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यतिना ब्रह्म भवती सारथी

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यतिन ां ब्रह्म भविी स रथी !
योग शब्द, जो भ रि में अलौकिि है, आज एि अतििीय महत्व प्र प्त िर चुि है। योग ि प्रभ व इिन
वैतिि हो गय है कि भ रि िे ब हर योग तवितवद्य लयो में योग प ठ्यक्रम पढ रहे हैं, लेकिन तवदेतशयों
ि र इस पर खचच िी ज ने व ली बडी र तश आांखें चि चौंध िरने
व ली है। योग शब्द ने पूरी दुतनय
में क्र ांति ल दी और भ रिीय सांस्ि रों और सांस्िृ ति िी पहच न िो किर से स्थ तपि किय । योग िो एि
तवज्ञ न िे रूप में अब स्थ तपि किय ज चूि है. जो श रीररि और म नतसि तवि रों से मुक्त िरि है,
स थ ही एि ऐस तवज्ञ न जो मन िी अलौकिि श ांति भी देि है.
भ रि में भी, योंग आज स म न्य जन िि पहुँच गय है और 21 जून, 2015 िो अांिर ष्ट्र
च ीय योंग कदवस िे
रूप में घोतिि किए ज ने िे ब द से हर भ रिीय गवच महसूस िरि है। किर भी, एि ि म तलि होन
अभी भी औसि व्यतक्त िी पहांच से ब हर है।
'युतजर योग' ि अथच है योंग जो जोडि है। योग जो शरीर िो मन से, मन िो आत्म से और आत्म िो
सवोच्च परम त्म से जोडि है। आध्य तत्मि उत्थ न िे इस तहस्से िो छोडिर, आज योग िे न म पर ब िी
सब िु छ तबि
रह है जो लोितप्रयि भी ह तसल िर चूि है । लेकिन व्यतक्तगि चेिन िो तवि
ब्रहम ांड िी ब्र ह्मी चेिन से जोडने व ल योग ही योग िी सही पहच न और योग अभ्य स ि मूल
उद्देश्य है। यद्यतप यह उद्देश्य ही नहीं , योग ि अभ्य स िरने िे िई अन्य ल भ भी हैं, और यकद तनयतमि
अभ्य स मूल उद्देश्य िी उपेक्ष िरि है, िब भी इस
उद्देश िी पूर्िच जरुर होगी।
योग िे अनूठे तचकित्सिीय ल भों ने ही व स्िव में पहले पतिमी लोगों िो योग िे तवज्ञ न िी ओर
आिर्िचि किय , किर उन्होंने योग िो पूरी िरह से ज न तलय । आज िोतवड िी पृष्ठभूतम में योग पहले से
िहीं अतधि प्र सांतगि हो गय है। प्रदूतिि व ि वरण, प्रदूतिि पयचवरण, ि स्ट िू ड, व्यस्ि जीवन और म नतसि
िन व आकद स्व स््यपर
पर प्रतििू ल प्रभ व ड ल रहे हैं। यद्यतप आधुतनि तवज्ञ न ने हमें असांख्य सुतवध एां
दी हैं, लेकिन स थ ही हमने तवज्ञ न ि दुरुपयोग किय है और आपद एां पैद िी हैं। यह सब हम रे
स्व स््य िो प्रभ तवि िरि है और नि र त्मिि िो बढ ि है। इसतलए आज योग िी बहि जरूरि है।
योग िे म ध्यम से हम न िे वल विचम न पीढी िो बतकि भतवष्य िो भी बेहिर बन सििे हैं।
हम आधुतनि तवज्ञ न िे स थ जो िरिे हैं, वही योगिे स थ हमने किय है। श यद आम जनि ने योग ि
अथच व्य य म, योग सन, प्र ण य म जैसी श रीररि गतितवतधयों िि ही सीतमि समझ । लेकिन जैसे स्व स््य
श रीररि स्व स््य िि तसतमि न होिर म नतसि स्व स््य,आध्य तत्मि स्व स््य िे स थ-स थ समग्र स्व स््य
और िलस्वरूप स म तजि स्व स््यही
एि स्वस्थ सम ज ि तनम ण
च िरि है। योग न िे वल श रीररि
गतितवतध िे म ध्यम से श रीररि स्व स््य प्रद न िरि है बतकि श रीररि शुति िे स थ-स थ म नतसि
और वैच ररि स्िर पर आमूल-चूल पररविचन भी ल ि है, एि स्वस्थ जीव िो सक्षम बन ि है और इसे
ब्रह्म ांडीय चेिन से जोडने में सक्षम बन ि है। इसतलए योग िी सह यि से हम सांपूणच स्व स््य िे स थस थ अध्य तत्मि उत्थ न भी प्र प्त िर सििे हैं।
यह एि तनयम है कि हम र व्यतक्तत्व हम रे तवच रों िे सम न है।एि क्रोतधि व्यतक्त और एि खुश व्यतक्त
िे ह वभ व य ने उसिे शरीर में व्यक्त उसिे तवच र ही िो है, है न ?
क्रोध, लोभ, ईष्य च, घृण , जैसे
तवच र शरीर पर प्रतििू ल प्रभ व ड लिे हैं, रक्त पररसांचरण िो बढ िे हैं और म स
ां पेतशयों में िन व पैद
िरिे हैं। यह किर से एि श्ृांखल बन ि है जो म नतसि िन व पैद िरि है। शरीर िी ऊज च अन वश्यि
चीजों पर खचच होिी है। प्रतिरक्ष प्रण ली िमजोर होिी है और शरीर बीम ररयों ि घर बन ज ि है।
योग उस जांजीर िो िोडने ि अमृि है जो इन सभी बीम ररयों ि ि रण बनिी है।
दरअसल, योग सीखने िे तलए किसी योग गुरु य तशक्षि से सीधे सांपिच ि िोई तविकप नहीं है। ह ल ांकि
स्व-अध्ययन एि खुल तविकप है, लेकिन गलि होने पर योग िे ब रे में गलि ध रन बन ज ने िी
सांभ वन अतधि होिी है। किर भी, योंग िे ल भ यकद हम जन लेिे है िो तनतिि िौर पे इस कदश में
हमें अग्रेसर होने िी प्रेरण तमलेगी.। िो आइए ज नें योग िे िु छ ि यदों िे ब रे में।
1. समग्र स्व स््य प्र प्त िरन । मजबूि शरीर, मजबूि म ांसपेतशय ां, श ांि मन, तस्थर बुति और एि खुशह ल
स्वभ व, एि ऐस व्यतक्तत्व जो हर िोई च हि है।
2. योग हम री ज गृि चेिन िो शुि िरि है और तनरां िर ज गरूिि प्रद न िरि है। हम अपने प्रत्येि
ि यच िे ब रे में ज गरूि हो ज िे हैं और हम रे िमच पूरी चेिन में होिे हैं। तनणचय लेने िी क्षमि बढिी
है।भले बुरे से सचेि होिे है/
3. भ वन त्मि सांिुलन प्र प्त िरने में बहि सह यि, सुख-दुख, अपम न आकद िी िोई चचांि नहीं और
म नतसि तस्थरि प्र प्त होिी है।
4. जीवन में तजन िौशलों िी आवश्यिि होिी है उनि तवि स होि है प्रत्येि ि यच िु शल बनि है और
जीवन िी गुणवत्त में वृति होिी है।
5. एि अच्छे इां स न िे सभी गुणों ि तवि स होि है। “यतिन ां ब्रह्म भविी स रतथ” अथ चि जो अपनी
चेिन में तस्थर रहि है उसि स रथी स्वयां ब्रह्मचेिन बन ज ि है।
योग िे इन न्यूनिम ल भों िो ज निर सभी योग िे प्रति आिर्िचि हो और अपने जीवनिो स्वस्थ, सुखद
बन ये िथ सभी िो कदव्यि िी प्र तप्त हो एिम त्र प्र थचन है!
-तप्रयांि गोव रे
योग तशक्षि, डॉ. र जेंद्र गोडे आयुवद
े िॉलेज अमर विी
priyankasgoware@gmail.com
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