श ही चञलता एां चौपलता है। ब धिाी धिसी अपसी धतरछी स र (दमष्ट) से प्रेी के तीखे बाा छरोडते है, तरो ाे भाले की तरह अँगसाओं के हद् करो छे दकर (चुभकर) मसकल ाते है। भाााकर - से्य के करोसय का सुकीला हरोसा उसकी सुन्दरता का प्रीाा हरोता है। गरोल तका छरोटी आँ खे सुन्दर सहीप ीासी ाती। मारह-प्रेी से रमहत अलसा्े हुए व््मक्य की आँ खे सुवत हरोती है , बमक मकसी के प्रेी ीे डू बे रहसे ाालय की आँ खे चञल एां चीक से भरपूर आकरषत करसे ााली हरोती है। हद् करो छे दकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 548 / 992 श्री सागर टीका मसकल श्री रा स वााीी ासे का तातप्र है , ब्सृमष्ट्य का धिसी के प्रेी ीे डू बकर एकरस एां एकाकार हरो ासा। लाल धतलक मसलाट मदए, अधत सुन्दर सुखदाए। असल बन््ा ऐसा ही, कई सई सई रोत देखाए।।७४।। ीाके पर लाल रंग का बहुत ही सुन्दर धतलक लगा हुआ है, रो सबकरो आसन्द देसे ााला है। ाह ीूलतः श अंग ीे ही बसा हुआ है अकारत् ऊपर से लगा्ा हुआ सहीप है। उससे असेक प्रकार की सई-सई सूरी्ी ज्रोधत प्रकट हरोती रहती है। सैस कास ीुख साससिसका, रंग रस भरे रोास। हाक पांउं कणठ है्डाख, सब चढ़ते देखे ररोसस।।७५।। श्री रा ी के से्, कास, ीुख, साससिसका, हाक, पैर, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 549 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कणठ, और हद् (छाती) आमद सभी अंगय ीे प्रेी तका आसन्द का रस भरा हुआ है। इसीे मसत् ्ौास मादीास रहता है। ्े सभी अंग मकशरोराावका के अखणड सौन्द्र ीे ही हीेशा दमष्टगरोचर हरोते है। सख ससिसख बन्धि बन्धि सब अंग, ीासय सब चढ़ते चंचल। छब फब सरोभा सुन्दर, ते श्री रा रोत अंग सब बल।।७६।। ी के ससिसर से पैर तक के सभी अंगय एां उसके रोडय ीे सौन्द्र की चढ़ती अावका है और ाे प्रेी लीला ीे मसरन्तर मक्र्ाशील रहसे ााले है। इसकी छमा बहुत ही ीसरोहर है। प्रत्ेक अंग अपार शरोभा, सौन्द्र , ते , ज्रोधत, और शमक से ्क ु है। भाााकर - इस प्रकरा की चौपाई ७३ ीे से्य करो चञल कहा ग्ा है तका इस ७६ाीप चौपाई ीे सभी अंगय करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 550 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चञल कहा ग्ा है। ्हाँ चञल कहसे का तातप्र र रोगुा से उतपन्न ीासससिसक एां शारीररक चञलता सहीप है, बसलक म्गुाातीत प्रेी की वााभामाक मक्र्ाशीलता है। तीरोगुा से गससिसत व््मक आलव्, प्रीाद, एां सीपद से गससिसत रहता है। इस सम्बन्धि ीे गीता का ्ह ककस बहुत ही ीहतापूार है - "प्रीाद आलव् मस्ाणभः श तत् मसबघ्साधत कौन्ते् " अकारत् तीरोगुा ीसुष्् करो प्रीाद, आलव्, और सीपद के बन्धिसय ीे बाँधि देता है। अकरातीत के सभी अंगय ीे म्गुाातीत एां मसराकार प्रेी भरा हुआ है, इसखल्े ाे कभी सुवत व््मक की तरह सहीप रह सकते। उसे दशारसे के खल्े ही इस चौपाइ्य ीे चञल, चौपल आमद शब्दय का प्र्रोग मक्ा ग्ा है। ्हाँ ्ह ध््ास देसे ्रोग् बात है मक रास गन्क १८/९ ीे ीा्ा के आ्धि ु य ीे भी चञल और चौपल शब्दय का प्र्रोग प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 551 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मक्ा ग्ा है, मकन्तु इसका आश् र रोगुा से उतपन्न हरोसे ााली ीा्ााी एां ाैकाररक मक्र्ाशीलता से है। सुन्दर लखलत करोील, देख देख सब अंग। ते रोत सूर सब चढ़ते, सब देखत रस भरे रंग।।७७।। हे ीेरी आतीा! मप्र्ती् अकरातीत के इस सभी अंगय की शरोभा करो तू देख, रो बहुत ही सुन्दर, कीसी्, और सुकुीार (करोील) है। इस सभी अंगय ीे सूरी ते और ज्रोधत की ाृधद हरोती रहती है। सभी प्रेी और आसन्द के रस से ओत-प्ररोत मदखा्ी दे रहे है। भाााकर - इस चौपाई ीे ाृधद (चढ़सा) से तातप्र हास के पशात् हरोसे ााली लौमकक ाृधद सहीप है , बसलक अखणड रप से मसत् साीस रहसे ााली उस सवकधत से है, ससि सीे रञीा् भी कभी हास की प्रमक्र्ा सहीप हरोती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 552 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ही कारा है मक ब् करो बृहा् भी कहते है , ससि सका अकर हरोता है बढ़सा (मसत् ाृधद करो प्राप हरोसा), अकारत् परब् के प्रेी, सौन्द्र , आसन्द, शमक, ञास आमद गुाय ीे पल-पल मसत् ाृधद हरोती रहती है। कमट करोील मदल है्डा, अधत उजल छाती सुन्दर। चढ़ते इवक अंग अधधिक, ऐसा चुभ्ा रह के अन्दर।।७८।। श्री रा ी की कीर तका हद् बहुत ही करोील है। उसका ाकवकल अत्न्त सुन्दर एां गौर ाार का है। ीेरी आतीा के धिाी हद् ीे ्ही दमष्टगरोचर हरो रहा है मक इस सभी अंगय ीे असन्त प्रेी (इशक) लबालब (पूार रप से) भरा हुआ है। भाााकर - "है्डा" शब्द का अकर हद् और ाकवकल (छाती) दरोसय ही हरोता है। है्डे पर हारय की शरोभा के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 553 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सन्दभर ीे ्ह बात वपष्ट हरोती है। हद् का तातप्र वकूल और सूकी (कारा शरीर) दरोसय से ही है। ्दमप परीधिाी ीे ाहदत के कारा वकूल और सूकी ीे करोई भी भेद सहीप है , मकन्तु इस संसार के भााय से ऐसी अणभव््मक की ग्ी है। मदल और हद् भी सीासाकर क शब्द है, मकन्तु इसीे भाषा्ी भेद है। सौन्द्र एां प्रेी के ाार स का प्रसंग हरोसे से ्हाँ "मदल" का तातप्र वकूल और सूकी हद् से , तका "है्डा" का भाा छाती से खल्ा ा्ेगा। ्ह माशेष ध््ास रखसे ्रोग् तर् है मक वकूल हद् की करोीलता ्ा कठरोरता सूकी हद् के भााय पर ही मसभर र करती है। सूकी हद् की करोीलता ही ाकवकल (हद् कील) करो भी करोील बसाती है। शेर की छाती (ाकवकल) करो कठरोर कहसे का तातप्र हद् करो कठरोर कहसे से है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 554 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इतके रह क्य मसकसे, रो इस ीासूक की आससिसक। छरोड छाती आगे ाए सा सके, ीार डारत ीुतलक।।७९।। अपसे प्राा मप्र्ती के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली अँगसाओं की आती-दमष्ट इस अलौमकक शरोभा करो छरोडकर अन्् कहीप पर भी सहीप ा सकती। मसधशत रप से ाकवकल की अमदती् शरोेभा उसे पूारत्ा ाशीभूत कर लेती है और अपसे अन्दर डू ब (आगे सहीप ासे के खल्े मााश कर देती है ासे देती)। भाााकर - "ीार डालसा" एक ीुहाारा है, ससि सका तातप्र हरोता है, पूारत्ा ाशीभूत कर लेसा। इसी प्रकार ाश ीे करसे के खल्े "घा्ल कर देसे" का ीुहाारा भी प्र्रोग मक्ा ाता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 555 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि स मबधि की ए इ ार, तापर लग बैठा दाास। सेत रंग दाास देखखए, आगूं इ ार रंग ररोसस।।८०।। इ ार (चूडीदार पा् ाीे) का पहसााा इस प्रकार का है मक शेत रंग के आ्ा हुआ है। ाीे का घेरा (दाास) उसके ऊपर से ब उस दाीस करो देखा ाता है, तरो उसके अन्दर (सीचे) से इ ार का रंग झलकसे लगता है। भाााकर - इ ार कीर ीे बाँधिी ाती है , बमक ाीा प्रा्ः श कन्धिे से घुटसे तक आता है। ऐसी सवकधत ीे कीर से घुटसे तक की इ ार ाीे के अन्दर से झलकती है। इस चौपाई ीे ्ही भाा दशार्ा ग्ा है। गौर रंग ाीा उजल, ुड बैठा अंग ऊपर। अधत मबरा त इस माधि, ए खूबी कहूं क्य कर।।८१८।। श्री रा ी का वारप अधत गौर ाार का है और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाीे 556 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का रंग शेत ाार का है। उसके सूरी शरीर पर ाीा ुडा (धचपका) हुआ सा मदखता है। इस प्रकार उसकी सुन्दरता बहुत अधधिक है। मकसी भी प्रकार से उसकी शरोभा का ाार स कर पासा सम्भा सहीप है। ए ुगत ाीे की क्य कहू,ं झलकत है चहुं ओर। बाहे चरोली और दाास, सरोभा देत सब ठौर।।८२।। ाीेे की बसााट का ाार स ीै कैसे करँ। उसकी सूरी्ी झलकार चारय ओर फैल रही है। ाीे की बाँहय, चरोली, और दाीस के चारय ओर अधत सुन्दर शरोभा आ्ी हुई है। भाााकर - ाीे का रो भाग ाकवकल से धचपका हुआ हरोता है, उसे "चरोली" कहते है। इसी प्रकार कीर से सीचे का भाग "दाास" (दाीस) कहलाता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 557 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पीछे कटाा रो करोतकी, रंग संग री झलकत। चीस ीरोहरोरी दरोऊ हाक की, ए सुन्दर रोत अतन्त।।८३।। ाीे की पीठ पर करोतकी के रप ीे वाार ी्ी तारय से बेल-बूटे बसे हुए है, ससि सीे असेक रंग के सग झलकार कर रहे है। ाीे के दरोसय हाकय की ीरोहरोरी ीे चुन्नटे बसी हुई है, ससि ससे मसकलसे ााली सूरी ज्रोधत की सुन्दरता असन्त है। ्ष्टव््- ाीे की बाँह ीे कलाई के पास घेरे की रो पररधधि हरोती है , उसे "ीरोहरोरी" कहते है। करोतकी एक प्रकार की बसााट है, रो म्भु , पास के पते, और कील के फूल आमद की आकृधत ीे बेल -बूटय से सुसखजत करके बसा्ी ाती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 558 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बेल सकस दरोऊ बगलय, और बेल मगराास बन्धि। चूडी सीारी बाहस की, क्य कहूं सरोभा ससन्धि।।८४।। ाकवकल के दरोसय ओर बाँहय से लगते हुए वकास पर बेलय की सकशकारी है। इसके अधतररक तमस्य के बाँधिे ासे ााले वकास (मगराास बन्धि) पर भी सुन्दर-सुन्दर बेलय की धच्कारी है। दरोसय बाँहय ीे चुन्नटे बहुत ही सुन्दर ढंग से बसी है। इसकी ाावतमाक शरोभा का ाार स ीै कैसे करँ। छरोटी बडी स ाडी पतली, सबे बसी एक रास। उतरती मीहीप मीहीप से, ुबां क्ा कहे खबू ी खास।।८५।। ाीे की चुन्नटे स तरो बडी है और स छरोटी , स करोई पतली है और स करोई ीरोटी, बसलक सभी सीास आकार ीे बसी हुई है। ्े ऊपर से सीचे तक बहुत ही करोडीप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 559 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोडी दरू ी पर आ्ी है। उसकी इस माधच् प्रकार की माशेषता करो ्हाँ की ससि िहा (ाााी) से कैसे कहा ा्े। पीला पटु का कीरे, रंग संग छे डे मकसार। बेल पात फूल सकस, हरोत आकास उदरोत कार।।८६।। कीर ीे पीला पटु का बँधिा हुआ है। उसके पले एां मकसार पर असेक रंगय के सग डे हुए है। इस पटु के ीे असेक प्रकार की लताओं, पखत्य, तका फूलय की धच्कारी (सकशकारी) है, ससि सकी ज्रोधत आकाश ीे चारय ओर फैल रही है। लाल सीले सेत व्ाी रंग, मकसार बेल कटाा। सात रंग छे डय मीसे, क्य कहूं ुगत डाा।।८७।। पटु के के मकसारे की बसी हुई बेलय की सकशकारी ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 560 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चार प्रकार के रंगय का प्र्रोग हुआ है। ाे रंग है - लाल, सीला, शेत, और काला। इसी प्रकार पलय ीे सात प्रकार के रंगय का सीा्रो स है। सगय से मडत इस प्रकार की बसााट की शरोभा का ीै ाार स कैसे करँ। पाच पासे ीरोती सीलाी, हीरे परोखरे ीामसक संग। बेल कटाा कई सकस, कहूं गरणभत केते रंग।।८८।। पटु के ीे बेल -बूटय की असेक प्रकार की धच्कारी है , ससि सीे पाच, पन्ना, ीरोती, सीली, हीरा, पुखरा , और ीाणाक के सग डे हुए है। इसके अन्दर से इतसे प्रकार के रंग मसकलते है, ससि सका ाार स ीै कैसे करँ। ाीे ीे झांई झलकत, हरे रंग इ ार। लाल बन्धि और फुन्दस, कई रंग संग अपार।।८९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 561 / 992 श्री सागर टीका शेत रंग के श्री रा स वााीी ाीे ीे हरे रंग की इ ार की झांई (आभास) झलकती है। लाल रंग के इ ारबन्द (डरोरी) और फुन्दस ीे कई रंगय के अपार सग डे हुए है। भाााकर - आभास और प्रधतभास (प्रधतमबम्ब) ीे अन्तर है। आभास का भाा झांई से है, पारदशर कपडे और रो मकसी ीहीस ल आमद के अन्दर देखा ाता है। ल ीे आभास और प्रधतभास दरोसय की प्रमक्र्ा हरोती है। कहूं अंगय का बेारा, ए रो ुदे ुदे भूखस। ाेर असर के, कहूं पेहेले भूखस चरस।।९०।। अब ीै धिाी धिसी के अंगय ीे सुशरोणभत आभूषाय का अलग-अलग माारा देती हूँ। परीधिाी के ्े आभूषा सूरी्ी ााहरातय के है। अब सबसे पहले ीै चराय के आभूषाय का ाार स करती हूँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 562 / 992 श्री सागर टीका चारय श्री रा स वााीी रोडे चरस के, सरीाई सुगन्धि सुखकार। बासी ीधिुरी बरोलत, सरोभा और झलकार।।९१८।। धिाी धिसी के दरोसय चराय ीे चार आभूषा गीगा रहे है- १८. झांझरी, २. घूघ ं री, ३. कांबी, ४. कडा। इसीे करोीलता और सुगसन्धि भरी हुई है तका ्े हद् करो अपार आसन्द देसे ााले है। इससे बहुत ही ीधिुर आाा मसकलती है। इसकी शरोभा और झलकार अलौमकक है। भूखस ीेरे धिसी के, मकस माधि कहूं रो ए। के कहूं खबू ी सरीाई की, के कहूं अम्बार ते के।।९२।। ीै अपसे प्रााालभ के आभूषाय की माशेषता का ाार स कैसे करँ। उसकी करोीलता अलौमकक है तका ाे सूरी्ी ते की राणश के रप ीे मदखा्ी देते है। उसकी इस प्रकार की माशेषताओं का ाार स कैसे सम्भा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 563 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक संग के कई रंग, सरोभे झस बा े झांझर। पांच संग रंग एक के, अधत ीीठी बरोले घूघ ं र।।९३।। झांझरी से झस-झस की अधत ीधिुर आाा मसकलती है। उसके एक-एक सग के अन्दर कई प्रकार के रंग हरोते है। इसी प्रकार घूघ ं री बहुत ही ीीठी आाा करती है और एक-एक घूघ ं र ीे असेक रंगय के पाँच-पाँच सग डे हुए है। साके ााले ाेर के, ीाहे सरी रोत गुस दरोए। तीसरी बासी ीाधिुरी, चौका गुस खस ु बरोए।।९४।। घुघ ं रर्य के कुणडय ीे ााहरात डे है। इसीे कई गुा है। पहला गुा तरो ्ह है मक ्े बहुत ही करोील है। दस ू रा गुा है ज्रोधत। तीसरा माशेष गुा ्ह है मक ्े बहु त ही ीधिुर आाा करते है। चौका गुा है, सुगसन्धि से भरा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 564 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हरोसा। सरोई पांच रंग एक संग ीे, धतसकी बसी रो कडी। देत देखाई रंग संग ुदे, ासय मकस घड के डी।।९५।। इसी प्रकार सगय से मडत कडी की शरोभा आ्ी है। इसके एक-एक सग ीे पाँच-पाँच रंग आ्े है। प्रत्ेक सग ीे रंग अलग-अलग मदखा्ी पडते है। ऐसा लगता है मक स ै े मकसी से घड करके कांबी एक ड मद्ा है। ाेर की, ताीे झीसे रंग संग दस। मदल चाहे भूखस सब बसे, सरो हक भूखस ए असर ।।९६।। ााहरातय से बसी हुई कांबी है , ससि सीे दस रंग के बारीक-बारीक सग आ्े हुए है। परीधिाी के इस आभूषाय की माशेषता ्ह है मक ्े सभी धिाी धिसी के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 565 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मदल की इच्छासुसार ही बसे हरोते है (मदखा्ी देते है)। ीै देखे ाेर असर के, ज्य हेी भूखस हरोत इत। कई रंग संग मीलाए के, बहु मबधि भूखस ीैसे परीधिाी के ीे सग मडत।।९७।। ााहरातय करो देखा और ्हाँ के सरोसे मडत आभूषाय से तुलसा करसे का प्र्ास मक्ा। इस संसार ीे तरो णभन्न-णभन्न प्रकार के रंगय ााले सगय करो सरोसे ीे रोडकर असेक प्रकार के आभूषा बसा्े ाते है, मकन्तु परीधिाी ीे ऐसा सहीप हरोता। भाााकर - इस संसार ीे एक सग का एक ही रंग हरोता है , स ै े- हीरे का सफेद, ीाणाक का लाल, पुखरा का पीला, सीली का सीला, एां पाच का हरा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 566 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकस डे घडे सा सीारे, भूखस आात मदल चाहे। असर ाेर कंचस ज्य, ासय असल ऐसे ही बसाए।।९८।। परीधिाी के इस आभूषाय करो मकसी से भी सरोसे ीे सग डकर ्ा गढ़कर सहीप बसा्ा है। ्े सभी आभूषा तरो मदल की इच्छासुसार शरोभा देते है (प्रकट हरो इन्हे देखसे से ऐसा लगता है मक के ााहरातय करो सरोसे ीे ाते है)। स ै े मकसी से परीधिाी डकर ाावता ीे बसा मद्ा है। दस रंग के ाेर की, ीाहे कई सकस ीुंदरी। दरोए अंगूठी अंगूठय, आठय ससि सस आठ अंगुरी।।९९।। दरोसय हाकय ीे दस रंग के ााहरातय की दस ीुम्का्े है, ससि सके अन्दर कई प्रकार की सकशकारी की ग्ी है। दरोसय अँगूठय ीे दरो अँगूमठ्ां है और शेष आठ अँगुखल्य ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 567 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आठ ीुम्का्े (अँगूमठ्ां) है। ए सरी अंगुरर्ां अतन्त, सख सरोणभत ते अपार। ए देखरो भूल अकल की, सरोभा ल्ाइए ीाहे सुीार।।१८००।। इस अँगखु ल्य की करोीलता असन्त है। इसके सखय ीे अपार ते सुशरोणभत हरो रहा है। इसकी असन्त शरोभा करो सीीाबद करके ाार स करसा बुधद की बहुत बडी भूल ीासी ा्ेगी। परोहयचे और हकेखल्ां, केहे स सकय सलूकी ए। छमब देख रंग हाकस की, बल बल ाऊं इसके।।१८०१८।। दरोसय हाकय के पँ े और हकेखल्ाँ इतसी सुन्दर है मक उसके अमदती् सौन्द्र का ाार स कर पासा ीेरे खल्े कदामप सम्भा सहीप है। हाकय के रंग की शरोभा देखकर ीै प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 568 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बारम्बार न््रोछाार हरोती हूँ। कमड्ां दरोऊ काडरो सरोहे, सरोभा ते धिरत। लाल संग सीले आसीासी, रोत अाकास भरत।।१८०२।। दरोसय हाक के कडय ीे कमड्ाँ सुशरोणभत हरो रही है। इसका ते अलौमकक शरोभा करो धिारा कर रहा है। इसीे डे हुए लाल, सीले, और आसीासी रंग के सगय की ज्रोधत आकाश ीे फैल रही है। परोहयची पांचय संग की, ुबां केहे स सके ससि सस। पाच पांसे ीरोती सीलाी, लरे हीरे अधत सरस।।१८०३।। धिाी धिसी से अपसे दरोसय हाकय ीे रो परोहयची पहस रखी है, उसीे अधत सुन्दर ्े पाँच सग डे हुए है - १८-पाच, २-पन्ना, ३-ीरोती, ४-सीली, ५-हीरा। इस परोहयधच्य प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 569 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की शरोभा का ाार स इस ससि िहा से सहीप कहा ा सकता। इस सगय से मसकलसे ााली मकराे आपस ीे टकराती (लडती) रहती है। बा ूबधि ं की क्य कहू,ं रो मबरा े बा ू पर। कई मीहीप सकस कटाा, रोत भरी ससि ीी अम्बर।।१८०४।। दरोसय बा ओ ु ं पर बा ूबन्धि मारा ीास है , ससि सकी शरोभा का ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। इसके अन्दर बेल-बूटय की बारीक धच्कारी की ग्ी है। इस दरोसय बा ूबन्धिय से उठसे ााली सूरी ज्रोधत धिरती से लेकर आकाश तक फैली हुई है। एक संग एक रंग का, एक रंगे संग असेक। इस मबधि के असर भूखस, सरो कहां लरो कहूं मााेक।।१८०५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 570 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी के आभूषा इस प्रकार के है मक उसीे कहीप तरो एक रंग का एक ही सग है, तरो कहीप पर एक रंग के असेक सग आ्े है। इस सबका माारा ीै कहाँ तक कहूँ। पांच रंग री फुन्दस, सरोभा लेत अतंत। पांच रंग ाेर झलके, फुन्दस सरोहे लटकत।।१८०६।। पाँच रंग की री (धिातु की तार) ीे लटकते हुए फुन्दस शरोभा्ीास हरो रहे है। इस फुन्दसय ीे पाँच रंग के ााहरात झलकार कर रहे है। इसकी शरोभा असन्त है। सरी रोत खस ु बरोए, मदल चाही सरोभाए। कई माधि सुख लेाे हक के, सुख भूखस कहे स ाए।।१८०७।। इस आभूषाय ीे करोीलता है , सूरी ज्रोधत है , और ्े सुगसन्धि से भरपूर है। धिाी धिसी के मदल की इच्छासुसार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 571 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्े शरोभा देते है। आभूषाय के सुख का ाार स कर पासा सम्भा सहीप है। ्े धिाी धिसी से असेक प्रकार का सुख प्राप करते है। भाााकर - आभूषा भी आती-वारप और चेतस है। इन्हे इस संसार के ड आभूषाय ैसा सहीप सीझसा चामहए। ब्ाँगसाओं की तरह ्े भी धिसी के प्रेी का आसन्द प्राप करते है। आभूषाय की मदल चाही शरोभा का तातप्र केाल श्री रा श्ाीा ी के मदल से ही सहीप है , बसलक ी एां सखख्य के भी मदल की इच्छासुसार ासय और आभूषाय की शरोभा दमष्टगरोचर हरोती है। ससिससगार २१८/१८९५ का ्ह ककस इस सम्बन्धि ीे बहुत ही ीहतापूार हैअसर ीे भी रहे लेत है, रह स ै ी खामहस ससि स। ैसा देख्ा चाहे, धतस तैसा हरोत दरसस।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 572 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बीच हार ीामसक का, और हीरय हार उजल। पाच ीरोती और सीलाी, लसमस्ां अधत मसरील।।१८०८।। श्री रा ी के गले ीे छः श हार है , ससि सके ीध्् ीे ीाणाक का हार है। हीरय का हार बहुत ही उजाल है। इसके अधतररक पाच, ीरोती, सीली, और लहसुमस्ा के हार गीगा रहे है। ्े सभी हार बहुत ही वाच्छ रंग के है। और मसरील ीांहे दगु दगु ी, ताीे संग करत अधत बल। बीच हीरा छे मगरदााए, रोत आकास मक्ा उजल।।१८०९।। प्रत्ेक हार ीे गीगाती हुई दगु दगु ी की शरोभा आ्ी है। प्रत्ेक दगु दगु ी के बीच ीे हीरा है और उसे घेरकर सभी ीे छः श-छः श सग आ्े है। इस सगय की सुन्दरता बहुत अधधिक है। हीरय की ज्रोधत से सम्पूार आकाश उजाल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 573 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ज्रोधत से भरा रहता है। गौर गलवकल धिसी के, उजल लाल सुरगं । झांई उठे इस सूर ीे, करस फूल के संग।।१८१८०।। धिसी के गले का भाग बहुत ही गरोरे रंग का है। ाह उजालता ीे गहरी लाखलीा खल्े हुए है। श्री रा अपसे कासय ीे ी से रो कार फूल धिारा कर रखा है , उसीे डे हुए सगय की झांई (आभास) गले से उठसे ााले सूर ीे दमष्टगरोचर हरोती है। मसरख साससिसका धिसी की, लटके ीरोती पर लाल। लेत अीी रस अधिुर पर, रस अीृत रंग गुलाल।।१८१८१८।। हे ीेरी आतीा! तू धिसी की इस ीसरोहर साससिसका करो देख। उसीे सुशरोणभत बुलाक के ीरोती के ऊपर लाल रंग प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 574 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का एक सग लटक रहा है। श्री रा ी के हयठय का रंग लाल है और उसीे प्रेी का अीृती्ी रस भरा हुआ है। अधिरय करो वपशर करसे ााला ्ह सग प्रेी के उस अीृतरस का मसरन्तर पास करता रहता है। करस फूल की क्य कहू,ं उठत मकरस कई रंग। धतस संग रंग कई भासत, रंग रंग ीे कई तरंग।।१८१८२।। कासय ीे धिारा मक्े हुए कार फूलय की शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ। इससे उठसे ााली मकराय से असेक प्रकार के रंग प्रकट हरोते है। कार फूल ीे डे हुए सगय से कई प्रकार के रंग दमष्टगरोचर हरोते है और प्रत्ेक रंग से असेक प्रकार की तरंगे मसकलती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 575 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करत ीामसक ीाहे लालक, हीरे ीरोती सेत उ ास। और पाच करत है सीलक, लेत लेहेरी रोत आकास।।१८१८३।। कार फूल ीे डे हुए ीाणाक के सग से लाल रंग का प्रकाश मसकलता है, तरो हीरे और ीरोती से शेत रंग का उजाल प्रकाश फैलता है। पाच से हरे रंग का प्रकाश फूटता है (प्रवफुमटत हरोता है)। उससे मसकलसे ााली ज्रोधत की लहरे आकाश ीे फैल रही है। ते भी ीामसक धतत मीले, परोहयचत धतत पुखरा । सीलाी तरो ते आसीासी, रहे रंग संग पांचय मबरा ।।१८१८४।। उस प्रकाश ीे ीाणाक का लाल प्रकाश मील तरो पुखरा का पीला प्रकाश भी ससम्ीखलत हरो सीली से मसकलसे ााला आसीासी रंग का ते ीे शामील हरो ाता है , ाता है। भी उसी ाता है। इस प्रकार पाँचय सगय से मसकलसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 576 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ााला पाँच रंगय का प्रकाश आकाश ीे एकसाक मदखा्ी पडता है। पाँच फूल कलंगी पर, उपरा ऊपर लटकत। करोई ऐसी कुदरत सूर की, लेहेरी आकास ीे झलकत।।१८१८५।। पाग ीे कलँगी आ्ी है, ससि सीे पाँच फूल एक-दस ू रे के ऊपर लटक रहे है। इस फूलय से मसकलसे ााले सूर की कुछ ऐसी शरोभा है मक उसकी लहरे आकाश ीे झलकार कर रही है। एता इस कलंगी मीसे, एकै हीरे का सूर। आसीास ससि ीी के बीच ीे, ीासय करोटक ऊगे बका सूर।।१८१८६।। कलँगी ीे डे हुए एक हीरे का सूर ही इतसा अधधिक है मक ऐसा प्रतीत हरोता है स ै े धिरती और आकाश के बीच प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 577 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीे कररोडय की संख्ा ीे अखणड सू्र उग आ्े हय। ंग ाेर करत है, आसीास देखखए ब। लरत बीच आकास ीे, स रय आात है तब।।१८१८७।। हे साक ी! ्मद आप परीधिाी के सूरी आकाश की ओर देखे, तरो ऐसा लगता है मक ााहरातय से उठसे ााली प्रकाश की मकराे आपस ीे ्द ु सी करती हुई (टकराती हुई) मदखा्ी देती है। कहे ीहाीत अराा असर से, रो करोई आई हरोए उतर। सरो इस सरप के चरस ले् के, चखलए अपसे घर।।१८१८८।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक परीधिाी से रो भी ब्सृमष्ट इस खेल ीे आ्ी है , ाह धिाी धिसी के चराय करो अपसे हद् ीे बसाकर अपसे धिाी ीे ाापस चले। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 578 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - मप्र्ती के चराय करो अपसे धिाी हद् ीे बसासे का तातप्र है - सख से णशख तक सम्पूार श्रृंगार करो बसासा। इसके मबसा आती- ागधत की कलपसा करसा ीा् हााई ीहल बसासा है। परीधिाी ीे असामद काल से प्रेी और आसन्द की लीला चलती रही है, मकन्तु इस ब्ाााी के अातरा से पहले मकसी करो भी इशक (प्रेी), ाहदत, मसवबत, और खखलात की ीाररफत (सारपरर शाशत सत्) का बरोधि सहीप का। इस ागसी ब्ाणड का सारपरर लक् ीाररफत तक पहुँचसा है, रो स तरो कभी पहले सम्भा का और स कभी भमाष्् ीे (अन्् ब्ाणड ीे) हरो सकेगा। इसखल्े, इस ागसी लीला ीे सबका ध््े् ्ही हरोसा चामहए मक ही ्गु ल वारप करो अपसे धिाी हद् ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 579 / 992 श्री सागर टीका बसा्े और पराती ीे श्री रा स वााीी ागत हरोसे से पहले धिसी के मदल ीे डु बकी लगाकर ीाररफत के असीरोल ीरोधत्य करो अाश् चुस ले। प्रकरा ।।८।। चौपाई ।।६५०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 580 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी श्री ठकुरासी ी का ससिससगार दस ू रा - ींगला चरस इस प्रकरा ीे श्ाीा ी के दस ू रे श्रृंगार का ाार स मक्ा ग्ा है। बरसस करं बडी रह की, रहे सूर इस अंग के, श्री ीहाीधत श्ाीा रो हक सूर का अंग। रो हीेसा सब संग।।१८।। ी की आतीा कहती है मक अब ीै श्री ी की शरोभा का ाार स कर रही हूँ, रो श्री रा ी के सूर की अँगवारपा है। इसके सूर की अँगरपा ही ब्सृमष्ट्ाँ है, रो लीला ीे हीेशा उसके साक रहती है। भाााकर - श्ाीा ी करो श्री रा ी के सूर का अंग कहसे का तातप्र केाल बा् वारप (चेतस ज्रोधत) का अंग हरोसा सहीप है। सूर के माणशष्ट अकर है , रो इस गन्क के प्रकरा एक की व््ाख्ा ीे मद्े ग्े है। श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 581 / 992 ी श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का सख से णशख तक अन्दर-बाहर सम्पूार वारप सूरी्ी है ससि सीे प्रेी, आसन्द, कासन्त, आह्लाद, सौन्द्र आमद सभी गुा मादीास है। लीला रप ीे इसी वारप का प्रकटीकरा दस ू रे वारप ीे हुआ है , ससि न्हे श्ाीा ी कहते है। इसी प्रकार श्ाीा ी का प्रकटीकरा ब्सृमष्ट्य के रप ीे हुआ है , रो हूबहू उन्हीप की वारपा है। ्ही कारा है मक श्ाीा ी करो बडी रह कहकर सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है, अन््का परीधिाी की ाहदत ीे करोई भी छरोटा-बडा सहीप है। ्हाँ तक मक ाहाँ पर अंश-अंशी भाा की भी कलपसा सहीप की ा सकती। परीधिाी ीे सबका सौन्द्र , प्रेी, आसन्द आमद सीास है। ीा् लीला के खल्े ही श्री रा ी से सभी रपय का प्रकटीकरा है। इसे ही ऋत् अकारत् परीसत् (ीाररफत) का ाावतमाक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा सत् (हकीकत) ीे 582 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रकटीकरा कहते है। हीारी ीासाी् बुधद ीे सीझ ीे आसे के खल्े ही श्ाीा ी एां ब्सृमष्ट्य के वारप का धच्ा अँगसा भाा ीे मक्ा ग्ा है। ीूलतः श सभी एक वारप है। धिाी धिसी का ्ह ककस "तुी ीेरे तस हरो, तुीसय इशक रो ीेरे मदल" ्ही ससिसद करता है। अकरातीत करो संसार के सभी गन्कय ीे पुरष रप ीे ही धचम्त मक्ा ग्ा है, मकन्तु प्रेी की लीला मापरीत वारप के साक ही सम्पामदत हरोती है, ससि सके कारा श्ाीा ी एां ब्सृमष्ट्य करो अँगसा रप ीे दशार्ा ग्ा है। ्दमप प्रेी का ाावतमाक वारप सी-पुरष के रप की पररधधि से परे हरोता है , मकन्तु कालीा्ा, ्रोगीा्ा, एां परीधिाी ीे प्रेी तता करो दशारसे के खल्े मापरीत रपय का ही सहारा खल्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता है। 583 / 992 श्री सागर टीका हक श्री रा स वााीी ात अंग असर का, क्य कर बरसस हरोए। इस सरप करो सुपस भरोी का, सब्द स परोहयचे करोए।।२।। श्ाीा ी तका सखख्य का वारप परीधिाी का है।ै उसकी शरोभा का ाार स कैसे हरो सकता है। इस वाप्स के ब्ाणड के शब्दय ीे तरो इसकी शरोभा का ्काकर ाार स करसे की शमक ही सहीप है। मकस देख्ा सुन््ा स तरफ पाई, तरो क्य दमु स्ां सुन््ा ाए। रो अराा हरोसी असर की, सरो सुस के सुख पाए।।३।। तारती ञास के स हरोसे से आ तक संसार ीे मकसी करो परीधिाी का साकातकार सहीप हरो सका का। ्हाँ तक मक मकसी से उसके बारे ीे सुसा भी सहीप का। उन्हे ्ह भी पता सहीप चल सका मक परीधिाी मकधिर है। ऐसी सवकधत ीे ्ह अलौमकक ञास संसार के साीान्् लरोगय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 584 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के बीच कैसे सुसा ा सकता का। एकीा् रो परीधिाी की आतीा हरोगी, ाह ही इस अलौमकक ञास करो सुसकर आससन्दत हरोगी। भाााकर - सृमष्ट के प्रारसम्भक ऋमष्य से लेकर आ मदस तक वालीला अदैत परीधिाी का ञास मकसी करो भी सहीप का। मकसी से ाैकुणठ -मसराकार करो परीधिाी ीासा, तरो मकसी से अव््ाकृत-सबखलक करो। करोई मारला ही हुआ रो केाल और सतवारप तक अपसी गधत बसा सका। अकरातीत के परीधिाी का साकातकार तरो असम्भा सी बात रही है। आ के ाैञामसक ्गु ीे भी कररोडय मसहाररकाओं (आकाशगंगाओं) ााले इस शून्् से परे की बात सरोची सहीप ाती। ऐसी सवकधत ीे परीधिाी कहाँ है, इसका मसार ् हरोसा तारती ञास के मबसा कदामप सम्भा सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 585 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेरी रह चाहे बरसस करं, हरोए सा मबसा असर इली। ावतर भूखस असर के, इत परोहयचे सा सुपस का दी।।४।। ीेरी आतीा श्ाीा ी के श्रृंगार का ाार स करसा चाहती है, मकन्तु परब् के मद्े हुए ञास के मबसा ्ह सम्भा सहीप है। परीधिाी के सूरी ासय एां आभूषाय की शरोभा का ाार स करसे की शमक ्हाँ की बुधद एां शब्दय ीे सहीप है। पेहेसे उतारे इस ससि ीी, साहीप असर ीे चल माचल। इत सकल करोई है सहीप, असर ााहेदत सदा असल।।५।। परीधिाी ीे ासय और आभूषाय करो पहससे ्ा उतारसे की प्रमक्र्ा सहीप है। ाहाँ स तरो करोई ावतु चला्ीास है , और स अचल है अकारत् डता के कारा सवकर है। परीधिाी की ाहदत ीे सार दा अकरातीत का सूरी वारप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 586 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ही सार ् क्रीडा कर रहा है। इस संसार की तरह परीधिाी ीे कृम्ी ्ा प्रधतमबम्ब (सकल) स ै ी करोई ावतु सहीप है। भाााकर - परीधिाी की करोई भी ावतु स तरो रप से पररातर सशील है और स ड हाा की तरह चला्ीास, अमपतु प्रत्ेक पदाकर अखणड वारप ााला है। उसीे ीार ता ्ा डता की कलपसा भी सहीप है। इस संसार के कम्भय, दीाारय, और ाृकय की तरह उसीे एक ही वकाार और गह ड की तरह बसे रहसे की सवकधत सहीप है , बसलक एक-एक का चेतस, प्रेीी्ी, और आसन्दी्ी है। इसे ही चल-माचल कहा ग्ा है। परीधिाी ीे सकल स हरोसे की बात का तातप्र ्ह है मक ाहाँ पर करोई भी बसााटी ावतु सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 587 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी घट बढ़ असर ीे है सहीप, मीटे स कबूं ररोसस। धतस सरप करो इस ीुख, क्य कर हरोए बरसस।।६।। परीधिाी ीे करोई भी ावतु स तरो घटती है और स बढ़ती है, स तरो कभी सष्ट हरोती है और स कभी उतपन्न हरोती है। ऐसे सधच्चदासन्दी् पदाकर का इस ीुख से कैसे ाार स मक्ा ा सकता है। भाााकर - इस चौपाई के दस ू रे चरा ीे कणकत "ररोसस" शब्द का अकर प्रकाणशत हरोसे से है , ससि सका तातप्र है उतपन्न हरोसा (प्रकाश ीे आसा)। वाप्स की बुधद, ीस, शब्दय आमद के दारा परीधिाी का ्काकर ाार स सम्भा सहीप है। इसी बात करो दशारसे के खल्े इस चौपाई ीे "इस ीुख" शब्द का प्र्रोग हुआ है। ्दमप ीहाीधत मस ी के धिाी हद् ीे ागत बुधद तका बुधद दरोसय ही मारा ीास है मकन्तु प्रवतुतीकरा तरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 588 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्हाँ के साधिसय से ही हरो रहा है, इसखल्े ्काकर ाार स ीे असीकर ता दशार्ी ग्ी है। एक पेहेर द ू ा उतारसा, तब तरो घट बढ़ हरोए। ब स ै ा ससि त धचत चाहे, तब धतत तैसा बसत सरोए।।७।। परीधिाी ीे करोई ास ्ा आभूषा ्मद पहसा और उतारा ा्े ा्े, तब तरो घटसे-बढ़से की बात हरो सकती है। ाहाँ तरो मदल ीे ब भी स ै ी इच्छा हरोती है , उसी पल ाैसा ही श्रृंगार (पहले से ही) मदखा्ी देसे लगता है। असर अराा चाहे मदल ीे, सरो हरोए ीाहे पल एक। ससि स अंग स ै ा ावतर, हरोए खखस ीे कई असेक।।८।। परीधिाी ीे ब्सृमष्ट्ाँ अपसे मदल ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो भी इच्छा 589 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करती है, ाह पल भर ीे ही पूार हरो ाती है। ससि स अंग ीे ससि स प्रकार के ास की इच्छा हरोती है , ाह अधत अलप सी् ीे पूार हरो असेक ास बदल ाती है। ्हाँ तक मक एक पल ीे ाते है। भाााकर - ्काकर सत् तरो ्ह है मक परीधिाी ीे इच्छा हरोते ही ास का श्रृंगार बदला हुआ मदखा्ी देता है। इच्छा हरोसे के बाद ासय के बदलसे ीे साी ीा् का (१८/१८००००० सेकेणड) भी सी् सहीप लग सकता , क्यमक परीधिाी ीे ास और इच्छा करसे ााली आतीाएँ भी एक ही वारप है। एक पल ीे कई ास बदलसे की बात तरो ीासाी् बुधद के दारा सीझ ीे आ ासे के खल्े कही ग्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 590 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुन्दर सरप सरोभा खलए, ससिससगार ावतर भूखस। रस रंग छमब सलूकी, चाहे रह के अन्तवकरस।।९।। श्ाीा ी का वारप अधत सुन्दर शरोभा खल्े हुए है। उसका श्रृंगार, ास-आभूषा, प्रेी (रस) एां आसन्द से भरपूर उसकी शरोभा-सुन्दरता सखख्य के मदल की इच्छासुसार मदखा्ी देती है। ावतर भूखस अंग असर के, सरो सबे है चेतस। सब सुख देाे रह करो, तरो क्य स देाे सैस श्रास।।१८०।। श्ाीा ी के ास एां आभूषा भी परीधिाी के अंग है। ्े सभी चेतस वारप है। ब ्े ीेरी आतीा करो हर प्रकार का आसन्द देते है, तरो श्ाीा ी के से् और कास क्य सहीप देगे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 591 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी स्ा ससिससगार सा त, तब तरो स्ा पेहेन््ा क्ा ात। स्ा पुरासा असर ीे सहीप, पर परोहयचे स इतकी बात।।१८१८।। ्मद श्रृंगार मकसी स्े रप ीे शरोभा देता है, तब तरो स्ा पहससे की बात कही ा सकती है। परीधिाी ीे तरो स्ा ्ा पुरासा साी की करोई बात ही सहीप है। इस संसार की करोई भी उपीा परीधिाी के खल्े प्र्क ु सहीप हरो सकती। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक ब स्ा श्रृंगार हरोता ही सहीप है, तरो एक पल ीे असेक श्रृंगार बदल ासे की बात पहले क्य कही ग्ी है? इसका सीाधिास ्ह है मक परीधिाी ीे सभी श्रृंगार मदल की इच्छासुसार वातः श ही बदलते रहते है। उसीे पहले ााले करो उतारकर मकसी दस ू रे करो ्मद पहसा उस श्रृंगार करो स्ा कहा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्े , तब ा सकता है, अन््का सहीप। 592 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो ससिसफत बडी धचत लीससि ए, बडी अकल सरो ास। फसा बका करो क्ा कहे, ताके परोहयचत सहीप ुबास।।१८२।। श्ाीा ी की ससि स शरोभा की इतसी ीमहीा है, उसे अपसे हद् ीे बसासे ााला बडी बुधद का वााीी कहा ाता है। इस सशर संसार का शरीर अखणड परीधिाी का ाार स कैसे करे। ्ही कारा है मक ्हाँ की ससि िहा से मसकले हुए शब्द परीधिाी तक सहीप पहुँच पा रहे है। तरो भी रह ीेरी सा रहे, हक बरसस मक्ा चाहे। हक इली आ्ा ीुझ पे, सरो ्ा मबस र्रो स ाए।।१८३।। तरो भी ीेरी आतीा ाार स मक्े मबसा रह सहीप पा रही है। ाह धिाी धिसी के ्गु ल वारप का ाार स करसा चाहती है। ीेरे धिाी हद् ीे श्री रा ी का मद्ा हुआ मस बुधद का ञास मारा ीास है , इसखल्े ्गु ल वारप की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 593 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी शरोभा-श्रृंगार का ाार स मक्े मबसा ीुझसे सहीप रहा ाता। सा तरो बैठ झूठी ससि ीी ीे, ए बका बरसस क्य हरोए। इली हुकी खैचे रह करो, अकल ुबां कहे सरोए।।१८४।। अन््का इस संसार ीे रहकर अखणड परीधिाी का ाार स कैसे हरो सकता है। धिाी धिसी का हुकी और मस बुधद का ञास ीेरी आतीा करो ाार स करसे के खल्े प्रेररत कर रहा है, ससि ससे ीेरी बुधद और ाााी श्रृंगार का ाार स कर रही है। ्ासय रह सुख पाात, असर रहे पााे आराी। कहूं ससिसखाई रहअला की, ले साहेदी अला कलाी।।१८५।। इस प्रकार ्गु ल वारप की शरोभा-श्रृंगार का ाार स प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 594 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करसे पर ही ीेरी आतीा करो सुख प्राप हरोता है। परीधिाी की अन्् ब्सृमष्ट्ाँ भी इस श्रृंगार करो आतीसात् करके आसन्द प्राप करेगी। श्ाीा ी ीेरे धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर ्ह श्रृंगार-ाार स वा्ं ही कराा रही है। ीै उन्हीप का कहा हुआ ककस कह रही हूँ। इस प्रकार के श्रृंगार के अातरा के सम्बन्धि ीे तारती ाााी ीे साधक्ाँ भी है। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा ीे कणकत "अला कलाी" का तातप्र कुरआस से कदामप सहीप है , बसलक तारती ाााी (तारती ञास) से है। कुरआस ीे श्ाीा ी के श्रृंगार का करोई भी वपष्ट ाार स सहीप है , इसखल्े उसकी साकी लेसे का प्रश ही सहीप है। धिाी धिसी से सदर ु धिसी श्री देाचन्् ी (श्ाीा ी) करो तारती ञास मद्ा। उस ञास के प्रकाश ीे श्री प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 595 / 992 श्री सागर टीका इन््ााती श्री रा स वााीी ी की आतीा से हब्शा ीे वा्ं करो मारह की जााला ीे झयक मद्ा। पररााी वारप , ्गु ल वारप उसके धिाी हद् ीे मारा ीास हुए और ब्ाााी का अातरा शुर हुआ। इसी क्री ीे सागर गन्क की ्ह ाााी भी उतरी, ससि सीे ्गु ल वारप की शरोभा का ाार स हुआ। इसे ही श्ाीा ी का ससिसखापस कहा ग्ा है। हक इली ससिसर ले् के, ारसस करँ हक ात। रह ीेरी सुख पााहीप, महरदे बसरो मदस रात।।१८६।। श्री रा ी के मद्े हुए तारती ञास करो णशररोधिा्र कर ीै श्ाीा ी की शरोभा का ाार स कर रही हूँ। हे श्ाीा ी! आप ीेरे धिाी हद् ीे मदस-रात मसरन्तर ही ाास कीससि ए, तामक ीुझे आसतीक आसन्द प्राप हरो। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 596 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीरोमीस मदल असर क्ा, सरो असर बसे ससि त हक। मससबत ीेहेर रोस हुकी, और इवक इली बेसक।।१८७।। ब्सृमष्ट्य का मदल (हद्) ही परीधिाी कहा है, और परीधिाी ाह है ाता हाँ अकरातीत श्री रा ी का मसाास हरोता है। ससि सके धिाी हद् ीे श्री रा ी का ाास हरोता है, ाहाँ मसवबत के सभी सुख, ीेहर, रोश, हुकी, इशक, और बेशक इली भी अाश् हरोता है। भाााकर - इस चौपाई ीे मसवबत के सुख का भाा ्ह है उसे हीेशा ्ही असुभा हरोता है मक धिाी धिसी पल-पल ीेरे साक है। ाे ीेरी प्राासली से भी अधधिक मसकट है। उसके साक धिसी के रोश की लीला हरोती है। उसके मदल ीे ाही इच्छा हरोती है रो श्री रा ी चाहते है और ाह अाश् पूार हरोती है। उसका संकलप कभी भी अधिूरा सहीप ाता। इसे ही हुकी कहते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 597 / 992 श्री सागर टीका बेशक इली श्री रा स वााीी (संश् रमहत ञास) का तातप्र श्रीीुखाााी का ीा् पढ़ा हुआ ञास सहीप है , बसलक हकीकत और ीाररफत के उस ञास की प्रामप है , रो प्रा्ः श पढ़से-खलखसे ्ा सीखसे-ससिसखासे से प्राप सहीप हरोता। इसे ही सागर २३/४३ ीे इस प्रकार कहा ग्ा हैीहाीत कहे ए ीरोमीसरो, ए ऐसी कंु ी इली। ए ीेहर देखरो ीेहबूब की, तुीकरो पढ़ाए आप खसी।। ए बरकत हक असर ीे, तरो मदल असर क्ा ीरोमीस। तरो बरसस हरोए असर का, रो ्य मदल हरोए ररोसस।।१८८।। ्ह सारी शरोभा श्री रा ी के परीधिाी ीे ही हरोती है। ्ही कारा है मक ब्सृमष्ट्य के मदल करो धिसी का अशर (परीधिाी) कहते है। ्मद इस प्रकार से मकसी का मदल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 598 / 992 श्री सागर टीका परीधिाी हरो श्री रा स वााीी ा्े, तभी उसके मदल से धिसी की कृपा (ीेहर) दारा परीधिाी का ाार स सम्भा है। भाााकर - इस चौपाई का ्ह वपष्ट आश् है मक अपसे धिाी हद् ीे अकरातीत के मारा ीास हुए मबसा ीासाी् बुधद से परीधिाी का ाार स कदामप सम्भा सहीप है। ससि सका हद् धिाी कहलासे की शरोभा प्राप कर लेता है , उसीे धिसी के आदेश ा कृपा (हुकी और ीेहर) के साक संश् रमहत ञास अातररत हरो बारीक बाते असर की, सरो ाता है। ासे असर के तस। ीात लेसी सरो सुख, ससि सका टू टा अन्तवकरस।।१८९।। परीधिाी की ्े सूकी (रहव्ी्ी) बाते है और इसे ीा् ब्ाँगसा्े ही ासती है। इस संसार ीे शरीर रहते हुए इस सुख का रसावाादस ाही कर सकता है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 599 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि सका हद् संसार से टू ट चुका हरोता है। भाााकर - संसार की तृष्ााओं से रमहत हरो ासा ही संसार से मदल का टू टसा है। ्े तीस तृष्ाा्े इस प्रकार है१८. लरोकेषाा- संसार ीे प्रधतषा की इच्छा। २. मातेषाा- लौमकक सुख-सम्पखत की इच्छा। ३. दारेषाा- पाररााररक सम्बसन्धि्य ्ा णशष््य की संख्ा बढ़ासे का ीरोह। इस तृष्ााओं करो त्ागसे पर ही काी, क्ररोधि, लरोभ, ीरोह, और अहंकार आमद से मसाृत हुआ ा सकता है। इसके खल्े ्गु ल वारप के ध््ास के अधतररक अन्् करोई उपा् सहीप है। ससि स प्रकार कीरे ीे दीपक ही कक का सारा अन्धिकार का भर ीे भाग उसी प्रकार लाते ाता है , रो प्रेीपूारक अपसे हद् ीे अकरातीत के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 600 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्गु ल वारप का ध््ास करता है उसके हद् से तृष्ाा्े छूीन्तर (सीाप) हरो ाती है और ीा्ााी माकार पास भी सहीप फटकते। एकीा् ऐसे ही मदल करो धिसी का पूारक सुख प्राप हरोता है। छाती ीेरी करोील, और करोील तुीारे चरस। बासा कररो धतस पर, तुीसय मससबत असर तस।।२०।। हे ीेरे धिाी धिसी! ीेरी छाती (ाकवकल) करोील है और आपके चरा कील भी बहुत करोील है। परीधिाी के हीारे ीूल तसय से आपका अखणड सम्बन्धि है , इसखल्े अपसे चराय करो ीेरे ाकवकल पर मारा ीास कर दीससि ए। भाााकर - इस प्रकरा की चौपाई २०, २१८, और २२ ीे तीस प्रकार की छाती का ाार स हैप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 601 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी १८- आसतीक शरीर की छाती। २- हद् कील रपी छाती। ३- आतीा रपी छाती। प्रेी गत ीे बहुत ही मप्र् ावतु करो अपसी छाती से लगासे की परम्परा है। एक ब्ाँगसा के खल्े धिसी के चराय से अधधिक मप्र् ावतु और क्ा हरो सकती है। के इस पञभौधतक तस से परे आतीा का ीा रो भााी् शरीर है, उसकी छाती पर धिसी के चराय करो रखसे की बात अपसे प्रेी की गु् अणभव््मक है। ्दमप इस अणभव््मक करो इस पञभौधतक तस से पूारत्ा अलग सहीप मक्ा ा सकता, मकन्तु लक् आसतीक शरीर के खल्े ही हरोता है। तारती ञास का प्रकाश पाकर ीा भी वा्ं करो अकरातीत की अधिार्धांमगसी ीाससे लगता है और अपसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 602 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मदल ीे धिसी की शरोभा करो बसासे का प्र्ास करता है। इस प्रकार आतीा का अखणड सम्बन्धि तरो धिसी से हरोता ही है, मकन्तु ीा के मदल करो भी अब अशर कहलासे की शरोभा प्राप हरोसे लगती है , क्यमक आतीा ीा के ऊपर ही बैठकर खेल करो देख रही हरोती है। परीधिाी के ीूल सम्बन्धि से आतीा के धिाी मदल ीे आसन्द की असुभूधत हरोती है , उसका कुछ अंश रो ीा भी प्राप कर लेता है। प्रेी के दारा ाह इस वतर पर भी पहुँच सकता है मक श्ाीा ी तका सखख्य करो छरोडकर सम्पूार पच्चीस पक तका श्री रा ी का दीदार करसे का सौभाग् प्राप कर ले। "बदले आप देखाात, प््ारी मससबत रखे णछपाए" (सागर १८४/२३) का ककस ्ही ससिसद करता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 603 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसी प्रकार प्रकरा ९ की चौपाई २० ीे धिसी के चराय करो अपसे ाकवकल पर रखसे का भाा दरोसय के मदल के खल्े ीा और आतीा सम्भा है। श्रृंगार २०/१८१८०,१८२० तका २६/१८२,१८३ का ककस ्ही ससिसद करता हैसा तरो हक आदीी के मदल करो, असर कहे क्य कर। पर ए आससिसक ीासूक की ााहेदत, मबसा आससिसक स करोई कादर।। तरो पा्ा खखताब अरस का, सा तरो मदल आदीी असर क्य हरोए। ए हक हादी ीरोमीस बातूस, और बूझे असर मदल ीरोमीस तरो क्ा, रो हरोाे करोए।। रो हक सरो रह मससबत। सा तरो असर मदल आदीी का, क्य कह्ा ाए खााब ीे इत।। रह तस की असल असर ीे, असर खााब सहीप तफाात। तरो क्ा सेहेरग से स ीक, बीच हक असर दसु ी बीच इत।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 604 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेरी छाती मदल की करोील, धतस पर राखरो सरी कदी। इतहीप से मबछाए देऊं, ुदे कररो ससि स दी।।२१८।। ीेरे प्रााेशर! ीेरे मदल की छाती बहुत करोील है। ीैसे उसे सेज्ा के रप ीे आपके खल्े प्रवतुत मक्ा है। ीेरी एकीा् ्ही चाहसा है मक अपसे अधत करोील चराय करो इस पर रख दीससि ए और एक पल के खल्े भी इससे अलग स कीससि ए। रह छाती इससे करोील, धतससे पाँउं करोील। इत सुख देऊँ ीासूक करो, सुख ्य लेऊँ सेहेचल।।२२।। इसके अधतररक ीेरी आतीा की छाती मदल की छाती से भी अधधिक करोील है, मकन्तु आपके चरा कील तरो आतीा की छाती से भी अधधिक करोील है। अपसे इस चराय करो ीेरी आतीा की छाती पर रख दीससि ए, तामक ीै प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 605 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आपकरो सुख दे सकँू और आपसे परीधिाी का अखणड आसन्द ले सकँू । भाााकर - आतीा पराती का प्रधतमबम्ब है। उसी भाा करो लेकर आतीा की छाती का ्हाँ ाार स मक्ा ग्ा है। ्दमप अकरातीत सार सुख के दाता है और पूार साीर्र ाास है, मफर भी प्रेी लीला ीे सुख लेसे -देसे की बात ाैसे ही कहसी पडती है स ै े मकसी के मसराकार ीधिुर आखलगस ीे दरोसय करो ही सुख की असुभूधत हरोती है। ीेरी रह सैस की पुतली, बीच राखूं धतस तारस। खखस एक न््ारी ससि स कररो, ए चरस बसे मसस मदस।।२३।। हे धिाी धिसी! ीेरी आतीा तरो पराती रपी सैस की पुतली है। उस पुतली के अन्दर सवकत तारा रपी मदल ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 606 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीै आपके चराय करो बसाकर रखसा चाहती हूँ। ीेरी एकीा् ्ही चाहसा है मक आपके चरा कील मदस रात मसरन्तर ीेरे हद् ीे ाास करे और आप अपसे चराय करो एक पल के खल्े भी ीेरे मदल से अलग स करे। भाााकर - ससि स प्रकार परीधिाी ीे पराती (सैस) के मदल से प्रेी और आसन्द की लीला सम्पामदत हरोती है, उसी प्रकार इस खेल ीे आतीा (पुतली) के मदल से सारी लीला ुडी हुई है, ससि से "तारस" (तारा) कहा ग्ा है। इसी आतीा के धिाी हद् ीे धिसी के वारप करो बसासे की बात सार ् कही ग्ी है। चरस तली अधत करोील, ीेरी रह के सैस करोील। मसस मदस राखय इस पर, ससि स आासे देऊं बीच पल।।२४।। आपके चराय की तली बहुत ही करोील है। इसी प्रकार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 607 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेरी आतीा के से् (मदल) भी बहुत करोील है। ीै इस सैसय (मदल) ीे आपके चराय करो मदस -रात बसाकर रखँग ू ी और कभी भी पलकय करो झपकसे सहीप दँगू ी। भाााकर - पलकय के बन्द हरोते ही ससि स प्रकार दीदार की प्रमक्र्ा बन्द हरो ाती है, उसी प्रकार आतीा के धिाी हद् रपी ससहासस पर ब ्गु ल वारप मारा ीास हय और आसतीक-दमष्ट से दीदार हरो रहा हरो, तरो उसीे बाधिा स पडसे (पलकय के स झपकसे ) की बात ्हाँ की ग्ी है। आतीा का मदल ही मकस प्रकार से् ्ा तारा है , ्ह आगे की चौपाई से वपष्ट हरो ा्ेगा। ्ा रह सैस की पुतली, धतस सैसय बीच तारस। इत रहे सेज्ा मसस मदस, धिररो उजल दरोऊ चरस।।२५।। हे प्रााालभ! ीेरी ्ह आतीा पराती रपी सैस की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 608 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पुतली है। उस आतीा रपी पुतली के तारय (मदल) ीे आपके खल्े मदस-रात (मसरन्तर) सेज्ा मबछी हुई है। हे धिाी धिसी! अपसे इस दरोसय उजाल चराय करो इस सेज्ा पर रख दीससि ए। भाााकर - ससि स प्रकार से् से देखसे की प्रमक्र्ा हरोती है, उसी प्रकार मदल से प्रेी की लीला सम्पामदत हरोती है। ्ही कारा है मक मदल करो से् की संञा भी प्राप हरोती है। चौपाई २४ ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। उसे ही चौपाई २५ ीे पराती रपी सैस का तारा कहा ग्ा है। इस प्रकार संकेप ीे सैस (पराती) पुतली (आतीा) और तारा (मदल) है। ीेरा मदल तुीारा असर है, ीाहे बहुमबधि की ीरोहरोलात। कई से पहडरोले तखत, रह सए सए रंगय मबछात।।२६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 609 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेरा मदल ही तरो आपका ाह परीधिाी है, ससि सीे असेक प्रकार के ीहलय की शरोभा है। इस ीहलय ीे असेक (असन्त) सेज्ाएँ मबछी हुई है, महणडरोले लटक रहे है, तका ससहासस भी रखे हुए है। ्ह सम्पूार साीगी ीेरी आतीा से आपकरो ररझासे के खल्े ही अलग-अलग स्े-स्े रंगय ीे स ा रखी है। आसा पूररो सुख देओ, सए सए कराऊं ससिससगार। द्रो पूरी ीवती सा बेहरोसी, सुख लेऊं सब अंग सीार।।२७।। ीेरे प्राा मप्र्ती! आप ीेरे धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर ीेरी इस इच्छा करो पूार कीससि ए और प्रेी का आसन्द दीससि ए। ीै आपकरो स्े -स्े श्रृंगारय से स ासा चाहती हूँ। आप ीुझे प्रेी की पूरी ीवती (आसन्द) ीे डु बरो दीससि ए, मकन्तु उसीे ीुझे बेसुधि (बेहरोश) ीत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 610 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कीससि ए, क्यमक ीै अपसे सभी अंगय से अच्छी प्रकार सुख लेसा चाहती हूँ। भाााकर - आठय सागर अकरातीत के मदल से प्रकट हुए है। पराती अकरातीत का तस है। उसे धिसी के मदल का अंग भी कहा ाता है। अतः श आठय सागरय के रस का प्रााह पराती के मदल ीे हरोसा वााभामाक है। इस प्रकार इस संसार ीे आतीा के धिाी हद् ीे अकरातीत के ्गु ल वारप के मारा ीास हरो ासे पर, उन्हीप सागरय के भााय ीे भामात हरोकर ररझासा ही स्े -स्े भााय से धिसी का श्रृंगार करासा है। ब आतीा सूर सागर के भााय ीे भामात हरोती है , तरो ाह देखती है मक मकस प्रकार ्गु ल वारप के सख से णशख तक एक-एक ररोी ीे कररोडय सू्ार का अलौमकक ते सीा्ा हुआ है, ससि सकी मदव्् छटा चारय ओर फैल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 611 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रही है। सूरी सौन्द्र की इस असन्त राणश करो देखकर ाह वा्ं करो भी इसी श्रृंगार ीे पाती है। ाह कभी वा्ं करो देखती है, तरो कभी श्ाीा ी करो देखती है। उसे लगता है मक उसके और श्ाीा ी के श्रृंगार ीे रञीा् भी अन्तर सहीप है। उसके श्रृंगार ीे भी सख से णशख तक कररोडय सू्र की आभा सीा्ी हुई है। सीर सागर (रहय की शरोभा) और कीर सागर (ाहदत) के भााय ीे इस प्रकार धिसी का श्रृंगार करा्ा ाता है। दधधि सागर के भााय ीे डू बकर ाह ्गु ल वारप के सख से णशख तक के एक-एक अंग ीे डू ब प्रत्ेक अंग की शरोभा ीे ाती है। ाह स ै ा- स ै ा भाा लेती है, ाैसा-ाैसा ही श्रृंगार मदखसे लगता है। इन्हीप भााय ीे डू बी हुई ाह ीधिु सागर ीे गरोता लगासे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 612 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लगती है। उसे असुभा हरोता है मक ्ही तरो ीेरा प्रााालभ है, रो ीुझे अपसे इशक से सीपचा करता है। ्ह ीुझसे एक पल भी अलग स का और स कभी हरोगा। ्ह तरो ्हाँ भी है और ाहाँ भी है। अब ाह रस सागर के भााय ीे भामात हरोकर वा्ं करो उसका ही वारप ीाससे लगती है। उसे ्ह लगता है स ै े प्रेी और आसन्द के सागर वारप अपसे प्राा मप्र्ती से ाह लहरय की भांधत क्रीडा कर रही है। सागर ीे असंख् लहरे उठती है और उसी ीे सीा ाती है। दरोसय एक ही वारप है , अंग-अंगी है। ाह उसके मदल का ही साकात् वारप है। धिसी की शरोभा करो मसरखते-मसरखते ाह उसके मदल ीे डू ब ाती है, हाँ उसे असन्त इशक, मसवबत, ाहदत, सौन्द्र , इली आमद का रस मीलसे लगता है। पुसः श उसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 613 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आभास मीलसे लगता है मक अरे! ाह तरो कभी धिाी धिसी से अलग की ही सहीप। ीै तरो ाह ही हूँ। ाह ीै है। ाह ीुझीे है, ीै उसीे हूँ। इसके पशात् केाल रह ाता है - तू.......तू.......तू। ्ही है स्े-स्े श्रृंगारय से स ासा। आतीा अपसे धिाी हद् ीे ्गु ल वारप की शरोभा करो ससि तसा आतीसात् करेगी, ीा का मदल भी उतसा आससन्दत हरोगा। उसके ीस, धचत आमद ीे ब्ासन्द की अलौमकक शासन्त छा्ी रहेगी। उसकी ाााी , इसन्््य, तका ीुखीणडल पर एक अलौमकक ते छा्ा रहेगा। इसे ही सभी अंगय से धिसी का सुख लेसा कहा ग्ा है। असर तुीारा ीुझ मदल, ीाहे असर की सब मबसात। खासा पीसा सुख ससिससगार, ीाहे सब न््ाीत हक ात।।२८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 614 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेरा मदल ही तरो आपका ाह परीधिाी है, ससि सीे मस धिाी की लीला रपी सम्पूार साीगी मादीास है। परीधिाी ीे श्री रा श्ाीा ी और सखख्य के बीच हरोसे ााली प्रेी लीला तका श्रृंगार का रो सुख है, ाह सारी आध््ासतीक सम्पदा (सेीत) प्रधतमबसम्बत रप से ीेरे अशर मदल ीे भी अाश् है। भाााकर - खासे-पीसे का भाा भरो स के अन्तगर त ही आता है। परीधिाी के सभी पक तका अष्ट प्रहर की सारी लीला पराती के मदल ीे मसमहत है। पराती का प्रधतमबम्ब ही आतीा है। अतः श वााभामाक है मक आतीा के ागत हरोसे पर पराती के मदल की सारी सवकधत आतीा के मदल ीे भी हरो ा्ेगी। इस चौपाई ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। सागर १८१८/४४ का ्ह ककस भी इसी बात की पुमष्ट करता हैप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 615 / 992 श्री सागर टीका अन्तवकरस आती के, श्री रा स वााीी ब ए र्रो सीा्। तब आती परआती के, रहे स कछू अन्तराए।। सब गुझ तुीारे मदल का, ससि स ीेरा मदल मक्ा ररोसस। ेता ीता बीच असर के, सब आ्ा मदल ीरोमीस।।२९।। ीेरे धिाी हद् ीे आपके मारा ीास हरो ासे से आपके मदल की सारी गु् (ीाररफत, परीसत्) बाते भी ीुझे ीालूी हरो ग्ीप, ससि ससे ीेरा मदल अब उस असीरोल ञास से प्रकाणशत हरो ग्ा है। इस प्रकार ीेरे तस से ब्ाााी का अातरा हरोसे से परीधिाी का ाह सम्पूार ञास ब्सृमष्ट्य के हद् ीे भी आ ग्ा है। तरो क्ा असर मदल ीरोमीस, हक बैठे उठे खेलाए। सुख बका हक असर रहे, ससिसफत क्य कहे मदल बु ांए।।३०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 616 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्य के धिाी हद् ीे अकरातीत मारा ीास हरोकर उठते-बैठते है और प्रेीी्ी क्रीडा करते है। परीधिाी की इस ब्सृमष्ट्य के ससि स मदल ीे अकरातीत के अखणड सुखय का इस संसार ीे ही असुभा हरोता है , उसकी ीमहीा का ाार स इस ससि िहा से कैसे हरो सकता है। भाााकर - इस चौपाई के दस ू रे चरा ीे कणकत "बैठे उठे खेलाए" का ीूल भाा प्रेी की उस आसन्दी्ी लीला के प्रधतमबसम्बत हरोसे से है, रो धिाी धिसी परीधिाी ीे मक्ा करते है। ्हाँ उठसे-बैठसे की लौमकक मक्र्ा से करोई सम्बन्धि सहीप है। पर मदल के रो अंग है, धिसी असर तुीारा सरोए। तुीे देखे कहे बाते सुसे, लेाे तुीारी बासी की खस ु बरोए।।३१८।। हे धिाी धिसी! आपके मदल के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो अंग है, उसका मदल 617 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ही आपका अशर है अकारत् उसीे आपका मसाास है। ाे ही आपका दीदार करते है, अपसी प्रेी भरी बाते कहते है , और आपकी सुसते है। आपकी ाााी का अीृत रस (सुगसन्धि) भी ाे ही लेते है। भाााकर - श्ाीा सागर सभी रा हद् ीे श्री रा ी, सखख्ाँ, ीहालकीी, तका आठय ी के मदल के अंग है। इसके ही धिाी ी मारा ीास हरोकर लीला करते है। "सरो सुरत धिसी करो ले आाेस, संद घर मक्रो प्राेस।" प्रगट ाााी ३७/२९ का ्ह ककस ्ही ससिसद करता है मक अकर ब् की आतीा के अन्दर अकरातीत के उसी आाेश से लीला की है, ससि ससे इस श्ाीा ी एां इन््ााती ागसी ब्ाणड ीे ी की आतीा ीे लीला की है। इस प्रकार अकर ब् भी श्री रा ी के अंग ीासे ा्ेगे, ्हाँ तक मक परीधिाी का एक -एक का श्री प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 618 / 992 श्री सागर टीका रा श्री रा स वााीी ी के मदल का अंग है। इस सम्बन्धि ीे सागर १८/४३ का ्ह ककस देखसे ्रोग् हैरो कछुए ची असर ीे, सरो सब ााहेदत ीांहे। रा एक मबसा ााहेदत, सरो तरो कछुए साहे।। मपए तुीारी सुराही का, कई वााद फूल सराब। ऐसी लेऊं ीवती ीेहेबूब की, ज्य उड ााे खााब।।३२।। आपका मदल प्रेी (इशक) की सुराही है। ीेरी एकीा् ्ही इच्छा है मक ीै अपसे मदल ीे आपके प्रेी का रसपास करँ, ससि ससे ीुझे इली, मसवबत, ाहदत, और आपकी शरोभा-श्रृंगार आमद असेक प्रकार के आसन्द मीले। ीै आपके ऐसे अलौमकक आसन्द ीे डू ब ाऊँ मक ्ह सारा ब्ाणड ही ीुझे झूठा लगसे लगे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 619 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक वााद मदल देखे तुीकरो, सुसे तुीारी बासी की मीठास। लेऊं खस ु बरोए बरोलूं तुीसय, और क्य कहूं दल ु हा मालास।।३३।। ीेरे प्रााालभ! ीै तरो केाल इतसा ही चाहती हूँ मक एक बार आपकरो अपसे धिाी मदल ीे मबठाकर ी भरकर दीदार कर लूँ तका अीृत से भी असन्त गुसा ीीठी आपकी ाााी करो सुसँू और ीै भी अपसे मदल की कुछ कह लूँ। ्मद ीुझे इस प्रकार के आसन्द का रसपास करसे का सौभाग् प्राप हरो ाता है , तरो उसका ाार स करसे के खल्े ीेरे पास करोई शब्द सहीप है। ेता सुख तुीारे असर ीे, सरो सब हीारे मदल। ए सुख रह ीेरी लेाहीप, रो मदए इस असर ीे मील।।३४।। ससि तसा सुख आपके परीधिाी ीे है , उतसा सुख हीारे मदल ीे भी है। आप ीेरे धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 620 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी के असन्त सुखय करो दे रहे है और ीेरी आतीा उसका रसपास कर रही है। भाााकर - परीधिाी ीे एकमदली (ाहदत) हरोसे के कारा पराती के मदल करो ाहाँ के सभी सुख प्राप है। इस प्रकार उसके प्रधतमबम्ब वारप आतीा के मदल ीे उस सभी सुखय का रसावाादस हरोसा वाभामाक है , मकन्तु उसके खल्े आती- ागधत अमसाा्र है। इसके मबसा ्ह सौभाग् सहीप प्राप हरो सकता। रह बरसस करे क्ा हरोए, रोलय वााद स ले मससबत। इवक इली रोस हुकी, ए सब ीेहेरे पाइए न््ाीत।।३५।। ब तक आतीा अपसे ीूल सम्बन्धि के इस लक् करो प्राप स कर ले , तब तक इस बातय करो कहसे से क्ा लाभ है, कुछ भी सहीप। धिसी का प्रेी (इशक), ञास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 621 / 992 श्री सागर टीका (इली), श्री रा स वााीी रोश, और आदेश (हुकी) आमद आध््ासतीक सम्पदा्े (सेीते) ीा् धिसी की ीेहर (कृपा) से ही प्राप हरोती है। भाााकर - मप्र्ती का दीदार और उससे ाातार आमद का सुख लेसा ही ीूल सम्बन्धि (मसवबत) का वााद लेसा है। मदल के अंगय मबसा हक के, इत वााद ली े क्य कर। देखे सुसे बरोले मबसा, तरो क्ा असर साी धिर्ा धिसी मबगर।।३६।। इशक, इली, रोश, हुकी आमद धिाी धिसी के मदल के अंग है। इसके मबसा इस संसार ीे मसवबत का वााद सहीप खल्ा ा सकता, अकारत् इसके मबसा अपसे मप्र्ती का दीदार एां ीधिुर ाातारलाप असम्भा है। ्मद अपसे मदल ीे धिसी करो बसा्ा (मबठा्ा) सहीप, उसका दीदार सहीप मक्ा, उसकी ीधिुर बाते सुसी सहीप , तका उससे वा्ं प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 622 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बाते सहीप की , तरो इस मदल करो अशर कहलासे का क्ा अधधिकार है, कुछ भी सहीप। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह बात वपष्ट कर दी ग्ी है मक ीा् सुन्दरसाक के सीूह ीे ससम्ीखलत हरो ासे से अपसे मदल करो परीधिाी कहसे का अधधिकार सहीप मील ाता। इसके खल्े अपसे धिाी हद् ीे ्गु ल वारप करो अमसाा्र रप से मबठासा हरोगा। इसके मबसा आती ागधत की बाते करसा ीा् मदाावाप्स ्ा हााई ीहल के सीास है। "हक इली ससि त परोहयच््ा, धतत असर हुआ मदल हक" के आधिार पर केाल बौधदक ञास से अपसी आतीागधत की पूारता ीाससा उधचत सहीप , ावतुतः श ्ह अधिूरी ागसी है। अगली चौपाई भी इसी बात करो दशार रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 623 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो ीासूक से स आइ्ा, देख्ा सुन््ा स कही बात। सुख अंग स खल्रो इस से करो, ताए मसरफल गई रो रात।।३७।। इस ागसी ब्ाणड ीे ससि ससे भी अपसे अशर मदल की सेज्ा पर अपसे धिाी धिसी करो मारा ीास कर उसका दीदार सहीप मक्ा, उसकी प्रेी भरी बाते सुसी सहीप, अपसे मारह-प्रेी की बाते कही सहीप, और मकसी भी प्रकार से मदल ीे बसासे का सुख सहीप खल्ा , उसका इस खेल ीे आसा ही व््कर है, ऐसा ीाससा चामहए। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा ीे "रात" का तातप्र खेल के तीसरे महवसे (लैल-तुल-क् के तीसरे तकरार) ागसी ब्ाणड से है। ीा्ा ीे ब्सृमष्ट्य के आसे करो राम् की संञा दी ग्ी है। इस चौपाई ीे बहुत रोर देकर ्ह बात दशार्ी ग्ी है मक सुन्दरसाक का सारपरर लक् है- ्गु ल वारप करो अपसे धिाी हद् ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 624 / 992 श्री सागर टीका मारा ीास करसा। श्री रा स वााीी रो इस तरफ अपसे कदी सहीप बढ़ाते, मसः शसन्देह ाे संसार के सबसे भाग्हीस व््मक है। असर तुीारा ीुझ मदल, ीाहे असर की सब मबसात। सब न््ाीते इसीे, असर बका हक ात।।३८।। ीेरे प्राा मप्र्ती! ीेरा हद् ही तरो आपका ाह परीधिाी है, ससि सीे ाहाँ की लीला रपी सारी साीगी मारा ीास है। इसीे आप ्गु ल वारप समहत सभी अँगसा्े, एां इशक, ाहदत, मसवबत आमद के सुख समहत सभी सेीते (आध््ासतीक सम्पदा्े) भी मादीास है। पेहेले बरसस करं ससिसर राखडी, पीछे बरसस करं सब अंग। अखंड ससिससगार असर करो, ीेरी रह हीेसा संग।।३९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 625 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सबसे पहले ीै श्ाीा ी के ससिसर पर मारा ीास राखडी का ाार स करती हूँ, उसके पशात् ीै ास आभूषाय समहत उसके एक-एक अंग की शरोभा का ाार स करँगी। उसका ्ह अखणड श्रृंगार उस मदव्् परीधिाी का है, ससि सकी शरोभा ीे ीेरी आतीा हीेशा डू बी रहती है। ।। ींगला चरा सम्पूार ।। अब ्ह ींगलाचरा सम्पूार हुआ। ससिसर पर बसी रो राखडी, कहूं मकस मबधि सरोभा ए। आसीास ससि ीी के बीच ीे, एकै श्ाीा ी के ससिसर पर रोत खडी ले।।४०।। रो राखडी आ्ी है, उसकी शरोभा का ाार स ीै कैसे करँ। उसकी सूरी ज्रोधत इतसी अधधिक है मक धिरती और आकाश ीे सार ् ज्रोधत ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 626 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ज्रोधत मदखा्ी दे रही है। मगरदााए ीामसक बसे, बीच हीरे की रोत। मकसार ऊपर रो सीलाी, हुई ससि ीी अंबर उदरोत।।४१८।। राखडी के चारय ओर ीाणाक के सग हीरे की ज्रोधत डे हुए है। बीच ीे गीगा रही है। राखडी की मकसार पर सीली के सग है। इस प्रकार धिरती से लेकर आकाश तक सार ् प्रकाश ही प्रकाश दमष्टगरोचर हरो रहा है। सेके भी ससिसर कांगरी, और ससिसर कांगरी पांस। इस ससिसर सरोभा क्य कहूं, अलेखे अीास।।४२।। ीाँग के ससिसरे पर काँगरी बसी है, ससि सकी शरोभा पास के पते के आकार ीे आ्ी है। श्ाीा ी के ससिसर की इस अलौमकक शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ। इसे स तरो व््क प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 627 / 992 श्री सागर टीका मक्ा श्री रा स वााीी ा सकता है और स इसकी करोई उपीा दी ा सकती है। ीाहे हारे ख ूरे बूमट्ां, बीच फूल करत है ुदे ुदे रंगय रोत। ाेर, ठौर ठौर ररोससी हरोत।।४३।। ीाँग के ससिसरे पर बसी इस काँगरी ीे ख ूर के पतय की तरह लहरीदार आकृधत ीे बसे कढ़ाा तका बूमट्य की हारे (पँमक्ां) आ्ी है। बीच-बीच ीे फूलय की ज्रोधत गीगा रही है। इसीे अलग-अलग रंगय के के सग भी डे हुए है, ससि ससे ााहरातय गह- गह प्रकाश हरोता है। भाााकर - ख ूर के पतय की तरह की लहरीदार आकृधत ााले कढ़ाा करो ख ूरर्ा कहते है। फूलय की छरोटी आकृधत ााले कढ़ाा करो बूटी कहते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 628 / 992 श्री सागर टीका लाल सेके श्री रा स वााीी रोत ाेर की, दरोए पटली सीारी ससिसर। बसी संगस की कांगरी, बल बल ीाँग ीे ाऊं फेर फेर।।४४।। ााहरातय की लाल ज्रोधत गीगा रही है। ससिसर पर दरो पटखल्य की शरोभा आ्ी है। इसीे सगय की काँगरी बसी है, ससि सकी सुन्दरता पर ीै बारम्बार बखलहारी भाााकर - ाती हूँ। ााहरातय की लाल ज्रोधत ही ससिसन्दरू की तरह मदखती है। केशय करो बाँधिसे की पटी करो पटली कहते है। ्े पटखल्ाँ भी ााहरातय की है। मसलाट पर सर ीरोधतस की, ऊपर सीलाी बीच ीामसक। दरोऊ तरफय तीसय सरे, तीसय बराबर ीाफक।।४५।। ीाके पर ीरोधत्य की लरर्ाँ (लमड्ाँ) आ्ी है। इस लमड्य के ऊपरी भाग ीे सीली तका बीच ीे ीाणाक के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 629 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सगय की शरोभा है। ीाँग के दरोसय तरफ रो तीस -तीस लमड्ाँ आ्ी है, इस सबकी शरोभा बराबर है। इस तीसय पर कांगरी, बसी सेके बराबर। पांस कटाा सेके पर, ए ुगत कहूं क्य कर।।४६।। इस तीसय लमड्य के ऊपर काँगरी बसी हुई है , रो ीाँग के साक शरोभा देती है। ीाँग के ऊपर पीछे की ओर पास के पते स ै ी बसााट है। इस अलौमकक शरोभा का ाार स ीै कैसे कर सकती हूँ, कदामप सहीप। ीामसक ीरोती सीलाी, हेी हीरा पुखरा । इस ीुख सरोभा क्य कहू,ं ससिसर खूबी रही मबरा ।।४७।। श्ाीा ी के ससिसर पर आ्ी हुई राखडी ीे ीाणाक , ीरोती, सीली, वाार , हीरा, और पुखरा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा डे हुए है। 630 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस प्रकार उसके ससिसर की रो अलौमकक शरोभा हरो रही है, इस ीुख से उसका ाार स कर पासा सम्भा सहीप है। भाााकर - सरोसा धिातु है और ीाणाक, ीरोती आमद ााहरात है। इस संसार ीे प्रा्ः श धिातुओं ीे करो रोडा ााहरातय ाता है, मकन्तु परीधिाी ीे ऐसा ीाससा आाश्क सहीप है, क्यमक ाहाँ की प्रत्ेक ावतु ीे बा्ी चेतसता दमष्टगरोचर हरोती है। बीच फूल कटाा कई, राखडी के मगरदााए। ए ुगत बसी ीूल लग, गूंकी संग ीरोती बेसी बसाए।।४८।। राखडी के चारय ओर कई प्रकार के फूलय की आकृधत आ्ी है। इस प्रकार की बसााट राखडी के मपछले भाग तक है। इसके आगे चरोटी की शरोभा है, रो ीरोधत्य के सगय से गुँकी हुई है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 631 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तीस संग रंग गरोफसे, धतस एक एक ीे तीस रंग। हीरा ीामसक सीलाी, सरोणभत कंचस संग।।४९।। चरोटी के गरोफसे (तीसय) ीे तीस प्रकार के रंगय के सग डे हुए है। उसीे प्रत्ेक सग के तीस -तीस रंग है। गरोफसे ीे सरोसे के अन्दर हीरा, ीाणाक, तका सीली के डे हुए सग सुशरोणभत हरो रहे है। तीसय गरोफसे घूघ ं री, बेसी गूक ं ी सई ुगत। बल बल ाऊं देख देख के, रह हरोए सहीप तृमपत।।५०।। चरोटी के तीसय गरोफसय ीे घुघ ं रर्ां डी हुई है (लटक रही है)। चरोटी एक सई ही शरोभा ीे गूँकी हुई है , ससि से देख-देखकर ीै बखलहारी हरोती हूँ , मफर भी ीेरी आतीा तृप सहीप हरो पा रही है। भाााकर - प्रेी लीला ीे बार-बार देखसे की इच्छा हरोती प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 632 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है, क्यमक आणशक (प्रेीी) के खल्े ीाशूक (प्रेीावपद) का दीदार ही ीास हरोता है। ाह एक पल के खलए भी इसे छरोडसा सहीप चाहता। ्ही कारा है मक ाह बारम्बार दीदार करसे के खल्े मााश हरो ाता है। इसी भाा करो इस चौपाई ीे "अतृप" कहा ग्ा है। ्दमप ब्ासन्द ीे "अतृमप" की कलपसा भी सहीप हरोती, क्यमक असन्त प्रेी और असन्त शासन्त तरो ीा् उसी ीे है। लौमकक ााससाओं ीे ही अतृमप हरोती है, ब्ासन्द ीे सहीप, मकन्तु उस शब्दातीत प्रेी की लीला करो व््क करसे ीे ऐसे शब्द का प्र्रोग करसा पडा है। चारय बंधि बेसी तले, सीले पीले सरोणभत। सरोभे सरी बंधि चरोली् के, खबू ी साडी तले देखत।।५१८।। चरोली (ब्लाउ ) के चारय बन्धि (तसी) पीठ पर बँधिे है प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 633 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और इसका रंग सीला-पीला है। ्े सभी बन्धि चरोटी के सीचे ही सुशरोणभत हरो रहे है। चरोली के ्े बन्धि बहु त ही करोील है और इसकी सुन्दरता साडी के सीचे से मदखा्ी देती है। बेसी सरोणभत गौर पीठ पर, चरोली और बंधि चरोली के। सब देत देखाई साडी मीसे, सब सरोभा लेत ससंधि ए।।५२।। श्ाीा ी की गरोरे रंग की पीठ बहुत ही सुन्दर है, ससि सके ऊपर चरोटी, चरोली, तका उसकी तमस्य (बन्धिय) की शरोभा आ्ी है। इस सब की शरोभा कुछ इस प्रकार की है मक ्ह सभी साडी के अन्दर से मदखा्ी देते है अकारत् साडी इसके ऊपर आ्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 634 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लाल साडी कई सकस, ीाहे असेक रंग के संग। मीहीप सकस स हरोाे मगसती, करे ाेर ीाहे ंग।।५३।। साडी का रंग लाल है, ससि सीे असेक प्रकार के बेल बूटय के धच् आ्े है। इस धच्य ीे असेक रंगय के सग डे हुए है। ्ह सकशकारी (बेल-बूटेदार धच्ांकस) इतसी बारीक है मक इसीे डे हुए सगय की मगसती ही सहीप की ा सकती। इसके सगय से मसकलसे ााली ज्रोधत्ाँ आपस ीे टकराकर ्द ु करती हुई प्रतीत हरोती है। भाााकर - सरोसे-चाँदी आमद धिातुओं के तारय ीे ााहरातय के सगय करो बसा्े रोडकर रो बेल -बूटेदार धच् ाते है, उन्हे सकशकारी कहते है। ससिसर पर साडी सरोणभत, सीली पीली सेत मकसार। धतस पर सरोहे कांगरी, करे पांच संग झलकार।।५४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 635 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससिसर के ऊपर लाल साडी शरोभा्ीास है, ससि सकी मकसार सीले, पीले, तका शेत रंग की है। इस मकसार ीे काँगरी की बसााट है, ससि सीे डे हुए पाँच प्रकार के सग आपस ीे झलकार कर रहे है। साडी करोर मकसार पर, संग कांगरी सरोणभत। फूल बेल कई ख ूर,े कई छे डय मीसे झलकत।।५५।। साडी के (दरोसय) पलय की मकसार पर सगय से डी हुई काँगरी सुशरोणभत है। इसके अन्दर बसे हुए बहुत से फूलय, लताओं, तका ख ूर के पतय की तरह के लहरीदार बेल-बूटे झलकार कर रहे है। कई छापे बूटी सकस, संग साडी बीच अपार। कई संग रंग झलके बीच ीे, सरोभा स आाे ीाहे सुीार।।५६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 636 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी साडी ीे असेक प्रकार के छापेदार धच्, गरोलाकार फूल (बूमट्ाँ), तका बेल-बूटे आ्े है। सगय की संख्ा तरो अपार है। इस साडी के ीध्् ीे असेक प्रकार के सग इस प्रकार झलकते है मक उसकी शरोभा करो मकसी भी सीीा ीे सहीप बाँधिा ा सकता। ीुख उजल गौर लालक खलए, छमब ाए स कही ुबांए। देख देख सुख पाात, रह महरदे के ीाहे।।५७।। श्ाीा ी का ीुखारमबन्द गहरी लाखलीा खलए हुए अधत उजाल गौर ाार का है। उसके ीुखारमान्द की इस अलौमकक शरोभा का ाार स ्हाँ की ससि िहा से हरोसा सम्भा सहीप है। इसे बारम्बार देखकर ीेरी आतीा अपसे हद् ीे असन्त आसन्द का असुभा कर रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 637 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीुख चौक से् साससिसका, ए छमब अंग असर के। असले ससिसफत स परोहयचहीप, बुधि ीाफक कही ए।।५८।। श्ाीा ी के दरोसय गालय समहत ीुखारमान्द, से्य, और साससिसका की शरोभा परीधिाी के सूरी अंगय की है, इसखल्े इसकी ाावतमाक शरोभा का ाार स कर पासा सम्भा सहीप है। ्ह ाार स तरो ीैसे अपसी बुमद के असुसार मक्ा है। भाााकर - ीुख के चारय ओर गालय समहत सम्पूार शरोभा करो ीुख का चौक कहते है। ्दमप ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे वा्ं धिसी ही इस शरोभा का ाार स कर रहे है , मकन्तु ससि िहा से प्रवतुतीकरा ्हाँ की बुमद से हरो रहा है। इस चौपाई ीे ्ही भाा दशार्ा ग्ा है। ीुखारमबन्द व्ाीा ी् करो, रह देख देख सुख पाए। मसलाट सरोहे चांदलरो, रह बखलहारी ताए।।५९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 638 / 992 श्री सागर टीका श्ाीा श्री रा स वााीी ी के ीुखारमबन्द करो देख-देखकर ीेरी आतीा बहुत अधधिक आससन्दत हरो रही है। उसके ीाके पर बेदा सुशरोणभत हरो रहा है, ससि स पर ीेरी आतीा बखलहारी (न््रोछाार) हरोती है। रंग सीले रो रोत पाच ीे, रह इतके क्य मसकसाए। रोत देखूं ीामसक, तरो ााही ीे डू ब इस बेदे ीे ाए।।६०।। डे हुए पाच के संग की सीली ज्रोधत करो ब ीै देखती हूँ, तरो देखती ही रह ाती हूँ। उस शरोभा के सागर से मसकल सहीप पाती। इसी प्रकार ब ीै ीाणाक के सग की ज्रोधत करो देखती हूँ , तरो उसके सौन्द्र -सागर ीे डू ब ाती हूँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 639 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करे आकास ीरोती उजल, रोत लटके लेाे तरंग। आससिसक रह क्य मसकसे, क्यए स छूटे लग्रो मदल रंग।।६१८।। बेदे ीे डे हुए ीरोती के सग से शेत ज्रोधत मसकल रही है, ससि सकी तरंगय से सम्पूार आकाश ही शेत रंग का मदखा्ी दे रहा है। धिसी के प्रेी ीे खरो्ी रहसे ााली ब्ाँगसा भला इस सौन्द्र -सागर से कैसे अलग हरो सकती है। इस दशर स से उसके मदल ीे रो आसन्द पैदा हरो रहा है, उसे ाह कभी भी सहीप छरोड सकती। श्रासय सरोहे पासडी, ीामसक के रंग सरोए। और रंग ीाहे सीलाी, रोत करत रंग दरोए।।६२।। दरोसय कासय ीे पास के पते स ै ी आकृधत ााली पासडी लटक रही है। इसीे ीाणाक और सीली के सग डे हुए है, ससि ससे लाल और सीले रंग की ज्रोधत मसकल रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 640 / 992 श्री सागर टीका भाााकर - कासय ीे पहसे श्री रा स वााीी ासे ााले आभूषा करो "पासडी" कहा ग्ा है। इसकी आकृधत पास के पते स ै ी हरोती है, इसखल्े इसे ्ह साी मद्ा ग्ा है। इससे सम्पूार कास ढँका रहता है। ीरोती पांसे पुखरा , लरे लटकत इस। तरंग उठत आकास ीे, मकरसा करत ररोसस।।६३।। पासडी ीे ीरोती, पन्ना, और पुखरा की लमड्ाँ लटक रही है। इससे मसकलसे ााली मकराे चारय तरफ अपसा प्रकाश फैला रही है, ससि सकी तरंगे आकाश ीे उठ रही है। ीुरली सरोणभत ीुख साससिसका, लटके ीरोती संग लाल। मसरख देखूं ीाहे सीलाी, तरो तबहीप बदले हाल।।६४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 641 / 992 श्री सागर टीका श्ाीा श्री रा स वााीी ी की साससिसका ीे बेसर सुशरोणभत हरो रहा है , ससि सके लटकते हुए ीरोती तका ीाणाक के सग ीुख के ऊपर आए हुए है। ब ीै बेसर ीे डे हुए सीली के सग करो देखती हूँ तरो उसी का हीारी रहसी बदल अकारत् धिसी से एकाकार सवकधत बस से सम्बन्धि पूारत्ा टू ट ाती है, ाती है और ीा्ा ाता है। न््ारी गधत सैसस की, अधत अमस्ारे लरोचस। उजल ीाहे लालक खलए, अतंत ते श्ाीा तारस।।६५।। ी के प्रेी भरे दरोसय से्य की सवकधत ही कुछ अलग है। दरोसय से् बहुत ही सुकीले है। उसके अन्दर सफेदी मीणश्रत लाखलीा छा्ी हुई है तका दरोसय तारय ीे असन्त सूरी ते सीा्ा हुआ है। भाााकर - सुकीले (बाँके) से् सुन्दरता के प्रधतीास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 642 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी (ीूरतीास) वारप है। सफेदी मीणश्रत लाखलीा प्रेी करो दशारती है, तरो तारय ीे दमष्टगरोचर हरोसे ााला सूर परीधिाी की ते सवाता, अखणडता, और वारप करो दशारता है। इस प्रकार उसके से्य से सौन्द्र , प्रेी, और सूर का प्रकटीकरा हरोता है। भौं भृकुटी अधत सरोणभत, रंग व्ाी अंग गौर। केहेसी बु ां स आात, कछू असर रहे ासे हूर।।६६।। काली-काली भौंहे तका उसके बीच ीे गौर ाार की भृकुटी बहुत ही सुन्दर लग रही है। इसके सौन्द्र का ाार स इस ससि िहा से सहीप हरो सकता। ीा् परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ ही इसके सौन्द्र की कुछ माशेषताओं करो ासती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 643 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरोभा लेत है टेढ़ाई, सैसा रंग रस भरे। ए सरोई रहे श्ाीा ासहीप, ाकी छाती छे द परे।।६७।। ी के से्य का धतरछा हरोसा अधत सुन्दर लग रहा है। उसके से्य से सदा प्रेी और आसन्द छलकता रहता है। इस रहव् करो केाल ाे ब्सृमष्ट्ाँ ासती है , ससि सकी छाती ीे प्रेी के बाा चुभ ग्े है। भाााकर - सुन्दरसाक कहलासे ाालय की संख्ा तरो लाखय ीे है , मकन्तु परीधिाी के प्रेी की राह पर चलकर श्ाीा ी के ीुखारमान्द करो मसहारसे ााले मारले है। इस चौपाई ीे ्ही भाा दशार्ा ग्ा है। ीीठे सैस रसीले मसरखत, ीाहे सरी देत देखाए। प््ार पूरा देखत, ीेहेर भरे सुखदाए।।६८।। श्ाीा ी के से्य ीे ीाधिु्रता का सागर उीड रहा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 644 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसीे आसन्द का रस पररपूार (लबालब) हरो रहा है। ऐसे से्य से ब ाे देखती है, तरो उसकी आँ खय ीे प्रेी मीणश्रत लजा भी दमष्टगरोचर हरोती है। उसके इस सैसय ीे प्रेी ही प्रेी भरा हुआ मदखा्ी दे रहा है। श्ाीा ी के ्े दरोसय से् कील ीेहर (कृपा) से भरपूर है और अपसी आतीाओं करो अखणड आसन्द देसे ााले है। असेक गुस इस सैस ीे, मगसती स हरोाे ताए। सुख देत अलेखे सब अंगय, सैसा गुस क्य ए सा मगसाए।।६९।। श्ाीा ी के इस सैसय ीे असेक (असन्त) गुा सीा्े हुए है, ससि सकी मगसती सहीप हरो सकती। ्े आतीा के सभी अंगय ीे इतसा आसन्द देते है मक उसे व््क सहीप मक्ा ा सकता। श्ाीा मकसी प्रकार से सहीप मगसा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के इस से्य के गुाय करो ा सकता। 645 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - प्रकास महन्दवु तासी के प्रकरा १८१८ के असुसार धिाी धिसी के गुा असन्त है और उन्हे मकसी भी प्रकार सहीप मगसा ा सकता। ऐसी सवकधत ीे ्ह कैसे सम्भा है मक उसकी हद् वारपा आह्लामदसी शमक श्ाीा ी के से्य के गुाय करो मगसा ा सके। ्ह ध््ास रखसे ्रोग् तर् है मक से्य ीे ाही कुछ हरोता है , मदल ीे हरोता है। श्ाीा ी के मदल ीे रो रो प्रेी , आसन्द, सौन्द्र , और एकता (एकमदली) का सुख है, ाही से्य ीे दमष्टगरोचर हरोता है। इस प्रकार उसके से्य के गुाय करो मगससा कदामप सम्भा सहीप है। ससकूल ीुख अधत सुंदर, गौर हराटी सलूक। लांक अधिुर दंत देखत, ीा हरोत सहीप टू क टू क।।७०।। आसन्द से भरपूर श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी का ीुखारमान्द अधत 646 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुन्दर है। गरोरे रंग की ठु डी भी बहुत ही ीसरोहर है। ्ह बहुत ही आश्र की बात है मक श्ाीा ी के दरोसय हयठय (अधिरय) के बीच के अमदती् सौन्द्र एां अधत आकषर क दाँतय करो देखकर भी ीेरा ीा पूार रप से न््रोछाार (टू क-टू क) क्य सहीप हरो पा रहा है। ीुख चौक अधत सुन्दर, अधत सुन्दर दरोऊ गाल। कही स ाए छमब सलूकी, मसपट उजल ीाहे लाल।।७१८।। श्ाीा ी का ीुखकील बहुत ही सुन्दर है। अत्न्त उजालता ीे गहरी लाखलीा खल्े दरोसय गालय की सुन्दरता अमदती् है। इसके शरोभा-सौन्द्र का ाार स शब्दय ीे सहीप हरो सकता। भाााकर - श्ाीा ी के सौन्द्र करो अमदती् कहसे का भाा ्ह है मक कालीा्ा और ्रोगीा्ा के ब्ाणड ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 647 / 992 श्री सागर टीका उसके श्री रा स वााीी स ै ा करोई भी सुन्दर सहीप है। ाे सौन्द्र की पराकाषा है। परीधिाी ीे ाहदत (एकमदली) हरोसे के कारा सभी की सुन्दरता सीास है। सात रंग ीाहे झलकत, लेहेरे लेत दरोऊ झाल। दरोऊ फूल सरोणभत ीुख झालके , ुबां क्ा कहे इस मीसाल।।७२।। दरोसय कासय ीे (एक-एक) झाले लटक रहे है। उसीे सात रंगय की लहरे झलकार कर रही है। झाल के ीुख पर ााहरातय के दरो फूल सुशरोणभत हरो रहे है। भला , इसकी शरोभा की उपीा मकससे देकर ्ह ससि िहा ाार स करे। भाााकर - कार फूल का लटकता हुआ मसचला महवसा झाला कहलाता है। इस चौपाई ीे दरो फूल कार फूल (टाप्स) के अन्तगर त ही ीासे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्ेगे। 648 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मफरते ीरोती सरोणभत, ीाहे ीामसक पाच कंु दस। हीरे लसमसए सीलाी, सातय अम्बर करे ररोसस।।७३।। झाले ीे गरोलाई ीे घेरकर ीरोती, ीाणाक, पाच, वाार , हीरा, लहसुमस्ा, और सीली डे हुए है। इस सातय की ज्रोधत आकाश ीे फैल रही है। हेी संग साी लेत हय, ासय के पेहेसे बसाए। ए मबधि असर ीे है सहीप, ुबां सके स ससिसफत परोहयचाए।।७४।। ासय एां आभूषाय की शरोभा ीे वाार आमद धिातुओं और है मक ााहरातय के सगय का ाार स करसे पर ऐसा लगता स ै े इन्हे बसाकर पहसा ाता है , मकन्तु परीधिाी ीे ऐसा सहीप है। ाहाँ पर करोई भी सई ची बसती सहीप है , बसलक इच्छा ीा् से दमष्टगरोचर हरोती है। परीधिाी के सूरी आभूषाय की ीमहीा का ाार स ्हाँ की ससि िहा से हरोसा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 649 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सम्भा सहीप है। कई रंग करे एक खखस ीे, सई सई ुगत देखाए। सरोहे हीेसा सब अंगय, पेहेसे सरोणभत धचत चाहे।।७५।। परीधिाी ीे ासय एां आभूषाय के सग एक ही का ीे असेक प्रकार के रंग धिारा कर लेते है तका उसकी बसााट भी असेक प्रकार की मदखा्ी देसे लगती है। श्री रा श्ाीा ी तका सखख्य के मदल की इच्छासुसार ाे हीेशा ही सभी अंगय ीे धिारा मक्े हुए मदखा्ी देते है। ची सबे असर चेतस, ावतर ्ा भूखस। सुख लेत हक के अंग का, ्य करत अधत ररोसस।।७६।। परीधिाी की प्रत्ेक ावतु चेतस (आती-वारप) है, चाहे ाह ास हरो ्ा आभूषा। ाे धिाी धिसी के अंगय ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 650 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मारा ीास हरोकर आसन्द लेते है और अपसी सूरी आभा से गीगाते रहते है। भाााकर - ससि स तरह सखख्ाँ अपसे धिाी धिसी करो ररझाती है, उसी प्रकार ास एां आभूषा भी आती वारप हरोसे से अपसे प्रााालभ करो ररझाते है। ाहाँ का एक-एक का श्री रा ी करो ररझाता है और इशक ीे डू बा रहता है। हर संग ीे सब रंग है, हर संग ीे सब गुस। सरो संग ले कछू स बसाात, सब मदल चा्ा हरोत ररोसस।।७७।। प्रत्ेक सग ीे सभी प्रकार के रंग प्रकट हरो उसीे सभी गुा भी आ ाते है और ाते है। इसखल्े मकसी भी सग करो लेकर कुछ बसासा सहीप पडता है। सब कुछ मदल की इच्छासुसार ही मदखा्ी पडसे लगता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 651 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस ीा्ााी गत ीे हीरे और ीरोती का रंग शेत हरोता है तका पुखरा का रंग पीला, मकन्तु परीधिाी ीे प्रत्ेक सग ीे असन्त प्रकार के रंग इच्छा ीा् से ही मदखसे लगते है। ाहाँ का प्रत्ेक का सत् , धचत्, और आसन्दी्ी है। ्ही कारा है मक ाहाँ बससे ्ा मबगडसे की प्रमक्र्ा सहीप हरोती। ावतर भूखस केते कहू,ं हेी रेसी रंग संग। सा पेहेन््ा सा उतारर्ा, ए मदल चा्ा सरोणभत अंग।।७८।। परीधिाी के रेशीी ासय, रंगय, वाार , और सगय से मडत आभूषाय के बारे ीे ीै मकतसा कहूँ। ाहाँ स तरो करोई ास ्ा आभूषा पहसा ाता है और स उतारा ाता है। मदल की इच्छासुसार ही सभी अंगय ीे इसकी शरोभा मदखा्ी पडती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 652 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्य मदल चा्ा ावतर, और मदल चा्ा भूखस। ब ससि स अंग मदल रो चाहे, आगूं ररोसस हरोए ीाहे खखस।।७९।। इस प्रकार मदल की इच्छासुसार ही ासय एां आभूषाय की शरोभा हरोती है। ब भी मदल ीे मकसी अंग ीे मकसी ास ्ा आभूषा की इच्छा हरोती है , तरो का भर ीे ही पहले से ाहाँ उस प्रकार की शरोभा मदखसे लगती है। सुन्दर सरप छमब देख के, फेर फेर ाऊं बल बल। रो रह हरोाे असर की, सरो ्ाही ीे ाए रल गल।।८०।। श्ाीा ी का ्ह अधत सुन्दर वारप है , ससि सकी शरोभा करो देखकर ीै बारम्बार न््रोछाार हरोती हूँ। रो परीधिाी की आतीा हरोगी, ाह मसधशत रप से इस शरोभा ीे डू ब ा्ेगी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 653 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरी लांक अधत बारीक, पेट पांसली अधत गौर। ए छमब रह रंग तरो कहे, रो हरोाे असर सहूर।।८१८।। पेट और पसखल्य के बीच ााला भाग बहुत ही पतला, करोील, एां अत्न्त गरोरे रंग का है। श्ाीा ी के इस अलौमकक सौन्द्र की शरोभा करो करोई भी आतीा तभी कह सकती है, ब ाह परीधिाी के धचन्तस ीे खरोई रहती हरो। भाााकर - इस चौपाई ीे "लांक" (लंक) का भाा कीर से है, पीठ की गहराई से सहीप। परीधिाी के धचन्तस का तातप्र बौधदक धचन्तस सहीप है , बसलक आतीा के दारा परीधिाी की शरोभा ीे डू बे रहसे से है। लौमकक बुधद दारा ब्ाााी करो पढ़कर उसीे मसमहत ञास करो गहा तरो मक्ा ा सकता है, मकन्तु ाावतमाक शरोभा का साकातकार तरो ीा् धचतामस से ही सम्भा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 654 / 992 श्री सागर टीका बल बल श्री रा स वााीी ाऊं ीुख सलूकी, बल बल बल बल ाऊं ते ीै श्ाीा ाऊं रंग छब। रोत की, बल बल ाऊं अंग सब।।८२।। ी के ीुख के अमदती् सौन्द्र पर बखलहारी ाती हूँ। उसके सभी अंगय की असुपी शरोभा, सुन्दरता, एां सूरी ते -ज्रोधत पर ीै बारम्बार वा्ं करो न््रोछाार करती हूँ। व्ाी चरोली अंग गौर पर, सरोभा लेत अतंत। सरोहे बेली कटाा, श्ाीा ुबां कहा कहे ससिसफत।।८३।। ी के गरोरे अंग पर काले रंग की चरोली असन्त शरोभा करो धिारा कर रही है। उसीे बसी हुई बेलय के धच् बहुत ही सुन्दर लग रहे है। उसकी ीमहीा का ाार स ्ह ससि िहा कदामप सहीप कर सकती। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 655 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीरोहरोरी पेट और खडपे, चरोली सकस कटाा। बा ू खभे उर ऊपर, ीासरो के फूल डाा।।८४।। पेट के ऊपर आ्ी हुई चरोली की ीरोहरी तका वतसय ााले भाग ीे बेल -बूटय के धच् है। इसी प्रकार दरोसय बा ुओ,ं कन्धिय, तका ाकवकल के ऊपर ााहरातय के सगय से बसे हुए फूलय की शरोभा आ्ी है। पांच हार अधत सुन्दर, हीरे ीामसक ीरोती लसस। सीलाी हार आसीास लय, श्ाीा ंग पांचय करे ररोसस।।८५।। ी के गले ीे हीरा, ीाणाक, ीरोती, लहसुमस्ा, तका सीली के अधत सुन्दर पाँच हार गीगा रहे है। इससे मसकलसे ााली ज्रोधत की तरंगे आकाश ीे फैलकर चारय ओर प्रकाश करती है और आपस ीे टकराकर ्द ु करती हुई प्रतीत हरोती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 656 / 992 श्री सागर टीका इस संगरोे सब श्री रा स वााीी रोत तब पाइए, रोत ब स र दी े आसीास। ंग करत है, करोई सके स काहू भास।।८६।। ्मद आप अपसी आसतीक दमष्ट परीधिाी के सूरी आकाश की ओर करे, तब आपकरो हारय के सगय से मसकलसे ााली ज्रोधत का असुभा हरोगा। ाहाँ ऐसा प्रतीत हरोता है मक स ै े सभी हारय की ज्रोधत्ाँ आपस ीे टकराकर ्द ु कर रही है। ाहाँ सबका वारप अखणड है, इसखल्े करोई भी ज्रोधत मकसी करो सष्ट सहीप कर पाती। रो संग पेहेले देखखए, पीछे देखखए आकास। तब ्ाही की रोत मबसा, और पाइए सहीप प्रकास।।८७।। ्मद आप पहले मकसी सग की ओर देखे तका बाद ीे आकाश की ओर देखे, तरो आपकरो ्ही मदखा्ी पडेगा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 657 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मक सम्पूार आकाश ीे ीा् इसी का प्रकाश है , इसके अधतररक अन्् मकसी का प्रकाश है ही सहीप। बीच हारय के दगु दगु ी, पाच पांसे हीरे संग। ीाहे लसमसए सीलाी, करे पांचय आपुस ीे ंग।।८८।। हारय के बीच ीे दगु दगु ी (लाकेट) है, ससि सीे पाच , पन्ना, हीरा, लहसुमस्ा, तका सीली के सग डे हुए है। इससे मसकलसे ााला प्रकाश आपस ीे ्द ु करता हुआ प्रतीत हरोता है। पांचय हारय के ऊपर, दरोरा देखत कई बेल फूल पात सकस, क्रो स डाा। ाए कटाा।।८९।। इस पाँच हारय ीे प्रत्ेक हार के ऊपर डरोरे का डाा आ्ा है। इस डरोरे ीे असेक प्रकार की लताओं , फूलय, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 658 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तका पखत्य के धच् अंमकत है। इस बेल -फूल-बूटय की शरोभा का ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। भाााकर - डरोरा करोई अलग हार सहीप है , बसलक हार का ऊपरी भाग ही डरोरे के रप ीे मदखा्ी देता है। डरोरे ीे सगय करो गूँका ाता है। कुछ भाग डरोरे के रप ीे पीछे दमष्टगरोचर हरोता है। ्हाँ उसी का ाार स है। इसकी सवकधत गदर स के पीछे की ओर हरोती है। डरोरे का ाार स इसी प्रकरा की चौपाई ९१८,१८०१८, एां १८०२ ीे हुआ है, रो डरोरे के वारप करो उ ागर करता है। ीरोती ीामसक पांसे लसमसएं , पाच हेी पुखरा । और भूखस कई सरोणभत, र्ा सब पर डरोरा मबरा ।।९०।। ीरोती, ीाणाक, पन्ना, लहसुमस्ा, पाच, वाार , प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 659 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पुखरा , एां अन्् कई आभूषाय ीे सूरी्ी डरोरा सुशरोणभत हरो रहा है। कांठले ऊपर चरोली् के, बेल धिरत अधत रोत। और भी ीामसक ीरोती सीलाी, डरोरा धतस पर करे उदरोत।।९१८।। चरोली के गले की मकसार पर बसी हुई बेलय की ज्रोधत झलकार कर रही है। इसीे ीाणाक, ीरोती, और सीली के सग डे हुए है। मकसार पर आ्ा हुआ डरोरा बहुत अधधिक प्रकाश कर रहा है। चार सरे इत चीड की, हर सर ीे रंग दस। सरो रंग इस ुबां स आाहीप, रंग रह चामहल असर ।।९२।। इस पाँच हारय के ऊपर चीड का हार आ्ा है , ससि सीे चार लमड्ाँ आ्ी है। हर लडी ीे दस-दस रंग आ्े है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 660 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस रंगय की शरोभा का ाार स इस ससि िहा से सहीप हरो सकता। परीधिाी के ्े रंग ब्सृमष्ट्य के मदल की इच्छासुसार प्रकट हरोते है। भाााकर - चीड के फल की आकृधत ीे सगय का रो हार हरोता है, उसे चीड का हार कहते है। इसी प्रकार चम्पा की कखल्य की आकृधत ााले सगय से डा हुआ हार चम्पकली का हार कहलाता है। कणठसरी इस ऊपर, रही कणठ करो मील। स आाे मसीूसा इसका, ासे आससिसक रह का मदल।।९३।। इस चीड के हार के ऊपर सातााँ हार कणठसरी का है, रो कणठ से धचपका हुआ है। इसकी शरोभा से मकसी की उपीा सहीप दी ा सकती। इसकी गररीा करो ीा् प्रेी ीे डू बी हुई ब्ाँगसा्े ही ासती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 661 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ष्टव््- श्ाीा ी के पहले श्रृंगार ीे चौपकली का हार छठा तका चीड का हार सातााँ है। दस ू रे श्रृंगार ीे चम्पकली का हार सहीप है, बसलक चीड का हार छठा और कणठसरी का हार सातााँ है। साी संगय का लेत हय, केहेत हय डाा ुबांए। सब्दातीत तरो कहाात, रो ससिसफत इत परोहयचत साहे।।९४।। ्दमप ीै ााहरातय के सगय का साी लेकर ाार स करती हूँ और उन्हे सरोसे आमद ीे डा हुआ कहती हूँ , मकन्तु ्ह शरोभा तरो शब्दय से परे की है। इस संसार के शब्दय से इसकी ाावतमाक ीमहीा का ाार स सहीप हरो सकता। दरोऊ बा ू बन्धि मबरा त, ताीे केहेत डाा। ीाहे रंग संग कई आात, ए डाा क्ा इस भाा।।९५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 662 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दरोसय भु ाओं ीे बा ूबन्धि मारा ीास है। इसीे सगय के डाा की शरोभा है। कई रंगय के सग इसीे इसी भाा से इन्हे डाा कहा डे हुए है। ाता है। रो सरोभा बा ू-बन्धि ीे, महवसा करोटीा क्ा स ाए। ीै कहूं इस मदल ीाफक, ाह पेहेसत है धचत चाहे।।९६।। बा ूबन्धिय की रो शरोभा है , उसके कररोडाे महवसे का भी ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। श्ाीा ी अपसे हद् (मदल) की इच्छासुसार इन्हे धिारा करती है , बमक ीै इस मदल के असुसार ाार स कर रही हूँ। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक परीधिाी ीे एकमदली है , तरो ्हाँ श्ाीा और ीहाीधत ब ी के मदल ीे ी के मदल ीे भेद क्य ीासा ग्ा है? इसके सीाधिास ीे ्ही कहसा उधचत हरोगा मक ्हाँ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 663 / 992 श्री सागर टीका श्ाीा श्री रा स वााीी ी के पराती के मदल का ाार स मक्ा ग्ा है, बमक ाार स ीे असीकर ता ीहाीधत ी के कर रहा है। ्दमप परीधिाी ीे ीहाीधत ी) और श्ाीा ागत हरो भेद सहीप रह ीा का मदल ी (इन््ााती ी के मदल ीे करोई भेद सहीप है और ासे पर उसकी आतीा के मदल ीे भी करोई ाता, मकन्तु ्हाँ के शब्दय ीे व््क करसे का का्र ्हाँ का ( ीा का) मदल करता है, इसखल्े ाावतमाक शरोभा का ाार स करसे ीे असीकर ता व््क की ग्ी है। व्ाी सेत लाल सीलाी, बा ू बंधि और फुीक। धतस फुन्दस री झलकत, लेत लेेहेरी रोत लटकत।।९७।। बा ूबन्धि ीे काले , सफेद, लाल, और सीले रंग के फुम्ीक लटक रहे है। उसके फुन्दसय ीे लगी हुई प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा री 664 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी (धिातु का तार) झलकार कर रही है। उससे मसकलसे ााली ज्रोधत की लहरे चारय ओर फैल रही है। ीरोहरोरी तले रो कंकसी, वार ीीठे झस बा त। संग कटाा ए कांगरी, चूड पर रोत अतन्त।।९८।। चरोली की बाँह की ीरोहरी के सीचेे कंकसी है, ससि ससे झस-झस की अधत ीधिुर ध्ामस मसकला करती है। बाहय ीे चूड की शरोभा है, ससि सकी काँगरी ीे बसे हुए बेल-बूटय ीे सगय की असन्त ज्रोधत ससिझलमीला रही है। चूड करोसी काडे लग, चूडी चूडी हर संग। संग संग कई रंग उठे , धतस रंग रंग ीे कई तरंग।।९९।। करोहसी के सीचे चूड की शरोभा है। चूड से काडे के बीच ीे असेक प्रकार की चूमड्ाँ आ्ी है। प्रत्ेक चूडी ीे हर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 665 / 992 श्री सागर टीका मकवी के सग श्री रा स वााीी डे है और प्रत्ेक सग ीे असेक प्रकार के रंग है। इसी तरह हर रंग से असेक प्रकार की तरंगे मसकल रही है। इस मबधि के रंग इस ुबां, क्य कर आाे सुीार। स आाे सुीार रंग करो, सा कछू रोत करो पार।।१८००।। इस प्रकार परीधिाी ीे स तरो रंगय की सीीा है और स ज्रोधत की करोई सीीा है। ्हाँ की ससि िहा से इसकी ीमहीा करो शब्दय की सीीा (पररधधि) ीे सहीप बाँधिा ा सकता। चूड आगूं डरोरे दरो सरोणभत, और कंकसी सरोभे ऊपर। दरोऊ तरफय ते रोत के, कंकसी बरोलत ीीठे वार।।१८०१८।। चूड के आगे दरो डरोरे सुशरोणभत हरो रहे है। उसके ऊपर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 666 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कंकसी की शरोभा है। कंकसी से मसकलसे ााले सूरी ते की ज्रोधत दरोसय ओर फैल रही है। उससे बहुत ही ीधिुर ध्ामस मसकला करती है। भाााकर - दरोसय हाकय ीे दरो -दरो डरोरे आ्े है, स मक दरोसय हाकय के डरोरय का ्रोग दरो है। डरोरे कंचस संग के, धतस आगूं साघरी। सा रंग साघरी मीसे, रही आकास कञस रंग के डरोरय ीे सग रोत भरी।।१८०२।। डे हुए है। उसके आगे साघरी है। साघरी ीे सौ प्रकार के अलग -अलग रंग आ्े है। साघरी से मसकलसे ााली सूरी ज्रोधत आकाश ीे सार ् फैली हुई मदखा्ी दे रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 667 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परोहयचे हकेली हाक के, अतन्त रंग उजल। बखल ाऊं छमब लीकय पर, मसपट अधत करोील।।१८०३।। दरोसय हाकय के परोहयचय तका हकेखल्य के रंग की उजालता असन्त है। हकेखल्य की लकीरे बहुत ही करोील है। ीै बार-बार इसकी शरोभा पर बखलहारी ाती हूँ। भाााकर - इस चौपाई ीे "उजल" शब्द का तातप्र अत्धधिक गरोरे ाार से है, अकारत् शेत ीे लाखलीा मीणश्रत रंग। दरोऊ हाक की अंगुरी, पतखल्ां करोील। चरस स छूटे आससिसक से, इतके स मसकसे मदल।।१८०४।। दरोसय हाकय की अँगुखल्ां बहुत ही करोील है और पतली है। धिसी के चरा कील (पूार वारप) ब्सृमष्ट्य के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 668 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मदल से कभी भी सहीप छूट सकते। उसका मदल तरो अपसे मप्र्ती की शरोभा ीे इस प्रकार डू ब ाता है मक उससे मसकल ही सहीप पाता अकारत् अलग सहीप हरो पाता। पांच पांच अंगुरी द ु ी ुदी, अधत करोील छमब अंगुरी। दरोऊ अंगूठय आरसी, और आठय रंग आठ ीुन्दरी।।१८०५।। दरोसय हाकय ीे अलग -अलग पाँच-पाँच अँगुखल्ां है। ्े अत्धधिक करोील शरोभा ााली है। दरोसय हाकय के अँगूठय ीे दपर ा ााली अँगूमठ्ां है , तरो शेष आठ अँगुखल्य ीे आठ रंग की ीुम्का्े है। पाच पांसे कंचस के, सीलाी और हीरे। लसमसएं और गरोीामदक, रंग पीत परोखरे।।१८०६।। दरोसय हाकय की आठ अँगुखल्य ीे पाच , पन्ना, कञस, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 669 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सीली, हीरा, लहसुमस्ा, गरोीेद, और पीले रंग के पुखरा की ीुम्का्े आ्ी है। दरपस रंग दरोऊ अंगूठी, और संगय के दरपस। कर ससिससगार ताीे देखत, सख ससिसख लग हरोत ररोसस।।१८०७।। दरोसय अँगूठय ीे दपर ा रंग की दरो अँगूमठ्ां है। इसीे लगे हुए दपर ा सगय के है। श्ाीा ी इसीे अपसा श्रृंगार देखा करती है। उसकी सख से णशख तक की सम्पूार शरोभा इसीे मदखा्ी देती है। आगूं इस सख रोत के, हरोाे सूर कई करोट। सरो सूर स आाे स रय, एक सख असी की ओट।।१८०८।। श्ाीा ी की अँगुखल्य के सखय ीे इतसी ज्रोधत है मक ्मद कररोडय सू्र भी साीसे हय , तरो ीा् एक सख की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 670 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ज्रोधत के साीसे ाे मदखा्ी भी सहीप पडेगे। ए झूठ मसीूसा इत का, हक करो मद्ा स ाए। चौप मकए भी सा बसे, केहे केहे रह पछताए।।१८०९।। इस वाप्सी्ी संसार के सू्ारमद पदाकर सशर है , इसखल्े इससे अकरातीत के ते की उपीा सहीप दी ा सकती। चुप रहसे पर भी काी सहीप चलता और कह देसे पर आतीा के मदल ीे इस बात का पशाताप हरोता है मक ीैसे असन्त ते ााले ्गु ल वारप की उपीा झूठे सू्र से क्य दी। भाााकर - इस चौपाई ीे "हक" शब्द का भाा ्गु ल वारप से है। सू्र करो झूठा और सशर कहसे का कारा ्ह है मक ्ह अम् तता है। ीासाी् बुधद के खल्े असन्त कहे ासे ााले इस मसराकार ीणडल ीे हीारे सू्र प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 671 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से भी बहुत बडे-बडे सू्र हीेशा उतपन्न हरोते रहते है और उसी ीे ल् हरो ाते है। सीली अतलस चरमस्ां, कई बेल कटाा सकस। चीस मकसारे रो देखय, ासय एक पे और सरस।।१८१८०।। श्ाीा ी सीले रंग का रेशीी पेटीकरोट पहसे है। उसीे असेक प्रकार के बेल-बूटय के धच् अंमकत है। मकसारे पर बसी हुइ चुन्नटे एक से बढ़कर एक सुन्दर है अकारत् सभी अधत सुन्दर है। ीाहे बेल फूल कई ख ूर,े संगै के ावतर। सरी सखत रो मदल चाहे, रोत सुगंधि सब पर।।१८१८१८।। इसके अन्दर असेक प्रकार की लताओं, फूलय, और ख ूर के पते के आकार के लहरीदार धच् आ्े है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 672 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ावतुतः श ्े सभी ास सगय के है। ्े मदल की इच्छासुुसार करोील ्ा कठरोर हरो ा्ा करते है। सभी ीे सूरी ज्रोधत और सुगसन्धि भरी हुई है। सा रंग इस साडी मीसे, तासा बासा सब संग। ासय बसे ाेरस के, सकस रेसी ्ा रंग।।१८१८२।। पेटीकरोट की साडी (डरोरी) ीे सौ रंग आ्े है। इसकी सम्पूार बसााट सगय की है। ऐसा प्रतीत हरोता है मक इस रेशीी पेटीकरोट पर स ै े ााहरातय से ही असेक रंगय की धच्कारी की ग्ी है। अचर अदभुत देखत, ावतर ्ा भूखस। सरी खब ु बरोए, भर्ा आसीास ीे ररोसस।।१८१८३।। ू ी खस ासय ्ा आभूषाय की ्ह अदत ु शरोभा सबकरो आश्र प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 673 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीे डालसे ााली है। सुगसन्धि और करोीलता से भरा हरोसा तरो इसकी माशेषता है ही, इसकी ज्रोधत से भी सारा आकाश भरा रहता है। असर ीे सकल है सहीप, ज्य अंग त्य ावतर भूखस। ब ससि स अंग रो चामहए, धतस सौ बेर हरोए मीसे खखस।।१८१८४।। परीधिाी ीे सकल करके करोई भी ची बसाई सहीप ाती। ाहाँ ास और आभूषा भी शारीररक अंगय की ही तरह सूरी्ी एां चेतस है। ससि स अंग ीे शरोभा के खल्े ससि स ास ्ा आभूषा की आाश्कता हरोती है , एक का ीे सौ से भी अधधिक बार ाैसी शरोभा बस ाती है। भाााकर - अंगय की ीाप लेकर ास बसासा ्ा एक ास अकाा आभूषा का ीाप लेकर दस ू रा ास ्ा आभूषा बसासा सकल करसा कहलाता है, मकन्तु परीधिाी ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 674 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ऐसा सहीप हरोता। ाहाँ के एक-एक का ीे ब्रपता है , अकारत् इच्छा ीा् से ही पल भर ीे सब कुछ उपसवकत हरो ाता है। स ै ा सुख मदल चाहे, ावतर भूखस तैसे देत। सब गुस असर ची श्री रा श्ाीा ीे, सब सुख इवक सीेत।।१८१८५।। ी एां सखख्य के मदल ीे स ै े सुख की इच्छा हरोती है, ास और आभूषा ाैसा ही सुख देते है। परीधिाी की प्रत्ेक ावतु ीे अकरातीत के सभी गुा (सत, धचत, और आसन्द) भरे हरोते है। इस सबीे प्रेी और आसन्द का सीााेश हरोता है। भाााकर - ्दमप पूाारधतपूार हरोसे से अकरातीत ीे सुख की इच्छा स ै ी प्राृखत सहीप है , मकन्तु लीला रप ीे ऐसा कहा ग्ा है। सम्पूार परीधिाी अकरातीत के हद् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 675 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी (मदल) का प्रकट रप है, इसखल्े ाहाँ के का-का ीे प्रेी, आसन्द, और चेतसता आमद गुाय का सीााेश हरोसा वााभामाक है। ए चरस अंग असर के, सब्द स परोहयचे इत। लाल उजल रंग सलूकी, ीुख कही स ाए ससिसफत।।१८१८६।। श्ाीा ी के ्े चरा- कील परीधिाी के सूरी अंग है। इसकी शरोभा का ाार स करसे का साीर्र ्हाँ के शब्दय ीे सहीप है। इसके चराय का रंग उजालता और लाखलीा से भरपूर अधत सुन्दर है। इस ीुख से इस चराय की असन्त ीमहीा का ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। ीै कहूं ससिसफत सलूकी, पर केहे स सकय क्यए कर। पूरा एक अंग के हे सा सकय, रो मसकस ाए उीर।।१८१८७।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 676 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्दमप ीै श्ाीा ी की शरोभा का ाार स अाश् कर रही हूँ, मकन्तु ीै मकसी भी प्रकार से ाावतमाक ाार स सहीप कर सकती। ्मद श्ाीा ी की इस अलौमकक शरोभा का ाार स करसे ीे ीेरी सम्पूार उम भी मसकल (बीत) ा्े, तरो भी ीै उसके मकसी एक अंग की शरोभा का भी ्काकर ाार स सहीप कर सकँू गी। भाााकर - इस चौपाई ीे ाार स करसे का भाा श्री ीहाीधत ी (श्री इन््ााती उम का सम्बन्धि श्री मीमहररा ी) की आतीा का है, मकन्तु ी के तस से है। आतीा का ीूल तस तरो पराती है, ससि सकी आ्ु असामद और असन्त है। रो कदी कहूं सरीाई की, और लीकय ससिसफत। आए ाए आरबल, सब्द स इत परोहयचत।।१८१८८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 677 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्मद कदाधचत् ीै श्ाीा ी के चराय की करोीलता और तखल्य ीे आ्ी हुई रेखाओं के सौन्द्र की ीमहीा का ाार स करँ, तरो ीेरे इस शरीर की सारी आ्ु तरो इस का्र ीे बीत ा्ेेगी, मकन्तु ्हाँ के शब्दय से ाार स सहीप हरो सकेगा। रो कहूं खूबी रंग की, ए क्य आाे सब्द ीे, श्ाीा ी के रोत कहूं लाल उजल। रो कदी बका सेहेचल।।१८१८९।। रो चरा कील अखणड परीधिाी ीे मारा ीास है, इसके सौन्द्र की माशेषता ीे ्मद ीै ऐसा कहूँ मक ्े उजालता ीे लाखलीा मीणश्रत रंग के ज्रोधतीर ्ी है, तरो भी ्े शब्द ाावतमाक शरोभा का ाार स से बहुत दरू है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 678 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रंग उजल सरीाई क्य कहू,ं और चरस की खस ु बरोए। ए ुबां असर चरस की, क्य कर बरसस हरोए।।१८२०।। परीधिाी ीे मारा ीास श्ाीा ी के चरा कील अधत उजाल रंग के है। इसीे अमदती् करोीलता और सुगसन्धि भरी हुई है। इस ससि िहा से इसका ाार स कर पासा मकसी तरह से सम्भा सहीप है। फसा टाकस घूमट्ां, और काडे अधत करोील। रंग सरोभा सलूकी छरोडके, आगूं आससिसक स सके चल।।१८२१८।। दरोसय चराय के पँ े , टखसे, घूँमट्ां, और कडे बहुत ही करोील है। आतीा की दमष्ट ब इसके रंग की शरोभा - सुन्दरता करो देखसे लगती है, तरो उसे छरोडकर कहीप और देखसा सम्भा ही सहीप रह प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता। 679 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अब कहूं भूखस चरस के, कांबी कडली घूघ ं री। झलके संग ुदे ुदे, इस पर झस बा े झांझरी।।१८२२।। अब ीै चराय ीे आसे ााले आभूषाय झांझरी , घूघ ं री, कांबी, तका कडली का ाार स करती हूँ। इसीे डे हुए सग अलग-अलग रंगय ीे झलकार करते है और झांझरी से झस-झस की बहुत ीधिुर ध्ामस मसकला करती है। एक हीरे की झांझरी, मदल रचती रंग असेक। सकस कटाा बूटी ले, ए मकस माधि कहूं मााेक।।१८२३।। श्ाीा ी के दरोसय चराय ीे मदल करो भासे ााली (बहुत मप्र् लगसे ााली) झांझरी है। ्े हीरे की है। इसीे असेक प्रकार के ीसरोहर रंग आ्े है। इसीे छरोटे -छरोटे गरोल आकार के फूलय के धच् अंमकत है। इसकी शरोभा का ाार स कर पासा सम्भा सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 680 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ष्टव््- झांझरी की तरह ही दरोसय चराय ीे घूघ ं री , कांबी, और कडली की शरोभा है। पांच संग की घूघ ं री, मदल रचती बरोलत। मदल चाहे रंग देखाात, मदल चाही सरोणभत।।१८२४।। पाँच सगय से डी हुई घूघ ं री है , रो मदल की इच्छासुसार बरोला करती है। ीस के भााय के असुसार ही उसके रंग भी मदखा्ी देते है। इस प्रकार उसकी सम्पूार शरोभा हद् की इच्छासुसार मदखा्ी देती है। कई रंग कडी ीे देखत, ासय के हेी संग मडत। सरो सरोणभत सब मदल चाहे, मसत सए रप धिरत।।१८२५।। कडी की शरोभा इस प्रकार की है मक करो स ै े सरोसे ीे सगय डकर इसकी रचसा की ग्ी हरो। इसीे असेक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 681 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रकार के रंग मदखा्ी देते है, रो मदल की इच्छासुसार शरोभा्ीास हरोते है और हीेशा ही स्े -स्े रप धिारा करते रहते है। कई बेल कडी ीे पात फूल, सब संग सकस कटाा। ीासरो हेी मीलाए के, मक्रो सरो मीहीप डाा।।१८२६।। कडी (कडली) ीे असेक प्रकार की लताओं , पखत्य, तका फूलय के धच् अंमकत है। इसकी शरोभा करो देखकर ऐसा प्रतीत हरोता है, करो बहुत ही बारीकी से स ै े सरोसे ीे असेक प्रकार के सगय डकर इन्हे बसा्ा ग्ा है। ्ा माधि कांबी ससंधि, ्ा संग ्ा धिात। स ै ा मदल ीे आात, तैसा धतत सरोभात।।१८२७।। कांबी की शरोभा ऐसी है मक मदल ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा स ै ी इच्छा हरोती है, 682 / 992 श्री सागर टीका उसके असुसार ही इसीे श्री रा स वााीी डे हुए सगय तका धिातुओं की शरोभा मदखा्ी पडती है। घडे डे सा मकस मकए, मदल चा्ा सब हरोत। मदल चा्ा ीीठा बरोलत, मदल चाही धिरे रोत।।१८२८।। दरोसय चराय ीे धिारा की गई कांमब्य करो स तरो मकसी से बसा्ा है और स इसीे मदखसे ााले सगय करो मकसी से डा है। ्ह सारी लीला तका शरोभा मदल की इच्छासुसार हरोती है। मदल की इच्छासुसार ही उसीे से अधत ीीठी ध्ामस तका ीसरोहर ज्रोधत मसकलसे लगती है। कहूं असाट पाच के, ीाहे करत आं भखल्ा ते । मसरखत सखससिसख ससिससगार, झलकत रे ा रे ।।१८२९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 683 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी दरोसय अँगूठय ीे पाच के सगय से डे हुए असाट की शरोभा है। इसीे दपर ा के रप ीे ते रोी्ी हीरा है। श्ाीा डा हुआ ी इसीे अपसा सख से णशख तक का श्रृंगार देखा करती है। उसके श्रृंगार का एक-एक का इसीे झलकता रहता है। भाााकर - परीधिाी ीे प्रत्ेक ावतु सधच्चदासन्दी्ी है , इसखल्े ाहाँ दपर ा की आाश्कता सहीप पडती, मकन्तु इस चौपाई ीे दपर ा का प्र्रोग ीा् लीला करो दशारसे के खल्े मक्ा ग्ा है। और अंगुरर्य मबणछए, करे वार रसाल। हीरे और लसमसएं , ीामसक रंग अधत लाल।।१८३०।। अँगुखल्य ीे मबणछ्य की शरोभा है , हुई बहुत ही ीरोहक आाा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो प्रेी रस से भरी करती है। इसीे हीरा , 684 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लहसुमस्ा, और अधत लाल रंग के ीाणाक के सग डे हुए है। ीाहे और रंग है कई, कई सकस करे धच्। सरोभा पर बखल ाइए, देख देख एह माधच्।।१८३१८।। इस मबणछओं ीे और भी रंगय के सग है , ससि सीे असेक प्रकार के धच् अंमकत है। हे साक ी ! आप इस अलौमकक शरोभा करो देख-देखकर प्रेीपूारक न््रोछाार हरो ाइए। रो सलूकी फसस की, और अंगुरी फसय तली। ए बका बरसस कबूं स हुई, गई अव्ाल से दसु ी चली।।१८३२।। श्ाीा ी के चरा कील के पँ े , उसकी तली ााले भाग, और अँगुखल्य की इतसी सुन्दरता है मक आ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा मदस 685 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तक इस अखणड शरोभा का ाार स ही सहीप हरो सका का, बमक सृमष्ट के प्रारम्भ से लेकर आ मदस तक स ासे मकतसे ीसीषी हरो ग्े है। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा का शासब्दक अकर है- सृमष्ट के प्रारम्भ से दमु स्ा करो चलते हुए आ मदस तक इतसा सी् हरो ग्ा। इस ककस का ीूल भाा ्ह है मक इस सृमष्ट ीे आ मदस तक बडे -बडे ञासी, तपवाी, ्रोगी, अातार, और पैगम्बर आमद हरो ग्े है। उपररोक माभूधत्ाँ इस ब्ाणड की कीप, इसखल्े "दस ु ी चली" के ककस का प्र्रोग मक्ा ग्ा है। सलूकी सखस की, और छमब अंगुरर्य। खब ू ी ससिसफत चरस की, कही स श्ाीा ाए ुबां सय।।१८३३।। ी के सखय की सुन्दरता अमदती् है , तरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 686 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अँगुखल्य की शरोभा असुपी है। उसके चराय की माशेषता की रो असन्त ीमहीा है, उसका ाार स इस ससि िहा से हरो पासा कदामप सम्भा सहीप है। रोत धिरत आकास ररोससी, क्य कर कहूं सख ीासय सूर रोत। असर के, करोटक हुए उदरोत।।१८३४।। सखय से मसकलसे ााली सूरी ज्रोधत की शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ। इसकी ज्रोधत का प्रकाश आकाश ीे फैल रहा है। इसकी छटा ऐसी लग रही है, स ै े परीधिाी के कररोडय सू्र उग आ्े हय। दरोऊ अंगूठे चरस के, और खब ू ी अंगुरर्य। सरोभा सुन्दर फसस की, आात सा ससिसफत ीय।।१८३५।। दरोसय चराय के दरोसय अँगूठय तका अँगुखल्य के सौन्द्र प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 687 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की माशेषता अमदती् है। पँ य की शरोभा भी असुपी है। इसके सौन्द्र की ीमहीा शब्दय की पररधधि ीे सहीप आ सकती। मीहीप लीकां देखूं लांक ीे, इतहीप करं माश्राी। बल बल ाऊं देख देख के, एही रह ीरोमीसय ताी।।१८३६।। ीेरी तरो ्ही इच्छा करती है मक ीै श्ाीा ी के चराय की तखल्य (तलुओं) की गहराई ीे बसी हुई पतली रेखाओं करो देखती ही रहूँ और इसके सौन्द्र ीे डू बकर आसन्दी् रहा करँ। इन्हे देख -देख कर ीै बारम्बार न््रोछाार हरोसा चाहती हूँ। परीधिाी की ब्सृमष्ट्य के खल्े ्ही आसतीक आहार है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 688 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चरस तली लांक एमड्ां, उजल रंग अधत लाल। केहेते छमब रंग चरस की, अ ूं लगत स हैडे भाल।।१८३७।। चरा की तखल्य की गहराई तका एमड्य का रंग उजालता ीे गहरी लाखलीा खल्े हुए है। अमदती् सौन्द्र से भरपूर इस चराय की शरोभा का ाार स करते हुए हा्! हा्! ीेरे हद् ीे अभी भी भाले क्य सहीप लगते। भाााकर - कले ा फट ासा, मदल का टु कडे-टु कडे हरो ासा, और मदल ीे तीर ्ा भाला लगसे आमद का ककस आलंकाररक है। इस तरह की अणभव््मक उस सी् की ाती है, ब अपसी प्राामप्र् ावतु से ्ा तरो मा्रोग हरो ा्े ्ा उसे मकसी करो देसा पडे अकाा शब्दय ीे व््क करसा पडे। इस तरह के ककसय ीे मारह-प्रेी की एक टीस (आह) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 689 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सी णछपी रहती है। इस चौपाई ीे भी ीहाीधत ी के हद् की ्ही पीडा व््क हरो रही है मक मकस कठरोर हद् से ाे इस अलौमकक शरोभा करो कह पा रही है। सौन्द्र के सागर करो देख लेसे के पशात् बरोलसा तरो हद् की मसषुरता करो दशारता है। ावतुतः श ब्सृमष्ट्य के सुख के खल्े धिाी धिसी के हुकी से ही ्ह ाार स सम्भा हुआ है, अन््का दशर स के पशात् बरोल सकसा तरो मकसी के खल्े भी सम्भा सहीप है। मदल चाही खूबी सलूकी, मदल चाही सरी छब। मदल चा्ा रंग खस ु बरोए, रही मदल चाही अंग फब।।१८३८।। श्ाीा ी के अंगय ीे सौन्द्र की रो माशेषता्े है , शरोभा और करोीलता है, ास और आभूषाय ीे सुगसन्धि एां रंगय की मदव््ता है , ्ह सभी मदल की इच्छासुसार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 690 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रकट हरोते रहते है। ्य मदल चाहे ावतर, और मदल चाहे भूखस। ब ससि स अंग मदल रो चाहे , सरो आगूंहीप बन््रो ररोसस।।१८३९।। इस प्रकार मदल की इच्छासुसार ही ासय एां आभूषाय की शरोभा दमष्टगरोचर हरोती है। ससि स अंग ीे ससि स प्रकार के ास ्ा आभूषा की इच्छा हरोती है , ाह इच्छा के व््क हरोसे के पहले ही बस ससि स अंग ाता है। स ै ा भूखस, मदल चा्ा सब हरोत। खखस ीे मदल और चाहत, आगूं तैसी करे रोत।।१८४०।। ससि स अंग ीे ससि स प्रकार के आभूषा की इच्छा हरोती है, हद् के भााय के असुसार पल भर ीे ाैसा ही हरो ाता है। अगले ही का ्मद मकसी और प्रकार के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 691 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आभूषा की इच्छा हरोती है, तरो उस इच्छा के प्रकट हरोसे के पहले ही ाह आभूषा अपसी सूरी ज्रोधत से गीगासे लगता है। खखस ीे ससिससगार बदले, मबसा उतारे बदलत। रंग धतत भूखस सए सए, रंग रो मदल चाहत।।१८४१८।। हद् की इच्छा ीा् से पल भर ीे ासय ्ा आभूषाय का श्रृंगार बदल ाता है। इसके खल्े उन्हे उतारसे की आाश्कता सहीप पडती। मदल की इच्छासुसार स्े -स्े रंगय के स्े-स्े आभूषा तुरन्त दमष्टगरोचर हरोसे लगते है। भाााकर - ्हाँ ्ह संश् प्रकट हरोता है मक ब परीधिाी ीे इच्छा ीा् से पल भर ीे असेक प्रकार के श्रृंगार प्रगट हरो ाते है, तरो क्ा ्ह स्ी ावतु का मसीारा सहीप हुआ ? वागर और ाैकुणठ ीे भी इसी प्रकार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 692 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ासय और आभूषाय के बदल ासे की बात कही ाती है ( सीे ् की अप्सरा रासी के सन्दभर ीे ), तरो मफर परीधिाी और ाैकुणठ ीे अन्तर ही क्ा रह इसके सीाधिास ीे ्ही कहा ाता है? ा सकता है मक सम्पूार परीधिाी ीे अकरातीत का हद् (मदल) ही सभी रपय ीे लीला कर रहा है। ऐसी सवकधत ीे मकसी भी के् ीे अपूारता सहीप हरो सकती। ्ही कारा है मक ाहाँ पल भर ीे कररोडय प्रकार के श्रृंगार बदल ाते है (पाग हरोत कई करोट पल ीे)। कालीा्ा ीे बसी हुई ावतु सष्ट अाश् हरोती है और ्रोगीा्ा ीे बसी हुई ावतु असन्त काल के खल्े अखणड रहती है, मकन्तु परीधिाी ीे सवकधत दरोसय से अलग हरोती है। का-का ीे ब्रपता हरोसे से ाहाँ शरोभा और लीला का ीा् रपान्तरा हरोता है। बससे , मीटसे, ्ा अखणड हरोसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा स ै ी बाते ाहाँ सहीप है। वागर 693 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ाैकुणठ की लीला्े म्गुाातीक गत् ीे हरोती है। इसकी तुलसा परीधिाी से करसा ाैसे ही है, स ै े सागर की तुलसा एक छरोटे से तालाब से करसा। मदल चाही सरोभा धिरे, मदल चाही खस ु बरोए। मदल चाही करे सरीाई, रोत करे स ै ी मदल हरोए।।१८४२।। परीधिाी ीे श्ाीा ी के आभूषा मदल की इच्छासुसार शरोभा धिारा कर लेते है। उसीे करोीलता और सुगसन्धि भी हद् के भााय के असुसार हरोती है। इससे ज्रोधत भी ाैसी ही मसकलती है, स ै ी चाहसा हरोती है। रहे बसत इस कदीय तले, ासय पाइए पेहेचास। सब रहे सूर इस अंग करो, ए सूर अंग रेहे ेीास।।१८४३।। सभी ब्सृमष्ट्ाँ श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के चराय (साधन्नध््ता) ीे 694 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रहती है। इस चराय की ीेहर (कृपा) से ही अपसी एां धिसी के वारप की पहचास हरोती है। सभी सखख्ाँ श्ाीा ी के अंग (मदल) की सूर वारपा है और श्ाीा ी अकरातीत श्री रा ी के हद् की सूर वारपा है। भाााकर - चराय ीे रहसे का तातप्र अखणड सम्बन्धि से है। प्रेी, आह्लाद, कासन्त, ज्रोधत, शरोभा आमद सूर के ही वारप है। श्ाीा सूर कहे श्ाीा ी करो श्री रा ी के अंग (मदल) का ासे का भाा ्ह है मक श्री रा ी का मदल ही ी के रप ीे लीला कर रहा है। सखख्य के भी रप ीे ाही मदल लीला कर रहा है। इस संसार ीे ीा् सीझ ीे आसे के खल्े ही श्ाीा ी की अंगरपा कहकर सखख्य का धच्ा मक्ा ग्ा है। भला , वालीला अदैत ीे अंग-अंगी का भेद कहाँ से आ सकता है, मकन्तु लीला रप ीे बुधदगा् हरोसे के खल्े ाैसे कहा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 695 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ाता है। स ै े आी के एक बी से कई आी के पेड तै्ार हरोते है। उस पर लगसे ााले सभी फलय ीे ाैसा ही बी (गुठली) हरोता है, ससि ससे सभी ाृक तै्ार हुए हरोते है। इस प्रकार सभी ाृकय ीे , फलय ीे, और गुठखल्य ीे एक प्रकार की सीासता हरोती है। ्ही ाहदत है और ीूल बी (गुठली) ही मदल है, ससि सका व््क वारप सभी ाृक और फल आमद है। गुठली ीे मसमहत ीासी शमक ही सूर है, ससि सका प्रधतफल ाृकय और फलय के रप ीे दमष्टगरोचर हरोता है। ससि स प्रकार सभी ाृकय ीे फल मादीास है, उसी प्रकार प्रत्ेक पराती के मदल ीे श्री रा ी ही मारा ीास है। ्ही अंग-अंगी का रहव् है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 696 / 992 श्री सागर टीका ए श्री रा स वााीी रो अरााहे असर की, पडी रहे तले कदी। खास पास इसय इतहीप, रहे रहे तले कदी।।१८४४।। परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ हीेशा ही श्ाीा ी के चराय ीे मसाास करती है। इसका आसतीक आहार (खासापीसा) भी इस चराय ीे ही प्राप हरोता है। भाााकर - चराय ीे रहसे का भाा है - चराय ्ा उसकी शरोभा-श्रृंगार ीे खरो्े रहसा। धिसी का दीदार एां उससे ाातार ही ब्सृमष्ट्य का आसतीक आहार है, ससि से खासेपीसे के दारा दशार्ा ग्ा है। ्ाही ठौर रहे बसत, रात मदस रहे ससकूल। हक असर ीरोमीस मदल, धतस मसीख स पडे भूल।।१८४५।। ्गु ल वारप के चराय ीे ही ब्सृमष्ट्य का ध््ास बसा रहता है, ससि ससे ाे हीेशा (मदस-रात) आसन्द ीे डू बी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 697 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रहती है। इस ब्ाँगसाओं का मदल ही धिसी का परीधिाी है। उससे इस सम्बन्धि ीे का भर के खल्े रा सी भी भूल सहीप हरोती, अकारत् ाे मकसी भी सवकधत ीे अपसे मदल से का भर के खल्े भी धिसी के चराय करो अलग सहीप कर सकतीप। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह प्रश हरोता है मक ब्सृमष्ट्ाँ मस्ाावका ीे मकस प्रकार धिसी के चराय करो अपसे धिाी हद् ीे बसा्े रखती है? इसका उतर ्ह है मक आतीा के धिाी हद् ीे एक बार रो भी शरोभा बस ाती है, ाह अलग सहीप हरोती। सीपद की अावका ीे भी आतीा के मदल ीे अखणड रप से धिसी की शरोभा बसी रहती है, क्यमक ाह खेल ीे ीा् दष्टा है। बमक ीा का वकूल , सूकी, एां कारा शरीर (मदल) सीपद से प्रभामात हरोता है। ाह ीा् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ागत 698 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अावका ीे ही ध््ास-धचन्तस आमद के दारा उस आसन्द की एक झलक ले पाता है। हक कदी हक असर ीे, सरो असर ीरोमीस का मदल। छूटे सा असर कदी, श्री रा रो ्ाही की हरोए मीसल।।१८४६।। ी के चरा कील परीधिाी ीे है और ाह परीधिाी ब्सृमष्ट का मदल ब्सृमष्ट्य की (हद्) है। रो इस ीात (सीूह) ीे से हरोता है अकारत् ससि सीे परीधिाी का अँकुर हरोता है , उसके हद् से स तरो परीधिाी अलग हरो सकता है और स धिसी के चरा कील अलग हरो सकते है। ए चरस राखूं मदल ीे, और ऊपर हैडे। लेके मफरय सैसस पर, और ससिसर पर राखय ए।।१८४७।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 699 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीै ्गु ल वारप के इस चराय करो हीेशा अपसे हद् ीे बसा्े रखसा चाहती हूँ। ीेरी ्ही इच्छा है मक इन्हे अपसे ाकवकल पर, ससिसर पर मबठाकर, और से्य ीे बसाकर घूीा करँ। भाााकर - ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे तरो ्गु ल वारप मारा ीास है ही। उन्हयसे इस प्रकार का ककस पररोक ीे सुन्दरसाक करो ससिसखापस देसे के खल्े कहा है। ाकवकल पर चराय करो रखसा प्रेी करो दशारसा है तका से्य ीे बसा्े रखसा पल-पल दीदार की प््ास करो व््क करता है। इसी प्रकार ससिसर पर मबठा्े रखसा वा्ं करो धिसी के ऊपर न््रोछाार करसे तका उसके आदेश (हुकी) करो णशररोधिा्र करसे की भाासा दशारता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 700 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भी राखय बीच सैस के, और सैसय बीच मदल सैस। भी राखय रह के सैस ीे, ज्य रह पााे सुख चैस।।१८४८।। ीै ्गु ल वारप के चरा कील करो अपसे से्य ीे तरो रखँू ही, इस सैसय के बीच ीे सवकत मदल के सैसय ीे भी रखँू। इतसा ही सहीप, ीै इन्हे अपसी आतीा के मदल रपी सैसय ीे भी रखँू , ससि ससे ीेरी आतीा अपसे ीूल आसन्द और शाशत शासन्त करो प्राप कर सके। भाााकर - ीुखारमान्द ्ा से्य करो हद् का दपर ा कहा ाता है, क्यमक हद् के सम्पूार भाा इसीे अाश् प्रधतमबसम्बत हरोते है, भले ही करोई उसका आं कलस (पहचास) स कर पा्े। ्ही कारा है मक बा् से्य के बीच ीे मदल के से्य करो सवकत कहा ग्ा है। आतीा के मदल करो ही आतीा के से्य की संञा प्राप है। पररोक ककस के दारा इस चौपाई ीे सुन्दरसाक करो ्ह मसदरश प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 701 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मद्ा ग्ा है मक ाे अपसे ीा तका आतीा दरोसय के मदल ीे ्गु ल वारप के चरा कीलय करो बसा्े। ीहाीत कहे इस चरस करो, राखय रह के अन्तवकरस। ्ा रह सैस की पुतली, बीच राखय धतस तारस।।१८४९।। श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक ीेरी एकीा् ्ही इच्छा है मक ीै ्गु ल वारप के इस चराय करो अपसी आतीा के अन्तः शकरा (हद्, मदल) ीे बसा लूँ। ीेरी आतीा पराती रपी से् की पुतली है, ससि सीे सवकत "तारा" ही ीेरी आतीा का मदल है। उसी ीे ीुझे अपसे प्रााालभ की सम्पूार शरोभा करो बसासा है। प्रकरा ।।९।। चौपाई ।।७९९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 702 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी श्री रा श्री रा ी का ससिससगार तीसरा ी के तीसरे श्रृंगार का ाार स प्रारम्भ हरोता है। फेर फेर सरप रो मसरखखए, सैसा हयए सहीप तृमपत। ीरोमीस मदल असर क्ा, खलखी ताले ए मससबत।।१८।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक श्री रा भले ही मकतसी बार क्य स देखा ी की शरोभा करो ा्े , मकन्तु से् तृप सहीप हरोते। इस संसार ीे भाा ्ह है मक श्री रा मदल ही श्ाीा ी का ी के रप ीे लीला कर रहा है। सखख्य के रप ीे भी ाही मदल लीला कर रहा है। धिाी धिसी से अँगसा भाा के इस अखणड सम्बन्धि का सौभाग् ब्सृमष्ट्य करो ही प्राप है , इसखल्े इसके हद् करो परीधिाी भी कहा ाता है। भाााकर - से्य के तृप स हरोसे की बात करो लौमकक दमष्ट प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 703 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से सहीप देखसा चामहए। प्रेी ीे पल-पल दीदार की इच्छा बसी ही रहती है। इसी करो ्हाँ "अतृप" शब्द से प्रवतुत मक्ा ग्ा है। दीदार की प््ास मीट ही सीाप हरो ा्ेगी , ासे पर प्रेी लीला रो ब्लीला ीे कदामप सम्भा सहीप है। चामहए मससमदस हक असर ीे, और इत हक खखलात। हरोए मसीख स न््ारे इस मदल, इस प्रकार श्री रा ेती असर न््ाीत।।२।। ी का मसाास हीेशा (मदस-रात) ब्ातीाओं के धिाी हद् ीे हरोसा चामहए। खखलात का वााद भी इसी धिाी हद् ीे मीलसा चामहए और परीधिाी की सभी सम्पदा्े (सेीते) इस धिाी हद् से एक का के खल्े भी अलग सहीप हरोसी चामह्े। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ब 704 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी का असन्त प्रेी, आसन्द, ञास, सौन्द्र आमद सुन्दरसाक के मदल ीे ही है , तरो पुसः श उन्हे षड् माकारय (काी, क्ररोधि, लरोभ, ीरोह, ीद, ीतसर अकारत् ईष््ार) से ्क ु क्य देखा ाता है? इसका सीाधिास इस प्रकार है मक ्हाँ केाल उस सुन्दरसाक का प्रसंग है, ससि सीे परीधिाी का अँकुर हरोता है। सुन्दरसाक के सीुदा् ीे ससम्ीखलत ीा +ईशरी सृमष्ट से ्हाँ करोई भी सम्बन्धि सहीप है। ीा्ा से सं्क ु हरोसे के कारा केाल ीा ीे ही इस षड् माकारय का सीााेश हरोता है, आतीा ीे सहीप। ्हाँ तरो ीा् उन्ही ब्ातीाओं का प्रसंग है , ससि सके धिाी हद् ीे सख से णशख तक ्गु ल वारप का श्रृंगार बस चुका हरोता है और उसकी आतीा " ागत" हरो ासे की शरोभा करो प्राप कर चुकी हरोती है। तारती ञास और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 705 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रेी से रमहत हरोसे के कारा ीा्ा ीे भटकसे ााली ब्सृमष्ट्य से भी ्हाँ करोई सम्बन्धि सहीप है। ससि स प्रकार बहुत ीूल्ाास दपर ा भी ील, माकेप (महलसे-डु लसे), और आारा के कारा प्रधतमबम्ब करो धिारा सहीप कर पाता, उसी प्रकार धिसी की शरोभा करो अपसे अन्दर बसा्े मबसा मकसी का भी हद् "धिाी" की संञा प्राप सहीप कर सकता। ऐसी सवकधत ीे ब्सृमष्ट के षड् माकारय के ीा का भी ाल ीे फँसे रहसा वााभामाक है। मकन्तु, अशर मदल (धिाी-हद्) की शरोभा प्राप कर लेसे पर परीधिाी की सम्पूार सम्पदा (मसवबत, ाहदत, खखलात, शरोभा-श्रृंगार आमद) का सुख ्हीप पर असुभा ीे आसे लगता है। ससिससगार १८१८/२६,२७ का ्ह ककस इसी सन्दभर ीे है- प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 706 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मदल ीरोमीस तरो असर क्ा, तरो इत ुदागी कहां रही, रो इस मदल ीे हक बैठक। हां हकै आए ीुतलक।। ए क्य हरोए मबसा मससबते, इतहीप हुई ााहेदत। मससबत ााहेदत एकै, तरो क्य ुदी कमहए खखलात।। बरसस मक्ा हक सूरत का, रह देख्ा चाहे फेर फेर। एही असर मदल रह के, बैठे ससिससगार कर।।३।। ीैसे धिाी धिसी के आदेश (हुकी) से उसके सख से णशख तक के श्रृंगार का ाार स मक्ा है। अब ीेरी आतीा बारम्बार इस शरोभा करो देखसा चाहती है, क्यमक ीेरे प्राा मप्र्ती सख से णशख तक श्रृंगार स कर ीेरी आतीा के इसी धिाी हद् ीे मारा ीास हरो ग्े है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 707 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अब मसस मदस रह करो चामहए, फेर सब अंग देखे स र। सूरत छमब सलूकी, देखय भूखस अंग ावतर।।४।। अब ीेरी आतीा करो चामहए मक ाह मदस-रात धिाी धिसी के एक-एक अंग की शरोभा करो बारम्बार देखा करे। उसे ीुखारमान्द की सुन्दरता तका णभन्न-णभन्न अंगय ीे सुशरोणभत ासय एां आभूषाय की शरोभा ीे वा्ं करो डु बरो देसा चामहए। ससिससगार मक्ा सब दल ु हे, ावतर ्ा भूखस। अब बखत हुआ देखस का, देखय रह के सैसस।।५।। ीेरे प्राा मप्र्ती! आप परीधिाी के ासय एां आभूषाय से ्क ु सम्पूार श्रृंगार स कर ीेरे धिाी हद् ीे मारा ीास हरो ग्े है। हे ीेरी आतीा! अब तुम्हारे खल्े ्ही उधचत सी् है, ससि सीे तू अपसे आसतीक से्य से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 708 / 992 श्री सागर टीका धिसी की शरोभा करो श्री रा स वााीी ी भरकर देख सकती है। भाााकर - इस चौपाई ीे सम्पूार श्रृंगार का तातप्र ीा् ास-आभूषाय के बा् श्रृंगार से सहीप है, बसलक हद् ीे णछपे हुए उस मदव्् सौन्द्र के प्रकटीकरा से है , रो ्गु ल वारप के सख से णशख तक ररोी-ररोी ीे दमष्टगरोचर हरो रहा है। ्दमप ास और आभूषा भी अंगय की सूरी शरोभा है, मकन्तु केाल बा् दमष्ट से ही सौन्द्र का आँ कलस उधचत सहीप है। ्गु ल वारप के ररोी-ररोी ीे सौन्द्र के असन्त सागर लहरा रहे है , ससि सीे प्रेी , आसन्द, कासन्त, छटा, एकरपता, सुगसन्धि, और करोीलता की असन्त लहरे अठखेखल्ाँ कर रही है। सब अंग देखय फेरके, और देखय सब ससिससगार। काी हुआ अपसी रह का, देख देख ाऊं बखलहार।।६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 709 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेरे धिाी धिसी! अब तरो ीेरा काी हरो ग्ा। ीेरी ्ही चाहसा है मक ीै पुसः श आपके एक -एक अंग की शरोभा तका ासय एां आभूषाय समहत सम्पूार श्रृंगार करो देखँू और देख-देखकर आपके ऊपर न््रोछाार हरो ाऊँ। भाााकर - आतीा सभी दन्दय से परे हरोकर ्गु ल वारप करो मसहारसा (देखसा) चाहती है। ब उसे ्ह अासर प्राप हरोता है तरो उसके ीुख से ्ही वार मसकलता है मक अब ीेरा काी हरो ग्ा। इस चौपाई के तीसरे चरा ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। रह चाहे बका सरप की, करके सेक बरसस। देखय सरोभा ससिससगार, पेहेसाए ावतर भूखस।।७।। ीेरी आतीा ्ही चाहती है मक श्री रा ी के अखणड वारप का करोडा सा ाार स कर लूँ और उन्हे ास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 710 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आभूषाय से सुसखजत करके उसकी शरोभा -श्रृंगार करो मसरन्तर देखती रहूँ। भाााकर - इस चौपाई ीे "करोडा सा श्रृंगार ाार स करके देखसे ीे लग ासे " का ककस ्ह सन्देश देता है मक ककसी की अपेका करसी ीे सवकत हरो ासा ज्ादा श्रे्वकर है। कलंगी दगु दगु ी पगडी, देख सीके फेर कर। बैठ खखलात बीच ीे, खरोल रह की स र।।८।। हे ीेरी आतीा! अब तू अपसी आसतीक दमष्ट से ीूल मीलााे ीे ा और श्री रा ी की पाग, उसीे डी हुई दगु दगु ी, तका कलँगी करो बार-बार अच्छी तरह से देख। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 711 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पेहेले देख पाग सलूकी, ीाहे कई मबधि फूल कटाा। रोत करी है मकस मबधि, ासय के सकस संग डाा।।९।। पहले तू पाग की उस सुन्दरता करो देख, ससि सीे असेक प्रकार के फूलय के धच् अंमकत है। तू ्ह भी देख मक इससे मकस प्रकार सूरी ज्रोधत मसकल रही है। इसकी सुन्दरता करो देखकर तरो ऐसा लगता है मक ााहरातय के सगय से बसे हुए फूल ही देख कलंगी रोत सलूकी, सरो सारा ही ते ैसे डे ग्े है। ेता असर अाकास। ीे, पूरस भ्ा प्रकास।।१८०।। तू कलँगी से मसकलसे ााली उस सुन्दर ज्रोधत करो भी देख, ससि ससे परीधिाी का सम्पूार आकाश सूरी्ी ते से पररपूार हरो रहा है और चारय ओर प्रकाश ही प्रकाश स र आ रहा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 712 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और खूबी इस कलंगी, और दगु दगु ी सलूक। और पाग छमब रह देख के, हरोए ात सहीप भूक भूक।।१८१८।। हे ीेरी आतीा! तू कलँगी के इस माशेष सौन्द्र करो देख रही है। तूसे दगु दगु ी और पाग की शरोभा-सुन्दरता करो भी देख खल्ा है, मफर भी तू धिसी के प्रेी ीे वा्ं करो टु कडे-टु कडे क्य सहीप कर देती। भाााकर - भूक-भूक का भाा हरोता है- चूार की तरह टु कडे-टु कडे कर देसा। इसीे इस बात का संकेत मद्ा ग्ा है मक धिसी के प्रेी ीे वा्ं के असवतता करो चूर -चूर (सीाप) कर देसा चामहए। इसी करो ्काकर ीे न््रोछाार करसा कहते है। देख सुन्दर सरप धिसी् करो, ले महरदे कर हेत। देख सैस सीके कर, साीी इसारत तरोकरो देत।।१८२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 713 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अपसे हद् ीे प्रेी भरकर तू धिाी धिसी के इस अधत सुन्दर वारप करो देख। बहुत अच्छी तरह धिसी के इस सुन्दर से्य की ओर भी देख, ससि ससे धिाी धिसी साीसे से तुम्हे प्रेी के संकेत दे रहे है। सैस रसीले रंग भरे, भौं भृकुटी बंकी अधत भाल तीखी मसकसे फूटके, रोर। रो ीारत खैच ीररोर।।१८३।। धिसी के ्े से् प्रेी और आसन्द से भरे हुए है। भृकुटी से लगी हुई इस टेढ़ी (धतरछी) भौंहय की बहुत अधधिक शरोभा है। ब श्री रा ी इस से् रपी धिसुष से प्रेी के तीखे बाा चलाते है, तरो ाे ब्सृमष्ट्य के हद् करो छे दकर मसकल ाते है। भाााकर - दरोसय भौंहय के बीच के वकास करो भृकुटी कहते है। दरोसय भौंहे धिसुुष के दरो मकसारय का का्र करती है प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 714 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और भृकुटी बााय के रखे ासे का वकास ीासी ाती है। देखसे की प्रमक्र्ा डरोरी का का्र करती है और अकरातीत के तरकश रपी हद् से मसकला हुआ प्रेी रपी बाा आतीाओं के मदल करो बीपधि कर अपसे अधिीस कर लेता है (एकाकार कर लेता है)। हँसत सरोणभत हराटी, अंग भूखस कई मााेक। ीुख बीडी सरोणभत पास की, क्य बरसय रससा एक।।१८४।। ब श्री रा ी हँसते है, तरो उसकी ठु डी की शरोभा मालका हरोती है। उस सी् उसके ीुखारमान्द के कई अंगय, स ै े ीवतक, आँ ख, और गालय, ीे हँसी की छाप रहती है। इतसा ही सहीप ीुखारमान्द के कई आभूषा भी इससे अछूते सहीप रह पाते। ब धिाी धिसी अपसे ीुख ीे पासय का बीडा चबाते है , तरो उस शरोभा का ाार स कर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 715 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पासा ीेरी इस एक ससि िहा के खल्े सम्भा सहीप हरोता। लाल रंग ीुख अधिुर, तंबरोल अधत सरोभाए। ए लालक हक के ीुख की, ीेरे ीुख कही स ाए।।१८५।। धिाी धिसी के हयठय और ीुख का रंग तरो लाल है ही , मकन्तु ब ाे पास खाते है तरो उस सी् उसके ीुखारमान्द की शरोभा बहुत अधधिक हरोती है।ै उस सी् प्राा मप्र्ती श्री रा ी के ीुख की लाखलीा भरे सौन्द्र का ाार स कर पासा ीेरे ीुख से सम्भा सहीप हरोता। भाााकर - ्दमप परीधिाी की ाहदत ीे मकसी ावतु का घटसा ्ा बढ़सा सम्भा सहीप है , मकन्तु सौन्द्र -ाार स ीे लीला रप ीे ऐसा कहा ग्ा है मक पास की लाखलीा से उसके ीुख का सौन्द्र बढ़ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता है। ्हाँ के भााय के 716 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आधिार पर ही ्ह तर् कहा ग्ा है।ै गौर ीुख अधत उजल, और रोत अतंत। ए क्य रहे रह छमब देख के, ऐसी हक सूरत।।१८६।। श्री रा ी का गौर ीुख अत्न्त उजाल है और उससे असन्त ज्रोधत णछटक रही है। धिाी धिसी के ऐसे ीसरोहर रप की शरोभा करो देखकर भी ीेरी आतीा इस झूठे संसार ीे क्य रह रही है। ्ह बहुत ही आश्र की बात है। अधत उजल ीुख मसलाट, सुन्दर धतलक मदए। अधत सरोणभत है साससिसका, सब अंग प्रेी मपए।।१८७।। श्री रा ी का ीुखारमान्द और ीवतक अत्न्त उजाल है। ीवतक पर अधत सुन्दर धतलक लगा हुआ है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 717 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी साससिसका बहुत अधधिक सुशरोणभत हरो रही है। धिाी धिसी के इस सभी अंगय से प्रेी का रस छलक रहा है। मसलाट चौक चारय तरफय, रंग सरोणभत रोत अपार। मसरख मसरख से् रह के, सब अंग हरोए करार।।१८८।। ीवतक के चौक के चारय ओर अत्धधिक सौन्द्र मबखरा हुआ है। उसीे से असन्त सूरी ज्रोधत मसकल रही है। ीेरी आतीा के से् इस अलौमकक शरोभा करो बारम्बार देख रहे है, ससि ससे ीेरे सभी अंगय ीे आसन्द की ाषार हरो रही है। भाााकर - ीुख के चौक की भाँधत ीवतक का भी चौक हरोता है। दरोसय भौंहय तका ससिसर के बालय के बीच का वकास एां इसके दा्े-बा्े का वकास मीलकर ीवतक का चौक कहलाता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 718 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी देख मसलाट धतलक, ीुख भौं भासत अधत सुन्दर। सब अंग दढ़ करके, ले रह के सैसय अन्दर।।१८९।। हे ीेरी आतीा! तू ीवतक पर लगे हुए धतलक की शरोभा करो देख तका अधत सुन्दर लगसे ााले इस ीुखारमान्द एां भौंहय करो भी देख। इस सभी अंगय की शरोभा करो तुी दढ़तापूारक अपसी आतीा के से्य ीे बसा लरो। सैस मसलाट बंकी छमब, अधत चंचल ते तारे। रंग भीसे अधत रस भरे, बका मससबत रह प््ारे।।२०।। श्री रा ी के ीवतक तका धतरछे से्य की शरोभा बहुत प््ारी है। पुतखल्य ीे सवकत तारे बहुत चञल और ते रोी्ी है। आसन्द ीे सराबरोर ्े से् अत्धधिक प्रेी के रस से ओत-प्ररोत है। ीेरी आतीा करो ्े अत्न्त प््ारे लगते है और इससे ीेरा शाशत (अखणड) सम्बन्धि है।ै प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 719 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए रस भरे सैस ीासूक के, आससिसक छरोडे क्य कर। कई करोट गुस कटाख् ीे, रह छरोडी स ाए स र।।२१८।। प्रााालभ अकरातीत के से् प्रेी के रस से ओत-प्ररोत है। इसके सौन्द्र करो आतीा्े कभी भी अपसे मदल से अलग सहीप कर पातीप। इसकी ीद भरी स रय (कटाक) ीे कररोडय गुा णछपे हरोते है। ब्सृमष्ट्ाँ इसकी शरोभा से कभी भी अपसी दमष्ट सहीप हटा पाती है। भाााकर - अपसे हद् ीे उीडसे ााले प्रेीी्ी भााय करो आणशक (प्रेीी) अपसे ीाशूक (प्रेीावपद) से से्य के संकेतय दारा व््क करता है , ससि से कटाक करसा कहते है। ्ह कटाक घृाापूारक व््ंग् का कटाक सहीप है , अमपतु हद् ीे प्राामहत हरोसे ााले प्रेी के दरर्ा से ीाशूक करो ससधचत करसे की प्रमक्र्ा है। ब धिाी धिसी के मदल ीे असन्त गुा है , तरो वााभामाक है मक सेे्य से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 720 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हरोसे ााले प्रेी के संकेतय ीे भी ाही गुा दमष्टगरोचर हयगे। इस चौपाई ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। रो देाे पल आडी ीासूक, तरो ासय बीच पड्रो ब्ांड। रह अन्तराए सहे सा सरप की, ए रो दल ु हा असर अखंड।।२२।। ्मद पल भर के खल्े भी धिसी से पदार हरो धिसी का दीदार हरोसा बन्द हरो एक-एक पल ऐसा लगता है ा्े अकारत् ा्े , तरो इस सवकधत ीे स ै े उसीे सम्पूार ब्ाणड की आ्ु ही बीत ग्ी हरो। अखणड परीधिाी ीे मारा ीास श्री रा ी आतीाओं के असन्् मप्र्ती है। उससे पल भर का मा्रोग हरोसा भी ब्सृमष्ट्य के खल्े अस् है। भाााकर - मारह की अस् अावका ीे सी् का व््तीत हरोसा बहुत कमठस हरोता है। इस पृराी लरोक की आ् ु प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 721 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चार अरब बतीस कररोड ाषर हरोती है। धिसी के दीदार के सी् ्मद पल भर का भी मा्रोग हरो ाता है , तरो ्ह आतीाओं के खल्े स् सहीप हरोता। उन्हे लगता है ैसे कररोडय-अरबय ाषर बीत ग्े है। ्ह बात रास गन्क ४७/४,१८०,३६,३८ ीे इस शब्दय ीे व््क की ग्ी हैती मासा े घडी गई, अीे ए दः शु ख ीाररो साक तीकी अलगरो ााे, के े रहू,ं ते ाण्ां ुग असेक। ााे ीा बसेक।। ीा ीारे स खीा्। एक पलक ीांहे रे सखख्रो, करोटास करोट ुग का्।। आपा रंग भर रीतां, बृख आडरो आव््रो खखा एक। तीे प्रेीे ाण्ूं कई ुग ाीत्ा, एी दीठां दख ु असेक।। एक पल ीांहे रे सखख्रो, कलप असेक मातीत। ए दख ु ीाररो ीा ााे, सखी प्रेी ताी ए रीत।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 722 / 992 श्री सागर टीका सैस सुख देत श्री रा स वााीी रो अलेखे, ीीठे ीासूक के प््ारे। ीेहेर भरे सुख सागर, रह तर स सके तारे।।२३।। ीाधिु्रता के सागर अकरातीत के ्े से् कील बहुत ही प््ारे लगते है। ्े ब्ातीाओं करो असन्त सुख देते है। ीेहर (कृपा) से भरपूर ्े से् आसन्द के ऐसे सागर है , ससि सीे ब्सृमष्ट्य के से्य की पुतखल्य ीे सवकत तारे तैरकर पार सहीप हरो सकते। भाााकर - मप्र्ती के से्य के दीदार ीे इतसा आसन्द मीलता है मक उसे व््क सहीप मक्ा ा सकता। ाह आसन्द उस असन्त ीहासागर के सीास हरोता है, ससि से तैरकर पार कर पासा (काह लगासा) आतीाओं के खल्े सम्भा सहीप हरोता। ाे उसी ीे डू ब प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्ा करती है। 723 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीीठे लगे ीररोरते, ीीठी पांपा लेत चौपल। मफरत अमस्ारे चातुरी, ीास भरे चंचल।।२४।। धिसी की पलकय ीे असन्त मीठास सीा्ी हुई है। इस पलकय के साक श्री रा ी ब धतरछे से्य करो अँगसाओं की ओर घुीाते है, तरो उस से्य ीे णछपी हुई मीठास वपष्टतः श प्रत्क हरो ाती है। इस धतरछे से्य ीे सखख्य करो संकेतय से ररझासे की चतुराई णछपी है , तरो प्रेी का ीास भी है। प्रेी से लबालब (full to the brim) भरे हरोसे के कारा इसीे चञलता भी दमष्टगरोचर हरो रही है। बीडी लेत ीुख हाक सय, सरोणभत करोील हाक ीुंदरी। लेत अंगुरर्ां छमबसय, बखल ाऊं सबे अंगुरी।।२५।। ब धिाी धिसी अपसे हाक से पास का बीडा ीुख ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 724 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी डालते है, तरो उस सी् उसके करोील हाकय की शरोभा अमदती् हरोती है। ीुम्काओं से ्क ु अँगुखल्ां बहुत सुन्दर शरोभा करो धिारा करती है। ीै इस सभी अँगुखल्य की शरोभा पर बखलहारी (न््रोछाार) ाती हूँ। बीडी ीुख आररोगते, अधिुर देखत अधत लाल। हँसत हराटी सरोभा सुन्दर, से् ीुख ीछराल।।२६।। ब मप्र्ती अकरातीत अपसे ीुख ीे पास का बीडा आररोगते (गहा करते) है, उस सी् उसके हयठ बहुत लाल रंग के मदखा्ी देते है। ब ाे हँसते है, तरो उस सी् उसकी ठु डी, से्, और आभा से पररपूार ीुखारमान्द की बहुत सुन्दर शरोभा हरोती है।ै प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 725 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अधिबीच आररोगते, ाचस केहेत रसाल। सैस बास चलाात सेहे े, छाती छे द मसकसत भाल।।२७।। पास आररोगते सी् ाे बीच-बीच ीे बहुत प्रेी भरी बाते करते है और अत्न्त सह ता से से्य से प्रेी के बाा चलाते है, रो अँगसाओं (ब्सृमष्ट्य) की छाती ीे भाले के सीास चुभ ाते है अकारत् सखख्ाँ उसके प्रेी ीे डू बकर एकाकार हरो ाती है। ्ष्टव््- अकरातीत के दारा पास खासे का ाार स ीा् लीला रप ीे ही दशार्ा ग्ा है, रो इस संसार के भााय के आधिार पर है। सूरी्ी परीधिाी ीे पास खासे की अमसाा्र ता सहीप हरोती। ीरोरत पास रंग तंबरोल, ीासय झलके ीाहे गाल। रो सैसय भर देखखए, रह तबहीप बदले हाल।।२८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 726 / 992 श्री सागर टीका ब श्री रा श्री रा स वााीी ी पास चबाते है, तरो ऐसा प्रतीत हरोता है स ै े पास का लाल रंग गालय ीे झलक रहा हरो। ्मद इस शरोभा करो अपसे आसतीक चकुओं से अच्छी तरह से देख खल्ा ा्े, तरो उसी सी् आतीा की सवकधत बदल ाती है। भाााकर - प्रा्ः श दीदार के सी् हकीकत की सवकधत हरोती है, मकन्तु पास खासे के सी् शरोभा ीे डू ब स ै ी अलौमकक ासे पर आतीा वा्ं के असवतता करो भूल ाती है और ीाररफत ीे पहुँच ाती है। इस चौपाई के चौकेे चरा का ्ही आश् है। ्दमप पास खासे से शरोभा का बढ़ ासा ्हाँ के भााय के असुसार है। परीधिाी की ाहदत ीे घट -बढ़ की लीला सहीप हरोती, मकन्तु पास खासे का आधिार बसाकर स ै े- स ै े ही धिसी की शरोभा ीे डू बते प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्ेगे , ाैसे-ाैसे 727 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उस शरोभा ीे उतररोतर ाृधद का असुभा हरोगा। ्ही पास खासे से शरोभा बढ़से का भाा है। ीरकलडे ीुख बरोलत, गौर हराटी हँसत। सैस श्रास मसलाट साससिसका, ीासय अंग सबे ीुसकत।।२९।। ब धिाी धिसी अपसे ीुवकराते हुए ीुख से बरोलते है, तरो ऐसा लगता है मक अधत गौर ाार की ठु डी समहत उसके सभी अंगय- से्, कास, ीवतक, साससिसका- ीे भी ीुवकराहट छा्ी हुई है। रोत धिरत धचत चाहती, धचत चाही सरी लगत। कई रंग करे धचत चाहती, खस ु बरोए करत अतंत।।३०।। श्री रा ी के आभूषाय ीे धचत की इच्छासुसार सूरी ज्रोधत मदखा्ी पडती है। ाे मदल की इच्छासुसार ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 728 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोील मदखा्ी पडते है। इसी प्रकार उसीे कई प्रकार के रंगय का पररातर स तका असन्त सुगसन्धि भी मदल की भाासा के असुसार दमष्टगरोचर हरोती है। धचत चाहे सुख देत है, लाल ीरोती कासस। देख देख ाऊं ाारसे, ए रो भूखस चेतस।।३१८।। प्राा मप्र्ती अकरातीत के कासय ीे रहे है, उसीे रो बाले शरोभा दे डे हुए ीरोती तका ीाणाक के सग धचत की इच्छासुसार सभी सुख देते है। इस चेतस आभूषाय करो देख-देखकर ीै बारम्बार बखलहारी ाती हूँ (न््रोछाार हरोती हूँ)। सुपस सरप ससि स मबधि के, पेहेसत है भूखस। सरो तरो असर ीे है सहीप, रो ससिससगार करे मबधि इस।।३२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 729 / 992 श्री सागर टीका इस सशर श्री रा स वााीी गत के पञभौधतक तसय ीे ससि स प्रकार से आभूषाय करो धिारा करके अपसा श्रृंगार मक्ा ाता है , ाैसा परीधिाी ीे सहीप हरोता है। सए ससिससगार रो कीससि ए, उताररए पुरातस। स्ा पुरासा पेहेस उतारसा, ए हरोत सुपस के तस।।३३।। पहले के धिारा मक्े हुए ासय और आभूषाय करो उतारकर ही स्ा श्रृंगार मक्ा ा सकता है। ्ह का्र ीा् इस पृराी लरोक के पञभौधतक तसय ीे ही हरोता है , ससि सीे स्े ास-आभूषा पहससे से पहले पुरासे ासय एां आभूषाय करो उतारसा पडता है। ए बारीक बाते असर की, सरो ासे अराा अरसै के। स्ा पुरासा घट बढ़, सरो कबूं स असर ीे ए।।३४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 730 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी की ्े रहव्ी्ी बाते है, ससि न्हे ्काकर रप से ीा् ब्सृमष्ट्ाँ ही ासती है। परीधिाी ीे ्ह कदामप सम्भा सहीप है मक करोई ावतु पुरासी हरो गह स्ी ावतु प्र्रोग ीे ला्ी कीी हरो ा्े और करोई ावतु बढ़ ा्े और उसकी ा्े , ्ा मकसी ावतु की ा्े। भाााकर - परब् का वारप सार दा एकरस हरोता है। उसीे हास -ाृधद, स्ा-पुरासा, की-अधधिक, ्ा लौमकक सुख-दः शु ख स ै े माकार सहीप हरोते। असर ीे सदा एक रस, करे पल ीे करोट ससिससगार। धचत चाहे अंगय सब देखत, स्ा पेहेन््ा स ूसा उतार।।३५।। परीधिाी ीे सार दा एकरस सवकधत हरोती है। ाहाँ एक ही पल ीे कररोडय प्रकार के श्रृंगार बदल ाते है। स तरो ाहाँ करोई स्ा श्रृंगार पहससा पडता है और स पुरासा उतारसा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 731 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पडता है। मदल की इच्छासुसार सभी अंगय ीे ासय एां आभूषाय की शरोभा मदखा्ी पडती है। ज्य अंग त्य ावतर भूखस, करे करोट रंग धचत चाहे। असर ूसा स कबूं करोई रंग, देखत पल ीे मसत सए।।३६।। श्री रा ी के अंगय की तरह ास एां आभूषा भी चेतस तका सूरी्ी है। मदल की इच्छासुसार ाे कररोडय रंग धिारा कर लेते है। परीधिाी ीे करोई भी रंग पुरासा सहीप हरोता, बसलक हीेशा ही हर पल स्े -स्े रप ीे मदखा्ी पडता है। देत खस ु बरोए खस ु ाली, श्रासय अधत सुन्दर। बात सुसत ीेरी रीझत, सुख पाात रह अन्दर।।३७।। श्री रा ी के कासय ीे अधत सुन्दर आभूषा (कार फूल प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 732 / 992 श्री सागर टीका और बाला) श्री रा स वााीी गीगा रहे है, ससि ससे सुगसन्धि और आसन्द का रस फैल रहा है। धिसी के कास ीेरी बातय करो सुसकर रीझ ाते है, ससि ससे ीेरी आतीा अपसे मदल ीे बहुत आसन्द का असुभा करती है। रो अटकय इस अंग ीे, तरो ाए स सकय छरोड मकत। गुझ गुस कई श्रास के, रह इतहीप हरोाे गखलत।।३८।। ्मद ीै इस कासय की इस अलौमकक शरोभा ीे ही अटक ाऊँ, तरो इन्हे छरोडकर और कहीप स ा सकँू गी अकारत् अन्् मकसी अंग की शरोभा सहीप देख पाऊँगी। कासय ीे कई रहव्ी्ी गुा णछपे है, इसखल्े ीेरी आतीा इसकी शरोभा ीे गलतास हरो ाती है। भाााकर - आणशक (प्रेीी) की प्रेी भरी बाते कासय के ीाध््ी से ही ीाशूक (प्रेीावपद) तक पहुँचती है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 733 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि सके कारा ाह अपसे प्रेी की सुराही का रस आणशक के मदल ीे डाल देता है। ्ही कासय का माणशष्ट गुा है। ऐसे असेक (असंख्) गुा धिसी के कासय ीे है , ससि ससे आतीाओं करो आसन्द मीलता है। ाीा अंग ाेर का, भूखस संग कई रंग। रोत परोहयचे आकास ीे, ाए करत मीसरो मीसे गं ।।३९।। धिाी धिसी से रो ाीा धिारा कर रखा है, ाह सूरी्ी ााहरातय से डा हुआ है। इसके ऊपर शरोभा्ीास हरोसे ााले आभूषाय ीे असेक रंगय के सग डे हुए है। इससे मसकलसे ााली ज्रोधत्ाँ आकाश ीे फैल रही है और आपस ीे टकराकर ्द ु करती हुई प्रतीत हरो रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 734 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ाही माधि ाीा पटु का, ्ाही माधि पाग ावतर। करे धचत चाहे अंग ररोससी, असेक इसी प्रकार रोत अंग धिर।।४०।। ाीे के ऊपर कीर ीे बन्धिे हुए पटु के की शरोभा है। ससिसर के ऊपर बन्धिी हुई पाग एां अन्् ास भी इसी प्रकार की अलौमकक छमा से ्क ु है। मदल की इच्छासुसार ्े सभी ास अंग -अंग ीे असेक प्रकार की ज्रोधत्य की आभा फैला रहे है। ाीा पटु का चरोली बांहे की, चीस ीरोहरोरी बन्धि बगल। ए आससिसक अंग देख के, आगूं स र स सके चल।।४१८।। श्री रा ी का ाीा, उस पर बन्धिा हुए पटु का, ाीे के ाकवकल ााले भाग (चरोली), ीरोहरोरी ीे आ्ी हुई चुन्नटे, तका बगलबन्धि की शरोभा असुपी है। ब इसकी शरोभा करो आतीा्े देखती है , तरो उसकी दमष्ट इन्हे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 735 / 992 श्री सागर टीका छरोडकर आगे सहीप श्री रा स वााीी ा पाती। भाााकर - ाकवकल की दा्ीप ओर बगल ीे तीस वकासय पर तमस्य (छरोटी-छरोटी डरोरर्य) के दारा गाँठ बाँधिी ाती है, इन्हे बगलबन्धि कहते है। आधिुमसक सी् ीे तमस्य के वकास पर बटसय का प्र्रोग हरोता है। चरोली अंग करो लग रही, हार लटके अंग हलत। तले हार बीच दगु दगु ी, सेहेरे लेहेरे रोत चलत।।४२।। ाीे की चरोली ाकवकल से धचपकी हुई है। गले से ाक पर आ्े हुए हार महल रहे है। हारय के सीचे बीच ााले महवसे ीे दगु दगु ी आ्ी है। इससे ज्रोधत की लहरे इस प्रकार मसकलती है, स ै े पासी की सहरे बह रही हय। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 736 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बगलय बेली फूल खभे, मगराास बेली र। पीछे कटाा रो करोतकी, रह छरोड स सके क्यए कर।।४३।। ाीे ीे कन्धिय से सीचे की ओर दरोसय बगलय ीे लताओं तका फूलय के ीसरोरी धच् बसे हुए है। इसी प्रकार गले ााले भाग ीे भी सरोसे की तारय ( री) से लताओं के धच् बसे है। पीठ ााले भाग ीे रो कढ़ाईदार करोतकी (भरत) बसी है, उसे देख लेसे पर आतीा की दमष्ट उससे हटती ही सहीप है। कहे हार ही हैडे पर, अधत मबरा े अंग लाग। सुख देत हक सूरत करो, ए कौस हीाररो भाग।।४४।। हार कहते है मक हीारा मकतसा बडा सौभाग् है , रो ही धिाी धिसी के ाकवकल से लगकर मारा ीास है। ही अपसी सुन्दरता से मप्र्ती अकरातीत करो ररझाते है और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 737 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उन्हे प्रेी का सुख देते है। भाााकर - आती-वारप हरोसे से ्मद हार भी श्री रा ी करो ररझाते है, तरो इसीे करोई आश्र सहीप। परीधिाी का का-का अकरातीत का आणशक है। आणशक अपसे ीाशूक करो इशक का सुख देता ही है। ्ही कारा है मक हार कहते है मक ही अपसे प्राा मप्र्ती करो ररझाकर प्रेी का सुख देते है। कणठ हार संग सब चेतस, देख सरोभा सब चढ़ती देत। ए सुख रह सरो ासहीप, रो साीी हक इसारत लेत।।४५।। धिाी धिसी के गले ीे रो हार आ्े है , उसीे सभी सग चेतस है। ाे श्री रा डे हुए ी की अमदती् शरोभा करो देखकर अपसी शरोभा ीे ाृधद कर लेते है , तामक अपसे ीाशूक श्री रा ी करो अच्छी तरह से ररझा सके। प्रेी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 738 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के इस सुख करो ाही आतीा ास पाती है, रो अपसे सम्ीुख मारा ीास प्राा मप्र्ती के प्रेी-संकेतय करो सीझ ए ाती है। ंग रह देख्ा चाहे, मील रोते कई संग रंग अाकास ीे, मीसय मीसे श्री रा रोत लरत। ंग करत।।४६।। ी के हारय से मसकली हुई ज्रोेधत्ाँ आपस ीे एक-दस ु करती हुई प्रतीत हरोती है। ू रे से टकराकर ्द इसी प्रकार असेक रंग के सगय से रो ज्रोधत्ाँ मसकल रही है, ाे भी आपस ीे ्द ु करती है। ीेरी आतीा के अन्दर ्ह इच्छा हरो रही है मक ीै इस अलौमकक ्द ु करो देखती ही रहूँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 739 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रोत अधत ाेरस की, बांहय पर बा ू बन्धि। ात चली रोत चीर के, कई माधि ऐसी ससन्धि।।४७।। दरोसय बाँहय पर बा ूबन्धि आ्े है। उसीे ााहरातय की ज्रोधत बहुत अधधिक है। डे हुए ााहरातय के सगय की ज्रोधत आकाश करो चीरते हुए चारय ओर फैल रही है। बा ूबन्धि ीे इस प्रकार की असेक शरोभा है। हाक काडय कडी परोहयधच्ां, ासय ए रोत इसके अतन्त। रोत सागर आकास ीे, करोई सके सा इत अटकत।।४८।। दरोसय हाकय ीे कडा , कडी, और परोहयची सुशरोणभत हरो रहे है। ऐसा प्रतीत हरोता है, स ै े इसकी ज्रोधत पूार ारात ज्रोधत्य से बहुत अधधिक है। इससे मसकलसे ााली ज्रोधत आकाश ीे सागर के सीास मदखा्ी देती है। इस आभूषाय से उठसे ााली ज्रोधत कहीप भी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 740 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अटकती सहीप है, बसलक सीधिे आकाश ीे चली भाााकर - चूड और चूडी ीे ाती है। रो अन्तर हरोता है , ाही अन्तर कडा और कडी ीे हरोता है अकारत् कडा कुछ ीरोटा हरोता है और कडी पतली हरोती है। बा ू बन्धि परोहयची कडी, ए भूखस सरोभा अपार। सरी हाक लीके हकेखल्ां, क्य आाे सरोभा सुीार।।४९।। हाकरोे ीे धिारा मक्े ासे ााले आभूषा है - बा ूबन्धि, परोहयची, और कडी। इसकी शरोभा असन्त है। करोील हाकय की हकेखल्य की लकीरे इतसी सुन्दर है मक उसकी शरोभा करो मकसी भी सीीा ीे सहीप बाँधिा ुदे ुदे रंगय रोत चले, ए ा सकता। रो संग हाक ीुंदरी। ए ते लेहेरे कई उठत है, ज्य ज्य चलास करे अंगरु ी।।५०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 741 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रााालभ अकरातीत के हाकय की अँगुखल्य ीे ीुम्का्े आ्ी है , उसीे रो डे हुए सगय से असेक रंग की ज्रोधत्ाँ मसकल रही है। स ै े- स ै े धिाी धिसी अपसी अँगुखल्य करो महलाते है (चलाते है), ाैसे-ाैसे ीुम्काओं से ते क्य कहूं की बहुत सी लहरे उठसे लगती है। रोत सखस की, ए सबके अधत रोर। ासय ते सागर अाकास ीे, सबकरो मसकसे फरोर।।५१८।। सखय की ज्रोधत का ीै कैसे ाार स करँ। इसकी ज्रोधत तरो सबसे अधधिक है। ऐसा प्रतीत हरोता है मक सखय की ज्रोधत पूार की सभी ज्रोधत्य करो फरोडकर ऊपर मसकल ग्ी है और आकाश ीे ते के सागर के रप ीे मदखा्ी दे रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 742 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रंग देखूं के सलूकी, छमब देखूं के सरी उजल। रो हरोए कछुए इवक, तरो इतके स मसकसे मदल।।५२।। ीै ्ह मसार ् सहीप कर पा रही हूँ मक ीै पहले क्ा देखँू श्री रा ी की अँगुखल्य के अधत उजाल रंग करो देखँू ्ा अधत करोील सौन्द्र की शरोभा करो देखँ।ू ससि सके अन्दर करोडा भी इशक (प्रेी) हरोगा, ाह अँगखु ल्य की इस असुपी शरोभा से अपसा मदल सहीप हटा सकेगा। कैसी सरी अंगुरर्ां पतली, देख सलूकी ते । आसीास ररोससी परोहयचाए के , ीासय सूर ससि ीी भरी रे ा रे ।।५३।। ्े पतली-पतली अँगुखल्ां मकतसी करोील है। हे ीेरी आतीा! तू रा इसके ते रोी्ी सौन्द्र करो तरो देख। इससे मसकलसे ााली सूरी ज्रोधत आकाश ीे इतसा प्रकाश कर रही है, स ै े धिरती के एक-एक का ीे सू्र प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 743 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मारा ीास हरो ग्े है। रो रोत सीूह सरप की, सरो सैसय ीे स सीाए। रो रह सैसय ीे स सीााहीप, सरो ुबां क्रो क्य ाए।।५४।। श्री रा ी के सख से णशख तक के इस सम्पूार वारप से उठसे ााली ज्रोधत असन्त है। ाह पूार रप से आतीा की दमष्ट ीे आ सहीप पाती। रो शरोभा आतीा के सैसय ीे ही स आ पा्े, उसे इस ससि िहा से कैसे व््क मक्ा ा सकता है। ्य ावतर भूखस अंग चेतस, सब लेत आससिसक ााब। केहे सब का लेऊं पड-उतर, ए सहीप रह मीसे खााब।।५५।। इस प्रकार श्री रा ी के अंगय ीे सुशरोणभत हरोसे ााले सभी ास और आभूषा चेतस है। ्े सभी ास और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 744 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आभूषा आतीा (आणशक) से अपसे प्रशय का उतर लेते है। इसी प्रकार आतीा कहती है मक ीैसे तरो उतर दे मद्ा है, अब ीुझे भी अपसे प्रशय का उतर लेसा है। इस प्रकार की ाातार ााली प्रेीी्ी लीला पराती से सहीप , बसलक वाप्स के ब्ाणड ीे आ्ी आतीा के साक हरो रही है। भाााकर - अपसे प्रश का उतर मील ासे पर मद्े ासे ााले उतर करो "पड-उतर" (प्रत्त ु र) कहते है। पररक्रीा ३/१८२०-१८२१८ ीे ्ह प्रसंग ारात है मक सखख्ाँ ासय ीे ब ाती है , तरो पाँचाी भूमीका के प्रााली ीसन्दर ीे हरोसे ााली प्रेी लीला की एक-दस ू रे से चचार करती है। ठीक ्ही सवकधत ्हाँ पर भी है। ब आतीा धिसी के सख से णशख तक के श्रृंगार करो देखती है , तरो उस आती-वारप ास-आभूषाय से ाैसे ही ाातार करती है, स ै े अन्् सखख्य से करती है। उसकी संधकप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 745 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी झाँकी इस प्रकार हरो सकती है"हद् कील से खलपटे हुए हारय! ्ह तुम्हारा मकतसा बडा सौभाग् है, रो तुी मप्र्ती के हद् ीे उीडसे ााले प्रेी के सागर का पल-पल रसपास करते हरो। "बुलाक ीे लटकसे ााले ीाणाक तका ीरोती के सगय ! तुीसे अधधिक भाग्शाली तरो और करोई हरोगा ही सहीप, क्यमक तुी तरो मदस-रात धिाी धिसी के अधिराीृत का पास करते हरो। "कासय ीे डे हुए कार फूल और बालय ! तुी तरो ीेरे प्राा मप्र्ती के गालय के सौन्द्र की रसीाधिुरी ीे मसरन्तर डू बे रहते हरो। इससे बडी ची और क्ा हरोगी। "अधत ीसरोहर पाग और दगु दगु ी! ीेरे प्रााालभ के ससिसर पर मारा ीास रहसे का सौभाग् ीा् तुम्हे ही प्राप है। इससे बडा सौभाग् और करोई सहीप। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 746 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी "चराय ीे शरोभा्ीास झांझरी , घूघ ं री, कांबी, और कडी! धिसी के सच्चे आणशक (प्रेीी) तरो तुी हरो, रो एक पल भी दरू सहीप हरोते।" अब ास-आभूषाय की ओर से उतर मद्ा ाता है - "हे आतीा! हीारा और आपका वारप तरो एक ही है। हीे धिसी का रो प्रेी मील रहा है , ाही आप अपसे से्य से प्राप करती है। इससे बडा सौभाग् और क्ा हरोगा मक ाे वा्ं आपके मदल ीे बैठे है और अपसे प्रेी का दरर्ा (सीु्) ही आपके अन्दर उडेल रहे है।" रद बदल भूखस सय, और करे ावतरय सय। और अंग लग ाए सा सके, फारग स हरोए इसीय।।५६।। आतीा ब ासय और आभूषाय से ाातार कर रही हरोती है, उस सी् उसकी स र अन्् मकसी अंग पर सहीप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 747 / 992 ा श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पाती, क्यमक इस प्रेी भरी ाातार से उसे अाकाश ही सहीप मील पाता। ए ावतर भूखस हक के, सरो सारे ही चेतस। सब ााब खल्ा चामहए, आससिसक एही लछस।।५७।। धिाी धिसी के अंगय ीे सुशरोणभत हरोसे ााले ्े सभी ास और आभूषा चेतस है। ब्सृमष्ट का ्ही लका है मक ाह धिसी का दीदार करे और ासय एां आभूषाय से ाातारलाप दारा अपसे प्रशय का उतर प्राप करे। ्ष्टव््- इस चौपाई से धचतामस की ीहता प्रधतप्रामदत हरोती है। सुन्दरसाक कहलासे की साकर कता इसी ीे है मक ही इस कसौटी पर वा्ं करो खरा ससिसद करे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 748 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आससिसक रह ससि त अटकी, अंग भूखस ्ा ावतर। ्ासय लगी गुफ्तगरोए ीे, सरो छूटे सहीप क्यए कर।।५८।। धिसी के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली आतीा की दमष्ट ससि स मकसी अंग, ास, ्ा आभूषा ीे अटक (लग) उसी से बातचीत करसे लग ाती है, ाती है। ाह मकसी प्रकार से इससे अलग सहीप हरो पाती। इवक बसे सब अंग ीे, सब मबधि देत है सुख। कई सुख हर एक अंग ीे, सरो क्रो स ाए ्ा ीुख।।५९।। श्री रा ी के सभी अंगय ीे इशक ही इशक बसा हुआ है, इसखल्े सभी अंग हर प्रकार से प्रेी का सुख देते है। प्रत्ेक अंग ीे असेक प्रकार के सुख मादीास है, ससि सका इस ीुख से ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। भाााकर - प्रत्ेक इसन््् ीे सभी इसन्््य के गुा हरोसे से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 749 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सभी प्रकार के सुख मसमहत हरोते है। उदाहरा के खल्े आँ खय से केाल देखसे का ही सुख सहीप है , बसलक इससे वपशर , रस, श्राा, तका सूँघसे का सुख भी प्राप हरोता है। प्रेी खलए सरोभा गुस, सब सुख देत पूरस। ्ा ावतर ्ा भूखस, सुख ाहेर ्ा बातस।।६०।। चाहे ास हरो ्ा आभूषा, सबीे प्रेी और शरोभा का गुा णछपा हुआ है। ्े हर प्रकार का पूार सुख देते है, चाहे ाह ामहरी (बा्) हरो ्ा बाधतसी (आन्तररक) हरो। भाााकर - आतीा की आँ खय से सौन्द्र करो देखसा बा् ( ामहरी) सुख है, बमक उस शरोभा ीे डू बकर धिसी के मदल से एकाकार हरो ासा आन्तररक (बाधतसी) सुख है। इसी प्रकार ास और आभूषाय से भी दरोसय प्रकार के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 750 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुख प्राप हरोते है, क्यमक ्े आती-वारप है। सुख इवक हक ात के, धतससे अंग सुखदाए। बाहेर सुख सब अंग ीे, ए सुख ुबां क्रो स ाए।।६१८।। इशक ही श्री रा श्ाीा ी और सखख्य का सुख है। इसके ररोी-ररोी ीे इशक भरा है, ससि ससे इसके सभी अंग आसन्द के वारप है। परीधिाी के पच्चीस पकरोे ीे रो आसन्द मदखा्ी पड रहा है, ाह सम्पूार आसन्द इसके अंग-अंग ीे मादीास है। इस सुख (आसन्द) का ाार स इस ससि िहा से सहीप मक्ा ा सकता। अंग ावतर ्ा भूखस, सब सुख मद्ा चाहे। कई सुख ाहेर कई बातस, सब मील प्रेी मपलाए।।६२।। श्री रा ी के सभी अंग, ास, और आभूषा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 751 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आतीाओं करो सभी प्रकार का सुख देसा चाहते है। इस सुखय ीे कई सुख ामहरी हरोते है और कई सुख बाधतसी हरोते है। इस प्रकार सभी अंग, ास, और आभूषा सखख्य करो प्रेी का रसपास कराते है। भाााकर - प्रेी का रस ही आसन्द है। श्री रा ी के ासय, आभूषाय, एां अंग-अंग ीे असन्त सौन्द्र भरा हुआ है, ससि सीे डू बकर आतीा्े आसन्द ीे ी् हरो ाती है। इसे ही प्रेी का रस मपलासा कहते है। इस चौपाई के चौकेे चरा का ्ही भाा है। इवक देाे लेाे इवक, और ऊपर देखााे इवक। असर इवक श्री रा रे रा, ए रो सूरत इवक अंग हक।।६३।। ी लीला रप ीे अपसा इशक श्ाीा ी तका सखख्य करो देते है और उससे इशक लेते है। अपसी बा् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 752 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लीलाओं से ाे इशक करो ही दशारते है। परीधिाी के काका ीे इशक भरा हुआ है। धिाी धिसी के सभी अंगय समहत सम्पूार वारप ीे इशक ही इशक (प्रेी ही प्रेी) भरा हुआ है। भाााकर - प्रेी लीला ीे प्रेी का आदास-प्रदास अाश् हरोता है, इसखल्े श्री रा ी करो प्रेी लेसे ााला तका देसे ााला कहा ग्ा है। परीधिाी की हकीकत ीे सभी एक-दस ू रे के आणशक भी है और ीाशूक भी है। ्ही कारा है मक इशक लेसे और देसे की लीला सभी के साक हरोती है। से्य के इशारे देसा , तका श्री इन््ााती ल ीे झीलसा करसा , ी के ीुख ीे ीेाा डालसा लीला दारा प्रेी करो दशारसा है। इस चौपाई के दस ू रे चरा का ्ही भाा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 753 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक अंग ससि स देख्ा हरोए, सरो पल रहे स देखे मबगर। हुई बेसकी इस सरप की, रह अंग न््ारी रहे क्य कर।।६४।। ससि स आतीा से धिाी धिसी के एक अंग की शरोभा भी देख ली हरोती है, उसे पुसः श देखे मबसा ाह एक पल भी सहीप रह सकती। धिसी के उस वारप का साकातकार कर लेसे के पशात् ब ाह संश् रमहत हरो ाती है, तरो भला उससे अलग रहसे का प्रश ही कहाँ हरोता है। सब अंग मदल ीे आाते, बेसक आात सूरत। हाए हाए रह रेहेत इत क्य कर, आए बेसक ए मससबत।।६५।। ब आतीा के मदल ीे धिाी धिसी के सभी अंगय की शरोभा बस ाती है, तरो मसधशत रप से ीुखारमान्द समहत सम्पूार वारप मदल ीे आ प्रकार का सम्बन्धि हरो ाता है। धिाी धिसी से इस ासे पर अकारत् हद् ीे मप्र्ती प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 754 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अकरातीत की शरोभा के बस ासे पर भी आतीा, हा्! हा्! इस झूठे संसार ीे कैसे रह पाती है। ्ह बहुत ही आश्र की बात है। चारय रोडे चरस के, ए रो असर भूखस। ए खलए महरदे मीसे, आात सरप पूरस।।६६।। धिाी धिसी के दरोसय चराय ीे ्े चार आभूषा झांझरी , घुघ ं री, कांबी, और कडली (कडी) मारा ीास है। परीधिाी के इस आभूषाय समहत दरोसय चरा कीलय की शरोभा ब मदल ीे बस ाती है , तरो मप्र्ती अकरातीत का सख से णशख तक का सम्पूार वारप भी मदल ीे आ ाता है। भाााकर - इस चौपाई के ककस करो धचतामस का ीूल सू् सीझसा चामहए। धिसी के ीुखारमान्द की शरोभा करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 755 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आतीसात् करसे के खल्े सार प्रकी चरा कीलय की शरोभा करो अपसे हद् ीे बसासा चामहए। रो सरोभाात इस चरस करो, ए भूखस सब चेतस। असेक गुस ्ाके ाहेर, और अलेखे बातस।।६७।। रो आभूषा धिसी के चराय ीे शरोभा देते है , ाे सभी चेतस है। इसीे बा् और आन्तररक ऐसे बहुत से गुा है , ससि न्हे इस ससि िहा से व््क सहीप मक्ा संग सरी ा सकता। रोत अतंत, और अतंत खस ु बरोए। ए भूखस चरसय सरोणभत, बासी धचत चाही बरोलत सरोए।।६८।। चराय ीे सुशरोणभत हरोसे ााले इस आभूषाय के सग करोील है। इसीे असन्त ज्रोधत और सुगसन्धि भी भरी हुई है। ्े आभूषा मदल की इच्छासुसार अधत ीधिुर ाााी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 756 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बरोलते है। गौर चरस अधत सरोणभत, और ससिससगार भूखस सरोणभत। ए अंग संग न््ारे स कबहू,ं अधत बारीक सीझस इत।।६९।। धिाी धिसी के चराय का रंग बहुत ही गरोरा है। इसकी शरोभा भी बहुत अधधिक है। चराय के श्रृंगार ीे प्र्क ु हरोसे ााले आभूषा अलौमकक शरोभा करो धिारा कर रहे है। ्े आभूषा हीेशा चराय के साक-साक (अंग-संग) रहते है, कभी भी अलग सहीप हरो सकते। ्ह बहुत ही रहव्ी्ी सूकी बात है, रो सीझसे ्रोग् है। भाााकर - परीधिाी का प्रत्ेक पदाकर ब्वारप है। उसका एक का भी कभी अलग सहीप हरो सकता। आभूषा भी आती-वारप है। ाे भी अपसे प्रााालभ अकरातीत करो प्रेी से ररझाते है। ऐसी सवकधत ीे अलग प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 757 / 992 श्री सागर टीका हरोेसे की कलपसा भी सहीप की श्री रा स वााीी ा सकती। एही ठौर आससिसकस की, असर की रो अरााहे। सरो चरस तली छरोडे सहीप, पडी रहेे तले पाए।।७०।। परीधिाी की ब्सृमष्ट्ाँ हीेशा धिसी के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली है। उसका मसाास (मठकासा) इस चराय ीे ही है। ाे इस चराय की छ्छा्ा ीे ही रहती है और इस चराय की तखल्य की शरोभा से एक पल के खल्े भी कभी अलग सहीप हरोती है। भाााकर - परीधिाी ीे एकमदली हरोसे से सभी का वारप एक है और सभी एक-दस ू रे के आणशक है। इस खेल ीे अकरातीत की गररीा और सम्प्रभुता (बादशाही) करो दशार्ा ा रहा है, इसखल्े चराय ीे पडे रहसे का भाा इस खेल ीे ही है, परीधिाी ीे सहीप। चराय की शरोभा के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 758 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ध््ास ीे डू बे रहसा एां उसके आदेश (हुकी) ीे बन्धिे रहसा ही चराय ीे पडे रहसा है। असर रहे आससिसक इसकी, ससि स पा्रो पूरस दाा। ठौर सा और रहस करो, ाकरो लगे कले े घाा।।७१८।। परीधिाी की आतीा्े हीेशा धिसी के इस चराय के प्रेी ीे डू बी रहसे ााली है। इस खेल ीे , धिसी करो ररझासे के खल्े उन्हे ्ह सुसहरा अासर प्राप हुआ है। ब्ाााी से ससि सके हद् ीे चरोट लग ाती है , उन्हे धिसी के चराय के अधतररक ऐसा अन्् करोई वकास सहीप मदखता हाँ उन्हे शाशत प्रेी और आसन्द मील सके। भाााकर - कले े ीे चरोट लगसे का तातप्र है- ब्ाााी से संसार की सशरता का बरोधि हरोसा और अपसे ीूल सम्बन्धि की ाावतमाक पहचास हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ासा, ससि सके कारा 759 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिसी के चराय के मबसा एक पल भी संसार ीे रहसा अच्छा सहीप लगता। कई रंग संग ावतर भूखस, चढ़ी आकास रोत लेहेर। रो रोत सख चरस की, ीासय चीर मसकसी सेहेर।।७२।। ासय एां आभूषाय ीे कई रंगय के सग डे हुए है , ससि ससे मसकलसे ााली ज्रोधत की लहरे आकाश ीे फैल (चढ़) रही है। चरा के सखय से उठसे ााली ज्रोधत तरो आकाश करो चीरते हुए इस प्रकार गीस कर रही है, स ै े ल की सहर। केहेती हय इस ुबांस सय, और सुपस श्रास स र। रो स रय सूर खााब के, सरो ससिसफत परोहयचे क्य कर।।७३।। ्हाँ के कासय से सुसे हुए और आँ खय से देखे हुए पदाकार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 760 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की उपीा देकर, ्हाँ की ससि िहा से, ीै धिाी धिसी की इस अमदती् शरोभा का ाार स कर रही हूँ। इस आँ खय से रो वाप्स के ब्ाणड का ्ह सू्र मदखा्ी दे रहा है , इसकी उपीा देकर श्री रा ी की ससि स शरोभा का ाार स करसे का प्र्ास मक्ा ग्ा है, ाह ाावतमाक ाार स सहीप हरो सकता। कट चीस झलके दाास, बैठ गई अंग पर। कई रंग संग इ ार ीे, सरो आात ाहेर स र।।७४।। कीर ीे इ ार बन्धिी हुई है , ससि सकी चुन्नटे ाीे के दाीस के सीचे झलक रही है। इ ार ीे असेक रंग के सग डे हुए है, रो प्रत्क रप से देखसे ीे स र आ रहे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 761 / 992 श्री सागर टीका और भूखस श्री रा स वााीी रो चरस के, सरो अधत धिरत है रोत। सरी खस ु बरोए वार ीाधिुरी, आसीास ससि ीी उदरोत।।७५।। चराय के आभूषा अत्न्त करोील, सुगसन्धि से भरपूर , और ीधिुर ध्ामस (वार) करसे ााले है। इसीे बहुत अधधिक सूरी ज्रोधत मादीास है , ससि सका मदव्् प्रकाश धिरती से लेकर आकाश तक फैला हुआ है। पांउं तली सरी उजल, लीके एडी लांक लाल। ए रह आससिसक से क्य छूटहीप, ए कदी सूर ीाल।।७६।। चरा की तखल्ाँ बहुत करोील और उजाल है। एमड्य के सीचे की गहराई (तखल्य) ीे आ्ी हुई लाल रंग की रेखा्े अधत सुन्दर है। प्रााालभ अकरातीत के ्े सूरी चरा कील भला परीधिाी की उस ब्सृमष्ट से कैसे छूट सकते है, रो पल-पल उन्ही के प्रेी ीे डू बी रहती प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 762 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। तली हकेली हाक पांउं की, लाल अधत उजल। और बीसय अंगुरर्ां सरी पतली, सख सरी मसरील।।७७।। चरा की तखल्ाँ तका हाक की हकेखल्ाँ बहुत अधधिक लाखलीा खल्े हुए उजाल रंग की है। चराय तका हाकय की सभी बीसय अँगुखल्ां अधत करोील और पतली है। साखूस करोील तका बहुत ही वाच्छ है। काडे करोील हाक पांउं के, फसे पीडी अंग ीाफक। उजल अधत सरोभा खलए, ए सूरत सरोभा मसत हक।।७८।। ससि स प्रकार हाकय और पैरय की मपणडखल्ाँ तका पँ े करोील है, उसी प्रकार इसीे आ्े हुए कडे भी अधत करोील है। अकरातीत की ्ह अखणड शरोभा अत्धधिक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 763 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उजालता खल्े हुए असुपी सौन्द्र से ्क ु है। भाााकर - हाकय ीे कलाई से कुहसी तक और पैरय ीे एडी से घुटसे के बीच का महवसा मपणडली कहलाता है। कडे की शरोभा हाक और पैर दरोसय ीे ही आ्ी है। रंग रस इं्ी सौतस, चढ़ता अंग सौतस। ते रोत सरोभा सौतस, सौतस चढ़ता रोास।।७९।। धिाी धिसी की इसन्््य ीे प्रेी और आसन्द हीेशा ही सूतस (साीस) अावका ीे मदखा्ी देते है। सभी अंग मसत् ही माकससिसत सवकधत ीे दमष्टगरोचर हरोते है। ास आभूषाय समहत इस अंगय की ते , ज्रोधत, और शरोभा सार दा साीस मदखा्ी पडती है। चढ़ता हुआ ्ौास पलपल स्ा मदखता है। भाााकर - माकससिसत हरोसे का भाा ्ह कदामप सहीप लेसा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 764 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चामहए मक उसीे कुछ कीी की, ससि सका माकास हरो रहा है। इसका तातप्र ्ह है मक सभी अंगय ीे मसत् ही साीस ता गी मदखा्ी देती है। इसकी उपीा फूल के खखलसे से कर सकते है। संवकृत ीे इसका ्ही अणभप्रा् हरोता है। छब फब ीुख ससकूल, चढ़ती कला देखाए। का्ी अंग असर के, सब चढ़ता स रय आए।।८०।। श्री रा ी के ीुख की शरोभा, सुन्दरता, तका प्रसन्नता पल-पल चढ़ती (खखली हुई, माकससिसत) अावका ीे मदखा्ी देती है। परीधिाी के ्े अखणड अंग है , इसखल्े सभी मसत् सूतस वारप ीे ही दमष्टगरोचर हरोते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 765 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए अंग सब असर के, असर ावतर भूखस। असर रे ाेर करो, ससिसफत स परोहयचे सुकस।।८१८।। मप्र्ती परब् के ्े सभी अंग तका ास और आभूषा परीधिाी के है। ाहाँ के ााहरात तरो क्ा, एक का की शरोभा का ाार स करसे का साीर्र भी ्हाँ के शब्दय ीे सहीप है। सब अंग इवक के, गुस अंग इन््ी इवक। सब्द स परोहयचे ससिसफत, इस मबधि सूरत हक।।८२।। श्री रा ी के सभी बा् अंग इशकी्ी (प्रेीी्ी) है। उसके गुा (सत्, धचत् और आसन्द), आन्तररक अंग (अन्तः शकरा), एां इसन्््ाँ भी इशकी्ी है। धिाी धिसी की शरोभा ही कुछ इस प्रकार की है मक उसके सौन्द्र की ीमहीा का ाार स करसे ीे ्हाँ के शब्द पूारत्ा असीकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 766 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। भाााकर - प्रकृधत के तीस गुा हरोते है - सत्, र , तका ती। इसी प्रकार परब् ीे ीुख्तः श तीस गुा हरोते है सत्, धचत, और आसन्द। अन्तः शकरा (मदल, हद्) ही आन्तररक अंग है, बमक पहले चरा ीे वकूल अंगय करो ही बा् अंग कहा ग्ा है , ससि सीे ास एां आभूषा धिारा मक्े ाते है। केहे केहे मदल रो केहेत है, ताके अधधिक अधधिक अधधिक। सरोभा इवक बका तस की, ए ीै केहे स सकय रंचक।।८३।। ीेरा मदल धिसी की शरोभा का बार-बार ससि तसा ाार स करता है, उतसा ही ऐसा प्रतीत हरोता है मक ैसे शरोभा तरो इससे बहुत अधधिक (असन्त) है। ्ह शरोभा प्रेी से भरपूर अकरातीत के अखणड तस की है, इसखल्े ीै प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 767 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करोडी सी शरोभा का भी ाार स सहीप कर पा रही हूँ। अब लग ासती असर के, हेी संग लेत मीलाए। पैदास भूखस इस माधि, ाे पेहेसत है धचत चाहे।।८४।। अब तक ीै ्ही ीे सरोसे ीे सगय करो ासती की मक ससि स प्रकार इस संसार रोडकर आभूषा बसा्े ाते है , उसी प्रकार परीधिाी ीे भी हरोता है , मकन्तु धिसी की ीेहर से अब ्ह वपष्ट हरो ग्ा है मक मस धिाी ीे करोई भी ची बसती सहीप है , बसलक मदल की इच्छा ीा् से अंगय ीे आभूषा मदखा्ी देसे लगते है। एक ले द ू ा मीलााहीप, तब तरो घट बढ़ हरोए। सरो तरो असर ीे है सहीप, ााहेदत ीे सहीप दरोए।।८५।। ब एक ावतु ीे करोई दस ू री ावतु मीला्ी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती है , 768 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तब तरो घट-बढ़ हरोता है, बढ़से बमक परीधिाी ीे घटसे ्ा ैसी करोई बात ही सहीप है। ाहदत ीे एक अकरातीत के अधतररक अन्् करोई हरोता ही सहीप है। भाााकर - परीधिाी ीे अकरातीत का मदल ही सभी रपय ीे लीला कर रहा है, इसखल्े अलग-अलग ावतुओं का असवतता ीासकर उन्हे बढ़ासे ्ा घटासे की बात सरोची भी सहीप ा सकती। ाहाँ मकसी स्ी ावतु की रचसा हरोसा सम्भा ही सहीप है। घडे डे स सीारे, सा सांधि मीलाई मकस। मदल चाहे संगय के असल, ावतर ्ा भूखस।।८६।। परीधिाी के इस आभूषाय करो स तरो मकसी से बसा्ा है , स मकसी से इसीे सगय करो डा है, और तरो और मकसी से इन्हे सुसखजत (श्रृंगाररत) भी सहीप मक्ा है। ्हाँ तक मक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 769 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकसी से इसीे करोई ावतु मीला्ी भी सहीप है। ाावता ीे सगय से सुशरोणभत ्े सभी ास और आभूषा मदल की इच्छासुसार ही दमष्टगरोचर हरो रहे है। सा पेहेन््ा सा उतारर्ा, मदल चा्ा सब हरोत। ब ससि त स ै ा चामहए, सरो उत आगूं बन््ा ले रोत।।८७।। परीधिाी ीे करोई भी ास ्ा आभूषा स तरो पहसा ाता है और स उतारा ाता है। ाहाँ मदल की इच्छा ीा् से ही सब कुछ हरोता है। हाँ भी ससि स प्रकार के ास ्ा आभूषा की इच्छा (आाश्कता) हरोती है, ाहाँ उस प्रकार का ज्रोधतीर ्ी ास ्ा आभूषा पहले से ही बसा हुआ मदखा्ी देसे लगता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 770 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो रह कहााे असर की, ीाहे बका खखलात। सरो ससि स खखस छरोडे सरप करो, कहे उीत करो ीहाीत।।८८।। परीधिाी की ब्सृमष्ट्य करो सम्बरोधधित करते हुए श्री ीहाीधत ी कहते है मक रो भी सुन्दरसाक वा्ं करो परीधिाी की आतीा कहते है और अखणड ीूल मीलााे ीे अपसी पराती का वारप ीासते है , उन्हे एक का के खल्े भी श्री रा ी की शरोभा करो अपसे मदल से अलग सहीप करसा चामहए। भाााकर - इस चौपाई ीे धडसणडी घरोष (डंके की चरोट) के साक धिाी धिसी की शरोभा करो अपसे मदल ीे बसासे के खल्े कहा ग्ा है। रो सुन्दरसाक ासबूझकर इसकी अाहेलसा करते है, उन्हे आती -धचन्तस करसे की आाश्कता है मक ाे मकस राह पर ा रहे है। प्रकरा ।।१८०।। चौपाई ।।८८७।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 771 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी श्री सुन्दर साक करो ससिससगार इस प्रकरा ीे सुन्दरसाक (पराती-वारप) के श्रृंगार का ाार स मक्ा ग्ा है। सुन्दर साक बैठा अचर सय, ासय एकै अंग महल मील। अंग अंग सब के मील रहे, सब सरोणभत है एक मदल।।१८।। सुन्दरसाक (ब्सृमष्ट्ाँ) बहुत ही आश्र चमकत ीु्ा ीे बैठे हुए है। सभी सट-सटकर (महल-मीलकर) इस प्रकार बैठे है मक ऐसा प्रतीत हरो रहा है स ै े सभी एक ही अंग हय। सभी के अंग-अंग आपस ीे मीले हुए है। सभी एकमदली की भाासा ीे ओत -प्ररोत है और अलौमकक शरोभा से मारा ीास है। भाााकर - इस चौपाई के प्रकी चरा का माणशष्ट भाा है। धिाी धिसी से अपसी अँगसाओं करो ीा्ा के आश्र सक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 772 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी खेल के बारे ीे बताकर अपसे चराय ीे बैठा रखा है , तामक ाे ीा्ा का खेल देख सके। उसके अन्दर आश्र मीणश्रत भाा है तका उसके बैठसे का ढंग भी आश्र ीे डालसे ााला है। सभी सखख्ाँ सट-सटकर इस प्रकार बैठी हुई है मक सबके अंग -अंग मीले हुए है। "बैठा अचर सय" का ्ही भाा है। इस चौपाई से ्ह पूारत्ा वपष्ट है मक ीूल मीलााा की इस बैठक ीे तीस हारय तका चार रावतय की ीान््ता श्रीीुखाााी के असुकूल सहीप है। ासरो ीूल ीेला सब एक ीुख, सब एक सरोणभत ससिससगार। सागर भर्ा सब एक रस, ीाहे कई मबधि तरंग अपार।।२।। ऐसा लग रहा है स ै े ीूल मीलााा ीे बैठे हुए सब सुन्दरसाक का ीुख पूारत्ा एक सीास है। सबका श्रृंगार भी सीास रप से सुशरोणभत हरो रहा है। सबीे शरोभा और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 773 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एकमदली का सागर सीास रप से लीला कर रहा है। इसीे कई प्रकार की असन्त तरंगे लहरा रही है। भाााकर - साीान््तः श इस संसार ीे मकसी का ीुख गरोल हरोता है, तरो मकसी का चौडा, और मकसी का पतला, मकन्तु परीधिाी ीे ऐसा सहीप है। सबके ीुख ऐसे मदखा्ी देते है, स ै े एक ही साँचे ीे ढले हय। इसी करो पहले चरा ीे "सब एक ीुख" कहकर ारात मक्ा ग्ा है। ब्सृमष्ट्य की शरोभा के इस सागर ीे सूर सागर तरो सीा्ा ही है, इशक, मसवबत, और ाहदत का सागर भी सीा्ा हुआ है। इस सागरय की असन्त लहरे क्रीडा कर रही है। इस चौपाई की दस ू री पंमक का ्ही आश् है। मसलाट बेसा चांदलरो, हरी गरदस ीुख ीरोर। सैस चयच ससिसर सरोणभत, बीच बसे तरफ दरोऊ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रोर।।३।। 774 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सभी सखख्य के ीाके पर चीकते हुए चन््ीा की गरोल आकृधत ीे मबन्दा बसा हुआ है। इसीे हरी गदर स ााले ीरोर के ीुख की सुन्दर शरोभा है। इसीे से् , चयच, और ससिसर की बसााट आ्ी है। मबन्दे के केन्् वकास के दरोसय ओर ीरोर के ीुख की शरोभा आ्ी है। मसरील ीरोती साससिसका, कई मबधि सक बेसर। रोत रोर संग मीहीप सकस, ए बरसस हरोए क्य कर।।४।। सखख्य की साक ीे असेक प्रकार की सक और बेसर की शरोभा आ्ी है। इसीे बहुत ही वाच्छ ीरोती डे हुए है। साक के इस आभूषाय से बहुत अधधिक सूरी्ी ज्रोधत मसकल रही है। इसीे डे हुए सगय ीे अधत सूकी धच्कारी की ग्ी है, ससि सकी सुन्दरता का ाार स मकसी प्रकार से सहीप हरो सकता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 775 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सरोणभत है सबस के, कासस झलकत झाल। ीाहे ीरोती संग मसरील, झांई उठत ीाहे गाल।।५।। सबके कासरोे ीे सुन्दर-सुन्दर झाले (बाखल्ाँ) झलकार कर रहे है। इसीे ीरोती के अधत वाच्छ सग डे हुए है , ससि सकी झाँई गालय ीे दमष्टगरोचर हरो रही है। चार चार हार सबस के, उर पर अधत झलकत। कणठसरी कणठस ीे, सबस के सरोणभत।।६।। सबके हद् कील (ाकवकल) पर चार-चार हार बहुत अधधिक झलकार कर रहे है। इसी प्रकार सबके गले ीे कणठसरी भी सुशरोणभत हरो रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 776 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक हार हीरस का, द ू ा हेी कंचस। ती रो हार ीामसक करो, चौका हार ीरोधत्स।।७।। एक हार हीरे का है, तरो दस ू रा हार शुद वाार (कञस) का है। इसी क्री ीे तीसरा हार ीाणाक का है और चौका हार ीरोधत्य का है। कहूं डरोरे कहूं बादले, कहूं ख ूरे हार। कहा कहूं ाेर असर के, झलकारय झलकार।।८।। ीेरे साीसे ्ह प्रश है मक ीै पहले हारय ीे आ्े हुए डरोरय की सुन्दरता का ाार स करँ , ्ा अधत करोील ासय की शरोभा का, ्ा हारय ीे बसी हुई धच्कारी (भराा) का। परीधिाी के इस ााहरातय का ीै कैसे ाार स करँ। ्े तरो अपसी सूरी शरोभा से पल-पल झलकार कर रहे है। भाााकर - धिातुओं के तारय से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो अधत करोील धच्कारी 777 / 992 श्री सागर टीका की श्री रा स वााीी ाती है, उसे "बादले" कहते है। ्ह ाकवकल के ऊपर के ास पर बसा्ा ग्ा है। इसी प्रकार हारय ीे रो सुन्दर धच्कारी हरोती है, उसे ख ूरे (भराा) कहते है। हाक चूडी संग साघरी, अंगूमठएं झलकत संग। उजल लाल हकेखल्ां, परोहयचय परोहयची संग कई रंग।।९।। हाकय ीे चूमड्ाँ और साघरी है , ससि सीे सग अँगूमठ्य ीे भी डे हुए है। डे हुए सग झलकार कर रहे है। सबकी हकेखल्ाँ अधत उजाल लाल रंग की है। हाकय की कलाई ीे परोहयची तका पँ य ीे परोहयचा के आभूषा गीगा रहे है, ससि सीे कई रंगय के सग शरोभा्ीास है। भाााकर - परोहयचा का सम्बन्धि पाँचय अँगुखल्य से हरोता है। ्ह हाकय के पँ े ीे धिारा मक्ा परोहयची पहसी ाता है। कलाई ीे ाती है। इस दरोसय आभूषाय करो श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 778 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ी भी धिारा करते है। स ै े सरप असर के, भूखस धतस ीाफक। ्ाही राेस ावतर ाेर के, ए अंग बडी रह हक।।१८०।। परीधिाी की अँगसाओं का स ै ा सूरी वारप है, आभूषा भी उसी के असुकूल है। उसी के असुरप ााहरातय से डे हुए ास भी है। ्े सभी अँगसा्े अकरातीत की अधिार्धांमगसी श्ाीा ी की अँगरपा है। स ै ी सरोभा भूखस की, कहूं तैसी सरोभा ावतर। कछू पाइए सरोभा सरप की, रो खरोले रह स र।।१८१८।। स ै ी शरोभा आभूषाय की है , ाैसी ही ासय की भी है। ्मद आसतीक दमष्ट खल ु ाती है , तभी सखख्य की पराती की शरोभा का कुछ असुभा हरो सकता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 779 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ावतरय के संग क्य कहूं, कई ाेरय सबे भई एक ररोससी, अंबार उदरोत।।१८२।। ासय गं ासय ीे असेक प्रकार के रोत। ााहरातय के सग डे हुए है , ससि सकी ज्रोधत का ीै कैसे ाार स करँ। इसकी सारी ज्रोधत मक ब एकम्त हरो ाती है , तरो ऐसा प्रतीत हरोता है स ै े ्ह प्रकाश का अलौमकक भणडार हरो। अतन्त संग असर के, और सरी ाेर अतन्त। अतन्त असर रसा्स, खबू ी खस ु बरोए अधत बेहेकत।।१८३।। परीधिाी ीे असन्त प्रकार के सग है और ााहरातय की करोीलता भी असन्त है। इस प्रकार उसीे मसमहत आसन्द भी असन्त है। सुगसन्धि तरो उसकी माशेषता ही है। उससे चारय ओर अत्धधिक सुगसन्धि की ब्ार बहती रहती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 780 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कहूं केते साी ाेरस के, रसा्स साी असेक। कई साी भूखस एक अंग, सरो कहां लग कहूं मााेक।।१८४।। परीधिाी के मकतसे आसन्दी्ी ााहरातय के साी बताऊँ। इस ााहरातय के असेक साी है। ब एक ही अंग ीे कई साी के आभूषा है , तरो सभी अंगय के आभूषाय ीे डे हुए सगय के मकतसे साीय करो ीै बताऊँ। भाााकर - रसा्स (रस+अ्स) शब्द का तातप्र आसन्द देसे ााले साधिस से है। इस चौपाई ीे परीधिाी के ााहरातय करो रसा्स शब्द से सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है। सूरत सकल साक की, ीुख करोील सुन्दर गौर। ए छमब महरदे तरो फबे, रो हरोाे असर सहूर।।१८५।। सब सुन्दरसाक (ब्ाँगसाओं) का वारप बहुत ीसरोहर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 781 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। उसका ीुखारमान्द करोील, गौर, और अधत सुन्दर है। परीधिाी का धचन्तस हरोसे पर ही ्ह अलौमकक शरोभा मदल ीे अातररत हरोती है। भाााकर - "सहूर" शब्द का भाा धचन्तस से हरोता है, बहस से सहीप, मकन्तु इस चौपाई ीे ीस, बुधद, ्ा धचत के दारा मक्े ासे ााले धचन्तस का प्रसंग सहीप है , बसलक ध््ास की गहराइ्य ीे हरोसे ााले धचन्तस का प्रसंग है। ावतुतः श ्हाँ धचन्तस का तातप्र प्रेी के रस ीे डू बी हुई बरोधिाावका (ञासी्ी सवकधत) से है। इसी प्रकरा की चौपाई ३९, ४० और ४१८ ीे ्ह बात वपष्ट रप से बता्ी ग्ी है। रहे सुन्दर ससकूल ीुख, सहीप सरोभा करो पार। घट बढ़ करोई स इसीे, एक रस सब सार।।१८६।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 782 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्ाँ इतसी सुन्दर है मक उसकी शरोभा की करोई सीीा सहीप है। उसके ीुखारमान्द पर सार दा प्रसन्नता छा्ी रहती है। सौन्द्र ीे करोई भी मकसी से की ्ा अधधिक सहीप है, बसलक सभी एक सीास (एकरस) है। कई रंग सरोणभत सामड्ां, रंग रंग ीे कई संग सार। णभन्न णभन्न झलके एक रोत, कई मकरसे उठे बेसी ु ार।।१८७।। सखख्य से असेक रंग की सामड्ाँ धिारा कर रखी है। इस सामड्य के एक -एक रंग ीे असेक सगय के रंग सीामहत है। ्े सभी रंग मीलकर एक ही ज्रोधत के रप ीे झलकार करते है और उस ज्रोधत से असेक रंगय की असन्त मकराे फैलती है। भाााकर - परीधिाी ीे असन्त सग है और उसके असन्त रंग है, मकन्तु ्े सभी रंग सामड्य के एक-एक रंग ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 783 / 992 श्री सागर टीका उसी प्रकार सीा्े हुए है, श्री रा स वााीी स ै े परीधिाी के एक ही फल ीे सभी फलय का रस भरा हरोता है। हर एक के ससिससगार, धतस ससिससगार ससिससगार कई संग। संग संग ीे कई रंग है, धतस रंग रंग कई तरंग।।१८८।। सखख्य के ास-आभूषाय के असेक प्रकार के श्रृंगार है। उसीे प्रत्ेक श्रृंगार ीे असेक प्रकार के सग डे हुए है। इसी प्रकार प्रत्ेक सग ीे असेक प्रकार के रंग मसमहत है तका प्रत्ेक रंग से प्रकाश की बहुत सी तरंगे मसकल रही है। तरंग तरंग कई मकरसे, कई रंग संग मकरसे स सीाए। ्य रोत सागर सरपय करो, र्रो ते पुन् ीाए।।१८९।। प्रत्ेक तरंग से असेक प्रकार की मकराे मसकलती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 784 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी श्रृंगार ीे कई रंगय के सग है , ससि ससे मसकलसे ााली मकराे हाेली ीे सहीप सीाती अकारत् चारय ओर फैली हु ई है। इस प्रकार सखख्य के शरीर से मसकलसे ााली ज्रोधत एक सागर के सीास मदखा्ी पड रही है , ससि ससे इस ीूल मीलााे ीे ते ही ते का भणडार स र आ रहा है। अब इसके अंग की क्य कहूं, ठौर सहीप बरोलस। क्य कहूं सरोभा अखणड की, बीच बैठ के अंग सुपस।।२०।। धिाी धिसी की इस अँगसाओं के अंगय की शरोभा का ाार स कैसे करँ। अब तरो बरोलसे की करोई गह (सवकधत) ही सहीप रही। इस सशर शरीर के ीाध््ी से भला सखख्य के अखणड तसय की शरोभा का ाार स कैसे हरो सकता है। भाााकर - "बरोलसे का मठकासा स हरोसा" एक ीुहाारा है, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 785 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि सका अकर हरोता है- मकसी भी सवकधत ीे स कह पासा। इसी प्रकार पूार चौपाई ीे प्र्क ु "स सीाए" भी ीुहाारा है, ससि सका भाा हरोता है- भरपूर हरोसा। रंग तरंग मकरसे कही, कही ते प्रकास उदरोत सब सब्द ीे, रोत ुबां इस। रो क्ा सूर ररोसस।।२१८।। सखख्य की शरोभा का ाार स करसे ीे ीैसे अपसी ससि िहा से रंग, तरंग, मकरा, ते , ज्रोधत, प्रकाश, और उ ाला आमद शब्दय का प्र्रोग मक्ा है , मकन्तु ्े सभी शब्द इस सशर गत के है। ावतुतः श परीधिाी का सूर ही सम्पूार शरोभा के रप ीे दमष्टगरोचर हरो रहा है। भाााकर - अरबी भाषा का "सूर", ाेद का "आमदत्ाार " (् ु. ३१८/१८८), "शुक्र" (् ु. १८७/८०), एां "ारेण्ी् भगर ः श" (३६/३) एकाकर ााची है। इसी सूर से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 786 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ते , ज्रोधत, प्रकाश, उ ाला, तरंग, रंग, और मकरा आमद का प्रकटस हरोता है। सूर से प्रकट हरोसे ााले इस शब्दय ीे सूकी अन्तर हरोता है। सू्र ीे ते है, (दाहकता) बमक चन््ीा ीे ज्रोधत (शीतलता) है। ्दमप इस दरोसय से ही प्रकाश फैलता है, मकन्तु प्रकाश के फैलसे से पहले उ ाला फैल ाता है। मकराय के ीाध््ी से प्रकाश का फैलसा हरोता है। ज्य ज्य बैमठ्ां लग लग, त्य त्य अरस-परस सुख देत। बीच कछू सा रेहे सके, ्य खैच खैच मढग लेत।।२२।। सखख्य से एक -दस ू रे करो खीपच-खीपचकर अपसे से सटा खल्ा है तका इस तरह से बैठी है मक उसके बीच करोई भी अन्् ावतु सहीप रह सकती। इस प्रकार ाे ससि स तरह से सट-सट कर बैठी है, उसी प्रकार ाे आपस ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 787 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भी धिसी के सुख का रसपास करती है। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह बात माशेष रप से दशार्ी ग्ी है मक सखख्य ीे बा् ्ा आन्तररक रप से मकसी प्रकार का करोई भेद सहीप है। ाहाँ एकमदली हरोसे के कारा धिसी का प्रेी ा आसन्द सबकरो सीास रप से प्राप हरोता है। "अरस-परस सुख देत" का ्ही भाा है। इस चौपाई ीे मसराााद रप से तीस हारय की ीान््ता का खणडस है। ्मद ऐसा ीासा ा्े मक हारे तरो तीस है मकन्तु अपसी-अपसी हार ीे ाे सट-सट कर बैठी है, तरो ऐसा उधचत सहीप है क्यमक इस चौपाई की दस ू री पंमक ीे ्ह बात कही ग्ी है मक उसके बीच करोई भी ावतु (खाली वकास) सहीप है और उन्हयसे एक -दस ू रे करो खीपच-खीपच कर अपसे से सटा खल्ा है। ऐसी सवकधत ीे हार बससे का प्रश ही सहीप हरोता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 788 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ासय सागर सब एक रोत ीे, सूर ररोसस भर पूरस। झांई झलके ते दरर्ाा ज्य, कई उठे तरंग णभन्न णभन्न।।२३।। ऐसा प्रतीत हरोता है स ै े सब सखख्य का सीूह एक ससम्ीखलत ज्रोधत के रप ीे सागर के सीास दमष्टगरोचर हरो रहा है। सम्पूार ीूल मीलााा सूरी प्रकाश से भरपूर है। ऐसा लगता है स ै े ते के सागर का वारप ही ्हाँ झलकार कर रहा है, ससि सीे अलग -अलग प्रकार की असेक तरंगे लहरा रही है। भाााकर - ससि स प्रकार अकाह लराणश करो सागर कहा ाता है, उसी प्रकार सखख्य की इस असुपी ते राणश करो ते का सागर कहा ग्ा है और इसे झांई (झलक, प्रधतमबम्ब, आभा) शब्द से सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है। इसका भाा ्ह है मक सखख्य के इस वारप ीे ते का सागर प्रधतमबसम्बत हरो रहा है ्ा उसकी झलकार हरो रही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 789 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। ीूल मीलााा ीे मारा ीास सखख्य के इस सौन्द्र सागर ीे प्रेी , आसन्द, और एकमदली आमद की असेक प्रकार की असन्त तरंगे उठा करती है। श्री रा ी (ीाररफत वारप) का मदल ही परीधिाी के पच्चीस पकय के रप ीे (हकीकत ीे) क्रीडा कर रहा है। इस सागर गन्क ीे ीूल मीलााा के आठय सागरय का ाार स हुआ है। इस प्रकार ्ह वपष्ट है मक सम्पूार पच्चीस पक ीूल मीलााा ीे मारा ीास श्री रा ी के मदल से है। ससि स ीूल मीलााा ीे ्गु ल वारप समहत सब सखख्ाँ मारा ीास है, उसे ते का सागर कहसा भी असन्त करो सीझसे ीा् के खल्े है , ्काकर ीे सहीप। ्ह ककस ाैसे ही है काग स ै े सम्पूार ब्ाणड करो एक छरोटे से के टु कडे पर धचम्त करसा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 790 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ऊपर तले की ररोससी, और ावतर भूखस की रोत। और रोत सरपय की क्य कहू,ं ए रो ठौर ठौर उदरोत।।२४।। चन््ाा (ऊपर), चबूतरे (सीचे), और सुन्दरसाक समहत ्गु ल वारप के अंग-अंग तका ासय एां आभूषाय से उठसे ााली सूरी ज्रोधत , रो हर गह गीगा रही है, उसका ाार स ीै कैसे करँ। ऊपर तले कम्भ मदाालय, सब रोत रही भराए। बीच सीूह रोत साक की, बसी ुगल रोत बीच ताए।।२५।। ऊपर, सीचे, कम्भय, दीाारय आमद ीे सार ् ज्रोधत ही ज्रोधत मदखा्ी दे रही है। ीूल मीलााा की हाेली के बीच ीे चबूतरे पर रो सुन्दरसाक की ज्रोधत गीगा रही है, उसके बीच ीे ्गु ल वारप की सूरी ज्रोधत शरोभा्ीास हरो रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 791 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई के दारा ्ह वपष्ट रप से ससिसद हरोता है मक ससहासस चबूतरे के बीच ीे ही रखा है , स मक दराा े की बगल ीे पाच और सीली के कम्भय से लगकर। इस सम्बन्धि ीे इस चौपाई का तीसरा और चौका चरा बहुत ही ीहतापूार है। ए रोत ीे सरोभा सुन्दर, और सरपय की सुखदाए। देख देख के देखखए, ज्य सख ससिसख रहे भराए।।२६।। इस ज्रोधत ीे ्गु ल वारप तका सखख्य की अधत सुन्दर एां आसन्द देसे ााली शरोभा मारा ीास है। हे साक ी! आप सख से णशख तक की इस अलौमकक शरोभा करो बारम्बार देखते रमहए, तामक ्ह आपके धिाी हद् ीे अखणड हरो ा्े। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 792 / 992 श्री सागर टीका ज्य दरर्ा ते श्री रा स वााीी रोत का, त्य सब मदल दरर्ा एक। एक रस एक ररोससी, ुबां क्य कर कहे मााेक।।२७।। ससि स प्रकार चबूतरे पर ते और ज्रोधत का सागर मदखा्ी पड रहा है, उसी प्रकार सबके मदल ीे एक ही ाहदत (एकमदली) का सागर लहरा रहा है। सबके मदल ीे एक ही प्रेी का रस है और सूर का प्रकाश है। भला इस ससि िहा से इस रहव् करो ्काकर रप ीे कैसे कहा ा सकता है। रोत उपली कही ुबांस सय, पर रेहेस चरर् सुख चैस। सुख परआती तब पाइए, ब खल ु े अन्तर के सैस।।२८।। अभी तक ीैसे ज्रोधत से भरपूर बा् शरोभा का ही ाार स मक्ा है, लेमकस अन्तरंग लीला ीे असन्त सुख और शासन्त णछपी हुई है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ब आती-दमष्ट खल ु ाती है, 793 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तभी पराती के अखणड सुखय का असुभा हरोता है। भाााकर - अष्ट प्रहर (हकीकत) की लीला बा् लीला कहलाती है, बमक ीाररफत की ाह लीला ससि सीे आणशक- ीाशूक (मप्र्ा-मप्र्ती) का भेद मीट ा्े अन्तरंग लीला कहलाती है। इस लीला ीे डू बकर ही पराती के ाावतमाक आसन्द करो ासा ा सकता है। एक रस हरोइए इवक सय, चले प्रेी रस पूर। फेर फेर प््ाले लेत है, व्ाी व्ाीा ी ह ूर।।२९।। हे साक ी! ्मद आप ्गु ल वारप का साकातकार (दीदार) करसा चाहते है, तरो सार प्रकी प्रेी ीे गलतास हरोकर एकरस हरो ाइए। ऐसी सवकधत ीे आपके अन्दर प्रेी रस की धिारा बहसे लगेगी। ब आप अपसे हद् रपी प््ाले ीे प्रेी रस का पास करसे लगे , तरो ्ह प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 794 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मसधशत है मक अब आपकरो ्गु ल वारप का दीदार हरोसा ही है। भाााकर - ब आतीा मपणड-ब्ाणड से परे हरोकर ीा् अपसी पराती के श्रृंगार की ही भाासा करे और मप्र्ती के दीदार करो ही एकीा् लक् बसा ले , तरो उसे एकरस हरोसा कहते है। इस अावका ीे ीा का षड् माकारय (काी, क्ररोधि, लरोभ, ीरोह, ीद, ीतसर अकारत् देष) से करोई भी सम्बन्धि सहीप रहता। ब धिाी हद् ीे ्गु ल वारप की झलक मीलसे लगे और उसके अधतररक सब कुछ मसरकर क लगसे लगे तरो ्ह सीझ लेसा चामहए मक अब ीेरी आतीा प्रेी रस का पास करसे लगी है। क्य कहूं सुख सबस के, सब अंगय के एक धचत। अरस परस सुख लेाहीप, अंग सए सए उप त।।३०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 795 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी ीे ब्सृमष्ट्ाँ ससि स आसन्द का रसपास करती है, उसका ाार स ीै कैसे करँ। ाहाँ सबके मदल का एक ही धचत हरोता है। ्े सभी अन्तरंग लीला ीे धिसी से एकाकार हरोकर असन्त आसन्द ीे डू बी रहती है। इसके हद् ीे मसत् ही स्े -स्े सुखय का प्रकटस हरोता रहता है। भाााकर - इस संसार ीे सबके धचत की प्रमक्र्ा अलगअलग हरोती है, बमक परीधिाी ीे सबका धचत एक ही हरोता है, ्हाँ तक मक ीस, धचत, बुधद, और अहंकार भी ककस ीा् ही है। एक अकरातीत के अधतररक अन्् मकसी का ाहाँ ीूलतः श असवतता सहीप है, बमक इस सशर गत ीे ीस , धचत, बुधद, और अहंकार की संरचसा तका प्रमक्र्ा अलग-अलग हरोती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 796 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी साक सीूह की क्य कहू,ं ाकरो इवकै ीे आराी। अरस-परस सब एक रस, मपउ मालसत प्रेी काी।।३१८।। ीै परीधिाी की इस अँगसाओं की ीमहीा का कैसे ाार स करँ, ससि सका आसन्द एकीा् प्रेी ीे ही मसमहत हरोता है। आपस ीे एकमदली के रस ीे डू बी हुई ्े सभी सखख्ाँ मप्र्ती से एकीा् प्रेी की ही इच्छा रखती है और आसन्द के रस ीे भीगी रहती है। इस धिाी के रो धिसी, धतस अंगय का ससेह। हेत धचत आसन्द इसका, क्य कहूं ुबां इस देह।।३२।। धिाी के धिसी श्री रा ी की अँगरपा इस ब्सृमष्ट्य के मदल ीे अपसे प्रााालभ करो ररझासे के खल्े रो असन्त लाड-प््ार और आसन्द भरा हुआ है, उसका ाार स ीै इस शरीर की ससि िहा से कैसे करँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 797 / 992 श्री सागर टीका सुख अन्तर अन्तवकरस के, आाे सहीप श्री रा स वााीी ुबांस। प्रेी प्रीत रीत अन्तर की, सरो क्य कर हरोए ब्ास।।३३।। पराती के अन्तः शकरा ीे ससि स आसन्द की असुभूधत हरोती है, उसे इस ससि िहा से सहीप कहा ा सकता। पराती के अन्दर अपसे धिाी धिसी करो ररझासे की रो प्रेी और प्रीधत की रीधत (तरीका) है, उसका ाार स कर पासा कदामप सम्भा सहीप है। भाााकर - इस चौपाई ीे "अन्तर" शब्द से तातप्र है , आतीा से परे "पराती"। प्रेी घसीभूत ( ीा हुआ) रप है, तरो प्रीधत ्ाीभूत (बहता हुआ) रप है। ावतुतः श ब प्रेी ही शब्दातीत है, तरो प्रेी के दारा अपसे ीाशूक करो ररझासे की प्रमक्र्ा (रीधत) शब्दय ीे कैसे व््क की सकती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 798 / 992 ा श्री सागर टीका सत सरप श्री रा स वााीी रो धिाी के, धतसके अन्तवकरस। इवक धतसके अंग का, सरो कछुक करं बरसस।।३४।। परीधिाी ीे ब्सृमष्ट्य के अखणड तस है। उसके अन्तः शकरा (अंग, मदल) ीे रो इशक का रस प्राामहत हरोता है, उसका ीै करोडा सा ाार स करती हूँ। सख ससिसख अंग इवक के, इवकै संधिय संधि। ररोी ररोी सब इवक, क्य कर कहूं ससंधि।।३५।। पराती के तसय ीे सख से णशख तक प्रत्ेक अंग के ररोी-ररोी ीे और अंगय के रोड ीे प्रेी ही प्रेी भरा हुआ है। ऐसे मदव्् प्रेी (इशक) की ्काकर ता का ीै कैसे ाार स करँ। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 799 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अन्तवकरस इवक के, इवकै धचत धचतास। बातां करे इवक की, कछू देखे सा इवक मबस।।३६।। सखख्य का सम्पूार अन्तः शकरा इशक का है। इसके धचत ीे ीा् इशक (प्रेी) का ही ध््ास रहता है। ाे बाते भी ीा् इशक की ही करती है। उन्हे इशक के अधतररक अन्् कुछ भी सहीप मदखता। तता गुस अंग इंसन्््ां, सब इवकै के भीगल। पख सारे इवक के, सब इवक रहे महल मील।।३७।। उसके शरीर सूरी्ी तता के है, ससि सीे सत् , धचत, और आसन्द का गुा मादीास है। अन्तः शकरा तका इसन्््ाँ भी इशक के रस ीे सराबरोर है। आसन्दी्ी लीला ीे मक्र्ाशीलता के दरोसय पक भी इशकी्ी है। इस प्रकार उसके प्रत्ेक अंग ीे इशक ओत-प्ररोत हरो रहा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 800 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - परीधिाी ीे सखख्य दारा धिाी धिसी करो ररझासे की प्रमक्र्ा दरो रपय ीे हरोती है , इन्हे ही दरो पक कहते है। पहले पक ीे ाह धिाी धिसी करो अपसा ीाशूक ीासकर असेक प्रकार की लीलाओं से ररझाती है, ्ह बमहरंग लीला है। दस ू रे पक ीे ाह उसके मदल ीे इस प्रकार डू ब हरो ाती है मक उसका वा्ं का असवतता सीाप ाता है और धिसी से एकरप हरो ाती है , ्ह अन्तरंग लीला है। ए सुख संग सरप के, रो अन्तर अंदर इवक। आती अन्तवकरस माचाररए, तरो कछू बरोए आाे रंचक।।३८।। पराती के अन्दर इशक (प्रेी) हरोसे से ्गु ल वारप के साक आसन्द की लीला हरोती है। हे साक ी! ्मद आप अपसी आतीा के अन्तः शकरा ीे माचार करे , तरो ाहाँ के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 801 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आसन्द की कुछ सुगसन्धि (झलक) प्राप हरो सकती है। भाााकर अलग है। ीा और आतीा के अन्तः शकरा अलगीा का अन्तः शकरा म्गुाातीक है, बमक आतीा का अन्तः शकरा पराती के अन्तः शकरा का प्रधतमबम्ब है। आतीा के अन्तः शकरा की लीला केाल ध््ासाावका (धचतामस) ीे ही हरोती है। लौमकक का्ार ीे ीा् ीा का ही अन्तः शकरा का्र करता है , आतीा का सहीप। रो करोई आती धिाी की, इत हुई हरोए ागत। अंग आ्ा हरोए इवक, तरो कछू बरोए आाे इत।।३९।। ्मद मकसी के अन्दर परीधिाी की आतीा हरो और ्हाँ ागत हरो ग्ी हरो तका उसके धिाी हद् ीे धिसी के प्रधत प्रेी हरो, तरो उसके अन्दर परीधिाी के आसन्द की कुछ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 802 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुगसन्धि आ सकती है अकारत् कुछ असुभा हरो सकता है। भाााकर - ागत हरोसे का तातप्र है - ्गु ल वारप की शरोभा का मदल ीे बस ासा। परीधिाी के असन्त आसन्द की करोडी सी भी झलक मीलसा मबसा प्रेी एां आती- ागधत के सम्भा सहीप है। इसके आगे की चौपाइ्य ीे धचतामस की गहस सवकधत का ाार स हरो रहा है। मपउ से्य से् मीलाइए, ज्य उप े आसन्द अधत घस। तरो प्रेी रसा्स पीससि ए, हे साक रो आती के उतपस।।४०।। ी! आप अपसी आती-दमष्ट से मप्र्ती के से्य की ओर देखखए, तामक आपकरो अत्धधिक आसन्द की प्रामप हरो सके। मप्र्ती के से्य की ओर देखसे पर ब आपकी आतीा ीे प्रेी का रस प्राामहत हरोसे लगे , तरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 803 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसका पास कीससि ए अकारत् उसीे डू ब ाइए। भाााकर - धचतामस की प्रारसम्भक अावका ीे चराय का ही माशेष ध््ास मक्ा ाता है। इससे संसार से अलगाा हरोसे लगता है और मप्र्ती की शरोभा मदल ीे बससे लगती हैचारय रोडे चरस के, ए रो असर भूखस। ए खलए महरदे मीसे, आात सरप पूरस।। अकरातीत का मदल इशक का अकाह सागर है। उसका रस से्य के दारा प्राामहत हरोता है। इसखल्े से्य के ध््ास से आतीा के अन्तः शकरा ीे प्रेी की अखणड ाषार हरोसे लगती है। ्दमप परीधिाी की ाहदत ीे चराय और से् ीे करोई भी गुाातीक अन्तर सहीप है , मकन्तु इस प्रकार का ककस हीारी गा् शमक के आधिार पर मक्ा ग्ा है। ससि स प्रकार इस संसार ीे मकसी के चराय के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 804 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रधत भाा रखसे से श्रदा ा माशास की ाृधद हरोती है मकन्तु से्य की ओर देखसे पर प्रेी की ाृधद हरोती है , उसी प्रकार ध््ास की प्रारसम्भक अावका ीे अपसे आती-वारप ीे सवकत सहीप हुआ ब तक ाता, तब तक ीा भाा के ्रोग से हरोसे ााली ध््ास प्रमक्र्ा ीे चराय एां से् के ध््ास ीे भेद करसा पडता है। आती अन्तवकरस माचाररए, अपसे असुभा का रो सुख। बढ़त बढ़त प्रेी आाहीप, परआती ससीुख।।४१८।। अब आपकरो ससि स आसन्द का असुभा हरो रहा है, उसका अपसी आतीा के अन्तः शकरा ीे माचार कीससि ए। आसन्द के भााय के बढ़से पर मदव्् प्रेी का रस प्राामहत हरोगा, ससि ससे अपसी पराती स र आसे लगेगी। भाााकर - आतीा के अन्तः शकरा ीे ्गु ल वारप के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 805 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ध््ास से मीलसे ााले आसन्द का माचार तभी हरोगा, मपणड और ब्ाणड का ब रा भी आभास सहीप हरोगा। उस अावका ीे आसन्द की मसरन्तर ाृधद हरोसे से ीा्ा से सम्बन्धि पूारत्ा टू ट ा्ेगा, ससि ससे म्गुाातीत प्रेी की धिारा बहेगी और अपसी पराती का वारप स र आसे लगेगा। इतके स र स फेररए, पलक स दी े सैस। सीके सरप रो मसरखखए, ज्य आती हरोए सुख चैस।।४२।। अब अपसी आतीा के अपलक से्य से ्गु ल वारप करो अच्छी तरह से देखखए और अपसी दमष्ट रा भी इधिर- उधिर स कीससि ए। ऐसा करसे से आतीा के मदल ीे आसन्द और परी शासन्त का असुभा हरोगा। भाााकर - इस वतर तक पहुँचसे के खल्े अधत शुद और प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 806 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सासताक अलपाहार, मसराकाररता, एां मारह रस ीे डू बे रहसा अमसाा्र है , अन््का अपलक से्य से ्गु ल वारप करो देखसा सम्भा सहीप हरो सकेगा। तब प्रेी रो उप े, रस परआती परोहयचाए। तब सैस की सैस कछू हरोाहीप, अन्तर आं खां खल ाए।।४३।। ु अब आतीा के अन्दर रो प्रेी प्रकट हरोता है, उसकी असुभूधत पराती करो भी हरोती है। इस सवकधत ीे आतीा के सैसय की दमष्ट श्री रा ी के सैसय से मीलती है , ससि ससे आसतीक-दमष्ट पूारत्ा खल ु ाती है। भाााकर - इस खेल ीे आतीा ााले ीा के तस से रो कुछ भी लीला हरोती है, पराती उसे देख रही हरोती है। उदाहरा के खल्े सदर ु धिसी श्री देाचन्् मीमहररा ी से श्री ी से कहा का मक शाकुणडल एां शाकुीार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 807 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की आतीा रा घरासय ीे है , क्यमक इसके ीूल तस परीधिाी ीे हँस रहे है। ब आतीा अपसी पराती का श्रृंगार स कर ्गु ल वारप का दीदार कर रही हरोती है, तरो ऐसी अावका ीे उसके अन्दर रो प्रेी प्रकट हरोता है, उसका अहसास पराती करो भी हरो ाता है। इसे ही पराती तक प्रेी रस पहुँचसे की बात की ग्ी है। धिसी के से्य से ब आतीा के वारप की स र मीलती है, तरो अकरातीत के से्य से प्रेी और आसन्द का रस प्राामहत हरोसे लगता है। इसे ही आती-दमष्ट का खल ु सा कहते है , मकन्तु ्ह सवकत चौपाई ४०, ४१८ ीे ारात धिसी के से्य से से् मीलासे एां प्रेी रस का पास करसे से णभन्न हरोती है। चौपाई ४०, ४१८ का ककस प्रारसम्भक अावका का है, बमक इस ४३ाीप चौपाई ीे प्रत्क दशर स (दीदार) का प्रसंग है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 808 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अन्तवकरस आती के, ब ए र्रो सीाए। तब आती परआती के, रहे स कछू अन्तराए।।४४।। अब आतीा के अन्तः शकरा ीे प्रेी और आसन्द का रस बरससे लगता है। इस अावका ीे आतीा और पराती ीे रा भी भेद सहीप रह ाता। भाााकर - पराती के मदल ीे ्गु ल वारप की छमा अखणड रप से बसी हरोती है। ब आतीा से भी अपसे धिाी हद् ीे ्गु ल वारप करो बसा खल्ा , तरो उसीे और पराती ीे करोई भी अन्तर सहीप रह ाता। इस अावका ीे ीा्ा से आतीा का करोई सम्बन्धि सहीप रहता। ्ही आती- ागधत है, रो इस ीास का परी लक् है। परआती के अन्तवकरस, पेहेले उप त है े। पीछे इस आती के, आात है सुख ए।।४५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 809 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पराती के अन्तः शकरा ीे पहले धिसी के दीदार की भाासा आती है, उसके पशात् ही आतीा के अन्तः शकरा ीे इस अलौमकक सुख की असुभूधत हरो पाती है। भाााकर - इस चौपाई से पूार की चौपाइ्य ीे आसतीक दमष्ट के दारा ीूल मीलााा ीे पहुँचकर धिसी का दीदार करसे की बात कही ग्ी है, मकन्तु ऐसा हरोसा तभी सम्भा है ब धिसी के हुकी (आदेश) से पराती ीे ्ह बात आ्े। ीूल मीलााा ीे बैठी हुई ब्सृमष्ट श्री रा ी के मदल रपी परदे पर ीा्ााी खेल करो देख रही है। उसके आदेश से पराती की सुरता ही आतीा के रप ीे इस संसार ीे आ्ी हुई है। धिाी धिसी की प्रेराा से ही पराती सारा खेल ाहाँ देख रही है और आतीा ्हाँ देख रही है। आतीा की सुरता ्हाँ से हटकर तब तक परीधिाी ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 810 / 992 श्री सागर टीका सहीप ा सकती, श्री रा स वााीी ब तक धिाी धिसी के आदेश से पराती ीे ऐसी भाासा पैदा स हरो। इस चौपाई ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। ताके महरदे आती के लीससि ए, बीच साक सरप सुरत स दी े टू टसे, फेर फेर ुगल। ाइए बल बल।।४६।। इसखल्े अब अपसी आतीा के धिाी हद् ीे चबूतरे पर बैठे हुए सुन्दरसाक के बीच ीे मारा ीास ्गु ल वारप करो बसाइए। अपसा ध््ास टू टसे स दीससि ए और बारम्बार ्गु ल वारप की शरोभा पर वा्ं करो न््रोछाार कर दीससि ए। भाााकर - इस चौपाई ीे सुरत (सुरधत) का तातप्र आती-दमष्ट से है। इसी प्रकार धचतामस का भाा है आती-चकुओं से देखसा। ्दमप शासी् भाषा ीे ीस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 811 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ा धचत की ाृखत करो सुरधत कहा ाता है , मकन्तु ्हाँ ाैसा प्रसंग सहीप है। आतीा के हद् (ीस ्ा धचत) की ाृखत करो सुरधत कह सकते है , मकन्तु ीा के धचत की ाृखत करो सहीप। इसी प्रकार धचत और धचधत शमक ीे भी अन्तर हरोता है। ्हाँ धचधत शमक का भाा आसतीक चेतसा से खल्ा ाता है, बमक धचत का सम्बन्धि ीा् धचत से ही हरोता है। सरोभा ीुखारमबन्द की, क्य कर कहूं ते रोत। रस भर्रो रसीलरो दल ु हा, ाीे मसत सई कला उदरोत।।४७।। ्गु ल वारप के ीुखारमान्द पर मारा ीास सूरी्ी ते -ज्रोधत की शरोभा का ीै कैसे ाार स करँ। रस के वारप ीेरे प्राा मप्र्ती अकरातीत के ररोी-ररोी ीे प्रेी ही प्रेी भरा हुआ है। उसीे तरो प्रेी और सौन्द्र आमद की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 812 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सई-सई कला्े मसत् प्रकट हरोती रहती है। कीी रो कछुए हरोाहीप, तरो कमहए कला अधधिकाए। ए तरो बढ़े तरंग रंग रस के, ्य प्रेीे देत देखाए।।४८।। ्मद धिाी धिसी के प्रेी ीे मकसी तरह की करोई कीी हरो, तब तरो उसीे सई-सई कलाओं के प्रकट हरोसे ्ा बढ़से की बात कही ा्े। अकरातीत का मदल तरो प्रेी और आसन्द का ऐसा असन्त सागर है, ससि ससे असंख् लहरे पल-पल उठती रहती है। इस प्रकार श्री रा ी अपसे प्रेी की एक झलक मदखाते है। भाााकर - ीहास माभूधत्य की आसतीक शमक के वतर करो कला कहकर ारात मक्ा ाता है, स ै े ी्ारदा पुरषरोती राी करो दादस कला सम्पन्न और ्रोमगरा श्री कृष्ा करो षरोडश कला सम्पन्न कहते है। इसी प्रकार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 813 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सौन्द्र से ्क ु चन््ीा की आकृधत ीे ाृधद करो कलाओं की ाृधद कहते है। अकरातीत तरो प्रेी और सौन्द्र का ऐसा सागर है, ससि सकी काह स तरो आ मदस तक करोई लगा सका है और स भमाष्् ीे लगा सकेगा। अकरातीत के सम्बन्धि ीे कलाओं की बात करसा ीा् हीारी ीासाी् बुधद ीे सीझ आसे के खल्े है। बल बल सरोभा सरप की, बल बल ावतर भूखस। बल बल ीीठी ीुसकसी, बल बल ाऊं खखस खखस।।४९।। ीै अपसे प्राा मप्र्ती के अमदती् सौन्द्र एां ास आभूषाय की शरोभा पर न््रोछाार हरोती हूँ। उसकी ीृद ु ीुवकास पर तरो ीै का-का बखलहारी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती हूँ। 814 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बल बल बंकी पाग के, बल बल बंके सैस। बल बल बंके ीररोरत, बल बल चातुरी चैस।।५०।। ीै धिाी धिसी की टेढ़ी पाग तका धतरछे से्य पर अपसा सार वा न््रोछाार करती हूँ। मप्र्ती ब अपसे धतरछे से्य से बहुत ही चातु्रतापूारक प्रेी के संकेत करते है , तरो ीै उसकी इस प्रेीी्ी लीला (अदा) पर बखलहारी ाती हूँ। भाााकर - पाग करो टेढ़ा करके पहससा अधत सुन्दर लगता है। इसीे पाग करो बा्ीप ओर आधिे कास तक झुका मद्ा ाता है, तरो दस ु ा ू री ओर का कास पूारत्ा खल रखा ाता है। बल बल धतरछी धचतासी, बल बल धतरछी चाल। बल बल धतरछे ाचस के, ससि स मक्ा ीेरा धतरछा हाल।।५१८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 815 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रेी करो दशारसे ााली धिसी की धतरछी स र पर ीै सीरपत हरोती हूँ। अत्धधिक प्रेी के उींग ीे उसकी चाल भी धतरछी है, ससि स पर न््रोछाार हूँ। उसके ाचसय ीे प्रेी की इतसी मीठास है मक ीेरी हालत भी ाैसी ही हरो ग्ी है। धिसी के ऐसे ीरोहक ाचसय पर ीै वा्ं करो सीरपत करती हूँ। भाााकर - धतरछी दमष्ट ही प्रेी की भाषा है , इशारय से व््क की से डाखल्ाँ धतरछी हरो रो से्य के ाती है। ससि स प्रकार फलय के बरोझ ाती है, उसी प्रकार ब हद् ीे प्रेी महलरोरे ीारसे लगता है तरो सीधिे चल पासा सम्भा सहीप हरोता। इसे ही धतरछी चाल कहते है। प्रेी की रहव्ी्ी बाते गरोपसी् तरीके से कही ाती है , इसखल्े उन्हे धतरछे ाचसय की संञा प्राप है। धतरछा हाल हरोसे का तातप्र है - प्रेी के सागर ीे ऐसी डु बकी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 816 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लगासा, ससि सीे कभी ऊपर आसे की इच्छा स हरो। बल बल छबीली छब पर, दंत तंबरोल ीुख लाल। बल बल आठय ाी की, बल बल रंग रसाल।।५२।। पास खासे से लाल मदखसे ााले दाँतय और ीुख की अधत सुन्दर शरोभा पर ीै बारम्बार बखलहारी ाती हूँ। प्रेी के रस ीे आठय प्रहर (रात-मदस) भीसे रहसे ााले उसके अमदती् सौन्द्र पर ीै वा्ं करो न््रोछाार करती हूँ। बल बल ीीठे ीुख के, अंग अंग अीी रस लेत। कई मबधि के सुख देत है, पल पल ीे कर हेत।।५३।। ीै धिसी के उस ीुखारमान्द पर बखलहारी ाती हूँ , रो ीाधिु्रता का सागर है और ससि ससे प्राामहत हरोसे ााले अीृत रस का पास ीेरी आतीा का अंग-अंग करता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 817 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मप्र्ती अकरातीत तरो अपसी अँगसाओं से पल-पल प्रेी करते है और असेक प्रकार के सुख देते है। बल बल ाऊं चरस के, बल बल हवत कील। बल बल सख ससिसख सब अंगय, बल बल ाऊं पल पल।।५४।। ीै अपसे प्राा मप्र्ती अकरातीत के चरा कीलय पर , हवत कील पर, और सख से णशख तक के सभी अंगय पर पल-पल सीरपत हरोती हूँ। बल बल मप्ा ी के प्रेी पर, बल बल धचतास हेत। ीहाीत बल बल सबय अंगय, फेर फेर ाारसे लेत।।५५।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक ीेरी आतीा अपसे धिसी के प्रेी पर, से्य से प्रकट हरोसे ााली ीधिुर दमष्ट (स र) पर, तका उसके सभी अंगय पर बारम्बार न््रोछाार हरोती है। प्रकरा ।।१८१८।। चौपाई ।।९४२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 818 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर पांचीा इवक का इस प्रकरा ीे इशक के सागर का माशद ाार स मक्ा ग्ा है। पांचीा सागर पूरस, गेहेरा गुझ गंभीर। प््ाले इवक दरर्ाा के, पीाे असर रहे फकीर।।१८।। अकरातीत के हद् ीे उीडसे ााला ्ह पाँचाा सागर इशक (प्रेी) का है, रो पूाारधतपूार है , अत्न्त गहरा है, रहव्ी्ी है, और गम्भीर है। इस इशक सागर के अीृती्ी रस करो अपसे हद् रपी प््ाले ीे भरकर ीा् ाे ही पी पाते है, ससि सके अन्दर परीधिाी का अँकुर है और ससि न्हयसे परीहंस (बा्ी) अावका प्राप कर ली है। भाााकर - धिाी धिसी के सख से णशख तक के वारप ीे ररोी-ररोी ीे इशक का असन्त सागर लहरा रहा है। आ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 819 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तक करोई भी इसकी काह सहीप ले सका है , इसखल्े इसे "गहरा" कहा ग्ा है। इशक की ीाररफत के गु् रहव्य करो आमदसारा्ा और अकर ब् तरो क्ा , सखख्य समहत वा्ं श्ाीा ी भी सहीप ासती कीप, इसखल्े इसे "गुझ" कहा ग्ा है। साीान््तः श ्ह ककस ससाधिारा ीे भी प्रचखलत है मक प्रेी की भाषा ीूक हरोती है। अकरातीत सेे भी अपसे ीाररफत के इशक की पहचास स तरो परीधिाी ीे दी की और स व -रास ीे दी। ब्ाााी के अातरा के पशात् ही इसे ासा ा सका है। ्ही कारा है मक इसे "गंभीर" कहा ग्ा है। इसका रसपास ीा् ाे सुन्दरसाक ही कर सकते है, ससि न्हयसे शरर्त एां तरीकत की राह छरोडकर हकीकत और ीाररफत की राह अपसा्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 820 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस रस करो ए सागर, पूरस ुगल मकसरोर। ए दरर्ा सुख पांचीा, लेहेरी आात अधत रोर।।२।। अकरातीत का ्ह ्गु ल वारप ही पूार वारप है , प्रेी रस का सागर कहा रो ाता है। इस पाँचाे सागर ीे अत्न्त तीव बहाा के साक आसन्द की असन्त लहरे उठा करती है। भाााकर - ीाररफत का इशक ब तक हकीकत के रप ीे स आ्े तब तक लीला का प्रकटीकरा सहीप हरो सकता, अकारत् घसीभूत प्रेी ब तक ्ाीभूत सहीप हरोता तब तक उसका रसावाादस सहीप मक्ा ा सकता। ्ही कारा है मक ्गु ल वारप करो लीला की दमष्ट से पूार वारप ीासा ाता है, अन््का अकेले अकरातीत तरो प्रत्ेक दमष्ट से पूार ही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 821 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अधत सुख बडीरह करो, इवक तरंग अतंत। ीुख ीीठी अपसी रह करो, रस रससा मपलाात।।३।। श्ाीा ी का आसन्द असीी है। उसके हद् ीे प्रेी की असन्त लहरे उठा करती है। श्री रा ी अपसे ीुख से अधत ीीठी ाााी दारा अपसी हद् वारपा श्ाीा ी करो प्रेी का रसपास कराते है। हेत कर इस रहस की, प््ार सय बात सुसत। सरो ाचस अन्दर ले् के, ीुख साीी बास बरोलत।।४।। धिाी धिसी ब्सृमष्ट्य की बातय करो बहुत ही लाड-प््ार से सुसते है और उसके ाचसय करो पूरी तरह से आतीसात् करके उसके साीसे बहुत ही ीीठे शब्दय से बरोलते है। भाााकर - मकसी की बात करो पूरी तरह सुसे मबसा अपसी बात कहसा प्रेी और णशष्टाचार के मापरीत है। प्रेीी का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 822 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी प्रेी ्ही है मक ाह अपसे प्रेीावपद (ीाशूक) की प्रत्ेक बात करो पूरी तरह से सुसे और बरोलते सी् अपसे हद् की सारी मीठास शब्दय ीे उडेल दे। सैसय सैस मीलाए के, अीीरस सीपचत। अपसे अंग रहे ास के, सेह सए सए उप ाात।।५।। धिाी धिसी ब्सृमष्ट्य के से्य से से् मीलाकर अपसे प्रेी के अीृत-रस से उन्हे सीपचते है। अँगसा्े उसकी हद् वारपा (अँगरपा) है, इसखल्े ाे सखख्य करो आससन्दत करसे के खल्े तरह-तरह से प्रेी करते है। सुख केते कहूं व्ाीा ी् के, हक सुख मबसा महसाब। ए सुख सरोई ासही, रो मपए इस साकी सराब।।६।। ्गु ल वारप श्री रा श्ाीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के सुख असन्त है। 823 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसका कहाँ तक ाार स मक्ा ा सकता है। अकरातीत से प्राामहत हरोसे ााले प्रेी रस का ससि ससे पास मक्ा हरोता है, एकीा् ाही उस आसन्द के माष् ीे ास सकता है। रस भरी अधत रससा, अधत ीीठी ालभ बास। ए सुख क्रो स ााहीप, रो सुख देत ुबांस।।७।। प्रााालभ अकरातीत की ाााी अत्धधिक प्रेी के रस से ओत-प्ररोत है और बहुत अधधिक ीीठी है। धिाी धिसी अपसी अीृती्ी ीधिुर ाााी से सखख्य करो रो सुख देते है, उसका ाार स शब्दय ीे सहीप हरो सकता। कई सुख ीीठी बास के, हक देत कर प््ार। ज्य ीासूक देत आससिसक करो, एक तस ्ार करो ्ार।।८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 824 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिाी धिसी की ाााी अीृत के सीास ीीठी है, ससि सके असन्त (कई) सुख है। इस सुख करो ाे बहुत प्रेी से अपसी अँगसाओं करो ाैसे ही देते है, स ै े करोई ीाशूक अपसे आणशक करो देता है ्ा दरो तस हरोते हुए भी एक तस (प्राा) कहे ासे ााले दरोवत (मी्) करो दरोवत देता है। भाााकर - आणशक इशक करता है और ीाशूूक अपसे अन्दर का आसन्द उसे सीरपत करता है। इस प्रकार प्रेी और आसन्द के दरो रपय ीे अकरातीत का वारप लीला करता है। ससि स प्रकार प्रगाढ़ वसेह के बन्धिस ीे बन्धिे हुए दरो मी्य का सम्बन्धि इतसा गहरा हरोता है मक उसके सम्बन्धि ीे ्ह बात कही ाती है मक कहसे करो तरो ्े दरो तस है, मकन्तु इसका मदल ्ा प्राा एक ही है। दरोसय का ीास एक-दस ू रे पर मसभर र करता है, अकारत् ्मद प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 825 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी एक तस छरोड देता है तरो दस ू रा भी छरोड देता है। दस ू रे शब्दय ीे दरो तस हरोते हुए भी उन्हे एक तस से सम्बरोधधित करसा पडता है। इस चौपाई के चौकेे चरा ीे "एक तस" कहे ासे का ्ही भाा है। ्दमप परीधिाी ीे मी् (दरोवत) भाा की लीला सहीप है, मकन्तु ्हाँ के भााय से ाहाँ की लीला करो दशारसे का प्र्ास मक्ा ग्ा है। अँगसा भाा ्ा आणशक-ीाशूक (मप्र्ा-मप्र्ती) का भाा दरोवत (मी्) भाा से अधधिक गहरा हरोता है। सैस रसीले रंग भरे, प्रेी प्रीत भीगल। देत है ब हेत सुख, चुभ रेहेत रह के मदल।।९।। प्रेी-प्रीधत के रस से ओत-प्ररोत धिसी के सुन्दर से्य ीे असन्त आसन्द भरा हुआ है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ब श्री रा ी अपसे प्रेी 826 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का आसन्द देते है, तरो ाह आतीाओं के मदल ीे अंमकत हरो ाता है। ्ष्टव््- प्रेी की ीधिुर वीृधत्य से करोई भी अपसे करो अलग सहीप कर पाता है। इस चौपाई के चौकेे चरा ीे "चुभ ासे" के ककस का ्ही आश् है। इवक प््ाला रंग रस का, ब देत सैस ीररोर। फूल परोहयचे तालू रह के, का्ी चढ़ाा हरोत रोर।।१८०।। धिाी धिसी ब अपसे से्य के संकेतय से अपसी आतीाओं करो प्रेी और आसन्द के रस से भरा हुआ प््ाला देते है, तरो आतीा के मदल रपी तालू ीे ाह आसन्द पहुँच बढ़ता ही ाता है और अखणड रप से तीवतापूारक ाता है। भाााकर - इस चौपाई के तीसरे चरा से ्ह वपष्ट है मक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 827 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्हाँ "फूल" शब्द का आश् कांसे के बतर स से सहीप, बसलक आसन्द से है। इसी प्रकार "तालू" शब्द का प्र्रोग मदल के खल्े मक्ा ग्ा है। कई सुख अंग सरप के, कई सुख रंग रसाल। कई सुख ीीठी ुबांस के, कै प््ाले देत रस लाल।।१८१८।। धिाी धिसी के सख से णशख तक के अंगय ीे असन्त प्रकार के सुख मादीास है। इसी प्रकार उसकी रस भरी शरोभा ीे भी असेक प्रकार के सुख भरे हुए है। अीृत से भी ीीठी मप्र्ती की ाााी ीे अकाह सुख का रस भरा हुआ है, ससि सके प््ाले भर-भरकर ाे अपसी अँगसाओं करो देते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 828 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कई सुख अीृत सीपचत, ज्य ररोप सीपचत बसीाली। इस मबधि सैसय सीपचत, रह क्य स लेाे गुलाली।।१८२।। ससि स प्रकार ीाली पौधिे लगाकर उन्हे ीधिुर ल से सीपचता है, उसी प्रकार धिाी धिसी अपसे से्य से प्राामहत हरोसे ााली प्रेी की अीृती्ी धिारा से सखख्य करो सीपचते है। भला ऐसी अावका ीे आतीा अपसे मप्र्ती के प्रेी की लाली ीे लाल क्य सहीप हरोगी। रो कछू बरोले रह ीुखके, सरो सीके सुसे हक कास। ऐसा ीीठा ााब तरोहे देाहीप, करोई स सुख इस सीास।।१८३।। आतीा अपसे ीुख से रो कुछ भी कहती है, उसे धिाी धिसी अपसे कासय से बहुत अच्छी तरह सुसते है , और इतसे ीीठे शब्दय ीे उतर देते है मक उसे सुसकर आतीा करो ऐसा असुपी आसन्द मीलता है ससि सका ाार स हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 829 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पासा सम्भा सहीप है। अरस-परस सुख देाहीप, साहीप इस सुख करो पार। ए रस इवक सागर करो, असर रहे पीाे बारंबार।।१८४।। सखख्ाँ और रा श्ाीा ी आपस ीे प्रेी लीला दारा एक-दस ू रे करो आसन्द देते है। इस आसन्द की करोई सीीा सहीप है। ्ह आसन्द इशक के सागर का बहता हुआ रस है, ससि सकरो ब्सृमष्ट्ाँ हीेशा ही बारम्बार पीती रहती है। ए सुख सागर पांचीा, इवक सागर मदल हक। पेहेले चार देखे सागर, करोई सा हक मदल ीाफक।।१८५।। अकरातीत का मदल ही इशक (प्रेी) का सागर है। ्ह पाँचाा सागर है और आसन्द वारप है। इसके पहले चार प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 830 / 992 श्री सागर टीका सागरय का ाार स मक्ा श्री रा स वााीी ा चुका है , मकन्तु करोई भी इस इशक के सागर के सीास सहीप है। भाााकर - परीधिाी की ाहदत ीे करोई भी मकसी से की ्ा अधधिक सहीप है, मकन्तु शरोभा के ाार स ीे की-अधधिक कहसे की शैली अपसा्ी ाती है। इसी आधिार पर ससि स सागर का ाार स मक्ा ाता है, उसे सबसे श्रेष कहा ाता है। ावतुतः श सभी सीास है और एक -दस ू रे ीे सीामहत है। हके तरोहे खेल देखाइ्ा, बेारा ाावते इवक। क्य स देखरो पट खरोल के, स र खरोली है हक।।१८६।। हे ीेरी आतीा! इशक का मसरपा करसे के खल्े ही धिाी धिसी से तुझे ्ह ीा्ा का खेल मदखा्ा है। मप्र्ती से तुम्हारी आसतीक-दमष्ट भी खरोल दी है। अब तू ीा्ा के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 831 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पदर करो हटाकर इशक की ाावतमाक पहचास क्य सहीप कर लेती। भाााकर - इस चौपाई के पहले चरा ीे "देखाइ्ा" शब्द है और तीसरे चरा ीे भी "देखरो" शब्द है, मकन्तु दरोसय के भाा ीे अन्तर है। पहले चरा ीे ीा्ा का खेल देखसे का प्रसंग है, बमक तीसरे चरा ीे आती -दमष्ट दारा ीाररफत के इशक (असन्् प्रेी) की पहचास करसे से है। इस ठौर बैठे देखाइ्ा, साहेबी हक बु रक। पैठ हक मदल बीच ीे, पी प््ाले इवक।।१८७।। धिाी धिसी से तुझे (ीूल तस करो) ीूल मीलााा ीे ही मबठाकर अपसी ीहास सामहबी (वाामीता) मदखा दी है। अब तू अपसे प्राा मप्र्ती के मदल ीे बैठकर इशक के प््ाले करो पी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 832 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई की पहली पंमक ीे परीधिाी का प्रसंग है, बमक दस ू री पंमक ीे इस खेल ीे ागसी लीला का प्रसंग है, ससि सीे आतीा धचतामस ीे डू बकर प्रेी के प््ाले पीती है। खेल खती हरोसे के पशात् ्ह सवकधत परीधिाी के खल्े हरोगी। ्ह बात इसी प्रकरा की चौपाई १८९, २५, और २६ ीे भी कही ग्ी है। तरो हके क्ा असर अपसा, इवक मदल ीरोमीस। सरो इवक करे ाहेर, मदल पैठ हक के तस।।१८८।। इसखल्े तरो श्री रा ी से ब्सृमष्ट्य के प्रेी भरे मदल करो अपसा धिाी कहा है। ्ही कारा है मक ाे आतीाओं के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर इशक करो ामहर कर रहे है। भाााकर - पराती करो अकरातीत का तस कहा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता है, 833 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी "तुी रहे ीेरे तस हरो"। उसका वाासप्सक वारप आतीा का तस है, ससि सीे धिसी मारा ीास हरोकर लीला कर रहे है। इसखल्े इस चौपाई के चौकेे चरा ीे "हक के तस" का तातप्र आतीा से है। इसी के मदल ीे धिसी की बैठक हरोती है। इवक गुझ मदल हक का, सरो करे ाहेर ीाहे खखलात। सरो खखलात ल्ाए इत आससिसक, करी इवके ाहेर न््ाीत।।१८९।। ीेरे प्राा मप्र्ती से ीेरे धिाी हद् करो ही अपसी खखलात बसा्ा है और इसीे मारा ीास हरोकर तारती ञास के दारा अपसे मदल ीे णछपे हुए इशक के गु् रहव्य करो ामहर कर (प्रकाश ीे ला ) रहे है। एक आणशक के रप ीे उन्हयसे ीेरे मदल करो ही खखलात की शरोभा दी है और इशक की इस असीरोल सम्पदा (सेीत) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 834 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करो प्रकाश ीे ला रहे है। इत दमु स्ां चौदे तबक ीे, एक दी उठत है े। रो हक सहूर कर देखखए, तरो सब ाावते इवक के।।२०।। ्मद इस ब्ाााी से धचन्तस कर देखा ा्े , तरो ्ही मसष्कषर मसकलता है मक चौदह लरोक के इस ब्ाणड ीे ्मद करोई प्रााी शांस लेता है तरो ाह भी इशक के मसरपा के खल्े। भाााकर - ब्सृमष्ट्य के अन्दर ीा्ा का खेल देखसे की रो इच्छा की, उसे पूरी करसे के खल्े ही ्ह ब्ाणड बसा्ा ग्ा है। इशक का ाावतमाक मसरपा इस खेल ीे ही सम्भा हरो सका है। ्ही कारा है मक इस ब्ाणड के प्रत्ेक प्रााी का शांस लेसा भी इशक की पहचास के इस खेल से ुड ग्ा है। इस चौपाई के चौके चरा का ्ही प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 835 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आश् है। ए इवक सब हक का, असर हादी रहय सय। ए असर मदल ासे ीरोमीस, रो हक की ााहेदत ीय।।२१८।। ्ह धिाी धिसी का प्रेी ही है रो ाे परीधिाी ीे श्ाीा ी एां सखख्य से करते है। इस बात करो ्काकर रप से ाे ब्सृमष्ट्ाँ ासती है, ससि सका हद् ही परीधिाी हरोता है और ससि सकी पराती ीूल मीलााा ीे मारा ीास हरोती है। ए मक्ा एते ही ाावते, तुीारे मदल उप ा्ा एह। ए खेल ीे देखे ुदे हरोए, लेसे ीेरा इवक ससेह।।२२।। इस इशक की पहचास देसे के खल्े ही मप्र्ती से ्ह ीा्ा का खेल बसा्ा और तुम्हारे हद् ीे खेल देखसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 836 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी की इच्छा भी पैदा की, तामक तुी परीधिाी से अलग हरोकर ीेरा प्रेी लरो और इस खेल ीे ीेेरे प्रेी की पहचास कर लरो। ए इवक सागर अपार है, ाार स पाइए पार। ए लेहेरी इवक सागर की, हक देाे सरोहामगस सार।।२३।। इशक का सागर असन्त है। इसकी करोई सीीा सहीप है। प्रेी के सागर की लहरय का असुभा धिाी धिसी ीा् अपसी अँगसाओं करो ही देते है। भाााकर - परीधिाी के सूरी तस ही इशक के सागर ीे डू बा करते है। इस खेल ीे तारती ञास एां धचतामस दारा उसकी लहरय का असुभा मक्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाता है। 837 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो हक तरोहे अन्तर खरोलााहीप, तरो आाे हक लजत। और बडे सुख कई असर के, पर ए मसपट बडी न््ाीत।।२४।। हे ीेरी आतीा! ्मद धिाी धिसी ्ह ीा्ा का पदार हटा दे और तुम्हारी आसतीक दमष्ट खरोल दे , तरो तुम्हे इस संसार ीे ही श्री रा ी तका परीधिाी के कई सुखय का प्रत्क असुभा हरो सकता है, मकन्तु मसधशत रप से इस प्रकार की उपलसब्धि बहुत बडी आध््ासतीक सम्पदा है। भाााकर - इस चौपाई का ककस सुन्दरसाक के खल्े है , ीहाीधत ी के खल्े सहीप। इस चौपाई ीे कणकत उपलसब्धि करो ीा् प्रेी की राह पर चलकर ही पा्ा ा सकता है। लेहेरी इवक सागर की, रो तूं लेाे रह इत। तरो तूं देखे सुख इवक के, ए हरोए सा मबसा मससबत।।२५।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 838 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्मद तू प्रेी के सागर की लहरय का असुभा इस संसार ीे ले लेती है , तरो तुझे मसधशत ही प्रेी के अखणड सुखय की पहचास हरो सकती है, मकन्तु ्ह ीूल सम्बन्धि के मबसा सहीप हरो सकता। भाााकर - मारह ाेदसा ीे ब ्गु ल वारप की शरोभा करो अपसे हद् ीे बसा्ा ाता है , तरो प्रेी (इशक) की लहरय का असुभा हरोता है और प्रेी के असन्त आसन्द की पहचास हरोती है, मकन्तु इस ीागर पर ीा् ब्सृमष्ट्ाँ ही चल पाती है। शेष लरोग कीर काणड (शरर्त) की दीाारय करो सहीप तरोड पाते। और सुख इस लेहेरस करो, आात खखलात ्ाद। इस हक इवक सागर की, कई सेहेरे सुख वााद।।२६।। इशक की लहरय का सुख ्ह भी हरोता मक आतीा के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 839 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिाी हद् ीे ीूल मीलााा की शरोभा अखणड रप से बस ाती है। धिाी धिसी के इस इशक सागर से अखणड आसन्द का रसावाादस करासे ााली असन्त (असेक) सहरे प्राामहत हरोती रहती है। भाााकर - इस चौपाई के दस ू रे चरा का भाा केाल ीासससिसक ्ा बौधदक धिरातल पर ीूल मीलााा की ्ाद आसा सहीप है , बसलक आतीा के धिाी हद् ीे ीूल मीलााा की छमा अंमकत हरोसे से है। ब्ाााी के धचन्तस-ीसस और मााेचस से ीा के मदल ीे ीूल मीलााा की ्ाद तरो आती रहती है, मकन्तु ्हाँ प्रसंग इशक की लहरय ीे ्ाद आसे से है। ्य सुख इवक सागर करो, धिसी प््ारे देत रहस। सरो इत देखाए ीेहेर कर, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो इवके मकए ररोसस।।२७।। 840 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस प्रकार परीधिाी ीे धिाी धिसी इशक सागर के ससि स सुख करो बहुत प्रेीपूारक अपसी अँगसाओं करो देते है, उसकी पहचास उन्हयसे इस संसार ीे करा दी है। श्री रा ी से अपसी ीेहर से ब्ाााी के दारा इशक करो प्रकाणशत ( ामहर) कर मद्ा, ससि ससे सभी करो उसकी पहचास हरो ग्ी। रो सुख इवक सागर करो, ीाहे हेत प्रीत तरंग। ए रो असर अरााहय करो, आए खखलात के रस रंग।।२८।। इशक के सागर ीे प्रेी और प्रीधत की असन्त तरंगे लहराती रहती है। परीधिाी की ब्सृमष्ट्य के खल्े इस संसार ीे इशक के सागर का सुख ्ही है मक उन्हे ीूल मीलााा ीे मारा ीास श्री रा ी के हद् ीे उीडसे ााली प्रेी-आसन्द की लहरय का असुभा हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा्े। 841 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रो हक तरोहे देाे पहीत, तरो रह तूं पी सराब। ए का्ी ीवती असर की, रो साकी मपलााे आब।।२९।। हे ीेरी आतीा! ्मद धिाी धिसी तुम्हे साहस देते है , तरो तू इस प्रेीी्ी अीृत का पास कर। ब मप्र्ती वा्ं अपसे हाकय से तुम्हे परीधिाी का प्रेी रपी ल मपला रहे है, तरो ्ह मसधशत है मक इसीे अखणड आसन्द णछपा हुआ है। भाााकर - इस चौपाई के दस ू रे चरा ीे परीधिाी के असन्् प्रेी करो शराब तका चौकेे चरा ीे ल कहा ग्ा है। अखणड प्रेी का रस पा लेसे के पशात् उसका सशा कभी भी सहीप उतरता , इसखल्े उसे शराब कहकर सम्बरोधधित मक्ा ग्ा है। इसी प्रकार की कलपसा सहीप की रस करो ल के मबसा ीास ा सकती, ्ही कारा है मक प्रेी ल की उपीा दी ग्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 842 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सुख हक इवक के, ससि सकरो साहीप सुीार। सरो देखस की ठौर इत है, रो रह सय कररो माचार।।३०।। परीधिाी ीे अकरातीत के प्रेी का असन्त आसन्द है , मकन्तु हे साक ी! ्मद आप अपसी आसतीक दमष्ट से माचार करे तरो उस सुखय की पहचास इस ागसी ब्ाणड ीे ही हरोसी है। भाााकर - परीधिाी ीे सूरी तसय से प्रेी और आसन्द का मालास है, मकन्तु इस ागसी ब्ाणड ीे तारती ाााी के प्रकाश ीे ही अपसे ञास -चकुओं से इशक और आसन्द की ीाररफत करो ास सकते है। प्रेीी्ी धचतामस दारा अष्ट प्रहर की लीला समहत सम्पूार पकय का साकातकार भी कर सकते है और उस अावका की प्रामप कर सकते है ससि सीे आतीा और पराती ीे भेद सहीप रह ाता। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 843 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ेते सुख इवक के, लेते असर के ीाहे। सरो देखस की ठौर एह है, और ऐसा स देख्ा क्ांहे।।३१८।। परीधिाी ीे आप प्रेी के (पहचाससे) की ागसी ब्ाणड रो सुख लेते के , उसे देखसे गह ीा् ्ह ागसी ब्ाणड है। इस स ै ा और करोई भी वकास सहीप है , हाँ उस आसन्द की पूार पहचास हरो सके। भाााकर - परीधिाी ीे ीाररफत की पहचास सम्भा सहीप की। व ीे पूरी सीपद की। इसी प्रकार रास ीे आधिी सीपद की, मकन्तु इस ागसी ब्ाणड ीे तारती ाााी के प्रकाश से सभी रहव्य करो वपष्ट कर मद्ा। कबूं असर ीे स हरोए ुदागी, सा ुदागी ए न््ाीत। ए बाते दरोऊ असहरोमस्ां, सरो हक ही ाावते करत।।३२।। परीधिाी ीे मा्रोग हरोसा कभी सम्भा सहीप है और मबसा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 844 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मा्रोग के इशक की ाावतमाक पहचास सहीप हरो सकती। परीधिाी ीे ्े दरोसय बाते सम्भा सहीप कीप , इसखल्े धिाी धिसी से हीारे खल्े ्े दरोसय का्र कर मद्े , अकारत् कालीा्ा के ब्ाणड ीे मा्रोग का असुभा कराकर तारती ञास के प्रकाश ीे इशक की ीाररफत एां उसके असन्त आसन्द की पहचास करा दी। इवक पाइए ुदामगएं , सरो तुी पाई इत। ातस हकीकत सब दई, ऐसा दाा स पाइए मकत।। ३३।। मा्रोग ीे ही इशक की पहचास हरोती है। उसे आपसे इस ागसी ब्ाणड ीे पा खल्ा है। तारती ञास के दारा धिाी धिसी से परीधिाी के सारे रहव्य से अागत भी करा मद्ा है। अब कभी भी इस प्रकार का सुसहरा अासर सहीप मीलसे ााला है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 845 / 992 श्री सागर टीका फेर कब श्री रा स वााीी ुदागी पाओगे, छरोड के हक असर । बैठे खेल ीे मपओगे, हक इवक का रस।।३४।। हे साक ी! आप इस बात पर माचार कीससि ए मक अब आपकरो ऐसा अासर कभी दस ू री बार सहीप मीलसे ााला है, ससि सीे आप परीधिाी करो छरोडकर मा्रोग का असुभा कर सके और इस ीा्ााी गत् ीे रहते हुए भी धिाी धिसी के इशक का रसपास कर सके। भाााकर - आती-चकुओं दारा ्गु ल वारप करो अपलक देखसा ही इशक का रसपास करसा है। इस अावका की प्रामप बा् आडम्बर और साधिा भमक के कीर काणडय से सहीप हरोती , बसलक मारह के आँ सुओं ीे ्गु ल वारप की शरोभा करो मदल ीे बसासे से हरोती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 846 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ्ाद कररो इवक करो, का्ी असर ीे लेते रो सुख। अलेखे असमगसती, सरो देत लजत ीाहे दख ु ।।३५।। आप इस इशक करो ्ाद कीससि ए, ससि सके शब्दातीत और असन्त सुखय का रसावाादस आप अपसे अखणड परीधिाी ीे लेते रहे है। अब धिाी धिसी इस दः शु खी् संसार ीे भी उस सुखय का रसावाादस करा रहे है। भाााकर - ्दमप इस पञभौधतक तस से परीधिाी के सुखय का मालास तरो सहीप हरो सकता, मकन्तु उसके वााद का असुभा हरो ही ाता है। ाह भी इतसा अधधिक (असन्त) हरोता है मक ीा उसे सम्भाल ही सहीप पाता। रो सहूर कररो तुी मदल से, खेल ीे मकए बेसक। तरो फुरसत स पाओ दी की, सुख इवक मगसती हक।।३६।। हे साक ी! ्मद आप अपसे मदल ीे इस बात का प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 847 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धचन्तस करे, तरो उसका ्ही मसष्कषर मसकलेगा मक धिाी धिसी से आपकरो इस संसार ीे पूारत्ा संश् रमहत कर मद्ा है। उन्हयसे इशक के इतसे सुख मद्े है मक ्मद आप उन्हे मगससा प्रारम्भ करे, तरो आपकरो शांस लेसे का भी अाकाश सहीप मीलेगा। भाााकर - "सांस लेसे की फुसर त स हरोसा" एक ीुहाारा है ससि सका अकर हरोता है, पल भर की भी छुटी स मीलसा। ए मक्ा तुीारे ाावते, रो धिसी खरोले स र एह। तरो कई देखरो ीाहे बातूस, हक का प्रेी ससेह।।३७।। ्ह सब कुछ श्री रा ी से आपके खल्े ही मक्ा है। ्मद धिाी धिसी अपसी कृपा (ीेहर) से आपकी आसतीक दमष्ट खरोल दे, तरो आपकरो इस संसार ीे धिसी के णछपे हुए प्रेी-वसेह की बहुत सी रहव्ी्ी बातय का असुभा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 848 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हरोगा। भाााकर - ही अपसी ीा्ााी बुधद से अकरातीत के प्रेी करो पहचास सहीप पाते। इसका बरोधि तरो आती -दमष्ट के दारा ही हरोता है। इस सम्बन्धि ीे श्रीीुखाााी का ्ह ककस बहुत ीहतापूार हैीहाीत कहे ए ीरोमीसय, तुी पर दी दी रो बरतत। सरो सब इवक हक का, पल पल ीेहेर करत।। खखलात १८२/१८०० ए स र तुीे तब खल ु े, रो पूरस करे हक ीेहेर। तरो एक हक के इवक मबसा, और देखरो सब ेहेर।।३८।। आपकी आसतीक दमष्ट तभी खल ु ेगी, ब आप पर धिाी धिसी की पूार ीेहर हरो। आसतीक दमष्ट खल ु ासे पर आपकरो धिाी धिसी के प्रेी के अधतररक सारा माश माष के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 849 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सीास कष्टकारी लगसे लगेगा। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक भर ीे ीेेहर कररोडय गुसा बढ़ ब पल ाती है और आठय सागर ाहदत के अन्दर है, तरो ्हाँ पूार ीेहर का तातप्र क्ा है? क्ा अकरातीत की ीेहर भी अधिूरी हरोती है? इसके उतर ीे ्ही कहा ा सकता है मक अकरातीत की ीेहर दरो प्रकार की हरोती है- १८. बा् ( ामहरी) २. आन्तररक (बाधतसी)। ब तक आन्तररक कृपा (ीेहर) स हरो, तब तक बा् कृपा करो अधिूरा ही कहा ा्ेगा। ्दमप परीधिाी ीे ाहदत अाश् है , मकन्तु इस संसार ीे "करसी ीाफक कृपा" के असुसार मकसी करो ञास मीलता है तरो मकसी करो प्रेी। इसी प्रकार मकसी पर ीा् बा् कृपा हरोती है , तरो मकसी पर आन्तररक। मकसीमकसी पर दरोसय भी हरोती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 850 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हके ीेहेर मबधि मबधि करी, पर मकस मकस खरोली स स र। सरो भी ाावते इवक के, करसी बाते हाँसी कर।।३९।। धिाी धिसी से सुन्दरसाक पर असेक प्रकार से कृपा की है, मकन्तु मकसी-मकसी से अपसी आसतीक दमष्ट सहीप खरोली है। ्ह भी इशक के मसरपा के खल्े ही हुआ है। ब ही परीधिाी ीे ागत हयगे , तरो हँसते हुए इसकी बाते करेगे। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक आसतीक दमष्ट कौस खरोलता है - श्री रा ी ्ा वा्ं आतीा? ्मद धिाी धिसी ीेहर करते है , तरो मकसी पर की और मकसी पर अधधिक ीेहर क्य मदखा्ी देती है? ्दमप इसी प्रकरा की चौपाई ३७ ीे वपष्ट रप से कहा ग्ा है मक धिाी धिसी ही आसतीक स र खरोलते है , मकन्तु चौपाई ४२ ीे वा्ं खरोलसे की बात कही ग्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 851 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसी प्रकार मकरंतस ८३/१८ का ककस है- "अंतर आं खा खरोलसी, ए सुख सरोई देखे।" आन्तररक रप से इस ककसय ीे करोई भी माररोधिाभास सहीप है। ्ह तरो मसराााद सत् है मक धिाी धिसी के हुकी के मबसा कुछ भी सम्भा सहीप हरोता। इस प्रकार ्ह ससिसद है मक आसतीक दमष्ट उसकी कृपा से ही खल ु ती है। आतीा करो ागसी की राह पर चलसे के खल्े प्रेररत करसे के प्रसंग ीे ्ही कहा ाता है मक आतीा करो अपसी आसतीक दमष्ट खरोलसी हरोगी। धिाी धिसी की ीेहर सब पर सीास है, मकन्तु अपसीअपसी करसी के असुकूल ही लाभ मीलता है। "ीेहर सब पर ीेहेबूब की, पर पााे करसी ीाफक।" ्दमप इस ागसी लीला ीे श्री ीहाीधत ीहारा ा छ्साल ी , श्री लालदास ी, एां ीुकुन्द दास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी, ी पर अलग852 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अलग रपय ीे पा्ता के असुसार ीेहर हुई है। ीेहरबास सबके खल्े बराबर है, मकन्तु अपसी करसी ही ीेहर का दार मसधशत करती है। खेल बसत ्ाही मबधि, एक भागे एक लरे। इसकी हाँसी बडी हरोएसी, ब घरय बैठ बातां करे।।४०।। इस ागसी लीला ीे ीा्ा का खेल इस प्रकार चल रहा है मक करोई सुन्दरसाक तरो सत् से माीुख हरोकर भाग रहा है और करोई माााद कर रहा है। सभी ब परीधिाी ीे ागत हयगे और इस खेल की बाते करेगे , तरो ऐसा करसे ाालय की बहुत अधधिक हँसी हरोगी। भाााकर - ्ह संसार माषीताओं और संघषर से भरा हुआ है। ीास के प्रत्ेक के् ीे प्रेी -घृाा, सत्- असत्, ञास-अञास, गुा- अागुा, पुण्-पाप आमद प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 853 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से सभी करो कहीप स कहीप ूझसा पडता है। खेल का रस भी इन्हीप संघषर ीे णछपा हुआ है। ्दमप सभी आतीा्े सीास है, मकन्तु उसके ीाय के संवकार अलग-अलग हरोते है ससि सके कारा सभी का आचरा अलग -अलग मदखा्ी पडता है। करोई ीा्ा के प्रभाा से सत् करो पूारत्ा सकार देता है, तरो करोई अपसी मीर्ा बात करो भी सत् ससिसद करसे के खल्े माााद करता है। सभी एक-दस ू रे के ीा के वाभाा करो ही देखते है, इसखल्े राग-देष के बन्धिसय ीे बन्धिे रहते है। पराती ीे ागत हरोसे के पशात् उन्हे सबके बीच हँसी का पा् बससा पडेगा, क्यमक उसके दारा की ग्ी भूल सबके साीसे हरोगी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 854 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए खेल सरोई हाँसी सरोई, और सरोई हक का इवक। सरो सब ाावते हाँसी् के, रो इत तुीे मकए बेसक।।४१८।। ्ह ाही खेल चल रहा है, रो आपसे इशक-रब्द के सी् धिाी धिसी से ीाँगा का। श्री रा ी से ससि स हँसी की चेताासी दी की, ाही हँसी की सवकधत अब बसी हुई है। अब उसी इशक का मसरपा हरो रहा है, रो धिाी धिसी से मदल ीे खल्ा का। तारती ञास से धिाी धिसी से रो आपकरो संश्रमहत कर मद्ा है, ाह भी हँसी का कारा बसेगा। भाााकर - ब्ाााी से संश्रमहत हरो ासे के पशात् भी सुन्दरसाक धिसी के प्रेी ीे वा्ं करो सहीप डु बा पा रहा है , इसखल्े उसकी बहुत बडी हँसी हरोसी है। बेसुधि व््मक करो तरो कीा मक्ा ा सकता है, मकन्तु सीझदार के खल्े कीा शब्द सहीप हरोता। इसी आधिार पर बेशक हरोसे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 855 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पर भी ्मद ही प्रेी की राह सहीप अपसाते है , तरो बहुत बडी हँसी हरोसी मसधशत है। रो देखे इत आं खां खरोल के, तरो देखे हक का इवक अपार। सरोई हाँसी देखे आप पर, तरो क्य कहूं औरय सुीार।।४२।। रो सुन्दरसाक अपसी आसतीक दमष्ट खरोलकर इस खेल करो देखेगा, उसे ्ही असुभा हरोगा मक इस ागसी ब्ाणड ीे धिाी धिसी का असन्त इशक लीला कर रहा है। ाह अपसे से हरोसे ााली भूलय पर वा्ं हँसी करेगा और ्ही सरोचेगा मक ब ीुझसे इतसी अधधिक भूले हुई है तरो दस ू रय की करोडी सी भूलय करो ीै क्य कहूँ (उसकी हँसी क्य करँ)। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 856 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीै बरोहरोत हाँसी देखी आप पर, असमगसती हक इवक। इली धिसी के देखाइ्ा, ीै दरोऊ देखे बेसक।।४३।। ीैसे अपसे आती-चकुओं से देखा है मक अब तक ीुझसे रो भूले हुई है, उसके कारा ीेरी बहुत हँसी हरोसे ााली है। ीैसे अपसे ऊपर धिसी का असन्त प्रेी भी देखा है। इस प्रकार ीैसे धिाी धिसी के तारती ञास के प्रकाश ीे इस दरोसरो बातय करो देखा है। इसीे अब करोई भी संश् सहीप है। ीरोकरो धिमसएँ देखाइ्ा, सब इवक चौदेे तबक। इत रा स मबसा इवक, अपसा ऐसा देखा्ा हक।।४४।। श्री रा ी से ीेरी आतीा करो ्ह असुभा करा्ा मक चौदह लरोक के इस ब्ाणड का एक-एक का अकरातीत के इशक की ीमहीा का बखास कर रहा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 857 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मप्र्ती से अपसे इशक का मसरपा इस प्रकार दे मद्ा है। भाााकर - इस चौपाई के बा् शब्दय के आधिार पर ्ह सहीप ीास लेसा चामहए मक इस ब्ाणड का एक-एक का इशकी्ी है। श्रीीुखाााी का ककस हैब् इवक एक संग, सरोतरो बसत ातस अभंग। इवक साहीप मीसे सृष्ट सुपस, रो ढू ंढ्ा चौदेे भास। इवक है धतत सदा अखंड, साहीप दमु स्ां बीच ब्ांड। पररक्रीा १८/२,५,६ प्रेी ब् दरोऊ एक है, सरो दरोऊ दस ु ी ीे साहे। सरो तरो मसराकार के पार के पार, इत दस ु ी पााे क्यकर। पररक्रीा ३९/१८०,१८२ इससे ्ह पूारत्ा वपष्ट है मक इस म्गुाातीक ब्ाणड प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 858 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीे इशक सहीप है , मकन्तु इस चौपाई ीे सारे ब्ाणड के का-का ीे इशक के मादीास हरोसे का भाा ्ह है मक ्ह सारा ब्ाणड ही इशक के मसरपा के खल्े बसा्ा ग्ा है। इस ागसी ब्ाणड ीे हरोसे ााली प्रत्ेक लीला का सम्बन्धि मकसी स मकसी रप ीे इशक के ब््रोरे से ुडा हुआ है। अकरातीत के असन्त इशक की ीाररफत (माञास) की पहचास करासे के कारा ही सम्पूार ब्ाणड करो इशकी्ी कहा ग्ा है। ्ह ककस ाैसे ही है स ै े ्मद मकसी धिारीक ्ा साीाससि क का्र क्री ीे भारत के सभी प्रान्तय के लरोग एकम्त हरो ाता है मक आ ाते है तरो ्ही कहा सारा भारत ्हाँ आ ग्ा है , मकन्तु ्ह ककस व््ाहार ीे पूारतः श सत् सहीप हरोता। इसी प्रकार चौदह लरोक के इशकी्ी हरो ासे के सन्दभर ीे भी ्ही बात ीाससी चामहए। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 859 / 992 श्री सागर टीका रो श्री रा स वााीी ागरो सरो देखख्रो, ीेरी तरो मससां भई। रह देखे सरो मदल लग स आाहीप, तरो क्य सके हे साक ी! आपीे रो भी ुबां कही।।४५।। ागत हरो ग्ा हरो, ाह इस इशक की लीला करो देखे। ीुझे तरो अब सन्तरोष हरो ग्ा है। ीेरी आतीा रो देखती है (असुभा करती है), ाह पूरी तरह से मदल ीे सहीप आ पाता और रो मदल ीे ही स आ्े, उसका ससि िहा से ाार स हरो पासा कैसे सम्भा है। ए तरो केहेती हय खेल का, और कहा कहूं असर की इत। असर का इवक तरो कहय, रो ठौर रे की पाऊं मकत।।४६।। ्े रो इशक की बाते ीैसे कही है , ाे ागसी लीला से सम्बसन्धित है। परीधिाी के असन्त प्रेी करो ीै इस सशर गत् ीे कैसे कहूँ। परीधिाी के प्रेी का ाार स तरो तब करँ, ्मद ाहाँ के एक का के बराबर इशक भी इस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 860 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी संसार ीे कहीप पर हरोता। भाााकर - परीधिाी का प्रेी शब्दातीत, असुपी, और असन्त है। उसे इस वाप्सात् व््क सहीप मक्ा गत् ीे ्काकर रप ीे ा सकता। इस चौपाई के चौकेे चरा का ्ही भाा है। ीरोमीस हरोए सरो सीससिझ्रो, ए बीतक कहे ीहाीत। अब बात स रही बरोलस की, क्ा चलते ास मससबत।।४७।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक हे साक ी ! आप ीे रो भी ब्सृमष्ट्ाँ है, उन्हे इस बातय करो सीझ लेसा चामहए। परीधिाी के ीूल सम्बन्धि से ही ीैसे अपसी आपबीती ्े सारी बाते कही है। अब ीुझे इस सम्बन्धि ीे कुछ भी कहसे की आाश्कता सहीप है। प्रकरा ।।१८२।। चौपाई ।।९८९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 861 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर छठा खद ु ाई इली का इस प्रकरा ीे बा्ी ञास (खद ु ाई इली) के सागर का ाार स मक्ा ग्ा है। सागर छठा है अधत बडा, रो खद ु ाई इली। रा सक इसीे सहीप, ससि सीे हक हुकी।।१८।। ्ह छठा सागर बा्ी ञास का सागर है, रो अकरातीत के हद् ीे उीडा करता है। इसीे साी ीा् के खल्े भी संश् सहीप हरोता , क्यमक इसीे धिाी धिसी का हुकी मसमहत हरोता है। भाााकर - परीसत् (ीाररफत) के वारप अकरातीत के हद् ीे लहरासे ााले ञास के सागर के माष् ीे कलपसा ीे भी संश् सहीप मक्ा ा सकता। परीसत् (मसरपेक सत्) का ञास भी परी सत् ही हरोता है। इसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 862 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इली के सागर की एक बूँद ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे आ्ी और सागर का वारप बस ग्ी। इस सम्बन्धि ीे श्रृंगार का ककस हैएक बूद ं आ्ा हक मदल से, धतस का्ी मकए णकर चर। इस एक बूदं की ससिसफत देखख्रो, ऐसे हक मदल ीे कई सागर।। ससिससगार १८१८/४४ इस सम्पूार प्रकरा ीे एक बूँद वारप श्रीीुखाााी के ञास की ीमहीा करो दशार्ा ग्ा है, रो संसार ीे वा्ं ञास का सागर बस ग्ी है। इससे केाल आँ कलस मक्ा ा सकता है मक अकरातीत के मदल ीे उीडसे ााले इली के सागर की गररीा क्ा है। इली और इशक (ञास और प्रेी) एक-दस ू रे के प्राा है। परीधिाी की सभी इशकी्ी लीलाओं के ीूल ीे श्री रा ी की इच्छा (हुकी) ही का्र करती है। इस इच्छा का सम्बन्धि ञास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 863 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से हरोता है। ्ही कारा है मक इस चौपाई के चौकेे चरा ीे इली के सागर ीे श्री रा ी के हुकी का असवतता ीासा ग्ा है। ेता तले हुकी के, ए रो कादर की कुदरत। ए सब बेसक तरोखल्ा, सक स पाइए मकत।।२।। अकर ब् की ्रोगीा्ा का सम्पूार ब्ाणड धिाी धिसी के हुकी से है। धिाी धिसी दारा मद्े हुए तारती ञास से ीैसे इसे ्काकर रप ीे ास खल्ा है। अब ीुझे उसके सम्बन्धि ीे मकसी प्रकार का संश् सहीप है। भाााकर - अकरातीत के सत् अंग अकर ब् है, इसखल्े परब् के हुकी की लीला अकर ब् के दारा सम्पामदत हरोती है। इस सम्बन्धि ीे बीतक ६२/५१८ ीे कहा ग्ा है मक "हुकी सूर खद ु ाए का, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो है सूर लाल।" इस चौपाई 864 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के पहले चरा ीे अकरातीत के हुकी ीे ्रोगीा्ा के हरोसे के ककस का ्ही भाा है। अकर ब् (कादर) की लीला ्रोगीा्ा (कुदरत) के ब्ाणड ीे हरोती है और उसके ीस के वाप्स के वारप आमदसारा्ा (कादर) की लीला कालीा्ा (कुदरत) के ब्ाणड ीे हरोती है। इस प्रकार अकर ब् के हुकी का वाासप्सक वारप आमदसारा्ा करो ीासा मकन्तु अकर ब् के हुकी के ा सकता है, ागत वारपय ीे उसके चारय अन्तः शकरा (सतवारप, केाल, सबखलक, और अव््ाकृत) ीासे ा्ेगे। आसीास ससि ीी के बीच ीे, बेसक हुता स करोए। ब लग सक दमु स्ां मीसे, तरो का्ी क्य कर हरोए।।३।। इस ब्ाणड ीे आ तक करोई भी संश् रमहत सहीप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 865 / 992 श्री सागर टीका का। श्री रा स वााीी ब तक संसार के प्राणा्य का संश् सहीप मीटेगा , तब तक उन्हे अखणड ीुमक कैसे मील सकती है। भाााकर - "आकाश ससि ीी के बीच ीे" का तातप्र चौदह लरोक के इस ब्ाणड से है। वागर , ाैकुणठ आमद लरोक आकाश ीे सवकत है , बमक पाताल लरोक पृराी से ही सम्बसन्धित है। अव्ाल से आखखर लग, इत रा स काहूं सक। रहअला के इली से, हुए का्ी चौदेे तबक।।४।। सृमष्ट के प्रारम्भ से लेकर आ मदस तक सारा संसार संश् गवत का, मकन्तु श्ाीा ी के तारती ञास से अब मकसी के भी ीस ीे करोई संश् सहीप रह ग्ा। इस प्रकार चौदह लरोक का ्ह सम्पूार ब्ाणड अखणड ीुमक पासे का अधधिकारी बस ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 866 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - "सुमस्रो दमु स्ा आखखरी" (ससंधि गन्क) के ककस के आधिार पर ातर ीास सी् "आखखरी" हरोगा और पूार की चौपाई के आधिार पर "अव्ाल" शब्द का तातप्र सृमष्ट के प्रारम्भ से हरोगा। ्दमप प्रसंग के असुसार कहीपकहीप पर इसका भाा व ीे आसे से खल्ा ाता है , तरो कहीप बसरी सूरत से, और कहीप परीधिाी से। इवक काहूं सा हुता, तरो साी आससिसक क्ा हक। सरो बल इस कंु ी् के, पा्ा इवक चौदेे तबक।।५।। चौदह लरोकय के इस ब्ाणड ीे आ मदस तक मकसी करो भी ाावतमाक प्रेी (इशक) की पहचास सहीप की। ्ह तारती ञास की ही ीहास शमक है , ससि ससे इस पूरे ब्ाणड करो ्ह सौभाग् प्राप हरो ग्ा है मक ाह इशक की पहचास कर सकेगा। इस ञास के दारा वा्ं अकरातीत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 867 / 992 श्री सागर टीका ही आणशक के रप ीे श्री रा स वााीी ासे ग्े है। भाााकर - सम्पूार पृराी के मसाासी अभी भी अकरातीत और उसके प्रेी के सम्बन्धि ीे अस ास है। इसका कारा ब्ाााी का स फैल पासा है। ावतुतः श ्ह घटसा ीहाप्रल् के पशात् ्रोगीा्ा के ब्ाणड ीे हरोगी, हाँ चौदह लरोक का ्ह सम्पूार ब्ाणड अकरातीत और उसके प्रेी की पहचास करेगा। ए दमु स्ां पैदा मकस करी, हुती स काहूं खबर। सरो सक ीेटी सबस की, इली खद ु ाई आखखर।।६।। अब तक मकसी करो भी ्ह ञास सहीप का मक इस सृमष्ट करो मकससे बसा्ा है। इस ागसी ब्ाणड ीे अातररत हरोसे ााले इस बा्ी ञास (ब्ाााी) से सृमष्ट रचसा के सम्बन्धि ीे सभी संश्य करो मीटा मद्ा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 868 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - तारती ञास के दारा ही ीरोहसागर ीे आमदसारा्ा की उतपखत एां सृमष्ट के बससे के रहव् का पता चला है। इसके पूार तरो करोई सधच्चदासन्द परब् करो सृमष्टकतार ीासता का, तरो करोई ब्ा, माष्ा,ु णशा, देाी, सू्र, गाेश, ाा्,ु और अम् आमद करो सृमष्टकतार ीासता का। अकरातीत के सत् अंग अकर ब् की छ्छा्ा ीे मकस प्रकार असंख् ब्ाणड उतपन्न हरोते है और ल् हरोते है, इसका ञास तारती ाााी के मबसा सहीप हरो सकता। पौराणाकय की तरह सभी पन्कय के लरोग सृमष्ट रचसा के सम्बन्धि ीे तरह-तरह की भासन्त्य से गससिसत है। ाेद और कतेब ीे, कहूं सुधि स हरोसी ीुतलक। खरोल हकीकत ीारफत, मकस काढ़ी स सुभे सक।।७।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 869 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चारय ाेद एां कतेब (तौरेत, इं ील, ंबूर, और कुरआस) करो पढ़कर भी मकसी करो परी सत् की पहचास सहीप की। हकीकत (सत्) एां ीाररफत (परीसत्) के रहव्य करो वपष्ट करके मकसी से भी संसार के लरोगय के संश् रमहत सहीप मक्ा का। भाााकर - कीर काणडय और ड पदाकर की पू ा के ाल ीे उलझा हुआ संसार परीधिाी के ञास से पूारत्ा असणभञ का। तारती ञास के मबसा सधच्चदासन्द परब् का ाावतमाक ञास हरो पासा असम्भा है। बडे सात मससास आखखर के, खखताब हादी ासय पाइए क्ाीत। ाहेर कर, दई सबय करो ससीहत।।८।। मक्ाीत (आखखरत) का सी् आसे के सम्बन्धि ीे सात बडे-बडे मसशास बता्े ग्े है। इसके रहव्य करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 870 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी खरोलसे की शरोभा ीा् श्री ीहाीधत ी करो है। उन्हयसे ही धिीर गन्कय से इसके रहव्य करो खरोलकर सबकरो ाावतमाक सत् का बरोधि करा्ा है। भाााकर - कुरआस-हदीसय ीे मक्ाीत के सात मसशास बता्े ग्े है, बमक बाइबल ीे चार मसशास है- १८. Arch Angel (हुकी की शमक) २. Gabriel (ससि बरील) ३. Sharp Sword (Trumpet of God) (ञास की तलाार अकारत् ागत बुधद) ४. Almighty (न््ा्ाधिीश के रप ीे वा्ं परब्) their comrades इसी प्रकार श्रीीदागात्, बुद गीता, तका पुराा संमहता ीे कुछ दस ू रे रप ीे इसका ाार स मक्ा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 871 / 992 श्री सागर टीका आ ू ीा ू श्री रा स वााीी लेसी सबय, ऊगे सूर ीगरब। ईसा ीारे दजाल करो, एक दीस करसी सब।।९।। कुरआस ीे खलखा है मक आ ू -ीा ू करो खा सारी दमु स्ा ा्ेगे। सू्र पूार के बदले पधशी ीे उद् हरोगा। ईसा रहअलाह (श्ाीा ी) दजाल का कतल करेगे और सारे संसार ीे एक सत् धिीर की वकापसा करेगे। भाााकर - ्ह सम्पूार प्रसंग कुरआस के पारः श अठ्ठारह (१८८) "क़द अफ़-ल हल् ीुससि्सू-स" सूरः श सूर चौबीस (२४) ीे ारात है। दाभा हरोसी ाहेर, ीेहेदी ीरोमीसय इीाीत। उडााे सूर असराफील, बेसक पा्ा बखत।।१८०।। उस सी् दाब्ह-तुल-अजर साी का ासार ामहर हरोगा और इीाी ीुहम्ीद ीहदी सामहबुजजीाँ प्रकट प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 872 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी हरोकर ब्सृमष्ट्य करो अलौमकक ञास का उपदेश देगे। इसाफील फररशता ञास का सूर फँू केगा, ससि ससे संसार करो संश् रमहत ञास प्राप करसे का अासर प्राप हरोगा। भाााकर - ्ह प्रसंग कुरआस ी ीद ीे अठ्ठारह पार "क़द अफ़-ल हल् ीुअमीसू-स" सूरः श सूर चौबीस (२४) ीे ारात है मक हश्र के ररो से पहले मक़्ाीत के दरो दौर (छरोटा और बडा) हयगे। इसीे अरब की जीीस से दाब्ह-तुल-अजर ासार उतपन्न हरोगा। इसकरो आखरल इीाी ीुहम्ीद ीहदी सामहबुजजीाँ ा हजरत ईसा रहुलाह कतल करेगे। तब इसाफ़ील तुरही करो दरो बार फँू क ीारेगे। पहली फँू क से पहाड उड ाएँ गे और सभी ीुदार हरो ा्ेगे , और दस ू री फँू क से दरोबारा मजन्दा हयगे। तब अलाह तआला दीदार की ीुबारक खश ु ी देगे। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 873 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इसका बाधतसी अणभप्रा् श्री ासार ीसुष्् का ही शरीर है ी से ्ह बता्ा है मक रो ीा्ााी माकारय से गवत है। तारती ञास से ही इसके अहंकार इत्ामद अागुाय करो सीाप करके अखणड ब्ञास का असन्त अीृतपास मक्ा ा सकता है, रो मक न््ा् मदास के पूार का प्रसंग है। न््ा् मदास पर परब् सीवत प्राणा्य करो असुगमहत करेगे। तब सभी प्रााी परब् का प्रत्क साकातकार करेगे। काफर और ीुसाफक, हँसते के ीहंीद पर। सरोई मदस अब आए मील्ा, रो ीहंीदे कही की आखखर।।१८१८।। ब ीुहम्ीद सामहब मक्ाीत के सी् ीे प्रकट हरोसे ााले इस मसशासय (धचह्नय) की बात करते के, तरो कामफर और ीुसामफक लरोग उसकी बहुत हँसी उडा्ा करते के। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 874 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी उसके दारा कहा हुआ ाह सी् आ ग्ा है। भाााकर - कामफर ाह है, रो सधच्चदासन्द परब् के असवतता करो स ीासे। दस ू रे ीतय के असु्ाध््य करो घृाापूारक कामफर कहसा कुरआस के मापरीत है। ीुसामफक ाह है, रो साीसे कुछ कहता है, मकन्तु पीठ पीछे उसके मापरीत बरोलता है। इसके दारा हँसी उडासे का प्रसंग कुरआस के पारः श दस (१८०) "ाअ्-लीू" सुरः श तौबः श (९) आ्त ७८ एां पारः श ९ "कालली-लऊ" सूरः श ८ अन्फाल आ्त १८०९ ीे है। बसरी ीलकी और हकी, कही ीहंीद तीस सूरत। करे ससिसफा्त आखखर, खासल खास उीत।।१८२।। ीुहम्ीद की तीस सूरते कही ग्ी है - १८. बशरी (रसूल ीुहम्ीद सामहब) २. ीलकी (सदर ु धिसी श्री देाचन्् प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 875 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ी) ३. हकी (श्री प्राासाक ी)। ्े सूरते मक्ाीत के सी् ीे धिाी धिसी से ब्सृमष्ट्य की ससिसफाररश करेगी। भाााकर - श्री प्राासाक ी के वारप ीे तीसय सूरते मारा ीास है। "तीसरी खूबी तीस हादी ा ूद" (बडा मक्ाीतसाीा ५/३६) का ककस ्ही ससिसद करता है। ससिसफाररश (असुशंसा, ससिसखापस, आशीष) का तातप्र ्ह है मक ब्सृमष्ट्य करो श्री प्राासाक ी के दारा परीधिाी की राह प्राप हरोगी और उसका पल -पल आशीष प्राप हरोगा। एक बन्दगी का ह ार गुसा फल प्राप करसे का ककस भी इसी ओर संकेत करता है। करी-कांड और सरी्त, मकस मकस लई तरीकत। दमु स्ां चौदेे तबक ीे, मकस खरोली सा हकीकत।।१८३।। तारती ञास के अातरा से पूार महन्द ू प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा हाँ कीर काणडय 876 / 992 श्री सागर टीका के श्री रा स वााीी ाल ीे फँसे के , तरो ीुसलीास शरर्त के बन्धिस ीे फँसे के। इसीे से मकसी -मकसी से ही उपाससा (तरीकत) का ीागर अपसा्ा, मकन्तु चौदह लरोकय के इस ब्ाणड ीे ऐसा करोई भी सहीप हुआ ससि ससे परब् के साकातकार का ाावतमाक ीागर दशार्ा हरो। सासूत ीलकूत लाए की, सा सुधि की साी पढ़े बरत। ासत है, कहे बका लाहूत।।१८४।। इस संसार के ञासी सय करो पृराी लरोक , ाैकुणठ, मसराकार, तका अकर धिाी (्रोगीा्ा के ब्ाणड) का भी ाावतमाक ञास सहीप का। ्े लरोग धिीर गन्कय ीे अखणड परीधिाी (बका लाहूत) शब्द पढ़ते तरो रहे है, मकन्तु ाैकुणठ, मसराकार, ्ा ्रोगीा्ा के ब्ाणड करो ही परीधिाी सीझसे की भूल करते आ रहे है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 877 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए सुधि स पाई काहूं से, क्य है कहां ठौर माधि मकस। खरो खरो चौदेे तबक का, मदल हुआ स मकस ररोसस।।१८५।। आ तक मकसी भी व््मक करो ्ह सुधि सहीप हरो सकी मक अखणड परीधिाी इस सशर गत से परे क्य है , कहाँ है, और ाहाँ की लीला मकस प्रकार की है। चौदह लरोक के इस ब्ाणड के सभी प्रााी खरो -खरो कर कक ग्े, मकन्तु मकसी के भी हद् ीे इस ञास का प्रकाश सहीप हरो सका। सरो इली खद ु ाई लदन्न ु ी, परोहयच््ा चौदेे तबक। सरो इतके ीेहेर पसरी, सबे हुए बेसक।।१८६।। अब परब् का मद्ा हुआ तारती ञास चौदह लरोक के इस ब्ाणड ीे आ ग्ा। अब श्री ीहाीधत ी के धिाी हद् से ब्ाााी के रप ीे अकरातीत की कृपा फैली प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 878 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और सभी संश् रमहत हरो ग्े। अव्ाल क्ा फुरीास ीे, इत का ी हरोसी हक। करसी का्ी सबस करो, ऐसी ीेहेर हरोसी ीुतलक।।१८७।। श्री प्राासाक ी के प्रकट हरोसे से पूार धिीर गन्कय ीे ्ह बात बहुत पहले से ही खलख दी ग्ी की मक इस ब्ाणड ीे सधच्चदासन्द परब् की ऐसी कृपा हरोसे ााली है मक ाे वा्ं न््ा्ाधिीश बसकर इस संसार ीे आ्ेगे और सभी करो अखणड ीुमक देगे। भाााकर - सधच्चदासन्द परब् की आाेश शमक के इस संसार ीे प्रकट हरोकर सबकरो ीुमक देसे का प्रसंग पुराा संमहता ३१८/५०,१८०३,१८०४, ाृहतसदाणशा संमहता श्लरोक १८९, ीाहेशर तन्् १८५/३३, तका बुदगीता श्लरोक ४७,४८ ीे है। इसी प्रकार कुरआस पारः श १८८ सूरे सूर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 879 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी २४, पारः श १८६ सूरे ीरर्ी, पारः श २८ आ्त ३० ीे है। बाइबल ीे ्ह ककस है- Yes, be patient and take courage for the coming of the lord is near...... for see! the great judge is coming. (James 5/8,9) ए खेल मक्ा मकस ाावते, और हुआ मकसके हुकी। ए सुधि काहूं सा परी, कहां असर बका खसी।।१८८।। तारती ञास के अातरा के पहले मकसी करो भी ्ह सुधि सहीप की मक ीा्ा का ्ह खेल मकसके खल्े बसा्ा ग्ा है और इसे बसासे ीे मकसका आदेश है ? अखणड परीधिाी और अकरातीत कहाँ है? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 880 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मगररो रहे फररवते लैल ीे, मकस ाावते पाए उतर। कंु स केहेते खेल पैदा मक्ा, ए मकससे मकस खाधतर।।१८९।। ब्सृमष्ट और ईशरी सृमष्ट इस ीा्ााी गत ीे मकस खल्े आ्ी है? "कंु स" कहकर मकससे मकसके खल्े इस खेल करो बसा्ा है? मकस कौल मक्ा बीच असर के, अरााहे रो ीरोमीस। सरो पढ़े ाेद कतेब करो, ए खरोली सा हकीकत मकस।।२०।। ्दमप इस संसार के लरोग ाेद और कतेब गन्कय करो पढ़ते तरो है, लेमकस मकसी से भी इस रहव् करो उ ागर सहीप मक्ा मक परीधिाी ीे ब्सृमष्ट्य से इस खेल ीे आसे के खल्े मकससे ाा्दा मक्ा (ाचस मद्ा) का? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 881 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए इलीे सब माधि सीझे, सांचा इली सब ीर ीर रो हक। ाते हुते, मकए इलीे बका ीुतलक।।२१८।। अकरातीत का मद्ा हुआ ्ह तारती ञास पूाररपेा सत् है। इस ञास के दारा सीवत संश्य का मसाारा हरोता है और ाावतमाक सत् का बरोधि हरोता है। आ मदस तक सभी लरोग न्ी-ीरा के चक्र ीे फँसे हुए के , मकन्तु धिाी धिसी के इस अमदती् ञास से सबकरो मसधशत रप से अखणड ीुमक की सौगात दे दी है। क्य सदर-तुल-ीुन्तहा, क्य है असर अ ीी। क्य कौल फैल हकके, क्य हक सूरत हलीी।।२२।। अकर धिाी और परीधिाी कहाँ है? अकरातीत की लीला (ककसी-करसी) कैसी है और उसकी अधत करोील शरोभा कैसी है? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 882 / 992 श्री सागर टीका क्य असर आगूं श्री रा स वााीी रोए है, क्य असर मढग है ताल। क्य पसु पंखी असर के, क्य बाग लाल गुलाल।।२३।। रंगीहल के साीसे ्ीुसा ी मकस प्रकार बह रही है तका रंगीहल के पास ीे हौ कौसर ताल की शरोभा कैसी आ्ी है? परीधिाी के पशु-पकी कैसे है और सुन्दर-सुन्दर फूलय की शरोभा से ्क ु ाहाँ के सूरी्ी बाग कैसे है? क्य खासल खास उीत, बीच सूरत ला क्य खास उीत दस ू री, े। रो कही बीच सूर के।।२४।। परीधिाी ीे रहसे ााली ब्सृमष्ट्ाँ कैसी है ? इसी प्रकार अकर धिाी की ईशरी सृमष्ट का वारप क्ा है? प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 883 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए साी मससास सब खलखे, खस ु बरोए ससि ीी उजल। और कह्ा पासी दधि ू सा, ताल रोए का ल।।२५।। इस प्रकार धिीर गन्कय ीे साी तका पहचास के साक सारा ाार स है। ्ह भी खलखा है मक ाहाँ की धिरती अधत उजाल है और सुगसन्धि से भरपूर है। हौ ्ीुसा ी का कौसर तका ल दधि ू की तरह सफेद है। भाााकर - पुराा संमहता के अध््ा् ३२ श्लरोक ४५, २०२ तका ीाहेशर तन्् ीे अध््ा् ४२ श्लरोक ८ -३० ीेे ्ीुसा ी की शरोभा का मावतृत ाार स है। इस दरोसय गन्कय ीे परीधिाी की शरोभा पर काफी प्रकाश डाला ग्ा है। इसी प्रकार कुरआस के ींससि ल सूरः श तीस (३०) अम्ीः श सूरः श कौसर १८०८ आ्त १८-३ ीे ्ह ाार स है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 884 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रोए मकसारे री द्रोहरी, पूर ाेर दरखत। ए साी मससास सबे खलखे, पर करोई पााे सा हकीकत।।२६।। ्ीुसा ी का मकसारा ााहरातय से डा हुआ है। मकसारे पर द्रोहरर्ाँ बसी हुई है तका पाल के ऊपर ााहरातय के ाृकय की शरोभा आ्ी है। धिीर गन्कय ीे साी समहत पहचास भी खलखी है, मकन्तु करोई भी ाावतमाक सत् करो सहीप ास पाता। भाााकर - ाेद, पुराा संमहता, तका ीाहेशर तन्् करो पढ़से के पशात् भी महन्द ू स हाँ वालीला अदैत सधच्चदासन्द परब् के धिाी, वारप, तका लीला के प्रधत पूरी मसषा सहीप रख पाते और ड -पू ा ीे ही उलझे रहते है, उसी प्रकार कुरआस-हदीसय करो पढ़कर भी ीुसवली स परीधिाी की शरोभा एां परब् के वारप करो वाीकार सहीप कर पाते। तारती ञास की शरा खल्े प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 885 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मबसा ाावतमाक ञास कदामप सहीप हरो सकता। सेक सेक मससास केहेत हय, ाावते साहेदी ीहंीद। ए पट खलु ्ा सूर पार का, कहय कहां लग कहूं स हद।।२७।। ीुहम्ीद सामहब से कुरआस ीे रो साधक्ाँ दी है , उसकी करोडी-करोडी पहचास ीैसे दी है। अब तारती ञास के दारा अकर धिाी से भी परे का ञास प्राप हरो ग्ा है। हे साक ी! अब आप ही बताइ्े, इस ञास की ीमहीा करो मकतसा कहूँ। इसकी करोई सीीा सहीप है। इली खद ु ाई लदन्न ु ी, रह अला ल्ाए इत। उमी्य पट खरोल बका मीसे, बैठाए कर मससबत।।२८।। अकरातीत के मद्े हुए तारती ञास करो लेकर श्ाीा ी इस संसार ीे आ्ीप। उन्हयसे इस ञास के दारा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 886 / 992 श्री सागर टीका सुन्दरसाक, श्री रा स वााीी रो परीधिाी करो पूारत्ा भूल चुके के , के ीा्ााी पदर करो हटा मद्ा तका अकरातीत से सम्बन्धि रोडकर परीधिाी का ञास मद्ा। भाााकर - ब्सृमष्ट्य के ीूल तस परीधिाी ीे ही मारा ीास है। उन्हे परीधिाी ीे बैठासे का तातप्र परीधिाी का ञास देसे से है, ससि से उन्हयसे व -रास ीे भुला मद्ा का। इसी प्रकार उसकी धिसी से अखणड मसवबत तरो है, मकन्तु इस चौपाई के चौकेे चरा का भी ्ही आश् है मक ससि स ीूल सम्बन्धि करो उन्हयसे इस खेल ीेे भुला मद्ा का, उसकी पहचास करा दी। ए बल इस कंु ी् का, काहूं हुता स एते मदस। रहअला पैगाी उीत करो, दार खरोल्ा बका ातस।।२९।। ्ह तारती ञास की ही ीहास शमक है , ससि ससे उस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 887 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी का ञास मद्ा है, पास सहीप का। श्ाीा रो आ तक मकसी के भी ी के तारती ञास से ब्सृमष्ट्य के खल्े अखणड परीधिाी का दराा ा खरोल मद्ा है। भाााकर - ्दमप इस संसार ीे ञास के सागर कहलासे ााले बडे-बडे ञासी स हरो चुके है, मकन्तु मसराकार- बेहद करो पार कर अकर-अकरातीत का ाावतमाक ञास आ तक मकसी से भी सहीप मद्ा है। श्ाीा ी के इस तारती ञास की ीमहीा अमदती् है, ससि ससे सभी करो परीधिाी का ञास सुलभ करा मद्ा है। ए का्ी असर अपार है, रो कहाात है ााहेदत। करोई परोहयचे स असर रहय मबसा, ससि सकी ए मससबत।।३०।। ्ह अखणड परीधिाी असन्त है और ्हाँ का-का ीे एकमदली (ाहदत) है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा अकरातीत की अँगरपा 888 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्य का ही परीधिाी से ीूल सम्बन्धि है और उसके अधतररक ाहाँ अन्् करोई भी सहीप आ सकता। भाााकर - परीधिाी पूाारधतपूार है। उसीे मकसी भी स्ी ावतु का प्राेश ्ा मकसी का मसष्कासस असम्भा है। ससि सके ीूल तस (पराती) ाहाँ मारा ीास है, ाे ब्ातीा्े ही ाहाँ ाती है। हाँ ! साकातकार करसे का अधधिकार सबकरो है। इस प्रकरा के बाद अगले प्रकरा की चौपाई २५,२६,२७ ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। ए बल देखरो कंु ी् का, ससि स बेारा मक्ा बेसक। ए भी बेारा देखाइ्ा, रो गैब खखलात का इवक।।३१८।। हे साक ी! इस तारती ाााी की शमक देखखए, ससि ससे हद से लेकर परीधिाी तक का संश् रमहत करसे ााला सम्पूार माारा दे मद्ा। धिाी धिसी की णछपी हुई खखलात प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 889 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के इशक का भी माारा (ब््रोरा) तारती ञास से दे मद्ा है। ए बल देखरो कंु ी का, ससि स देखाई मससबत। ए रो रहे ात हक की, ससि स बेसक देखी ााहेदत।।३२।। इस तारती ाााी का बल देखखए, ससि ससे धिाी धिसी से ीूल सम्बन्धि की पहचास करा्ी। अकरातीत की अँगरपा आतीाओं से इस ञास के दारा परीधिाी की एकमदली (ाहदत) करो ासा है, ्ह मसधशत है। ए बल देखरो कंु ी् का, खूब देखी हक सूरत। हक के मदल के भेद रो, सरो इलीे देखी ीारफत।।३३।। ्ह तारती ञास की ही ीमहीा है, ससि सके कारा ब्सृमष्ट्य से धिाी धिसी के वारप करो बहुत अच्छी तरह प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 890 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से देखा है। अकरातीत के मदल ीे णछपे हुए ीाररफत के भेदय करो इस ञास के दारा ही भाााकर - श्ाीा ासा ा सका है। ी और सखख्ाँ श्री रा ी के मदल की हकीकत के वारप है। ्े हकीकत के इशक और आसन्द ीे इतसी डू ब ग्ी कीप मक इन्हे इशक , आसन्द, ाहदत, मसवबत, और खखलात की ीाररफत का कुछ भी पता सहीप का। ीाररफत (परीसत्) के उस वारप की पहचास इस ागसी ब्ाणड ीे ीा् तारती ञास से ही हरो सकी है, रो परीधिाी, व , ्ा रास ीे सहीप की। कहा कहूं बल कंु ी् का, रहे बडी रह मससबत। और हक बडी रह रहस की, इस इलीे देखी खखलात।।३४।। इस ब्ाााी (तारती ञास) की शमक का ीै क्ा ाार स करँ। इस अमदती् ञास के दारा ही ्ह बरोधि हुआ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 891 / 992 श्री सागर टीका मक श्ाीा श्री रा स वााीी ी तका सखख्य के बीच लीला ीे क्ा सम्बन्धि है और श्री रा ी का श्ाीा ी तका सखख्य से कैसा सम्बन्धि है। इस ाााी दारा ही श्री रा ी के मदल वारप खखलात का ञास हुआ है। भाााकर - खखलात के रप ीे श्री रा ी का मदल ही लीला कर रहा है। खखलात का वारप हकीकत का है , मकन्तु इसकी ीाररफत है- श्री रा ी का ीाररफत वारप मदल, ससि ससे अपसे अन्दर मसवबत, ाहदत, खखलात, और सम्पूार परीधिाी करो मसमहत कर रखा है। ए बल देखरो कंु ी् का, सीके देख्ा हक-इवक। ुदे बैठाए खलखी इसारते, ासय सीझे रह बेसक।।३५।। हे साक ी! इस तारती ञास की शमक करो देखखए , ससि ससे धिाी धिसी के इशक (प्रेी) की अच्छी तरह से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 892 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पहचास हरो ग्ी है। श्री रा ी से सखख्य करो भले ही ीूल मीलााा ीे अपसे पास बैठा्ा है , मकन्तु इस संसार ीे अलग-अलग वकासय और पन्कय ीे भे मद्ा है और धिीर गन्कय ीे संकेत ीे सारी बाते खलख रखी है। तारती ञास का अातरा ही इसखल्े हुआ है, तामक आतीा्े ाावतमाकता करो ासकर संश् रमहत हरो ा्े। ए बल देखरो इस कंु ी् का, बाते णछपी हक मदल की। सरो सब सीझी ात है, है असर की गुझ ेती।।३६।। इस श्रीीुखाााी का बल देखखए मक इससे श्री रा ी के मदल की णछपी हुई सारी बाते मामदत हरो ग्ी है। परीधिाी से सम्बसन्धित ीाररफत की सभी रहव्ी्ी बाते अब इस ञास दारा आसासी से ास ली ाती है। भाााकर - इस प्रकरा ीे कणकत तारती ञास (कुञ्जी) प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 893 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का तातप्र ीा् एक चौपाई ्ा छः श चौपाइ्य का तारती सहीप है , बसलक सम्पूार श्रीीुखाााी ही तारती ञास है ससि सका अातरा श्री ीहाीधत ी के धिाी हद् से हुआ है। एक ्ा छः श चौपाइ्य का तारती तरो बी कहे तारती बी रप है। "ए ाचस" (बीतक) के ककस से ्ह बात वपष्ट हरोती है। देखरो बल इस कंु ी् का, ए रो खलखी रीू े हक। आखखर रसूल हरोए आाहीप, दे इली खरोलााे बेसक।।३७।। धिाी धिसी से धिीर गन्कय ीे रो रहव् भरी बाते खलखी है , उसीे ्ह भी खलखा है मक वा्ं परब् ही आखखरत ीे संदेशााहक (ीहाीधत ी ) के रप ीे आ्ेगे और तारती ञास देकर सभी धिीर गन्कय के णछपे हुए रहव्य करो खरोलेगे। इस बात ीे मकसी प्रकार का संश् सहीप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 894 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करसा चामहए। ्ह ब्ाााी की ीहास ीमहीा है, रो हद् ीे बसासे ्रोग् है। भाााकर - इस चौपाई ीे "रसूल" शब्द से तातप्र ीुहम्ीद सामहब से सहीप है , बसलक ीहाीधत ी से है , ससि सके धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर अकरातीत श्री प्राासाक ी से ागसी लीला की है। ए बल देखरो कंु ी् का, रहे बैठाई ुदी कर। आप केहे संदस े े कहााहीप, आप ल्ााे ुदे साी धिर।।३८।। ्दमप धिाी धिसी से ब्सृमष्ट्य करो इस संसार ीे अलग-अलग तरो कर मद्ा है, मकन्तु ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर वा्ं इस ब्ाााी करो अपसे सन्देश के रप ीे कह रहे है। ्ह तारती ाााी की ीमहीा है। कहसे ााले ाे वा्ं है, मकन्तु श्री ीहाीधत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 895 / 992 ी श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के साी से कहलाा रहे है। बल क्य कहूं इस कंु ी् का, रो हक मदल गुझ इवक। धतस दरर्ाा की सेहेर,े उतरी सासूत ीे बेसक।।३९।। इस बात ीे करोई भी संश् सहीप है मक अकरातीत के मदल ीे ीाररफत के इशक का असन्त सागर लहरा रहा है, उसका रस हकीकत के रप ीे इस सशर गत ीे आ्ा है ससि सका वारप ्ह ब्ाााी है। ्ह तारती ाााी की अपार ीमहीा है। भाााकर - "इली चातुरी खूबी अंग की" चौपाई करो उदत ृ करके ञास की हँसी उडासा उधचत सहीप है। ीा्ााी बुधद के दारा सत् करो असत् और असत् करो सत् ससिसद करसे की प्राृखत करो चतुराई कहते है , मकन्तु इस ब्ाााी ीे तरो अकरातीत के हद् ीे उीडसे ााले प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 896 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर से प्राामहत हरोसे ााली सहरय का रस भरा हुआ है। इशक का प्राा इली है औैर इली का प्राा इशक है। इस प्रकार इस ब्ाााी ीे इशक का रस णछपा हुआ है। इसे अन्् गन्कय की तरह बौधदक चातु्र से भरा हुआ शुष्क ञास का गन्क सहीप सीझसा चामहए। हाँ ! हीे इसे ीा् कणठ की शरोभा स बसाकर हद् ीे आतीसात् करसे की राह अपसासी पडेगी। बल कहा कहूं कंु ी् का, ए रो झूठा खेल रंचक। सरो रहय सांच कर देखाइ्ा, बन्धि बांधिे कई बु रक।।४०।। ीै इस तारती ाााी की ीमहीा का ाार स कैसे करँ। ीा्ा का ्ह ब्ाणड (खेल) साी ीा् का है और सशर अकारत् ल् हरो ासे ााला है। मफर भी तारती ञास से ब्सृमष्ट्य से परब् की ाावतमाक पहचास कराकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 897 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सम्पूार ब्ाणड के खल्े अखणड ीुमक का दार खरोल मद्ा। अब तक परब् की पहचास के सम्बन्धि ीे ञासी सय से अपसे संश्ातीक माचारय की गाँठ लगा रखी की। भाााकर - ब्सृमष्ट्य के इस खेल ीे आसे के कारा इसे अखणड ीुमक पासे का सौभाग् प्राप हुआ। सत् (अखणड) करके मदखासे का ्ही भाा है। "बन्धि" का तातप्र हरोता है - गाँठ बाँधिसा, मस्ी बाँधिसा आमद। ीै कौस हूँ , कहाँ से आ्ा हूँ, तका परब् का धिाी, वारप और लीला क्ा है, सृमष्ट के प्रारम्भ से चले आ रहे इस प्रशय का अभी तक करोई उतर सहीप का। ञासी कहलासे ााले लरोगय से इसके उतर ीे अपसे असुीास से संश्ातीक माचारय की गाँठ लगा रखी की , ससि से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 898 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी खरोलकर ब्सृमष्ट्य से इस ब्ाणड की ीुमक का दार खरोल मद्ा। ए बल देखरो कंु ी् का, रहे बीच चौदेे तबक के आए। सरो इलीे देखा्ा झूठ कर, बीच असर के बैठाए।।४१८।। चौदह लरोक के इस सशर गत् ीे ब ब्सृमष्ट्ाँ आ्ीप, तरो इस तारती ञास से उन्हे ्ह अहसास करा मद्ा मक ्ह संसार वाप्सात् है और ाे ीूल मीलााा ीे धिसी के चराय ीे बैठे -बैठे ही खेल करो देख रही है। ्हाँ पर तरो ाे ीा् हुकी के दारा सुरता रप ीे आ्ी है। इस ब्ाााी की शमक करो देखखए। इस हक का इवक दस ु ी मीसे, स पाइए लदन्न ु ी मबस। मबसा इवक स इली आाहीप, दरोऊ तौले अरस परस ब स।।४२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 899 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस संसार ीे मबसा तारती ाााी के अकरातीत का प्रेी सहीप पा्ा ा सकता। मबसा इशक के धिसी के इली (ञास) करो भी ्काकर रप ीे सहीप ासा ा सकता। दरोसरोे ही आपस ीे एक -दस ू रे की गररीा का ीूल्ाँकस करते है। भाााकर - भार (ा स) तरोलसा एक ीुहाारा है, ससि सका अकर हरोता है ीमहीा दशारसा (ीूल्ांकस करसा)। श्री रा ी के इशक (प्रेी) से दरू हरोकर करोई भी सुन्दरसाक ब्ाााी के गु् रहव्य करो सहीप ास सकता। इसी प्रकार ्मद ाह ब्ाााी के धचन्तस-ीसस से दरू हरो ाता है, तरो धिसी की ाावतमाक पहचास स हरोसे से प्रेी ीागर से भी दरू हरो ा्ेगा। ावतुतः श प्रेी और ञास ीे चरोली-दाीस का साक है। दरोसय ही एक-दस ू रे के पूरक है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 900 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए कंु ी बल अपार है, ससि ससय पा्ा अपार। खल्ा हक मदल गुझ इवक, ससि सकरो काहूं स सुीार।।४३।। इस तारती ाााी की शमक असन्त है। इसके दारा ही उस असन्त परीधिाी का ञास प्राप हुआ है और श्री रा ी के मदल ीे इशक का रो असीी सागर लहरा रहा है , उसका भी गु् भेद प्राप हुआ है। ए इली कंु ी असर की, रह अला ल्ाए हकपे। ीाहे कई गुझ हक मदल की, सरो सब देखी इस कंु ी से।।४४।। ्ह श्रीीुखाााी परीधिाी के गु् रहव्य करो वपष्ट करसे ााली कुञ्जी (चाबी) है, ससि से श्ाीा प्राा मप्र्ती श्री रा ी अपसे ी से लेकर आ्ी है। अकरातीत के हद् ीे ीाररफत (परीसत्) की गु् बाते है, ाे भी इसके दारा मामदत हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रो भी णछपी हुई ाती है। 901 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी आसीास ससि ीी के बीच ीे, बाते मबसा महसाब। धतसीे बाते रो हक की, सरो खलखी मीसे मकताब।।४५।। इस ब्ाणड ीे अध््ाती के साी पर असन्त बाते की ाती है, मकन्तु अकरातीत के धिाी, वारप, तका लीला से सम्बसन्धित बाते ीा् श्रीीुखाााी ीे है। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा ीे कुरआस का करोई प्रसंग सहीप है। ्मद संसार के धिीर गन्कय ीे अकरातीत के धिाी, वारप, और लीला सम्बन्धिी पूार ञास हरोता, तरो संसार भासागर से पार हरो ग्ा हरोता। कुरआस-हदीसय ीे साकी रपी ाार स अाश् है। इसी प्रकार ाेद , पुराा संमहता, तका ीाहेशर तन्् ीे सधच्चदासन्द परब् से सम्बसन्धित प्राीाणाक साीगी बहुत है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 902 / 992 श्री सागर टीका ्ा श्री रा स वााीी ाहेर ्ा बातूस, रीू े ्ा इसारत। सरो खरोल्ा सब इस कंु ससि ए, हकीकत ्ा ीारफत।।४६।। सभी धिीर गन्कय ीे प्रत्क ्ा अप्रत्क रप से संकेत ीे रो भी रहव्ी्ी बाते खलखी ग्ी कीप, उसके भेदय करो तारती ञास से वपष्ट कर मद्ा है। परीधिाी की हकीकत और ीाररफत का ञास भी इस ब्ाााी से ही सम्भा हरो सका है। अव्ाल से आखखर लग, मक्ा कंु ससि एं सबका काी। है्ाती चौदेे तबकय, दई का्ी णभवत तीाी।।४७।। सृमष्ट के प्रारम्भ से लेकर ीहाप्रल् तक सभी प्राणा्य का एक ही लक् रहता है, भासागर से पार हरो ासा। तारती ाााी से इसका ्ह का्र कर मद्ा अकारत् चौदह लरोकय के सभी प्राणा्य के खल्े आठ बमहशतय ीे अखणड प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 903 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीुमक का दार खरोल मद्ा है। कहूं दमु स्ां चौदेे तबक ीे, कह्ा स हक का एक हरफ। तरो हक सूरत क्य केहेाहीप, मकस पाई स बका तरफ।।४८।। चौदह लरोक के इस ब्ाणड ीे आ मदस तक कहीप भी मकसी से अकरातीत के सम्बन्धि ीे एक शब्द भी सहीप कहा का। ब इस संसार के लरोगय से अखणड परीधिाी का ञास ही सहीप पा्ा, तरो अकरातीत की शरोभा-श्रृंगार का ाार स कैसे करते। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक ब संसार के लरोगय करो अकरातीत का करोई ञास का ही सहीप, तरो धिीर गन्कय ीे कैसे ाार स हुआ? इसका सीाधिास ्ह है मक इस चौपाई ीे ीा सृमष्ट की उपलसब्धि्य के बारे ीे कहा ग्ा है। अखणड का ञास ्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 904 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी तरो ईशरी सृमष्ट (णशा, माष्ा,ु कबीर, शुकदेा, ससकामदक) के दारा उतरा है, ्ा परब् के आदेश से सीाधधि अावका ीे उतरा है। ाेद और कुरआस तरो अपौरषे् है ही , तफ्सीर-ए-हुसैसी, पुराा संमहता, और ीाहेशर तन्् भी परब् की माशेष कृपा से खलखे ग्े है। ऐसी सवकधत ीे इस चौपाई का ककस उधचत ही है। धतस हक के मदल का गुझ रो, सरो कंु ससि एं खरोल्ा इस। तरो बात दसु ी की इत कहां रही, कंु ी ऐसी सूर ररोसस।।४९।। इस ब्ाााी से तरो अकरातीत के मदल के गु् रहव्य करो भी उ ागर कर मद्ा है। वाप्स की बुधद का हरोसे के कारा संसार का ञास संश्ातीक है। भला ाह तारती ञास के असन्त उ ाले के सीक कैसे ठहर सकता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 905 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सदर-तुल-ीुंतहा असर अ ीी, इत बरत ्ा लाहूत। रा सक कहूं सा रही, ए बल कंु ी कूात।।५०।। तारती ञास की इतसी अधधिक शमक है मक इस माष् ीे रा भी संश् सहीप रह ग्ा मक अकरातीत के परीधिाी ीे अकर अकर धिाी कहाँ है, तका ्रोगीा्ा का ब्ाणड और परीधिाी कहाँ और कैसे है। भाााकर - बरत और सदरतुल ीुन्तहा ीे अन्तर है। बरत ्रोगीा्ा के ब्ाणड करो कहते है, ्ामस अव््ाकृत से सतवारप तक, बमक परीधिाी ीे सार रस सागर से भी आगे अकर ब् का रो रंगीहल है , उसे सदरतुल ीुन्तहा कहते है। असर अ ीी के बाग इत सक रो, हौ रोए ासार। रा स काहू ीे, ीरोहरोलात ्ा अन्दर।।५१८।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 906 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी के बागय, हौ ााले कौशर, ्ीुसा ी, सूरी शरोभा ासारय, ीहलय, ्ा उसके अन्दर की लीलाओं के सम्बन्धि ीे अब मकसी प्रकार का साी ीा् भी संश् सहीप रह ग्ा है। इस असर की भी क्ा कहू,ं इस कंु ी अतन्त बूझ। और बात इत कहां रही, काढ्ा हक के मदल का गुझ।।५२।। इस ब्ाााी ीे असन्त ञास णछपा हुआ है। ाााी से श्री रा ब इस ी के मदल (ीाररफत) के रहव्य करो ही उ ागर कर मद्ा है, तरो उससे प्रकट हरोसे ााले अकर धिाी तका परीधिाी के पच्चीस पकय (हकीकत) के बारे ीे ीै मकतसा कहूँ। अब तरो ्हाँ कुछ भी कहसे की सवकधत सहीप रह ग्ी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 907 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीहाीत कहे ए ीरोमीसय, ए ऐसी कंु ी इली। ए ीेहेर देखरो ीेहेबबू की, तुीकरो पढ़ाए आप खसी।।५३।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक हे साक ी! तारती ाााी की ीमहीा इस प्रकार की है। मप्र्ती अकरातीत की इस कृपा करो देखख्े मक ाे वा्ं आपके धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर ब्ाााी का रस मपला रहे है। भाााकर - इस चौपाई का ्ह वपष्ट आश् है मक अपसे धिाी हद् ीे ्गु ल वारप करो बसासे पर ही ब्ाााी के रहव् खल ु ते है। अन्् मकसी से शब्दय के बा् अकर करो तरो ासा ा सकता है, आन्तररक रहव्य करो सहीप। इस सम्बन्धि ीे श्रृंगार ४/१८२ का ्ह ककस ीहतापूार हैए हक बातस की बारीमक्ां, सरो हक के मदए आात। सा सीखे ससिसखाए सा सरोहरोबते, हक ीेेहरे पाात।। प्रकरा ।।१८३।। चौपाई ।।१८०४२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 908 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर सातीा मससबत का इस प्रकरा ीे अकरातीत के मदल ीे लहरासे ााले ीूल सम्बन्धि के सागर का ाार स मक्ा ग्ा है। अब कहूं दरर्ा सातीा, रो मससबत भरपूर। ्ा करो ाार स पार काहू,ं रो सूर के सूर करो सूर।।१८।। श्री ीहाीधत ी की आतीा कहती है मक अब ीै धिाी धिसी के हद् ीे उीडसे ााले मसवबत के उस असन्त सागर का ाार स कर रही हूँ, ससि सीे ीूल सम्बन्धि का रस भरा हुआ है। ्ह अकरातीत की हद् वारपा श्ाीा ी और उसकी अँगरपा सखख्य के अपसे धिाी धिसी से ीूल सम्बन्धि का सागर है। भाााकर - अकरातीत का ीाररफत वारप मदल ही श्ाीा ी एां सखख्य के रप ीे प्रकट हरोकर लीला कर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 909 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रहा है। अतः श ्ह वपष्ट है मक अकरातीत के मदल ीे रो कुछ भी प्रेी (इशक), आसन्द, सौन्द्र , ञास आमद गुा मादीास है, ाे वााभामाक रप से श्ाीा ी और सखख्य ीे भी उसी प्रकार मादीास हयगे , ससि स प्रकार एक आी की गुठली (बी ) से पैदा हरोसे ााले सभी आीय ीे ाे गुा हयगे रो गुठली ीे मादीास के। इसका ीूल कारा गुठली और आी का अटू ट सम्बन्धि है। इसी सम्बन्धि करो इस सागर के रप ीे दशार्ा ग्ा है। धिाी धिसी के मदल ीे मादीास इशक, आसन्द, सौन्द्र , और इली आमद गुाय करो "सूर" कहा ग्ा है, ससि सका प्रकट वारप श्ाीा ी एां सखख्ाँ है। इस चौपाई के चौकेे चरा का ्ही भाा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 910 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बेसुीार ल्ाए सुीार ीे, ए रो करत हय ी कूर। क्य आाे बीच महसाब के, रो हक अंग सदा ह ूर।।२।। अकरातीत की अँगरपा श्ाीा ी एां सखख्ाँ पल- पल उसके सम्ीुख रहती है। धिसी से इसके ससि स ीूल सम्बन्धि के सागर के बारे ीे ीै ाार स कर रही हूँ , ाह असीी है। ीैसे उसे सीीाबद करसे का प्र्ास मक्ा है , मकन्तु ाह मकसी भी सीीा की पररधधि ीे सहीप आ रहा है। खूबी क्य कहूं मससबत की, ाावते मससबत खल ु ी हकीकत। तरो पाई हक ीारफत, रो की हक मससबत।।३।। ीै इस ीूल सम्बन्धि के सागर की माशेषताओं का ाार स कैसे करँ। ीूल सम्बन्धि के कारा ही परीधिाी की हकीकत के रहव्य का वपष्टीकरा हुआ तका धिाी धिसी के ीाररफत वारप मदल के भेदय का पता चला। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 911 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मससबत असल सबस की, ससि त मससबत धतत सब। सब मससबत के ाावते, इलीे ाहेर मकए अब।।४।। सभी सखख्य का ीूल सम्बन्धि श्री रा ी के मदल से है। उस ीूल सम्बन्धि ीे ही सब कुछ (इशक, इली, आसन्द आमद) णछपा हुआ है। इस सम्बन्धि के कारा ही तारती ञास का अातरा हुआ, ससि ससे हकीकत एां ीाररफत के सभी रहव्य करो उ ागर मक्ा है। भाााकर - परीधिाी ीे इस प्रकार की भाासा सहीप की ा सकती मक सखख्य का श्री रा सहीप है , बसलक श्ाीा ी से सीधिे सम्बन्धि ी से है। ावतुतः श परीधिाी ीे ाहदत हरोसे से सबका एक ही वारप है और सभी श्री रा ी के ीाररफत वारप मदल से ुडे हुए है। इस सम्बन्धि ीे खखलात १८३ /६,७ का ्ह ककस बहुत ीहतापूार हैप्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 912 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बडी रह कहे प््ारे ीुझे, ीेरा साहेब बु रक। और प््ारी रहे ीेरे तस है, ए ासरो तुी बेसक।। तुी रहे सूर ीेरे तस का, इस माधि केहेाे हक। बरोहरोत प््ारी बडी रह ीुझे, ीै तुीारा आससिसक।। मससबत हक की ात है, मससबत ीे इवक। मससबत ाावते इली, इत आ्ा बेसक।।५।। श्ाीा ी तका सखख्ाँ श्री रा ी की अँगरपा है। इसके अन्दर ही इशक है तका इसके खल्े ही इस संसार ीे ्ह संश् रमहत तारती ञास अातररत हुआ है। भाााकर - मससबत का वारप केाल श्ाीा ी ही सहीप, बसलक सखख्ाँ भी है। ्ह श्रृंगार २३/३ के इस ककस से ससिसद है- प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 913 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और तरो करोई है सहीप, मबसा एक हक ात। ात ीांहे हक ााहेदत, हक हादी मगररो केहेलात।। ए हके मक्ा इवक सय, कई बंधि बांधिे सरो ासत है मससबती, हूर। रो खखलात हुई ी कूर।।६।। धिाी धिसी से इशक के कई बन्धि बाँधिकर प्रत्क रप ीे अपसे ीूल सम्बन्धि करो दशार्ा है। इस बात करो ीा् ब्सृमष्ट्ाँ ही अच्छी तरह से ासती है, क्यमक उसके बीच ीूल मीलााा ीे इसी माष् पर ाातार हुई की। हके मससबत ाावते, कई बंधि बांधिे ीाहे खेल। सब सुख देसे मससबत करो, तीस बेर आए ीाहे लैल।।७।। धिाी धिसी से ीूल सम्बन्धि के कारा ही खेल ीे कई प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 914 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बन्धि बाँधिे। श्ाीा ी तका अपसी अँगसाओं करो हर प्रकार का सुख देसे के खल्े ाे ीा्ा के खेल ीे तीस बार आ्े। भाााकर - पूारक दरोसय चौपाइ्य ीे प्रेी के बन्धि बाँधिसे की बात कही ग्ी है। बन्धि (गाँठ, बाँधि) बाँधिसे का उदेश् हरोता है मक ाह ावतु मबखरसे ्ा बहसे स पा्े। धिाी धिसी से अपसा अखणड प्रेी असेक रपय ीे दशार्ा है, ससि से बन्धि बाँधिसा कहा ग्ा है। ाे बन्धि इस प्रकार है१८. श्री रा ी तीसय लीलाओं ीे पल-पल हीारे साक रहे है। २. व ्ा ागसी ीे प्रत्ेक कष्ट से उन्हयसे अपसी अँगसाओं की रका की है। ३. इस ागसी ब्ाणड के छठे मदस की लीला ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 915 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्य के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर उन्हयसे असेक प्रकार की शरोभा दी है। ४. श्री इन््ााती ी के अन्दर अपसी पाँचय शमक्य समहत मारा ीास हरोकर उन्हयसे अपसे से भी बडी शरोभा दी है। "बडी बडाई दई आप के " (प्रकास पहदवु तासी) का ककस ्ही ससिसद करता है। ५. ्हाँ बैठे-बैठे परीधिाी पच्चीस पकय तका अष्ट प्रहर की लीला समहत सभी सुखय का रसपास करा्ा है। ६. पराती की तरह ्हाँ भी शाहरग से स दीक रहे है। ७. व ीे हाँ गरोमप्य करो ररझा्ा, तरो ीे श्री देाचन्् ीहाीधत ागसी ब्ाणड ी का साीास उठाकर चले और श्री ी के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर अपसी आतीाओं करो गासे के खल्े गाँा-गाँा, ँगल- ँगल पैदल चले। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 916 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अव्ाल देखा्ा लैल ीे, मससबत ास इवक। दस ू री बेर देखाइ्ा, गुझ इवक ीुतलक।।८।। धिाी धिसी से व ीे ीूल सम्बन्धि के कारा ही अपसा इशक मदखा्ा। मसधशत रप से इसी सम्बन्धि के कारा दस ू री बार रास लीला ीे भी मप्र्ती से अपसा प्रेी दशार्ा। ाावते मससबत बेर तीसरी, खेल मदखा्ा हक। इली बडाई इवक, देख्ा गुझ बका का बेसक।।९।। ीूल सम्बन्धि के कारा ही धिाी धिसी से तीसरी बार ्ह ागसी का खेल मदखा्ा। इसीे तारती ञास के दारा ब्सृमष्ट्य से इशक की ीमहीा और परीधिाी की रहव्ी्ी बातय करो ासा। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 917 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मससबत ाावते इवक, मससबत ाावते इली। खस ु ाली मससबत ाावते, आखखर ल्ाए खसी।।१८०।। ब्सृमष्ट्य से अपसा अखणड सम्बन्धि हरोसे के कारा ही श्री रा ी ्ह ब्ाााी लेकर आ्े है। प्रेी और आसन्द की लजत (वााद) भी इसी कारा से आ सकी है। ए इली अन्दर ्य केहेत है, ए रो मससबत देखत दख ु । इस दख ु ीे बका असर के, है हक मदल के कई सुख।।१८१८।। ्दमप इस खेल ीे ब्सृमष्ट्य करो ीा्ा के दः शु ख देखसे पडते है, मकन्तु श्रीीुखाााी का ककस है मक इस दः शु ख की लीला ीे भी अखणड परीधिाी (हकीकत) तका श्री रा ी के मदल के असेक सुखय (ीाररफत) का असुभा हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 918 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए सुख सागर मससबत का, धतसका सुीार स आाे क्ांहे। सब हके ीपाए सागर, पर मससबत तौल करोई साहे।।१८२।। मसवबत (ीूल सम्बन्धि) का ्ह सागर असन्त आसन्द से भरपूर है। मकसी प्रकार से भी इसकी सीीा रेखा सहीप खीपची ा सकती। धिाी धिसी से अपसी ीेहर से अपसे मदल के सभी सागरय की ीाप करा दी , मकन्तु ीूल सम्बन्धि के इस सागर के सीास अन्् करोई भी सहीप लगा। भाााकर - ्दमप ीासाी् बुधद ीे सीझ आसे के खल्े धिाी धिसी से अपसे सागरय का अलग-अलग ाार स मक्ा है, मकन्तु बाधतसी रप ीे सभी सागर एक -दस ू रे ीे सीामहत है। मकसी की भी शरोभा करो की ्ा अधधिक करके सहीप कहा ा सकता। ाहदत ीे की ्ा अधधिक शब्द का धचन्तस ही सहीप हरोता। ाैसे इस संसार के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 919 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिरातल पर इस प्रकार अाश् कहा ाता है। ीापे गेहेरे सागर, ससि सकरो काह स देखे करोए। धतस हक मदल अन्दर पैठ के, ीापे इवक सागर सरोए।।१८३।। ीैसे प्रेी के दारा श्री रा ी के मदल ीे पैठकर उस असन्त प्रेी (इशक) के सागर करो ीाप डाला। इसके अन्् सभी गहरे सागरय करो ीापा , ससि सकी आ मदस तक करोई भी काह सहीप ले सका का। भाााकर - "ीै हक देखूं हक देखे ीुझे , ्य दरोऊ अरसपरस भै्ां " (ससिससगार १८४/३५) की सवकधत ीे ही धिाी धिसी के मदल ीे बैठा ा सकता है। इसके खल्े गहस प्रेी की सवकधत ीे ्गु ल वारप करो अपसे धिाी हद् ीे बसासा हरोता है। सागरय करो ीापसे का तातप्र है , श्री रा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी के मदल ीे 920 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी डु बकी लगाकर उसकी (सागरय की) वपष्ट पहचास कर लेसा। रो हक काहूं स पाइ्ा, सा मकस सुमस्ा कास। पा्ा स ााके असर करो, आ रो कौस ठौर ीकास।।१८४।। मदस तक इस सृमष्ट ीे मकसी भी प्रााी से अकरातीत परब् करो सहीप पा्ा का और स अपसे कासय से उसके बारे ीे कुछ सुसा का। उस असामद परीधिाी के बारे ीे भी करोई ास सहीप पा्ा का मक ाह कहाँ पर है। सब बु रकय ढू ंढ्ा, मकस पाई स बका तरफ। दमु स्ां चौदेे तबक ीे, मकस कह्ा स एक हरफ।।१८५।। सभी ञासी सय से उस परब् करो ढू ँढा, मकन्तु करोई भी अखणड परीधिाी का ञास सहीप प्राप कर सका। चौदह प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 921 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी लरोक के इस ब्ाणड ीे रहसे ाालय से परीधिाी के बारे ीे एक शब्द भी सहीप कहा है। धतस हक मदल अन्दर पैठके, ीाप््ा सागर इवक। इस हकके इलीे ररोससी, सब ीापे सागर बेसक।।१८६।। ीैसे उस अकरातीत के हद् ीे बैठकर उसीे लहरासे ााले इशक (प्रेी) के असन्त सागर करो ीाप (पहचास) खल्ा। धिाी धिसी के मद्े हुए तारती ञास से ीैसे मसधशत रप से सभी सागरय की पहचास कर ली है। सरो इवक इली सुख सागर, ाावते आए मससबत। इस मससबत के तौल करोई, ल्ाऊं कहां से हक न््ाीत।।१८७।। इस प्रकार "इशक और इली" सुख के असन्त सागर है, रो श्ाीा ी तका सखख्य के इस खेल ीे आसे के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 922 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी कारा ही संसार ीे आ्े। ीूल सम्बन्धि के इस सागर के सीास और कौस सी मसधधि (सम्पदा, सेीत) है, ससि से ीै लाऊँ (ाार स करँ)। भाााकर - ब्ाााी का अातरा ही इली के सागर का अातरा है तका इस ाााी से मप्र्ती के वारप करो पहचासकर उसकी शरोभा-श्रृंगार ीे डू ब ासा आतीा के खल्े इशक के सागर का इस संसार ीे आ ासा है। ्ह सब ीूल सम्बन्धि (मसवबत) के कारा ही सम्भा हरो पा्ा है। ए मससबत रो सागर, ासे मससबती ीरोमीस। कहूं काह स गेहेरा सागर, करोई पााे स मससबत मबस।।१८८।। धिाी धिसी के मदल ीे मारा ीास मसवबत का ्ह सागर इतसा गहरा है मक इसकी करोई काह (सीीा) सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 923 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ब्सृमष्ट्य के अधतररक अन्् करोई स तरो इसे ासता है और स इसीे डु बकी लगा पाता है (असुभा कर पाता है)। तरो क्य कहूं रोड मससबत की, रो दी े मससबत ीास। मससबत हक की ात है, रो हक ााहेदत सुभास।।१८९।। श्ाीा ी और सखख्ाँ श्री रा ी की अँगरपा है और उसकी एकमदली का वारप है, अकारत् श्री रा का ीाररफत वारप मदल ही हकीकत ीे श्ाीा ी ी और सखख्य के वारप ीे लीला कर रहा है। इसखल्े इसके सीास करोई और दस ू रा है ही सहीप, ससि ससे इसकी उपीा दी ा सके। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 924 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बरोहरोत लेहेरी इस सागर की, ीेहेर इवक इली। सरोभा ते सुख कई बका, इस मससबत ीे ात खसी।।२०।। ीूल सम्बन्धि (मसवबत) के इस सागर ीे ीेहर, इशक, इली, शरोभा, ते , और परीधिाी के अन्् कई प्रकार के सुखय की असन्त लहरे उीडा करती है। श्ाीा ी और सखख्य के वारप ीे वा्ं धिाी धिसी ही लीला करते है। एह इली ए इवक, और मससबत कही रो ए। ए तीसय ससिसफत ीाहे ीरोमीसय, मससबत हक की े।।२१८।। तारती ाााी का ञास, धिसी के प्रधत अटू ट प्रेी , और उसके चराय (वारप) से अखणड सम्बन्धि की ीमहीा करो ीा् ाे ब्सृमष्ट्ाँ ही ्काकर रप से ससि सका श्री रा ासती है , ी से ीूल सम्बन्धि हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 925 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकस पा्ा स इस इली करो, मकस पा्ा सा ए इवक। तरो क्य पााे ए मससबत, पेहेले सूरत स पाई हक।।२२।। आ मदस तक ब मकसी करो ्ह तारती ञास मीला ही सहीप का, तरो ाह अकरातीत के वारप के बारे ीे क्ा ास सकता का। ब वारप का ही ञास सहीप, तरो ाह धिसी से प्रेी भी कैसे करता। ऐसी सवकधत ीे अकरातीत से अंगसा भाा पैदा हरोसे का प्रश ही सहीप का। ए गुझ भेद हक रहस के, हक मदल की भी और। ए ासे हक मससबती, ाकरो हक कदी तले ठौर।।२३।। अकरातीत तका ब्सृमष्ट्य के बीच के ीूल सम्बन्धि एां श्री रा ी के ीाररफत (परीसत्) वारप मदल के ्े गु् भेद है। इन्हे ीा् ाे ब्सृमष्ट्ाँ ही ासती है , ीूल मीलााा ीे धिसी के चराय ीे बैठी हुई है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 926 / 992 रो श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई से पूार इस प्रकरा ीे रो बाते बता्ी ग्ी है, उन्हे ही इस चौपाई ीे गु् भेद कहकर ारात मक्ा ग्ा है। ब देखय हक मससबत, तब एकै हक मससबत। और हक का हुकी, कछू सा हुकी मबसा मकत।।२४।। ब ीै धिसी से अपसे ीूल सम्बन्धि के बारे ीे माचार करती हूँ (देखती हूँ), तब परीधिाी ीे सार ् उस सम्बन्धि का ही प्रकटीकरा मदखा्ी देता है। और ब ीै धिसी के हुकी के माष् ीे सरोचती हूँ, तरो ्ही वपष्ट हरोता है मक श्री रा ी के हुकी के मबसा कहीप भी - कुछ भी सहीप है। भाााकर - धिाी धिसी का हुकी परीधिाी, ्रोगीा्ा, तका कालीा्ा तीसय ब्ाणड ीे चलता है। इस सम्बन्धि ीे प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 927 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी खखलात ५/३७,३९ का ककस देखसे ्रोग् हैहके मक्ा हुकी ातस ीे, सरो उप त अंग असल। स ै ा देखत सुपस ीे, ए रो बरतत इत सकल।। कहे लदन्न ु ी भरोी तले् की, हक बैठे खेलाात। तैसा इत हरोता ग्ा, स ै ा ह ूर हुकी करत।। ागसी लीला धिसी के हुकी से चल रही है तका श्री रा ी के ही हुकी वारप अकर ब् की लीला ्रोगीा्ा ीे हरोती है। "हुकी सूर खद ु ाए का, रो है सूर लाल" (बीतक ६२/५१८) का ककस ्ही दशार रहा है। रो करोई हक के हुकी का, ताए रो इली करे बेसक। लेाे अपसी ीेहेर ीे, तरो सेक दीदार कबूं हक।।२५।। धिाी धिसी के हुकी से बसे हुए इस खेल ीे ्मद व््मक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 928 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ( ीा सृमष्ट) तारती ाााी से संश् रमहत हरो तका धिसी की कृपा का पा् बस कभी रा ाता है ाता है , तरो उसे भी ी का कुछ दशर स हरो सकता है (झलक मील सकती है)। भाााकर - इस चौपाई ीे उस ीाय का ाार स है , रो तारती ाााी के प्रकाश ीे अटू ट माशास (ईीास) पर खडे हरो ाते है तका ब्सृमष्ट्य की तरह प्रेी की राह अपसा लेते है। ऐसी अावका ीे उन्हे भी पच्चीस पकय समहत श्री रा ी के दशर स का सौभाग् प्राप हरो है। हाँ! उन्हे श्ाीा ाता ी एां सखख्य की पराती का दशर स सहीप हरो सकता। ्ह बात आगे की चौपाइ्य ीे बता्ी ग्ी है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 929 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पर कबूं दीदार सा मससबत का, सा काहूं करो ए न््ाीत। ए ुबां इस मससबत की, कहा करसी ससिसफत।।२६।। मकन्तु उसे श्ाीा ी ्ा सखख्य की पराती का दशर स सहीप हरो सकता। इसके अधतररक अन्् मकसी ईशरी सृमष्ट करो भी श्ाीा ी ्ा सखख्य की पराती के दशर स का सौभाग् प्राप सहीप हरोता। ऐसी सवकधत ीे श्ाीा सखख्य की ीमहीा का ाार स कैसे मक्ा ी तका ा्े , ससि सके दशर स का अधधिकार ईशरी सृमष्ट करो भी सहीप है। ए रो सरप मससबत के, काहूं स देाे देखाए। बदले आप देखाात, प््ारी मससबत रखे णछपाए।।२७।। श्री रा ी अपसी अँगसाओं तका श्ाीा ी के वारप का दशर स मकसी करो भी सहीप कराते। उसकी गह ाे वा्ं ही दशर स दे देते है और अपसी प््ारी अँगसाओं करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 930 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी णछपाकर रखते है। भाााकर - इस ककस करो लौमकक भााय से सहीप देखसा चामह्े। ावतुतः श इस प्रकार की लीला अपसी अँगसाओं के प्रधत धिाी धिसी के असन्त प्रेी करो दशारती है। मसीूसा इस मससबत का, करोई साहीप इस सीास। ज्य मसीूसा दस ू रा, मद्ा स ससि स प्रकार श्री रा ाए सुभास।।२८।। ी की उपीा मकसी से सहीप दी ा सकती, उसी प्रकार श्ाीा ी एां सखख्य की तुलसा भी मकसी के भी साक करसे का प्रश ही सहीप है। ्े अमदती् है। क्य दी े मसीूसा इसका, रो कही हक की ात। मससबत इवक इली, ज्य मबररख फल फूल पात।।२९।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 931 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अकरातीत की अँगरपा श्ाीा उपीा भला मकसी के साक कैसे की ी एां सखख्य की ा सकती है। ससि स प्रकार मकसी ाृक ीे पखत्ाँ , फल, और फूल लगे हरोते है, उसी प्रकार श्ाीा ी एां ब्ातीाओं ीे प्रेी और परी सत् का ञास मसमहत हरोता है। सब लगे है मससबत करो, इवक इली हुकी। सा तरो कैसे इत श्ाीा ाहेर हरोए, ही तुी इवक इली।।३०।। ी एां सखख्य के अन्दर प्रेी (इशक), ञास (इली), तका आदेश (हुकी) वाभाातः श मादीास है। ्ही कारा है मक धिाी धिसी के साक श्ाीा सखख्ाँ, इशक, और इली भी इस संसार ीे ी, ामहर हरो रहे है, अन््का ्ह सम्भा ही सहीप का। भाााकर - परीधिाी ीे ाहदत (एकमदली) हरोसे के कारा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 932 / 992 श्री सागर टीका श्री रा ी के मदल ीे एां सखख्य ीे भी आ श्री रा स वााीी रो इच्छा हरोती है, ाह श्ाीा ाती है। इसे ही हुकी कहते है। ए सब मससबत ाावते, रो कछू सब्द उठत। ए रो कासय सुसत।।३१८।। रो स रय देखत, ्ा इस चौपाई ीे श्री रा इस ी ी ब्सृमष्ट्य से कहते है मक ागसी लीला ीे तुी ससि स संसार करो देख रही हरो ्ा ब्ाााी का अातरा देख रही हरो अकाा अपसे कासय से धिीर गन्कय के ककसय करो सुस रही हरो , सब कुछ ीेरे हुकी से तुम्हारे खल्े ही हरो रहा है। ज्य हाक पांउं सूरत के, ीुख से् साससिसका कास। त्य सब मील एक सूरत, ्य ााहेदत अंग सुभास।।३२।। ससि स प्रकार एक ही वारप के अन्दर हाक, पैर, ीुख, प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 933 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी से्, साससिसका, और कास आमद अंग हरोते है तका ्े सभी मीलकर एक वारप बसते है, उसी प्रकार श्ाीा और सखख्ाँ श्री रा ी ी की अँगरपा है। अब कहा कहूं मससबत की, मद्ा स मसीूसा ात। और सब्द स इस ऊपर, अब कहा कहूं ीुख बात।।३३।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक अब ीै श्ाीा ी एां सखख्य की ीमहीा का ाार स कैसे करँ। इसकी मकसी से भी उपीा सहीप दी ा सकती। इस ककस (असुपी) के बाद तरो अब ीेरे पास ऐसा करोई शब्द भी सहीप है , ससि से ीै अपसे ीुख से व््क कर सकँू । ससिसफत अलेखे मससबत, ज्य ससिसफत अलेखे हक। सब्दातीत स आाे सब्द ीे, ीै कही इस बुधि ीाफक।।३४।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 934 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ससि स प्रकार अकरातीत की ीमहीा करो मकसी प्रकार से व््क सहीप मक्ा ा सकता, उसी प्रकार श्ाीा ी एां सखख्य की ीमहीा करो भी शब्दय ीे कह पासा सम्भा सहीप है। ीैसे तरो अपसी बुधद के असुसार बहुत करोडा सा ाार स मक्ा है, अन््का श्री रा ी, श्ाीा ी, एां सखख्य की शब्दातीत ीमहीा का ाार स कर पासा मकसी प्रकार से सम्भा सहीप है। कमहए सारी उीर लग, तरो ससिसफत स आाे सुीार। ए दरर्ा मससबत का, ्ाकी लेहेरे अखंड अपार।।३५।। इस मसवबत सागर की लहरे अखणड और असन्त है। ्मद सारी उम भी इसकी ीमहीा गा्ी ा्े , तरो भी पूार ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 935 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए बात बडी हक मससबत, सरो झूठे खेल ीे साहे। ए बात हरोत बका मीसे, हक खखलात के ीाहे।।३६।। धिाी धिसी से मसवबत की ्ह बात बहुत बडी है, झूठे खेल ीे सांसाररक रो इस ीाय के साक सहीप है। ावतुतः श अखणड मसवबत (सम्बन्धि) तरो परीधिाी के ीूल मीलााे ीे ही है , हाँ सभी ब्सृमष्ट्ाँ धिाी धिसी के चराय ीे बैठी है। भाााकर - आतीाओं के साक तरो धिसी की अखणड मसवबत है, चाहे ाह परीधिाी हरो ्ा वाप्स का ब्ाणड। ्ह बात श्रीीुखाााी के इस ककसय से ससिसद हैए हरोए मबसा मससबते, इतहीप हुई ााहेदत। मससबत ााहेदत एकै, तरो क्य ुदी कमहए खखलात।। ससिससगार १८१८/२७ प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 936 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस गुन्हेगारय के मदल करो, असर कर बैठे ीेहरबास। खल ु ासा ३/७० ीा सृमष्ट तारती ञास गहा कर अाश् धिसी से अपसा सम्बन्धि रोडती है, मकन्तु ्ह ीूल (असामद) मसवबत सहीप है। मसवबत का ाावतमाक वारप परीधिाी ीे ही है। रो खेल ीे खबर सा हक की, तरो मससबत खबर क्य हरोए। हक आससिसक मससबत ीासूक, ााहेदत ीे सा दरोए।।३७।। इस सशर गत ीे ब मकसी करो अकरातीत की ही पहचास सहीप है , तरो उसकी अँगरपा श्ाीा ी एां सखख्य की पहचास कैसे हरो सकती है। श्री रा आणशक है और श्ाीा ी ी तका सखख्ाँ उसकी ीाशूक है। परीधिाी की एकमदली ीे सभी का वारप एक है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 937 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इन्हे दरो कदामप सहीप सीझसा चामहए। ए बात सुसे रो खेल ीे, बडा अचर हरोाे धतस। मकस पाई सा तरफ हक की, ए तरो हक ीासूक ातस।।३८।। इस ीा्ााी गत ीे इस तरह की बाते सुससे पर मकसी करो भी बहुत आश्र हरोता है , क्यमक आ तक मकसी करो ्ह पता सहीप चल सका का मक सधच्चदासन्द परब् कहाँ है। ्ह बात तरो उस परीधिाी की है, हाँ धिाी धिसी की अँगसा्े प्रेी और आसन्द की लीला ीे ी् रहती है। तीस सूरत ीहंीद की, गुझ हक का ासे सरोए। हक ासे ्ा मससबती, और करोई ासे रो दस ू रा हरोए।।३९।। अकरातीत के मदल की गु् बाते ्ा तरो वा्ं धिाी धिसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 938 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ासते है, ्ा उसकी अँगरपा श्ाीा ी और ब्सृमष्ट्ाँ, अकाा तीसय सूरते बसरी (ीुहम्ीद सामहब), ीलकी (सदर ु धिसी श्री देाचन्् प्राासाक ी ) और हकी (श्री ी)। इसके अधतररक अन्् करोई भी ीाररफत के भेदय करो सहीप ासता , क्यमक उसका सम्बन्धि ीा् इस कालीा्ा ्ा ्रोगीा्ा के ब्ाणड से रहा है। ााहेदत की ए पेहेचास, असर मदल क्ा ीरोमीस। ीासूक क्ा ीहंीद करो, रो असर ीे ्ाके तस।।४०।। ब्सृमष्ट्य का मदल धिसी का अशर (परीधिाी) हरोता है और उसके ीूल तस परीधिाी ीे ही मारा ीास हरोते है रो ाहदत (एकमदली) के वारप हरोते है। धिाी धिसी से श्ाीा ी करो अपसी मप्र्तीा (ीाशूक) कहा है। इस प्रकार श्री रा श्ाीा ी और सखख्य के अन्दर ाहदत प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 939 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का वारप है। ीहाीत कहे ए ीरोमीसय, ए मससबत इवक सागर। ल्रोे प््ाले हक हुकीे, मपओ फूल भर भर।।४१८।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक हे साक ी ! इस मसवबत के सागर ीे असन्त इशक (प्रेी) भरा हुआ है। अब धिाी धिसी के हुकी (आदेश) से अपसे मदल रपी प््ाले ीे परीधिाी का अखणड प्रेी भररए और अधत आसन्द ीे भरकर उसका रसपास कीससि ए। भाााकर - ाहदत की ्ही माशेषता है मक ससि स प्रकार अकरातीत श्री रा ी करो इशक का असन्त सागर कहते है, उसी प्रकार उसकी अँगरपा श्ाीा ब्ातीाओं करो भी इशक का सागर कहा ी एां ाता है। प्रकरा ।।१८४।। चौपाई ।।१८०८३।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 940 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सागर आठीा ीेहेर का इस प्रकरा ीे ीेहर सागर की माशेषताओं पर माशेष मााेचसा की ग्ी है। और सागर रो ीेहेर का, सरो सरोभा अधत लेत। लेहेरे आाे ीेहेर सागर, खूबी सुख सीेत।।१८।। और ्ह आठााँ सागर मप्र्ती परब् की कृपा (ीेहर) का सागर है, ससि सकी शरोभा असन्त है। इस सागर ीे अन्् सातय सागरय की माशेषता्े अपसे आसन्द समहत णछपी हुई है। इस सागर ीे पूार के सात सागरय की असन्त लहरे उीडती रहती है। भाााकर - सधच्चदासन्द परब् असन्त मसधधि्य का ीूल है, पूाारधतपूार है। ऋगाेद के ऐतरे् बा्ा से हाँ उसे "एकीेा अमदती्ी्" कहा, तरो तैतरी्रोपमसषद से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 941 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी "आसन्दरो ब्" कहा, और अकार ाेद १८०/८/१८ से "वा्र व् च केालं" (ीा् आसन्द वारप) कहकर ीौस धिारा कर खल्ा। इसी प्रकार कतेब परम्परा ीे परब् करो ते , शरोभा, और सौन्द्र का सागर (सूर ीाल) कहा ग्ा है। मकन्तु ब तक इस असन्त मसधधि्य का लीला रप ीे प्रकटीकरा स हरो, तब तक क्ा इस गुाय की साकर कता ससिसद हरो सकती है? फारसी भाषा का शब्द "ीेहर" संवकृत ीे कृपा कहलाता है। "कृ" धिातु का तातप्र करसे से हरोता है। इस प्रकार (उप+कृ+घ्) से उपकार (असुगह) शब्द ससिसद हरोता है। लीला रप ीे परब् की असन्त मसधधि्य के आतीा ीे प्राामहत हरोसे की प्रमक्र्ा ही असुगह (ीेहर) कहलाती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 942 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी वालीला अदैत सधच्चदासन्द परब् का हद् सीवत मसधधि्य का भणडार है , ससि सका प्रकटीकरा ही उसके सम्पूार रप ीे दमष्टगरोचर हरो रहा है। ्दमप परीधिाी ीे अन्दर-बाहर एक ही वारप हरोसे से रप और वारप ीे करोई अन्तर सहीप है , मकन्तु ्हाँ के भााय से सीझसे के खल्े इस शब्दय का प्र्रोग मक्ा ग्ा है। इसे श्रीीुखाााी ीे इस प्रकार कहा ग्ा हैआससिसक अपसे सौक करो, माधि माधि सुख चहे। सरोई माधि माधि रप सरप के, सई सई लजत लहे।। मदल रहे बारे ह ार करो, रप सए सए चाहे दीदी। दे चा्ा सरप सबस करो, इस मबधि कादर खसी।। ससिससगार २१८/३१८,३२ इसी प्रकार सख से णशख तक श्री रा ही श्ाीा ी का वारप ी, सखख्य, अकर ब्, ीहालकीी, एां प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 943 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी परीधिाी के २५ पकय के रप ीे दमष्टगरोचर हरो रहा है। इसे ही ीाररफत का हकीकत ीे प्रकटीकरा कहते है। ऋगाेद की भाषा ीे इसे "ऋत्" से सत् का प्रकटीकरा कहते है। ऋत् का भाााकर है - ाह परीसत् ससि सकी प्राीाणाकता ीे मकसी की अपेका स हरो। दस ू रे शब्दय ीे , ही ऐसा भी कह सकते है मक अकरातीत की सीवत मसधधि्ाँ सत् (हकीकत) के रप ीे लीला कर रही है , मकन्तु उसका ीूल अकरातीत के मदल ीे है। परब् के पूार हरोसे से ्दमप हकीकत के का -का ीे ीाररफत (परीसत्) की असुभूधत की उसका ीूल श्ररोत अकरातीत का मस ाती है , मकन्तु वारप ही हरोता है। इस प्रकार अकरातीत परब् के हद् ीे उीडसे ााले सातय सागरय की लहरय का रसावाादस करसा ही ीेहर सागर करो प्राप करसा है। इस तर् करो ऐसे भी कह प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 944 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सकते है मक धिाी धिसी के ीाररफत वारप मदल की पहचास ही ीेहर सागर की पहचास है। संकेप ीे ीेहर सागर की लहरे इस रप ीे आतीा करो असुभूत हरोसी चामहए१८. आतीा करो ्गु ल वारप समहत अपसी पराती, सभी ब्ातीाओं, तका सम्पूार २५ पकय के सूरी वारप का साकातकार हरो ा्े। २. उसे अपसी पराती के सख से णशख तक की सम्पूार शरोभा का असुभा हरो ा्े। ३. उसे ्ह असुभा हरो रा ा्े मक उसका मदल भी श्री ी का ही मदल है तका सभी ब्ाँगसाओं ीे उसी का अदैत वारप मारा ीास है। ४. ्गु ल वारप के सख से णशख तक की शरोभा उसके धिाी हद् ीे बस ा्े। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 945 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ५. मप्र्ती के प्रेी के अधतररक सारा ब्ाणड उसे माष के सीास लगसे लगे। ६. मबसा मकसी के बता्े ब्ाााी के गु्ती रहव्य का उसे बरोधि हरो ा्े। ७. अकरातीत के मदल से उसका एकता वकामपत हरो ासा चामह्े। उसे ्ह वपष्ट रप से असुभा हरोसा चामहए मक उसका वारप श्री रा ी का ही वारप है। दरोसय ीे ीूलतः श करोई अन्तर सहीप है। ्दमप लीला रप ीे ाह इस पञभौधतक तस से पृकक श्ाीा वारपा है, मकन्तु उसका ीूल वारप अकरातीत का मदल है। अकरातीत से एकता के सम्बन्धि ीे ऋगाेद का ्ह ककस देखसे ्रोग् है्द्े व्ाीहं तां तां ाा घा व्ा अही्। व्ष्ट ु े सत्ा इहाणशषः श।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ऋ. ८/४४/२३ 946 / 992 श्री सागर टीका अकारत् हे परब्! श्री रा स वााीी रो "तू" है ाह "ीै" हरो रो "ीै" हूँ ाह "तू" हरो ाऊँ और ा्े। इस सम्बन्धि ीे तुम्हारा ्ह असुगह (आशीष) सत् हरो। ्मद इस प्रकार की असुभूधत आतीा करो हरोती है, तरो ाह कह सकती है मक ीैसे धिाी धिसी की ीेहर (असुगह) करो प्राप कर खल्ा है। हुकी ीेहेर के हाक ीे, रोस ीेहेर के अंग। इवक आाे ीेहेर से, बेसक इली धतस संग।।२।। धिसी का हुकी ीेहर के अन्दर मसमहत है। इसी प्रकार रोश भी ीेहर का ही अंग है। धिसी की ीेहर से ही आतीा के अन्दर धिसी का प्रेी (इशक) आता है और उसके साक ही संश्य करो दरू करसे ााले तारती ञास का प्रकाश हरोता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 947 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक ीे ्ह ारात मक्ा ा चुका है मक श्री रा ब पूार ी के मदल की इच्छा करो हुकी कहते है, तरो इस चौपाई के पहले चरा ीे ारात "हुकी" का वारप क्ा है रो ीेहर ीे मादीास है? इसके सीाधिास ीे ऐसा कहा ा सकता है मक आतीा धिाी धिसी का साकातकार करके एकरप हरो ब ाती है, तरो उस अावका ीे लौमकक इच्छाओं से उसका मकसी प्रकार का सम्बन्धि सहीप रह ाता। धिसी की प्रेराा से ाह ्न््ात् का्र करती है। अब उसकी इच्छा धिसी की इच्छा बस बस ाती है और धिसी की इच्छा उसकी इच्छा ाती है। इसे ही श्रृंगार २/९ ीे कहा ग्ा है मक "है हीहीप हक हुकी।" इसी अावका ीे आतीा करो धिसी के प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा रोश का असुभा 948 / 992 श्री सागर टीका हरोता है, श्री रा स वााीी रो बा्ी अावका का पररचा्क हरोता है। प्रेी और ञास एक-दस ू रे के पूरक है। धिाी धिसी की ीेहर (कृपा) से ही आतीा ीे परीधिाी का इशक आता है, ससि ससे ाह संश् रमहत ञास का अधधिकार प्राप कर लेती है। पूरी ीेहेर ससि त हक की, धतत और कहा चामह्त। हक ीेहेर धतत हरोत है, ससि त असल है मससबत।।३।। हाँ अकरातीत की पूार कृपा हरोती है , ाहाँ और क्ा चामहए। धिाी धिसी की ाावतमाक कृपा ाहीप पर हरोती है , हाँ परीधिाी का ीूल अँकुर (आतीा) हरोता है। भाााकर - ससि स आतीा के धिाी हद् ीे परब् के सागरय की रसधिारा प्राामहत हरो रही हरोती है, उसके खल्े कररोडय ाैकुणठ के राज् भी तुच्छ प्रतीत हरोते है। मकरंतस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 949 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी १८७८/२ का ककस "कई करोट रा बैकुणठ के, स आाे इतके खखस सीास" इसी सन्दभर ीे है , मकन्तु इस प्रकार की अावका ीा् ब्सृमष्ट्य करो ही प्राप हरोती है। धिसी के चराय ीे आसे के बाद, अकारत् ब्ाााी का धचन्तसीसस करसे के पशात्, भी ीा सृमष्ट स तरो सांसाररक इच्छाओं का पररत्ाग कर पाती है और स प्रेी की राह अपसा कर बा्ी अावका की प्रामप कर पाती है। इस प्रकार, ाह श्री रा ी की पूार ीेहर से ांधचत रह ाती है। ीेहेर हरोत अव्ाल से, इतहीप हरोत हुकी। लूस साक सब धतसके, कछू कीी स करत खसी।।४।। अपसी अँगसाओं पर धिसी की ीेहर परीधिाी से ही रही है और इस खेल ीे भी उन्हीप की इच्छा से ीेहर बरस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 950 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी रही है। ीेहर की इस शरोभा ्ा्ा ीे धिाी धिसी की सम्पूार मसधधि्ाँ साक ीे है। मप्र्ती अकरातीत इसीे मकसी प्रकार की कीी सहीप करते है। भाााकर - श्री रा ी के हद् की रसधिारा तरो परीधिाी ीे पल-पल अखणड रप से प्राामहत हरोती ही है। इस खेल ीे भी आती - ागधत की अावका ीे उसका असुभा हरो सकता है। ससि स प्रकार मकसी रा ा की शरोभा ्ा्ा ीे उसका सम्पूार ऐश्र - ीन््ी और सेसा आमद के रप ीे- मदखा्ी देता है, उसी प्रकार ब अकरातीत इस सशर ब्ाणड ीे अपसे आाेश वारप से आ्े है तरो उसके साक उसके हद् के सभी सागरय का रस भी आ्ा है ससि सका वााद ब्सृमष्ट्ाँ ले रही है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 951 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए खेल हुआ ीेहेर ाावते, ीाहेे खेलाए सब ीेहेर। ाके ीेहेर ुदी हुई, तब हरोत सब ेहेर।।५।। ीा्ा का ्ह खेल धिाी धिसी से अपसे पूार वारप की पहचास देसे के खल्े बसा्ा है। इस खेल ीे ब्सृमष्ट्य के साक हरोसे ााली सारी लीला ीेहर की छ्छा्ा ीे ही हरो रही है। ्मद मकसी से अकरातीत की ्ह ीेहर अलग हरो ा्े, तरो उसे ्ह सम्पूार ब्ाणड माष के सीास कष्टकारी लगसे लगता है। भाााकर - परीधिाी ीे श्री रा आसन्द ीे श्ाीा ी से अपसी हकीकत के ी एां ब्ातीाओं करो डु बरो रखा का, ससि सके कारा उसके ीाररफत वारप मदल की पहचास मकसी करो भी सहीप की। उस पहचास करो बतासे के खल्े ही ्ह खेल बसा्ा ग्ा है। "ीेहर का दरर्ा मदल ीे खल्ा तरो रहय के मदल ीे खेल देखसे का ख्ाल उप ा" प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 952 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी का ककस इसी प्रसंग ीे है। इस प्रकार ्ह वपष्ट है मक ससि स ीेहर की पहचास देसे के खल्े ्ह खेल बसा है, सभी लीलाओं के केन्् ीे ाही रहेगी। इस सम्बन्धि ीे खखलात १८२ /१८०० का ्ह ककस बहुत ीहतापूार हैीहाीत कहे ऐ ीरोमीसय, तुी पर दी-दी रो बरतत। सरो सब इवक हक का, पल-पल ीेहर करत।। अपसे प्रााालभ के हद् की पहचास ही तरो अँगसाओं के ीास का आधिार है। उससे (ीेहर से) अलग हरोकर भला ाे इस झूठे संसार ीे प्रसन्नतापूारक कैसे रह सकती है। दरोऊ ीेहेर देखत खेल ीे, लरोक देखे ऊपर का हूर। ाए अन्दर ीेहेर कछू सहीप, आखखर हरोत हक से दरू ।।६।। आतीा इस खेल ीे दरोसय तरह की ीेहर का असुभा कर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 953 / 992 श्री सागर टीका रही है- १८. श्री रा स वााीी ामहरी २. बाधतसी (गु्)। संसार के ीा तरो चीतकारय आमद से केाल ऊपरी पहचास ही ले पाते है। ससि सके अन्दर करोडी भी ीेहर सहीप हरोती , ाे अन्ततरोगताा धिाी धिसी से दरू हरो ाते है। भाााकर - आसतीक धिरातल पर परीधिाी के पच्चीस पकय तका ्गु ल वारप की शरोभा-श्रृंगार आमद का असुभा हरोसा बाधतसी (गु्) ीेहर है। शरीर, इसन्््य, एां अन्तः शकरा के दारा ससि स कृपा का अहसास हरोता है, उसे व लीला एां ामहरी (प्रत्क) ीेहर कहते है। ागसी लीला ीे धिाी धिसी से अपसी अलौमकक लीलाओं से सुन्दरसाक करो ीा्ााी कष्टय से बचा्ा तका उन्हे सुखय ीे डु बरो्े रखा। ्ह भी प्रत्क कृपा के अन्तगर त है। ीा् चीतकारय की बात सुसकर रो लरोग धिाी धिसी के चराय ीे आते है , उसका ईीास रपी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 954 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीहल बालू की दीाार पर खडा हरोता है, ीे भरभराकर मगर रो ीा्ााी कष्टय ाता है। ऐसे लरोगय पर इशक -इली की कृपा सहीप हरोती, ससि सके कारा ीा्ा के कपेडय से घबराकर ्े लरोग श्री रा ी के चराय से दरू हरो ाते है। ीेहेर सरोई रो बातूसी, रो ीेहेर बाहेर और ीाहे। आखखर लग तरफ धिसी की, कीी कछुए आात साहे।।७।। ब्सृमष्ट्य पर रो बा् और आन्तररक ीेहर हरोती है , उसीे आतीा के खल्े हरोसे ााली ीेहर ही ाावतमाक ीेहर (कृपा) है। इस प्रकार की ीेहर ीे पल -पल धिसी से अखणड सम्बन्धि बसा रहता है तका प्रेी एां आसन्द ीे मकसी प्रकार की कीी सहीप हरोती। भाााकर - बाधतसी (आन्तररक) ीेहर करो ही ाावतमाक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 955 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेहर कहसे का कारा ्ह है मक आसतीक आसन्द अखणड हरोता है, बमक बा् कृपा (ीेहर) का प्रभाा कुछ सी् के खल्े ही हरोता है। शरीर और इसन्््य के सशर हरोसे के कारा इसके दारा हरोसे ााली असुभूधत भी अपसा अखणड प्रभाा सहीप छरोड पाती। ीेहेर हरोत है ससि स पर, ीेहेर देखत पांचय तता। पपड ब्ाणड सब ीेहेर के, ीेहेर के बीच बसत।।८।। ससि सके ऊपर धिाी धिसी की ाावतमाक कृपा हरोती है, उन्हे ्ही प्रतीत हरोता है मक सब कुछ ीेहर की छ्छा्ा ीे हरो रहा है। उन्हे पाँच तताय ााला अपसा शरीर तका सम्पूार ब्ाणड भी ीेहर से ही भरा हुआ मदखा्ी देता है। भाााकर - ससि स प्रकार आँ खय पर ससि स रंग का चशीा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 956 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी चढ़ाते है सभी ावतुएँ उसी रंग की मदखा्ी देती है , उसी प्रकार आतीा ब ीा्ा से अपसी दमष्ट हटाकर धिसी की ीेहर करो देख (पहचास) लेती है तरो उसे प्रत्ेक ावतु उसी रप ीे दमष्टगरोचर हरोसे लगती है। दख ु रपी इस ससि ीी ीे, दख ु स काहूं देखत। बात बडी है ीेहेर की, रो दख ु ीे सुख लेात।।९।। ससि सके ऊपर मप्र्ती की कृपा बरसती है, उसे इस दः शु खी् संसार ीे भी दः शु ख का असुभा सहीप हरोता। दः शु खय से भरपूर इस ब्ाणड ीे अखणड सुख का रसपास करसा धिाी धिसी की ीेहर से ही सम्भा है। ्ह ीेहर की बहुत बडी ीमहीा है। भाााकर - दः शु खय का कारा अञासतााश हरोसे ााला तृष्ाा का बन्धिस है। ब आतीा के धिाी हद् ीे मप्र्ती प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 957 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के आसन्द का सागर लहरासे लगता है, तरो उसे सांसाररक कष्टय का ाैसे ही करोई आभास ही सहीप हरोता स ै े ीहामहीाल् अपसी तलहटी ीे बहसे ााली सदी की धिारा के टकराा से माचखलत सहीप हरोता। कृपा (असुगह) और ीेहर शब्द ीे केाल भाषा भेद है। इसीे ीूलतः श भेद सहीप है। इतसा अाश् है मक श्री रा ी की कृ पा करो सांसाररक भाा ााली द्ा की कृपा सहीप सीझसा चामहए, बसलक मप्र्ती श्री रा मप्र्तीा श्ाीा ी ीे अपसी ी एां ब्सृमष्ट्य करो प्रेी दारा ररझासे के खल्े अपसा सार वा लुटासे ्ा न््रोछाार करसे की रो प्राृखत है, उसे ही कृपा ्ा ीेहर कहते है। श्रीीुखाााी के इस ककसय ीे ्ही बात दशार्ी ग्ी है। कृपा है कई माधि की, ए रो तीसय सृष्ट ऊपर। कृपा करसी ीाफक, कृपा ीाफक करसी। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 958 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मकरंतस ७९/१८४,१८५ और ीेहेर ए देखख्रो, कर मद्रो धिाी ातस। साख पुराई सब अंगय, ्य कई माधि कृपा ररोसस।। मकरंतस ८२/७ सुख ीे तरो सुख दा्ी, पर वााद स आात ऊपर। दख ु आए सुख आात, सरो ीेहेर खरोलत स र।।१८०।। परीधिाी ीे अखणड सुख है , मकन्तु एकरसता हरोसे से उसका वााद सहीप मील पा्ा का। अब इस दः शु ख के ब्ाणड ीे आसे से परीधिाी के सुख का वााद मीला है। इस प्रकार का असुभा ीेहर के दारा ही सम्भा हरो पा्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 959 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी इस दख ु ससि ीी ीे बैठ के, ीेहेरे देखे दख ु दरू । का्ी सुख रो हक के, सरो ीेहेर करत ह ूर।।१८१८।। इस दः शु खी् संसार ीे आतीा से धिसी की ीेहर से वा्ं करो दः शु खय से दरू हरोसे का असुभा मक्ा है। श्री रा ी की ीेहर से ही परीधिाी के अखणड सुखय का असुभा इस संसार ीे हरोसे लगता है। भाााकर - ्दमप लौमकक सुख -दः शु ख का भरोका ीा है, आतीा सहीप। आतीा तरो ीा् ्ष्टा है, मकन्तु मकसी करो दः शु खी देखकर कुछ दः शु ख का असुभा हरोता ही है। इस चौपाई ीे आतीा के साक दः शु खय के सम्बन्धि हरोसे का ्ही भाा है। ीै देख्ा मदल माचार के, इवक हक का ससि त। इवक ीेहेर से आइ्ा, अव्ाल ीेहेर है धतत।।१८२।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 960 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीैसे अपसे मदल ीे माचार कर ्ह बात देखी मक ्मद मकसी आतीा ीे धिसी का प्रेी है , तरो ाह ीा् धिसी की ीेहर से है। प्रेी आतीा के ऊपर हरोसे ााली ीेहर का सार प्रकी अंग है। भाााकर - इस चौपाई से ्ह वपष्ट हरोता है मक मकसी के हद् ीे प्रेी आ भला इस ीा्ााी ासा धिसी की कृपा का प्रत्क रप है। गत ीे मप्र्ती परब् की कृपा के मबसा कौस प्रेी की राह पर चल सकता है। अपसा इली ससि स देत है, सरो भी ीेहेर से बेसक। ीेहेर सब मबधि ल्ाात, ससि त हुकी रोस ीेहेर हक।।१८३।। इसीे करोई शक सहीप मक ्मद धिाी धिसी मकसी करो तारती ाााी का गु् ञास देते है , तरो उसीे भी उसकी ीेहर णछपी हरोती है। धिसी की कृपा से उसे सारा ्काकर प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 961 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ञास बहुत ही सरलता से प्राप हरो ाता है। ससि स आतीा के धिाी हद् ीे धिसी की कृपा का प्रााह बहता है, उसीे मप्र्ती का हुकी एां रोश भी मारा ीास हरोता है। ाकरो लेत है ीेहेर ीे, ताए पेहेले ीेहेरे बसााे ा ूद। गुस अंग इं्ी ीेहेर की, रह ीेहेर फूंकत ीाहे बूद।।१८४।। धिाी धिसी ससि से भी अपसी ीेहर की छाँा तले लेते है , उसे सबसे पहले अपसी ीेहर के असुकूल बसाते है। ाे उसके गुा, अन्तः शकरा, तका इसन्््य ीे अपसी कृपा की सुगसन्धि भर देते है तका उसकी आतीा ीे ीेहर का रस उडेल देते है। भाााकर - आतीा के धिाी हद् ीे ीेहर सागर का रस प्राामहत हरोसे के खल्े ्ह आाश्क है मक उसकी इसन्््य तका अन्तः शकरा ीे मसराकाररता आ्े तका प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 962 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी सता, र , एां ती की पररधधि करो पारकर म्गुाातीत अावका की प्रामप की ा्े। ्ह उपलसब्धि ीा् प्रेी और ञास के दारा ही की ा सकती है, इसखल्े धिाी धिसी उसके अन्दर प्रेी की धिारा बहाकर पा्ता लाते है , ततपशात् उसे अपसे ीेहर सागर ीे डु बरो देते है। ीेहेर ससघासस बैठक, और ीेहेर चँार ससिसर छ्। सरोहरोबत सैन््ा ीेहेर की, मदल चाहे ीेहेर बा ं्।।१८५।। ससि स आतीा के धिाी हद् ीे अकरातीत करो मारा ीास हरोसा हरोता है, उसीे ीेहर का ससहासस स ाता है। ससिसर के ऊपर छ् एां चँार भी ीेहर के हरोते है। इसके अधतररक साक ीे सेसा भी ीेहर की हरोती है तका मदल की इच्छासुसार खश ु ी के ब से ााले बा े भी ीेहर के ही हरोते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 963 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई ीे आलंकाररक रप से ्ह ाार स मक्ा ग्ा है मक ब करोई चक्रातर समाट ससहासस पर बैठता है तरो उसकी क्ा शरोभा हरोती है। ावतुतः श अकरातीत ही सीवत ब्ाणडय के समाट है। "एकरो भुासव् रा ा" (ाेद) का ककस इसी प्रसंग ीे है। इसीे संधकप रप से ीेहर के अंगय - इशक, इली, मसवबत, आसन्द- का ाार स है। प्रेी का ससहासस है, छ् और चँार ञास के वारप है , तरो उसकी सुगसन्धि से एकम्त हरोसे ााले सुन्दरसाक मसवबत के वारप है। इसी प्रकार ब से ााले बा े आसन्द के वारप है। आतीा का हद् ही ाह धिाी है, ससि सीे परब् मारा ीास हरोते है। उसकी शरोभा रपी सम्पूार साीगी ीेहर की हरोती है, अकारत् धिसी की ीेहर के मबसा अपसे मदल ीे कभी भी मप्र्ती करो सहीप बसा्ा प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ा सकता। 964 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बरोली बरोलााे ीेहेर की, और ीेहेरै का चलस। रात मदस दरोऊ ीेहेर ीे, हरोए ीेहेरे मीलााा रहस।।१८६।। ससि सके हद् ीे मप्र्ती परब् मारा ीास हरो ाते है , उसकी ाााी ही धिसी की ीेहर (कृपा) करो दशारसे लगती है। उसका आचरा (रहसी) भी ीेहर के रस ीे भीसा रहता है। उसे रात-मदस ामहरी एां बाधतसी (गु्) ीेहर का असुभा हरोता रहता है और उसकी साधन्नध््ता ीे ब्सृमष्ट्य का सीूह आसे लगता है। बंदगी ससि कर ीेहेर की, ए ीेहेर हक हुकी। रहे बैठी ीेहेर छा्ा मीसे, मपए ीेहेर रस इवक इली।।१८७।। धिाी धिसी की कृपा एां आदेश (हुकी) से ही ब्सृमष्ट्ाँ अपसे मप्र्ती की प्रेी लकाा भमक ीे डू बी रहती है तका हीेशा उसकी ीेहर की चचार करती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 965 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेहर की छ्छा्ा ीे ही ाे मप्र्ती के प्रेी तका ब्ाााी के ञास का रसपास करती है। ससि त ीेहेर धतत सब है, ीेहेर अव्ाल लग आखखर। सरोहरोबत ीेहेर देाहीप, कहूं ीेहेर ससिसफत क्य कर।।१८८।। हाँ श्री रा ी की कृपा है, ाहाँ सब कुछ है। उसकी ्ह ीेहर तरो परीधिाी से लेकर अब तक ( ागसी ब्ाणड तक) चली आ्ी है। धिसी की ीेहर से ही उसके चराय की साधन्नध््ता प्राप हरोती है। अकरातीत परब् की ीेहर की असन्त ीमहीा का ाार स ीै कैसे करँ। भाााकर - इस चौपाई ीे "अव्ाल" शब्द का प्र्रोग परीधिाी के खल्े तका "आखखर" का प्र्रोग इस ागसी ब्ाणड के खल्े हुआ है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 966 / 992 श्री सागर टीका ए श्री रा स वााीी रो दरर्ा ीेहेर का, बातूस ाहेर देखत। सब सुख देखत तहां, ीेहेर ससि त बसत।।१८९।। ीेहर के सागर से आतीा करो ामहरी (प्रत्क) एां बाधतसी (अप्रत्क) दरोसय प्रकार की ीेहर का रसावाादस हरोता है। हाँ धिाी धिसी की कृपा हरोती है, ाहाँ प्रत्ेक प्रकार का (बा् एां आसतीक) सुख हरोता है। भाााकर - इस चौपाई ीे बा् सुख का तातप्र है अन्तः शकरा एां इसन्््य से प्राप मक्ा ासे ााला सुख। ब्ञास की बातय करो सुससे एां धचन्तस-ीसस करसे से अन्तः शकरा करो सुख प्राप हरोता है। लौमकक कष्टय से शरीर की सुरका भी बा् सुख के अन्तगर त है। व लीला ीे असेक राकसय एां इन्् -करोप से सुरका भी प्रत्क कृपा ( ामहरी ीेहर) है। सदर ु धिसी श्री देाचन्् प्राप हरोसे ााली आमडका लीला का सुख भी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ी से ामहरी ीेहर 967 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी है। इसी प्रकार शाह हाँपुर बरोमड्े ीे प्रत्क ीृत् ु से गरीबदास ी की प्राा-रका करसा, ीन्दसौर ीे ीुगल सेसा से सुन्दरसाक की सुरका करसा, का ी से हरोसे ााले माााद ीे लालदास ी की ीास रका करसा, तका छ्साल ी के डू बते घरोडे करो केस सदी से पार करसा धिसी की ामहरी ीेहर है। गु् अकारत् अप्रत्क असुगह (बाधतसी ीेहर) का सम्बन्धि ीा् आतीा से हरोता है। इसीे परीधिाी के सभी सागरय का रस प्राामहत हरोसे लगता है और आतीा अपसे प्राा मप्र्ती से एकरप हरो ाती है। बीच साबूद दस ु ी के, आई ीेहेर हक खखलात। धतस से सब का्ी हुए, ीेहेरै की बरकत।।२०।। इस सशर गत् ीे ्ह ीेहर ीूल मीलााा ीे मारा ीास प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 968 / 992 श्री सागर टीका अकरातीत श्री रा श्री रा स वााीी ी के मदल से आ्ी है। धिाी धिसी के असुगह से ही इस ब्ाणड के सभी प्राणा्य करो अखणड ीुमक मीली है (मीलेगी)। बरसस करं क्य ीेहेर की, ससिसफत सा परोहयचत। ए ीेहेर हक की बातूसी, स र ीाहे बसत।।२१८।। ीै अपसे प्राा मप्र्ती अकरातीत की ीेहर का ाार स कैसे करँ। ्हाँ के शब्दय ीे ाार स करसे का साीर्र ही सहीप है। धिसी की ्ह बाधतसी ीेहर उसकी प्रेी भरी दमष्ट ीे मसमहत हरोती है। भाााकर - धिसी की प्रेी भरी दमष्ट से आतीा ीे प्रेी का रस प्राामहत हरोता है, ससि ससे ाह ागत हरोकर श्री रा ी के अखणड आसन्द का पास करसे लगती है। इस चौपाई की दस ू री पंमक का ्ही आश् है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 969 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए ीेहेर करत सब ाहेर, सबका ीता तरोलत। रो मकस कासय सा सुन््ा, सरो ीेहेर ीग खरोलत।।२२।। श्री रा ी की बाधतसी ीेहर से सभी धिीर गन्कय के भेद वपष्ट हरोते है और इसके दारा ही सभी ीतय के ञास के वतर का आँ कलस हरोता है। आ तक अध््ाती गत की ससि स बातय के बारे ीे मकसी से सुसा सहीप हरोता , इस बाधतसी ीेहर से उसके भी गु् भेदय का वपष्टीकरा हरो ाता है। भाााकर - प्रा्ः श प्रत्ेक ीत का असु्ा्ी अपसे ही धिीर गन्कय और ससिसदान्तय करो सारपरर ीासता है , मकन्तु परी सत् तरो सार का एक ही हरोता है। ब तक बा्ी अावका प्राप सहीप हरोती, तब तक ्काकर सत् करो सहीप ासा ा सकता, क्यमक ीासाी् बुधद के ञास की एक सीीा हरोती है। धिाी धिसी की ीेहर से ही आसतीक दमष्ट प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 970 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी खल ु ती है और सभी धिीर गन्कय ीे णछपे हुए उस ्काकर सत् करो ास खल्ा ाता है, ससि सके बारे ीे करोई सरोच भी सहीप सकता का। ीा् धिसी की इस ीेहर से ही ्ह ासा ा सकता है मक मकस ीत की आध््ासतीक उपलसब्धि कहाँ तक है, अन््का प्रत्ेक ीत का असु्ा्ी केाल अपसे करो ही परब् के साकातकार का अधधिकारी ीासता है, अन््य करो सहीप। बरसस करं क्य ीेहेर की, रो बसत हक के मदल। ाकरो मदल ीे लेत है, तहां आात न््ाीत सब मील।।२३।। अकरातीत के हद् ीे मारा ीास ीेहर के सागर की ीमहीा का ाार स ीै कैसे करँ। धिाी धिसी ससि से अपसे मदल ीे ले लेते है , उस आतीा ीे ीेहर के सागर की सारी मसधधि्ाँ मारा ीास हरो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ाती है। 971 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई ीे सभी मसधधि्य का आश् सातय सागरय के रस से है। बरसस करं क्य ीेहेर की, रो बसत है ीाहे हक। ाकरो मसाा े ीेहेर ीे, ताए देत आप ीाफक।।२४।। अकरातीत के हद् ीे मसमहत ीेहर के सागर की गररीा का ीै कैसे ाार स करँ। धिाी धिसी ससि स पर अपसी असुकम्पा (कृपा) बरसाते है, उसे अपसे असुकूल देते है। भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा का माणशष्ट भाा है। अकरातीत के हद् ीे असन्त प्रेी, असन्त आसन्द, और असन्त असुगह का सागर लहरा्ा करता है। उसके मकसी भी गुा की करोई सीीा रेखा सहीप खीपची ा सकती। इस प्रकार उसकी ीेहर भी उसकी इस गररीा के असुकूल असन्त ही हरोती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 972 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बात बडी है ीेहेर की, ससि त ीेहेर धतत सब। मसीख सा छरोडे स र से, इस ऊपर कहां कहूं अब।।२५।। श्री रा है। ी की ीेहर की असन्त (बहुत बडी) ीमहीा हाँ उसकी ीेहर हरोती है, ाहाँ सारी मसधधि्ाँ वातः श मारा ीास हरोती है। उस आतीा करो धिाी धिसी एक पल के खल्े भी अपसी स रय से अलग सहीप करते। इससे अधधिक ीै और क्ा कहूँ। भाााकर - अकरातीत की ीेहर भरी स र सब पर सीास रप से हरोती है, मकन्तु उसे पासे की पा्ता मकसीमकसी ीे ही बस पाती है। "ीेहेर सब पर ीेहेबूब की, पर पााे करसी ीाफक " का ककस ्ही दशारता है। ससि स प्रकार आणशक अपसे ीाशूक करो एक पल के खल्े भी अपसी दमष्ट से ओझल सहीप करता , उसी प्रकार धिाी धिसी अपसी अँगसाओं करो पल भर के खल्े भी अपसी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 973 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेहर भरी स रय से ओझल सहीप करते। दस ू रे शब्दय ीे ्ह भी कह सकते है मक अपसी अँगसाओं पर ीेहर के रप ीे धिाी धिसी का लाड-प््ार ही प्राामहत हरोता है, ससि से एक आणशक का अपसे ीाशूक पर न््रोछाार (बखलहारी) हरो ासा कहते है। हां आप तहां स र, ीेहेर मबसा और हां स र तहां ीेहेर। रो कछू, सरो सब लगे ेहेर।।२६।। ससि स ब्समष्ट्य के धिाी हद् ीे वा्ं अकरातीत मसाास करते है, ाहीप पर उसकी ीेहर भरी स र (दमष्ट) हरोती है। इस आतीाओं के खल्े धिाी धिसी की ीेहर के अधतररक सारा ब्ाणड माष के सीास कष्टकारी लगता है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 974 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी बात बडी है ीेहेर की, ीेहेर हरोए सा मबसा अंकूर। अंकूर सरोई हक मससबत, ीाहे बसत त ला सूर।।२७।। अकरातीत की ीेहर की गररीा असन्त है। मबसा अँकुर (सम्बन्धि) के धिसी की ीेहर सहीप हरोती। अँकुर भी ऐसा हरो, ससि सीे अकरातीत से ीूल सम्बन्धि हरो और परीधिाी ीे मसाास हरो। भाााकर - इस चौपाई ीे ्ह संश् हरोता है मक सधच्चदासन्द परब् तरो सबके है , मफर भी उसकी ीेहर केाल ब्सृमष्ट्य के खल्े ही क्य हरोती है? ्ह पूार ीे कहा ा चुका है मक सातय सागरय का बहता हुआ रस ही ीेहर सागर है। ब संसार के ीा ्रोगीा्ा के आसन्द करो सहीप सम्भाल पाते , तरो ीेहर सागर की रसधिारा करो कैसे आतीसात् कर सकेगे। सू्र का प्रकाश कीचड, पतकर, एां आतशी शीशे पर सीास रप से प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 975 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी पडता है, मकन्तु कीचड कभी भी आतशी शीशे की तरह अम् की लपट सहीप पैदा कर सकता। इसी प्रकार धिाी धिसी की ीेहर तरो सभी पर है, मकन्तु अपसी करसी के असुकूल ही प्रामप हरोती है। इस सम्बन्धि ीे श्रीीुखाााी का ककस है- "ीेहेर सब पर ीेहेबूब की, पर पााे करसी ीाफक।" ज्य ीेहेर त्य रोस है, ज्य रोस त्य हुकी। ीेहेर रेहेत सूर बल खलए, तहां हक इवक इली।।२८।। धिाी धिसी की ीेहर ब आतीा के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोती है, तरो धिसी का हरोता है और श्री रा रोश भी ाहाँ अाश् ी के हुकी की शमक भी रहती है। ीेहर ीे ही तारती ञास का बल मसमहत हरोता है। ससि स हद् ीे मप्र्ती अकरातीत की ीेहर हरोती है , ाहाँ प्रेी प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 976 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी और ञास अाश् रहते है। भाााकर - "ए सूर आगे के आइ्ा, अछर ठौर के पार" (कलस पहदवु तासी) तका "सूर साी तारती" के आधिार पर, इस चौपाई ीे भी "सूर बल" का अकर तारती ञास का बल हरोगा। इस प्रकार "सूर" और "इली" एकाकर ााची शब्द है। ीीठा सुख ीेहेर सागर, ीेहेर ीे हक आराी। ीेहेर इवक हक अंग है, ीेहेर इवक प्रेी काी।।२९।। श्री रा ी की ीेहर ीे असन्त मीठास का सुख भरा हुआ है। धिाी धिसी का असन्त आसन्द ीेहर से ही असुभा ीे आता है। ीेहर के सागर ीे लहरासे ााला इशक धिसी का अंग है। ीेहर से ही धिसी के प्रधत प्रेी की इच्छा हरोती है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 977 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - इस चौपाई के चौकेे चरा ीे "काी" शब्द का तातप्र ाैकाररक "काी" से सहीप, बसलक मदव्् "काी" से है ससि सका अकर हरोता है अखणड प्रेी की चाहसा। इशक और प्रेी सीासाकर क शब्द है, इसीे ीा् भाषा भेद है। काी बडे इस ीेहेर के, ए ीेहेर इस हक। ीेहेर हरोत ससि स ऊपर, ताए देत आप ीाफक।।३०।। अकरातीत के हद् की बहती हुई रसधिारा ही ीेहर है। इस प्रकार इस ीेहर के काी भी बहुत बडी गररीा ााले हरोते है। धिाी धिसी की ीमहीा असन्त है। ब ाे मकसी पर ीेहर करते है, तरो अपसी ीमहीा के असुकूल उस आतीा करो अखणड मसधधि्य से भर देते है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 978 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेहेरे खेल बसाइ्ा, ाावते ीेहेर ीरोमीस। ीेहेरे मीलााा हुआ, और ीेहेर फररवतस।।३१८।। ब्सृमष्ट्य पर ीेहर करसे के खल्े ही धिाी धिसी से अपसी ीेहर की दमष्ट से इस खेल करो बसा्ा है। ीेहर से ही ब्सृमष्ट्य तका ईशरी सृमष्ट की भाााकर - श्ाीा ागसी हुई है। ी समहत ब्सृमष्ट्ाँ हकीकत के आसन्द ीे इतसी डू बी रहती कीप मक उन्हे श्री रा ी के ीाररफत वारप मदल की पहचास ही सहीप की। ्ह पहचास देसे के खल्े ही उन्हयसे अँगसाओं के मदल ीे खेल देखसे की इच्छा पैदा की। इसे ही ब्ातीाओं के खल्े ीेहर करसा कहा ग्ा है। हुकी (आदेश) भी ीेहर का अंग है और धिसी के हुकी से ही ्ह खेल बसा है, इसखल्े इसे ीेहर से बसा हुआ कहा ग्ा है। ब्सृमष्ट्य करो ब्ाााी के दारा अपसे ीाररफत वारप प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 979 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी मदल की पहचास देसी की, इसखल्े इस ीे धिसी की ीेहर से उसकी ागसी ब्ाणड ागसी हुई। ीेहेरे रसूल हरोए आइ्ा, ीेहेरे हक खलए फुरीास। कंु ी ल्ाए ीेहेर की, करी ीेहेरे हक पेहेचास।।३२।। धिाी धिसी की ीेहर से ीुहम्ीद सामहब उसका आदेश प् "कुरआस" लेकर आ्े। ब्सृमष्ट्य पर ीेहर करसे के खल्े ही श्ाीा ी तारती ञास लेकर आ्ीप। ीेहर से ही ब्ाााी दारा धिसी की पहचास हुई है। भाााकर - महन्द ू धिीर गन्कय ीे परीधिाी और अकरातीत की साकी तरो की, मकन्तु तौरेत, इं ील, और ंबूर ीे इस प्रकार की साकी स हरोसे से कुरआस का अातरा हुआ, तामक ागसी ब्ाणड ीे ब्सृमष्ट्य करो परीधिाी एां अन्् बातय की साकी मील सके तका प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा ीा सृमष्ट भी 980 / 992 श्री सागर टीका श्री प्राासाक श्री रा स वााीी ी के वारप की पहचास कर सके। ्ही कारा है मक ीुहम्ीद सामहब एां कुरआस का अातरा भी धिसी की ीेहर से ही ीासा ग्ा है। इसी प्रकार सदर ु धिसी श्री देाचन्् ी (श्ाीा ी) के दारा तारती ञास का अातरा भी धिसी की ीेहर से ही सम्भा हुआ है। दई ीेहेरे कंु ी इीाी करो, तीसय ीहंीद सूरत। ीेहेरे दई महकीत, करी ीेहेरे ाहेर हकीकत।।३३।। धिाी धिसी की ीेहर से ही तीसय सूरतय का अातरा हुआ तका श्री ीहाीधत ी करो तारती ञास से सभी धिीर गन्कय के भेद खरोलसे की कला मीली। श्री रा की ीेहर से ही ीहाीधत ी ी से धिीर गन्कय के ाावतमाक सत् करो उ ागर मक्ा है। भाााकर - ीुहम्ीद का अकर है - ीमहीा से परे। इस प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 981 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ागसी ब्ाणड ीे ब्सृमष्ट्य करो परीधिाी की राह मदखासे के खल्े श्री रा ी के हुकी से तीस वारपय का अातरा हुआ, ससि न्हे बशरी (ीुहम्ीद सामहब), ीलकी (सदर ु धिसी श्री देाचन्् प्राासाक ी ), हकी (श्री ी) कहते है। सरो फुरीास ीेहेरे खरोखल्ा, करी ाहेर ीेहेरे आखखरत। ीेहेरे सीझे ीरोमीस, करी ीेहेरे ाहेर खखलात।।३४।। श्री ीहाीधत ी से धिाी धिसी की ीेहर से कुरआस तका भागात आमद धिीर गन्कय के भेदय करो खरोला और आखखरत का सी् ामहर मक्ा। इस धिीर गन्कय के गूढ़ रहव्य करो श्री रा ी की ीेहर से ही ब्ातीाओं से सीझा। धिसी की ीेहर से ही परीधिाी के ीूल मीलााे का ञास इस संसार ीे आ सका। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 982 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी भाााकर - कुरआस के असुसार मक्ाीत का सी् ही आखखरत का सी् है, ससि सीे हकीकत और ीाररफत की राह आखरल ईीाी ीुहम्ीद ीहदी के दारा दी ा्ेगी। इसके पशात् ीहाप्रल् हरोगा और सारी द मु स्ा बमहशतय ीे अखणड हरो ा्ेगी। इसी प्रकार पुराा संमहता, ीाहेशर तन््, श्रीीदागात्, तका बृहतसदाणशा संमहता के असुसार वा्ं परब् अपसी आतीाओं के खल्े ागत बुधद का ञास ला्ेगे , ससि सका असुसरा करके आतीाएँ करेगी। ागत हयगी और अपसे परीधिाी करो प्राप ीा सृमष्ट भी उस ञास करो पाकर ीहाप्रल् के पशात् अखणड ीुमक करो प्राप हरोगी। इसी सी् करो ाेद कतेब की ीान््ता ीे आखखरत का सी् ीासा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 983 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ए ीेहेर ीरोमीसय पर, एही खासल खास उीत। दई ीेहेरे णभवत सबस करो, सरो ीेहेर ीरोमीसय बरकत।।३५।। इस ब्सृमष्ट्य पर धिसी की ीेहर की ाषार हुई है , क्यमक ्े अकरातीत की अँगरपा है और सबसे माशेष सृमष्ट है। ब्सृमष्ट्य के इस ीा्ााी गत ीे आसे के कारा ही कृपा रप ीे सम्पूार ब्ाणड करो ्रोगीा्ा (बमहशतय) ीे अखणड ीुमक मीली है। ीेहेरे खेल देख्ा ीरोमीसय, ीेहेरे आए तले कदी। ीेहेरे क्ाीत करके, ीेहेरे हँसके मीले खसी।।३६।। श्री रा ी की ीेहर से ही ब्ीुमस्य से इस ीा्ााी खेल करो देखा है। धिसी की ीेहर से ही ाे ब्ाााी का ञास प्राप कर अपसे मप्र्ती परब् के चराय ीे आ्े है। धिसी की ीेहर से ही उन्हयसे सम्पूार ब्ाणड करो प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 984 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी अखणड ीुमक पासे का सौभाग् प्रदास मक्ा है और इस खेल के सीाप हरोसे के पशात् परीधिाी ीे अपसे मप्र्ती से मीलेगे। भाााकर - मकरन्तस ७६/१८ ीे वपष्ट रप से कहा ग्ा है मक "ीुक देसी ब्ाणड करो , आए ब् आती सत। " ्दमप ीा सृमष्ट करो अखणड ीुमक तरो धिसी की ीेहर से ही हरोगी, मकन्तु शरोभा ब्ीुमस्य करो दी ग्ी है। ीेहेर की बाते तरो कहू,ं रो ीेहेर करो हरोाे पार। ीेहेरे हक न््ाीत सब ीापी, ीेहेरे ीेहेर करो सहीप सुीार।।३७।। ीेहर की बाते तरो तब की ा्े , ब उसकी करोई सीीा हरो। धिाी धिसी की ीेहर से ीैसे उसके मदल की सभी मसधधि्य की पहचास कर ली है। इस प्रकार धिसी के ीेहर सागर से आसे ााली ीेहर की ीमहीा असन्त है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 985 / 992 श्री सागर टीका रो ीेहेर ठाढ़ी रहे, तरो ीेहेर ीापी श्री रा स वााीी ाए। ीेहेर पल ीे बढ़े करोट गुसी, सरो क्य ीेहेरे ीेहेर ीपाए।।३८।। ्मद ीेहर की ाृधद सवकर रहे , तब तरो उसकी करोई ीाप भी ली बढ़ ा्े। एक ही पल ीे धिसी की ीेहर कररोडय गुसा ाती है। ऐसी सवकधत ीे ्ह कदामप सम्भा सहीप है मक ीेहर सागर की ीेहरय करो ीापा ा सके। भाााकर - इस प्रकरा की चौपाई ३७-३८ ीे "ीेहेरे ीेहेर" ीे दरो बार ीेहर शब्द आ्ा है। इसका तातप्र है ीेहर सागर की ीेहरे। ीेहर सागर से प्रेी (इशक), ञास (इली), एकता (ाहदत), ीूल सम्बन्धि (मसवबत), और आसन्द आमद की ीेहर का रस आतीा ीे प्राामहत हरोता है, इसखल्े ीेहर शब्द करो बहुाचस ीे "ीेहेर"े कहकर ाार स मक्ा ग्ा है। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 986 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेहेरे मदल असर मक्ा, मदल ीरोमीस ीेहेर सागर। हक ीेहेर ले बैठे मदल ीे, देखरो ीरोमीसय ीेहेर कादर।।३९।। धिाी धिसी की ीेहरय से ब्सृमष्ट्य के (ीेर)े मदल करो धिाी बसा मद्ा, ससि ससे ्ह मदल ही अब ीेहर का सागर बस ग्ा है। हे साक ी! अब तरो धिाी धिसी ही अपसी सम्पूार ीेहर के साक मदल ीे मारा ीास हरो ग्े है। अब उसकी ीेहर करो देखखए (पहचामसए)। भाााकर - अपसे धिाी मदल ीे मप्र्ती करो बसासे का अधधिकार तरो सभी ब्सृमष्ट्य करो है , मकन्तु इस चौपाई ीे श्री ीहाीधत ी के धिाी हद् ीे मारा ीास हरोकर उसके ही मदल करो "ीेहर सागर" बसासे का प्रसंग है। बात बडी है ीेहेर की, हक के मदल का प््ार। सरो ासे मदल हक का, ्ा ीेहेर ासे ीेहेर करो सुीार।।४०।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 987 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी धिसी के ीेहर की असन्त ीमहीा है। ्ह श्री रा ी के मदल के प्रेी का वारप है। इसके वारप करो ्ा तरो ीेहर करसे ााला धिसी का मदल पर ीेहर हरोती है, ाे ासता है, ्ा ससि स ब्सृमष्ट्य ासती है। भाााकर - फारसी भाषा ीे "ीेहर" शब्द का अकर हरोता है- अलाह की ओर से की ासे ााली ीुहब्बत। महन्दी ीे इसका सीासाकर क शब्द असुगह है, ससि सका तातप्र हरोता है- अकरातीत के दारा अपसी आतीाओं करो अपसे मदल के सागर ीे डु बरो लेसा। रो एक ाचस कहूँ ीेहेर का, ले ीेहेर सीससिझ्रो सरोए। अपार उीर अपार ुबांए, ीेहेर करो महसाब स हरोए।।४१८।। ्मद ीै धिाी धिसी की ीेहर के बारे ीे एक भी बात कहती हूँ तरो ऐसा सीझसा चामहए मक ीै धिाी धिसी की प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 988 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी ीेहर से ही ऐसा कह पा रही हूँ, अन््का उसकी ीेहर का ाार स कर पासा ीेरे खल्े सम्भा सहीप है। ्मद ीेरे तस करो असन्त उम मील ा्े और ीेरी असन्त ससि िहा्े हय , तरो भी ीेहर का पूार ाार स (ीाप) हरो पासा सम्भा सहीप है। मसपट बडा सागर आठीा, ए ीेहेर करो सीके ास। रो ीेहेर हरोए तुझ ऊपर, तरो ीेहेर की हरो् पेहेचास।।४२।। हे ीेरी आतीा! तू इस बात करो अच्छी तरह से ास ले मक श्री रा ी के मदल का ्ह आठााँ सागर ीेहर का सागर है, रो मसधशत रप से असन्त (बहुत बडा) है। श्री रा ी की ीेहर की पहचास हरोसा तभी सम्भा है , ब तुम्हारे ऊपर उसकी पूार ीेहर हरो। भाााकर - इस चौपाई ीे श्री ीहाीधत ी से अपसे ऊपर ककस करते हुए पररोक (सांकेधतक) रप से सुन्दरसाक प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 989 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी करो सम्बरोधधित मक्ा है। सात सागर बरसस मकए, सागर आठीा मबसा महसाब। ए ीेहेर करो पार स आाहीप, रो कई करोट करँ मकताब।।४३।। इस सागर के ाार स से पूार ीैसे सात सागरय का ाार स मक्ा है, मकन्तु ्ह आठााँ सागर (ीेहर का सागर) असन्त है। इसके ाार स ीे ्मद ीै कररोडय पुवतके भी खलख दँ,ू तरो भी ीेहर सागर का पूार ाार स हरो पासा सम्भा सहीप है। भाााकर - अकरातीत के ससि स मदल से असन्त परीधिाी का प्रकटीकरा हुआ है, उस ीाररफत वारप मदल का पूार ाार स कर पासा कहीप भी - मकसी भी प्रकार से सम्भा सहीप है , चाहे ाह कालीा्ा का ब्ाणड हरो ्ा ्रोगीा्ा का। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 990 / 992 श्री सागर टीका ए ीेहेर ीरोमीस श्री रा स वााीी ासहीप, ससि स ऊपर है ीेहेर। ताकरो हक की ीेहेर मबसा, और देखे सब धिसी की ीेहर करो ीा् ाे ब्ीुमस ही ेहेर।।४४।। ासते है , ससि सके ऊपर उसकी ीेहर बरसती है। इस ब्ीुमस्य करो श्री रा ी की ीेहर के मबसा ्ह सारा ब्ाणड माष के सीास दः शु खदा्ी प्रतीत हरोता है। ीहाीत कहे ए ीरोमीसय, ए ीेहेर बडा सागर। सरो ीेहेर हक कदीय तले, मपओ अीीरस हक स र।।४५।। श्री ीहाीधत ी कहते है मक हे साक ी ! ्ह ीेहर का सागर असन्त है। आप उसके चराय ीे आइ्े और उसकी स रय से ीेहर की अीृती्ी रसधिारा का पास कीससि ए। भाााकर - ब्ाााी के धचन्तस-ीसस से धिसी के चराय प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 991 / 992 श्री सागर टीका श्री रा स वााीी के प्रधत अटू ट श्रदा ा माशास (ईीास) उतपन्न हरोता है। इसे ही धिसी के चराय ीे आसा कहते है। धचतामस के दारा मारह -प्रेी ीे डू बकर ब आतीा अपसे प्रााालभ का दीदार करती है, तरो उसके हद् से ीेहर सागर की लहरे आतीा के धिाी हद् ीे प्राामहत हरोसे लगती है। इसे ही अीृत रस का पास करसा कहते है। इसे पुरााय ीे ारात कालीा्ा का अीृत सहीप सीझसा चामहए, बसलक ्ह तरो अकरातीत का असन्त प्रेी और आसन्द है, ससि से प्राप करसा हीारा प्रकी कतरव्् है। इस चौपाई ीे धिाी धिसी की ओर से सब सुन्दरसाक करो इस उपलसब्धि तक पहुँचसे के खल्े आदेश (हुकी) मद्ा ग्ा है। प्रकरा ।।१८५।। चौपाई ।।१८१८२८।। ।। सागर सम्पूार ।। प्रकाशकः श श्री प्राासाक ञासपीठ, सरसााा 992 / 992