Uploaded by Vaibhav Sharma

अब मादक कातिल नैनों के

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अब मादक कातिल नैनों के ,
इस आडम्बर से बचिा हूँ |
कभी दरवाज़ों में छु पिा हूँ,
कभी एहसासों में जलिा हूँ |
िेरी साूँसों की इस तसरहन में,
मैं बसिा हूँ, मैं बहिा हूँ |
मुझे आसति की आूँखों से,
क्यों िकिी रहिी यों िुम हो,
ककसी चचिंगारी सा बुझ जाऊिं;
या अिंगारा मैं बन जाऊिं |
इन कागज़ की दीवारों को,
धूतमल यों करिा मैं जाऊिं |
िू कहिी - कहिी मुस्काए,
मैं हिंसिे - हिंसिे तमट जाऊिं...
मैं हिंसिे - हिंसिे तमट जाऊिं...
“वैभव”
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